ओम् शान्ति 18-1-19 मधुबन


प्राणप्यारे अव्यक्त बापदादा के अति स्नेही, सदा लवलीन स्थिति में रह बुद्धि के विमान से, मधुबन के चारों धामों की तथा अव्यक्त वतन की सैर करने वाले डबल लाइट फरिश्ता स्वरूप निमित्त टीचर्स बहिनें तथा सर्व ब्रह्मण कुल भूषण भाई बहिनें,

ईश्वरीय स्नेह सम्पन्न मधुर याद स्वीकार करना जी।
बाद समाचार - सभी ब्रह्मा वत्स प्यारे ब्रह्मा बाबा का यह 50 वां स्मृति दिवस सो समर्थी दिवस बहुत स्नेह और श्रद्धा के साथ मना रहे हैं। चारों तरफ बाबा के सभी बच्चे अमृतवेले से ही विशेष योग अभ्यास में बहुत मीठीमीठी रूहरिहान करते, वरदानों से अपनी झोली भरते हैं। इस दिन मधुबन का नज़ारा तो बहुत अलौकिक आकर्षण करने वाला होता है। हजारों भाई बहिनें सवेरे से ही चारों धामों की परिक्रमा लगाते प्यार के सागर में लवलीन रहते हैं। इस बार बाबा मिलन के इस सेवा टर्न में महाराष्ट्र - आंध्र प्रदेश, तेलंगाना के भाई बहिनें पहुंचे हुए हैं। उनके साथ अन्य ज़ोन के भाई बहिनें भी विशेष स्मृति दिवस निमित्त आये हुए हैं। डबल विदेशी भाई बहिनें भी 400 के करीब हैं। इस प्रकार 18-19 हजार भाई बहिनों का विशाल संगठन है। उसमें से 5-6 हजार भाई बहिनें सवेरे-सवेरे अपने-अपने साधनों से पाण्डव भवन पहुंच गये। सर्व प्रथम प्यारे बापदादा के विशेष साकार वा अव्यक्त मधुर महावाक्य क्लास में सुने। फिर प्यारे बापदादा को शशी बहन ने भोग लगाया। सन्देश सुनने के बाद सभी मुख्य दादियां तथा वरिष्ठ भाई बहिनें ओम् शान्ति भवन में बाबा के कमरे से होते हुए शान्ति स्तम्भ पर पहुंचे। जहाँ बाबा की यादों के मधुर गीत, मधुर वाणी ग्रुप ने गाकर सभी को भाव विभोर कर दिया। फिर तो लम्बी कतार में सभी चारों धामों की यात्रा करते प्राणप्यारे बाबा को अपने स्नेह सुमन अर्पित करते, उनकी सकाश एवं वरदानों से अपनी झोली भरते रहे। हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी कलकत्ता बांगुर सेवाकेन्द्र के 700 भाई बहिनें फूलों से शृंगार करने मधुबन पहुंचे हैं। सभी ने बहुत प्यार से मधुबन के चारों धामों को सुन्दर डिजाइन में सुगन्धित फूलों से सजाया है। इसके अलावा अन्य सभी बाबा के दर्शनीय स्थलों को भी सुन्दर फूल मालाओंसे सजाया गया है।
शान्तिवन में भी अमृतवेले से ही सभी भाई तपस्या धाम में और बहनें बाबा के कमरे में नम्बरवार जाते रहे। उसके बाद सभी हल्का नाश्ता करके डायमण्ड हाल में पहुंचे, जहाँ योग अभ्यास के साथ आदरणीय निर्वैर भाई जी ने साकार बाबा के अंग-संग के बहुत सुन्दर अनुभव सुनाये तथा बाबा के जीवन चरित्रों पर विशेष प्रकाश डाला। उसके बाद प्यारे बापदादा को भोग स्वीकार कराया गया फिर सभी ने ब्रह्मा भोजन किया। पाण्डव भवन में दोपहर तक सभी चारों धामों की यात्रा करते शान्तिवन वापस आ गये। आज स्मृति दिवस पर जो प्यारे बापदादा के महावाक्य हम सबने वीडियो द्वारा सुने हैं, वह आप सबके पास भेज रहे हैं। अपनी क्लासेज़ में सबको रिफ्रेश करना जी।
18-1-19 ओम् शान्ति ''अव्यक्त-बापदादा'' रिवाइज वीडियो 18-01-07
''अब स्वयं को मुक्त कर मास्टर मुक्तिदाता बन सबको मुक्ति दिलाने के निमित्त बनो''
आज स्नेह के सागर बापदादा चारों ओर के स्नेही बच्चों को देख रहे हैं। दो प्रकार के बच्चे देख-देख हर्षित हो रहे हैं। एक हैं लवलीन बच्चे और दूसरे हैं लवली बच्चे, दोनों के स्नेह की लहरें बाप के पास अमृतवेले के भी पहले से पहुँच रही हैं। हर एक बच्चे के दिल से ऑटोमेटिक गीत बज रहा है - ''मेरे बाबा''। बापदादा के दिल से भी यही गीत बजता -''मेरे बच्चे, लाडले बच्चे, बापदादा के भी सिरताज बच्चे''। आज स्मृति दिवस के कारण सबके मन में स्नेह की लहर ज्यादा है। अनेक बच्चों की स्नेह के मोतियों की मालायें बापदादा के गले में पिरो रही हैं। बाप भी अपने स्नेही बांहों की माला बच्चों को पहना रहे हैं। बेहद के बापदादा की बेहद की बांहों में समा गये हैं। आज सब विशेष स्नेह के विमान में पहुंच गये हैं और दूर-दूर से भी मन के विमान में अव्यक्त रूप से, फरिश्तों के रूप से पहुंच गये हैं। सभी बच्चों को बापदादा आज स्मृति दिवस सो समर्थ दिवस की पदमापदम याद दे रहे हैं। यह दिवस कितनी स्मृतियां दिलाता है और हर स्मृति सेकण्ड में समर्थ बना देती है। स्मृतियों की लिस्ट सेकण्ड में स्मृति में आ जाती है ना। स्मृति सामने आते समर्थी का नशा चढ़ जाता है। पहली-पहली स्मृति याद है ना! जब बाप के बने तो बाप ने क्या स्मृति दिलाई? आप कल्प पहले वाली भाग्यवान आत्मा हो। याद करो इस पहली स्मृति से क्या परिवर्तन आ गया? आत्म-अभिमानी बनने से परमात्म बाप के स्नेह का नशा चढ़ गया। क्यों नशा चढ़ा? दिल से पहला स्नेह का शब्द कौन सा निकला? ''मेरा मीठा बाबा'' और इस एक गोल्डन शब्द निकलने से नशा क्या चढ़ा? सारी परमात्म प्राप्तियां मेरा बाबा कहने से, जानने से, मानने से आपकी अपनी प्राप्तियां हो गई। अनुभव है ना! मेरा बाबा कहने से कितनी प्राप्तियां आपकी हो गई! जहाँ प्राप्तियां होती हैं वहाँ याद करनी नहीं पड़ती लेकिन स्वत: ही आती है, सहज ही आती है क्योंकि मेरी हो गई ना! बाप का खजाना मेरा खजाना हो गया, तो मेरापन याद किया नहीं जाता है, याद रहता ही है। मेरा भुलाना मुश्किल होता है, याद करना मुश्किल नहीं होता। जैसे अनुभव है मेरा शरीर, तो भूलता है?भुलाना पड़ता है, क्यों? मेरा है ना! तो जहाँ मेरापन आता है वहाँ सहज याद हो जाती है। तो स्मृति ने समर्थ आत्मा बना दिया - एक शब्द ''मेरा बाबा'' ने। भाग्य विधाता अखुट खजाने के दाता को मेरा बना लिया। ऐसी कमाल करने वाले बच्चे हो ना! परमात्म पालना के अधिकारी बन गये, जो परमात्म पालना सारे कल्प में एक बार मिलती है, आत्मायें और देव आत्माओंकी पालना तो मिलती है लेकिन परमात्म पालना सिर्फ एक जन्म के लिए मिलती है। तो आज के स्मृति सो समर्थी दिवस पर परमात्म पालना का नशा और खुशी सहज याद रही ना! क्योंकि आज का वायुमण्डल सहज याद का था। तो आज के दिन सहजयोगी रहे कि आज के दिन भी याद के लिए युद्ध करनी पड़ी? क्योंकि आज का दिन स्नेह का दिन कहेंगे ना, तो स्नेह मेहनत को मिटा देता है। स्नेह सब बातें सहज कर देता है। तो सभी आज के दिन विशेष सहजयोगी रहे या मुश्किल आई? जिसको आज के दिन मुश्किल आई हो वह हाथ उठाओ। किसको भी नहीं आई? सब सहजयोगी रहे। अच्छा जो सहजयोगी रहे वह हाथ उठाओ। (सभी ने उठाया) अच्छा - सहजयोगी रहे? आज माया को छुट्टी दे दी थी। आज माया नहीं आई? आज माया को विदाई दे दी? अच्छा आज तो विदाई दे दी, उसकी मुबारक हो, अगर ऐसे ही स्नेह में समाये रहो तो माया को तो विदाई सदा के लिए हो जायेगी। बापदादा इस वर्ष को न्यारा वर्ष, सर्व का प्यारा वर्ष, मेहनत से मुक्त वर्ष, समस्या से मुक्त वर्ष मनाने चाहते हैं। आप सभी को पसन्द है? पसन्द है? मुक्त वर्ष मनायेंगे? क्योंकि मुक्तिधाम में जाना है, अनेक दु:खी अशान्त आत्माओंको मुक्तिदाता बाप से साथी बन मुक्ति दिलाना है। तो मास्टर मुक्तिदाता जब स्वयं मुक्त बनेंगे तब तो मुक्ति वर्ष मनायेंगे ना! क्योंकि आप ब्रह्मण आत्मायें स्वयं मुक्त बन अनेकों को मुक्ति दिलाने के निमित्त हो। एक भाषा जो मुक्ति दिलाने के बजाए बंधन में बांधती है, समस्या के अधीन बनाती है, वह है ऐसा नहीं, वैसा। वैसा नहीं ऐसा। जब समस्या आती है तो यही कहते हैं बाबा ऐसा नहीं था, वैसा था ना। ऐसा नहीं होता, ऐसा होता ना। यह है बहाने बाजी करने का खेल। बापदादा ने सबका फाइल देखा, तो फाइल में क्या देखा? मजौरिटी का फाइल प्रतिज्ञा करने के पेपर से भरा हुआ है। प्रतिज्ञा करने के टाइम बहुत दिल से करते हैं, सोचते भी हैं लेकिन अभी तक देखा कि फाइल बड़ा होता जाता है लेकिन फाइनल नहीं हुआ है। दृढ़ प्रतिज्ञा के लिए कहा हुआ है - जान चली जाए लेकिन प्रतिज्ञा न जाए। तो बापदादा ने आज सबके फाइल देखे। बहुत प्रतिज्ञायें अच्छी-अच्छी की है। मन से भी की है और लिख करके भी की है। तो इस वर्ष क्या करेंगे? फाइल को बढ़ायेंगे या प्रतिज्ञा को फाइनल करेंगे? क्या करेंगे? पहली लाइन वाले बताओ, पाण्डव सुनाओ, टीचर्स सुनाओ। इस वर्ष जो बापदादा के पास फाइल बड़ा होता जाता है, उसको फाइनल करेंगे या इस वर्ष भी फाइल में कागज एड करेंगे? क्या करेंगे? बोलो पाण्डव, फाइनल करेंगे? जो समझते हैं - झुकना पड़े, बदलना पड़े, सहन करना भी पड़े, सुनना भी पड़े, लेकिन बदलना ही है, वह हाथ उठाओ। देखो टी.वी. में सबका फोटो निकालो। सभी का फोटो निकालना, दो तीन चार टी.वी. हैं, सब तरफ के फोटो निकालो। यह रिकार्ड रखना, बाप को यह फोटो निकाल के देना। कहाँ है टी.वी. वाले? बापदादा भी फाइल का फायदा तो उठावे। मुबारक हो, मुबारक हो, अपने आपके लिए ही ताली बजाओ। देखो, जैसे एक तरफ साइन्स, दूसरे तरफ भÏष्टाचारी, तीसरे तरफ पापाचारी, सब अपने-अपने कार्य में और वृद्धि करते जा रहे हैं। बहुत नये-नये प्लैन बनाते जाते हैं। तो आप तो वर्ल्ड क्रियेटर के बच्चे हो, तो आप इस वर्ष ऐसी नवीनता के साधन अपनाओ जो प्रतिज्ञा दृढ़ हो जाए क्योंकि सभी प्रत्यक्षता चाहते हैं। कितना खर्चा कर रहे हैं, जगह-जगह पर बड़े-बड़े प्रोग्राम कर रहे हैं। हर एक वर्ग मेहनत अच्छी कर रहे हैं लेकिन अभी इस वर्ष यह एडीशन करो कि जो भी सेवा करो, मानो मुख की सेवा करते हो, तो सिर्फ मुख की सेवा नहीं, मन्सा वाचा और स्नेह सहयोग रूपी कर्म एक ही समय में तीन सेवायें इकट्ठी हों। अलग-अलग नहीं हों। एक सेवा में देखा जाता है कि जो बापदादा रिजल्ट देखने चाहते हैं वह नहीं होती। जो आप भी चाहते हो कि प्रत्यक्षता हो जाए। अभी तक पहले से यह रिजल्ट बहुत अच्छी है - सब अच्छा-अच्छा, बहुत अच्छा कहके जाते हैं। लेकिन अच्छा बनना अर्थात् प्रत्यक्षता होना। तो अब एडीशन करो कि एक ही समय पर मन्सा-वाचा, कर्मणा में स्नेही सहयोगी बनना, हर एक साथी चाहे ब्रह्मण साथी हैं, चाहे बाहर वाले सेवा के निमित्त जो बनते हैं, वह साथी हों लेकिन सहयोग और स्नेह देना - यह है कर्मणा सेवा में नम्बर लेना। यह भाषा नहीं कहना, यह ऐसा किया ना, तभी ऐसा करना पड़ा। स्नेह के बजाए थोड़ा-थोड़ा कहना पड़ा, बाबा शब्द नहीं बोलता। यह करना ही पड़ता है, कहना ही पड़ता है, देखना ही पड़ता है... यह नहीं। इतने वर्षों में देख लिया, बापदादा ने छुट्टी दे दी। ऐसा नहीं वैसा करते रहे, लेकिन अभी कब तक? बापदादा से सभी रूहरिहान में मजौरिटी कहते हैं बाबा आखिर भी पर्दा कब खोलेंगे? कब तक चलेगा? तो बापदादा आपको कहते हैं कि यह पुरानी भाषा, पुरानी चाल, अलबेलेपन की, कडुवेपन की कब तक? बापदादा का भी क्वेश्चन है कब तक? आप उत्तर दो तो बापदादा भी उत्तर देगा कब तक विनाश होगा क्योंकि बापदादा विनाश का पर्दा तो अभी भी इसी सेकण्ड में खोल सकता है लेकिन पहले राज्य करने वाले तो तैयार हों। तो अब से तैयारी करेंगे तब समाप्ति समीप लायेंगे। किसी भी कमजोरी की बात में कारण नहीं बताओ, निवारण करो, यह कारण था ना। बापदादा सारे दिन में बच्चों का खेल तो देखते हैं ना, बच्चों से प्यार है ना, तो बार-बार खेल देखते रहते हैं। बापदादा की टी.वी. बहुत बड़ी है। एक समय पर वर्ल्ड दिखाई दे सकती है, चारों ओर के बच्चे दिखाई दे सकते हैं। चाहे अमेरिका हो, चाहे गुडगांव हो, सब दिखाई देते हैं। तो बापदादा खेल बहुत देखते हैं। टालने की भाषा बहुत अच्छी है, यह कारण था ना, बाबा मेरी गलती नहीं है, इसने ऐसा किया ना। उसने तो किया लेकिन आपने समाधान किया? कारण को कारण ही बनने दिया या कारण को निवारण में बदली किया? तो सभी पूछते हैं ना कि बाबा आपकी क्या आशा है? तो बापदादा आशा सुना रहे हैं। बापदादा की एक ही आशा है - निवारण दिखाई देवे, कारण खत्म हो जाए। समस्या समाप्त हो जाए, समाधान होता रहे। हो सकता है? हो सकता है? पहली लाइन - हो सकता है? कांध तो हिलाओ। पीछे वाले हो सकता है? (सभी ने हाथ उठाया) क्योंकि साथ चलना है ना। अकेला बाप जाने चाहे तो चला जाए लेकिन बाप जा नहीं सकता। साथ चलना है। वायदा है बाप का भी और आप बच्चों का भी। वायदा तो निभाना है ना! निभाना है ना! यह मधुबन वाले बैठे हैं ना! मधुबन में जो भी चार्ज के हेडस हैं, चार्जेज़ तो बहुत हैं ना, शान्तिवन, ज्ञान सरोवर, पाण्डव भवन सब जगह हैं। तो जो चार्ज वाले हैं उनके नामों की लिस्ट बापदादा को देना, उनसे हिसाब लेंगे। और जो सभी टीचर्स इन्चार्ज हैं, सेन्टर इन्चार्ज हैं या जोन इन्चार्ज हैं, उन्हों का एक दिन संगठन करेंगे, हिसाब-किताब तो पूछेंगे ना! क्योंकि बापदादा के पास बहुत दु:ख और अशान्ति के आवाज आते हैं। परेशानी के आवाज आते हैं। आप लोगों के पास नहीं सुनने आते? आपके भी तो भक्त होंगे ना! तो भक्तों की पुकार आप इष्ट देवों को नहीं आती? टीचर्स को भक्तों की आवाज सुनाई देती है। अच्छा।
महाराष्ट्र ज़ोन, बम्बई और आंध्रप्रदेश के सेवाधारी:- अच्छा सभी चांस अच्छा ले लेते हैं। नाम ही महाराष्ट्र है। अच्छी संख्या आई है। तो महाराष्ट्र अर्थात् महान आत्माओंका राष्ट्र है। अच्छा है, महाराष्ट्र में भी वृद्धि अच्छी हो रही है। अभी महाराष्ट्र का टर्न है तो महाराष्ट्र क्यों नहीं नम्बरवन में बाप के स्नेह का रिटर्न देवे। बापदादा ने सुना दिया है - बापदादा के स्नेह का रिटर्न है - स्वयं को और विश्व को टर्न करना। बस रिटर्न में रि निकाल दो तो टर्न हो जायेगा क्योंकि बापदादा को बच्चों में बहुत-बहुत, अच्छीअच्छी उम्मीदें हैं, उम्मींदवार हो। तो क्या करेगा महाराष्ट्र? रिटर्न देगा? अच्छा है, अच्छे अच्छे महारथी हैं महाराष्ट्र में। संगठित रूप में मीटिंग करो, बापदादा ने देखा है चारों ओर महाराष्ट्र में उम्मींदवार सितारे हैं। जो चाहे वह कर सकते हैं। तो ऐसे संगठित रूप में प्रोग्राम करना और नया कोई प्लैन बनाना, कर सकते हैं। महाराष्ट्र कर सकता है। करेंगे ना! अरे नाम ही महाराष्ट्र है तो महान कार्य करना ही है ना! क्या समझते हैं पाण्डव? करेंगे? पाण्डव सेना करेंगे, शक्ति सेना करेंगे? टीचर्स भी बहुत हैं। बहुत अच्छा है।
डबल विदेशी:- बापदादा ने पहले भी कहा तो जब डबल विदेशी आते हैं तो मधुबन का श्रृंगार हो जाता है। डबल विदेशियों से सभी का प्यार बहुत है। जब भी आपके ग्रुप को देखते हैं ना तो सभी खुश हो जाते हैं क्योंकि आप भी कोटों में कोई, कोई में कोई निकले हो और आजकल विदेश सेवा की अच्छी न्यूज़ है। अच्छे-अच्छे मुस्लिम धर्म में भी सन्देश दे रहे हैं। डबल विदेशियों की विशेषता एक बहुत अच्छी गाई हुई है कि डबल विदेशी अगर किसी भी कार्य में लगेंगे तो हाँ तो हाँ, ना तो ना। जिस कार्य में लगेंगे उस कार्य में विजयी बनकर दिखायेंगे। तो आप जो भी ग्रुप में हैं वह विजयी ग्रुप है ना। विजय का तिलक लगा हुआ है ना। अच्छा है। तो चारों ओर के स्नेही बच्चों को लवली और लवलीन दोनों बच्चों को, सदा बाप के श्रीमत प्रमाण हर कदम में पदम जमा करने वाले नौलेजफुल पावरफुल बच्चों को, सदा स्नेही भी और स्वमानधारी भी, सम्मानधारी भी, ऐसे सदा बाप की श्रीमत को पालन करने वाले विजयी बच्चों को, सदा बाप के हर कदम पर कदम उठाने वाले सहजयोगी बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
निर्वैर भाई जी के उद्गार:- दादी जानकी जी की उपस्थिति में महाराष्ट्र ज़ोन विशेष और उसके अलावा देश विदेश के सभी भाई बहनों को आज के दिन की बहुत-बहुत मुबारक हो, मुबारक हो। अव्यक्त बापदादा की मुरली सुनते मेरा संकल्प चल रहा था कि हमारी प्राण दादी गुल्जार जी ने 50 वर्ष से अव्यक्त बापदादा का रथ बनकर हम सबको ज्ञान, योग, धारणाओं से इतना सजाया है। दादी को साथ देने वाली नीलू बहन और उनकी साथी बहनों ने जिन्होंने दादी को प्यार से सम्भाला है। सभी का बहुत-बहुत अभिनंदन। साथ-साथ हमारी रूकमणी दादी ने इतनी बड़ी उम्र में पूरे दिल्ली ज़ोन को सम्भालने का कार्य बहुत अच्छी तरह से सम्भाला। दादी ने 16 तारीख रात को 12.30 बजे 100 की उमÏ पूरी करके, अपना 100 वांबर्थ डे मनाकर अव्यक्त बापदादा की गोद में समा गई। उनको सम्भालने वाली सेवा साथी दीपा बहन और उनके साथियों ने भी बहुत दिल से उनकी सेवा की है, उनके भी हम आभारी हैं। दादी जी द्वारा सिखाई हुई जो नियम धारणायें हैं उनसे हम सभी हमेशा लाभान्वित होते रहेंगे।
आज का यह 18 जनवरी का दिन बहुत महत्वपूर्ण दिन है क्योंकि आज अव्यक्त पार्ट की गोल्डन जुबिली है। दादी गुल्जार द्वारा अव्यक्त बापदादा की पालना का पार्ट आज दिन तक चल रहा है। दादी जब यहाँ आयेंगी तो अच्छी तरह से हम सब उनका सम्मान करेंगे, अभिनंदन करेंगे और अपने दिल की भावनायें प्रगट करेंगे। सबके दिल की दुआयें तो दादी जी को सदा मिल ही रही हैं। आज की मुरली अनुसार जो बाबा ने होमवर्क दिया है, सारी मुरली के सार में बाबा ने एक बात कही कि संकल्प लें कि हमें बाबा की श्रीमत पर एक्यूरेट चलना है और उस संकल्प में दृढ़ता लानी है। बिना दृढ़ता के कोई संकल्प धारणा में नहीं आता है। एक बार अगर हम दिल में निश्चय पक्का कर लें, बाबा से नयन मुलाकात करते बाबा से यह रूहरिहान कर लें कि बाबा आपकी आज्ञा सिरमाथे। आज से हम 100 प्रतिशत आपकी श्रीमत अनुसार अपनी जीवन जियेंगे और पूरा धारणाओंपर चलेंगे, आप हमसे निश्चिंत रहें और आपकी दुआयें सदा हमें मिलती रहें। देश विदेश के सभी भाई बहिनें आपस में मिलकर बाबा को प्रत्यक्ष करने का महान कार्य कर रहे हैं इसलिए सबको मुबारक है। ओम शान्ति।