ओम शान्ति 17-02-2019 मधुबन


प्राणप्यारे अव्यक्त मूर्त मात-पिता बापदादा के अति स्नेही, सदा ऊचे स्वमान में स्थित रह एकाग्रता की शक्ति को बढ़ाने वाले, फरिश्ता सो देवता बनने के पुरुषार्थ में तत्पर, निमित्त टीचर्स बहिनें तथा सर्व ब्राह्मण कुल भूषण भाई बहिनें,

ईश्वरीय स्नेह सम्पन्न मधुर याद स्वीकार करना जी।

बाद समाचार - अव्यक्त मिलन की यह सुहावनी घड़िया हर एक के मन को लुभाने वाली हैं। जो भी बाबा के बच्चे मधुबन घर में आते हैं, उन्हें बाबा खूब भरपूर कर देते हैं। अभी सेवाओं का टर्न राजस्थान का है। इनके साथ अन्य कई जोन के भाई बहिनें तथा डबल विदेशी भाई बहिनें भी काफी संख्या में पहुचे हुए हैं। विदेश के मुख्य भाई बहिनों की अलग-अलग मीटिग्स भी चल रही हैं। जिसमें विशेष स्व-उन्नति, यज्ञ के विस्तार तथा देश विदेश की सेवाओं में तीव्रता लाने हेतु बहुत अच्छे-अच्छे विचार निकल रहे हैं। प्यारे बापदादा एक ओर सेवाओं के प्रति विशेष इशारे भी देते, साथ-साथ एकाग्रता की शक्ति को बढ़ाने तथा समय प्रमाण शक्तिशाली मन्सा द्वारा प्रकृति सहित विश्व की सर्व दु:खी अशान्त आत्माओं को सकाश देने की भी प्रेरणा देते हैं। हम सभी शिववंशी ब्रह्माकुमार कुमारियों के लिए सबसे बड़ा त्योहार त्रिमूर्ति शिवजयन्ती अभी समीप है। सब तरफ बहुत प्यार से शिवबाबा का ध्वज फहराते, प्रभातफेरी, प्रदर्शनी मेले तथा सम्मेलन आदि द्वारा भी बापदादा के अवतरण का दिव्य सन्देश देते हैं।

इस बार अपने शान्तिवन के विशाल प्रागण में, कान्फ्रेन्स हाल के सामने बहुत सुन्दर आध्यात्मिक मेला लगाया जा रहा है। उसके प्रचार-प्रसार हेतु अभी से ही आबू के आस-पास के 200 गावों में 4 अभियान निकाले गये हैं -
1) स्वच्छ स्वस्थ भारत अभियान
2) जलप्रबन्धन अभियान,
3) ग्राम जागृति अभियान
4) व्यसनमुक्ति अभियान।
यह चारों अभियान आबू के चारों दिशाओं में भ्रमण करते हुए ईश्वरीय सन्देश दे रहे हैं।

इस बार प्रयागराज (इलाहाबाद) में कुम्भ मेले के अन्तर्गत विशेष ब्रह्माकुमारीज की ओर से दो पण्डाल लगाये गये थे, एक हर वर्ष की भांति बहुत सुन्दर आकर्षक “सत्यम् शिवम् सुन्दरम् आध्यात्मिक मेला”, जिसमें देवियों की झांकी तथा सागर मंथन और अनेक मूविंग मॉडल्स आदि का विशेष आकर्षण था। इस एक मास के मेले में कई वर्गो के कार्यक्रम भी रखे गये, लाखों लोगों ने मेले से ईश्वरीय सन्देश प्राप्त किया। दूसरा - सरकार की ओर से 15 दिन के लिए “कुम्भ विराट किसान मेले” का आयोजन किया गया था, जिसमें अपनी ओर से “स्वर्णिम भारत का आधार शाश्वत योगिक खेती” नाम से बहुत सुन्दर पण्डाल लगाया गया था। उससे भी अनेक सरकारी अधिकारियों तथा किसानों की बहुत अच्छी सेवायें हुई। समापन के अवसर पर वहाँ के मुख्य अधिकारियों द्वारा प्रथम पुरस्कार अपने पण्डाल को मिला। इस प्रकार बापदादा खूब सेवायें करा रहे हैं। सेवाओं के साथ, योग भट्ठी के कार्यक्रम भी समय प्रति समय सब तरफ चलते रहते हैं। अच्छा - सभी को बहुत-बहुत याद ओम शान्ति।

16-11-06 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन

“अपने स्वमान की शान में रहो और समय के महत्व को जान एवररेडी बनो”

आज बापदादा चारों ओर के अपने परमात्म प्यार के पात्र स्वमान की सीट पर सेट बच्चों को देख रहे हैं। सीट पर सेट तो सब बच्चे हैं लेकिन कई बच्चे एकाग्र स्थिति में सेट हैं और कोई बच्चे संकल्प में थोड़ा-थोड़ा अपसेट हैं। बापदादा वर्तमान समय के प्रमाण हर बच्चे को एकाग्रता के रूप में स्वमानधारी स्वरूप में सदा देखने चाहते हैं। सभी बच्चे भी एकाग्रता की स्थिति में स्थित होना चाहते हैं। अपने भिन्न-भिन्न प्रकार के स्वमान जानते भी हैं, सोचते भी हैं लेकिन एकाग्रता हलचल में ले आती है। सदा एकरस स्थिति कम रहती है। अनुभव होता है और यह स्थिति चाहते भी हैं लेकिन कब-कब क्यों होती है, कारण! सदा अटेन्शन की कमी। अगर स्वमान की लिस्ट निकालो तो कितनी बड़ी है। सबसे पहला स्वमान है - जिस बाप को याद करते रहे, उनके डायरेक्ट बच्चे बने हो, नम्बरवन सन्तान हो। बापदादा ने आप कोटों में से कोई बच्चों को कहाँ-कहाँ से चुनकर अपना बना लिया। 5 ही खण्डों से डायरेक्ट बाप ने अपने बच्चों को अपना बना लिया। कितना बड़ा स्वमान है। सृष्टि रचता की पहली रचना आप हो। जानते हो ना इस स्वमान को! बापदादा ने अपने साथ-साथ आप बच्चों को सारे विश्व की आत्माओं के पूर्वज बनाया है। विश्व के पूर्वज हो, पूज्य हो। बापदादा ने हर बच्चे को विश्व के आधारमूर्त, उदाहरणमूर्त बनाया है। नशा है? थोड़ा-थोड़ा कभी कम हो जाता है। सोचो, सबसे अमूल्य जो सारे कल्प में ऐसा मूल्य तख्त किसको नहीं प्राप्त होता। वह परमात्म तख्त, लाइट का ताज, स्मृति का तिलक दिया। स्मृति आ रही है ना - मैं कौन! मेरा स्वमान क्या! नशा चढ़ रहा है ना! कितना भी सारे कल्प में सतयुगी अमूल्य तख्त है लेकिन परमात्म दिलतख्त आप बच्चों को ही प्राप्त होता है।

बापदादा सदा लास्ट नम्बर बच्चे को भी फरिश्ता सो देवता स्वरूप में देखते हैं। अभी-अभी ब्राह्मण हैं, ब्राह्मण से फरिश्ता, फरिश्ता से देवता बनना ही है। जानते हो अपने स्वमान को? क्योंकि बापदादा जानते हैं कि स्वमान को भूलने के कारण ही देहभान, देह अभिमान आता है। परेशान भी होते हैं, जब बापदादा देखते हैं देह-अभिमान वा देहभान आता है तो कितने परेशान होते हैं। सभी अनुभवी हैं ना! स्वमान की शान में रहना और इस शान से परे परेशान रहना, दोनों को जानते हो। बापदादा देखते हैं कि सभी बच्चे मैजॉरिटी नॉलेजफुल तो अच्छे बने हैं, लेकिन पावर में फुल, पावरफुल नहीं हैं। परसेन्टेज में हैं।

बापदादा ने हर एक बच्चे को अपने सर्व खज़ानों के बालक सो मालिक बनाया, सभी को सर्व खज़ाने दिये हैं, कम ज्यादा नहीं दिये हैं क्योंकि अनगिनत खज़ाना है, बेहद खज़ाना है। इसलिए हर बच्चे को बेहद का बालक सो मालिक बनाया है। तो अभी अपने आपको चेक करो - बेहद का बाप, हद का बाप नहीं है, बेहद का बाप है, बेहद खज़ाना है। तो आपके पास भी बेहद है? सदा है कि कभी-कभी कुछ चोरी हो जाता है? गुम हो जाता है? बाबा क्यों अटेन्शन दिला रहे हैं? परेशान न हो, स्वमान की सीट पर सेट रहो, अपसेट नहीं। 63 जन्म तो अपसेट का अनुभव कर लिया ना! अभी और करने चाहते हो? थक नहीं गये हो? अभी स्वमान में रहना अर्थात् अपने ऊंचे ते ऊंचे शान में रहना। क्यों? कितना समय बीत गया।

तो स्वयं की पहचान अर्थात् स्वमान की पहचान, स्वमान में स्थित रहना। समय अनुसार अभी सदा शब्द को प्रैक्टिकल लाइफ में लाना, शब्द को अण्डरलाइन नहीं करना लेकिन प्रैक्टिकल लाइफ में अण्डरलाइन करो। रहना है, रहेंगे, कर तो रहे हैं.. कर लेंगे। यह बेहद के बालक और मालिक का बोल नहीं है। अभी तो हर एक के दिल से यह अनहद शब्द निकले, पाना था वह पा लिया। पा रहे हैं, यह बेहद खज़ाने के बेहद बाप के बच्चे नहीं बोल सकते। पा लिया, जब बापदादा को पा लिया, मेरा बाबा कह दिया, मान लिया, जान भी लिया, मान भी लिया, तो यह अनहद शब्द पा लिया... क्योंकि बापदादा जानते हैं कि बच्चे स्वमान कभी-कभी होने के कारण समय के महत्व को भी स्मृति में कम रखते हैं। एक स्वयं का स्वमान, दूसरा है समय का महत्व। आप साधारण नहीं हो, पूर्वज हो, आप एक-एक के पीछे विश्व की आत्माओं का आधार है। सोचो, अगर आप हलचल में आयेंगे तो विश्व की आत्माओं का क्या हाल होगा! ऐसे नहीं समझो कि जो महारथी कहलाये जाते हैं, उनके पीछे विश्व का आधार है, अगर नये-नये भी हैं, क्योंकि आज नये भी बहुत आये होंगे। नये हैं, जिसने दिल से माना ‘‘मेरा बाबा’’। मान लिया है? जो नये नये आये हैं वह मानते हैं? जानते हैं नहीं, मानते हैं ‘‘मेरा बाबा’’ वह हाथ उठाओ। लम्बा उठाओ। नये नये हाथ उठा रहे हैं। पुराने तो पक्के ही हैं ना, जिसने दिल से माना मेरा बाबा और बाप ने भी माना मेरा बच्चा, वह सभी जिम्मेवार हैं। क्यों? जब से आप कहते हो मैं ब्रह्माकुमार, ब्रह्माकुमारी हूँ, ब्रह्माकुमार और कुमारी हो वा शिवकुमार शिवकुमारी हो, या दोनों के हो? फिर तो बंध गये। जिम्मेवारी का ताज पड़ गया। पड़ गया है ना? पाण्डव बताओ जिम्मेवारी का ताज पड़ा है? भारी तो नहीं लग रहा है? हल्का है ना! है ही लाइट का। तो लाइट कितनी हल्की होती है।

तो समय का भी महत्व अटेन्शन में रखो। समय पूछ के नहीं आना है। कई बच्चे अभी भी कहते हैं, सोचते हैं, कि थोड़ा सा अन्दाज मालूम होना चाहिए। चलो 20 साल हैं, 10 साल हैं, थोड़ा मालूम हो। लेकिन बापदादा कहते हैं समय का फाइनल विनाश का छोड़ो, आपको अपने शरीर के विनाश का पता है? कोई है जिसको पता है कि मैं फलाने तारीख में शरीर छोडूंगा है पता? और आजकल तो ब्राह्मणों के जाने का भोग बहुत लगाते हो। कोई भरोसा नहीं। इसलिए समय का महत्व जानो। यह छोटा सा युग है आयु में छोटा, लेकिन बड़े ते बड़ी प्राप्ति का युग है क्योंकि बड़े ते बड़ा बाप इस छोटे से युग में ही आता है और बड़े युगो में नहीं आता। यही छोटा सा युग है जिसमें सारे कल्प की प्राप्ति का बीज डालने का समय है। चाहे विश्व का राज्य प्राप्त करो, चाहे पूज्य बनो, सारे कल्प के बीज डालने का समय यह है और डबल फल प्राप्त करने का समय है। भविÌत का फल भी अभी मिलता और प्रत्यक्षफल भी अभी मिलता है। अभी-अभी किया, प्रत्यक्ष फल मिलता है और भविष्य भी बनता है। ऐसा सारे कल्प में देखो, है कोई युग ऐसा? क्योंकि इस समय ही बाप ने हर बच्चे की हथेली पर बड़े ते बड़ी सौगात दी है, याद है सौगात अपनी? स्वर्ग का राज़-भाग। नई दुनिया के स्वर्ग की गिफ्ट, हर बच्चे की हथेली में दी है। इतनी बड़ी गिफ्ट कोई नहीं देता और कभी नहीं दे सकता। अभी मिलती है। अभी आप मास्टर सर्वशक्तिवान बनते हो और कोई युग में मास्टर सर्वशक्तिवान का मर्तबा नहीं मिलता है। तो स्वयं के स्वमान में भी एकाग्र रहो और समय के महत्व को भी जानो। स्वयं और समय, स्वयं को स्वमान है, समय का महत्व है। अलबेला नहीं बनना। 70 साल बीत चुके हैं, अभी अगर अलबेले बनें तो बहुत कुछ अपनी प्राप्ति कम कर देंगे। क्योंकि जितना आगे बढ़ते हैं ना उतना एक अलबेलापन, बहुत अच्छे हैं, बहुत अच्छे चल जायेंगे, पहुंच जायेंगे, देखना पीछे नहीं रहेंगे, हो जायेगा, यह अलबेलापन और रॉयल आलस्य। अलबेलापन और आलस्य। कब शब्द है आलस्य, अब शब्द है तुरत दान महापुण्य।

तो बापदादा अटेन्शन खिंचवा रहा है। इस सीजन में न स्वमान से उतरना है, न समय के महत्व को भूलना है। अलर्ट, होशियार, खबरदार। प्यारे हैं ना! जिससे प्यार होता है ना उसकी जरा भी कमज़ोरी-कमी देखी नहीं जाती है। सुनाया ना कि बापदादा का लास्ट बच्चा भी है तो उससे भी अति प्यार है। बच्चा तो है ना। तो अभी इस चलती हुई सीजन में, सीजन भले इन्डिया वालों की है लेकिन डबल विदेशी भी कम नहीं हैं, बापदादा ने देखा है, कोई भी टर्न ऐसा नहीं होता जिसमें डबल विदेशी नहीं हो। यह उन्हों की कमाल है। अभी हाथ उठाओ डबल विदेशी। देखो कितने हैं! स्पेशल सीजन बीत गई, फिर भी देखो कितने हैं! मुबारक है। भले पधारे, बहुत-बहुत मुबारक है।

तो सुना अभी क्या करना है? इस सीजन में क्या-क्या करना है, वह होम वर्क दे दिया। स्वयं को रियलाइज करो, स्वयं को ही करो, दूसरे को नहीं और रीयल गोल्ड बनो क्योकि बापदादा समझते हैं जिसने मेरा बाबा कहा वह साथ में चले। बराती होके नहीं चले। बापदादा के साथ श्रीमत का हाथ पकड़ साथ चले और फिर ब्रह्मा बाप के साथ पहले राज्य में आवे। मजा तो पहले नये घर में होता है ना। एक मास के बाद भी कहते, एक मास पुराना है। नया घर, नई दुनिया, नई चाल, नया रसम रिवाज और ब्रह्मा बाप के साथ राज्य में आये। सभी कहते हैं ना, ब्रह्मा बाप से हमारा बहुत प्यार है। तो प्यार की निशानी क्या होती है? साथ रहे, साथ चले, साथ आये। यह है प्यार का सबूत। पसन्द है? साथ रहना, साथ चलना, साथ आना, पसन्द है? है पसन्द? तो जो चीज़ पसन्द होती है उसको छोड़ा थोड़ेही जाता है! तो बाप की हर बच्चे के साथ प्रीत की रीत यही है कि साथ चलें, पीछे-पीछे नहीं। अगर कुछ रह जायेगा तो धर्मराज की सजा के लिए रूकना पड़ेगा। हाथ में हाथ नहीं होगा, पीछे-पीछे आयेंगे। मजा किसमें है? साथ में है ना! तो पक्का वायदा है ना? पक्का वायदा है साथ चलना है या पीछे-पीछे आना है? देखो हाथ तो बहुत अच्छा उठाते हैं। हाथ देख करके बापदादा खुश तो होते हैं लेकिन श्रीमत का हाथ उठाना। शिवबाबा को तो हाथ होगा नहीं, ब्रह्मा बाबा, आत्मा को भी हाथ नहीं होगा, आपको भी यह स्थूल हाथ नहीं होगा, श्रीमत का हाथ पकड़कर साथ चलना। चलेंगे ना! कांध तो हिलाओ। अच्छा हाथ हिला रहे हैं। बापदादा यही चाहते हैं एक भी बच्चा पीछे नहीं रहे, सब साथ-साथ चलें। एवररेडी रहना पड़ेगा। अच्छा।अब बापदादा चारों ओर के बच्चों का रजिस्टर देखता रहेगा। वायदा किया, निभाया अर्थात् फायदा उठाया। सिर्फ वायदा नहीं करना, फायदा उठाना। अच्छा। अभी सभी दृढ़ संकल्प करेंगे! दृढ़ संकल्प की स्थिति में स्थित होकर बैठो, करना ही है, चलना ही है। साथ चलना है। अभी यह दृढ़ संकल्प अपने से करो, इस स्थिति में बैठ जाओ। गे गे नहीं करना। करना ही है। अच्छा।

सेवा का टर्न का राजस्थान का है: अच्छा जो भी सेवा के लिए आये हैं, सब उठो। अच्छा है, आधा क्लास तो सहयोगी है। सहयोग देना, देना नहीं है बहुत-बहुत दुआयें लेना है क्योंकि जिसकी भी सेवा करते हैं, वह खुश होते हैं। तो जो खुश होते हैं, उनकी दुआयें ऑटोमेटिकली निकलती हैं, तो कितनी दुआयें जमा की! राजस्थान है ना। निमित्त राजस्थान है तो यह गोल्डन चांस मिलता है, पुण्य का खाता जमा करने का। अच्छा है, राजस्थान को तो सहज नशा है कि बापदादा राजस्थान में ही आया है। बापदादा को राजस्थान अच्छा लगा ना।

डबल विदेशी भाई बहिनें: तो डबल विदेशियों का डबल पुरूषार्थ चलता है, एक है सेवा का, दूसरा है स्वयं का। तो टाइटल तो डबल विदेशी अच्छा है, डबल सेवा चल रही है सबकी, इन्डिविज्युअल। डबल सेवा। किस समय एक चलती, किस समय दूसरी चलती या साथ-साथ चलती है! जो समझते हैं कि दोनों ही सेवा स्वयं की और साथ की जो भी आत्मायें हैं उनकी सेवा साथ-साथ चलती है वह हाथ उठाओ। मैजारिटी पास हैं। ठीक रफ्तार से चलती है और आगे बढ़ाओ क्योंकि अभी समय के अनुसार एक ही समय डबल सेवा चाहिए। विश्व की भी और स्वयं की भी। सारे वर्ल्ड में सुख शान्ति की किरणें देना है।

सब तरफ के डबल सेवाधारी बच्चों को, चारों ओर के सदा एकाग्र स्वमान की सीट पर सेट रहने वाले बापदादा के मस्तक मणियां, चारों ओर के समय के महत्व को जान तीव्र पुरूषार्थ का सबूत देने वाले सपूत बच्चों को, चारों ओर के उमंग-उत्साह के पंखों से सदा उड़ते, उड़ाने वाले डबल लाइट फरिश्ते बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

दादी जानकी के वरदानी बोल:

ओम् शान्ति। देखो, उड़ती कला हो गई ना। मीठे बाबा ने कितनी मीठी मीठी बातें सुनाई। बाबा ने कहा अब समय अनुसार क्या करने का है, कैसे रहने का है। बाबा ने दृष्टि देकर के नजरों से निहाल कर दिया। हम कोई बेहाल होते नहीं हैं। बाबा आपकी दृष्टि ने कमाल कर दिया। बाबा मैं क्या कहूँ, कैसे कहूँ। हमारी सभा इतनी बड़ी बैठी है। सभी बाबा की याद में बैठे हैं। याद के सिवाए और कुछ भी नहीं है। याद का बल और योग का फल फौरन मिलता है। हम सबके सामने एक बाबा ही बैठा है और कोई याद आता ही नहीं है। गुलजार दादी ने भी देखा होगा ना बाम्बे में। कैसे बाबा ने हम सबको रिफ्रेश किया। थैंक्यू दादी। बाबा ने आपके रथ से अच्छी सेवा दी है। आपने बाबा की मिसिंग अनुभव होने नहीं दिया। ऐसी हमारी दादी कम नहीं है। अच्छा।