15-12-19 ओम् शान्ति ''दिनचर्या'' मधुबन


प्राणप्यारे अव्यक्त बापदादा के अति स्नेही, सदा श्रेष्ठ स्वमान में स्थित रह, अनुभवी स्वरूप बन अनुभव की अथॉरिटी को कार्य में लगाने वाली निमित्त टीचर्स बहिनें तथा देश विदेश के सर्व ब्रह्मण कुल भूषण भाई बहिनें,

ईश्वरीय स्नेह सम्पन्न मधुर याद स्वीकार करना जी।

बाद समाचार - बापदादा के इस टर्न में राजस्थान, गुजरात तथा ईस्टर्न ज़ोन के भाई बहिनें काफी संख्या में पहुंचे हुए हैं। सेवाओं का पार्ट राजस्थान के भाई बहिनों को मिला है। बापदादा तो हर बच्चे के भाग्य की महिमा गाते हैं। बाबा कहते बच्चे आप ब्रह्मण सारे संसार में विशेष आत्मायें हो, जिन्होंने गुप्त रूप में आये हुए भगवन को पहचान लिया। उनकी दिव्य शक्तियों का अनुभव करते हो। ड्रामानुसार बापदादा का यह अलौकिक न्यारा प्यारा मिलन मेला भी सबको बहुत आकर्षित कर रहा है, नये पुराने हजारों की संख्या में भाई बहिनें अपने मधुबन घर में पहुंच रहे हैं। दादी जानकी जी रोज़ शाम के समय विशेष योग और क्लास कराते हुए सभी से मिलन मनाती हैं। अन्य वरिष्ठ भाई बहिनों की भी बहुत गुह्य धारणायुक्त क्लासेज़ मिलती हैं। सभी खूब रिफ्रेश होकर जाते हैं। बापदादा के अवतरण दिन पर मधुबन का वायुमण्डल भी विशेष आकर्षण वाला होता। सभी अमृतवेले से ही प्यारे बापदादा का आह्वान करते, अव्यक्त वतन की सैर करते हैं। सबके अन्दर यही लगन रहती है कि हमें तो बापदादा से अव्यक्त मिलन मनाना ही है। बापदादा बच्चों की हर आश पूरी भी करते हैं। सभी को बहुत सुन्दर अनुभव हो जाते हैं। एकाग्रता के साथ इतने बड़े संगठन में भी हर एक नई नई अलौकिक अनुभूतियां करते हैं। बड़ा शान्त, खुशनुमा वातावरण रहता है। आप सभी भी अपने ग्रुप में आकर खूब रिफ्रेश होंगे ही। अच्छा - सभी को बहुत-बहुत याद....

15-12-19 ओम् शान्ति वीडियो द्वारा रिवाइज- 30-1-10 मधुबन

''चारों ही सबजेक्ट में स्वमान के अनुभवी स्वरूप बन अनुभव की अथॉरिटी को कार्य में लगाओ''

आज ब्रह्मण संसार के रचयिता बापदादा अपने चारों ओर के ब्रह्मण संसार को देख रहे हैं। हर एक ब्रह्मण सारे संसार में विशेष आत्मा है। कोटों में कोई है क्योंकि साधारण तन में आये हुए बाप को पहचान लिया। बापदादा भी दिल में समाने वाले बच्चों को दिल से दिल का प्यार दे रहे हैं। हर एक बच्चा अपने को ऐसे बाप का प्यारा, दिल में बाप को समाया हुआ अनुभव करते हैं! बाप के लिए हर बच्चा अति प्यारा सर्व का प्यारा है। आप सभी बच्चों का सर्व आत्माओंके प्रति चैलेन्ज है कि हम योगी जीवन वाले हैं। सिर्फ योग लगाने वाले नहीं लेकिन योगी जीवन वाले हैं। जीवन दो चार घण्टे की नहीं होती। जीवन सदाकाल के लिए होती है। तो चलते फिरते कर्म करते योगी जीवन वाले निरन्तर योगी हैं। चाहे योग में बैठते, चाहे कोई भी कर्म करते कर्मयोगी हैं। जीवन का लक्ष्य ही है सदा योगी। ऐसे अपनी योगी जीवन, नेचरल जीवन अनुभव करते हो? बापदादा हर बच्चे के मस्तक में चमकता हुआ भाग्य देखते हैं। क्या देखते हैं? मेरा हर बच्चा स्वमानधारी, स्वराज्य अधिकारी है। क्यों? जहाँ स्वमान है वहाँ देहभान आ नहीं सकता। आदि से अन्त तक, अब तक बापदादा ने हर एक बच्चे को भिन्न-भिन्न स्वमान दिये हैं। अगर अभी भी स्वमानों को याद करो और एक-एक स्वमान की माला फेरते जाओ तो अनेक स्वमान स्वरूप बन, स्वमान में लवलीन हो जायेंगे। लेकिन बापदादा को एक बात बच्चों की अब तक भी अच्छी नहीं लगती, वह जानते हो कौन सी? जब कोई भी बच्चा कहता है कि हमें स्वमान में स्थित होने में कभी-कभी मेहनत लगती है, चाहते हैं लेकिन कभी-कभी मेहनत लगती है तो सर्वशक्तिवान बाप बच्चों की मेहनत नहीं देख सकते क्योंकि जहाँ मोहब्बत होती है वहाँ मेहनत नहीं होती है। जहाँ मेहनत है वहाँ मोहब्बत में कमी है।

तो आज अमृतवेले बापदादा ने चारों ओर के ब्रह्मणों के पास चाहे देश, चाहे विदेश में चक्कर लगाया तो क्या देखा? कोई-कोई बच्चे स्वमान में बैठे हैं, सोच रहे हैं कि मैं बापदादा के दिलतख्त नशीन हूँ, सोच भी रहे हैं, स्वमान में स्थित होने का पुरुषार्थ भी कर रहे हैं लेकिन कमी क्या देखी? स्वमान याद है, सोच रहे हैं, लेकिन स्वमान स्वरूप बन, अनुभवी मूर्त बन अनुभव के अथॉरिटी स्वरूप बनने में कमी दिखाई दी क्योंकि अथॉरिटी तो बहुत है2 लेकिन सबसे बड़ी अथॉरिटी अनुभव की अथॉरिटी है और यह स्वमान की अनुभूति आलमाइटी अथॉरिटी ने दी है। तो मेहनत कर रहा है लेकिन अनुभव स्वरूप नहीं बना। तो बापदादा ने यह देखा कि बैठते हैं, सोचते भी हैं लेकिन अनुभव स्वरूप कोई-कोई हैं। अनुभव में किसी भी प्रकार का देह अभिमान जरा भी अपने तरफ खींच नहीं सकता। तो अनुभव स्वरूप बन जाना, कर्म करते भी कर्मयोगी के अनुभव स्वरूप में खो जाना, इसकी अभी और आवश्यकता है। स्वरूप में स्थित हो जाना, हर बात में, हर सबजेक्ट में अनुभवी स्वरूप बनना, चाहे ज्ञान, योग, धारणा और सेवा, चार ही सबजेक्ट में अनुभव स्वरूप बनना। अनुभवी को माया भी हिला नहीं सकती इसलिए बापदादा आज सभी बच्चों को अनुभवी स्वरूप में देखने चाहते हैं। सुनने और सोचने में फर्क है लेकिन अनुभवी स्वरूप बनना, जो सोचा, जिस स्वमान में स्थित रहने च्ााहे उसके अनुभव स्वरूप में स्थित हो जाएं। अनुभवी को कोई भी हिला नहीं सकता क्योंकि स्वमान और देहभान, जहाँ स्वमान स्वरूप है, स्वमान के अनुभव में स्थित है वहाँ देह भान आ नहीं सकता। जैसे देखो अंधकार है लेकिन आप रोशनी का स्विच ऑन करो तो अंधकार ऑटोमेटिकली गायब हो जाता। अंधकार को मिटाने में, अंधकार को भगाने में मेहनत नहीं करनी पड़ती। ऐसे ही जब स्वमान के सीट पर अनुभव का स्विच ऑन होता तो किसी भी प्रकार का देहभान, भिन्न-भिन्न प्रकार के देह भान भी हैं और भिन्न-भिन्न प्रकार के बाप ने स्वमान भी दिये हैं। स्वमान को जानते हैं, पुरुषार्थ भी करते हैं लेकिन अनुभव का पुरुषार्थ करना और अनुभवी स्वरूप बनना उसमें अन्तर है इसलिए मेहनत करनी पड़ती है। तो बापदादा को अब समय प्रमाण बाप समान बनने का लक्ष्य सम्पन्न करने समय यह मेहनत करना अच्छा नहीं लगता। हर एक अपने को चेक करो कि मैं कर्मयोगी जीवन वाला हूँ? जीवन नेचरल और सदाकाल की होती है, कभी-कभी की नहीं। ऐसा अनुभवी स्वरूप बनो, जो लक्ष्य है योगी जीवन का, जो लक्ष्य है अनुभवी मूर्त बनने का वह लक्ष्य सम्पन्न है? सदा मस्तक से चमकती हुई लाइट खुद को भी अनुभव हो, खुद भी उस स्वरूप में स्थित हो, स्मृति स्वरूप हो, स्मृति करने वाला नहीं, स्मृति स्वरूप हो और स्मृति स्वरूप है या नहीं, उसका प्रमाण यह है कि जहाँ स्मृति के अनुभवी स्वरूप हैं वहाँ अपने में समर्थी हर कार्य करते हुए भी अनुभव होगी। कार्य भिन्न-भिन्न होंगे लेकिन अनुभव स्वरूप की स्थिति भिन्न-भिन्न नहीं हो।

तो आज बापदादा ने देखा कि मेहनत क्यों करनी पड़ती? अनुभव स्वरूप बनने में नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार देखा। बापदादा का हर एक बच्चे से जिगरी प्यार है तो प्यार वाले की मेहनत देखी नहीं जाती। चाहे किसी भी सबजेक्ट में मेहनत करनी पड़ती है, कभी-कभी शब्द यूज़ करना पड़ता है, इसका कारण है अनुभवी स्वरूप बनने की कमी। पुरुषार्थी हैं लेकिन स्वरूप नहीं बने हैं। एक सेकण्ड में चार ही सबजेक्ट में अपने स्वमान के अनुभवी स्वरूप की अनुभूति होनी चाहिए, जो देह-अभिमान नजदीक आ नहीं सके। जैसे रोशनी के आगे अंधकार ठहर नहीं सकता। निकालना नहीं पड़ता, नेचरल जहाँ अंधकार है वहाँ रोशनी कम है या नहीं है। तो सबसे बड़े में बड़ी अथॉरिटी अनुभव गाया हुआ है। अनुभव को हजारों लोग बदलने चाहे, बदल नहीं सकते। तो जो भी सबजेक्ट हैं, चाहे ज्ञान की, चाहे योग की, चाहे धारणा की, चाहे सेवा की, किसी में भी चार में से एक में भी मेहनत लगती है तो जरूर अनुभव की कमी है। सेवा की सफलता में, धारणा में स्वभाव-संस्कार परिवर्तन की, योग में भी अचल रहने की, योगी जीवन की अनुभूति करने की जहाँ मेहनत है या कभी-कभी कहते हो, तो इसका अर्थ है उस सबजेक्ट में आप अनुभवीमूर्त नहीं बने हो। अनुभव कभी-कभी नहीं होता, नेचरल नेचर होती है। तो अभी सुना मेहनत करने का कारण क्या? आपको अनुभव होगा कि जिस समय अनुभव की सीट पर सेट होते हो, किसी भी वरदान के स्वरूप में अनुभवी बन अनुभव करते हो तो उस समय मेहनत नहीं करनी पड़ती है, नेचरल अनुभूति होती है, इसलिए अभी समय प्रमाण सब अचानक होना है। बताके नहीं होना है। इकùे के इकùे एक समय अनेकों की टिकेट कट रही है तो ऐसे समय में आप एवररेडी हैं? यह तो नहीं कहेंगे कि पुरुषार्थ कर रहा हूँ? एवररेडी अर्थात् कोई भी वरदान या स्वमान का संकल्प किया और स्वरूप बना इसलिए बापदादा आज इस बात पर अटेन्शन दिला3 रहे हैं कि किसी भी वरदान को फलीभूत कर वरदान या स्वमान के स्वरूप के अनुभवी बन सकते हो? बनना ही पड़ेगा। कोशिश कर रहा हूँ, अगर कोशिश भी करनी है तो अभी से क्योंकि बहुत समय का अभ्यास समय पर मदद देगा। पुरुषार्थी नहीं, अनुभवी क्योंकि अनुभव की अथॉरिटी आप सबको आलमाइटी अथॉरिटी ने दी है। जैसे देह भान के अनुभवी हैं, तो क्या देह भान को याद करना पड़ता है कि मैं फलाना हूँ! तो देह भान इतना पक्का हो गया है। ऐसे देही अभिमानी, स्वमानधारी, स्वराज्य अधिकारी इतना पक्का हो। आप कहते हो ना, हमारा जीवन परिवर्तन है तो परिवर्तन क्या किया? देह भान से स्वमान, स्वराज्य अधिकारी बनें। तो चेक करो ज्ञान स्वरूप बना हूँ? या ज्ञान सुनने और सुनाने वाला बना हूँ? ज्ञान अर्थात् नौलेज़, नौलेज़ का प्रैक्टिकल रूप है, नौलेज़ को कहते हैं, नौलेज़ इज लाइट, नौलेज़ इज माइट, तो ज्ञान स्वरूप बनना अर्थात् जो भी कर्म करेंगे वह लाइट और माइट वाला होगा। यथार्थ होगा। इसको कहा जाता है ज्ञान स्वरूप बनना। ज्ञान सुनाने वाला नहीं, ज्ञान स्वरूप बनना। योग स्वरूप का अर्थ है कर्मेन्द्रियों जीत बनना। हर कर्मेन्द्रिय पर स्वराज्यधारी। इसको कहा जाता है योग अर्थात् युक्तियुक्त जीवन। ऐसे अगर ज्ञान योग का स्वरूप है तो हर गुण की धारणा ऑटोमेटिकली होगी। जहाँ ज्ञान, योग है, योगयुक्त है वहाँ गुणों की धारणा ऑटोमेटिकली होगी। सेवा हर समय ऑटोमेटिक होगी। समय अनुसार चाहे मन्सा सेवा करे, चाहे वाचा करे, चाहे कर्मणा करे, चाहे स्नेह सम्बन्ध में करे, सेवा भी हर समय अखण्ड चलती रहेगी। सम्बन्ध सम्पर्क में भी सेवा होती है। मानो कोई आपके भाई या बहन ब्रह्मण परिवार में थोड़ा सा मायूस है, थोड़ा पुरुषार्थ में डल है, कोई संस्कार के वश है, ऐसे सम्पर्क वाली आत्मा को आपने उमंग-उत्साह दिलाया, सहयोग दिया, स्नेह दिया, यह भी सेवा का पुण्य आपका जमा होता है। गिरे हुए को उठाना यह पुण्य गाया जाता है। तो सम्बन्ध और सम्पर्क में भी सेवा करना, यह सच्चे सेवाधारी का कर्तव्य है। सेवा मिले या सेवा दी जाए तो सेवा है, वह नहीं। स्वयं मन्सा, वाचा, कर्मणा, सम्पर्क सम्बन्ध में सेवा ऑटोमेटिकली होती रहे। कई बार बापदादा ने देखा कि सम्पर्क में कोई-कोई बच्चा देखता भी है कि इनका स्वभाव संस्कार थोड़ा जो होना चाहिए वह नहीं है, लेकिन यह तो है ही ऐसा, यह बदलना नहीं है, इसकी सेवा करना टाइम वेस्ट है, ऐसा संकल्प करना क्या यथार्थ है? जब आप मानते हो कि हम प्रकृति को भी सतोप्रधान बनाने वाले हैं, प्रकृति को और वह मनुष्यात्मा है, ब्रह्मण कहलाता है लेकिन संस्कार वश है, जब प्रकृति का संस्कार बदलने की चैलेन्ज की है तो वह तो प्रकृति से पुरुष है, आत्मा है। आपके सम्बन्ध में है। तो सच्चा सेवाधारी अपने सेवा का पुण्य कमाने के लिए शुभ भावना अवश्य रखेगा। यह तो है ही ऐसा, यह बदल ही नहीं सकता, यह शुभ भावना नहीं, यह सूक्ष्म घृणा भावना है। फिर भी अपना भाई बहन है, फिर भी मेरा बाबा तो कहता है ना! तो सच्चा सेवाधारी शुभ भावना देने की सेवा में भी पुण्य कमायेगा। गिरे हुए को गिराना नहीं, उठाना। सहयोग देना, इसको कहेंगे सच्चे सेवाधारी, पुण्य आत्मा। तो ऐसे अपने को चेक करो इतना सेवा का उमंग-उत्साह है? इसको कहा जाता है अनुभव के अथॉरिटी वाला। तो अभी बापदादा यही चाहता है, अनुभवी मूर्त बनो, अनुभव की अथॉरिटी को कार्य में लगाओ।

तो चार ही सबजेक्ट में जो अपने को अनुभवी स्वरूप बन अनुभव के अथॉरिटी को कार्य में लगायेंगे, जो कमी हो उसको सम्पन्न करेंगे, इतना अपने पर अटेन्शन देंगे वह हाथ उठाओ। मन का हाथ उठा रहे हो ना! शरीर का हाथ नहीं, मन का हाथ उठाओ। मन का हाथ उठाना क्योंकि बापदादा शिवरात्रि पर रिजल्ट लेंगे। मन में कोई का भी कमी का संस्कार अपनी शुभ भावना को कम नहीं करे। उसका संस्कार तो ढीला है लेकिन वह इतना तो पावरफुल है जो आपकी शुभ भावना को कम कर लेता है इसलिए जैसे ब्रह्मा बाप ने क्या नहीं देखा, क्या नहीं किया, जिम्मेवार होते फिर भी अन्त में शुभ भावना, शुभ कामना के तीन शब्द सभी को शिक्षा देके गये। याद है ना! तीन शब्द याद हैं ना! स्वयं भी निराकारी, निरहंकारी, निर्विकारी इसी स्थिति में अव्यक्त बनें, किसी को भी कर्मभोग की फीलिंग नहीं दिलाई, किसने समझा कि कर्मभोग समाप्त हो रहा है! क्या हो गया? अव्यक्त हो गया। ऐसे ब्रह्मा बाप समान फरिश्ता भव का वरदान जो बाप ने करके दिखाया, फाॅलो ब्रह्मा बाप। ब्रह्मा बाप से प्यार रहा, अभी भी चाहे4 साकार में नहीं देखा लेकिन अव्यक्त बाप के रूप में भी स्नेह सबका है। बापदादा दोनों से स्नेह है। देखा गया है कि स्नेह की सबजेक्ट में मैजारिटी पास हैं। स्नेह ही चला रहा है। चाहे धारणा नहीं भी हो, कोई भी सबजेक्ट में कमी हो, लेकिन स्नेह की सबजेक्ट में मैजारिटी सभी पास हैं। स्नेह चला रहा है। आप सभी क्यों आये हैं? किस विमान में आये हो? स्नेह के विमान में पहुंचे हो। और बापदादा का भी लास्ट बच्चे से भी प्यार है। कैसा भी है लेकिन प्यार में पास है क्योंकि बाप का हर बच्चे के प्रति दिल का प्यार है। चाहे कैसा भी है लेकिन मेरा है। जैसे आप कहते हो मेरा बाबा, तो बाप क्या कहते हैं? मेरे बच्चे हैं। ऐसी शुभ भावना आपस में परिवार की भी होना आवश्यक है। स्वभाव नहीं देखो, बाप जानते हैं, भाव स्वभाव है, लेकिन भाव स्वभाव, प्यार को खत्म नहीं करे, सम्बन्ध को खत्म नहीं करे, कार्य को सफल कम करे, यह राइट नहीं। परिवार है। कौन सा परिवार है? प्रभु परिवार, परमात्म परिवार। इसमें कोई भी कारण से प्यार की कमी नहीं होनी चाहिए। ऐसे है? है प्यार की कमी? प्यार अर्थात् शुभ भावना जरूर हो। कैसा भी है, परमात्म परिवार है। जिसने माना कि मैं प्रभु परिवार का हूँ, तो परिवार अर्थात् प्यार। अगर परिवार में प्यार नहीं तो परिवार नहीं इसलिए आज क्या पाठ पढ़ा? पक्का किया? हर आत्मा से शुभ भावना, शुभ भाव। यह परमात्म परिवार एक का एक समय ही होता है, इतना बड़ा परिवार परमात्मा के सिवाए और किसका हो ही नहीं सकता। तो चेक करना क्योंकि यह भी पुरुषार्थ में विघ्न पड़ता है। तो जब विघ्न मुक्त होंगे तभी अनुभवी बन अनुभव के अथॉरिटी द्वारा सभी को अनुभवी बनायेंगे। अच्छा।

सेवा का टर्न - राजस्थान का है:- बापदादा ने देखा है कि यह सेवा का चांस सभी उमंग-उत्साह से लेते हैं, सभी प्यार से सेवा करते भी हैं और कराते भी हैं। सेवा का यह पार्ट इन 10-15 दिन में भिन्न-भिन्न कमाई का साधन है। एक फायदा यह है कि सेवा का मेवा हर एक का पुण्य जमा होता है। दूसरा फायदा यहाँ मधुबन में ज्ञान का वायुमण्डल, बड़े परिवार के स्नेह का वायुमण्डल, जिससे पुरुषार्थ में भी बल मिलता है क्योंकि वायुमण्डल, वायब्रेशन और ज्ञान स्नान, वे तो एक बारी तीर्थो पर स्नान करने जाते हैं तो अपना बहुत पुण्य मानते हैं और यहाँ जितने दिन भी रहते हो उतने दिन ज्ञान स्नान, ज्ञान के वचन कानों में पड़ते रहते हैं। और योगी आत्मायें, प्रभु प्यार वाली आत्मायें उनका वायब्रेशन भी आटोमेटिकली मिलता रहता है। एकान्त के वायुमण्डल का लाभ मिलता है। अगर कोई अपने काम में और पढ़ाई के फायदों में अपने को बिजी रखता है तो उनको थोड़े दिनों में अपना भविष्य ऊंचा बनाने का चांस मिलता है इसलिए यज्ञ का काम भी चलता और आने वालों का पुण्य भी जमा होता। बापदादा ने देखा कि आजकल के वायुमण्डल में सेवा का उमंग मैजारिटी सभी ज़ोन में है। राजस्थान भी ऐसे ही आगे बढ़ रहे हैं। अच्छा।
बापदादा हर एक बच्चे की विशेषता को देख रहे हैं। हर एक बच्चे में किसी न किसी सबजेक्ट में विशेषता समाई हुई है इसलिए बापदादा इन्डिविज्युअल एक-एक बच्चे को होवनहार विजयी स्वरूप में देख रहे हैं क्योंकि सबको साथी बनके चलना है। साथ है, साथ चलेंगे। ब्रह्मा बाप के साथ में राज्य करेंगे। अच्छा।

चारों ओर के बच्चों को बापदादा देख देख खुश हो गीत गाते वाह बच्चे वाह! हर बच्चे के दिल में बाप है और बाप के दिल में हर बच्चा है। और यहाँ इतना परिवार मधुबन निवासी देखकर यह भी खुशी होती है वाह मधुबन वाह! सबका एशलम मधुबन है ही है इसलिए मधुबन में भागकर आ जाते हैं। अब बाप की जो आशा है वह जल्दी से जल्दी पूर्ण करना है। चार ही सबजेक्ट में अनुभवी स्वरूप बनना ही है। बापदादा देश विदेश चारों ओर के बच्चे जहाँ भी बैठे देख रहे हैं। सभी कैसे देख देख हर्षित हो रहे हैं। यह साधन, यह साइंस इसी समय प्रोग्रेस में जा रही है, नई नई इन्वेन्शन दुनिया के हैं लेकिन आपके फायदे के साधन अच्छे अच्छे निकाल रहे हैं। दूर होते भी साथ हैं। तो साइंस वालों को भी मुबारक है जो साधन तो बनाये हैं। अच्छा। देश विदेश के सभी बच्चों को बहुत-बहुत दिल का प्यार और याद स्वीकार हो और विशेष ऐसे विशेष बच्चों को नमस्ते।