18-1-20 ओम् शान्ति “दिनचर्या'' मधुबन


प्राणेश्वर अव्यक्त बापदादा के अति स्नेही, सदा परमात्म लव में लवलीन रहने वाली, साकार व अव्यक्त पालना की अनुभवी आत्मायें, निमित्त टीचर्स बहिनें तथा सर्व ब्राह्मण कुल भूषण भाई बहिनें,

ईश्वरीय स्नेह सम्पन्न मधुर याद स्वीकार करना जी।

हम सबके अति प्रिय “पिताश्री ब्रह्मा बाबा'' का स्मृति सो समर्थी दिवस सभी ब्रह्मा वत्स बहुत स्नेह और श्रद्धा के साथ हर वर्ष मनाते हैं। बाबा को अव्यक्त हुए 51 वर्ष पूरे हो रहे हैं। हम सबको अलौकिक जन्म देने वाली बड़ी माँ तथा अव्यक्त रूप से शिवबाबा के साथ कम्बाइन्ड होकर इतनी श्रेष्ठ ऊंची पालना देने वाले अव्यक्त ब्रह्मा बाप का यह स्मृति दिवस उनके अनेक चरित्रों को साकार कर देता है। कैसे 84 वर्षों की यह संगमयुग की अलौकिक यात्रा निर्विघ्न रूप से आगे बढ़ते अपने ऊंचे लक्ष्य के समीप पहुंच चुकी है, यह तो आप हम सभी अनुभव कर रहे हैं। उनकी छत्रछाया में हजारों ब्रह्मा वत्स माया और प्रकृति पर जीत प्राप्त कर अपनी सम्पूर्णता की मंजिल के समीप पहुंच रहे हैं। संगमयुगी तीव्र पुरुषार्थी आत्मायें अपने तन-मन-धन के सहयोग से, एडवांस पार्टी की आत्मायें अपनी दिव्य धारणा सम्पन्न जीवन द्वारा परमात्म प्रत्यक्षता का नगाड़ा बजाने की तैयारी में है। अभी वह दिन भी समीप दिखाई दे रहे हंग जब चारों ओर “यही है, यही है, यही है” का आवाज गूंजेगा। जयजयकार के नारे लगेंगे और सर्व आत्मायें कुछ न कुछ अंचली ले, अपने मुक्तिधाम घर में जायेंगी। फिर हमारी नई सतयुगी दुनिया आयेगी। बोलो, यह दृश्य आंखों के सामने आ रहे हैं ना! मीठा बाबा पिछले दो वर्षों से साक्षी बन बच्चों की हर एक्टिविटी पर नज़र रखते, आकारी और निराकारी रूप से मददगार बन विश्व कल्याण की सेवा करवा रहे हैं।

मधुबन पाण्डव भवन में हर वर्ष की भांति इस स्मृति दिवस पर भी विशेष चारों धामों का श्रृंगार कलकत्ता के भाई बहिनों ने बहुत सुन्दर वैरायटी फूलों से किया है। अमृतवेले से ही सभी भाई बहिनें उसी स्नेह में समाते हुए विशेष सभी स्थानों पर अव्यक्त मिलन मनाते अव्यक्त वतन की सैर करते रहे। फिर प्यारे बाबा को भोग स्वीकार कराया गया। उसके बाद तीनों स्थानों पर सभी ने योग-तपस्या की। शान्तिवन में तो साकार ब्रह्मा बाबा की पालना लिए हुए निर्वैर भाई, अमीरचन्द भाई ने बाबा के अंग-संग के अनुभव सुनाये। विशेष दोपहर के समय सब जगह मीठे बाबा को भोग लगाया गया, फिर सभी स्थानों पर ब्रह्मा भोजन हुआ। शाम के समय सभी ने विशेष ब्रह्मा बाप के स्नेह में समाते हुए डायमण्ड हॉल में वीडियो द्वारा अव्यक्त महावाक्य सुने जो आपके पास भेज रहे हैं। अभी गुजरात तथा अन्य देश-विदेश के स्थानों से लगभग 20 हजार भाई-बहनें बाबा के घर में पहुंचे हैं, सेवा का टर्न गुजरात ज़ोन का है। दादी जानकी जी रोज़ शाम के समय विशेष योग करवाते अपने वरदानी महावाक्यों से सबको रिफ्रेश करती हैं। हम सबकी अति स्नेही दादी गुल्जार अभी तक मुम्बई गामदेवी सेवाकेन्द्र पर हैं। सभी के शुभ संकल्पों के वायब्रेशन दादी तक पहुंचते रहते हैं। उम्मींद है ठण्डी के बाद दादी जी अपने मधुबन घर में आ जायेंगी। सभी भाई बहिनों की शुभ भावनायें, बापदादा के पास पहुंच रही हैं। बाबा जरूर बच्चों की आश पूरी करेंगे। अच्छा - सभी को बहुत-बहुत याद... ओम् शान्ति।

18-01-2020 ओम् शान्ति अव्यक्त महावाक्य - वीडियो द्वारा 18-1-07 मधुबन

“अब स्वयं को मुक्त कर मास्टर मुक्तिदाता बन सबको मुक्ति दिलाने के निमित्त बनो”

आज स्नेह के सागर बापदादा चारों ओर के स्नेही बच्चों को देख रहे हैं। दो प्रकार के बच्चे देख-देख हर्षित हो रहे हैं। एक हैं लवलीन बच्चे और दूसरे हैं लवली बच्चे, दोनों के स्नेह की लहरें बाप के पास अमृतवेले के भी पहले से पहुँच रही हैं। हर एक बच्चे के दिल से ऑटोमेटिक गीत बज रहा है – “मेरे बाबा”। बापदादा के दिल से भी यही गीत बजता –“मेरे बच्चे, लाडले बच्चे, बापदादा के भी सिरताज बच्चे”।

आज स्मृति दिवस के कारण सबके मन में स्नेह की लहर ज्यादा है। अनेक बच्चों की स्नेह के मोतियों की मालायें बापदादा के गले में पिरो रही हैं। बाप भी अपने स्नेही बांहों की माला बच्चों को पहना रहे हैं। बेहद के बापदादा की बेहद की बांहों में समा गये हैं। आज सब विशेष स्नेह के विमान में पहुंच गये हैं और दूर-दूर से भी मन के विमान में अव्यक्त रूप से, फरिश्तों के रूप से पहुंच गये हैं। सभी बच्चों को बापदादा आज स्मृति दिवस सो समर्थ दिवस की पदमापदम याद दे रहे हैं। यह दिवस कितनी स्मृतियां दिलाता है और हर स्मृति सेकण्ड में समर्थ बना देती है। स्मृतियों की लिस्ट सेकण्ड में स्मृति में आ जाती है ना। स्मृति सामने आते समर्थी का नशा चढ़ जाता है। पहली-पहली स्मृति याद है ना! जब बाप के बने तो बाप ने क्या स्मृति दिलाई? आप कल्प पहले वाली भाग्यवान आत्मा हो। याद करो इस पहली स्मृति से क्या परिवर्तन आ गया? आत्म-अभिमानी बनने से परमात्म बाप के स्नेह का नशा चढ़ गया। क्यों नशा चढ़ा? दिल से पहला स्नेह का शब्द कौन सा निकला? “मेरा मीठा बाबा” और इस एक गोल्डन शब्द निकलने से नशा क्या चढ़ा? सारी परमात्म प्राप्तियां मेरा बाबा कहने से, जानने से, मानने से आपकी अपनी प्राप्तियां हो गई। अनुभव है ना! मेरा बाबा कहने से कितनी प्राप्तियां आपकी हो गई! जहाँ प्राप्तियां होती हैं वहाँ याद करनी नहीं पड़ती लेकिन स्वत: ही आती है, सहज ही आती है क्योंकि मेरी हो गई ना! बाप का खजाना मेरा खजाना हो गया, तो मेरापन याद किया नहीं जाता है, याद रहता ही है। मेरा भुलाना मुश्किल होता है, याद करना मुश्किल नहीं होता। जैसे अनुभव है मेरा शरीर, तो भूलता है? भुलाना पड़ता है, क्यों? मेरा है ना! तो जहाँ मेरापन आता है वहाँ सहज याद हो जाती है। तो स्मृति ने समर्थ आत्मा बना दिया - एक शब्द “मेरा बाबा” ने। भाग्य विधाता अखुट खजाने के दाता को मेरा बना लिया। ऐसी कमाल करने वाले बच्चे हो ना! परमात्म पालना के अधिकारी बन गये, जो परमात्म पालना सारे कल्प में एक बार मिलती है, आत्मायें और देव आत्माओं की पालना तो मिलती है लेकिन परमात्म पालना सिर्फ एक जन्म के लिए मिलती है।

तो आज के स्मृति सो समर्थी दिवस पर परमात्म पालना का नशा और खुशी सहज याद रही ना! क्योंकि आज का वायुमण्डल सहज याद का था। तो आज के दिन सहजयोगी रहे कि आज के दिन भी याद के लिए युद्ध करनी पड़ी? क्योंकि आज का दिन स्नेह का दिन कहेंगे ना, तो स्नेह मेहनत को मिटा देता है। स्नेह सब बातें सहज कर देता है। तो सभी आज के दिन विशेष सहजयोगी रहे या मुश्किल आई? जिसको आज के दिन मुश्किल आई हो वह हाथ उठाओ। किसको भी नहीं आई? सब सहजयोगी रहे। अच्छा जो सहजयोगी रहे वह हाथ उठाओ। (सभी ने उठाया) अच्छा - सहजयोगी रहे? आज माया को छुट्टी दे दी थी। आज माया नहीं आई? आज माया को विदाई दे दी? अच्छा आज तो विदाई दे दी, उसकी मुबारक हो, अगर ऐसे ही स्नेह में समाये रहो तो माया को तो विदाई सदा के लिए हो जायेगी।

बापदादा इस वर्ष को न्यारा वर्ष, सर्व का प्यारा वर्ष, मेहनत से मुक्त वर्ष, समस्या से मुक्त वर्ष मनाने चाहते हैं। आप सभी को पसन्द है? पसन्द है? मुक्त वर्ष मनायेंगे? क्योंकि मुक्तिधाम में जाना है, अनेक दु:खी अशान्त आत्माओं को मुक्तिदाता बाप से साथी बन मुक्ति दिलाना है। तो मास्टर मुक्तिदाता जब स्वयं मुक्त बनेंगे तब तो मुक्ति वर्ष मनायेंगे ना! क्योंकि आप ब्राह्मण आत्मायें स्वयं मुक्त बन अनेकों को मुक्ति दिलाने के निमित्त हो। एक भाषा जो मुक्ति दिलाने के बजाए बंधन में बांधती है, समस्या के अधीन बनाती है, वह है ऐसा नहीं, वैसा। वैसा नहीं ऐसा। जब समस्या आती है तो यही कहते हैं बाबा ऐसा नहीं था, वैसा था ना। ऐसा नहीं होता, ऐसा होता ना। यह है बहाने बाजी करने का खेल।

बापदादा ने सबका फाइल देखा, तो फाइल में क्या देखा? मैजॉरिटी का फाइल प्रतिज्ञा करने के पेपर से भरा हुआ है। प्रतिज्ञा करने के टाइम बहुत दिल से करते हैं, सोचते भी हैं लेकिन अभी तक देखा कि फाइल बड़ा होता जाता है लेकिन फाइनल नहीं हुआ है। दृढ़ प्रतिज्ञा के लिए कहा हुआ है - जान चली जाए लेकिन प्रतिज्ञा न जाए। तो बापदादा ने आज सबके फाइल देखे। बहुत प्रतिज्ञायें अच्छी-अच्छी की है। मन से भी की है और लिख करके भी की है। तो इस वर्ष क्या करेंगे? फाइल को बढ़ायेंगे या प्रतिज्ञा को फाइनल करेंगे? क्या करेंगे? पहली लाइन वाले बताओ, पाण्डव सुनाओ, टीचर्स सुनाओ। इस वर्ष जो बापदादा के पास फाइल बड़ा होता जाता है, उसको फाइनल करेंगे या इस वर्ष भी फाइल में कागज एड करेंगे? क्या करेंगे? बोलो पाण्डव, फाइनल करेंगे? जो समझते हैं - झुकना पड़े, बदलना पड़े, सहन करना भी पड़े, सुनना भी पड़े, लेकिन बदलना ही है, वह हाथ उठाओ। देखो टी.वी. में सबका फोटो निकालो। सभी का फोटो निकालना, दो तीन चार टी.वी. हैं, सब तरफ के फोटो निकालो। यह रिकार्ड रखना, बाप को यह फोटो निकाल के देना। कहाँ है टी.वी. वाले? बापदादा भी फाइल का फायदा तो उठावे। मुबारक हो, मुबारक हो, अपने आपके लिए ही ताली बजाओ।

देखो जैसे एक तरफ साइन्स दूसरे तरफ भ्रष्टाचारी, तीसरे तरफ पापाचारी, सब अपने-अपने कार्य में और वृद्धि करते जा रहे हैं। बहुत नये-नये प्लैन बनाते जाते हैं। तो आप तो वर्ल्ड क्रियेटर के बच्चे हो, तो आप इस वर्ष ऐसी नवीनता के साधन अपनाओ जो प्रतिज्ञा दृढ़ हो जाए क्योंकि सभी प्रत्यक्षता चाहते हैं। कितना खर्चा कर रहे हैं, जगह-जगह पर बड़े-बड़े प्रोग्राम कर रहे हैं। हर एक वर्ग मेहनत अच्छी कर रहे हैं लेकिन अभी इस वर्ष यह एडीशन करो कि जो भी सेवा करो, मानो मुख की सेवा करते हो, तो सिर्फ मुख की सेवा नहीं, मन्सा वाचा और स्नेह सहयोग रूपी कर्म एक ही समय में तीन सेवायें इकट्ठी हों। अलग-अलग नहीं हों। एक सेवा में देखा जाता है कि जो बापदादा रिजल्ट देखने चाहते हैं वह नहीं होती। जो आप भी चाहते हो कि प्रत्यक्षता हो जाए। अभी तक पहले से यह रिजल्ट बहुत अच्छी है - सब अच्छा-अच्छा, बहुत अच्छा कहके जाते हैं। लेकिन अच्छा बनना अर्थात् प्रत्यक्षता होना। तो अब एडीशन करो कि एक ही समय पर मन्सा-वाचा, कर्मणा में स्नेही सहयोगी बनना, हर एक साथी चाहे ब्राह्मण साथी हैं, चाहे बाहर वाले सेवा के निमित्त जो बनते हैं, वह साथी हों लेकिन सहयोग और स्नेह देना - यह है कर्मणा सेवा में नम्बर लेना। यह भाषा नहीं कहना, यह ऐसा किया ना, तभी ऐसा करना पड़ा। स्नेह के बजाए थोड़ा-थोड़ा कहना पड़ा, बाबा शब्द नहीं बोलता। यह करना ही पड़ता है, कहना ही पड़ता है, देखना ही पड़ता है... यह नहीं। इतने वर्षो में देख लिया, बापदादा ने छुट्टी दे दी। ऐसा नहीं वैसा करते रहे, लेकिन अभी कब तक? बापदादा से सभी रूहरिहान में मैजॉरिटी कहते हैं बाबा आखिर भी पर्दा कब खोलेंगे? कब तक चलेगा? तो बापदादा आपको कहते हैं कि यह पुरानी भाषा, पुरानी चाल, अलबेलेपन की, कडुवेपन की कब तक? बापदादा का भी क्वेश्चन है कब तक? आप उत्तर दो तो बापदादा भी उत्तर देगा कब तक विनाश होगा क्योंकि बापदादा विनाश का पर्दा तो अभी भी इसी सेकण्ड में खोल सकता है लेकिन पहले राज्य करने वाले तो तैयार हों। तो अब से तैयारी करेंगे तब समाप्ति समीप लायेंगे। किसी भी कमजोरी की बात में कारण नहीं बताओ, निवारण करो, यह कारण था ना। बापदादा सारे दिन में बच्चों का खेल तो देखते हैं ना, बच्चों से प्यार है ना, तो बार-बार खेल देखते रहते हैं। बापदादा की टी.वी. बहुत बड़ी है। एक समय पर वर्ल्ड दिखाई दे सकती है, चारों ओर के बच्चे दिखाई दे सकते हैं। चाहे अमेरिका हो, चाहे गुडगांव हो, सब दिखाई देते हैं। तो बापदादा खेल बहुत देखते हैं। टालने की भाषा बहुत अच्छी है, यह कारण था ना, बाबा मेरी गलती नहीं है, इसने ऐसा किया ना। उसने तो किया लेकिन आपने समाधान किया? कारण को कारण ही बनने दिया या कारण को निवारण में बदली किया? तो सभी पूछते हैं ना कि बाबा आपकी क्या आशा है? तो बापदादा आशा सुना रहे हैं। बापदादा की एक ही आशा है - निवारण दिखाई देवे, कारण खत्म हो जाए। समस्या समाप्त हो जाए, समाधान होता रहे। हो सकता है? हो सकता है? पहली लाइन - हो सकता है? कांध तो हिलाओ। पीछे वाले हो सकता है? (सभी ने हाथ उठाया) अच्छा। तो कल अगर टी.वी. खोलेंगे, टी.वी में देखेगे तो जरूर ना। तो कल टी.वी. देखेंगे तो चाहे फारेन चाहे इण्डिया, चाहे छोटे गांव, चाहे बहुत बड़ी स्टेट, कहाँ भी कारण दिखाई नहीं देगा? पक्का? इसमें हाँ नहीं कर रहे हैं? होगा? हाथ उठाओ। हाथ बहुत अच्छा उठाते हो, बापदादा खुश हो जाता। कमाल है हाथ उठाने की। खुश करना तो आता है बच्चों को क्योंकि बापदादा देखते हैं सोचो - जो आप कोटों में कोई, कोई में कोई निमित्त बने हो, अभी इन बच्चों के सिवाए और कौन करेगा? आपको ही तो करना है ना! तो बापदादा की आप बच्चों में उम्मीदें हैं। और जो आयेंगे ना, वह तो आपकी अवस्था देख करके ही ठीक हो जायेंगे, उन्हों को मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। आप बन जाओ बस क्योंकि आप सभी ने जन्म लेते ही बाप से वायदा किया है - साथ रहेंगे, साथी बनेंगे और साथ चलेंगे और ब्रह्मा बाप के साथ राज्य में आयेंगे। यह वायदा किया है ना? जब साथ रहेंगे, साथ चलेंगे तो साथ में सेवा के साथी भी तो हो ना!

आज के दिन का और समाचार सुनायें। आज के दिन एडवान्स पार्टी भी बापदादा के पास इमर्ज होती है। तो एडवांस पार्टी भी आपको याद कर रही है कि कब बाप के साथ मुक्तिधाम का दरवाजा खोलेंगे! आज सारी एडवांस पार्टी बापदादा को यही कह रही थी कि हमको तारीख बताओ। तो क्या जवाब दें? बताओ क्या जवाब दें? जवाब देने में कौन होशियार है? बापदादा तो यही उत्तर देते हैं कि जल्द से जल्द हो ही जायेगा। लेकिन इसमें आप बच्चों का बाप को सहयोग चाहिए। सभी साथ चलेंगे ना! साथ चलने वाले हैं या रुक-रूक कर चलने वाले हैं? साथ में चलने वाले हैं ना! साथ में चलना पसन्द है ना? तो समान बनना पड़ेगा। अगर साथ में चलना है तो समान तो बनना ही पड़ेगा ना! कहावत क्या है? हाथ में हाथ हो, साथ में साथ हो। तो हाथ में हाथ अर्थात् समान। तो बोलो दादियां बोलो, तैयारी हो जायेगी? दादियां बोलो। दादियां हाथ उठाओ। दादायें हाथ उठाओ। तो बताओ दादियां, दादायें क्या तारीख है कोई? (अभी नहीं तो कभी नहीं) अभी नहीं तो कभी नहीं का अर्थ क्या हुआ? अभी तैयार हैं ना! जवाब तो अच्छा दिया। दादियां? पूरा होना ही है। हर एक छोटे बड़े इसमें अपने को जिम्मेवार समझें। इसमें छोटा नहीं होना है। 7 दिन का बच्चा भी जिम्मेवार है क्योंकि साथ चलना है ना। अकेला बाप जाने चाहे तो चला जाए लेकिन बाप जा नहीं सकता। साथ चलना है। वायदा है बाप का भी और आप बच्चों का भी। वायदा तो निभाना है ना! निभाना है ना? यह मधुबन वाले बैठे हैं ना!

मधुबन में जो भी चार्ज के हेडस हैं, चार्जेज़ तो बहुत हैं ना, शान्तिवन, ज्ञान सरोवर, पाण्डव भवन सब जगह हैं। तो जो चार्ज वाले हैं उनके नामों की लिस्ट बापदादा को देना, उनसे हिसाब लेंगे। और जो सभी टीचर्स इन्चार्ज हैं, सेन्टर इन्चार्ज हैं या जोन इन्चार्ज हैं, उन्हों का एक दिन संगठन करेंगे, हिसाब-किताब तो पूछेंगे ना! क्योंकि बापदादा के पास बहुत दु:ख और अशान्ति के आवाज आते हैं। परेशानी के आवाज आते हैं। आप लोगों के पास नहीं सुनने आते? आपके भी तो भक्त होंगे ना! तो भक्तों की पुकार आप इष्ट देवों को नहीं आती? टीचर्स को भक्तों की आवाज सुनाई देती है? अच्छा।

सेवा का टर्न गुजरात का है:- गुजरात दर पर है ना। गुजरात में बापदादा ने देखा है कि मैजॉरिटी एक तो गीता पाठशालायें बहुत हैं और गीता पाठशालायें चलाने वाले हैण्डस भी बहुत हैं। अभी गुजरात क्या करेगी? सेवाधारी भी बहुत हैं, सेवा भी बहुत है, अभी नई सेवा क्या करेंगे? जो किसने नहीं की हो, ऐसा कोई प्लैन बनाया है? जो किसने नहीं की हो, वह गुजरात करके दिखावे। तो गुजरात क्या करेगा? मन्सा सेवा में नम्बरवन होके दिखाओ। सभी के लिए है। लेकिन गुजरात का टर्न है तो गुजरात को कह रहे हैं लेकिन अभी स्वयं की मन्सा पावरफुल होने से मन्सा सेवा की रिजल्ट सामने आयेगी। जैसे वाचा की पहले नहीं थी, अभी वाचा सेवा की रिजल्ट सामने आ रही है। मेहनत तो अच्छी की है। बापदादा निमित्त मेहनत की मुबारक भी देते हैं लेकिन समय फास्ट है, अभी भी समय बहुत फास्ट जा रहा है। अच्छा। मुबारक हो। गुजरात जैसे स्थान के हिसाब से नजदीक है वैसे बाप के दिल में भी नजदीक है। अच्छे अच्छे हैं, शुरू से देखो तो पाण्डव या शक्तियां अच्छे-अच्छे निकले हैं। अभी ऐसे स्पीकर तैयार करो। आप सकाश दो और वह भाषण करें। अच्छा, बहुत अच्छा। पदमगुणा मुबारक है।

डबल विदेशी:- बापदादा ने पहले भी कहा तो जब डबल विदेशी आते हैं तो मधुबन का श्रृंगार हो जाता है। डबल विदेशियों से सभी का प्यार बहुत है। जब भी आपके ग्रुप को देखते हैं ना तो सभी खुश हो जाते हैं क्योंकि आप भी कोटों में कोई, कोई में कोई निकले हो और आजकल विदेश सेवा की अच्छी न्यूज़ है। आज अभी सुनाया ना कि एक समय पर एक सेवा नहीं करो, तीनों ही सेवायें इकट्ठी-इकट्ठी हों तो उसका प्रभाव जल्दी होगा। अपने चेहरे से, अपनी चलन से भी सेवा कर सकते हैं। चलते-फिरते म्युजियम हो। जैसे म्युजियम में वा प्रदर्शनी में भिन्न-भिन्न चित्र होते हैं ना वैसे आपके नयन, आपका मस्तक, आपके मुस्कराते हुए होंठ, यह भिन्न-भिन्न जो साधन हैं, उससे सेवा कर सकते हैं। अच्छे हैं, बापदादा को हिम्मत वाले भी लगते हैं सिर्फ अभी थोड़ा सा रियलाइजेशन सूक्ष्म चाहिए। रियलाइज करते हो लेकिन थोड़ा सा सूक्ष्म रूप से रियलाइजेशन करके नम्बरवन बन जाओ। विन करो और वन बनो, सेकण्ड नम्बर नहीं, वन। ठीक है ना! वन है ना, टू तो नहीं ना! वन नम्बर हैं? कांध हिलाओ। अच्छा है, विदेशियों का ग्रुप मधुबन में आता रहे, यह बापदादा को बहुत अच्छा लगता है। मधुबन सज जाता है। अच्छा।

बापदादा के पास फूलों के श्रृंगार वाले ग्रुप की यादप्यार भी आई है, (कलकत्ता के भाई बहिनें), वह संगठन उठो, कहाँ है। देखो सभी को फूलों का श्रंगार अच्छा लगा ना। (स्मृति दिवस निमित्त बापदादा के सभी यादगार स्थानों को खूब सुन्दर फूल मालाओं से सजाया है) फूलों का श्रृंगार तो कामन बात है, लोग भी करते हैं लेकिन आपके श्रृंगार और लोगों के श्रृंगार में फ़र्क है - आपने स्नेही स्वरूप बन श्रृंगार किया है, वह ड्युटी समझके करते हैं और आपने स्नेह से किया है तो जहाँ स्नेह होता है, वह फूलों की सुगन्ध और श्रृंगार और सुन्दर हो जाता है।

जो आने वाले आपके भाई-बहिन हैं वह भी देख करके खुश हो जाते हैं, वाह! कमाल है, कमाल है। तो आप सभी ने जिस स्नेह से सजाया है, तो बापदादा उससे ज्यादा पदमगुणा आपको स्नेह दे रहा है, मुबारक हो। अच्छा।

चारों ओर के पत्र, याद पत्र ईमेल, फोन, चारों ओर के बहुत-बहुत आये हैं। यहाँ मधुबन में भी आये हैं तो वतन में भी पहुंचे हैं। आज के दिन जो बंधन वाली मातायें हैं, उन्हों की भी बहुत स्नेह भरी मन की यादें बापदादा के पास पहुंच गई हैं। बापदादा ऐसे स्नेही बच्चों को बहुत याद भी करते और दुआयें भी देते हैं।

आजकल बापदादा देख रहे हैं सब बहुत खुशी-खुशी से दूर बैठे भी नजदीक में अनुभव कर रहे हैं। लेकिन मधुबन में सम्मुख आना, अपनी झोली भरना, इतने बड़े परिवार से मिलना, यह परिवार कम नहीं है, किसी भी रीति से देख लिया लेकिन सम्मुख परिवार को देख कितनी खुशी होती है क्योंकि 5 हजार वर्ष के बाद मिले हैं। तो वह अनुभव अपना है लेकिन मधुबन निवासी बनना, यह गोल्डन चांस बहुत सहयोग देता है। अनुभव भी करते हैं सभी। लेकिन बापदादा खुश है कि सभी को मुरली से प्यार है और मुरली से प्यार अर्थात् मुरलीधर से प्यार। कोई कहे मुरलीधर से तो प्यार है लेकिन मुरली कभी-कभी सुन लेते हैं, बापदादा कहते हैं बापदादा उसका प्यार, प्यार नहीं समझते हैं। प्यार निभाना अलग है, प्यार करना अलग है। जिसको मुरली से प्यार है वह है प्यार निभाने वाले और मुरली से प्यार नहीं तो प्यार करने वालों की लिस्ट में है, निभाने वाले नहीं। मधुबन में मुरली बाजे, मधुबन का गायन है। मधुबन की धरनी का ही महत्व है। अच्छा।

तो चारों ओर के स्नेही बच्चों को लवली और लवलीन दोनों बच्चों को, सदा बाप के श्रीमत प्रमाण हर कदम में पदम जमा करने वाले नॉलेजफुल पावरफुल बच्चों को, सदा स्नेही भी और स्वमानधारी भी, सम्मानधारी भी, ऐसे सदा बाप की श्रीमत को पालन करने वाले विजयी बच्चों को, सदा बाप के हर कदम पर कदम उठाने वाले सहजयोगी बच्चों को बापदादा का लेकिन आज वतन में जो आपके एडवांस पार्टी वाले बच्चे हैं, उन्होंने भी एक एक ने यही कहा है कि हमारे तरफ से भी सभी को, चारों ओर के बच्चों को हमारी यादप्यार देना और हमारा सन्देश देना कि हम आपका इन्तजार कर रहे हैं। आप जल्दी से जल्दी इन्तजाम करो, विशेष आप सबकी प्यारी माँ, दीदी, भाऊ विश्वकिशोर और जो भी साथी गये हैं उन्होंने सभी ने आप सबको यादप्यार दिया है। और साथ-साथ मीठी माँ आपकी उसने यही कहा है कि आप भी विजयी बन दुख दर्द दूर कर जल्दी जल्दी मुक्तिधाम का गेट खोलने के लिए बाप के साथी बन जाओ। ब्रह्मा बाप ने भी जिन्होंने साकार में बाप को नहीं देखा है, तो ब्रह्मा बाप भी विशेष आप सभी को बहुत दिल से यादप्यार दे रहे हैं तो यादप्यार और नमस्ते।

दादी जानकी:- तीन बारी ओम् शान्ति। वन्डरफुल बाबा, वन्डरफुल बाबा के बच्चे, बाबा दृष्टि कितनी अच्छी देता है और हम दृष्टि से कौन सी सृष्टि में चले जाते हैं। सूक्ष्म वतन, मूलवतन। दोनों वतन बहुत अच्छे हैं। सूक्ष्मवतन में बाबा आ जाता है, फिर मूलवतन में खींच लेता है। तो हम बाबा के बच्चे हैं ना। बच्चे कहते हैं बाबा, बाबा कहता बच्चे। हमारे दिल से बाबा ऐसे निकलता है, दिल कहे बाबा आपका शुक्रिया। आप बहुत अच्छे हो, हम भी अच्छे हैं। समय अनुसार यहाँ सामने हाजिर होना, बाबा आ जाता है। हम मेहनत नहीं करते हैं पर मुहब्बत है। मैं कौन हूँ, मेरा कौन है! हर एक का अपना पार्ट है।

कलकत्ता वाले सदा ही फूलों से सजाते हैं। हर एक का अपना पार्ट है, सबके पार्ट को देख हम खुश होते हैं। खुश रहा और खुश करना यह हमारा फर्ज कहता है। खुश रहो, खुशी बांटो। यह मिलन की रसम भी बहुत प्यारी लगती है। ओम् शान्ति।