==============================================================================
AVYAKT MURLI
26 / 03 / 70
=============================================================================
26-03-70
ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
महारथी
–
पन के गुण और कर्त्तव्य
आज बोलना है वा बोलने से परे जाना है?
बोलने से परे अवस्था अच्छी लगती है वा बोलने की अच्छी है?
(दोनों)
ज्यादा कौन सी अच्छी लगती है?
बोलते हुए भी बोलने से परे की स्थिति हो सकती है?
दोनों का साथ हो सकता है वा जब न बोले तब परे अवस्था हो सकती है?
हो सकती है तो कब होगी?
इस स्थिति में स्थित होने के लिए कितना समय चाहिए?
अब हो सकती है?
कुछ मास वा कुछ वर्ष चाहिए?
प्रैक्टिस अभी शुरू हो सकती है कि कारोबार में नहीं हो सकती?
अगर हो सकती है तो अब से ही हो सकती है?
जो महारथी कहलाये जाते हैं उनकी प्रैक्टिस और प्रैक्टिकल साथ-साथ
होना चाहिए। महारथी और घोडेस्वार में अंतर ही यह होता है। महारथियों की निशानी होगी
प्रैक्टिस की और प्रैक्टिकल हुआ। घोड़ेसवार प्रैक्टिस करने के बाद प्रैक्टिकल में
आयेंगे। और प्यादे प्लान्स ही सोचते रहेंगे। यह अंतर होता है। बच्चों को मुख से यह
शब्द भी नहीं बोलना चाहिए कि अटेंशन है,
प्रैक्टिस करेंगे। अभी वह स्थिति भी पार हो गई। अभी तो जो संकल्प हो वह कर्म हो।
संकल्प और कर्म में अन्तर नहीं होना चाहिए। वह बचपन की बातें हैं। संकल्प करना,
प्लान्स बनाना फिर उस पर चलना,
अब वह दिन नहीं। अब पढाई कहाँ तक पहुंची है?
अब तो अन्तिम स्टेज पर है। महारथीपन के क्या गुण और कर्त्तव्य होते हैं,
इसको भी ध्यान देना है। आज वही सुनाने और अंतिम स्थिति के स्वरुप का साक्षात्कार
कराने आये हैं। सर्विसएबुल क्या कर सकते हैं,
क्या नहीं कर सकते हैं,
क्या कह सकते हैं,
क्या नहीं कह सकते हैं?
अब से धारणा करने से ही अंतिम मूर्त्त बनेंगे,
साकार सबूत देखा ना प्रैक्टिस और प्रैक्टिकल एक समान था कि अलग-अलग
था। जो सोच वही कर्म था। बच्चों का कर्त्तव्य ही है फॉलो करना। पाँव के ऊपर पाँव।
फुल स्टेप लेने का अर्थ ही है पाँव के ऊपर पाँव। जैसे के वैसे फोलो करेंगे। वह
स्टेज कब आएगी?
महारथियों के मुख से कब शब्द ही कमजोरी सिद्ध करता है। एक होता करके दिखायेंगे,
एक होता है हाँ करेंगे,
सोचेंगे। हिम्मत है,
लेकिन फेथ नहीं। फेथफुल के बोल ऐसे नहीं होते। फेथफुल का अर्थ ही है निश्चयबुद्धि।
मन,
वचन,
कर्म हर बात में निश्चयबुद्धि। सिर्फ ज्ञान और बाप का परिचय,
इतने तक निश्चयबुद्धि नहीं। लेकिन उनका संकल्प भी निश्चयबुद्धि,
वाणी में भी निश्चय,
कभी भी कोई बोल हिम्मतहिन का नहीं। उसको कहा जाता है महारथी। महारथी का अर्थ ही है
महान।
आपस में क्या-क्या
प्लान बनाया है?
ऐसा प्लैन बनाया जो इस प्लैन से नयी दुनिया का प्लैन प्रैक्टिकल में हो जाए। नयी
दुनिया का प्लैन प्रैक्टिकल में आना अर्थात् पुरानी दुनिया की कोई भी बात फिर से
प्रैक्टिकल में न आये। सब लोग कहते हैं। फिर कोई मन में कहते हैं,
कोई मुख से कहते हैं कि प्लैन्स तो बहुत बनते हैं,
अब प्रैक्टिकल में देखें। लेकिन यह संकल्प भी सदा के लिए मिटाना यह महारथी का काम
है। सभी की नज़र अभी भी मधुबन में विशेष मुख्य रत्नों पर है। तो उस नज़र में ऐसे
दिखाना है जो उनको नज़र आप लोगों की बदली हुयी नज़रों को ही देखें। तो अब वह पुरानी
नज़र नहीं,
पुरानी वृत्ति नहीं। तब अन्तिम नगाड़ा बजेगा। यह संगठन कॉमन नहीं है,
यह संगठन कमाल का है। इस संगठन से ऐसा स्वरुप बनकर निकलना है जो सभी को साक्षात्
बापदादा के ही बोल महसूस हों। बापदादा के संस्कार सभी के संस्कारों में देखने में
आयें। अपने संस्कार नहीं। सभी संस्कारों को मिटाकर कौन से संस्कार भरने हैं?
बापदादा के। तो सभी को साक्षात्कार हो कि यह साक्षात् बापदादा बनकर ही निकले हैं।
ऐसा सभी को कराना है। कोई भी पुराना संकल्प वा संस्कार सामने आये ही नहीं। पहले यह
भेंट करो,
यह बापदादा के संस्कार हैं?
अगर बापदादा के संस्कार नहीं तो उन संस्कारों को टच भी नहीं करो। बुद्धि में संकल्प
रूप से ही टच न हो। जैसे क्रिमिनल चीज़ को टच नहीं करते हो वैसे ही अगर बापदादा के
समान संस्कार नहीं है तो उन संस्कारों को भी टच नहीं करना है। जैसे नियम रखते हो ना
कि यह नहीं करना है तो फिर भल क्या भी परिस्थिति आती है लेकिन वह आप नहीं करते हो।
परिस्थिति का सामना करते हो,
क्योंकि लक्ष्य है यह करना है। वैसे ही जो अपने संस्कार बापदादा के समान नहीं है
उनको बिलकुल टच करना नहीं है। ऐसे समझो। देह और देह के सम्बन्ध यह सीढ़ी तो चढ़ चुके
हो। लेकिन अब बुद्धि में भी संस्कार इमर्ज न हों। जैसे संस्कार होंगे वैसा स्वरुप
होगा। किसके संस्कार सरल,
मधुर होते हैं तो वह संस्कार स्वरुप में आते हैं।
जब संस्कार बापदादा के समान बन जायेंगे तो बापदादा के स्वरुप सभी को देखने आएंगे।
जैसे बापदादा वैसे हूबहू वही गुण,
वही कर्त्तव्य,
वे ही बोल,
वे ही संकल्प होने चाहिए फिर सभी के मुख से निकलेगा यह तो वही लगते हैं। सूरत अलग
होगी,
सीरत वही होगी। लेकिन सूरत में सीरत आनी चाहिए। अब बापदादा बच्चों से यही उम्मीद
रखते हैं। सभी हैं ही स्नेही सफलता के सितारे। पुरुषार्थी सितारे। सर्विसएबुल
बच्चों का पुरुषार्थ सफलता सहित होता है। निमित्त पुरुषार्थ करेंगे लेकिन सफलता है
ही है। अब समझा क्या करना है?
जो सोचेंगे,
जो कहेंगे वही करेंगे। जब ऐसे शब्द सुनते हैं कि सोचेंगे,
देखेंगे,
विचार तो ऐसा है। तो हँसते हैं अब तक यह क्यों?
अब यह बातें ऐसी लगती है जैसे बुज़ुर्ग होने की बाद कोई गुड्डियों का खेल करे तो
क्या लगता है?
तो बापदादा भी मुस्कुराते हैं
–
बुज़ुर्ग होते भी कभी-कभी
बचपन का खेल करने में लग जाते हैं। गुड्डियों का खेल क्या होता है,
मालूम है?
सारी जीवन उनकी बना देते हैं,
छोटे से बड़ा करते,
फिर स्वयंवर करते...
वैसे बच्चे भी कई बातों की,
संकल्पों की रचना करते हैं फिर उसकी पालना करते हैं फिर उनको बड़ा करते हैं फिर उनसे
खुद ही तंग होते हैं। तो यह गुड्डियों का खेल नहीं हुआ?
खुद ही अपने से आश्चर्य भी खाते हैं। अब ऐसी रचना नहीं रचनी है। बापदादा व्यर्थ
रचना नहीं रचते हैं। और बच्चे भी व्यर्थ रचना रचकर फिर उनसे हटने और मिटने का
पुरुषार्थ करते हैं। इसलिए ऐसी रचना नहीं रचनी है। एक सेकंड में सुलटी रचना भी
क्विक रचते हैं और उलटी रचना भी इतनी तेज़ी से होती है। एक सेकंड में कितने संकल्प
चलते हैं। रचना रचकर उसमे समय देकर फिर उनको ख़त्म करने लिए प्रयत्न करने की
आवश्यकता ही क्या है?
अब इस रचना को ब्रेक लगाना है।
वह बर्थ कण्ट्रोल करते हैं ना। यह भी संकल्पों की उत्पत्ति होती है,
तो यह भी बर्थ(जन्म)
है। वहाँ वह जनसँख्या अति में जाती है और यहाँ फिर संकल्पों की संख्या अति होती है।
अब इसको कण्ट्रोल करना है। पुरुषार्थ की कमजोरी के कारण संकल्पों की रचना होती है,
इसलिए अब इनको नाम निशान से ख़त्म कर देना है। पुरानी बातें,
पुराने संस्कार ऐसे अनुभव हों जैसे कि नामालुम कब की पुरानी बात है। ऐसे नाम निशान
ख़त्म हो जाए। अब भाषा बदलनी है। कई ऐसे बोल अब तक निकलते हैं जो सम्पूर्णता की
स्टेज अनुसार नहीं है। इसलिए अब से संकल्प ही वही करना है,
बोल भी वही,
कर्म भी वही करनी है। इस भट्ठी के बाद सभी की सूरत में सम्पूर्णता की झलक देखने में
आये। जब आप लोग अभी से सम्पूर्णता को समीप लायेंगे तब नंबरवार और भी समीप ला
सकेंगे। अगर आप लोग ही अंत में लायेंगे तो दुसरे क्या करेंगे?
साकार रूप ने सम्पूर्णता को साकार में लाया। सम्पूर्णता साकर रूप में संपन्न देखने
में आती थी। सम्पूर्ण और साकार अलग देखने में आता था। वैसे ही आपका साकार स्वरुप
अलग देखने में नहीं आये। साकार रूप में मुख्य गुण क्या स्पष्ट देखने में आये?
जिस गुण से सम्पूर्णता समीप देखने आती थी?
वह क्या गुण था?
जिस गुण को देख सभी कहते थे कि साकार होते भी अव्यक्त अनुभव होता है। वह क्या गुण
था? (हरेक
ने सुनाया)
सभी बातों का रहस्य तो एक ही है। लेकिन इस स्थिति को कहा जाता है-उपराम।
अपने देह से भी उपराम। उपराम और दृष्टा।
जो साक्षी बनते हैं उनका ही दृष्टांत देने में आता है। तो साक्षी दृष्टा का सबुत और
द्रष्टान्त के रूप में सामने रखना है। एक तो अपनी बुद्धि से उपराम। संस्कारों से भी
उपराम। मेरे संस्कार है इस मेरेपन से भी उपराम। संस्कारों से भी उपराम। मेरे
संस्कार हैं इस मेरेपन से भी उपराम। में यह समझती हूँ,
इस मैं-पन
से भी उपराम। मैं तो यह समझती हूँ। नहीं। लेकिन समझो बापदादा की यही श्रीमत है। जब
ज्ञान की बुद्धि के बाद मैं-पन
आता है तो वह मैं-पन
भी नुकसान करता है। एक तो मैं शरीर हूँ यह छोड़ना है,
दूसरा मैं समझती हूँ,
मैं ज्ञानी आत्मा हूँ,
मैं बुद्धिमान हूँ,
यह मैं-पन
भी मिटाना है। जहाँ मैं शब्द आता है वहां बापदादा याद आये। जहाँ मेरी समझ आती है
वहां श्रीमत याद आये। एक तो मैं-पन
मिटाना है दूसरा मेरा-पन।
वह भी गिराता है। यह मैं और मेरा तुम और तेरा यह चार शब्द हैं इनको मिटाना है। इन
चार शब्दों ने ही सम्पूर्णता से दूर किया है। इन चार शब्दों को सम्पूर्ण मिटाना है।
साकार के अन्तिम बोल चेक किये,
हर बात में क्या सुना?
बाबा-बाबा।
सर्विस में सफलता न होने की करेक्शन भी कौन सी बात में थी?
समझाते थे हर बात में बाबा-बाबा
कहकर बोलो तो किसको भी तीर लग जायेगा। जब बाबा याद आता तो मैं-मेरा,तू-तेरा
ख़त्म हो जाता है। फिर क्या अवस्था हो जाएगी?
सभी बातें प्लेन हो जायेंगी फिर प्लेन याद में ठहर सकेंगे।
अभी बिंदी रूप में स्थित होने में मेहनत लगती है ना। क्यों?
सारा दिन की स्थिति प्लेन न होने कारण प्लेन याद ठहरती नहीं। कहाँ न कहाँ मैं-पन,
मेरापन,
तू,
तेरा आ जाता है। शुरू में सुनाया था न कि सोने की ज़ंजीर भी कम नहीं नही। वह ज़ंजीर
अपने तरफ खींचती हैं। हरेक अपने को चेक करे। बिलकुल उपराम-बुद्धि,
बिलकुल-प्लेन।
अगर रास्ता क्लियर होता है तो पहुँचने में कितना टाइम लगता है?
उसी रास्ते में रुकावट है तो पहुँचने में भी टाइम लग जाता। रूकावट है तब प्लेन याद
में भी रुकावट है। अब इसको मिटाना है। जब आप करेंगे आपको देखकर सभी करेंगे। नंबरवार
स्टेज पर पहुंचना है। आप लोग पहुंचेंगे तब दुसरे पहुंचेंगे। इतनी जिम्मेवारी है।
संकल्प में,
वाणी में,
कर्म में वा सम्बन्ध में वा सर्विस में अगर कोई भी हद रह जाती है तो वह बाउंड्रीज़
जो हैं वह बाँडेज में बाँध देती हैं। बेहद की स्थिति में होने से ही बेहद के रूप
में स्थित हो जायेंगे। अब जो कुछ खाद है उनको मिटाना है। खाद को मिटाने लिए यह
भट्ठी है। जब संगठन हो तो साक्षात् बापदादा के स्वरूपों का संगठन हो। अब यह
सम्पूर्णता की छाप लगानी है। सम्पूर्ण अवस्था वर्तमान समय से ही हो। यह है
महारथियों का कर्त्तव्य। अब और क्या करना है?
स्कॉलरशिप कौन सा लेते है?
स्कॉलरशिप लेने वाले का अब प्रत्यक्ष साक्षात्कार होता जायेगा। ऐसे नहीं कि बापदादा
गुप्त रहे तो हम बच्चों को भी गुप्त रहना है। नहीं। बच्चों को स्टेज पर प्रत्यक्ष
होना है। प्रत्यक्षता बच्चों की होनी है। सर्विस के स्टेज पर भी प्रत्यक्ष कौन हैं?
तो सम्पूर्णता की प्रत्यक्षता भी स्टेज पर लानी है। ऐसे नहीं समझो अंत तक गुप्त ही
रहेंगे। बापदादा का गुप्त पार्ट है,
बच्चों का नहीं। तो अब वह प्रत्यक्ष रूप में लाओ।
अब मालूम हैं सर्विस कौन सी करनी है?
सम्मेलन किया,
बस यही सर्विस है?
इनके साथ-साथ
और श्रेष्ठ सर्विस कौन सी करनी है?
अब मुख्य सर्विस है ही अपनी वृत्ति और दृष्टि को पलटाना। यह जो गायन है नज़र से
निहाल,
तो दृष्टि और वृत्ति की सर्विस यह प्रैक्टिकल में लानी है। वाचा तो एक साधन है
लेकिन कोई को सम्पूर्ण स्नेह और सम्बन्ध में लाना उसके लिए वृत्ति और दृष्टि की
सर्विस हो। यह सर्विस एक स्थान पर बैठे हुए एक सेकंड में अनेकों की कर सकते हैं। यह
प्रत्यक्ष सबुत देखेंगे। जैसे शुरू में बापदादा का साक्षात्कार पर बैठे हुआ ना।
वैसे अब दूर बैठे आपकी पावरफुल वृत्ति कार्य करेगी जैसे कोई हाथ से पकड़ कर लाया
जाता है। कैसा भी नास्तिक तमोगुणी बदला हुआ देखने में आएगा। अब वह सर्विस करनी है।
लेकिन यह सर्विस सफलता को तब पायेगी जब वृत्ति और बातो में क्लीयर होगी। जिम्मेवारी
तो हरेक अपनी समझते ही हैं। हरेक को अपनी सर्विस होते हुए भी यज्ञ की जिम्मेवारी भी
अपने सेंटर की जिम्मेवारी के समान ही समझना है। खुद ऑफर करना है। वाणी के साथ-साथ
वृत्ति और दृष्टि में इतनी ताक़त है,
जो किसके संस्कारों को बहुत कम समय में बदल सकते हो। वाणी के साथ वृत्ति और दृष्टि
नहीं मिलती तो सफलता होती ही नहीं। मुख्य यह सर्विस है। अभी से ही बेहद की सर्विस
पर बेहद की आत्माओं को आकर्षित करना है। जिस सर्विस को आप सर्विस समझते हो प्रजा
बनाने की,
वह तो आप की प्रजा के भी प्रजा खुद बनने हैं,
वह तो प्रदर्शनियों में बन रहे हैं। अभी तो आप लोगों को बेहद में अपना सुख देना है
तब सारा विश्व आपको सुखदाता मानेगा। विश्व महाराजन को विश्व का दाता कहते हैं ना।
तो अब आप भी सभी को सुख देंगे तब सभी तुमको सुखदाता मानेंगे। सुख देंगे तब तो
मानेंगे। इसलिए अब आगे बढ़ना है। एक सेकंड में अनेकों की सर्विस कर सकते हो। कोई भी
बात में फील करना फ़ैल की निशानी है। कोई भी बात में फील होता है,
कोई के संस्कारों में,
सम्पर्क में,
कोई की सर्विस में फील किया माना फ़ैल। वह फिर फ़ैल जमा होता है। जैसे आजकल रिवाज़ है,
तीन-तीन
मास में परीक्षा होती है,
उसके लिए फ़ैल वा पास के नंबर फाइनल में मिलाते हैं। जो बार-बार
फ़ैल होता है वह फाइनल में फ़ैल हो पड़ते हैं। इसलिए बिलकुल फ्लोलेस बनना है। जब
फ्लोलेस बनें तब समझो फुल पास। कोई भी फ्लो होगा तो फुल पास नहीं होंगे।
ओम शांति
=============================================================================
QUIZ QUESTIONS
============================================================================
प्रश्न 1 :- महारथियों के मुख से कौनसा शब्द कमजोरी सिद्ध करता है ? क्यों ?
प्रश्न
2 :-
बापदादा के संस्कार सभी के संस्कारों में देखने में आये उनके लिए क्या करना है
?
प्रश्न
3 :-
बापदादा ने व्यर्थ संकल्पो की रचना को गुड्डियों का खेल क्यों कहा है
?
प्रश्न
4 :-
वह कौनसा गुण ब्रह्माबाबा में था जिससे सब कहते थे साकार होते भी अव्यक्त अनुभव
होता है ?
प्रश्न
5 :-
अब मुख्य सर्विस कौनसी है
?
और यह सर्विस करने से क्या होगा
?
FILL IN THE BLANKS:-
(कर्त्तव्य,
सम्पर्क,
ख़त्म,
संस्कारों,
बोल,
तीर,
गुण,
नाम,
बाबा,
सर्विस,
पुरुषार्थ,
प्लेन,
सोने,
ज़ंजीर,
निशान)
1
जैसे बापदादा वैसे हूबहू वही
_____,
वही _____,
वे ही
_____,
वे ही संकल्प होने चाहिए फिर सभी के मुख से निकलेगा यह तो वही लगते हैं।
2 _____
की कमजोरी के कारण संकल्पों की रचना होती है,
इसलिए अब इनको
_____ _____
से ख़त्म कर देना है।
3
समझाते थे हर बात में बाबा-बाबा
कहकर बोलो तो किसको भी
_____
लग जायेगा। जब
_____
याद आता तो मैं-मेरा,तू-तेरा
_____
हो जाता है।
4
सारा दिन की स्थिति
_____
न होने कारण प्लेन याद ठहरती नहीं। कहाँ न कहाँ मैं-पन,
मेरापन,
तू,
तेरा आ जाता है। शुरू में सुनाया था न कि
______
की _____
भी कम नहीं।
5
कोई भी बात में फील होता है,
कोई के
_____
में, _____
में,
कोई की
_____
में फील किया माना फ़ैल। वह फिर फ़ैल जमा होता है।
सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-【✔】【✖】
1 :- और प्यादे प्लान्स ही सोचते रहेंगे।
2 :- फुल स्टेप लेने का अर्थ ही है पाँव के ऊपर पाँव।
3 :- अव्यक्त के अन्तिम बोल चेक किये, हर बात में क्या सुना? बाबा-बाबा।
4 :-
बेहद
का
रूप
होने
से
ही
बेहद
की
स्थिति
हो
जायेंगी।
5 :-
विश्व
महाराजन
को
विश्व
का
दाता
कहते
हैं
ना।
============================================================================
QUIZ ANSWERS
============================================================================
प्रश्न 1
:-
महारथियों के मुख से कौनसा शब्द कमजोरी सिद्ध करता है
?
क्यों ?
उत्तर
1 :-
महारथियों के लिए बापदादा कहते है की...
..❶
महारथियों के मुख से कब शब्द ही कमजोरी सिद्ध करता है।
एक होता करके दिखायेंगे,
एक होता है हाँ करेंगे,
सोचेंगे।
..❷
हिम्मत है,
लेकिन फेथ नहीं।
फेथफुल के बोल ऐसे नहीं होते। फेथफुल का अर्थ ही है निश्चयबुद्धि। मन,
वचन,
कर्म हर बात में निश्चयबुद्धि।
..❸
सिर्फ ज्ञान और बाप का परिचय,
इतने तक निश्चयबुद्धि नहीं। लेकिन उनका संकल्प भी निश्चयबुद्धि,
वाणी में भी निश्चय,
कभी भी कोई बोल हिम्मतहिन का नहीं।
उसको कहा जाता है महारथी। महारथी का अर्थ ही है महान।
प्रश्न
2 :-
बापदादा के संस्कार सभी के संस्कारों में देखने में आये उनके लिए क्या करना है
?
उत्तर
2 :-
बापदादा के संस्कार सभी के संस्कारों में देखने में आये उनके लिए...
..❶
पहले यह भेंट करो,
यह बापदादा के संस्कार हैं?
अगर बापदादा के संस्कार नहीं तो उन संस्कारों को टच भी नहीं करो। बुद्धि में संकल्प
रूप से ही टच न हो।
..❷
जैसे क्रिमिनल चीज़ को टच नहीं करते हो वैसे ही अगर बापदादा के समान संस्कार नहीं है
तो उन संस्कारों को भी टच नहीं करना है।
..❸
जैसे नियम रखते हो ना कि यह नहीं करना है
तो फिर भल क्या भी परिस्थिति आती है लेकिन वह आप नहीं करते हो। परिस्थिति का सामना
करते हो,
क्योंकि लक्ष्य है यह करना है। वैसे ही जो अपने संस्कार बापदादा के समान नहीं है
उनको बिलकुल टच करना नहीं है।
..❹
ऐसे समझो। देह और देह के सम्बन्ध यह सीढ़ी तो चढ़ चुके हो। लेकिन अब बुद्धि में भी
संस्कार इमर्ज न हों। जैसे संस्कार होंगे वैसा स्वरुप होगा।
किसके संस्कार सरल,
मधुर होते हैं तो वह संस्कार स्वरुप में आते हैं।
प्रश्न
3 :-
बापदादा ने व्यर्थ संकल्पो की रचना को गुड्डियों का खेल क्यों कहा है
?
उत्तर
3 :-
बापदादा ने व्यर्थ संकल्पो की रचना को गुड्डियों का खेल कहा है क्योंकि...
..❶
गुड्डियों का खेल क्या होता है,
मालूम है?
सारी जीवन उनकी बना देते हैं,
छोटे से बड़ा करते,
फिर स्वयंवर करते...
वैसे बच्चे भी कई बातों की,
संकल्पों की रचना करते हैं फिर उसकी पालना करते हैं फिर उनको बड़ा करते हैं फिर उनसे
खुद ही तंग होते हैं।
..❷
तो यह गुड्डियों का खेल नहीं हुआ?
खुद ही अपने से आश्चर्य भी खाते हैं। अब ऐसी रचना नहीं रचनी है।
..❸
बापदादा व्यर्थ रचना नहीं रचते हैं।
और बच्चे भी व्यर्थ रचना रचकर फिर उनसे हटने और मिटने का पुरुषार्थ करते हैं। इसलिए
ऐसी रचना नहीं रचनी है।
..❹
एक सेकंड में सुलटी रचना भी क्विक रचते हैं और उलटी रचना भी इतनी तेज़ी से होती है।
एक सेकंड में कितने संकल्प चलते हैं।
..❺
रचना रचकर उसमे समय देकर फिर उनको ख़त्म करने लिए प्रयत्न करने की आवश्यकता ही क्या
है?
अब इस रचना को ब्रेक लगाना है।
प्रश्न
4 :-
वह कौनसा गुण ब्रह्माबाबा में था जिससे सब कहते थे साकार होते भी अव्यक्त अनुभव
होता है ?
उत्तर
4 :-
ब्रह्माबाबा में जो गुण था इस स्थिति को कहा जाता है
-
उपराम। अपने देह से भी उपराम। उपराम और दृष्टा।
..❶
जो साक्षी बनते हैं उनका ही दृष्टांत देने में आता है।
तो साक्षी दृष्टा का सबुत और द्रष्टान्त के रूप में सामने रखना है।
..❷
एक तो अपनी बुद्धि से उपराम। संस्कारों से भी उपराम।
मेरे संस्कार है इस मेरेपन से भी उपराम। संस्कारों से भी उपराम। में यह समझती हूँ,
इस मैं-पन
से भी उपराम।
..❸
मैं तो यह समझती हूँ। नहीं। लेकिन समझो बापदादा की यही श्रीमत है। जब ज्ञान की
बुद्धि के बाद मैं-पन
आता है तो वह मैं-पन
भी नुकसान करता है।
..❹
एक तो मैं शरीर हूँ यह छोड़ना है,
दूसरा मैं समझती हूँ,
मैं ज्ञानी आत्मा हूँ,
मैं बुद्धिमान हूँ,
यह मैं-पन
भी मिटाना है।
..❺
जहाँ मैं शब्द आता है वहां बापदादा याद आये।
जहाँ मेरी समझ आती है वहां श्रीमत याद आये।
..❻
एक तो मैं-पन
मिटाना है दूसरा मेरा-पन।
वह भी गिराता है। यह मैं और मेरा तुम और तेरा यह चार शब्द हैं इनको मिटाना है।
इन चार शब्दों ने ही सम्पूर्णता से दूर किया है। इन चार शब्दों को सम्पूर्ण मिटाना
है।
प्रश्न
5 :-
अब मुख्य सर्विस कौन सी है
?
और यह सर्विस करने से क्या होगा
?
उत्तर
5 :-
अब मुख्य सर्विस है ही अपनी वृत्ति और दृष्टि को पलटाना।
..❶
यह जो गायन है नज़र से निहाल,
तो दृष्टि और वृत्ति की सर्विस यह प्रैक्टिकल में लानी है।
..❷
वाचा तो एक साधन है लेकिन कोई को सम्पूर्ण स्नेह और सम्बन्ध में लाना उसके लिए
वृत्ति और दृष्टि की सर्विस हो।
..❸
यह सर्विस एक स्थान पर बैठे हुए एक सेकंड में अनेकों की कर सकते हैं।
यह प्रत्यक्ष सबुत देखेंगे।
..❹
जैसे शुरू में बापदादा का साक्षात्कार पर बैठे हुआ ना। वैसे अब दूर बैठे आपकी
पावरफुल वृत्ति कार्य करेगी जैसे कोई हाथ से पकड़ कर लाया जाता है।
..❺
कैसा भी नास्तिक तमोगुणी बदला हुआ देखने में आएगा।
अब वह सर्विस करनी है। लेकिन यह सर्विस सफलता को तब पायेगी जब वृत्ति और बातो में
क्लीयर होगी।
FILL IN THE BLANKS:-
(कर्त्तव्य,
सम्पर्क,
ख़त्म,
संस्कारों,
बोल,
तीर,
गुण,
नाम,
बाबा,
सर्विस,
पुरुषार्थ,
प्लेन,
सोने,
ज़ंजीर,
निशान)
1
जैसे बापदादा वैसे हूबहू वही
_____,
वही _____,
वे ही
_____,
वे ही संकल्प होने चाहिए फिर सभी के मुख से निकलेगा यह तो वही लगते हैं।
गुण /
कर्त्तव्य /
बोल
2 _____
की कमजोरी के कारण संकल्पों की रचना होती है,
इसलिए अब इनको
_____ _____
से ख़त्म कर देना है।
पुरुषार्थ /
नाम /
निशान
3
समझाते थे हर बात में बाबा-बाबा
कहकर बोलो तो किसको भी
_____
लग जायेगा। जब
_____
याद आता तो मैं-मेरा,तू-तेरा
_____
हो जाता है।
तीर /
बाबा /
ख़त्म
4
सारा दिन की स्थिति
_____
न होने कारण प्लेन याद ठहरती नहीं। कहाँ न कहाँ मैं-पन,
मेरापन,
तू,
तेरा आ जाता है। शुरू में सुनाया था न कि
______
की _____
भी कम नहीं।
प्लेन /
सोने /
ज़ंजीर
5
कोई भी बात में फील होता है,
कोई के
_____
में, _____
में,
कोई की
_____
में फील किया माना फ़ैल। वह फिर फ़ैल जमा होता है।
संस्कारों /
सम्पर्क /
सर्विस
सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-【✔】【✖】
1 :-
और प्यादे प्लान्स ही सोचते रहेंगे।
【✔】
2 :-
फुल स्टेप लेने का अर्थ ही है पाँव के ऊपर पाँव।
【✔】
3 :-
अव्यक्त के अन्तिम बोल चेक किये,
हर बात में क्या सुना?
बाबा-बाबा।
【✖】
साकार
के अन्तिम बोल चेक किये,
हर बात में क्या सुना?
बाबा-बाबा।
4 :-
बेहद का रूप होने से ही बेहद की स्थिति हो जायेंगी।
【✖】
बेहद की स्थिति
में होने से ही बेहद के रूप
में स्थित हो जायेंगे।
5 :-
विश्व महाराजन को विश्व का दाता कहते हैं ना।
【✔】