==============================================================================

AVYAKT MURLI

12 / 07 / 72

=============================================================================

 

 

12-07-72   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

मरजीवापन की स्मृति से गृहस्थी वा प्रवृत्ति की विस्मृति

(अधरकुमारों की भट्ठी में)

 

अपने आपको जहॉं चाहो, जब चाहो ऐसे परिवर्तन कर सकते हो? भट्ठी में अपने आपको परिवर्तन करने के लिए आते हो ना। तो परिवर्तन करने की शक्ति अनुभव करते हो? कैसा भी वायुमण्डल हो, कोई भी परिस्थिति हो लेकिन अपनी स्व-स्थिति के आधार से वायुमण्डल को परिवर्तन में ला सकते हो? वायुमण्डल के प्रभाव में आने वाली आत्मायें हो वा वायुमण्डल को सतोप्रधान बनाने वाली आत्मायें हो? अपने को क्या समझते हो? इतना अनुभव करते हो कि अभी कोई भी वायुमण्डल हमें अपनी तरफ आकर्षित नहीं कर सकता? जो समझते हैं कि भट्ठी में आने के बाद इतनी हिम्मत वा शक्ति अपने में जमा की है जो कहीं भी, किसी स्थान पर जाते, जमा की हुई शक्तियों के आधार से वायुमण्डल वा परिस्थिति मुझ मास्टर सर्वशक्तिवान को हिला नहीं सकती है, अपनी स्थिति को एकरस वा अटल, अचल बना सकते हैं, वह हाथ उठावें। यह बातें तो स्पष्ट हैं ही कि दिन- प्रतिदिन परिस्थितियां अति तमोप्रधान बननी हैं। परिस्थितियां वा वायुमण्डल अभी सतोप्रधान नहीं बनने वाला है। अति तमोप्रधान के बाद ही फिर सतोप्रधान बनने वाला है। तो दिन-प्रतिदिन वायुमण्डल बिगड़ने वाला है, ना कि सुधरने वाला। तो जैसे कमल पुष्प कीचड़ में रहते हुए न्यारा रहता है, वैसे अति तमोप्रधान, तमोगुणी वायुमण्डल में होते हुए भी अपनी स्थिति सदा सतोप्रधान रहे - इतनी हिम्मत समझ कर हाथ उठाया ना? फिर ऐसे तो नहीं कहेंगे कि यह बात ऐसे हुई, इसलिए अवस्था नीचे-ऊपर हुई? चाहे प्रकृति द्वारा, चाहे लौकिक सम्बन्ध द्वारा, चाहे दैवी परिवार द्वारा कोई भी परीक्षा आवे वा कोई भी परिस्थिति सामने आवे उसमें भी अपने आपको अचल, अटल बना सकेंगे ना। इतनी हिम्मत समझते हो ना? परीक्षाएं बहुत आनी हैं। पेपर तो होने ही हैं। जैसे-जैसे अन्तिम फाइनल रिजल्ट का समय समीप आ रहा है वैसे समय-प्रति-समय प्रैक्टिकल पेपर स्वत: ही होते रहते हैं। पेपर प्रोग्राम से नहीं लिया जाता। आटोमेटिकली ड्रामा अनुसार समय प्रति समय हरेक का प्रैक्टिकल पेपर होता रहता है। तो पेपर में पास होने की हिम्मत अपने में समझते हो? घबराने वाले तो नहीं हो ना? अंगद के माफिक ज़रा भी अपने बुद्धियोग को हिलाने वाले नहीं हो? यह भट्ठी अधर-कुमारों की है ना। अपने को अधर कुमार तो समझते हो ना? संकल्प वा सम्बन्ध में अधर-कुमार की स्मृति नहीं रहती है? जैसे देखो, पहले बहन-भाई की स्मृति में स्थित किया गया, उसमें भी देखा गया कि बहन-भाई की स्मृति में भी कुछ देह-अभिमान में आ जाते हैं, इसलिए उससे भी ऊंची स्टेज भाई-भाई की बताई। ऐसे ही अपने को अधर कुमार समझ कर चलते हो गोया प्रवृति मार्ग के बन्धन में बंधी हुई आत्मा समझ कर चलते हो। इसलिए अब इस स्मृति से भी परे। अधर कुमार नहीं, लेकिन ब्रह्मा कुमार हूँ। अब मरजीवा बन गये तो मरजीवा जीवन में अधर-कुमार का सम्बन्ध है क्या? मरजीवा जीवन में प्रवृति वा गृहस्थी है क्या? मरजीवा जीवन में बाप-दादा ने किसको गृहस्थी बना कर नहीं दी है। एक बाप और सभी बच्चे हैं ना, इसमें गृहस्थीपन कहां से आया? तो अपने को ब्रह्मा-कुमार समझ कर चलना है। अगर अधर-कुमार की स्मृति भी रहती है तो जैसी स्मृति वैसी ही स्थिति भी रहती है। इस कारण अभी इस स्मृति को भी खत्म करो कि हम अधर-कुमार हैं। नहीं। ब्रह्मा-कुमार हूँ। जो बाप-दादा ने ड्यूटी दी है उस ड्यूटी पर श्रीमत के आधार पर जा रहा हूँ। मेरी प्रवृति है या मेरी युगल है - यह स्मृति भी रॉंग है। युगल को युगल की वृति से देखना वा घर को अपनी प्रवृति की स्मृति से देखना, इसको मरजीवा कहेंगे? जैसे देखो, हर चीज़ को सम्भालने के लिए ट्रस्टी मुकर्र किये जाते हैं। यह भी ऐसे समझकर चलो -- यह जो हद की रचना बाप-दादा ने ट्रस्टी बनाकर सम्भालने के लिए दी है, वह मेरी रचना नहीं लेकिन बाप-दादा द्वारा ट्रस्टी बन इसको सम्भालने के लिए निमित्त बना हुआ हूँ। ट्रस्टीपन में मेरापन नहीं होता। ट्रस्टी निमित्त होता है। प्रवृति-मार्ग की वृति भी बिल्कुल ना हो। यह ईश्वरीय आत्मायें हैं, ना कि मेरे बच्चे हैं। भले छोटे-छोटे बच्चे हों, तो भी क्या बाप-दादा ने छोटे बच्चों की पालना नहीं की क्या? जैसे बाप-दादा ने छोटे बच्चों की पालना करते हुए ईश्वरीय कार्य के निमित्त बना दिया, वैसे ही छोटे-छोटे बच्चे वा बड़े, जिन्हों के प्रति भी बाप द्वारा निमित बने हो, उन आत्माओं प्रति भी यह वृति रहनी चाहिए कि इन आत्माओं को ईश्वरीय सेवा के योग्य बना कर इसमें लगा देना है। घर में रहते ऐसी स्मृति रहती है? जैसे ईश्वरीय परिवार की अनेक आत्माओं के सम्बन्ध वा सम्पर्क में रहते हो वैसे ही जिन आत्माओं की ड्यूटी मिली है, उन्हों के साथ भी ऐसे ही सम्पर्क में आते वा फर्क रहता है? जो आप लोगों के सम्पर्क में रहने वाली आत्मायें हैं, उन्हों से रिजल्ट मंगाई जायेगी। जैसे सेवा-केन्द्र की निमित्त बनी हुई बहनों वा भाईयों से उस ईश्वरीय दृष्टि, वृति से सम्पर्क में आते हो, वैसे ही उन आत्माओं से सम्पर्क में आते हो वा पिछले जन्म का अधिकार समझ चलते हो? समय-प्रति-समय स्थिति और वृति ऊंची होती जा रही है ना। और जब तक समय के प्रमाण अपनी स्थिति और वृति को ऊंचा नहीं बनाया है वा परिवर्तन में नहीं लाया है तब तक ऊंच पद कैसे पा सकेंगे? जैसे साकार में बाप को देखा - लौकिक सम्बन्ध की वृति, दृष्टि वा स्मृति स्वप्न में थी? तो फालो फादर करना है ना। क्या वही लौकिक सम्बन्धी साथ नहीं रहते थे क्या? तो आप लोगों को भी साथ रहते हुए इस स्मृति और वृति में चलने की हिम्मत रखनी है। इस भट्ठी में क्या परिवर्तन करके जायेंगे? अधरकुमार का नाम-निशान समाप्त। जैसे भट्ठी में पड़ने से हर वस्तु का रूप परिवर्तन हो जाता है, वैसे इस भट्ठी में ‘‘मैं प्रवृति मार्ग वाला हूँ, मैं अधर कुमार हूँ’’ - इस स्मृति को भी समाप्त करके यह समझना कि मैं ब्रह्माकुमार हूँ और इन निमित्त बनी हुई आत्माओं की सेवा करने के लिए ट्रस्टी हूँ। इस स्मृति को मजबूत करके जाना। यही है भट्ठी का परिवर्तन। इतना परिवर्तन करने की शक्ति अपने में भरी है वा वहां जाकर फिर प्रवृति वाले बन जायेंगे? अभी प्रवृति नहीं समझना लेकिन इस गृहस्थीपन की वृति से पर वृति अर्थात् दूर। गृहस्थी की वृति से परे - ऐसी अवस्था बना कर जाने से ही अज्ञानी आत्मायें भी आपकी चलन से, आपके बोल से, नैनों से जो न्यारी और प्यारी स्थिति गाई जाती है, उसका अनुभव कर सकेंगे। अब तक दुनिया के बीच रहते हुए दुनिया वालों को न्यारी और प्यारी स्थिति का अनुभव नहीं करा पाते हो क्योंकि अपनी वृति इतनी न्यारी नहीं बनी है। न्यारी न बनने के कारण इतने प्यारे भी नहीं बने हो। प्यारी चीज़ सभी को स्वत: ही आकर्षण करती है। तो दुनिया के बीच रहते हुए ऐसी न्यारी स्थिति बनायेंगे तो प्यारी स्थिति भी स्वत: बन जायेगी। ऐसी प्यारी स्थिति अनेक आत्माओं को आपकी तरफ स्वत: ही आकर्षण करेगी। अभी भी मेहनत करनी पड़ती है ना। क्योंकि अभी तक जो न्यारी और प्यारी स्थिति होनी चाहिए वह प्रत्यक्ष रूप में नहीं है। अपने आपको प्रत्यक्ष करना पड़ता है। अगर प्रत्यक्ष रूप में हों तो प्रत्यक्ष करने की मेहनत ना करनी पड़े। तो अब उस श्रेष्ठ स्थिति को कर्म में प्रत्यक्ष रूप में लाओ। अब तक गुप्त है। दुनिया के बीच अलौकिक दिखाई देते हो? कोई भी दूर से आप लोगों को देखते अलौकिकता का अनुभव करते हैं कि साधारण समझते हैं? प्रैक्टिकल जीवन का इतना प्रभाव है जो कोई भी देख कर समझे कि यह कोई विशेष आत्मायें हैं? जैसे स्थूल ड्रेस को देख कर समझ लेते हैं कि यह हम लोगों से कोई न्यारे हैं। वैसे ही यह सूरत वा अव्यक्त मूर्त न्यारापन दिखावे, तब प्रभाव निकलेगा। चलते-फिरते ऐसी श्रेष्ठ स्थिति हो, ऐसी श्रेष्ठ स्मृति और वृति हो जो चारों ओर की वृतियों को अपनी तरफ आकर्षण करे। जैसे कोई आकर्षण की चीज़ आस-पास वालों को अपनी तरफ आकर्षित करती है ना। सभी का अटेन्शन जाता है। वैसे यह रूहानियत वा अलौकिकता आस-पास वालों की वृतियों को अपनी तरफ आकर्षित नहीं कर सकती है? क्या यह स्टेज अन्त में आनी है? साधारण रीति भी कोई रायल फैमली के बच्चे होते हैं तो उनकी एक्टिविटी से, उन्हों के बोल से ना परिचित होते हुए भी जान लेते हैं कि यह कोई रायल फैमली की आत्मायें हैं। तो क्या अलौकिक वृति में स्थित रहने वाली श्रेष्ठ आत्माओं का दूर से इतना प्रभाव नहीं पड़ सकता है? क्या मुश्किल है? जो सहज बात होती है वह करने में देरी लगती है क्या? ऐसे समझें कि भट्ठी में इतने सभी अलौकिक शक्तिशाली, मास्टर ज्ञान-सूर्य जब चारों ओर जायेंगे तो जैसे सूर्य छिप नहीं सकता, वैसे मास्टर ज्ञान-सूर्य का प्रकाश वा प्रभाव चारों ओर फैलने से यहां तक भी प्रैक्टिकल सबूत आयेगा? सबूत कौन-सा? कम से कम जो आप द्वारा प्रभावित हुई आत्मायें हों, उन्हों का समाचार तो आवे। स्वयं ना आवें, समाचार तक तो आवे। हरेक एक-एक तरफ जाकर प्रभाव डाले तो कितने समाचार-पत्र आयेंगे? ऐसा सबूत देंगे? वा जैसे भट्ठी करके जाते हैं, कुछ समय प्रभावशाली रहते फिर प्रभाव में आ जाते हैं? बाप तो सदैव उम्मीदवार ही रहते हैं। अब रिजल्ट देखेंगे कि कहां तक अविनाशी रिजल्ट चलती है और कहां तक अटल-अचल रहते हैं?

 

वरदान-भूमि में वरदानों की प्राप्ति जो की है, उन प्राप्त हुए वरदानों से अब वरदातामूर्त बन कर निकलना है। कोई भी आत्मा सम्बन्ध वा सम्पर्क में आवे तो महादानी और महावरदानी, इसी स्मृति में रहते हुए हर आत्मा को कुछ ना कुछ प्राप्ति Nजरूर करानी है। कोई भी आत्मा खाली हाथ नहीं जानी चाहिए। आप तो महादानी हो ना। उस दान को सम्भालते हैं वा नहीं, वह उनकी तकदीर हुई। आप तो महादानी बन अपना कर्त्तव्य करते रहो उसी कल्याणकारी वृति और दृष्टि से। विश्व-कल्याणकारी हूँ, महादानी हूँ, वरदानी हूँ - इसी पावरफुल वृति में रहने से आत्माओं को परिवर्तन कर सकेंगे। अभी अपनी वृति को पावरफुल बनाओ। अच्छा।

 

 

 

=============================================================================

QUIZ QUESTIONS

============================================================================

 

 प्रश्न 1 :- तमोप्रधान परिस्थितियों के संदर्भ में बाबा मुरली में क्या समझानी दे रहे है ?

 प्रश्न 2 :- बाबा अधर कुमारों को कौन सी स्मृति में रहने की समझानी दे रहे हैं ?

 प्रश्न 3 :- "ट्रस्टीपन" की क्या रूपरेखा बाबा ने मुरली में आलेखी है ?

 प्रश्न 4 :- प्रत्यक्षता की श्रेष्ठ स्थिति को बाबा ने मुरली में कैसे उजागर किया है?

 प्रश्न 5 :- "वरदान-भूमि" के वरदानों की प्राप्ति के सन्दर्भ में महादानी की क्या विशेषता बाबा ने मुरली में समझाई हैं ?

 

      FILL IN THE BLANKS:-    

( पर, प्रवृति, युगल, बापदादा, राँग, श्रीमत, ब्रह्माकुमार, गृहस्थीपन, भाई-भाई, ड्यूटी, प्रवृति, दूर, अधर कुमार, बहन-भाई )

 

 1   ______  की स्मृति में भी कुछ देह-अभिमान में आ जाते है, इसलिए उससे भी ऊंची स्टेज ______ की बताई।

 2  जो  _______ ने _____ दी हैं उस ड्यूटी पर _______ के आधार पर जा रहा हूँ।

 3  मेरी ______ है या मेरी _____ हैं - यह स्मृति भी ______ हैं।

 4  मैं _______ मार्ग वाला हूँ, मैं ______ हूँ - इस स्मृति को भी समाप्त करके यह समझना कि मैं _______ हूँ।

 5  अभी प्रवृति नहीं समझना लेकिन इस ________ की वृत्ति से ______ वृति अर्थात _______

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-

 

 1  :- वायुमण्डल के प्रभाव में आने वाली आत्मायें हो वा वायुमण्डल को तमोप्रधान बनाने वाली आत्मायें हो ?

 2  :- समय -प्रति-समय स्थिति और वृति नीचे होती जा रही है ना।

 3  :- न्यारी न बनने के कारण इतने प्यारे भी नहीं बने हो।

 4  :- जमा की हुई शक्तियों के आधार से वायुमण्डल वा परिस्थिति मुझ मास्टर सर्वशक्तिमान को हिला नहीं सकती हैं।

 5   :- जैसे साकार में बाप को देखा -  लौकिक सम्बन्ध की वृत्ति, दृष्टि वा स्मृति स्वप्न में थी ? तो फॉलो फादर करना है ना।

 

 

============================================================================

QUIZ ANSWERS

============================================================================

 

 प्रश्न 1 :- तमोप्रधान परिस्थितियों के संदर्भ में बाबा मुरली में क्या समझानी दे रहे है ?

उत्तर 1 :- तमोप्रधान परिस्थितियों के संदर्भ में बाबा मुरली में समझानी दे रहे है कि :

          दिन - प्रतिदिन परिस्थितियां अति तमोप्रधान बननी हैं।

          परिस्थितयां व वायुमंडल अभी सतोप्रधान नहीं बनने वाला है।

          अति तमोप्रधान के बाद ही फिर सतोप्रधान बनने वाला हैं।

          दिन - प्रतिदिन वायुमण्डल बिगड़ने वाला है, न कि सुधरने वाला।

          जैसे कमल पुष्प कीचड़ में रहते हुए न्यारा रहता है, वैसे अति तमोप्रधान, तमोगुणी वायुमण्डल में होते हुए भी अपनी स्थिति सदा सतोप्रधान रहे।

          परीक्षाएं बहुत आनी है। पेपर तो होने ही हैं।

          जैसे जैसे अन्तिम फाइनल रिजल्ट का समय समीप आ रहा है वैसे समय-प्रति-समय प्रेक्टिकल पेपर स्वतः ही होते रहते हैं।

          पेपर प्रोग्राम से नहीं लिया जाता। आटोमेटिकली ड्रामा अनुसार समय प्रति समय हरेक का प्रैक्टिकल पेपर होता रहता हैं।

       

 प्रश्न 2 :- बाबा अधर कुमारों को कौन सी स्मृति में रहने की समझानी दे रहे हैं ?

उत्तर 2 :-बाबा अधर कुमारों को ब्रह्मा-कुमार की स्थिति में रहने की समझानी दे रहे हैं। बाबा समझ रहे हैं कि :

         अगर अपने को अधर कुमार समझ कर चलते हो तो प्रवृति मार्ग के बन्धन में बंधी हुई आत्मा समझ कर चलते हो।

          इसीलिए इस स्मृति से भी परे। अधर कुमार नहीं, लेकिन ब्रह्मा कुमार हूँ।

          अब मरजीवा बन गये तो मरजीवा जीवन मे अधर - कुमार का क्या सम्बन्ध ? प्रवृति वा गृहस्थी क्या हैं ?

          दिन - प्रतिदिन वायुमण्डल बिगड़ने वाला है, न कि सुधरने वाला।

          मरजीवा जीवन मे बाप-दादा ने किसको गृहस्थी बना कर नहीं दी हैं।

          एक बाप और सभी बच्चें है, इसमें गृहस्थीपन नहीं आता।

          अगर अधर-कुमार की स्मृति भी रहती है तो जैसी स्मृति वैसी ही स्थिति भी रहती हैं।

         

 प्रश्न 3 :- "ट्रस्टीपन" की क्या रूपरेखा बाबा ने मुरली में आलेखी है ?

उत्तर 3 :- "ट्रस्टीपन" की रूपरेखा के बारे में बाबा ने मुरली में आलेखा है की :  

          यह जो हद की रचना बाप-दादा द्वारा ट्रस्टी बनाकर सम्भालने के लिए दी है, वह मेरी रचना नही लेकिन बापदादा द्वारा ट्रस्टी बन इसको सम्भालने के लिए निमित बना हुआ हूँ।

           ट्रस्टीपन में मेरापन नहीं होता हैं। ट्रस्टी निम्मित होता हैं।

          प्रवृति-मार्ग की वृत्ति भी बिल्कुल ना हो।        

          यह ईश्वरीय आत्मायें है, ना कि मेरे बच्चे हैं।

          जैसे बाप-दादा ने छोटे बच्चों की पालना करते हुए ईश्वरीय कार्य के निम्मित बना दिया, वैसे ही छोटे-छोटे बच्चे व बड़े, जिन्हों के प्रति भी बाप द्वारा निमित बने हो, उन आत्माओ प्रति भी यह वृति रहनी चाहिए कि इन आत्माओं को ईश्वरीय सेवा के योग्य बना कर इसमें लगा देना हैं।

         

 प्रश्न 4 :- प्रत्यक्षता की श्रेष्ठ स्थिति को बाबा ने मुरली में कैसे उजागर किया है?

उत्तर 4 :- प्रत्यक्षता की श्रेष्ठ स्थिति के बारे में बाबा ने मुरली में उजागर किया है कि :

          अपने आप को प्रत्यक्ष करना पड़ता है।

          अभी तक जो न्यारी और प्यारी स्थिति होनी चाहिये वह प्रत्यक्ष रूप में हैं नही।

          अगर प्रत्यक्ष रूप में हो तो प्रत्यक्ष करने की मेहनत ना करनी पड़े। अब उस श्रेष्ठ स्थिति को कर्म में प्रत्यक्ष रूप में लाओ।

         दुनिया के बीच अलौकिक दिखाई देते हैं।

          कोई भी दूर से आप लोगो को देखते अलौकिकता का अनुभव करें।

          प्रेक्टिकल जीवन का इतना प्रभाव हो जो कोई भी देख कर समझे कि यह कोई विशेष आत्माये है।

          यह सूरत व अव्यक्त मूर्त न्यारापन दिखावे, तब प्रभाव निकलेगा। चलते-फिरते ऐसी श्रेष्ठ स्थिति हो, ऐसी श्रेष्ठ  स्मृति और वृति हो जो चारो ओर की वृतियों को अपनी तरफ आकर्षण करे।

 

 प्रश्न 5 :- "वरदान-भूमि" के वरदानों की प्राप्ति के सन्दर्भ में महादानी की क्या विशेषता बाबा ने मुरली में समझाई हैं ?

उत्तर 5 :- "वरदान-भूमि" के वरदानों की प्राप्ति के सन्दर्भ में महादानी की विशेषता बाबा ने मुरली में समझाई हैं कि :

          वरदान-भूमि में वरदानो की प्राप्ति जो की है, उन प्राप्त हुए वरदानों से अब वरदातामूर्त बन कर निकलना हैं।

          कोई भी आत्मा सम्बन्ध वा सम्पर्क में आवे तो महादानी और महावरदानी, इसी स्मृति में रहते हुए हर आत्मा को कुछ ना कुछ प्राप्ति जरूर करानी हैं।

          कोई भी आत्मा खाली हाथ नहीं जानी चाहिए।

          उस दान को सम्भालते है वा नहीं, वह उनकी तकदीर हुई।

          आप तो महादानी बन अपना कर्तव्य करते रहो उसी कल्याणकारी वृति औऱ दृष्टि से।

          विश्व-कल्याणकारी हूँ, महादानी हूँ, वरदानी हूँ - इसी पावरफुल वृति में रहने से आत्माओं को परिवर्तन कर सकेंगे।

         

       FILL IN THE BLANKS:-    

( पर, प्रवृति, युगल, बापदादा, राँग, श्रीमत, ब्रह्माकुमार, गृहस्थीपन, भाई-भाई, ड्यूटी, प्रवृति, दूर, अधर कुमार, बहन-भाई )

 

 1   ______  की स्मृति में भी कुछ देह-अभिमान में आ जाते है, इसलिए उससे भी ऊंची स्टेज _______ की बताई।

 बहन-भाई /  भाई-भाई

 

  जो  ______ ने ______ दी हैं  उस ड्यूटी पर ______ के आधार पर जा रहा हूँ।

 बाप-दादा /  ड्यूटी /  श्रीमत

 

 3  मेरी ______ है या मेरी _____ हैं - यह स्मृति भी ______ हैं।

 प्रवृति /  युगल /  राँग

 

 4  मैं ______ मार्ग वाला हूँ, मैं ______ हूँ - इस स्मृति को भी समाप्त करके यह समझना कि मैं ______ हूँ।

 प्रवृति  / अधर कुमार  / ब्रह्माकुमार

 

 5  अभी प्रवृति नहीं समझना लेकिन इस ______ की वृत्ति से _____ वृति अर्थात ______

 गृहस्थीपन  / पर  / दूर

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-

 

 1  :- वायुमण्डल के प्रभाव में आने वाली आत्मायें हो वा वायुमण्डल को तमोप्रधान बनाने वाली आत्मायें हो ?

वायुमण्डल के प्रभाव में आने वाली आत्मायें हो वा वायुमण्डल को सतोप्रधान बनाने वाली आत्मायें हो ?

 

 2  :- समय-प्रति-समय स्थिति और वृति नीचे होती जा रही है ना।

समय-प्रति-समय स्थिति और वृति ऊंची होती जा रही है ना

 

 3  :- न्यारी बनने के कारण इतने प्यारे भी नहीं बने हो।

 

 4  :- जमा की हुई शक्तियों के आधार से वायुमण्डल वा परिस्थिति मुझ मास्टर सर्वशक्तिमान को हिला नहीं सकती हैं।

 

 5   :- जैसे साकार में बाप को देखा -  लौकिक सम्बन्ध की वृत्ति, दृष्टि वा स्मृति स्वप्न में थी ? तो फॉलो फादर करना है ना।