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AVYAKT MURLI

16 / 07 / 72

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16-07-72  ओम शान्ति  अव्यक्त बापदादा  मधुबन

 

स्वच्छ और आत्मिक बल वाली आत्मा ही आकर्षण मूर्त्त है

 

अपने को इस श्रेष्ठ ड्रामा के अन्दर हीरो एक्टर और मुख्य एक्टर समझते हो? मुख्य एक्टर्स के तरफ सभी का अटेन्शन होता है। तो हर सेकेण्ड की एक्ट अपने को मुख्य एक्टर समझते हुये बजाते हो? जो नामीग्रामी एक्टर्स होते हैं उन्हों में मुख्य 3 बातें होती हैं। वह कौनसी हैं? एक तो वह एक्टिव होगा, दूसरा एक्युरेट होगा और अट्रेक्टिव होगा। यह तीनों बातें नामी-ग्रामी एक्टर्स में अवश्य होती हैं। तो ऐसे अपने को नामीग्रामी वा मुख्य एक्टर समझते हो? अट्रेक्ट किस बात पर करेंगे? हर कर्म में, हर चलन में रूहानियत की अट्रेक्शन हो। जैसे कोई शरीर में सुन्दर होता है तो वह भी अट्रैक्शन करते हैं ना अपने तरफ। ऐसे ही जो आत्मा स्वच्छ है, आत्मिक-बल वाली है, वह भी अपने तरफ आकर्षित करते हैं। जैसे आत्मा-ज्ञानी महात्माएं आदि भी द्वापर आदि में अपने सतोप्रधान स्थिति वाले थे तो उन्हों में भी रूहानी आकर्षण तो था ना, जो अपने तरफ आकर्षित करके औरों को भी इस दुनिया से अल्पकाल के लिये वैराग्य तो दिला देते थे ना। जब उलटे ज्ञान वालों में भी इतनी अट्रैक्शन थी, तो जो यथार्थ और श्रेष्ठ ज्ञान-स्वरूप हैं उन्हों में भी रूहानी आकर्षण वा अट्रैक्शन रहेगी। शारीरिक ब्यूटी नजदीक वा सामने आने से आकर्षण करेगी। रूहानी आकर्षण दूर बैठे भी किसी आत्मा को अपने तरफ आकर्षित करती। इतनी अट्रैक्शन अर्थात् रूहानियत अपने आप में अनुभव करते हो? ऐसे ही फिर एक्युरेट भी हो। एक्युरेट किसमें? जो मन्सा अर्थात् संकल्प के लिये भी श्रीमत मिली हुई है - वाणी के लिये भी जो श्रीमत मिली हुई है और कर्म के लिये भी जो श्रीमत मिली हुई है इन सभी बातों में एक्युरेट। मन्सा भी अनएक्युरेट न हो। जो नियम हैं, मर्यादा हैं, जो डायरेक्शन हैं उन सभी में एक्युरेट और एक्टिव। जो एक्टिव होता है वह जिस समय जैसा अपने को बनाने चाहे, चलाने चाहे वह चला सकते हैं वा ऐसा ही रूप धारण कर सकते हैं। तो जो मुख्य पार्टधारी है उन्हों में यह तीनों ही विशेषताएं भरी हुई रहती हैं। इसमें ही देखना है कि इन में से कौनसी विशेषता किस परसेन्टेज में कम है? स्टेज के साथ-साथ परसेन्टेज को भी देखना है। रूहानियत है, आकर्षित कर सकते हैं, लेकिन जितनी परसेन्टेज होनी चाहिए वह है? अगर परसेन्टेज की कमी है तो इसको सम्पूर्ण तो नहीं कहेंगे न्। पास तो हो गये, फिर भी मार्क्स के आधार पर नंबर तो होते हैं ना। थर्ड डिवीजन वाले को भी पास तो कहते हैं लेकिन कहाँ थर्ड वाला, कहाँ फर्स्ट क्लास - फर्क तो है ना। तो अब चेक करना परसेन्टेज को। स्टेज तो अब नेचरल बात हो गई। क्योंकि प्रैक्टिकल एक्ट में स्टेज पर हो ना। अब सिर्फ परसेन्टेज के आधार पर नंबर होने हैं। आज बहुत बड़ा संगठन हो गया है। जैसे बाप को भी समान बच्चे प्रिय लगते हैं, आप लोग आपस में भी एक समान मिलते हो तो यह सितारों का मेला भी बहुत अच्छा लगता है ना। संगमयुगी मेला तो है ही। लेकिन उस मेले में भी यह मेला है। मेले के अन्दर जो विशेष मेला लगता है वह फिर ज्यादा प्रिय लगता है। बड़े बड़े मेलों के अन्दर भी फिर एक विशेष स्थान बनाते हैं जहाँ सभी का मिलन होता है। संगमयुग बेहद का मेला तो है ही लेकिन उसके अन्दर भी यह स्थूल विशेष स्थान है, जहाँ समान आत्माएं आपस में मिलती हैं। हरेक को अपने समान वा समीप आत्माओं से मिलना- जुलना अच्छा लगता है। विशेष आत्माओं से मेला बनाने लिये स्वयं को भी विशेष बनना पड़े। कोई विशेष हो, कोई साधारण हो, वह कोई मेला नहीं कहा जाता। बाप के समान दिव्य धारणाओं की विशेषता धारण करनी है। बाप से जो पालना ली है इसका सबूत देना है। बाप ने पालना किस लिये की? विशेषताएं भरने लिये। लक्ष्य हो और लक्षण न आवे; तो इसको क्या कहा जाये? ज्यादा समझदार। एक होते हैं समझदार, दूसरे होते हैं बेहद के समझदार। बेहद में कोई लिमिट नहीं होती है। अच्छा

22-11-72  ओम शान्ति   अव्यक्त बापदादा   मधुबन

 

शक्ति-दल की विशेषताएं

(मधुबन-निवासियों के सम्मुख बापदादा के उच्चारे हुए महावाक्य)

 

मधुबन निवासी शक्तिसेना अपने को सदा शक्ति रूप में अनुभव करते हुये चलते हो? गायन ही है शक्ति दल। शक्ति दल के कारण ही बाप का नाम भी सर्वशक्तिवान् है। तो यह है सर्व-शक्तिवान् का शक्ति दल। शक्ति दल की विशेषता है सदा और सर्व समस्याओं को ऐसे पार करे जैसे कोई सीधा रास्ता सहज ही पार कर लेते हैं। सोचेंगे नहीं, ठहरेंगे नहीं। इसी प्रकार शक्ति दल की विशेषता यही है जो समस्याएं उनके लिऐ चढ़ती कला का सहज साधन अनुभव होगा। समस्या साधन के रूप में परिवर्तन हो जाये। तो साधन अपनाने में मुश्किल नहीं लगता है क्योंकि मालूम होता है कि यह साधन ही सिद्धि का आधार है। शक्ति दल को सदैव हर समस्या जानी- पहचानी हुई अनुभव होगी। वह कभी भी आश्चर्यवत नहीं होंगे। आश्चर्यवत के बजाये सदा सन्तुष्ट रहेंगे। कोई सहज साधन है वा जो भी सम्बन्ध में बातें आती हैं वह अपने अनुकूल हों - इस कारण संतुष्ट रहे तो इसको कोई संतुष्टता नहीं कहेंगे। जो अपने संबंध में वा अपनी स्थिति के प्रमाण अनुकूल न भी महसूस हों तो भी उसमें संतुष्ट रहें - ऐसी स्थिति होनी चाहिए। शक्ति दल के मुख से कभी कारण शब्द नहीं निकलेगा। इस कारण से यह हुआ।

कारण शब्द निवारण में परिवर्तित हो जावेगा। यह तो अज्ञानी भी कहते हैं कि इस कारण से यह हुआ। आपकी यह स्टेज न होनी चाहिए। सामने कोई कारण आवे भी तो उसी घड़ी उसको निवारण के रूप में परिवर्तन करना है। फिर यह भाषा खत्म हो जावेगी, समय गंवाना खत्म हो जावेगा। 10-20 मिनट लगें वा 2 मिनट लगें, समय तो गया ना। उसी समय फौरन त्रिकालदर्शा बन कल्प-कल्प इस कारण का निवारण किया था - वह स्पष्ट स्मृति में आने से कारण को निवारण में बदली कर देंगे। सोचेंगे नहीं कि - ‘‘यह करना चाहिए वा नहीं? यह ठीक होगा वा नहीं? यह कैसे होगा?’’ ऐसी भाषा खत्म हो जावेगी। जैसे मकान बनता है तो पहले छत डालने का आधार बनाते हैं। तो पहले वह समय था। अभी तो निराधार होना है। पहले यह बातें सुनने के लिये समय देते थे, पूछते थे -- कोई समस्या तो नहीं है, कोई सम्पर्क वाले विघ्न तो नहीं डालते। अब यह पूछने की आवश्यकता नहीं। अब अनुभवी हो चुके हो। तो ऐसी स्टेज तक पहुंची हो वा अभी तक यह बातें करती हो कि यह हुआ, फिर यह हुआ? इन बातों को कहते हैं रामायण की कथाएं-यह हुआ, फलानी ने यह बोला। रामायण की कथाओं में टाइम तो नहीं गंवाती हो? अभी तक भी कथा-वाचक नहीं हो? रामायण की कथा भी कोई एक हफ्ते में, कोई 10 दिन में पूरी करता है। ऐसी कथाएं तो नहीं करती हो? आपस में एक दो से मिलती भी हो तो याद की यात्रा की युक्तियां वा दिन-प्रतिदिन जो गुह्य-गुह्य बातें सुनते जाते हो उनकी लेन-देन करो। अब ऐसी स्टेज हो जानी चाहिए। जैसे भक्ति मार्ग को दुर्गति मार्ग समझ छोड़ देती हो ना। अगर भक्ति मार्ग की कोई भी रीति-रस्म अब तक भी हो तो आश्चर्य लगेगा ना। क्योंकि समझते हो वह दुर्गति मार्ग है। वैसे ही यह बातें करना वा इन बातों में समय गंवाना, इसको भी ऐसे समझना चाहिए जैसे भक्ति मार्ग दुर्गति मार्ग की रीति रस्म। जब ऐसा अनुभव होगा तब समझो परिवर्तन। जैसे अनुभव करती हो ना - भक्ति मार्ग जैसे पिछले जन्म की बातें। इस जन्म में कब घंटी बजावेंगे वा माला सुमिरण करेंगे? पास्ट लाइफ पर हंसी आवेगी। वैसे यह भी क्या है? अगर समझो, किसी के अवगुण वा ऐसी चलन का सुमिरण करती हो तो यह भी भक्ति हुई ना? जैसे बाप के गुणगान करना, सुमिरण करना वह माला हुई, अगर किसी के अवगुण वा ऐसी देखी हुई बातों का सुमिरण करती हो तो वह भी भक्ति मार्ग दुर्गति की माला फेरती हो। मन में संकल्प करना, यह भी जाप हुआ ना। जैसे वह अजपाजाप करते रहते हैं, वैसे संकल्प चलते रहते हैं, बंद नहीं होते। तो यह भी जाप हुआ। यह है भक्ति के दुर्गति की रस्म। एक दो को सुनाते हो, यह घंटियां बजाती हो -- फलानी ने यह किया, यह किया। यह भक्ति, दुर्गति की रस्म है। मधुबन निवासी तो ज्ञान स्वरूप हैं ना। कोई भी दुर्गति की रीति-रस्म चाहे स्थूल, चाहे सूक्ष्म है, उनसे वैराग्य आना चाहिए। जैसे भक्ति के स्थूल साधनों से वैराग्य आ गया नॉलेज के आधार पर, वैसे इन भक्ति-मार्ग के रस्म से भी ऐसे वैराग्य आना चाहिए। इस वैराग के बाद ही याद की स्पीड बढ़ सकेगी। नहीं तो कितना भी पुरूषार्थ करो। जैसे भक्त लोग कितना भी पुरूषार्थ करते हैं भगवान की याद में बैठने का, बैठ सकते हैं? कितना भी अपने को मारते हैं, कष्ट करते हैं, भिन्न रीति से समय देते हैं, सम्पत्ति लगाते हैं, फिर भी हो सकता है? यहां भी अगर दुर्गति मार्ग की रीति-रस्म है तो याद की यात्रा की स्पीड़ बढ़ नहीं सकती, अटूट याद हो नहीं सकती। घंटिया बजाना आदि छूट गया कि स्थूल रूप में छोड़ सूक्ष्म रूप ले लिया? भक्तों को तो खूब चैलेंज करते हो कि टाइम वेस्ट, मनी वेस्ट करते हो। अपने को चेक करो - कहां तक ज्ञानी तू आत्मा बने हो? ‘ज्ञानी तू आत्मा का अर्थ ही है हर संस्कार, हर बोल ज्ञान सहित हो। कर्म भी ज्ञान-स्वरूप हो। इसको ज्ञानी तू आत्मा कहा जाता है। आत्मा में जैसे-जैसे संस्कार हैं वह आटोमेटिकली वर्क करते हैं। ज्ञानी तू आत्मा के नेचरल कर्म, बोल ज्ञान-स्वरूप होंगे। तो अपने को देखो - ज्ञानी तू आत्मा बने हैं? भक्ति अर्थात् दुर्गति में जाने का ज़रा भी नाम-निशान न होना चाहिए। जैसे आप लोग कहते हो - जहां ज्ञान है वहां भक्ति नहीं, जहां भक्ति है वहां ज्ञान नहीं। रात और दिन की मिसाल देकर बताती हो ना। तो भक्तिपन के संस्कार स्थूल व सूक्ष्म रूप में भी न हों। ज्ञान के संस्कार भी बहुत समय से चाहिए ना। बहुत समय से अभी संस्कार न भरेंगे तो बहुत समय राज्य भी नहीं करेंगे। अन्त समय भरने का पुरूषार्थ करेंगे तो राज्य-भाग्य भी अंत में पावेंगे। अभी से करेंगे तो राज्य-भाग्य भी आदि से पावेंगे। हिसाब-किताब पूरा है। जितना और उतना। मधुबन निवासियों को तो लिफ्ट है और एकस्ट्रा गिफ्ट है क्योंकि सामने एग्जाम्पल है, सभी सहज साधन हैं। सिर्फ कारण को निवारण में परिवर्तन कर दो तो मधुबन निवासियों को जो गिफ्ट है उनसे अपने को बहुत परिवर्तित कर सकते हैं। सदैव आपके सामने निमित्त बनी हुई मूर्तियां एग्जाम्पल हैं। शक्तियों का संकल्प भी पावरफुल होता है, कमजोर नहीं। जो चाहे सो करें, ऐसे को शक्ति सेना कहा जाता है। यहां तो बहुत सहज साधन है। काम किया और अपने पुरूषार्थ में लग गये। मधुबन निवासियों से ही मधुबन की शोभा है। फिर भी बहुत लक्की हो। अपने को जानो न जानो, फिर भी लक्की हो। कई बातों से बचे हुए हो। स्थान के महत्व को, संग के महत्व को, वायुमण्डल के महत्व को भी जानो तो एक सेकेण्ड में महान् बन जावेंगे। कोई बड़ी बात नहीं। माला फिक्स नहीं है। सभी को चाँस है। अब देखेंगे प्रैक्टिकल में क्या परिवर्तन दिखाते हैं? उम्मीदवार तो हो ना? अच्छा।

 

 

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QUIZ QUESTIONS

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प्रश्न 1 :- बापदादा ने नामीग्रामी एक्टर्स की कौन सी तीन विशेषताएं बताई है? विस्तारपूर्वक बताइए?

 प्रश्न 2 :- संगमयुगी मेले के अन्दर कौन से विशेष मेले का बापदादा ने वर्णन किया है? विशेष आत्माओं से मेला मनाने की बाबा ने क्या योग्यता बताई है?

 प्रश्न 3 :- शक्तिदल की बापदादा ने क्या विशेषता बताई है?

 प्रश्न 4 :- भक्ति मार्ग की दुर्गति की कौन कौन सी रस्म अभी भी है जिनसे बापदादा चाहते है कि बच्चों में वैराग्य हो? और क्यो?

 प्रश्न 5 :- बापदादा किन-किन रूपों में अपनी चैकिग करने के लिए कह रहे है?

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

( साधन, राज्य-भाग्य, महान्, एग्जाम्पल, अनुकूल, अभी, परिवर्तन, निवासियों, परिवर्तित, वायुमण्डल )

 

 1   अन्त समय भरने का पुरूषार्थ करेंगे तो _____ भी अंत में पावेंगे। ____से करेंगे तो राज्य-भाग्य भी आदि से पावेंगे।

 2  मधुबन  _____ को तो लिफ्ट है और एकस्ट्रा गिफ्ट है क्योंकि सामने _____ है।

 3  सिर्फ कारण को निवारण में ____ कर दो तो मधुबन निवासियों को जो गिफ्ट है उनसे अपने को बहुत _____ कर सकते हैं।

 4  स्थान के महत्व को, संग के महत्व को, _____ के महत्व को भी जानो तो एक सेकेण्ड में___ बन जावेंगे। कोई बड़ी बात नहीं। माला फिक्स नहीं है।

 5  कोई सहज____ है वा जो भी सम्बन्ध में बातें आती हैं वह अपने ____ हों - इस कारण संतुष्ट रहे तो इसको कोई संतुष्टता नहीं कहेंगे।

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-

 

 1  :- जो अपने संबंध में वा अपनी स्थिति के प्रमाण प्रतिकूल न भी महसूस हों तो भी उसमें संतुष्ट रहें - ऐसी स्थिति होनी चाहिए। 

 2  :- शक्ति दल के मुख से कभी कारण शब्द नहीं निकलेगा। इस कारण से यह हुआ।कारण शब्द निवारण में परिवर्तित हो जावेगा।

 3  :- यह तो ज्ञानी भी कहते हैं कि इस कारण से यह हुआ। आपकी यह स्टेज न होनी चाहिए।

 4  :- सामने कोई कारण आवे भी तो उसी घड़ी उसको निवारण के रूप में परिवर्तन करना है।

 5   :- आपस में एक दो से मिलती भी हो तो याद की यात्रा की  चिट्ठिया वा दिन-प्रतिदिन जो गुह्य-गुह्य बातें सुनते जाते हो उनकी लेन-देन करो।

 

 

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QUIZ ANSWERS

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 प्रश्न 1 :- बापदादा ने नामीग्रामी एक्टर्स की कौन सी तीन विशेषताएं बताई है? विस्तारपूर्वक बताइए?

उत्तर 1 :- नामी ग्रामी एकट्रैस की मुख्य तीन विशेषताए विस्तार से बताते हुए बाबा कहते हैं :-

          एक तो वह एक्टिव होगा। जो एक्टिव होता है वह जिस समय जैसा अपने को बनाने चाहे, चलाना चाहे वह चला सकते हैं वा ऐसा ही रूप धारण कर सकते हैं

          दूसरा एक्युरेट होगा, जो मन्सा अर्थात् संकल्प के लिये भी श्रीमत मिली हुई है - वाणी के लिये भी जो श्रीमत मिली हुई है और कर्म के लिये भी जो श्रीमत मिली हुई है इन सभी बातों में एक्युरेट। मन्सा भी अनएक्युरेट न हो। जो नियम हैं, मर्यादा हैं, जो डायरेक्शन हैं उन सभी में एक्युरेट और एक्टिव।

          और तीसरा अट्रेक्टिव होगा। अट्रेक्टिव का विस्तार से वर्णन करते हुए बाबा कहते-

          हर कर्म में, हर चलन में रूहानियत की अट्रेक्शन हो। जैसे कोई शरीर में सुन्दर होता है तो वह भी अट्रैक्शन करते हैं ना अपने तरफ।

          ऐसे ही जो आत्मा स्वच्छ है, आत्मिक-बल वाली है, वह भी अपने तरफ आकर्षित करते।

          जैसे आत्मा-ज्ञानी महात्माएं आदि भी द्वापर आदि में अपने सतोप्रधान स्थिति वाले थे तो उन्हों में भी रूहानी आकर्षण तो था ना, जो अपने तरफ आकर्षित करके औरों को भी इस दुनिया से अल्पकाल के लिये वैराग्य तो दिला देते थे ना। जब उलटे ज्ञान वालों में भी इतनी अट्रैक्शन थी, तो जो यथार्थ और श्रेष्ठ ज्ञान-स्वरूप हैं उन्हों में भी रूहानी आकर्षण वा अट्रैक्शन रहेगी।

          शारीरिक ब्यूटी नजदीक वा सामने आने से आकर्षण करेगी। रूहानी आकर्षण दूर बैठे भी किसी आत्मा को अपने तरफ आकर्षित करती। बाबा कहते- जो मुख्य पार्टधारी है उन्हों में यह तीनों ही विशेषताएं भरी हुई रहती हैं।

 

 प्रश्न 2 :- संगमयुगी मेले के अन्दर कौन से विशेष मेले का बापदादा ने वर्णन किया है? विशेष आत्माओं से मेला मनाने की बाबा ने क्या योग्यता बताई है?

उत्तर 2 :- बापदादा इस संगम युगी मेले का वर्णन करते हुए कहते है :-

          संगमयुगी मेला तो है ही। लेकिन उस मेले में भी एक विशेष मेला है।

          जैसे बाप को भी समान बच्चे प्रिय लगते हैं, आप लोग आपस में भी एक समान मिलते हो तो यह सितारों का मेला भी बहुत अच्छा लगता है।

          मेले के अन्दर जो विशेष मेला लगता है वह फिर ज्यादा प्रिय लगता है।

          बड़े बड़े मेलों के अन्दर भी फिर एक विशेष स्थान बनाते हैं जहाँ सभी का मिलन होता है।

           संगमयुग बेहद का मेला तो है ही लेकिन उसके अन्दर भी यह स्थूल विशेष स्थान है, जहाँ समान आत्माएं आपस में मिलती हैं।

          हरेक को अपने समान वा समीप आत्माओं से मिलना- जुलना अच्छा लगता है।                   

         विशेष आत्माओं से मेला बनाने लिये स्वयं को भी विशेष बनना पड़े। कोई विशेष हो, कोई साधारण हो, वह कोई मेला नहीं कहा जाता                      

         इसलिए बाप के समान दिव्य धारणाओं की विशेषता धारण करनी है। बाप से जो पालना ली है इसका सबूत देना है।

                         

 प्रश्न 3 :- शक्तिदल की बापदादा ने क्या विशेषता बताई है?

उत्तर 3 :- शक्तिदल की विशेषता बताते हुए बापदादा समझाते है :-

          शक्ति दल की विशेषता है सदा और सर्व समस्याओं को ऐसे पार करे जैसे कोई सीधा रास्ता सहज ही पार कर लेते हैं।

          ये सोचेंगे नहीं, ठहरेंगे नहीं।

          जो भी समस्याएं है उनके लिए चढ़ती कला का सहज साधन अनुभव होगा।

          समस्या साधन के रूप में परिवर्तन हो जाये तो साधन अपनाने में मुश्किल नहीं लगता है क्योंकि मालूम होता है कि यह शक्ति दल को सदैव हर समस्या जानी-पहचानी हुई अनुभव होगी।

          शक्ति दल को सदैव हर समस्या जानी- पहचानी हुई अनुभव होगी।

          वह कभी भी आश्चर्यवत नहीं होंगे। आश्चर्यवत के बजाये सदा सन्तुष्ट रहेंगे।    

 

 प्रश्न 4 :-भक्ति मार्ग की दुर्गति की कौन कौन सी रस्म अभी भी है जिनसे बापदादा चाहते है कि बच्चों में वैराग्य हो? और क्यो?

उत्तर 4 :- भक्ति मार्ग की निम्न लिखित रस्मों से मुक्ति के लिए बापदादा समझानी देते है :-

          जैसे बाप के गुणगान करना, सुमिरण करना वह माला हुई, अगर किसी के अवगुण वा ऐसी देखी हुई बातों का सुमिरण करती हो तो वह भी भक्ति मार्ग दुर्गति की माला फेरती हो।

          मन में संकल्प करना, यह भी जाप हुआ ना। जैसे वह अजपाजाप करते रहते हैं, वैसे संकल्प चलते रहते हैं, बंद नहीं होते। तो यह भी जाप हुआ। 

          ❸ यह है भक्ति के दुर्गति की रस्म। एक दो को सुनाते हो, यह घंटियां बजाती हो -  फलानी ने यह किया, यह किया। यह भक्ति, दुर्गति की रस्म है। 

          मधुबन निवासी तो ज्ञान स्वरूप हैं ना। कोई भी दुर्गति की रीति-रस्म चाहे स्थूल, चाहे सूक्ष्म है, उनसे वैराग्य आना चाहिए।                     

          जैसे भक्ति के स्थूल साधनों से वैराग्य आ गया नॉलेज के आधार पर, वैसे इन भक्ति-मार्ग के रस्म से भी ऐसे वैराग्य आना चाहिए। इस वैराग के बाद ही याद की स्पीड बढ़ सकेगी।

          नहीं तो कितना भी पुरूषार्थ करो। जैसे भक्त लोग कितना भी पुरूषार्थ करते हैं भगवान की याद में बैठने का, बैठ सकते हैं? कितना भी अपने को मारते हैं, कष्ट करते हैं, भिन्न रीति से समय देते हैं, सम्पत्ति लगाते हैं, फिर भी हो सकता है? यहां भी अगर दुर्गति मार्ग की रीति-रस्म है तो याद की यात्रा की स्पीड़ बढ़ नहीं सकती, अटूट याद हो नहीं सकती।

 

 प्रश्न 5 :-बापदादा किन-किन रूपों में अपनी चैकिग करने के लिए  रहे है?

उत्तर 5 :- बापदादा भक्ति मार्ग की निम्नलिखित दुर्गति की रस्मों की अपने में चैकिंग के लिए समझानी दे रहे है- बाबा कहते चैक करो :-

          घंटिया बजाना आदि छूट गया कि स्थूल रूप में छोड़ सूक्ष्म रूप ले लिया?

          भक्तों को तो खूब चैलेंज करते हो कि टाइम वेस्ट, मनी वेस्ट करते हो। अपने को चेक करो - कहां तक ज्ञानी तू आत्मा बने हो?

          ❸ 'ज्ञानी तू आत्मा का अर्थ ही है हर संस्कार, हर बोल ज्ञान सहित हो। कर्म भी ज्ञान-स्वरूप हो। इसको ज्ञानी तू आत्मा कहा जाता है। आत्मा में जैसे-जैसे संस्कार हैं वह आटोमेटिकली वर्क करते हैं।

          ❹ ‘ज्ञानी तू आत्मा के नेचरल कर्म, बोल ज्ञान-स्वरूप होंगे। तो अपने को देखो - ज्ञानी तू आत्मा बने हैं? भक्ति अर्थात् दुर्गति में जाने का ज़रा भी नाम-निशान न होना चाहिए।

          तो भक्तिपन के संस्कार स्थूल व सूक्ष्म रूप में भी न हों। ज्ञान के संस्कार भी बहुत समय से चाहिए ना। बहुत समय से अभी संस्कार न भरेंगे तो बहुत समय राज्य भी नहीं करेंगे।

         

       FILL IN THE BLANKS:-    

( साधन, राज्य-भाग्य, महान्, एग्जाम्पल, अनुकूल, अभी, परिवर्तन, निवासियों, परिवर्तित, वायुमण्डल )

 

 1   अन्त समय भरने का पुरूषार्थ करेंगे तो _____ भी अंत में पावेंगे। ____से करेंगे तो राज्य-भाग्य भी आदि से पावेंगे।

राज्य-भाग्य /  अभी

 

  मधुबन _____ को तो लिफ्ट है और एकस्ट्रा गिफ्ट है क्योंकि सामने _____ है।

 निवासियों  / एग्जाम्पल

 

  सिर्फ कारण को निवारण में ____ कर दो तो मधुबन निवासियों को जो गिफ्ट है उनसे अपने को बहुत _____ कर सकते हैं।

 परिवर्तन  / परिवर्तित

 

 4  स्थान के महत्व को, संग के महत्व को, _____ के महत्व को भी जानो तो एक सेकेण्ड में _____ बन जावेंगे। कोई बड़ी बात नहीं। माला फिक्स नहीं है।

 वायुमण्डल /  महान्

 

 5  कोई सहज ____ है वा जो भी सम्बन्ध में बातें आती हैं वह अपने ____ हों - इस कारण संतुष्ट रहे तो इसको कोई संतुष्टता नहीं कहेंगे।

 साधन /  अनुकूल

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:- 】【

 

 1  :- जो अपने संबंध में वा अपनी स्थिति के प्रमाण प्रतिकूल भी महसूस हों तो भी उसमें संतुष्ट रहें - ऐसी स्थिति होनी चाहिए।

 जो अपने संबंध में वा अपनी स्थिति के प्रमाण अनुकूल न भी महसूस हों तो भी उसमें संतुष्ट रहें - ऐसी स्थिति होनी चाहिए।

 

2  :- शक्ति दल के मुख से कभी कारण शब्द नहीं निकलेगा। इस कारण से यह हुआ। कारण शब्द निवारण में परिवर्तित हो जावेगा।

 

3  :- यह तो ज्ञानी भी कहते हैं कि इस कारण से यह हुआ। आपकी यह स्टेज होनी चाहिए।

यह तो अज्ञानी भी कहते हैं कि इस कारण से यह हुआ। आपकी यह स्टेज न होनी चाहिए।

 

4  :- सामने कोई कारण आवे भी तो उसी घड़ी उसको निवारण के रूप में परिवर्तन करना है।

 

5  :- आपस में एक दो से मिलती भी हो तो याद की यात्रा की  चिट्ठिया वा दिन-प्रतिदिन जो गुह्य-गुह्य बातें सुनते जाते हो उनकी लेन-देन करो।

आपस में एक दो से मिलती भी हो तो याद की यात्रा की युक्तियां वा दिन-प्रतिदिन जो गुह्य-गुह्य बातें सुनते जाते हो उनकी लेन-देन करो।