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AVYAKT MURLI

04 / 12 / 72

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04-12-72   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

 

महावीर आत्माओं की रूहानी ड्रिल

 

इस समय सभी कहां बैठे हो? साकारी दुनिया में बैठे हो वा आकारी दुनिया में बैठे हो? आकारी दुनिया में, इस साकार दुनिया के आकर्षण से परे अपने को अनुभव करते हो वा आकारी रूप में स्थित होते साकारी दुनिया की कोई भी आकर्षण अपनी तरफ आकर्षित नहीं करती है? साकारी दुनिया के भिन्न-भिन्न प्रकार के आकर्षण से एक सेकेण्ड में अपने को न्यारा और बाप का प्यारा बना सकते हो? कर्म करते हुये कर्मबंधनों से परे, बंधनयुक्त से बंधनमुक्त स्थिति अनुभव करते हो? अभी-अभी आप रूहानी महावीर महावीरनियों को डायरेक्शन मिले कि शरीर से परे अशरीरी, आत्म- अभिमानी, बंधनमुक्त, योगयुक्त बन जाओ; तो एक सेकेण्ड में स्थित हो सकते हो? जैसे हठयोगी अपने श्वास को जितना समय चाहें उतना समय रोक सकते हैं। आप सहज योगी, स्वत: योगी, सदा योगी, कर्म योगी, श्रेष्ठ योगी अपने संकल्प को, श्वास को प्राणेश्वर बाप के ज्ञान के आधार पर जो संकल्प, जैसा संकल्प जितना समय करना चाहो उतना समय उसी संकल्प में स्थित हो सकते हो? अभी-अभी शुद्ध संकल्प में रमण करना, अभी-अभी एक संकल्प में स्थित होना - यह प्रैक्टिस सहज कर सकते हो? जैसे स्थूल में चलते-चलते अपने को जहां चाहें रोक सकते हो। अचल, अडोल स्थिति का जो गायन है वह किन्हों का है? तुम महावीर-महावीरनियां श्रीमत पर चलने वाले श्रेष्ठ आत्मायें हो ना। श्रीमत के सिवायय् और सभी मतें समाप्त हो गई ना। कोई और मत वार तो नहीं करती? मनमत भी वार न करे। शास्त्रवादियों की मतें, गुरूओं की मत, कलियुगी संबंधियों की मत - यह तो समाप्त हो ही गई। लेकिन मनमत अर्थात् अपनी अल्पज्ञ आत्मा के संस्कारों के अनुसार संकल्प उत्पन्न होता है और उस संकल्प को वाणी वा कर्म तक भी लाते हैं; तो उसको क्या कहेंगे? इसको श्रीमत कहेंगे? वा व्यर्थ संकल्पों की उत्पत्ति को श्रीमत कहेंगे? तो श्रीमत पर चलने वाले एक संकल्प भी मनमत वा आत्माओं के मत अर्थात् परमत पर नहीं कर सकते। स्थिति की स्पीड तेज न होने कारण कुछ न कुछ श्रीमत में मनमत वा परमत मिक्स होती है। जैसे स्थूल कार चलाते हो, पैट्रोल के अंदर अगर ज़रा भी कुछ किचड़ा मिक्स हो जाता, रिफाइन नहीं होता है तो स्पीड नहीं पकड़ेगी। ऐसे ही यहां भी स्पीड नहीं बढ़ती। चेक करो वा कराओ कि कहीं मिक्स तो नहीं है? यह मिक्स, फिक्स होने नहीं देती, डगमग होती रहती है। श्रेष्ठ आत्माएं, पद्मापद्म भाग्यशाली आत्माएं एक कदम भी पद्मों की कमाई के बिना नहीं गंवाते हैं। रूहानी ड्रिल आती है ना। अभी-अभी निराकारी, अभी-अभी आकारी, अभी-अभी साकारी कर्मयोगी। देरी नहीं लगनी चाहिए। जैसे साकार रूप अपना है वैसे ही निराकारी, आकारी रूप भी अपना ही है ना। अपनी चीज़ को अपनाना, उसमें देरी क्या? पराई चीज़ को अपनाने में कुछ समय लगेगा, सोच चलेगा लेकिन यह तो अपना ही असली स्वरूप है। जैसे स्थूल चोले को कर्त्तव्य के प्रमाण धारण करते हो और उतार देते हो, वैसे ही इस साकार देह रूपी चोले को कर्त्तव्य के प्रमाण धारण किया और न्यारा हुआ। लेकिन जैसे स्थूल वस्त्र भी अगर टाइट होते हैं तो सहज उतरते नहीं हैं, ऐसे ही अगर आत्मा का यह देह रूपी वस्त्र देह के, दुनिया के, माया के आकर्षण में टाइट अर्थात् खिंचा हुआ है तो सरल उतरेगा नहीं अर्थात् सहज न्यारा नहीं हो सकेंगे। समय लग जाता है। थकावट होती है। कोई भी कार्य जब सम्भव नहीं होता है तो थकावट वा परेशानी हो ही जाती है। परेशानी कभी एक ठिकाने टिकने नहीं देती। तो यह भक्ति का भटकना क्यों शुरू हुआ? जब आत्मा इस शरीर रूपी चोले को धारण करने और न्यारे होने में असमर्थ हो गई। यह देह का भान अपने तरफ खैंच गया तब परेशान होकर भटकना शुरू किया। लेकिन अब आप सभी श्रेष्ठ आत्माएं इस शरीर के आकर्षण से परे एक सेकेण्ड में हो सकते हो, ऐसी प्रैक्टिस है? प्रैक्टिस की परीक्षा का समय कौन-सा होता है? जब कर्मभोग का जोर होता है। कर्मेन्द्रियां बिल्कुल कर्मभोग के वश अपने तरफ आकर्षण करें, जिसको कहा जाता है बहुत दर्द है। कहते हैं ना - बहुत दर्द है, इसलिये थोड़ा भूल गई। लेकिन यह तो टग ऑफ वार ( Tug of War; रस्सा-कशी) का समय है, ऐसे समय कर्मभोग को कर्मयोग मे परिवर्तन करने वाले, साक्षी हो कर्मेन्द्रियों को भोगवाने वाले जो होते हैं, उनको ही अष्ट रत्न कहा जाता है, जो ऐसे समय विजयी बन दिखाते हैं। क्योंकि अष्ट रत्नों में सदैव अष्ट शक्तियां कायम रहती हैं। ऐसे अष्ट ही भक्तों को अल्पकाल की शक्तियों का वरदान देने वाले इष्ट बनते हैं।

ऐसे अष्ट भुजाधारी अर्थात् अष्ट शक्ति सम्पन्न, शक्ति रूप महावीर- महावीरनियां, एक सेकेण्ड में संकल्प को कंट्रोल करने में सर्वश्रेष्ठ आत्माएं, सर्व आत्माओं को बाप का परिचय दिलाने वाली आत्माएं, बिछुड़ी हुई आत्माओं को बाप से मिलाने वाली आत्माएं, प्यासी आत्माओं को सदाकाल के लिये तृत्प करने वाली आत्माएं, बंधनमुक्त, योगयुक्त, युक्तियुक्त, जीवनमुक्त आत्माओं को याद-प्यार और नमस्ते।

मेला अर्थात् मिलन। यहां अंतिम मेला कौन-सा होगा? संगम की बात सुनाओ। कर्मातीत अवस्था भी तब होगी जब पहले मेला होगा। बाप के संस्कार, बाप के गुण, बाप के कर्त्तव्य की स्पीड और बाप के अव्यक्त निराकारी स्थिति की स्टेज - सभी में समानता का मेला लगेगा। जब आत्माएं बाप की समानता के मेले को मनावेंगी तब जय-जयकार होगी, विनाश के समीप आवेंगे। बाप की समानता ही विनाश को समीप लावेगी। मेला लगने के बाद क्या होता है? अति शांति। तो आत्माएं भी मेला मनावेंगी, फिर वानप्रस्थ में चली जावेंगी। वानप्रस्थ कहो अथवा कर्मातीत कहो, लेकिन पहले यह मेला होगा। अच्छा!

 

 

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QUIZ QUESTIONS

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 प्रश्न 1 :- कर्मातीत अवस्था कब बनेगी ?

 प्रश्न 2 :- बापदादा ने श्रेष्ठ आत्माओं की क्या निशानियाँ बताई हैं?

 प्रश्न 3 :- हठयोगी और कर्मयोगी में क्या समानताएँ है?

 प्रश्न 4 :- स्थिति की स्पीड तेज होने का मुख्य कारण क्या है?

 प्रश्न 5 :- जीवन में शरीर के आकर्षण से परे परीक्षा का समय कौन-सा होता है?

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

( श्रीमत,चीज,कर्म,शरीर,डायरेक्शन,परमत असली,बंधनयुक्त,भटकना,सेकेण्ड,अशरीरी असमर्थ,कर्मबंधनों,पराई,संकल्प )

 

 1   तो ____ पर चलने वाले एक _____ भी मनमत वा आत्माओं के मत अर्थात् ______ पर नहीं कर सकते।

 2  अपनी _____ को अपनाना, उसमें देरी क्या? _____ चीज़ को अपनाने में कुछ समय लगेगा, सोच चलेगा लेकिन यह तो अपना ही _____ स्वरूप है।

 3  ____ करते हुये____ से परे,_____ से बंधनमुक्त स्थिति अनुभव करते हो?

  जब आत्मा इस_____  रूपी चोले को धारण करने और न्यारे होने में____  हो गई। यह देह का भान अपने तरफ खैंच गया तब परेशान होकर ____ शुरू किया।

 5  अभी-अभी आप रूहानी महावीर महावीरनियों को _____ मिले कि शरीर से परे ____, आत्म- अभिमानी, बंधनमुक्त, योगयुक्त बन जाओ; तो एक _____ में स्थित हो सकते हो?

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-

 

 1  :- अचल, अडोल स्थिति का जो गायन है वह तुम महावीर-महावीरनियां श्रीमत पर चलने वाले श्रेष्ठ आत्मायें हो ना।

 2  :- साकारी दुनिया के भिन्न-भिन्न प्रकार के आकर्षण से एक सेकेण्ड में अपने को न्यारा और बाप का सहारा बना सकते हो?

 3  :- यह मिक्स, फिक्स होने नहीं देती, डगमग होती रहती है।

 4  :- परेशानी कभी एक ठिकाने टिकने नहीं देती।

 5   :- कोई भी कार्य जब सम्भव नहीं होता है तो घबराहट वा परेशानी हो ही जाती है।

 

 

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QUIZ ANSWERS

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 प्रश्न 1 :- कर्मातीत अवस्था कब बनेगी ?

उत्तर 1 :- कर्मातीत अवस्था तब बनेगी:-

          जब पहले मेला अर्थात मिलन होगा। बाप के संस्कार, बाप के गुण, बाप के कर्त्तव्य की स्पीड और बाप के अव्यक्त निराकारी स्थिति की स्टेज - सभी में समानता का मेला लगेगा।

          जब आत्माएं बाप की समानता के मेले को मनावेंगी तब जय-जयकार होगी, विनाश के समीप आवेंगे।  

          बाप की समानता ही विनाश को समीप लावेगी। मेला लगने के बाद क्या होता है? अति शांति। तो आत्माएं भी मेला मनावेंगी, फिर वानप्रस्थ में चली जावेंगी। वानप्रस्थ कहो अथवा कर्मातीत कहो, लेकिन पहले यह मेला होगा।

 

 प्रश्न 2 :- बापदादा ने श्रेष्ठ आत्माओ की क्या निशानियाँ बताई?

उत्तर 2 :- बापदादा ने श्रेष्ठ आत्माओ की निम्नलिखित निशानियाँ बताई है:-

          श्रेष्ठ आत्माएं, पद्मापद्म भाग्यशाली आत्माएं एक कदम भी पद्मों की कमाई के बिना नहीं गंवाते हैं।

          अभी-अभी निराकारी, अभी-अभी आकारी, अभी-अभी साकारी कर्मयोगी। देरी नहीं लगनी चाहिए। जैसे साकार रूप अपना है वैसे ही निराकारी, आकारी रूप भी अपना ही है ना।

          जैसे स्थूल चोले को कर्त्तव्य के प्रमाण धारण करते हो और उतार देते हो, वैसे ही इस साकार देह रूपी चोले को कर्त्तव्य के प्रमाण धारण किया और न्यारा हुआ।

           जैसे स्थूल वस्त्र भी अगर टाइट होते हैं तो सहज उतरते नहीं हैं, ऐसे ही अगर आत्मा का यह देह रूपी वस्त्र देह के, दुनिया के, माया के आकर्षण में टाइट अर्थात् खिंचा हुआ है तो सरल उतरेगा नहीं अर्थात् सहज न्यारा नहीं हो सकेंगे। समय लग जाता है। थकावट होती है।

 

 प्रश्न 3 :- हठयोगी और कर्मयोगी मे क्या समानताएँ है?

उत्तर 3 :- हठयोगी और कर्मयोगी में निम्नलिखित समानताएँ है:-

          जैसे हठयोगी अपने श्वांस को जितना समय चाहें उतना समय रोक सकते हैं। आप सहज योगी, स्वत: योगी, सदा योगी, कर्म योगी, श्रेष्ठ योगी अपने संकल्प को, श्वांस को प्राणेश्वर बाप के ज्ञान के आधार पर जो संकल्प, जैसा संकल्प जितना समय करना चाहो उतना समय उसी संकल्प में स्थित हो सकते हो।

         अभी-अभी शुद्ध संकल्प में रमण करना, अभी-अभी एक संकल्प में स्थित होना - यह प्रैक्टिस सहज कर सकते हो।

          श्रीमत के सिवाय और सभी मतें समाप्त हो गई ना। शास्त्रवादियों की मतें, गुरूओं की मत, कलियुगी संबंधियों की मत - यह तो समाप्त हो ही गई।

 

 प्रश्न 4 :- स्थिति की स्पीड तेज न होने का मुख्य कारण क्या है?

उत्तर 4 :- स्थिति की स्पीड तेज न होने कारण कुछ न कुछ श्रीमत में मनमत वा परमत मिक्स होती है। जैसे स्थूल कार चलाते हो, पैट्रोल के अंदर अगर ज़रा भी कुछ किचड़ा मिक्स हो जाता, रिफाइन नहीं होता है तो स्पीड नहीं पकड़ेगी। ऐसे ही यहां भी स्पीड नहीं बढ़ती। चेक करो वा कराओ कि कहीं मिक्स तो नहीं है?

 

 प्रश्न 5 :- जीवन में शरीर के आकर्षण से परे परीक्षा का समय कौन-सा होता है?

उत्तर 5 :- जीवन में शरीर के आकर्षण से परे परीक्षा का तब होता है:- 

          जब कर्मभोग का जोर होता है। कर्मेन्द्रियां बिल्कुल कर्मभोग के वश अपने तरफ आकर्षण करें, जिसको कहा जाता है बहुत दर्द है।

          ऐसे समय कर्मभोग को कर्मयोग मे परिवर्तन करने वाले, साक्षी हो कर्मेन्द्रियों को भोगवाने वाले जो होते हैं, उनको ही अष्ट रत्न कहा जाता है। जो ऐसे समय विजयी बन दिखाते हैं। 

          अष्ट रत्नों में सदैव अष्ट शक्तियां कायम रहती हैं। ऐसे अष्ट ही भक्तों को अल्पकाल की शक्तियों का वरदान देने वाले इष्ट बनते हैं।

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

( श्रीमत,चीज,कर्म,शरीर,डायरेक्शन,परमत असली,बंधनयुक्त,भटकना,सेकेण्ड,अशरीरी असमर्थ,कर्मबंधनों,पराई,संकल्प )

 

 1   तो ______ पर चलने वाले एक _____ भी मनमत वा आत्माओं के मत अर्थात् ______ पर नहीं कर सकते।

 श्रीमत  / संकल्प  / परमत

 

 2  अपनी _____ को अपनाना, उसमें देरी क्या? _____ चीज़ को अपनाने में कुछ समय लगेगा, सोच चलेगा लेकिन यह तो अपना ही _____ स्वरूप है।

 चीज  / पराई /  असली

 

 3  ______ करते हुये _____ से परे, _____ से बंधनमुक्त स्थिति अनुभव करते हो

 कर्म /  कर्मबंधनों /  बंधनयुक्त

 

 4 जब आत्मा इस_____  रूपी चोले को धारण करने और न्यारे होने में____  हो गई। यह देह का भान अपने तरफ खैंच गया तब परेशान होकर ____ शुरू किया।

शरीर /  असमर्थ  / भटकना

 

 5  अभी-अभी आप रूहानी महावीर महावीरनियों को _____ मिले कि शरीर से परे ____, आत्म- अभिमानी, बंधनमुक्त, योगयुक्त बन जाओ; तो एक _____ में स्थित हो सकते हो?

डायरेक्शन  / अशरीरी  / सेकेण्ड

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-

 

 1  :- अचल, अडोल स्थिति का जो गायन है वह तुम महावीर-महावीरनियां श्रीमत पर चलने वाले श्रेष्ठ आत्मायें हो ना।

 

 2  :- साकारी दुनिया के भिन्न-भिन्न प्रकार के आकर्षण से एक सेकेण्ड में अपने को न्यारा और बाप का सहारा बना सकते हो?

साकारी दुनिया के भिन्न-भिन्न प्रकार के आकर्षण से एक सेकेण्ड में अपने को न्यारा और बाप का प्यारा बना सकते हो?

 

 3  :- यह मिक्स, फिक्स होने नहीं देती, डगमग होती रहती है।

 

4  :- परेशानी कभी एक ठिकाने टिकने नहीं देती।

 

5   :- कोई भी कार्य जब सम्भव नहीं होता है तो घबराहट वा परेशानी हो ही जाती है।

कोई भी कार्य जब सम्भव नहीं होता है तो थकावट वा परेशानी हो ही जाती है।