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AVYAKT MURLI

17 / 05 / 73

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17-05-73   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

 

 जैसा लक्ष्य वैसा लक्षण

 

ज्ञान का सागर, सर्व शक्तिवान्, आनन्द का सागर, दया का सागर, कल्याणकारी बाबा बोले:-

 

जो विशेषतायें बाप की हैं क्या वह अपने में अनुभव करते हो? जैसे सभी को अपनी इस पढ़ाई के मुख्य चार सब्जेक्ट्स सुनाते हो ना वैसे मुख्य विशेषतायें भी चार हैं क्या उनको जानते हो? चार सब्जेक्ट्स के प्रमाण चार विशेषतायें हैं-नॉलेजफुल,(Knowledgeful) ‘पॉवरफुल’  ‘सर्विसएबल’  और ब्लिसफुल’ (Blissful)। यह मुख्य चार विशेषतायें क्या अपने में अनुभव करते हो? इन चारों की परसेन्टेज में बहुत अन्तर है या थोड़ा? फॉलो-फादर करने वाले हो ना? चारों ही जो सब्जेक्ट्स हैं वह जीवन में नेचरल (Natural) रूप में हैं कि अभी उतराई चढ़ाई का नेचरल रूप है? कितना परसेन्टेज नेचरल रूप में है? चौदह कला तक नेचरल रूप हुआ है? सम्पूर्ण स्टेज को पाने के लिए अब पुरूषार्थ की स्पीड (Speed) तेज नहीं होगी, तो क्या समय के अनुसार अपने को सम्पन्न बना सकेंगे? टेम्पररी (Temporary) कार्य के लिए बापदादा की व अपनी मत के अनुसार जो स्टेज बनती है, वह दूसरी बात है लेकिन लास्ट स्टेज के प्रमाण क्या ऐसी स्पीड में आगे जा रहे हो? क्या अपनी स्पीड से सन्तुष्ट हो? इसके लिए भी प्लान  बनता है या कि सिर्फ सर्विस के ही प्लान बनाते हो?

 

जैसे सर्विस के भिन्न-भिन्न प्लान्स बनाते हो तो क्या वैसे ही अपनी स्पीड से संतुष्ट रहने के लिए भी कोई प्लान बनाते हो? जो प्रैक्टिकल में प्राप्ति या सफलता होती है उसी अनुसार ही स्पीड तेज होगी। जब अपनी स्पीड से संतुष्ट हो तो फिर पॉवरफुल प्लान बनाना चाहिए ना? अगर देखते हो सर्विस में सफलता कम है तो क्या इसके लिये कुछ नई बातें सोचते हो? भिन्न-भिन्न रीति से चला कर क्या इस धरती को ठीक करने का भी प्र्यत्न करते हो? स्वयं न कर पाते हो तो संगठन के सहयोग से भी इसको ठीक करते हो ना? वैसे इस बात के लिये इतना ही स्पष्ट है? इतनी लगन है अपने प्रति? कितनी फिक्र है? क्या प्लान बनाते हो? क्या अपनी स्पीड को बढ़ाने के लिए कोई नया प्लान बनाया है? क्या एकान्त में रह, याद की यात्रा बढ़ाने का प्लान बनाते हो?

 

जैसे जो विशेष सर्विस की स्टेज पर आने वाले हैं उन को अपने हर कार्य को सैट करने का अनुभव करने का प्लान बनाना पड़ता है ना? वैसे ही अमृत वेले अपने पुरूषार्थ की उन्नति का प्लान सैट करना है। आज किस विषय पर वा किस कमजोरी पर विशेष अटेन्शन (Attention) देकर इसकी परसेन्टेज बढ़ावे। हर-एक अपनी हिम्मत के अनुसार वह प्लान-बुद्धि में रखे कि आज के दिन में क्या प्रैक्टिकल में लायेंगे और कितनी परसेन्टेज तक इस बात को पुरूषार्थ में लायेंगे? अपनी दिनचर्या के साथ यह सैट करो और फिर रात को यह चेक करो कि अपनी सैट की हुई प्वॉइन्ट को कहाँ तक प्रैक्टिकल में और कितनी परसेन्टेज तक धारण कर सके? यदि नहीं कर सके तो उसका कारण? और किया तो किस-किस विशेष युक्ति से अपने में उन्नति का अनुभव किया? यह दोनों रिजल्ट सामने लानी चाहिये और अगर देखते हो कि जो आज का लक्ष्य रखा था उस में उतनी सफलता नहीं हुई वा जितना प्लान बनाया उतना प्रैक्टिकल नहीं हो पाया तो उसको छोड़ नहीं देना चाहिये।

 

जैसे स्थूल कार्य में लक्ष्य रखने से अगर किसी कारण वश वह अधूरा हो जाता है तो उसको सम्पन्न करने का प्रयत्न करते हो न? वैसे ही रोज के इस कार्य को लक्ष्य रखते हुए सम्पन्न करना चाहिए। एक बात में विशेष अटेन्शन होने से विशेष बल मिलेगा। कोई भी कार्य करते हुए स्मृति आयेगी और स्मृति-स्वरूप भी हो ही जायेंगे। जैसे एक्स्टर्नल नॉलेज (External Knowledge) में भी अगर कोई पाठ पक्का किया जाता है तो जैसे उसको दोबारा, तीसरी बार, चौथी बार पक्का किया जाता है और उसे छोड़ नहीं दिया जाता, तो ऐसे ही इसमें भी अपना लक्ष्य रख कर एक-एक बात को पूरा करते जाओ। इसमें अलबेलापन नहीं चाहिए। सोच लिया, प्लान बना लिया, लेकिन प्रैक्टिकल करने में यदि कोई परिस्थिति सामने आये तो संकल्प की दृढ़ता होगी कि करना ही है तो उतनी ही दृढ़ता सम्पूर्णता के समीप लावेगी। वर्तमान समय प्लान भी है लेकिन इसमें कमी क्या है? दृढ़ता की। दृढ़ संकल्प नहीं करते हो। विशेष रूप में अटेन्शन देकर दिखावे की वह कमजोरी है। महारथियों को अर्थात् सर्विसएबल श्रेष्ठ आत्माओं को सर्विस के साथ सैल्फ-सर्विस (Self-Service) का भी अटेन्शन चाहिए।

 

एक है सैल्फ-सर्विस (Self-Service) दूसरी विश्व-कल्याण के प्रति सर्विस। क्या दोनों का बैलेन्स (Balance) ठीक रहता है? अभी इस प्रमाण अपने श्रेष्ठ संकल्प को प्रैक्टिकल में लाओ। सिर्फ सोचो नहीं। जैसे लोगों को भी कहते हो ना कि सोचते-सोचते समय न बीत जाए। इसी प्रकार अपनी उन्नति के प्लान सोचने के साथ-साथ प्रैक्टिकल में दृढ़-संकल्प से करो। अगर रोज एक विशेषता को सामने रखते हुए अपने प्लान को प्रैक्टिकल में लाओ तो थोड़े ही दिनों में अपने में महान् अन्तर महसूस होगा। इस विशेष वरदान भूमि में अपनी उन्नति के प्रति भी कुछ प्लान बनाते हो वा सिर्फ सर्विस करके, मीटिंग कर के चले जाते हो। अपनी उन्नति के लिए रात का समय तो सभी को है। जब विशेष सर्विस प्लान प्रैक्टिकल में लाते हो तो क्या उन दिनों में निद्राजीत नहीं बनते हो? अपनी उन्नति के प्रति अगर निद्रा का भी त्याग किया तो क्या समय नहीं मिल सकता है? यहाँ तो और कार्य ही क्या है? जैसे और प्लान्स बनाते हो वैसे अपनी उन्नति के प्रति भी कोई विशेष प्लान प्रैक्टिकल में लाना चाहिए। यहाँ जो भी उन्नति का साधन प्रैक्टिकल में लायेंगे उसमें सभी तरफ से सहयोग की लिफ्ट मिलेगी। जो लक्ष्य रखते हो इस प्रमाण प्रैक्टिकल में लक्षण नहीं हो पाते, जब कि कारण को भी और निवारण को भी समझते हो?

 

नॉलेजफुल तो हो गए हो बाकी कमी क्या है जो कि प्रैक्टिकल में नहीं हो पाता? पॉवरफुल न होने के कारण नॉलेज को प्रैक्टिकल में नहीं कर पाते हो। पॉवरफुल बनने के लिए क्या करना पड़े?-प्रैक्टिकल प्लान बनाओ। अगर अभी तक आप लोग ही तैयार नहीं होंगे तो आप लोगों की वंशावली कब तैयार होगी? प्रजा कब तैयार होगी? इस बारी प्रैक्टिकल में कुछ करके दिखाना। पुरूषार्थ में हरएक के बहुत अच्छे अनुभव होते हैं। जिस अनुभव के लेन-देन से एक-दूसरे की उन्नति के साधन सुनते अपने में भी बल भर जाता है। ऐसा क्लास कभी करते हो? अच्छा। ओम् शान्ति।

 

18-06-73   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

 

विशेष आत्माओं की विशेषता

 

हर मुश्किल को सहज करने वाले पहाड़ को राई बनाने वाले, असम्भव को सम्भव बनाने वाले, सृष्टि के रचयिता, विश्व-कल्याणकारी बाबा बोले:-

 

सभी इस समय अपने श्रेष्ठ स्वमान के सिंहासन पर स्थित हो? श्रेष्ठ स्वमान का रूप जानते हो? इस समय विश्व रचयिता की डायरेक्ट  रचना, पहली रचना, सर्वश्रेष्ठ रचना और रचयिता के बालक सो मालिक’, जो बापदादा के नूरे रत्न हो, दिल तख्त नशीन हो, मस्तक की मणियाँ हो और बापदादा के कर्त्तव्य में मददगार हो और जो विश्व-कल्याणकारी, विश्व के आधारमूर्त्त, विश्व के आगे श्रेष्ठ उदाहरण रूप में हो, क्या ऐसे सच्चे स्वमान स्मृति में रहते हैं? सदा स्वमान के सिंहासन पर स्थित रहते हो? या सिंहासन पर टिक नहीं पाते हो? नाम ही है सिंहासन। इसका अर्थ क्या हुआ? इस पर कौन स्थित हो सकता है? सर्व शक्ति सम्पन्न ही इस आसन पर अर्थात् स्थिति में स्थित हो सकता है। सिंह अर्थात् शेर या शेरनी। अगर सिंह नहीं बने हो तो आसन पर स्थित नहीं हो सकते हो। सिंहासन किस के लिए है? जो सर्वशक्तिमान् की पहली रचना है। पहली रचना में रचयिता के समान सर्व-शक्तियाँ स्वरूप में दिखाई देती हैं? पहली रचना कि विशेषता जो इस समय है क्या उसको जानते हो? जिस विशेषता के कारण विश्व रचयिता के भी मालिक बनते हो, बाप से भी विशेष पूज्य योग्य बनते हो, बाप भी ऐसी रचना का गुणगान करते हैं, और वन्दना करते हैं, वह कौन-सी विशेषता है? बाप का गायन आत्मायें ही करती हैं लेकिन ऐसी सर्वश्रेष्ठ आत्माओं का गायन स्वयं सर्वशक्तिवान् करते हैं अर्थात् परमात्मा द्वारा आत्माओं का गायन होता है। स्वयं बाप ऐसी आत्माओं का हर रोज बार-बार स्मरण करते हैं। ऐसी विशेष आत्माओं की मुख्य विशेषता क्या है जो ऐसे श्रेष्ठ बने हो? अपनी उस विशेषता को जानते हो? अवश्य ही बाप से भी कोई विशेषता आपकी ज्यादा है। उसको जानते हो? किस बात में बाप से भी आगे हो? वह विशेषता सुनाओ। बापदादा से किस बात में आगे हो? अष्ट रत्नों में सिर्फ शक्तियाँ हैं वा पाण्डव भी आ सकते हैं। जब भाई-भाई हैं तो आत्मिक रूप की स्थिति में स्थित हुई आत्मा अष्ट रत्न बन सकते हैं? इसमें शक्ति अथवा पाण्डवों की बात नहीं है, अपितु आत्मिक स्थिति की बात है। दोनों आ सकते हैं। पाण्डवों की सीट भी आठ में है। अच्छा फर्स्ट विशेषता क्या हुई जो आत्माओं को बाप का भी मालिक बनाती है? वो बाप से भी श्रेष्ठ बनते हैं। यह विशेषता है बाप को प्रत्यक्ष करना, बाप के सम्बन्ध में समीप लाना, बाप के वारिस बनाना। यह आप पहली रचना का कर्त्तव्य है। बाप बच्चों द्वारा ही प्रत्यक्ष होते हैं। निराकार बाप और साकार ब्रह्मा बाप दोनों को, अपने निश्चय, अपने ब्राह्मण जीवन के आधार से, अपने अनुभव के आधार से, विश्व के आगे प्रख्यात किया तब विशेष मानते हैं। तो बाप को प्रख्यात करने की विशेषता बच्चों की है, इसलिए बाप रिटर्न में विश्व के आगे, स्वयं गुप्त रूप में रह, शक्ति सेना व पाण्डव सेना को प्रख्यात करते हैं। तो यह विशेषता बच्चों की है इसलिए बाप से भी ज्यादा पूज्य बने हो। ऐसी अपनी विशेषता स्मृति में रहती है या भूल जाते हो? संगमयुगी ब्राह्मणों की विशेषता सदा स्मृति स्वरूप की है। तो ब्राह्मणपन की विशेषता अनुभव करते हो? शूद्रपन अर्थात् विस्मृत स्वरूप। ब्राह्मण बन कर भी फिर विस्मृति में आये तो शूद्र और ब्राह्मण में अन्तर ही क्या हुआ? मरजीवा जन्म की अलौकिकता क्या हुई? विस्मृति लौकिकता है अर्थात् वह इस लोक की रीति-रस्म है। ब्राह्मण की रस्म सदा स्मृति स्वरूप है। कब भी अपने लौकिक कुल की रीति-रस्म व मर्यादायें किसको भूलती हैं क्या? ब्राह्मण कुल की रीति-रस्म वा मर्यादायें ब्राह्मण ही भूल जायें यह सम्भव (आसान) है क्या? ब्राह्मणों के रीति-रस्म अलौकिक हैं। इस रीति-रस्म में चलना साधारण और सहज बात है क्योंकि जब हैं ही ब्राह्मण। दूसरे कुल की रीति-रस्म अपनाना मुश्किल हो सकती है। लेकिन यह तो आपके आदि की रीति-रस्म है। नेचरल जीवन की बात है। ब्राह्मण जन्म के संस्कारों की बात है, इसमें मुश्किल क्या है? ब्राह्मण जीवन का संस्कार और स्वभाव कौनसा है? सर्व दिव्य गुण ही ब्राह्मणों का स्वभाव है, जिसको दिव्य स्वभाव कहते हैं तो दिव्य गुण ब्राह्मणों की स्वाभाविक चीज़ है अर्थात् ब्राह्मण-जीवन का स्वभाव सर्व दिव्यगुण हैं। गम्भीरता, रमणीकता, हर्षितमुखता, सहनशीलता, सन्तोष, यह ब्राह्मणों के जीवन का स्वभाव है और संस्कार है-विश्व के सेवाधारी। जब ब्राह्मण जीवन का स्वभाव और संस्कार यही है तो कोई भी गुण को धारण करना व सेवाधारी बनने के लिये स्वयं का अर्थात् मैं पन का त्याग व निरन्तर तपस्वी स्वरूप व स्मृति स्वरूप बनना सहज और साधारण बात हुई ना? अगर कोई का, कोई भी जन्म का संस्कार होता है वा जन्म से स्वभाव होता है उसको परिवर्तन करना मुश्किल होता है, या चलना सहज होता है? जैसे आप लोग भी कमजोरी-वश बहाना देते हो कि यह मेरा स्वभाव व संस्कार है, इसी प्रकार ब्राह्मण जीवन का जो आदि स्वभाव और संस्कार है उसमें ब्राह्मणों का चलना सहज होगा या मुश्किल होगा? यदि कोई कहे कि इन दिव्य गुणों के संस्कारों के विपरीत कोई कार्य करो, तब यह ब्राह्मणों के लिये मुश्किल होना चाहिए। अभी प्रैक्टिकल में क्या है? शूद्रपन के संस्कार और स्वभाव नेचरल रूप से हैं या ब्राह्मणपन के स्वभाव और संस्कार नेचरल रूप में हैं? इसमें तो पुरूषार्थ करने की आवश्यकता नहीं जबकि जीवन के निजी संस्कार है। लेकिन जैसे पहले सुनाया कि अपने स्वमान के सिंहासन पर स्थित नहीं हो पाते, अपना तख्त छोड़ देते हो, और अपना बना हुआ भाग्य भूल जाते हो। इसीलिये निजी स्वभाव और संस्कार मुश्किल अनुभव करते हो। समझा?

 

बाप का इस बात पर एक गायन है जो बच्चों का भी है। ‘‘मुश्किल को सहज करने वाले।’’ तो जब बाप का गायन है मुश्किल को सहज करने वाले, पहाड़ को राई बनाने वाले व रूई बनाने वाले। रूई (कपास) कितनी हल्की होती है और स्वच्छ होती है और पहाड़ कितना मुश्किल और भारी होता है। कहां पहाड़, कहाँ रूई वा राई। तो जो बाप का गायन है वह आपका नहीं है? जो मुश्किल को सहज बनाने वाले ब्राह्मण, उनको कोई भी बात मुश्किल अनुभव हो, यह हो सकता है? तो अपने स्वमान में स्थित रह अपनी विशेषता को हर समय स्मृति में रखो। विशेष आत्मायें हर संकल्प और हर कार्य विशेष करेंगी अर्थात् श्रेष्ठ करेंगी।

 

अच्छा, ऐसे सदा मुश्किल को सहज करने वाले, सदा स्मृति स्वरूप, बाप के समान हर संकल्प, हर सेकेण्ड विश्व-कल्याण के विशेष कर्त्तव्य में लगाने वाले, विश्व-कल्याणकारी और बापदादा के दिल-तख्तनशीन श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।

 

 

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QUIZ QUESTIONS

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 प्रश्न 1 :-  बापदादा ने प्लान में सफलता लाने के लिए क्या - क्या सुझाव दिए और वर्तमान प्लान में क्या कमी है ?

 प्रश्न 2 :- बापदादा ने बच्चों की कौन सी विशेषता बताई जिससे बच्चे बाप से श्रेष्ठ बन जाते है ?

 प्रश्न 3 :- स्वमान का सिंहासन पर कौन स्थित हो सकता है ? और बापदादा इसका अर्थ क्या बताया ?

 प्रश्न 4 :- बापदादा ने प्लान को प्रेक्टिकल में लाने के लिए क्या क्या युक्तियाँ बताई जिस से महान अंतर आ जायेगा?

 प्रश्न 5 :- बापदादा ने ब्राह्मण जन्म की रीति, रस्म, स्वभाव , संस्कार की क्या - क्या विशेषतायें बताई ?

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

( मुख्य , विशेषतायें, स्पीड, सन्तुष्ट, यात्रा, याद, एकांत, प्लान, पुरुषार्थ, अमृतवेले, अनुभव, संस्कार, निजी )

 

 1   इसीलिये ______ स्वभाव और संस्कार______ मुश्किल ______ करते हो?

 2  वैसे ही ______ अपने ______ की उन्नति का ______ सैट करना है।

 3  क्या ______में रह, ______ की ______ बढ़ाने का प्लान बनाते हो?

 4  क्या अपनी______  से ______ हो?

 5  यह ______ चार  ______ क्या अपने में अनुभव  करते हो?

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-

 

 1  :- विशेष आत्मायें हर संकल्प और हर कार्य साधारण अर्थात निम्न करेंगी।

 2  :- अपने स्वमान में स्थित रह अपनी विशेषता को हर समय विस्मृत में रखो। ।

 3  :- रूई (कपास) कितनी भारी होती है और स्वच्छ होती है और पहाड़ कितना मुश्किल और हल्का होता है।।

 4  :- बाप का इस बात पर एक गायन है जो बच्चों का भी है। ‘‘सहज को मुश्किल " करने वाले।

 5   :- चारों ही जो सब्जेक्ट्स हैं वह जीवन में नेचरल (Natural) रूप में हैं कि अभी उतराई चढ़ाई का नेचरल रूप है?

 

 

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QUIZ ANSWERS

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 प्रश्न 1 :- बापदादा ने प्लान में सफलता लाने के लिए क्या - क्या सुझाव दिए और वर्तमान प्लान में क्या कमी है?

उत्तर 1 :- बाबा ने सफलता के लिए कहा :-

            यह दोनों रिजल्ट सामने लानी चाहिये और अगर देखते हो कि जो आज का लक्ष्य रखा था उस में उतनी सफलता नहीं हुई वा जितना प्लान बनाया उतना प्रैक्टिकल नहीं हो पाया तो उसको छोड़ नहीं देना चाहिये।

            जैसे स्थूल कार्य में लक्ष्य रखने से अगर किसी कारण वश वह अधूरा हो जाता है तो उसको सम्पन्न करने का प्रयत्न करते हो न? वैसे ही रोज के इस कार्य को लक्ष्य रखते हुए सम्पन्न करना चाहिए।

             एक बात में विशेष अटेन्शन होने से विशेष बल मिलेगा। कोई भी कार्य करते हुए स्मृति आयेगी और स्मृति-स्वरूप भी हो ही जायेंगे।

             जैसे एक्स्टर्नल नॉलेज (External Knowledge) में भी अगर कोई पाठ पक्का किया जाता है तो जैसे उसको दोबारा, तीसरी बार, चौथी बार पक्का किया जाता है और उसे छोड़ नहीं दिया जाता, तो ऐसे ही इसमें भी अपना लक्ष्य रख कर एक-एक बात को पूरा करते जाओ।

            इसमें अलबेलापन नहीं चाहिए। सोच लिया, प्लान बना लिया, लेकिन प्रैक्टिकल करने में यदि कोई परिस्थिति सामने आये तो संकल्प की दृढ़ता होगी कि करना ही है तो उतनी ही दृढ़ता सम्पूर्णता के समीप लावेगी।

     वर्तमान समय प्लान भी है लेकिन इसमें कमी क्या है? दृढ़ता की। दृढ़ संकल्प नहीं करते हो। विशेष रूप में अटेन्शन देकर दिखावे की वह कमजोरी है। महारथियों को अर्थात् सर्विसएबल श्रेष्ठ आत्माओं को सर्विस के साथ सैल्फ-सर्विस (Self-Service) का भी अटेन्शन चाहिए।

 

 प्रश्न 2 :- बापदादा ने बच्चों की कौन सी विशेषता बताई जिससे बच्चे बाप से श्रेष्ठ बन जाते है ?

उत्तर 2 :- बाबा कहते है कि :-

          वो बाप से भी श्रेष्ठ बनते हैं। यह विशेषता है बाप को प्रत्यक्ष करना, बाप के सम्बन्ध में समीप लाना, बाप के वारिस बनाना।

           यह आप पहली रचना का कर्त्तव्य है। बाप बच्चों द्वारा ही प्रत्यक्ष होते हैं। निराकार बाप और साकार ब्रह्मा बाप दोनों को, अपने निश्चय, अपने ब्राह्मण जीवन के आधार से, अपने अनुभव के आधार से, विश्व के आगे प्रख्यात किया तब विशेष मानते हैं।

          तो बाप को प्रख्यात करने की विशेषता बच्चों की है, इसलिए बाप रिटर्न में विश्व के आगे, स्वयं गुप्त रूप में रह, शक्ति सेना व पाण्डव सेना को प्रख्यात करते हैं। तो यह विशेषता बच्चों की है इसलिए बाप से भी ज्यादा पूज्य बने हो।

 

 प्रश्न 3 :- स्वमान के सिंहासन पर कौन स्थित हो सकता है ? और बापदादा इसका अर्थ क्या बताया ?

उत्तर 3 :-  सर्वशक्ति सम्पन्न ही इस आसन पर अर्थात स्थिति में स्थित हो सकता है।  सिंह अर्थात् शेर या शेरनी। अगर सिंह नहीं बने हो तो आसन पर स्थित नहीं हो सकते हो। सिंहासन किस के लिए है? जो सर्वशक्तिमान् की पहली रचना है।

 

 प्रश्न 4 :- बापदादा ने प्लान को प्रेक्टिकल में लाने के लिए क्या क्या युक्तियाँ बताई जिस से महान अंतर आ जायेगा?

उत्तर 4 :- बापदादा ने महान अंतर के लिए युक्तियाँ बताई: -

         अगर रोज एक विशेषता को सामने रखते हुए अपने प्लान को प्रैक्टिकल में लाओ तो थोड़े ही दिनों में अपने में महान् अन्तर महसूस होगा।

         इस विशेष वरदान भूमि में अपनी उन्नति के प्रति भी कुछ प्लान बनाते हो वा सिर्फ सर्विस करके, मीटिंग कर के चले जाते हो। 

          अपनी उन्नति के लिए रात का समय तो सभी को है। जब विशेष सर्विस प्लान प्रैक्टिकल में लाते हो तो क्या उन दिनों में निद्राजीत नहीं बनते हो? अपनी उन्नति के प्रति अगर निद्रा का भी त्याग किया तो क्या समय नहीं मिल सकता है?      

          यहाँ तो और कार्य ही क्या है? जैसे और प्लान्स बनाते हो वैसे अपनी उन्नति के प्रति भी कोई विशेष प्लान प्रैक्टिकल में लाना चाहिए।

          यहाँ जो भी उन्नति का साधन प्रैक्टिकल में लायेंगे उसमें सभी तरफ से सहयोग की लिफ्ट मिलेगी। 

          जो लक्ष्य रखते हो इस प्रमाण प्रैक्टिकल में लक्षण नहीं हो पाते, जब कि कारण को भी और निवारण को भी समझते हो?

 

 प्रश्न 5 :-बापदादा ने ब्राह्मण जन्म की रीति , रस्म, स्वभाव , संस्कार की क्या - क्या विशेषतायें बताई ?

 उत्तर 5  :- बापदादा ने बताया :-

         तो ब्राह्मणपन की विशेषता अनुभव करते हो? शूद्रपन अर्थात् विस्मृत स्वरूप।

        .❷ ब्राह्मण बन कर भी फिर विस्मृति में आये तो शूद्र और ब्राह्मण में अन्तर ही क्या हुआ?

         ❸ मरजीवा जन्म की अलौकिकता क्या हुई? विस्मृति लौकिकता है अर्थात् वह इस लोक की रीति-रस्म है। ब्राह्मण की रस्म सदा स्मृति स्वरूप है। कब भी अपने लौकिक कुल की रीति-रस्म व मर्यादायें किसको भूलती हैं क्या? ब्राह्मण कुल की रीति-रस्म वा मर्यादायें ब्राह्मण ही भूल जायें यह सम्भव (आसान) है क्या?

         ब्राह्मणों के रीति-रस्म अलौकिक हैं। इस रीति-रस्म में चलना साधारण और सहज बात है क्योंकि जब हैं ही ब्राह्मण।

          दूसरे कुल की रीति-रस्म अपनाना मुश्किल हो सकती है। लेकिन यह तो आपके आदि की रीति-रस्म है। नेचरल जीवन की बात है।

          ब्राह्मण जन्म के संस्कारों की बात है, इसमें मुश्किल क्या है? ब्राह्मण जीवन का संस्कार और स्वभाव कौनसा है? सर्व दिव्य गुण ही ब्राह्मणों का स्वभाव है, जिसको दिव्य स्वभाव कहते हैं तो दिव्य गुण ब्राह्मणों की स्वाभाविक चीज़ है अर्थात् ब्राह्मण-जीवन का स्वभाव सर्व दिव्यगुण ।

 

      FILL IN THE BLANKS:-    

 ( मुख्य , विशेषतायें, स्पीड, सन्तुष्ट, यात्रा, याद, एकांत, प्लान, पुरुषार्थ, अमृत वेले, अनुभव, संस्कार, निजी )

 

 1   इसीलिये ______ स्वभाव और ______ मुश्किल ______ करते हो?

 निजी /  संस्कार /  अनुभव

 

 2  वैसे ही ______ अपने ______ की उन्नति का ______ सैट करना है।

अमृतवेले /  पुरुषार्थ /  प्लान

 

 3  क्या ______में रह, ______ की ______ बढ़ाने का प्लान बनाते हो?

एकांत /  याद /  यात्रा

 

 4  क्या अपनी______  से ______ हो?

स्पीड /  सन्तुष्ट

 

 5  यह ______ चार  ______ क्या अपने में अनुभव  करते हो?

 मुख्य /  विशेषतायें

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-

 

 1  :- विशेष आत्मायें हर संकल्प और हर कार्य साधारण करेगी अर्थात निम्न करेंगी।

 विशेष आत्मायें हर संकल्प और हर कार्य विशेष करेंगी अर्थात् श्रेष्ठ करेंगी।

 

2  :- अपने स्वमान में स्थित रह अपनी विशेषता को हर समय विस्मृत में रखो।

अपने स्वमान में स्थित रह अपनी विशेषता को हर समय स्मृति में रखो।

 

 3  :- रूई (कपास) कितनी भारी होती है और स्वच्छ होती है और पहाड़ कितना मुश्किल और हल्का होता है।

रूई (कपास) कितनी हल्की होती है और स्वच्छ होती है और पहाड़ कितना मुश्किल और भारी होता है।

 

 4  :- बाप का इस बात पर एक गायन है जो बच्चों का भी है। ‘‘सहज को मुश्किल " करने वाले।

 बाप का इस बात पर एक गायन है जो बच्चों का भी है। ‘‘मुश्किल को सहज" करने वाले

 

5   :- चारों ही जो सब्जेक्ट्स हैं वह जीवन में नेचरल (Natural) रूप में हैं कि अभी उतराई चढ़ाई का नेचरल रूप है?