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AVYAKT MURLI

06 / 06 / 73

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6.6.73   ओम शांति   अव्यक्त बापदादा

मधुबन

 

समानता और समीपता

 

जीवन की नैया को पार लगाने वालेसिद्ध स्वरूपलाईटमाइट रूप दिलाराम बाप बोले-

आज बापदादा किस को देख रहे हैंजैसे बाप के भिन्न-भिन्न कर्त्तव्यों के कारण अनेक नाम गाये हुए हैं वैसे ही बच्चों के अनेक नाम गाये हुए हैं। आज किस रूप में देख रहे हैं यह जान सकते होसंकल्प की परख कर सकते होआज बापदादा अपनी मणियों को देख रहे हैं। कोई मस्तक मणि हैंकोई गले की मणि हैं और कोई हृदय मणि हैं। तीनों प्रकार की मणियों को देख हर्षित हो रहे हैं। आप सभी भी अपने को मणि समझते हो नायह मणियों का संगठन है। मणियों में श्रेष्ठ मणि कौन हैयह भी हरेक अपने को जान सकते हैं कि मैं फस्ट नम्बर की मणि हूँ या सैकेण्ड  व थर्ड नम्बर की मणि हूँ। फर्स्ट नम्बर की विशेषता क्या है उसको जानते होफर्स्ट नम्बर है मस्तक मणि?उस मस्तक मणि की दो विशेषतायें हैं। स्वयं के स्वरूपों की विशेषतायें तो सहज जान सकते हो। अब सिर्फ जानना ही नहीं है बल्कि यह देखो कि उन विशेषताओं के स्वरूप कहाँ तक बने होजिनका जो स्वरूप होता है उनको वर्णन करना सहज होता है। ‘‘मैं कौन हूँकैसी हूँवह भी तो वर्णन करना है। सिर्फ दो विशेषतायें पूछ रहे हैं। हैं तो बहुत लेकिन सिर्फ दो ही पूछ रहे हैं। (भिन्न-भिन्न विचार निकले) मस्तक मणि की दो विशेषतायें ये हैं - एक समानता और दूसरी समीपता। बापदादा के समान। इसमें आप सभी की बताई हुई बातें आ जाती हैं। बापदादा लाइट और माइट रूप हैं नातो बापसमान अर्थात् लाइट और माइट स्वरूप हो ही गये। बाप सर्व शक्तिवान् है तो बाप समान सर्वशक्तियाँ सम्पन्न हो ही गये। बाप सदा सिद्धि स्वरूप हैं अर्थात् सिद्धि को प्राप्त हैं ही। ऐसे बाप-समान मस्तक मणि भी सर्वसिद्धि रूप हैं। जो बाप की महिमा है वह सर्व महिमा के योग्य अर्थात् सर्वयोग्यताओं का सम्पन्न स्वरूप हैं। दूसरी बात समीपता। बापदादा के भी समीपलेकिन बापदादा के साथ ही सर्व विश्व की आत्माओं के संस्कार व स्वभाव के भी समीप हो। किसी भी प्रकार के संस्कार वाला हो लेकिन बापदादा के समीप होने के कारणपरखने की पॉवर होने के कारणचुम्बक के समान कितनी भी दूर वाली आत्मा को बापदादा के समीप लाने वाले हैं। बाप के गुणोंबाप के कर्त्तव्यों के समीप लाने वाले हैं। समीप अर्थात् चुम्बक स्वरूप होगा। चुम्बक समान और चुम्बक के समीप होने के कारण सर्व-शक्तियों के आधार से विश्व के उद्धार करने के निमित्त बनते हैं। तो समीप आत्मायें विश्व का आधार और विश्व का उद्धार करने वाली हैं - वह मस्तकमणि हैं। ऐसे मस्तक मणि हर संकल्प मेंहर कर्म मेंअपने को विश्व का आधार और उद्धारमूर्त्त समझ कर हर कदम उठाते हैं अर्थात् अभी से ही वह ताज तख्तनशीन होते हैं। भविष्य का ताज और तख्त इस ताज और तख्त के आगे कुछ भी नहीं है। ऐसी महान् आत्मायें ही ऐसे महान् ताज और तख्त के अधिकारी होती हैं। सदा ताज और तख्तधारी बन कर चलने वाली होती हैं। कभी ताज उतार देंकभी तख्त छोड़ दें ऐसे नहींहर समय ताज और तख्तधारी। तो ताज और तख्त को जानते हो नविश्व के महाराजन बनने से भी अभी का ताज और तख्त सर्वश्रेष्ठ है। अगर संगमयुग के राजा नहीं बने तो भविष्य के भी नहीं बन सकते। तो ऐसा समझें कि यह सभी महाराजाओं की सभा लगी हुई हैभविष्य तख्त पर तो नम्बरवार एक बैठ सकेगावहाँ एक के बजाय दो नहीं बैठ सकते। युगल मूर्त्त तो एक ही युगल हो गया। लेकिन संगम का तख्त इतना बड़ा है जो जितने भी चाहें बैठ सकते हैं। स्थान है लेकिन स्थिति चाहिए। बिना स्थिति के तख्त पर स्थान नहीं मिल सकता। तो सभी ने अपना-अपना स्थान ले लिया है कि अभी बुकिंग कर रहे होअगर ताजधारी न होंगे तो तख्तनशीन भी नहीं बन सकते। इस तख्त की कन्डीशन बहुत कड़ी है। है बहुत बड़ा लेकिन तख्त जितना बड़ा है उसको उतनी कन्डीशन भी बड़ी है।

मैं विश्व-कल्याणकारी हूँ। यह जिम्मेवारी का ताज धारण कर लिया हैहर कार्य में विश्व-कल्याणकारी बन कार्य करते हो या अपने ही कल्याण में लगे हुए होजैसे प्रवृति मार्ग वाले कहते हैं - हम तो अपनी प्रवृति में ही लगे हुए हैं वैसे आप लोग भी अपने ही पुरूषार्थ की प्रवृत्ति में तो नहीं मस्त हो। इतना ही जमा करते हो जो स्वयं को खिला सको व स्वयं के लिए भी बाप से आशीर्वाद या इच्छा रखते हो। मदद करोहिम्मत दो इसी में ही लगे हुए हो। जो अभी तक स्वयं के प्रति लेने में व करने में लगा हुआ है वह विश्व को देने वाला दाता कब बनेगाक्या अन्त मेंक्या उस समय हाई जम्प दे सकेंगेलेकिन नहीं। बहुत समय के संस्कार वालों को ही बहुत समय का राज्यभाग्य प्राप्त होगा। यह सलोगन सदा याद रखना कि - ‘‘अभी नहीं तो कभी नहीं।’’ ऐसे नहीं अन्त समय जब होगा तब कर लेंगे। ‘न जब न तब लेकिन अब।’ तो ऐसे ताज व तख्तधारी बनना है। कौन-सी तख्तनशीनतख्तनशीन तो अपने तख्त को जानते हो नाबाप के दिल-तख्तनशीन। इस दिल-तख्त की यादगार निशानी देखी हैदिल ही तख्त है। इसकी यादगार निशानी कौन-सी हैजहाँ बैठे हो वही यादगार है। दिलवाला है ना। यह दिलवाला ही दिल लेने और देने वालों का यादगार है।

दिल-तख्तनशीन कौन हो सकता हैजो दिलाराम को दिल देने वाला और बाप का दिल लेने वाला है। सिर्फ देना नहींजिस को लेना और देना दोनों आता है वह है दिल-तख्तनशीन। बाप का दिल कैसे लेंगेकोई की भी दिल कैसे ली जाती हैजो उनके दिल का श्रेष्ठ संकल्प होउस संकल्प को पूरा करना अर्थात् दिल लेना। तो बाप का दिल लेना अर्थात् विश्व-कल्याणकारी बनना और विश्व के प्रति सर्वशक्तियों का दाता बनना। फिर लेना भी आता है या सिर्फ देकर ही खुश हो गयेदेना सहज है वा लेना सहज हैकौनसा सस्ता सौदा हैवास्तव में अगर देना आता है तो लेना ऑटोमेटिकली आ जाता है। दिल दिया बापदादा कोतो जिसको दे दिया उसकी दिल हो गई नजो चीज दे देते हैं तो वह चीज किसकी रहती हैं-आपकी या जिसको दी उनकीदे तो दी नाफिर वापिस भी लेते रहते हो। कुछ दिल का टुकड़ा रखते रहते हो। अभी तक भी ऐसा है क्यादिल देने वाले किसी और को दिल बेच देंअमानत को कोई बेच देतो वह अच्छा नहीं होता है न। तो जब दिल दे दी तो दिल हो गई दिला-राम की। जो उनके दिल का संकल्प वही आपके दिल का संकल्प होगा या फर्क होगादिल लेना क्या हैजो बाप का संकल्प वह अपना संकल्प। जब दिल ही उनका हो गया तो संकल्प भी एक ही होगाफर्क नहीं होगा। तो देने वाले को लेना भी आयेगा या मुश्किल लगेगाअगर मुश्किल लगता है तो इसका अर्थ है कि दिल ही नहीं है दिल देने की। अपने पास कोई टुकड़ा रखा है। जरा भी टुकड़ा छिपा कर न रखना। जिसको देना व लेना दोनों ही आये वह होशियार हुआ ना। इस पर एक कहानी भी है। बहुत प्रसिद्ध कहानी है। अपनी कहानी भूल गयी हैजो अपने दिल का टुकड़ा छिपा कर रखते हैं उसकी कहानी है। सत्यनारायण की कथा है जिसको अमूल्य चीज़ समझ कर छिपाया वह कखपन हो गई। यहाँ भी सत्य बाप जो सत्यनारायण बनाने वाला है उनसे अगर जरा भी दिल का टुकड़ा छिपा कर रखा तो इस जीवन की नैया का क्या हाल होगा। कखपन हो जायेगा अर्थात् कुछ भी प्राप्ति नहीं होगी। हाथ खाली रह जायेगा। एक पैसे की चोरी करने वाले को भी चोर ही कहेंगे नाअगर कोई हजार की चोरी करे और कोई एक पैसे की चोरी करेकहेंगे तो दोनों को चोर नाहल्का चोर बार-बार चोरी करता हैबड़ा चोर एक ही बार करता है। तो इसलिये दिल को दिया तो दिया। ऐसे दिल देने वाले सदा मस्तक मणि के समान लाइट हाउसमाइट हाउस  होते हैं। यहाँ सिर्फ लाइट हाउस नहीं बनना हैलेकिन साथ-साथ माइट हाउस भी बनना है। ऐसे को ही मस्तक मणि कहा जाता है।

अभी बताओ मस्तक मणि होजैसे मस्तक स्मृति का स्थान है वैसे मस्तक मणि की निशानी सदा स्मृति स्वरूप हो। मस्तक मणि बहुत अच्छा श्रृंगार होता है। अगर मस्तक पर मणि चमव्ो तो कितना अच्छा श्रृंगार होगामस्तक मणि सर्वश्रेष्ठ श्रृंगार है। श्रृंगार की तरफ स्वत: ही सभी की दृष्टि जाती है। ऐसे मस्तकमणियों के ऊपर विश्व के सर्व आत्माओं की नजर अर्थात् आकर्षण स्वत: ही होती है। ऐसे मस्तकमणि होअगर अंधियारे के बीच मणि को रख दो तो क्या दिखाई देगालाइट देने का भी कार्य करेगी। तो इस विश्व की अंधियारी रात में चारों ओर के अंधकार के बीच ऐसे मस्तकमणि क्या कर्त्तव्य करेंगीमार्ग दिखाने कामंजिल पर पहुँचाने का। हर एक को लक्ष्य तक पहुँचाने का। तो ऐसे मस्तकमणि होया कभी-कभी खुद ही भटक जाते होजो स्वयं भटका है क्या वह दूसरों को मंजिल तक पहुँचा सकेगाऐसे मस्तक मणि कभी भी व्यर्थ संकल्पों के भिन्न-भिन्न प्रकार के अनेक छोटी-छोटी गलियों में भटकेंगे नहीं। यह भी अनेक प्रकार की गलियाँ है जिसमें जाने से मंजिल से भटक जाते हो। तो गलियों में अभी घूमते तो नहीं रहते हो?

जब एक बाप की मत और एक ही लगन में मग्न होंगे तो क्या एक की मत पर चलने वाले एक-रस नहीं होंगेअगर एक-रस नहीं हैं तो अवश्य एक मत में दूसरी मत मिक्स करते हो। अगर एक मत हो तो एकरस जरूर हो। यह पुराने संस्कार भी यदि मिक्स करते हो तो वह एक की मत नहीं। यह आत्मा की मतआत्मा के अपने कर्मों के बने हुए संस्कार हैंपरमात्म ज्ञान द्वारा बने हुए संस्कार नहीं। तो अगर अपने पुराने संस्कार मिक्स हो जाते हैं तो अनेक गलियों में भटक जायेंगेएकरस नहीं होंगे। एक मंजिल पर सदा स्थित नहीं होंगे। तो भटकना बन्द होना चाहिएन कि अभी तक भटकते रहेंगे। माया के भिन्न-भिन्न आकर्षण में भटकना भी पूरा हुआ। अब फिर यह गलियाँ कहाँ से निकाली है व्यर्थ संकल्पों कीअपने ही स्वभाव की इन गलियों में भटकना बन्द होना चाहिए। जैसे आप लोग सेमीनार करते हो तो अन्त में प्रस्ताव पास करते हो नवैसे यह भी प्रस्ताव पास करो कि भटकना बन्द हो। यह भी ब्राह्मणों का सेमीनार है न। मेला अर्थात् सेमीनार। जैसे सेमीनार से बहुत प्वाइण्टस निकालते हो और पास कराने का प्रयत्न करते हो। वह गवर्नमेन्ट तो पास करती नहीं लेकिन यह पाण्डव गवर्नमेन्ट पास कर लेंगी। तो आपस में मिलकर यह पास कर दिखाओ। सिर्फ ऐसे ही हाथ उठा लेना तो सहज है। इस अंगुली से कुछ नहीं होता। यह है दृढ़ संकल्प की अंगुली। जब तक यह अंगुली नहीं उठायी तब तक पास नहीं हो सकता। समझा?

ऐसे एक सेकेण्ड में दृढ़ संकल्प रूपी अंगुली देने वाले महावीर और महावीरनियाँसंकल्प और कर्म में समान रहने वाली श्रेष्ठ आत्माओं हो नऐसे सदा दिल तख्त नशीन और विश्व कल्याणकारी के स्मृति रूपताजत- ख्तधारी बच्चों को याद-प्यार और नमस्ते।

इस मुरली का सार

मस्तक मणि की मुख्य दो विशेषतायें है-समानता और समीपता।’ समानता अर्थात् बाप समान बनना अर्थात् बाप की जो भी योग्यतायें हैं वह हमारी भी हों। समीपता अर्थात् बापदादा के समीप होना व विश्व की आत्माओं के संस्कार व स्वभाव के समीप होना। समीप होना माना चुम्बक स्वरूप होना। स्वयं को ताज और तख्तधारी बनाकर चलना है। ऐसे नहीं कि कब ताज उतार देंतख्त छोड़ दें। विश्व के महाराजन् बनने से पहले अभी का ताज व तख्त लेना सर्वश्रेष्ठ है। यदि संगमयुग के राजा नहीं तो भविष्य के राजा भी नहीं बन सकते। भविष्य तख्त पर तो केवल एक बैठ सकेगा लेकिन संगमयुग पर जितने भी चाहे उतने बैठ सकते हैं। 

 

 

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QUIZ QUESTIONS

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प्रश्न 1 :- मणियों के संगठन में हरेक अपनी चेकिंग कैसे करें, कि मणियों में सर्वश्रेष्ठ कौन है?

 प्रश्न 2 :- अगर सत्य बाप जो सत्यनारायण बनाने वाले हैं, जरा भी टुकड़ा छुपा कर रखा तो क्या होगा?

 प्रश्न 3 :- दिल-तख्तनशीन कौन हो सकता है? किसी के दिल को कैसे जीता जाता है?

 प्रश्न 4 :- मस्तक मणि की अलग-अलग विशेषताओं को विस्तार में बताईये? क्या आप अभी मस्तक मणि हो?

 प्रश्न 5 :- पुराने संस्कारों को मिक्स करने से एकरस और एक की मत क्यों नहीं हो सकती?

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

दिल, गले, महावीर, ताज, श्रेष्ठ, ताज, तख्त, महावीरणियाँ, ताज, मस्तक दिल, तख्तधारी, ह्रदय, तख्तधारी )

 

 1   कोई ______ मणि है, कोई ________  की मणि है और कोई _______ मणि है।

 2   कभी ______ उतार दे, कभी _______ छोड़ दें ऐसे नहीं, हर समय ताज और _______

 3    ________ दिया बापदादा को, तो जिसको दे दिया उसकी _______  हो गयी न?

 4   ऐसे एक सेकण्ड में दृढ़ संकल्प रूपी अंगुली देने वाले ______ और ______ ,संकल्प और कर्म में समान रहने वाली _______ आत्माओं हो न?

 5  स्वयं को _____ और ______ बनाकर चलना है। ऐसे नहीं कि कब उतार दे, तख्त छोड़ दें।

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:- 】 【

 

 1  :-  युगल मूर्त तो एक ही युगल हो गया। लेकिन संगम का तख्त इतना बड़ा है जो जितने भी चाहे बैठ सकते हैं।

 2  :-  जो बाप का संकल्प वो अपना संकल्प।

 3  :-  जिसको देना व लेना दोनों ही नहीं आये वह होशियार हुआ ना।

 4  :-  यहाँ सिर्फ लाइट हाउस नहीं बनना है, लेकिन साथ-साथ माइट हाउस भी बनना है।

 5   :-  यदि संगमयुग के राजा नहीं तो वर्तमान के राजा भी बन सकते हैं।

 

 

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QUIZ ANSWERS

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प्रश्न 1 :- मणियों के संगठन में हरेक अपनी चेकिंग कैसे करें, कि मणियों में सर्वश्रेष्ठ कौन है?

उत्तर 1 :- बाबा कहते हैं कि :-

          यह मणियों का संगठन है। यह भी हरेक अपने को जान सकते हैं कि मैं फर्स्ट नम्बर (First Number) की मणि हूँ या सैकण्ड (Second) व थर्ड (Third) नंबर की मणि हूँ। स्वयं के स्वरूपों की विशेषतायें तो सहज जान सकते हो। "मैं कौन हूँ? कैसी हूँ?"

           फर्स्ट नम्बर की है मस्तक मणि? उस मस्तक मणि की दो विशेषतायें हैं। समानता और समीपता। बापदादा के समान। बापदादा लाइट (Light) और (Might) रूप है ना? बाप सर्व शक्तिवान है अर्थात सिद्धि को प्राप्त हैं ही। जो बाप की महिमा है वह सर्व महिमा के योग्य अर्थात सर्वयोग्यताओं का सम्पन्न स्वरूप है।  

          दूसरी बात समीपता। बापदादा के समीप, लेकिन बापदादा के साथ ही सर्व विश्व की आत्माओं के संस्कार व स्वभाव के भी समीप हो।

          समीप अर्थात चुम्बक स्वरूप होगा। चुम्बक समान और चुम्बक के समीप होने के कारण सर्व-शक्तियों के आधार से विश्व के उद्धार करने के निमित बनते हैं। तो समीप आत्मायें विश्व का आधार और विश्व का उद्धार करने वाली हैं।

 

प्रश्न 2 :-  अगर सत्य बाप जो सत्यनारायण बनाने वाले हैं, जरा भी टुकड़ा छुपा कर रखा तो क्या होगा?

 उत्तर 2 :-  बापदादा कहते हैं :-

           यहाँ भी सत्य बाप जो सत्यनारायण बनाने वाला है उनसे अगर जरा भी दिल का टुकड़ा छिपा कर रखा तो इस जीवन की नैया का क्या हाल होगा।

          कखपन हो जाएगा अर्थात कुछ भी प्राप्ति नहीं होगी। हाथ खाली रह जायेगा।

          एक पैसा की चोरी करने वाले को भी चोर ही कहेंगे ना? अगर कोई हज़ार की चोरी करे और अगर कोई एक पैसा की चोरी करे, कहेंगे तो दोनो को चोर ना? हल्का चोर बार बार चोरी करता है, बड़ा चोर एक ही बार करता है।

 

प्रश्न 3 :-  दिल- तख्तनशीन कौन हो सकता हैं? किसी के दिल को कैसे जीता जाता है?

उत्तर 3 :- बाबा कहते हैं कि :-

           जो दिलाराम को दिल देने वाला और बाप का दिल लेने वाला है। सिर्फ देना नहीं, जिस को लेना और देना दोनों आता है वह है दिल-तख्तनशीन।

           जो उनके दिल का श्रेष्ठ संकल्प हो, उस संकल्प को पूरा करना अर्थात दिल लेना। तो बाप का दिल लेना अर्थात विश्व कल्याणकारी बनना और विश्व के प्रति सर्वशक्तियों का दाता बनना।

          फिर लेना भी आता है या सिर्फ देकर ही खुश हो गये? वास्तव में अगर देना आता है तो लेना ऑटोमैटिकली (Automatically) आ जाता है।

                       

 प्रश्न 4 :- मस्तक मणि की अलग-अलग विशेषताओं को विस्तार में बताईये? क्या आप अभी मस्तक मणि हो?

उत्तर 4 :- बाबा ने मस्तक मणि के बारे में कहा :-

          जैसे मस्तक स्मृति का स्थान है वैसे मस्तक मणि की निशानी सदा स्मृति स्वरूप हो। मस्तक मणि बहुत अच्छा श्रृंगार होता है।

          मस्तक मणि सर्वश्रेष्ठ श्रृंगार है। श्रृंगार की तरफ स्वतः सभी की दृष्टि जाती है। ऐसे मस्तकमणियों के ऊपर विश्व के सर्व आत्माओं की नजर अर्थात आकर्षण स्वतः ही होती है।

          अगर अंधियारे के बीच मणि को रख दो तो क्या दिखाई देगा? लाइट देने का भी कार्य करेगी। मार्ग दिखाने का, मंजिल पर पहुँचाने का। हर एक को लक्ष्य तक पहुँचाने का।

         

 प्रश्न 5 :-  पुराने संस्कारों को मिक्स करने से एकरस और एक की मत क्यों नहीं हो सकते? भटकना किस प्रकार बंद होगा?

उत्तर 5 :- बाबा बता रहे है कि :-

          अगर एकरस नहीं है तो अवश्य एक मत में दूसरी मत मिक्स करते हो। अगर एकमत हो तो एकरस जरूर हो।

          पुराने संस्कार भी यदि मिक्स (Mix) करते हो तो वह एक की मत नहीं। यह आत्मा की मत, आत्मा के अपने कर्मों के बने संस्कार हैं, परमात्मा ज्ञान द्वारा बने हुए संस्कार नहीं।

          तो अगर अपने पुराने संस्कार मिक्स हो जाते हैं तो अनेक गलियों में भटक जायेंगे, एकरस नहीं होंगे।

          माया के भिन्न-भिन्न आकर्षण में भटकना भी पूरा हुआ। अब फिर यह गालियाँ कहाँ से निकली है व्यर्थं संकल्पों की? अपने ही स्वभाव की इन गलियों में भटकना बंद होना चाहिए।

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

दिल, गले, महावीर, ताज, श्रेष्ठ, ताज, तख्त, महावीरणियाँ, ताज, मस्तक, दिल, तख्तधारी, ह्रदय, तख्तधारी  )

 

 1   कोई _______ मणि है, कोई _______ की मणि हैं और कोई ______  मणि हैं।

 मस्तक /  गले /  ह्रदय

 

 2  कभी ______ उतार दें, कभी _______  छोड़ दें ऐसे नहीं, हर समय ताज और _________

ताज /  तख्त /  तख्तधारी

 

 3   _______  दिया बापदादा को, तो जिसको दे दिया उसकी ______ हो गयी न?

 दिल /  दिल

 

 4  ऐसे एक सेकण्ड में दृढ़ संकल्प रूपी अंगुली देने वाले _______ और ______, संकल्प और कर्म में समान रहनी वाली ________ आत्माओं हो न?

 महावीर   महावीरनियाँ /  श्रेष्ठ

 

  स्वयं को _______ और _______ बनाकर चलना है। ऐसे नहीं कि कब ______ उतार दें, तख्त छोड़ दें।

 तख्तधारी /  ताज /  ताज

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-           

 

 1  :-  युगल मूर्त तो एक ही युगल हो गया। लेकिन संगम का तख्त इतना बड़ा है जो जितने भी चाहें बैठ सकते हैं।

                 

 2  जो बाप का संकल्प वह अपना संकल्प। 【✔】

 

 3  :-  जिसको देना लेना दोनों ही नहीं आये वह होशियार हुआ ना।

जिसको देना और लेना दोनो आये वह होशियार हुआ ना।

 

 4  :- यहाँ सिर्फ लाइट हाउस नहीं बनना है, लेकिन साथ-साथ माइट हाउस भी बनना है।

 

 5   :- यदि संगमयुग के राजा नहीं तो वर्तमान के राजा भी बन सकते हैं।

यदि संगमयुग के राजा नहीं तो भविष्य के राजा भी नहीं बन सकते।