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AVYAKT MURLI

13 / 06 / 73

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13-06-73   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

 

रूहानी योद्धा

 

सर्व बंधन मुक्त, त्रिकालदर्शी, सर्वशक्तिवान्, विश्वकल्याणकारी, श्रेष्ठ कर्म सिखाने वाले और श्रेष्ठ जीवन वाले बाबा बाले :-

अपने को रूहानी सेना के महारथी समझते हो? सेना के महारथी किसको कहा जाता है? उनके लक्षण क्या होते हैं? महारथी अर्थात् इस रथ पर सवार, अपने को रथी समझे। मुख्य बात कि अपने को रथी समझ कर इस रथ को चलाने वाले अपने को अनुभव करते हो? अगर युद्ध के मैदान में कोई महारथी अपने रथ अर्थात् सवारी के वश हो जाए तो क्या वह महारथी, विजयी बन सकता है या और ही अपनी सेना के विजयी-रूप बनने की बजाय विघ्न- रूप बन जाएगा। हलचल मचाने के निमित्त बन जाएगा। तो जो भी यहाँ इस रूहानी सेना के योद्धा हो, क्या वही इस रथ के रथी बने हो?

जैसे योद्धे सर्व व्यक्तियों, सर्व-वैभवों का किनारा कर युद्ध और विजय’-इन दो बातों को सिर्फ बुद्धि में रखते हुए अपने लक्ष्य को पूर्ण करने में लगे हुए होते हैं। वैसे ही अपने-आप से पूछो कि इन दो बातों का लक्ष्य है? या और भी कई बातें स्मृति में रहती हैं? ऐसे योद्धे बने हो? कहीं भी रहो लेकिन सदैव यह स्मृति रहे कि हम युद्ध के मैदान पर उपस्थित हुए योद्धे हैं। योद्धे कभी भी आराम पसन्द नहीं होते हैं। योद्धे कभी भी आलस्य और अलबेलेपन की स्थिति में नहीं रहते, योद्धे कभी भी शत्रं के बिना नहीं रहते, सदैव शस्त्रधारी होते हैं, योद्धे कभी भी भय के वशीभूत नहीं होते, निर्भय होते हैं, योद्धे कभी भी सिवाय युद्ध के और कोई बातें बुद्धि में नहीं रखते। सदैव योद्धेपन की वृत्ति और विजयी बनने की स्मृति में रहते हैं। क्या हम सभी भी एक-दूसरे के साथ विजयी रहते हैं? इस दृष्टि से एक-दूसरे को देखते हैं। ऐसे ही रूहानी योद्धों की सदैव दृष्टि में यह रहता है कि हम सभी एक-दूसरे के साथ महावीर हैं, विजयी हैं। हम हर सेकेण्ड हर कदम में युद्ध के मैदान पर उपस्थित हैं। सिर्फ एक ही लगन विजयी बनने की रहती है। सर्व सम्बन्ध वा सर्व प्रकृति के साधनों से अपनी बुद्धि को डिटैच कर दिया है? किनारा कर लिया है? या युद्ध के मैदान में हो लेकिन बुद्धि की तारें, सम्बन्ध वा कोई भी प्रकृति के साधनों में लगी हुई है? अपने को सम्पूर्ण स्वतन्त्र समझते हो? या कोई बात में परतन्त्र भी हो?

सम्पूर्ण स्वतन्त्र अर्थात् जब चाहो इस देह का आधार लो, जब चाहो इस देह के भान से ऐसे न्यारे हो जाओ जो जरा भी यह देह अपनी तरफ खींच न सके। ऐसे अपनी देह के भान अर्थात् देह के लगाव से स्वतन्त्र, अपने कोई भी पुराने स्वभाव से भी स्वतन्त्र, स्वभाव से भी बन्धायमान न हो। अपने संस्कारों से भी स्वतन्त्र। अपने सर्व लौकिक सम्पर्क वा अलौकिक परिवार के सम्पर्क के बन्धनों से भी स्वतन्त्र। ऐसे स्वतन्त्र बने हो? ऐसे को कहा जाता है-सम्पूर्ण स्वतन्त्र। ऐसी स्टेज पर पहुंचे हो वा अभी तक एक छोटी-सी कर्मेन्द्रिय भी अपने बंधन में बाँध लेती है?

अगर छोटी-सी चींटी शेर को अथवा महारथी को हैरान कर दे तो ऐसे महारथी व शेर को क्या कहेंगे? शेर कहेंगे? एक व्यर्थ संकल्प मास्टर सर्वशक्तिमान को हैरान कर दे या एक पुराने 84 जन्मों का जड़जड़ी भूत संस्कार, मास्टर सर्वशक्तिवान, महावीर, विघ्न-विनाशक, त्रिकालदर्शी, स्वद- र्शन चक्रधारी को परेशान कर ले, पुरूषार्थ में कमजोर बना दे, ऐसे मास्टर सर्व- शक्तिवान को क्या कहेंगे? जिस समय इस स्थिति में होते हो उस समय अपने ऊपर आश्चर्य नहीं लगता? यह शब्द निकलना कि मुझे व्यर्थ संकल्प आते हैं वा पुराने संस्कार वा स्वभाव अपने वशीभूत बना लेते हैं वा बाप की याद का अनुभव नहीं है, बाप द्वारा कोई प्राप्ति नहीं है वा छोटे-से विघ्न से घबरा जाते हैं, निरन्तर अति इन्द्रिय सुख वा हर्ष नहीं रहता, खुशी का अनुभव नहीं होता, क्या वह बोल ब्राह्मण कुल भूषण के हैं ऐसे ब्राह्मणों को कौन से ब्राह्मण कहेंगे - नामधारी ब्राह्मण। अगर सच्चे ब्राह्मण कहलाते और यह बोलते तो द्वापर युगी ब्राह्मणों और ऐसे कहलाने वाले ब्राह्मणों में क्या अन्तर है?

वर्तमान समय ब्राह्मण बनने वाली आत्माएं अपने-आप को देखें कि क्या ब्राह्मणपन का पहला लक्षण अपने जीवन में लाया है? ब्राह्मणपन का पहला लक्षण कौन-सा है - और संग तोड़े एक संग जोड़। अगर अपनी कर्मेन्द्रियों की तरफ भी जोड़ है तो क्या यह ब्राह्मणों का पहला लक्षण है? जब पहलेपहले प्रतिज्ञा वा पहला-पहला मरजीवा जन्म का बोल ब्राह्मणों का यही है कि-एक बाप दूसरा न कोई। यही पहली प्रतिज्ञा है। अथवा पहला लक्षण है। तो पहले इस लक्षण वा प्रतिज्ञा को वा पहले बोल को निभाया है या एक कहते हुए भी अनेकों तरफ जुटा हुआ है? तो क्या ऐसा नामधारी ब्राह्मण विजयी कहलायेगा? ब्राह्मणों के लिये इतने बड़े विश्व के अन्दर अपना ही छोटा-सा संसार है, ऐसे छोटे-से संसार में हर कार्य करते ऐसे ब्राह्मण विश्व के जिन भी आत्माओं को देखते हैं उन को सिर्फ एक कल्याण की ही भावना से देखते हैं। सम्बन्ध और लगाव की भावना से नहीं। लेकिन सिर्फ ईश्वरीय सेवा के भाव से। पाँच तत्वों को देखते हुए, प्रकृति को देखते हुए, प्रकृति के वश नहीं होंगे। लेकिन प्रकृति को भी सतोप्रधान बनाने के कर्त्तव्य में स्थित होंगे। जो स्वयं प्रकृति को परिवर्तन करने वाले हैं क्या वह स्वयं प्रकृति के वश होंगे? जो अभी प्रकृति को वश नहीं कर सकते वह भविष्य में सतोप्रधान प्रकृति के सुख को नहीं पा सकते। तो प्रकृति के वश तो नहीं होते हो? यह तो ऐसा होगा जैसे कोई डॉक्टर रोगी को बचाने जाये लेकिन स्वयं रोगी बन जाए। कर्त्तव्य है प्रकृति को परिवर्तन करने का और उसके बजाय प्रकृति के वश हो जाए तो क्या उनको ब्राह्मण कहेंगे? ब्राह्मण तो सभी बने हो न? कोई कहेगा क्या कि मैं ब्राह्मण नहीं हूँ। ब्राह्मण बनना अर्थात् ऐसे लक्षण धारण करना। तो ऐसे लक्षणधारी हो या नामधारी हो? यह अपने आप से पूछेंगे।

ब्राह्मण जन्म की विशेषता क्या है जो और कोई जन्म में नहीं होती? ब्राह्मण जन्म कि विशेषता यह है कि अन्य सर्व जन्म, आत्माओं द्वारा आत्माओं के होते हैं लेकिन एक ही यह ब्राह्मण जन्म है जो परम पिता परमात्मा द्वारा डायरेक्ट जन्म होता है। देवता जन्म भी श्रेष्ठ आत्माओं द्वारा ही होता है। परमात्मा द्वारा नहीं। तो ब्राह्मण-जन्म की विशेषता जो सारे कल्प के अन्य कोई जन्म में नहीं है। ऐसी विशेषता सम्पन्न जन्म है तो उन आत्माओं की भी विशेषता क्या होनी चाहिए? जो बाप के गुण हैं, वही ब्राह्मण आत्माओं के गुण होने चाहिए। वह गुण भी इस ब्राह्मण जन्म के सिवाय और कोई जन्म में नहीं आ सकते। जैसे इस ब्राह्मण जीवन में त्रिकालदर्शी, त्रिनेत्री, ज्ञान स्वरूप बनते हो वैसे और जन्म में बनेंगे क्या? तो जो सिर्फ ब्राह्मण जीवन के गुण हैं यह विशेषताए हैं उसको इस ब्राह्मण जीवन में अनुभव न किया तो फिर कब करेंगे? ब्राह्मण बन और ब्राह्मण जीवन की विशेषता का अनुभव ना किया तो ब्राह्मण बन कर किया क्या?

जैसे अन्य आत्माओं को कहते हो कि परमात्मा की सन्तान हो कर और बाप को नहीं जानते हो तो कौड़ी तुल्य हो। आप ऐसे कहते हो न सभी को? लेकिन कोई हीरे तुल्य जन्म लेकर भी हीरे समान जीवन नहीं बनाते हैं। हीरा हाथ में मिले और उसको पत्थर समझ उसका मूल्य न जाने, ऐसे को क्या कहा जाता है? - ‘महान् समझदार। दूसरा शब्द तो नहीं बोलना चाहिए, उल्टे रूप के महान् समझदार कभी ऐसे तो नहीं बन जाते हो? तो ब्राह्मण जन्म के मूल्य को जानो। साधारण बात नहीं है। बस हम भी ब्राह्मण बन गए। सदैव अपने को चेक करो कि ब्राह्मण जीवन को निभा रहा हूँ? अच्छा।

ऐसे श्रेष्ठ जन्म, श्रेष्ठ कर्म, श्रेष्ठ जीवन, श्रेष्ठ सेवा में सदा चलने वाले श्रेष्ठ आत्माओं, विश्व-कल्याणकारी आत्माओं और सर्व-बन्धनों से सम्पूर्ण स्वतन्त्र आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार, नमस्ते।

इस वाणी का सार

1. जैसे योद्धे सर्व-व्यक्तियों, सर्व वैभवों से किनारा कर केवल दो बातों को बुद्धि में रखते हैं-युद्ध और विजय। वैसे ही अपने-आप से पूछो कि इन दो बातों का लक्ष्य रखा हैं या और भी कई बातें स्मृति में रहती हैं! सदैव याद रखो कि हम हर सेकेण्ड, हर कदम युद्ध के मैदान पर उपस्थित हैं।

2. अगर छोटी-सी चींटी शेर को अथवा महारथी को हैरान कर दे तो ऐसे महारथी व शेर को महारथी कहेंगे? क्या इसी प्रकार अगर एक व्यर्थ संकल्प मास्टर सर्वशक्तिवान को हैरान कर दे या पुरूषार्थ में कमजोर बना दे तो ऐसे को मास्टर सर्वशक्तिवान कहेंगे?

30-06-73   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

बाबा और बच्चे

राजाओं का राजा बनाने वाले, जीवन को श्रेष्ठ बनाने वाले, राजयोग सिखलाने वाले, निरन्तर योगी, सहज योगी और कर्मयोगी बनाने वाले सर्वप्रिय बाबा बोले:-

यह संगठन कौन-सा संगठन है? क्या इस रूहानी पहेली को जानते हो? जान गये हो वा जान रहे हो? जान गये हो तो जानने के साथ जो जाना है उसको मानकर चल रहे हो? पहली स्टेज है जानना, दूसरी है मानना और तीसरी स्टेज है चलना। तो किस स्टेज तक पहुँचे हो? क्या लास्ट स्टेज तक पहुँचे हो? जिन्होंने हाँ की उनसे प्रश्न है कि लास्ट स्टेज अर्थात् तीसरी स्टेज क्या एवर लास्टिंग है? तीसरी स्टेज तक पहुँचना तो सहज है और पहुँच भी गये हैं। लेकिन लास्ट स्टेज को अण्डर लाईन करके एवर-लास्टिंग बनाओ। मैं कौन हूँ’? यह अमूल्य जीवन अर्थात् श्रेष्ठ जीवन के अपने ही भिन्न नाम और रूप को जानते हो न? मुख्य स्वरूप और मुख्य नाम कौन-सा है? जैसे बाप के अनेक नाम, अनेक कर्त्तव्यों के आधार पर गायन करते हो फिर भी मुख्य नाम तो कहेंगे ना? वैसे आप श्रेष्ठ आत्माओं के भी अनेक नाम, अनेक कर्त्तव्यों के आधार पर व गुणों के आधार पर बाप द्वारा गाये हुये हैं, उनमें से मुख्य नाम कौन-सा है? जब ब्रह्मा-मुख द्वारा जन्म लिया तो बाप ने किस नाम से बुलाया? पहले जब तक ब्राह्मण नहीं बने तब तक कोई भी कर्त्तव्य के निमित्त नहीं बन सकते। पहले ब्रह्मा-मुख वंशावली, ब्रह्मा के नाते से जन्म लेकर ब्राह्मण बने अर्थात् ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारियाँ बने। सरनेम ही अपना यह लिखते हो। अपना परिचय किस नाम से देते हो और लोग आपको किस नाम से जानते हैं? - ब्रह्माकुमार व ब्रह्माकुमारियाँ। इस मरजीवा जीवन की पहली-पहली छाप यह लगी-ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारियाँ अर्थात् श्रेष्ठ ब्राह्मणपन की।

पहले जन्म लिया अर्थात् ब्राह्मण बने तो यह पहला नाम ब्राह्मणपन का व ब्रह्माकुमारियों का पड़ा जो कि तीसरी स्टेज तक एवर-लास्टिंग है। एवरलास्टिंग अर्थात् हर संकल्प, बोल, कर्म, सम्बन्ध, सम्पर्क और सेवा सभी में ब्राह्मण स्टेज के प्रमाण प्रैक्टिकल लाइफ में चल रहे हो? संकल्प में भी व बोल में भी शूद्रपन का अंशमात्र भी दिखाई न दे। ब्राह्मणों का संकल्प, बोल, संस्कार, स्वभाव और कर्म क्या होता है यह तो पहले भी सुनाया है। क्या उसी प्रमाण एवर-लास्टिंग स्टेज है व ब्राह्मण रूप में हर कर्म व हर संकल्प ब्रह्मा बाप के समान है? जैसा बाप वैसे बच्चे। जो स्वभाव, संस्कार या संकल्प बाप का है क्या वही बच्चों का है? क्या बाप के व्यर्थ संकल्प चलते हैं व कमजोर संकल्प उत्पन्न हो सकते हैं? अगर बाप के ही नहीं हो सकते तो फिर ब्राह्मणों के क्यों? बाप अचल, अटल, अडोल स्थिति में सदा स्थित है तो ब्राहमणों का व बच्चों का फर्ज क्या है? लायक बच्चे का फर्ज कौन-सा होता है?-फॉलो फादर ।

फॉलो फादर का यह अर्थ नहीं कि सिर्फ ईश्वरीय सेवाधारी बन गये। लेकिन फॉलो फादर अर्थात् हर कदम पर, व हर संकल्प में फॉलो फादर। क्या ऐसे फॉलो फादर हो? जैसे बाप के ईश्वरीय संस्कार, दिव्य स्वभाव, दिव्य वृति व दिव्य दृष्टि सदा है, क्या वैसे ही वृत्ति, दृष्टि, स्वभाव व संस्कार बने हैं? ऐसे ईश्वरीय सीरत वाली सूरत बनी है? जिस सूरत द्वारा बाप के गुणों और कर्त्तव्यों की रूप-रेखा दिखाई दे इसको कहा जाता है - फालो फादर। जैसे बाप के गुणगान करते हो या चरित्र वर्णन करते हो क्या वैसे ही अपने में वह सर्वगुण धारण किये हैं? अपने हर कर्म को चरित्र समान बनाया है? हर कर्म याद में स्थित रह करते हो? जो कर्म याद में रह कर करते हैं, वह कर्म यादगार बन जाता है। क्या ऐसे यादगार-मूर्त्त अर्थात् कर्मयोगी बने हो? कर्मयोगी अर्थात् हर कर्म योग-युक्त, युक्ति-युक्त, शक्ति-युक्त हो। क्या ऐसे कर्मयोगी बने हो? या बैठने वाले योगी बने हो? जब विशेष रूप से योग में बैठते हो, उस समय योगी जीवन है अर्थात् योग-युक्त है या हर समय योग-युक्त है? जो वर्णन में है कर्मयोगी, निरन्तर योगी और सहजयोगी, क्या वही प्रैक्टिकल में है? अर्थात् एवर लास्टिंग है? क्या कर्मयोगी को कर्म आकर्षित करता है या योगी अपनी योगशक्ति से कर्मइन्द्रियों द्वारा कर्म कराता है? अगर 89 कर्म योगी को कर्म अपनी तरफ आकर्षित कर ले तो क्या ऐसे को योगी कहा जाय? जो कर्म के वश होकर चलने वाले हैं उन को क्या कहते हो? ‘कर्मभोगी कहेंगे ना? जो कर्म के भोग के वश हो जाते हैं अर्थात् कर्म के भोग भोगने में अच्छे वा बूरे में कर्म के वशीभूत हो जाते हैं। आप श्रेष्ठ आत्माएं कर्मातीत अर्थात् कर्म के अधीन नहीं, कर्मों के परतन्त्र नहीं। स्वतन्त्र हो कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म कराते हो? जब कोई भी आप लोगों से पूछते हैं कि क्या सीख रहे हो या क्या सीखने के लिये जाते हो तो क्या उत्तर देते हो? सहज ज्ञान और राजयोग सीखने जा रहे हैं। यह तो पक्का है न कि यही सीख रहे हो। जब सहज ज्ञान कहते हो तो सहज वस्तु को अपनाना और धारण करना सहज है तब तो सहज ज्ञान कहते हो न? तो सदा ज्ञान स्वरूप बन गये हो? जब सहज ज्ञान है तो सदा ज्ञान स्वरूप बनना क्या मुश्किल है? सदा ज्ञान स्वरूप बनना यही ब्राह्मणों का धन्धा है।

अपने धर्म में स्थित होना नेचरल चीज होती है न? इसी प्रकार राजयोग का अर्थ क्या सुनाते हो? सर्वश्रेष्ठ अर्थात् सभी योगों का राजा है और इससे राजाई प्राप्त होती है। राजाओं का राजा बनने का योग है। आप सभी राजयोगी हो या राजाई भविष्य में प्राप्त करनी है? अभी संगमयुग में भी राजा हो या सिर्फ भविष्य में बनने वाले हो? जो संगमयुग में राज्य पद नहीं पा सकते वह भविष्य में क्या पा सकते हैं? तो जैसे सर्वश्रेष्ठ योग कहते हो, ऐसा ही सर्वश्रेष्ठ योगी जीवन तो होना चाहिये न? क्या पहले अपनी कर्मेन्द्रियों के राजा बने हो? जो स्वयं के राजा नहीं वह विश्व के राजा कैसे बनेंगे? क्या स्थूल कर्मेन्द्रियों व आत्मा की श्रेष्ठ शक्तियाँ मन, बुद्धि, संस्कार अपने कन्ट्रोल में हैं? अर्थात् उन्हों के ऊपर राजा बनकर राज्य करते हो? राजयोगी अर्थात् अभी राज्य चलाने वाले बनते हो। राज्य करने के संस्कार व शक्ति अभी से धारण करते हो। भविष्य 21 जन्म में राज्य करने की धारणा प्रैक्टिकल रूप में अभी आती है। सहज ज्ञान और राजयोग तीसरी स्टेज तक आया है? संकल्प को ऑर्डर करो स्टॉप तो स्टॉप कर सकते हो? बुद्धि को डाइरेक्शन दो कि शुद्ध संकल्प व अव्यक्त स्थिति व बीज रूप स्थिति में स्थित हो जाओ तो क्या स्थित करसकते हो? ऐसे राजा बने हो? ऐसे राजयोगी जो हैं उनको कहा जाता है - फालो फादर।

जैसे राजा के पास अपने सहयोगी होते हैं जिस द्वारा जिस समय जो कत्तर्व्य कराना चाहे वह करा सकता है। वैसे ही यह संगमयुगी विशेष शक्तियाँ, यही आपके सहयोगी हैं। तो जैसे राजा कोई भी सहयोगी को ऑर्डर करता है कि यह कार्य इतने समय में सम्पन्न करना है वैसे ही अपनी सर्वशक्तियों द्वारा आप भी हर कार्य को सहज ही सम्पन्न करते हो या ऑर्डर ही करते हो? सामना करने की शक्ति आये तो क्या किनारा कर देते हैं? सहज योगी अर्थात् सर्वशक्तियाँ क्या आपके पूर्ण रूप से सहयोगी हैं? जब चाहों जिस द्वारा चाहो क्या कार्य करा सकते हो? ऐसे राजा हो? जैसे पुराने राजाओं के दरबार में आठ या नव रत्न प्रसिद्ध होते थे अर्थात् सदा सहयोगी होते थे, ऐसे ही आपकी आठ शक्तियाँ सदा सहयोगी हैं? इससे ही अपने भविष्य प्रारब्ध को जान सकते हो। यह है दर्पण जिसमें अपनी सूरत और सीरत देखने से मालूम पड़ सकता है।

छ: मास जो दिये हैं वह विनाश की तारीख नहीं दी है। लेकिन हरेक संगमयुगी राजा अपने राज्य कारोबार अर्थात् सदा सहयोगी शक्तियों को एवररेडी बनाकर तैयार कर सके उसके लिए यह समय दिया है। क्योंकि अब से अगर राज्य कारोबार सम्भालने के संस्कार नहीं भरेंगे तो भविष्य में भी बहुत समय के लिए राजा बन राज्य नहीं कर सकेंगे। छ: मास का अर्थ समझा? अपने हर सहयोगी को सामने देखो और अपने संकल्पो को स्टॉप करके देखो। अपनी बुद्धि को डायरेक्शन प्रमाण चलाकर देखो। इस रिहर्सल के लिए छ: मास दिये हैं। समझा?

अच्छा, सदा सहज ज्ञान स्वरूप, सदा राजयोगी, निरन्तर योगी, सहज- योगी, सर्व शक्तियों को अपना सहयोगी बनाने वाले, बाप समान संकल्प, संस्कार और कर्म करने वाले, ऐसे संगमयुगी सर्व राजाओं को बापदादा का याद प्यार और नमस्ते!

 

 

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QUIZ QUESTIONS

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प्रश्न 1 :- महारथी किसको कहा जाता है? उनके लक्षण क्या होते हैं?

 प्रश्न 2 :- अपने को सम्पूर्ण स्वतन्त्र समझते हो? सम्पूर्ण स्वतन्त्रा के बारे में आज बाबा ने क्या कहा?

 प्रश्न 3 :- बाबा ने आज महाराथियों के सम्बन्ध से जुड़े कौन कौन से टाइटल बताए हैं?

 प्रश्न 4 :- ब्राह्मण जन्म की विशेषता क्या है जो और कोई जन्म में नहीं होती?

 प्रश्न 5 :- लायक बच्चे का फर्ज होता है-फॉलो फादर तो बाबा ने 'फॉलो फादर' के संदर्भ में क्या कहा?

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

( कौड़ी, ब्राह्मणों, पत्थर, सच्चे, सन्तान, संसार, द्वापर, सहज, विश्व, हीरा, बाप, सहयोगी )

 

 1   अगर ____ ब्राह्मण कहलाते और यह बोलते तो ____ युगी ब्राह्मणों और ऐसे कहलाने वाले ब्राह्मणों में क्या अन्तर है?

 2  ____के लिये इतने बड़े ___ के अन्दर अपना ही छोटा-सा  ____ है।

 3  परमात्मा की ______ हो कर और _____ को नहीं जानते हो तो _____ तुल्य हो।

 4  _____ हाथ में मिले और उसको _____ समझ उसका मूल्य न जाने, ऐसे को क्या कहा जाता है?

 5  _____योगी अर्थात् सर्वशक्तियाँ क्या आपके पूर्ण रूप से ____हैं?

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-

 

 1  :- अपने को सम्पूर्ण परतन्त्र समझते हो?

 2  :- भविष्य 21 जन्म में राज्य करने की धारणा प्रैक्टिकल रूप में अभी आती है।

 3  :- सदैव अपने को चेक करो कि शुद्र जीवन को निभा रहा हूँ?

 4  :- सदैव याद रखो कि हम हर सेकेण्ड, हर कदम युद्ध के मैदान पर उपस्थित हैं।

 5   :- ब्राह्मणपन का आखरी लक्षण कौन-सा है - और संग तोड़े एक संग जोड़

 

 

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QUIZ ANSWERS

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 प्रश्न 1 :- महारथी किसको कहा जाता है? उनके लक्षण क्या होते हैं?

उत्तर 1 :- महारथी के लक्षण के बारे में आज बाबा ने कहा :-

          महारथी अर्थात् इस रथ पर सवार, अपने को रथी समझे। मुख्य बात कि अपने को रथी समझ कर इस रथ को चलाने वाले।

          रूहानी सेना के योद्धा। योद्धे सर्व व्यक्तियों, सर्व-वैभवों का किनारा कर युद्ध और विजय’-इन दो बातों को सिर्फ बुद्धि में रखते हुए अपने लक्ष्य को पूर्ण करने में लगे हुए होते हैं।

           योद्धे कभी भी आराम पसन्द नहीं होते हैं।

           योद्धे कभी भी आलस्य और अलबेलेपन की स्थिति में नहीं रहते।

          योद्धे कभी भी शस्त्र के बिना नहीं रहते, सदैव शस्त्रधारी होते हैं।

          योद्धे कभी भी भय के वशीभूत नहीं होते, निर्भय होते हैं।

          योद्धे कभी भी सिवाय युद्ध के और कोई बातें बुद्धि में नहीं रखते। सदैव योद्धेपन की वृत्ति और विजयी बनने की स्मृति में रहते हैं। सिर्फ एक ही लगन विजयी बनने की रहती है।

 

 प्रश्न 2 :- अपने को सम्पूर्ण स्वतन्त्र समझते हो? सम्पूर्ण स्वतन्त्रा के बारे में आज बाबा ने क्या कहा?

उत्तर 2 :- बाबा ने कहा सम्पूर्ण स्वतन्त्र अर्थात् :-

          जब चाहो इस देह का आधार लो, जब चाहो इस देह के भान से ऐसे न्यारे हो जाओ जो जरा भी यह देह अपनी तरफ खींच न सके। ऐसे अपनी देह के भान अर्थात् देह के लगाव से स्वतन्त्र।

         अपने कोई भी पुराने स्वभाव से भी स्वतन्त्र, स्वभाव से भी बन्धायमान न हो। अपने संस्कारों से भी स्वतन्त्र।

          अपने सर्व लौकिक सम्पर्क वा अलौकिक परिवार के सम्पर्क के बन्धनों से भी स्वतन्त्र। ऐसे को कहा जाता है-सम्पूर्ण स्वतन्त्र

 

 प्रश्न 3 :- बाबा ने आज महारथियों के सम्बन्ध से जुड़े कौन कौन से टाइटल बताए हैं?

 उत्तर 3 :- बाबा ने महारथियों को जो टाइटल्स दिए है :-

          मास्टर सर्वशक्तिवान,

          महावीर,

          विघ्न-विनाशक,

          त्रिकालदर्शी,

          स्वदर्शन चक्रधारी।

 

प्रश्न 4 :- ब्राह्मण जन्म की विशेषता क्या है जो और कोई जन्म में नहीं होती?

उत्तर 4 :- ब्राह्मण जन्म कि विशेषता यह है कि अन्य सर्व जन्म, आत्माओं द्वारा आत्माओं के होते हैं लेकिन एक ही यह ब्राह्मण जन्म है जो परम पिता परमात्मा द्वारा डायरेक्ट जन्म होता है। देवता जन्म भी श्रेष्ठ आत्माओं द्वारा ही होता है। परमात्मा द्वारा नहीं। तो ब्राह्मण-जन्म की विशेषता जो सारे कल्प के अन्य कोई जन्म में नहीं है। ऐसी विशेषता सम्पन्न जन्म है तो उन आत्माओं की भी विशेषता क्या होनी चाहिए? जो बाप के गुण हैं, वही ब्राह्मण आत्माओं के गुण होने चाहिए। वह गुण भी इस ब्राह्मण जन्म के सिवाय और कोई जन्म में नहीं आ सकते। इस ब्राह्मण जीवन में त्रिकालदर्शी, त्रिनेत्री, ज्ञान स्वरूप बनते हो।

 

 प्रश्न 5 :- लायक बच्चे का फर्ज होता है फॉलो फादर तो बाबा ने 'फॉलो फादर' के संदर्भ में क्या कहा?

 उत्तर 5 :- फॉलो फादर के संदर्भ में बाबा ने कहा है:-

          ❶  फॉलो फादर का यह अर्थ नहीं कि सिर्फ ईश्वरीय सेवाधारी बन गये। लेकिन फॉलो फादर अर्थात् हर कदम पर, व हर संकल्प में फॉलो फादर। क्या ऐसे फॉलो फादर हो?

          जैसे बाप के ईश्वरीय संस्कार, दिव्य स्वभाव, दिव्य वृति व दिव्य दृष्टि सदा है, क्या वैसे ही वृत्ति, दृष्टि, स्वभाव व संस्कार बने हैं?

          ऐसे ईश्वरीय सीरत वाली सूरत बनी है? जिस सूरत द्वारा बाप के गुणों और कर्त्तव्यों की रूप-रेखा दिखाई दे इसको कहा जाता है - फालो फादर।

       संकल्प को ऑर्डर करो स्टॉप तो स्टॉप कर सकते हो? बुद्धि को डाइरेक्शन दो कि शुद्ध संकल्प व अव्यक्त स्थिति व बीज रूप स्थिति में स्थित हो जाओ तो क्या स्थित करसकते हो? ऐसे राजा बने हो? ऐसे राजयोगी जो हैं उनको कहा जाता है - फालो फादर।

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

( कौड़ी, ब्राह्मणों, पत्थर, सच्चे, सन्तान, संसार, द्वापर, सहज, विश्व, हीरा, बाप, सहयोगी )

 

 1   अगर ____ ब्राह्मण कहलाते और यह बोलते तो ____ युगी ब्राह्मणों और ऐसे कहलाने वाले ब्राह्मणों में क्या अन्तर है?

सच्चे /  द्वापर

 

 2  ____ के लिये इतने बड़े ___ के अन्दर अपना ही छोटा-सा ____ है।

 ब्राह्मणों   विश्व /  संसार

 

  परमात्मा की ____ हो कर और ___ को नहीं जानते हो तो ___ तुल्य हो।

 सन्तान /  बाप /  कौड़ी

 

 4  ___ हाथ में मिले और उसको ___ समझ उसका मूल्य जाने, ऐसे को क्या कहा जाता है?

 हीरा /  पत्थर

 

 5  ___योगी अर्थात् सर्वशक्तियाँ क्या आपके पूर्ण रूप से ____हैं?

सहज  सहयोगी

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-

 

 1  :- अपने को सम्पूर्ण परतन्त्र समझते हो?

अपने को सम्पूर्ण स्वतन्त्र समझते हो?

 

 2  :- भविष्य 21 जन्म में राज्य करने की धारणा प्रैक्टिकल रूप में अभी आती है। 【✔】

 

 3  :-  सदैव अपने को चेक करो कि शुद्र जीवन को निभा रहा हूँ?

सदैव अपने को चेक करो कि ब्राह्मण जीवन को निभा रहा हूँ?

 

 4  :- सदैव याद रखो कि हम हर सेकेण्ड, हर कदम युद्ध के मैदान पर उपस्थित हैं।

 

 5   :- ब्राह्मणपन का आखरी लक्षण कौन-सा है - और संग तोड़े एक संग जोड़

 ब्राह्मणपन का पहली लक्षण कौन-सा है - और संग तोड़े एक संग जोड़