==============================================================================

AVYAKT MURLI

30 / 05 / 74

=============================================================================

30-05-74   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन 

सेवा में बाप के सदा सहयोगी और एवर-रेडी बनो!

सर्व आत्माओं को नॉलेज की लाइट-माइट देने वाले लाइट हाउस और माइट हाउस, सर्व के शुभ-चिन्तक तथा रूहानी सेनापति शिव बाबा बोले:-

युद्ध-स्थल पर उपस्थित योद्धे सर्व शस्त्रं से श्रृंगारे हुए, एवर-रेडी, एक सेकेण्ड में, किसी भी प्रकार के ऑर्डर को प्रैक्टिकल में लाने वाले, क्या सदा विजयी अपने को समझते हो? अभी-अभी ऑर्डर हो, कि दृष्टि को एक सेकेण्ड में रूहानी या दिव्य बनाओ, कि जिसमें देह के अभिमान का, ज़रा भी अंश-मात्र न हो और संकल्प-मात्र में भी न हो, तो क्या स्वयं को ऐसा बना सकते हो? या बनाने में समय लगावेंगे? अगर एक सेकेण्ड से दो सेकेण्ड भी लगाये, तो क्या उसे एवर-रेडी कहेंगे? ऑर्डर हो, कि अपनी श्रेष्ठ स्मृति के आधार पर इस अन्य आत्मा की स्मृति को प्रिवर्तन करके दिखलाओ, तो क्या ऐसे एवररेडी हो? ऑर्डर हो, कि वर्तमान वायुमण्डल को अपनी ईश्वरीय वृत्ति से, अभी-अभी परिवर्तन करो तो क्या कर सकते हो? ऑर्डर हो, कि अपनी वर्तमान सर्वशक्तिमान् स्थिति से किसी अन्य आत्मा की परिस्थिति-वश स्थिति को परिवर्तन करो तो क्या आप कर सकते हो? ऑर्डर हो, कि मास्टर रचयिता बन अपनी रचना को शुभ भावना से व शुभ-चिन्तक बन, भिखारियों को उनकी माँग प्रमाण सन्तुष्ट करो तथा महादानी और वरदानी बनो तो क्या सर्व को संतुष्ट कर सकते हो? या तो कोई संतुष्ट होंगे और या कोई वंचित रह जावेंगे? सर्व-शक्तियों के भण्डारे से क्या स्वयं को भरपूर अनुभव करते हो? क्या सर्व-शस्त्र आपके सदा साथ रहते हैं? सर्व-शस्त्र अर्थात् सर्व-शक्तियाँ। अगर एक भी शस्त्र या शक्ति कम है व कमजोर है, तो क्या वह एवर-रेडी कहला सकेंगे? जैसे बाप एवर-रेडी अर्थात् सर्व-शक्तियों से सम्पन्न हैं, तो क्या वैसे फालो-फादर हो?

वर्तमान समय बाप के सहयोगियों का ऐसा एवर-रेडी ग्रुप चाहिए। हरेक ग्रुप की कोई-न-कोई निशानी व विशेषता होती है ना? तो ऐसे एवर-रेडी ग्रुप की निशानी क्या है, क्या जानते हो? लौकिक मिलिट्री की तो निशानी देखी होगी। हर एक ग्रुप का मेडल अपना-अपना होता है, तो इस रूहानी मिलिट्री का या एवर-रेडी ग्रुप का मेडल कौन-सा है? क्या यह स्थूल बैज है? यह तो सर्विस का सहज साधन है और सदा साथ का साधन है लेकिन फर्स्ट ग्रुप का मेडल व निशानी है-विजय माला। एक तो विजय माला में पिरोने वालों का है-एवर-रेडी ग्रुप। इसी निश्चय और नशे में सदा विजय की माला पड़ी हुई होती है। सदा विजय’-यही माला पहली निशानी है। ऐसे एवर-रेडी बच्चे इसी स्मृति से सदा श्रृंगारे हुए होंगे। दूसरी निशानी, सदा साक्षी और सदा साथीपन के कवचधारी होंगे। सर्वशक्तियाँ, ऐसे एवर-रेडी के हर समय ऑर्डर मानने वाली सिपाही व साथी रहेंगी। ऑर्डर किया और हर शक्ति जी-हजूर करेगी। उनका मस्तिष्क सदा मस्तक मणि अर्थात् आत्मा की झलक से चमकता हुआ दिखाई देगा। उनके नैन रूहानी लाइट और माइट के आधार से सर्व-आत्माओं को मुक्ति और जीवन-मुक्ति का मार्ग दिखाने के निमित्त बने हुए होंगे। उनका हर्षितमुख अनेक जन्मों के अनेक दु:खों को विस्मृत करा, एक सेकेण्ड में अन्य को भी हर्षित बना देगा? क्या ऐसा एवर रेडी ग्रुप है व विजय की माला गले में है? अथवा और युक्तियाँ औरों से लेते रहते हो या शस्त्रं को किनारे कर, समय पर शस्त्रं की भीख मांगते रहते हो?-यह शक्ति दो, यह सहयोग दो व यह आधार प्राप्त हो। यह संकल्प करना भी भीख मांगना है। ऐसे भिखारी-महादानी, वरदानी कैसे बन सकेंगे? भिखारी, भिखारी को क्या दे सकता है? अपने को देखो, क्या एवर-रेडी ग्रुप के योग्य बने हैं? ऐसे नहीं कि ऑर्डर करें एक, और प्रैक्टिकल हो दूसरा। ऐसे कमजोर तो नहीं हो ना? अभी फिर भी कुछ गैलप (Gallop) करने का चॉन्स है, अभी किसी भी ग्रुप में अपने को परिवार्तित कर सकते हो। लेकिन कुछ समय बाद, गैलप करने का समय भी समाप्त हो जायेगा और जिन्होंने जैसे और जितना पुरूषार्थ किया है, वे वहां ही रह जावेंगे। फिर चाहे कितनी भी एप्लिकेशनडालो लेकिन मंजूर नहीं होगी, मजबूर हो जायेंगे। इसलिए बाप-दादा फिर भी कुछ समय पहले वारनिंग दे रहे हैं, जिससे कि पीछे आने वालों का भी बाप के प्रति कोई उल्हना नहीं रहेगा। इसलिये सेकेण्ड-सेकेण्ड व हर संकल्प के महत्व को जान, अपने को महान् बनाओ। परखने की शक्ति का, स्वयं के प्रति और सेवा के प्रति प्रयोग करो तब ही स्वयं की कमजोरियों को मिटा सकेंगे, और सर्व के प्रति उन्हों को इच्छापूर्वक सम्पन्न कर, महादानी और महावरदानी बन सकेंगे। अच्छा।

ऐसे सदा शुभ-चिन्तक, सदा शुभ-चिन्तन में रहने वाले, सर्व की मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाले, सदा मस्तकमणि द्वारा सर्व-आत्माओं को नॉलेज की लाइट देने वाले व सदा लाइट और माइट हाउस, बाप-दादा के सदा सहयोगी बच्चों को बाप-दादा का याद प्यार, गुडनाइट और नमस्ते।

 27-12-74   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन 

योगी भवऔर पवित्र भवद्वारा वरदानों की प्राप्ति

सर्व वरदानों को देने वाले वरदाता शिव बाबा बोले:-

आज की सभा वरदाता द्वारा, सर्व वरदान प्राप्त की हुई आत्माओं की है। वरदाता द्वारा, सर्व वरदानों में, मुख्य दो वरदान हैं, जिसमें कि सर्व वरदान समाये हुए हैं। वह दो वरदान कौन-से हैं? उसको अच्छी तरह जानते हो या स्वयं वरदान-स्वरूप व वरदानी-मूर्त बन गये हो? जो वरदानी-मूर्त हैं; वह स्वयं स्वरूप बन, औरों को देने वाला दाता बन सकता है। तो अपने से पूछो कि क्या मुख्य दो वरदान-स्वरूप बने हैं? अर्थात् योगी भव और पवित्र भव: - इस विशेष कोर्स के स्वरूप बने हो? इसी कोर्स को समाप्त किया है या अभी तक कर रहे हो? सप्ताह कोर्स का रहस्य, इन दो वरदानों में समाया हुआ है। जो भी यहाँ बैठे हैं, क्या उन सबने यह कोर्स, समाप्त कर लिया है या उनका अभी तक यह कोर्स चल रहा है? कोर्स अर्थात् फोर्स भर जाना। सदा योगी-भव और सदा पवित्र-भव का फोर्स अर्थात् शक्ति-स्वरूप का अनुभव नहीं होता, तो उसको शक्ति-स्वरूप नहीं कहेंगे। लेकिन उसे शक्ति-स्वरूप बनने का अभ्यासी ही कहेंगे। क्योंकि स्वयं का स्वरूप, सदा और स्वत: ही स्मृति में रहता है। जैसे अपना साकार स्वरूप, सदा और स्वत: याद रहता है और उसका अभ्यास नहीं करते हो बल्कि और ही, उसको भुलाने का अभ्यास करते हो। ऐसे ही अपना निजी-स्वरूप व वरदानी स्वरूप, सदा ही स्मृति में रहना चाहिए। अपवित्रता का और विस्मृति का नामोनिशान न रहे। इसको कहा जाता है-वरदानों का कोर्स करना। क्या ऐसा कोर्स किया है?

जैसे आप लोग, सप्ताह कोर्स समाप्त करने से पहले, किसी भी आत्मा को क्लास में नहीं आने देते हो, ऐसे ही ब्राह्मण बच्चे, जो यह प्रैक्टिकल कोर्स समाप्त नहीं करते तो बाप-दादा व ड्रामा भी उनको कौन-सी क्लास में आने नहीं देते। अर्थात् फर्स्ट क्लास में आने नहीं देते। फर्स्ट क्लास कौन-सी है?-वे सतयुग के आदि में नहीं आ सकते। जब आप लोग, उन को क्लास में आने नहीं देते, तो ड्रामा भी फर्स्ट क्लास में का अधिकारी नहीं बना सकता। फर्स्ट क्लास में, आने के लिए यह मुख्य दो वरदान प्रैक्टिकल रूप में चाहिए। विस्मृति या अपवित्रता क्या होती है इसकी अविद्या हो जाए। तुम संगम पर उपस्थित हो ना? तो ऐसा अनुभव हो कि यह संस्कार व स्वरूप मेरा नहीं है, लेकिन मेरे पास्ट जन्म का था और अब है नहीं। मैं तो ब्राह्मण हूँ और यह तो शूद्रों के संस्कार व उनका स्वरूप है। ऐसे अपने से भिन्न अर्थात् दूसरों के संस्कार हैं, ऐसा अनुभव होना-इसको कहा जाता है न्यारा और प्यारा।जैसे देह और देही अलग-अलग वस्तुयें हैं, लेकिन अज्ञानवश इन दोनों को मिला दिया है। वैसे ही मेरेको मैंसमझ लिया है। तो इस गलती के कारण कितनी परेशानी व दु:ख व अशान्ति प्राप्त की। ऐसे ही, यह अपवित्रता और विस्मृति के संस्कार, जो मेरे अर्थात् ब्राह्मणपन के नहीं, लेकिन जो शूद्रपन के हैं, उनको मेरा समझने से, माया के वश व परेशान हो जाते हो अर्थात् ब्राह्मणपन की शान से परे (दूर) हो जाते हो। यह छोटी-सी भूल, चैक करो कि कहीं यह मेरे संस्कार तो नहीं था, यह कहीं यह मेरा स्वरूप तो नहीं? समझा? तो पहला पाठ, पवित्र-भव व योगी-भव को प्रैक्टिकल स्वरूप में लाओ, तब ही बाप-समान और बाप के समीप आने के अधिकारी बन सकते हो।

आज कल्प पहले वाले, बहुत काल से बिछुड़े हुए, बाप की याद में तड़पने वाले व अव्यक्त मिलन मनाने के शुद्ध संकल्प में रमण करने वाले, अपने स्नेह की डोर से बाप-दादा को भी बांधने वाले और अव्यक्त को भी आप-समान व्यक्त में बनाने वाले, वह नये-नये बच्चे व साकारी देश में दूर-देशी बच्चे जो हैं, उनके प्रति विशेष मिलन के लिए बाप-दादा को आना पड़ा है। तो शक्तिशाली कौन हुए? बाँधने वाले या बँधने वाला? बाप कहते हैं-वाह बच्चे।’ ‘शाबास बच्चे।नयों के प्रति विशेष बाप-दादा का स्नेह है। ऐसा क्यों? निश्चय की सदा विजय है। विशेष स्नेह का मुख्य कारण, नये बच्चे सदा अव्यक्त मिलन मनाने की मेहनत में रहते हैं। अव्यक्तरूप द्वारा, व्यक्त रूप से किये हुए चरित्रों का अनुभव करने के सदा शुभ आशा के दीपक जगाए हुए होते हैं। ऐसी मेहनत करने वालों को, फल देने के लिए बाप-दादा को भी विशेष याद स्वत: ही आती है। इसलिए आज की याद, आज की गुडमार्निंग व नमस्ते विशेष चारों ओर के नये-नये बच्चों को पहले बाप-दादा दे रहे हैं। साथ में, सब बच्चे तो है हीं। अब व्यक्त द्वारा अव्यक्त मिलन, सदा काल तो हो नहीं सकता। इसलिए आने के बाद, जाना होता है। अव्यक्त रूप में अव्यक्त मुलाकात तो सदाकाल की है। ऐसे वरदानी बच्चों को याद-प्यार और नमस्ते।

 

 

=============================================================================

QUIZ QUESTIONS

============================================================================

 प्रश्न 1 :- एवर-रेडी ग्रुप की निशानी एवंम विशेषता क्या हैं?

 प्रश्न 2 :- हम ब्राह्मण बच्चे महादानी और महावरदानी कैसे बन सकतें हैं?

 प्रश्न 3 :- वरदाता शिव बाबा ने आत्माओं को मुख्य दो कौन से वरदान दिए हैं?

 प्रश्न 4 :- कौन से दो वरदानों में सप्ताह कोर्स का रहस्य समाया हुआ है? और यह कोर्स कैसे करना हैं?

 प्रश्न 5 :- बाप-समान और बाप के समीप आने के अधिकारी कैसे बन सकते है ?

 

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

{ लाइट हाउस, नये-नये, समाप्त, माइट, ’वाह बच्चे, रचना, ड्रामा, विशेष, सेनापति, लाइट हाउस, याद, वरदानी, नमस्ते, सन्तुष्ट , ‘शाबास बच्चे }

 1   सर्व आत्माओं को नॉलेज की लाइट-माइट देने वाले ____________और  ________ हाउस, सर्व के शुभ-चिन्तक तथा रूहानी ____________ शिव बाबा।

 2  ब्राह्मण बच्चे, जो यह ____________ कोर्स ________  नहीं करते तो बाप-दादा व  ________ भी उनको फर्स्ट क्लास में आने नहीं देते।

 3  आज की ________ , आज की गुडमार्निंग व ________ विशेष चारों ओर के  ____________ बच्चों को पहले बाप-दादा दे रहे हैं।

 4  मास्टर रचयिता बन अपनी ________ को शुभ भावना से व शुभ-चिन्तक बन, भिखारियों को उनकी माँग प्रमाण ________ करो तथा महादानी और ________ बनो।

 5  बाप कहते हैं- ________ ’ ____ ________ नयों के प्रति ________ बाप-दादा का स्नेह है।

 

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-

 1  :- वर्तमान समय बाप के सहयोगियों का ऐसा एवर-रेडी ग्रुप चाहिए।

 2  :- आप लोग, सप्ताह कोर्स समाप्त करने से पहले, किसी भी आत्मा को क्लास में नही देखने देते हो।

 3  :- आज कल्प पहले वाले, बहुत काल से बिछुड़े हुए, बाप की याद में तड़पने वाले व अव्यक्त मिलन मनाने के शुद्ध संकल्प में रमण करने वाले, अपने स्नेह की डोर से बाप-दादा को भी बांधने वाले और अव्यक्त को भी आप-समान व्यक्त में बनाने वाले, वह नये-नये बच्चे व साकारी देश में दूर-देशी बच्चे जो हैं, उनके प्रति विशेष मिलन के लिए बाप-दादा को आना पड़ा है।

 4  :- व्यक्त द्वारा व्यक्त मिलन, सदा काल तो हो नही सकता। इसलिए आने के बाद, जाना होता है।

 5   :- सर्व-शस्त्र अर्थात् सर्व-शक्तियाँ। अगर एक भी शस्त्र या शक्ति कम है व कमजोर है।

 

 

============================================================================

QUIZ ANSWERS

============================================================================

 प्रश्न 1 :- एवररेडी ग्रुप की निशानी एवं विशेषता क्या हैं?

 उत्तर 1 :- एवररेडी ग्रुप को रूहानी मिलिट्री भी कहेंगे। एवररेडी ग्रुप का मेडल स्थूल बैज, यह तो सर्विस का सहज साधन है और सदा साथ का साधन है।

          फर्स्ट ग्रुप का मेडल व निशानी है-विजय माला। विजय माला में पिरोने वालों का है-एवररेडी ग्रुप। इसी निश्चय और नशे में सदा विजय की माला पड़ी हुई होती है। सदा विजय’-यही माला पहली निशानी है।

          दूसरी निशानी, सदा साक्षी और सदा साथीपन के कवचधारी होंगे।

          सर्वशक्तियाँ, ऐसे एवररेडी के हर समय ऑर्डर मानने वाली सिपाही व साथी रहेंगी। ऑर्डर किया और हर शक्ति जी-हजूर करेगी।

          उनका मस्तिष्क सदा मस्तक मणि अर्थात् आत्मा की झलक से चमकता हुआ दिखाई देगा।

          उनके नैन रूहानी लाइट और माइट के आधार से सर्व-आत्माओं को मुक्ति और जीवन-मुक्ति का मार्ग दिखाने के निमित्त बने हुए होंगे।

          उनका हर्षितमुख अनेक जन्मों के अनेक दु:खों को विस्मृत करा, एक सेकेण्ड में अन्य को भी हर्षित बना देगा ऐसी विशेषता होगी इस ग्रुप की ।

 प्रश्न 2 :- हम ब्राह्मण बच्चे महादानी और महावरदानी कैसे बन सकतें हैं?

 उत्तर 2 :- बाबा हम ब्राह्मण बच्चों को चेतावनी देते हैं कि अभी फिर भी कुछ गैलप (Gallop) करने का चॉन्स है, अभी किसी भी ग्रुप में अपने को परिवर्तित कर सकते है। कुछ समय बाद, गैलप करने का समय भी समाप्त हो जायेगा और जिन्होंने जैसे और जितना पुरूषार्थ किया है, वे वहां ही रह जावेंगे। फिर चाहे कितनी भी एप्लिकेशन डालो लेकिन मंजूर नहीं होगी, मजबूर हो जायेंगे।

          बाप-दादा फिर भी कुछ समय पहले वारनिंग दे रहे हैं जिससे कि पीछे आने वालों का भी बाप के प्रति कोई उल्हना नहीं रहेगा।

          सेकेण्ड-सेकेण्ड व हर संकल्प के महत्व को जान, अपने को महान् बनाओ।

          परखने की शक्ति का, स्वयं के प्रति और सेवा के प्रति प्रयोग करो तब ही स्वयं की कमजोरियों को मिटा सकेंगे।

          सर्व के प्रति उन्हों को इच्छापूर्वक सम्पन्न कर, महादानी और महावरदानी बन सकेंगे।

 प्रश्न 3 :- वरदाता शिव बाबा ने आत्माओं को मुख्य दो कौन से वरदान दिए हैं?

  उत्तर 3 :- वरदाता शिव बाबा ने आत्माओं को मुख्य दो वरदान  दिए हैं, जिसमें सर्व वरदान समाये हुए हैं। वह दो वरदान को अच्छी तरह जानना हैं स्वयं वरदान-स्वरूप व वरदानी-मूर्त बन जाना है। बाबा बोलें जो वरदानी-मूर्त हैं; वह स्वयं स्वरूप बन, औरों को देने वाला दाता बना सकता है। मुख्य दो वरदान अर्थात् योगी भव और पवित्र भव हैं।

 

 प्रश्न 4 :- कौन से दो वरदानों में सप्ताह कोर्स का रहस्य समाया हुआ है? और यह कोर्स कैसे करना हैं?

 उत्तर 4 :- सप्ताह कोर्स का रहस्य, योगी भव और पवित्र भव यह दो वरदानों में समाया हुआ है। 

          कोर्स अर्थात् फोर्स भर जाना। सदा योगी-भव और सदा पवित्र-भव का फोर्स अर्थात् शक्ति-स्वरूप का अनुभव होना यदि यह अनुभव नहीं होता , तो उसको शक्ति- स्वरूप नहीं कहेंगे, बल्कि उसे शक्ति-स्वरूप बनने का अभ्यासी ही कहेंगे।

         स्वयं का स्वरूप, सदा और स्वत: ही स्मृति में रहता है। बाबा उदाहरण देते है जैसे अपना साकार स्वरूप, सदा और स्वत: याद रहता है और उसका अभ्यास नहीं करते हो बल्कि और ही, उसको भुलाने का अभ्यास करते हो। ऐसे ही अपना निजी-स्वरूप व वरदानी स्वरूप, सदा ही स्मृति में रहना चाहिए।

         अपवित्रता का और विस्मृति का नामोनिशान न रहे। इसको कहा जाता है-वरदानों का कोर्स करना।

 

 प्रश्न 5 :- बाप-समान और बाप के समीप आने के अधिकारी कैसे बन सकते है ?

 उत्तर 5 :- फर्स्ट क्लास में, आने के लिए पवित्र-भव व योगी-भव मुख्य दो वरदान प्रैक्टिकल रूप में चाहिए।

           विस्मृति या अपवित्रता की अविद्या हो जाए। ऐसा अनुभव हो कि यह संस्कार व स्वरूप मेरा नहीं है, लेकिन मेरे पास्ट जन्म के थे। मैं तो ब्राह्मण हूँ और यह तो शूद्रों के संस्कार व उनका स्वरूप है। ऐसे अपने से भिन्न अर्थात् दूसरों के संस्कार हैं, ऐसा अनुभव होना-इसको कहा जाता है न्यारा और प्यारा।

          जैसे देह और देही अलग-अलग वस्तुयें हैं, लेकिन अज्ञानवश इन दोनों को मिला दिया है। वैसे ही मेरेको मैंसमझ लिया है। तो इस गलती के कारण कितनी परेशानी व दु:ख व अशान्ति प्राप्त की। ऐसे ही, यह अपवित्रता और विस्मृति के संस्कार, जो मेरे अर्थात् ब्राह्मणपन के नहीं, लेकिन जो शूद्रपन के हैं, उनको मेरा समझने से, माया के वश व परेशान हो जाते हो अर्थात् ब्राह्मणपन की शान से परे (दूर) हो जाते हो।

           यह छोटी-सी भूल, चैक करो कि कहीं यह मेरे संस्कार तो नहीं तो पहला पाठ, पवित्र-भव व योगी-भव को प्रैक्टिकल स्वरूप में लाओ, तब ही बाप-समान और बाप के समीप आने के अधिकारी बन सकते हो।

 

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

{ लाइट हाउस, नये-नये, समाप्त, माइट, ’वाह बच्चे, रचना, ड्रामा, विशेष, सेनापति, लाइट हाउस, याद, वरदानी, नमस्ते, सन्तुष्ट , ‘शाबास बच्चे }

 1   सर्व आत्माओं को नॉलेज की लाइट-माइट देने वाले ______और  ______ हाउस, सर्व के शुभ-चिन्तक तथा रूहानी _____ शिव बाबा।

  

    लाइट हाउस  / माइट /  सेनापति

 

 2  ब्राह्मण बच्चे, जो यह ______ कोर्स ______ नहीं करते तो बाप-दादा व  ______ भी उनको फर्स्ट क्लास में आने नहीं देते।

 

    प्रैक्टिकल /  समाप्त /  ड्रामा

 

 3   आज की ______ , आज की गुडमार्निंग व ______ विशेष चारों ओर के  ______ बच्चों को पहले बाप-दादा दे रहे हैं।

  

    याद /  नमस्ते /  नये-नये

 

 4  मास्टर रचयिता बन अपनी ______ को शुभ भावना से व शुभ-चिन्तक बन, भिखारियों को उनकी माँग प्रमाण ______ करो तथा महादानी और ______ बनो।

    रचना /  सन्तुष्ट /  वरदानी

 

 5  बाप कहते हैं- ______ ’ ____ ________ नयों के प्रति _______ बाप-दादा का स्नेह है।

 

    ’वाह बच्चे /  ‘शाबास बच्चे /  विशेष

 

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:- 【✔】【✖】

 

1      :- वर्तमान समय बाप के सहयोगियों का ऐसा एवररेडी ग्रुप चाहिए। 【✔】

 

 2  :- आप लोग, सप्ताह कोर्स समाप्त करने से पहले, किसी भी आत्मा को क्लास में नही देखने देते हो। 【✖】

  आप लोग, सप्ताह कोर्स समाप्त करने से पहले, किसी भी आत्मा को क्लास में नहीं आने देते हो।

 

2      :- आज कल्प पहले वाले, बहुत काल से बिछुड़े हुए, बाप की याद में तड़पने वाले व अव्यक्त मिलन मनाने के शुद्ध संकल्प में रमण करने वाले, अपने स्नेह की डोर से बाप-दादा को भी बांधने वाले और अव्यक्त को भी आप-समान व्यक्त में बनाने वाले, वह नये-नये बच्चे व साकारी देश में दूर-देशी बच्चे जो हैं, उनके प्रति विशेष मिलन के लिए बाप-दादा को आना पड़ा है। 【✔】

 

 4  :- व्यक्त द्वारा व्यक्त मिलन, सदा काल तो हो नही सकता। इसलिए आने के बाद, जाना होता है। 【✖】

  व्यक्त द्वारा अव्यक्त मिलन, सदा काल तो हो नहीं सकता। इसलिए आने के बाद, जाना होता है।

 

 5   :- सर्व-शस्त्र अर्थात् सर्व-शक्तियाँ। अगर एक भी शस्त्र या शक्ति कम है व कमजोर है। 【✔】