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AVYAKT MURLI

30 / 06 / 74

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30-06-74   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

अव्यक्त स्थिति में स्थित होने से पुरूषार्थ की गति में तीव्रता

प्रकृति के और विकारों के आकर्षण सेl सदा परे रहने वाले, विश्व की सर्व- आत्माओं की सेवा करने वाले और सदा विदेही परम पिता परमात्मा शिव बोले:-

आज सभी बच्चों को सूक्ष्म वतन का समाचार सुनाते हैं। आप सबकी रूचि होती है ना कि सूक्ष्म वतन की सैर करें अर्थात् एक बार वतन को जरूर देखें? पता है कि यह इच्छा व संकल्प क्यों होता है? क्योंकि बाप-दादा, सूक्ष्म वतन वासी बन, पार्ट बजाते हैं इसलिए संकल्प आता है कि हम भी एक बार बाप-दादा के साथ यह अनुभव करें। इसलिए बाप-दादा ही अपना अनुभव सुना देते हैं। यह तो मालूम है ना कि सबसे मुख्य अनुभव करने व सुनने का दृश्य किस समय होता है? विशेष बच्चों के प्रति अमृतवेले का समय ही निश्चित है। फिर तो, विश्व की अन्य आत्माओं के प्रति, यथा-शक्ति भावना का फल व कोई भी रजोप्रधान कर्म, अल्पकाल के लिए जिन आत्माओं द्वारा होते रहते हैं उनको भी उनके कर्मों के अनुसार अल्पकाल के लिये फल देने के प्रति, साथ-साथ सच्चे भक्तों की पुकार सुनने और भक्तों की भिन्न-भिन्न  प्रकार की भावना के अनुसार साक्षात्कार कराने और अब तक भी चारों ओर कल्प पहले वाले छुपे हुए ब्राह्मण आत्माओं को सन्देश पहुंचाने के लिए, बच्चों को निमित्त बनाने के कार्य में, पुरानी दुनिया को समाप्त कराने-अर्थ निमित्त बने हुए, वैज्ञानिकों की देख-रेख करने, ज्ञानी तू आत्मा, स्नेही व सहयोगी बच्चों को, सारे दिन के अन्दर ईश्वरीय सेवा का कार्य करने व मायाजीत बनने में हिम्मते बच्चे, मददे बाप के नियम के अनुसार, उनको भी मदद देने के कर्त्तव्य में, ड्रामानुसार निमित्त बने हैं। अब समझा कि बाप सारे दिन क्या करते हैं? साकार बाप भी अब अव्यक्त होने के कारण क्विक-स्पीड में निराकार बाप के साथी व सहयोगी सदाकाल के लिए बनने का पार्ट बजा सकते हैं।

ब्रह्मा बाबा, अव्यक्त शरीरधारी, शरीर के बन्धन में न होने के कारण, जैसे अब क्विक-स्पीड में बाप-समान साथी बने हैं, वैसे व्यक्त में साथी नहीं बन सकते थे, क्यों नहीं बन सकते थे? कारण क्या है? जो व्यक्त और अव्यक्त रूप में, अन्तर पड़ जाता है कि व्यक्त शरीर में फिर भी व्यक्त शरीर के प्रति, समय देना पड़ता है और कभी-कभी कर्मभोग के प्रति भी, अपने निमित्त सर्व-शक्तियों को यूज़ करना पड़ता है। तो व्यक्त शरीर में स्वयं के प्रति, बच्चों के प्रति और विश्व के प्रति इन तीनों में ही, समय देना पड़ता है और व्यक्त शरीरधारी होने के कारण व्यक्त साधनों के आधार पर सर्विस करनी पड़ती है। लेकिन अव्यक्त रूप में स्वयं के प्रति भी साधनों का आधार नहीं लेना पड़ता। इस प्रकार एक तो सम्पूर्ण होने के नाते, सम्पूर्णता की तीव्रगति है, दूसरा स्वयं पर, समय व शक्तियाँ यूज न करने के कारण सेवा में भी तीव्र गति है। तीसरा विनाशी साधनों का आधार न होने के कारण संकल्प की गति भी तीव्र है। संकल्प द्वारा कहीं भी पहुंचने और विनाशी शरीर द्वारा कहाँ पहुंचने में, समय और शक्ति का कितना अन्तर पड़ जाता है! ऐसे ही व्यक्त और अव्यक्त की गति में भी अन्तर है।

साइंस वाले, समय को और अपनी एनर्जी अर्थात् मेहनत को, साधनों के विस्तार को, सूक्ष्म और शार्ट कर रहे हैं। कम-से-कम एक सेकेण्ड तक पहुंचने का तीव्र पुरूषार्थ कर रहे हैं और सफलता को पा रहे हैं जैसे विनाश के अर्थ, निमित्त बनी हुई आत्माओं की गति, सूक्ष्म और तीव्र होती जा रही है तो ऐसे ही स्थापना के अर्थ निमित्त बनी हुई आत्माओं की स्थिति और गति भी सूक्ष्म और तीव्र होनी चाहिये ना? तभी तो दोनों कार्य सम्पन्न होंगे। तो अब व्यक्त शरीर में और अव्यक्त शरीर में अन्तर समझा? अव्यक्त होना ड्रामा अनुसार किस सेवा के निमित्त बना हुआ है, क्या इस रहस्य को समझा? ब्रह्मा का पार्ट स्थापना के कार्य में, अन्त तक नूंधा हुआ है। जब तक, स्थापना का कार्य सम्पन्न नहीं हुआ है, तब तक निमित्त बनी हुई आत्मा (ब्रह्मा) का पार्ट समाप्त नहीं होना है। वह तब तक दूसरा पार्ट नहीं बजा सकते। जगत पिता के नये जगत की रचना सम्पन्न करने का पार्ट ड्रामा में नूँधा हुआ है। मनुष्य-सृष्टि की सर्व-वंशावली रचने का सिर्फ ब्रह्मा के लिए ही गायन है ग्रेट-ग्रेट ग्रैण्ड फादर (Great Great Grand Father) इसीलिये गाया हुआ है। सिर्फ स्थिति, स्थान और गति (स्पीड) का परिवर्तन हुआ है, लेकिन पार्ट ब्रह्मा का अभी तक वही है।

कइयों के संकल्प पहुंचते हैं कि इतना समय बाबा क्या कर रहा है? बाप भी प्रश्न पूछते हैं कि क्या ब्रह्मा के साथ ब्राह्मणों का, सर्व-आत्माओं के कल्याण-अर्थ निमित्त बनने का पार्ट व नई सृष्टि की स्थापना का नूंधा हुआ पार्ट समाप्त हुआ है? जब पार्ट समाप्त नहीं हुआ और सृष्टि का परिवर्तन ही नहीं हुआ, तो ब्रह्मा का पार्ट समाप्त कैसे होगा? स्नेह वे कारण ही संकल्प आता है कि वतन में इतना समय क्या करेंगे? वतन का पार्ट इतना समय क्यों और कैसे, यह संकल्प कब आता है? यह भी एक गुप्त रहस्य है। कर्म-बन्धन से मुक्त, सम्पन्न हुई आत्मा, इस कल्प के जन्म-मरण के चक्र को समाप्त करने वाली आत्मा, निराकार बाप की फर्स्ट नम्बर साथी आत्मा, विश्व के कल्याण प्रति निमित्त बनी हुई फर्स्ट आत्मा, स्वयं के प्रति और विश्व के प्रति सर्व- सिद्धि प्राप्त हुई आत्मा, जहाँ चाहे और जितना समय चाहे, वह वहाँ स्वतन्त्र रूप में पार्ट बजा सकती है। जब अल्पकाल की सिद्धि प्राप्त करने वाली आत्माएं, अपनी सिद्धि के आधार पर अपने रूप परिवर्तन कर सकती हैं, तो सर्व-सिद्धि प्राप्त हुई आत्मा अव्यक्त रूपधारी बन कर, जितना समय चाहे क्या वह उतना समय ड्रामा- अनुसार नहीं रह सकती?

आत्मा को निराकारी व अव्यक्त स्टेज से व्यक्त में लाने का कारण क्या होता है? एक कर्मों का बन्धन, दूसरा सम्बन्ध का बन्धन, तीसरा व्यक्त सृष्टि के पार्ट का बन्धन और देह का बन्धन-चोला तैयार होता है और आत्मा को पुराने से नये में आकर्षित करता है-तो इन सब के बन्धनों को सोचो। स्थापना के पार्ट का जो बन्धन है, वह व्यक्त से अव्यक्त रूप में और ही तीव्र गति से हो रहा है। इस कल्प के अन्दर अब अन्य देह के आकर्षण का बन्धन नहीं, देहधारी बन कर्म-बन्धनों में आने का बन्धन समाप्त कर लिया। जब सर्व-बन्धनों से मुक्त आत्मा बन गई, तो यह व्यक्त देह व व्यक्त देश आत्मा को खींच नहीं सकते। जैसे साइन्स द्वारा भी स्पेस में चले जाते हैं और धरनी के आकर्षण से परे हो जाते हैं, तो धरनी उनको खींच नहीं सकती। ऐसे ही जब तक नये कल्प में, नये जन्म और नई दुनिया में पार्ट बजाने का समय नहीं आया है, तब तक यह आत्मा स्वतन्त्र है और वह व्यक्त-बन्धनों से मुक्त है। समझा?

इसलिए, अब भिन्न-भिन्न प्रकार के संकल्प नहीं करना। ब्राह्मण बच्चों के साथ जो बाप का वायदा है कि साथ चलेंगे, साथ मरेंगे और साथ जियेंगे अर्थात् पार्ट समाप्त करेंगे; ब्रह्मा बाप ने बच्चों के साथ जो कॉन्ट्रैक्ट विश्व-परिवर्तन का उठाया है, वह आधे में छोड़ सकते हैं क्या? स्थापना के कार्य में निमित्त बनी हुई नींव (फाउण्डेशन) बीच से निकल सकती है क्या? ‘जो कर्म मैं करूँगा, मुझे देख सब करेंगे’, यह स्लोगन कर्म-अर्थ निमित्त बनी हुई आत्मा समाप्त नहीं करेगी। अभी सेवा का कर्म बाप को देखते हुए कर रहे हो ना? कर्म करके दिखाने के निमित्त बनी हुई आत्मा, अन्त तक साथी और सहयोगी अवश्य बनती है। अच्छा, यह हुआ संकल्प का रेसपान्स। अमृतवेले का समाचार फिर दूसरी बार सुनावेंगे। क्योंकि वह विशेष तौर से बाप और बच्चों का ही समाचार है और उसका तो विस्तार होगा। अच्छा!

ऐसे गुह्य राजों को समझने वाले राज़-युक्त, योग-युक्त, ज्ञान-युक्त, युक्ति- युक्त, सर्वगुणों से युक्त, प्रकृति और विकारों के आकर्षण से सदा परे रहने वाले, बाप के साथ स्थापना के कार्य में तीव्रगति से सहयोगी बनने वाले और सदा स्नेही आत्माओं को बाप-दादा का याद-प्यार, गुडनाइट और नमस्ते।

इस मुरली का सार

1. सूक्ष्म वतन में रहते हुए भी अव्यक्त बाप-दादा भक्तों की पुकार सुनने, वैज्ञानिकों की देख-रेख करने, छिपे हुये बच्चों को खोज निकालने और ब्राह्मण बच्चों की, पुरूषार्थ और सेवा में मदद करने का कार्य करते हैं।

2. अव्यक्त शरीरधारी होने से एक तो सम्पूर्ण होने के कारण सम्पूर्णता की तीव्र गति है, दूसरे स्वयं पर समय व शक्ति यूज़ न करने के कारण सेवा में तीव्र गति है और तीसरे विनाशी साधनों का आधार न होने के कारण संकल्प की गति भी तीव्र है।

 

 

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QUIZ QUESTIONS

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 प्रश्न 1 :- व्यक्त में सर्विस करने और अव्यक्त रूप में सर्विस करने में क्या अंतर हो जाता है?

 प्रश्न 2 :- सम्पूर्णता के बारे में बाप दादा ने क्या कहा है?

 प्रश्न 3 :- ब्रह्मा बाबा के पार्ट के विषय में बाबा ने क्या कहा है?

 प्रश्न 4 :- सर्व बन्धनों से मुक्त आत्मा की क्या विशेषता होती है?

 प्रश्न 5 :-आत्मा को निराकारी व अव्यक्त स्टेज से व्यक्त में लाने का कारण क्या होता है?

 

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

{ सूक्ष्म, अव्यक्त, साथी, अनुभव, ड्रामा, रचना, बापदादा, निमित्त, स्पीड, संकल्प, साथी, समय, दृश्य, जगत, सहयोगी }

 1   बाप-दादा, ______ वतन वासी बन, पार्ट बजाते हैं इसलिए ______ आता है कि हम भी एक बार ______ के साथ यह अनुभव करें।

 2  ब्रह्मा बाबा, _______ शरीरधारी, शरीर के बन्धन में न होने के कारण, जैसे अब क्विक_______ में बाप-समान साथी बने हैं, वैसे व्यक्त में ______ नहीं बन सकते थे।

 3  यह तो मालूम है ना कि सबसे मुख्य_______ करने व सुनने का ______ किस _______ होता है?

 4  ______ पिता के नये जगत की______  सम्पन्न करने का पार्ट______ में नूँधा हुआ है।

 5  कर्म करके दिखाने के______  बनी हुई आत्मा, अन्त तक______  और  _______अवश्य बनती है।

 

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-

 1  :- विशेष भक्तों के प्रति अमृतवेले का समय ही निश्चित है।

 2  :- ब्रह्मा का पार्ट स्थापना के कार्य में,अन्त तक नूंधा हुआ है।

 3  :- सिर्फ स्थिति, स्थान और गति (स्पीड) का परिवर्तन हुआ है, लेकिन पार्ट ब्रह्मा का अभी तक वही है।

 4  :- मनुष्य-सृष्टि की सर्व-वंशावली रचने का सिर्फ ब्रह्मा के लिए ही गायन है।

 5   :- अभी सेवा का कर्म स्वर्ग को देखते हुए कर रहे हो ना?

 

 

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QUIZ ANSWERS

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 प्रश्न 1 :- व्यक्त में सर्विस करने और अव्यक्त रूप में सर्विस करने में क्या अंतर हो जाता है?

   उत्तर 1 :- व्यक्त और अव्यक्त सर्विस के बारे में बाबा ने बताया कि- 

           व्यक्त शरीर में फिर भी व्यक्त शरीर के प्रति, समय देना पड़ता है और कभी-कभी कर्मभोग के प्रति भी, अपने निमित्त सर्व-शक्तियों को यूज़ करना पड़ता है।

           व्यक्त शरीर में स्वयं के प्रति, बच्चों के प्रति और विश्व के प्रति इन तीनों में ही, समय देना पड़ता है और व्यक्त शरीरधारी होने के कारण व्यक्त साधनों के आधार पर सर्विस करनी पड़ती है।

           अव्यक्त रूप में स्वयं के प्रति भी साधनों का आधार नहीं लेना पड़ता।

 

प्रश्न 2 :- सम्पूर्णता के बारे में बाप दादा ने क्या कहा है? 

 उत्तर 2 :- इस एक तो सम्पूर्ण होने के नाते, सम्पूर्णता की तीव्रगति है, दूसरा स्वयं पर, समय व शक्तियाँ यूज न करने के कारण सेवा में भी तीव्र गति है। तीसरा विनाशी साधनों का आधार न होने के कारण संकल्प की गति भी तीव्र है। संकल्प द्वारा कहीं भी पहुंचने और विनाशी शरीर द्वारा कहाँ पहुंचने में, समय और शक्ति का कितना अन्तर पड़ जाता है!

 प्रश्न 3 :- ब्रह्मा बाबा के पार्ट के विषय में बाबा ने क्या कहा है?

 

 उत्तर 3 :- ब्राह्मण बच्चों के साथ जो बाप का वायदा है कि साथ चलेंगे, साथ मरेंगे और साथ जियेंगे अर्थात् पार्ट समाप्त करेंगे; ब्रह्मा बाप ने बच्चों के साथ जो कॉन्ट्रैक्ट विश्व-परिवर्तन का उठाया है, वह आधे में छोड़ सकते हैं क्या? स्थापना के कार्य में निमित्त बनी हुई नींव (फाउण्डेशन) बीच से निकल सकती है क्या? ‘जो कर्म मैं करूँगा, मुझे देख सब करेंगे’, यह स्लोगन कर्म-अर्थ निमित्त बनी हुई आत्मा समाप्त नहीं करेगी।

 प्रश्न 4 :- सर्व बन्धनों से मुक्त आत्मा की क्या विशेषता होती है?

 

 उत्तर 4 :- इस कल्प के अन्दर अब अन्य देह के आकर्षण का बन्धन नहीं, देहधारी बन कर्म-बन्धनों में आने का बन्धन समाप्त कर लिया। जब सर्व-बन्धनों से मुक्त आत्मा बन गई, तो यह व्यक्त देह व व्यक्त देश आत्मा को खींच नहीं सकते। जैसे साइन्स द्वारा भी स्पेस में चले जाते हैं और धरनी के आकर्षण से परे हो जाते हैं, तो धरनी उनको खींच नहीं सकती। ऐसे ही जब तक नये कल्प में, नये जन्म और नई दुनिया में पार्ट बजाने का समय नहीं आया है, तब तक यह आत्मा स्वतन्त्र है और वह व्यक्त-बन्धनों से मुक्त है। 

 प्रश्न 5 :-आत्मा को निराकारी व अव्यक्त स्टेज से व्यक्त में लाने का कारण क्या होता है?

 

 उत्तर 5 :- एक कर्मों का बन्धन, दूसरा सम्बन्ध का बन्धन, तीसरा व्यक्त सृष्टि के पार्ट का बन्धन और देह का बन्धन-चोला तैयार होता है और आत्मा को पुराने से नये में आकर्षित करता है।

 

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

{ सूक्ष्म, अव्यक्त, साथी, अनुभव, ड्रामा, रचना, बापदादा, निमित्त, स्पीड, संकल्प, साथी, समय, दृश्य, जगत, सहयोगी }

 1   बाप-दादा, ______ वतन वासी बन, पार्ट बजाते हैं इसलिए ______ आता है कि हम भी एक बार ______ के साथ यह अनुभव करें।

       सूक्ष्म /  संकल्प /  बापदादा

 

 2  ब्रह्मा बाबा, _______ शरीरधारी, शरीर के बन्धन में न होने के कारण, जैसे अब क्विक_______ में बाप-समान साथी बने हैं, वैसे व्यक्त में ______ नहीं बन सकते थे। 

    अव्यक्त  / स्पीड /  साथी

 

 3  यह तो मालूम है ना कि सबसे मुख्य_______ करने व सुनने का ______ किस _______ होता है?

    अनुभव /  दृश्य /  समय

 

 4  ______ पिता के नये जगत की______  सम्पन्न करने का पार्ट______ में नूँधा हुआ है।

    जगत  रचना  ड्रामा

 

 5  कर्म करके दिखाने के______  बनी हुई आत्मा, अन्त तक ______  और  _______अवश्य बनती है।

    निमित्त /  साथी /  सहयोगी

 

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-

 1  :- विशेष भक्तों के प्रति अमृतवेले का समय ही निश्चित है।

  विशेष बच्चों के प्रति अमृतवेले का समय ही निश्चित है।

 

 2  :- ब्रह्मा का पार्ट स्थापना के कार्य में,अन्त तक नूंधा हुआ है।

 

 3  :-सिर्फ स्थिति, स्थान और गति (स्पीड) का परिवर्तन हुआ है, लेकिन पार्ट ब्रह्मा का अभी तक वही है।

 

 4  :-  मनुष्य-सृष्टि की सर्व-वंशावली रचने का सिर्फ ब्रह्मा के लिए ही गायन है।

 

 5   :- अभी सेवा का कर्म स्वर्ग को देखते हुए कर रहे हो ना?  【 

  अभी सेवा का कर्म बाप को देखते हुए कर रहे हो ना