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AVYAKT MURLI
30 / 01 / 75
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30-01-75 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
सेकेण्ड में व्यक्त से अव्यक्त होने की स्पीड
सर्व शक्तिवान् शिव बाबा बोले –
सभी इस समय जिस एक ही लगन, एक ही संकल्प में बैठे हुए हो, वह एक ही संकल्प व लगन कौनसी है? बाप का आह्वान करना व बाप-बच्चे के मिलन का मेला मनाना? जब सर्व शक्तिवान् बाप का आह्वान स्नेह और दृढ़ संकल्प से कर सकते हो तो क्या स्वयं में जिस भी शक्ति की कमी या कमजोरी महसूस करते हो, उस शक्ति का अपने में आह्वान नहीं कर सकते हो? जब बाप को अव्यक्त से व्यक्त बना सकते हो, केवल याद से, स्नेह के बल से, अधिकार प्राप्त होने के बल से और समीप सम्बन्ध के बल से तो ऐसे ही हर शक्ति को वा स्वयं को भी व्यक्त से अव्यक्त नहीं बना सकते हो? जब बाप को अव्यक्त से व्यक्त में लाना सहज है तो स्वयं को अव्यक्त बनाना मुश्किल क्यों?
पुराने जमाने की कहानियाँ प्रसिद्ध हैं कि ताली बजाने से वस्तु व व्यक्ति हाजिर हो जाते थे व परियाँ प्रत्यक्ष हो जाती थीं। यह परियों की कहानी प्रसिद्ध है। ये कहानियाँ किन के बारे में हैं? ज्ञान-परियाँ व तीनों लोकों में उड़ने वाली परियाँ कौन-सी हैं? अपने को समझती हो न? ज्ञान और याद के दोनों पंख लगे हुए हैं ना? आप ज्ञान और याद के बल से एक सेकेण्ड में, अर्थात् - इन पंखों के आधार से साकार लोक से निराकार लोक तक पहुँच जाते हो न? ऐसे फरिश्ते-समान परियों को एक सेकेण्ड में जिस शक्ति की आवश्यकता हो, संकल्प किया व आह्वान किया और वह शक्ति स्वरूप में आ जाये - ऐसी ताली बजानी आती है? ऐसी परियाँ बनी हो जिन्हों का हर कल्प गायन होता आया है।वर्तमान समय का पुरूषार्थ एक सेकेण्ड की गति का होना चाहिए। तब कहेंगे कि समय और स्वयं, दोनों की रफ्तार समान है। इसको ही फास्ट या फर्स्ट स्टेज कहा जाता है। संगम युग पर सर्व शक्तियाँ ऐसे अपने अधिकार में चाहिये। स्वयं में शस्त्र-समान शक्तियाँ हों, जो जब चाहो कर्त्तव्य में ला सको। समझा? अच्छा।
इस मुरली का सार
1. संगमयुग पर सर्व शक्तियाँ ऐसे अपने अधिकार में चाहिये जैसे कि पुराने जमाने की कहानियों में प्रसिद्ध है कि ताली बजाने से वस्तु व व्यक्ति हाजिर हो जाते थे व परियाँ प्रत्यक्ष हो जाती थीं। जब सर्व शक्तिमान् का आह्वान स्नेह और दृढ़ संकल्प से कर सकते हैं तो इच्छित शक्ति का आह्वान करना भी मुश्किल नहीं है।
2. अब समय और स्वयं दोनों की रफ्तार को एक-समान करो। इसका भावार्थ यह है कि सर्व शक्तियों को अपने अधिकार में ऐसे करो कि जब चाहो उनका प्रयोग कर सको।
01-02-75 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
ईश्वर के साथ का और लगन की अग्नि का अनुभव।
प्रकृति को दासी बनाकर सदा उदासी को दूर करने की युक्तियाँ बताने वाले शिव बाबा बोलेः- जो समीप होते हैं, वही समान बनते हैं। जैसे साकार रूप में समीप हो, वैसे ही लगन लगाने में भी बापदादा के तख्त-निवासी हो? जैसे तन से समीप हो, वैसे ही मन से भी समीप हो? जैसे विदेश में रहने वाले तन से दूर होते भी, मन से सदैव समीप हैं, बापदादा के सदैव साथी ही हैं अर्थात् हर समय साथी बनकर साथ का अनुभव करते हैं, वैसे सदैव साक्षी बनने का व साथ निभाने का अनुभव करते हो? जैसे बन्धन में रहने वाली गोपिकाएँ हर श्वास, हर संकल्प बाबा-बाबा की धुन में ही खोई रहती हो? जैसे बाहर वालों को मिलन की तड़प रहती है ऐसे ही हर समय याद की तड़फ में रहते हो या साधारण स्मृति में रहते हो? हम तो हैं ही बाबा के, हम तो हैं ही समीप, हम तो हैं ही समर्पण और हमारा तो एक बाबा है ही - सिर्फ इन संकल्पों ही से तो संतुष्ट नहीं हो गये हो? अपनी लगन में अग्नि की महसूसता आती है? जिस लगन की अग्नि में स्वयं के पास्ट के संस्कार और स्वभाव और अन्य आत्माओं के दु:खदायी संस्कार व स्वभाव को भस्म कर सको? ज्ञान द्वारा अथवा स्नेह व सम्पर्क द्वारा संस्कार परिवर्तित करते तो हो, लेकिन उसमें समय लगता है। मिटा हुआ-सा संस्कार फिर भी कब प्रत्यक्ष हो जाता है, लेकिन अब समय लगन की अग्नि में भस्म करने का है, जो फिर उस संस्कार का नामोनिशान भी न रहे।इस मुक्ति की युक्ति कौनसी है? अर्थात् इस लगन की अग्नि को पैदा करने की युक्ति व तीली कौनसी है? तीली से आग जलाते हो न? तो इस अग्नि को प्रज्वलित करने की कौन-सी तीली है? एक शब्द कौन-सा है? दृढ़ संकल्प। अर्थात् मर जायेंगे और मिट जायेंगे लेकिन करना ही है। करना तो चाहिए, होना तो चाहिए, कर ही रहे हैं, हो ही जायेगा, अटेन्शन तो रहता है, और महसूस भी करते हैं - ऐसा सोचना एक प्रकार से यह बुझी हुई तीली है। बार-बार मेहनत भी करते हो, समय भी लगाते हो लेकिन अग्नि प्रज्वलित नहीं होती। कारण यह है कि संकल्प रूपी बीज और दृढ़ता रूपी सार सम्पन्न नहीं है, अर्थात् खाली है। इस कारण जो फल की आशा रखते हो व भविष्य सोचते हो, वह पूर्ण नहीं हो पाता है और चलते-चलते मेहनत ज्यादा, प्राप्ति कम देखते हो तो दिलशिकस्त व अलबेले हो जाते हो। तब कहते हो कि करते तो हैं लेकिन मिलता नहीं, तो क्यों करें, हमारा पार्ट ही ऐसा है। यह दिल-शिकस्त व अलबेलेपन के और फल न देने वाले संकल्प हैं।
आप अन्य आत्माओं को संगमयुग की विशेषता कौनसी बताते हो? सभी को कहते हो कि संगमयुग है - असम्भव से सम्भव होने का। जो बात सारी दुनिया असम्भव समझती है, वह सम्भव करने का युग यही है। तो स्वयं को भी जो मुश्किल व असम्भव महसूस होता है, उसको एक सेकेण्ड में सम्भव करना - यह है दृढ़ संकल्प। सहज को अथवा सम्भव को प्रैक्टिकल में लाना कोई बड़ी बात नहीं। लेकिन असम्भव को सम्भव करना और दृढ़ संकल्प से करना - यह है पास विद ऑनर की निशानी। अब यह नवीनता करके दिखाओ। तब इस नवीनता पर मार्क्स देंगे। जैसे स्टूडेण्ट हर वर्ष की टोटल रिजल्ट देखते हैं कि हर सब्जेक्ट में कितना परसेन्टेज रहा? वैसे ही अपना रिजल्ट देखना है कि किस बात में चढ़ती कला हुई, किस पुरूषार्थ के आधार से चढ़ती कला हुई व किस सब्जेक्ट में कमी रही, वह पूरा हिसाब निकालो। मुबारिक भी बापदादा सदैव देते हैं क्योंकि सृष्टि का बड़ा दिन तो यही है ना। प्रकृति दासी होती है, परन्तु दासी के कभी दास न बनना और दास बनने की निशानी होगी उदासी। किसी-न-किसी संस्कार व स्वभाव के दास बनते हो, तब उदास होते हो। अच्छा। ओम् शान्ति।
इस मुरली का सार
पास विद ऑनर की क्या निशानी है?
1. जैसे आप सभी को कहते हो कि संगमयुग है - असम्भव से सम्भव होने का। जो बात सारी दुनिया असम्भव समझती है, वह सम्भव करने का युग यही है। तो स्वयं को भी जो मुश्किल व असम्भव महसूस होता है, उसको एक सेकेण्ड में सम्भव करना है। असम्भव को संभव करना और दृढ़ संकल्प से करना - यही है पास विद ऑनर की निशानी।
2. अब समय है पुराने संस्कारों को लगन की अग्नि में भस्म करने का जो फिर इस संस्कार का नामोनिशान भी न रहे।
3. जैसे स्टूडेन्ट हर वर्ष की टोटल रिजल्ट देखते हैं कि हर सब्जेक्ट में कितना परसेन्टेज रही, वैसे ही अपना रिजल्ट देखना है कि किस बात में चढ़ती कला हुई, किस पुरूषार्थ के आधार से चढ़ती कला हुई व किस सब्जेक्ट में कमी रही, वह पूरा हिसाब निकालो।
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QUIZ QUESTIONS
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प्रश्न 1 :- बापदादा के अनुसार वर्तमान समय का पुरूषार्थ कैसा होना चाहिए?
प्रश्न 2 :- संगमयुग पर सर्व शक्तियों के बारे में बापदादा ने क्या समझानी दी है?
प्रश्न 3 :- लगन की अग्नि प्रज्वलित न होने का कारण और परिणाम क्या है ?
प्रश्न 4 :- संगम युग की विशेषता बताते हुए बताइए कि पास विद ऑनर की बापदादा ने क्या निशानी बताई है?
प्रश्न 5 :- अपना रिजल्ट देखने की बापदादा ने क्या युक्ति बताई है?
FILL IN THE BLANKS:-
{ दासी, स्वभाव, उदास, दास, उदासी,महसूस, साकार,अटैन्शन, निराकार }
1 प्रकृति ____ होती है, परन्तु दासी के कभी ______ न बनना।
2 किसी-न-किसी संस्कार व ____ के दास बनते हो, तब____ होते हो।
3 दास बनने की निशानी होगी _____।
4 करना तो चाहिए, होना तो चाहिए, कर ही रहे हैं, हो ही जायेगा, ____तो रहता है, और____ भी करते हैं - ऐसा सोचना एक प्रकार से यह बुझी हुई तीली है।
5 आप ज्ञान और याद के बल से एक सेकेण्ड में, अर्थात् - इन पंखों के आधार से ____ लोक से ____ लोक तक पहुँच जाते हो न?
सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-
1 :- अब समय और स्वयं दोनों की रफ्तार को धीमी करो।
2 :- सर्व शक्तियों को अपने साथ में ऐसे करो कि जब चाहो उनका प्रयोग कर सको।
3 :- जब सर्व शक्तिवान् बाप का आह्वान स्नेह और दृढ़ संकल्प से कर सकते हो तो क्या स्वयं में जिस भी शक्ति की कमी या कमजोरी महसूस करते हो, उस शक्ति का अपने में आह्वान नहीं कर सकते हो?
4 :- ज्ञान-परियाँ व यहाँ वहाँ में उड़ने वाली परियाँ कौन-सी हैं? अपने को समझती हो न?
5 :- सभी इस समय जिस एक ही लगन, एक ही संकल्प में बैठे हुए हो, वह एक ही संकल्प व लगन कौन सी है? बाप का आह्वान करना व बाप-बच्चे के मिलन का मेला मनाना?
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QUIZ ANSWERS
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प्रश्न 1 :- बापदादा के अनुसार वर्तमान समय का पुरूषार्थ कैसा होना चाहिए?
उत्तर 1 :- बापदादा कहते है:-
❶ वर्तमान समय का पुरूषार्थ एक सेकेण्ड की गति का होना चाहिए। तब कहेंगे कि समय और स्वयं, दोनों की रफ्तार समान है।
❷ इसको ही फास्ट या फर्स्ट स्टेज कहा जाता है।
❸ संगम युग पर सर्व शक्तियाँ ऐसे अपने अधिकार में चाहिये। स्वयं में शस्त्र-समान शक्तियाँ हों, जो जब चाहो कर्त्तव्य में ला सको।
प्रश्न 2 :- संगम युग पर सर्व शक्तियों के बारे में बापदादा ने क्या समझानी दी है?
उत्तर 2 :- सर्व शक्तियों के बारे में समझानी देते बाबा कहते है कि :-
❶ संगमयुग पर सर्व शक्तियाँ ऐसे अपने अधिकार में चाहिये जैसे कि पुराने जमाने की कहानियों में प्रसिद्ध है कि ताली बजाने से वस्तु व व्यक्ति हाजिर हो जाते थे व परियाँ प्रत्यक्ष हो जाती थीं।
❷ जब सर्व शक्तिमान् का आह्वान स्नेह और दृढ़ संकल्प से कर सकते हैं तो इच्छित शक्ति का आह्वान करना भी मुश्किल नहीं है।
प्रश्न 3 :- लगन की अग्नि प्रज्वलित न होने का कारण और परिणाम क्या है ?
उत्तर 3 :- लगन की अग्नि प्रज्वलित न होने का कारण बताते बापदादा कहते :-
❶ बार-बार मेहनत भी करते हो, समय भी लगाते हो लेकिन अग्नि प्रज्वलित नहीं होती। कारण यह है कि संकल्प रूपी बीज और दृढ़ता रूपी सार सम्पन्न नहीं है, अर्थात् खाली है।
❷ इस कारण जो फल की आशा रखते हो व भविष्य सोचते हो, वह पूर्ण नहीं हो पाता है।
❸ और चलते-चलते मेहनत ज्यादा, प्राप्ति कम देखते हो तो दिलशिकस्त व अलबेले हो जाते हो।
❹ तब कहते हो कि करते तो हैं लेकिन मिलता नहीं, तो क्यों करें,
❺ हमारा पार्ट ही ऐसा है। यह दिल-शिकस्त व अलबेलेपन के और फल न देने वाले संकल्प हैं।
प्रश्न 4 :- संगम युग की विशेषता बताते हुए बताइए कि पास विद ऑनर की बापदादा ने क्या निशानी बताई है?
उत्तर 4 :- बापदादा कहते-
❶ जो बात सारी दुनिया असम्भव समझती है, वह सम्भव करने का युग यही है।
❷ स्वयं को भी जो मुश्किल व असम्भव महसूस होता है, उसको एक सेकेण्ड में सम्भव करना - यह है दृढ़ संकल्प।
❸ सहज को अथवा सम्भव को प्रैक्टिकल में लाना कोई बड़ी बात नहीं। लेकिन असम्भव को सम्भव करना और दृढ़ संकल्प से करना - यह है पास विद ऑनर की निशानी।
प्रश्न 5 :- अपना रिजल्ट देखने की बापदादा ने क्या युक्ति बताई है?
उत्तर 5 :- अपना रिजल्ट देखने की बापदादा ने क्या युक्ति बताते बापदादा कहते-
❶ जैसे स्टूडेण्ट हर वर्ष की टोटल रिजल्ट देखते हैं कि हर सब्जेक्ट में कितना परसेन्टेज रहा? वैसे ही अपना रिजल्ट देखना है कि किस बात में चढ़ती कला हुई।
❷ किस पुरूषार्थ के आधार से चढ़ती कला हुई व किस सब्जेक्ट में कमी रही, वह पूरा हिसाब निकालो।
FILL IN THE BLANKS:-
{ दासी, स्वभाव, उदास, दास, उदासी,महसूस, साकार,अटेन्शन निराकार }
1 प्रकृति ____ होती है, परन्तु दासी के कभी ____ न बनना।
दासी / दास
2 किसी-न-किसी संस्कार व ____ के दास बनते हो, तब____ होते हो।
स्वभाव / उदास
3 दास बनने की निशानी होगी _____।
उदासी
4 करना तो चाहिए, होना तो चाहिए, कर ही रहे हैं, हो ही जायेगा, ____तो रहता है, और____ भी करते हैं - ऐसा सोचना एक प्रकार से यह बुझी हुई तीली है।
अटेन्शन / महसूस
5 आप ज्ञान और याद के बल से एक सेकेण्ड में, अर्थात् - इन पंखों के आधार से ____ लोक से ____ लोक तक पहुँच जाते हो न?
साकार / निराकार
सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:- 【✔】 【✖】
1 :- अब समय और स्वयं दोनों की रफ्तार को धीमी करो। 【✖】
अब समय और स्वयं दोनों की रफ्तार को एक-समान करो।
2 :- सर्व शक्तियों को अपने साथ में ऐसे करो कि जब चाहो उनका प्रयोग कर सको।【✖】
सर्व शक्तियों को अपने अधिकार में ऐसे करो कि जब चाहो उनका प्रयोग कर सको।
3 :- जब सर्व शक्तिवान् बाप का आह्वान स्नेह और दृढ़ संकल्प से कर सकते हो तो क्या स्वयं में जिस भी शक्ति की कमी या कमजोरी महसूस करते हो, उस शक्ति का अपने में आह्वान नहीं कर सकते हो? 【✔】
4 :- ज्ञान-परियाँ व यहाँ वहाँ में उड़ने वाली परियाँ कौन-सी हैं? अपने को समझती हो न? 【✖】
ज्ञान-परियाँ व तीनों लोकों में उड़ने वाली परियाँ कौन-सी हैं? अपने को समझती हो न?
5 :- सभी इस समय जिस एक ही लगन, एक ही संकल्प में बैठे हुए हो, वह एक ही संकल्प व लगन कौन सी है? बाप का आह्वान करना व बाप-बच्चे के मिलन का मेला मनाना? 【✔】