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AVYAKT MURLI

07 / 02 / 75

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   07-02-75   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

सन्तुष्टता ही सम्पूर्णता की निशानी है

 

सर्व आत्माओं के प्रति स्नेह जगाने वाले, सर्व-हितकारी शिव बाबा बोले -

अभी इस समय अपने फीचर्स और फ्यूचर को जान सकते हो? जितना-जितना समय के समीप जा रहे हो, समय के प्रमाण अपनी सम्पूर्णता की निशानियाँ अनुभव में आती हैं? सम्पूर्णता की मुख्य निशानियाँ कौन-सी हैं? आत्मा सम्पूर्णता को पा रही है - यह मुख्य किस बात में सबको अनुभव होता है? मुख्य बात यह है कि ऐसी आत्मा सदा स्वयं से सर्व सब्जेक्टस में सन्तुष्ट रहने का अनुभव करेगी और साथ-साथ अन्य आत्मायें भी उनसे सदा सन्तुष्ट रहेगी। तो सन्तुष्टता ही सम्पूर्णता की निशानी है। जितना जितना सर्व आत्माओं की सन्तुष्टता का आशीर्वाद व सूक्ष्म स्नेह तथा सहयोग का हर समय रेसपॉन्स) मिले - इससे समझो कि इतना सम्पूर्णता के समीप आये हैं। कमाल इसमें है।

कैसे भी संस्कारों वाली, असन्तुष्ट रहने वाली आत्मा सम्पर्क में आये, वह भी सम्पर्क में यह अनुभव करे कि मैं अपने संस्कारों के कारण ही असन्तुष्ट रहती हूँ लेकिन इन विशेष आत्माओं में मेरे प्रति स्नेह व सहयोग की व रहमदिल की शुभ भावना सदा नजर आती है। अर्थात् वह अपनी ही कमजोरी महसूस करे। वह कम्पलेन्ट यह न निकाले कि यह निमित्त बनी हुई आत्मायें मुझ आत्मा को सन्तुष्ट नहीं कर सकती। सर्व आत्माओं द्वारा ऐसी सन्तुष्टमणि का सर्टिफिकेट प्राप्त हो, तब कहेंगे कि यह सम्पूर्णता के समीप हैं। जितनी सम्पूर्णता भरती जायेगी, उतनी ही सर्व आत्माओं की सन्तुष्टता भी बढ़ती जायेगी।

सर्व को सन्तुष्ट करने का मुख्य साधन कौन-सा है? (हरेक ने बताया? यह सब बातें भी आवश्यक तो हैं। यह सब बातें परिस्थिति में प्रैक्टिकल करने की हैं। मुख्य बात यह है कि जैसा समय, जैसी परिस्थिति, जिस प्रकार की आत्मा सामने हो, वैसा अपने को मोल्ड कर सकें। अपने स्वभाव और संस्कार के वशीभूत न हों। स्वभाव अथवा संस्कार ऐसे अनुभव में हों जैसे स्थूल रूप में जैसा समय, वैसा रूप, जैसा देश वैसा वेश बनाया - ऐसा सहज अनुभव होता है? ऐसे अपने स्वभाव, संस्कार को भी समय के अनुसार परिवर्तन कर सकते हो? कोई भी सख्त चीज मोल्ड नहीं हो सकती है। कड़े संस्कार भी समय-प्रमाण मोल्ड नहीं कर सकते। इसलिए ऐसे ईजी संस्कार हों कि जैसा समय, वैसे बना सकें। यह प्रैक्टिस होनी चाहिए। संकल्प भी न आये कि मेरे भी कोई संस्कार हैं, कोई स्वभाव है। जो अनादि-आदि संस्कार हैं, वही स्वरूप में हों। संस्कारों का परिवर्तन अनादि काल से है अर्थात् चक्र में आने से ही परिवर्तन में आते रहते हैं। तो आत्मा में संस्कार-परिवर्तन का ऑटोमेटिकली अभ्यास है। कभी सतोप्रधान, कभी सतो, रजो व तमो संस्कार समय-प्रमाण बदलते ही रहते हैं। अब जबकि नॉलेजफुल हो, ऊंचे-से-ऊंची स्टेज पर पार्टधारी बन पार्ट बजा रहे हो, पॉवरफुल भी हो, ब्लिसफुल भी हो, सर्वशक्तिवान् के वर्से के अधिकारी भी हो तो स्वभाव-संस्कार को समय-प्रमाण व सेवा-प्रमाण किसी के कल्याण के प्रति व स्वयं की उन्नति के प्रति परिवर्तन करना अति सहज अनुभव हो - यह है विशेष आत्माओं का अन्तिम विशेष पुरूषार्थ। ऐसे पुरूषार्थ के अनुभवी हो? ऐसे सम्पूर्ण गोल्ड बन गये हो? इससे अपने नम्बर को चेक कर सकते हो व अपने संगमयुगी भविष्य रिजल्ट को जान सकते हो? निमित्त बनी हुई विशेष आत्माएँ हो ना? तो इसकी परसेन्टेज निकालो, स्वभाव, संस्कार को अपने शस्त्र के स्वरूप में यूज़ कर सकते हो या यह मुश्किल है? इस बात में सफलता की कितनी परसेन्टेज है? दूरबाज खुशबाज वाला नहीं। किनारा करने वाला नहीं। सम्पर्क में आते हुए, सम्बन्ध में रहते हुए स्वयं ही अपना सम्पर्क, सम्बन्ध बढ़ाते सफलतामूर्त बने तब नम्बर आगे ले सकते हैं। बेहद के मालिक का बेहद से सम्बन्ध चाहिए ना। वह कैसे होगा? चान्स मिलता नहीं - लेकिन हर कार्य के योग्य स्वयं की योग्यताएं स्वत: ही निमित बना देती हैं।

इस वर्ष में ऐसी विशेषता दिखलाओ जैसे साकार बाप की विशेषता देखी। हर-एक के दिल से यह आवाज निकलता रहा-हमारा बाबा! चाहे पच्छड़माल हो, फिर भी ‘‘हमारा बाबा!’’ - यह अनुभव हर आत्मा का रहा। ऐसे सर्व विशेष आत्माओं के प्रति जब तक सर्व आत्माओं द्वारा यह स्नेह का व अधिकार का, अपनेपन की आवाज न निकले, तब तक समझो कि विश्व के मालिकपन के तख्तनशीन नहीं बन सकते। ऐसे सफलता की निशानी दिखाई दे। हर एक अनुभव करे कि ये विशेष आत्माएँ विश्व-कल्याण के प्रति हैं। यह है सम्पूर्णता की निशानी। अच्छा!

अव्यक्त वाणी का सार

1. जब आप सभी सब्जेक्ट्स में सन्तुष्ट रहने का अनुभव करेंगे तभी अन्य आत्माएँ भी सन्तुष्ट रहेगी।

2. अब सन्तुष्टमणि का सर्टिफिकेट प्राप्त करो।

3. कोई भी सख्त चीज मोल्ड नहीं हो सकती है। इसलिए संस्कार ऐसे ईजी हों कि जैसा समय वैसा स्वयं को बना सकें।

08-02-75   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

निश्चय रूपी आसन पर अचल स्थिति

 

हर परिस्थिति में अचल एवं अडोल बनाने वाले शिव बाबा बोले -

सभी अपने को निश्चय रूपी आसन पर स्थित अनुभव करते हो? निश्चय का आसन कभी हिलता तो नहीं है? किसी भी प्रकार की परिस्थिति या प्रकृति या कोई व्यक्ति निश्चय के आसन को कितना भी हिलाने का प्रयत्न करे, लेकिन वह हिला न सके - ऐसे अचल-अडोल आसन है? निश्चय के आसन में सदा अचल रहने वाला निश्चय-बुद्धि विजयन्ति गाया हुआ है। तो अचल रहने की निशानी है - हर संकल्प, बोल और कर्म में सदा विजयी। ऐसे विजयी रत्न स्वयं को अनुभव करते हो? किसी भी बात में हिलने वाले तो नहीं हो? जो समझते हैं कभी कोई बात में हलचल मच सकती है या कोई प्रकार का संकल्प भी उत्पन्न हो सकता है ऐसे पुरुषार्थी हाथ उठाओ? ऐसे कोई हैं जो समझते हों कि हाँ, हो सकता है? अगर हाथ न उठायेंगे तो पेपर बड़ा कड़ा आने वाला है, फिर क्या करेंगे? कोई भी मुश्किल पेपर आये उसमें सभी पास होने वाले हो तो पेपर की डेट अनाउन्स करें। सब ऐसे तैयार हो? फिर उस समय तो नहीं कहेंगे कि यह बात तो समझी नहीं थी और सोची नहीं थी, यह तो नई बात आ गई है? निश्चय की परीक्षा है कि जिन बातों को सम्भव समझते हो, वह असम्भव के रूप में पेपर बन के आयेंगी, फिर भी अचल रहोगे?

निश्चय-बुद्धि बनने की मुख्य चार बातें हैं। चारों में परसेन्टेज फुल चाहिए। वह चार बातें जानते भी हो और उन पर चलते भी हो। पहली बात (1) बाप का निश्चय जो है, जैसा है, जिस स्वरूप से पार्ट बजा रहे हैं, उसको वैसा ही जानना और मानना। (2) बाप द्वारा प्राप्त हुई नॉलेज को अनुभव द्वारा स्पष्ट जानना और मानना। (3) स्वयं भी जो है, जैसा है अर्थात् अपने अलौकिक जन्म के श्रेष्ठ जीवन को व ऊंचे ब्राह्मण के जीवन को, अपने श्रेष्ठ पार्ट को, अपनी श्रेष्ठ स्थिति और स्थान का जैसा महत्व है, वैसा स्वयं का महत्व जानना, मानना और उसी प्रमाण चलना। (4) वर्तमान श्रेष्ठ, पुरूषोत्तम, कल्याणकारी, चढ़ती कला के समय को जानना और जान करके हर कदम उठाना। इन चारों ही बातों का पूर्ण निश्चय प्रैक्टिकल लाइफ में होना - इसको कहा जाता है - निश्चयबुद्धि विजयन्ति।

चारों ही बातों में परसेन्टेज भी चाहिए। निश्चय है, सिर्फ इस बात में भी खुश नहीं होना है। लेकिन क्या परसेन्टेज भी ऊंची है? अगर परसेन्टेज एक बात में भी कम है तो निश्चय का आसन कोई भी समय अथवा कोई छोटी परिस्थिति भी डगमग कर सकती है। इसलिए परसेन्टेज को चेक करो क्योंकि अब सम्पन्न होने का समय समीप आ रहा है। तो छोटी-सी कमी समय पर बड़ा नुकसान कर सकती है क्योंकि जितना-जितना अति स्वच्छ, सतोप्रधान बन रहे हो, अति स्वच्छ स्टेज पर आज जो छोटी-सी कमी लगती है व साधारण दाग अनुभव होता है, वह बहुत बड़ा दिखाई देगा। इसलिए अभी से ऐसी सूक्ष्म चेकिंग करो और कमी को सम्पन्न करने का तीव्र पुरूषार्थ करो। दिन-प्रतिदिन जितना श्रेष्ठ बनते जा रहे हो उतना विश्व की हर आत्मा की निगाहों में प्रसिद्ध होते जा रहे हो। सबकी नजर आपकी तरफ बढ़ती जा रही हैं। अब सबके अन्दर यह इंतज़ार है कि कब स्थापना के निमित्त बने हुए ये लोग सुख-शान्तिमयी नई दुनिया की स्थापना का कार्य सम्पन्न करते हैं, जो यह दु:खदाई दुनिया के स्थापना के आधार पर परिवर्तित हो जायेगी। इन्हों की नजर स्थापना करने वालों में है और स्थापना करने वालों की नजर कहाँ है? अपने कार्यो में मग्न हो वा विनाशकारियों की तरफ नजर रखते हो? विनाश के साधनों के समाचारों को सुनने के आधार पर तो नहीं चल रहे हो? वह ढीले होते तो आप भी ढीले हो जाते हो? क्या स्थापना के आधार पर विनाश होता है या विनाश के आधार पर स्थापना होनी है? स्थापना करने वाले विनाश की ज्वाला प्रज्वलित करने के निमित्त बने हुए हैं न कि विनाश वाले स्थापना करने वालों के पुरूषार्थ की ज्वाला प्रज्वलित करने कि निमित्त हैं।

स्थापना वाले आधारमूर्त हैं। ऐसे आधारमूर्त्त इसी विनाश की बात पर हिलते तो नहीं? हलचल में तो नहीं हो? होगा या नहीं होगा? लोग क्या कहेंगे या लोग क्या करेंगे? यह व्यर्थ संकल्प निश्चय के आसन को डगमग तो नहीं करता? सबने निश्चय-बुद्धि में हाथ उठाया ना? निश्चय अर्थात् किसी भी बात में क्यों, क्या और कैसे का संकल्प भी उत्पन्न न हो, क्योंकि संशय का रॉयल रूप संकल्प का रूप होता है। संशय नहीं है लेकिन संकल्प उठता है, तो वह संकल्प किसके वंश का अंश है? यह संशय का आया है या वंश का? जबकि चारों ही बातों में सम्पूर्ण निश्चय-बुद्धि हो तो फिर यह संकल्प उत्पन्न हो सकता है? जबकि है ही कल्याणकारी युग।

कल्याणकारी बाप की श्रीमत पर चलने वाली आत्मायें सिवाय कल्याण के, चढ़ती कला के और कोई भी संकल्प कर नहीं सकती हैं। उनका हर संकल्प, हर कार्य के प्रति समय, वर्तमान का भविष्य के प्रति समर्थ संकल्प होगा, व्यर्थ नहीं होगा। घबराते तो नहीं हो? सामना करना पड़ेगा। पेपर का सामना अर्थात् आगे बढ़ना, अर्थात् सम्पूर्णता के अति समीप होना। अब यह पेपर आने वाला है। स्वयं स्पष्ट बुद्धि वाले होंगे तो औरों को भी स्पष्ट कर सकेंगे। इसका मतलब यह तो नहीं समझते हो कि होना नहीं है। ड्रामा में जो होता रहा है, समय-प्रति-समय, उसमें माखन से बाल ही निकलता है न? कोई मुश्किल हुआ है? बापदादा नयनों पर बिठाये, दिल तख्त पर बिठाये पार करते ले आ रहे हैं ना? कोई क्या अन्त तक साथ निभाने का या किसी भी परिस्थितियों से पार ले जाने का वायदा व कार्य निभायेंगे। नहीं साथ ले ही जाना है न। सर्वशक्तिमान साथी होते हुए भी यह संकल्प उत्पन्न होना - उसको क्या कहेंगे? ऐसे व्यर्थ संकल्प समाप्त कर जिस स्थापना के कार्य के निमित्त हो, बापदादा के मददगार हो, उस कार्य में मग्न रहो। अपनी लगन की अग्नि को तीव्र करो। जिस लगन की अग्नि से ही विनाश की अग्नि तीव्र गति का स्वरूप धारण करेगी। अपने रचे हुए अविनाशी ज्ञान यज्ञ, जिसके निमित्त ब्राह्मण बने हुए हो, इस यज्ञ में पहले स्वयं की सर्व कमजोरियों व कमियों की आहुति डालो। तभी सारी पुरानी दुनिया को आहुति पड़ने के बाद समाप्ति होगी। अब दृढ़ संकल्प की तीली लगाओ। तब यह सम्पन्न होगा। अच्छा!

ऐसी लगन में मग्न रहने वाले, सदा निश्चय के आसन पर स्थित रह कार्य करने वाले, हर परिस्थिति में अचल और अडोल रहने वाले, बापदादा के सदैव समीप और सहयोगी, ऐसे स्नेही आत्माओं को बापदादा का याद, प्यार और नमस्ते।

 

 

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QUIZ QUESTIONS

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 प्रश्न 1 :- सम्पूर्णता की मुख्य निशानियाँ कौन-सी हैं?

 प्रश्न 2 :- सर्व को सन्तुष्ट करने का मुख्य साधन कौन-सा है?

 प्रश्न 3 :- विशेष आत्माओं का अन्तिम विशेष पुरूषार्थ क्या है?

 प्रश्न 4 :- निश्चय-बुद्धि बनने की मुख्य कौन सी चार बातें बाबा ने बताई हैं?

 प्रश्न 5 :- निश्चय-बुद्धि बनने के चारों ही बातों में परसेंटेज के विषय में बाबा ने क्या बताया?

 

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

{ अनुभव, लगन, संस्कार, सर्वशक्तिमान, मालिक, तीव्र, स्वभाव, सम्बन्ध, विश्व-कल्याण, संकल्प, अग्नि, विशेष }

 1   बेहद के _____ का बेहद से ______ चाहिए ना।

 2  संकल्प भी न आये कि मेरे भी कोई _____ हैं, कोई ______ है।

 3  हर एक ______ करे कि ये ______ आत्माएँ ______ के प्रति हैं।

 4  _______ साथी होते हुए भी यह ______ उत्पन्न होना - उसको क्या कहेंगे?

 5  अपनी ________ की ______ को _______ करो।

 

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-

 1  :- अभी इस समय अपने प्रेजेंट और फ्यूचर को जान सकते हो

 2  :- हर-एक के दिल से यह आवाज निकलता रहा-तुम्हारा बाबा!

 3  :- स्थापना वाले आधारमूर्त हैं।

 4  :- कोई भी सख्त चीज मोल्ड नहीं हो सकती है।

 5   :- पेपर का सामना अर्थात् आगे बढ़ना, अर्थात् असम्पूर्णता के अति समीप होना।

 

 

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QUIZ ANSWERS

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 प्रश्न 1 :- सम्पूर्णता की मुख्य निशानियाँ कौन-सी हैं?

 उत्तर 1 :- सम्पूर्ण आत्मा की मुख्य निशानी है :-

          ऐसी आत्मा सदा स्वयं से सर्व सब्जेक्टस में सन्तुष्ट रहने का अनुभव करेगी ।

          और साथ-साथ अन्य आत्मायें भी उनसे सदा सन्तुष्ट रहेगी।

          तो सन्तुष्टता ही सम्पूर्णता की निशानी है। जितना जितना सर्व आत्माओं की सन्तुष्टता का आशीर्वाद व सूक्ष्म स्नेह तथा सहयोग का हर समय रेसपॉन्स) मिले - इससे समझो कि इतना सम्पूर्णता के समीप आये हैं। कमाल इसमें है।

         हर एक अनुभव करे कि ये विशेष आत्माएँ विश्व-कल्याण के प्रति हैं। यह है सम्पूर्णता की निशानी।

 

 प्रश्न 2 :- सर्व को सन्तुष्ट करने का मुख्य साधन कौन-सा है?

 उत्तर 2 :- सर्व को सन्तुष्ट करने का मुख्य साधन है :-

         जैसा समय, जैसी परिस्थिति, जिस प्रकार की आत्मा सामने हो, वैसा अपने को मोल्ड कर सकें।

          अपने स्वभाव और संस्कार के वशीभूत न हों।

          स्वभाव अथवा संस्कार ऐसे अनुभव में हों जैसे स्थूल रूप में जैसा समय, वैसा रूप, जैसा देश वैसा वेश बनाया - ऐसा सहज अनुभव हो। इजी संस्कार हो।

          संकल्प भी न आये कि मेरे भी कोई संस्कार हैं, कोई स्वभाव है। जो अनादि-आदि संस्कार हैं, वही स्वरूप में हों।

 

 प्रश्न 3 :- विशेष आत्माओं का अन्तिम विशेष पुरूषार्थ क्या है?

 उत्तर 3 :- अन्तिम विशेष पुरुषार्थ के बारे में बाबा ने कहा कि अब जबकि नॉलेजफुल हो, ऊंचे-से-ऊंची स्टेज पर पार्टधारी बन पार्ट बजा रहे हो, पॉवरफुल भी हो, ब्लिसफुल भी हो, सर्वशक्तिवान् के वर्से के अधिकारी भी हो तो स्वभाव-संस्कार को समय-प्रमाण व सेवा-प्रमाण किसी के कल्याण के प्रति व स्वयं की उन्नति के प्रति परिवर्तन करना अति सहज अनुभव हो - यह है विशेष आत्माओं का अन्तिम विशेष पुरूषार्थ।

 

 प्रश्न 4 :- निश्चय-बुद्धि बनने की मुख्य कौन सी चार बातें बाबा ने बताया हैं।

 उत्तर 4 :- बाबा ने कहा निश्चय-बुद्धि बनने की मुख्य चार बातें जो हैं उसमें परसेन्टेज फुल चाहिए। वह चार बातें जानते भी हो और उन पर चलते भी हो।

          पहली बात बाप का निश्चय जो है, जैसा है, जिस स्वरूप से पार्ट बजा रहे हैं, उसको वैसा ही जानना और मानना।

          बाप द्वारा प्राप्त हुई नॉलेज को अनुभव द्वारा स्पष्ट जानना और मानना।

          स्वयं भी जो है, जैसा है अर्थात् अपने अलौकिक जन्म के श्रेष्ठ जीवन को व ऊंचे ब्राह्मण के जीवन को, अपने श्रेष्ठ पार्ट को, अपनी श्रेष्ठ स्थिति और स्थान का जैसा महत्व है, वैसा स्वयं का महत्व जानना, मानना और उसी प्रमाण चलना।

          वर्तमान श्रेष्ठ, पुरूषोत्तम, कल्याणकारी, चढ़ती कला के समय को जानना और जान करके हर कदम उठाना। इन चारों ही बातों का पूर्ण निश्चय प्रैक्टिकल लाइफ में होना - इसको कहा जाता है - निश्चयबुद्धि विजयन्ति।

 

 प्रश्न 5 :- निश्चय-बुद्धि बनने के चारो ही बातों में परसेंटेज के विषय में बाबा ने क्या बताया?

 उत्तर 5 :- बाबा ने बताया चारों ही बातों में परसेन्टेज भी चाहिए। निश्चय है, सिर्फ इस बात में भी खुश नहीं होना है। लेकिन क्या परसेन्टेज भी ऊंची है? अगर परसेन्टेज एक बात में भी कम है तो निश्चय का आसन कोई भी समय अथवा कोई छोटी परिस्थिति भी डगमग कर सकती है। इसलिए परसेन्टेज को चेक करो क्योंकि अब सम्पन्न होने का समय समीप आ रहा है। तो छोटी-सी कमी समय पर बड़ा नुकसान कर सकती है क्योंकि जितना-जितना अति स्वच्छ, सतोप्रधान बन रहे हो, अति स्वच्छ स्टेज पर आज जो छोटी-सी कमी लगती है व साधारण दाग अनुभव होता है, वह बहुत बड़ा दिखाई देगा। इसलिए अभी से ऐसी सूक्ष्म चेकिंग करो और कमी को सम्पन्न करने का तीव्र पुरूषार्थ करो।

 

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

अनुभव, लगन, संस्कार, सर्वशक्तिमान, मालिक, तीव्र, स्वभाव, सम्बन्ध, विश्व-कल्याण, संकल्प, अग्नि, विशेष

 1   बेहद के ______ का बेहद से ______ चाहिए ना।

    मालिक /  सम्बन्ध

 

 2  संकल्प भी न आये कि मेरे भी कोई ______ हैं, कोई ______ है।

    संस्कार /  स्वभाव

 

 3  हर एक ______ करे कि ये _____ आत्माएँ ______ के प्रति हैं।

    अनुभव /  विशेष / विश्व-कल्याण

 

 4  ______ साथी होते हुए भी यह ______ उत्पन्न होना - उसको क्या कहेंगे?

    सर्वशक्तिमान /  संकल्प

 

 5  अपनी ______ की _____ को _____ करो।

    लगन / अग्नि / तीव्र

 

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-

 1  :- अभी इस समय अपने प्रेजेंट और फ्यूचर को जान सकते हो

 अभी इस समय अपने फीचर्स और फ्यूचर को जान सकते हो।

 

 2  :- हर-एक के दिल से यह आवाज निकलता रहा-तुम्हारा बाबा!

  हर-एक के दिल से यह आवाज निकलता रहा- हमारा बाबा!

 

 3  :- स्थापना वाले आधारमूर्त हैं।

 

 4  :- कोई भी सख्त चीज मोल्ड नहीं हो सकती है।

 

 5   :- पेपर का सामना अर्थात् आगे बढ़ना, अर्थात् असम्पूर्णता के अति समीप होना।

 

  पेपर का सामना अर्थात् आगे बढ़ना, अर्थात् सम्पूर्णता के अति समीप होना।