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AVYAKT MURLI

06 / 09 / 75

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   06-09-75   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

 

तीन कम्बाइन्ड स्वरूप

 

बाप और दादा में कम्बाइन्ड रूप में अपना वायदा सदा निभाने वाले, सच्चे रूहानी साथी त्रिमूर्ति शिव बाबा बोले

हर एक अपने तीन रूपों से कम्बाइन्ड रूप जानते हो? एक है अनादि कम्बाइन्ड (संयुक्त) रूप, दूसरा है संगमयुगी कम्बाइन्ड रूप और तीसरा है भविष्य कम्बाइन्ड रूप - इन तीनों को जानते हो?

आप मनुष्यात्माओं का अनादि कम्बाइन्ड रूप कौन-सा है? पुरूष और प्रकृति कहो या आत्मा और शरीर कहो। यह अनादि कम्बाइन्ड रूप इस अनादि ड्रामा में नूँधा हुआ है। भविष्य कम्बाइन्ड रूप कौन-सा है? विष्णु चतुर्भुज। संगमयुगी कम्बाइन्ड रूप आपका कौन-सा है? शिव और शक्ति। शक्ति शिव के सिवाय कुछ कर नहीं सकती और शिव बाप भी शक्तियों के बिना कुछ कर नहीं सकते। तो संगमयुगी कम्बाइन्ड रूप सबका है - शिव-शक्ति। सिर्फ माताओं का ही नहीं है, पाण्डव भी शक्ति स्वरूप हैं। यादगार के रूप में आजकल के जगद्गुरू भी आपके कम्बाइन्ड रूप शिव-शक्ति का पूजन करते आ रहे हैं।

तो सदा यह स्मृति रहनी चाहिए कि हम हैं ही कम्बाइन्ड शिव-शक्ति। जब है ही कम्बाइन्ड तो भूल सकते हैं क्या? फिर भूलते क्यों हो? अपने को अकेला समझते हो इसलिए भूल भी जाते हो। कल्प पहले की यादगार में भी अर्जुन को जब बाप का साथ भूल जाता था, अर्थात् जब वह सारथी को भूल जाता था, तो क्या बन जाता था? निर्बल कहो व कायर कहो और जब स्मृति आती थी, कि मेरा साथी और सारथी बाप है तो विजयी बन जाता था। निरन्तर सहज याद की सहज युक्ति एक ही है कि सदा अपने कम्बाइन्ड रूप को सदा साथ रखो व स्मृति में रखो तो कभी भी कमजोरी के संकल्प भी क्या स्वप्न भी नहीं आयेंगे। जागते-सोते कम्बाइन्ड रूप हो।

जबकि बाप स्वयं बच्चों से सदा साथ रहने का वायदा कर रहे हैं और निभा भी रहे हैं तो वायदे का लाभ उठाना चाहिए। ऐसे कम्पनी व कम्पेनियन, फिर कब मिलेंगे? बहुत जन्मों से आत्माओं की कम्पनी लेते हुए दु:ख का अनुभव करते हुए भी अब भी आत्माओं की कम्पनी अच्छी लगती है क्या, जो बाप की कम्पनी को भूल औरों की कम्पनी में चले जाते हो? कोई वैभव को व कोई व्यक्ति को कम्पेनियन बना देते हो, अर्थात् उस कम्पनी को निभाने में इतने मस्त हो जाते हो जो बाप से किये हुए वायदे में भी अलमस्त हो जाते हो! ऐसे समय मालूम है कौन-सा  खेल करते हो? खेल करने के टाइम तो बड़े मस्त हो जाते हो। अभी भूल गए हो। कलाबाजी से भी बहुत रमणीक खेल करते हो? ऐसे नहीं कि जो सुनायेंगे वह खेल करते होंगे, देखने वाले भी सुना सकते हैं। आपके ही इस साकारी दुनिया में खेल दिखाते हैं - बन्दर और बन्दरी का। बन्दरिया को बन्दर से सगाई के लिए पकड़ कर ले जाते हैं और बन्दरिया नटखट हो घूँघट निकाल किनारा कर लेती, पीठ कर लेती है। वह आगे करता है वह पीछे हटती है। तो जैसे वह रमणीक खेल मनोरंजन के लिए दिखाते हैं, ऐसे ही बच्चे भी उस समय ऐसे नटखट होते हैं। बाप सम्मुख आते और बच्चे अलमस्त होने के कारण देखते हुए भी नहीं देखते, सुनते हुए भी नहीं सुनते। ऐसा खेल अभी नहीं करना है। अपने तीनों कम्बाइन्ड रूपों को स्मृति में रखो तो ही सदा के लिए सदा साथी से साथ निभा सकेंगे।

अपने को अकेला समझने से चलते-चलते जीवन में उदासी आ जाती है। अति-इन्द्रिय सुखमय जीवन, सर्व सम्बन्धों से सम्पन्न जीवन और सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न जीवन उस समय नीरस व बिल्कुल असार अनुभव करते हो। त्रिनेत्री होते हुए भी कोई राह नजर नहीं आती। क्या करूँ, कहाँ जाऊं कुछ समझ में नहीं आयेगा। खुद जीवन-मुक्ति के गेट्स खोलने वाले को कोई ठिकाना नजर नहीं आता, त्रिकालदर्शी होते हुए अपने वर्तमान को नहीं समझ सकते। सृष्टि के सर्व आत्माओं के भविष्य परिणाम को जानने वाले अपने उस समय के कर्म के परिणाम को जान नहीं सकते! यह कमाल करते हो न? ऐसी कमाल रोज कोइन- कोई बच्चे दिखाते रहते हैं।

ऐसे समय पर बापदादा क्या करते हैं? बहुत मनाते और रिझाते हैं, लेकिन फिर भी बच्चे नटखट करते हैं और फिर जब वह समय बीत जाता है, तब फिर बाप को रिझाते हैं। बच्चे भी बड़े चतुर होते हैं। ज्ञान स्वरूप को याद दिलाते हैं। वह तो जानते हो न क्या करते हैं? आप क्षमा के सागर हो, कृपालु हो, दयालु हो, रहमदिल हो - ऐसी कई बातों से रिझाते हैं। फिर बाप क्या करते हैं? बाप फिर लव और लॉ का बैलेन्स रखते हैं। यह कहानी है बच्चों और बाप की। कहानी सुनने में सभी खुश हो रहे हैं। लेकिन यह कहानी परिवर्तन में लानी है। जैसे बाप ओबीडियेन्ट सर्वेन्ट बन सेवा पर उपस्थित है, ऐसे ही हरेक बाप के साथी व सहयोगी बच्चों को भी बाप के समान ओबीडियेन्ट सर्वेन्ट बनना है। ओबीडियेन्ट सर्वेन्ट अलमस्त नहीं होते। दिन-रात सेवा में तत्पर रहते हैं। जैसे बाप बच्चों के आगे वफादार स्वरूप से साथ निभा रहे हैं, ऐसे ही बच्चों को भी फरमान-वरदार अर्थात् हर फरमान पर चलने वाले बन साथ निभाना है। ऐसे सदा के साथी बनना है। अच्छा!

ऐसे सदा सच्चे साथी, हर फरमान पर स्वयं को कुर्बान करने वाले, वफादार, बाप के फरमान-वरदार, बाप समान श्रेष्ठ बनाने वाले, ऐसी श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते!

इस मुरली की विशेष बातें

1. निरन्तर सहज याद की सहज-युक्ति एक ही है, कि तीनों रूपों से अपने कम्बाइन्ड स्वरूप को स्मृति में रखो वे हैं-पहला आत्मा और शरीर अथवा प्रकृति का अनादि कम्बाइन्ड रूप, दूसरा भविष्य विष्णु चतुर्भुज का कम्बाइन्ड रूप और तीसरा संगमयुग का शिव-शक्ति कम्बाइन्ड रूप। इस स्मृति से कभी भी कमजोरी अथवा निर्बलता का संकल्प स्वप्न में भी नहीं आयेगा।

2. जो ब्रह्मा वत्स की कम्पनी व कम्पेनियन को भूल औरों की कम्पनी में चले जाते हैं। कोई वैभव को व कोई व्यक्ति को कम्पेनियन बना लेते हैं, तो चलते-चलते उनके जीवन में उदासी आ जाती है और अन्त में दु:ख को प्राप्त होते हैं।

3. जैसे बाप ओबीडियेन्ट सर्वेन्ट बन सेवा पर उपस्थित है, ऐसे ही हरेक बाप के साथी व सहयोगी बच्चों को भी बाप समान ओबीडियेन्ट सर्वेन्ट बनना है।

11-10-75   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

 

अन्त:वाहक रूप द्वारा परिभ्रमण

 

महारथी बच्चों को देख बापदादा बोले :-

आजकल इस पुरानी सृष्टि में विशेष क्या चल रहा है? आजकल विशेष आप लोगों का आह्वान चल रहा है। फिर आह्वान का रिसपॉन्स करते हो? भक्त क्या चाहते हैं? भक्तों की इच्छा यही है कि देवियाँ चैतन्य-रूप में प्रगट हो जाएं । जड़ चित्रों में भी चैतन्य शक्तियों का आह्वान करते हैं कि चैतन्य रूप में वरदानी बन वरदान दे दें। तो यह इच्छा भक्तों की कब पूरी होगी? भक्ति का भी अभी फुल फोर्स चारों ओर दिखाई दे रहा है। उसमें भी जैसे प्रैक्टिकल में बाप गुप्त है और शक्तियाँ प्रत्यक्ष रूप में हैं। ऐसे ही भक्ति में भी पहले बाप की पुकार ज्यादा करते थे - हे भगवान् कह पुकारते थे - लेकिन अभी मेजॉरिटी  भगवती की पूजा होती है। भक्तों की भावना पूरी करने के लिए शक्तियाँ ही निमित्त बनती हैं। इसलिए आह्वान भी शक्तियों का ज्यादा हो रहा है। तो अब शक्तियों में रहम के संस्कार इमर्ज होने चाहिएं । अभी सबके अन्दर रहम के संस्कार इमर्ज नहीं हैं, मर्ज हैं।

जैसे बाप चारों ओर चक्कर लगाते हैं, वैसे आप भी भक्तों के चारों ओर चक्कर लगाती हो? कभी सैर करने जाती हो? आवाज सुनने में आती है, तो कशिश नहीं होती है? बाप के साथ-साथ शक्तियों को भी पार्ट बजाना है, जैसे शक्तियों का गायन है कि अन्त:वाहक शरीर द्वारा चक्कर लगाती थीं, वैसे बाप भी अव्यक्त रूप में चक्कर लगाते हैं। अन्त:वाहक अर्थात् अव्यक्त फरिश्ते रूप में सैर करना। यह भी प्रैक्टिस चाहिए और यह अनुभव होंगे। जैसे साइन्स के यन्त्र दूरबीन द्वारा दूर की सीन को नजदीक में देखते हैं, ऐसे ही याद के नेत्र द्वारा अपने फरिश्तेपन की स्टेज द्वारा दूर का दृश्य भी ऐसे ही अनुभव करेंगे, जैसे साकार नेत्रों द्वारा कोई दृश्य देख आये। बिल्कुल स्पष्ट दिखाई देंगे अर्थात् अनुभव होगा।

साइन्स का मूल आधार है लाइट। लाइट के आधार से साइन्स का जलवा है, लाइट की ही शक्ति है। ऐसे ही साइलेन्स की शक्ति का आधार है डिवाइन इनसाइट। इन द्वारा साइलेन्स की शक्ति के बहुत वन्डरफुल अनुभव कर सकते हो। यह भी अनुभव होंगे। जैसे स्थूल साधन द्वारा सैर कर सकते हैं, वैसे ही जब चाहों, जहाँ चाहो वहाँ का अनुभव कर सकते हो। न सिर्फ इतना, जो सिर्फ आपको अनुभव हो लेकिन जहाँ आप पहऊँचो उन्हों को भी अनुभव होगा कि आज जैसे प्रैक्टिकल मिलन हुआ। यह है सफलतामूर्त की सिद्धि। वह तो रिवाजी आत्माओं को भी सिद्धि प्राप्त होती है एक ही समय अनेक स्थानों पर अपना रूप प्रकट कर सकते और अनुभव करा सकते हैं। वह तो अल्प काल की सिद्धि है, लेकिन यह है ज्ञान-युक्त सिद्धि। ऐसे अनुभव भी बहुत होंगे। आगे चलकर कई नई बातें भी तो होगी ना। जैसे शुरू में घर बैठे ब्रह्मा रूप का साक्षात्कार होता था जैसे कि प्रैक्टिकल कोई बोल रहा है, इशारा कर रहा है, ऐसे ही अन्त में भी निमित्त बनी हुई शक्ति सेना का अनुभव होगा। सभी महारथियों का संकल्प है कि अब कुछ नया होना चाहिए तो ऐसी-ऐसी नई रंगत अब होती जायेंगी। लेकिन इसमें एक तो बहुत हल्कापन चाहिये, किसी भी प्रकार का बुद्धि पर बोझ न हो और दूसरी सारी दिनचर्या बाप समान हो, तब ब्रह्मा बाप समान आदि से अन्त के दृश्य का अनुभव कर सकते हो। समझा? अब महारथियों को क्या करना है? सिर्फ योग नहीं, सेवा का रूप परिवर्तन करना है। महारथियों का योग वा याद अब स्वयं प्रति नहीं लेकिन सेवा प्रति हो, तब तो महादानी और महाज्ञानी कहे जायेंगे। अच्छा!

समय की समाप्ति की निशानी क्या होगी? जब सारे संगठन की एक आवाज, एक ही ललकार हो कि हम विजयी है, विजय हमारा जन्म-सिद्ध अधिकार है वा विजय हमारे गले का हार है। ऐसा प्रैक्टिकल में अनुभव होगा। सिर्फ कहने मात्र नहीं, लेकिन यह नशा रहे, सदा सामने दिखाई दे। ऐसे विजय का निशाना दिखाई देता है? अच्छा। ओम् शान्ति।

इस मुरली का सार

1. साइलेन्स की शक्ति का आधार है - डिवाइन इनसाइट। इस द्वारा साइलेन्स की शक्ति के बहुत आश्चर्यजनक अनुभव कर सकते हैं।

2. महारथियों का योग व याद स्वयं के प्रति नहीं बल्कि विश्व-सेवा के प्रति होनी चाहिए तभी वे महादानी व महाज्ञानी के जायेंगे।

3. याद के नेत्र द्वारा और अपने फरिश्तेपन की स्टेज द्वारा दूर का दृश्य भी ऐसे अनुभव कर सकते हैं। जैसे साकार नेत्रों द्वारा कोई दृश्य देखा जाता हैं।

 

 

 

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QUIZ QUESTIONS

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 प्रश्न 1 :- आप मनुष्यात्माओं का अनादि कम्बाइन्ड रूप, भविष्य कम्बाइन्ड रूप और संगमयुगी कम्बाइन्ड रूप कौन-सा है?

 प्रश्न 2 :- जब है ही कम्बाइन्ड तो भूल सकते हैं क्या? फिर भूलते क्यों हो? इसके प्रति बापदादा ने क्या समझानी दी।

 प्रश्न 3 :- सदा के साथी बनने के संदर्भ मे बापदादा ने क्या समझानी दी है?

 प्रश्न 4 :- आजकल इस पुरानी सृष्टि में  भक्त क्या चाहते हैं? और फिर जड चित्रों में किस का आह्वान करते है?

 प्रश्न 5 :- अन्त:वाहक का अर्थ स्पष्ट कीजिये। बापदादा ने साइंस और साइलेंस की शक्ति का मूल आधार क्या बताया?

 

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

{ स्मृति, भविष्य, उदासी, अव्यक्त, असार, कम्बाइन्ड, कम्पेनियन, अन्त:वाहक, कर्म, सम्पन्न, सहज, कम्पनी, शक्तियों, सुखमय }

 1   निरन्तर _____ याद की सहज-युक्ति एक ही है, कि तीनों रूपों से अपने _____ स्वरूप को _____ में रखो।

 2  सृष्टि के सर्व आत्माओं के ______ परिणाम को जानने वाले अपने उस समय के ______ के परिणाम को जान नहीं सकते!

 3  जो ब्रह्मा वत्स की _____ व कम्पेनियन को भूल औरों की कम्पनी में चले जाते हैं। कोई वैभव को व कोई व्यक्ति को _____ बना लेते हैं, तो चलते-चलते उनके जीवन में _____ आ जाती है और अन्त में दु:ख को प्राप्त होते हैं।

 4  बाप के साथ-साथ _______ को भी पार्ट बजाना है, जैसे शक्तियों का गायन है कि ________ शरीर द्वारा चक्कर लगाती थीं, वैसे बाप भी _______ रूप में चक्कर लगाते हैं।

 5  अति-इन्द्रिय _____ जीवन, सर्व सम्बन्धों से _____ जीवन और सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न जीवन उस समय नीरस व बिल्कुल _____ अनुभव करते हो।

 

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-

 1  :- ऐसे समय पर बापदादा क्या करते हैं? बहुत मनाते और रिझाते हैं, लेकिन फिर भी बच्चे नटखट करते हैं और फिर जब वह समय आता है, तब फिर बाप को रिझाते हैं।

 2  :-  अपने तीनों कम्बाइन्ड रूपों को स्मृति में रखो तो ही सदा के लिए सदा साथी से साथ निभा सकेंगे।

 3  :- वह तो जानते हो न क्या करते हैं? आप क्षमा के सागर हो, कृपालु हो, दयालु हो, रहमदिल हो - ऐसी कई बातों से उलझाते हैं।

 4  :- खुद जीवन-मुक्ति के गेट्स खोलने वाले को कोई ठिकाना नजर नहीं आता, त्रिकालदर्शी होते हुए अपने वर्तमान को नहीं समझ सकते।

 5   :- बाप सम्मुख आते और बच्चे अलमस्त होने के कारण देखते हुए भी नहीं देखते, सुनते हुए भी नहीं सुनते।

 

 

 

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QUIZ ANSWERS

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 प्रश्न 1 :- आप मनुष्यात्माओं का अनादि कम्बाइन्ड रूप, भविष्य कम्बाइंड रुप और संगमयुगी कम्बाइन्ड रूप कौन-सा है?

 उत्तर 1 :- बाबा ने बताया है कि:- हमारे तीन कम्बाइन्ड स्वरूप निम्न प्रकार से हैं.

          इनको पुरूष और प्रकृति कहो या आत्मा और शरीर कहो। दोनों एक ही बात है।

          यह अनादि कम्बाइन्ड रूप इस अनादि ड्रामा में नूँधा हुआ है।

          हमारा भविष्य कम्बाइन्ड रूप है, विष्णु चतुर्भुज का। और

          हमारा संगमयुगी कम्बाइन्ड रूप है शिव और शक्ति का।

 

 प्रश्न 2 :- जब है ही कम्बाइन्ड तो भूल सकते हैं क्या? फिर भूलते क्यों हो? इसके प्रति बापदादा ने क्या समझानी दी।

 उत्तर 2 :- बाबा ने समझानी दी कि :-

          अपने को अकेला समझते हो इसलिए भूल भी जाते हो।

         कल्प पहले की यादगार में भी अर्जुन को जब बाप का साथ भूल जाता था, अर्थात् जब वह सारथी को भूल जाता था, तो क्या बन जाता था? निर्बल कहो व कायर कहो और जब स्मृति आती थी, कि मेरा साथी और सारथी बाप है तो विजयी बन जाता था।

          निरन्तर सहज याद की सहज युक्ति एक ही है कि सदा अपने कम्बाइन्ड रूप को सदा साथ रखो व स्मृति में रखो तो कभी भी कमजोरी के संकल्प भी क्या स्वप्न भी नहीं आयेंगे। जागते-सोते कम्बाइन्ड रूप हो।

 

 प्रश्न 3 :- सदा के साथी बनने के संदर्भ मे बापदादा ने क्या समझानी दी है?

 उत्तर 3 :-  बाबा कहते है कि

जैसे बाप ओबीडियेन्ट सर्वेन्ट बन सेवा पर उपस्थित है, ऐसे ही हरेक बाप के साथी व सहयोगी बच्चों को भी बाप के समान ओबीडियेन्ट सर्वेन्ट बनना है। ओबीडियेन्ट सर्वेन्ट अलमस्त नहीं होते। दिन-रात सेवा में तत्पर रहते हैं। जैसे बाप बच्चों के आगे वफादार स्वरूप से साथ निभा रहे हैं, ऐसे ही बच्चों को भी फरमान-वरदार अर्थात् हर फरमान पर चलने वाले बन साथ निभाना है। ऐसे सदा के साथी बनना है।

 

 प्रश्न 4 :- आजकल इस पुरानी सृष्टि में  भक्त क्या चाहते हैं? और फिर जड चित्रों में किस का आह्वान करते है?

 उत्तर 4 :-  बाबा कहते है कि:-

 भक्तों की इच्छा यही है कि देवियाँ चैतन्य-रूप में प्रगट हो जाएं।

          जड़ चित्रों में भी चैतन्य शक्तियों का आह्वान करते हैं कि चैतन्य रूप में वरदानी बन वरदान दे दें।

          तो यह इच्छा भक्तों की कब पूरी होगी? भक्ति का भी अभी फुल फोर्स चारों ओर दिखाई दे रहा है।

          उसमें भी जैसे प्रैक्टिकल में बाप गुप्त है और शक्तियाँ प्रत्यक्ष रूप में हैं।

          ऐसे ही भक्ति में भी पहले बाप की पुकार ज्यादा करते थे - हे भगवान् कह पुकारते थे - लेकिन अभी मेजॉरिटी भगवती की पूजा होती है।

          भक्तों की भावना पूरी करने के लिए शक्तियाँ ही निमित्त बनती हैं। इसलिए आह्वान भी शक्तियों का ज्यादा हो रहा है।

 

 प्रश्न 5 :- अन्त:वाहक का अर्थ स्पष्ट कीजिये। बापदादा ने साइंस और साइलेंस की शक्ति का मूल आधार क्या बताया?

 उत्तर 5 :- बाबा ने कहा कि :-

          अन्त:वाहक अर्थात् अव्यक्त फरिश्ते रूप में सैर करना। यह भी प्रैक्टिस चाहिए और यह अनुभव बिल्कुल स्पष्ट दिखाई देंगे अर्थात् अनुभव होगा की हम लाइट स्वरूप में हैं।

          जैसे साइन्स के यन्त्र दूरबीन द्वारा दूर की सीन को नजदीक में देखते हैं, ऐसे ही याद के नेत्र द्वारा अपने फरिश्तेपन की स्टेज द्वारा दूर का दृश्य भी ऐसे ही अनुभव करेंगे, जैसे साकार नेत्रों द्वारा कोई दृश्य देख आये।

          साइन्स का मूल आधार है लाइट। लाइट के आधार से साइन्स का जलवा है, लाइट की ही शक्ति है। ऐसे ही साइलेन्स की शक्ति का आधार है डिवाइन इनसाइट।

          इन द्वारा साइलेन्स की शक्ति के बहुत वन्डरफुल अनुभव कर सकते हो।

          यह भी अनुभव होंगे। जैसे स्थूल साधन द्वारा सैर कर सकते हैं, वैसे ही जब चाहों, जहाँ चाहो वहाँ का अनुभव कर सकते हो। 

 

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

{ स्मृति, भविष्य, उदासी, अव्यक्त, असार, कम्बाइन्ड, कम्पेनियन, अन्त:वाहक, कर्म, सम्पन्न, सहज, कम्पनी, शक्तियों, सुखमय }

 1   निरन्तर _____ याद की सहज-युक्ति एक ही है, कि तीनों रूपों से अपने _____ स्वरूप को _____ में रखो।

    सहज /  कम्बाइन्ड /  स्मृति

 

 2  सृष्टि के सर्व आत्माओं के ______ परिणाम को जानने वाले अपने उस समय के ______ के परिणाम को जान नहीं सकते!

    भविष्य /  कर्म

 

 3  जो ब्रह्मा वत्स की _____ व कम्पेनियन को भूल औरों की कम्पनी में चले जाते हैं। कोई वैभव को व कोई व्यक्ति को _____ बना लेते हैं, तो चलते-चलते उनके जीवन में _____ आ जाती है और अन्त में दु:ख को प्राप्त होते हैं।

    कम्पनी /  कम्पेनियन /  उदासी

 

 4  बाप के साथ-साथ _______ को भी पार्ट बजाना है, जैसे शक्तियों का गायन है कि ________ शरीर द्वारा चक्कर लगाती थीं, वैसे बाप भी _______ रूप में चक्कर लगाते हैं।

    शक्तियों /  अन्त:वाहक /  अव्यक्त

 

 5  अति-इन्द्रिय _____ जीवन, सर्व सम्बन्धों से _____ जीवन और सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न जीवन उस समय नीरस व बिल्कुल _____ अनुभव करते हो।

    सुखमय /  सम्पन्न /  असार

 

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:- 】 【

 

 1  :- ऐसे समय पर बापदादा क्या करते हैं? बहुत मनाते और रिझाते हैं, लेकिन फिर भी बच्चे नटखट करते हैं और फिर जब वह समय आता है, तब फिर बाप को रिझाते हैं।

 ऐसे समय पर बापदादा क्या करते हैं? बहुत मनाते और रिझाते हैं, लेकिन फिर भी बच्चे नटखट करते हैं और फिर जब वह समय बीत जाता है, तब फिर बाप को रिझाते हैं।

 

 2  :- अपने तीनों कम्बाइन्ड रूपों को स्मृति में रखो तो ही सदा के लिए सदा साथी से साथ निभा सकेंगे।

 

 3  :- वह तो जानते हो न क्या करते हैं? आप क्षमा के सागर हो, कृपालु हो, दयालु हो, रहमदिल हो - ऐसी कई बातों से उलझाते हैं।

  वह तो जानते हो न क्या करते हैं? आप क्षमा के सागर हो, कृपालु हो, दयालु हो, रहमदिल हो - ऐसी कई बातों से रिझाते हैं।

 

 4  :- खुद जीवन-मुक्ति के गेट्स खोलने वाले को कोई ठिकाना नजर नहीं आता, त्रिकालदर्शी होते हुए अपने वर्तमान को नहीं समझ सकते।

 

 5   :- बाप सम्मुख आते और बच्चे अलमस्त होने के कारण देखते हुए भी नहीं देखते, सुनते हुए भी नहीं सुनते।