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AVYAKT MURLI

18 / 09 / 75

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18-09-75   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

माया के चक्करों से परे, स्वदर्शन चक्रधारी ही भविष्य में छत्रधारी

निर्बल को महा बलवान बनाने वाले, माया के चक्करों से मुक्त करने वाले, रहम दिल व स्नेहमूर्त शिव बाबा स्वदर्शन चक्रधारी सो छत्रधारी बच्चों को देख बोले -

आज बापदादा सब ब्राह्मण बच्चों के वर्तमान और भविष्य दोनों को देख हर्षित हो रहे हैं।हर एक स्वदर्शन चक्रधारी सो छत्रधारी है। वर्तमान चक्रधारी और भविष्य में छत्रधारी। चक्रधारी नहीं तो छत्रधारी भी नहीं। जिन बच्चों का इस संगम युग का यह थोड़ा-सा अमूल्य समय, निरन्तर सदाकाल चक्र चलता रहता है अर्थात् अविनाशी चक्रधारी हैं, वही आत्मायें सदाकाल छत्रधारी बन सकती हैं। चक्रधारी बनने वाली आत्मा सदा माया अधिकारी होगी-माया अधिकारी आत्मायें ही बाप के बेहद वर्से की अधिकारी बनती हैं - अर्थात् स्वदर्शन चक्रधारी सो छत्रधारी बनती हैं। सदैव चक्र और छत्र दिखाई देता है?

चक्रधारी आत्मा की निशानी क्या दिखाई देगी? अपनी निशानी आप सबने देखी है? चक्रधारी अब भी लाइट के छत्रधारी दिखाई देंगे। चक्र की निशानी लाईट का चक्र दिखाई देगा। ऐसा चक्रधारी सदैव माया के अनेक प्रकार के चक्रों से मुक्त होगा। जैसे अपनी देह की स्मृति के अनेक व्यर्थ संकल्पों के चक्र से, लौकिक और अलौकिक सम्बन्धों के चक्र से, अपने अनेक जन्मों के स्वभाव और संस्कारों के चक्र से और प्रकृति के अनेक प्रकार के आकर्षण के चक्र से वह सदैव मुक्त होगा। सिवाय स्वदर्शन चक्र के वह और कोई चक्र में आ नहीं सकेगा। अन्य आत्माओं को भी बाप से प्राप्त हुई शक्तियों द्वारा अनेक चक्करों से सहज ही छुड़ा देगा। माया के अनेक प्रकार के चक्करों की निशानी क्या होगी? जैसे चक्रधारी आत्मा लाइट के ताजधारी होंगी और बाप के वर्से की अधिकारी होंगी वैसे माया के अनेक प्रकार के चक्कर में आने वाले की निशानी क्या होगी? जैसे उनके सिर पर लाईट का ताज है, वैसे उनके सिर पर अनेक प्रकार के विघ्नों का बोझ होगा। ताज नहीं। सदैव किसी-न-किसी प्रकार का बोझ उनके सिर पर अर्थात् बुद्धि में महसूस होगा। ऐसी आत्मा सदैव कर्जदार और मर्जदार होगी - उनके मस्तक पर, मुख पर, सदैव क्वेश्चन मार्क होंगे। हर बात में क्यों, क्या और कैसे, यह क्वेश्चन्स होंगे। एक सेकेण्ड भी बुद्धि एकाग्र अर्थात् फुलस्टॉप में नहीं होगी। फुलस्टॉप की निशानी बिन्दी (.) होती है। अर्थात् मन्सा में भी बिन्दु स्वरूप की स्थिति नहीं होगी। वाचा और कर्मणा में भी बीती सो बीती, नाथिंग न्यू, जो होता है वह कल्याणकारी है, ऐसा फुलस्टॉप अर्थात् बिन्दी लगानी नहीं आयेगी। क्वेश्चन मार्क की निशानी देखने में भी टेढ़ी आती है फुलस्टॉप लिखना सहज है - फुलस्टॉप लिखने से क्वेश्चन मार्क लिखना जरा मुश्किल होता है। तो अनेक प्रकार के क्वेश्चन करना, चाहे स्वयं से अथवा दूसरों से या बाप से - यही निशानी है कि यह आत्मा स्वदर्शन चक्रधारी सो छत्रधारी नहीं।

ऐसी आत्मा हर संकल्प में सदा स्वयं से भी क्वेश्चन करती रहेगी कि क्या मैं सफलता मूर्त्त बन सकती हूँ? मैं सर्व के सम्पर्क में सफलता प्राप्त कर समीप आत्मा बनूँगी? मैं सर्व के स्वभाव-संस्कारों में चल सकूँगी? सर्व को सन्तुष्ट कर सकूँगी? ऐसे अनेक प्रकार के क्वेश्चन स्वयं के प्रति भी होंगे और अन्य के प्रति भी होंगे। यह मेरे से ऐसे क्यों चलते, मुझे विशेष सहयोग क्यों नहीं मिलता - मेरा नाम, मेरा मान क्यों नहीं होता? इसी प्रकार के अन्य के प्रति क्वेश्चन होंगे। ऐसे ही बाप के प्रति भी क्वेश्चन होंगे। जब बाप सर्व शक्तिवान् है तो मेरी बुद्धि को क्यों नहीं पलटाते? नजर से निहाल करने वाले मेरी तरफ नजर क्यों नहीं रखते? जबकि बाप है तो जैसी भी हूँ, कैसी भी हूँ, उनकी ही हूँ, उनकी ज़िम्मेवारी है, मुझे पार कराना - जब दाता है तो मैं जो चाहती हूँ वह क्यों नहीं देता? त्रिकालदर्शी है, मेरे तीनों कालों को जानता है, तो मुझे स्वयं ही अपनी शक्ति से श्रेष्ठ पद क्यों नहीं दिलाता? ऐसी मीठी-मीठी शिकायतें बाप के आगे रखते हैं। एक तरफ जन्म-जन्म का बोझ, दूसरी तरफ बाप के बच्चे होने के नाते, बाप द्वारा प्राप्त हुए सर्व अधिकार का रिटर्न करने का फर्ज पालन न करने के कारण अथार्त् अपना फर्ज न पालन करने के कारण फर्ज के बजाय कर्ज बन जाता है।कर्ज का बोझ आत्मा की सर्व कमजोरियों के मर्ज के रूप ले लेता है। ऐसे डबल बोझ वाले स्वदर्शन चक्रधारी कैसे बन सकेंगे?

एक तो है चक्रधारी, दूसरे हैं बोझदारी। ऐसे बोझ वाली आत्मायें डबल लाइटधारी कैसे बनेंगी? इसलिये उनकी बार-बार एक ही आवाज निकलती है, कि अनुभव नहीं होता। सुनते भी रहते, चलते भी रहते लेकिन प्राप्ति की मंज़िल नजर नहीं आती है। बड़ा मुश्किल है - ऐसी आवाज बाप सुने और ऐसे बच्चों को देखे तो बाप क्या करेंगे? मुस्करायेंगे और क्या करेंगे? फिर भी रहमदिल बाप के सम्बन्ध के कारण बार-बार हिम्मत और उल्लास दिलाते रहते हैं कि तुम ही बच्चों ने अनेक बार विजय प्राप्त की है - हिम्मत आपकी, मदद बाप की। फिर भी चलते चलो। रूको नहीं। कल्प पहले मुआफिक फिर से विजयी बन जाओ। सिर्फ एक सेकेण्ड भी सच्चे दिलसे, सर्व सम्बन्धों से याद करो तो उस एक सेकेण्ड में मिलने की अनुभूति व प्राप्ति सारे दिन में बार-बार सब तरफ से दूर कर बाप तरफ आकर्षित करती रहेगी। भले कितने भी निर्बल हो - लेकिन एक सेकेण्ड की याद इतना तो कर सकते हैं? ऐसी निर्बल आत्माओं को एक सेकेण्ड की याद रखने की हिम्मत के रिटर्न (बदले, उत्तर) में बाप हजार गुना मददगार बनेंगे। इससे सहज और क्या करेंगे? या आपकी तरफ से योग भी बाप ही लगायें? नाज़ुक बच्चे हैं न? नाज़ुक बच्चे बाप से भी नाज करते हैं, इसलिए नाज-युक्त नहीं बनो-लेकिन राज-युक्त और युक्ति-युक्त बनो। समझा? अच्छा।

ऐसे चक्रधारी सो छत्रधारी स्वयं को और सब को निर्बल से महा-बलवान बनाने वाले, सर्व कमज़ोरियों की सेकेण्ड में संकल्प में बलि देने वाले, ऐसे महाबलि चढ़ाने वाले महाबलवान अर्थात् मास्टर सर्वशक्तियों को शस्त्र समान कर्त्तव्य में लाने वाले ऐसे कर्मयोगी, सहज योगी आत्माओं के प्रति बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।

इस मुरली के विशेष ज्ञान-बिन्दु

1. जो मनुष्यात्मा वर्तमान संगमयुग के समय स्वदर्शन चक्रधारी है, वही आत्मा भविष्य में छत्रधारी अर्थात् राज्य का अधिकारी बन सकती है।

2. चक्रधारी आत्मा की निशानी यह है कि लाइट का चक्र दिखाई देगा। ऐसी आत्मा माया के अनेक प्रकार के चक्करों से मुक्त, प्रकृति के भिन्न-भिन्न प्रकार के आकर्षणों से परे, बिन्दु रूप में स्थित

21-09-75   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

फरिश्ता अर्थात् जिसका एक बाप के सिवा अन्य आत्माओं से कोई रिश्ता नहीं

एक के द्वारा सर्व-सम्बन्धों के सुख की अनुभूति कराने वाले, मुश्किल को सहज करने वाले, देह रूपी धरनी से सदा न्यारे, करन-करावनहार शिव बाबा बोले

‘‘वाह रे - मैं!’’ का नशा याद है? वह दिन, वह झलक और फलक स्मृति में आती है? वह नशे के दिन अलौकिक थे। ऐसे नशे के दिन स्मृति में आते ही नशा चढ़ जाता है - इतना नशा इतनी खुशी जो स्थूल पाँव भी चलते-फिरते नैचुरल डान्स करते हैं - प्रोग्राम से डान्स नहीं। मन में भी नाच और तन भी नैचुरल नाचता रहे। यह नैचुरल डान्स तो निरन्तर हो सकता है? ऑखों का देखना, हाथों का हिलना और पाँव का चलना सब खुशी में नैचुरल डान्स करते हैं। उनको फरिश्तों का डान्स कहते हैं - ऐसे नैचुरल डान्स चलता रहता है? जैसे कहते हैं कि फरिश्तों के पाँव धरती पर नहीं टिकते। ऐसे फरिश्ते बनने वाली आत्मायें भी इस देह अर्थात् धरती - जैसे वह धरती मिट्टी है वैसे यह देह भी मिट्टी है ना? तो फरिश्तों के पाँव धरती पर नहीं रहते अर्थात् फरिश्ते बनने वाली आत्माओं के पाँव अर्थात् बुद्धि इस देह रूपी धरती पर नहीं रह सकती। यही निशानी है फरिश्तेपन की। जितना फरिश्तेपन की स्थिति के समीप जाते रहते, उतना देह रूपी धरती से पाँव स्वत: ही ऊपर होंगे। अगर ऊपर नहीं हैं, धरती पर रहते हैं तो समझो बोझ है। बोझ वाली वस्तु ऊपर नहीं रह सकती। हल्कापन न है, बोझ है तो इस देह-रूपी धरती पर बार-बार पाँव आ जायेंगे। फरिश्ता अर्थात् हल्का नहीं बनेंगे। फरिश्तों के पाँव धरती से ऊंचे स्वत: ही रहते हैं, करते नहीं हैं। जो हल्का होता है उनके लिये कहते हैं कि यह तो जैसे हवा में उड़ता रहता है - चलता नहीं है, उड़ता है। ऐसे ही फरिश्ते भी ऊंची स्थिति में उड़ते हैं। ऐसे नैचुरल फरिश्तों का डान्स देखने और करने में भी मजा आता है। महारथी टीचर्स यह नेचुरल फरिश्तों की डान्स करती रहती हैं ना?

करन-करावनहार शिव बाबा ने अपने सम्मुख बैठी टीचर्स से पूछा - (कोई ने कहा, बाबा माया के हाथ काट दो) अगर बाप माया के हाथ काट दे तो जो काटेगा, वह पायेगा। बाप तो सब कुछ कर सकते हैं। सेकेण्ड का आर्डर है - लेकिन भविष्य बनाने वालों का भविष्य कैसे बने? बाप सबके लिये कर दे या सिर्फ आपके लिए कर दे। फिर तो जैसे आज की दुनिया में रिश्वतखोर हैं तो यह भी वही लिस्ट हो जायेगी। इसलिए जैसे नेपाल में भी छोटे बच्चों को खुखडी (छुरी) हाथ में पकड़ाते हैं। करते खुद हैं लेकिन हाथ बच्चों का रखाते हैं। इतना हो सकता है लेकिन हिम्मत का हाथ खुद ज़रूर रखना है। इतना तो करना है ना? यह टीचर्स की टॉपिक (चर्चा का विषय) है - सारे दिन में कितना समय फरिश्ते रहते और कितना समय फरिश्तों के बजाय मृत्युलोक के मानव होते हो? दैवी परिवार के रिश्तों में भी फरिश्ते नहीं आते। वह तो सदैव न्यारे रहते हैं। रिश्ते सब किससे हैं? अगर कोई को सखी बनाया तो बाप से वह सखीपन का रिश्ता कम हो जायेगा। कोई भी सम्बन्ध चाहे बहन का या भाई का या अन्य कोई भी रिश्ता जोड़ा तो एक से ज़रूर वह रिश्ता हल्का होगा। क्योंकि बँट जाता है ना? दिल का टुकड़ा-टुकड़ा हो गया तो टूटा हुआ दिल हो गया। टूटे हुए दिल को बाप भी स्वीकार नहीं करते। यह भी गुह्य रिश्तों की फिलॉसॉफी है।सिवाय एक के और कोई से रिश्ता नहीं - न सखा न सखी। न बहन न भाई- नहीं तो उस सम्बन्ध में भी आत्मा ही याद आयेगी।

फरिश्ता अर्थात् जिसका आत्माओं से कोई रिश्ता नहीं। प्रीति जुटाना सहज है, लेकिन निभाना मुश्किल है। निभाने में ही नम्बर होते हैं। जुटाने में नहीं होते। निभाना किसी-किसी को आता है, सब को नहीं आता। निभाने की लाइन बदली हो जाती है। लक्ष्य एक होता है लक्षण दूसरे हो जाते हैं। इसलिये निभाते कोई- कोई हैं, जुटाते सब हैं। भक्त भी जुटाते हैं लेकिन निभाते नहीं हैं। बच्चे निभाते हैं, लेकिन उसमें भी नम्बरवार। कोटो में कोई और कोई-कोई में भी कोई। कोई एक सम्बन्ध में भी अगर निभाने में कमी हो गई या सम्बन्ध में जरा-सी भी कमी हुई, मानों 75%  सम्बन्ध बाप से है और 25%  सम्बन्ध कोई एक आत्मा से है, तो भी निभाने वाले की लिस्ट में नहीं रखेंगे। बाप का साथ 75%  रखते हैं और कभी-कभी 25%  कोई का साथ लिया तो भी निभाने वाले की लिस्ट में नहीं आयेंगे। निभाना-तो निभाना। यह भी गुह्य गति हैं। संकल्प में भी कोई आत्मा न आये। इसको कहते हैं सम्पूर्ण निभाना।  कैसी भी परिस्थिति हो, चाहे मन की, तन की, या सम्पर्क की-कोई भी आत्मा संकल्प में न आये। संकल्प में भी कोई आत्मा की स्मृति आई तो उसी सेकेण्ड का भी हिसाब बनता है। तभी तो आठ पास होते हैं। विशेष आठ का ही गायन है। ज़रूर इतनी गुह्य गति होगी? बड़ा कड़ा पेपर है। तो फरिश्ता उनको कहा जाता है, जिसके संकल्प में भी कोई न रहे। कोई परिस्थिति में, मजबूरी में भी नहीं। सेकेण्ड के लिये संकल्प में भी न हो। मजबूरी में भी मजबूत रहे-तब है फरिश्ता। ऊंची मंज़िल है, लेकिन इसमें कोई नुकसान नहीं है। सहज इसलिये है क्योंकि प्राप्ति पदम गुना होती है।

जो बाप के रिश्ते से प्राप्ति होती है, वह उसी सेकेण्ड में स्मृति में नहीं आती है, भूल जाते हैं इसलिये कोई का आधार ले लेते हैं। प्राप्ति कोई कम है क्या? मुश्किल से सहज करने वाले बाप का ही गायन है, न कि कोई आत्मा का। तो मुश्किल के समय बाप का सहारा लेना चाहिए, न कि किसी आत्मा का सहारा लेना चाहिए। लेकिन उस समय वह प्राप्ति भूल जाती है। कमज़ोर होते हैं। जैसे डूबते हुए को तिनका मिल जाता है तो उसका सहारा ले लेते हैं। उस समय परेशानी के कारण जो तिनका सामने आता है, उनका सहारा ले लेते हैं, लेकिन उससे बे-सहारे हो जायेंगे, यह स्मृति में नहीं रहता? अच्छा।

इस मुरली के विशेष ज्ञान-बिन्दु

1. फरिश्ता बनने वाली आत्माओं के बुद्धि रूपी पाँव इस देह रूपी धरनी पर नहीं टिकते।

2. फरिश्ता अर्थात् जिसका अन्य आत्माओं से कोई रिश्ता नहीं। सर्व रिश्ते एक रूहानी बाप से हों। कैसी भी परिस्थिति हो - चाहे मन की, तन की या सम्पर्क की कोई भी आत्मा संकल्प में न आये। जो मजबूरी में भी मजबूत रहेतब वह है फरिश्ता।

 

 

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QUIZ QUESTIONS

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 प्रश्न 1 :- चक्रधारी आत्मा की मुख्य निशानियाँ क्या है?

 प्रश्न 2 :- माया के अनेक प्रकार के  चक्करों मे आने वाले की निशानी क्या होगी?

 प्रश्न 3 :- फरिश्तों के पाँव धरती पर नहीं टिकते इस महावाक्य से बाबा का क्या अभिप्राय है?

 प्रश्न 4 :- बाबा ने गुह्य रिश्तों की क्या फिलॉसॉफी समझाई है?

 प्रश्न 5 :- प्रीति जुटाने और निभाने मे क्या अन्तर है?

 

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

{ भविष्य, फरिश्ता, चक्रधारी, शिकायतें, क्वेश्चन, वर्तमान, अन्य, आगे, बोझदारी, संकल्प, अनेक, ब्राह्मण, लाइटधारी }

 1   आज बापदादा सब _____ बच्चों के _____ और _____ दोनों को देख हर्षित हो रहे हैं।

 2  ऐसे _____ प्रकार के _____ स्वयं के प्रति भी होंगे और _____ के प्रति भी होंगे।

 3  ऐसी मीठी-मीठी _____ बाप के____ रखते हैं।

 4  एक तो है _____, दूसरे हैं _____। ऐसे बोझ वाली आत्मायें डबल _____ कैसे बनेंगी?

 5  तो _____ उनको कहा जाता है, जिसके _____ में भी कोई न रहे।

 

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-

 1  :- हर एक स्वदर्शन चक्रधारी सो बोझदारी  है।

 2  कर्ज का बोझ आत्मा की सर्व कमजोरियों के मर्ज का रूप ले लेता है।

 3  :- ऐसी चक्रधारी आत्माओं को एक सेकेण्ड की याद रखने की हिम्मत के रिटर्न (बदले, उत्तर) में बाप दस  गुना मददगार बनेंगे।

 4  :- महाबलवान बच्चे बाप से भी नाज करते हैं, इसलिए नाज-युक्त नहीं बनो-लेकिन राज-युक्त और युक्ति-युक्त बनो।

 5   :- तो मुश्किल के समय बाप का सहारा लेना चाहिए, न कि किसी आत्मा का सहारा लेना चाहिए।

 

 

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QUIZ ANSWERS

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 प्रश्न 1 :- चक्रधारी आत्मा की मुख्य निशानियाँ क्या है?

 उत्तर 1 :-चक्रधारी आत्मा की मुख्य निशानियाँ हैं :-

          चक्रधारी अब भी लाइट के छत्रधारी दिखाई देंगे। चक्र की निशानी लाईट का चक्र दिखाई देगा।

          ऐसा चक्रधारी सदैव माया के अनेक प्रकार के चक्रों से मुक्त होगा। जैसे अपनी देह की स्मृति के अनेक व्यर्थ संकल्पों के चक्र से, लौकिक और अलौकिक सम्बन्धों के चक्र से, अपने अनेक जन्मों के स्वभाव और संस्कारों के चक्र से और प्रकृति के अनेक प्रकार के आकर्षण के चक्र से वह सदैव मुक्त होगा।    

          सिवाय स्वदर्शन चक्र के वह और कोई चक्र में आ नहीं सकेगा। अन्य आत्माओं को भी बाप से प्राप्त हुई शक्तियों द्वारा अनेक चक्करों से सहज ही छुड़ा देगा।

 

 प्रश्न 2 :- माया के अनेक प्रकार के  चक्करों मे आने वाले की निशानी क्या होगी?

 उत्तर 2 :-माया के अनेक प्रकार के चक्करों मे आने वाले की निशानी है :-

          जैसे उनके सिर पर लाईट का ताज है, वैसे उनके सिर पर अनेक प्रकार के विघ्नों का बोझ होगा। ताज नहीं। सदैव किसी-न-किसी प्रकार का बोझ उनके सिर पर अर्थात् बुद्धि में महसूस होगा।

          ऐसी आत्मा सदैव कर्जदार और मर्जदार होगी - उनके मस्तक पर, मुख पर, सदैव क्वेश्चन मार्क होंगे। हर बात में क्यों, क्या और कैसे, यह क्वेश्चन्स होंगे।

           एक सेकेण्ड भी बुद्धि एकाग्र अर्थात् फुलस्टॉप में नहीं होगी। फुलस्टॉप की निशानी बिन्दी (.) होती है। अर्थात् मन्सा में भी बिन्दु स्वरूप की स्थिति नहीं होगी।

          वाचा और कर्मणा में भी बीती सो बीती, नथिंग न्यू, जो होता है वह कल्याणकारी है, ऐसा फुलस्टॉप अर्थात् बिन्दी लगानी नहीं आयेगी।

          तो अनेक प्रकार के क्वेश्चन करना, चाहे स्वयं से अथवा दूसरों से या बाप से - यही निशानी है कि यह आत्मा स्वदर्शन चक्रधारी सो छत्रधारी नहीं।

 

 प्रश्न 3 :- फरिश्तों के पाँव धरती पर नहीं टिकते इस महावाक्य से बाबा का क्या अभिप्राय है?

 उत्तर 3 :-इस महावाक्य से बाबा ये समझाते है :-

           जैसे कहते हैं कि फरिश्तों के पाँव धरती पर नहीं टिकते। ऐसे फरिश्ते बनने वाली आत्मायें भी इस देह अर्थात् धरती - जैसे वह धरती मिट्टी है वैसे यह देह भी मिट्टी है ना? तो फरिश्तों के पाँव धरती पर नहीं रहते अर्थात् फरिश्ते बनने वाली आत्माओं के पाँव अर्थात् बुद्धि इस देह रूपी धरती पर नहीं रह सकती।

          यही निशानी है फरिश्तेपन की। जितना फरिश्तेपन की स्थिति के समीप जाते रहते, उतना देह रूपी धरती से पाँव स्वत: ही ऊपर होंगे।

          अगर ऊपर नहीं हैं, धरती पर रहते हैं तो समझो बोझ है। बोझ वाली वस्तु ऊपर नहीं रह सकती। हल्कापन न है, बोझ है तो इस देह-रूपी धरती पर बार-बार पाँव आ जायेंगे। फरिश्ता अर्थात् हल्का नहीं बनेंगे।           

          फरिश्तों के पाँव धरती से ऊंचे स्वत: ही रहते हैं, करते नहीं हैं। जो हल्का होता है उनके लिये कहते हैं कि यह तो जैसे हवा में उड़ता रहता है - चलता नहीं है, उड़ता है। ऐसे ही फरिश्ते भी ऊंची स्थिति में उड़ते हैं। 

 

 प्रश्न 4 :- बाबा ने गुह्य रिश्तों की क्या फिलॉसॉफी समझाई है?

 उत्तर 4 :-बाबा  ने गुह्य रिश्तों के बारे में कहा :-

          दैवी परिवार के रिश्तों में भी फरिश्ते नहीं आते। वह तो सदैव न्यारे रहते हैं। रिश्ते सब किससे हैं? अगर कोई को सखी बनाया तो बाप से वह सखीपन का रिश्ता कम हो जायेगा।

          कोई भी सम्बन्ध चाहे बहन का या भाई का या अन्य कोई भी रिश्ता जोड़ा तो एक से ज़रूर वह रिश्ता हल्का होगा। क्योंकि बँट जाता है ना?

          दिल का टुकड़ा-टुकड़ा हो गया तो टूटा हुआ दिल हो गया। टूटे हुए दिल को बाप भी स्वीकार नहीं करते। यह भी गुह्य रिश्तों की फिलॉसॉफी है।

          सिवाय एक के और कोई से रिश्ता नहीं - न सखा न सखी। न बहन न भाई- नहीं तो उस सम्बन्ध में भी आत्मा ही याद आयेगी।

 

 प्रश्न 5 :- प्रीति जुटाने और निभाने मे क्या अन्तर है?

 उत्तर 5 :-प्रीति जुटाने और निभाने मे मुख्य अन्तर है :-

          प्रीति जुटाना सहज है, लेकिन निभाना मुश्किल है। निभाने में ही नम्बर होते हैं। जुटाने में नहीं होते।

          निभाना किसी-किसी को आता है, सब को नहीं आता। निभाने की लाइन बदली हो जाती है।

          लक्ष्य एक होता है लक्षण दूसरे हो जाते हैं। इसलिये निभाते कोई- कोई हैं, जुटाते सब हैं।

          भक्त भी जुटाते हैं लेकिन निभाते नहीं हैं। बच्चे निभाते हैं, लेकिन उसमें भी नम्बरवार। कोटो में कोई और कोई-कोई में भी कोई। कोई एक सम्बन्ध में भी अगर निभाने में कमी हो गई या सम्बन्ध में जरा-सी भी कमी हुई, मानों 75% सम्बन्ध बाप से है और 25% सम्बन्ध कोई एक आत्मा से है, तो भी निभाने वाले की लिस्ट में नहीं रखेंगे।

          निभाना-तो निभाना। यह भी गुह्य गति हैं। संकल्प में भी कोई आत्मा न आये। इसको कहते हैं सम्पूर्ण निभाना।

                 

 

 

       FILL IN THE BLANKS:-     

{ भविष्य, फरिश्ता, चक्रधारी, शिकायतें, क्वेश्चन, वर्तमान, अन्य, आगे, बोझदारी, संकल्प, अनेक, ब्राह्मण, लाइटधारी }

 1   आज बापदादा सब _____ बच्चों के _____ और ______ दोनों को देख हर्षित हो रहे हैं।

    ब्राह्मण / वर्तमान / भविष्य

 

 2  ऐसे _____ प्रकार के _____ स्वयं के प्रति भी होंगे और _____ के प्रति भी होंगे।

    अनेक / क्वेश्चन / अन्य

 

 3   ऐसी मीठी-मीठी _____ बाप के____ रखते हैं। 

    शिकायतें /  आगे

 

 4   एक तो है _____, दूसरे हैं _____। ऐसे बोझ वाली आत्मायें डबल ____ कैसे बनेंगी? 

   चक्रधारी / बोझदारी / लाइटधारी

 

 5   तो _____ उनको कहा जाता है, जिसके _____ में भी कोई न रहे। 

    फरिश्ता /  संकल्प

 

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-

 1  :- हर एक स्वदर्शन चक्रधारी सो बोझदारी  है।

  हर एक स्वदर्शन चक्रधारी सो छत्रधारी है।

 

 2  :- कर्ज का बोझ आत्मा की सर्व कमजोरियों के मर्ज का रूप ले लेता है। 】      

 

 3  :- ऐसी चक्रधारी आत्माओं को एक सेकेण्ड की याद रखने की हिम्मत के रिटर्न (बदले, उत्तर) में बाप दस गुना मददगार बनेंगे।

  ऐसी निर्बल आत्माओं को एक सेकेण्ड की याद रखने की हिम्मत के रिटर्न (बदले, उत्तर) में बाप हजार गुना मददगार बनेंगे।

 

 4  :-  महाबलवान बच्चे बाप से भी नाज करते हैं, इसलिए नाज-युक्त नहीं बनो-लेकिन राज-युक्त और युक्ति-युक्त बनो।

   नाज़ुक बच्चे बाप से भी नाज करते हैं, इसलिए नाज-युक्त नहीं बनो-लेकिन राज-युक्त और युक्ति-युक्त बनो। 

 

 5   :- तो मुश्किल के समय बाप का सहारा लेना चाहिए, न कि किसी आत्मा का सहारा लेना चाहिए 】