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AVYAKT MURLI

08 / 10 / 75

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08-10-75   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

मास्टर ज्ञान-स्वरूप बनने की प्रेरणा

विश्व रूपी बेहद ड्रामा में मुख्य अथवा विशेष पार्टधारी बनाने वाले तथा अज्ञानान्धकार मिटाने वाले ज्ञान-सूर्य शिव बाबा बोले -

स्वयं को बापदादा का श्रृंगार, ब्राह्मण कुल का श्रृंगार, विश्व का श्रृंगार, अपने घर का श्रृंगार समझते हो? बच्चों को बाप के सिर का ताज, गले का हार माना जाता है। इसलिये बापदादा के श्रृंगार हो? अपने घर परमधाम वा शान्तिधाम में भी सर्व चमकते हुए सितारों के समान आत्माओं के बीच विशेष चमकते हुए घर के श्रृंगार, साकार सृष्टि अर्थात् विश्व के अन्दर विश्व ड्रामा के अन्दर हीरो पार्टधारी, विशेष पार्ट बजाने वाली विशेष आत्मायें हो, अर्थात् विश्व के श्रृंगार हो। ऐसे अपने को श्रेष्ठ श्रृंगार समझते हुए चलते हो? आज बापदादा अपने श्रृंगार को देख रहे थे, क्या देखा? सभी को चमकती हुई मणियों के रूप में देखा। रूप सबका चमकती हुई मणियों का था, लेकिन नम्बरवार ज़रूर होते ही हैं। आज तीन रूप के श्रृंगार में मणियों को देखा।

पहला श्रृंगार सिर के ताज में मस्तक बीच चमकती हुई मणियों को देखा। रूप सबका चमकती हुई मणियों का था। अब इन तीनों प्रकार की मणियों में अपनी-अपनी विशेषता देखी। पहले नम्बर की मणियाँ अर्थात् ताज में चमकती हुई मणियों की विशेषता यह थी-यह सब मणियाँ बाप समान, मास्टर ज्ञान-सूर्य समान चमक रही थीं। जैसे सूर्य की किरणें विश्व को प्रकाशमय बनाती हैं, चारों कोने के अन्धकार को दूर करती हैं ऐसे मास्टर ज्ञान-सूर्य स्वरूप मणियाँ हर-एक अपने सर्व शक्तियों रूपी किरणें चारों ओर फैलाने वाली देखीं। हर-एक की हर शक्ति रूपी किरणें बेहद विश्व तक पहुँच रही थीं - हद तक नहीं, एक तक नहीं, अल्प आत्माओं तक नहीं, लेकिन विश्व तक। साथसाथ बाप समान सर्व गुणों के मास्टर-सागर। इसकी निशानी हर मणि के अन्दर सर्व रंग समाए हुए थे। एक में सर्व रंगों की झलक थी। ऐसे मास्टर गुणों के सागर, अपने सर्व रंगों की रंगत से चमकते हुए ताज की श्रेष्ठ शोभा थीं। ताज के अन्दर मस्तक बीच लटकती हुई वह मणियाँ बापदादा के विशेष श्रृंगार रूप में दिखाई दीं।

इन विशेष मणियों का मस्तक के बीच लटकते हुए का भी रहस्य है। यह विशेष मणियाँ सदा साकार रूप में मस्तक बीच चमकती हुई मणि अर्थात् आत्मा स्वरूप में सदा स्थित रहती हैं। साकार सृष्टि में रहते हुए बुद्धि सदा बाप की याद, घर की याद, राजधानी की याद और ईश्वरीय सेवा की याद में लटकी हुई रहती हैं। इसलिये इन्हों का स्थान भी उच्च स्थिति की निशानी मस्तक बीच लटकते हुए दिखाई दी और ऐसी आत्मायें सदा ऊँची स्मृति, ऊंची वृत्ति, ऊंची दृष्टि और ऊंची प्रवृत्ति में रहती हैं। इसलिए इन्हें ऊंचा स्थान अर्थात् सिर का ताज प्राप्त हुआ है। सबसे ऊंचा श्रृंगार ताज होता है। ताज ऊंचाई का भी सिम्बल है, साथ-साथ मालिकपन का भी सिम्बल है और सर्व प्राप्तियों का भी सिम्बल है, अधिकारीपन का भी सिम्बल है। ऐसे मस्तक मणियों व ताज-नशीन मणियों की विशेषता सुनी? ऐसी विशेष मणियाँ बहुत थोड़ी दिखाई दी। यह थी फर्स्ट नम्बर की मणियाँ व फर्स्ट नम्बर का श्रृंगार।

अब दूसरे नम्बर का श्रृंगार बापदादा के गले का हार उन्हों की विशेषता क्या थी और आधार क्या था? वह सब मणियाँ भी अपनी चमक चारों ओर फैला रही थीं। लेकिन फर्क क्या था? पहले नम्बर की मणियों की शक्ति की किरणें चारों ओर समान फैली हुई थीं। लेकिन गले के हार की मणियों की किरणें सर्व समान नहीं थीं। कोई छोटी, कोई बड़ी थीं। कोई किरणें बेहद तक, कोई हद तक थीं अर्थात् बाप के समीप थीं। लेकिन बाप समान नहीं थीं। सर्व गुणों के रंग समाये हुए थे - लेकिन सर्व रंग स्पष्ट नहीं थे। बापदादा के ऊपर स्नेह और सहयोग के आधार पर बलिहार थे, इसलिये गले के हार थे। ऐसी आत्माओं का आधार सदा कण्ठ द्वारा अर्थात् मुख द्वारा, गले की आवाज द्वारा बाप की महिमा, बाप का परिचय देकर बाप को समीप लाना - अर्थात् वाचा के सब्जेक्ट में फुल पास थे परन्तु मन्सा की सब्जेक्ट में फुल पास नहीं लेकिन वाचा की सब्जेक्ट में फुल पास। सदा स्मृति स्वरूप नहीं लेकिन सदा स्मृति दिलाने स्वरूप। इस आधार से बाप के समीप, बाप के गले का हार बनते हैं। यह संख्या ज्यादा थी। माला में तो ज्यादा होते हैं ना? तो गले की माला की मणियाँ, ताज की मणियों से बहुत ज्यादा थीं।

तीसरा श्रृंगार था बाँहों का कंगन। उन्हों की विशेषता और आधार क्या था? बाँहै सदा सहयोग की व मददगार बनने की निशानी गायी जाती हैं। बाँहों का हार अथवा कंगन बात एक ही है। कंगन को बाँहों का हार कहेंगे न? इन्हों की विशेषता क्या देखी? किरणों व् चमक बेहद में नहीं, लेकिन हद में थीं। सर्व गुणों के रंग नहीं, लेकिन कोई- कोई गुण रूपी रंग चमकता हुआ दिखाई दे रहा था। इन्हों की विशेषता हर सेवा के कार्य में सदा सहयोगी, कर्मणा की सब्जेक्ट में फुल पास। सेवा-अर्थ तन-मन-धन से सदा एवररेडी । बाप के स्नेह रूपी बाँहों में सदा समाये हुए और बापदादा  का हाथ सदा अपने ऊपर अनुभव करने वाले थे। सदा साथ रहने वाले नहीं लेकिन अपने ऊपर हाथ अनुभव करने वाले - यह संख्या भी ज्यादा थी। यह थी सहयोगी आत्मायें, वह समान आत्मायें और वह समीप आत्मायें। समझा तीन प्रकार का श्रृंगार। तो आज तीन रूप के श्रृंगार रूप में सर्व बच्चों को देखा। अब अपने आपको देखो कि मैं कौन हूँ? यह था आज का समाचार। सूक्ष्म वतन का समाचार सुनने की रूचि होती है न? अच्छा।

ऐसे नम्बरवार सर्व श्रृंगार की मणियों को, बापदादा के सदा स्मृति में रहने वाली समर्थ आत्माओं को और सदा सर्व के शुभ-चिन्तक बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।

इस मुरली का सारांश

1. पहला श्रृंगार सिर के ताज में मस्तक बीच चमकती हुई मणियाँ, वे विशेष आत्मायें हैं जो बाप समान मास्टर ज्ञान-सूर्य समान चमकती हैं। उनकी सर्व शक्तियाँ रूपी किरणें अपने अन्दर सर्व गुण रूपी रंगों को समाये हुए चारों ओर बेहद विश्व तक पहुँचती हैं। ऐसी आत्मायें सदा आत्मिक स्वरूप में स्थित होते हुए ऊंची स्मृति, ऊंची वृत्ति, ऊंची दृष्टि और ऊंची प्रवृत्ति में रहती हैं।

2. दूसरे नम्बर का श्रृंगार बापदादा के गले के हार की मणियाँ, वे समीप आत्मायें हैं जिनकी चमक चारों ओर फैलती तो हैं, परन्तु उनकी शक्ति रूपी किरणें समान नहीं हैं, सर्व गुणों का रंग स्पष्ट नहीं है। वाचा के सब्जेक्ट में फुल पास, परन्तु मन्सा की सब्जेक्ट में फुल पास नहीं हैं।

08-10-75   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

स्वयं सन्तुष्ट होने तथा दूसरों को सन्तुष्ट करने की विधि

सर्व को सन्तुष्ट करने वाले, पॉवरफुल स्टेज पर खड़ा करने वाले, आसुरी संस्कारों को मिटाने वाले शिव बाबा संगमयुगी वत्सों के प्रति बोले: -

आपको अपना संगमयुगी और भविष्य स्वरूप स्पष्ट दिखाई देता है? फ्युचर स्पष्ट दिखाई देने से पुरूषार्थ भी ठीक होता है। अन्तिम स्वरूप है ही महाकाली का अर्थात् आसुरी संस्कारों को समाप्त करने वाला। इस लिये आपको सदा स्मृति में रखना है कि मैं महाकाली स्वरूप हूँ - इस लिये आप में अब कोई भी आसुरी संस्कार नहीं रहना चाहिए। आप निमित्त बनी आत्माओं को सदा यह अटेन्शन रहना चाहिये कि मैं तीव्र पुरूषार्थ करूँ। तीव्र पुरूषार्थ का सलोगन  क्या है? (जो कर्म मैं करूँगा, मुझे देख दूसरे भी वैसा ही करेंगे) यह तो मध्यम पुरूषार्थ का सलोगन है। तीव्र पुरूषार्थ का सलोगन है - जैसा संकल्प मैं करूँगा मेरे संकल्प का वैसा ही वातावरण बनेगा। संकल्प का भी आधार वातावरण पर और वातावरण का आधार पुरूषार्थ पर है। जो संकल्प करेंगे उसे सभी फॉलो  करेंगे। कर्म तो मोटी बात है, लेकिन संकल्प पर भी अटेन्शन संकल्प को हल्की बात नहीं समझना, क्योंकि संकल्प है बीज। संकल्प रूपी बीज कमज़ोर होगा तो कभी भी पॉवरफुल फल अनुभव नहीं होगा। एक संकल्प का भी व्यर्थ जाना, यह भी एक भूल है। जैसे वाणी में हुई भूल महसूस होती है, वैसे व्यर्थ संकल्प की भी भूल महसूस होनी चाहिए। जब ऐसी चैकिंग करेंगे तब ही आप आगे बढ़ सकेंगे। नहीं तो निमित्त बनने का जो चांस मिला है, उसका लाभ उठा नहीं सकेंगे। अब तो गुह्य महीन पुरूषार्थ होना चाहिए। अब मोटे पुरूषार्थ का समय समाप्त हो गया। कर्म और बोल में गलतियों का होना - यह है बचपन। अब वानप्रस्थी का पुरूषार्थ होना चाहिए। अब भी अगर बचपन का पुरूषार्थ करते रहे तो लक्क अर्थात् भाग्य की लॉटरी को गँवा देंगे। कभी हर्षित, कभी उदास, कभी तीव्र पुरूषार्थ और कभी मध्यम पुरूषार्थ का होना यह कोई विशेष आत्मा की निशानी नहीं। यह तो साधारण आत्मा हुई। अब तो आप सभी में विशेष न्यारापन होना चाहिए। जो अपनी पॉवरफुल स्मृति से कमज़ोर आत्माओं की स्थिति को भी पॉवरफुल बना दो। संतुष्ट न होने के कारण सर्विस रूकी हुई है। तो अब यह भी सलोगन याद रखो - संतुष्ट रहना भी है और सबको संतुष्ट करना भी है। समझा? अच्छा।

महावाक्यों का सार

1. हमारा अन्तिम स्वरूप है महाकाली अर्थात् आसुरी संस्कारों को समाप्त करने वाला।

2. तीव्र पुरूषार्थ का सलोगन है कि - जैसा संकल्प मैं करूँगा - मेरे संकल्प का वातावरण वैसा ही बनेगा और सभी उसे फॉलो भी वैसा ही करेंगे।

3. एक संकल्प भी व्यर्थ जाना यह भी भूल है, ऐसी महीन चैकिंग अब करनी है।

4. अपनी स्मृति इतनी पॉवरफुल होनी चाहिए कि कमज़ोर आत्माओं की स्थिति भी पॉवरफुल बन जाये।

 

 

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QUIZ QUESTIONS

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 प्रश्न 1 :- विश्व रूपी बेहद ड्रामा में अज्ञान अंधकार मिटाने वाले ज्ञान सूर्य शिव बाबा का मुख्य श्रृंगार कौन है और कैसे ?

 प्रश्न 2 :- सिर के ताज में चमकती हुई मणियों की क्या विशेषताएं है?

 प्रश्न 3 :- ताज के अन्दर मस्तक बीच लटकती हुई मणियाँ किसका प्रतीक है?

 प्रश्न 4 :- बापदादा के गले का हार में चमकती हुई मणियों की क्या विशेषतायें वा आधार है ?

 प्रश्न 5 :- हमारा अन्तिम स्वरूप कौन सा है, उसे स्पष्ट कीजिए ?

 

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

{ ऊंचाई, कर्म, संकल्प, पॉवरफुल, वानप्रस्थी, मालिकपन, मुझे, बचपन, कमज़ोर, वातावरण, अधिकारीपन, वैसा, पुरूषार्थ, स्थिति, भाग्य }

 1   सबसे ऊंचा श्रृंगार ताज होता है। ताज _____  का भी सिम्बल है, साथ-साथ  ______ का भी सिम्बल है और सर्व प्राप्तियों का भी सिम्बल है, ______ का भी सिम्बल है।

 2  जो ____ मैं करूँगा, _____ देख दूसरे भी _____ ही करेंगे।

 3  _____ का भी आधार _____ पर और वातावरण का आधार ______ पर है।

 4  अपनी स्मृति इतनी _____ होनी चाहिए कि _____ आत्माओं की ____ भी पॉवरफुल बन जाये।

 5  अब _____ का पुरूषार्थ होना चाहिए। अब भी अगर ____ का पुरूषार्थ करते रहे तो लक्क अर्थात् _____ की लॉटरी को गँवा देंगे।

 

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-

 1  :- बाँहे सदा सहयोग की व मददगार बनने की निशानी गायी जाती हैं।

 2  :- फ्युचर स्पष्ट दिखाई देने से पुरूषार्थ भी ढीला होता है।

 3  :- संतुष्ट रहना भी है और सबको संतुष्ट करना भी है।

 4  :- गले की माला की मणियाँ, ताज की मणियों से बहुत कम होती है।

 5   :- कभी हर्षित, कभी उदास, कभी तीव्र पुरूषार्थ और कभी मध्यम पुरूषार्थ का होना यह विशेष आत्मा की निशानी है।

 

 

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QUIZ ANSWERS

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 प्रश्न 1 :- विश्व रूपी बेहद ड्रामा में अज्ञान अंधकार मिटाने वाले ज्ञान सूर्य शिव बाबा का मुख्य श्रृंगार कौन है और कैसे ?

 उत्तर 1 :-  विश्व रूपी बेहद ड्रामा में अज्ञान अंधकार मिटाने वाले ज्ञान सूर्य शिव बाबा का मुख्य श्रृंगार ब्राह्मण बच्चे है।

          बच्चों को बाप के सिर का ताज, गले का हार माना जाता है। ब्राह्मण बच्चे विश्व का श्रृंगार, ब्राह्मण कुल का श्रृंगार है।

          अपने घर परमधाम वा शान्तिधाम में भी सर्व चमकते हुए सितारों के समान आत्माओं के बीच विशेष चमकते हुए घर के श्रृंगार, साकार सृष्टि अर्थात् विश्व के अन्दर विश्व ड्रामा के अन्दर हीरो पार्टधारी, विशेष पार्ट बजाने वाली विशेष आत्मायें है अर्थात् विश्व के श्रृंगार है।

           सभी बच्चे बापदादा का श्रृंगार है, सभी चमकती हुई तीन प्रकार की मणियों के रूप में है। रूप सबका चमकती हुई मणियों का है, लेकिन नम्बरवार ज़रूर होते ही है।

 

 प्रश्न 2 :- सिर के ताज में चमकती हुई मणियों की क्या विशेषताएं है?

 उत्तर 2 :-  पहले नम्बर की मणियाँ अर्थात् सिर के ताज में चमकती हुई मणियों की निम्न विशेषताये है:-

          यह सब मणियाँ बाप समान, मास्टर ज्ञान-सूर्य समान चमक रही है। जैसे सूर्य की किरणें विश्व को प्रकाशमय बनाती हैं, चारों कोने के अन्धकार को दूर करती हैं ऐसे मास्टर ज्ञान-सूर्य स्वरूप मणियाँ हर-एक अपने सर्व शक्तियों रूपी किरणें चारों ओर फैलाने वाली है।

           हर-एक की हर शक्ति रूपी किरणें बेहद विश्व तक पहुँच रही है - हद तक नहीं, एक तक नहीं, अल्प आत्माओं तक नहीं, लेकिन विश्व तक।

          बाप समान सर्व गुणों के मास्टर-सागर के अन्दर सर्व रंग समाए हुए है। एक में सर्व रंगों की झलक। ऐसे मास्टर गुणों के सागर, अपने सर्व रंगों की रंगत से चमकते हुए ताज की श्रेष्ठ शोभा है। ऐसी विशेष मणियाँ बहुत थोड़ी होती है।

 

 प्रश्न 3 :- ताज के अन्दर मस्तक बीच लटकती हुई मणियाँ किसका प्रतीक है?

 उत्तर 3 :-  इन विशेष मणियों का मस्तक के बीच लटकते हुए का भी रहस्य है।

          यह विशेष मणियाँ सदा साकार रूप में मस्तक बीच चमकती हुई मणि अर्थात् आत्मा स्वरूप में सदा स्थित रहती हैं।

        साकार सृष्टि में रहते हुए बुद्धि सदा बाप की याद, घर की याद, राजधानी की याद और ईश्वरीय सेवा की याद में लटकी हुई रहती हैं। इसलिये इन्हों का स्थान भी उच्च स्थिति की निशानी मस्तक बीच लटकते हुए दिखाया है।   

         ऐसी आत्मायें सदा ऊँची स्मृति, ऊंची वृत्ति, ऊंची दृष्टि और ऊंची प्रवृत्ति में रहती हैं। इसलिए इन्हें ऊंचा स्थान अर्थात् सिर का ताज प्राप्त हुआ है।

 

 प्रश्न 4 :- बापदादा के गले का हार में चमकती हुई मणियों की क्या विशेषताये वा आधार है ?

 उत्तर 4 :-  बापदादा के गले का हार में चमकती हुई मणियों की निम्न विशेषताये है:-

          पहले नम्बर की मणियों की शक्ति की किरणें चारों ओर समान फैली हुई । लेकिन गले के हार की मणियों की किरणें सर्व समान फैली हुई नहीं है।

          कोई छोटी, कोई बड़ी। कोई किरणें बेहद तक, कोई हद तक थीं अर्थात् बाप के समीप लेकिन बाप समान नहीं।

          सर्व गुणों के रंग समाये हुए लेकिन सर्व रंग स्पष्ट नहीं । बापदादा के ऊपर स्नेह और सहयोग के आधार पर बलिहार है, इसलिये गले के हार है।

 ऐसी आत्माओं का आधार सदा कण्ठ द्वारा अर्थात् मुख द्वारा बाप की महिमा, बाप का परिचय देकर बाप को समीप लाना - अर्थात् वाचा के सब्जेक्ट में फुल पास परन्तु मन्सा की सब्जेक्ट में फुल पास नही। सदा स्मृति स्वरूप नहीं लेकिन सदा स्मृति दिलाने स्वरूप। इस आधार से बाप के समीप, बाप के गले का हार बनते हैं।

 

 प्रश्न 5 :- हमारा अन्तिम स्वरूप कौन सा है, उसे स्पष्ट कीजिए ?

 उत्तर 5 :-  हमारा अन्तिम स्वरूप महाकाली का अर्थात् आसुरी संस्कारों को समाप्त करने वाला है।

          निमित्त बनी आत्माओं को सदा यह अटेन्शन रहना चाहिये कि मैं तीव्र पुरूषार्थ करूँ। तीव्र पुरूषार्थ का सलोगन है - जैसा संकल्प मैं करूँगा मेरे संकल्प का वैसा ही वातावरण बनेगा।

         संकल्प को हल्की बात नहीं समझना, क्योंकि संकल्प है बीज। संकल्प रूपी बीज कमज़ोर होगा तो कभी भी पॉवरफुल फल अनुभव नहीं होगा।

          एक संकल्प का भी व्यर्थ जाना, यह भी एक भूल है। जैसे वाणी में हुई भूल महसूस होती है, वैसे व्यर्थ संकल्प की भी भूल महसूस होनी चाहिए।

         जब ऐसी चैकिंग करेंगे तब ही आगे बढ़ सकेंगे। नहीं तो निमित्त बनने का जो चांस मिला है, उसका लाभ उठा नहीं सकेंगे।

 

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

{ ऊंचाई, कर्म, संकल्प, पॉवरफुल, वानप्रस्थी, मालिकपन, मुझे, बचपन, कमज़ोर, वातावरण, अधिकारीपन, वैसा, पुरूषार्थ, स्थिति, भाग्य }

 1  सबसे ऊंचा श्रृंगार ताज होता है। ताज _____  का भी सिम्बल है, साथ-साथ  ______का भी सिम्बल है और सर्व प्राप्तियों का भी सिम्बल है, ______का भी सिम्बल है।

    ऊंचाई / मालिकपन / अधिकारीपन

 

 2  जो ____ मैं करूँगा, _____ देख दूसरे भी _____ ही करेंगे।

    कर्म / मुझे / वैसा

 

 3  _____ का भी आधार _____ पर और वातावरण का आधार ______ पर है।

    संकल्प / वातावरण / पुरूषार्थ

 

 4  अपनी स्मृति इतनी _____ होनी चाहिए कि _____ आत्माओं की ______ भी पॉवरफुल बन जाये।

    पॉवरफुल / कमज़ोर / स्थिति

 

 5  अब _____ का पुरूषार्थ होना चाहिए। अब भी अगर ____ का पुरूषार्थ करते रहे तो लक्क अर्थात् _____ की लॉटरी को गँवा देंगे।

    वानप्रस्थी / बचपन / भाग्य

 

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-

 1  :- बाँहे सदा सहयोग की व मददगार बनने की निशानी गायी जाती हैं।

 

 2  :- फ्युचर स्पष्ट दिखाई देने से पुरूषार्थ भी ढीला होता है।

  फ्युचर स्पष्ट दिखाई देने से पुरूषार्थ भी ठीक होता है।

 

 3  :- संतुष्ट रहना भी है और सबको संतुष्ट करना भी है।

 

 4  :- गले की माला की मणियाँ, ताज की मणियों से बहुत कम होती है।

  गले की माला की मणियाँ, ताज की मणियों से बहुत ज्यादा होती है।

 

 5   :- कभी हर्षित, कभी उदास, कभी तीव्र पुरूषार्थ और कभी मध्यम पुरूषार्थ का होना यह विशेष आत्मा की निशानी है।

  कभी हर्षित, कभी उदास, कभी तीव्र पुरूषार्थ और कभी मध्यम पुरूषार्थ का होना यह साधारण आत्मा की निशानी है