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AVYAKT MURLI
20 / 09 / 75
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20-09-75 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
शक्ति होते हुए भी जीवन में सफलता और सन्तुष्टता क्यों नहीं?
सर्वशक्तियों, सिद्धियों और निधियों के दाता, शिव बाबा बोले -
जैसे बाप सर्व गुणों के सागर हैं, क्या आप भी वैसे ही अपने को मास्टर सागर समझते हो? सागर अखण्ड, अचल और अटल होता है। सागर की विशेष दो शक्तियाँ सदैव देखने में आयेंगी - एक समाने की शक्ति, जितनी समाने की शक्ति है उतनी सामना करने की भी शक्ति है। लहरों द्वारा सामना भी करते हैं और हर वस्तु व व्यक्ति को स्वयं में समा भी लेते हैं। तो मास्टर सागर होने के कारण अपने में भी देखो कि यह दोनों शक्तियाँ मुझ में कहाँ तक आई हैं? अर्थात् कितने परसेन्टेज में हैं? क्या दोनों शक्तियों को समय-प्रमाण यूज़ कर सकते हो? क्या शक्तियों द्वारा सफलता का अनुभव होता है?
कई बच्चे सर्व शक्तियों का स्वयं में अनुभव भी करते हैं और समझते हैं कि मुझ में यह शक्तियाँ हैं। लेकिन शक्तियाँ होते हुए भी कही-कही वे सफलता का अनुभव नहीं करते। ज्ञानस्वरूप, आनन्द, प्रेम, सुख और शान्ति स्वरूप स्वयं को समझते हुए भी स्वयं से सदा सन्तुष्ट नहीं अथवा पुरुषार्थी होते हुए भी प्रारब्ध अर्थात् प्राप्ति का प्रत्यक्ष फल के रूप में जो अनुभव होना चाहिए, वह कभी-कभी ही कर सकते हैं। सर्व नियमों का पालन भी करते हैं, फिर भी स्वयं को सदा हर्षित अनुभव नहीं करते। मेहनत बहुत करते हैं लेकिन फल का अनुभव कम करते हैं। माया को दासी भी बनाते हैं, लेकिन फिर भी कभी-कभी उदासी महसूस करते हैं। इसका कारण क्या है? शक्तियाँ भी है, साथ-साथ ज्ञान भी हैं, नियमों का पालन भी करते हैं, तब कमी किस बात में है कि स्वयं, स्वयं से ही कन्फ्यूज रहते हैं?
इसमें कमी यह है कि प्राप्त की हुई शक्ति को व ज्ञान की प्वॉइन्ट्स को जिस समय, जिस रीति से कार्य में लगाना चाहिए उस समय, उस रीति से यूज़ करना नहीं आता है। बाप से प्रीति है, ज्ञान से भी प्रीति है, दिव्य गुण-सम्पन्न जीवन से भी प्रीति है - लेकिन प्रीति के साथ-साथ रीति नहीं आती है व रीति के साथ ‘प्रीति’ नहीं आती। इसलिए अमूल्य वस्तु भी साधारण प्राप्ति का आधार बन जाती हैं। जैसे स्थूल में भी कितना ही बड़ा यन्त्र व मूल्यवान वस्तु पास होते हुए भी यूज़ करने की रीति नहीं आती है तो उस द्वारा जो प्राप्ति होनी चाहिये वह नहीं कर पाते हैं, ऐसे ही ज्ञानवान बच्चे भी ज्ञान और शक्तियों द्वारा जो प्राप्ति होनी चाहिये, नहीं कर पाते हैं। ऐसी आत्माओं के ऊपर बापदादा को भी रहम आता है।
अब वह रीति, जो न आने के कारण प्राप्ति का अनुभव नहीं कर पाते, वह रीति कैसे आये? इसमें चाहिये - निर्णय शक्ति। निर्णय शक्ति न होने के कारण जहाँ समाने की शक्ति यूज़ करनी चाहिये वहाँ सामना करने की शक्ति यूज़ कर लेते हैं। जहाँ समेटने की शक्ति यूज़ करनी चाहिये, वहाँ विस्तार करने की शक्ति यूज़ कर लेते हैं। इसलिये संकल्प सफलता का होता है, लेकिन स्वरूप में व प्राप्ति में संकल्प-प्रमाण सफलता नहीं होती है। विशेष शक्ति की प्राप्ति का मुख्य आधार क्या है? निर्णय शक्ति को तेज करने के लिए किस बात की आवश्यकता है? कोई भी यन्त्र स्पष्ट निर्णय नहीं कर पाता तो उसका कारण क्या होता है? निर्णय शक्ति को बढ़ाने के लिए अपनी श्रेष्ठ स्थिति - निराकारी, निरहंकारी, निर्विकारी और निर्विकल्पता की चाहिए। अगर इन चारों में से किसी भी बात की कमी रह जाती है, तो यह श्रेष्ठ धारणा न होने के कारण स्पष्टता नहीं होती है। श्रेष्ठ ही स्पष्ट होते हैं। यही उलझन बुद्धि को स्वच्छ नहीं बनने देती। ‘स्वच्छता ही श्रेष्ठता’ है। इसलिए अपनी निर्णय शक्ति को बढ़ाओ। तब ही बाप के समान सर्व-गुणों में मास्टर सागर अनुभव कर सकेंगे।
जैसे सागर अनेक वस्तुओं से सम्पन्न होता है वैसे स्वयं को भी सर्वशक्तियों से सम्पन्न स्वरूप का अनुभव करो, क्योंकि सम्पन्नता का वरदान संगमयुग पर ही मिलता है। सम्पन्न-स्वरूप का अनुभव सिवाय संगमयुग के और कहीं भी नहीं कर सकेंगे। आपके ही दैवी जीवन के सर्वगुण सम्पन्न होने का गायन है। 16 कलाओं का भी गायन है। लेकिन सम्पन्न का स्वरूप क्या होता है? गुण और कला की नॉलेज इस ईश्वरीय जीवन में ही है। इसलिये सम्पन्न बनने का आनन्द इस ईश्वरीय जीवन में ही प्राप्त कर सकते हो।
रीति सीखने के लिये, बाप द्वारा जो भी प्राप्त होता जा रहा है, चाहे ज्ञान, चाहे शक्तियाँ, इन्हों को समय प्रमाण कार्य में लगाते जाओ। बहुत अच्छी बातें हैं और बहुत अच्छी चीज है, सिर्फ यह समझ कर अन्दर समा न लो। अर्थात् बुद्धि की तिजोरी में रख न लो। सिर्फ बैंक बैलेन्स न बनाते जाओ या कई बुजुर्गो के मुआफिक गठरियाँ बाँध कर अन्दर रख न दो। सिर्फ सुनने और रखने का आनन्द नहीं लो, लेकिन बार-बार स्वयं के प्रति और सर्व आत्माओं के प्रति काम में लगाते जाओ क्योंकि इस समय की जो प्राप्ति हो रही है, इन प्राप्तियों को यूज़ करने से ईश्वरीय नियम-प्रमाण जितना यूज़ करेंगे उतनी वृद्धि होगी, जैसे दान के लिये कहावत है - ‘धन दिये धन न खुटे’, अर्थात् देना ही बढ़ना है, ऐसे ही इन ईश्वरीय प्राप्तियों को अनुभव में लाने से प्राप्ति कम नहीं होगी, बल्कि और ही प्राप्ति स्वरूप का अनुभव करोगे। बार-बार युज़ करने से, जैसा समय वैसा स्वरूप अपना बना सकेंगे व जिस समय जो शक्ति यूज़ करनी चाहिये वह शक्ति उस रीति यूज़ कर सकेंगे। समय पर धोखा खाने से बच जायेंगे। धोखा खाने से बचना अर्थात् दु:ख से बचना। तो क्या बन जायेंगे? - सदा हर्षित अर्थात् सदा सुखी, खुशनसीब बन जायेंगे। तो अब अपने ऊपर रहम करके, प्राप्तियों को यूज़ करके और प्रीति के साथ रीति को जान करके, सदा मास्टर ज्ञान सागर बनो, शक्ति का सागर बनो और सर्व प्राप्तियों का सागर बनो। अच्छा।
ऐसे सर्व अनुभवों से सम्पन्न मायाजीत, जगतजीत, अपने अनुभवों द्वारा सर्व को अनुभवी बनाने वाले बापदादा के भी बालक सो मालिक, ऐसे बाप के मालिक और विश्व के मालिक आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते!
इस मुरली की विशेष बातें अथवा तथ्य
1. ज्ञानसागर बाप द्वारा प्राप्ति की हुई शक्तियों व ज्ञान के तथ्यों को जिस समय जिस रीति से कार्य में लगाना चाहिये उस समय उस रीति से उपयोग न कर सवने के कारण स्वयं में उलझे हुए रहते हैं और सफलता व सिद्धि की अनुभूति अपने जीवन में नहीं कर पाते हैं।
2. उपयोग की उचित रीति को जानने के लिये अपनी निर्णय शक्ति को बढ़ाना आवश्यक है।
30-09-75 ओम शान्ति अव्यक्त बापदादा मधुबन
सारे कल्प में विशेष पार्ट बजाने वाली श्रेष्ठ आत्माओं की विशेषताएँ
सर्व श्रेष्ठ पार्ट बजाने वाले, अपने ज्ञान के प्रकाश से चन्द्रमा (ब्रह्मा) को सोलह कला प्रकाशित करने वाले ज्ञान सूर्य शिव बाबा बोले -
स्वयं को सारे कल्प के अन्दर सर्व आत्माओं से श्रेष्ठ पार्ट बजाने वाली विशेष आत्मायें समझते हो? आप विशेष आत्माओं की आदि से अन्त तक क्या-क्या विशेषतायें हैं व आपने कौन-सा विशेष पार्ट बजाया है, उसको जानते हो? एक होता है विशेष काम करने के कारण विशेष आत्मा कहलाना, दूसरा विशेष गुणों के प्रभाव के कारण विशेष आत्मा कहलाना, तीसरा पोजीशन व स्टेटस के कारण और चौथा सम्बन्ध और सम्पर्क द्वारा अनेकों को विशेष प्राप्ति कराने के कारण। इन सब विशेषताओं को सामने रखते हुए देखो कि यह चार प्रकार की विशेषतायें किस स्टेज तक और कितने परसेन्टेज में हैं।
सतयुग के आदि में आप विशेष आत्माओं की फर्स्ट स्टेज कौन-सी होती है, उनकी विशेषता आज के भक्त भी गाते रहते हैं - जिसमें सम्पन्न और सम्पूर्णता का गायन है वह तो सबकी स्मृति में है ना? अब आगे चलो। सतयुग के बाद कहाँ आते हो? - (त्रेता) वहाँ की विशेषता क्या है? वहाँ की विशेषता भी इतनी ही प्रसिद्ध है, कि जो आज के कलियुगी नेता उसी राज्य का स्वप्न देखते रहते कि ऐसा होना चाहिए। कोई भी प्लान सोचते हैं, तो भी आपकी सेकेण्ड स्टेज को अति विशेष समझते हुए उसे सामने रखते हैं। और आगे चलो त्रेता के बाद कहाँ आते हैं? (द्वापर) लेकिन द्वापर में भी कहाँ पहुँचे। द्वापर में भी राज्य सत्ता तो होती है ना? वहाँ धर्मसत्ता और राज्य सत्ता दो टुकड़ों में बट जाती है। इसलिए द्वापर हो जाता है। दो पुर हो गये ना? एक राज्य-सत्ता दूसरी धर्म सत्ता। फिर भी आप विशेष आत्माओं के विशेष संस्कार गायब नहीं होते। चाहे अन्य धर्म पिता, धर्म सत्ता के आधार से धर्म की स्थापना भी करते हैं लेकिन आपकी विशेषताओं का पूजन, गायन और वन्दन आरम्भ हो जाता है। यादगार फिर भी आप विशेष आत्माओं की ही बनायेंगे। गुणगान आप विशेष आत्माओं के ही होते हैं। राज्य सत्ता में भी राजाई ठाठ और राजाई पावर्स रहती है। आपकी विशेषताओं की यादगार में शास्त्र बन जाते हैं। अपनी विशेषतायें याद आती हैं? अच्छा, इससे आगे चलो। कहाँ पहुँचे? (कलियुग) वहाँ की विशेषता क्या है? आप विशेष आत्माओं के नाम से सब काम शुरू होते हैं। हर कार्य की विधि में आपकी विशेषताओं की सिद्धि सुमिरण होती रहती है। आपके नाम से अनेक आत्माओं का शरीर निर्वाह होता है। नाम की महिमा - यह कलियुग की विशेषता है। आपका नाम सब स्थूल-सूक्ष्म प्राप्तियों का आधार बन जाता है। क्या इस विशेषता को जानते हो? अच्छा फिर आगे चलो? कहाँ पहुँचे? (संगम) जहाँ हैं वहाँ पहुँच गये।
संगम युग की विशेषताओं को तो स्वयं अब अनुभव कर ही रहे हो। सारे कल्प की विशेषताओं को सदा स्मृति में रखते हुए सदा अलौकिक विचित्र रास करते रहते हो। गोप-गोपियों की रास तो प्रसिद्ध ही है। तो निरन्तर रास करते हो अथवा प्रोग्राम से? यह है हुल्लास का रास। लेकिन इस रास में सम्पूर्ण पूर्णमासी की रास प्रसिद्ध है। इसका रहस्य क्या है? पूर्णमासी अर्थात् उसमें सम्पूर्णत: की निशानी गाई हुई है। इस रास की विशेषतायें अब तक वर्णन करते रहते हैं। वह कौन-सी विशेषतायें? उस समय गोप-गोपियों की विशेषता क्या थी? आपकी ही बातें हैं ना? मुख्य विशेषता क्या थी, तीन बातें सुनाओ? एक विशेषता रात को दिन बनाया हुआ था। दिन अर्थात् हर एक गोप-गोपी के जीवन में सतोप्रधानता का सूर्य उदय था। लोगों के लिये कुम्भकरण के नींद की रात थी अर्थात् तमोप्रधानता थी। दूसरी विशेषता सारा समय जागती ज्योति थे। माया एक संकल्प-रूप में भी आ नहीं पाती थी। मायावी लोग अर्थात् माया मूर्छित थी और बेहोश थी। क्योंकि सर्व जागती ज्योति निरन्तर बाप के साथ लगन में मग्न थे। तीसरी विशेषता सर्व का हाथ में हाथ मिला हुआ था और ताल से ताल मिला हुआ था अर्थात् संस्कार मिले हुए थे। स्नेह और सहयोग का संगठन था। रास में सार्किल अर्थात् चक्र लगाते हैं ना? सार्किल अर्थात् चक्र - यह शक्ति स्वरूप प्रकृति और माया को घेराव डालने की व किले की निशानी है। यह है विशेषतायें इसलिये इस रास का विशेष महत्व गाया हुआ है। यह हुआ संगमयुग की विशेषताओं का गायन। तो ऐसी रास निरन्तर होनी चाहिए। कितनी बार यह रास की है? अनेक बार की हुई है, फिर कभी भूल क्यों जाते हो? जब संस्कार मिलाना अर्थात् ताल से ताल मिलाना, ऐसी कोई परिस्थिति आती है तो क्या कहते हो? उस समय भक्त अर्थात् कमज़ोर बन जाते हो। संस्कार मिलाना पड़ेगा, मरना पड़ेगा, झुकना पड़ेगा, सुनना पड़ेगा और सहन करना पड़ेगा - यह कैसे होगा? - ऐसे-ऐसे कहने से भक्त बनते हो। इसलिए अब उस भक्तपन के वंश के अंश को भी खत्म करो, तब ही इस रास मण्डल के अन्दर पहुँच सकेंगे। नहीं तो देखने वाले बन जायेंगे। जो करने में मजा है, वह देखने में नहीं। तो अपनी सर्व-विशेषतायें सुनी ना? ऐसी सर्वश्रेष्ठ आत्मायें हो? ऐसी सर्वश्रेष्ठ आत्माओं के लिये बापदादा को भी आना पड़ता है। अच्छा।
ऐसी विशेष आत्मायें जो बापदादा को भी मेहमान बनाने वाली है, ऐसी महान् आत्मायें जिन्हों का हर संकल्प अनेकों को महान् बनाने वाला है, ऐसी तकदीरवान जिनके मस्तक पर सदैव तकदीर का सितारा चमकता है और ऐसी पदमा-पदम भाग्यशाली आत्माओं के प्रति बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
राशि मिलने वाले ही मणके के दाने
ऐसे रास करने वाले तैयार हुए हैं? संस्कारों का मिलना अर्थात् रास से रास मिलना। रास में अगर कोई का हाथ ऊपर, कोई का हाथ नीचे होगा, तो रास में मजा नहीं आयेगा। रास अर्थात् राशि मिलना। जैसे कोई भी कनेक्शन जोड़ते हैं व मिलन करते हैं, तो राशि मिलाते हैं ना? अगर राशि नहीं मिलती तो जोड़ी नहीं मिलाते हैं। एक-दो में राशि मिलना अर्थात् स्वभाव, संस्कार, गुण और सेवा साथ-साथ मिलने में दिखाई दे। समान तो नहीं हो सकता। नम्बर तो होंगे लेकिन जरा-सा अन्तर जो न के बराबर दिखाई दे-ऐसी राशि मिलने वाले कितने तैयार हुए हैं? क्या आधी माला? जितने भी तैयार हुए हैं, होना तो है, हुई पड़ी है सिर्फ घूँघट के अन्दर है। अच्छा।
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QUIZ QUESTIONS
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प्रश्न 1 :- क्या शक्तियों द्वारा सफलता का अनुभव होता है? आज बाबा कौन सी दो शक्तियों की और कौन सी रीत ना आने से आत्माओं पर रहम आने की बात कर रहे हैं?
प्रश्न 2 :- रीति सीखने और उसको यूज करने प्रति आज बाबा ने बच्चों को क्या समझानी दी है?
प्रश्न 3 :- आज बाबा ने सारे युगों की और आत्माओं की विशेषताओं की कौन सी स्मृति दिलाई है?
प्रश्न 4 :- बाबा ने आज रास की कौन सी विशेषताओं का वर्णन किया है?
प्रश्न 5 :- रास के मिलान की क्या क्या खूबियां बाबा ने बताई हैं?
FILL IN THE BLANKS:-
{ भक्तपन, दैवी, पोज़िशन, मण्डल, आत्मा, निर्णयशक्ति, बापदादा, गायन, निर्विकल्पता, स्टेटस, मेहमान }
1 ऐसी विशेष आत्मायें जो _______ को भी _______ बनाने वाली है।
2 अब उस _______ के वंश के अंश को भी खत्म करो, तब ही इस रास _______ के अन्दर पहुँच सकेंगे। नहीं तो देखने वाले बन जायेंगे।
3 _______ को बढ़ाने के लिए अपनी श्रेष्ठ स्थिति - निराकारी, निरहंकारी, निर्विकारी और _______ की चाहिए।
4 आपके ही _______ जीवन के सर्वगुण सम्पन्न होने का _______ है।
5 एक होता है विशेष काम करने के कारण विशेष _______ कहलाना, दूसरा विशेष गुणों के प्रभाव के कारण विशेष आत्मा कहलाना, तीसरा _______ व _______ के कारण।
सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-
1 :- सम्पन्न-स्वरूप का अनुभव सिवाय द्वापरयुग के और कहीं भी नहीं कर सकेंगे।
2 :- गुण और कला की नॉलेज इस ईश्वरीय जीवन में ही है।
3 :- श्रेष्ठ ही स्पष्ट होते हैं। यही उलझन बुद्धि को स्वच्छ नहीं बनने देती। ‘स्वच्छता ही श्रेष्ठता’ है।
4 :- श्रेष्ठ धारणा न होने के कारण संतोष नही होती है।
5 :- उपयोग की उचित रीति को जानने के लिये अपनी निर्णय शक्ति को बढ़ाना अनावश्यक है।
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QUIZ ANSWERS
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प्रश्न 1 :- क्या शक्तियों द्वारा सफलता का अनुभव होता है? आज बाबा कौन सी दो शक्तियों की और कौन सी रीत ना आने से आत्माओं पर रहम आने की बात कर रहे हैं?
उत्तर 1 :- बाबा बताते कि:-
❶ सागर अखण्ड, अचल और अटल होता है। सागर की विशेष दो शक्तियाँ सदैव देखने में आयेंगी - एक समाने की शक्ति, जितनी समाने की शक्ति है उतनी सामना करने की भी शक्ति है। लहरों द्वारा सामना भी करते हैं और हर वस्तु व व्यक्ति को स्वयं में समा भी लेते हैं। तो मास्टर सागर होने के कारण अपने में भी देखो कि यह दोनों शक्तियाँ मुझ में कहाँ तक आई हैं? अर्थात् कितने परसेन्टेज में हैं? क्या दोनों शक्तियों को समय-प्रमाण यूज़ कर सकते हो? क्या शक्तियों द्वारा सफलता का अनुभव होता है?
❷ कई बच्चे सर्व शक्तियों का स्वयं में अनुभव भी करते हैं और समझते हैं कि मुझ में यह शक्तियाँ हैं। लेकिन शक्तियाँ होते हुए भी कही-कही वे सफलता का अनुभव नहीं करते।
❸ ज्ञानस्वरूप, आनन्द, प्रेम, सुख और शान्ति स्वरूप स्वयं को समझते हुए भी स्वयं से सदा सन्तुष्ट नहीं अथवा पुरुषार्थी होते हुए भी प्रारब्ध अर्थात् प्राप्ति का प्रत्यक्ष फल के रूप में जो अनुभव होना चाहिए, वह कभी-कभी ही कर सकते हैं।
❹ सर्व नियमों का पालन भी करते हैं, फिर भी स्वयं को सदा हर्षित अनुभव नहीं करते। मेहनत बहुत करते हैं लेकिन फल का अनुभव कम करते हैं।
❺ माया को दासी भी बनाते हैं, लेकिन फिर भी कभी-कभी उदासी महसूस करते हैं। इसका कारण क्या है? शक्तियाँ भी है, साथ-साथ ज्ञान भी हैं, नियमों का पालन भी करते हैं, तब कमी किस बात में है कि स्वयं, स्वयं से ही कन्फ्यूज रहते हैं?
❻ इसमें कमी यह है कि प्राप्त की हुई शक्ति को व ज्ञान की प्वॉइन्ट्स को जिस समय, जिस रीति से कार्य में लगाना चाहिए उस समय, उस रीति से यूज़ करना नहीं आता है। बाप से प्रीति है, ज्ञान से भी प्रीति है, दिव्य गुण-सम्पन्न जीवन से भी प्रीति है - लेकिन प्रीति के साथ-साथ रीति नहीं आती है व रीति के साथ ‘प्रीति’ नहीं आती।
❼ इसलिए अमूल्य वस्तु भी साधारण प्राप्ति का आधार बन जाती हैं। जैसे स्थूल में भी कितना ही बड़ा यन्त्र व मूल्यवान वस्तु पास होते हुए भी यूज़ करने की रीति नहीं आती है तो उस द्वारा जो प्राप्ति होनी चाहिये वह नहीं कर पाते हैं।
❽ ऐसे ही ज्ञानवान बच्चे भी ज्ञान और शक्तियों द्वारा जो प्राप्ति होनी चाहिये, नहीं कर पाते हैं। ऐसी आत्माओं के ऊपर बापदादा को भी रहम आता है।
प्रश्न 2 :- रीति सीखने और उसको यूज करने प्रति आज बाबा ने बच्चों को क्या समझानी दी है?
उत्तर 2 :- बाबा ने समझानी दी कि
❶ रीति सीखने के लिये, बाप द्वारा जो भी प्राप्त होता जा रहा है, चाहे ज्ञान, चाहे शक्तियाँ, इन्हों को समय प्रमाण कार्य में लगाते जाओ।
❷ बहुत अच्छी बातें हैं और बहुत अच्छी चीज है, सिर्फ यह समझ कर अन्दर समा न लो। अर्थात् बुद्धि की तिजोरी में रख न लो। सिर्फ बैंक बैलेन्स न बनाते जाओ या कई बुजुर्गो के मुआफिक गठरियाँ बाँध कर अन्दर रख न दो।
❸ सिर्फ सुनने और रखने का आनन्द नहीं लो, लेकिन बार-बार स्वयं के प्रति और सर्व आत्माओं के प्रति काम में लगाते जाओ।
❹ क्योंकि इस समय की जो प्राप्ति हो रही है, इन प्राप्तियों को यूज़ करने से ईश्वरीय नियम-प्रमाण जितना यूज़ करेंगे उतनी वृद्धि होगी, जैसे दान के लिये कहावत है - ‘धन दिये धन न खुटे’, अर्थात् देना ही बढ़ना है, ऐसे ही इन ईश्वरीय प्राप्तियों को अनुभव में लाने से प्राप्ति कम नहीं होगी, बल्कि और ही प्राप्ति स्वरूप का अनुभव करोगे।
❺ बार-बार युज़ करने से, जैसा समय वैसा स्वरूप अपना बना सकेंगे व जिस समय जो शक्ति यूज़ करनी चाहिये वह शक्ति उस रीति यूज़ कर सकेंगे। समय पर धोखा खाने से बच जायेंगे। धोखा खाने से बचना अर्थात् दु:ख से बचना। तो क्या बन जायेंगे? - सदा हर्षित अर्थात् सदा सुखी, खुशनसीब बन जायेंगे।
❻ तो अब अपने ऊपर रहम करके, प्राप्तियों को यूज़ करके और प्रीति के साथ रीति को जान करके, सदा मास्टर ज्ञान सागर बनो, शक्ति का सागर बनो और सर्व प्राप्तियों का सागर बनो।
प्रश्न 3 :- आज बाबा ने सारे युगों की और आत्माओं की विशेषताओं की कौन सी स्मृति दिलाई है?
उत्तर 3 :- बाबा स्मृति दिलाते हैं कि:-
❶ सतयुग के आदि में आप विशेष आत्माओं की फर्स्ट स्टेज कौन-सी होती है, उनकी विशेषता आज के भक्त भी गाते रहते हैं - जिसमें सम्पन्न और सम्पूर्णता का गायन है वह तो सबकी स्मृति में है ना?
❷ अब आगे चलो। सतयुग के बाद कहाँ आते हो? - (त्रेता) वहाँ की विशेषता क्या है? वहाँ की विशेषता भी इतनी ही प्रसिद्ध है, कि जो आज के कलियुगी नेता उसी राज्य का स्वप्न देखते रहते कि ऐसा होना चाहिए। कोई भी प्लान सोचते हैं, तो भी आपकी सेकेण्ड स्टेज को अति विशेष समझते हुए उसे सामने रखते हैं।
❸ और आगे चलो त्रेता के बाद कहाँ आते हैं? (द्वापर) लेकिन द्वापर में भी कहाँ पहुँचे। द्वापर में भी राज्य सत्ता तो होती है ना? वहाँ धर्मसत्ता और राज्य सत्ता दो टुकड़ों में बट जाती है। इसलिए द्वापर हो जाता है। दो पुर हो गये ना? एक राज्य-सत्ता दूसरी धर्म सत्ता। फिर भी आप विशेष आत्माओं के विशेष संस्कार गायब नहीं होते।
❹ चाहे अन्य धर्म पिता, धर्म सत्ता के आधार से धर्म की स्थापना भी करते हैं लेकिन आपकी विशेषताओं का पूजन, गायन और वन्दन आरम्भ हो जाता है। यादगार फिर भी आप विशेष आत्माओं की ही बनायेंगे। गुणगान आप विशेष आत्माओं के ही होते हैं। राज्य सत्ता में भी राजाई ठाठ और राजाई पावर्स रहती है। आपकी विशेषताओं की यादगार में शास्त्र बन जाते हैं। अपनी विशेषतायें याद आती हैं?
❺ अच्छा, इससे आगे चलो। कहाँ पहुँचे? (कलियुग) वहाँ की विशेषता क्या है? आप विशेष आत्माओं के नाम से सब काम शुरू होते हैं। हर कार्य की विधि में आपकी विशेषताओं की सिद्धि सुमिरण होती रहती है। आपके नाम से अनेक आत्माओं का शरीर निर्वाह होता है। नाम की महिमा - यह कलियुग की विशेषता है। आपका नाम सब स्थूल-सूक्ष्म प्राप्तियों का आधार बन जाता है। क्या इस विशेषता को जानते हो?
❻ अच्छा फिर आगे चलो? कहाँ पहुँचे? (संगम) जहाँ हैं वहाँ पहुँच गये। संगम युग की विशेषताओं को तो स्वयं अब अनुभव कर ही रहे हो। सारे कल्प की विशेषताओं को सदा स्मृति में रखते हुए सदा अलौकिक विचित्र रास करते रहते हो।
प्रश्न 4 :- बाबा ने आज रास की कौन सी विशेषताओं का वर्णन किया है?
उत्तर 4 :- बाबा कहते हैं -
❶ रास की विशेषतायें अब तक वर्णन करते रहते हैं। वह कौन-सी विशेषतायें? उस समय गोप-गोपियों की विशेषता क्या थी? आपकी ही बातें हैं ना? मुख्य विशेषता क्या थी, तीन बातें सुनाओ?
❷ एक विशेषता रात को दिन बनाया हुआ था। दिन अर्थात् हर एक गोप-गोपी के जीवन में सतोप्रधानता का सूर्य उदय था। लोगों के लिये कुम्भकरण के नींद की रात थी अर्थात् तमोप्रधानता थी।
❸ दूसरी विशेषता सारा समय जागती ज्योति थे। माया एक संकल्प-रूप में भी आ नहीं पाती थी। मायावी लोग अर्थात् माया मूर्छित थी और बेहोश थी। क्योंकि सर्व जागती ज्योति निरन्तर बाप के साथ लगन में मग्न थे।
❹ तीसरी विशेषता सर्व का हाथ में हाथ मिला हुआ था और ताल से ताल मिला हुआ था अर्थात् संस्कार मिले हुए थे। स्नेह और सहयोग का संगठन था।
❺ रास में सार्किल अर्थात् चक्र लगाते हैं ना? सार्किल अर्थात् चक्र - यह शक्ति स्वरूप प्रकृति और माया को घेराव डालने की व किले की निशानी है। यह है विशेषतायें इसलिये इस रास का विशेष महत्व गाया हुआ है।
प्रश्न 5 :- रास के मिलान की क्या क्या खूबियां बाबा ने बताई हैं?
उत्तर 5 :- बाबा ने कहा:-
❶ संस्कारों का मिलना अर्थात् रास से रास मिलना। रास में अगर कोई का हाथ ऊपर, कोई का हाथ नीचे होगा, तो रास में मजा नहीं आयेगा।
❷ रास अर्थात् राशि मिलना। जैसे कोई भी कनेक्शन जोड़ते हैं व मिलन करते हैं, तो राशि मिलाते हैं ना? अगर राशि नहीं मिलती तो जोड़ी नहीं मिलाते हैं।
❸ एक-दो में राशि मिलना अर्थात् स्वभाव, संस्कार, गुण और सेवा साथ-साथ मिलने में दिखाई दे। समान तो नहीं हो सकता। नम्बर तो होंगे लेकिन जरा-सा अन्तर जो न के बराबर दिखाई दे-ऐसी राशि मिलने वाले कितने तैयार हुए हैं?
FILL IN THE BLANKS:-
{ भक्तपन, दैवी, पोज़िशन, मण्डल, आत्मा, निर्णयशक्ति, बापदादा, गायन, निर्विकल्पता, स्टेटस, मेहमान }
1 ऐसी विशेष आत्मायें जो _______ को भी _______ बनाने वाली है।
बापदादा / मेहमान
2 अब उस _______ के वंश के अंश को भी खत्म करो, तब ही इस रास _______ के अन्दर पहुँच सकेंगे। नहीं तो देखने वाले बन जायेंगे।
भक्तपन / मण्डल
3 _______ को बढ़ाने के लिए अपनी श्रेष्ठ स्थिति - निराकारी, निरहंकारी, निर्विकारी और _______ की चाहिए।
निर्णय शक्ति / निर्विकल्पता
4 आपके ही _______ जीवन के सर्वगुण सम्पन्न होने का _______ है।
दैवी / गायन
5 एक होता है विशेष काम करने के कारण विशेष _______ कहलाना, दूसरा विशेष गुणों के प्रभाव के कारण विशेष आत्मा कहलाना, तीसरा _______ व _______ के कारण।
आत्मा / पोजीशन / स्टेटस
सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-
1 :- सम्पन्न-स्वरूप का अनुभव सिवाय द्वापरयुग के और कहीं भी नहीं कर सकेंगे। 【✖】
सम्पन्न-स्वरूप का अनुभव सिवाय संगमयुग के और कहीं भी नहीं कर सकेंगे।
2 :- गुण और कला की नॉलेज इस ईश्वरीय जीवन में ही है। 【✔】
3 :- श्रेष्ठ ही स्पष्ट होते हैं। यही उलझन बुद्धि को स्वच्छ नहीं बनने देती। ‘स्वच्छता ही श्रेष्ठता’ है। 【✔】
4 :- श्रेष्ठ धारणा न होने के कारण संतोष नहीं होती है।【✖】
श्रेष्ठ धारणा न होने के कारण स्पष्टता नहीं होती है।
5 :- उपयोग की उचित रीति को जानने के लिये अपनी निर्णय शक्ति को बढ़ाना अनावश्यक है।【✖】
उपयोग की उचित रीति को जानने के लिये अपनी निर्णय शक्ति को बढ़ाना आवश्यक है।