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AVYAKT MURLI

01 / 10 / 75

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01-10-75   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

एकान्त, एकाग्रता और दृढ़-संकल्प से सिद्धि की प्राप्ति

सिद्धि स्वरूप बनाने वाले, भविष्य फल के साथ-साथ वर्तमान प्रत्यक्ष फल देने वाले, प्राणेश्वर शिव बाबा बोले -

आज बापदादा कोई-कोई विशेष आत्माओं को किसी कार्य-अर्थ इस संगठन से चुन रहा है। किस कार्य-अर्थ चुन रहा है वह समझते हो? आज बापदादा  सृष्टि की सैर पर निकले, एक तो खास विदेशी बच्चों द्वारा विदेश सेवा और भिन्न-भिन्न प्रकार के कनवर्ट (दूसरे धर्म में बदले हुए) हुए बच्चों को देखने के लिए। सेवा-केन्द्र और सेवाधारी बच्चे, जिन्हों के मन में दिनरात प्रत्यक्षता का बोल बाला करने का एक ही संकल्प है। ऐसे सेवाधारी अथक लगन से दिन-रात मेहनत में लगे हुये हैं। बच्चों को देख बापदादा हर्षित होते थे। नए-नए बच्चों की फास्ट लगन की उमंग की, मिलने अर्थ तड़पने की, पतंगे समान बाप पर हाई-जम्प लगाने की सूरत और सीरत देखी। गुलदस्ता अच्छा था - वैरायटी फूलों की शोभा सुन्दर लग रही थी - कलियाँ और पत्ते वैरायटी देखे कई आत्मायें मीठे उलहाने वाली भी देखी। कई आत्मायें मिलन की खुशी में अंसुवन मोती की मालायें बापदादा के प्रति पहनाते हुए भी देखी। ऐसी पहचानती हुई मूर्त जो बार-बार मिलन के गीत गाने वाली भी थी और फिर विदेश का सैर किया।

दूसरा था चारों ओर की अज्ञानी व भक्त आत्माओं का सैर। उसमें क्या देखा? एक तरफ अनेक आत्माएँ अपने शरीर निर्वाह-अर्थ जीवन के साधनों अर्थ किसी-न-किसी यन्त्रों द्वारा स्वयं में व्यस्त थी। साथ-साथ कुछ आत्मायें विनाश- अर्थ यन्त्र रिफाइन करने में व्यस्त थी। दूसरी तरफ कई गृहस्थी और भक्त आत्मायें अपने जन्त्र-मन्त्र से अपनी भावना का फल पाने के लिए व अल्पकाल की प्रत्यक्ष प्राप्ति करने के लिए अपने-अपने कार्य में व्यस्त थी। इन सबमें विशेष भारत और कुछ विदेश में भी सिद्धि प्राप्त करने की कामना से देवियों का विशेष आह्वान कर रही थी। मैजॉरिटी  सिद्धि के पीछे ज्यादा व्यस्त थी। सिद्धि प्राप्त करने के लिए स्वयं को समर्पण करने को भी तैयार हो जाते। सिद्धि की विधि में मुख्य दो बातें करते हैं। कोई भी सिद्धि के लिए एक तो एकान्त दूसरी एकाग्रता, दोनों की विधि द्वारा सिद्धि को पाते हैं।

तो आज बापदादा सिद्धि स्वरूप बच्चों को चुन रहे थे। जिन्हों के यादगार चित्रों द्वारा भी अब तक अनेकों को अनेक सिद्धियाँ प्राप्त हो रही हैं। उस समय सिद्धि की प्राप्ति का दृश्य देखने वाला होता है। जैसे आप लोगों को याद द्वारा अतिइन्द्रिय सुख का अनुभव होता है वैसे ही भक्तों को भी सिद्धि प्राप्त करने के समय के अल्पकाल का सुख उस समय के लिए कम अनुभव नहीं होता। ऐसा सैर करने के बाद साकार स्वरूप-धारी बच्चों को देखा। भक्त जिन देवियों द्वारा सिद्धि प्राप्त कर रहे हैं, वही देवियाँ कब स्वयं भी सिद्धि प्राप्त करने का संकल्प रख रही हैं। यह क्यों? चलते-चलते यह संकल्प ज़रूर उत्पन्न होता है, कि मेहनत करते हुए भी सिद्धि क्यों नहीं? समय प्रमाण सम्पूर्ण स्टेज की प्रत्यक्षता कम क्यों? तो बाप भी प्रश्न  करते हैं - क्यों? सिद्धि स्वरूप की मुख्य बात कौन-सी अपनानी पड़े? जैसे कल्प पहले पाण्डवों का गायन है कि सेकेण्ड में जहाँ तीर लगाया वहाँ गंगा प्रगट हुई अर्थात् सेकेण्ड में असम्भव भी सम्भव प्रत्यक्ष फल के रूप में दिखाई दिया। इसको ही सिद्धि कहा जाता है। यह नहीं होता, क्योंकि प्रत्यक्ष-फल की प्राप्ति के लिए हर सेकेण्ड अपनी सम्पूर्ण सर्व शक्ति सम्पन्न स्वरूप की स्मृति प्रत्यक्ष संकल्प रूप में नहीं रहती। मैं पुरुषार्थी हूँ, सम्पन्न हो ही जाऊंगा, होना तो ज़रूर है-नम्बरवार होना ही है। हमारा काम है मेहनत करना, वह तो यथाशक्ति कर ही रहे हैं - यह हर सेकेण्ड का संकल्प रूपी बीज सर्व शक्ति सम्पन्न नहीं होता है। उस समय के संकल्प में हो ही जायेगा अर्थात् भविष्य का संकल्प भरा हुआ होता है। दृढ़ निश्चय व प्रत्यक्ष फल के रस का बल भरा हुआ न होने के कारण सिद्धि भी प्रत्यक्ष नहीं। लेकिन दो घड़ी बाद, घण्टे बाद या कुछ दिनों बाद भविष्य प्राप्ति हो जाती है - तो इसका कारण समझा? आपके संकल्प रूपी बीज के कारण ही प्रत्यक्ष सिद्धि नहीं होती। अनेक प्रकार के साधारण संकल्प होते हैं। जैसे कि समय प्रमाण होना ही है, अभी सारे तैयार कहाँ हुये है? अभी तो आगे के नम्बर ही तैयार नहीं हुए हैं। फाइनल तो आठ ही होने हैं। ऐसे-ऐसे भविष्य नॉलेज के साधारण संकल्प आपके बीज को कमज़ोर कर देते हैं और यही भविष्य संकल्प जो उस समय यूज़ नहीं करना चाहिए, लेकिन उस समय न सोचते हुए भी यूज़ कर लेते हो - जिस कारण प्रत्यक्ष फल भी भविष्य फल के स्वरूप में परिवर्तन हो जाता है।

तो प्रत्यक्ष-फल पाने के लिए ही संकल्प रूपी बीज को दृढ़ निश्चय रूपी जल से कि यह तो हुआ ही पड़ा है - होना ही है - इस जल से पॉवर फुल बनाओ। तब ही प्रत्यक्ष सिद्धि-स्वरूप हो जायेंगे। जैसे आपके यादगार चित्रों द्वारा सिद्धि प्राप्त करने वालों की विशेष दो बातों की विधि सुनाई। एकान्तवासी और एकाग्रता। यही विधि कल्प पहले मुआफिक साकार में अपनाओ। एकाग्रता कम होने के कारण ही दृढ़ निश्चय की कमी होती है। एकान्तवासी कम होने के कारण ही साधारण संकल्प बीज को कमज़ोर बना देता है। इसलिए इस विधि द्वारा सिद्धि-स्वरूप बनो, जो सैर पर देखे वही आप हो ना? तो यादगार रूप को अब याद रूप बनाओ। पाण्डवों की यादगार से भी भक्त लोग सिद्धि माँगते हैं। अच्छा।

ऐसे अनेक आत्माओं को सिद्धि प्राप्त कराने वाले सर्व सिद्धि स्वरूप मास्टर विधाता और वरदाता, अपने हर संकल्प द्वारा अनेकों की अनेक कामनायें पूर्ण करने वाले सर्व प्राप्ति स्वरूप ऐसे सर्व-महान् आत्माओं को, विदेशी आत्माओं सहित सर्व को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।

इस मुरली के विशेष तथ्य

1. किसी भी सिद्धि के लिये एक तो एकान्त और दूसरे एकाग्रता दोनों की विधि द्वारा सिद्धि की प्राप्ति होती है। 2. दृढ़ निश्चय की कमी व हर सेकेण्ड अपनी सम्पूर्ण सर्वशक्ति सम्पन्न स्वरूप की स्मृति प्रत्यक्ष संकल्प रूप में नहीं रहती है, इसी कारण सिद्धि भी प्रत्यक्ष नहीं होती।

3. प्रत्यक्ष फल पाने के लिये संकल्प रूपी बीज को दृढ़ निश्चय रूपी जल से पॉवरफुल बनाओ तो प्रत्यक्ष सिद्धि स्वरूप हो ही जायेंगे।

पर्सनल मुलाकात

मायाजीत और प्रकृतिजीत शक्तियों की निशानी

बेहोश आत्माओं को सुरजीत बनाने वाले, माया और प्रकृति पर जीत प्राप्त कराने वाले, आसुरी वृत्तियों का संहार करने वाले शिव बाबा बोले

शक्तियाँ अपने शक्ति स्वरूप, सदा शस्त्रधारी, सदा निर्भय, सर्व आसुरी संस्कारों का संहार करने वाली तथा प्रकृति और मायाजीत बनने वाली - ऐसे अपने स्वभाव में सदा स्थित रहती हैं? शक्तियों के यादगार चित्र में मायाजीत की निशानी है - शस्त्र और लाइट का क्राउन और प्रकृति जीत की निशानी है-शेर की सवारी। यह पशु-पक्षी आदि प्रकृति की निशानी हैं। प्रकृति के तत्व भी शक्ति-स्वरूप को भयभीत नहीं कर सकते। प्रकृति पर भी सवारी अर्थात् अधिकार। प्रकृति भी उनकी दासी बन गई अर्थात् उनका सत्कार कर रही है। ऐसे सदा विजयी हो? सदा सुजाग की निशानी तिलक गाया हुआ है-जो सदा बाप के साथ हैं - वह सदा विजय का तिलक अपने माथे पर लगाता रहेगा। स्मृति में रहना अर्थात् तिलक लगाना। सदा यह स्मृति रहे कि मैं कल्प-कल्प की विजयी हूँ, अभी की नहीं। पहले बेहोश थे - बेहोश अर्थात् जिसको अपना होश नहीं। मैं हूँ कौन यह भी पता नहीं तो बेहोश हुआ ना? अब तो सुरजीत हो। सुरजीत कभी बाप को भूल नहीं सकते। यही सदा याद रखो कि मैं हूँ ही सदा विजयी। अच्छा।

कम्पलेन्ट समाप्त कर कम्पलीट बनने की प्रेरणा

अतीन्द्रिय सुख के झूले में झुलाने वाले, सर्व-सम्बन्धों का अलौकिक अनुभव देने वाले, सर्व आत्माओं के हितकारी शिव बाबा वत्सों के प्रति बोले - ‘‘बाप-समान निराकारी, देह की स्मृति से न्यारे, आत्मिक स्वरूप में स्थित होते हुए, साक्षी होकर अपना और सर्व आत्माओं का पार्ट देखने का अभ्यास मजबूत होता जाता है? सदा साक्षीपन की स्टेज स्मृति में रहती है? जब तक साक्षी स्वरूप की स्मृति सदा नहीं रहती तो बापदादा को अपना साथी भी नहीं बना सकते। साक्षी अवस्था का अनुभव, बाप के साथीपन का अनुभव कराता है। अपने को खुदा-दोस्त समझते हो ना? अर्थात् अपने मन का मित बापदादा को बनाया है? दिल का दिलवाला बाप को ही बनाया है? एक दिलवाला बाप के सिवाय और किसी से भी दिल की लेन-देन करने का संकल्प मात्र भी नहीं है, ऐसा अनुभव करते हो? अगर एक बाप के साथ सर्व-सम्बन्धों के सुख, सर्व-सम्बन्धों के प्रीति की प्राप्ति अनुभव करते हो तो और कहीं भी किसी सम्बन्ध में बुद्धि जा नहीं सकती। हर श्वास, हर संकल्प में सदा बाप के सर्व-सम्बन्धों में बुद्धि मग्न रहनी चाहिए। कई बच्चों की कम्पलेन्ट है कि व्यर्थ संकल्प बहुत आते हैं, बुद्धि बाप की तरफ लगती नहीं है। न चाहते हुए भी कहीं-न-कहीं बुद्धि का लगाव चला जाता है वा स्थूल प्रवृत्ति की जिम्मेवारी बुद्धियोग को एकाग्र बनने नहीं देती। पुरानी दुनिया का सम्पर्क व वातावरण वृत्ति को चंचल बना देता है। जितना तीव्र पुरूषार्थ करना चाहते हैं उतना कर नहीं पाते हैं, हाई-जम्प दे नहीं पाते। सारे दिन में इसी प्रकार की कम्पलेन्ट्स बापदादा के पास बहुत आती हैं।

मास्टर सर्वशक्तिवान् कहलाते हुए भी अपने ही स्वभाव-संस्कार से मजबूर हो जाते हैं, तो बापदादा को भी ऐसी बातें सुनते हुए मीठी हँसी भी आती है और रहम भी आता है। जब अपने स्वभाव संस्कार को मिटा नहीं सकते तो सारे विश्व से तमोप्रधान आसुरी संस्कार मिटाने वाले कैसे बनेंगे? जो अपने ही संस्कारों के वश हो जाय, वह सर्व वशीभूत हुई आत्माओं को मुक्त कैसे कर सकेंगे? अपने संस्कारों, जिससे स्वयं ही परेशान हैं वह औरों की परेशानी कैसे मिटायेंगे? ऐसे संस्कारों से मुक्ति पाने की सरल युक्ति कौन-सी है? कर्म में आने से पहले संस्कार संकल्प में आते हैं - ‘‘यह कर दूँगा, ऐसा होना चाहिए, यह क्या समझते हैं, मैं भी सब करना जानता हूँ।’’ इस रूप के संकल्पों में संस्कार उत्पन्न होते हैं। जब जानते हो कि इस समय संस्कार संकल्प-रूप में अपना रूप दिखा रहे हैं, तो सदैव यह आदत डालो व अभ्यास करो कि हर संकल्प को पहले चेक करना है कि क्या यह संकल्प बाप-समान है?

जैसे कई बड़े आदमी होते हैं, वे जो कुछ भी स्वीकार करते हैं तो पहले उस चीज की चैकिंग होती है। जैसे प्रेज़ीडेन्ट है या कोई भी विशेष व्यक्ति या बड़े-बड़े राजा होते हैं, तो उनका हर भोजन पहले चेक होता है, फिर वे स्वीकार करते हैं। उन्हें कोई भी वस्तु देंगे तो पहले उनकी चैकिंग होती है कि कहीं उसमें कुछ अशुद्धि या मिक्स तो नहीं है? वह बड़े आदमी आपके आगे क्या हैं? आपके राज्य में ये बड़े आदमी पाँव भी नहीं रख सकते। अब भी आपके पाँव पर पड़ने वाले हैं। जब राजाओं के भी राजा बनते हो और सृष्टि के बीच श्रेष्ठ आत्मा कहलाते हो, तो आप विशेष आत्माओं का यह संकल्प रूपी बुद्धि का जो भोजन है, उसके लिये भी चैकिंग होनी चाहिए। जब बिना चैकिंग के स्वीकार करते हो, इसलिए धोखा खाते हो। तो हर संकल्प को पहले चेक करो। जैसे सोने को यन्त्र द्वारा चेक करते हैं कि सच्चा है या मिक्स है, रीयल है अथवा रोल्ड गोल्ड है? ऐसे ही यह चेक करो कि संकल्प बापदादा समान है या नहीं है? इस आधार से चेक करो, फिर वाणी और कर्म में लाओ। आधार को भूल जाते हो, तब संस्कार शूद्र-पने के और विष के मिक्स हो जाते हैं। जैसे भोजन में विष मिक्स हो जाय तो वह मूर्छित कर देता है, ऐसे ही संकल्प रूपी आहार व भोजन में पुराने शुद्रपन का विष मिक्स हो जाता है, तो बाप की स्मृति और समर्थी स्वरूप से मूर्छित हो जाते हो। तो अपने को विशेष आत्मायें समझते हुए अपने आप का स्वयं ही चेकर बनो। समझा? विशेष आत्मा की अपनी शान में रहो तो परेशान नहीं होंगे। अच्छा यह हुई संस्कारों को मिटाने की युक्ति। अगर इस कार्य में सदा बिज़ी रहेगे व सदा होली-हंस स्वरूप में स्थित होंगे तो शुद्ध व अशुद्ध, शूद्रपन और ब्राह्मणपन को सहज ही चेक कर सकेंगे और बुद्धि इसी कार्य में बिजी होने के कारण व्यर्थ संकल्पों की कम्पलेन्ट से फ्री  हो जायेगी।

दूसरी बात सारा दिन, बाप के सर्व-सम्बन्धों का हर समय प्रमाण सुख नहीं ले पाते हो जो गोपियों और पाण्डवों के चरित्र गाये हुए हैं। बाप से सर्व-सम्बन्धों का सुख लेना और मग्न रहना अथवा सर्व-सम्बन्धों के लव में लवलीन रहना, वह अनुभव अभी किया नहीं है। बाप और शिक्षक इन विशेष सम्बनधों का सुख अनुभव करते हो लेकिन सर्व- सम्बन्धों के सुखों की प्राप्ति का अनुभव कम करते हो। इसलिए जिन सम्बन्धों के सुखों का अनुभव नहीं किया है, उन सम्बन्धों में बुद्धि का लगाव जाता है और वह आत्मा का लगाव व बुद्धि की लगन विघ्न-रूप में बन जाती है। तो सारे दिन में भिन्न-भिन्न सम्बन्धों का अनुभव करो। अगर इस समय बाप से सर्व-सम्बन्धों का सुख नहीं लिया है, तो सर्व- सुखों की प्राप्ति में सर्व-सम्बन्धों की रसना लेने में कमी रह जायेगी। अभी अगर यह सुख नहीं लिया तो कब लेंगे? आत्माओं से सर्व-सम्बन्ध तो सारा कल्प अनुभव करेंगे लेकिन बाप से सर्व-सम्बन्धों का अनुभव अभी नहीं किया तो कभी भी नहीं करेंगे। तो इन सर्व-सम्बन्धों के सुखों में सारा दिन-रात अपने को बिजी रखो। इन सुखों में निरन्तर रहने से और सर्व-सम्बन्ध असार और नीरस अनुभव होंगे। इसलिए बुद्धि एक ठिकाने पर स्थित हो भटकना बन्द हो जायेगा। और आप इन सुखों के झूले में सदा झूलते रहेगे। ऐसी स्थिति बनाने से तीव्र पुरुषार्थी स्वत: और सहज बन जायेंगे, सर्व कम्पलेन्ट समाप्त हो कम्पलीट बन जायेंगे। समझा? अपने कम्पलेन्ट्स का रिस्पॉन्स। अच्छा

ऐसे सदा अति-इन्द्रिय सुखों के झूले में झूलने वाले, सदा बाप के साथ सर्व-सम्बन्ध निभाने वाले, सदा स्वयं को साक्षी और बाप को साथी समझने वाले ऐसे खुदा-दोस्त, सदा खुदाई-खिदमत में रहने वाले, ऐसे बाप-समान बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।

सुनने में खुश होते हो लेकिन निभाने में कहीं मजबूर हो जाते हो। जब सुनने में इतनी खुशी होती है तो स्वरूप बनने में कितनी खुशी होगी? इस समय सभी हर्षित मुख हो - ऐसे ही सदा हर्षित मुख रहो तो स्वयं का भी समये बचायेंगे और निमित्त बनी हुई आत्माओं का भी समय बचा लेंगे। अभी तक गिरने और चढ़ने में, स्वयं को सम्भालने में व बुद्धि को ठिकाने लगाने में 25%  समय जो इसमें जाता है तो यह समय बच जायेगा और वह कमाई में जमा हो जायेगा। अब बचत करना सीखो। समझा? ओम् शान्ति।

इस मुरली का सार

1. अगर एक बाप के साथ सर्व-सम्बन्धों के सुख व प्रीति की प्राप्ति का अनुभव करते हो तो और कहीं भी किसी सम्बन्ध में बुद्धि नहीं जा सकती।

2. अपने को विशेष आत्मा समझते हुए अपने आप का ही स्वयं चेकर बनो। सदैव यह आदत डालो व अभ्यास करो कि हर संकल्प को पहले चेक करना है कि यह संकल्प बाप समान है, एक दिलवाला बाप के सिवाय और किसी से भी दिल की लेनदेन करने का संकल्प तो नहीं है?

3. साक्षी अवस्था का अनुभव बाप के साथीपन का अनुभव कराता है।

4. विशेष आत्मा की अपनी शान में रहो तो परेशान नहीं होंगे।

 

 

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QUIZ QUESTIONS

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 प्रश्न 1 :-अमृतवेले बापदादा वैरायटी बच्चों के विषय में क्या देख रहे थे?

 प्रश्न 2 :-अज्ञानी और भक्त आत्माओं के विषय में बाबा ने क्या बताया?

 प्रश्न 3 :-समय प्रमाण सम्पूर्ण स्टेज की प्रत्यक्षता कम क्यों है?सिद्धि स्वरूप की मुख्य बात कौन-सी अपनानी पड़े?

 प्रश्न 4 :- शक्तियों के यादगार क्या क्या हैं?

 प्रश्न 5 :- बापदादा को सदा अपना साथी कैसे बना सकते हैं?

 

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

{ हर्षित, देवियों, बापदादा, कल्प, शिक्षक, निमित्त, स्वयं, विशेष, बाप, सुख, समय, संकल्प, प्राप्ति, अनुभव, संबंध }

 1   ऐसे ही सदा ______ मुख रहो तो स्वयं का भी समये बचायेंगे और ______ बनी हुई आत्माओं का भी _____ बचा लेंगे।

 2  भक्त जिन ______ द्वारा सिद्धि प्राप्त कर रहे हैं, वही देवियाँ कब ______ भी सिद्धि प्राप्त करने का ______रख रही हैं।

 3  आज ______ कोई-कोई _____ आत्माओं को किसी कार्य-अर्थ इस _______ से चुन रहा है।

 4  आत्माओं से सर्व-सम्बन्ध तो सारा ______ अनुभव करेंगे लेकिन _____ से सर्व-सम्बन्धों का ______ अभी नहीं किया तो कभी भी नहीं करेंगे।

 5  बाप और _______ इन विशेष संबंधों का ____ अनुभव करते हो लेकिन सर्व- सम्बन्धों के सुखों की _____ का अनुभव कम करते हो।

 

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-

 1  :- पाण्डवों की यादगार से भी भक्त लोग सिद्धि माँगते हैं।

 2  :- आधार को भूल जाते हो, तब संस्कार शूद्र-पने के और विष के मिक्स हो जाते हैं।

 3  :- एकाग्रता कम होने के कारण ही दृढ़ निश्चय की कमी होती है।

 4  :- पुरानी दुनिया का सम्पर्क व वातावरण वृत्ति को चंचल बना देता है।

 5   :- सुरजीत कभी बाप को भूल नहीं सकते।

 

 

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QUIZ ANSWERS

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 प्रश्न 1 :- अमृतवेले बापदादा वैरायटी बच्चों के विषय में क्या देख रहे थे?

 उत्तर 1 :-  बापदादा देख रहे थे कि-

          नए-नए बच्चों की फास्ट लगन की उमंग की, मिलने अर्थ तड़पने की, पतंगे समान बाप पर हाई-जम्प लगाने की सूरत और सीरत देखी। 

          गुलदस्ता अच्छा था - वैरायटी फूलों की शोभा सुन्दर लग रही थी।  

          कलियाँ और पत्ते वैरायटी देखे कई आत्मायें मीठे उलहाने वाली भी देखी।

          कई आत्मायें मिलन की खुशी में अंसुवन मोती की मालायें बापदादा के प्रति पहनाते हुए भी देखी।

 

 प्रश्न 2 :- अज्ञानी और भक्त आत्माओं के विषय में बाबा ने क्या बताया?

 उत्तर 2 :-  बाबा ने बताया कि-

          एक तरफ अनेक आत्माएँ अपने शरीर निर्वाह-अर्थ जीवन के साधनों अर्थ किसी-न-किसी यन्त्रों द्वारा स्वयं में व्यस्त थी। साथ-साथ कुछ आत्मायें विनाश-अर्थ यन्त्र रिफाइन करने में व्यस्त थी।

         दूसरी तरफ कई गृहस्थी और भक्त आत्मायें अपने जन्त्र-मन्त्र से अपनी भावना का फल पाने के लिए व अल्पकाल की प्रत्यक्ष प्राप्ति करने के लिए अपने-अपने कार्य में व्यस्त थी।

        इन सबमें विशेष भारत और कुछ विदेश में भी सिद्धि प्राप्त करने की कामना से देवियों का विशेष आह्वान कर रही थी।

        मैजॉरिटी  सिद्धि के पीछे ज्यादा व्यस्त थी। सिद्धि प्राप्त करने के लिए स्वयं को समर्पण करने को भी तैयार हो जाते हैं

 

 प्रश्न 3 :- समय प्रमाण सम्पूर्ण स्टेज की प्रत्यक्षता कम क्यों है? सिद्धि स्वरूप की मुख्य बात कौन-सी अपनानी पड़े?

 उत्तर 3 :-  बाबा कहते हैं कि :-

          प्रत्यक्ष-फल की प्राप्ति के लिए हर सेकेण्ड अपनी सम्पूर्ण सर्व शक्ति सम्पन्न स्वरूप की स्मृति प्रत्यक्ष संकल्प रूप में नहीं रहती।

         मैं पुरुषार्थी हूँ, सम्पन्न हो ही जाऊंगा, होना तो ज़रूर है-नम्बरवार होना ही है। हमारा काम है मेहनत करना, वह तो यथाशक्ति कर ही रहे हैं - यह हर सेकेण्ड का संकल्प रूपी बीज सर्व शक्ति सम्पन्न नहीं होता है। उस समय के संकल्प में हो ही जायेगा अर्थात् भविष्य का संकल्प भरा हुआ होता है।

        दृढ़ निश्चय व प्रत्यक्ष फल के रस का बल भरा हुआ न होने के कारण सिद्धि भी प्रत्यक्ष नहीं। आपके संकल्प रूपी बीज के कारण ही प्रत्यक्ष सिद्धि नहीं होती।

        अनेक प्रकार के साधारण संकल्प होते हैं। जैसे कि समय प्रमाण होना ही है, अभी सारे तैयार कहाँ हुये है? अभी तो आगे के नम्बर ही तैयार नहीं हुए हैं। फाइनल तो आठ ही होने हैं। ऐसे-ऐसे भविष्य नॉलेज के साधारण संकल्प आपके बीज को कमज़ोर कर देते हैं।

       सिद्धि की विधि में मुख्य दो बातें करते हैं। कोई भी सिद्धि के लिए एक तो एकान्त दूसरी एकाग्रता, दोनों की विधि द्वारा सिद्धि को पाते हैं।

 

 प्रश्न 4 :- शक्तियों के यादगार क्या क्या हैं?

 उत्तर 4 :-  शक्तियों के यादगार में दिखाते हैं कि-

          शक्तियों के यादगार चित्र में मायाजीत की निशानी है - शस्त्र और लाइट का क्राउन और प्रकृति जीत की निशानी है-शेर की सवारी।

         यह पशु-पक्षी आदि प्रकृति की निशानी हैं।

         प्रकृति के तत्व भी शक्ति-स्वरूप को भयभीत नहीं कर सकते। प्रकृति पर भी सवारी अर्थात् अधिकार। प्रकृति भी उनकी दासी बन गई अर्थात् उनका सत्कार कर रही है।

         सदा सुजाग की निशानी तिलक गाया हुआ है-जो सदा बाप के साथ हैं - वह सदा विजय का तिलक अपने माथे पर लगाता रहेगा। स्मृति में रहना अर्थात् तिलक लगाना।

 

 प्रश्न 5 :- बापदादा को सदा अपना साथी कैसे बना सकते हैं?

 उत्तर 5 :-  बापदादा को अपना साथी बनाने की विधि है-

         जब तक साक्षी स्वरूप की स्मृति सदा नहीं रहती तो बापदादा को अपना साथी भी नहीं बना सकते। साक्षी अवस्था का अनुभव, बाप के साथीपन का अनुभव कराता है।

         अपने को खुदा-एक दिलवाला बाप के सिवाय और किसी से भी दिल की लेन-देन करने का संकल्प मात्र भी नहीं है,अगर एक बाप के साथ सर्व-सम्बन्धों के सुख, सर्व-सम्बन्धों के प्रीति की प्राप्ति अनुभव करते हो तो और कहीं भी किसी सम्बन्ध में बुद्धि जा नहीं सकती।

          हर श्वास, हर संकल्प में सदा बाप के सर्व-सम्बन्धों में बुद्धि मग्न रहनी चाहिए।

 

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

{ हर्षित, देवियों, बापदादा, कल्प, शिक्षक, निमित्त, स्वयं, विशेष, बाप, सुख, समय, संकल्प, प्राप्ति, अनुभव, संबंध }

 1   ऐसे ही सदा ______ मुख रहो तो स्वयं का भी समये बचायेंगे और ______ बनी हुई आत्माओं का भी _____ बचा लेंगे।

    हर्षित / निमित्त / समय

 

 2   भक्त जिन ______ द्वारा सिद्धि प्राप्त कर रहे हैं, वही देवियाँ कब ______ भी सिद्धि प्राप्त करने का ______रख रही हैं।

    देवियों / स्वयं / संकल्प

 

 3  आज ______ कोई-कोई _____ आत्माओं को किसी कार्य-अर्थ इस _______ से चुन रहा है।

    बापदादा / विशेष / संगठन

 

 4  आत्माओं से सर्व-सम्बन्ध तो सारा ______ अनुभव करेंगे लेकिन _____ से सर्व-सम्बन्धों का ______ अभी नहीं किया तो कभी भी नहीं करेंगे।

    कल्प / बाप / अनुभव

 

 5  बाप और _______ इन विशेष सम्बनधों का ____ अनुभव करते हो लेकिन सर्व- सम्बन्धों के सुखों की _____ का अनुभव कम करते हो।

    शिक्षक / सुख / प्राप्ति

 

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-

 

 1  :- पाण्डवों की यादगार से भी भक्त लोग सिद्धि माँगते हैं।

  देवताओं की यादगार से भी भक्त लोग सिद्धि माँगते हैं।

 

 2  :- आधार को भूल जाते हो, तब संस्कार शूद्र-पने के और विष के मिक्स हो जाते हैं।

 

 3  :-एकाग्रता कम होने के कारण ही दृढ़ निश्चय की कमी होती है।

 

 4  :- पुरानी दुनिया का सम्पर्क व वातावरण वृत्ति को चंचल बना देता है।

 

 5   :- सुरजीत कभी बाप को भूल नहीं सकते।

  मायाजीत कभी बाप को भूल नहीं सकते।