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AVYAKT MURLI

27 / 01 / 76

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27-01-76   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

तीन श्रेष्ठ ईश्वरीय वरदान

 

एवर हेल्दी-वेल्दी-हैप्पी बनने का वरदान देने वाले वरदाता, रूहानी नज़र से निहाल करने वाले रूहानी पिता, रंक से राजा बनाने वाले परम शिक्षक और सूली को कांटा करने वाले सद्गुरू शिव बाबा बोले:

आज अति पुराने सो नये बच्चे अपने निजी स्थान व अपने साकार स्वीट होम, मधुबन स्वर्गाश्रम में मिलन का जन्म-सिद्ध अधिकार प्राप्त कर हर्षित हो रहे हैं। ऐसी हर्षित आत्माओं को देख बाप-दादा भी हर आत्मा की प्राप्ति वा तकदीर को देख हर्षित हो रहे हैं। जैसे बच्चों को बाप द्वारा वर्सा प्राप्त होते हर्ष होता है अर्थात् खुशी होती है, वैसे ही बाप-दादा को भी लास्ट सो फास्ट पुरूषार्थियों को तीव्र पुरूषार्थ की लगन में मग्न देख हर्ष होता है। फास्ट पुरूषार्थ करने वालों की सूरत और सीरत बाप-समान सदा रूहानी नज़र आती है। सिवाय रूहानियत के अन्य कोई भी संकल्प व स्मृति नहीं रहती, अर्थात् बाप द्वारा प्राप्त हुई सर्व शक्तियाँ स्वरूप में दिखाई देती हैं। उनकी हर नज़र में हर आत्मा को नज़र से निहाल करने की रूहानियत दिखाई देगी।

ऐसी श्रेष्ठ स्टेज प्राप्त करने के लिए सदैव दो बातें याद रखो। एक - स्वयं को अकालमूर्त्त समझो, दूसरे - स्वयं को सदा त्रिकालदर्शी-मूर्त्त समझो। निराकारी स्टेज में - अकालतख्त-नशीन, अकालमूर्त्त हैं; साकार कर्मयोगी की स्टेज में - त्रिकालदर्शी मूर्त्त त्रिमूर्ति बाप के तख्त-नशीन। हर संकल्प को स्वरूप में लाने से पहले यह दोनों बातें चेक करो। निराकारी और साकारी दोनों स्वरूप में हैं? इस स्मृति से स्वत: ही समर्थी-स्वरूप बन जायेंगे अर्थात् हेल्थ, वेल्थ और हैप्पीनेस का अनुभव हर समय होगा। चाहे शरीर का कर्मभोग सूली से कितना भी बड़े रूप में हो लेकिन सदा अपने को साक्षी समझने से कर्मभोग के वश नहीं होंगे। हर कर्मभोग सूली से कांटे-समान अनुभव होगा। भविष्य जन्म-जन्मान्तर कर्मभोग से मुक्त होने की खुशी इस कर्मभोग को चुक्ता करने के लिये औषधि का रूप बन जाती है। खुशी दवाई की खुराक बन जाती है।

अब अपने को चेक करो कि मैं सदैव हैल्दी रहता हूँ? मैंने एवर हेल्दी का वरदान प्राप्त किया है? वरदाता बाप द्वारा तीनों वरदान - एवर हेल्दी, वेल्दी और हैप्पीनेस को प्राप्त किया है? सदाकाल का वर्सा प्राप्त किया है या अल्पकाल का? किसी भी मायावी बीमारी के वश हो अपना सदाकाल का एवर हेल्दी का वर्सा गँवा तो नहीं देते हो? बाप द्वारा एवर वेल्दी अर्थात् सर्व शक्तियों के खजानों से सम्पन्न वरदान को प्राप्त किया है? सर्व खजानों के मालिक अनुभव करते हो? अर्थात् अप्राप्त कोई भी वस्तु नहीं देवताओं के खजाने में - यह गायन तो है; लेकिन देवताओं से भी श्रेष्ठ ब्राह्मणों का गायन है - अप्राप्त कोई शक्ति नहीं ब्राह्मणों के खजाने में। ऐसे एवर वेल्दी अनुभव करते हो?

एवर वेल्दी के साथ-साथ अपने को एवर हैप्पी अर्थात् सदा हर्षित भी अनुभव करते हो? अगर कोई भी प्रकृति व माया के आकर्षण नहीं हैं, तो सदा हर्षित होंगे। ऐसे सदा हर्षित का सदैव एक ही संकल्प स्मृति में रहता है कि पाना था सो पा लिया, पाने के लिये अब कुछ नहीं रहा। ऐसे संकल्प में स्थित रहने वाले की अर्थात् एवर हैप्पी रहने वाले की निशानी क्या होगी? सदा हर्षित रहने वाला मन, वाणी और कर्म से सर्व आत्माओं को सदा खुशी का दान देता रहेगा। किसी भी आत्मा के प्रति बाप-समान दु:ख-हर्ता, सुख-कर्ता, सदा बेगमपुर का बादशाह अनुभव करेगा। बादशाह अर्थात् दाता। ऐसे हर्षितमुख रहने वाली आत्मा के हर संकल्प के वायब्रेशन्स् द्वारा, एक सेकेण्ड की रूहानी नज़र द्वारा, एक सेकेण्ड के सम्पर्क द्वारा, मुख के एक बोल द्वारा दु:खी व गम में रहने वाली आत्मा अपने को सुखी व खुशी का अनुभव करेगी। उसका कर्त्तव्य होगा - सुख देना और सुख लेना। जैसे प्रजा अपने योग्य राजा को देख खुश हो जाती है, ऐसे एवर हेल्दी, वेल्दी और हैप्पी आत्मा को देख कैसी भी दु:खी आत्मा सुख का अनुभव करेगी। अप्राप्त आत्मा दाता को देख प्राप्ति की खुशी में झूमने लगेगी। ऐसे अपने को अनुभव करते हो? देने वाले दाता के बच्चे, बाप-समान दाता हो या भक्त के समान लेने वाले हो या लेना और देना साथ-साथ चलता है? लेना है ही देने के लिये, खज़ाना है बाँटने के लिये और विश्व-कल्याण के लिये। हर सेकेण्ड लेने के साथ-साथ देने वाले दाता भी बनो, तब ही विश्व-कल्याणकारी कहला सकेंगे। अपना लेने और देने का पोतामेल चेक करो - जितना लेना है, उतना लेते हैं और लेने के साथ-साथ जितना देना है उतना ही देते हैं? लेना और देना साथसाथ और समान है? ऐसे विश्व-कल्याणी ही विश्व-महाराजन् बन सकते हैं। समझा?

ऐसे महादानी, सर्व प्राप्तियों द्वारा सर्व आत्माओं को सम्पन्न बनाने वाले, भिखारी को अधिकारी बनाने वाले, निर्बल आत्माओं को शक्तिशाली बनाने वाले, एवर हेल्दी, वेल्दी और हैप्पी आत्माओं को व सर्वश्रेष्ठ आत्माओं को बाप-दादा का याद-प्यार और नमस्ते!

 

 

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QUIZ QUESTIONS

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 प्रश्न 1 :-  फास्ट पुरुषार्थी आत्माओं का स्वरूप कैसा दिखाई देता है?

 प्रश्न 2 :-   ‘नज़र से निहाल करना' ऐसी श्रेष्ठ स्टेज प्राप्त करने के लिए क्या बात याद रखनी है?

 प्रश्न 3 :- कर्म भोग सूली से कांटे समान हल्के किस खुराक से अनुभव होंगे?

 प्रश्न 4 :-  एवर हेल्दी, वेल्दी और हैप्पी आत्माओं के द्वारा, दु:खी आत्माओं को क्या अनुभव होंगे?

 प्रश्न 5 :-  बाबा ने भक्त बन लेने और दाता बन देने के विषय में क्या कहा है?

 

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

{पुरूषार्थ, वरदान, हेल्दी, वस्तु, दु:ख-हर्ता, शक्ति, ब्राह्मणों, हैप्पीनेस, वर्सा, हर्षित, बादशाह, संकल्प, पाना, तीव्र, सुख-कर्ता }

 1    जैसे बच्चों को बाप द्वारा  _____  प्राप्त होते हर्ष होता है अर्थात् खुशी होती है, वैसे ही बाप-दादा को भी लास्ट सो फास्ट पुरूषार्थियों को  _____   _____  की लगन में मग्न देख हर्ष होता है।

 2   वरदाता बाप द्वारा तीनों  _____  - एवर  _____, वेल्दी और  _____  को प्राप्त किया है? सदाकाल का वर्सा प्राप्त किया है या अल्पकाल का?

 3   अर्थात् अप्राप्त कोई भी  _____  नहीं देवताओं के खजाने में - यह गायन तो है; लेकिन देवताओं से भी श्रेष्ठ ब्राह्मणों का गायन है - अप्राप्त कोई _____  नहीं  _____ के खजाने में।

 4   ऐसे सदा _____ का सदैव एक ही _____  स्मृति में रहता है कि _____ था सो पा लिया, पाने के लिये अब कुछ नहीं रहा।

 5   किसी भी आत्मा के प्रति बाप-समान  _____ ,  _____ , सदा बेगमपुर का  _____  अनुभव करेगा।

 

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-

 1  :-   ऐसी हर्षित आत्माओं को देख बाप-दादा भी हर आत्मा की प्राप्ति वा तकदीर को देख हर्षित हो रहे हैं।

 2  :-  निराकारी और साकारी दोनों स्वरूप में हैं? इस स्मृति से स्वत: ही समर्थी-स्वरूप बन जायेंगे अर्थात् हेल्थ, वेल्थ और हैप्पीनेस का अनुभव हर समय होगा।

 3  :-  अगर कोई भी प्रकृति व माया के आकर्षण में नहीं हैं, तो सदा साधारण होंगे।

 4  :-  सदा बिजी रहने वाला मन, वाणी और कर्म से सर्व आत्माओं को सदा सुख का दान देता रहेगा।

 5  :-  ऐसे स्व-कल्याणी ही विश्व-महाराजन् बन सकते हैं।

 

 

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QUIZ ANSWERS

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 प्रश्न 1 :- फास्ट पुरुषार्थी आत्माओं का स्वरूप कैसा दिखाई देता है?

 उत्तर 1 :-फास्ट पुरुषार्थी आत्माओं के स्वरूप प्रति बापदादा कहते हैं कि :-

          फास्ट पुरूषार्थ करने वालों की सूरत और सीरत बाप-समान सदा रूहानी नज़र आती है।

          सिवाय रूहानियत के अन्य कोई भी संकल्प व स्मृति नहीं रहती, अर्थात् बाप द्वारा प्राप्त हुई सर्व शक्तियाँ स्वरूप में दिखाई देती हैं।

          उनकी हर नज़र में हर आत्मा को नज़र से निहाल करने की रूहानियत दिखाई देगी।

 

 प्रश्न 2 :- ‘नज़र से निहाल करना' ऐसी श्रेष्ठ स्टेज प्राप्त करने के लिए क्या बात याद रखनी है?

 उत्तर 2 :- ऐसी श्रेष्ठ स्टेज प्राप्त करने के लिए सदैव दो बातें याद रखो।

           एक - स्वयं को अकालमूर्त्त समझो, दूसरे - स्वयं को सदा त्रिकालदर्शी-मूर्त्त समझो। निराकारी स्टेज में - अकालतख्त-नशीन, अकालमूर्त्त हैं; साकार कर्मयोगी की स्टेज में - त्रिकालदर्शी मूर्त्त त्रिमूर्ति बाप के तख्त-नशीन। हर संकल्प को स्वरूप में लाने से पहले यह दोनों बातें चेक करो।

 

 प्रश्न 3 :- कर्म भोग सूली से कांटे समान हल्के किस खुराक से अनुभव होंगे?

 उत्तर 3 :- बापदादा कर्म भोग के हल्के होने के विषय में निम्नलिखित बातें कहते हैं:-

          चाहे शरीर का कर्मभोग सूली से कितना भी बड़े रूप में हो लेकिन सदा अपने को साक्षी समझने से कर्मभोग के वश नहीं होंगे।

          हर कर्मभोग सूली से कांटे-समान अनुभव होगा।

          भविष्य जन्म-जन्मान्तर कर्मभोग से मुक्त होने की खुशी इस कर्मभोग को चुक्ता करने के लिये औषधि का रूप बन जाती है।

          खुशी दवाई की खुराक बन जाती है।

 

 प्रश्न 4 :- एवर हेल्दी, वेल्दी और हैप्पी आत्माओं के द्वारा, दु:खी आत्माओं को क्या अनुभव होंगे?

 उत्तर 4 :-संपन्न आत्माएं दु:खी आत्माओं को निम्न अनुभव कराएंगी :-

          ऐसे हर्षितमुख रहने वाली आत्मा के हर संकल्प के वायब्रेशन्स् द्वारा, एक सेकेण्ड की रूहानी नज़र द्वारा, एक सेकेण्ड के सम्पर्क द्वारा, मुख के एक बोल द्वारा दु:खी व गम में रहने वाली आत्मा अपने को सुखी व खुशी का अनुभव करेगी।

          जैसे प्रजा अपने योग्य राजा को देख खुश हो जाती है, ऐसे एवर हेल्दी, वेल्दी और हैप्पी आत्मा को देख कैसी भी दु:खी आत्मा सुख का अनुभव करेगी।

          अप्राप्त आत्मा दाता को देख प्राप्ति की खुशी में झूमने लगेगी।

 

 प्रश्न 5 :- बाबा ने भक्त बन लेने और दाता बन देने के विषय में क्या कहा है?

 उत्तर 5 :- बाप दादा लेने और देने के विषय में निम्न बातें कहते हैं:-

          देने वाले दाता के बच्चे, बाप-समान दाता हो या भक्त के समान लेने वाले हो या लेना और देना साथ-साथ चलता है?

          लेना है ही देने के लिये, खज़ाना है बाँटने के लिये और विश्व-कल्याण के लिये।

          हर सेकेण्ड लेने के साथ-साथ देने वाले दाता भी बनो, तब ही विश्व-कल्याणकारी कहला सकेंगे।

          अपना लेने और देने का पोतामेल चेक करो - जितना लेना है, उतना लेते हैं और लेने के साथ-साथ जितना देना है उतना ही देते हैं?

 

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

{ पुरूषार्थ, वरदान, हेल्दी, वस्तु, दु:ख-हर्ता, शक्ति, ब्राह्मणों, हैप्पीनेस, वर्सा, हर्षित, बादशाह, संकल्प, पाना, तीव्र, सुख-कर्ता }

 1   जैसे बच्चों को बाप द्वारा  _____  प्राप्त होते हर्ष होता है अर्थात् खुशी होती है, वैसे ही बाप-दादा को भी लास्ट सो फास्ट पुरूषार्थियों को  _____   _____  की लगन में मग्न देख हर्ष होता है।

    वर्सा / तीव्र / पुरूषार्थ

 

 2  वरदाता बाप द्वारा तीनों  _____  - एवर  _____, वेल्दी और  _____  को प्राप्त किया है? सदाकाल का वर्सा प्राप्त किया है या अल्पकाल का?

    वरदान / हेल्दी / हैप्पीनेस

 

 3   अर्थात् अप्राप्त कोई भी  _____  नहीं देवताओं के खजाने में - यह गायन तो है; लेकिन देवताओं से भी श्रेष्ठ ब्राह्मणों का गायन है - अप्राप्त कोई _____  नहीं  _____ के खजाने में।

    वस्तु / शक्ति / ब्राह्मणों

 

 4  ऐसे सदा _____ का सदैव एक ही _____  स्मृति में रहता है कि _____ था सो पा लिया, पाने के लिये अब कुछ नहीं रहा।

    हर्षित / संकल्प / पाना

 

 5  किसी भी आत्मा के प्रति बाप-समान  _____ ,  _____ , सदा बेगमपुर का  _____  अनुभव करेगा।

    दु:ख-हर्ता / सुख-कर्ता / बादशाह

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-  

 1  :-  ऐसी हर्षित आत्माओं को देख बाप-दादा भी हर आत्मा की प्राप्ति वा तकदीर को देख हर्षित हो रहे हैं।

 

 2  :-  निराकारी और साकारी दोनों स्वरूप में हैं? इस स्मृति से स्वत: ही समर्थी-स्वरूप बन जायेंगे अर्थात् हेल्थ, वेल्थ और हैप्पीनेस का अनुभव हर समय होगा।

  

 3  :- अगर कोई भी प्रकृति व माया के आकर्षण में नहीं हैं, तो सदा साधारण होंगे।

  अगर कोई भी प्रकृति व माया के आकर्षण में नहीं हैं, तो सदा हर्षित होंगे।

 

 4  :-  सदा बिजी रहने वाला मन, वाणी और कर्म से सर्व आत्माओं को सदा सुख का दान देता रहेगा।

  सदा हर्षित रहने वाला मन, वाणी और कर्म से सर्व आत्माओं को सदा खुशी का दान देता रहेगा।

 

 5  :-  ऐसे स्व-कल्याणी ही विश्व-महाराजन् बन सकते हैं।

  ऐसे विश्व-कल्याणी ही विश्व-महाराजन् बन सकते हैं।