==============================================================================

AVYAKT MURLI

03 / 02 / 76

=============================================================================

   03-02-76   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

धर्म और कर्म का कम्बाइन्ड रूप

गुण-मूर्त्त और त्याग-मूर्त्त दीदी जी तथा वत्सों से मधुर मुलाकात करते हुए अव्यक्त बाप-दादा ने विशेष युग संगमयुग की विशेषता बतलाते हुए ये मधुर महावाक्य उच्चारेः-

आज-कल की दुनिया में धर्म और कर्म - दोनों ही विशेष गाये जाते हैं। धर्म और कर्म - ये दोनों ही आवश्यक हैं। लेकिन आजकल धर्म वाले अलग, कर्म वाले अलग हो गये हैं। कर्म वाले कहते हैं कि धर्म की बातें नहीं करो, कर्म करो और धर्म वाले कहते हैं कि हम तो हैं ही कर्म-सन्यासी। लेकिन संगम पर ब्राह्मण धर्म और कर्म को कम्बाइन (Combined) करते हैं। तो सारे दिन में धर्म और कर्म कम्बाइन्ड (Combined) रूप में रहते हैं? धर्म का अर्थ है - दिव्य गुण धारण करना। सब प्रकार की धारणायें ज्ञान-स्वरूप की, दिव्य गुणों की व याद-स्वरूप की धारणा। कोई भी धारणा, उसको धर्म कहते हैं। तो सारे दिन में चाहे वैसी भी जिम्मेवारी का कर्म हो, स्थूल कर्म हो, साधारण कर्म हो या बुद्धि लगाने का कर्म हो - लेकिन हर कर्म में धारणा अर्थात् कर्म और धर्म कम्बाइन्ड रहता है? मैजॉरिटी (Majority) की रिजल्ट (RESULT) क्या है? वैसे कहावत है कि एक म्यान में दो तलवारें नहीं रह सकती अथवा एक हाथ मे दो लड्डू नहीं आते। लेकिन संगम पर असम्भव बात ही सम्भव हो जाती है। यहाँ एक ही समय में दोनों बातें साथ-साथ हैं। धर्म भी हो और कर्म भी हो’ - इसका ही अभ्यास सिखलाते हैं। तो संगमयुग विशेष युग है। इसलिए विशेष है, क्योंकि जो-जो विशेषताएं और युगों में नहीं हो सकतीं, वह सब विशेषताएं संगम पर होती हैं। इसलिए इसको विशेष-युग कहते हैं। तो जो इस बात के कम्बाइन्ड रूप में अभ्यासी हैं, वही कम्बाइन्ड रूप संगम का - बाप और बच्चा और प्रारब्ध का - श्री लक्ष्मी और श्री नारायण - इन दोनों के कम्बाइन्ड रूप के अनुभवी बन सकते हैं व अधिकारी बन सकते हैं। तो दोनों ही साथ-साथ रहते हैं? मैजॉरिटी का रहता है अथवा नहीं? क्या रिजल्ट समझते हो? सब अभ्यास में लगे हुए हैं? जब यह निरन्तर कम्बाइन्ड रूप हो जाय तब ही प्रारब्ध का कम्बाइन्ड रूप - श्री लक्ष्मी श्री नारायण का धारण कर सकेंगे। कर्म में यदि धर्म कम्बाइन्ड नहीं तो साधारण कर्म रह गया ना। इसलिये हर कर्म में धर्म का रस भरना चाहिये।

यह चेक करना पड़े कि धर्म और कर्म दोनों साथ हैं अथवा धर्म को किनारे कर कर्म कर रहे हैं या धर्म के समय कर्म को किनारे तो नहीं कर देते हैं? यह भी निवृत्ति हो गई, जैसे निवृत्ति मार्ग में अकेले हैं। प्रवृत्ति अर्थात् कम्बाइन्ड, तो जबकि आदि पार्ट से कम्बाइन्ड हैं, प्रवृत्ति मार्ग वाले हैं तो पुरूषार्थ में भी प्रवृत्ति का पुरूषार्थ हो। निवृत्ति मार्ग का न हो अर्थात् अकेला न हो। जैसे वह छोड़कर किनारा कर चले जाते हैं, इसी रीति धर्म को छोड़ कर्म में लग गये, यह भी निवृत्ति मार्ग हो गया। तो सदा प्रवृत्ति मार्ग रहे। ऐसा अभ्यास जब सबका सम्पन्न हो जाए तब समय भी सम्पन्न हो। क्योंकि प्रवृत्ति मार्ग के संस्कार पुरुषार्थी जीवन में भरने हैं। तो अभी से यह कम्बाइन्ड (Combined) रूप के संस्कार नहीं भरेंगे तो वहाँ कैसे होंगे? वन्डरफुल प्रवृत्ति मार्ग है ना। धर्म और कर्म का प्रवृत्ति मार्ग कहो या कर्म और योग का प्रवृत्ति मार्ग कहो, बात एक ही हो जाती है। अच्छा!

07-02-76   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

महारथी की नथिंग-न्यू की स्थिति और व्यर्थ के खाते की समाप्ति

बाप-दादा की सहयोगिनी, अथक सेवाधारी, विश्व-कल्याणी दीदी जी से मुलाकात करते हुए शिव बाबा बोले:

महारथियों के महान् स्थिति की विशेष निशानी, जिससे स्पष्ट हो जाये कि यह महारथी-पन का पुरूषार्थ है, वह क्या होगी? एक तो महान् पुरुषार्थी अर्थात् महारथी जो भी दृश्य देखेंगे, वह समझेंगे - ड्रामा प्लैन अनुसार अनेक बार का अब फिर से रिपीट हो रहा है, वह नथिंग-न्यू लगेगा। कोई नई बात अनुभव नहीं होगी जिसमें क्यों और क्या का क्वेश्चन उठे। और, दूसरा - ऐसे अनुभव होगा जैसे प्रैक्टिकल में, स्मृति-स्वरूप में अनेक बार देखी हुई सीन अब सिर्फ निमित्त मात्र रिपीट कर रहे हैं। कोई नई बात नहीं कर रहे हैं, लेकिन रिपीट कर रहे हैं। स्मृति लानी नहीं पड़ेगी। कल्प पहले जो हुआ था वही अब हो रहा है। लेकिन जैसे एक सेकेण्ड की बीती हुई बात बहुत स्पष्ट रूप से स्मृति में रहती है वैसे वह कल्प पहले की बीती हुई सीन ऐसे ही स्मृति में होगी जैसे कि एक सेकेण्ड पहले बीती हुई सीन स्मृति में रहती है। क्योंकि एक साक्षीपन, दूसरा त्रिकालदर्शी - यह दोनों स्टेज महारथियों की होने के कारण कल्प पहले की स्मृति बिल्कुल फ्रेश व ताज़ी रहेगी। इसलिये नथिंग-न्यू और दूसरा क्या होगा?

कोई भी कितनी भी विकराल रूप की परिस्थिति हो या बड़े रूप की समस्या हो लेकिन अपनी स्टेज ऊँची होने के कारण वह बिल्कुल छोटी लगेगी। बड़ी बात अनुभव नहीं होगी और न विकराल अनुभव होगी। जैसे ऊँची पहाड़ी पर खड़े होकर नीचे की कोई भी चीज को देखो तो बड़ी चीज़ भी छोटी नजर आती है ना। बड़े से बड़ा कारखाना भी एक मॉडल रूप-सा दिखाई पड़ता है। इसी रीति महारथी के महान् पुरूषार्थ के सामने उसे कोई भी बड़ी बात बड़ी अनुभव नहीं होगी। तो महावीर अर्थात् महारथी के महान् पुरूषार्थ की यह दो निशानियाँ हैं जिसको दूसरे शब्दों में कहा जाता - सूली काँटा अनुभव होगी। ऐसे महावीर के मुख से जो होने वाली रिजल्ट होगी अर्थात् जो होनी होगी, सदैव वही शब्द मुख से निकलेंगे जो भावी बनी हुई होगी। इसको ही सिद्धि-स्वरूप कहा जाता है। जो बोल निकलेगा, जो कर्म होगा वह सिद्ध होने वाले होंगे, व्यर्थ नहीं होंगे। महारथी की निशानी है - विकर्मों का खाता तो समाप्त होता ही है लेकिन व्यर्थ का खाता भी समाप्त। मास्टर सर्वशक्तिवान् है ना। तो मास्टर सर्वशक्तिवान् की स्टेज का प्रैक्टिकल स्वरूप विकर्मों के खाते के साथ-साथ व्यर्थ का खाता भी समाप्त होगा। यह है महारथियों के पुरूषार्थ की निशानी।

नज़र से निहाल करने की सर्विस शुरू की हैं? एक हैं महादानी, दूसरे हैं वरदानी और तीसरे हैं विश्व-कल्याणी। तो यह तीनों ही विशेषताएं एक ही में हैं या कोई विशेषता किसी में है और कोई किसी में? किसी का वरदानी रूप का पूजन है, किसी का विश्व-कल्याणी के रूप में पूजन है। पूजन में अथवा गायन में भी फर्क क्यों है? होंगे तीनों ही लेकिन परसेन्टेज में फर्क होगा। कोई में किसी बात की, अन्य कोई में किसी बात की परसेन्टेज कम अथवा ज्यादा होगी।

एक है कर्मों की गति, दूसरी है प्रालब्ध की गति और तीसरी फिर है गायन और पूजन की गति। जैसे कर्मों की गति गुह्य है वैसे इन दोनों की गति भी गुह्य है। प्रालब्ध का भी साक्षात्कार प्रैक्टिकल में अभी होना तो है ना। कौन क्या बनेगा और क्यों बनेगा, किस आधार से बनेगा - यह सब स्पष्ट होगा। न चाहते हुये भी, न सोचते हुए भी उनका कर्म, सेवा, चलन, स्थिति, सम्पर्क व सम्बन्ध ऑटोमेटिकली ऐसा ही होता रहेगा जिससे समझ सकेंगे कि कौन क्या बनने वाला है। चलन अर्थात् कर्म ही उनका दर्पण हो जावेगा। कर्म में और दर्पण में हर एक का स्पष्ट साक्षात्कार होता रहेगा। अच्छा!

इस वाणी का मूल तत्व

1. जैसे ऊँची पहाड़ी पर खड़े होकर नीचे की कोई भी चीज़ को देखो तो बड़ी चीज भी छोटी नजर आती है। इसी प्रकार महारथी के महान् पुरूषार्थ के सामने कोई भी बात बड़ी अनुभव नहीं होगी। अर्थात् सूली काँटा अनुभव होगी।

2. मास्टर सर्वशक्तिवान् की स्टेज का प्रैक्टिकल स्वरूप - विकर्मों के खाते के साथ-साथ व्यर्थ का खाता भी समाप्त होगा।  

3. महारथी की मुख्य निशानी - उसे कोई भी बात नई नहीं लगेगी। जैसे एक सेकेण्ड की बीती हुई बात बहुत स्पष्ट रूप से स्मृति में रहती है वैसे कल्प पहले की बीती हुई सीन भी स्मृति में होगी। क्योंकि महारथी एक तो साक्षी होगा दूसरा त्रिकालदर्शी होगा।

=============================================================================

QUIZ QUESTIONS

============================================================================

 प्रश्न 1 :- बाबा के अनुसार संगम पर ब्राह्मण किस को कम्बाइंड (Combined) करते  है?

  प्रश्न 2 :- बाबा के अनुसार संगमयुग विशेष युग क्यों है ?

 प्रश्न 3 :- बाबा के अनुसार समय भी सम्पन्न कब होगा?

 प्रश्न 4 :- महारथियों के महान् स्थिति की विशेष निशानी, जिससे स्पष्ट हो जाये कि यह महारथी-पन का पुरूषार्थ है, वह क्या होगी?

 प्रश्न 5 :- बाबा ने किसे सिद्धि-स्वरूप कहा है?

 

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

{ स्मृति, विकर्मों, सेकण्ड, व्यर्थ, सीन, हाथ, बुद्धि, किनारे, समय, जिम्मेवारी, म्यान, प्रैक्टिकल, धारणा, तलवारें, चेक }

 1  सारे दिन में चाहे कैसी भी ______का कर्म हो, स्थूल कर्म हो, साधारण कर्म हो या ______ लगाने का कर्म हो - लेकिन हर कर्म में ______

 2  कहावत है कि एक ______ में दो ______ नहीं रह सकती अथवा एक ______ मे दो लड्डू नहीं आते।

 3  यह ______ करना पड़े कि धर्म और कर्म दोनों साथ हैं अथवा धर्म को ______ कर कर्म कर रहे हैं या धर्म के ______ कर्म को किनारे तो नहीं कर देते

 4  जैसे एक सेकेण्ड की बीती हुई बात बहुत स्पष्ट रूप से ______ में रहती है वैसे वह कल्प पहले की बीती हुई ______ ऐसे ही स्मृति में होगी जैसे कि एक _______ पहले बीती हुई सीन स्मृति में रहती है।

 5  मास्टर सर्वशक्तिवान् की स्टेज का _______ स्वरूप _______ के खाते के साथ-साथ _______ का खाता भी समाप्त होगा।

 

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-

 1  :- कर्म का अर्थ है - दिव्य गुण धारण करना। सब प्रकार की धारणायें ज्ञान-स्वरूप की, दिव्य गुणों की व याद-स्वरूप की धारणा।

 2  :- जब यह निरन्तर कम्बाइन्ड रूप हो जाय तब ही प्रारब्ध का कम्बाइन्ड रूप - फरिश्ते का धारण कर सकेंगे।

 3  :- धर्म और कर्म का प्रवृत्ति मार्ग कहो या कर्म और योग का प्रवृत्ति मार्ग कहो, बात अलग ही हो जाती है।

 4  :-  एक हैं दानी, दूसरे हैं वरदानी और तीसरे हैं विश्व-कल्याणी।

 5   :- एक साक्षीपन, दूसरा त्रिकालदर्शी - यह दोनों स्टेज महारथियों की होने के कारण कल्प पहले की स्मृति बिल्कुल फ्रेश व ताज़ी रहेगी।

 

 

============================================================================

QUIZ ANSWERS

============================================================================

 प्रश्न 1 :- बाबा के अनुसार संगम पर ब्राह्मण किस को कम्बाइन्ड (Combined) करते है?

 उत्तर 1 :-  इस बारे में बाबा ने बताया है कि:-

          आज-कल की दुनिया में धर्म और कर्म - दोनों ही विशेष गाये जाते हैं। धर्म और कर्म - ये दोनों ही आवश्यक हैं। लेकिन आजकल धर्म वाले अलग, कर्म वाले अलग हो गये हैं।

          कर्म वाले कहते हैं कि धर्म की बातें नहीं करो, कर्म करो और धर्म वाले कहते हैं कि हम तो हैं ही कर्म-सन्यासी। लेकिन संगम पर ब्राह्मण धर्म और कर्म को कम्बाइन (Combined) करते हैं।

 

 प्रश्न 2 :- बाबा के अनुसार संगमयुग विशेष युग क्यों है ?

 उत्तर 2 :- बाबा ने इस बारे मे बताया है कि :-

           लेकिन संगम पर असम्भव बात ही सम्भव हो जाती है। यहाँ एक ही समय में दोनों बातें साथ-साथ हैं।

          तो संगमयुग विशेष युग है। इसलिए विशेष है, क्योंकि जो-जो विशेषताएं और युगों में नहीं हो सकतीं, वह सब विशेषताएं संगम पर होती हैं।

          इसलिए इसको विशेष-युग कहते हैं। तो जो इस बात के कम्बाइन्ड रूप में अभ्यासी हैं

         वही कम्बाइन्ड रूप संगम का - बाप और बच्चा और प्रारब्ध का - श्री लक्ष्मी और श्री नारायण - इन दोनों के कम्बाइन्ड रूप के अनुभवी बन सकते हैं व अधिकारी बन सकते हैं।

 

 प्रश्न 3 :- बाबा के अनुसार समय भी सम्पन्न कब होगा?

 उत्तर 3 :- इस बारे मे बाबा ने कहा है कि :-    

           प्रवृत्ति अर्थात् कम्बाइन्ड, तो जबकि आदि पार्ट से कम्बाइन्ड हैं, प्रवृत्ति मार्ग वाले हैं तो पुरूषार्थ में भी प्रवृत्ति का पुरूषार्थ हो।

          निवृत्ति मार्ग का न हो अर्थात् अकेला न हो। जैसे वह छोड़कर किनारा कर चले जाते हैं, इसी रीति धर्म को छोड़ कर्म में लग गये, यह भी निवृत्ति मार्ग हो गया।

          तो सदा प्रवृत्ति मार्ग रहे। ऐसा अभ्यास जब सबका सम्पन्न हो जाए तब समय भी सम्पन्न हो। क्योंकि प्रवृत्ति मार्ग के संस्कार पुरुषार्थी जीवन में भरने हैं।

          तो अभी से यह कम्बाइन्ड (Combined) रूप के संस्कार नहीं भरेंगे तो वहाँ कैसे होंगे? वन्डरफुल प्रवृत्ति मार्ग है ना।

 

 प्रश्न 4 :- महारथियों के महान् स्थिति की विशेष निशानी, जिससे स्पष्ट हो जाये कि यह महारथी-पन का पुरूषार्थ है, वह क्या होगी?

 उत्तर 4 :- इस बारे मे बाबा ने बताया है कि :-

           एक तो महान् पुरुषार्थी अर्थात् महारथी जो भी दृश्य देखेंगे, वह समझेंगे - ड्रामा प्लैन अनुसार अनेक बार का अब फिर से रिपीट हो रहा है, वह नथिंग-न्यू लगेगा।

          कोई नई बात अनुभव नहीं होगी जिसमें क्यों और क्या का क्वेश्चन उठे।

          और, दूसरा - ऐसे अनुभव होगा जैसे प्रैक्टिकल में, स्मृति-स्वरूप में अनेक बार देखी हुई सीन अब सिर्फ निमित्त मात्र रिपीट कर रहे हैं।

 

 प्रश्न 5 :- बाबा ने किसे सिद्धि-स्वरूप कहा है?

 उत्तर 5 :- बाबा ने कहा है कि :-

           जैसे ऊँची पहाड़ी पर खड़े होकर नीचे की कोई भी चीज को देखो तो बड़ी चीज़ भी छोटी नजर आती है ना। बड़े से बड़ा कारखाना भी एक मॉडल रूप-सा दिखाई पड़ता है।

           इसी रीति महारथी के महान् पुरूषार्थ के सामने उसे कोई भी बड़ी बात बड़ी अनुभव नहीं होगी। तो महावीर अर्थात् महारथी के महान् पुरूषार्थ की यह दो निशानियाँ हैं जिसको दूसरे शब्दों में कहा जाता - सूली काँटा अनुभव होगी।

           ऐसे महावीर के मुख से जो होने वाली रिजल्ट होगी अर्थात् जो होनी होगी, सदैव वही शब्द मुख से निकलेंगे जो भावी बनी हुई होगी। इसको ही सिद्धि-स्वरूप कहा जाता है।

           जो बोल निकलेगा, जो कर्म होगा वह सिद्ध होने वाले होंगे, व्यर्थ नहीं होंगे। महारथी की निशानी है - विकर्मों का खाता तो समाप्त होता ही है लेकिन व्यर्थ का खाता भी समाप्त।

 

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

{ स्मृति, विकर्मों, सेकण्ड, व्यर्थ, सीन, हाथ, बुद्धि, किनारे, समय, जिम्मेवारी, म्यान, प्रैक्टिकल, धारणा, तलवारें, चेक }

 1   सारे दिन में चाहे कैसी भी ______का कर्म हो, स्थूल कर्म हो, साधारण कर्म हो या ______ लगाने का कर्म हो - लेकिन हर कर्म में ______

    जिम्मेवारी / बुद्धि / धारणा

 

 2  कहावत है कि एक ______ में दो ______ नहीं रह सकती अथवा एक ______ मे दो लड्डू नहीं आते।

    म्यान / तलवारें / हाथ

 

 3  यह ______ करना पड़े कि धर्म और कर्म दोनों साथ हैं अथवा धर्म को ______ कर कर्म कर रहे हैं या धर्म के ______ कर्म को किनारे तो नहीं कर देते

    चेक / किनारे / समय

 

 4  जैसे एक सेकेण्ड की बीती हुई बात बहुत स्पष्ट रूप से ______ में रहती है वैसे वह कल्प पहले की बीती हुई ________ ऐसे ही स्मृति में होगी जैसे कि एक _______ पहले बीती हुई सीन स्मृति में रहती है।

    स्मृति / सीन / सेकण्ड

 

 5  मास्टर सर्वशक्तिवान् की स्टेज का _______ स्वरूप _______ के खाते के साथ-साथ _______ का खाता भी समाप्त होगा।

    प्रैक्टिकल / विकर्मों / व्यर्थ

 

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-

1      :-  कर्म का अर्थ है - दिव्य गुण धारण करना। सब प्रकार की धारणायें ज्ञान-स्वरूप की, दिव्य गुणों की व याद-स्वरूप की धारणा।

【✖】

  धर्म का अर्थ है - दिव्य गुण धारण करना। सब प्रकार की धारणायें ज्ञान-स्वरूप की, दिव्य गुणों की व याद-स्वरूप की धारणा।

 

 2  :- जब यह निरन्तर कम्बाइन्ड रूप हो जाय तब ही प्रारब्ध का कम्बाइन्ड रूप - फरिश्ते का धारण कर सकेंगे।

  जब यह निरन्तर कम्बाइन्ड रूप हो जाय तब ही प्रारब्ध का कम्बाइन्ड रूप - श्री लक्ष्मी श्री नारायण का धारण कर सकेंगे।

 

 3  :- धर्म और कर्म का प्रवृत्ति मार्ग कहो या कर्म और योग का प्रवृत्ति मार्ग कहो, बात अलग ही हो जाती है।

  धर्म और कर्म का प्रवृत्ति मार्ग कहो या कर्म और योग का प्रवृत्ति मार्ग कहो, बात एक ही हो जाती है।

 

 4  :- एक हैं दानी, दूसरे हैं वरदानी और तीसरे हैं विश्व-कल्याणी

  एक हैं महादानी, दूसरे हैं वरदानी और तीसरे हैं विश्व-कल्याणी।

 

 5   :- एक साक्षीपन, दूसरा त्रिकालदर्शी - यह दोनों स्टेज महारथियों की होने के कारण कल्प पहले की स्मृति बिल्कुल फ्रेश व ताज़ी रहेगी।