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AVYAKT MURLI

28 / 04 / 77

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28-04-77   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

 

सदा सुहागिन की निशानियाँ

 

सदा सुहाग के तिलकधारी, श्रेष्ठ भाग्यवान, सर्व प्राप्ति स्वरूप आत्माओं प्रति बाबा बोले:-

बापदादा बच्चों के सुहाग और भाग्य को देख रहे हैं। सुहाग का तिलक और भाग्य का लाईट का क्राउन (Crown Of Light;प्रकाश का ताज) ताज और तिलकधारी अर्थात् सुहाग और भाग्य वाले। सदा सुहाग की निशानी है अविनाशी स्मृति का तिलक। सदा भाग्य की निशानी है पवित्रता और बाप द्वारा सर्व प्राप्तियाँ अर्थात् लाईट का क्राउन। स्मृति कम, तो तिलक भी स्पष्ट चमकता हुआ नहीं दिखाई देगा। चमकता हुआ तिलक सदा बाप के साथ रहने के सुहाग की निशानी है। ऐसी सुहागिन तिलकधारी वा सदा सुहागिन होने के कारण सदा विश्व के आगे श्रेष्ठ अर्थात् ऊँच आत्मा दिखाई देती है। जैसे लौकिक रूप में भी सुहागिन को श्रेष्ठ नज़र से देखते हैं और हर श्रेष्ठ कार्य में सुहागिन को ही आगे रखते हैं। अगर सुहाग गया तो संसार गया’ - ऐसे लौकिक में भी माना जाता है। इसी प्रकार अलौकिक जीवन में भी हर आत्मा एक साजन की सजनी है, अर्थात् सुहागिन है। सदा अपने सुहाग के तिलक को देखते हो? सदा एक की ही लगन में मगन रहने की निशानी, स्मृति का तिलक अर्थात् सुहाग का तिलक है। अगर तिलक मिट जाता है तो गोया अपने सुहाग को मिटा देते हैं।

अपने आप से पूछो कि मैं सदा सुहागिन हूँ? सदा सुहागिन एक श्वास वा एक पल भी साथ नहीं छोड़ती है। सदा सुहागिन के मन के बोल हैं - साथ रहेंगे, साथ जीयेंगे, साथ मरेंगे। सदा सुहागिन के नयनों में, मुख में साजन की सूरत और सीरत समाई हुई होती, कानों में उनके बोल ही सदा सुनने में आते हैं। जैसे भक्ति में अनहद शब्द सुनने के अभ्यासी होते हैं। बहुत प्रयत्न के बाद एक बार भी अगर शब्द सुनाई देते तो अपनी भक्ति को सफल समझते हैं। यह सब भक्ति की रीति-रस्म इस समय के प्रैक्टिकल लाईफ (Practical Life;व्यवहारिक जीवन) से कापी की है। सदा सुहागिन अर्थात् जिनके कानों में अनादि महामन्त्र मन्मनाभव का स्वर गूंजता रहेगा। सदा यह अनुभव करेंगे कि बाप यह महामंत्र बार-बार सुनाते हुए स्मृति दिला रहे हैं। चलते-फिरते यही अनहद अर्थात् अविनाशी बोल बाप के सम्मुख सुनने का अनुभव करेंगे और कोई भी आत्माओं के बोल सुनते हुए भी नहीं सुनेंगे। बस तुम्हीं से बोलूं, तुम्हीं से सुनूं वा तुम्हारा सुनाया ही बोलूं’ - ऐसी स्टेज सदा सुहागिन की ही होती है। ऐसे सदा सुहागिन संकल्प में भी अन्य आत्मा प्रति एक सेकेण्ड भी स्मृति में नहीं लायेगी अर्थात् संकल्प में भी किसी देहधारी के झुकाव में नहीं आयेगी। लगाव तो बड़ी बात हैं, झुकाव भी नहीं। जैसे लौकिक जीवन में भी पर पुरूष प्रति संकल्प करना वा स्वप्न में भी आना सुहागिन के लिए महापाप गिना जाता है, ऐसे ही अलौकिक जीवन में भी अगर संकल्प मात्र भी, स्वप्न मात्र भी कोई देहधारी आत्मा तरफ झुकाव हुआ तो सदा सुहागिन के लिए महापाप गिना जाता है। तो सदा सुहागिन अर्थात् एक बाप दूसरा न कोई। ऐसे सुहाग का तिलक लगा हुआ है? माया तिलक मिटा तो नहीं देती? सदा सुहाग के साथ सदा भाग्य। सिर्फ सुहाग नहीं लेकिन भाग्य भी अर्थात् - भाग्यवान हो। सदा भाग्यवान की निशानी है लाईट का क्राउन। जैसे लौकिक दुनिया में भाग्य की निशानी राज्य अर्थात् राजाई होती है, और राजाई की निशानी ताज होता है, ऐसे ईश्वरीय भाग्य की निशानी लाईट का क्राउन है। उस ताज की प्राप्ति का आधार है प्यूरिटी (Purity;पवित्रता) और सर्व प्राप्ति। सम्पूर्ण प्यूरिटी अर्थात् मनसा में भी किसी एक विकार का अंश भी न हो। और सर्व प्राप्ति अर्थात् ज्ञान, सर्व गुण और सर्व शक्तियों की प्राप्ति। अगर कोई भी प्राप्ति की कमी है तो लाईट का क्राउन स्पष्ट दिखाई नहीं देगा; अपवित्रता और अप्राप्ति के बादलों में छिपा हुआ दिखाई देगा। स्वयं को सदा लाईट-आत्मिक रूप अनुभव नहीं करेगा। कर्म में भी अपने को लाईट (Light;हल्का) महसूस नहीं करेगा। बार-बार मेहनत के बाद वा अटेन्शन (Attention;ध्यान) रखने के अभ्यास के बाद अल्प समय के लिए स्वयं को डबल लाईट अनुभव करेगा। जैसे ही सोचेगा कि मैं आत्मा लाईट हूँ, तो आत्मा के बजाए शरीर अर्थात् देह अपने को अनुभव करेगा। भाग्य का आधार सर्व प्राप्तियां हैं। सर्व प्राप्तियों की निशानी है अविनाशी खुशी। सदा भाग्यवान सदा खुश होगा। भाग्य कम तो खुशी भी कम, खुशी कम अर्थात् सदा भाग्यवान नहीं। तो समझा? सदा सुहागिन और सदा भागिन अर्थात् भाग्यवान की निशानियां क्या हैं? अब तो सब बातें सामने रखते हुए स्वयं को चैक करो कि मैं कौन हूँ? अच्छा।

सदा सुहाग के तिलक धारी श्रेष्ठ भाग्यवान, सर्व प्राप्ति स्वरूप सदा बाप के साथी ऐसी श्रेष्ठ आत्माओं को बाप-दादा का याद-प्यार और नमस्ते।

दीदी जी के साथ:-

ऐसे सदा सुहागिन और सदा भागयवान और सम्पूर्ण भाग्यवान कितने होंगे? निरन्तर डबल लाईट और निरन्तर सर्व प्राप्ति सम्पन्न सम्पूर्ण पवित्र हों, ऐसे कितने मणके होंगे? जो अंगुलियों पर गिनती जितने! ऐसे रत्नों की ही विशेष पूजा होती है। विशोष नौ रत्नों की पूजा होती है ना। तो जो अच्छी क्वालिटी (Quality;प्रकार) का रत्न होता है, उस एक रत्न में एक रंग का होते हुए भी सब रंग दिखाई देंगे। जैसे सफेद हीरा होता है, जो बढ़िया हीरा होगा, चमकता हुआ फ्लालेस (Flawless;दाग रहित) दिखाई देगा। ध्यान से देखेंगे तो सफेद होते हुए भी उसमें सब रंग दिखाई देंगे। इसका कारण क्या है? सर्व शक्तियों के सम्पन्न की निशानी यह है। सर्व शक्तियाँ भिन्न-भिन्न रंग के रूप में दिखाई देती हैं। वह साईन्स (विज्ञान) का हिसाब और यहाँ है सायलेन्स (Silence) द्वारा सर्व प्राप्तियाँ। जैसे वर्षा के बाद इन्द्र धनुष दिखाई देता है, तो उसमें भी सब रंग दिखाई देते हैं यह भी ज्ञान वर्षा के बाद। वर्षा का फल सर्व प्राप्ति स्वरूप। तो ऐसा श्रेष्ठ हीरा वा रत्न सर्व प्राप्ति स्वरूप होने कारण जो शक्ति पाने चाहे वह उस रत्न द्वारा प्राप्त कर सकते हैं। तो ऐसे रत्न कितने होंगे? नौ रत्नों का पूजन, निर्विघ्न होने के लिए विशेष होता है। कोई के ऊपर विशेष विघ्न आता है, तो नौ रत्नों का पूजन करते हैं। तो इतने निर्विघ्न बने हो? हर रत्न सम्पन्न होता है, लेकिन फिर भी हर रत्न की मुख्य विशेषता अपनी होती है। इसलिए नौ रत्नों की इकट्ठी पूजा भी होती है, और अलग-अलग भी विशेष कोई विघ्न अर्थ कोई रत्न गाया हुआ होता है। मानो धन की समस्या वा विघ्न है तो धन की प्राप्ति के लिए वा अप्राप्ति का विघ्न मिटाने के लिए विशेष रत्न भी होता है। बीमारी ज्यादा मार्क ली होंगी तो उसका यादगार फिर अब तक भी अपने हाथ में रिंग (अंगूठी) बनाकर पहनते हैं या गले में लॉकेट बना कर डालते हैं। तो यह सब हिसाब वर्तमान समय के प्राप्ति के हैं। तो ऐसे कितने होंगे? गिनती करने में आते हैं? नाम बताने के नहीं दिखाने के हैं। अगर एनाउन्स (Announce) भी करे और भविष्य में वह प्रसिद्ध भी होंगे लेकिन अभी सम्पूर्ण स्टेज पर न देख करके क्वेश्चन (Question;प्रश्न) करेंगे यह क्यों, यह कैसे। इसलिए बाप भी बता नहीं सकता। दिखा सकते हैं - यह इस गिनती में हैं। यह हो सकता है। बताने की बात नहीं है। अब एक का भी नाम बतावें तो देखना कितने क्वेश्चन उठते। इसमें क्या है, हमारे में क्या नहीं है। इसमें तो यह है। कई क्वेश्चन में समय व्यर्थ गंवाए, यह भी बाप नहीं चाहते। बाकी कल्प-कल्प के प्रसिद्ध हुए रत्न, कल्प पहले मुवाफिक प्रसिद्ध जरूर होंगे। आजकल नाम नहीं, काम चाहते हैं। अभी तो हरेक के अन्दर यह लक्ष्य है कि मैं ही अपने को क्यों नहीं इतना आगे बढ़ा कर योग्य बनाऊं। अच्छा।

विशेष जो मेले की सेवा पर उपस्थित हैं - उन्हीं को याद देना। क्योंकि यह सेवा द्वारा बाप से मिलना ही है। योगयुक्त हो सुना है, इसलिए बाप-दादा सेवाधारियों को सदा सम्मुख ही देखते हैं। ऐसे सेवाधारी कभी भी अपने को दूर नहीं समझेंगे। सम्मुख ही समझेंगे। अच्छा।

अन्य दादियों के साथ:-

दूर-दूर से अपने जन्मभूमि पर आए हैं - ब्राह्मणों की जन्मभूमि मधुबन है ना। ऐसे समझते हो कि अपनी जन्मभूमि पर आए हैं। जन्मभूमि का बहुत महत्व रखते हैं। और यह फिर अलौकिक जन्मभूमि है। इस अलौकिक जन्मभूमि पर आने से ही लौकिकपन स्वत: ही भूल जाता है। क्योंकि जैसे धरनी वैसे करनी यह गायन् है। जैसा संग वैसा रंग, जैसा अन्न वेसा मन गाया हुआ है। वैसे ही, जैसे धरनी वैसी करनी। अगर कोई तमोगुणी धरनी है तो करनी भी ऐसी हो जाती है। धरनी का प्रभाव कर्म और संस्कार पर पड़ जाता है। जैसे मन्दिर में जाते हैं तो भूमि का ही प्रभाव होता है ना। अगर मन्दिर की भूमि पर किसी बुरा संकल्प आवे तो वह अपने को बहुत पापी समझेगा। वैसे अगर बुरा संकल्प आता तो बुरा समझते। तो यह है अलौकिक भूमि लौकिकता स्मृति में भी नहीं आयेगी। निरन्तर कर्मयोगी हो जायेंगे। इसलिए बाप-दादा सदैव कहते हैं कि कहाँ भी रहते हो लेकिन अपने को सदा परमधाम निवासी व मधुबन निवसी समझो। निराकार स्थिति के हिसाब से परमधाम निवासी, साकार स्थिति के हिसाब से मधुबन निवासी। मधुबन कहने से ही वैराग्य वृत्ति और मधुरता दोनों ही आ जाती है। स्थिति में बेहद की वैराग वृत्ति और सम्पर्क में मधुरता दोनों ही चाहिए। स्थान से स्थिति का कनेक्शन (Connection;सम्बन्ध) है।

सभी बेहद के वैरागी बने हो कि अभी कहाँ लगाव है? बेहद के वैरागी का कहाँ भी लगाव व झुकाव नहीं होगा। उसका सदैव इस पुरानी दुनिया से किनारा होगा। बेहद के वैरागी तब बन सकेंगे जब बाप को ही अपना संसार समझेंगे। बाप ही संसार है तो जब बाप में संसार देखेंगे अनुभव करेंगे तो बाकी रहा ही क्या? आटोमेटिक (स्वत:) वैराग आ जाएगा ना। बाप ही मेरा संसार है तो संसार में ही रहेंगे; दूसरे में जाएंगे ही नहीं तो किनारा हो जाएगा। संसार में व्यक्ति व वैभव सब आ जाता है तो बाप को ही अपना संसार बनाया है कि आगे कोई संसार है? कोई सम्बन्ध व कोई सम्पत्ति है क्या? बाप की सम्पत्ति सो अपनी सम्पत्ति। तो इसी स्मृति में रहने से आटोमेटिक बेहद के वैरागी हो जायेंगे। कोई को देखते हुए भी नहीं देखेंगे। दिखाई ही नहीं देखेंगे। दिखाई ही नहीं देगा। अच्छा।

स्मृति में रहने से समर्थी आती है। अगर समर्थी होगी तो कोई भी परिस्थिति स्वस्थिति को डगमग नहीं करेगी। परीक्षाओं को एक खेल समझकर चलेंगे। अगर खेल में या नाटक में किसी प्रकार की परिस्थिति देखते तो डगमग होते हैं क्या? कोई मरे वा कुछ भी हो लेकिन स्थिति डगमग नहीं होगी। क्योंकि समझते हैं यह खेल है। ऐसे ही परिस्थितियों को एक पार्ट समझो। परिस्थिति के पार्ट को साक्षी हो देखने से डगमग नहीं होंगे, मुरझायेंगे नहीं, मजा आएगा। मुरझाते तब हैं जब ड्रामा की प्वाइन्ट को भूल जाते हैं।

 

 

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QUIZ QUESTIONS

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 प्रश्न 1 :- सदा सुहागिन के कानों में सदा क्या गूंजता रहता है और संकल्प कैसे होते है ?

 प्रश्न 2 :- सदा भाग्यवान की निशानी कौन सी है और उस प्राप्ति का आधार क्या है ?

 प्रश्न 3 :- हीरा सफेद होते हुए भी उसमे से से सब रंग दिखाई देते है, इसका कारण क्या है ?

 प्रश्न 4 :- बेहद के वैरागी कब बन सकेंगे ?

 प्रश्न 5 :- बापदादा अभी नौ रत्नों का नाम क्यो नही बताते है ?

 

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

{ याद, बोल, पूजन, समर्थी, संसार, किनारा, सीरत, खेल, अलौकिक, बाप, निर्विघ्न, सूरत, सुहागिन, विघ्न, स्वस्थिति, योगयुक्त }

 1   स्मृति में रहने से _____ आती है। अगर समर्थी होगी तो कोई भी परिस्थिति _____ को डगमग नहीं करेगी। परीक्षाओं को एक _____ समझकर चलेंगे।

 2  सदा सुहागिन के नयनों में, मुख में साजन की _____ और _____ समाई हुई होती, कानों में उनके _____ ही सदा सुनने में आते हैं।

 3  नौ रत्नों का पूजन, _____ होने के लिए विशेष होता है। कोई के ऊपर विशेष _____ आता है, तो नौ रत्नों का _____ करते हैं।

 4  अगर सुहाग गया तो _____ गया’ - ऐसे लौकिक में भी माना जाता है। इसी प्रकार _____ जीवन में भी हर आत्मा एक साजन की सजनी है, अर्थात् _____ है।

 5  विशेष जो मेले की सेवा पर उपस्थित हैं - उन्हीं को _____ देना। क्योंकि यह सेवा द्वारा _____ से मिलना ही है। _____ हो सुना है, इसलिए बाप-दादा सेवाधारियों को सदा सम्मुख ही देखते हैं।

 

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-

 1  :- बाप-दादा सदैव कहते हैं कि कहाँ भी रहते हो लेकिन अपने को सदा परमधाम निवासी व मधुबन निवसी समझो।

 2  :- सदा सुहागिन के मुख के बोल हैं - साथ रहेंगे, साथ जीयेंगे, साथ मरेंगे।

 3  :- इस अलौकिक जन्मभूमि पर आने से ही लौकिकपन स्वत: ही भूल जाता है।

 4  :- बार-बार मेहनत के बाद वा अटेन्शन (Attention;ध्यान) रखने के अभ्यास के बाद बहुत समय के लिए स्वयं को डबल लाईट अनुभव करेगा।

 5   :- अभी तो हरेक के अन्दर यह लक्ष्य है कि मैं ही अपने को क्यों नहीं इतना आगे बढ़ा कर योग्य बनाऊं।

 

 

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QUIZ ANSWERS

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 प्रश्न 1 :- सदा सुहागिन के कानों में सदा क्या गूंजता रहता है और संकल्प कैसे होते है ?

 उत्तर 1 :- सदा सुहागिन अर्थात् जिनके कानों में अनादि महामन्त्र मन्मनाभव का स्वर गूंजता रहेगा।

          सदा यह अनुभव करेंगे कि बाप यह महामंत्र बार-बार सुनाते हुए स्मृति दिला रहे हैं।

          चलते-फिरते यही अनहद अर्थात् अविनाशी बोल बाप के सम्मुख सुनने का अनुभव करेंगे और कोई भी आत्माओं के बोल सुनते हुए भी नहीं सुनेंगे।

          बस तुम्हीं से बोलूं, तुम्हीं से सुनूं वा तुम्हारा सुनाया ही बोलूं’ - ऐसी स्टेज सदा सुहागिन की ही होती है।

     ऐसे सदा सुहागिन संकल्प में भी अन्य आत्मा प्रति एक सेकेण्ड भी स्मृति में नहीं लायेगी अर्थात् संकल्प में भी किसी देहधारी के झुकाव में नहीं आयेगी। लगाव तो बड़ी बात हैं, झुकाव भी नहीं।

 

 प्रश्न 2 :- सदा भाग्यवान की निशानी कौन सी है और उस प्राप्ति का आधार क्या है ?

 उत्तर 2 :- सदा भाग्यवान की निशानी है लाईट का क्राउन। जैसे लौकिक दुनिया में भाग्य की निशानी राज्य अर्थात् राजाई होती है, और राजाई की निशानी ताज होता है, ऐसे ईश्वरीय भाग्य की निशानी लाईट का क्राउन है। उस ताज की प्राप्ति का आधार है

          प्यूरिटी (Purity;पवित्रता) और सर्व प्राप्ति।

          सम्पूर्ण प्यूरिटी अर्थात् मनसा में भी किसी एक विकार का अंश भी न हो। और सर्व प्राप्ति अर्थात् ज्ञान, सर्व गुण और सर्व शक्तियों की प्राप्ति। 

          भाग्य का आधार सर्व प्राप्तियां हैं। सर्व प्राप्तियों की निशानी है अविनाशी खुशी। सदा भाग्यवान सदा खुश होगा।

 

 प्रश्न 3 :- हीरा सफेद होते हुए भी उसमे से से सब रंग दिखाई देते है, इसका कारण क्या है ?

 उत्तर 3 :- हीरा सफेद होते हुए भी उसमे से से सब रंग दिखाई देते है, इसका कारण यही है की

          सर्व शक्तियों के सम्पन्न की निशानी यह है। सर्व शक्तियाँ भिन्न-भिन्न रंग के रूप में दिखाई देती हैं। वह साईन्स (विज्ञान) का हिसाब और यहाँ है सायलेन्स (Silence) द्वारा सर्व प्राप्तियाँ।

          जैसे वर्षा के बाद इन्द्र धनुष दिखाई देता है, तो उसमें भी सब रंग दिखाई देते हैं यह भी ज्ञान वर्षा के बाद। वर्षा का फल सर्व प्राप्ति स्वरूप।

          तो ऐसा श्रेष्ठ हीरा वा रत्न सर्व प्राप्ति स्वरूप होने कारण जो शक्ति पाने चाहे वह उस रत्न द्वारा प्राप्त कर सकते हैं।

 

 प्रश्न 4 :- बेहद के वैरागी कब बन सकेंगे ?

 उत्तर 4 :- बेहद के वैरागी तब बन सकेंगे

          जब बाप को ही अपना संसार समझेंगे। बाप ही संसार है तो जब बाप में संसार देखेंगे अनुभव करेंगे तो बाकी रहा ही क्या? आटोमेटिक (स्वत:) वैराग आ जाएगा ना।

          बाप ही मेरा संसार है तो संसार में ही रहेंगे; दूसरे में जाएंगे ही नहीं तो किनारा हो जाएगा। संसार में व्यक्ति व वैभव सब आ जाता है तो बाप को ही अपना संसार बनाया है कि आगे कोई संसार है?

          कोई सम्बन्ध व कोई सम्पत्ति है क्या? बाप की सम्पत्ति सो अपनी सम्पत्ति। तो इसी स्मृति में रहने से आटोमेटिक बेहद के वैरागी हो जायेंगे।

 

 प्रश्न 5 :- बापदादा अभी नौ रत्नों का नाम क्यो नही बताते है ?

 उत्तर 5 :- बापदादा अभी नौ रत्नों का नाम नही बताते है क्योंकि

          अगर एनाउन्स (Announce) भी करे और भविष्य में वह प्रसिद्ध भी होंगे लेकिन अभी सम्पूर्ण स्टेज पर न देख करके क्वेश्चन (Question;प्रश्न) करेंगे यह क्यों, यह कैसे। इसलिए बाप भी बता नहीं सकता। दिखा सकते हैं - यह इस गिनती में हैं। यह हो सकता है। बताने की बात नहीं है।

          अब एक का भी नाम बतावें तो देखना कितने क्वेश्चन उठते। इसमें क्या है, हमारे में क्या नहीं है। इसमें तो यह है।

          कई क्वेश्चन में समय व्यर्थ गंवाए, यह भी बाप नहीं चाहते। बाकी कल्प-कल्प के प्रसिद्ध हुए रत्न, कल्प पहले मुवाफिक प्रसिद्ध जरूर होंगे।

 

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

{ याद, बोल, पूजन, समर्थी, संसार, किनारा, सीरत, खेल, अलौकिक, बाप, निर्विघ्न, सूरत, सुहागिन, विघ्न, स्वस्थिति, योगयुक्त }

 1   स्मृति में रहने से _____ आती है। अगर समर्थी होगी तो कोई भी परिस्थिति _____ को डगमग नहीं करेगी। परीक्षाओं को एक _____ समझकर चलेंगे।

    समर्थी / स्वस्थिति / खेल

 

 2  सदा सुहागिन के नयनों में, मुख में साजन की _____ और _____ समाई हुई होती, कानों में उनके _____ ही सदा सुनने में आते हैं।

    सीरत / सूरत / बोल

 

 3  नौ रत्नों का पूजन, _____ होने के लिए विशेष होता है। कोई के ऊपर विशेष _____ आता है, तो नौ रत्नों का _____ करते हैं।

    निर्विध्न / विध्न / पूजन

 

 4  अगर सुहाग गया तो _____ गया’ - ऐसे लौकिक में भी माना जाता है। इसी प्रकार _____ जीवन में भी हर आत्मा एक साजन की सजनी है, अर्थात् _____ है।

    संसार / अलौकिक / सुहागिन

 

 5  विशेष जो मेले की सेवा पर उपस्थित हैं - उन्हीं को _____ देना। क्योंकि यह सेवा द्वारा _____ से मिलना ही है। _____ हो सुना है, इसलिए बाप-दादा सेवाधारियों को सदा सम्मुख ही देखते हैं।

    याद / बाप / योगयुक्त

 

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-

 1  :- बाप-दादा सदैव कहते हैं कि कहाँ भी रहते हो लेकिन अपने को सदा परमधाम निवासी व मधुबन निवसी समझो।

 

 2  :- सदा सुहागिन के मुख के बोल हैं - साथ रहेंगे, साथ जीयेंगे, साथ मरेंगे।

 सदा सुहागिन के मन के बोल हैं - साथ रहेंगे, साथ जीयेंगे, साथ मरेंगे।

 

 3  :- इस अलौकिक जन्मभूमि पर आने से ही लौकिकपन स्वत: ही भूल जाता है।

 

 4  :- बार-बार मेहनत के बाद वा अटेन्शन (Attention;ध्यान) रखने के अभ्यास के बाद बहुत समय के लिए स्वयं को डबल लाईट अनुभव करेगा।

 बार-बार मेहनत के बाद वा अटेन्शन (Attention;ध्यान) रखने के अभ्यास के बाद अल्प समय के लिए स्वयं को डबल लाईट अनुभव करेगा।

 

 5   :- अभी तो हरेक के अन्दर यह लक्ष्य है कि मैं ही अपने को क्यों नहीं इतना आगे बढ़ा कर योग्य बनाऊं।