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AVYAKT MURLI

31 / 05 / 77

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31-05-77   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

 

विश्व-कल्याण करने का सहज साधन है - श्रेष्ठ संकल्पों की एकाग्रता

मास्टर सर्वशक्तिवान, सदा मायाजीत सो जगतजीत, सदा ज्ञानस्वरूप, शक्तिस्वरूप स्थिति में स्थित रहने वाले, विजयी रत्नों प्रति बाबा बोले-

अपने निराकारी और साकारी दोनों स्थितियों को अच्छी तरह से जान गए हो? दोनों ही स्थितियों में स्थित रहना सहज अनुभव होता है, वा साकार स्थिति में स्थित रहना सहज लगता है और निराकारी स्थिति में स्थित होने में मेहनत लगती है? संकल्प किया और स्थित हुआ। सैकंड का संकल्प जहाँ चाहे वहाँ स्थित कर सकता है। संकल्प ही ऊँच ले जाने और नीचे ले आने की रूहानी लिफ्ट है जिस द्वारा चाहे तो सर्व श्रेष्ठ अर्थात् ऊँची मंजिल पर पहुँचो अर्थात् निराकारी स्थिति में स्थित हो जाओ, चाहे आकारी स्थिति में स्थित हो जाओ, चाहे साकारी स्थिति में स्थित हो जाओ। ऐसी प्रैक्टिस अनुभव करते हो? संकल्प की शक्ति को जहाँ चाहो वहाँ लगा सकते हो? क्योंकि आत्मा मालिक है इन सूक्ष्म शक्तियों की। मास्टर सर्वशक्तिवान अर्थात् सर्वशक्तियों को जब चाहें, जहाँ चाहें, जैसे चाहें वैसे कार्य में लगा सकते हैं। ऐसा मालिकपन अनुभव करते हो? संकल्प को रचने वाले रचता, स्वयं को अनुभव करते हो? रचना के वशीभूत तो नहीं होते हो? ऐसा अभ्यास है जो एक सेकेण्ड में जिस स्थिति में स्थित होने का डायरेक्शन (Direction) मिले उसी स्थिति में सेकेण्ड में स्थित हो जाओ - ऐसी प्रैक्टिस है? वा युद्ध करते ही समय बीत जायेगा? अगर युद्ध करते हुए समय बीत जाए, स्वयं को स्थित न कर सको तो उसको मास्टर सर्वशक्तिवान कहेंगे वा क्षत्रिय कहेंगे? क्षत्रिय अर्थात् चन्द्रवंशी।

वर्तमान समय विश्व-कल्याण करने का सहज साधन अपने श्रेष्ठ संकल्प के एकाग्रता द्वारा, सर्व आत्माओं की भटकती हुई बुद्धि को एकाग्र करना है। सारे विश्व की सर्व आत्माएं विशेष यही चाहना रखती हैं कि भटकी हुई बुद्धि एकाग्र हो जाए वा मन चंचलता से एकाग्र हो जाए। यह विश्व की मांग वा चाहना कैसे पूर्ण करेंगे? अगर स्वयं ही एकाग्र नहीं होंगे, तो औरों को कैसे कर सकेंगे? इसलिए एकाग्रता, अर्थात् सदा एक बाप दूसरा न कोई, ऐसे निरन्तर एक रस स्थिति में स्थित होने का विशेष अभ्यास करो। उसके लिए जैसे सुनाया था, एक तो व्यर्थ संकल्पों को शुद्ध संकल्पों में परिवर्तन करो। दूसरी बात, माया के आने वाले अनेक प्रकार के विघ्नों को अपनी ईश्वरीय लगन के आधार से सहज समाप्त करते, कदम को आगे बढ़ाते चलो। विघ्नों से घबराने का मुख्य कारण कौनसा है? जब भी कोई विघ्न आता है, तो विघ्न आते हुए यह भूल जाते हो कि बाप-दादा ने पहले से ही यह नॉलेज दे दी है कि लगन की परीक्षा में यह सब आयेंगे ही। जब पहले से ही मालूम है कि विघ्न आने ही हैं, फिर घबराने की क्या जरूरत? नई बात क्यों समझते हो?

माया क्यों आती है? व्यर्थ संकल्प क्यों आते हैं? बुद्धि क्यों भटकती है? वातावरण क्यों प्रभाव डालता है? सम्बन्धी साथ क्यों नहीं देते हैं? पुराने संस्कार अब तक क्यों इमर्ज होते हैं? यह सब क्वेश्चन (Question;प्रश्न) विघ्नों को मिटाने के बजाए, बाप की लगन से हटाने के निमित्त बन जाते हैं। क्या यह बाप के महावाक्य भूल जाते हो कि जितना आगे बढ़ेंगे उतना माया भिन्न-भिन्न रूप से परीक्षा लेने के लिए आयेंगी। लेकिन परीक्षा ही आगे बढ़ाने का साधन है न कि गिराने का। क्योंकि कारण के निवारण के बजाए कारण सोचने में समय गंवा देते हो। शक्ति गंवा देते हो। कारण की बजाए निवारण सोचो और निर्विघ्न हो जाओ। क्यों आया? नहीं, लेकिन यह तो आना ही है - इस स्मृति में रहने से, समर्थी स्वरूप हो जाएंगे।

दूसरी बात, छोटे से विघ्नों को, क्यों के क्वेश्चन उठने से व्यर्थ संकल्पों की क्यू (Queue;कतार) लग जाती है, और उसी क्यू को समाप्त करने में काफी समय लग जाता है। इसलिए मुख्य कमज़ोरी है, जो ज्ञान स्वरूप अर्थात् नॉलेजफुल स्थिति में स्थित होते हुए, विघ्नों को पार नहीं कर पाते हैं। ज्ञानी हो, लेकिन ज्ञान-स्वरूप होना है।

वातावरण प्रभाव क्यों डालता है? उसका भी कारण? अपने पॉवरफुल वृत्ति द्वारा वायुमण्डल को परिवर्तन करने वाले हैं, यह स्मृति भूल जाते हो। जब कहते ही हो विश्वपरिवर्त क हैं तो विश्व के परिवर्तन में वायुमंडल को भी परिवर्तन करना है। अशुद्ध को ही शुद्ध बनाने के लिए निमित्त हो। फिर यह क्यों सोचते हो कि वायुमण्डल ऐसा था, इसलिए कमज़ोर हो गया। जब है ही कलियुगी, तमोप्रधान, आसुरी सृष्टि, उसमें वातावरण अशुद्ध न होगा तो क्या होगा? तमोगुणी सृष्टि के बीच रहते हुए, वातावरण को परिवर्तन करना, यही ब्राह्मणों का कर्त्तव्य है। कर्त्तव्य की स्मृति में रहने से अर्थात् रचतापन की स्थिति में स्थित रहने से, वातावरण अर्थात् रचना के वश नहीं होंगे। तो जो सोचना चाहिए कि परिवर्तक होके परिवर्तन कैसे करूँ, इस सोचने के बजाए यह सोचने लग जाते कि वातावरण ऐसा है इसलिए कमज़ोर हो गया हूँ, वातावरण बदलेगा तो मैं बदलूंगी, वातावरण अच्छा होगा तो स्थिति अच्छी होगी। लेकिन वातावरण को बदलने वाला कौन? यह भूल जाते हो। इस कारण थोड़े से वातावरण का प्रभाव पड़ जाता है।

और क्या कहते कि सम्बन्धी नहीं सुनते वा संग अच्छा नहीं है, इस कारण शक्तिशाली नहीं बनते। बाप-दादा ने तो पहले से ही सुना दिया है कि हर आत्मा का अपना-अपना अलग-अलग पार्ट है। कोई सतोगुणी, कोई रजोगुणी, कोई तमोगुणी। जब वैरायटी आत्माएं हैं और वैरायटी ड्रामा है, तो सब आत्माओं को एक जैसा पार्ट हो नहीं सकता। अगर किसी आत्मा का तमोगुणी अर्थात् अज्ञान का पार्ट है, तो शुभ भावना और शुभकामना से उन आत्मा को शान्ति और शक्ति का दान दो। लेकिन उसी अज्ञानी के पार्ट को देख, अपनी श्रेष्ठ स्थिति के अनुभव को भूल क्यों जाते हो? अपनी स्थिति में हलचल क्यों करते हो? साक्षी हो पार्ट देखते हुए, जो शक्ति का दान देना है, वह दो। लेकिन घबराओ मत। अपने सतोप्रधान पार्ट में स्थित रहो। तमोगुणी आत्मा के संग के रंग का प्रभाव पड़ने का कारण है - सदा बाप के श्रेष्ठ संग में नहीं रहते। सदा श्रेष्ठ संग में रहने वाले के ऊपर और कोई संग का रंग प्रभाव नहीं डाल सकता। तो निवारण का सोचो। और क्या कहते, हमारे सम्बन्धी के बुद्धि का ताला खोलो। बाप ने सर्व आत्माओं की बुद्धियों का ताला खोलने की चाबी बच्चों को पहले से ही दे दी है। तो चाबी को युज क्यों नहीं करते हो? अपना कार्य भूलने कारण, बाप को भी बार-बार याद दिलाते हो कि ताला खोलना वा बुद्धि को परिवर्तन करना। बाप तो सर्व आत्माओं रूपी बच्चों के प्रति सदा विश्व-कल्याणकारी हैं ही। फिर बार-बार क्यों याद दिलाते हो? बाप को अपने समान भूलने वाले समझते हो क्या? कहने की भी आवश्यकता नहीं। जितना आपको अपने हद के पार्ट के सम्बन्ध का ख्याल है, बाप तो सदा बच्चे के सम्बन्ध में रहने वाले, तो बाप बच्चों को भूल नहीं सकता। लेकिन बाप जानते हैं कि हरेक आत्मा का, कोई अपना समय-समय का पार्ट है, कोई का आदि में पार्ट है, कोई का मध्य में, कोई का अन्त में पार्ट है, कोई का भक्ति का पार्ट है, कोई का ज्ञान का पार्ट है। इसलिए बार-बार यह चिन्तन मत करो, ताला कब खुलेगा? लेकिन ताला खोलने का साधन है - अपने मन्सा संकल्प द्वारा सेवा, अपनी वृत्ति द्वारा वायुमण्डल को परिवर्तन करने की सेवा। अपने जीवन के परिवर्तन द्वारा आत्माओं को परिवर्तन करने की सेवा की फर्ज अदाई निभाते चलो। अभी बार-बार यह नहीं बोलना कि ताला खोलो। अपना ताला खोला, तो उनका खुल ही जायेगा। मुख्य तीन बातें बार-बार लिखते और कहते हो - योग क्यों नहीं लगता? ताला क्यों नहीं खुलता? और माया क्यों आती है? सोचते बहुत हो, इसलिए माया को भी मजा आता है। जैसे मल्ल युद्ध में भी अगर थोड़ा सा भी गिरने लगता है तो दूसरे को मजा आता है और गिराकर ऊपर चढ़ने का। तो जब यह सोचते हो माया आ गई। माया क्यों आई? तो माया घबराया हुआ देख, और वार कर लेती है। इसलिए सुनाया माया आनी ही है। माया का आना अर्थात् विजयी बनाने के निमित्त बनना। शक्तियों की प्राप्ति को अनुभव में लाने के लिए निमित्त कारण माया बनती है। अगर दुश्मन न हो तो विजयी कैसे कहा जायेगा? विजयी रत्न बनाने के निमित्त यह माया के छोटे-छोटे रूप हैं। इसलिए मायाजीत समझ, विजयी रत्न समझ, माया पर विजय प्राप्त करो। समझा? मास्टर सर्व शक्तिवान, कमज़ोर मत बनो, माया को चैलेन्ज करने वाले बनो। अच्छा।

सदा मायाजीत सो जगतजीत, वातावरण को अपनी समर्थ वृत्ति से सतो प्रधान बनाने वाले, अपने श्रेष्ठ बाप के संग से अनेक मायावी संगदोष से पार रहने वाले, सदा ज्ञानस्वरूप, शक्तिस्वरूप में स्थित रहने वाले, ऐसे सदा विजयी रत्नों को बाप-दादा का याद-प्यार और नमस्ते।

पार्टियों से-

संगमयुग का बड़े ते बड़ा खजाना कौनसा है? सबसे बड़े ते बड़ा खजाना है-अति इन्द्रिय सुख’, जो किसी भी युग में प्राप्त नहीं हो सकता। सतयुग में भी अति इन्द्रिय सुख का वर्णन नहीं करेंगे। यह अति इन्द्रिय सुख अब का ही खजाना है। इस खज़ाने का अनुभव है? जो सबसे बढ़िया चीज़ होती, या अच्छी लगती उसको कभी भूला नहीं जाता। अति इन्द्रिय सुख बड़े ते बड़ा और अच्छे ते अच्छा खजाना है तो सदा याद रहना चाहिए। याद अर्थात् अनुभव में आना। जो इस अनुभव में रहेंगे वह इन्द्रियो के सुख में नहीं होंगे। जो सदा अति इन्द्रिय सुख में नहीं रहते वह इन्द्रियो के सुख की तरफ आकर्षित हो जाते। इन्द्रियों के सुख के अनुभवी तो हो ना। उस अल्पकाल के सुख में भी दु:ख भरा हुआ है। जैसे आजकल कड़वी दवाई के ऊपर मीठा बोर्ड लगा देते। तो यह इन्द्रियों का सुख, दिखाई सुख देता लेकिन है क्या? जब समझते हो दु:ख है फिर उनकी आकर्षण में क्यों आते?

सदा अपने को विशेष पार्टधारी समझ पार्ट बजाते हो? जो विशेष पार्टधारी होते हैं उनकी हर एक्ट विशेष होती है। तो आपका भी हर कर्म के ऊपर इतना अटेंशन है? कोई भी कर्म साधारण न हो। साधारण आत्मा जो भी कर्म करेगी वह देह अभिमान से। विशेष आत्मा देही अभिमानी बन कर्म करेगी। देही अभिमानी बन पार्ट बजाने वाले की रिजल्ट क्या होगी? वह स्वयं भी सन्तुष्ट और सर्व भी उनसे संतुष्ट होंगे। जो अच्छा पार्ट बजाते तो देखने वाले वंस मोर (Once More;एक बार और) करते। तो सर्व का संतुष्ट रहना अर्थात् वंस मोर करना। सिर्फ स्वयं से संतुष्ट रहना बड़ी बात नहीं लेकिन स्वयं संतुष्ट रहकर दूसरों को भी सन्तुष्ट करना’ - यह है पूरा सलोगन। वह तब हो सकता जब देही अभिमानी होकर विशेष पार्ट बजाओ। ऐसा पार्ट बजाने में मजा आएगा, खुशी भी होगी।

सदा स्वयं के श्रेष्ठ स्वमान मास्टर सर्वशक्तिवान के स्मृति में रहते हो? सबसे श्रेष्ठ स्वमान कौनसा है? मास्टर सर्वशक्तिवान। जैसे कोई बड़ा ऑफिसर वा राजा होता, जब वह स्वमान की सीट पर स्थित होता तो दूसरे भी उसे सम्मान देते। अगर स्वयं सीट पर नहीं तो उसका ऑडर्र कोई नहीं मानेगा। तो ऐसे ही जब तक आप अपने स्वमान की सीट पर नहीं तो माया भी आपके आगे सरेन्डर नहीं हो सकती। क्योंकि वह जानती है, यह सीट पर सेट नहीं है। सीट पर सेट होना अर्थात् स्वयं को मास्टर सर्वशक्तिवान समझना।

संगमयुग ही प्रत्यक्ष फल देने वाला है। सतयुग में संगमयुग का ही फल चलता रहता। संगम पर एक का सौ गुणा भर करके प्रत्यक्ष फल मिलता है। सिर्फ एक बार संकल्प किया - मैं बाप का हूँ तो अनेक जन्म एक संकल्प के आधार पर फल प्राप्त होता रहता है। एक बार संकल्प किया - मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ तो मायाजीत बनने के, विजयी बनने के नशे का अनुभव होगा। प्रत्यक्षफल संगमयुग पर ही अनुभव होता। जैसे बीज बोया जाता तो फल मिलता है ना। ऐसे संकल्प करना वा पुरूषार्थ करना यह है बीज और उसका फल, एक का पद्म गुणा मिल जाता। तब तो संगम की महिमा है। सब से बड़े ते बड़ा संगमयुग का फल है, जो स्वयं बाप प्रत्यक्ष रूप में मिलता। परमात्मा भी साकार रूप में, साकार मनुष्य रूप में मिलने आता। इस फल में और सब फल आ जाते। अच्छा।

 

 

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QUIZ QUESTIONS

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 प्रश्न 1 :- सारे विश्व की सर्व आत्माएं विशेष कौन सी चाहना रखती हैं, और उनको पूर्ण करने के लिए बाबा क्या बता रहे हैं?

 प्रश्न 2 :- विघ्नों से घबराने का मुख्य कारण कौन सा है और मुख्य  कौन सी कमजोरी की बात बाबा ने कही है?

 प्रश्न 3 :- कौन सा कार्य बच्चे बाबा को बार बार याद दिलाते हैं,और उस कार्य को करने के लिए बाबा ने बच्चों को क्या समझानी दी है?

 प्रश्न 4 :- देही अभिमानी बन पार्ट बजाने वाले की रिजल्ट क्या होगी?

 प्रश्न 5 :- संगमयुग का बड़े ते बड़ा खजाना और फल कौन सा है?

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

(  शान्ति, परिवर्तन, सर्वशक्तिवान, सीट, शक्तियों, ब्राह्मणों, सर्वशक्तियों, माया, तमोगुणी, विजयी, अज्ञान  )

 

 1   _______ सृष्टि के बीच रहते हुए, वातावरण को _______ करना, यही _______ का कर्त्तव्य है।

 2  _______ पर सेट होना अर्थात् स्वयं को मास्टर  _______ समझना।

 3  अगर किसी आत्मा का तमोगुणी अर्थात्  _______ का पार्ट है, तो शुभ भावना और शुभकामना से उन आत्मा को _______ और शक्ति का दान दो।

 4  मास्टर सर्वशक्तिवान अर्थात्  _______ को जब चाहें, जहाँ चाहें, जैसे चाहें वैसे कार्य में लगा सकते हैं।

 5  माया का आना अर्थात् _______ बनाने के निमित्त बनना।  _______ की प्राप्ति को अनुभव में लाने के लिए निमित्त कारण माया _______ बनती है।

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-

 

 1  :- सदा श्रेष्ठ संग में रहने वाले के ऊपर और कोई संग का रंग प्रभाव डाल सकता।

 2  :- ऐसे ही जब तक आप अपने स्वमान की सीट पर नहीं तो माया भी आपके आगे सरेन्डर नहीं हो सकती। क्योंकि वह जानती है, यह सीट पर सेट नहीं है।

 3  :- कर्त्तव्य की विस्मृति में रहने से अर्थात् रचतापन की स्थिति में स्थित रहने से, वातावरण अर्थात् रचना के वश  होंगे।

 4  :- संकल्प ही ऊँच ले जाने और नीचे ले आने की रूहानी लिफ्ट है।

 5   :- विजयी रत्न बनाने के निमित्त यह माया के बड़े बड़े रूप हैं। इसलिए मायाजीत समझ, विजयी रत्न समझ, माया पर विजय प्राप्त करो।

 

 

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QUIZ ANSWERS

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 प्रश्न 1 :-  सारे विश्व की सर्व आत्माएं विशेष कौन सी चाहना रखती हैं, और उनको पूर्ण करने के लिए बाबा क्या बता रहे हैं?

उत्तर 1 :- . बाबा कहते:-     

           ❶ वर्तमान समय विश्व-कल्याण करने का सहज साधन अपने श्रेष्ठ संकल्प के एकाग्रता द्वारा, सर्व आत्माओं की भटकती हुई बुद्धि को एकाग्र करना है। सारे विश्व की सर्व आत्माएं विशेष यही चाहना रखती हैं कि भटकी हुई बुद्धि एकाग्र हो जाए वा मन चंचलता से एकाग्र हो जाए।

          ❷ यह विश्व की मांग वा चाहना कैसे पूर्ण करेंगे? अगर स्वयं ही एकाग्र नहीं होंगे, तो औरों को कैसे कर सकेंगे? इसलिए एकाग्रता, अर्थात् सदा एक बाप दूसरा न कोई, ऐसे निरन्तर एक रस स्थिति में स्थित होने का विशेष अभ्यास करो।

          ❸ उसके लिए जैसे सुनाया था, एक तो व्यर्थ संकल्पों को शुद्ध संकल्पों में परिवर्तन करो।

          ❹ दूसरी बात, माया के आने वाले अनेक प्रकार के विघ्नों को अपनी ईश्वरीय लगन के आधार से सहज समाप्त करते, कदम को आगे बढ़ाते चलो।

 

 प्रश्न 2 :- विघ्नों से घबराने का मुख्य कारण कौन सा है और मुख्य  कौन सी कमजोरी की बात बाबा ने कही है?

उत्तर 2 :-  बाबा कहते विघ्नों से घबराने का मुख्य कारण है :-

           ❶ जब भी कोई विघ्न आता है, तो विघ्न आते हुए यह भूल जाते हो कि बाप-दादा ने पहले से ही यह नॉलेज दे दी है कि लगन की परीक्षा में यह सब आयेंगे ही। जब पहले से ही मालूम है कि विघ्न आने ही हैं, फिर घबराने की क्या जरूरत? नई बात क्यों समझते हो?

          ❷ माया क्यों आती है? व्यर्थ संकल्प क्यों आते हैं? बुद्धि क्यों भटकती है? वातावरण क्यों प्रभाव डालता है? सम्बन्धी साथ क्यों नहीं देते हैं? पुराने संस्कार अब तक क्यों इमर्ज होते हैं? यह सब क्वेश्चन   (Question;प्रश्न) विघ्नों को मिटाने के बजाए, बाप की लगन से हटाने के निमित्त बन जाते हैं।

           ❸ क्या यह बाप के महावाक्य भूल जाते हो कि जितना आगे बढ़ेंगे उतना माया भिन्न-भिन्न रूप से परीक्षा लेने के लिए आयेंगी। लेकिन परीक्षा ही आगे बढ़ाने का साधन है न कि गिराने का।

           ❹ क्योंकि कारण के निवारण के बजाए कारण सोचने में समय गंवा देते हो। शक्ति गंवा देते हो। कारण की बजाए निवारण सोचो और निर्विघ्न हो जाओ। क्यों आया? नहीं, लेकिन यह तो आना ही है - इस स्मृति में रहने से, समर्थी स्वरूप हो जाएंगे।

          ❺ दूसरी बात, छोटे से विघ्नों को, क्यों के क्वेश्चन उठने से व्यर्थ संकल्पों की क्यू (Queue;कतार) लग जाती है, और उसी क्यू को समाप्त करने में काफी समय लग जाता है।

          ❻ इसलिए मुख्य कमज़ोरी है, जो ज्ञान स्वरूप अर्थात् नॉलेजफुल स्थिति में स्थित होते हुए, विघ्नों को पार नहीं कर पाते हैं। ज्ञानी हो, लेकिन ज्ञान-स्वरूप होना है।

 

 प्रश्न 3 :- कौन सा कार्य बच्चे बाबा को बार बार याद दिलाते हैं,और उस कार्य को करने के लिए बाबा ने बच्चों को क्या समझानी दी है?

उत्तर 3 :- . बाबा कहते हैं कि :-

          ❶ बच्चे अपना कार्य भूलने कारण, बाप को भी बार-बार याद दिलाते हो कि ताला खोलना वा बुद्धि को परिवर्तन करना।

          ❷ बाप तो सर्व आत्माओं रूपी बच्चों के प्रति सदा विश्व-कल्याणकारी हैं ही। फिर बार-बार क्यों याद दिलाते हो? बाप को अपने समान भूलने वाले समझते हो क्या? कहने की भी आवश्यकता नहीं।

          ❸ जितना आपको अपने हद के पार्ट के सम्बन्ध का ख्याल है, बाप तो सदा बच्चे के सम्बन्ध में रहने वाले, तो बाप बच्चों को भूल नहीं सकता।

           ❹ लेकिन बाप जानते हैं कि हरेक आत्मा का, कोई अपना समय-समय का पार्ट है, कोई का आदि में पार्ट है, कोई का मध्य में, कोई का अन्त में पार्ट है, कोई का भक्ति का पार्ट है, कोई का ज्ञान का पार्ट है।

          ❺ इसलिए बार-बार यह चिन्तन मत करो, ताला कब खुलेगा? लेकिन ताला खोलने का साधन है - अपने मन्सा संकल्प द्वारा सेवा, अपनी वृत्ति द्वारा वायुमण्डल को परिवर्तन करने की सेवा।

          ❻ अपने जीवन के परिवर्तन द्वारा आत्माओं को परिवर्तन करने की सेवा की फर्ज अदाई निभाते चलो।

          ❼ अभी बार-बार यह नहीं बोलना कि ताला खोलो। अपना ताला खोला, तो उनका खुल ही जायेगा।

 

 प्रश्न 4 :- देही अभिमानी बन पार्ट बजाने वाले की रिजल्ट क्या होगी?

उत्तर 4 :- . बाबा ने बताया कि:- देही अभिमानी बन पार्ट बजाने वाले वह स्वयं भी सन्तुष्ट और सर्व भी उनसे संतुष्ट होंगे। जो अच्छा पार्ट बजाते तो देखने वाले वंस मोर (Once More;एक बार और) करते। तो सर्व का संतुष्ट रहना अर्थात् वंस मोर करना। सिर्फ स्वयं से संतुष्ट रहना बड़ी बात नहीं लेकिन स्वयं संतुष्ट रहकर दूसरों को भी सन्तुष्ट करना’ - यह है पूरा सलोगन। वह तब हो सकता जब देही अभिमानी होकर विशेष पार्ट बजाओ। ऐसा पार्ट बजाने में मजा आएगा, खुशी भी होगी।

 

 प्रश्न 5 :- संगमयुग का बड़े ते बड़ा खजाना और फल कौनसा है?

 उत्तर 5 :- . बाबा कहते :-

          ❶ सबसे बड़े ते बड़ा खजाना है-अति इन्द्रिय सुख’, जो किसी भी युग में प्राप्त नहीं हो सकता।

          ❷ सतयुग में भी अति इन्द्रिय सुख का वर्णन नहीं करेंगे। यह अति इन्द्रिय सुख अब का ही खजाना है। इस खज़ाने का अनुभव है?

          ❸ जो सबसे बढ़िया चीज़ होती, या अच्छी लगती उसको कभी भूला नहीं जाता। अति इन्द्रिय सुख बड़े ते बड़ा और अच्छे ते अच्छा खजाना है तो सदा याद रहना चाहिए।

          ❹ संगमयुग ही प्रत्यक्ष फल देने वाला है। सतयुग में संगमयुग का ही फल चलता रहता। संगम पर एक का सौ गुणा भर करके प्रत्यक्ष फल मिलता है।

          ❺ सिर्फ एक बार संकल्प किया - 'मैं बाप का हूँ तो अनेक जन्म एक संकल्प के आधार पर फल प्राप्त होता रहता है। एक बार संकल्प किया - मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ तो मायाजीत बनने के, विजयी बनने के नशे का अनुभव होगा।

          ❻ प्रत्यक्षफल संगमयुग पर ही अनुभव होता। जैसे बीज बोया जाता तो फल मिलता है ना। ऐसे संकल्प करना वा पुरूषार्थ करना यह है बीज और उसका फल, एक का पद्म गुणा मिल जाता। तब तो संगम की महिमा है।

          ❼ सब से बड़े ते बड़ा संगमयुग का फल है, जो स्वयं बाप प्रत्यक्ष रूप में मिलता। परमात्मा भी साकार रूप में, साकार मनुष्य रूप में मिलने आता। इस फल में और सब फल आ जाते।

 

      FILL IN THE BLANKS:-    

( शान्ति, परिवर्तन, सर्वशक्तिवान, सीट, शक्तियों, ब्राह्मणों, सर्वशक्तियों, माया, तमोगुणी, विजयी, अज्ञान )

 

 1   _______ सृष्टि के बीच रहते हुए, वातावरण को _______ करना, यही _______ का कर्त्तव्य है।

 तमोगुणी /  परिवर्तन /  ब्राह्मणों

 

 2   _______ पर सेट होना अर्थात् स्वयं को मास्टर  _______ समझना।

सीट /  सर्वशक्तिमान

 

  अगर किसी आत्मा का तमोगुणी अर्थात्  _______ का पार्ट है, तो शुभ भावना और शुभकामना से उन आत्मा को _______ और शक्ति का दान दो।

अज्ञान /  शान्ति

 

 4  मास्टर सर्वशक्तिवान अर्थात्  _______ को जब चाहें, जहाँ चाहें, जैसे चाहें वैसे कार्य में लगा सकते हैं।

 शक्तियों

 

माया का आना अर्थात् _______ बनाने के निमित्त बनना।  _______ की प्राप्ति को अनुभव में लाने के लिए निमित्त कारण _______ बनती है।

विजयी /  सर्वशक्तियों /  माया

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-

 

 1  :- सदा श्रेष्ठ संग में रहने वाले के ऊपर और कोई संग का रंग प्रभाव  डाल सकता।【✖】

सदा श्रेष्ठ संग में रहने वाले के ऊपर और कोई संग का रंग प्रभाव नहीं डाल सकता।

 

 2  :- ऐसे ही जब तक आप अपने स्वमान की सीट पर नहीं तो माया भी आपके आगे सरेन्डर नहीं हो सकती। क्योंकि वह जानती है, यह सीट पर सेट नहीं है।【✔】

 

3  :- कर्त्तव्य की विस्मृति में रहने से अर्थात् रचतापन की स्थिति में स्थित रहने से, वातावरण अर्थात् रचना के वश  होंगे। 【✖】

कर्त्तव्य की स्मृति में रहने से अर्थात् रचतापन की स्थिति में स्थित रहने से, वातावरण अर्थात् रचना के

वश नहीं होंगे।

 

 4  :- संकल्प ही ऊँच ले जाने और नीचे ले आने की रूहानी लिफ्ट है। 【✔】

 

 5   :- विजयी रत्न बनाने के निमित्त यह माया के बड़े बड़े रूप हैं। इसलिए मायाजीत समझ, विजयी रत्न समझ, माया पर विजय प्राप्त करो। 【✖】

विजयी रत्न बनाने के निमित्त यह माया के छोटे-छोटे रूप हैं। इसलिए मायाजीत समझ, विजयी रत्न समझ, माया पर विजय प्राप्त करो।