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AVYAKT MURLI

13 / 01 / 78

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13-01-78   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

 

इन्तज़ार के पहले इन्तज़ाम करो

 

कल्याणकारी, महादानी, महान वरदानी बनाने वाले दया के सागर पिता शिव वत्सों से बोले :-

आज बाप बच्चों को देख सदा हर्षित होते हैं। हरेक बच्चा वर्तमान समय में विश्व की सर्व आत्माओं में श्रेष्ठ है और भविष्य में भी विश्व द्वारा पूज्यनीय हैं। ऐसे सर्व श्रेष्ठ गायन और पूजन योग्य योगी तू आत्माएँ, ज्ञानी तू आत्मायें, दिव्य-गुणधारी, सदा विश्व के सेवाधारी बाप-दादा के सदा स्नेह और सहयोग में रहने वाले - ऐसे बच्चों को देख बाप को कितनी खुशी होती है! नम्बरवार होते हुए भी लास्ट नम्बर का मणका भी विश्व के आगे महान है। ऐसे अपनी महानता को, अपनी महिमा को जानते हुए चलते रहते हो या चलते-चलते अपने को साधारण समझ लेते हो? अलौकिक बाप द्वारा प्राप्त हुई अलौकिक जीवन, अलौकिक कर्म साधारण नहीं हैं। लास्ट नम्बर के मणके को भी आज अन्त तक भक्त आत्मायें आंखों पर रखती हैं। क्योंकि लास्ट नम्बर भी बाप-दादा के नयनों के तारे हैं, नूरे रतन हैं। ऐसे नूरे रतन को अब तक भी नयनों पर रखा जाता है। अपने श्रेष्ठ भाग्य को जानते हुए, वर्णन करते हुए अनजान नहीं बनो। एक बार भी मन से, सच्चे दिल से अपने को बाप का बच्चा निश्चय किया उस एक सेकेण्ड की महिमा और प्राप्ति बहुत बड़ी है। डायरेक्ट बाप का बच्चा बनना- जानते हो कितनी बड़ी लाटरी (Lottery) है। एक सेकेण्ड में नाम संस्कार शूद्र से ब्राह्मण हो जाता है। संसार बदल जाता- संस्कार बदल जाते, दृष्टि, वृत्ति, स्मृति सब बदल जाता एक सेकेण्ड के खेल में। ऐसा श्रेष्ठ सेकेण्ड भूल जाते हो। दुनिया वाले अब तक नहीं भूले हैं। आप आत्माएँ चक्कर लगाते बदल भी गईं लेकिन दुनिया वाले नहीं भूले। अभी आप सबका भाग्य वर्णन करते इतने खुश होते हैं- समझते हैं भगवान ही मिल गया। जब दुनिया वाले नहीं भूले हैं, आप स्वयं अनुभवी मूर्त्त तो सर्व प्राप्ति करने वाली आत्मायें हो, फिर भूल क्यों जाते हो? भूलना चाहिए नहीं लेकिन भूल जाते हो।

इस नये वर्ष में बाप-दादा को कौन-सी नवीनता दिखायेंगे। जो समय दिया हुआ था उस प्रमाण तो सब सम्पूर्ण ही दिखाई देते। जब लक्ष्य 77 (सन् 1977) का रखा तो लक्ष्य प्रमाण सर्व ब्राह्मण आत्माओं का अपना पुरूषार्थ सम्पन्न होना चाहिए। आप तो परिवर्तन के लिए तैयार हो ना। अब का जो समय मिला है वह ब्राह्मणों के स्वयं पुरूषार्थ के लिए नहीं है लेकिन हर संकल्प हर बोल द्वारा दाता के बच्चे विश्व की आत्माओं प्रति प्राप्त हुए खज़ानों को देने अर्थ है। वह एक्स्ट्रा (अतिरिक्त) टाइम (Time) स्वयं के पुरूषार्थ प्रति नहीं लेकिन दूसरों के प्रति समय, गुण और खज़ाना देने के लिए है। बाप ने जिस कार्य के लिए समय और खज़ाना दिया है अगर उसके बदले स्वयं प्रति समय और सम्पति लगाते हो तो यह भी अमानत में खयानत होती है। यह विशेष वर्ष ब्राह्मण आत्माओं के प्रति महादानी वरदानी बनने का है। जैसे आप लोग प्रोग्राम बनाते हो कि इस मास में विशेष योग का प्रोग्राम होगा, दूसरे मास में विशेष सेवा का होगा। वैसे ड्रामा प्लैन अनुसार यह एक्स्ट्रा समय महादानी बनने के लिए मिला है। अब तक पुरानी भाषा, पुरानी बातें, पुरानी रीति रस्म वह अच्छी रीति सब जानते हो। इस वर्ष का समय इसके लिए नहीं है। जैसे बाप के आगे स्वयं को समर्पण किया वैसे अब अपना समय और सर्व प्राप्तियाँ, ज्ञान, गुण और शक्तियाँ विश्व की सेवा अर्थ समर्पण करो। जो संकल्प उठता है तो चैक करो कि विश्व सेवा प्रति है। ऐसे सेवा प्रति अर्पण होने से स्वयं सम्पन्न सहज हो जायेंगे। जैसे जब कोई सेवा का विशेष प्रोग्राम बनाते हो तो विशेष कार्य में बिज़ी (Busy) होने के कारण स्वयं के आराम या स्वयं के प्रति सैलेवेशन (Salvation) देने वाली बातें या चलते-चलते अन्य आत्माओं द्वारा आई हुई छोटी-छोटी परीक्षाओं को अटैन्शन नहीं देते हो, अवाइड (Avoid) करते हो। क्योंकि सदा कार्य को सामने रखते हो और बिज़ी रहते हो। स्वयं प्रति समय न लगाकर सेवा में विशेष लगाते हो। ऐसे ही इस नये वर्ष में हर सेकेण्ड और संकल्प को सेवा प्रति समझने से, इस कार्य में बिज़ी रहने से परीक्षाओं को पास ऐसे करेंगे जैसे कुछ है ही नहीं। संकल्प में भी नहीं आवेगा कि यह बात क्या थी और क्या हुआ। स्वयं को समर्पण करने से इस सेवा की लगन में यह छोटे बड़े पेपर्स या परीक्षाएं स्वत: ही समर्पण हो जावेंगी। जैसे अग्नि के अन्दर हर वस्तु का नाम रूप बदल जाता है वैसे परीक्षा का नाम रूप बदल परीक्षा प्राप्ति का रूप बन जावेगी। माया शब्द से घबरायेंगे नहीं, सदा विजयी बनने की खुशी में नाचते रहेंगे। माया को अपनी दासी अनुभव करेंगे तो दासी सेवाधारी बनेगी या घबरायेंगे। स्वयं सरेण्डर (Surrender) हो जाओ सेवा में तो माया स्वत: ही सरेण्डर हो जावेगी। लेकिन सरेण्डर नहीं होते हो तो माया भी अच्छी तरह से चान्स (अवसर) लेती है। चान्स (Chance) लेने के कारण ब्राह्मणों का भ् चान्सलर (Chancellor) बन जाती है। माया को चान्सलर बनने नहीं दो। स्वयं सेवा का चान्स ले चान्सलर बनो। अब सुना समय क्यों मिला है। अब कोई कम्पलेन नहीं करना। समय के हिसाब से हरेक को कम्पलीट (Complete) होना है। कम्पलीट आत्मा कभी कम्पलेन (Complaint) नहीं करती है। हो ही जाता, होता ही है, यह भाषा नहीं बोलती। नया वर्ष, नई भाषा, नया अनुभव। पुरानी चीज़ संभालना अच्छा लगता है लेकिन यूज़ (Use) करना अच्छा नहीं होता। तो आप यूज़ क्यों करते हो? 5000 वर्ष के लिए सम्भाल कर रख दो। पुराने से प्रीत नहीं रखो।

सदैव भक्त आत्माओं, भिखारी आत्माओं और प्यासी आत्माओं के सामने अपने को साक्षात् बाप और साक्षात्कार मूर्त्त समझकर चलो। तीनों ही लाइन लम्बी हैं। इस क्यू (पंक्ति) को समाप्त करने में लग जाओ। प्यासी आत्माओं की प्यास बुझाओ, भिखारियों को दान दो। भक्तों को भक्ति का फल बाप के मिलन का मार्ग बताओ। इस क्यू को सम्पन्न करने में बिज़ी रहेंगे तो स्वयं के प्रति क्यों की क्यू समाप्त हो जावेगी। समय की इन्तज़ार में नहीं रहो लेकिन तीनों प्रकार की आत्माओं को सम्पन्न बनाने के इन्तज़ाम में रहो। अब तो नहीं पूछेंगे कि विनाश कब होगा। क्यू को समाप्त करो तो परिवर्तन का समय भी समाप्त हो जाएगा। संगम का समय सतयुग से श्रेष्ठ नहीं लगता है? थक गये हो क्या? जब पूछते हो विनाश कब होगा तो थके हुए हो तब तो पूछते हो। बाप का बच्चों से अति स्नेह है। बाप को यह मेला अच्छा लगता है। और बच्चों को स्वर्ग अच्छा लगता है। स्वर्ग तो 21 जन्म मिलेगा ही लेकिन यह संगम नहीं मिलेगा। तो थक मत जाओ। सेवा में लग जाओ तो प्रत्यक्ष फल अनुभव करेंगे। भविष्य फल तो आपका निश्चित है ही लेकिन प्रत्यक्ष फल का अनुभव सुख सारे कल्प में नहीं मिलेगा। इसलिए भक्तों की पुकार सुनो। रहमदिल बनो, महादानी बन महान पुण्यआत्मा का पार्ट बजाओ। अच्छा-।

ऐसे बाप के फरमानबरदार दृढ़ संकल्प और सेकेण्ड में आज्ञाकारी बाप समान सदा विश्व के कल्याणकारी महादानी महान वरदानी सर्व को सम्पन्न करने वाले सदा स्वयं को सेवा में तत्पर करने वाले ऐसे बाप समान बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।

दीदी जी से बातचीत

सबको एक बात का इन्तज़ार है वह कौन सी बात है? जो शुरू की पहेली है मैं कौन? वही लास्ट तक भी है। सबको इंतज़ार है आखिर भी भविष्य में मैं कौन या माला में मैं कहाँ अब यह इन्तज़ार कब पूरा होगा? सब एक दो में रूह- रूहान भी करते हैं 8 में कौन होंगे, 100 में कौन होंगे, 16,000 का तो कोई सवाल ही नहीं। आिखर भी 8 में या 100 में कौन होंगे। विदेशी सोचते हैं हम कौन-सी माला में होंगे लास्ट में आने वाले सोचते हैं हम कौंन-सी माला में होंगे और शुरू में आने वाले फिर सोचते हैं लास्ट सो फास्ट है। ना मालूम हमारा स्थान है या लास्ट वाले का है। आखिर हिसाब क्या है? किताब तो बाप के पास है ना। फिक्स नहीं किये गये हैं। आप लोगों ने भी आर्ट कम्पटीशन (Art Competition) की तो चित्र कैसे चुना। पहले थोड़े अलग किये फिर उसमें से एक, दो, तीन नम्बर लगाया। पहले चुनने होते हैं फिर नम्बर वार फिक्स होते हैं। तो अब चुने गये हैं। लेकिन फिक्स नहीं हुए हैं। (पीछे आने वालों का क्या होगा) सदैव कुछ सीटस (Seats) अन्त तक भी होती हैं। रिज़र्वेशन (Reservations) होती है तो भी लास्ट तक कुछ कोटा रखते हैं लेकिन वह कोटों में कोई, कोई में भी कोई होता है। अच्छा आप सब किस माला में हो। अपने में उम्मदें रखो। कोई न कोई एसी वन्डरफुल (Wonderful) बात होगी जिसके आधार पर आप सबकी उम्मीदें पूरी हो जावेंगी। अष्ट रत्नों की विशेषता एक विशेष बात से है। अष्ट रतन प्रैक्टिकल (Practical) में जैसे यादगार हैं विशेष तो जो अष्ट शक्तियाँ हैं वह हर शक्ति उनके जीवन में प्रैक्टिकल दिखाई देगी। अगर एक शक्ति भी प्रैक्टीकल जीवन में कम दिखाई देती तो जैसे अगर मूर्ति की एक भुजा खण्डित हो तो पूज्यनीय नहीं होती इसी प्रकार से अगर एक शक्ति की भी कमी दिखाई देती तो अष्ट देवताओं की लिस्ट (List) में अब तक फिक्स नहीं कहे जायेंगे। दूसरी बात अष्ट देवताएं भक्तों के लिए विशेष इष्ट माने जाते हैं। इष्ट अर्थात् महान पूज्य। इष्ट द्वारा हर भक्त को हर प्रकार की विधि और सिद्धि प्राप्त होती है। यहाँ भी जो अष्ट रतन होंगे वह सर्व ब्राह्मण परिवार के आगे अब भी इष्ट अर्थात् हर संकल्प और चलन द्वारा विधि और सिद्धि का मार्ग दर्शन करने वाले सबके सामने अब भी ऐसे ही महानमूर्त्त माने जायेंगे। तो अष्ट शक्तियाँ भी होंगी और परिवार के सामने इष्ट अर्थात् श्रेष्ठ आत्मा, महान आत्मा, वरदानी आत्मा के रूप में होंगे। यह है अष्ट रतनों की विशेषता। अच्छा।

पार्टियों से बातचीत में बच्चों के प्रति उच्चारे अनमोल ज्ञान रतन

1. दुनिया के वायब्रेशन (Vibrations) से अथवा माया से सेफ रहने का साधन

सदा एक बाप दूसरा न कोई जो इसी लगन में मगन रहते वह माया के हर प्रकार के वार से बचे रहते हैं। जैसे जब लड़ाई के समय बाम्ब्स (Bombs) गिराते हैं तो अण्डरग्राउण्ड1 (Underground) हो जाते, उसका असर उन्हें नहीं होता तो ऐसे ही जब एक लगन में मगन रहते तो दुनिया के वायब्रेशन से, माया से बचे रहेंगे, सदा सेफ रहेंगे। माया की हिम्मत नहीं जो वार करे। लगन में मगन रहो। यही है सेफ्टी का साधन।

2. बाप के समीप रतनों की निशानी

बाप के समीप रहने वालों के ऊपर बाप के सत के संग का रंग चढ़ा हुआ होगा। सत के संग का रंग है रूहानियत। तो समीप रतन सदा रूहानी स्थिति में स्थित होंगे। शरीर में रहते हुए न्यारे, रूहानियत में स्थित रहेंगे। शरीर को देखते हुए भी न देखें और आत्मा जो न दिखाई देने वाली चीज़ है। वह प्रत्यक्ष दिखाई दे यही कमाल है। रूहानी मस्ती में रहने वाले ही बाप को साथी बना सकते , क्योंकि बाप रूह है।

3. पुरानी दुनिया के सर्व आकर्षणों से परे होने की सहज युक्ति

सदैव नशे में रहो कि हम अविनाशी खज़ाने के मालिक हैं। जो बाप का खज़ाना ज्ञान, सुख शान्ति, आनन्द है. वह सर्व गुण हमारे हैं। बच्चा बाप की प्रोपर्टा (Property) का स्वत: ही मालिक होता है। अधिकारी आत्मा को अपने अधिकार का नशा रहता है, नशे में सब भूल जाता है ना। कोई स्मृति नहीं होती, एक ही स्मृति रहे बाप और मैं - इसी स्मृति से पुरानी दुनिया के आकर्षण से ऑटोमेटिकली परे हो जायेंगे। नशे में रहने वाले के सामने सदा निशाना भी स्पष्ट होगा। निशाना है फरिश्तेपन का और देवतापन का।

4. एक सेकेण्ड का वन्डरफुल खेल जिससे पास विद् ऑनर बन जायें

एक सेकेण्ड का खेल है अभी-अभी शरीर में आना और अभी-अभी शरीर से अव्यक्त स्थिति में स्थित हो जाना। इस सेकेण्ड के खेल का अभ्यास है, जब चाहो जैसे चाहो उसी स्थिति में स्थित रह सको। अन्तिम पेपर सेकेण्ड का ही होगा जो इस सेकेण्ड के पेपर में पास हुआ वही पास विद् ऑनर होगा। अगर एक सेकेण्ड की हलचल में आया तो फेल, अचल रहा तो पास। ऐसी कन्ट्रोलिंग पावर (Controlling Power) है। अभी ऐसा अभ्यास तीव्र रूप का होना चाहए। जितना हंगामा हो उतना स्वयं की स्थिति अति शान्त। जैसे सागर बाहर आवाज़ सम्पन्न होता अन्दर बिल्कुल शान्त, ऐसा अभ्यास चाहिए। कन्ट्रोलिंग पावर वाले ही विश्व को कन्ट्रोल कर सकते हैं। जो स्वयं को नहीं कर सकते वह विश्व का राज्य कैसे करेंगे। समेटने की शक्ति चाहिए। एक सेकेण्ड में विस्तार से सार में चले जायें। और एक सेकेण्ड में सार से विस्तार में आ जायें यही है वन्डरफुल खेल।

 

5. अतिन्द्रीय सुख के झूले में झूलते रहो

आपको सभी आत्मायें सुख में झूलता देख दु:खी से सुखी बन जायें। आपके नयन, मुख चेहरा सब सुख दें, ऐसा सुखदायी बनें। ऐसा सुखदाई जो बनता उसे संकल्प में भी दु:ख की लहर नहीं आ सकती। अच्छा।

इस मुरली की विशेष बातें

1. जो जितना हल्का होता उतना अथक होता। किसी भी प्रकार का बोझ थकाता है।

2. मधुबन विश्व के आगे स्टेज है, स्टेज पर जो एक्टर होता है उसका हर एक्ट पर कितना अटेन्शन रहता है। मधुबन में आना अर्थात् कमाई की खान इकठ्ठा करना।

3. तपस्वी की तपस्या सिर्फ बैठने के समय नहीं, तपस्या अर्थात् लगन, चलते-फिरते भोजन करते भी लगन।

4. नॉलेज की शक्ति के आधार पर परिस्थिति जो पहाड़ के मुआिफक है वह भी राई अनुभव होगी। अर्थात् कुछ नहीं, क्योंकि नथिंग-न्यू।  

 

 

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QUIZ QUESTIONS

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 प्रश्न 1 :- बापदादा हम अनुभवीमूर्त सर्वप्राप्ति सम्पन्न आत्माओ को क्या नही भूलने का डायरेक्शन दे रहे है ?

 प्रश्न 2 :- किस सब्जेक्ट में परीक्षा पास कर चांसलर बनेंगे ? इस प्रति बापदादा की समझानी क्या है ?

 प्रश्न 3 :- क्यों, क्या की क्यू को समाप्त करने की सहज विधि और अष्ट रत्नों को विशेषता प्रति बापदादा के महावाक्य क्या है ?

 प्रश्न 4 :- सेफ्टी का साधन, बाप समीप रत्नों की निशानी और सर्व आकर्षणों से परे रहने की युक्ति प्रति बापदादा के महावाक्य क्या है ?

 प्रश्न 5 :- एक सेकंड के वंडरफुल खेल प्रति बापदादा की समझानी क्या है ?

  

    FILL IN THE BLANKS:-    

( स्थिति, सुख, कम्पलीट, रहमदिल, खज़ाना, अभ्यास, सुखदायी, भाषा, महादानी, सम्पति, कंट्रोलिंग, समय, समर्पण, अतिन्द्रीय, कंप्लेन )

 

 1   बाप ने जिस कार्य के लिए _____ और _____ दिया है अगर उसके बदले स्वयं प्रति समय और _____ लगाते हो तो यह भी अमानत में खयानत होती है।

 2  जैसे बाप के आगे स्वयं को _____ किया वैसे अब अपना समय और सर्व प्राप्तियाँ, ज्ञान, गुण शक्तियाँ विश्व की सेवा अर्थ समर्पण करो। भक्तों की पुकार सुनो। _____ बनो, _____ बन महान पुण्यआत्मा का पार्ट बजाओ।

 3  अब कोई _____ नहीं करना। समय के हिसाब से हरेक को _____ होना है। कम्पलीट आत्मा कभी कम्पलेन नहीं करती है। हो ही जाता, होता ही है, यह _____ नहीं बोलती।

 4  _____ सुख के झूले में झूलते रहो आपको सभी आत्मायें _____ में झूलता देख दु:खी से सुखी बन जायें। आपके नयन, मुख चेहरा सब सुख दें, ऐसा _____ बनें। ऐसा सुखदाई जो बनता उसे संकल्प में भी दु:ख की लहर नहीं आ सकती।

 5  अभी _____ पॉवर का एक सेकंड का अभ्यास तीव्र रूप का होना चाहए। जितना हंगामा हो उतना स्वयं की _____ अति शान्त। जैसे सागर बाहर आवाज़ सम्पन्न होता अन्दर बिल्कुल शान्त, ऐसा _____ चाहिए।

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-

 

 1  :- क्यू को समाप्त करो तो परिवर्तन का समय भी समाप्त हो जाएगा।

 2  :- तपस्वी की तपस्या सिर्फ बैठने के समय नहीं, तपस्या अर्थात् लगन, चलते-फिरते भोजन करते भी लगन।

 3  :- विज्ञान की शक्ति के आधार पर परिस्थिति जो पहाड़ के मुऑफिक है वह भी राई अनुभव होगी।

 4  :- नशे में रहने वाले के सामने सदा निशाना भी स्पष्ट होगा। निशाना है सन्यास का और धर्मात्मा का।

 5   :- बच्चा बाप की प्रोपर्टी का स्वत: ही मालिक होता है।

 

 

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QUIZ ANSWERS

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 प्रश्न 1 :- बापदादा हम अनुभवीमूर्त सर्वप्राप्ति सम्पन्न आत्माओ को क्या नही भूलने का डायरेक्शन दे रहे है ?

उत्तर 1 :- बापदादा समझाते है कि डायरेक्ट बाप का बच्चा बनना बहुत बड़ी लाटरी (Lottery) है। एक सेकेण्ड में नाम संस्कार शूद्र से ब्राह्मण हो जाता है। संसार बदल जाता- संस्कार बदल जाते, दृष्टि, वृत्ति, स्मृति सब बदल जाता एक सेकेण्ड के खेल में। लेकिन आप अपना ऐसा श्रेष्ठ भाग्य सेकेण्ड भूल जाते हो। दुनिया वाले अब तक नहीं भूले हैं। आप आत्माएँ चक्कर लगाते बदल भी गईं लेकिन दुनिया वाले नहीं भूले। अभी भी आप सबका भाग्य वर्णन करते इतने खुश होते हैं- समझते हैं भगवान ही मिल गया। इसलिए -

          अपने श्रेष्ठ भाग्य को जानते हुए, वर्णन करते हुए अनजान नहीं बनो। एक बार भी मन से, सच्चे दिल से अपने को बाप का बच्चा निश्चय किया उस एक सेकेण्ड की महिमा और प्राप्ति बहुत बड़ी है।

           जब दुनिया वाले आप को नहीं भूले हैं, फिर आप तो स्वयं अनुभवी मूर्त्त, सर्व प्राप्ति करने वाली आत्मायें हो, फिर आप को भी अपना भाग्य भूलना नही चाहिए ।

 

 प्रश्न 2 :- किस सब्जेक्ट में परीक्षा पास कर चांसलर बनेंगे ? इस प्रति बापदादा की समझानी क्या है ?

 उत्तर 2 :- बापदादा समझाते है कि जैसे बाप के आगे स्वयं को समर्पण किया वैसे अब अपना समय और सर्व प्राप्तियाँ, ज्ञान, गुण और शक्तियाँ विश्व की सेवा अर्थ समर्पण करो। जो संकल्प उठता है तो चैक करो कि विश्व सेवा प्रति है। इस संबंध में बाबा आगे समझाते है कि -

          सेवा प्रति अर्पण होने से स्वयं सम्पन्न सहज हो जायेंगे। जैसे अग्नि के अन्दर हर वस्तु का नाम रूप बदल जाता है वैसे परीक्षा का नाम रूप बदल परीक्षा प्राप्ति का रूप बन जावेगी। माया शब्द से घबरायेंगे नहीं, सदा विजयी बनने की खुशी में नाचते रहेंगे।

          हर सेकेण्ड और संकल्प को सेवा प्रति समझने से, इस कार्य में बिज़ी रहने से परीक्षाओं को पास ऐसे करेंगे जैसे कुछ है ही नहीं। संकल्प में भी नहीं आवेगा कि यह बात क्या थी और क्या हुआ। स्वयं को समर्पण करने से इस सेवा की लगन में यह छोटे बड़े पेपर्स या परीक्षाएं स्वत: ही समर्पण हो जावेंगी।

          स्वयं सरेण्डर (Surrender) हो जाओ सेवा में तो माया स्वत: ही सरेण्डर हो जावेगी। लेकिन सरेण्डर नहीं होते हो तो माया भी अच्छी तरह से चान्स (अवसर) लेती है। चान्स (Chance) लेने के कारण ब्राह्मणों का भी चान्सलर (Chancellor) बन जाती है। माया को चान्सलर बनने नहीं दो। स्वयं सेवा का चान्स ले चान्सलर बनो।

 

 प्रश्न 3 :- क्यों, क्या की क्यू को समाप्त करने की सहज विधि और अष्ट रत्नों को विशेषता प्रति बापदादा के महावाक्य क्या है ?

उत्तर 3 :- क्यों, क्या की क्यू को समाप्त करने की सहज विधि प्रति बापदादा के महावाक्य है कि -

          सदैव भक्त आत्माओं, भिखारी आत्माओं और प्यासी आत्माओं के सामने अपने को साक्षात् बाप और साक्षात्कार मूर्त्त समझकर चलो।

          समय की इन्तज़ार में नहीं रहो लेकिन तीनों प्रकार की आत्माओं को सम्पन्न बनाने के इन्तज़ाम में रहो। तीनों ही लाइन लम्बी हैं। इस क्यू (पंक्ति) को समाप्त करने में लग जाओ।

          प्यासी आत्माओं की प्यास बुझाओ, भिखारियों को दान दो। भक्तों को भक्ति का फल बाप के मिलन का मार्ग बताओ। इस तीनो प्रकार की क्यू को सम्पन्न करने में बिज़ी रहेंगे तो स्वयं के प्रति क्यों की क्यू समाप्त हो जावेगी।

 अष्टरत्नो की विशेषता प्रति बापदादा ने बताया कि -

          जो अष्ट शक्तियाँ हैं वह हर शक्ति उनके जीवन में प्रैक्टिकल दिखाई देगी।

          हर संकल्प और चलन द्वारा विधि और सिद्धि का मार्ग दर्शन करने वाले होंगे।

          अष्ट शक्तियाँ भी होंगी और परिवार के सामने इष्ट अर्थात् श्रेष्ठ आत्मा, महान आत्मा, वरदानी आत्मा के रूप में होंगे।

 

 प्रश्न 4 :- सेफ्टी का साधन, बाप समीप रत्नों की निशानी और सर्व आकर्षणों से परे रहने की युक्ति प्रति बापदादा के महावाक्य क्या है ?

 उत्तर 4 :- सेफ्टी के साधन प्रति बापदादा के महावाक्य है कि जैसे जब लड़ाई के समय बाम्ब्स गिराते हैं तो जो अण्डरग्राउण्ड हो जाते, उसका असर उन्हें नहीं होता। ऐसे ही जब एक लगन में मगन रहते तो दुनिया के वायब्रेशन से, माया से बचे रहेंगे, सदा सेफ रहेंगे। माया की हिम्मत नहीं जो वार करे। इसलिए जो सदा एक बाप दूसरा न कोई इसी लगन में मगन रहते वह माया के हर प्रकार के वार से बचे रहते हैं। यही है सेफ्टी का साधन।

 समीप रत्नों प्रति बापदादा के महावाक्य है कि -

          बाप के समीप रहने वालों के ऊपर बाप के सत के संग का रंग चढ़ा हुआ होगा।

          सत बाप के संग का रंग है रूहानियत। तो समीप रतन सदा रूहानी स्थिति में स्थित होंगे। शरीर में रहते हुए न्यारे, रूहानियत में स्थित रहेंगे।

          शरीर को देखते हुए भी न देखें और आत्मा जो न दिखाई देने वाली चीज़ है वह प्रत्यक्ष दिखाई दे यही कमाल है। रूहानी मस्ती में रहने वाले ही बाप को साथी बना सकते , क्योंकि बाप रूह है।

 सर्व आकर्षणों से परे रहने की युक्ति प्रति बापदादा के महावाक्य है कि -

          ❶ सदैव नशे में रहो कि हम अविनाशी खज़ाने के मालिक हैं। जो बाप का खज़ाना ज्ञान, सुख शान्ति, आनन्द है. वह सर्व गुण हमारे हैं।

          अधिकारी आत्मा को अपने अधिकार का नशा रहता है, नशे में सब भूल जाता है ना। कोई स्मृति नहीं होती, एक ही स्मृति रहे बाप और मैं - इसी स्मृति से पुरानी दुनिया के आकर्षण से ऑटोमेटिकली परे हो जायेंगे।

 

प्रश्न 5 :- एक सेकंड के वंडरफुल खेल प्रति बापदादा की समझानी क्या है ?

 उत्तर 5 :- एक सेकंड के वंडरफुल खेल प्रति बापदादा की समझानी है कि -

          एक सेकेण्ड का खेल है अभी-अभी शरीर में आना और अभी-अभी शरीर से अव्यक्त स्थिति में स्थित हो जाना। इस सेकेण्ड के खेल के अभ्यास से जब चाहो जैसे चाहो उसी स्थिति में स्थित रह सकते हो।

         अन्तिम पेपर सेकेण्ड का ही होगा जो इस सेकेण्ड के पेपर में पास हुआ वही पास विद् ऑनर होगा। अगर एक सेकेण्ड की हलचल में आया तो फेल, अचल रहा तो पास।

          कन्ट्रोलिंग पावर वाले ही विश्व को कन्ट्रोल कर सकते हैं। जो स्वयं को नहीं कर सकते वह विश्व का राज्य कैसे करेंगे। इसके लिए समेटने की शक्ति चाहिए। एक सेकेण्ड में विस्तार से सार में चले जायें। और एक सेकेण्ड में सार से विस्तार में आ जायें यही है वन्डरफुल खेल।

 

      FILL IN THE BLANKS:-    

( स्थिति, सुख, कम्पलीट, रहमदिल, खज़ाना, अभ्यास, सुखदायी, भाषा, महादानी, सम्पति, कंट्रोलिंग, समय, समर्पण, अतिन्द्रीय, कंप्लेन )

 

 1   बाप ने जिस कार्य के लिए _____ और _____ दिया है अगर उसके बदले स्वयं प्रति समय और _____ लगाते हो तो यह भी अमानत में खयानत होती है।  

    समय  खज़ाना  सम्पति

 

जैसे बाप के आगे स्वयं को _____ किया वैसे अब अपना समय और सर्व प्राप्तियाँ, ज्ञान, गुण शक्तियाँ विश्व की सेवा अर्थ समर्पण करो। भक्तों की पुकार सुनो। _____ बनो, _____ बन महान पुण्यआत्मा का पार्ट बजाओ। 

    समर्पण  रहमदिल  महादानी

 

 3  अब कोई _____ नहीं करना। समय के हिसाब से हरेक को _____ होना है। कम्पलीट आत्मा कभी कम्पलेन नहीं करती है। हो ही जाता, होता ही है, यह _____ नहीं बोलती। 

    कम्पलेन  कम्पलीट  भाषा

 

 4  _____ सुख के झूले में झूलते रहो आपको सभी आत्मायें _____ में झूलता देख दु:खी से सुखी बन जायें। आपके नयन, मुख चेहरा सब सुख दें, ऐसा _____ बनें। ऐसा सुखदाई जो बनता उसे संकल्प में भी दु: की लहर नहीं सकती। 

    अतिन्द्रीय  सुख  सुखदायी

 

 5  अभी _____ पॉवर का एक सेकंड का अभ्यास तीव्र रूप का होना चाहए। जितना हंगामा हो उतना स्वयं की _____ अति शान्त। जैसे सागर बाहर आवाज़ सम्पन्न होता अन्दर बिल्कुल शान्त, ऐसा _____ चाहिए। 

    कंट्रोलिंग  स्थिति  अभ्यास

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:- 】【

 

 1  :- क्यू को समाप्त करो तो परिवर्तन का समय भी समाप्त हो जाएगा।

 

 2  :- तपस्वी की तपस्या सिर्फ बैठने के समय नहीं, तपस्या अर्थात् लगन, चलते-फिरते भोजन करते भी लगन।

 

 3  :- विज्ञान की शक्ति के आधार पर परिस्थिति जो पहाड़ के मुऑफिक है वह भी राई अनुभव होगी।

  नॉलेज की शक्ति के आधार पर परिस्थिति जो पहाड़ के मुऑफिक है वह भी राई अनुभव होगी।

 

 4  :- नशे में रहने वाले के सामने सदा निशाना भी स्पष्ट होगा। निशाना है सन्यास का और धर्मात्मा का।

  नशे में रहने वाले के सामने सदा निशाना भी स्पष्ट होगा। निशाना है फरिश्तेपन का और देवतापन का।

 

 5   :- बच्चा बाप की प्रोपर्टी का स्वत: ही मालिक होता है।