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AVYAKT MURLI

12 / 12 / 78

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12-12-78   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

परोपकारी कैसे बनें?

गुणों के सागरसदा दातासर्वशक्तिवान शिवबाबा बोलेः –

आज रूहानी फुलवाड़ी अर्थात् सदा रूहे गुलाब बच्चों के संगठन को देख बापदादा हरेक बच्चे की विशेषता को देख रहे हैं। तीन प्रकार की विशेषतायें हैं। एक सदा अपनी रूहानियत की स्थिति में रहने वाले अर्थात् सदा खिले हुएदूसरे रूहानियत की स्थिति अनुसार सदाकाल खिले हुए नहीं हैं लेकिन निश्चय स्वरूप होने कारण रूप की सुन्दरता अच्छी है। तीसरे बाप से स्नेह और सम्बन्ध के आधार से आधे खिले हुए होते भी स्नेह और सम्बन्ध की खुशबू समाई हुई है। ऐसे तीनों प्रकार के रूहे गुलाबों की फुलवाड़ी को देखते बाप-दादा सदा खुशबू लेते रहते। अब अपने आप को देखो मैं कौन हूँ। नम्बरवन बननें में जो कुछ कमी रह गई है उसको सम्पन्न कर सम्पूर्ण बनो। क्योंकि सम्पूर्ण बाप के बच्चे भी बाप समान सम्पूर्ण चाहिए। हरेक बच्चे का लक्ष्य भी सम्पूर्ण बनने का है - तो लक्ष्य प्रमाण सर्व लक्षण स्वयं में भरकर सम्पन्न बनो। इसके लिए विशेष धारणा पहले भी सुनाई है - सदा ब्रह्माचारी अर्थात् ब्रह्मचारी और सदा परोपकारी।

परोपकारी की परिभाषा सहज भी है और अति गुह्य भी है। 1. परोपकारी अर्थात् हर समय बाप समान हर आत्मा के गुणमूर्त्त को देखते।2. परोपकारी किसी की भी कमज़ोरी वा अवगुण को देखते अपनी शुभ भावना से सहयोग की कामना से अवगुण को देखते उस आत्मा को भी गुणवान बनाने की शक्ति का दान देंगे। 3. परोपकारी अर्थात् सदा बाप समान स्वयं के खज़ानों को सर्व आत्माओं के प्रति देने वाले दाता रूप होंगे। 4. परोपकारी सदा स्वयं को खज़ानों से सम्पन्न बेगमपुर के बादशाह अनुभव करेंगे। बेगमपुर अर्थात् जहाँ कोई गम नहीं। संकल्प में भी गम के संस्कार अनुभव न हों। 5.परोपकारी अर्थात् सदैव विशेष रूप से अपनी मन्सा अर्थात् संकल्प शक्ति द्वारावाणी की शक्ति द्वाराअपने संग के रंग के द्वारा,सम्बन्ध के स्नेह द्वाराखुशी के अखुट खज़ाने द्वारा अखण्ड दान करता रहेगा। कोई भी आत्मा सम्पर्क में आवे तो खुशी के खज़ाने से सम्पन्न होके जाए। ऐसे अखण्ड दानी होंगे। विशेष समय वा सम्पर्क वाले अर्थात् कोई-कोई आत्माओं के प्रति दानी नहीं लेकिन सर्व के प्रति सदा महादानी होंगे। परोपकारी स्वयं मालामाल होने के कारण किसी भी आत्मा से कुछ लेकर के देने के इच्छुक नहीं होंगे। संकल्प में भी यह नहीं आवेगा कि यह करे तो मैं करूँयह बदले तो मैं बदलूँकुछ वह बदले कुछ मैं बदलूँ। एक बात का परिवर्तन आत्मा का और 10 बातों का परिवर्तन मेरा होगाऐसी-ऐसी भावना रखने वाले को परोपकारी नहीं कहेंगे। महादानी बनने के बजाए सौदा करने वाले सौदागर बन जाते हैं। ‘‘इतना दे तो मैं इतना दूँगाक्या सदा मैं ही झुकता रहूँगामैं ही देता रहूँगाकब तक कहाँ तक करूँगा।’’ यह संकल्प देने वाले के नहीं हो सकते। जब अन्य आत्मा किसी भी कमज़ोरी के वश हैपरवश है,संस्कार के वश हैस्वभाव के वश हैप्रकृति के साधनों के वश है - तो ऐसी परवश आत्मा अर्थात् उस समय की भिखारी आत्माभिखारी अर्थात् शक्तिहीनशक्तियों के खज़ाने से खाली है।

महादानी भिखारी से एक नया पैसा लेने की इच्छा नहीं रख सकते। यह बदले वा यह करे वा यह कुछ सहयोग देकदम आगे बढ़ावेऐसे संकल्प वा ऐसे सहयोग की भावना परवशशक्तिहीनभिखारी आत्मा से क्या रख सकते ! कुछ लेकर के कुछ देना उसको परोपकारी नहीं कहा जाता। 7. परोपकारी अर्थात् भिखारी को मालामाल बनाने वाले - अपकारी के ऊपर उपकार करने वाले। गाली देने वाले को गले लगाने वालेअपने परोपकारी की शुभ भावना सेस्नेह सेशक्ति सेमीठे बोल सेउत्साह उमंग के सहयोग से दिलशिकस्त को शक्तिवान बना दे अर्थात् भिखारी को बादशाह बना दे। 8. परोपकारी त्रिकालदर्शी होने के कारण हर आत्मा के सम्पूर्ण सहयोग को सामने रखते हुएहर आत्मा की कमज़ोरी को परखते हुए उसी कमज़ोरी को स्वयं में धारण नहीं करेंगेवर्णन नहीं करेंगे लेकिन अन्य आत्माओं की कमज़ोरी का काँटा कल्याणकारी स्वरूप से समाप्त कर देंगे। कांटे के बजाए - कांटे को भी फूल बना देंगे। ऐसे परोपकारी सदा सन्तुष्टमणि के समान स्वयं भी सन्तुष्ट होंगे और सर्व को भी सन्तुष्ट करने वाले होंगे। कमाल यह है जो होपलेस में होप पैदा करें। 9.जिसके प्रति सब निराशा दिखायें ऐसे व्यक्ति वा ऐसी स्थिति में सदा के लिए उनकी आशा के दीपक जगा दें। जब आपके जड़ चित्र अभी तक अनेक आत्माओं की अल्पकाल की मनोकामना यें पूर्ण कर रहे हैं - तो चैतन्य रूप में अगर कोई आपके सहयोगी भाई वा बहन परिवार की आत्मायेंबेसमझी वा बालहठ से अल्पकाल की वस्तु को सदाकाल की प्राप्ति समझअल्पकाल का मान-शान-नाम वा अल्पकाल की प्राप्ति की इच्छा रखती हैं तो दूसरे को मान देकर के स्वयं निर्माण बनना यही परोपकार है। यह देना ही सदा के लिए लेना है। जैसे अनजान बच्चा नुकसान वाली चीज़ को भी खिलौना समझता है तो उनको कुछ देकर छुड़ाना होता है - हठ से सदाकाल का नुकसान हो जाता है - ऐसे बेसमझ आत्मायें भी उसी समय अल्पकाल की प्राप्ति को अर्थात् सदा के नुकसानकारी बातों को अपने कल्याण का साधन समझती हैं। ऐसी आत्माओं को ज़बरदस्ती इन बातों से हटाने से कशमकश में आकर उनके पुरूषार्थ की ज़िन्दगी खत्म हो जाती है। इसलिये कुछ देकर के सदा के लिये छुड़ाना ऐसे युक्ति-युक्त चलन से स्वत:ही अल्पकाल की भिखारी आत्मा बेसमझ से समझदार बन जावेगी। स्वयं महसूस करेंगे कि यह अल्पकाल के साधन हैं। ऐसी बेसमझ आत्माओं के ऊपर भी परोपकारी। ऐसे परोपकारी स्वत: ही स्वयं उपकारी हो जाते हैं - देना ही स्वयं प्रति मिलना हो जाता। महादानी ही सर्व अधिकारी स्वत: हो जाते। समझा –परोपकारी की परिभाषा क्या है।

ऐसे परोपकारी ही सर्व आत्माओं द्वारा दिल की आशीर्वाद के अधिकारी बनते हैं। ऐस परोपकारी आत्माओं के ऊपर सदा सर्व आत्माओं द्वारा प्रशंसा के पुष्पों की वर्षा होती है। समझा। अच्छा –

ऐसे बाप समान सदा उपकारीस्वयं और सर्व प्रति शुभ भावनाश्रेष्ठ कामना रखने वालेअखुट खज़ानों के मालिक अखण्ड दानी,दिलशिकस्त को शक्तिशाली बनाने वालेभिखारी को सदाकाल का बादशाह बनाने वालेऐसे श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का याद प्यार और नमस्ते।

दीदी जी से बातचीत

बाप-दादा कोअन्त सो आदि करने वाले ऐसे आलराउन्ड पार्टधारीपरोपकारी ग्रुप चाहिए। जैसे हर विशेष कार्य के अर्थ ग्रुप बनाते हैं ना। तो इस समय ऐसा परोपकारी ग्रुप चाहिए जो देने वाले दाता हो। जैसे राजा दाता होता हैआजकल के राजे लोग नहीं। सम्पन्न राजायें सदा प्रजा को देने वाले होते हैं - अगर प्रजा से लेने वाले हुए तो प्रजा ही राजा हो गई। इसलिये सम्पन्न राजायें कब लेते नहीं - देने वाले होते हैं। सम्पन्न राजाओं का हाथ कभी भी लेने वाला हाथ नहीं होगादेने वाला होगा। स्वर्ग के विश्व महाराजाप्रजा से लेंगे क्याप्रजा भी सम्पन्न तो विश्व महाराजा क्या होगा! तो जैसे भविष्य दाता बनने का पार्ट बजाना हैअभी से ही वही दातापन के संस्कार भरने हैं। किसी से कोई सैलवेशन लेकर के फिर सैलवेशन देवें ऐसा संकल्प में भी न हो। इसको कहा जाता है बेगर टू प्रिंस। स्वयं लेने की इच्छा वाले नहीं। इस अल्पकाल की इच्छा वाले से बेगर। अल्पकाल के साधनों को स्वीकार करने में बेगर - ऐसा बेगर ही सम्पन्नमूर्त्त होंगे। एक तरफ बेगर दूसरे तरफ सम्पन्न। अभी अभी बेगर टू प्रिन्स का पार्ट प्रैक्टिकल में बजाने वाली आत्माओं को कहा जाता है सदा त्यागी और सदा श्रेष्ठ भाग्यशाली। त्याग से सदाकाल का भाग्य स्वत: ही बन जाता है। त्याग किया और तकदीर की लकीर हुई। तो ऐसा परोपकारी ग्रुप जो स्वयं के प्रति इच्छा मात्रम अविद्या हो - अखण्ड दानी हो। जैसे बाप को देखा तो स्वयं का समय भी सेवा में दिया। स्वयं निर्माण और बच्चों को मान दिया। पहले बच्चे - नाम बच्चे का काम अपना - काम के नाम की प्राप्ति का त्याग। नाम में भी परोकारी बने। अपना त्याग कर दूसरे का नाम किया। स्वयं को सदा सेवाधारी रखा यह है परोपकारी - बच्चों को मालिक रखा और स्वयं को सेवाधारी रखा। तो मालिक-पन का मान भी दे दियाशान भी दे दियानाम भी दे दिया। कभी अपना नाम नहीं किया - मेरे बच्चे। तो जैसे बाप ने नाममानशान सबका त्याग कियापरोपकार कियास्वयं का सुख बच्चों के सुख में समझा - बच्चों की विस्मृति कारण दु:ख का अनुभव सो अपना -दु:ख समझा। बच्चों की गलती भी अपनी गलती समझ बच्चों को सदा राइटियस बनाया। इसको कहा जाता है परोपकारी।

आजकल ऐसे ग्रुप की आवश्यकता है। जो दूसरे की कमज़ोरी समाप्त कर शक्ति देते जाएं। ऐसे सब बन जायें तो क्या हो जावेगाआप लोगों का समय बच जावेगा फिर केस और किस्से खत्म हो जायेंगे और सदैव रूहानी स्नेह मिलन होगा। विश्व कल्याण के कार्य में तीव्रगति आ जावेगी। अभी तो कितने प्लैन्स बनाने पड़ते हैं,कई प्लैन्स अर्थात् बारूद बिना कार्य किये भी खत्म हो जाते हैं। जैसे बारूद कब-कब जलता ही नहीं है वहाँ ही खत्म हो जाता है। लेकिन विश्व कल्याण का तीव्रगति में संकल्प किया कि इस समय यह बात होनी चाहिए और चारों तरफ निमित्त मात्र किया और आवाज़ बुलन्द हुआ। जैसे साकार बाप को देखानॉलेज की अथॉरिटी के साथ-साथ नॉलेज द्वारा अनुभूति मूर्त्त की भी अथॉरिटी थे। जिस अथॉरिटी के कारण हर बोल में नॉलेज के साथसाथ अनुभव भी था - तो डबल अथॉरिटी थी - ऐसे ही हर बच्चा डबल अथॉरिटी से बोल बोले तो अनुभव का तीरनॉलेज की अथॉरिटी का तीर सेकेण्ड में प्रभाव डाले। स्वरूप और बोल दोनों अथॉरिटी के हों तब सफलता सहज हो जावेगी - नहीं तो यही कहते नॉलेज तो बड़ी अच्छी हैऊँची हैं - लेकिन धारणा होना मुश्किल हैतो धारणा मूर्त्तधारणा स्वरूप प्रैक्टिकल में दिखाई दे। प्रत्यक्ष प्रमाण को ग्रहण करना सहज हो जाता है तो ऐसा ग्रुप चाहिये जो डबल अथॉरिटी हो - जिसको कहते मस्त फकीर। कोई भी इच्छा न हो। अच्छा। ओमशान्ति।

पार्टियों के साथ मुलाकात –

1. बाप के प्यार का पात्र बनने का सहज साधन - न्यारा बनो -

जैसे कमल का पुष्प सदा न्यारा और सबका प्यारा है वैसे सदा कमल समान न्यारे रहते होप्रवृत्ति में रहतेदुनिया के वातावरण में रहते वातावरण से न्यारे। बाप के प्यार का पात्र वही बनते हैं जो न्यारे होते हैं जितना न्यारे उतना प्यारे। नम्बर बनते हैं न्यारे पन के आधार से। अति न्यारे तो अति प्यारे।

2. अपने पूज्यनीय स्वरूप की स्मृति से आटोमेटिकली सेवा –

सदा अपने कल्प पहले के यादगार को देखते हुएसुनते हुए नशा रहता है कि यह हमारा ही गायन हो रहा हैकिसी भी यादगार स्थान पर जाते यह नशा रहता है कि यह हमारा यादगार है। यही वन्डरफुल बात है जो चैतन्य में अपने जड़ यादगार देख रहे हैं। एक तरफ जड़ चित्र हैं दूसरे तरफ हम गुप्त चैतन्य में हैं। कितने भक्त हमें पुकार रहे हैंपूज्य समझने से भक्तों पर रहम आयेगा। भक्त हैं भिखारी और आप हो सम्पन्न। तो भक्तों को देख तरस आता हैइच्छा उत्पन्न होती है कि भक्तों को भक्ति का फल दिलाने के निमित्त बनेंसेवा का सदा उमंग उत्साह रहता हैसेवा से अनेकों का कल्याण भी होता और भविष्य के लिए भी जमा होता। हर आत्मा को अंचली ज़रूर देनी हैखाली हाथ नहीं भेजना है। अपना पूज्य स्वरूप स्मृति में रखो तो न चाहते भी सदा सेवा में तत्पर रहेंगे।

3. रायल बच्चे अर्थात् लाडले बच्चे की निशानी –

देहभान रूपी मिट्टी से दूर - जो पद्मापद्म भाग्यशाली आत्मायें हैं वह सदा खुशी के झूले में झूलती हैंउनके बुद्धि रूपी पाँव नीचे नहीं आते। जो लाडले सिकीलधे बच्चे होते हैं वह सदा गोदी में रहते हैंनीचे पाँव नहीं रखते - गलीचे पर रखते हैं। आप पद्मापद्म भाग्यशाली सिकीलधे बच्चों का भी बुद्धि रूपी पाँव सदा देहभान या देह की दुनिया की स्मृति से ऊपर रहना चाहिए। जब बाप-दादा ने मिट्टी से ऊपर कर तख्तनशीन बना दिया तो तख्त छोड़कर मिटी में क्यों जाते। देहभान में आना माना मिट्टी में खेलना। संगमयुग चढ़ती कला का युग है,अब गिरने का समय पूरा हुआअब थोड़ा सा समय ऊपर चढ़ने का है इसलिए नीचे क्यों आतेसदा ऊपर रहो। अच्छा - ओमशान्ति।

 

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QUIZ QUESTIONS

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 प्रश्न 1 :- बाबा बच्चों की अलग-अलग विशेषताओं का वर्णन किस प्रकार कर रहे हैं?

 

 प्रश्न 2 :- परोपकार की परिभाषा सहज भी है और अति गुह्य भी है, स्पष्ट कीजिए कैसे?

 

 प्रश्न 3 :- बाबा को आजकल ऐसे किस ग्रुप की आवश्यकता है जो अनेक प्रकार से उद्धार करते हैं?

 

 प्रश्न 4 :- महादानी की विशेषताएं क्या हैं। उन पर प्रकाश डालिए।

 

 प्रश्न 5 :- त्याग करने से अनेक प्राप्तियां होती हैं इस संदर्भ मे बापदादा ने क्या कहा?

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

 

( कमल, भाग्यशाली, खुशी, तख्तनशीन, प्यार, मिट्टी, प्यारा, न्यारा, पात्र, सेवा, बापदादा, कल्याण, जमा, पाव, न्यारे )

 

1           बाप के_______ का _________वही बनते हैं जो ____________ होते हैं जितना न्यारे उतना प्यारे

 

2           _________ से अनेकों का _________भी होता और भविष्य के लिए भी __________ होता।

 

3           जो पदमापदम ________ आत्माएं हैं वह सदा _________ के झूले में झूलते हैं उनकी उनके बुद्धि रूपी ________ नीचे नहीं आते।

 

4           जब ________ मैं मिट्टी से ऊपर कर ________ बना दिया तख्त छोड़कर _________ तो तख्त छोड़ कर मैं क्यों जाते।

 

5           जैसे ________ का पुष्प सदा ________ और सब का _________ है वैसे सदा कमल समान न्यारे रहते हो।

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-

 

1      :- एक तरफ चलचित्र है दूसरी तरफ हम गुप्त चैतन्य में हैं।

 

2      :- हर आत्मा को अंचली बिल्कुल नहीं देनी है, खाली हाथ भेजना है।

 

3      :-  देहभान में आना माना मिट्टी में नहीं खेलना।

 

4      :- यह देना है सदा के लिए लेना है।

 

5      :-  संपन्न राजाओं का हाथ कभी भी लेने वाला हाथ नहीं होगा, देने वाला होगा।

 

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QUIZ ANSWERS

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 प्रश्न 1 :- बाबा बच्चों की अलग-अलग विशेषताओं का वर्णन किस प्रकार कर रहे हैं?

 

 उत्तर 1 :- बाबा बच्चों की अलग अलग विशेषताओं का वर्णन इस प्रकार करते है :-

          तीन प्रकार की विशेषतायें हैं। एक सदा अपनी रूहानियत की स्थिति में रहने वाले अर्थात सदा खिले हुए, दूसरे रूहानियत की स्थिति अनुसार सदा काल खिले हुए नहीं हैं।

          लेकिन निश्चित स्वरूप होने कारण रूप की सुंदरता अच्छी है। तीसरे बाप से स्नेह और संबंध के आधार से आधे खिले हुए होते भी स्नेह और संबंध की खुशबू समाई हुई है।

          ऐसे तीनों प्रकार के रूहे गुलाबों की फुलवारी को देखते बाप-दादा सदा खुशबू लेते रहते।                         अपने आप को देखो मैं कौन हूँ? नंबरवन बनने में जो कुछ कमी रह गई है उसको संपन्न कर संपूर्ण बनो। क्योंकि संपूर्ण बाप के बच्चे भी बाप समान संपूर्ण चाहिए।

 

 प्रश्न 2 :- परोपकार की परिभाषा सहज भी है और अति गुह्य भी है स्पष्ट कीजिए कैसे?

 

 उत्तर 2 :- बापदादा कहते हैं :-

          परोपकारी अर्थात परिभाषा सहज भी है और अति गुह्य भी है। परोपकारी अर्थात हर समय बाप समान हर आत्मा के गुणमूर्त को देखते।

          ❷ परोपकारी किसी की भी कमजोरी व अवगुण को देखते अपनी शुभ भावना से सहयोग की कामना से अवगुण को देखते उस आत्मा को भी गुणवान बनाने की शक्ति का दान देंगे।

          ❸  परोपकारी अर्थात सदा बाप समान स्वयं के खजानों को सर्व आत्माओं के प्रति देने वाले दाता रूप होंगे।

           परोपकारी सदा स्वयं को खजानों से संपन्न बेगमपुर के बादशाह अनुभव करेंगे। बेगमपुर अर्थात जहां कोई गम नहीं। संकल्प में भी गम के संस्कार अनुभव ना हो।

          परोपकारी अर्थात सदैव विशेष रूप से अपनी मनसा अर्थात संकल्प शक्ति द्वारा वाणी की शक्ति द्वारा अपने संघ के रंग के द्वारा संबंध के स्नेह द्वारा खुशी के अखुट खजाने द्वारा अखंड दान करता रहेगा। कोई भी आत्मा संपर्क में आवे तो खुशी के खजाने से संपन्न होके जाएं।

 

 प्रश्न 3 :- बाबा को आजकल ऐसे किस ग्रुप की आवश्यकता है जो अनेक प्रकार से उद्धार करते हैं?

 

 उत्तर 3 :- बापदादा ने कहा :-

          आजकल ऐसे ग्रुप की आवश्यकता है, जो दूसरे की कमजोरी समाप्त कर शक्ति देते जाएं। ऐसे सब बन जायें तो क्या हो जावेगा?

          आप लोगों का समय बच जावेगा फिर केस और क़िस्से खत्म हो जायेंगे और सदैव रूहानी स्नेह मिलन होगा।

          विश्व कल्याण के कार्य में तीव्र गति आ जावेगी।  अभी तो कितने प्लांस बनाने पड़ते हैं, कई प्लांस अर्थात बारूद बिना कार्य किए भी खत्म हो जाते हैं। जैसे बारूद कब-कब जलता ही नहीं है वहां ही खत्म हो जाता है।

          लेकिन विश्वकल्याण का तीव्र गति में संकल्प किया कि इस समय यह बात होनी चाहिए और चारों तरफ निमित्त मात्र किया और आवाज बुलंद हुआ। जैसे साकार बाप को देखा, नॉलेज की अथॉरिटी के साथ-साथ नॉलेज द्वारा अनुभूति मूर्त की भी अथॉरिटी थे। जिस अथॉरिटी के कारण हर बोल में नॉलेज के साथ-साथ अनुभव भी था - तो डबल अथॉरिटी थी-

          ऐसी ही हर बच्चा डबल अथॉरिटी बोल बोले तो अनुभव का तीर, नॉलेज की अथॉरिटी का तीर सेकंड में प्रभाव डालें। स्वरूप और बोल दोनों अथॉरिटी के हो तब सफलता सहज हो जावेगी - नहीं तो यही कहते कॉलेज तो बड़ी अच्छी है, ऊंची है - लेकिन धारणा होना मुश्किल है तो धारणा मूर्त, धारणा स्वरूप प्रैक्टिकल में दिखाई दे।

 

 प्रश्न 4 :- महादानी की विशेषताएं क्या-क्या है उन पर प्रकाश डालिए?

 

 उत्तर 4 :- बापदादा कहते हैं :-

          महादानी भिखारी  से एक नया पैसा लेने की इच्छा नहीं रख सकते। यह बदले वा यह करें यह कुछ सहयोग दे, कदम आगे बढ़ावे, ऐसे संकल्प वा ऐसे सहयोग की भावना परवश, शक्तिहीन, भिखारी आत्मा से क्या रख सकते! कुछ लेकर के कुछ देना उसको परोपकारी नहीं कहा जाता।

          परोपकारी अर्थात भिखारी को मालामाल बनाने वाले -  अपकारी के ऊपर उपकार करने वाले। गाली देने वाले को गले लगाने वाले, अपने परोपकारी के शुभ भावना से, स्नेह से, शक्ति से, मीठे बोल से, उत्साह उमंग के सहयोग से दिलशिकस्त को शक्तिवान बना दे अर्थात भिखारी को बादशाह बना दे।

          परोपकारी त्रिकालदर्शी होने के कारण हर आत्मा के संपूर्ण सहयोग को सामने रखते हुए, हर आत्मा की कमजोरी को परखते हुए उसी कमजोरी को स्वयं को धारण नहीं करेंगे, वर्णन नहीं करेंगे लेकिन अन्य आत्माओं की कमजोरी का कांटा कल्याणकारी स्वरूप से समाप्त कर देंगे।

          कांटे के बजाए -  कांटे को भी फूल बना देंगें। ऐसे परोपकारी सदा संतुष्टमणि के समान स्वयं भी संतुष्ट होंगे और सर्व को भी संतुष्ट करने वाले होंगे। कमाल यह है जो होपलेस में होप पैदा करें।

          जिसके प्रति सब निराशा दिखाये ऐसे व्यक्ति व ऐसी स्थिति में सदा के लिए उनकी आशा के दीपक जगा दें।

 

 प्रश्न 5 :- त्याग करने से अनेक प्राप्तियां होती हैं इसके संदर्भ में बापदादा ने क्या कहा?

 

 उत्तर 5 :- बापदादा ने कहा कि :-

          त्याग से सदा काल का भाग्य स्वतः ही बन जाता है। त्याग किया और तकदीर की लकीर हुई। तो ऐसा परोपकारी ग्रुप जो स्वयं के प्रति इच्छा मात्रम अविद्या हो। अखंड दानी हो।

          जैसे बाप को देखा तो स्वयं का समय भी सेवा में दिया। स्वयं निर्माण और बच्चों को मान दिया। पहले बच्चे - नाम बच्चे का काम अपना - काम के नाम की प्राप्ति का त्याग। नाम में भी परोपकारी बने।

          अपना त्याग कर दूसरे का नाम किया। स्वयं को सदा सेवाधारी रखा यह है परोपकारी - बच्चों को मालिक रखा और स्वयं को सेवादारी रखा।

          तो मालिक - पन का मान भी दे दिया, शान भी दे दिया, नाम भी दे दिया। कभी अपना नाम नहीं किया - मेरे बच्चे। तो जैसे बाप ने नाम, मान, शान सबका त्याग किया परोपकार किया, स्वयं का सुख बच्चों के सुख में समझा - बच्चों की विस्मृति कारण दुःख का अनुभव को अपना - दुःख समझा। बच्चों की गलती भी अपनी गलती समझ बच्चों को सदा राईटियस बनाया। इसको कहा जाता है परोपकारी।

        

       FILL IN THE BLANKS:-    

 ( कमल, भाग्यशाली, खुशी, तख्तनशीन प्यार, मिट्टी, न्यारा, प्यारा, पात्र, सेवा, बापदादा, कल्याण, जमा, पाव, न्यारे )

 

 1   बाप के ________ का ________ वही बनते है जो ________ होते हैं जितना न्यारे उतना प्यारे।

  प्यार / पात्र / न्यारे

 

 2  ________ से अनेकों का ________ भी होता और भविष्य के लिए भी ________ होता।

 सेवा / कल्याण / जमा

 

 3   जो पदमापदम __________ आत्माएं हैं वह सदा _________ के झूले में झूलती हैं, उनके बुद्धि रूपी ________ नीचे नहीं आते।

  भाग्यशाली / खुशी / पावँ

 

  जब _________ ने मिट्टी से ऊपर कर _________ बना दिया तो तख्त छोड़कर ________ में क्यों जाते।

  बापदादा / तख्तनशीन / मिट्टी

 

  जैसे ________ का पुष्प सदा _________ और सबका _________ है वैसे सदा कमल समान न्यारे रहते हो?

  कमल / न्यारा / प्यारा

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:- 】 【】    

 

1      :- एक तरफ चलचित्र है दूसरी तरफ हम गुप्त चैतन्य में हैं।【✔】

 

 2  :- हर आत्मा को अंचली बिल्कुल नहीं देनी है, खाली हाथ भेजना है।

 हर आत्मा को अंचली जरूर देनी है। खाली हाथ नहीं भेजना है।

 

 3  :- देहभान मैं आना माना मिट्टी में नहीं खेलना।

        देहभान में आना माना मिट्टी में खेलना।

 

 4  :-  यह देना ही सदा के लिए लेना है।

 

 5   :- संपन्न राजाओं का हाथ कभी भी लेने वाला हाथ नहीं होगा, देने वाला होगा।।