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AVYAKT MURLI

16 / 01 / 79

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16-01-79   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

तिलक, ताज और तख्तधारी बनने की युक्तियाँ

देह से न्यारे, देही रूप में स्थित रहने वाले प्यारे बच्चों के प्रति बाबा बोले:-

बापदादा सर्व बच्चों के वर्तमान और भविष्य दोनों के अन्तर को देखते, आज बापदादा बच्चों के वर्तमान को देखते हुए हर्षित भी हो रहे थे और साथ-साथ कई बच्चों के विचित्र चलन को देख रहम भी आ रहा था - बाप कितना श्रेष्ठ बनाते हैं और बच्चे अपनी ही थोड़ी सी गफलत करने के कारण वा अलबेलेपन के कारण श्रेष्ठ स्थिति से नीचे आ जाते हैं। आज बापदादा विशेष रूप से बच्चों के भिन्न-भिन्न प्रकार के हंसी के रूप देख रहे थे - ब्राह्मण जन्म होते ही बापदादा संगमयुगी विश्व सेवा की जिम्मेदारी का ताजधारी बनाता। लेकिन आज रमणीक खेल देखा - कोई-कोई तो ताज और तिलकधारी भी थे लेकिन कोई-कोई ताजधारी के बदले किए हुए पिछले वा अबके भी छोटे सो बड़े पाप वा चलते-चलते की हुई अवज्ञाओं की गठरी सिर पर थी। कोई ताजधारी तो कोई सिर पर गठरी लिए हुए थे। उसमें भी नम्बरवार छोटी बड़ी गठरी थी और कोई के सिर पर डबल लाइट के बजाए, अपने ब्राह्मण जीवन के सदा ट्रस्टी स्वरूप के बजाय गृहस्थीपन के भिन्न-भिन्न प्रकार के बोझ की टोकरी भी सिर पर थी। जिसको देख बापदादा को रहम भी आ रहा था - और क्या देखा! कई बच्चे अनेक प्रकार के सहज साधन बाप द्वारा प्राप्त होते हुए भी निरंतर बुद्धि का कनेक्शन जुटा हुआ न होने के कारण सहज को मुश्किल बनाने के कारण, अनेक प्रकार के मुश्किल साधन अपनाने में थके हुए रूप में दिखाई दे रहे थे। सहज मार्ग के बजाए पुरूषार्थ के साधन, हठ के प्रमाण यूज़ कर रहे थे। और क्या देखा!

जैसे सूर्य के आगे बादल आने से सूर्य छिप जाता है ऐसे बार-बार माया के बादलों के कारण कई बच्चे ज्ञान सूर्य से किनारे हो सूर्य को पाने के लिए प्रयत्न करते रहते। कब सन्मुख कब किनारे, इसी खेल में लगे हुए हैं। साथ-साथ बच्चे नटखट होने के कारण बाप के याद की गोदी से निकल माया की धूल में देह अभिमान की स्मृति रूपी मिट्टी में खेलते रहते हैं। ज्ञान रतनों से खेलने के बजाए मिट्टी में खेलते हैं। बाप बार-बार मिट्टी से किनारा कराते लेकिन नटखट संस्कारों के कारण फिर भी मैले बन जाते। कोई-कोई बच्चे अल्पकाल के सुखों के आकर्षणमय वस्तुओं की आकर्षण में आकर उन ही वस्तुओं में इतने बिजी हो जाते जो समय और अविनाशी प्राप्ति उतना समय भूल जाती है। फिर होश में आते हैं - ऐसे अनेक प्रकार के विचित्र रूप बच्चों के देखे। अब अपने आपको देखो मेरा रूप कौनसा है? बापदादा तो हर बच्चे को सदा श्रेष्ठ स्वरूप में देखना चाहते हैं। ताज को, दिलतख्त को छोड़ गठरी क्यों उठाते हो? ताज अच्छा वा टोकरी, गठरी अच्छी लगती हैं! तीनों के फोटो सामने रखो तो कौनसा चित्र पसन्द आवेगा। 63 जन्म यह सब वन्डरफुल खेल खेले - अब संगमयुग पर कौनसा खेल खेलना है। सबसे अच्छे ते अच्छा खेल है बाप और बच्चों के मेले का खेल। बाप द्वारा मिले हुए ज्ञान रतनों से खेला। कहाँ रतन और कहाँ मिट्टी! अब क्या करना है? बचपन के अलबेलेपन के वा नटखट के खेल बहुत समय खेले अब तो वानप्रस्थ में जाने का समय समीप आ रहा है इसलिए अब इन सब बातों की समाप्ति का दृढ़ संकल्प करो - सदा ताज, तख्त और तिलकधारी बनो। इन तीनों का आपस में सम्बन्ध है। तिलक होगा तो ताज तख्त जरूर होगा। अपने श्रेष्ठ भाग्य, श्रेष्ठ प्राप्तियों को बार-बार सामने लाओ - जब सर्व प्राप्तियों को और प्राप्त कराने वाले को सदा सामने रखेंगे तो कभी भी माया से सामना करने में कमजोर नहीं बनेंगे। सिर्फ एक बात याद रखो - सर्व सम्बन्धों से हर कार्य में बापदादा सदा साथ है। साथ छोड़ने के कारण ही यह विचित्र खेल खेलने पड़ते हैं। विश्व की जिम्मेवारी उठाने वाले बाप का साथ होते भी अपने हद की जिम्मेवारी के बोझ की टोकरी क्यों उठाते हो? क्या विश्व का बोझ उठाने वाले आपका यह छोटा सा बोझ नहीं उठा सकते हैं क्या? फिर भी पुराने संस्कार के वश बार-बार बोझ भी उठाते और फिर थक कर चिल्लाते भी हैं कि अब हमको छुड़ाओ। एक तरफ पकड़ते हैं दूसरे तरफ पुकारते हैं - छोड़ो तो छूटे - यह एक सेकेण्ड की हिम्मत अनेक जन्मों के लिए अनेक प्रकार के बोझ से छुड़ा देगी। पहलापहला वायदा बाप से क्या किया - याद है? मेरा तो एक दूसरा न कोई। जब मेरापन ही समाप्त हो गया, एक मेरा रह गया तो फिर हद की जिममेवारियों का मेरापन कहाँ से आया! देह का मेरापन कहाँ से आया। कमजोरियों के संस्कारों का मेरापन कहाँ से आया - स्वयं को ज्ञानी तू आत्मा कहलाते हो - ज्ञान स्वरूप अर्थात् कहना, सोचना और करना समान हो। सदा समर्थ हों - ज्ञानी तू आत्मा का हर कर्म समर्थ बाप समान, संस्कार गुण और कर्तव्य समर्थ बाप के समान हों - तो समर्थ स्टेज पर स्थित होने वाले यह व्यर्थ के विचित्र खेल नहीं खेल सकते। सदा मिलन के खेल में बिज़ी रहते, बाप से मिलन मनाना और औरों को बाप समान बनाना - तो इस वर्ष क्या करेंगे? 78 वर्ष भी बीत गया - आप सब तो 76 में तैयार थे ना। विनाश के साथ स्थापना वाले भी तैयार थे ना - यह अभी का तो एकस्ट्रा टाइम मिला है - किसलिए? स्वयं के प्रति मिला है? इस एकस्ट्रा समय का भी रहस्य है - पीछे आने वाले उल्हना न दें कि हमें बहुत थोड़ा समय मिला - जैसे सौदे के पीछे एकस्ट्रा रूंग (घाता) दी जाती है - वैसे ड्रामा अनुसार यह समय भी सेवा के प्रति अमानत रूप में मिला हुआ है इसी अमानत को बापदादा की श्रेष्ठ मत प्रमाण यूज़ करो - समझा इस वर्ष क्या करना है।

हर समय और संकल्प में स्वयं को विश्व सेवा में इतना बिजी रखो जो यह सब व्यर्थ के खेल स्वत: समाप्त हो जाएं - यह रिजल्ट बापदादा देखने चाहते हैं।

अच्छा

सदा संकल्प और सेकेण्ड के भी ट्रस्टी समझने वाले, ‘एक बाप मेरा और नहीं कोई मेरा ऐसे बेहद के समर्थ संकल्प वाले, सदा विश्व कल्याण के संकल्प में बिजी रहने वाले, बाप समान समर्थ संस्कार वाले, व्यर्थ को बाप के साथ से सदा के लिए विदाई देने वाले, ऐसे ज्ञानी तू आत्मा बच्चों को बाप की बार-बार बधाई हो - साथसाथ ऐसे तख्तनशीन बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।

पार्टियों से मुलाकात (मद्रास जोन)

सर्व का आकर्षण बाप की तरफ आकर्षित कराने का साधन - चमकता हुआ दिव्य सितारा :-

आपका दिव्य सितारा सदा चमकता दिखाई दे तो सितारे की चमक सर्व को अपने तरफ स्वत: ही आकर्षण करेगी। कोई भी लाइट की वस्तु चलती हुई आत्माओं को अपने तरफ आकर्षित जरूर करती है। यह तो अविनाशी सितारा है, तो चमकते हुए सितारों के तरफ सर्व की आकर्षण स्वत: होगी। सितारों की तरफ आकर्षित होना अर्थात् बाप के तरफ आकर्षित होना तो सदा अनुभव करते हो कि हमारा आत्मिक स्वरूप का सितारा चमक रहा है! सदा चमकता है वा कभी-कभी चमकता है। जब बाप द्वारा, नॉलेज द्वारा सितारा चमक गया तो अभी बुझ तो सकता नहीं लेकिन चम्क की परसेन्टेज कम और ज्यादा हो सकती है, उसका कारण क्या? अटेन्शन की कमी। जैसे दीपक में अगर सदा घृत डालते रहें। तो वह एकरस जलता रहेगा, घृत कम हुआ तो हलचल करेगा। ऐसे अटेन्शन कम हो जाता है तो परसेन्टेज भी चमक की कम हो जाती। इसलिए बापदादा की श्रेष्ठ मत है रोज अमृतवेले सारे दिन के लिए अटेन्शन रखो। रोज अमृतवेले अपनी दिनचर्या को सैट करो। अगर कोई भी प्रोग्राम सैट नहीं होता है तो उसकी रिजल्ट क्या निकलती? सफल नहीं होता, तो यहाँ भी अगर रोज अपनी दिनचर्या सैट नहीं करेंगे तो सफलता मूर्त अनुभव नहीं कर सकेंगे।

अटेन्शन रहता भी है, लेकिन और अन्डर लाइन करो। वहां अटेन्शन होगा वहाँ किसी भी प्रकार का टेन्शन नहीं हो सकता। जैसे रात होगा तो दिन नहीं हो सकता, टेन्शन है रात, अटेन्शन हैं दिन। तो दिन और रात दोनों इकट्ठे नहीं रह सकते। अगर किसी भी प्रकार का टेन्शन है तो सिद्ध है अटेन्शन नहीं है। साधारण अटेन्शन और सम्पूर्ण अटेन्शन में भी अन्तर है। सम्पूर्ण अटेन्शन अर्थात् जो बाप के गुण वा शक्तियाँ हैं वह अपने में हो। बाप के बच्चे बने तो उसका प्रूफ भी तो चाहिए ना। साधारण अटेन्शन अर्थात् हम हैं ही बाप के बच्चे। अगर इतने श्रेष्ठ बाप के बच्चे और श्रेष्ठता न हो तो कौन मानेगा कि यह श्रेष्ठ बाप के बच्चे हैं। तो जो बाप में विशेषता वही बच्चों में दिखाई दे - इसको कहा जाता है तीव्र पुरुषार्थी। तीव्र पुरुषार्थी अर्थात् सोचना और करना समान। प्लैन और प्रैक्टिकल समान।

2. आपका स्वधर्म है याद और कर्त्तव्य है सेवा :- सभी सदा याद और सेवा इसी में तत्पर रहते हो? जो सदा याद और सेवा में लगे हुए हैं उन्हों से माया भी सदा के लिए नमस्कार करके किनारा कर लेती है। माया भी जानती है कि यह सदा बिज़ी रहने वाले हैं तो डिस्टर्ब नहीं करती। खाली रहने वालों को डिस्टर्ब करती हैं। तो सदा बिज़ी रहो फिर माया आ नहीं सकती। याद से अपना भविष्य बनाते, सेवा से औरों का भी और अपना भी। तो याद ही आपका स्वधर्म है और सेवा करना ही आपका कर्त्तव्य है।

3. चढ़ती कला की निशानी - सम्पूर्ण मंजिल समीप दिखाई दे :- सदा हर कर्म में चढ़ती कला का अनुभव करते हैं? कदम आगे बढ़ाया अर्थात् चढ़ती कला हुई। हर कदम में चढ़ती कला होने से सम्पूर्ण स्टेज तक बहुत जल्दी पहुँच जायेंगे। चढ़ती कला वाले को सदा अपनी सम्पूर्ण स्टेज अर्थात् मंजिल स्पष्ट दिखाई देगी। जितना जिस वस्तु के नज़दीक जाते हैं उतना ही वह वस्तु स्पष्ट दिखाई देती है, स्पष्टता ही समीपता की निशानी है। अभी समय है तीव्र पुरूषार्थ का, दौड़ लगाने का समय अब आ गया, अब हाई जम्प लगाओ। समय कम है और मंजिल ऊंची है। हाई जम्प देने के लिए डबल लाइट चाहिए। बिना डबल लाइट बने जम्प नहीं दे सकते।

4. हर कर्म को श्रेष्ठ बनाने का साधन - फालो फादर :- जैसे साकार बाप के ऊपर इतनी जिम्मेवारी होते हुए भी सदा डबल लाइट देखी - उसके अन्तर में तो आपके पास भी तो कुछ भी जिममेवारी नहीं है, अपने को सदा निमित्त समझकर चलो, जिम्मेवार बापदादा हैं आप निमित्त हैं, निमित्त समझकर चलने से डबल लाइट हो जायेंगे। बाप भी इतनी बड़ी जवाबदारी संभालते हुए निमित्त समझकर चले, तो फालो फादर। हर कर्म करने के पहले चैक करो कि फालो फादर हैं? इससे हर कर्म अति श्रेष्ठ होगा। श्रेष्ठ कर्म की प्रालब्ध आटोमेटिकली श्रेष्ठ होगी। बाप को कापी करो तो भी बाप समान बन जायेंगे। समान बनने वाले ही समीप रतन बनते हैं।

5. देह से न्यारे देही रूप में स्थित रहने वाले ही बाप के प्यारे :- सभी अपने को देह से न्यारे और बाप के प्यारे अनुभव करते हो? जितना देह से न्यारे बनते जायेंगे उतना ही बाप के प्यारे बनेंगे। बाप प्यारा तब लगता है जब देह से न्यारे देही रूप में स्थित होते। तो सदा इसी अभ्यास में रहते हो? जैसे पाण्डवों की गुफायें दिखाते हैं ना, तो गुफायें कोई और नहीं हैं, लेकिन पाण्डव इन्हीं गुफाओं में रहते हैं। इसी को ही कहा जाता है अन्तर्मुखता। जैसे गुफा के अन्दर रहने से बाहर के वातावरण से परे रहते हैं ऐसे अन्तुर्मुखी अर्थात् सदा देह से न्यारे और बाप के प्यारे रहने के अभ्यास की गुफा में रहने वाले दुनिया के वातावरण से परे होते, वह वातावरण के प्रभाव में नहीं आ सकते। जो बाप का प्यारा होगा वह न्यारा जरूर होगा-क्योकि जिससे प्यार है वह जैसा होगा वैसा ही बनेगा। बाप सदा न्यारा है तो जो बाप का प्यारा होगा वह भी सदा न्यारा होगा। तो सदा न्यारे रहो यही अभ्यास चलता रहे इसके सिवाए नीचे नहीं आओ।

नैराबी पार्टी से मुलाकात :- सभी अपने को कोटों में कोई और कोई में भी कोई ऐसी महान आत्मा समझते हो? जितना अपने को महान अर्थात् श्रेष्ठ आत्मा समझेंगे उतना हर कर्म स्वत:ही श्रेष्ठ होगा। क्योंकि जैसी स्मृति वैसी स्थिति स्वत: ही होती है। जैसे अनुभवी हो कि आधा कल्प देह की स्मृति में रहे तो स्थिति क्या रही? अल्पकाल का सुख और अल्पकाल का दुख। तो सदा आत्मिक स्वरूप की जब स्मृति रहेगी तो सदाकाल के सुख और शान्ति की स्थिति बन जायेगी। ऐसी स्मृति रहती है? अच्छा - आपका आक्यूपेशन है पतित पावनी - इस स्मृति से सहज मायाजीत बनेंगे :- आप सब सदा सागर से सम्बन्ध रखने वाली ज्ञान नदियाँ हो जिसमें अनेक आत्मायें ज्ञान स्नान कर पावन बनती हैं तो पावन बनाने की सेवा में सदा तत्पर रहते हो? नदियों का महत्व तब है जब सागर से सम्बन्ध है, अगर सागर से सम्बन्ध नहीं तो नदी भी नाला बन जाती। तो आप चैतन्य ज्ञान नदियों का ही गायन है पतित पावनी, इसी सेवा में सदा बिज़ी रहो। माया का वार होना अर्थात् खाली होना। बिजी रहना अर्थात् माया के वार से बच जाना। तो सदा बिजी रहते हो या बहुत समय की साथी के ऊपर रहम आता है जो उसे भी चान्स दे देते हों! जिसका जो आक्यूपेशन होता वह कभी भूलता नहीं। आपका आक्यूपेशन ही है पतित पावनी तो अपना आक्यूपेशन न भूलना है, न छोड़ना है तो मायाजीत बन जायेंगे। सदा के मायाजीत ही बाप के दिलतख्तनशीन बनते हैं। हार खाना अर्थात् तख्त से नीचे आना। अगर कोई हार खाले तो तख्त थोड़ा ही मिलेगा। तो यहाँ भी माया से हार खाना अर्थात् तख्त से नीचे आना।

टीचर्स का आक्यूपेशन है सदा सन्तुष्टता की खान रहना और सर्व को सन्तुष्ट बनाना :- टीचर्स तो हैं ही सदा सन्तुष्ट। टीचर्स अर्थात् सर्व को संतुष्ट बनाने की सेवा पर उपस्थित। जितना स्वयं सम्पन्न होंगे उतना औरों को भी बना सकेंगे। टीचर्स की विशेषता ही है हर बात में सन्तुष्ट। सन्तुष्ट  भी तब रह सकेंगे जब सदा बाप के गुणों और कर्त्तव्य में समान बनेंगे। सदा यह चैक करो कि जो बाप का गुण वही मेरा है, जो बाप का कर्त्तव्य वही मेरा कर्त्तव्य है। ऐसे चैक कर चलने वाले सदा सन्तुष्ट रहते भी हैं और सर्व को भी बनाते हैं। टीचर्स अर्थात् सन्तुष्टता की खान। सदा सम्पन्न, खान के समान अखुट हो। यही टीचर्स का अक्यूपेशन है।

विदाई के समय :- कितनी 18 जनवरी आ गई? 10 वर्ष समाप्त हो गए उसका रिजल्ट क्या? वैसे भी 10 वर्ष तो कोई कम नहीं हैं। साकार के 42-43 वर्ष और अव्यक्त के 10 वर्ष, तो 50 से ऊपर चले गये ना। तो उसकी रिजल्ट क्या? रिजल्ट चाहिए - परिवर्तन। जो अगले वर्ष की बातें हैं वह इस वर्ष में नहीं होनी चाहिए। तो नवीनता क्या आई? जैसे मधुबन में जो आते हैं उन्हों से पूछते हैं क्या छोड़ा क्या पाया। तो इस वर्ष की रिजल्ट में भी देखो क्या-क्या छोड़ा क्या पाया। क्या-क्या वरदान पाये, क्या-क्या व्यर्थ छोड़ा। दोनों की रिजल्ट देखो। न्यू इयर मनाते हैं, जब वर्ष नया हुआ, नया वर्ष अर्थात् नवीनता भरा हुआ। इसकी आपस में रिजल्ट निकालना। टोटल मेजोरिटी भी कहाँ तक अपने में परिवर्तन समझते हैं। इसलिए बाप-दादा ने पहले भी कहा कि रिजल्ट लेने के लिए आयेंगे तो वह रिजल्ट क्या हुई? सेवा वृद्धि को पा रही है, सेवाधारी आत्मायें स्वयं के पुरूषार्थ में क्या वृद्धि पा रही हैं, दोनों का बैलेन्स जब समान होगा तब समाप्ति होगी। सभी सदा संगमयुग के श्रेष्ठ भाग्य को सुमिरण कर हार्षित् रहते हो? संगमयुग का भाग्य और कोई भी युग में पा नहीं सकते। संगमयुग का एक-एक सेकेण्ड अति भाग्यशाली है। एक सेकेण्ड कई जन्मों का भागय बनाने के निमित्त बनता है। तो ऐसे श्रेष्ठ भाग्य को सदा याद रखते, अन्दर में भाग्य को देख करके सदा खुशी में नाचते रहो। वाह मेरा भाग्य - ऐसे अन्दर की खुशी बाहर दिखाई देती है दूसरे भी देखने वाले अनुभव करें कि इन्हों को कुछ मिला है, कुछ पाया है। ऐसे सदा खुश रहो। सदा अटेन्शन रखो तो माया खुशी का खज़ाना छीन नहीं सकती। अच्छा - ओम् शान्ति।

 

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QUIZ QUESTIONS

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 प्रश्न 1 :- बापदादा विशेष रूप से बच्चों के भिन्न-भिन्न प्रकार के कौनसे रूप देख रहे थे ?

 

 प्रश्न 2 :- सर्व का आकर्षण बाप की तरफ आकर्षित कराने का मुख्य साधन क्या है?

 

 प्रश्न 3 :- हर कर्म को श्रेष्ठ बनाने का साधन क्या है?

 

 प्रश्न 4 :- देह से न्यारे देही रूप में स्थित रहने वाले ही बाप के प्यारे बनने के लिए किन-किन बातों पर अटेन्शन देना आवश्यक है?

 

 प्रश्न 5 :- महान आत्मा समझने से किस प्रकार की स्मृतियाँ रहती हैं?

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

 

( हिम्मत, बोझ, प्राप्तियों, सामना, कमजोर, समान, कर्त्तव्य, जिममेवारियों, मेरापन, नवीनता, रिजल्ट )

 

1         छोड़ो तो छूटे - यह एक सेकेण्ड की _______ अनेक जन्मों के लिए अनेक प्रकार के ________ से छुड़ा देगी।

 

2         जब सर्व ________ को और प्राप्त कराने वाले को सदा सामने रखेंगे तो कभी भी माया से _______ करने में _______ नहीं बनेंगे।

 

3         जब मेरापन ही समाप्त हो गया, एक मेरा रह गया तो फिर हद की __________ का मेरापन कहाँ से आया! देह का ________ कहाँ से आया।

 

4         सन्तुष्ट भी तब रह सकेंगे जब सदा बाप के गुणों और _______ में _______ बनेंगे।

 

5         न्यू इयर मनाते हैं, जब वर्ष नया हुआ, नया वर्ष अर्थात् ________ भरा हुआ। इसकी आपस में _________ निकालना।

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-

 

1      :- सदा यह चैक करो कि जो बाप का गुण वही मेरा है, जो बाप का कर्त्तव्य वही मेरा कर्त्तव्य है। ऐसे चैक कर चलने वाले सदा सन्तुष्ट रहते भी हैं और सर्व को भी बनाते हैं।

 

2      :- जैसे मधुबन में जो आते हैं उन्हों से पूछते हैं क्या छोड़ा क्या पाया। तो इस वर्ष की रिजल्ट में भी देखो क्या-क्या छोड़ा क्या पाया। क्या-क्या वरदान पाये, क्या-क्या व्यर्थ छोड़ा। दोनों की रिजल्ट देखो।

 

3      :- संगमयुग का एक-एक सेकेण्ड अति भाग्यशाली है। एक सेकेण्ड कई जन्मों का भागय बनाने के निमित्त बनता है। तो ऐसे श्रेष्ठ भाग्य को सदा याद रखते, अन्दर में भाग्य कोय देख करके सदा खुशी में नाचते रहो।

 

4      :- वाह मेरा भाग्य - ऐसे अन्दर की खुशी बाहर दिखाई देती है दूसरे भी देखने वाले अनुभव करें कि इन्हों को कुछ मिला है, कुछ पाया है। ऐसे सदा खुश रहो। सदा अटेन्शन रखो तो माया खुशी का खज़ाना छीन नहीं सकती।

 

5      :- टीचर्स का आक्यूपेशन है सदा सन्तुष्टता की खान रहना और सर्व को सन्तुष्ट बनाना :- टीचर्स तो हैं ही सदा सन्तुष्ट। टीचर्स अर्थात् सर्व को साधारण बनाने की सेवा पर उपस्थित।

 

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QUIZ ANSWERS

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 प्रश्न 1 :- बापदादा विशेष रूप से बच्चों के भिन्न-भिन्न प्रकार के कौनसे रूप देख रहे थे ?

 

 उत्तर 1 :-  बापदादा ने विशेष बच्चों के भिन्न भिन्न रूप देखते हुए कहा :-

          ❶  ब्राह्मण जन्म होते ही बापदादा संगमयुगी विश्व सेवा की जिम्मेदारी का ताजधारी बनाता। लेकिन आज रमणीक खेल देखा - कोई-कोई तो ताज और तिलकधारी भी थे लेकिन कोई-कोई ताजधारी के बदले किए हुए पिछले वा अबके भी छोटे सो बड़े पाप वा चलते-चलते की हुई अवज्ञाओं की गठरी सिर पर थी। कोई ताजधारी तो कोई सिर पर गठरी लिए हुए थे। उसमें भी नम्बरवार छोटी बड़ी गठरी थी और कोई के सिर पर डबल लाइट के बजाए, अपने ब्राह्मण जीवन के सदा ट्रस्टी स्वरूप के बजाय गृहस्थीपन के भिन्न-भिन्न प्रकार के बोझ की टोकरी भी सिर पर थी।

          ❷ कई बच्चे अनेक प्रकार के सहज साधन बाप द्वारा प्राप्त होते हुए भी निरंतर बुद्धि का कनेक्शन जुटा हुआ न होने के कारण सहज को मुश्किल बनाने के कारण, अनेक प्रकार के मुश्किल साधन अपनाने में थके हुए रूप में दिखाई दे रहे थे। सहज मार्ग के बजाए पुरूषार्थ के साधन, हठ के प्रमाण यूज़ कर रहे थे।

          जैसे सूर्य के आगे बादल आने से सूर्य छिप जाता है ऐसे बार-बार माया के बादलों के कारण कई बच्चे ज्ञान सूर्य से किनारे हो सूर्य को पाने के लिए प्रयत्न करते रहते। कब सन्मुख कब किनारे, इसी खेल में लगे हुए हैं। साथ-साथ बच्चे नटखट होने के कारण बाप के याद की गोदी से निकल माया की धूल में देह अभिमान की स्मृति रूपी मिट्टी में खेलते रहते हैं। ज्ञान रतनों से खेलने के बजाए मिट्टी में खेलते हैं।

 

 प्रश्न 2 :- सर्व का आकर्षण बाप की तरफ आकर्षित कराने का मुख्य साधन क्या है?

 

 उत्तर 2 :-  बाबा ने बताया :-

          आपका दिव्य सितारा सदा चमकता दिखाई दे तो सितारे की चमक सर्व को अपने तरफ स्वत: ही आकर्षण करेगी। कोई भी लाइट की वस्तु चलती हुई आत्माओं को अपने तरफ आकर्षित जरूर करती है। यह तो अविनाशी सितारा है, तो चमकते हुए सितारों के तरफ सर्व की आकर्षण स्वत: होगी। सितारों की तरफ आकर्षित होना अर्थात् बाप के तरफ आकर्षित होना तो सदा अनुभव करते हो कि हमारा आत्मिक स्वरूप का सितारा चमक रहा है! सदा चमकता है वा कभी-कभी चमकता है।

          सफल नहीं होता, तो यहाँ भी अगर रोज अपनी दिनचर्या सैट नहीं करेंगे तो सफलता मूर्त अनुभव नहीं कर सकेंगे। अटेन्शन रहता भी है, लेकिन और अन्डर लाइन करो। वहां अटेन्शन होगा वहाँ किसी भी प्रकार का टेन्शन नहीं हो सकता। जैसे रात होगा तो दिन नहीं हो सकता, टेन्शन है रात, अटेन्शन हैं दिन। तो दिन और रात दोनों इकट्ठे नहीं रह सकते। अगर किसी भी प्रकार का टेन्शन है तो सिद्ध है अटेन्शन नहीं है। साधारण अटेन्शन और सम्पूर्ण अटेन्शन में भी अन्तर है। सम्पूर्ण अटेन्शन अर्थात् जो बाप के गुण वा शक्तियाँ हैं वह अपने में हो।

          बाप के बच्चे बने तो उसका प्रूफ भी तो चाहिए ना। साधारण अटेन्शन अर्थात् हम हैं ही बाप के बच्चे। अगर इतने श्रेष्ठ बाप के बच्चे और श्रेष्ठता न हो तो कौन मानेगा कि यह श्रेष्ठ बाप के बच्चे हैं। तो जो बाप में विशेषता वही बच्चों में दिखाई दे - इसको कहा जाता है तीव्र पुरुषार्थी। तीव्र पुरुषार्थी अर्थात् सोचना और करना समान। प्लैन और प्रैक्टिकल समान।

 

 प्रश्न 3 :- हर कर्म को श्रेष्ठ बनाने का साधन क्या है?

 

 उत्तर 3 :-  हर कर्म को श्रेष्ठ बनाने का साधन बाबा ने बताया :-

          जैसे साकार बाप के ऊपर इतनी जिम्मेवारी होते हुए भी सदा डबल लाइट देखी - उसके अन्तर में तो आपके पास भी तो कुछ भी जिममेवारी नहीं है, अपने को सदा निमित्त समझकर चलो, जिम्मेवार बापदादा हैं आप निमित्त हैं, निमित्त समझकर चलने से डबल लाइट हो जायेंगे।

          बाप भी इतनी बड़ी जवाबदारी संभालते हुए निमित्त समझकर चले, तो फालो फादर। हर कर्म करने के पहले चैक करो कि फालो फादर हैं? इससे हर कर्म अति श्रेष्ठ होगा। श्रेष्ठ कर्म की प्रालब्ध आटोमेटिकली श्रेष्ठ होगी। बाप को कापी करो तो भी बाप समान बन जायेंगे। समान बनने वाले ही समीप रतन बनते हैं।

 

 प्रश्न 4 :- देह से न्यारे देही रूप में स्थित रहने वाले ही बाप के प्यारे बनने के लिए किन-किन बातों पर अटेन्शन देना आवश्यक है?

 

 उत्तर 4 :-  बाबा ने कहा कि :-

          जितना देह से न्यारे बनते जायेंगे उतना ही बाप के प्यारे बनेंगे। बाप प्यारा तब लगता है जब देह से न्यारे देही रूप में स्थित होते। तो सदा इसी अभ्यास में रहते हो? जैसे पाण्डवों की गुफायें दिखाते हैं ना, तो गुफायें कोई और नहीं हैं, लेकिन पाण्डव इन्हीं गुफाओं में रहते हैं। इसी को ही कहा जाता है अन्तर्मुखता।

          जैसे गुफा के अन्दर रहने से बाहर के वातावरण से परे रहते हैं ऐसे अन्तुर्मुखी अर्थात् सदा देह से न्यारे और बाप के प्यारे रहने के अभ्यास की गुफा में रहने वाले दुनिया के वातावरण से परे होते, वह वातावरण के प्रभाव में नहीं आ सकते। 

          बाप सदा न्यारा है तो जो बाप का प्यारा होगा वह भी सदा न्यारा होगा। तो सदा न्यारे रहो यही अभ्यास चलता रहे इसके सिवाए नीचे नहीं आओ।

 

 प्रश्न 5 :- महान आत्मा समझने से किस प्रकार की स्मृतियाँ रहती हैं?

 

 उत्तर 5 :-  बाबा ने बताया :-

          जितना अपने को महान अर्थात् श्रेष्ठ आत्मा समझेंगे उतना हर कर्म स्वत:ही श्रेष्ठ होगा। क्योंकि जैसी स्मृति वैसी स्थिति स्वत: ही होती है। जैसे अनुभवी हो कि आधा कल्प देह की स्मृति में रहे तो स्थिति क्या रही? अल्पकाल का सुख और अल्पकाल का दुख। तो सदा आत्मिक स्वरूप की जब स्मृति रहेगी तो सदाकाल के सुख और शान्ति की स्थिति बन जायेगी।

          अच्छा - आपका आक्यूपेशन है पतित पावनी - इस स्मृति से सहज मायाजीत बनेंगे :- आप सब सदा सागर से सम्बन्ध रखने वाली ज्ञान नदियाँ हो जिसमें अनेक आत्मायें ज्ञान स्नान कर पावन बनती हैं तो पावन बनाने की सेवा में सदा तत्पर रहते हो? नदियों का महत्व तब है जब सागर से सम्बन्ध है, अगर सागर से सम्बन्ध नहीं तो नदी भी नाला बन जाती। तो आप चैतन्य ज्ञान नदियों का ही गायन है पतित पावनी, इसी सेवा में सदा बिज़ी रहो।

 

       FILL IN THE BLANKS:-    

 

( हिम्मत, बोझ, प्राप्तियों, सामना, कमजोर, समान, कर्त्तव्य, जिममेवारियों, मेरापन, नवीनता, रिजल्ट )

 

 1   छोड़ो तो छूटे - यह एक सेकेण्ड की _______ अनेक जन्मों के लिए अनेक प्रकार के _______ से छुड़ा देगी।

  हिम्मत / बोझ

 

 2   जब सर्व _______ को और प्राप्त कराने वाले को सदा सामने रखेंगे तो कभी भी माया से _______ करने में _______ नहीं बनेंगे।

  प्राप्तियों / सामना / कमजोर

 

 3   जब मेरापन ही समाप्त हो गया, एक मेरा रह गया तो फिर हद की _______ का मेरापन कहाँ से आया! देह का ________ कहाँ से आया।

  जिममेवारियों / मेरापन

 

  सन्तुष्ट भी तब रह सकेंगे जब सदा बाप के गुणों और _______ में _______ बनेंगे।

  कर्त्तव्य / समान

 

 5   न्यू इयर मनाते हैं, जब वर्ष नया हुआ, नया वर्ष अर्थात् ______ भरा हुआ। इसकी आपस में _______ निकालना।

  नवीनता / रिजल्ट

 

सही गलत वाक्यो को चिन्हित करे:-

 

1      :-  सदा यह चैक करो कि जो बाप का गुण वही मेरा है, जो बाप का कर्त्तव्य वही मेरा कर्त्तव्य है। ऐसे चैक कर चलने वाले सदा सन्तुष्ट रहते भी हैं और सर्व को भी बनाते हैं।【✔】

 

2      :-  जैसे मधुबन में जो आते हैं उन्हों से पूछते हैं क्या छोड़ा क्या पाया। तो इस वर्ष की रिजल्ट में भी देखो क्या-क्या छोड़ा क्या पाया। क्या-क्या वरदान पाये, क्या-क्या व्यर्थ छोड़ा। दोनों की रिजल्ट देखो। 【✔】

 

3      :-  संगमयुग का एक-एक सेकेण्ड अति भाग्यशाली है। एक सेकेण्ड कई जन्मों का भाग्य बनाने के निमित्त बनता है। तो ऐसे श्रेष्ठ भाग्य को सदा याद रखते, अन्दर में भाग्य को देख करके सदा खुशी में नाचते रहो।【✔】

 

4      :-  वाह मेरा भाग्य - ऐसे अन्दर की खुशी बाहर दिखाई देती है दूसरे भी देखने वाले अनुभव करें कि इन्हों को कुछ मिला है, कुछ पाया है। ऐसे सदा खुश रहो। सदा अटेन्शन रखो तो माया खुशी का खज़ाना छीन नहीं सकती।【✔】

 

5      :- टीचर्स का आक्यूपेशन है सदा सन्तुष्टता की खान रहना और सर्व को सन्तुष्ट बनाना :- टीचर्स तो हैं ही सदा सन्तुष्ट। टीचर्स अर्थात् सर्व को साधारण बनाने की सेवा पर उपस्थित। 【✖】

टीचर्स का आक्यूपेशन है सदा सन्तुष्टता की खान रहना और सर्व को सन्तुष्ट बनाना :- टीचर्स तो हैं ही सदा सन्तुष्ट। टीचर्स अर्थात् सर्व को सन्तुष्ट बनाने की सेवा पर उपस्थित।