02-01-1963     प्रात: मुरली    साकार बाबा     ओम् शांति     मधुबन
 


सन 1963, जनवरी की 2 तारिख की मुरली सुनते हैं

रिकॉर्ड - आने वाले कल की तुम तस्वीर हो........

ओम् शान्ति। यह किसकी महिमा है? तुम बच्चों की। क्यों? ये चाँद-सितारे, ये जमीन और आसमान, इन सबके ऊपर इस समय में झगड़ा है। जमीन के ऊपर भी झगड़ा है, जो यह आसमान है, उसके ऊपर भी झगड़ा है। हमारी स्पेस आसमान में कोई का भी एरोप्लैन न आवे, हमारे समुद्र के हद में कोई भी न आवे। अभी यह गीत बनवाया गया हुआ है कि बाप समझाते हैं बच्चों को। अभी यह गाया जाता है ना ‘त्वमेव माता च पिता च बन्धु’, तो सब थोड़े ही समझाया। नहीं बाप बैठकर समझाते हैं बच्चों को - हाँ बरोबर, तुम्हारा बाप भी है। तुम्हारा माँ भी है; हम कहते है ‘तुम मात-पिता, हम बालक तेरे, तुम्हरी कृपा ते सुख घनेरे’। फिर बन्धु भी है, सखा भी है। फिर बाबा कहते हैं, सिर्फ मैं यह थोड़े ही हूँ। यह तो ठीक है, तुम्हारा स्प्रीचुअल फादर हूँ यानी रूहानी बाप हूँ। रूहानी बाप तो रहते ही हैं वहाँ। बोलते हैं, मैं तुम्हारा रूहानी बाप, अब इस शरीर में आया हुआ हूँ। अभी तुम्हारा बाप भी हूँ। ठीक है ना । तुम जानते हो अच्छी तरह से कि बाप भी है, टीचर भी है, गुरु भी है। यानी परम बाप, परम धाम का रहने वाला - परम पिता, परम टीचर, परम गुरु। उसको ही कहा जाता है सत्गुरु। यह तो तुम जानते हो अच्छी तरह से। फिर कहते हैं कि देखो, मैं निराकार, वॉशरमैन धोबी भी हूँ, ; क्योंकि गाया हुआ है ना ‘मूत पलीती कपड़ धो’। यानी पतित को पावन करने वाला यानी इनका कपड़ा बिल्कुल ही लक्ष्य ज्ञान सोप से बिल्कुल ही उज्ज्वल बनाने वाला। धोबी का काम भी हुआ। फिर बोलते हैं - मैं तुम्हारा निराकार सुनार भी हूँ ह्युमन सुनार भी हूँ; क्योंकि हूँ निराकार; परन्तु इस ह्युमन में आ करके फिर हमको कहना पडे़गा कि निराकार ह्युमन सुनार भी हूँ; क्योंकि तुम सबको, जो तुम्हारी आत्मा बहुत अपवित्र हो गई है, उनमें अलाय मिल गई है (मिक्सचर) । उसको फीट भी कहा जाता है। फीट पड़ने से तुम्हारी आत्मा बिल्कुल काली हो गई है, फिर तुम्हारा शरीर भी काला हो गया है। अब तो हम सबको बेहद की भट्ठी में पड़ना है। सोनार होते हैं हद की भट्ठी। वो सोने को गलाते हैं। यह बोलते हैं - मैं, जो तुम्हारी आत्माएँ हैं, उन सबको भट्ठी में डाल देता हूँ । गलाय कर कर करके; योग और ज्ञान की भट्ठी में डाल देता हूँ और तुमको बिल्कुल ही प्योर सोना बना देते हैं। इसको कहा जाता है गोल्डन एज, इसको कहा जाता है आइरन एज, कॉपर एज, सिलवर एज – ऐसे कहा जाता हैं। बरोबर धातु मिलती जाती है। सोना इस समय में जैसे मुलमा हो गया है। बरोबर है ना बच्ची। तुम सबको भट्ठी में,योग और ज्ञान की भट्ठी में डाल कर कर करके, बिल्कुल ही तुम्हारी आत्मा भी प्योर, तो तुम्हारा शरीर भी प्योर । क्या सुनार ठहरे ना; परन्तु कौन है यह? इनकॉरपोरियल ह्युमेन; क्योंकि हे तुम सभी इनकारपोरियल यानी निराकारी बच्चे। पराये ह्युमैनिटी में आये हो। तो अब बाप बैठकर सब बात समझाते हैं बच्चों को - मेरे लाडले बच्चे, गॉड फादर को रचता भी कहा जाता है। हे ना बच्चे, क्या रचता है? कब रचता है? क्या एकदम नई सृष्टि रचते हैं? नहीं; क्योंकि यहाँ आकर भट्ठी में डालना है ना। सोनार का काम करना है। धोबी का काम करना है। ये सब कुछ करना है तो यहाँ आना पड़े ना। ऐसे ही समय में - जबकि मनुष्य सभी पतित हैं, सब पतित, तभी आना पड़े ना; क्योंकि सबको ही प्योर बनाना है; क्योंकि वहाँ कोई भी प्योर आत्मा बिगर तो रह नहीं सकती हैं। वहाँ से प्योर आते हैं एकदम सतोप्रधान । पीछे सतो, रजो, तमो में उनको चक्कर लगाना पड़ता है। तो बाप बैठकर समझाते हैं बच्चों को अच्छी तरह से। एक तो समझाया तुम्हारा क्या क्या हूँ और कैसे कैसे तुमको भट्ठी में भी डालता हूँ। तुम्हारा कपड़ भी स्वच्छ करता हूँ। यह बाप कहते हैं ना! वो खुद ऐसे कहेंगे ना, मैं तुम्हारा फलाना हूँ, तुम्हारा फलाना हूँ, तुम्हारा फलाना हूँ। अभी ऐसे कोई मनुष्य कह सकेगा बच्ची? अगर यह छोटेपन से ही भगवान का अवतार होता, तो छोटेपन से ही बताना था ना। बच्ची। ना, यह भी ऐसे ही था ‘मूत पलीती कपड़’। सब मूत पलीती कपड़ हैं ना! ऐसे तो नहीं कहेंगे, मूत पलीती कोई भारत में, स्वर्ग में थे। कहेंगे उनको मूत पलीती कपड़? बिल्कुल नहीं कहेंगे। तुम गाते हो उनको सर्वगुण सम्पन्न, सम्पूर्ण निर्विकारी, स्वच्छ और ये मलेच्छ। तो बाप बैठकर समझाते हैं, बच्चों को यह भी मालूम हुआ बरोबर वो बाबा आकर, कब आते हैं। आते हैं ज़रूर। जबकि इनको स्वर्ग बनाना है, तो ज़रूर नर्क में आना पड़े। अनेक धर्म हैं बहुत। देवी-देवता धर्म तो है ही नहीं। वो जो कहा जाता है कि ह्युमैनिटी का बाप क्रियेटर है। तो कब? क्रियेटर तो है ह्युमैनिटी का ज़रूर। तो कैसे? कोई जानते थोड़े ही हैं। वो बच्चे भी पढ़ते हैं ना - तुमको किसने पैदा किया? हमको अल्लाह ने पैदा किया। पैदा कैसे किया, वो राज़ तो बताओ कोई? तो बाप बैठकर राज़ बताते हैं। अभी तुम देखते हो ना, कैसे। पुरानी से पुरानी इतनी सृष्टि है साढे़ तीन सौ करोड़। उनमें से सैम्पलिंग कैसे लगाते हैं नई दुनिया का। बड़ा युक्ति का ज्ञान बुद्धि में बैठाना है। बड़ी विशाल बुद्धि चाहिए और फिर योगबल से ये बरतन बड़ा शुद्ध चाहिए। योगबल भी ज़रूर चाहिए, योग में भी रहना चाहिए। कोई तकलीफ थोड़े ही है। उठते, बैठते उठते, बैठते तुम...तुम अपन को आत्मा तो मानते ही हो बच्चे। तुम खुद कहते हो कि आत्मा एक शरीर छोड़कर दूसरा शरीर लेती है। तुम ऐसे कभी नहीं कहेंगे कि परमात्मा एक शरीर ले करके, दूसरा लेते हैं। कभी सुना? नहीं, आत्मा खुद कहती है - मैं बरोबर एक शरीर ले करके फिर दूसरा लेती हूँ। वो कर्मों अनुसार अच्छे बुरे अनुसार पुनर्जन्म लेते हैं; इसलिए ऐसे कोई कहे कि ये सभी परमात्मा के टुकड़े हैं, पुर्जे है, फलाना है, चीज है | नहीं| ऐसे कोई होता ही नहीं है; क्योंकि सभी की आत्माएँ गाई जाती हैं कि अविनाशी है अर्थात इमॉरटल है। वैसे ही बाप की भी ज़रूर और फिर जिस्म तो मॉर्टल है। तो अभी आत्माएँ इमॉरटल ज़रूर होनी हैं क्यों? क्योंकि हर एक आत्मा में पार्ट बजाने की नूँध है। आत्मा में नूँध है पार्ट बजाने की। इसलिए कभी भी विनाश तो पाय नहीं सकतीं; समजे ? क्यों जो पार्ट भरा हुआ है नी, अगर विनाश हो तो पार्ट सारा मिट जावे। फिर क्या भगवान को कहते ? बाप कहते हैं मुझे फिर बैठ कर नई, नई आत्माएँ बनानी पड़े क्या? नया यह ड्रामा बने नया कैसे फिर? क्योंकि इसको ही कहा जाता है अविनाशी प्रीऑर्डेन्ड वर्ल्ड ड्रामा। बहुत आते हैं, कहते हैं - मोक्ष मिले। अरे, यह तो बना-बनाया है ना। मोक्ष कैसे मिलेगी? हम कभी, दुःख है ना, तब कहते हैं, मोक्ष मिले, मैं आऊँ ही नहीं। आऊँ ही नहीं तब कहते हैं, जबकि दुःख है। स्वर्ग में कभी नहीं कोई कहेगा मैं आऊँ ही नहीं; क्योंकि दुःख है ना, तब कहते हैं; परंतु बाप बैठकर समझाते हैं - बच्चे, यह ड्रामा है, अविनाशी - इसको कहते है और यह चक्कर लगाता ही रहता है। बाप कहते हैं - मैं तुम बच्चों से इन्यूमरेबल टाइम्स मिला हूँ, इन्यूमरेबल टाइम्स मिलूँगा। ये कभी भी इसका अंत नहीं आता है। तुम कहेंगे कब भला शुरू हुआ? नहीं, कब कैसे कहेंगे? इसको कहा ही जाता है अनादि। यह चलता ही रहता है। गाया जाता है ना - सतयुग आदि सत्, है भी सत्, हो सी भी सत्। तो ज़रूर ये फिरते होंगे ना। फिर यह भी तो ज़रूर है ना, और तो कोई ड्रामा में दूसरे धर्म वगैरह तो है नहीं, जिनकी कोई नॉलेज देवे । नॉलेज तो यही है। सतयुग में डीटी धर्म और फिर त्रेता में क्षत्रिय धर्म, चन्द्रवंशी जिसको कहा जाता है, फिर उनको वो गायब हो जाते है नाम, हिन्दू कह देते हैं। फिर इस्लामी, बौद्धी, क्रिश्चियन, ये ही हैं। यहाँ भी सब उनको ही याद करते हैं। तुम फिर भी वैकुण्ठ को याद करते हो। तो वैकुण्ठ इसको ही कहा जाएगा ना। क्रिश्चियन लोग फिर क्राइस्ट को याद करते रहते हैं तो ज़रूर उनको आना पडे़गा। हरेक आएगा ना ! इसलिए ड्रामा तो है ही अविनाशी। कहा जाता है और बोल देते हैं बाप आकर - बच्चे, हम तुम बच्चों से इन्यूमरेबल टाइम्स मिले हैं। भारत, इन्यूमरेबल टाइम्स - गोल्डन एज टू आइरन एज, आइरन एज टू गोल्डन एज यानी स्वर्ग ते नर्क, नर्क ते स्वर्ग। इसके बीच का समाचार पूरा कोई नहीं जानते हैं। इसलिए बाप कहते हैं - मैं आ करके समझाता हूँ। ये तो समजा ने बात तो कह सकते हैं ना - बच्चे। मैं तुम्हारा वही बाप हूँ, जिसको तुम याद करते हो। फिर उसको याद भी करते हो। नॉलेजफुल है - बाबा। वो आ करके हमको नॉलेज देते हैं। क्या करने के लिए? नर से नारायण बनाने के लिए। तो टीचर भी तो हो गया ना वही। तो बाप बैठ करके समझाते हैं अभी, ह्युमैनिटी, बाबा । ह्युमैनिटी तो है - है साढ़े तीन सौ करोड फुल। अभी नई फिर कैसे बनाते हैं? बोलता है - पहले मुझे ब्रह्मा विष्णु शंकर सूक्ष्मवतन रचना पड़े। जिसका कोई को भी पता नहीं, कोई ने देखी ही नहीं है, गाया जाता है। देखा थोडे़ ही कोई ने थोडे़ ही । उसको फरिश्ते भी कहते हैं। अच्छा, फिर ये पहले पहले मुझे चाहिए ब्राह्मण। हैं नहीं ब्राह्मण, अगर हैं तो भी जिस्मानी हैं, कुख वंशावली। अभी मुख वंशावली। गाया जाता है ना बच्ची; क्योंकि ब्राह्मण हैं। ब्राह्मणों की महिमा करते हैं - ब्राह्मण देवी-देवताय नमः। तो ब्रह्मलोक जाते है। ब्राह्मण देवी, कौन-से वो ब्राह्मण देवी? ब्राह्मण और वो कौन-से हैं, जिसके तुम, तुम खुद कहते हो कि हम ब्रह्मा के मुखवंशावली हैं? पूछेगें ना ब्राह्मणों से ? कहेंगे ब्राह्मण - ब्रह्मा की संतान; परंतु फिर तुम वो कौन-से संतान हे ब्रह्मा के, जिनके लिए तुम महिमा करते हो, ब्राह्मण देवी-देवताय नमः? अच्छा - तो बाप बैठकर समझाते हैं - देखो, अभी ये ब्राह्मण ऊँच हैं उन उन ब्राह्मणों से । यह कोई थोड़े ही जानते हैं बच्चे दुनिया में, कोई शास्त्रों में थोड़े ही लिखा हुआ है, कोई गीता में थोडे़ ही लिखा हुआ है। ये महिमा करते हैं, आवाज़ निकल आती है। तो बाप बैठ करके समझाते हैं। अभी देखते हो बरोबर का हैं। इनमें से में सैम्पलिंग लगाता हूँ। फिर तो नई हुई ना बच्ची ये चोटी, यह ब्राह्मण, हाँ। तो पहले पहले परमपिता परमात्मा क्या करते हैं? आ कर सैम्पलिंग लगाते हैं। ऐसे नहीं है कि कोई नई सृष्टि रचता है। नहीं। यह तो रची हुई है सृष्टि । अभी बैठ कर के नई सृष्टि की। तुम जानते हो कि बरोबर हम स्वर्ग देख रहे हैं। हम स्वर्ग में जायेंगे देवता बनेंगे। यहाँ हम संगमयुग की नई सृष्टि में हैं। इसको कहा ही जाता है संगमयुग की सृष्टि, जिनका कोई को पता नहीं है कि संगमयुग में ब्राह्मण हैं क्या? पांडव सो लिखे हुए हैं, बाकी ब्राह्मण तो लिखे हुए नहीं हैं। पांडव का मालूम है कि बरोबर पाण्डवों ने ही विजय पाई। जयजयकार हो गया था। यादव और कौरव खत्म हो गए। गाया भी जाता है कि देवताओं और असुरों की लड़ाई हुई। अभी देवताओं-असुरों की लड़ाई कैसे हो सकती है! वो तो बाप कहते हैं ना - यह है आसुरी सम्प्रदाय। यहाँ देवता कैसे आ करके लड़ाई करंगे? यह हो सकता है? नहीं। यह लड़ाई कोई नहीं है। बाबा कहते हैं तुम बच्चों को तो माया से लड़ना है ना और स्वर्ग का मालिक बनना है। उनमें कितना फर्क पड़ जाता है, शास्त्र वगैरह पढ़े हैं - बाबा भी पढ़े तो हैं ना । जो लिखा हुआ है सो बताते हैं। बाबा ही बैठ करके राज़ समझाते हैं। कहते हैं ना, मैं ब्रह्मा के मुखकमल से परन्तु मनुष्य ठहरा ना। यह थोड़े ही है - वो विष्णु के नाभी कमल से निकली - कहाँ विष्णु! कहाँ यह फिर प्रजापिता ब्रह्मा! हाथ में वहाँ तो नहीं दे सकते हैं, वहाँ मनुष्य तो नहीं है ना, मनुष्यों को सुनाते हैं ना कि हम बैठकर तुमको सभी वेदों-ग्रंथों वगैरह वगैरह का सार सुनाता हूँ, जो पास्ट हो गई है। तो ज़रूर जो पास्ट हो गया है और अब बैठ करके समझाते हैं। सतयुग में तो नहीं समझाएंगे ना । इस संगमयुग में बैठ करके समझाते हैं। अभी देखा - ब्राह्मण? सबसे ऊँचे हो गए नई ब्राह्मणी रचना। इसको कहा जाता है नई संगमयुग की रचना। इन ब्राहमणों का कोई को मालूम नहीं है। ब्राह्मणों से फिर देवी-देवता, सो फिर क्षत्रिय बनेंगे। ये वृद्धि को पाते रहेंगे। ये क्या होगा अभी? विनाश हो जायेगा, सब ख़लास हो जायेगा। तो सतयुग में सिर्फ देवता ही होंगे; क्योंकि उनको पीछे आना है, नम्बरवार - सूर्यवंशी, फिर वैश्यवंशी, फिर शूद्रवंशी, इनको सबको मल्टीप्लीकेशन होते जाना है। वर्णों में फिरना जाना है - क्योंकि सतोप्रधान, सतो, रजो, तमो में आना पड़ता है ना। तो बाप बैठ करके समझाते हैं - अभी समझा? बाप आकर सृष्टि कैसे रचते हैं? उनको ह्युमैनिटी का क्रियेटर क्यों कहते हैं, कोई भी नहीं बताएँगे। यह बैठकर बताते हैं - मैं कैसे रचता हूँ। क्या तुम्हारा बनकर आता हूँ - बाप भी, तो टीचर भी। दादा आदि सभी बताते हैं, और फिर धर्मराज भी। सुनार, धर्मराज आदि, जो भी तुम कहो। इनको सभी यह ऐट्रिब्यूट्स देते हैं। अभी यह ऐट्रिब्यूट्स फिर लक्ष्मी नारायण को देंगे क्या? राधे-कृष्ण को देंगे कोई? नहीं। वो तो बनते हैं ना अभी। उनको ऐसा किसने बनाया...? श्री लक्ष्मी नारायण को या भारत को ज़रूर कोई तो बनाना वाला होगा ना। कोई मनुष्य तो नहीं बनाय सकते हैं ना। मनुष्य सभी पतित, तमोप्रधान अवस्था को पाए हुए।, जड़जड़ीभूत अवस्था को सब। अभी तुम बच्चे जानते हो कि बरोबर बाप यह पुरानी सृष्टि को नई कैसे बनाता है; क्योंकि आएँगे तो पुरानी सृष्टि में ना। बाप क्रियेटर है, नई सृष्टि बनाएंगे तो ज़रूर पुरानी में आना पड़े ना। पुरानी में रह करके पुरानी को नया बनाते हैं। तब तो बताया ना यह पुरानी सृष्टि है। देखो, खुद बैठे हैं ना पुरानी सृष्टि में। यह पुरानी सृष्टि है अभी। सारी बेहद की बातें हैं यहाँ। बेहद का धोबी, बेहद का सोनार, सब बेहद की बातें और सबको बेहद का सुख। वो तो बाबा कहते हैं अल्पकाल, क्षणभंगुर। वो जो कहा जाता है कागविष्टा समान सुख, सो तो बरोबर अल्पकाल क्षणभंगुर है ना, तब तो सन्यासी छोड़ जाते हैं; क्योंकि वो समझते हैं कि इसमें सुख नहीं है। उनका भी ड्रामा में ये पार्ट है। बाप कहते हैं अभी तो तुम जानते हो ना, वहाँ जो इतना अपार सुख है, वो थोड़े फिर कुछ कहेंगे कि हमको यहाँ नहीं आना है, मुझे मोक्ष चाहिए। मोक्ष भी मांगते हैं या सद्गति भी मांगते हैं। किससे? बाप से। वो तो कोई दे नहीं सके। ये गुरु लोग तो बहुत चले आये हैं ना। सतयुग में कोई गुरु होता ही नहीं है; क्योंकि सद्गति है ना। फिर वो गुरु क्या करेगा? अभी तो गुरु बहुत बन गए हैं। ....कितने बड़े बड़े मंदिर बनाते हैं - सप्तऋषि फलाना आदि बहुत ऋषि-मुनियों का बनाते हैं। क्या वो बनाया? उन्होंने क्या गुरु बन करके भारत का कोई उद्धार किया क्या? वो तो कोई का भी उद्धार होगा ना। उद्धार होना है तो बेहद का उद्धार होना है। एक-दो वापस जा नहीं सकते हैं। बाबा कहते हैं, वापस थोड़े ही कोई जा सकते हैं। नहीं वापस जा नहीं सकते कोई । जब सबका पार्ट पूरा हो जाता है, सभी तमोप्रधान बन जाते हैं, तब मैं आता हूँ गाइड बनकर के। और कोई भी गाइड - लिबरेटर एक है, पीसमेकर भी एक है। समजा नी - प्रॉसपेरिटी मेकर भी एक है। कंगाल है ना। इनको इतना प्रॉस्पर कौन करेंगे? कोई की ताकत थोड़े न रहती है। सबको प्योर भी वही करते हैं। पीस में भी वही ले जाते हैं; क्योंकि सतयुग में फिर पीस भी तो है ना; क्योकि लड़ाई-झगड़ा, मारामारी नहीं है; क्यों कि बाप के बच्चे बन गए ना। तुमको निधनपने से, ऑर्फनपने से अभी बचा रहे हैं। अभी तुम जानते हो कि हमारा बाबा कौन है। ऐसे मनुष्यों की थोड़े ही कोई होती है महिमा । टीचर, बाप, सुनार वगैरह , सो भी बैठ करके प्रैक्टिकल में समझाते हैं कि कैसे कैसे मैं बेहद का धोबी हूँ, बेहद का हूँ, सब बेहद का गुरु हूँ। सब बेहद की बात। बेहद सुख देने वाला हूँ, बेहद की पवित्रता, शान्ति और सुख देने वाला हूँ, जैसे कल्प पहले दिया था। अभी फिर से दे रहा हूँ भारत को और जन्म भी मेरा भारत में है। जन्म परम पिता का जन्म – देखो राजधानी धर्म स्थापन करने वाले का जन्म होता है ना, वो यात्रा बन जाती है। वो ही यात्रा बनेगी ना। ऐसे तो नहीं है कि मरेंगे तब यात्रा बनेंगी। ना - यात्रा बनती है; क्योंकि आते हैं धर्म स्थापन करते हैं, तो उनकी यात्रा हो जाती है। ये यात्रा भारत कि - गीता को खण्डन करते हो ना। है तो ड्रामा; पर बाप समझाएगा तो ज़रूर ना कि यह क्यों हुआ, क्या कारण बना? तो बाप बैठ करके कहते हैं, अगर यह गीता में शिवबाबा का नाम देते तो सबको समझ में आता - यह बाप है जो हमको दुःख से आ करके छुड़ाते हैं, वो ही है जो हमको मुक्ति देते हैं। मुक्ति देते हैं किससे? लिबरेट कोई चीज़ से कराना होता है। बोलते हैं दुःखों से। दुःख कौन देते हैं? ये रावण रूपी पाँच विकार हैं, तो दुःख देते हैं। उनको कहा ही जाता है लिबरेटर। देखो प्युरिटी मेकर, पीसमेकर, प्रॉसपेरिटी मेकर अभी प्रैक्टिकल में बन रहे हैं ना। बरोबर सतयुग में प्युरिटी भी है, पीस भी है, प्रॉसपेरिटी भी है। अब तीनों ही नहीं हैं। नो पीस, नो प्युरिटी, नो प्रॉसपेरिटी। ये क्यों? अभी यह किसका राज्य है? यहाँ भारत में राम और रावण की बहुत कहानी सुनाते हैं। अभी वो लंका का रावण तो नहीं ठहरा ना। हनुमान और सीता, फलाना ये दोनों क्या हैं? यह क्या पुस्तक हुआ? इसको क्या कहें? यह तो और ही नॉवेल्स से भी नुकसानकारक है; क्योंकि नॉवेल तो मनुष्य एक जन्म में पढ़ करके, फिर दूसरे जन्म में पढे़, न पढ़े। अरे, यह तो हम लोग गीता और यह अपना धर्म शास्त्र, जैसे क्रिश्चियन लोग बाईबिल को तो मानते आते हैं ना। वो लोग तो इररीलिजियस नहीं बने हैं। भारत इररीलिजियस बन गया है; क्योंकि बोलता है, हमारा कोई धर्म है ही नहीं बिल्कुल ही। अंग्रेजी में क्या कहते हैं? सेक्युलर स्टेट। यानी हमारा कोई धर्म नहीं है और कहते हैं रिलीजन इज माइट। गॉड इज रिलीजन, एण्ड रिलीजन इज माइट। क्यों कहते हैं उनको? वही तो धर्म स्थापन करने के लिए प्रीसेप्टर्स को भेज देते हैं ना। उस समय में तो आत्माओं में बहुत ताकत रहती है। पीछे वो ताकत गुम हो जाती है। हमारी ताकत कुछ नहीं रही, बिल्कुल अंधियारा हो गया। फिर अब बाबा ताकत देते हैं, जिसका नाम रखते हैं ‘शिव-शक्ति सेना’। शिव बैठकर इनको शक्ति देते हैं। शिव-शक्ति, फिर पाण्डव-सेना भी। शिव की शक्ति माताएँ भी, शिव की शक्ति फिर पाण्डव-सेना भी, दोनों कहा है। दोनों का हूबहू मन्दिर आबू में है। शिव-शक्ति की भी सेना है, फिर पाण्डव के महारथी जिनको कहा जाता है, उनकी भी सेना है, उनके भी मन्दिर हैं। यादगार तो सब चाहिए ना। सबका यादगार तो रहता ही है! देखो, गाँधी जी गया तो उनका भी ये यादगार है। बाद में सब आते हैं, आकर फूल चढ़ाते हैं; परंतु दुनिया को मालूम तो नहीं है ना कि हमको इतना मुक्ति वा जीवनमुक्ति देने वाला कौन है। मुक्ति कहा जाता है कि हम जा करके मुक्तिधाम में रहते हैं, यानी लिबरेट सबको करते हैं। तो कोई जानते नहीं है ना बच्ची तो सिर्फ यह भारतवासी भले ही दूसरी जगह में भी है शिव के लिंग परंतु आक्युपेशन किसको भी पता नहीं। अभी आक्यूपेशन तो बाप बताये ना! फादर शोज सन, टीचर शोज स्टूडेंट, ऐसे कहा जाता है ना। जब फिर ऐसे है, तो यहाँ प्रैक्टिकल में तुम क्या समझने आये हो? जाओ, बच्चों के पास, वो शो करेगा फादर का। अच्छा, कुछ सीखने का है? जाओ, स्टूडेन्ट के पास, तुमको सब सिखलायेंगे। क्या आश रखकर आते हो , मालूम तो होना चाहिए ना - हम फलानी आश रखकर आए हैं। कोई आए तो पूछा जाता है ना, आइए बच्चे! कैसे आना हुआ? किस चीज़ की दरकार है? तो देखो सन्यासियों के पास जायेंगे वो समझते हैं कि हमको कुछ शान्ति मिलेगी। सुख नहीं मिलेगा; क्योंकि वो सुख तो छोड़ देते हैं ना। कहते हैं - काग विष्टा समान है। सुख को नहीं मानते हैं, फिर आएगा शान्ति, हमको शान्ति कैसे मिले? अभी एक आता है शान्ति के लिए, अच्छा चलो, उनको कोई शान्ति देते हैं; पर यहाँ अशान्ति किसकी है? शान्त किसको कहा जाता है? अशान्त हैं घर-बार। सभी में अशान्ति है। लड़ते-झगडत़े हैं । बाकी अगर तुमको शान्ति चाहिए तो फिर वापस जाना पड़े जहाँ से हम आते हैं। वहां बहुत शान्ति में रहते हैं। जो पिछाड़ी के मठ पंथ वाले होते हैं उनको देखो वो पौने पाँच हजा़र वर्ष समझो या दो सौ कम, इतने तो वहाँ शान्तिधाम में रहते हैं। फिर उनको जब यह पूछेंगे कि क्या तुम इतना दिन वहाँ जाना चाहते हो? तो वो पसंद करेंगे। बोलेंगे - हाँ हाँ, इतना भी अच्छा; पर हम शान्ति में रहना चाहते हैं। ऐसे भी कहते हैं बहुत; परन्तु यह इतना दिन किसको मिलता है? वो तो जो पिछाड़ी मं आते हैं, उनको मिलना है। उनको तो ऑटोमैटिकली मिलेगा, ज्ञान लेवें या न लेवें। वो हिसाब-किताब चुक्तू कर जायेंगे, फिर आयेंगे पिछाड़ी में, जो भी होंगे। बहुत हैं जो साइंस को मानने वाले हैं, नेचर को मानने वाले हैं, फलाने को मानते हैं। ये बातं हैं बहुत समझने की। बाबा ने सुबह में समझाया ना। बच्चे आए, तो बोला त्वमवे माता.... तो बाबा ने बोला - तुम भूलते हो, हम तो बहुत हैं। हम धर्मराज भी हैं, हम तो तुम्हारा मूत पलीती कपड़ भी धोने वाले हैं .... बच्चे बोलते हैं- नहीं, बस, दादा है...। हमने बोला, नहीं-नहीं बहुत है। वो खुद बैठकर समझाते हैं ना। कौन? ये नहीं, फिर वो; क्यांकि इसका इसने तो पुनर्जन्म लिया है ना। वो बोलता है - मैं थोड़े ही तुम्हारे मुआफिक पुनर्जन्म लेता हूँ। तुम्हारा ये जो दादा है ना, जिसमें मैं आया हूँ, यह 84 जन्म लेते हैं। इसका है बहुत जन्म के अन्त का जन्म। यह पूज्य था सो पुजारी बना। तुम नहीं गाते आते हो, ‘आप ही पूज्य, आप ही पुजारी’ ? सो तो मुझे कह देते थे या मन्दिर में जाते थे, उनको भी जाकर कह देते थे; क्योंकि पूज्य है ना; परन्तु उनको थोड़े ही यह मालूम है कि यह कोई पुजारी बनेंगे। ये क्या है? किसके लिए कहते थे? हम खुद भी कहते थे ‘आपे ही पूज्य, आपे ही पुजारी’, ‘आपे ही दाना, आपे ही बीना’, आपे ही फलाना फलाना, बहुत कुछ कहते थे। अभी बच्चों ने समझा ना, किसके पास आए हो बच्चे। ये तो याद रखनी चाहिए ना। ये थोड़े ही भूल जाना चाहिए कि किसके पास हम आए हैं। बाबा तो हमको सौभाग्यशाली बनाते हैं। इस समय में दुर्भाग्यशाली हैं। भारत दुर्भाग्यशाली है भला? महान दुर्भाग्यशाली है, जो बिल्कुल ही सौभाग्यशाली था। ....भारत की सुख की बात हुई ना, वो तो मुक्ति दते हैं उनको। तो कितना सौभाग्यशाली! अभी इतना सौभाग्यशाली सिवाय बाप के और तो कोई नहीं बनायेगा ना; क्योंकि बेहद का सवाल हो गया ना। हाँ, ये ज़रूर है कि सौभाग्यशाली बनने के लिए पुरुषार्थ पूरा चाहिए नम्बरवार; क्योंकि बता देते हैं कि स्वर्ग में ज़रूर सूर्यवंशी भी हैं, चंद्रवंशी भी हैं। तो ज़रूर कहेंगे सबसे सौभाग्शाली कौन? ज़रूर सूर्यवंशी हांगे सतयुग में; क्योंकि गोल्ड जुबली उनको कहा जाता है। पुरुषार्थ भी..हमको एसे करना चाहिए जो हम गोल्डन जुबली में जावं; क्योंकि स्वर्ग एक्युरेट सो गोल्डन जुबली हुआ ना। भले दो आ जाता हैं, कहीं हेल एण्ड हेविन, तो उनको आधा आधा किया जाता है ना। द्वापर और कलहयुग, फिर हेल कहेंगे; क्योंकि माया उनको हेल बनाना शुरू कर देती है। यह तो एक ही धक्क से एकदम स्वर्ग बना दते हैं। आहिस्ते आहिस्ते तो स्वर्ग नहीं बनेगा ना। स्वर्ग माना ही स्वर्ग। तो बच्चों को कितना अच्छी तरह से बाप बैठकर समझाते हैं। फिर कहते हैं बहुत समझाने से क्या फायदा? कितनी सहज भी है समझने की; परन्तु फिर मन्मनाभव तो करो ना। याद तो रखो ना। इसमें तुमको थोड़ी तकलीफ होती है। माया तुम्हारी याद घड़ी घडी भुलाय देती है। बस, माया भुलाय करके कोई न कोई विकर्म करा देती है। ...यह खेल बने हुए हैं। अल्लाह अव्वलदीन का एक खेल होता है। अल्लाह ने अव्वल धर्म स्थापन किया। कौन-सा? दिखलाते हैं ठका किया तो कारून के ख़जाने निकल गए। एक खेल आकर करते थे। यह खेल भी .. बने हुए हैं; परन्तु वो तो बैठ करके एसे ही बनाये हैं। उनसे कुछ समझ में थोड़े ही आता है। बाप बैठ करके सब समझाते हैं। हातिमताई का भी एक नॉवेल होता है। मुलहरा डालता था, तो माया गुम हो जाती है। मुलहरा निकालते थे तो माया आ जाती है। मुलहरा माना ही यह योग। ...अगर फिर मुलहरा निकला अर्थात बुद्धि का योग टूटा, यह लगा माया का गोला। बाप तो बच्चों को सब समझाते हैं। ऐसे बाप को जिनकी इतनी महिमा है - ज्ञान का सागर, सुख का सागर, धर्मराज....फिर तुम मात-पिता.... देखो! कितनी महिमा हो गई! यह महिमा थोड़े ही इनकी करते हैं। नहीं, यह खुद आकर समझाते हैं बच्चों को। कौन है जिसके आ करके बच्चे बने हो? इनका तो नहीं? ये भी उनका बच्चा बना ना; क्योंकि यह भी तो वर्सा लेते हैं ना! वर्सा हमेशा दादे की प्रॉपर्टी पर होता है। बाबा खुद कहते हैं – मेरी प्रॉपर्टी थोड़े ही है। मैं भी दादे से यह प्रॉपर्टी लेता हूँ। कौन-सी? ये अविनाशी ज्ञान रत्न से अपना स्वर्ग का मालिक बनने की। तत् त्वम। तुम भी मम्मा-बाबा कहते हो ना। बच्चों का तो फर्ज़ है मम्मा-बाबा की गद्दी के वारिस बनें। तो फिर पुरुषार्थ ऐसा करना चाहिए ना, जैसे मम्मा-बाबा का पुरुषार्थ। फालो करना पड़े ना। इसको कहा जाता है फालो मदर एण्ड फादर। यह है बेहद की राजधानी लेना। जैसे बाप मुरली चलाते हैं, यह भी तो चलाते हैं। तुम ऐसे समझते हो क्या सिर्फ बाबा ही मुरली चलाते हैं, यह कभी मुरली चलाते नहीं हैं? अरे; परन्तु यह पद कैसे पाएँगे? मम्मा पद पाय लेगी, यह नहीं पायेंगे क्या? नहीं, ये दोनों अपने में, कभी वो बाबा, कभी वो। बाबा कल भी समझाते थे एक मेजर को, तो बच्ची बोली-नहीं, मुझे दो तो मैं इनको समझाऊँ। बाबा भी जब बुलाते हैं ना, यह गुप्त। बीच बीच में वो खुद भी समझाते हैं, फिर बाप भी कुछ समझाते हैं .........। बाप कहते हैं - बच्चे, मैं तुम्हारा यह हूँ ना, यह थोड़े ही कहेंगी। मैं तुम्हारा बाप भी हूँ, दादा भी हूँ, टीचर भी हूँ, गुरु भी हूँ, धर्मराज भी हूँ। यह थोड़े ही कह सकेंगी, यह वो कहेंगे। अभी यह तो समझ की बात है ना। बिल्कुल क्लीयर है एकदम कि वो और यह। यह भी कुछ कहते तो रहंगे ना। लल्लू नहीं है ना? बुद्धू तो नहीं है ना? नहीं। बाप आकर हम बच्चों को कितना अच्छा पढ़ाते हैं! कितना गुलगुल बनाते हैं! इसको कहा जाता है रिजूविनेशन। हमारी जो आत्मा है उनको फिर रिजूविनेट करते हैं। यहाँ क्या रिजूविनेट कराते हैं? तुम लोगों ने सुना नहीं था! विलायत से एक सर्जन आया था। वो बन्दर की ग्लैंड्सग्रंथी निकाल करके इसमें डालते थे और बहुतों ने डाली थी, बाबा जानते हैं। वो बात थोड़े ही है। नहीं, यह तो माया को फिर बैठ कर प्यारे बनाकर उनमें ज्ञान भरते हैं। आप समान बाबा बनाते हैं। सिर्फ एक बात है कि दिव्य दृष्टि की चाबी नहीं देते हैं और न बादशाही करते हैं। वो खुद बोलते हैं - बच्चे, मैं बादशाही नहीं करूँगा। तुम बादशाही लेते हो और गँवाते हो माया से। अभी जब हम भी बनें और गँवावें, फिर राजाई देने वाला कौन? इसलिए मेरा पार्ट सबसे न्यारा है। तुम सब जन्म-मरण में आते हो। मैं नहीं आता हूँ। मेरा कोई सूक्ष्म शरीर भी नहीं, तो स्थूल शरीर भी नहीं है। मेरा पार्ट न्यारा है। मैं सर्वव्यापी नहीं हूँ। कुत्ते में, बिल्ले में, वाह! मुझे और ही तुम लोग थका देते हो। इतनी मेरी ग्लानि करते हो! मेरी ग्लानि, फिर मेरे बच्चे - शंकर की ग्लानि, शंकर पार्वती के पिछाड़ी फिदा हुआ, फिर वो ब्रह्मा की भी ग्लानि कि ब्रह्मा सरस्वती के ऊपर फिदा हुआ, फिर वो जो विष्णु है, लक्ष्मी नारायण, जो छोटेपन में कृष्ण बनते हैं, फिर कृष्ण को भी बनाय दिया कि 16000........ और ग्लानि लगाना शुरू कर दी। यह भी खुद नहीं कहते ‘यदा यदा, यह हिन्दी में समझाते हैं। संस्कृत में नहीं समझाते हैं। हिन्दी में बैठ करके समझाते हैं। वो गुजराती भी समझ जाते हैं। गुजराती, गुजराती में समझाते हैं; पंजाबी, पंजाबी में समझाएंगे। इंगलिश होगी तो इंगलिश में समझाएँगे। अभी एसे तो नहीं है कि बाप को बैठ करके कोई लैंगवेज सीखनी पड़े। नहीं, लैंगवेज इनकी है। यह भी तो समझेंगे ना। बाबा संस्कृत बोले और हम संस्कृत में पढ़े ही नहीं होंगे तो हम कैसे समझेंगे? नहीं, कल्प पहले जैसे समझाया था, ऐसे समझाएँगे। फिर कलम लगती जाती है। गुजराती भी समझाते हैं। ये बच्चे पंजाबी भी समझाते हैं, फिर इंगलिश में भी समझाते हैं। बहुत लैंग्वेजिज़ हैं ना! ऐसे थोड़े ही तब संस्कृत थी। नहीं। अच्छा, बच्चां को समझाया - आज नौकरी-चाकरी पर जाने का है, आधा घण्टा बिल्कुल काफी है। यह बहुत अविनाशी ज्ञान का डोज़ है। इनसे कौन-सा नशा चढ़ता है? नारायणी नशा ....। गाया जाता है, मैं सिंधी में कहता हूँ - ‘नशन शब्न में है नुकसान, बिगर नशे नर को नारायण’। .....हम अभी सो नर से नारायण बनते हैं। गाया जाता है ना। नशा चढ़ता है बच्चों को कि हम लक्ष्मी बनेंगे? मम्मा लक्ष्मी बनती है तो क्या हम नहीं बनेंगे? ऐसे कैसे?
.......... अब बाबा छुट्टी लेते हैं। बच्चों को जाना है। टोली ले आओ। बाबा पूछते हैं कभी, अरे! बताओ बच्चा, मैं इसके तन में किस पार्ट में आता हूँ, कहाँ आता हूँ? गाया जाता है ना -‘ भृकुटि के बीच मं चमकता है सितारा’। सितारा आत्मा को कहा जाता है। तो ज़रूर उनके बाजू मं आकर बैठना होगा। और कहाँ बैठेंगे! फिर भी सबको कहेंगे अमृतवेले आओ; क्योंकि अमृतवेला बहुत मशहूर है। ज्ञान अमृत भी है और सुबह मं फ्रेश रहते हैं। तुम तो फ्रेश ही हांगे। और तो बिचारे विकार में जाते हैं ना। वो उनका तो बरतन गन्दा हो गया। उन में यह धारणा नहीं हो सकती। इस ज्ञान में यह एक नियम है कि बहुत अच्छा बरतन चाहिए। यह बुद्धि बरतन है ना। बुद्धि को माया ने ताला लगा दिया है। उसको कहा ही जाता है - बुद्धिवानों का बुद्धिवान। श्रीमत। वो बहुत अच्छी मत देने वाला है, तो बुद्धिवानों का बुद्धिवान हुआ ना। हम अन्धे - बुद्धिहीन थे। हमारी आत्मा को कहा जाता है अन्धे – बुद्धिहीन। बाबा आकर ताला भी खोलता है। देखो, कितनी बुद्धि दे दिया है! हम कोई कम थोड़े ही बन गए! हम तो कुछ कम नहीं। अभी तो ज्ञानसागर के बच्चे बन गए। सब ज्ञान, सारा झाड़ का ज्ञान, सारा ड्रामा का ज्ञान बाबा हमको दे रहे हैं। इसको ही कहा जाता है - गॉड फादरली नॉलेज। फादर भी कहते हैं और नॉलेज भी कहते हैं। क्या फादर कभी बैठकर बच्चों को पढ़ाते हैं? भले कोई पढ़ाते हों भी; परन्तु लॉ तो नहीं है ना। उनको स्कूल में जाना पड़ता है। यह देखो फादर सब कुछ समझाते हैं - मैं तुम्हारा बाप भी हूँ, तो टीचर भी हूँ, तो सद्गुरु भी हूँ, तो धर्मराज भी हूँ, तो धोबी भी हूँ। यह महिमा कभी भी देवताओ की नहीं है। आज कुछ कमती आए होंगे, चले गए हांगे। अभी ये एक्युरेट वाणी कैसे सुने, जो नशा चढ़े? पीना है ना! इसको कहा जाता है - ‘नशे शब्न में, बिना नशे नारायण के इस ज्ञान के’, अभी रोज़ पीना पड़े ना। कितनी प्वाइंट्स नई आती हैं। न होंगे तो कैसे सुनंगे? क्योंकि बाबा ने समझाया है, एक्युरेट वाणी, ये जो बाबा को बैठ करके देखते हैं ना कि कैसे ये एक्सप्रेशन्स भी निकलते हैं ना इनकी। तो सन्मुख बहुत अच्छा लगता है; परन्तु फिर भी बाबा कहते हैं, सब तो सन्मुख हो नहीं सकते हैं। इसलिए फिर चाहे टेपरिकार्ड से भी सुने ज़रूर, तो कुछ नशा चढ़ेगा। मुरली पढ़े ज़रूर, नहीं तो फिर कोई प्वाइंट्स निकल जाएगी। क्या पता कोई वक्त में किसको तीर लग जाए। भले है तो बरोबर। अभी समझा कि वो ही है। तो कोई वक्त में नए को तीर लग जाती है ना। आएँगे तो तीर लगेगी। देखो, इस समय में बाबा ने कितने अच्छे अच्छे साधन बनवाए हैं। आगे कोई थोड़े ही थे। ग्रामोफोन आदि थोड़े ही था। बाबा जब छोटेपन में थे तो दुकान में वो शमा जलाते थे, बिजली थोड़े ही थी। ये 100 वर्ष में क्या निकल गया है - रेडिओ, टेलीविज़न आदि। जब यहाँ रखेंगे टैलीफोन टेलीविज़न .... तो फिर सब देख भी सकेंगे, फिर सुन भी सकेंगे। ऐसे भी नए बच्चे आते हैं। तो फिर ये बहुत सुनेंगे ना। फिर झाड़ बहुत जल्दी जल्दी बढ़ता जाएगा।......एक से दो पत्ते, दो से चार पत्ते, चार से आठ पत्ते। ऐसे ही झाड़ बढ़ता है। यह झाड़ है ना। तो इस झाड़ को अच्छी तरह से समझना। यह बाबा ने बनवाया है ना। और तो कोई जानते ही नहीं हैं इस झाड़ को। बाबा थोडे़ ही जानते थे। नहीं। यह झाड़ और ड्रामा, यह सामने करके मैं समझाऊँगा। फिर भी जो समझाऊँगा, कल्प पहले वही समझेंगे। जो इस देवी-देवता धर्म के होंगे ही नहीं उनका इतना अटेन्शन ही नहीं जाएगा; क्योंकि फिर से देवी-देवता धर्म की सैम्पलिंग लग रही है - जो हिन्दू कहलाते हैं, कनवर्ट हो गए, मुसलमान, हिन्दू, बुद्ध। एक अडेंडकर आया था ना। एक ही भाषण से पौना लाख कि कितना सुनते थे, बुद्ध ही बन गए। अरे, कहाँ हमारा कुलभूषण, देवी-देवता धर्म वाले और फिर देखो, बुद्ध धर्म में चले गए, क्रिश्चियन धर्म में चले गए, फलाने धर्म में कनवर्ट हाते होते मुसलमान बन गए। कितना ऊँच कुल! तो बच्चें यहाँ अभी तुम हो ईश्वर के घर में। दादा है? बाबा है? तुम ऐसे कहेंगी - हाँ, हमारा दादा जो है ना, परमपिता परमात्मा, वो भी यहाँ है। फिर ब्रह्मा दादा, यह है ऊँच ते ऊँच और देखो रहते कैसे हैं? है कोई मान?.. कुछ भी नहीं। हाँ, होगा। आहिस्ते आहिस्ते बढ़ता जाएगा। फिर तो इतनी भीड़ होगी जैसे उन्हों की भीड़ होती है। बाहर में आते हैं ना। कोई मरा तो लाखों आए, कोई बाहर से आए तो लाखां आए। कितने देखते हैं! तुम बच्चों को वो थोड़े ही प्यारा लगता है। किंग विजि़टर आए, कोई केनेडी आए, यह फलाना आए, कितना देखते हैं। बाप को सब एकदम भूल गए हैं। बाप जब आते हैं, उस समय में क्या होता होगा! पिछाडी़ में कहते हैं ना - अहो, बाबा! प्रभु कहेंगे ना। तेरी .... लीला! तुम्हारी गत और मत यानी सद्गति करने की और गति करने की मत बिल्कुल ही न्यारी है। ये कलहयुगी तो गत नहीं करते, और दुर्गति में डालते हैं। अभी सुना बच्चों ने अच्छी तरह से? कौन थी सुबह को, करोलबाग थी या फलाना कुछ? बाप की तो महिमा बताओ, जिसके पास आते हो सुनने को। ‘त्वमेव माता च पिता’, बस, गीत सुना है। बाबा ने सुनाया ना। सिक्ख भी गाते हैं - ‘मूत पलीती कपड़ धोय’। ‘मानुष ते देवता किए...’ किसकी महिमा करते हैं? कहते हैं एक ओंकार, सत् नाम का ....... अकालमूर्त, अजोनि, यह महिमा कर दिया ना। अब फिर इनके पास दो चीज़ बहुत अच्छी है - जप साहिब और सुख मनी। साहब को जपो तो तुमको सुख मिले। छोटेपन में बाबा का ये सब बहुत पढ़ा हुआ है। जप और फिर है सुख मनी। जप साहब को तो सुख मिले अभी प्रैक्टिकल में। सच्चा साहब तो वो है ना। तुम याद करती हो सचखण्ड के स्थापन करने वाले को और तुमको सुख अथाह मिलते हैं। अभी ‘जप साहब और सुख मनी’ किसके याद में; परन्तु वो समझते थोड़े ही हैं, जबकि बाप आ करके समझावें। अक्षर ही बिल्कुल ठीक है - ‘जप साहब और सुखमणि’। तो बरोबर साहब को जपो, तो सुख मिले तुमको। तो बाबा अभी कहते हैं ना -बच्चे, मन्मनाभव, मद्याजीभव और तुम स्वर्ग का सुख भोगेंगे। अच्छा, हो गया सब?
टोली मिल गई सबको? जिनको नहीं मिला है हाथ खड़ा करें बच्चे, जिनको टोली नहीं मिली है सो हाथ उठाओ। इस बच्ची को नहीं मिली है। यहाँ देखो। लो मीठे बच्चे। आते जाओ। तुम भी लो। तुमने लिया है? लो, लाल। बाबा कहते हैं - ओ, मरे लाल! ओ, मेरे प्राणों से प्यारे! क्योंकि जिस्मानी संबंध तो तोड़ दिया। वो तो बिचारे हैं ही नहीं; क्योंकि छोड़ दिया ना। क्योंकि वो माया की तरफ, हम ईश्वर की तरफ, हमारी लड़ाई लग जावे, हम क्या करें उनको। इनको कहते हैं - ओ, मेरे लाल! मेरे प्राणां के प्यारे लाल! कितना प्यार करते हैं ना बच्चों को। बरोबर हैं तो उनके रूहानी बच्चे। इसको कहा जाता है - स्प्रीचुअल बच्चे, रूहानी बच्चे। कितना प्यार से बैठ करके, कितना गुलगुल बनाय, एसे कोई बाप कब देखा? बच्चे बहुत होते हैं, किनको छः-सात बच्चे होते हैं, कोई बैरिस्टर, कोई इंजीनियर। बोलते हैं - वाह, बाप तो ऐसा चाहिए, जिनके बच्चे ऐसे! अरे, यहाँ तो देखो बाप के कोई सूर्यवंशी महाराज सो भी 21 जन्म के लिए, ऐसा बाप कब देखा? माँ-बाप तो कहेंगे ना। लो आते जाओ.........शिवबाबा, ब्रह्मा दादा, मीठी मीठी जगदम्बा का मीठे मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति गुडमार्निंग।


कविता- आया भगवान है.