19-01-1963     कानपुर     प्रात: मुरली    साकार बाबा     ओम् शांति     मधुबन
 


हम कानपुर से बोल रहीं हैं, आज सन्डे है, सन 1963, जनवरी की 19 तारिख है, प्रात: क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं

रिकार्ड:-

तुम्हीं हो. माता, पिता तुम्हीं हो.............।

ये भारतवासियों का भक्तिमार्ग का एक गीत है । देवताओं के आगे भी मंदिर में जाकर कहते हैं- 'त्वमेव माताश्च पिता त्वमेव, त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव, त्वमेव विद्या द्रविण त्वमेव' । विद्या माना ज्ञान, द्रविणं माना धन, ज्ञान रत्न । त्वमेव मम शरण । अभी किसके शरण आते हैं? बात हुई ना । मात-पिता । फिर गाते हैं कि मात-पिता, हम बालक तेरे । यह महिमा किसकी? समझने का है ना । कोई लौकिक बाप की तो नहीं है? सन्यासियों को कह भी न सकें बिल्कुल ही । हाँ, इतना है कि मंदिरों में जा करके ये देवताओं को कहते हैं । फिर जो सामने आया, उनको ऐसे कह देते हैं; परन्तु यहाँ समझ की बात है- 'तुम मात-पिता, हम बालक तेरे, तुम्हरी कृपा ते सुख घनेरे', यह कौन हो सकते हैं सिवाय परमपिता परमात्मा के । अब उनकी गोद चाहिए; क्योंकि महिमा उनकी होती है । अब गोद मिलेगी, प्रजापिता के द्वारा, यह दलाल बनते हैं, सगाई करने के लिए । अभी सगाई जब करते हैं परमपिता परमात्मा से खुद परमात्मा । आत्माएँ, परमात्मा अलग रहे बहुकाल । सुंदर मेला कर दिया जब सत्‌गुरु मिला दलाल, कलहयुगी गुरु नहीं । वो गुरुओं के लिए तो गाया जाता है- गुरु सब अंधले चेले सबकी सत्यानाश । गाई जाती है ना । कहा भी जाता है कि गुरु बिगर घोर अंधियारा । अभी सोझरा होता है, सतयुग को सोझरा कहा जाता है । तो जब वो सतगुरु अथवा ज्ञान का सागर आवे, तब सोझरा हो अर्थात् सतयुग हो अर्थात् ब्रह्मा का दिन हो । तो जरूर ब्रह्मा की रात हुई । शिवबाबा कहे- मुझे इसी समय में ही आना है । देखो, बहुत समझने की बात है । तो बाप, शिवबाबा आया हुआ है । ये ब्रह्मा द्वारा, ये बच्चे खड़े हैं सब, बैठे हैं सब , जानते हैं की तुम मात पिता प्रजापिता ब्रह्मा, ये सभी ब्राहमण कुल । अभी यह जानते हैं की हमको मात पिता की गोद में आने से, अभी किसकी गोद है? शिवबाबा की, ब्रह्मा द्वारा ब्रह्मा के तन में । अभी माता और पिता, जगदम्बा को भी कहते हैं और जगतपिता को भी कहेंगे । अभी तुम आए हो ये गोद में लेने के लिए । अभी बाप और दादा बाहें पसारे खड़े हैं, वो ही मात-पिता और जो इस गोद में आते हैं, जो ब्राहमण ब्रह्मा मुखवंशावली ब्राहमण बनते हैं, बस बना और कौड़ी से हीरे जैसा बना । बाप की गोद में आया; क्योंकि 'तुम मात-पिता, हम बालक तेरे, तुम्हरी कृपा ते सुख घनेरे अर्थात स्वर्ग का मालिक बनेंगे और है भी राजयोग । राजाओं का राजा बनने तुम सभी यहाँ आते हो । यह तो ठीक है ना? प्राप्ति के लिए । बहुत प्राप्ति है, अथाह प्राप्ति है । तुम सन्यासी को या किसको भी 'तुम मात-पिता कभी नहीं कह सकेंगे । अभी तुम यह जानते हो कि शिवबाबा की जयन्ती हो चुकी है और बरोबर वो आए हैं । बाप आए हैं फिर इस पतित दुनिया को पावन बनाने अथवा इस कलहयुगी दुनिया को वा हेल को कहो या नर्क को कहो, स्वर्ग बनाने । अभी इतने सब ये बच्चे बैठे हैं । इतने बच्चे किसके हो सकते हैं? जरूर प्रजापिता ब्रह्मा के होंगे ना । प्रजापिता यानी यह प्रजा । अभी ये सब जानते हैं वा ब्रह्मा को कहते हैं मम्मा बाबा । ब्रह्मा और सरस्वती को मम्मा-बाबा कहते हैं ना । अभी ये जानते हैं कि मात-पिता, शिवबाबा मम्मा ये बाबा, इनकी गोद में आने से हम बरोबर स्वर्ग के मालिक बन रहे हैं । इसको ही कहा जाता है राजयोग और ज्ञान । किसके साथ योग सिखलाते हैं? अपने साथ । बीती सो बीती देखो ना । यह जो भी दुनिया चक्कर लगाकर इस तक आई है, यह हो गया कलहयुग का अंत, सतयुग की आदि । इसको कहा ही जाता है- 'संगमयुग', कॉनफ्लुअन्स युग' । कल्प का कॉनफ्लुअन्स । युग का कॉनफ्लुअन्स नहीं, क्योंकि युग के कॉनफ्लुअन्स में ऐसे हो नहीं सकता है कि पतित से पावन दुनिया बन जाए । होनी है कलहयुग से सतयुग की दुनिया । तो बाप कहते हैं- मैं आता भी अब हूँ । तुम बच्चे आए हुए हो । कहते हो- हम कल्प पहले मुआफिक फिर से मिले हैं । कल्प-कल्पांतर मिलते ही आए हैं । कल्प-कल्पांतर मिलते ही रहेंगे । बाबा कहते हैं ना- हम, तुम और ये सभी आज हैं, कल्प पहले थे, कल्प-कल्प होंगे, फिर से मिलेंगे । यह महाभारी-महाभारत लड़ाई, यह है ही गीता के एपिसोड की, यानी गीता का इस समय में एपिसोड या पार्ट कहो, रिपीट हो रहा है । रिपीट यानी फिर से । बाप आकर इस भारत को स्वर्ग बनाते हैं । गीता से भारत स्वर्ग बना है । ऐसे नहीं है कि द्वापरयुग में कृष्ण ने कोई गीता आकर सुनाई । नहीं, ये सब देखो झूठ हो गया ना । गाया भी जाता है- 'झूठी माया, झूठी काया । काया भी झूठी है, क्योंकि पाँच तत्व, वो भी तो झूठे हैं । माया ने झूठा बनाय दिया है सबको । आत्मा को भी झूठा बनाय दिया है । जो कुछ आत्मा बोलती है, झूठ बोलती है । साधु की आत्मा झूठ बोलती है, कहती है कि ईश्वर सर्वव्यापी है । सो कहते आते हैं जन्म-जन्मांतर । उससे क्या फायदा हुआ? कौन-सा वाक्य मीठा हुआ? बच्चे से पूछो- तुमको मालूम है शिव कहाँ है? बच्चा बोलता है- मेरे में है, तेरे में है, फलाने में है । तो बाप बैठकर कहते हैं यह तो तुम करते आए हो बरोबर, शास्त्र पढ़ते आए हो; परन्तु बाबा कहते हैं- बच्चे, ज्ञान और भक्ति । ज्ञान माना ही सतयुग और त्रेता, दिन ब्रह्मा का । भक्ति माना ही द्वापर और कलहयुग । यह चक्र फिरता है । ज्ञान--भक्ति, ज्ञान-भक्ति, चक्कर फिरता जाय । भक्ति से दुर्गति होती है । अभी दुर्गति का अर्थ तो समझ गए ना- धक्का खाना । भक्ति के धक्के खाते खाते फिर देखो, भगवान आकर मिलते हैं । अभी खड़ा है ना बरोबर, जिसको तुम मात-पिता कहते हो । आया हुआ है बरोबर । तुम जानते हो- अभी हम माता-पिता से वर्सा ले रहे हैं । जितना जो पुरुषार्थ करेगा, इतना उनको फल पाना है । एम ऑबजेक्ट है राजयोग' अर्थात राजाओं का राजा बनने का । तो हो गई ना पाठशाला । कौन बैठकर पढ़ाते हैं? भगवानुवाच । यह कौन-सा भगवान है? वो भगवान खुद कहते हैं- मैं मनुष्य-सृष्टि का चैतन्य बीजरूप हूँ । चैतन्य होने के कारण, बीज होने के कारण, मैं मेरी इस सारी रचना के आदि-मध्य-अंत को जानता हूँ और कोई भी नहीं जानते हैं अर्थात मैं ही आकर बच्चों को रचता और रचना के आदि-मध्य-अंत का ज्ञान देता हूँ । मैं एक ही बार आता हूँ पतितों को पावन करने वा इस नर्क को स्वर्ग बनाने अथवा इन कलहयुग को फिर सतयुग बनाने । मेरा आना होता है इस संगमयुग पर । अभी कितनी सहज बातें बाप समझाते हैं और कहते हैं कि बच्चे, आधा कल्प भक्ति का, तुम पहले अव्यभिचारी भगत थे । पहले-पहले कौन भगत बने? जो पूज्य थे- श्री लक्ष्मी नारायण जो फिर देवता से क्षत्रिय बने, फिर पहले उनको वैश्य बनना है ना । वाममार्ग में आना है जरूर । तो पहले-पहले वह पूज्य से पुजारी बने । यथा राजा-रानी तथा प्रजा, सब पूज्य से पुजारी बने । अव्यभिचारी योग पहले किसके साथ शुरू किया? शिवबाबा के साथ । इसको ही कहा जाता है सतोप्रधान भक्ति । पीछे सतोगुण से फिर आई नीचे । आहिस्ते-आहिस्ते फिर रजो में आई, फिर तमो में आई । तो अभी तमोप्रधान भक्ति । सब तमोप्रधान । कोई भी ऐसी चीज नहीं है, जिसको सतो कह देवें क्योंकि सतोप्रधान तो सतयुग को कहा जाता है । देखो यह कौन है? किसके गोद में आ करके बैठे हो? बच्चों के बाबा, यह गोद का गुदाम बन गया । इतने बच्चे! बाबा और मम्मा कौन कहेंगे किसको? यहाँ कोई साधु-सन्त-महात्मा तो नहीं हैं ना! सन्तों को तुम मात-पिता कह नहीं सकते हो, क्योंकि वो है ही निवृत्तिमार्ग । यह है प्रवृत्तिमार्ग । बाप समझाते हैं तुम कल की बात भूल गए हो । कल तुम्हारी यह दिल्ली वा यह भारत परिस्तान था । श्री लक्ष्मी नारायण का राज्य था । यह भी भूल गए हो कि राधे और कृष्ण सो ही लक्ष्मी नारायण बनते हैं । राधे-कृष्ण कोई द्वापर में नहीं आते हैं । राधे और कृष्ण सतयुग के सोलह कला सम्पूर्ण युग में आते हैं । जब कृष्ण-जन्माष्टमी होती है तब माताएँ उनको झुलाती हैं । फिर रेस करके, जो राम के भक्त हैं वो यह रामचंद्र को आगे नहीं झुलाते थे । अभी वो असर भी तो होता है ना, तो रामचंद्र को भी अभी कोशिश करते हैं झुलाने के लिए, क्योंकि ये कम क्यों जावे, परन्तु है तो कृष्ण न । 'चलो वृंदावन,.. भजो राधे-गोविंद कुछ ऐसे कहते हैं । अभी राधे-गोविंद तो सतयुग में थे ना । बच्चे थे, फिर स्वयंवर किया, लक्ष्मी नारायण बने । तो बाबा ने उस दिन कथा बताई- एक नारद भक्त झॉझ बजाते आया । स्वयंवर होता था लक्ष्मी नारायण का । तो नारद को कहा....है ये एक दंतकथा बनाई हुई है दृष्टांत के मुआफिक बाबा समझाते हैं । आया और बोला कि श्री नारायण मेरी दिल है कि मैं लक्ष्मी को वरूँ । तुमने नारद की कथा पढ़ी होगी । वही नारद जिसको चोटी दे देते हैं । हाँ सुनो, तो उनको कहा, स्वयंवर होता होगा  - हम लक्ष्मी वरें । हाँ तुम लक्ष्मी वरेंगी? क्यों नहीं वरेगी! अच्छा, तुम जाना, तुमको लक्ष्मी वरेंगी । अच्छा, वहाँ जब लक्ष्मी हार लेकर के स्वयंवर का फिरती रहीं, तो जब नारद उनके सामने आया, तो उनको आइना दिखलाया । देखा, मैं तो बन्दर हूँ । मैं लक्ष्मी को कैसे वरूंगा? भारत इस समय में बन्दर है ना । पाँच विकार भरे हुए हैं । जो बन्दर होंगे तो वो लक्ष्मीपति कैसे बनेंगे? जो ज्ञान उठाएँगे, पवित्र बनेंगे, पाँच विकारों पर जीत पहनेंगे, वो ही लक्ष्मी को वरेंगे ना । तो तुम किसलिए यहाँ आते हो? हरेक कहते हैं कि मैं लक्ष्मीपति बनूँ या नारायण की लक्ष्मी बनूँ । नारायण बनना है वा लक्ष्मी बनना है । या तो नारायण को वरना है, या नारायण को लक्ष्मी को वरना है  । यह इम्तिहान तो देखो कैसा वण्डरफुल है! तुम यहाँ आए हो ना बन्दर से लायक बनने, लक्ष्मी को वरने, नारायण को वरने । नर से नारायण बनना या नारी से लक्ष्मी बनना, तो जरूर आपस में वरेंगे ना । देखो, यह कहाँ का दृष्टांत, कहाँ लगाय दिया बैठकर । कभी कोई आकर पूछते हैं कि बाबा, बाप से योग कैसे लगावें? अरे मुट्ठे, बाप से योग कैसे लगावें, यह प्रश्न भी कोई सेन्सीबुल उठाय सकते हैं? तुम अपने लौकिक बाप से यह बुद्धियोग कैसे लगाते हो? तुमको लौकिक बाप याद नहीं आता? लौकिक बाप के लिए तो नहीं पूछते हो ना । कहते भी हैं बाबा को शिवबाबा । बाप ने कह दिया है कि बच्चे, मनमनाभव अर्थात् मुझे याद करो तो तुम्हारा सब विकर्म विनाश होगा । बच्चे अपन को देहीअभिमानी समझ करके अगर प्रश्न पूछें तो प्रश्न उठ नहीं सकते हैं कि हम आत्माएँ है, हमको बाबा ने फरमान किया है कि मुझे याद करो, तो तुम्हारा विकर्म विनाश होगा । अभी कौन कहता है? वो कहते है- मुझे याद करो । लौकिक बाप की तो बात ही न रही । लौकिक बाप को तो सब याद करते हैं । अगर यहाँ के कोई ब्राहमण आ करके पूछें कि बाबा, हम शिवबाबा को सदैव कैसे याद करें? बाबा को हम सदैव याद न करेंगे, तो क्या करेंगे- यह प्रश्न उठ रहा है कोई? तो बहुत ही ऐसे प्रश्न पूछते हैं- बाबा, हमारा सदा योग कैसे लगे? अरे, तुम्हारा बाप से सदा योग नहीं लगा था? वो तुम्हारा लौकिक बाप, यह तुम्हारा पारलौकिक बाप । वो तुमको दुःख देने वाला, उससे तुम्हारा सदा योग लगा था, कामकटारी चलाने वाला, तुमको विख पिलाने वाला । जो तुमको अमृत पिलाय कर स्वर्ग का मालिक बनाते हैं, तुम कहते हो- बाबा, इस बाबा शिवबाबा के साथ योग कैसे लगावें? बाबा कहते हो, शिवबाबा कहते हो, परमधाम के मालिक कहते हो, फिर कहते हो- योग कैसे लगावें? यह भी कोई बात है! इतना भी अक्ल नहीं है बुद्धुओं में । योग लगाना तो बिल्कुल ही सहज हुआ ना । मोस्ट ईजी कहते हैं । उस लौकिक बाप को इतना नहीं याद करना होता है, जितना उनको याद करना है; क्योंकि सर्व शक्तिवान बाप, जो स्वर्ग का मालिक बनाते है, जहाँ प्राप्ति अथाह है, वो बोलते हैं- अभी तुम्हारा अंतिम जन्म है । तुम सबका अभी एक सतगुरु । तुम्हारा कोई भी गुरु काम में नहीं आएगा और फिर ऐसे भी मत समझो- बुड्ढा होंगे तब गुरु करेंगे । बूढ़ा यानी वानप्रस्थ अवस्था । आज जैसे गुरु किया जाता है, सो तो बिल्कुल कायदे मुजीब है । भक्तिमार्ग में सो तो जरूर गुरु भी ऐसे ही करना है, जबकि हम फुर्सत हो जावे । गुरु करना है निर्वाणधाम के लिए पुरुषार्थ करने के लिए, क्योंकि वानप्रस्थ अवस्था लेते हैं अर्थात् वाणी से परे, वानप्रस्थ में जाने के लिए कोई गुरु करके पुरुषार्थ करना होता है । समझा ना । वह हुआ 50 वर्ष के बाद करना चाहिए, परन्तु आजकल के कलहयुगी गुरुओं ने सभी को, छोटे-बड़े, फलाने को गुरु बना दिया है ना । चेले बन गए हैं । जिन अथाह गुरुओं से बहुत गुरु होते आए हैं, परन्तु आखरीन क्या हुआ? अनेकानेक गुरुओं, अनेकानेक फालोअर्स तो क्या हुआ है? गुरु जिनके अंधले क्योंकि ये है अंधो की औलाद अंधे । माया ने तो सबको अंधा कर दिया है ना । अंधो के लिए तो वो लाठी, कलहयुगी गुरु को तो लाठी नहीं चाहिए ना । कोई मनुष्य लाठी नहीं है । सबके अंधो की लाठी, हे प्रभु आप! बरोबर सभी है अंधो की औलाद अंधे, उनमें सब आ गए । सभी हैं आसुरी सम्प्रदाय । अभी कल्प पहले मुआफिक मैं फिर कहता हूँ मैं कहता हूँ, तुम्हारा बाप कहते हैं ना, या तुमको बाप को भी कोई राय देनी है? तुमको अभी श्रीमत मिलती है । शिवबाबा और ब्रह्मा की मत मिल रही है । क्या उनको भी तुम बच्चों को मत देनी है कि बाबा, ऐसे ना करो, ऐसे करो? कौन है गीता का भगवान? श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ । श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ तो है ही परमपिता परमात्मा, जो कृष्ण को भी, जो तमोप्रधान में आ जाते हैं, उनको श्रेष्ठ बनाते हैं, लक्ष्मी नारायण जैसे । कुछ समझते हो या समझते नहीं हो? या माया ने तुमको गॉडरेज का ताला लगाय दिया? बुद्धि को पत्थर बुद्धि कर दिया है? सहज बात बाप फिर से आकर कहते हैं-बच्चे, सबको वापस जाना है, इन बच्चों को भी वापस जाना है । जब यह बोंब्स गिरेंगे तो क्या कोई गुरु करने बैठ जाएँगे? ये सब मर जाएँगे । छोटे-बड़े की अभी वानप्रस्थ अवस्था है । छोटे-बड़े को अभी वापस जाना है । वानप्रस्थ कहा जाता है-वापस जाने के लिए पुरुषार्थ करना या जाना । निर्वाणधाम भी उसको कहा जाता है । इनकारपोरियल वर्ल्ड भी उनको कहा जाता है । निराकार दुनिया भी उसको कहा जाता है । निराकारी दुनिया माना ही दुनिया यानी आत्माओं की दुनिया । बाप ने बच्चों को समझाया है- जैसे यह मनुष्यों का उल्टा झाड़ है वैसे ही वहाँ फिर आत्माओं का झाड़ है । हरेक धर्म की सेक्शन है । वहाँ से वो सब आते रहते हैं । बाप बैठकर इतना समझाते है कि इतनी सहज बात समझाता हूँ कोई भी तकलीफ नहीं । शिवबाबा कहते हैं कि कायदे अनुसार यहाँ से यह लक्ष्य पकड़ करके अमेरिका जाओ, विलायत जाओ, कहाँ भी जाओ, सिर्फ क्या काम करो- मुझ अपने शिवबाबा को याद करते रहो । जितना याद करेंगे इतना विकर्म विनाश होंगे । अभी जितना याद कर सको, वो रखो अपने पास लिखत में । उस लिखत को क्या कहते हैं? चार्ट । हम सारे दिन में कितना याद करते हैं, जो प्रैक्टिस पड़ जावे, जो अंत समय में फिर तुम्हारी बुद्धि का योग शिवबाबा के साथ हो । समझा ना । यह पुरुषार्थ करने से होता ही रहता है । बाबा कितना समझाते हैं- बच्चे, कहाँ भी जाओ, ऑफिस में जाओ, खाते जाओ, पीते जाओ, सिर्फ शिवबाबा को जितना फुर्सत मिले याद करो । बस । कहाँ भी, कोई मना थोड़े ही करते है । बैठो नहीं । ऐसे नहीं कि हम बैठ गए हैं- मुझे योग सिखलाओ मुझे दृष्टि दो । कुछ भी नहीं । कहाँ भी हो भले । याद करो और फिर किसको याद करो? फिर सुखधाम को याद करो । वो हो गया शान्तिधाम वो है सुखधाम, यह है दुःखधाम । यह कोई शान्तिधाम नहीं है । यह है दुःखधाम वो है सुखधाम । शान्तिधाम है ही अपना निर्वाणधाम, जहाँ से हम पण्डे या पिंडे या आत्माएँ आती है इस कर्मक्षेत्र पर ड्रामा में पार्ट बजाने । तो सभी मनुष्यमात्र इस ड्रामा के एक्टर्स है, पार्ट बजाते हैं । हम आत्माएँ आती हैं परमधाम से । यहाँ हमको चोला मिलता है, फिर हम पार्ट बजाते हैं । एक चोला छोड्‌कर, फिर दूसरे चोले में पार्ट बजाती है । इसको ड्रामा कहा जाता है । अब इस ड्रामा के आदि-मध्य-अन्त, क्रियेटर-डायरैक्टर यानी रचता और रचना के आदि-मध्य-अन्त की नॉलेज क्या जनावर सीखेंगे? पशु-पक्षी सीखेंगे? मनुष्य सीखेंगे ना । जानना होना चाहिए ना कि यह सारे ड्रामा के हम एक्टर्स हैं; परन्तु इनका क्रियेटर कौन है? कह देंगे कि क्रियेटर गॉड फादर है । अभी गॉड फादर, फादर है ना । उसको शिव कहेंगे ना । ब्रह्मा ,विष्णु, शंकर उनके भी तो शरीर अलग है ना । ऐसे तो नहीं कहेंगे- प्रसिडेंट भी वही है, प्राइमिनिस्टर भी वही है, एम०पी० भी वही है, एम०एल०ए० भी वही है, भित्तर भी वही है, ठिक्कर भी वही है, कुत्ता भी वही है, बिल्ली भी वही है । ये कोई बात है? तो बाप बैठकर समझाते हैं- अभी है 'अंधेरी नगरी, चौपट राजा, टके सेर भाजी, टके सेर खाजा । सुना है कभी यह पहाका? सभी एक । कुत्ता-बिल्ला, शूद्र, ब्राहमण, भंगी, ये सभी एक । यह क्या? यानी धर्म ही नहीं है । कोई धर्म को मानते ही नहीं है । रिलीजन इज माइट । ऐसे गाया भी जाता है । अच्छा, रिलीजन स्थापन कराने वाला तो बाप है ना । बाप कौन-सा रिलीजन स्थापन करते हैं? भारत मे देवी-देवता धर्म की रिलीजन स्थापन करते हैं । तुम अभी कितना रिलीजियस बन रहे हो । अभी आस्तिक बन रहे हो, आगे नास्तिक थे । बस, आस्तिक बनने के लिए तुमको उनकी गोद लेनी पड़ती है और देखो, स्वर्ग का मालिक बन जाते हो । नास्तिक होने से कंगाल । वर्थ नॉट ए पैनी और फिर वर्थ पाउण्ड बनते हो । ऐसे कहा जाता है ना, पैनी टू पाउण्ड । भारत पाउण्ड था, अब पैनी है । ये नर्क है । ये सभी जो मनुष्यमात्र हैं, यह रौरव नर्क में है । अभी रौरव नर्क वो नहीं गरुण पुराण वाला, अभी तुम देखते हो जो भी बच्चे-बच्चियाँ पैदा होते हैं, ये एक दो को खाते हैं, मारते हैं, चिल्लाते हैं, एक-दो के ऊपर काम-कटारी चलाते हैं, दुःख भोगते हैं । और क्या है? बाप-बच्चे की लड़ाई, बच्चे-बच्चों की लड़ाई स्त्री-पुरुष की लड़ाई, यह नेशन-नेशन की लड़ाई । देखो, क्या हाल है! क्या इसको हेल नहीं कहेंगे? बच्चे सब मानते है कि बाबा, यह हेल है । क्यों कहते हैं? जब मरा-लेफ्ट फोर हेविनली अबोड । कहाँ से? हेल से । हेल तो मानेंगे ना । स्वर्ग के लिए तो नहीं कहेंगे लेफ्ट फोर हेविनली अबोड, जबकि है ही हेविन में । कहेंगे? या लेफ्ट फॉर वैकुण्ठ या स्वर्गवासी हुआ । स्वर्ग में कहेंगे? नहीं ना! नर्क में कहेंगे ना । नहीं मानते हैं कि बरोबर हम नर्क में गोता खाते रहते हैं । पता ही नहीं पड़ता है इनको । कोई समझाने वाला नहीं है । शास्त्रों के कारण और घोर अंधियारा हो गया है । बाबा कोई ऐसे नहीं कहते है कि भक्ति छोड़ दो । कभी किसको नहीं कहेंगे । जब ज्ञान की चटक में आ जाएँगे और देखेंगे सब ज्ञान में तो बरोबर हम बाप से इनहेरीटेन्स ले रहे हैं अभी । हम सो लक्ष्मी नारायण बन रहे हैं । अभी हम लक्ष्मी नारायण को पूजा करके क्या करेंगे? हम सो बन रहे है, पीछे भक्ति किसकी करें? जब ज्ञान की पराकाष्ठा होगी .भक्ति आपे ही छूट जाएगी । ज्ञान जिंदाबाद तो भक्ति आपे ही मुर्दाबाद हो जाएगी । फिर जब ज्ञान मुर्दाबाद होता है, तो भक्ति जिंदाबाद । है ही ज्ञान-भक्ति, भक्ति-ज्ञान । अभी इतना समझाते रहते हैं बच्चों को अच्छी तरह से कि बच्चे, समझो, अभी मौत है सबका, छोटे-बड़ों का भी । बच्चों को भी यही सिखलाओ कि तुम देखो शिव बाबा को । उनको समझा दो- अभी शिवबाबा को याद करो । शिवबाबा परमधाम में रहते हैं । हम भी परमधाम से आते हैं । शिवबाबा को याद करो तो वो बाबा हमको स्वर्ग का मालिक बनाय देंगे, क्योंकि बाबा का वर्सा हुआ ना । अब जिस बाप से इनहेरीटेन्स मिलता है 21 जन्म का, और आ करके पूछे- उस बाबा को हम स्थायी कैसे याद करें? यह भी कोई बात है! अच्छा, भला यह पढ़ाई कैसे पढें? कुछ भी तुमको कागज-वागज नहीं चाहिए । शिवबाबा को याद करो और अपने स्वर्ग को याद करो । राजाई को याद करो । विष्णुपुरी को याद करो । बस । कहाँ भी जाओ, जाकर याद करो और देखो, तुम बहुत अच्छी तरह से वर्से पाएँगे; क्योकि बादशाही स्थापन हो रही है ना । इसमें तकलीप है? हाँ यह जरूर है की नटशेल में जैसे जनक को कहते हैं एक सेकेण्ड में जीवनमुक्ति । तो कहाँ भी रहते जीवनमुक्ति पाई । जीवनमुक्ति का अर्थ पहले पहले क्या है? सभी जीव आत्माओं को बाबा आए है. .माया से मुक्त करने । तो सबको जीवनमुक्ति मिलती है । क्या सतयुग में आ करके सभी इकट्‌ठे जीवनमुक्त होंगे? बाबा कहते हैं- नहीं, बच्चे । जो आकर सगे बच्चे बनते है, गोद में आते हैं उन्हें ही जीवनमुक्ति मिलती है, गोद हुई ना, गोद का गुदाम हुआ ना । ऐसा कोई गुदाम होता है कभी? सुना है प्रजापिता । प्रजा माना क्या? स्त्री और पुरुष । प्रजापिता-पिता और माता । पिता-माता से वर्सा मिलना चाहिए ना । तुम मात-पिता, हम बालक तेरे । तुम्हरी कृपा ते स्वर्ग के 21 जन्म के सुख घनेरे । जन्म के सुख घनेरे मिलने के लिए हम पुरुषार्थ कर रहे हैं । फिर इनके बाद स्वर्ग आएगा ही । विनाश सामने खड़ा है । अभी देखते तो हैं बरोबर सभी । सब जानते है- इतने ढेर थे? नहीं । अभी झाड़ आहिरते-आहिस्ते वृद्धि को पाते रहेंगे । जिन्होंने कल्प पहले जितना जो पुरुषार्थ करके पद पाया वो आएँगे जरूर । ऐसे ही पुरुषार्थ करेंगे । साक्षी हो करके देखना भी है । अपनी अवस्था की भी जाँच करनी है कि हम कहाँ तक पुरुषार्थ कर रहे हैं, कैसे माँ-बाप को फालो कर रहे है क्योंकि जानते हैं कि माँ और बाप ब्रह्मा और सरस्वती के फिर जाकर लक्ष्मी नारायण बनते हैं । तत् त्वम । तुम भी जो ब्राहमण हो, जितना जो पुरुषार्थ करेंगें सो जाकर वर्सा लेंगे अपने पुरुषार्थ अनुसार । जरूर समझते हो कि श्री लक्ष्मी नारायण सूर्यवंशी बनेंगे । जरूर उनकी प्रजा भी होगी । उनके अनेक प्रकार के दास-दासियाँ भी होंगे । फिर वो तो जो पास हो जाएँगे सो राजा-रानियाँ बनेंगे । सोलह कला यानी सम्पूर्ण पास होंगे । जो पढ़ते हुए थोड़ा नापास हो जाएंगे, 33 मार्क्स से नीचे आएंगे वो क्षत्रिय वंश में चले जाएँगे । श्री सीता और राम, उनको ऐरो दिया है । वो कोई वो बाण नहीं है, ये ज्ञान के बाण हैं । वो माया पर पूरी जीत पहन न सके, तो क्षत्रिय तो कहलाएँगे ना । तुम क्षत्रिय हो ना । कौन से क्षत्रिय हो? वाइलेंस वाले क्षत्रिय नहीं हो, नॉन वाइलेंस के क्षत्रिय हो और गुप्त । तुम माया पर जीत पहन रहे हो । यहाँ वो गोलियों की कोई बात नहीं है । नॉन वाइलेंस इसको कहा जाता है । नॉन वाइलेंस से अहिंसा परमो देवी-देवता धर्म की स्थापना हो रही है, जो धर्म अभी प्राय:लोप है । वहाँ एक-दो के ऊपर काम-कटारी नहीं चलती है । इसलिए बाप आकर कहते हैं- बच्चे, अभी योगी बनो । योगी पवित्र होते हैं ना । तुम बच्चे सब हो राजऋषि । वो जो गेरु कफनी वाले, माथा मुंझाने वाले रजोप्रधान सन्यासी हैं वो तो जंगल में जाते हैं । वो है हठयोग सन्यास, यह है राजयोग सन्यास । अरे, राजयोग का नाम भी किसकी बुद्धि में नहीं आएगा, चाहे कोई भी विद्वान, आचार्य, पंडित हो, भले गीता भी पढ़ते हों । बाबा कहते हैं, तुम जानते हो कि हम राजयोगी हैं । राजाई के लिए हम बाप से वर्सा ले रहे हैं । हर एक राजयोगी है । राजाई के लिए पुरुषार्थ कर रहे हैं । यह स्कूल, पाठशाला में हम आए हैं । तुम बच्चे आए हो । हम पढ़ा रहे हैं । क्या? राजाओं का राजा बनने या लक्ष्मी नारायण बनने । अभी सन्यासी यह ज्ञान नहीं सिखला सकते हैं । ये गपोड़े मारते हैं कि हम जनक मिसल ज्ञान दे सकते हैं । ये गपोड़े मारते हैं, जो भ्रमरी का मिसाल देते हैं । बाबा ने समझाया है- बच्चे, तुम ही सच्चे ब्राहमण हो । ब्राहमण और भ्रमरी की एक राशि होती है । वो भ्रमरी कीड़े को ले आकर, भ्रमरी बनाती है । देखो, कमाल है ना । वण्डर है ये । तो मिसाल बाबा देते हैं कि तुम जो भारत के कीड़े हो, विष्ठा के कीड़े, गोते खाते हो, मैं तुमको उड़ाय करके, तुमको एकदम श्री लक्ष्मी नारायण परिस्तान का मालिक बनाय देता हूँ । समझा । यह कोई सन्यासी नहीं बनाय सकें । अरे, वो तो विलायत मे जाकर ठगी करते हैं, हम भारत का प्राचीन सहज योग और सहज ज्ञान सिखलाने आए हैं, राजयोग सिखलाने आए हैं । अभी सन्यासी क्या जाने राजयोग से, जो कहते हैं कि यह सुख काग-विष्टा समान है । सो बरोबर इस समय का सुख है ही काग-विष्टा समान; परन्तु स्वर्ग के सुख तो अथाह हैं ना । वो सुख कौन दे सकते हैं? वो सुख यह बाप ही दे सकते हैं । जिसको अभी प्रजापिता कहते हैं तो माँ बाप हुआ न, तो गोदाम हुआ ना गोदी का । जो आकर गोद लेकर ब्राहमण बनेंगे, बस उनको ही तीसरा नेत्र मिलता है । वो ही त्रिकालदर्शी बन सकते हैं । दूसरा कभी भी कोई बन नहीं सकते हैं, न शूद्र, न देवता । सिर्फ ब्राहमण ही त्रिकालदर्शी बन सकते हैं, क्योंकि ब्राहमण हैं योगबल से और पवित्रता के बल से भारत को स्वर्ग बनाने वाले । सन्यासी पवित्र बनते हैं तो सब उनको मत्था टेकते हैं ना । क्यों? क्योंकि अपवित्र हैं । फिर वो फालो थोड़े ही करते हैं । वो कहते हैं- हम सन्यासी शिवानन्द के फालोअर हैं; परंतु वो तो सन्यासी हैं ना । वो तो विकारी नहीं है, वो तो निर्विकारी हैं । तुम क्यों कहते हो कि हम उसके फालोअर हैं? तुम तो गहस्थी-टटटू हो । वो उनको कहते थोड़े ही हैं कि बच्चे, तुम हमको फालोअर क्यों कहते हो । तुम तो सन्यास करते ही नहीं हो । कभी किसको सन्यासियों को कहते हैं? बाबा ने तो बहुत ही गुरु किया, कोई सन्यासी ने कहा ही नहीं । हम सन्यासी, तुम हमारे को कैसे कहते हो-फालोअर हूँ । फालो तो करते ही नहीं हैं । तुम टट्टू गृहस्थी और हम पवित्र सन्यासी । तुम क्यों कहते हो फालोअर? तो वो भी उनको नहीं समझाते हैं । यहाँ तो फालो करना है ना । ये तो माँ-बाप को पवित्रता में फालो करना है । इसलिए कहा जाता है- गुरु जिसके अंधले चेले सत्यानाश । उनको कहते हैं ना कि भाई, तुम सन्यासी बनना चाहते हो तो पवित्र बनो । तुम तो झुकते रहते हो । तुम तो ऐसे बनो जो तुमको कोई झुके । बाप बैठकर तुम बच्चों को यह ज्ञान का कलश देते हैं । अभी तुम माताओं को झुकना नहीं है । यह भीष्मपितामह, द्रोणाचार्य, ये सब सन्यासी हैं ना । अभी उनको तुम्हारे आगे झुकना है । इसलिए बाप भी आ करके अनुसुइयाओं को, कुन्तियाओं को कहते हैं- याद रखना । भीलनियों को दबाया है । क्यों दबाया था? समझाने का कोई अक्ल थोड़े ही रखा है । बोलता है- मेरी लाडली बच्चियाँ, आधाकल्प भक्तिमार्ग में तुम बहुत थक गई हो । अब मैं तुमको स्वर्ग का मालिक बनाता हूँ । तुम्हारा सब थकान दूर कर देते हैं । देखो, भक्तिमार्ग में धक्का खाते हैं । क्या स्वर्ग में भी कोई धक्का खाते हैं? तो वो भक्तिमार्ग, यह ज्ञानमार्ग है । ज्ञानमार्ग दिन है, भक्तिमार्ग रात है । बच्चों को भी शिव-शिव करके कहो तो वो भी बिचारे अन्त मते सो गते हो जावें । तो जरूर कोटो में कोऊ कोऊ में कोऊ सो भी कहा है; क्योकि पहचानते तो हैं नहीं । भूल गए हैं कि गीता का भगवान कौन था । अब गीता के भगवान ने राजाओं का राजा बनाया अर्थात् भारत को स्वर्ग बनाया था । बाबा कहते हैं, ऐसे अपने बाप ने, जो तुमको स्वर्ग के लायक बनाया, उनके लिए तुम कहते रहते हो कि पत्थर में भी हो, ठिक्कर में भी हो, कच्छ में हो, मच्छ में हो । मेरे को 84 तो क्या, 84 लाख तो क्या, पता नहीं करोड़ - करोड़ जन्म दे दिया है । ऐसे तुमने अवज्ञा किया । तो भी, यह तो मेरा ड्रामा है, मेरा फर्ज है, जो मेरा अपकार किया है तुम लोगों ने । मैं तुम बच्चों के ऊपर फिर उपकार करता हूँ और ऐसा उपकार करता हूँ जो तुमको बादशाही दे करके हम निर्वाणधाम में चले जाएंगे । तुम भले राजाई करो, परन्तु सतयुग में तुमको यह ज्ञान नहीं रहेगा कि फिर हमको माया से हार खानी है । वो ज्ञान नहीं रहेगा । अगर वो भी तुमको ज्ञान होवे, तो फिर बादशाही तुम्हारी रह न जावे । इसलिए मुझे भूल जाओ। अभी कितना सफाई से समझाते हैं, तो भी नहीं समझते हैं । फिर क्या करें? न रोज पढ़ाई के लिए आते हैं, जो पाइंट को अच्छी तरह से धारण करें । एक दिन आएँगे, दूसरे दिन नहीं आएँगे । तीसरे दिन आएंगे, चौथे दिन नहीं आएँगे । यह कोई पाठ है? इसका मतलब है कि निश्चय नहीं है कि हम यहाँ बाप से वर्सा लेने आए है । तो निश्चयात्मक बुद्धि विजयन्ती संशयात्मक बुद्धि विनश्यन्ती, यह अक्षर भी लिखे हुए हैं । विनश्यन्ती माना इतना ऊँच पद नहीं पायेंगे । समझा अच्छी तरह से? फिर बाकी कल समझाएँगे । रात को समझाएँगे । कोई समझने के लिए आवे, किसको कोई संशय है पूछने का, तो आ करके पूछे । सब आकर बाबा से पूछेंगे? वो जो गाया हुआ है- सन एण्ड डॉटर शोज फादर एण्ड मदर । हैं ना ब्रह्माकुमारियाँ । माता-पिता के बच्चे हैं ना । तो जाओ, वो माता-पिता से भी बड़े तीखे हैं । वो ध्यान में जाते हैं, सूक्ष्मवतन में जाते हैं । माता-पिता जा नहीं सकते हैं, देखो तो! तुम लकी स्टार्स हो ना । लकी सितारे, इसलिए । वो ही सब कुछ बताएंगे- हम सूक्ष्मवतन में क्या करते है, हम मूलवतन में कैसे जाते हैं । जाओ, उनसे पूछो । कोई मना थोड़े ही करते हैं । अच्छा ।