17-05-1963    मधुबन आबू     प्रात: मुरली    साकार बाबा     ओम् शांति     मधुबन
 


हेलो, गुड मोर्निंग हम मधुबन से बोल रही हैं, आज शुक्रवार है सन 1963 मई की सतरह तारिख है, प्रात:: काल में बापदादा की मुरली सुनते हैं

रिकॉर्ड:-
निर्बल से- लडाई बलवान की, ये' कहानी है. दिये की और तूफान की.........
ओम शान्ति । बाबा ने समझाय दिया है, जब ऐसे-ऐसे गीत सुनते हो, तो हर एक को अपने ऊपर ही विचार-सागर-मंथन करना होता है । अब यह तो बच्चे जानते हैं कि जब मनुष्य मरते हैं तो 12 रोज दीवा जलाते हैं और तुम फिर मरने के लिए तैयारी कर रहे हो और पुरुषार्थ करके अपनी ज्योत आपे ही जगाय रहे हो । तूफान हर एक को आने हैं । अखानी तो एक की कही जाती है ना । यह भी तो एक की ही कहानी है । सत्यनारायण की भी एक ही कहानी है । ऐसे नहीं कि सत्यनारायण की कहानी कोई सिर्फ एक के लिए है । नहीं, यहाँ तो हम जानते हैं कि ये जो माला वाले दाने हैं इन सबकी ज्योत बहुत ही उझियानी हुई है, क्योंकि पुरुषार्थ भी ये माला वाले ही करते हैं, वारिस भी माला वाले बनते हैं । इस माला में प्रजा नहीं आती है । यह जो भी माला वाले हों, उसमें भी ख्‌यालात तो करनी चाहिए कि हम विजयमाला में पहले-पहले पहन जावें । उसके लिए हर एक को पुरुषार्थ करना है कि कहा माया बिल्ली यह तूफान लगाय करके ऐसे विकर्म न बनाय देवे, जो दीवा झक्का हो जाए । अभी इसमें योग का भी बल चाहिए, तो ज्ञान का भी बल चाहिए । दोनों चाहिए । यह कैसे जागता रहे? योग से । योग के साथ ज्ञान भी तो जरूर है; क्योंकि बच्चों को योग और वर्सा । अपना भी है योग और ज्ञान से वर्सा । तो हर एक को अपने-अपने दीवे की सम्भाल करनी है । देखो, कितनी सम्भाल करनी होती है । तुम जानते हो माया कितना हैरान करती है और बरोबर पुरुषार्थ भी अंत तक चलना है । चलना ही है । ऐसे नहीं है कि रेस के घोडे कोई चलते-चलते डेस्टिनेशन को पहुंच जाते हैं । डेस्टिनेशन को यानी उस लक्ष्य को पहुंचना ही है । तो इसकी कितनी सम्भाल करनी चाहिए । कहाँ कमती भी न हो जावे । बुझ न जावे । इसके लिए इनमें योग और ज्ञान का घृत, दोनों ही डालना पड़ता है । अब बच्चे जानते हैं कि बरोबर जो बहुत छोटा दीवा है, जिनमें बिल्कुल थोड़ी चिंगारियों रह जाती हैं वो जल्दी बुझ जाता है, क्योंकि उनमें ताकत है नही योग और बल की । तो फिर दौड़ नही सकते हैं । जिसमें योग का और ज्ञान का बल नहीं है, वो दौडकर पहुँच नहीं सकते, पिछाड़ी में रह जाते हैं । तो पुरुषार्थ तो हरेक को करना चाहिए । अपने को ऐसे नहीं समझना चाहिए । स्कूल में सब्जेक्ट्स होती हैं । तो देखते हैं कि कोई पहले-पहले पढाई में तीखे नहीं जाते हैं तो जोर लगाते हैं मैथमैटिक्स में. । फिर उनको मैथमैटिक्स की भी 100 मार्क मिल जाती है । ऐसे ही यहाँ भी जोर देना चाहिए । अच्छा, वो नहीं तो भला इसमें सबजेक्टस तो हैं बहुत ही सर्विस की । स्थूल सर्विस की तो अच्छी सब्जेक्ट है; क्योंकि बाबा ने समझाया जो स्थूल सर्विस करते हैं, बहुतों को सुख देते हैं उनका दुआओं का खाता बहुत जमा हो जाता है । समझो कि यह रतन बच्ची है, इनको तो सर्विस करनी है योग और ज्ञान की । अच्छा, आहिस्ते- आहिस्त पीछे ग्राहकी तो बहुत हो जाएंगी, तुम जानते हो ग्राहकी जब बहुत नामी ग्रामी हो जाते हैं जिस जिस के बहुत ग्राहक बनते जाते हैं हैं तो उनकी कई कई ब्रांचेस खुलती जाती हैं, होना तो है न बच्चे एक-एक धनी के छह छह, आठ-आठ, दस-दस दुकान होते हैं । मैं देखा हूँ दिल्ली में एक दुकानदार है, उसके दस? बीस ब्रांचेज हैं । यह कपडे, यह सिलाई आदि की तो बहुत ब्रांचेज होती हैं न और सभी ब्रांचेज एक जैसी नहीं चलती हैं । कोई में गाहकी कम, कोई में जास्ती । जब जास्ती होती है तो बड़े बिजी हो जाते हैं । उनको मथ्हे करने की भी फुर्सत नहीं होती है । तुम्हारा एक दिन वो समय आने वाला है कि तुमको रात को भी फुर्सत नहीं मिलेगी, क्योंकि जब मालूम पड़ेगा बाबा आया हुआ है और अखूट खजाना देते हैं अर्थात ज्ञान सागर आया है तो दिन-रात सर्विस में बिजी हो जावेंगे । बाबा ने बहुत दफा समझाया है- यह ज्ञान सागर आ करके रत्न देते हैं, झोली भरते हैं और ये हैं अविनाशी ज्ञान रत्न, जिनसे इतना तो पद मिलता है । जब मालूम हो जाएगा, नामी-ग्रामी हो जाएंगे, तो दुकानों पर कितनी ग्राहकी होगी । तुम समझते हो कुछ अच्छी तरह से? अरे, बात मत पूछो, क्योंकि बहुत! बहुत! आएँगे । समझा ना । जब कोई भी दुकान नामी- ग्रामी हो जाती है तो एक-दो को बताते हैं यहाँ वस्तु बहुत अच्छी मिलती है, यहाँ मक्खन बहुत अच्छा मिलता है, बड़ा किफायती है, बहुत सस्ता भी है और बहुत फर्स्टक्लास है । तो यह जानते हो कि बरोबर यहाँ जो राजयोग की शिक्षा मिलती है वो गारन्टीड है और बाहर में देखो क्या मिलता है? ज्ञान रत्नों के पीछे झोली में पत्थर डाल देते हैं । जब मालूम हो जाएगा बहुतों को तो तुमसे कुछ नहीं पूछेंगे । फिर उस समय में ये बिचारी ज्ञान और योग की सर्विस करेंगी, फिर दूसरे भी तो चाहिए न जो उस बहन को सहायता देवे उनको खिलावे-पिलावें । तो देखो, यह भी जब कोई बुद्धि में रहता है कि मैं योग में रह करके, बाबा की याद में रहकर कोई बहुत कहते हैं कि मेरी वाणी नहीं खुलती है, मैं भाषण नहीं कर सकता हूँ फिर क्या करना चाहिए? दूसरी क्या सबजेक्टस हैं- खाना पकाना है, फलाना करना है, बहुत ही सर्विस पड़ी हुई है । अगर उनमें लग जाएँ तो उनमें भी मार्क्स मिलती हैं, क्योंकि सबकी आशीर्वाद मिलती है । देखो, बाबा उदाहरण तो देते ही रहते हैं । जैसे भोली बच्ची है, कितना खाना पकाती है । फिर उनके साथ ही भूरी भी है । अभी वो दोनों तो जानती हैं कि बरोबर हम योग और ज्ञान की सर्विस नहीं कर सकेंगी । तो फिर क्या कमी है? 100 मार्क्स कैसे लेवे? तो फिर स्थूल सर्विस है । उनके भी मार्क्स हैं , क्योंकि सबकी आशीर्वाद मिलती है । इनकी भी आशीर्वाद मिलती है । यह भी कहेंगे थैक्चू कि तुम हमको रोटी पकाकर खिलाती हो, मुझे फुर्सत नहीं मिलती है । ऑटोमैटिकली ऐसे हो ही जाता है । तो उनको भी तो मार्क्स मिल जाने की है ना; क्योंकि यज्ञ में जो सर्विस करेंगे, तो कोई न कोई को सुख जरूर मिलना है । तो तुमको , तुमको तो बात मत पूंछो, क्योंकि बहुत सस्ती खान है । इस खान को कोई जानते नहीं हैं । यह है हीरो-जवाहरों और अविनाशी रत्नों की खान । मनुष्य तो इन रत्नों को न जान करके उन आठ रत्नों (की) अगृतियां बनाते हैं, मालाएँ डालते हैं, पूजते रहते हैं । उनको यह मालूम नहीं है कि यह माला किस चीज की बनी हुई है । अभी तुम बच्चे जान चुके हो कि हम ऐसे ये माला के दाने बनते हैं, हम ही यहाँ पुजारी बनते हैं । हम ही बैठ करके ऐसे-ऐसे करते हैं और पता नही पडता है हम क्या करते हैं । देखो, ये नॉलेज कितनी वण्डरफुल है । बाबा बोलते हैं- इस बात को क्या दुनिया में कोई जान सकते हैं अगर मालूम होता तो इनको भी तो मालूम पड़ जाता ना । गुरु तो बहुत ही किए, कोई तो गुरु निकलता नहीं, जो हमको बता देता कि माला किसकी और कब बनी । तुम जैसे कि बरोबर स्वर्ग के वही लक्की स्टार्स हो, तुम स्वयं मालिक बन बैठे हो । तुम बच्चों को यह निश्चय है कि बरोबर हम वही स्वर्ग के मालिक थे । अब देखो, फिर नर्क के मालिक बन गए हैं । सो तो होगा ही ना । जो स्वर्ग में रहने वाले होंगे, सो स्वर्ग के मालिक पुनर्जन्म भी वहाँ लेते होंगे । अभी हम फिर नर्क के मालिक हैं । पतित दुनिया कहो या नर्क कहो, बातें तो एक ही हैं ना । तुम अभी जानते हो । दुनिया में और कोई भी नहीं है, बिल्कुल कोई नहीं है जो जानते हैं कि हम सो स्वर्ग के मालिक थे, अभी सो नर्क के मालिक हैं, अब हम फिर सो स्वर्ग के मालिक संगमयुग पर बन रहे हैं; क्योंकि स्वर्ग के मालिक सिर्फ संगमयुगी ब्राह्मण ही बन सकते हैं जिनको यह मालूम रहता है कि संगमयुग है । दुनिया को थोडे ही मालूम है कि संगमयुग है । कोन्फ़्लुएन्स युग । तुम बच्चों को सिर्फ मालूम है । ब्राहमणों को ही मालूम रहता है कि यह संगमयुग है । दूसरे कलहयुग में हैं । सारी दुनिया कलहयुग में है । युग तो अलग-अलग होते हैं ना । सतयुग में, सो पुनर्जन्म सतयुग में लेगे । ऐसे तो कहेंगे ना । भले तुम संगमयुग में हो, तुम्हारे में जो शरीर भी छोडेंगे, सो फिर वो संस्कार ले जाएँगे । संगमयुग में आएँगे, फिर भी आ करके, वो संस्कार ले करके यहाँ आ जाएँगे क्योंकि तुम ब्राहमण हो ही संगमयुग के और ये शूद्र हैं कलहयुग के । यह तुम बीच मे हो जरूर । बाबा समझाते हैं- यह नॉलेज भी इस संगमयुग में मिलती है । संगमयुग को कोई जानते नहीं हैं, इसलिए बिचारे मूंझ रहे हैं । जब कोई आएगा और नॉलेज लेगा तब वो समझ जाएगा-बरोबर यह संगमयुग तो बेशक है । ये जैसे नदियों का और सागर का युग होता है ना, हूबहू सो भी नदियाँ प्रैक्टिकल में हैं, ऐसे नहीं कि वो कोई शूद्र कोई नदियॉ हैं । नहीं, तुम ब्रद्दमाकुमारियॉ ज्ञानगंगाएँ अभी संगमयुग पर हो । अभी तुम बच्चों को तो अच्छी तरह से पुरुषार्थ करना ही है, यह रेस करनी है और तुमको दुकानें सम्भालने के हैं । जिनमें योग और ज्ञान नहीं वो दुकान नही सम्भालेंगे, दुकान में चलाने वालों की सम्भाल करेंगे । जैसे दुकान होता है तो रसोइये भी होते हैं ना, नौकर-चाकर भी तो होते हैं, सम्भाल तो करते हैं ना । उनको भी तनख्वाह मिलती है, मुफ्त में तो नही करते हैं । बाबा उनको भी तो देने वाला है ना । वो भी तो ब्राहमण हैं । ब्राहमण सब एकरस तो होते नहीं । कोई भी यज्ञ रचा जाता है तो बहुत किस्म-किस्म के ब्राहमण अथवा पंडित आ जाएँगे । फिर वो भी वैराइटी होंगी और किनको दक्षिणा बहुत मिलेगी, किनको थोड़ी मिलेगी । तुम लोगों ने तो रुद्र ज्ञान यज्ञ या ये जो यज्ञ रचे जाते हैं उसको कभी देखा नहीं है । चारी परमल मनदास ने सिन्ध में रुद्रयज्ञ भी रचा था, जिसकी बडी धर्मशाला है । अभी यह तो तुम बच्चे जान गए हैं कि परमपिता परमात्मा ने यह यज्ञ रचा हुआ है । बरोबर हम ब्राहमण हैं और हमारा धंधा ही यह है मनुष्य को देवता बनाना । किससे मनुष्य को देवता बनाना? ऐसे तो कोई यज्ञ होता नहीं है, जिसमें कोई भी कह सके कि हम इस यज्ञ में मनुष्य से देवता बन रहे हैं । होगा? कोई को आएगा भी नहीं । अभी सो यज्ञ भी कहा जाता है, रूद्र ज्ञान यज्ञ भी कहा जाता है और पाठशाला भी कहा जाता है कि बरोबर यहाँ योग और ज्ञान से हर एक बच्चा इतना ऊँचा देवी-देवता पद पाय सकता है । तो बच्चे बहुत पुरुषार्थी हैं और बाबा राय भी देते रहते हैं कि बच्चे, तुम परमधाम से जैसे आए हुए हो बाबा के साथ; क्योंकि उनके बच्चे हो ना । अभी तुमको यह निश्चय हुआ कि हम परमधाम निवासी हैं, हम यहाँ अभी इस समय में बाबा की मत से स्वर्ग की स्थापना कर रहे हैं, श्रीमत से स्वर्ग के मालिक बन रहे हैं । स्वर्ग की स्थापना माना ही स्वर्ग के मालिक । जो स्थापना करेगा, वो मालिक तो जरूर बनेगा न । तुम बच्चे यह जानते हो अच्छी तरह से कि इस दुनिया में हम हैं मोस्ट लक्कीएस्ट ज्ञानसूर्य, ज्ञानचंद्रमा ज्ञानसितारे । इनको बनाने वाला कौन है? ज्ञान सागर; क्योंकि यह स्थूल में हैं ना । सूर्य, चंद्रमा और सितारे स्थूल में है । उनके साथ हमारी भेंट है, तो हम भी स्थूल में होंगे । फिर ये बच्चे जानते हैं, हमको ऐसा बनाने वाला है- ज्ञानसूर्य ज्ञानचंद्रमा ज्ञान लक्की सितारे, यह ज्ञान का सागर । नाम तो पड़ेगा ना, ज्ञान सागर या ज्ञानसूर्य के हम फिर यहाँ के बच्चे । बाबा तो यहाँ का रहवासी नही है ना । बाबा कहते हैं- मैं तो रहवासी वह्राँ का नहीं, मैं आता हूँ तो फिर तुमको आप समान बनाता हूँ । बनना तुमको यहाँ है ज्ञान सागर, ज्ञान सितारे, ज्ञानसूर्य ज्ञानचंद्रमा । अभी तुम यहाँ बैठे हो, तुम जानते हो अच्छी तरह से कि बरोबर हम भविष्य में फिर यहीं स्वर्ग के मालिक बनेंगे । यह सारा मदार अभी हमारे पुरुषार्थ के ऊपर है । बरोबर हम वॉरियर्स हैं । कौन-से वॉरियर्स? माया पर जीत पहनने के वॉरियर्स हैं । ऐसे कोई है नहीं जो कह सके; क्योंकि अक्षर ही बदल गए । माया उसको कहा जाता है, वो कह देते हैं मन जीते जगत जीत । तो मन को अमन करने के लिए या मन को वश करने के लिए देखो तो हठ कितना होता है! तुम्हारे से थोड़े ही कोई प्राणायाम सीखा जा सकता है । बड़ा डिफीकल्ट है और अनेक प्रकार के हैं । तुम नहीं समझना । यहाँ से रस्सी डालते हैं, नीचे से निकालते हैं । यह साफ करते हैं, फलाना करते हैं, तीरा करते हैं । अथाह है इनकी किस्म-किस्म की । बाबा कहते हैं- बच्चों, तुमको कोई तकलीफ देता हूँ? सिर्फ इतना ही कह देता हूँ कि बच्चे, मेरे पास आना है । ऐसे कोई मनुष्य नही कहेंगे कि मेरे पास आना है । कहाँ मेरे पास? मुझ अपने परमपिता के पास । मैं तुम बच्चों को लेने आया हूँ । अभी ऐसे कोई कह न सके । भले अपन को कोई ईश्वर भी कहें, परन्तु अपन को ऐसे गाइड नहीं कह सकें । यह बाबा तो कहते हैं मैं मुख्य पण्डा हूँ । इस पण्डे को कालों का काल भी कहा जाता है । मैं कालों का काल हूँ । जैसे सत्यवान और सती सावित्री की कथा थी ना । सत्यवान को एक काल ले जा रहा था, तो सावित्री उनको बोली- इनको नहीं ले जाओ । अभी तुम तो खुश होती हो ना । अगर मैं तुम्हारी आत्माओं को अपने साथ ले जाऊँगा, तो रंज तो नहीं होंगी ना । वो तो रंज हो पडी थी; क्योंकि जिस्मानी लव था । अभी तुम्हारा है रूहानी लव । तुम जानते हो कि हमारे बाबा आए हुए हैं हमको यहाँ से ले करके अपने स्वीटहोम में ले जाने के लिए । जिस स्वीटहोम के लिए , जिसको मुक्तिधाम भी कहा जाता है, निर्वाणधाम कहा जाता है, यह इतनी मेहनत करते हैं । मेहनत करते-करते, वो समझते हैं कि वो वापस चला गया निर्वाणधाम में; परन्तु बाबा ने समझाया, कोई जा तो नहीं सकते हैं । बाबा कहते हैं- मैं आया हुआ हूँ तुम बच्चों को लेने । मैं कोई एक काल नही हूँ मैं इन सब कालों का काल हूँ । वो तो आ करके एक आत्मा को ले जाते हैं ना, मैं तो देखो कितना बड़ा गाइड हूँ । सबको वापस ले जाता हूँ और निशानियाँ सब कुछ बताते हैं-5000 वर्ष पहले मैं गाइड बन करके आया था, फिर सबको ले जाते थे; इसलिए मैं जो सबको यहाँ आ करके ले जाता हूँ इसलिए मुझे साजन नाम रख दिया है कि आ कर करके सजनियों को फिर साजन वापस ले जाते हैं । तो पिऊ भी कहते हैं, साजन भी कहते हैं । अपने लक्ष्य को तो याद करना पड़े ना कि हम पढ़ रहे हैं, फिर यहाँ आएँगे । स्वर्ग कोई ऊपर में नहीं है । पहले हम ऊपर जाएँगे स्वीटहोम में, फिर हम नीचे आएँगे; क्योंकि आए भी ऊपर से थे । ऊपर से आते हैं, यह तो सब कोई अच्छी तरह से जानते हैं । अभी फिर ऊपर से आ करके, ड्रामा पूरा करके हम फिर वापस जाएँगे । तो तुम कौन हुए यहाँ? बरोबर स्वर्ग के सितारे । देवताओं को क्या कहेंगे! आगे जीव आत्माएँ नर्क के थे । अभी लकी स्टार्स तुमको कहा जाता है न । स्टार्स कहा ही जाता है बच्चों को । अभी तो सबको पुरुषार्थ करना है । है डाडे की मिल्कियत । बाबा ने रात को या सुबह को भी समझाया- खान है बड़ी जबरदस्त और एक ही दफा यह खान निकलती है । वो खाने जो होती हैं, वो नहीं निकलती हैं फिर उनसे निकालते-3निकलते इस समय में बिचारे मत्था मारते रहते हैं, निकलती ही रहती हैं । समझा ना! एक नहीं तो दूसरी जगह, दूसरी नहीं तो तीसरी जगह, खान यहाँ बहुत हैं । कोई टूटे तो जैसे हीरे की खान यहाँ हैं, सोने की खान यहाँ हैं, तो ऐसे नहीं है कि कोई खत्म हो गई हैं । बहुत हैं । यह ढूँढ़ते रहते हैं-देखो, आज फलाने से तेल निकला, आज फलाने से वो निकला, आज फलाने से ताँबा निकला, ऐसे करते ही रहते हैं । समझा ना! यह तो है एक खान, एक ही दफा मिलती है और बस । यह एक अविनाशी ज्ञान रत्नों की खान है । अरे, वो किताब तो बहुत है, उनको रत्न थोड़े ही कहेंगे । वो तो अनेक हैं । यह वो ही खान है, धरती की वो खानें नहीं हैं । यह तो ज्ञान रत्नों की खान है, इसको ज्ञान सागर कहा जाता है । यह अविनाशी ज्ञान रत्नों की निराकारी खान है । खान कहने से कोई नहीं समझेंगे कि यह कोई परमात्मा के लिए कहते हैं और हम कहते तो जरूर ना-बरोबर यह है अविनाशी ज्ञान रत्नो की खान और उस खान से हम झोलियाँ भरते रहते हैं । इसको फिर नॉलेज कहा जाता है । वस्तुओं का नाम तो बहुत रखते हैं । तुम बच्चों को तो खुशी रखनी चाहिए, खुशी करनी चाहिए । इस खान का सभी को अविनाशी ज्ञान रत्न देने के लिए कितना पुरुषार्थ चल रहा है । हर एक को फखुर भी तो जरूर होता है । जहाँ दुकान पर मैनेजर, भागीदार या कोई भी रहते हैं और धंधा जास्ती करते हैं और उनका नामाचार भी निकलता है, जैसे कि वो अपनी बडी बादशाही स्थापन कर रहे हैं, क्योंकि प्रजा भी बना रहे हैं, तो अपने वारिस भी बनाय रहे हैं । तो इतना फखुर होना चाहिए ना । बड़े-बड़े सेन्टर में जा करके भले रह भी सकते हैं कि वहाँ सीखें । देखो, यहाँ कितने आते हैं सीखने के लिए । यहाँ क्यों आते हैं? यहाँ जैसे कि खान पर आते हैं । वो खान से निकले हुए बच्चे हैं । ये खान पर आते हैं । तो यहाँ से झोली भर-भरकर फिर जा करके दान देना पड़ता है । धारणा बहुत मुश्किल तो नहीं है । बाबा ने समझाय दिया है कि परमपिता परमात्मा तो ज्ञान का सागर है, अविनाशी ज्ञान रत्न से झोली भरते हैं । बाबा ने आगे समझाय दिया था कि वो समुद्र नहीं है, जो दिखलाते हैं कि आकर थाली भर-भरकर देवताओं को खान देते हैं । देवताओं को वो सागर से तो रत्न नहीं मिलते होगे ना । ये ज्ञान रत्न वहाँ जाकर स्थूल रत्न बनते हैं । वो जहाँ से खानियाँ टूट-फूट गई हैं वो फिर नई-नई हो जाएँगी । ड्रामानुसार फिर उनको यह सब कुछ मिलेगा जरूर, विवेक कहता है, बुद्धि कहती है । मनुष्य तो मूंझ जाते हैं । फिर वो ही हीरे इतने ढेर के ढेर होंगे, जो फिर जब भी भक्तिमार्ग में होंगे, तब बैठ करके इतने बनाएँगे । बहुत थे, वो सब गुम हो गए हैं । कोई ऐसी जगह मे अर्थक्वेक्स आदि हो जाते हैं तो वो वस्तु फिर किसको मिल नहीं सकती; क्योंकि देवताओं की चीजें है । वो असुरों के लिए तो हैं नहीं । गोया जैसे कहाँ भारी-भारी अर्थक्वेक्स होते हैं, कहाँ खलास हो जाते हैं, गुम हो जाते हैं । बहुत थोड़े निकलते हैं जो इनको हाथ में आते हैं, नहीं तो खजाना तो बहुत होना चाहिए । यानी ऐसा एक तो नहीं हैं जिनके महल बनते हैं । यहाँ जो रजवाड़ा राज्य होते हैं उनकी कम्पीटिशन देखो । जयपुर की दरबार देखो, अलवर की देखो, बीक्रानेर की देखो । इनके कितने अच्छे-अच्छे हैं । वहाँ भी तो शौक होता होगा ना । सब कोई अपना-2 अच्छा-अच्छा करके बनाएगा । अभी यह तो बच्चे जान गए हैं कि बरोबर हूबहू जैसे कल्प पहले हमने अपने ये मकान बनाए थे, वो फिर जा करके बनाएँगे । वहाँ बनते तो बिल्कुल सहज हैं क्योंकि साइन्स जिसको कहा जाता है, वहाँ तो यह साइन्स नाम नहीं होगा । वो तो और ही नाम होगा । यहाँ तो साइन्स- साइन्स करते रहते हैं । साइन्स का हिन्दी का अक्षर पता नहीं क्या है? (किसी ने कहा विज्ञान अभी विज्ञान और ज्ञान नाम तो इसने साइन्स का रख दिया है । कोई है थोडे ही । वहाँ ज्ञान-वज्ञान तो महल को भी कहते हैं- ज्ञान और विज्ञान महल । विज्ञान महल बनाते हैं दिल्ली में । विज्ञान भवन । ज्ञान और विज्ञान की बात तो यहीं है । हम ज्ञान और विज्ञान कहेंगे । ज्ञान कहेंगे यह, जो तुमको नॉलेज मिलती है, विज्ञान कहेंगे योग को । सच्चा-सच्चा योग और ज्ञान तो यही है । ज्ञान से हमको रत्न मिलते हैं, योग से हम एवरहेल्दी बनते हैं । सच्चा-सच्चा ज्ञान और विज्ञान तो इनको ही कहा जाए ना । वो लोग तो इतने सब नाम रख करके कुछ न कुछ डाल दिया है । कोई भवन तो बनने का है नहीं । योग और ज्ञान तो नॉलेज है । सहज योग और सहज ज्ञान, जिससे फिर वैकुण्ठ के भवन बनेंगे, मकान बनेंगे । भवन मकान को कह देते हैं । सो तो इस नॉलेज को अपन सब जान चुके हैं । दूसरा कोई नहीं जानते हैं । तुम यहाँ बैठे हुए, तुम जानते हो कि बरोबर हम इस भारत को स्वर्ग बनाय रहे हैं । तुम्हारा कोई भी ममत्व इस दुनिया से, इस देह से भी नहीं है । तुम्हारी आत्मा अब कह रही है कि हम आत्माएँ स्वर्ग में जाय करके, नया शरीर ले करके देवता बनेंगे, अभी आत्मा की ही बात हुई । पूरा आत्मा का ज्ञान ही चलता रहता है । वहाँ भी आत्मा का ज्ञान पूरा रहता है, परमात्मा का ज्ञान नहीं । आत्माओं को ज्ञान रहता है-हम यह शरीर छोड करके फिर दूसरा फर्स्टक्लास छोटा शरीर लेंगे । इतना ज्ञान वहाँ रहता है । इसलिए दुःख-शोक नहीं होता है; क्योंकि समझते हैं यह तो अच्छा ही है, क्योंकि तकलीफ तो होती नहीं है । हाँ, इतना जरूर समझते हैं कि यह शरीर बुढढा हो गया, दूसरा अच्छा लेना है । दुःख तो कोई है नहीं । न वहाँ, न वहाँ, न गर्भजेल में, कहाँ भी नही । अभी यह ज्ञान तो तुम सब बच्चों को है कि बाबा हमको ऐसे बनाय रहे हैं, जैसे हम कल्प पहले भी बने थे । यह तो ज्ञान है ना कि बरोबर हम वही मनुष्य से फिर देवता बन रहे हैं । वो कोई बड़ी बात तो नहीं हुई । कल्प पहले भी यही अनेक धर्म थे । गीता में तो नहीं लिखा हुआ है कि अनेक धर्म कौन-कौन से थे? क्या गीता में लिखा हुआ है? लिखा होगा कहीं इस्लामी, बौद्धी क्रिश्चियन, इत्यादि-इत्यादि धर्म थे? ऐसे भी लिख देते तब भी मनुष्यों की आँखें खुल जाती कि बरोबर वो तो अभी हैं; परन्तु गीता में यह कुछ भी बातें हैं नहीं । गाया जाता है कि बरोबर आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना ब्रहमा द्वारा और अनेक धर्मो का विनाश । अभी यह तो तुम समझाय सकते हो ना इस समय में आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना हो रही है । तुम देखते हो गीता में कहाँ लिखा है-कौन-कौन से धर्म थे, कोई इस्लामी या बौद्धी कुछ लिखा है? बस इतना लिखते हैं कि बरोबर एक धर्म की स्थापना, अनेक धर्मों का विनाश । यह तो क्लीयर हुआ ना । तुम समझाय तो सकते हो ना । बाबा आया ही तब था, जब वो देवी-देवता धर्म प्राय:लोप हो गया था । जब लोप हो गया था तो उनसे नॉलेज कहाँ से आए? फिर वो ज्ञान जब लोप हो गया, तो परम्परा किसके मुख में गया? वो ज्ञान किसने सुनाया? यह तो बहुत सहज है । तो समझे बच्चे ये सब कुछ, चेन तो है न- स्थापना, विनाश । विनाश किसका? अनेक धर्म का । सभी धर्म अभी हैं । मठ-पंथ वगैरह-वगैरह सभी हैं । एण्ड है इस समय मे । क्या और नए नामी-ग्रामी धर्म आएंगे- आते होंगे तो यही बिचारे आते होंगे, जिनकी ये डालियाँ, उनमे पत्ते-पत्ते बहुत बन जाते हैं । यह सारा ज्ञान बुद्धि में रहता है ना अच्छी तरह से? ऐसे तो नहीं समझते हो कि यह सारा ज्ञान बाबा बताते हैं और यह कुछ जानते ही नहीं हैं? रोज बाबा बताते हैं, यह कुछ नहीं बताते हैं, ऐसे तो नहीं समझते हो? अगर हम कह दे-हम ही बताते हैं, हमने कल्प पहले इस समय में यह ज्ञान तुमको नहीं दिया था- तो इनका कुछ ज्ञान तो होगा न जरूर, क्योंकि इनका भी तो ड्रामा में पार्ट है ना नॉलेज का । ब्रहमा का भी तो है ना । श्रीमत ब्रहमा की है ना । तो भला क्यों उनकी श्रीमत गुम हो गई है? भला ब्रहमा की क्यों रह गई है- ब्रहमा के नाम पर तो कहते हैं, कृष्ण के नाम पर तो कोई श्रीमत कहते ही नहीं हैं, क्योंकि वहाँ तो श्रीमत की दरकार नहीं, सब श्री-श्री हैं । यहाँ तो श्री एक भी नहीं है । वहाँ श्रीमत है तो जरूर श्रेष्ठ मत होगी । उनके ऊपर नाम क्यो पड़ा है श्री-श्री राम श्री-श्री सब श्रीमत । यथा राजा-रानी तथा प्रजा श्रीमत माना श्रेष्ठ मत । सबको श्रेष्ठ मत किसने दी होगी? जरूर कोई ने दिया होगा । तो देवताए सब श्रीमत । यहाँ सब फिर आसुरी मत । ‘आ’ इनमे मिल जाती है । ये सभी हैं आसुरी मत । वो सब हैं श्रीमत । श्रीमत से स्वर्ग आया, आसुरी मत से नर्क है । अक्षर कितना जरा सा है- श्रीमत और आसुरी मत । हम तो आसुरी मत सो श्रीमत बन रहे हैं । हम थे आसुरी मत, फिर श्रीमत बन रहे हैं । फिर वहाँ श्रीमत होगी, आसुरी मत होगी ही नहीं । आसुरी मत रावण की मत, श्रीमत शिव की मत । सब बातें कितनी सहज हैं समझने की और फिर पुरुषार्थ करना चाहिए । यह सब बाबा की दुकान हैं ना । इसको कहा ही जाता है एक के ये सभी दुकान । शिवबाबा के सभी दुकान हैं । हम बच्चे उन दुकानों को चलाने वाले हैं । फिर जो स्थापन करते हैं, बडे-बड़े दुकान अच्छे चलाते हैं । उनका नाम होता ही है । फिर हेड्‌स भी हैं, असिस्टेंट भी हैं, मैनेजर भी है, असिस्टैंट मैनेजर भी है । ऐसे होते हैं ना । हुबहू जैसी दुकानदारी होती है वैसा स्टाफ और खी भी जाती है यह महिमा परन्तु यह महिमा कोई विरला करे, कोटो में कोई करे, सो भी अच्छी तरह से करे । महिमा तो सबको करना है । हरेक की महिमा है ना । जो भी छोटे बच्चे हैं योग और ज्ञान, यह महिमा । कोई जास्ती बात थोडे ही है । सिर्फ योग में रहना और ज्ञान का थोड़ा सा मंथन करना और सो भी समझना है कि बरोबर यह चक्र चलता ही रहता है- शान्तिधाम सुखधाम, दुःखधाम शान्तिधाम सुखधाम, दुःखधाम । यह चक्र बुद्धि में याद करना है । अभी दुःखधाम को भूलना है । शान्तिधाम सुखधाम, शान्तिधाम सुखधाम । बस । यह बुद्धि में अन्दर जपता है राम-राम । यहाँ फिर क्या है? शान्तिधाम और सुखधाम । मनमनाभव मद्याजीभव । अच्छा, यह भी तो कहने में बहुत आता है ना, बुद्धि कुछ बोले नहीं । देखो, शिवपुरी, विष्णुपुरी, बुद्धि में आ गया । कोई काम है? बोलने से तो यह बहुत सहज हो जाता है । बोलने में तकलीफ होती है ना । इसमें कोई तकलीफ नहीं । चुप रहो और दो बात को याद करो । वहाँ भी तो राम-राम कहते हैं ना । यह बुद्धि में देखो, शिवपुरी याद आई, फिर विष्णुपुरी याद आई । उनसे तो और ही सहज है । राम-राम से भी यह बहुत सहज है । बुद्धि में स्वीटहोम भी याद आया, स्वीट बादशाही भी याद आई । वो सबसे स्थूल मंत्र है, यह सूक्ष्म मंत्र है । बिल्कुल अति सूक्ष्म याद । कोई भी तकलीफ नहीं देते हैं । देखो, मक्खन से वहां निकल जाते हैं । हम स्वर्ग के मालिक बन जाते हैं । क्या करने में से? याद से । सुखधाम और शान्तिधाम और सुखधाम । बुद्धि कहती है यह दुःखधाम है । पहले शान्तिधाम में जाना । सबसे सिम्पल मंत्र कहो तो भी चल सकता है । आवाज भी नहीं करना पड़ता है । यह गुप्त बाप से गुप्त वर्सा मिलता है और चुप रहने से । अभी इन जैसा सस्ता सौदा देंगे कौन? बस, दो बात को याद करना, कहना नहीं और बाप से वर्सा ले लेना, कोई कम बात है। अगर यही जपते शरीर छोड़ तो बहुत अच्छा । बस, यही है और तो कोई तकलीफ है नहीं । तो पुरुषार्थ करके इनको पकड़ो अच्छी तरह से । जिनको बहुत समय यह याद नहीं पड़ती है, वो अपना अभ्यास करो । और कुछ भी नहीं करो । सबको ऐसे ही कहो-बाबा ने कहा है, मुझे याद करो, फिर मैं तुझको स्वर्ग में भेज दूँगा, विष्णुपुरी में भेज दूँगा । बाबा को याद करो, उनको याद करो । यह बता दिया तो भी बहुत समझ जाएँगे । यह उनको लगेगा, भुच्चेगा । फिर विस्तार में कोई पूछे तो पहले यह बात समझाना- हमको बाप का हुक्म है, मेरे पास आना है, मैं आया हूँ तुमको कहता हूँ- मेरे को याद करो, अन्त मते सो गत मैं तुमको स्वर्ग में भेज दूंगा, यह नर्क का विनाश हो रहा है । यह कोई कह नहीं सकेगा । साधु-सन्त-महात्मा कभी कोई कह नहीं सकें । बहुत तिक करने से, यह भी बताने से तो भी किनको तीर लग जाएगा । चलो, गीता का नाम भी नहीं लो । कौन कहता है गीता का नाम लो? कहो हमको परमपिता परमात्मा, जहाँ से हम आए हैं यहाँ पार्ट बजाने, उसने आ करके कहा है- मुझे याद करो । आ करके कहा है तो किसमें तो आएँगे ना? फिर तुम चाहो तो कृष्ण को समझो । हम कहते- नहीं, साधारण बूढ़े तन में आते हैं । वो हमको कहते हैं- मनमनाभव मुझे याद करो तो तुम्हारा सब विकर्म विनाश हो जाएगा, मैं तुमको स्वर्ग में भेज दूँगा । अभी तुमको मानना है तो मानो, नहीं तो जहन्नुम में जाओ, पड़े रहो । जाकर जहन्नुम में फँस जाएंगे, यहाँ आएँगे नहीं, क्योंकि यह है वाटिका बहिश्त में जाने की । अगर यहाँ गिर जाएंगे तो फिर जहन्नुम में जाना पड़ेगा । जहन्नुम भी तो यहीं है ना । उनके लिए जहन्नुम है, हमारे लिए सुत । उनके लिए कलहयुग है, हमारे लिए संगमयुग है । अच्छा, तकलीफ तो बहुत नहीं है । इतनी सहज होने से भी क्यों न इस याद में रह करके और फिर यहाँ अपने शरीर से काम करते रहें, बुद्धि का योग शिवबाबा में रख देवें । तकलीफ नहीं मिलती है । बहुत-बहुत सहज अनुभव होता है । बाप को याद करो और अपना वर्सा लो । बाप का वर्सा है ही स्वर्ग । इतना भी तुम किसको समझाएंगे तो भी बहुत अच्छा और फिर परहेजें तो करनी हैं । बाबा बोलते हैं- स्वर्ग का मालिक बनना है, तो यहाँ परहेज करनी है । वहाँ तो परहेज नहीं सीखेंगे । यहीं तुमको परहेज करनी है । भोजन आदि सभी सात्विकी; क्योंकि सतयुगी बनते हो ना, सतोप्रधान बनते हो ना । यहाँ हो तुम तमोप्रधान तो सब तामसी, सतोप्रधान तो सब सात्विकी । चलन सात्विकी, बोलना सात्विकी । यह हुआ अपने से बात करना और बात करके समझाने की बातें । अच्छा, चलो टोली ले आओ बच्चे । तुम्हारे को बाबा ने कहा है- तुम हो रूप बसंत । बाबा रूप भी है, बसंत भी है । आत्मा है रूपबसंत । सिर्फ उनको शरीर चाहिए जो बसंती हो यानी वर्सा बर्साय । बाप को भी तो वर्सा बरसाना है, उनको ज्ञानसागर कहा जाता है, पतितों को पावन करने वाला, तो जरूर आ करके ज्ञान सुनाएगा ना । और तो कोई चीज नहीं है । तो रूपबसंत है ना बरोबर, सिर्फ ऑरगन्स नहीं हैं । है जरूर । गाया जाता है कि बरोबर ज्ञान का सागर है, पतित-पावन है, परन्तु उनको शरीर चाहिए ना । बाबा बोलते हैं- मैं एक बार आ करके यह लोन लेता हूँ और सारी दुनिया को पावन कराय देता हूँ । यह क्या कम जादूगरी हुई! अच्छी तरह से समझाते हैं ना । बोलते हैं-बरोबर मेरे को ऑरगन्स नहीं हैं । सो आ करके ऑरगन्स लेता हूँ और तुमको यह सारी नॉलेज अच्छी तरह से समझा देता हूँ । तुम हरेक अभी जैसे कि रूपबसंत हो; क्योंकि इस समय में भी बाबा है रूपबसंत पर बरस नहीं सकते हैं, बसंती नहीं, तो यह शरीर ले लिया है । तो जैसे वो बाबा यह शरीर ले करके बसंती, वैसे तुम । हम पुनर्जन्म में आते हैं, वो नहीं आते हैं । फर्क इतना ही, बस और क्या फर्क है । मीठे-मीठे बच्चों को नमस्ते, गुडमॉर्निग ।