18-03-1963    मधुबन आबू     प्रात: मुरली    साकार बाबा     ओम् शांति     मधुबन
 


हेलो, गुड मोर्निंग हम मधुबन से बोल रहीं हैं, आज शुक्रवार है सन 1963 मार्च की अठारह तारिख है, प्रात: क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं

रिकॉर्ड :-

जाने न नजर पहचाने जिगर.....

ओम शान्ति । यह स्थापना है नई, जिसको सिर्फ ब्रह्मा मुखवंशावली ब्राहमण-ब्राहमणियाँ ही समझती हैं । कहने में भले तुम ब्रह्माकुमार वा ब्रह्माकुमारी कहलाते हो; परन्तु लिखा-पढ़ी में अथवा जहाँ भी हो सके तो ब्रह्मा मुखवंशावली कहना अथवा लिखना ठीक है; क्योंकि यह नॉलेज है नई और बहुत पेचीदी । कोई को जब कहा जाता है कि यहाँ बाबा-मम्मा रहते हैं तो नए लोग समझेंगे, शायद ये युगल हैं । ऐसे कब नहीं समझेंगे कि ब्रह्मा की मुखवंशावली है । सिर्फ ऐसे भी नहीं कहना है, ब्रह्मावंशी । ऐसे तो बाप के बच्चे सभी हैं, परन्तु मुखवंशावली अक्षर कहाँ भी लिखने वा डालने से फिर वो ऐसे नहीं समझेंगे कि ये ब्रह्मा की कोई कुखवंशावली बच्ची है । क्योंकि हर एक अक्षर का अर्थ बड़ा अच्छी तरह समझाना पड़ता है । ब्रह्मा के ऊपर ही सारा मदार बहुत है ये तो ठीक है की ब्रह्माकुमार ये तो जानते हो की ब्रह्मा मुखवंशावली तो सारी दुनिया है क्योंकि जबकि ब्रह्मा को प्रजापिता कहा जाता है तो क्योंकि पहले तो ये लोग वहां लिख दिया है की कृष्ण को इतनी रानियाँ थीं, इतने बच्चे थे । क्योंकि शास्त्र में तो रोला पड़ा है बहुत । फिर वो रोला तो चल भी नहीं सकता है कोई सेंसिबल सुने तो, प्रजापिता ब्रह्मा मशहूर है । कृष्ण को कभी कोई प्रजापिता नहीं कहेंगे, जो उनको बैठकर के लिखें की इतने बच्चे हुए फलाना हुए, कहाँ से आए वो सभी? यानि वो तो बिल्कुल राँग है । क्योंकि शास्त्रों में बहुत रोला है थोड़ा कम रोला नहीं है । वास्तव में वो लोग नहीं समझते हैं कि हम कोई गन्दगी लिखते हैं या ग्लानि करते हैं. क्योंकि गाते तो हैं न बच्चे , यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवत भारते ये अक्षर कहना तो ठीक है, परन्तु ग्लानि कहा किसको जाता है वो तो बिचारे समझते नहीं है । किसमें है ग्लानी तो जरूर कोई कहाँ लिखत में है । मनुष्य की जो वाणी चलती है युग में वो तो कोई सिर्फ बात करने की नहीं है, पर ये ग्लानी कहाँ लिखी हुई है तो बाप आकर के समझाते है की ये शास्त्र में लिखी हुई है । बाप आकर सिद्ध कर समझाते है, शास्त्रों में कितनी ग्लानि लिखी हुई है । ईश्वर सर्वव्यापी है, यह भी शास्त्रों में है । देखो मनुष्य कहते हैं तो ऐसे नहीं कहते हैं क्योंकि सारा मदार भारत का इन शास्त्रों पर हो गया है । शास्त्रों में ही ग्लानि लिखी हुई है । उसमें भी समझाया जाता है कि हम ब्रह्मकुमारियां हैं तो इतने जो हैं सो तो जरूर एडॉप्टेड हुए होंगे ना । ऐसे तो नहीं की ब्रह्मा को इतने लौकिक बच्चे हो सकते हैं। गाया जाता है प्रजापिता ब्रह्मा, तो प्रजापिता कैसे तो कहा जाता है जरूर ब्रह्मा के साथ फिर माता चाहिए । अगर माता भी होवे तो भी इतने बच्चे पैदा कर न सके । प्रजा इतनी सारी । तो उनको ये समझाना पड़ता है, की वास्तव में तुम भी प्रजापिता ब्रहमा की संतान हो क्योंकि परमपिता परमात्मा ने जब नई सृष्टि रची है तो पहले ब्रहमा द्वारा ब्राहमणों को रचा है क्योंकि ये साकार सृष्टि हुई न । वो निराकार सृष्टि तो है ही, वो निराकार परमात्मा तो आत्माओं का बाप है ही । परन्तु फिर साकार सृष्टि जब रची जाती है तो गाया जाता है परमपिता परमात्मा ब्रह्मा द्वारा रचते है । क्योंकि प्रजापिता नाम सिर्फ ब्रह्मा का है । विष्णु को वा शंकर को प्रजापिता नहीं कहेंगे । क्योंकि ये सभी बच्चे हैं जो ज्ञान में होते हैं और जिनको सर्विस करनी होती है ये सभी विचार करते हैं ये हैं विचार सागर मंथन की बातें । अरे भाई बाप को याद करो और अपने पद को याद करो । मनमनाभव मध्याजी भव वो तो बिलकुल थोड़ा है । वो तो है पहले और पिछाड़ी की बातें । ये है किसको डिटेल में समझाना । तो देखो प्रजापिता ब्रह्मा की तो जरूर मुखवंशावली ही हो सकती है । फिर वहाँ स्त्री का प्रश्न ही नहीं उठता । माता तो वहाँ है ही नहीं । वास्तव में त्वमेव माताश्च पिता तो एक परमात्मा को ही कहा जाता है । तुम मात पिता हम बालक तेरे ये भी एक बडी भारी गांठ है । यहाँ साकार में मम्मा-बाबा बैठे है उनको 'तुम मात-पिता' कह नहीं सकते । ये महिमा इनकी मम्मा सरस्वती की और इन ब्रह्मा की नहीं हो सकती है । तो देखो रोला हो गया न । ये इनकी और इनकी महिमा है ही नहीं । हम ये कहते ही हैं उनको तुम मात पिता हम बालक तेरे यानि परमात्मा की महिमा करते हैं । अगर उनके हिसाब से लेवें तो वो पिता है तो ये माता हो जाती है । परन्तु नहीं । फिर यहाँ दुनिया में भी जगदम्बा का मशहूर है । जगदम्बा फिर अलग हो जाती है । इस माता ब्रह्मा को तो जगतअम्बा नहीं कहा जा सकता है । बहुत रोला है समझने का । ये चक्कर जब तलक कोई ने पूरा न समझा हुआ हो तो ये बातें समझाना बड़ा मुश्किल है । तो ये जो भी गुह्य समझानी है ये जैसे बाबा ने कल परसों भी बड़ी अच्छी पॉइंट निकाली थी की बच्चे कलहयुग में या अभी जो लौकिक बाप होते है वो तो खुशी के लिए बच्चे को जन्म देते है की वारिस बनें हमारे । तो बाप बच्चे को सुख देने लिए क्रियेट करते है । तो बेहद का बाबा बच्चों को मुखवंशावली क्रिएट करते हैं बच्चों सुख देने के लिए । उस दिन बाबा ने बैठ करके ये बताया । ये बहुत गुहय पॉइंट थी एकदम । परन्तु ऐसा नहीं है की सभी के बुद्धि में बैठ सकती है या कोई समझाए सकते हैं । नहीं । वो ठीक है मनमनाभव मध्याजी भव, वाप को याद करो और वर्से को याद करो । परन्तु ये डिटेल में समझाना इसमें बड़ी बुद्धि चाहिए । बड़ी सेन्स चाहिए इनमें । सो तो फिर क्लियर चाहिए बुद्धि भी अच्छी, वो मिसाल भी है न शेरनी का दूध सोने के बर्तन में ही टिकता है । तो वो चाहिए । जले खड़े नहीं धारण कर सकते हैं । बाप ने समझाया था की बाप बच्चे तो बड़े खुशी से माँगते है । देवी-देवताओं के मंदिर में जाएंगे, फलाने के पास जाएंगे । देवी के पास जाएँगे । माई जाएंगी, मर्द जाएँगे कहेंगे- हमको एक बच्चा चाहिए । कोई नाम निकालने वाला कोई चाहिए की हमारी वंशावली कट न हो जाए, हमारे कुल का नाम निकाले । तो बहुत बिचारे मत्था मारते हैं जिनको वंशावली नहीं रहती है । परन्तु वो तो बिचारे कहते हैं हम बच्चे को सुख देंगे । पर बच्चा जन्म लेते भी कभी कभी बीमार होते हैं कभी कभी वो अंधा भी जन्म ले लेते हैं कभी आगे चलकर के दुःख भोगते हैं रोगी होता है तो क्या कहा जाता है, पास्ट जन्म के ऐसे कर्म है । इसमें माँ-बाप का तो दोष नहीं कहेंगे, वो तो बिचारे कहते हैं हमने तो सुख के लिए इनको जन्म दिया परन्तु वह जो पास्ट में कर्म कर के आए हैं वह उनके आगे पड़ते हैं बहुत समझे ना । क्योंकि कर्म उल्टे करके आए हैं । अभी इस समय में बाबा ने समझाया है कि बाबा बच्चों को अडॉप्ट करते हैं सुख के लिए और उनको बैठकर के सुख के लिए कर्म सिखलाते हैं तो अभी हम बच्चों को बाप बैठकर के कर्म से सिखलाते हैं देखो पास्ट के लिए अभी बाबा आगे के लिए हम को सावधान करते हैं क्योंकि यह बातें कोई गीता या भागवत या उनमें कोई लिखी हुई नहीं है वहां तो कुछ भी नहीं है गीता और भागवत में कुछ गोया है ही नहीं बिल्कुल कुछ । वह तो जैसे दंत कथाएं हैं सब दंत कथाएं और बाप कहते हैं देखो बच्चों मैं तुम बच्चों को अडॉप्ट करता हूँ देखो डायरेक्ट कहते हैं ना, किसको कहते हैं - अपने बच्चों को । आत्मा कहो जीवात्मा कहो । आत्मा तो सुनेगी ऑर्गन से । कहते भी हैं न की आत्मा व जीवात्मा ऐसा कर्म करके आई है जो फिर अभी उनको भोगना पड़ता है तो फिर भी तो तुम आत्माओं को शरीर तो लेना ही है परंतु आत्मा को बैठकर के सिखलाते हैं की है बच्चे अभी तुमको ऐसे कर्म सिखलाता हूं एक तो समझाय देते हैं वहां माया नहीं होती है परन्तु फिर भी यथा राजा रानी तथा प्रजा । यह भी तो जरूर कोई पुरुषार्थ से नंबरवार बनते होंगे जो हम यहां कहते हैं कि हम ऐसे अभी कर्म सीखें जो हम भविष्य में ऐसे बनें, हम दासी न बनें, हम राजा बनें, साहूकार बने । देखो अभी मार्जन है ना । यह सभी बातें पीछे भूल जाएंगी । इस समय में हम पुरुषार्थ कर रहे हैं बाप द्वारा कि हम ऐसे कर्म करें । भले वहां दु:ख नहीं होगा परंतु मर्तबे तो फिर भी है ना । वह तो है ही सुखधाम उसमें कोई शक नहीं है फिर भी मर्तबे तो हैं ना बच्चे । अच्छा यह दु:खधाम है फिर भी मर्तबे तो है ना । सन्यासी हैं, बड़े साहूकार हैं, दु:खी हैं, फलाना है । तो वहां मर्तबे जरूर रहते हैं दु:ख नहीं रहता पर मर्तबे जरूर होते हैं । सुख तो सबको ही मिलता है । उस मर्तबा को पाने के लिए तुम बच्चों को पुरुषार्थ कराया जाता है । बाप बैठ करके पुरुषार्थ कराते हैं । तो बच्चों को ऐसे कर्म से सिखलाता हूँ जो फिर वहाँ जाकर करके कोई ऐसा बच्चा पैदा नहीं होगा जो बाप कहे कि हमारा बच्चा पास्ट में ऐसे कर्म करके आया है जो दु:खी होते हैं जैसे अभी होते हैं । फर्क है ना बच्चे, यह पॉइंट बड़ी गुह्य है परंतु यह बुद्धि में ऐसे धारण करना या किसको ऐसे प्रकार से समझना ये फिर महारथियों का काम है । घोड़े साहूकार भी काम नहीं क्योंकि जो जो जितना जितना इस समय में, क्योंकि लिखा तो हुआ है ना आज तुमको बहुत गुह्य प्वॉइंट सुनाता हूँ, बातें सुनाता हूँ तो जरूर कोई गुह्य बातें सुनाते होंगे । तो गुह्य बातें तो जितना जो भी सर्विस में होंगा उनको अच्छी तरह से समझ आएंगी, उनके ऊपर वो अच्छी तरह से विचार चलाएंगे । यह बात है तो ठीक बहुत, समझाने की बड़ी मीठी बात है । यह एक ही बात समझाने से किसको उनका कपाट खुल जाएगा क्योंकि है ना ऐसी बात । अभी यह बात कौन समझेगा कि ऐसी अच्छी बात है जो बिल्कुल ऊंचे कोटि के होंगे ज्ञानी तू आत्मा महारथी । बाकी सेकंड और थर्ड ग्रेड के बुद्धि में यह बात नहीं बैठ सकेगी की धारणा कर लेवे । क्योंकि ऐसे – ऐसे गुह्य पॉइंट हमको धारण करनी होती है जो कोई को समझाने से वो समझे । इतना ज्ञान जो देते हैं ना यह बिल्कुल राइट है, तो राइट तो बात समझेंगे परंतु फिर हम समझते हैं ना कि राइट तो बहुत समझेंगे परंतु वो आकर करके वो ही समझेंगे और लेंगे जिनकी तकदीर में होगा और फिर हम यह समझ सकते हैं कि जो जो भी अच्छे होंगे अपने सिकिलधे कल्प पहले वाले वह तो फिर उठा ही लेंगे । और फिर होता क्या है कि जो बात धारण करनी है वह फट से धारण करानी है, क्योंकि धन दिए धन ना खुटे । क्योंकि यह हमारी नॉलेज ही ऐसी है । ऐसे नहीं है कि कोई परंपरा यह नॉलेज चली आई है या इतनी समय कोई धारण करते जाते हैं । नहीं! वह तो समझा जाता है कि बच्चे कि यह नॉलेज बस अभी मिली फिर वापस जाएंगे वहां, तब यह नॉलेज खलास हो जाएगी क्योंकि ड्रामा अनुसार जो भी पार्ट अपना है  84 जन्म का अब ये हुआ पूरा । पीछे है प्रालब्ध का पार्ट । फिर यह ज्ञान का जो है बुद्धि में वह सारा निकल जाता है । ऐसे मत समझना की कोई वहां ये ज्ञान बुद्धि में रहता है । वहां आत्मा ज्ञान के संस्कार ले जाती है, क्योंकि यहाँ पढ़ाई में तो ऐसा होता है ना बच्चे । अभी जो कुछ भी आत्मा यहाँ पढ़ती है तो वहां संस्कार ले जाती है । उस अनुसार उनको वहाँ जन्म मिलता है । अभी यह संस्कार हम लेते ही हैं राजाई के । वहां हमारे पास बिलकुल भी ज्ञान नहीं होगा कुछ भी नहीं । क्योंकि वहां फिर ज्ञान की गति नहीं, वह पार्ट पूरा हुआ ज्ञान का उसकी प्रालब्ध मिल गई । फिर हम जैसे कि वहाँ जा कर के अपने राजाई में होंगे और वहां राज्य करेंगे । फिर यह ज्ञान प्राय:लोप हो जाता है ऐसे नहीं है की परंपरा चलने वाला है । मनुष्यों ने लिख दिया है यह सभी परम्परा से चला आता है । परम्परा- ये शब्द लिख दिया है, वह समझते हैं कि यह शास्त्र सतयुग त्रेता द्वापर कलहयुग में सभी सुनते होंगे । परंतु इन बेचारों का तो कोई दोष है नहीं क्योंकि ड्रामा बना हुआ है जिसको हमने जान लिया है । कई तो देखो तुम जाते हो तो देखते हो शिव की बैठ करके पूजा करेंगे वो ये कहेंगे ये कल्पना है फलाना है यानी कोई अर्थ सहित थोड़ी होता है कुछ भी । फिर हम समझते है देखो ये कितने मूर्ख हैं । फिर हम, ये समझते हैं पर ऐसे हम तो मूर्ख थे न । जब हम पूजा वगैरह करते थे तब हमको कुछ पता थोड़ी पड़ता था की क्या करते हैं हम । क्योंकि पूजा करते थे फलाना करते थे, करते तो सभी हैं न, देखो सन्यासी वगेरह सभी करते हैं न, नहीं तो भला उसमें शिव का चित्र रखने की दरकार ही क्या है । तो यह भक्ति मार्ग है कैसे न कैसे कुछ न कुछ मतलब पूजा करनी है । वह जो कह दिया है की ईश्वर सर्वव्यापी है तो भला यह जो सर्वव्यापी सर्वव्यापी कहते हैं, सर्वव्यापी अगर हो तो भला सर्वव्यापी सर्वव्यापी की पूजा थोड़ी करेंगे । ये भी तो भला नहीं हो सकता है । तो बच्चे इन सब का दोष तो है नहीं । ये जो बहुत अच्छे मीठे शुरुढ़ बच्चे हैं ये जानते हैं की बरोबर जो महारथी आगे हुए थे , जो राजा बनेंगे, वो उतने ही ज्ञान लेंगे उतने ही सर्विस करेंगे वो कर रहे हैं । फिर तुम बच्चे यह भी जानते हो कि बरोबर जो ऊंचे ते ऊंचे हैं, क्योंकि जानते तो हैं न  । चलो मम्मा बाबा को तो भला जानते हो और बच्चों को भी, तो इनसे तुम समझ सकते हो कि हां कौन अच्छी सर्विस में लगा हुआ है और उनकी बुद्धि में अच्छी पॉइंट्स हैं और अच्छे बड़े-बड़े दुकान संभाल रहे हैं । दुकान भी तो संभाल रहे हैं ना तो देखो बड़े-बड़े जो पुरानी दुकान संभालते थे तो नई दुकान जमाने को भेज दो तो देखो नई दुकान जमाने में कितनी देरी लगती है । वह तो जरूर लगेगी ना । और उनमें भी फिर अगर कोई अच्छा होवे तो दुकान को जल्दी से उठाय सकते हैं । तो देखो यह धंधा है ना, ये बिजनेस है, व्यापार है । कोई बिरला व्यापारी, तो व्यापार का अक्षर हो जाता है ना । रत्नागर तो बरोबर भाई रत्नागर यानी रतन का व्यापार करने वाला, तो अभी वह रतन तो नहीं है ना । यह है ज्ञान रतन, यह ज्ञान का सागर हुआ । यह रतन उनके पास है । और एम एंड ऑब्जेक्ट भी समझाई जाती है कि इनसे जो ज्ञान के रत्न मिलते हैं वही हमको मालामाल करते हैं भविष्य के लिए क्योंकि हमको मिलते ही हैं स्वर्ग में राजाओं का राजा बनना यानी साहूकार बनने के लिए । तो यह तो जानते हो न कि यहां कोई साहूकारी की बात नहीं है अभी । नहीं! यह तो है ही भविष्य के लिए । इस ज्ञान से हम इतना ऊंचा बनते हैं । अभी यह तो बच्चों को समझाया गया है कि ज्ञान से सद्गति होती है और सबकी होनी है । सद्गति कहा ही जाता है सतयुग को कलयुग को कहा जाता है दुर्गति । अभी कलयुग से सद्गति सच गद्दी स्थापन करने वाला है स्वर्ग स्थापन करने वाला सिवाय परमपिता परमात्मा के कोई और हो ही नहीं सकते हैं परंतु बच्चों को बाबा ने बार-बार कहा है कि गांधी का नाम सदैव लेते रहो क्योंकि गांधी की बड़ी महिमा है । तो वह गांधी जो कह दिया है ना पतित पावन तो अपने को भी पतित कह दिया है । वो समझा है कि पतितों को पावन करने वाला सिर्फ एक है । परंतु वहां है तो गीता, देखो फर्क कितना हो रहा है क्योंकि मनुष्यों को तो पता नहीं पर हम तो जानते हैं न । अभी तो आजकल हम सब रिकॉर्ड में भी भरते हैं । उसमें तो और ही खबरदारी करनी पड़ती है । देखो गांधी का भी नाम बहुत बाला है और गीता हाथ में है । गीता किसके हाँथ में है ? उन्हीं के हाथ में है जिनको ही कहा जाता है भाई कौरवपति । अभी उनमें तो कुछ ऐसी बात लिखी हुई ही नहीं है न । अभी वह उठा कर कहते भी हैं पतित पावन सीताराम । सीताराम फिर रघुपति राघव राजा राम की तरफ क्यों गया जबकि वहां कृष्ण है गीता का भगवान् तो भला उसका नाम फिर क्यों लिया ? तो उसका मतलब ही है असल राईटियस अक्षर सभी सीताओं का पति, क्वेश्चन उठता है न । तो वो तो जरूर भगवान ही होगा और तो कोई दूसरा हो ही नहीं सकता है । अभी इतना गूढ़ है यह समझाने की बात जो बाबा बैठकर के समझाते हैं, हाँथ में गीता, नाम भी लेते हैं पतित पावन, है भी बरोबर गीता का भगवान पतित पावन, परंतु कृष्ण नहीं है, परमपिता परमात्मा शिव है । तो कितना यह गांठी पड़ गई है, इसको कहा जाता है गांठी जो कोई दूसरा नहीं उस गांठी को समझाए सके और बाप बैठकर के समझाते हैं । तो उन लोगों को यह भी तो समझाना पड़े ना कि भाई पतित को पावन करने वाला तो वही है । तो कोई भी पतित को हम आत्मा कह ही नहीं सकते । तो जब यह है ही पतित दुनिया तो यह महात्माएं आए कहां से? फिर जब महात्माएं, उनको तो गुरु कहा जाता है तो भला वो गुरु आए कहाँ से जो पावन करे? जब कहा जाता है पतित तो सब सब गुरु भी पतीत हो गए । तो बच्चे यह बातें बैठ कर के युक्ति से समझाना भी जब कोई बड़ी सभा लगती है ना उनमें ये गुह्य पॉइंट बच्चों के समझाने से वो जो बुद्धिवान होंगे वो जल्दी पकड़ लेंगे ।  आते गरीब लोग हैं । अगर कोई बड़े आदमी आते भी हैं तो उनको तुम लोग जा करके मत्था मारते हो कि आओ, इसलिए वो मान देने के लिए आते हैं, बड़े आदमी कोई समझने के लिए नहीं आते हैं । उनको तो कुर्सी पर मंगाओ तो झट आएगा सभा में, क्योंकि उनका बहुत मान होता है । बाकि ऐसे मत समझो की उनको तुम बहुत जोर करके ले आते हो वो कोई तुमसे समझने के लिए आते हैं , भले कोई भी हो भले तुम लोग किसी जज को बुलाओ, या राधाकृष्णण भी तुम्हारे पास आ जावे वो बड़ाई के लिए आएंगे की हम जाकर के इतनी सभा में मुख्य प्रेसिडेंट बनें । ऐसे मत समझो समझने के लिए आते हैं, कोई एक भी बड़ा आदमी समझने के लिए नहीं आते हैं । समझने वाले फिर भी है ही गरीब क्योंकि बाबा है ही गरीब नवाज तो उनमें से कोई ना कोई जो साधारण होगा वो आकर के समझेंगा । देखो बाबा ने कहा है ना साहूकारों 100 में एक साधारण 100 में 10 अच्छा । बाकी 90% फिर गरीब ही गरीब नंबरवार ऐसे आने हैं जरूर । आते ही ऐसे हैं । क्योंकि काम चलना तो है ना बच्चे तो ऐसे ही चलता रहेगा और धीरे - धीरे चलेगा झाड़ क्योंकि मंजिल बड़ी ऊंची है, भट्टी में बैठना किसीको ये बड़ा मुश्किल है क्योंकि लॉ है कि शास्त्रों का भी कायदा है बच्चे एक हफ्ता तो जरूर भट्टी में बैठना पड़े, बिठाते भी हैं सात रोज । अभी किसीको को कहो सात रोज हमारे पास बैठ जाओ तो कभी बैठेंगा नहीं । अभी वो सात रोज भी चाहिए ब्राह्मण के संग में फिर शूद्र का मुह भी नहीं देखना चाहिए क्योंकि उसका रंग लग जाता है, क्योंकि उसकी वाइब्रेशन ही खराब कर देते हैं , यह बड़ी नॉलेज गुह्य है । अरे! भगवान् आकर के पढ़ाते हैं सृष्टि का मालिक बनाने के लिए कोई मासी का घर थोड़े ही है और देखो ये है फिर गरीबों के लिए क्योंकि ये सब हैं फिर नम्बरवार, उसमें भी तुम देखलो नंबर वन तुम्हारी मम्मा गई है । भले यह तो चलो निमित्त बना हुआ है । अभी तो है ही सब से गरीब । गरीब भी हैं साधारण भी है साहूकार तो कोई है नहीं । तो देखो सबसे गरीब, ये जैसे की पहले माता पीछे पिता । पहले जगदंबा पीछे जगतपिता । त्वमेव माता अभी त्वमेव माता अक्षर उनका है माता च पिता, परन्तु नहीं मनुष्य को भी कुछ मर्तबा चाहिए न तो बाबा ने वो अपना मर्तबा फिर भी माता को दिलाया है । गाया यही जाता है परंतू यहाँ तो मनुष्य का मर्तबा होना चाहिये न, वो आगे नहीं गीत गाते थे मनुष्य का क्या मर्तबा क्या कोई नहीं है जानता । क्योंकि इस समय में भारत कुछ है नहीं । वैसे तो देखो एकदम से गीत सुनेंगे कह देंगे भारत हमारा सबसे अच्छा देश है, सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तान हमारा । अभी इन बेचारों को तो ये मालूम नहीं की हिन्दुस्तान बहुत अच्छा था । अभी तो कोई काम का नहीं है । अभी तो वर्थ नोट अ पेनी है । था, ऐसे तो नहीं कहते हैं था, अभी कहते हैं । हमारा भारत देश सबसे अच्छा है, यानी अच्छा था । यह सब लोग जानते हैं कि भारत प्राचीन में बड़ा फर्स्ट क्लास था एकदम । वहां गॉड एंड गॉडेज राज्य करते थे । जिन का चित्र दिखाते हैं । इनको ही तो कहते हैं ना लक्ष्मी नारायण । यह है प्रिंसिपल चित्र । क्योंकि कृष्ण को तो खलास कर दिया न गालियां देकर के, द्वापर में ले जा करके । इसीलिए तो बाबा एन्सियस रहता है की लक्ष्मी नारायण का चित्र मिले । और मदिर भी तुम देखेंगे, आज बड़े बड़े मंदिर श्री लक्ष्मी नारायण का बनाते हैं । बड़े बड़े आदमी भी पैसा लक्ष्मीनारायण के मंदिर पर खर्च करते हैं । तो जैसा जैसा देखते हैं वायुमंडल ऐसे चित्र बनाते हैं । तो बाबा समझाते हैं और है भी हम तुमको राजाओं का राजा बनाएंगे, नर से नारायण बनना है क्योंकि है ही सत्य नर को नारायण बनाने की कथा, नॉलेज । और बरोबर किंगडम जब स्थापन होती है तो जरूर किंग एंड क्वीन का नाम तो बाला है ही बरोबर और चित्र भी बड़े अच्छे दिखलाते हैं । भले उनमें बुद्धि कुछ भी नहीं है । अरे कहाँ देखो तो सांवरा नारायण को बना देते हैं तो गोरी लक्ष्मी को दे देते हैं । कहां देखो नारायण को चार भुजाएं और उनको दो भुजाएं, कोई अर्थ ही नहीं निकलता है । तो बच्चे ऐसे बुद्धुओं को समझाना तो पड़ता है ना । तो बिगर चित्र बच्चे कैसे समझें । बच्चे हैं ना, बिल्कुल अनजान बच्चे हैं, बिल्कुल अनजान । यह बच्चे ऐसे हैं जैसे बाबा कहते हैं कि हम जब गए थे चकरासा में तो वहां खेती करने वाले वो पहाड़ी लोग थे । उनको कोई पढ़ाता था तो पढ़ते ही नहीं थे । कहते थे हमको यही धंधा अच्छा लगता है समझे ना । तो इस समय में यह जो है रिलिज़िअस तो है नहीं, अधर्मी तो हैं ही । वो कहते हैं हम रिलीजियस नहीं मानते हैं । अरे क्यों कहते हैं रिलीजिअस नहीं मानते ? जबकि इतना प्राचीन देवी देवताओं का धर्म है क्योंकि वह जानते हैं हमारा रिलीजन कौन सा है । अभी हिंदू रिलिजन नहीं है ना, तो हिंदुस्तान का रिलिजन हिन्दू कहना इसमें कोई सार ही नहीं है तो न मालूम होने के कारण, यह ड्रामा अनुसार ना मालूम होते हैं तो कहते हैं हम रिलीजन को नहीं मानते, क्योंकि हम जानते ही नहीं अपने रिलिजन को तो फिर मान के क्या करेंगे और कोई भी नहीं जानते हैं सब समझते हैं कि हिंदू धर्म है, आदि सनातन । तो देखो जब देवी-देवता धर्म था तो देवी-देवता धर्म कहे तो पुरानी बात भी याद आ गई । तो देखो बहुत अच्छा था अभी हिंदुस्तान को अच्छा थोड़ी कोई कहेंगे । तो देखो यह घमंड । इसको भी कहा जाता है ना जैसे देह अभिमान वैसे वैसे भारत के नाम में - यह सबसे अच्छा है बहुत । नहीं तो वास्तव में तो सबसे कंगाल है बिल्कुल ही । हर बात में सब कंगाल ही है रोगी कंगाली, हंड्रेड परसेंट हर एक बात में कंगाल है । क्योंकि इसकी महिमा 100 परसेंट ऊंची तो इसकी ही महिमा 100 परसेंट नीची । अब जब 100 नीची है तो ये बेचारे न जानने के कारण कह देते हैं – एक तरफ में गीत गाएंगे सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा और दूसरी तरफ में कहेंगे क्या हाल हुआ है भारत का । यह कहते हैं कि ये अच्छा था वो अच्छा था ऐसा था, यह बहुत अच्छे रहते थे आगे, कोई इनका ठिकाना थोड़ी है । ताकत तो कुछ है ही नहीं वास्तव में । यह तो लोन लेते हैं, हर बात का लोन लेते हैं । ये तो देखो कोई वक्त मैं तकलीफ होंगी तो वहां से लश्कर भी मंगाते हैं । एयरोप्लेन में मिलिट्री भी मंगाय लेंगे । क्योंकि तरस पड़ता है भारत के ऊपर सबको । क्योंकि वो जानते हैं की भारत बहुत अच्छा था । अब ये कंगाल बना है । भारतवासी यह भी नहीं जानते हैं कि हम बहुत अच्छे थे अब कंगाल बने हैं इंसॉल्वेंट बने हैं बिल्कुल ही । क्या बाबा ने उस दिन कहा कि- अनाथ है । यह भारत वास्तव में अनाथआश्रम है इस समय में, क्योंकि जिस जगह में गरीब रहते हैं और उनको दान दिया जाता है । अनाथ यानी ऑर्फ़न बच्चे । अनाथ का असल अर्थ है ही ऑर्फ़न । नास्तिक समझो । तो ये तो हम जसंते हैं दुनिया में और कोई नहीं जानते हैं । हमारे में भी जो सेंसिबल है, सर्विसेबल बच्चे हैं जिनमें दिमाग में पुर है वह समझते हैं, उनको खुशी रहती है किसको समझा भी ऐसे ही सकते हैं । बाकी जो लल्लू पंजू तो उन बिचारों को कुछ पता भी नहीं है । बाप तो ऐसे ही कहेंगे ना । बाप कहेंगे की नहीं बच्चे जैसे तुम्हारी मम्मा बाबा हमारे वर्सा ले रहे हैं ना, तुम्हारे मम्मा बाबा जिसको कहते हो ब्रह्मा जगतपिता और जगतअम्बा जैसे वो पुरुसर्थ करके वर्सा लेते हैं, तुम भी फॉलो करो ना उनको । जो कहा जाता है फोलो फादर एंड मदर वो इसको कहा जाता है कि नहीं । क्योंकि मेरे को तो फॉलो नहीं करना है न । मेरे से तो तुमको राजाई लेनी है, मेरे को फॉलो तो करना नहीं है । मेरे पास चले आएँगे । बोलते हैं मैं आया हूँ गाइड बन करके, सो तो तुमको तुमको प्यार से या आग में भी जलाए करके तुम्हारा शरीर खत्म करा करके मैं तो ले जाऊंगा, परंतु भविष्य सृष्टि का मालिक बनने के लिए फॉलो मदर एंड फादर । जैसे वह पुरुषार्थ करते हैं, जैसे वो धारण करते हैं वैसे तुम भी धारणा कर करके उन जैसा बनों । बाप तो ऐसे ही कहेंगे न बच्चों को देखो ये बाप कहते हैं । बेहद का बाप कहते हैं की ऐसे बनों और योग रखो और मेरी मत पर चलो वफादार बनो फरमानबरदार बनो । अगर फिर नहीं बनते तो फिर सजाए भी खाएंगे देखो कितना साफ़ अच्छी तरह से बाबा बोलते हैं, डायरेक्ट जैसे लौकिक बाप समझाते हैं वैसे पारलौकिक बाप बैठ करके पढ़ाते हैं ये कोई को बुद्धि में थोड़ी आता है । अगर ये बात भी बुद्धि में कायदे सर रहे की बाप पढ़ाते हैं तो बच्चे ख़ुशी का पारा सारा दिन चढ़ा रहे । अज्ञान काल में सारा दिन रहता है । स्टूडेंट लाइफ में बच्चों को नशा रहता है हम ये पढ़ते हैं फलाना मास्टर हमको पढ़ाते हैं, मास्टर को क्यों नहीं याद करेंगे, परन्तु यहाँ देखो तीन है फुल पावर वही बाबा वही टीचर वही सद्गुरु उनको तो तीन गुना ज्यादा याद करना चाहिए, बल्कि उनको तो 300 गुना ज्यादा याद करना चाहिए, परंतु अहो माया याद करने ही नहीं देती है । धारणा करने ही नहीं देत्री है । नहीं तो बच्चे समझाना तो बहुत सहज है । एक-एक पॉइंट अच्छी तरह से बैठ करके विचार करें और कोई को भी बैठ करके समझावे की हम अनुभवी हैं, हमको बाप ऐसे कर्म सिखलाते हैं जो भविष्य में हम ऐसे न कहेंगे की ये पास्ट का कर्म है जो इनको आगे आते हैं इसलिए ये दुःख पाते हैं । तो ये पॉइंट बड़ी अच्छी थी एकदम । परन्तु जो सेंसिबल होंगा न उनको अच्छी तरह से बुद्धि में बैठेंगी और पहले पहले वो समझाने लग पड़ेंगे. क्योंकि जब बाबा बैठ कर के बच्चों को नई बातें सुनाते थे तो बच्चों को नई बातें सुनानी पड़ती थी तो याद हो तो सुनावें न । बच्ची एक-एक बात, एक एक गुह्य राज मानो तो इसको उड़ाय सकती है यानि जो ज्ञान लेने वाले हैं नए-नए भी तो इनमें तो अभी धारणा होनी चाहिए । धारणा होवे ही तब जब उनको बाबा में लव होवे क्योंकि बाबा में लव तो चाहिए ना बच्चे । यह प्राणों से प्यारा क्योंकि यह जीव को 21 जन्मों के लिए जीवों को जमघटो की फांसी से बचाते हैं । वह बोलता है ना आगे तो मैं काल भेज देता था, तुम्हारी इन आत्मा को लेकर करके गर्भ जेल में वहां फिर मैं उनको सजा देता था । अभी तो देखो मैं इन कालों का काल हूं । अभी तुम्हारे पास सतयुग त्रेता में इन काल आदि का नाम नहीं होगा । यह नाम रख दिए हैं बाकी आत्मा तो आपे ही शरीर छोड़ कर के दूसरा शरीर लेती है । यह काल आदि की कोई बात नहीं होती है, यह तो ऐसे ही बैठकर समझाया है । आत्मा तो खाली अपना शरीर छोड़ कर के गर्भजेल  जाती है और जो उनका हिसाब किताब अपना शरीर का है वह धर्मराज बैठकर उनको सजा देता है । इसमें काल की कोई बात नहीं होती है । काल तो नाम रख दिया हुआ है कि भाई काल आ करके इनकी आत्मा को लेकर के जाते हैं, वह लिखा हुआ है ना शास्त्रों में की वह सावित्री और सत्यवान की बातें । है नहीं ऐसी बातें, यह तो बैठ करके बनाई है ऐसी बातें बहुत । नहीं तो आपे ही ऑटोमैटिकली आत्मा एक शरीर छोड़कर कर्म अनुसार गर्भ में जाती है वह गर्भ में जाती है और वह गर्भ जेल है, क्योंकि गर्भ जेल और गर्भ महल का भी दृष्टांत है । कि भाई एक बैठा हुआ था बाहर ही नहीं आते थे, दृष्टांत देते थे क्योंकि वहाँ अभी उनको आराम ही है और वहाँ उनको जब दु:ख होता है तो बोलता है बाहर निकालो हमको । तो यह सभी बातें समझाई तो जाती है ना, तो है तो सही कुछ ना कुछ शास्त्रों में परन्तु समझाए कौन सके । गर्भ जेल कब है, गर्भ महल कब है । दिखलाया है जरूर की हां पत्ते पर कृष्ण अंगूठा चूसते आते हैं तो रख दिया है सागर का नाम, पर है सागर की बात । तो बाप बैठ कर के यह सभी बातें समझाते हैं । यह बाबा ने बात समझाई है, वही समझा रहे हैं सब नई नई बातें । परंतु उदाहरण भी हो और इनमें मैनर्स बड़े अच्छे सी सीखने पड़ते हैं । वो स्कूल के मैनर्स अलग बात हैं । यह तो है पवित्रता के मैनर्स, सर्वगुण संपन्न 16 कला संपूर्ण, संपूर्ण निर्विकारी, एम एंड ऑब्जेक्ट ही है कि ऐसा बनना है । ऐसा बनना है तो सभी पांच विकारों को छोड़कर बहुत मीठा बनना है । हुबहू जैसे बाबा मीठा है । इसको भी कहते हैं वाह! वाह! वाह! वाह! तो बाबा जब अच्छी अच्छी पॉइंट्स बैठकर के सुनाते हैं तो दिल में खुशी बहुत होती है वाह! वाह! वाह! वाह! पॉइंट तो ऐसी है जो कोई किसको भी समझावे तो समझे कि ये बरोबर है । बाबा कर्म भी ऐसा सिखलाते हैं । कर्म अकर्म विकर्म की गति तो है ही गीता में और भागवत में । परंतु देखो एक ही ठोकर दे दिया है कृष्ण भगवानुवाला कहके सारी गीता खंडन कर दी है । अभी अगर किसको कहो, बोलेगा- कृष्ण भी वही, तो शिव भी वही । बोलते-शंकर भी होते, सो भी वही । तो चलो सर्वव्यापी कह देते हैं तो पीछे बात ही खतम हो जाती है । बच्ची मीठी है, तो भला जा करके किसको सुनावे? सबसे अच्छा तो वानप्रस्थ वाले हैं, वो नहीं कहेंगे कि मुझे फुर्सत नहीं है । तो क्यों नहीं वानप्रस्थ वालों को सुनावें । देखो, देहरादून में जो बाबा कहते थे- है तो इसमें भी न, वानप्रस्थ आश्रम बहुत जगह हैं । ढूँढे कौन? डायरेक्संस तो मिलते हैं, ढूँढते थोड़े ही हैं । सेंटर जमाने के पहले तो ग्राहक देखना चाहिए कि यहाँ ग्राहक ऐसे हैं, जिनको हम बैठ करके समझावे, और फुर्सत है? बाकी तो धंधे में इतने चूर हैं । अजमेर में गये, वो चरिये-खरिये मूंझे लोग वो बिचारे रहनी-करनी । भले कोई साहूकार होते हैं उनकी रहनी-करनी ऐसी गंदी है, वहीं हगेंगे वहीं खायेंगे, वहीं पियेंगे वहीं किचन में आयेंगे । यहाँ है, यह भीड़ देखो । वो कोई स्नान थोड़े ही करते हैं । ऐसे बड़े-बड़े अच्छे-अच्छे घर के मनुष्य बहुत हैं जो स्नान नहीं करते हैं । हग करके ऑफिस में आयेंगे, अन्दर तो जाएँगे ही । ऑफिस में आ करके बैठ जायेंगे, खायेंगे । घर में जायेंगे । कोई स्नान की बात थोड़े ही होती है । ढेर के ढेर ऐसे होते हैं । वहाँ स्कूल में बहुत ही जाते हैं । कोई स्नान-पानी थोड़े ही करते हैं और जाते हैं । यहाँ देखो, कितनी परहेज है । छोटे-छोटे बच्चों के ऊपर कितना जाप्ता है कि करके आये हो, यहाँ फिरो विरो नहीं । भले अभी तलक कुछ ऐसे हैं, नहीं तो कायदा है कि वहाँ जावे, स्नान करके पीछे आवे । कहीं-कहीं जो वैष्णव होते हैं, वो करते हैं, तो भी वो जेरनम डाल देते हैं । थोड़ा पानी डाल देते हैं । वो अपवित्र पवित्र हो जावे । वहीं बाबा भी खुद करते आते हैं, अपवित्र पवित्र हो जावे इसलिए वहीं छिटटा डाल देते हैं । छोटी स्नानी कर देते हैं । वो अभी कहाँ है! बात मत पूछो । आजकल जो विलायत से हो करके आते हैं, वो तो बस, बात मत पूछो । देखो, अभी कितना फैशन निकला है । जो भी थोड़ा नैतिकता में हो, फैशन, नाटक, वगैरह में जाने से ही उनमें अनैतिकता के संस्कार आ जायेंगे । बस, उनमें देखो सब खुश । दिल्ली में बहुत गाने-बजाने सुनते रहते हैं । दिल्ली में जाओ तो जो भी बड़े-बड़े एमपी. आदि हैं ना सबको गाने का शौक, फैशन का शौक । बस, इसमें ही वो खुश रहते हैं, क्योंकि समझते हैं कि अभी हम विलायत जैसे हो गये हैं । इसलिए समझते हैं कि वाह! अभी देखो, हमारा भारत तो जैसे परिस्तान बन गया है और इन बिचारों को तो मालूम नहीं है कि यह परिस्तान ही कब्रिस्तान होने वाला है । कितना अपने को खयाल रहेगा । यहाँ बैठे-बैठे जब खयाल आता है कि अभी बॉम्ब छूटेंगे । कितनी अच्छी है, कितनी फैशनेबुल है, कितनी धनवान है, कितने बड़े-बड़े महल में रहते हैं, आज हैं, कल होंगे नहीं । उस समय में इनका क्या हाल होगा, क्योंकि यह तो हम जानते हैं । दुनिया में तो कोई नहीं जानते हैं कि अभी बोंब्स गिरेंगे; क्योंकि वो तो माया के अंध में हैं । समझते हैं वो भी अंध में हैं । तो कितनी-कितनी अच्छी है, आती है, कितनी नफीस-नाजुक, और जायेंगे कैसे? ये देखो, बॉम्बे कैसी अच्छी बनी है । बाबा जब बॉम्बे में जाते हैं तो विचार आता है क्या मेरे होते यह बॉम्बे होगा नहीं । बाबा ऐसे कहते-कब होंगी? परंतु होंगी भी, कुछ तो आगे होंगी जरूर । यह बॉम्बे, ऐसी फर्स्ट क्लास, क्या होगा उस समय में हाय! जबकि यह अर्थक्वेक्स होंगे, नैचुरल कैलेमिटीज होंगी या यह सागर ही थोड़ी-बहुत उथल खाएँगे? ऐसे उथल खाते हैं । कहाँ सुनने में आता है । कहाँ-कहाँ वो चढ़ जाते हैं, सो डूबाय देते हैं । उस समय में उनका क्या हाल होगा! हम तो अभी जानते हैं कि यह हाल होने वाला है । हम जानते हैं-जो अच्छे-अच्छे बच्चे हैं वो जानते हैं कि जब जाना होगा, हमको पहले ही से आना होगा, जैसे कि हम अन्कांशियाश होते हैं और हम समझ जायेंगे कि शरीर छोड़ देते हैं । अच्छा, हमको तो बहुत फर्स्ट क्लास शरीर मिलने का है । देखो, ये ज्ञान की बातें हैं । सबकी यह बात नहीं है । सबको तो बीमारियाँ भी होंगी जो एकदम डर मरेंगे । बीमारी में भी जो पक्की अवस्था वाले होंगे वो जायेंगे और कहेंगे क्या हर्जा है? कमाई तो कर ही ली है । शरीर छोडेंगे तो हमको अच्छा शरीर ही मिलेगा । अगर जाना भी है, तो अच्छा ही करेगा, क्योंकि हमने कमाई बहुत अच्छी की है, जो हम जा करके भोगेंगे । समझा ना! जा करके ऊँचा पद लेंगे । हाँ, यह जरूर है, जो बिल्कुल अच्छे-अच्छे हैं वो तो रहेंगे ही; परंतु यह तो खुशी रहती है ना कि अच्छा बैठेगा । वो आयेंगे भी ऐसे ही अनकॉन्शियसनेस के माफिक । अभी हम जाते हैं । चलो, छोड़ो शरीर को । ऐसे बहुत साधु-सन्यासी लोग होते हैं जो ऐसे ही बैठे-बैठे समझते हैं कि शरीर छोड़ने का है । फिर कभी का छूट जाता है, कभी का रह जाता है । ऐसे बाबा बहुत पढ़ते हैं और सुनते हैं । यहाँ तो जो बच्चे अच्छे हैं वो जब बैठेंगे और इतना याद में होंगे, जिनका बुद्धि का योग ठीक लगा होता उनका खुशी का पारा चढ जाएगा और कहेंगे कि अभी यह शरीर छोड़ते हैं । अभी मेहनत की है । जाकर कोई राजा के पास ही जन्म लेंगे । देखो, जाते हैं ना फलाना । बाबा ने ही बताया-फलाना गया, तो जा करके जम्मू के राजा के पास जन्म लिया । ये तो अच्छा ही है ना । वहाँ जा करके भी तो हम कुछ काम करेंगे ना । भले हमारा ऑरगन छोटा होगा । तो भी हमारे गुण तो होंगे ना । गुणों की बहुत छोटेपन में भी पहचान हो जाती है । आगे हेमराज था चिदाकाशों का । वो छोटा था, खेल करता था । उनके ऊपर ऐसे क्या करके सर्प आता था । ऐसे करता था । ऐसे-ऐसे महिमा करते थे । यह तो हम अभी जानते हैं कि हम ऐसे जाते हैं, जो हमारा कहाँ भी रहेंगे वाद नहीं होगा । हमारी चलन उस समय मे, उस घर में बडी फर्स्ट क्लास होगी; क्योंकि ज्ञान की पराकाष्ठा होती है और पवित्र बनने वाले, यह भी तो बुद्धि में रहता है ना । जिनमें ज्ञान की पराकाष्ठा है, कहाँ भी जायेंगे तो उनको सुख देंगे । तो हम जो इतना सतयुगी संस्कार ले जाते हैं, जिसके घर में जायेंगे उनको हम कितना सुख देते होंगे । कई बच्चे होते हैं, बड़ा सुख देते हैं । कई हैरान कर देते हैं । रो-रो करके एकदम रोगी बन जाते हैं और कोई तो बड़ा फूल के मुआफिक रहते हैं । हम तो जानते हैं ना कि कृष्ण की कितनी महिमा है, तो हमारी कितनी महिमा होगी जब हम कहीं जन्म लेंगे । माँ को भी दर्द नहीं देंगे, आवाज नहीं करेंगे, रोयेंगे-पीटेंगे नहीं, रोगी नही बनेंगे । यह तो हम समझते हैं ना; परतु यह भी कौन समझते होगे? जो-जो अच्छी सर्विस में लगे हों । बाकी बुद्धू लोग थोड़े ही समझते होंगे । ये सभी बातें हैं सोचने की, समझने की, विचार-सागर-मंथन करने की । बाकी ऐसे थोड़े ही, बाकि जाकर भाषण करना है, यह भी सीखने का हुनर होता है । कर लेते हैं । अंदरूनी पक्की अवस्था चाहिए । आवाज करने वाला या भाषण करने वाला सिर्फ बाहर का बोलता नहीं चाहिए । ऐसे बाबा के पास बहुत हैं । भाषण बहुत अच्छा करती है । अन्दर कपड़ धूल भी नहीं है । ऐसे भी हैं । चलो बच्ची, टोली ले आओ । पहले मेल को देकर आओ । जो आईसी एस. पढ़ते हैं, यहाँ जो 'पी सी पी टी सी कॉलेज' है उसमें जाओ तो देखो कितना नशा होगा उनको । वो जानते हैं कि हम जा करके सुपरिटेंडेंट बनेंगे । जैसे बादशाही है । आजकल पुलिस में नौकरी एक बादशाही है, सबसे जास्ती । चलो, पुलिस का कोई नाम न बदनाम करे । कोई भी बड़ा आदमी हो तो उनके ऊपर भी छांटा डाल देते हैं । मैंने अखबार में भी तो पढ़ा था । अलाहाबाद का जस्टिस मुल्ला, उसने कोई पुलिस वाले को देखा कि इसने तो बड़ा जुल्म किया है । तो उसने कुछ लिख दिया कि यह पुलिस तो जैसे कि उनके ऊपर छांटा डाला था । तो जैसे कि सभी पुलिस के ऊपर आ गया कि पुलिस मे बहुत लॉलेसनेस है । पुलिस मे लॉलेसनेस है, तो सभी के ऊपर आ गया ना । तो बैठ करके उनका आवाज निकला कि यह तो एक के बदले में सारी पुलिस के ऊपर कलंक लगाय दिया । तो उसने स्पीच की और भी कुछ कहा था, कोई से तंग हुआ था । ऐसे पुलिस वाले बहुत तंग करते हैं । (किसी ने कहा- कहा था ये जैसे बदमाशों की टोली है) हाँ, ऐसे-ऐसे अक्षर उसने कहा । तो सारे पुलिस का नाम ले लिया ना । पर्टीकुलर तो कुछ नहीं किया । फिर उनकी स्पीच निकली, ऐतराज उठाया, फिर बड़े जज ने जजमेंट मे से वो अक्षर निकलवाय दिये । दादा, आज सोमवार है । शिवबाबा कहते हैं । सोमवार और वृहस्पतवार, है तो सभी दिन अपने लिए । बाबा यहाँ है तो पीछे क्या है! हमारा तो जैसे सभी शिव के ही दिन हैं । रोज पढ़ाते हैं न । फिर भी भोग लगाते हैं । कोई शिव का सोमवार के दिन करते हैं, कोई मंगल के दिन, कोई बुध, सबका कोई एक जैसा ठिकाना नहीं है । फिर भी बाबा कहते हैं- अच्छा, शिवबाबा दादा और मीठी मम्मा का मीठे-मीठे सिकीलधे नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार यथा योग्य बच्चों को गुडमॉर्निंग ।