05-09-1963    मुंबई   प्रात: मुरली    साकार बाबा    ओम् शांति    मधुबन
 


हेलो, गुड मोर्निंग, आज गुरूवार पांच तारीख की मुरली है आज बापदादा बम्बई पधारे हुए हैं

गीत-

है कृष्ण वही ब्रह्मा तन का...सतयुग का है कृष्ण वही
ब्रह्मा तन से शिव की वाणी, ब्रह्मा तन से शिव की वाणी,
ब्रह्मा तन शिव की वाणी मिला रही भ्रमजाल
आया शिव गोपाल, आया है गोपाल
अभिमानी जन भीष्म द्रोण थे, कभी न दे ये इनके साथ
अभिमानी जन भीष्म द्रोण थे, कभी न दे ये इनके साथ
भोले भले गोप गोपियाँ देते इनके हाँथ में हाँथ
भोले भाले गोप गोपियाँ देते इनके हाँथ में हाँथ
दैवीय सृष्टि रचने वाला, देवीय सृष्टि रचने वाला
असुर श्रृष्टि का काल, आया शिव गोपाल हो..हो..आया शिव गोपाल
आया शिव गोपाल हो..हो..आया शिव गोपाल
 
बड़े बड़े विद्वान मुनिजी बने न इनके सूत
बड़े बड़े विद्वान मुनिजी बने न इनके सूत
सच तो यह है सत्य ज्ञान से सभी हुए हैं दूर
सच तो यह है सत्य ज्ञान से सभी हुए हैं दूर
हम आत्माएं गैया थी असुर विकारी पास
अभी छुड़ाकर सिखा रहा है सहज ज्ञान की बात
अभी छुड़ाकर सिखा रहा है सहज ज्ञान की बात
इसीलिए है नाम पड़ा, इसीलिए है नाम पड़ा कौरव कथ गोपाल
आया शिव गोपाल हो हो आया है गोपाल
आया शिव गोपाल हो हो आया है गोपाल....
आया शिव गोपाल हो हो आया है गोपाल
आया शिव गोपाल हो हो आया है गोपाल....
 
गोपाल तो कृष्ण का नाम ही रख दिया है, जिसका अर्थ है गऊ पाल । माताएं गऊ पालती हैं न, कन्याओं का भी पाल अर्थात पालन करने वाला ।
 
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जाग सजनियाँ जाग, नवयुग आया.....

ओम शान्ति । किसने यह गाया? साजन ने गाया सजनियों प्रति । क्या कहते हैं? सजनियाँ । भक्तियों को सजनियाँ कहा जाता है । सभी हैं भक्त और एक है भगवान । सभी हैं सीताएं एक है राम, जिसको शिव भी कहा जाता है । राम वो नहीं रघुपति राघव राजा राम' । यह साजन जिसको कहा जाता है वो कहते हैं सजनियों को कि सजनियाँ तुम जागी हुई तो हो फिर भी तुमको कुछ थोड़ा सा ज्ञान घृत डालने के लिए आए हुए हैं और नई-नई सजनियों को फिर जगाने भी आए हैं; क्योंकि अभी तो नया युग आया, नई दुनिया आई । गाँधी भी बिचारे मॉगते थे, नई दुनिया में नया भारत और रामराज्य हो । अच्छा, वो वही समय है । वो कौरवपति तो वो पांडवपति और वो यूरोपवासी यादवपति । अभी तुम बच्चे समझ गए कि यह गीता किस समय की है । गीता तो जरूर इस समय की होनी चाहिए, जबकि यादव-पांडव-कौरव प्रैक्टिकल में हैं और कलहयुग का भी अंत है, संगम भी है और बरोबर नया युग भी होना है जरूर; क्योंकि कलहयुग के बाद है ही सतयुग । तो बाप कहते हैं आए हैं अपने सिकीलधे बच्चों को जगाने, सिकीलधे तो हो जरूर क्योंकि 5000 वर्ष के बाद फिर से आए हैं जो सो गए थे उनको जगाने के लिए । वो ज्योत जो उझानी गई थी, उनको फिर ज्ञान घृत देने के लिए, सुजाग करने के लिए; क्योंकि बच्चे तो जानते हैं कि बरोबर अपनी वो ही नई सुख की राजधानी वा सुखधाम कहें, वो स्थापन हो रहा है, क्योंकि बच्चों को, जो यहाँ आते हैं उनको यह तो मालूम है कि हम यहाँ आते हैं, पढ़ते हैं और भगवान पढ़ाते हैं । भगवान कृष्ण नहीं पढ़ाते हैं । कृष्ण के लिए तो वो बाप ने समझाया है ना कि यह जो ज्ञान मिलता है, सो तुम ब्राहमणों को मिलता है और कोई को नहीं । तुम जब भी ब्रह्मा के मुखवंशावली ब्राहमण बनते हो, मैं तुमको बैठ करके सुनाता हूँ क्योंकि समझाया गया है कि ब्रह्मा के मुख कमल से ब्राहमण बने, फिर उनको देवी-देवता बनाने के लिए यह सहज राजयोग सिखला रहे हैं । तो देखो, तुम बहुत मीठे बच्चे ठहरे ना । तो ऐसे मीठे मीठे बच्चों को बाप आ करके पहले पहले कह रहे हैं- मेरे स्वीट चिल्ड्रेन मोस्ट बिलवेड चिल्ड्रेन; क्योंकि तुम हो विजयमाला के दाने । विजयमाला के दाने थे, भूल गए हो । अभी तुम जानते हो कि बरोबर हम शिवबाबा के विजयमाला के दाने बन गए हैं । तुम भी कहते हो- मोस्ट बिलवेड स्वीट शिवबाबा । तो जरूर उनके बच्चे भी तो ऐसे ही बिलवेड होंगे ना । तो बाप बैठ करके ऐसे स्वीटेस्ट चिल्ड्रेन को नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार थैंक्स देते हैं । सबको नहीं कहेंगे स्वीटेस्ट । स्वीट, स्वीटर स्वीटेस्ट ऐसे कहा जाता है ना । तुम्हारे में भी ऐसे नम्बरवार जरूर हैं । जो स्वीटेस्ट हैं, सर्विसएबुल है वो मददगार हैं । तो जो जिसके मददगार बनते हैं, वो उनको थैंक्स भी देते हैं । बाप आ करके तुम सिकीलधे बच्चों को जो मददगार हैं, उनको फिर कहते हैं- थैंक्स और फिर स्वीट चिल्ड्रेन को नमस्ते भी करते हैं । नमस्ते क्यों करते हैं? तुम मेरे मालिक हो । जैसे बच्चे बाप की रचना के मालिक होते हैं, वैसे बाप कहते हैं- मैं रचता हूँ और तुम हो रचना के मालिक । मैं मालिक नहीं बनता हूँ । इसलिए बाबा ने समझाया कि बच्चे, मैं बिल्कुल ही निष्कामी हूँ । यह मनुष्य जो निष्काम सेवा कहते हैं ना, कोई भी ऐसी निष्काम सेवा करते ही नहीं हैं । वो जानते हैं कि जो अच्छा काम करेंगे उसका फल दूसरे जन्म में मिलेगा । बाप तो कहते हैं- फल तो तुम बच्चों को मिलना है । मुझे तो कोई फल की दरकार नहीं है, मैं तो आया ही हूँ भक्तों को भक्ति का फल देने के लिए; क्योंकि भक्त कंगाल हैं, दुःखी हैं, मोहताज हैं बिल्कुल ही दुर्गति को पाए हुए हैं । क्यों दुर्गति को पाए हुए हैं? क्योंकि ड्रामा में है ना । यह वेद-शास्त्र, ग्रंथ, उपनिषद वगैरह पढ़ते पढ़ते दुर्गति को पाना ही है । ये किसने बनाए? ये मनुष्यों ने बनाए हैं ना । मैं तो बैठ करके मनुष्यों के रचे हुए इन शास्त्रों का, जिनमें कोई सार नहीं है इनका सार तुम बच्चों को सुनाता हूँ । बाप समझाते है ना, बोलते हैं कि पढ़ते आए हैं, कब से? भक्तिमार्ग जब से शुरू हुआ तब से पढ़ते आए हैं । बाप बैठ करके समझाते हैं कि बरोबर भक्तिमार्ग द्वापर से शुरू हुआ है; क्योंकि सतयुग और त्रेता में तो भक्ति होती ही नहीं है, क्योंकि वो तो है ही गोल्डन और सिलवर एज । उसको जुबली कहा जाता है । गोल्डन जुबली, सिलवर जुबली और सुखधाम कहा जाता है । भक्ति शुरू होती है तब फिर यह मनुष्य बैठ करके शास्त्र बनाते हैं । कहते हैं कि व्यास ने यह शास्त्र बनाए । अभी व्यास तो तुम हो ना । तुम हो सुखदेव बच्चे व्यास के क्योंकि सुखदेव बैठ करके तुमको यह सच्ची गीता का राज़ समझाते हैं । सभी वेदों, ग्रंथों, शास्त्रों का, साधुओं का, महात्माओं का, सब राज़ समझाते हैं । सृष्टि के आदि-मध्य-अंत का राज़ तो कोई समझाय न सके । बाबा बोलते हैं- यह जो भी शास्त्र बने है उनमें कुछ है नहीं । न है सार, न है सच्चाई तभी जब भी तो शास्त्र पढ़ते हैं, गीताएँ पढ़ते हैं । गीता भी बहुत पढ़ते हैं ना । इनमें सार नहीं है, इसलिए बिचारे दुःखी हो गए हैं, पतित हो गए है । नहीं तो गीता से तो तुम राजाओं के राजा बनते हो ना । ऐसी कोई गीता-पाठशाला है क्या, जिनमें बैठ करके गीता सुनाने वाला कहेगा- तुम अभी भविष्य सतयुग के राजाओं के राजा बनेंगे, हम तुमको यह राजाओं का राजा बनाने के लिए सिखलाता हूँ, ऐसे कभी नहीं कहेंगे । सिर्फ बाप कहते हैं- मैं ही कह सकता हूँ इस ब्रह्मा के तन द्वारा सुनाता हूँ। फिर यह भी तो सजनियाँ है । जैसे यह सजनी और बच्चा है, वैसे तुम भी सजनी और बच्चे हो । फर्क तो नहीं है ना । बाप बैठ करके बच्चों को समझाते हैं कि मीठे लाडले बच्चे, अभी ये जो भी पुराने शास्त्र वगैरह हैं सबको भूल जाना है । बाप कहते हैं- मीठे बच्चे, अभी यह देह के जो-जो भी धर्म हैं- भक्ति, पूजा, वगैरह-वगैरह छोड़ करके अभी तो अशरीरी बनो । अशरीरी रहने से जैसे कि तुम्हारे पास रियल डेडसाइलेंस हो जाएगी । वो जो शान्ति में जाते हैं, वो रियल शान्ति नहीं होती है । शान्ति में बहुत ही जाते हैं ना, चिपक कर बैठ जाते हैं, खाली में बैठ जाते हैं, शान्ति के लिए माथा मारते हैं, सब कोई बोलते हैं शांति-शांति । नहीं शान्ति यहाँ हो नहीं सकती है । दुःखधाम में अशान्ति ही है । यह तो समझाया गया है अशान्त बनाया है रावण ने । बाबा अभी रावण का चित्र बनाय रहे हैं । बाबा ने समझाया भी है कि दो स्त्री और पुरुष, उनके है 10 शीश । 5 विकार उनके, 5 विकार उनके, तो हो गया युगल रावण का रूप । वहीं फिर विष्णु के दो रूप सतयुग के, यह भी प्रवृत्तिमार्ग, यह भी प्रवृत्तिमार्ग । बाबा ने बहुत अच्छे चित्र भी बनाए हैं, छप रहे हैं । उसमें दिखलाया है एक तरफ में यह रावण सम्प्रदाय स्त्री और पुरुष, जिनमें भी 5 विकार हैं वो खुद रावण का युगल रूप है । वो भी युगल हो गया ना । उनको भी ऐसे ही बताते हैं । रावण की भी कोई स्त्री थी ना । (किसी ने कहा- मंदोदरी) । हाँ, तो वो सब विकारी ठहरे ना । उस तरफ में फिर देखो विष्णु के दो रूप- लक्ष्मी और नारायण । वो प्रवृत्तिमार्ग सतयुग का, यह प्रवृत्तिमार्ग कलहयुग का । यह विषियस प्रवृत्तिमार्ग, वो वाइसलेस प्रवृत्तिमार्ग । वो निर्विकारी प्रवृत्तिमार्ग, यह विकारी । ये दोनों भारत में थे, और कोई जगह में नहीं होते हैं । यहीं की ही बात है । रावण को भी यहीं जलाते हैं । तो बाप बैठकर के समझाने के लिए की कैसे हैं ये कलहयुग मैं प्रवृत्तिमार्ग कौन है । अपन को तो कोई रावण समझते नहीं हैं ना । वो तो उन रावण को बना करके जलाते हैं । यहाँ तो जो एफीजी बनाते हैं, वो जैसे सभी अपनी-अपनी बनाते हैं; परन्तु नहीं, वो तो जल नहीं सके । तो बाप आ करके इन दोनों को, इन विकारों को योगअग्नि से जलाय, फिर उनको लक्ष्मी नारायण जैसे बनाते हैं । दोनों को युगलों को ही कहते हैं- मीठे बच्चे अब तुम जैसे रावण सम्प्रदाय फिर उनको कहा जाता है आसुरी सम्प्रदाय । बाबा कहते हैं मैंने आगे भी समझाया था ना कि ये सभी हैं आसुरी सम्प्रदाय । अभी आसुरी सम्प्रदाय कहो या रावण सम्प्रदाय कहो, बात तो एक ही है । दोनों रावण का रूप हो गया । अभी आता है ना रावण का त्यौहार दशहरा, तो ये चित्र छप रहे हैं । बच्चे सर्विस तो करेंगे ना । भारतवासियों को अच्छी तरह से समझायेंगे कि देखो, इस समय में बाप ने आ करके कहा है कि ये सभी हैं रावण सम्प्रदाय । बाप तो सभी के पास कह सकते हैं ना, जबकि बाप को समझ जावे कि हाँ, बरोबर यह बाप बैठ करके समझाते हैं । अभी समझते हो? अर्थ को तो समझाते हैं ना कि बरोबर इस समय में हर एक विकारी है । हरेक में 5 विकार जरूर हैं, उसमें नंबरवन है देहअभिमान । इसलिए बाबा भी कहते हैं- देहअभिमान छोड़ो, देहीअभिमानी बनो और अपन को नंगा आत्मा समझ करके मेरे साथ योग लगाओ, तो फिर यह जो तुम्हारा जन्म-जन्मांतर का विकर्म है, वो विनाश हो जाएगा । फिर तुम ऐसे लक्ष्मी नारायण जैसे युगल बन जाएँगे, सदा सुखी बनेंगे । अभी यह आसुरी सम्प्रदाय सुखी तो नहीं है ना । जैसे सन्यासी कहते हैं- कागविष्टा समान सुख, तो बरोबर मूत पलीती उसको ही कहा जाता है । और सुख, देखो, रात-दिन का फर्क है ना । यह जो समझते हैं कि हमको एरोप्लैन्स है, पैसे हैं, धनवान है, फलाना है, वो बिचारे यही अपने को कहते हैं स्वर्ग में है । उनके लिए यह नॉलेज नहीं है । यह तो गरीब साधारण के लिए है । साहुकार बड़े मुफ्त होते हैं । बाबा ने बहुत दफा समझाया है साहूकारों का बड़ा हंगामा है- हमारे बाल-बच्चे, पौत्र, परपौत्र । अभी बच्चों को यह मालूम तो है नहीं कि विनाश सामने है, जबकि यहाँ आ करके अच्छी तरह से समझें कि विनाश होने का है । अभी तो सब खतम हो जाना है, देह सहित सबकुछ खलास होता है । इसलिए बाबा बच्चों को समझाते हैं- मीठे मीठे लाडले बच्चे, सिकीलधे बच्चे । अभी ऐसे तो कोई समझाय नहीं सके । सिकीलधे बच्चे का अर्थ कोई समझ न सके । 5000 वर्ष के बाद फिर से मेरे लाडले बच्चे मिले हैं । फिर से आ करके तुम ब्नाछो को, अरे, बॉम्बे में भी फिर से आया हुआ हूँ दादा लेखराज के तन में । फिर से आना पड़ता है । फिर से दिल्ली में जाना पड़ेगा । मम्मा-बाबा को आना पड़ता है । फिर से क्या करने? जो जागते हैं उनको और ही ज्ञान का घृत डाल देवें । डालते जाएँगे जब तलक दीवा एकदम अच्छी तरह से स्थायी दीवा बन जाए । अभी तो तूफान लगते हैं ना । ऐसे कोई-कोई का दीया एकदम गुल हो जाते हैं, बुझ भी जाते हैं, कोई का ठंडा हो जाता है । होता है ना । बच्चों की अवस्था, आपे ही लिखते हैं- बाबा, आज थोड़ा कुछ माया का तूफान आया है, कोई न कोई बात से मुरझाय गए हैं । तो फिर आना पड़े ना बच्चों के पास । फिर ज्ञान का घृत देने के लिए फिर आया हुआ है बच्चों के पास और फिर बोलते हैं- देखो, औरों को भी जगाओ । जैसे बाबा है रहमदिल, वैसे तुम भी बहुत रहमदिल बनो । खास उसमें भी बाबा कहते हैं जो मेरे भक्त हैं । अभी भक्त बाबा के वो ही हैं, जो भक्त भगवान बनते हैं, जो देवता बनते हैं । जो भी देवताओं के पुजारी हैं, फिर शिव के खास, वो बिचारे मूंझ गए हैं ना, वो समझते हैं-गीता कृष्ण ने गाई । ये सारी दुनिया समझती है- कृष्ण ने गाई । इसलिए बाबा से सब विमुख हो पड़े हैं । सबका बुद्धियोग टूट गया है । जब तुम बच्चे बैठ करके अच्छी तरह से ढिंढोरे पिटवायेंगे कि नहीं, यह गीता जिससे भारत स्वर्ग बनता है, उसका नाम ही बदल दिया । सिर्फ नाम बदल देने से, बाबा को डिफेम करने से और बच्चे का नाम डाल देने से भारत की यह दुर्दशा है । है ना भारत की दुर्दशा? क्योंकि सुनते तो आते हैं ना, गीता तो अभी भी है ना भारत में । तो जो गीता सुनते आए हैं, उनके साथ जो भी शास्त्र सुनते आए हैं, देखो, जन्म-जन्मांतर सुनते आए हैं । नतीजा, शास्त्रों में कोई सार नहीं । तब बाप बैठ करके समझाते हैं कि मीठे बच्चे, अभी तुम तो समझ गए हो, सबको समझाओ । बाबा ने समझाया है कि शिव चित्र आगे करो, फिर लक्ष्मी नारायण का चित्र भी आगे करो । कृष्ण का चित्र रखने से मनुष्य मूंझ पड़ते हैं, क्योंकि बिचारे को द्वापर में ले आए है । अभी बच्चों को सर्विस करना चाहिए, तुम यहाँ सर्विस में ठंडे बहुत हो । बाबा तो बहुत प्रकार से समझाते है- शिव का चित्र लो और वो लक्ष्मी और नारायण का भी लो, अभी तो बच्चों ने छपाया है, एक छोटा छपाया है, अभी बड़ा छपा ही लेंगे । उनको यह बैठ करके समझाओ कि यह शिव की तो रचना है सारी । स्वर्ग तो शिव की रचना है ना । बाप कहते हैं- ऐसे तो कोई दूसरा बाप नहीं होगा जो कहेंगे मैं रचता हूँ । तुम जानते हो कि यह रामराज्य या स्वर्ग की बादशाही रच रहा हूँ और तुम बच्चों को ही मालिक बनाता हूँ । इसलिए ही बाप कहते हैं कि अगर कोई निष्काम सेवा करता है तो सिर्फ मैं कर सकता हूँ । मैं करता हूँ । दूसरा कोई निष्काम सेवा ऐसे नहीं कर सके, बिल्कुल नहीं । मनुष्य तो बिचारे एकदम बुद्धू हैं । वो समझते हैं ये जो भी पेसेंजर-मैसेंजर आए हैं, वो सभी फिर वापस ज्योति ज्योत में समाय गए । नहीं, वो सभी इस समय में कब्रदाखिल हैं । ये जो भी सभी हजरते और प्रीसेप्टर हैं, जो पहले नम्बर में ब्रह्मा द्वारा ब्राहमणों की सृष्टि रची जाती है, शिवबाबा ऐसे रचते है ना, वो कब्रदाखिल हैं । जब वो कब्रदाखिल है, तो जरूर सब कब्रदाखिल होंगे । जब वो पुनर्जन्म में आते हैं, तो जो स्थापक होंगे सो सब पुनर्जन्म में आते होंगे । देखो, तुम भी सभी पुनर्जन्म में आते हो । पुनर्जन्म से कोई छूट नहीं सकता है । अभी तुम बच्चों की बुद्धि में सारा ड्रामा का राज़ रहा । बाबा ने कल भी वही समझाया । यह तुम जानते हो कि ऊँचे ते ऊँचा एक शिवबाबा है, इतना ऊँचा फिर दूसरा कोई है नहीं । नीचे आओ तो ब्रह्मा, विष्णु शंकर । वहाँ भी बाबा ने कल उनका अच्छा वर्णन किया है । यह टेप में है अच्छी तरह से । क्यों? यह त्रिमूर्ति चित्र भी रखना चाहिए यहाँ समझाने के लिए, यह कौन हैं तीन, इनका रचने वाला कौन, वो कहाँ चला गया । समझा ना । ब्रह्मा, विष्णु शंकर; ब्रह्मा का भी तो रचता का  है ना, सूक्ष्मवतन का नहीं, यहाँ का है-प्रजापिता ब्रह्मा । बाप आ करके समझाते हैं, इसको ब्रह्मा का नाम दिया है ना, इसके तुम अभी, जो शरीरधारी हो तो बने और जो आत्मा हो सो मेरे हो । इसलिए इनको कहा जाता है-बापदादा । अभी गीता में ऐसे तो लिखा हुआ नहीं है। कृष्ण के लिए तो कुछ ऐसी बातें लिखी नहीं हैं । लिखा हुआ है बरोबर कि हमको मोहिनी रूप दिखलाओ । मोहिनी तो खुद ही था । मोहन कहा ही उनको जाता है, मोहिनी रूप उनको ही कहा जाता है । अभी उनको दिखलाने की बात । अगर कोई तुमको यह समझावे की यह कृष्ण के भी रूप में नहीं था । कृष्ण कोई दूसरे रूप में यह भी नहीं चल सकता है । कृष्ण का दूसरा रूप तो वहाँ रह गया ना फिर, दूसरा जन्म लेंगे तो वहाँ लेंगे । कृष्ण पिछाड़ी जन्म में थोड़े ही आएगा । तो देखो कितनी सभी गुचवन की बातें हैं समझने की । यह समझने वाले की भी तो अच्छी बुद्धि चाहिए ना । समझेंगे, समझाएँगे और धारण करेंगे वो, जिनकी बुद्धि विशाल होगी और सर्विस पर तत्पर होंगे । सुना और न सुनाया तो कोई काम का न रहा । सर्विस का ही बच्चों को इजाफा मिलेगा । बाप कहते हैं सर्विस न करेंगे तो मैं इजाफा थोड़े ही दूँगा । गवर्मेन्ट का भी जो सर्विस अच्छी करते हैं, बहुत करते हैं, तो इजाफा देते हैं ना । पगार बढाते रहते हैं । यह भी बाबा कहते हैं-तुम्हारा भी तो पगार बढेगा ना । पगार तो तुम्हारा बहुत बड़ा है ना । रूहानी सर्वेन्ट हो ना । रूहानी सोशल वर्कर्स हो । किसके वर्कर्स हो? बाप के । फिर बोलता है अच्छी तरह से वर्क करेंगे तो इजाफा भी मिलेगा । इजाफा तो बड़ा लम्बा-चौडा है, कोई कम थोड़े ही है । 21 जन्म के लिए सदा सुख का इजाफा पाना है । इसमें कोई तकलीफ तो नहीं मिलती है । यह धारणा की तो कोई बात नहीं है, बाप तो कहते हैं- वहाँ घर में बैठे हुए भी सिर्फ अपन को अशरीरी समझ करके बाप को याद करो, शरीर होते याद करो । जब बैठ करके कोई की पूजा की जाती है तो बुद्धि चली जाती है । शरीर में भी है, बुद्धि तो दूसरी जाती है ना । तो अभी यह सब कुछ करते हुए बुद्धि सिर्फ वहाँ बाबा के पास जानी है, बस । क्योंकि वो खुद आ करके कहते हैं- हे मेरे लाडले बच्चे, अभी शरीर का मोह छोड़ो अशरीरी बनो और फिर अपने मुझ अशरीरी बाप को याद करो, क्योंकि अशरीरियों का बाप अशरीरी, शरीर वालों का बाप शरीर वाले । यह कौन कहते हैं? यह नहीं कहते हैं, वो कहते हैं इन द्वारा । नहीं तो भला बाप किस द्वारा कहे? उनको अपना शरीर नहीं है ना । ब्रह्मा, विष्णु शंकर को अपना शरीर है । ऊँचे ते ऊँचे लक्ष्मी नारायण को अपना शरीर है, मनुष्यों को अपना हैं । इनको अपना शरीर तो है ही नहीं । दिखलाते ही कभी नहीं । बोलते हैं-मैं कैसे आ करके बच्चों की सेवा करूँ, फर्ज अदाई करूँ; क्योंकि मैं जानता हूँ कि फिर से सब भारतवासी बहुत-बहुत दुःखी हो गए हो । देखो, कितनी आफत में पड़ गए हो । वो तो है अल्पकाल क्षणभंगुर कागविष्ठा समान सुख जिनको वो सुख है । बाकि तो बच्चे कोई सुख नहीं है । इसका नाम ही है दुःखधाम । सुखधाम का मालिक बनना है । बाबा कोई तकलीफ नहीं देते हैं । बोलते हैं- अशरीरी बन करके सिर्फ मुझे याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश हो जाएँगे । बाबा बार-बार समझाते हैं यह देह के साथ बुद्धि न लगाओ । तुम कहते हो ना-बिलवेड मोस्ट । तो बाकी जो न बिलवेड हैं, उनको छोड़ना पड़े ना । फिर बिलवेड मोस्ट तो ठहरा ही वो । एक बच्चा, एक बच्ची बस जास्ती होते नहीं । पीछे त्रेता जब आता है, तब कभी दो भी होते हैं । दिखलाते है-लव और कुश । तीसरा नहीं दिखलाते हैं, पर यह निशानी सिर्फ शास्त्रों में है । बाकी ऐसे नहीं कि लव और कुश कोई डब से या फलाने से पैदा हुए । उस समय में यह योगबल चला आता है कि बरोबर अभी हमको यह शरीर बदल करना है । नाग का मिसाल होता है ना । शरीर बदल करके दूसरा नया लेता है और साक्षात्कार होते हैं । यहाँ पहले शरीर छोड़ करके तुमको घर जाना है । बाबा के पास जाना है, स्वीटहोम जाना है । स्वीट बाबा आया हुआ है और बोलता है तुम्हें इतनी भक्ति आदि करने की दरकार नहीं, सिर्फ मुझे याद करो । तुम्हारा यह याद है, उनसे विकर्म विनाश होगा और पावन बन जाएंगे । और कोई उपाय पतित को पावन बनने का है नहीं, या तो फिर पिछाड़ी की सजाएं । जैसे काशी करवट होता है ना, ऐसे फिर पिछाड़ी में सजाएँ पाएँगे । सजा पाकर हिसाब किताब चुक्तू करके सभी आत्माओं का दुःख का हिसाब-किताब पूरा होगा । फिर नए सिरे से  सुख पहले सतोप्रधान फिर सतो फिर रजो फिर तमो । पिछाड़ी में सब आ करके तमो बनते हैं । (गीत - लम्बे हैं जीवन के रस्ते, आओ चलें हम गाते-हँसते...) ऐसे गाते रहते हैं ना । हमको सदैव.. बाप मिला और भला क्या चाहिए? गरीब को भी बाप मिला या साहुकारों को भी बाप मिला, इसमें कोई फर्क तो है नहीं । शरीर तो है, परन्तु धन नहीं है तो आत्मा कहती है- इस समय में मैं गरीब हूँ । एक आत्मा कहती है-मैं साहुकार हूँ । चाहे साहुकार हो या गरीब हो, बाबा कहते हैं कि मुझे याद करो । बिचारे गरीब तो हैं ही दुःखी, इसलिए बाप को याद करते हैं । वो हुकार हैं ही सुखी, तो उनको सुख होने के कारण वो याद नहीं करते है । इसलिए गाया जाता है-गरीब निवाज । गरीब दु:खी तो हैं ही, तो वो याद करते हैं । नम्बरवार सबसे गरीब कौन हैं? सबसे गरीब तो कन्याएँ हैं ; क्योंकि उनको तो वर्सा नहीं मिलता है । जब पति के पास जावे, विख की लेन-देन करें तब उनको , क्योंकि अभी सुख तो वो ही है । अर्धागिनी भी तो नहीं है, हाफपार्टनर भी नहीं हैं । वहां तो है ही रानी और राजा । उनमें कोई भी वो गड़बड़ है नहीं । यहाँ तो हाफपार्टनर भी नहीं है । स्त्रियों के हाथ में कुछ है थोड़ी । इसलिए फिर चाबी स्त्रियों को ही देते हैं कि तुम ही सबका उद्धार करना । साधु-सन्त-महात्मा का तुमको ही उद्धार करना है । गीत मीठा है ना- 'लम्बे हैं जीवन के रास्ते यानी यात्रा लम्बी है । जहाँ जीना है बाप को याद करना है । उनके लिए भी टाइम लगता है; परन्तु शुरू करो अपना चार्ट रखो । देखो, दिन में कितना समय याद करते हो । पंद्रह मिनट, आधा घटा, घण्टा डेढ़, दो, इतना करते करते आठ घण्टा तुमको जरूर याद करना है । पीछे आठ घण्टा जो याद करेंगे वो पास विद ऑनर हो जाएंगे । अभी जास्ती नहीं, 24 घण्टा तो नहीं कहते हैं ना, आठ घण्टा कहते हैं । फिर कोई 8, कोई 7, कोई 6, कोई 5, कोई 4, ऐसे याद करने से फिर यह माला बनती है या राजधानी बनती है । (रिकार्ड बजता है- लम्बे है जीवन के रस्ते आओ चलें हम.....) रोना-पीटना नहीं है । यह ज्ञान का गीत दो अक्षर  है । यह गाना है । हम सुनकर फिर सुनाएँगे यह हो गया गाना । लिखा हुआ है कि अतिइन्द्रिय सुख पूछना हो तो गोप-गोपियों से पूछो । गोपीवल्लभ के गोप-गोपी से थोड़े ही यहाँ पूछेंगे । सतयुग में तो गोप-गोपी होते नहीं । वहाँ कायदे अनुसार राजाई होती है । यहाँ ही तुम कहलाते हो गोपियाँ और गोप यानी बच्चियां और बच्चे । (रिकार्ड बजता हैः-दूर देश एक महल बनाएँ, प्यार का जिसमें दीप जलाएं । दीप जलाकर बुझा न देना...) आत्मा को जगाना होता है ना । अगर फिर छोड़ दिया, दीप बुझ जाएगा । फिर धारणा नहीं होगी, पद भ्रष्ट हो जाएगा । अच्छा, अभी टाइम हुआ । टोली ले आना बच्ची । तुम बस पुराना होक आना... ख़त्म हो जाएंगे नहीं, ये अपना गीत गाते रहना । नाचते रहना, इसको कहा जाता है ज्ञान का डान्स । वो कृष्ण की बात नहीं है, यह है ज्ञान का डान्स । बाकी है नॉलेज । यह अक्षर महिमा के लिए दिए गए है । पावन बनाते रहते है । बीच- बीच में कोई पतित बना, यह गिरा, क्योंकि यात्रा पर हो ना । उस यात्रा में भी अगर जाते-जाते कोई रास्ते में पतित बना तो यात्रा कहाँ से हुई! ये भी ऐसे है । लम्बा चक्कर है यहाँ । वो तो फिर आ करके विकार में गोता खाते हैं । यहाँ कोई भी नहीं । लम्बा रास्ता है इसमें जितना समय तुम याद में रहेंगे, यात्रा में रहेंगे, विकार में नहीं जाएँगे । नहीं तो गया, खाना खराब । या तो खाना आबाद हो गया या खाना खराब । खाना आबाद और खराब, उसको ही कहा जाता है या तो सूर्यवंशी घराने में आएँगे या तो प्रजा में आएँगे । फिर प्रजा में जो साहुकार होते हैं उनके भी नौकर चाहिए । वो भी यहाँ बनना है । पिछाड़ी में नहीं जाओ । मातपिता तुम बच्चों को, त्वमेव माताश्च पिता, बरोबर बालक बैठे हैं, जानते हैं कि मात-पिता, तो मात-पिता अपने सिकीलधे बच्चों को यादप्यार और गुडमॉर्निग या विदाई फॉर द टाइम बींग थोड़े समय के लिए ।