26-09-1963    मुंबई   प्रात: मुरली    साकार बाबा    ओम् शांति    मधुबन
 


हेलो गुड मोर्निंग हम मुंबई से बोल रही हैं आज गुरूवार है सन 1963 सेप्टेम्बर की छब्बीस तारीख है प्रात: काल में बापदादा की मुरली सुनते हैं

रिकार्ड:-

तुम्हीं हो माता, पिता तुम्हीं हो, तुम्हीं हो बंधु सखा तुम्हीं हो.....

वास्तव में यह गाना भक्तिमार्ग का मनुष्यों का बनाया हुआ है । जहाँ भी जाएँगे- 'तुम मात-पिता, हम बालक तेरे या 'त्वमेव माता च पिता त्वमेव बंधु, ऐसे कहते हैं ना । कहाँ भी जाते है तो बिचारे अर्थ को जानते नहीं हैं । बाबा ने समझाया कि शिव के मंदिर में जाएँगे तो भी यही कहेंगे- 'त्वमेव माता च पिता, बन्धुश्च सखा सब कह देंगे । अभी वही महिमा फिर जा करके लक्ष्मी नारायण के मंदिर में भी करेंगे । अनुभवी है ना बाबा । यह सब भक्ति किया हुआ है ना । इसको कहा जाता है अंधश्रद्धा, ब्लाइंडफेथ यानी किसका भी परिचय न हो और उनकी बैठ करके महिमा करते । परमपिता परमात्मा का परिचय एक भी मनुष्य में नहीं है; क्योंकि परमपिता परमात्मा आए तब बच्चों को परिचय दे । जब कोई का बाप ही नहीं है, तो बच्चों को परिचय कहाँ से मिलेगा! तो सारी दुनिया में यह जो परमात्मा-परमात्मा कहते हैं, एक को भी परिचय नहीं है; परन्तु फिर कह देते हैं-कुत्ते में है, बिल्ले में है, फलाने में है । परिचय नहीं है तो क्या करें? तो उनको रुलाय दिया । अभी प्रैक्टिकल में बाप बैठ करके समझाते हैं- तुम्हारा वो मात-पिता तुमको पिता और माता द्वारा समझाते हैं । वो खुद समझाते हैं जिसको ही 'तुम मात-पिता कहा जाता है, इनको नहीं कोई कहेंगे । ब्रह्मा, विष्णु और शंकर को नहीं कहा जा सकता है । यह भूल है, जो अगर यह भारतवासी लोग कहते हैं । यह है सब गुडियों की पूजा । एक पत्थर बना दिया है, बैठकर उनको 'शिव- शिव ' करके पूजा और फिर तोड़ डाला । आजकल जा करके उनको तो नहीं डुबाते हैं । शिव का कुछ जलूस वगैरह निकलता नहीं है । उसका निकलना नहीं चाहिए । किसका निकलना चाहिए? देवी-देवताओं का । क्यों? क्योंकि उनको डुबोते हैं । भला ऊँचे ते ऊचा जो शिव है, उनको जा करके क्यों नहीं डुबोते हैं? ऊँचे ते ऊँचा है ना । उनका भी पत्थर बनाकर, फिर उनका भी कोई दिन मनाना चाहिए । शिवजयंती के दिन शिव का चित्र निकलना चाहिए । फिर उनकी पूजा कराय कर फिर जाकर समुद्र में या गंगा नदी में डुबो देना चाहिए । उनको क्यों नहीं डुबोते? क्योंकि कहते हैं कि वो तो है ही इमॉरटल । वो जन्म-मरण में आते ही नहीं हैं । वो तो मरते नहीं हैं ना । जो मरते हैं, जन्म-मरण में आते हैं उनके चित्र बनाते हैं । उसमें भी किसका बनाते हैं? क्या तुम समझते हो कि लक्ष्मी नारायण का नहीं बनाते है? लक्ष्मी का बनाते हैं । अच्छा, फिर नारायण का क्यों नहीं बनाते हैं? दोनों को ही इकट्‌ठा डुबाना चाहिए ना? लक्ष्मी को डुबाते हैं और नारायण ने क्या गुनाह किया? उनका भी तो बनना चाहिए; परन्तु मूर्ख है ना । इन लोगों को मालूम तो कुछ है नहीं । लक्ष्मी को भी डुबोते हैं, काली को भी डुबोते हैं, इन सब देवियों को डुबोते हैं । उसमें आगे लक्ष्मी आई, तो नारायण भी आ गया । नारायण आ गया तो उनमें विष्णु भी आ गया । विष्णु का चित्र ही नहीं निकाल करके, जाकर डुबोते हैं, परन्तु सिर्फ लक्ष्मी को ही डुबोते हैं । पता नहीं लक्ष्मी ने क्या गुनाह किया । यूँ तो लक्ष्मी से हर दीपमाला पर वो भीख माँगते हैं, फिर ऐसी लक्ष्मी को डुबोते हैं । वास्तव में वो लक्ष्मी नहीं बनाते हैं । यह महालक्ष्मी को ही चार भुजाएं दे देते हैं । तो उनमें नारायण भी आ गया ना । वो समझते हैं कि लक्ष्मी की है, परन्तु नहीं, वो जो महादेवी है, उनको बाँहें दे दीं तो उसमें समझो कि उनकी भी भुजाएँ आ गई । तो वो जैसे महालक्ष्मी हो गई । उनको जाकर डुबोते हैं, परन्तु यह ज्ञान कोई भी बच्चे तो नहीं जानते हैं ना । यह कहते हैं-परम्परा से चला आया हुआ है, सो चलता रहता है । अभी दशहरे में भी तो ऐसे कहते हैं, इसलिए ये चित्र बनाए गए हैं समझाने के लिए । अभी ये जो चित्र हैं, इनमें वास्तव में गाँधी का भी चित्र देना चाहता था । कहाँ? रावण के नीचे जो गोला है, यहाँ । एक गाँधी जी का भी चित्र लगाया; क्योंकि गाँधी जी चाहते थे कि रामराज्य स्थापन हो । रावणराज्य है ना । तो जरूर रावणराज्य में यथा राजा-रानी रावण तथा प्रजा । यह तो होगा ना । वहाँ यथा राजा-रानी राम या देवताएँ तथा प्रजा । बाबा समझा देते हैं याद रख लेना यह सब भेजो सबको दो ताकी जाकर समझाये जो- जो भी चेम्बर्स हैं, सबका संगठन तो है ना । सबका कोई न कोई हेड होता है । सेक्रेटरी कहो या कोई लीडर कहो । ये सब जो भी संस्था है, उन सबको तुमको रूबरू आ करके देना है और गाँधी का नाम जरूर लेना, क्योंकि गाँधी को तो अवतार मानते हैं ना । बहुत अवतार मानते हैं । भला अवतार क्यों मानते हैं? अवतार तो सबको मानते है । जो- जो धर्म की स्थापना करते है, उनको यह लोग अवतार मानते हैं । क्राइस्ट को किसका अवतार मानेंगे? क्रिश्चियन धर्म का । बुद्ध को किसका अवतार मानेंगे ? बौद्ध धर्म स्थापन करने । यह भी अवतार मानते हैं । पर क्या अवतार मानते हैं? क्या किया? इन्होंने आ करके कौरव राज्य स्थापन किया यानी प्रजा का प्रजा पर राज्य स्थापन किया । होना चाहिए न । नहीं तो कौरव-पांडव आए कहाँ से? कौरव राज्य के पहले यूरोप तो था; पर कौरव राज्य तो था ही नहीं । अब जब कौरव राज्य था, तो पांडव राज्य भी फट निकलना चाहिए । ये दोनों कौरव राज्य स्थापन करने वाला गाँधी जी और फिर पांडव राज्य स्थापन करने वाला बड़ा बापू जी । वो छोटा बापू जी भारत का, यह है बड़ा बापू जी सबका, क्योंकि यह समझने की बाते हैं । समझ करके समझाओ । जो न समझ करके समझाते हैं वो भुट्टू जैसे बैठे हुए हैं, उन्न-पाजी ऐसे समझो । स्कूल में जो कोई न समझते हैं, न किसको समझाय सकते हैं, उनको उन्न-पाजी न कहेंगे तो क्या करेंगे? उनके लिए जगह, वो सतसंग है । ये सतसंग नहीं है, ये स्कूल है । इसमें पढ़ेंगे पढ़ाएंगे, पढ़ना भी है, पढ़ाना भी जरूर है । यह स्कूल में बस पढ़ा और जा करके पद पाया, वो नहीं होता है, इस स्कूल में पढ़ना है और पढ़ाना है, तब उनको कुछ अच्छा पद मिल सकता है । यह सबके लिए बाबा डायरैक्शन देते हैं कि बड़े- बड़े के पास जाओ, बड़े-बड़े एसोसियेशन्स में भी जाओ, उनको जा करके समझाओ कि ये बापू जी की दुनिया और यह उस बापू जी के लिए, जो बापू जी बना सकते हैं । यह देखो, सबका बड़ा बापू जी यहाँ बैठे हैं ना । अभी इनके लिए तो कुछ नहीं कहते हैं न । यह बड़ा बापू जी, वो भारत का बापू जी । वो भी है भारत में जन्म लेने वाला बापू जी परन्तु है सबका । जन्म तो एक जगह लेंगे ना । सभी जगह तो जन्म नहीं लेंगे । यह नहीं समझा जाता है कि जहाँ- जहाँ शिवबाबा वहाँ जन्म लिया होगा या जहाँ- जहाँ शिवबाबा का चित्र होगा, वहाँ शिवबाबा गया होगा । ऐसे नहीं होता है । वहाँ बाहर में बहुत मंदिर है लक्ष्मी का । क्या लक्ष्मी के वहाँ गया होगा क्या? कोई भी नहीं गया होगा । वो तो ले जाते हैं चित्र जहाँ-तहाँ, बाकी है तो यहाँ भारत के ना । देखो बाबा बैठ करके समझाते हैं यह मुफ्त में नहीं बनते हैं । बहुत खर्चा लगता है । अभी बच्चों को क्या करना चाहिए? सर्विस करनी चाहिए । जो भी बड़ी-बड़ी संस्थाएँ हैं, उनके पास ले जाना चाहिए और जा करके रूबरू समझाना चाहिए । बापू जी का नाम जरूर लेना । गाँधी जी का नाम सबको बहुत प्यारा लगता है । बाबा कहते हैं शास्त्रों में भी उनका नाम है ना, ऐसे थोड़े ही कि नहीं है । कौरवपति तो बापू जी ठहरा ना । अभी पाण्डवपति को कृष्ण कहते हैं । बाप कहते हैं-नहीं, पाण्डवपति यह बापू । कृष्ण को बापू कोई नहीं कहेंगे, सब इनको बापू कहेंगे । तो यह हुआ बेहद का बापू यह हो गया हद का बाप । वो है मनुष्य, यह है निराकार परमपिता परमात्मा । गाया जाता है ना । हद का बापू कोई स्वर्ग या रामराज्य थोड़े ही स्थापन करेगा । यह तो बेहद का बाप चाहिए ना । तो उसी समय में देखो, कौरव भी है, पाण्डव भी हैं, यादव भी है । कौरव राज्य था नहीं यहाँ, कौरव राज्य कौरवपति ने स्थापन किया । वो तो बाबा ने समझाया है-कौरवपति ने  यानि जिन-जिन कौरवों ने यानी काँग्रेस ने उनको अच्छी-अच्छी मदद दी, तन-मन-धन दिया तो तन-मन देने का कोई तन-मन का सुख उनको मिला? प्रश्न होता यह, अच्छा भाई, सुख तो मिला, परन्तु ऐसे नहीं कहेंगे तन-मन-धन का सुख मिला । नहीं, धन का भी बेशक मिला है, बाकी तन का नहीं, मन का नहीं । धन का भी कौन-सा? अल्पकाल क्षणभंगुर । देखो, बाबा कितना अच्छा समझाते हैं । यह बापू जी तुमको तन, मन और धन का सुख देते हैं । सो भी किसका? 21 जन्म के लिए स्वर्ग का मालिक बनाते हैं । जब तन सुखी, मन सुखी, क्योंकि मन बहुत घुटका खाता है ना, तूफान लगते हैं । वहाँ तूफान तो होता ही नहीं । माया ही नहीं है, तो मन को तूफान कैसे लगेंगे? मन का सुख, धन का सुख । मालामाल । ठीक है ना? एवरहेल्दी एवरवेल्दी एवर हैपीनेस देते हैं । अभी इस बापू गाँधी जी ने तो कौरवों को यह सब नहीं दिया । हाँ, इतना जरूर है कि जिन्हों-जिन्हों ने बहुत मदद दी है, वो बड़े-बड़े ऑफिसर बने हैं या वो धन बहुत कमा रहे हैं । उनको धन कमाने की मदद भी मिल रही है । युक्ति है ये सब लगी हुई । जिन्होंने मदद दिया उनके ऊपर तरस खाए । इन्होंने तो बिचारे ने सब कुछ दिया, भले अभी कमावे । तो लाइसेंस भी जो कमावे । तो बाबा फिर क्या कहते हैं? यह सब बातें वहाँ नहीं होतीं । जो- जो अच्छी तरह से सर्विस करेगा, शिवबाबा का मददगार हो जाएगा, बाबा कहते हैं-मैं फिर तुमको तन का, मन का, धन का 21 जन्म के लिए सुख देता हूँ । तन, मन और धन से बलि चढ़ना होता है ना । जैसे, यह थे ना? अभी फिर से यह आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना हो रही है । आदि सनातन देवी-देवता धर्म है सतयुग में । तो क्या सतयुग को क्रियेट करने वाला कृष्ण है? कौन कहेगा? सतयुग का क्रियेशन तो सच्चा बादशाह करता है; क्योंकि सचखण्ड है और वो ही फिर अभी झूठखण्ड है । सच्चा बादशाह उनको कहा जाता है ना । और तो कोई को नहीं कहा जा सकता है । क्रियेटर वो ही है । क्रियेटर भी है, डायरेक्टर भी है, क्योंकि यह हमेशा गाया जाता है कि करन-करावनहार है । उनकी महिमा बहुत गाते हैं सभी । तुम लोगों की अलग है । गायन सबका अलग है । तुम लोग कहेंगे ज्ञान का सागर है, आनंद का सागर है । मनुष्य सृष्टि का बीजरूप है, यह भी जरूर कहेंगे । अभी कोई मनुष्य को तुम लोग मनुष्य सृष्टि का बीज कहेंगे? न ब्रह्मा को, न विष्णु को, न शंकर को, न लक्ष्मी को, न नारायण को कहेंगे । तुम लोग तो एक को कहेंगे ना । फिर उनकी है यह महिमा, जिसको कहा जाता है बिलवेड मोस्ट बाप । अगर बिलवेड बाप है तब तो भक्त भगवान की भक्ति करते हैं । तो भगवान एक होना चाहिए ना । तो भक्तों का मोस्ट बिलवेड एक शिव, परन्तु न जानने के कारण, लक्ष्मी-नारायण, फलाना सन्यासी-उदासी, गुरु, सारी पति आदि यह सब हो गया । नहीं तो बिलवेड मोस्ट तो उनको कहा जाता है । वो बिलवेड मोस्ट आ करके, जैसा खुद बिलवेड मोस्ट है वैसे तुमको बिलवेड मोस्ट बनाय रहे हैं, परन्तु जो-जो अच्छी तरह से धारण करेंगे और औरों को करायेंगे, वो बिलवेड मोस्ट स्वयं यह लक्ष्मी नारायण के विजयमाला में पिरोय सकते हैं । अगर कुछ नापास होते हैं, तो फिर पहले उनको दास-दासियाँ जरूर बनना पड़ेगा । गाया हुआ है-अनपढे पढ़ो के आगे भरी ढोयेगे । यह तो गाया जाता है कि रामचन्द्र, सीता भी उनके साथ ठहरी ना, वो 14 कला बने । 16 कला न पास हो सके, त्रेता में आ गए । कहाँ जाएगा? आएगा तो जरूर सतयुग में । फिर कहाँ जाएंगे? उनको क्या पद मिलेगा? यह भी तो समझ की बात है ना । वो अनपढ़े पूरे पास न हुए । इसलिए जो पास हुए है, उनके आगे भरी ढोएंगे । वो सभी जो नापास होते हैं, पहले वहाँ नम्बरवार दास-दासियाँ बनेंगे । दास-दासियाँ भी तो नम्बरवार होती हैं ना । कोई तो श्रृंगार कराती हैं, साथ में रहती हैं, कोई तो झाडू लगाती हैं, कोई तो साफ करने वाली होंगी । नौकर तो नम्बरवार होते हैं ना । यह भी ऐसे ही है फिर, उसमें भी नम्बरवार । चंद्रवंशियों में भी नम्बरवार दास-दासियाँ होती हैं । यह तो बाप बैठकर समझाते हैं । हरेक अपने से पूछ सकते हैं । स्टूडेंट्स होते हैं ना, जब इम्तिहान के दिन होते हैं, तो उनकी दिल खाती है कि हम कितने मार्क में पास होंगे । जो आगे ही बैठते होंगे स्कूल में, बहुत करके जो अच्छे बच्चे होते हैं वो ऊपर में ही रहते हैं । कोई एकदम मुश्किल ऊपर चढ़ते हैं । वहाँ भी तो नम्बर रहते हैं । तो यहाँ भी तो नम्बर ही बनने हैं । बाबा की तो माला है । तो बाबा कहते हैं, इसके ऊपर बहुत सर्विस करो । यह पैसा खर्च करते हैं काम का । भले भूलें हो जाती हैं । इनमें उनका चित्र आना चाहिए था । इनमें भी कृष्ण का चित्र बीच में तो है, परन्तु खुला । जैसे, जो द्रौपदी की साड़ियाँ उतारते हैं तो कृष्ण को दिखलाते हैं साड़ियाँ देते रहते हैं और द्रौपदी पुकारती है । कहती है ना- 'हे भगवान! मुझे यह दुर्योधन नंगन कर रहा है । अभी कृष्ण को याद किया । कृष्ण को तो याद करने का नहीं ना । वो नाटक में दिखलाते हैं, एक साड़ी निकाल कर दूसरी, दूसरी साड़ी निकाला, तुम लोगों ने द्रौपदी का नाटक देखा है? कृष्ण चरित्र जिसको कहते हैं । द्रौपदी पुकारती है- हे दात! हे भगवान! ये दुर्योधन मेरी साड़ी उतार रहा है, मुझे सभा में नंगन कर रहा है । अभी सभा तो यह है ना । हिन्दु सभा है ना सभी । यह हिन्दु सभा वाले तो सभा में नंगन करते हैं ना बरोबर । सभा वाले घर में नंगन करेंगे, यहाँ थोड़े ही आ करके नंगन करेंगे । एक तो द्रौपदी नहीं है ना । यह तो सभी द्रौपदियों के लिए हुआ ना । तो पुकारती हैं- हे भगवान् आके...फिर साड़ी एक-एक करके देते रहते हैं उसका अर्थ तो कोई समझते नहीं हैं । अभी तुम जानते हो कि 21 जन्म तुम नंगन नहीं होती हो । बाप आया हुआ है ना । आ करके अभी तुम्हारी रक्षा करते हैं । अभी स्त्रियां नंगन होंगी, तो पुरुष कैसे होंगे । कहाँ की बात नाटकों में तुम लोगों को कहा । यहाँ अभी डायरेक्ट बाप समझाते हैं ना । यह तो नहीं समझाय सके न । बाप समझाते हैं- अभी तुमने यह राज समझा जो नाटक में पुकारते है-हे भगवान, आ करके हमको नंगन होने से बचाओ? अभी की बात है ना । अभी वही तुमको समझा रहे हैं । यही समय है । बाबा ने उस दिन पूछा ना । यह तो कहेंगे कि हम अभी दुर्योधन से हम सो देवता बन रहे हैं । अभी हम किसको नंगन नहीं करते हैं, इसलिए हमको बाबा दुर्योधन नहीं कह सकते हो । जो नंगन करते हैं वो दुर्योधन जरूर हैं । तुम तो पुरुषार्थी हो गए ना । जरूर अगर तुम फेल होते हो, तो फिर दुर्योधन बन जाते हो और फिर नर्क में चले जाते हो । तुम लोगों को वो पद तो नहीं मिल सकता है । वो तो जरूर है, इसलिए खबरदारी करनी है । फेल भी तो जरूर होंगे ना । कोई काम में फेल होते हैं, कोई क्रोध में फेल होते हैं, यह तो होता रहेगा । कोई वो बॉक्सिंग तो नहीं है उस नटकी में जो दिखलाते हैं । ये तो जहाँ जीय तहाँ बॉक्सिंग के रिंग में हो तुम अभी । बॉक्सिंग के चक्कर में तुम लोग को जहाँ जियो तुम्हारी बॉक्सिंग चल रही है । वो बॉक्सिंग है अल्पकाल क्षणभंगुर के लिए । होशियार हो करके लड़-लड़ हार खाय हल्के से ऊचे-ऊंचे बन करके वो बड़े पहलवान बन जाते हैं । नहीं, पर ये तो जहाँ जीय वहाँ तुमको माया से चोट खानी है । तुम बॉक्सिंग में हो, जब से बाबा का बनते हो । जो बाबा का नहीं बनते हैं, वो कोई बॉक्सिंग में नहीं हैं । उनकी बाबा बिल्कुल रक्षा नहीं करते हैं । जो बॉक्सिग में होगा, उनकी कुछ न कुछ रक्षा होती रहेगी; परन्तु काम का या क्रोध का कुछ न कुछ थप्पड़ खाते रहेंगे । कोई-कोई बात पर ठूँसा लगता है । इन लोगों ने बॉक्सिंग शायद देखी नहीं है । बच्चों ने तो कईयों ने देखी होगी । कोई को तो यहाँ ऐसा जोर से ठक लगता है तो ऐसे गिर जाते हैं एकदम । तो यहाँ भी ऐसे ही हैं । ऐसे बच्चे बहुत हैं, जिनको कोई वक्त में माया यहाँ ठौसा मार देती है, तो यह गिरा । यह है काम की चोट । उसमें अगर गिरे, तो पाँच माल से गिरे । फिर वो किसको कह नहीं सकते है पाँच विकार को जीतो । एकदम मुर्दे बन जाते हैं, मुख से ज्ञान निकल नहीं सकेगा । इसमें तो मेहनत है ना । मासी का घर थोड़े ही है । ऐसे ही फिर क्रोध है । बच्चे बहुत कहते हैं-बच्चे गुस्सा करते हैं, बच्ची तंग करती है । तो मिसाल तुम्हारा है कृष्ण का, कृष्ण ने मक्खन चोरी थोड़े ही किया होगा । यह तो उनके ऊपर कलंक है । कृष्ण मक्खन चुराय लिया, फलाना करेंगे! वहाँ उनको मक्खन की क्या परवाह रखी है, जो चोरी करेंगे? यह सब बिचारे कृष्ण के ऊपर कलंक हैं । यह वस्त्र चोरी, फलाना चोरी । कृष्ण मर्यादा पुरुषोत्तम बालक, एकदम स्वर्ग का राजकुमार । उनकी महिमा जास्ती क्यों है? क्योंकि बच्चे सतोप्रधान होते हैं । पीछे सतो पीछे रजो फिर तमो । तो विष्णु का रूप यह बालक है । बालक जब सतोप्रधान है तो उनकी महिमा जरूर है । पीछे जब शादी करते हैं तो जैसे कि रजो में आ जाते हैं । इसलिए उनकी पूजा फिर नहीं करते, कृष्ण की करते हैं । क्यों? लक्ष्मी नारायण ने गुनाह किया? उनको झुलाते हैं ना । वो बच्चा होता है, बच्चा हमेशा जास्ती पवित्र होता है । यह शरीर की आयु भी ऐसी होती है, पहले जब छोटा बच्चा है तो सतोप्रधान । पीछे ऊपर गया सतो पीछे ऊपर गया रजो पिछाड़ी में जड़जड़ीभूत अवस्था । फिर शरीर छोड़ना पड़े । बाबा समझाते हैं ये चित्र विलायत में कुछ समझानी दे करके अपने मित्र-संबंधियों को भेजो । ये अमेरिका तक भेजो जिन-जिन के जो-जो भी मित्र-संबंधी है । पोस्ट में डालने के लिए तो कोई खर्चा नहीं है । यह तो सब चले जाते हैं । क्या लगेगा? दस पैसा, आना । जो नहीं समर्थ है, सर्विस करे पैसा यहाँ गवर्नमेन्ट से ले लेवे । यह पाण्डव गवर्नमेन्ट है, यह गाई जाती है । हैं दोनों बिगर ताज । वो गवर्नमेन्ट तो है ही कौरव गवर्नमेन्ट । यह तो पाण्डव गवर्नमेन्ट है जो गुप्त है । पाण्डव गवर्नमेन्ट को कहा जाता है-गुप्त । अननोन रूहानी वारियर्स इसको कहा जाता है । कोई को थोड़े ही मालूम है दुनिया में क्या हो रहा है । तुम जानती हो बच्चे कि हम अपने लिए अभी स्वर्ग स्थापन कर रहे हैं । हमारी लड़ाई है, हम लड़ाई के मैदान में हैं । हम किससे लड़ते हैं? हम यह रावण से लड़ते हैं, पाँच विकारों पर जीत पहन रहे हैं । जीत पहन रहे हैं यानी मेरे पास ये भूत कभी भी नहीं आ सकते हैं । भूत को भगाना है ना! तुम लोगों को मालूम है कि शुरू में किसमें भूत आता था तो हम बोलते थे अरे! देखो, इसमें क्रोध आया भूत आया, बड़ी दूर ले जाओ कोई झाड़ के तरफ में, शोक-वाटिका में । सामने नहीं रहो, भूत सामने आएगा तो दूसरे में भी प्रवेश कर लेगा । भगाओ इन्हें, दूर-दूर रखो उनको । भूत आया है इनमें । कहा भी जाता है-इनमे क्रोध का भूत है । दुश्मन तो ये हैं ना । भारत के बड़े ते बड़े दुश्मन हैं ये, तुमको जीत पहननी है । चाहे राम को वरो चाहे नारायण को वरो यानी उसमें भी तो लिखा है ना धनुष तोड़ना है या बन्दर से मन्दिर लायक बनना है, तब तुम नारायण को वरेंगे । वहाँ भी यही बात है । तुमको अगर सीता को भी वरना है, तो पवित्र तो बनना पड़े ना । यह जो रावण का धनुष है उनको तोडना है । ये पांच विकार कोई हमारे पास न आवे । फिर जो जितना पुरुषार्थ करते हैं, उतना वहाँ जा करके राम को भी वरेंगे या सीता को वरेगे या लक्ष्मी नारायण को, बात तो एक ही है । लड़ाई का मैदान है युद्ध तो यही बाप सिखला देते हैं । इसको कहा ही जाता है- रूहानी युद्धस्थल । युद्धिष्ठिर कहा जाता है ना, तो यह युद्धस्थल है । युद्धिष्ठिर नाम नहीं है, युद्धिष्ठिर तो लिख दिया है। युधिष्ठिर, धृतराष्ट्र ये नाम लिखा हुआ है ना । ये है युद्धस्थल यानी युद्ध के मैदान में थापूजी स्थापन कर करके माया पे जीत पहनाने वाला । धृतराष्ट्र की है हिंसा की लड़ाई, युद्धिष्ठिर की है माया पर जीत पहनने के लिए, रावण पर जीत पहनने के लिए रूहानी लड़ाई । वो है परस्पर की लड़ाई । ये सब अक्षर तो हैं ना । है गीता वो बाप भी आकर कहते हैं-बच्चे, यह ज्ञान प्रायःलोप हो जाएगा । यह प्रायःलोप क्यों कहते हैं? यानी बाकी आटे में लून रहा है । बाकी, नहीं तो देवी-देवता धर्म प्रायःलोप है । 'प्राय: अक्षर लिख देते हैं, ऐसे क्यों नही कहते-लोप है? लोप नही है, चित्र है देवताओं का, उसकी निशानी गीता भी मनुष्यों ने बनाई है, परन्तु उनमें वो भूल कर दी है । सभी शास्त्र, वेद सब झूठ बना दिए हैं । तो समझाते हैं ना, बरोबर ब्रह्मा के मुख कमल से परमपिता परमात्मा आ कर सभी वेदों, ग्रंथों और शास्त्रों का सार समझाते हैं । उसमें सबसे पहले तो आ जाती है 'सर्व शास्त्रमई शिरोमणि गीता । वो पहले हुआ ना, उसका सार बैठ करके समझाते हैं । मुख्य है ही गीता, भारत का धर्मशास्त्र । बाकी रामायण आदि ये सब झूठे हैं । फिर वेद-उपनिषद वगैरह जो भी बनाए हैं उनमें हैं यह संसार की बातें । कोई स्वर्ग में ले जाने वाली या मुक्त -जीवनमुक्त बनाने वाली नहीं हैं । वो भक्ति के काम में आती हैं । वेद पढ़ो, अर्थ करो और धधा करो, दुकान निकालो. । जो-जो जितना बड़ा धंधा सिखलाते हैं, वो पैसा कमाते हैं । कमाते-कमाते क्या हुआ भला? वो भी तो तमोप्रधान बन गए ना । खुद भी बने और सबको बनाया । नर्कवासी सबको बनाया, खुद भी बने और सबको बनाया सबने; क्योकि दुनिया सो तमोप्रधान बननी है ना । तो बाप बैठ करके समझाते रहते हैं- जजमेन्ट आती है तुमको बरोबर सभी नर्कवासी है? यह भी तो चित्र में लिखा हुआ है ना- यह नर्क है सारा, यह स्वर्ग है । जरूर नर्क के बाद स्वर्ग स्थापन करेगा । इसको नर्क तो जरूर कहेंगे ना । कहते हैं तुम्हारा बाप कहाँ गया? कहेंगे स्वर्गवासी हुआ । जरूर नर्क में थे ना । पीछे तुम क्यों कहते हो कि यह नर्क नहीं है, स्वर्ग है? किसी से भी पूछो । जाओ, राधाकृष्णन से पूछो, प्रेसिडेंट से पूछो कि नर्क है या स्वर्ग है? अगर स्वर्ग है तो जब कोई मरता है तो तुम क्यों कहते हो कि स्वर्गवासी हुआ? पुनर्जन्म तो यहाँ नर्क में लेंगे, फिर तुम क्यों कहते हो-स्वर्गवासी हुआ? तुम लोगों को अक्ल चाहिए ना पूछने-करने का । जो सर्विस पर होंगे, वो पूछेंगे । बाकी यहाँ बच्चे तो बहुत आते हैं । मकने हाथी भी आते हैं । मकने हाथी किनको कहा जाता है? कान बड़े, सुने कुछ भी नहीं और ऐसे कान में चींटी चली जाए तो हाथी बेहोश हो जाए । यह मालूम है तुम लोगों को? यहाँ तो मकने हाथी भी बहुत आते हैं, जिनको कुछ भी समझ में नहीं आता है, बिल्कुल ही पत्थरबुद्धि । हैं तो यहाँ पारसबुद्धि बनने वाले ना; परन्तु पारसबुद्धि तब बने जब यह ज्ञान सुनकर फिर औरों को भी सुनायें । नहीं तो पत्थरबुद्धि का पत्थरबुद्धि रह जाते हैं । हाँ, यह जरूर होता है कि इस अविनाशी ज्ञान का विनाश नहीं होता है, वो स्वर्ग में आ जाएगा । यह जरूर है । बच्चों को प्रजा भी तो चाहिए ना, नहीं तो कहाँ से आएगी । ऐसे ही फिर प्रजा में आ जाते हैं । बाबा बैठे हैं, इनकी सर्विस तुम बच्चों को बहुत करनी है । अच्छी-अच्छी जगह जहाँ बड़े-बड़े आदमी भी जाते हैं ना, यह जो गवर्नमेन्ट हाउस है, यह जो बड़े-बड़े मिनिस्टर्स हैं, एजुकेशन मिनिस्टर, हेल्थ मिनिस्टर, फलाना मिनिस्टर, उन सबको भेज देना है; क्योंकि यहाँ इस समय मे भारत फिर एवरहेल्थी एवरवेल्दी एवरहैप्पी बन रहा है । वो तो है ही स्वर्ग बन रहा है । वो ही बिचारे बापू जी माँगते थे । गीता भी ली थी हाथ में, कोई रामायण नहीं लिया था । हाथ में गीता और मंत्र रामायण का । हाथ में गीता और सुनाते गीता थे, क्योंकि बाबा को मालूम है, अच्छी तरह से जानते हैं । ऐसे मत समझो कि लीडरों को नहीं जानते हैं । बाबा एक बरस स्ट्रिक्ट काँग्रेसी बना था । वो भी नहीं खाना, यह भी नहीं खाना, कपड़ा भी खादी । ये प्लेट नहीं काम में लाना पक्का गांधी बना था, बहुत अच्छे-अच्छे लीडरों को जानते थे; परन्तु नही, अभी बाबा ने आ करके आँखे खोल दी, ज्ञान का तीसरा नेत्र दे दिया, जिससे सब समझ में आए, नहीं तो क्या मालूम कौरव किसको कहा जाता है, पांडव किसको कहा जाता है । यह तो पढ़ते रहते हैं शास्त्रो में । अभी तो तुम बच्चों को ज्ञान का तीसरा नेत्र मिल गया है, सो भी नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार । बाबा कहते हैं, स्कूल में ऐसे भी बैठे हुए हैं बिल्कुल ही बुद्धू । फिर भी तो सुनते हैं ना । कुछ न कुछ मददगार भी तो हैं ना, तो बाबा उनको मदद जरूर देते हैं, क्योंकि बच्चे पैसे की मदद देते हैं तो अस्पतालें खोली जाती हैं । अभी गवर्मेन्ट को मदद देते हैं ना, पैसा नहीं है तो पब्लिक गवर्नमेन्ट को मदद देती है । उनको भी कुछ मिलता है ना । वो तो अभी भी नहीं मिलेगा उन लोगों को; क्योकि वो छी-छी दुनिया में नहीं आने वाले हैं । अभी जो एजुकेशन खोलते होंगे, अस्पताले खोलते होंगे, बहुत पैसे का है ना, उनको फल कहाँ मिलेगा? वहाँ सतयुग में तो कोई रोगी नहीं बनते हैं, कोई फलाना बनते ही नही हैं । तो अभी जो-जो भी यह करते रहते हैं उनसे कोई फल नहीं मिलेगा; क्योंकि यह नर्क में फल मिलने का है । नर्क ही खत्म हो जाएगा तो फल कहाँ से मिलेगा! अभी तो जो बापू जी को कहते हैं क्या ? अरे बच्चे- जाओ घर में, अपना सेन्टर खोलो तीन पैर पृथ्वी ले करके बैठ करके समझाओ । यह बहुत जरूरी है । हर एक के घर में, बाबा बनायेगा इनको अच्छा करके । बहुत फर्स्ट क्लास बनेगा, बापू जी को भी यहीं ले आयेंगे । है तो यहाँ ही चित्र वहीं ले आएँगे उनका, ऐसे तो नहीं कोई कहेंगे कि वो चला गया वानप्रस्थ में या वैकुण्ठ में । वैकुण्ठ तो मांगता था, नई दुनिया में आना चाहता था; परन्तु अभी तो नहीं आएगा । वो नई दुनिया स्थापन कहाँ हुई? जरूर यहीं होगा । यह तो समझने की बात है ना । हम लोग पूछते हैं कभी-कभी, तो बोलता है-हाँ यहाँ है, राजकोट के तरफ में इनका जन्म हुआ है । अभी जाकर देखेंगे तो बच्चा देखेंगे, वो गांधी थोड़े ही देखेंगे । बच्चे पूछते हैं कभी कभी -बाबा कहा है यह? कहाँ गया-तो बता देते हैं, यह फलानी जगह में गया । उन्होंने मेहनत तो की ना, गाँधी अच्छे घर मे गया । साहुकार घर में गया, और कहा जाएंगे । यह समझा ना-बाबा क्या बोलतें हैं, सर्विस करो । एक पैसा बरबाद नहीं होना चाहिए । विलायत में भेजो हाँगकाँग में भेजो जो-जो भेज सकें अपने मित्र-संबंधियों को । वहाँ सब एसोसियेशन को बाँधते हैं, जहाँ –जहाँ  भी हो सिंधी । विलायत मे किसको भेज देना है तो भेज दिए । इंगलिश में आएगी अभी । आज आ जाएगी, पार्टी लेट हो गई है । दशहरा भी दो हो गए है ना । गवर्नमेंट में आगे था अभी ये भारत में । कभी भी ऐसा हुआ ही नहीं है । यह कौरव गवर्मेन्ट प्रजा का अंधेरी नगरी, चौपट राजा, टके सेर भाजी, टके सेर खाजा-यह बात हो जाती है । कहते हैं कि जब महाभारत की लड़ाई लगी थी, तभी यह बात हुई थी । अभी बहुत कहते रहते हैं । आगे भी जब विनाश होता था, तब भी ऐसे कहते थे । लड़ाई तो होने वाली है, तब शायद यह दो बनी हैं । दो दीपमाला कभी होती नही है । व्यापारियों का खाता रखने का होता है, तो एक में सब रखेंगे, नहीं तो उन बिचारों का खाता ही, हिसाब-किताब में ही गड़बड़ हो जाएगी । नया खाता रखते हैं ना । वो दीपमाला का खाता रखते हैं, तुम अपने पापों का सारा खाता उड़ाय करके और हिसाब चुक्तु करते हो । तुम हो विकर्मों का हिसाब चुक्तु करने वाली और तुम फिर विकर्माजीत राजाएँ बनते हो । अभी तुम्हारा पिछाड़ी का खाता खलास होता है । तुमको अभी बहुत जमा करना है । जमा कैसे होगे? जब सुनेंगे-सुनायेंगे, आप समान बनायेंगे, भारत को स्वर्ग बनाने में मदद करेंगे । जैसे काँग्रेस राज्य स्थापन करने में उस बापू को मदद दिया, ऐसे यह बापू कहते हैं कि मैं हूँ तुमको स्वर्ग बनाने वाला, अभी तुम ,मुझे मदद करो । जैसे वो हॉस्पिटल्स खोलते हैं वैसे तुम ये हॉस्पिटल्स और ये यूनिवर्सिटी घर में, तीन पैर पृथ्वी में खोलो । तीन पैर पृथ्वी में तुम मनुष्य को 21 जन्म का सुख दे सकते हो । एवरहेल्दी एवरवेल्दी एवरहैपी बना सकते हो । अभी यह काम नहीं करेंगी? हर एक को यह करना चाहिए ना । जो न करेगा सो न पाएगा । अच्छा, अभी आज भोग भी है, इसलिए फिर तुमको बताएंगे, परन्तु तुमको बहुत मेहनत करनी है । जाओ अपने मित्र-संबंधियों को यह कागज लिख करके, जाकर समझाओ कि पियर और ससुर घर का उद्धार करना है ना । जाओ, लज्जा नहीं करो । जो ससुरघर को छोड़ा भी है, जाओ ससुर घर में, उनको जा करके समझाओ । डरो मत, तुम लोगों को कोई मारेगा नहीं । अच्छा, आओ भोग ले आओ बच्ची । सर्विस करते हैं - ये बड़े- बड़े जो भी भला है सबके पास चले जाओ, उन लोगों को तो टाइम है बहुत । वो भेज भी सकते हैं । तुम बच्चों को तो टाइम नहीं है, थोड़ा टाइम है । इसलिए पोस्टर भी लगाओ ऐसा । आजकल आसुरी दुनिया है ना । पोस्टर देखेंगे आर्यसमाजी, ये साधु-सन्यासी लोग, ये समझा करके उनको इशारा देगे ये फाड़ करके, तोड़ करके खलास कर देंगे; क्योंकि ऐसे करते है । तुम लोगों को युक्ति से काम करना है । बड़े-बड़े जो एसोसियेशन्स या बड़े-बड़े जो सभाएँ हैं, उन सबमें जाकर समझाकर के आओ । हिन्दु महासभा मे तो पहले जाओ । उनके लीडरों को जरूर जाकर समझाओ, बाबा मना थोड़े ही करते हैं । बाकी मेहनत करो, इसमें मेहनत है । जो करेगा सो पाएगा । गांधी लोग, कांग्रेस लोग भी ऐसे कहते हैं ना- आराम हराम । यह तो तुम स्वर्ग बनाते हो, मेहनत चाहिए । नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार वो बाबा जानते हैं जो-जो मुझे याद करते हैं, मैं उनको उतना ही याद करता हूँ । वो तो लॉ है ऐसा । जो नही याद करेगा, मैं उनको पूछूंगा नही । न ही मैं उनको मदद दूँगा, न मैं उनको इतना वर्सा दूँगा । ऑटोमेटिकली नहीं मिलेगा, क्योंकि यहाँ समझ की बात है । ये तो सब बेसमझ हैं ना । बाबा आकर समझाया-तुम सब बेसमझ बन गए हो । बिल्कुल ही जट बन गए हो, जंगली बन गए हो । देखो, मैंने तुम बच्चों को क्या बनाया था । तुमको बताय दिया था कि तुम 21 जन्म स्वर्ग में मालिक बनेंगे । वो ज्ञान तुमको वहाँ नहीं होगा । तुम 63 जन्म फिर रावण-राज्य में आएँगे । अब मैं फिर आया हूँ तुमको रामराज्य देने के लिए । मैं इन्यूमेरेबल टाइम्स यानी अनगिनत बार आया हूँ और तुमको यह राज्य और भाग्य देता हूँ और फिर लक्ष्मी नारायण भी जरूर है । भक्तिमार्ग में भूल ही जाना है । बाबा कहते हैं भूलभुलैया का तो खेल है ही । देखा है तुमने बारादरी लखनऊ में? यहाँ भी भूलभुलैया बनाते हैं, जो जाओ और फिर दरवाजा बन्द । माथा फट गया, फिर यहाँ से दूसरे में जाओ तो फिर माथा फटेगा । बहुत थोड़े ने देखा होगा । बीच में एक झण्डा लेकर खड़े रहते हैं । तुम लोगों ने कभी देखा है एग्जिबिशन में? यह बनाते हैं कभी-कभी । कहाँ भी जाएं लेकिन वो पार जा नहीं सकते हैं । ऐसे भक्तिमार्ग में भी माथा फटता जाता है, पार कोई जा नहीं सकते हैं, जब तलक वो आ करके स्वर्ग का और मुक्तिधाम का गेट न खोले । महाभारत के बाद फिर मुक्ति-जीवनमुक्ति के गेट्‌स खुलते हैं । तुम वहाँ कैसे चले जाएँगे! दौड़ी पहन करके चले जाएँगे । देखो, बच्चियाँ अभी भी आज आती-जाती रहती हैं ना, क्योंकि इनके लिए गेट्‌स खुले हुए हैं । ये जाएँगी सूक्ष्मवतन में, गेट खुले होंगे । कोई नालायक होगा, जाएगा तो दरवाजा बन्द होगा । बाबा कहेंगे लायक नहीं है । पीछे चला आएगा । यह कायदा भी है ना । फिर वहाँ जाएँगे, फिर एड करेंगे भला वैकुण्ठ में जाएं । फिर वैकुण्ठ मे भी चले जाएं, तो गेट खुले हैं तब तो जाते हैं ना । ये सब साक्षात्कार की बातें हैं । अच्छा, चलो सेवार्थ । जाओ, गो सून, कम सून । अरे भाई कहाँ है ये , ठहरो । क्योंकि सतसंग में रामायण और फलाना बात, यहाँ रामायण आदि की बात नहीं है । अरे भई, उठाओ इन बच्ची को । संभालो भई ये टेप देते हैं । कितना यहाँ, मकान देखो कितना छोटा मिला है! वो सभा लगाओ अमृत का कलश मिला और सबको पिलाती थी । फिर यहाँ आ करके कोई आसुरी सम्प्रदाय भी बैठ जाती है । वो पी कर करके, उल्टा समझ करके फिर जाकर हंगामा मचाते हैं । ऐसे कहते है इनके लिए तो ट्रेटर बन जाते हैं । तो ऐसे भी यहाँ बहुत आते होंगे, जो समझते नहीं हैं, फिर बोलेंगे यहाँ तो बस यह सन्यासी और गुरु लोग के ऊपर तो लाठियों है । अरे, नहीं, यह तो भगवानुवाच- इन गुरुओं को गोली मारो । भगवानुवाच है ना कि यह गुरुओं को देह सहित और सबको भी बोलो और जो तुम्हारे खास गुरु लोग अथवा साधु लोग हैं उनका भी उद्धार करना है । जब सदगुरु मिले तब कलयुगी गुरु को क्या करेंगे? बाबा हमें मना नहीं करते हैं । इसमें लिखा हुआ है शब्द- गुरुओं की जंजीर, शास्त्रों की जंजीर, रावण की जंजीर । तुम लोगों ने न समझा हो शायद, उसमें सब लिखा हुआ है । यह जो काठिया के मुआफिक दिखलाते हैं, यह सभी जंजीरें हैं । स्त्री और पुरुष रावण की जंजीर में बाँधे हुए हैं । रावण की जंजीर, गुरुओं की जंजीर, शास्त्रों की जंजीर, सब जंजीर, गंगा नदी की जंजीर, यह सब जंजीरें हैं एकदम । बस, उनमें कैद कर दिया और रावण छोड़ने नहीं देते हैं । बाप आए हैं छुड़ाने के लिए । रावण की उन जंजीरों से बड़ा कोई मुश्किल छूटते हैं । अच्छा, जाओ बच्ची । (गीत:- मेरा सलाम ले जा) होता है तो वो बड़ा राइट होता है । सलाम वाले कम अभी प्रैक्टिकल में । बोलते है ना-हमारा सलाम वाले कम देना । बाबा फिर कहते हैं-मैं तो तुमको सृष्टि का मालिक बनाने आया हुआ हूँ । मैं हूँ जरूर सारी सृष्टि का मालिक; पर तुमको तो स्वर्ग का मालिक बनाने आया हुआ हूँ । तो तुमको भी नमस्ते । हां, शाबाश । भारत की भूमि, वही स्वर्ग बनने वाली है ना । यह भारत की भूमि ही स्वर्ग थी । भारत की भूमि बड़ी पवित्र है । यह सबका बड़े ते बड़ा तीर्थ है; परन्तु गीता को खण्डन करने से भारत की आबरू ही चट हो गई है और बरोबर प्रैक्टिकल में भारत की आबरू चट हुई पड़ी है, सिर्फ एक मिस्टेक, एकजभूल । एक खेल होता है एकजभूल का । बाप की जयंती मनाते भी यहीं हैं । बस, उसका नाम निकाल करके मनुष्य का रख दिया, जो 84 जन्म लेता है । वो जन्म-मरण रहित, जन्म तो लेता है; परन्तु अलौकिक दिव्य जन्म । बाबा कहते हैं ना-बच्चे मुझे प्रकृति का तो आधार लेना पड़े ना । जो गर्भ में एक दफा आया उनको पुनर्जन्म तो लेना पड़े । मैं गर्भ में तो नहीं आ सकता हूँ ना । इसलिए कहते हैं मुझे प्रकृति का आधार लेना पड़े । मैंने बताया हुआ है कि मैं साधारण बूढ़े तन में प्रवेश करता हूँ । वो बूढ़ा तन अपने जन्म को नहीं जानते हैं । वो कौन है, जिसका नाम मैं फिर ब्रह्मा रखता हैं । यानी ब्रह्मा और ब्रह्मा       कुमारियाँ कोई भी अपने जन्म को नहीं जानते है, मैं जन्म बताता हूँ । तो वो बैठ करके समझाते हैं कि यह ब्रह्मा तुम्हारा दिन था । अब तुम्हारी रात पूरी होती है । तुम दिन में देवता थे और पीछे देवी-देवता सूर्यवंशी थे, क्षत्रिय थे, इतना जन्म उसमें लिया । वो बैठ करके बताया है, जो फिर लिखा भी है । बताएगा तो जरूर, श्री कृष्ण का भी तो वो ही हुआ, नारायण का भी तो वो ही हुआ, जगदम्बा का भी तो वो ही हुआ, थोड़ा फर्क संगम का पड़ जाता है । उसको मिला करके, इनमें मूँझो नहीं कभी । कोई बोलता है एक ही है यह, 84 के बदली में 21 किसको देवें 20 किसको देवें? इसमें मूँझने की दरकार नहीं है । 84 जन्म का हिसाब मिल जाता है । 84 लाख का जो घोटाला था, वो तो निकाल दिया ना । बाकि अगर किसको एक जन्म का घोटाला होता है तो कहो क्यों मूंझते हो तो बाप सब बात समझाते हैं ना । कभी भी कोई फालतू प्रश्न पूछे तो उनको बोलो-पहले शिवबाबा को बताओ तुम शिवबाबा के बच्चे हो या नहीं? वो परमात्मा है या नहीं है? अगर वो है तो बेहद का सुख उनका वर्सा है । बस, तुम मनमनाभव मद्याजीभव दूसरी बात छोड़ो । डिटेल में समझाया तो भले, पर यह बात भूलो नहीं कि वो हमारा बाबा है, उनकी रचना स्वर्ग है, मैं बाबा के पास जाऊँगा, स्वर्ग का वर्सा देंगे, फिर बाबा यहाँ है, श्रीमत दे रहे हैं, उस मत पर मुझे जरूर । मत पर चलते रहो, फिर भी याद शिवबाबा को करते रहो । शिवबाबा को याद करो, वर्से को याद करो । मत पर चल करके विकारों पर जीत पहनो । याद करते रहो । यह है मंत्र जिसको कहा जाता है । फिर है सब समझने की बातें । सिर्फ मंत्र से तो काम नहीं होगा । गुरुओं से मंत्र तो सबको बहुत किस्म का मिल जाता है । नहीं, यहाँ तुमको याद करना है । बाबा कहते हैं-जितनी याद हो सके, इतनी अच्छी; क्योंकि वो जो पुतला भी हम देंगे, अंगूठी भी देंगे, तो भी उसको याद करने के लिए । इसलिए इन सभी यादगार की चीजों की भी बिल्कुल ही कोई दरकार नहीं है, क्योंकि यह तो है बुद्धि का ही ज्ञान । तुम्हारी है बुद्धि की यात्रा, रूहानी यात्रा, न कि जिस्मानी । रूहानी यात्रा का पण्डा सिवाय रूहानी बाप के कभी कोई हो नहीं सकते हैं । इसलिए कोई भी मुक्ति व जीवनमुक्ति दे नहीं सकते हैं । अभी बच्चों को एक्सप्लेनेशन मिलती है ना । जबकि हमको भगवान के पास जाना है तो भगवान पण्डा चाहिए ना । तो भगवान पण्डा बनकर आते हैं । जिसको गाइड कहा जाता है । और कोई भी मुक्ति और जीवनमुक्ति का रास्ता जानते ही नहीं हैं । सिवाय एक बाप के कोई भी गाइड बन नहीं सकते हैं । बोलता है-मैं तुम बच्चों का गाइड बन करके आता हूँ । कोई एक बात नहीं है, मैं कल्प-कल्प तुम भारतवासी जो देवी-देवता धर्म वाले हैं, उनका आ करके गाइड बनता हूँ, रास्ता बताने के लिए । न गाइड बल्कि साथ में जाता हूँ जैसे वो अनेक जिस्मानी पण्डे साथ में जाते हैं, वैसे हम अकेला हूँ और फिर साथ में यह बनते हैं, परन्तु हम सब साथ में चले जाते हैं । कहाँ? ब्रह्माण्ड, ब्रहम महातत्व में, जिसमें अण्डे रहते हैं, यह याद कर लो अच्छी तरह से । सुनाते हैं कि एक था । उसने जिन्न को नौकर लगाया । जिन्न ने कहा कि अगर तुम मुझे काम नहीं देगा, मैं तुमको खा जाऊँगा । है, सुना है कोई ये अखानी ? तो वो जिन्न काम करके आया, फिर बोला काम दो, फिर काम करके आया बोला काम दो । बोला-आगे जल्दी काम नहीं देगा, तो मैं तुझे खा जाऊँगा । बिचारा गया कोई उस्ताद के पास, बोला-यह तो हमको खा जाएगा, अभी हम क्या काम दें ? नहीं तो खा जाएगा । बोला-अच्छा-अच्छा, हम तुमको बताएँ क्या करो? सीढ़ी लगाय दो और उसको बोलो इस पर चढ़ो और उतरो । देखा काम दे दिया उनको, छूट गया ना । बाबा कहते हैं तुम बच्चों को- तुमको बहुत अच्छा काम देता हूँ तुम बाबा को याद करो । बाबा यहाँ भी आते हैं, वहाँ भी आते हैं । तुम्हारी बुद्धि कभी यहाँ जानी चाहिए क्योंकि बाबा यहाँ सुना रहे हैं, फिर तुम्हारी बुद्धि वहाँ भी जानी चाहिए; क्योंकि वहाँ से बाबा इसमें आया है सुनाने- यह काम तुम्हारे ऊपर रखना चाहिए रात और दिन, नहीं तो तुमको काल खा जाएगा । अभी समझा यह कहानी का अर्थ? जिसने बनाई है, वो लोग तो अर्थ नहीं जानते हैं, बाप बैठ करके अर्थ समझाते हैं कि अगर तुम बाबा को याद न करते रहेंगे तो तुमको काल खा जाएगा । यह तो जानते हो अभी तुमको मुरली सुना रहे हैं । रहने वाला वहीं है, वहीं से यहाँ आया है । फिर वहीं जाएँगे, हमको भी वहीं जाना है, अभी हमको सुना रहे हैं, तो यह काम हुआ ना? बाबा बोलते हैं-ऐसे बाबा को याद करते रहो । फिर तुमको विचार आएंगे बाबा तो आज दिल्ली में हैं, बाबा बॉम्बे में हैं, परन्तु बाबा तो वहीं रहने वाला है । तो तुम्हारा बुद्धियोग ऊपर भी जाएगा, नीचे में भी आएगा । यह तुमको काम है कि ऊपर में भी उनको याद करो, फिर यहाँ भी उनको याद करो, यहाँ आया हुआ है । फिर वहाँ गए हैं, अभी यहाँ हैं । अभी मधुबन में हैं, अभी वो वहाँ ही हैं । यह भी तो याद हुई ना । याद मेरी एक की वहाँ की रहनी पड़ती है । उसको याद करते रहेंगे, तो फिर तुमको काल नहीं खाएगा । नहीं तो काल खा जाएगा । बाबा को भी काम तो बहुत है ना । ऐसे तो नहीं उनका काम नहीं है । नहीं, काम तो बहुत है । तुम सबसे ज्यादा इनको काम है । चिट्‌ठियाँ लिखना, यह करना, यह लिखना; परन्तु नहीं, फिर भी लिखने को बैठ जाता हूँ, जिनको लिखता हूँ उनको याद करता हूँ, परन्तु फिर भी झट बाबा को याद जरूर करता हूँ । छुट्‌टी मिली है कि बच्चे कर्मयोगी हो, इसलिए इतना घण्टा माफ है । फिर भी जितना पुरुषार्थ हो, इतना उनको याद करो । फायदा है, कमाई है । उठते, बैठते, चलते, खाते, पीते, स्वदर्शन चक्रधारी बनो, माना कमाई करते रहो । पीछे जितना जो पुरुषार्थ करें । हेल्थ एण्ड वेल्थ, दोनो ताज हुए । प्यूरिटी का ताज, वेल्थ का ताज । फिर तो हैपीनेस है ही है । यहाँ कोई ने भी जिन्होंने गाँधी को बहुतों ने तन-मन-धन दिया तो उनको तन–मन-धन का सुख थोड़ी है । नहीं! यहाँ बाबा कहते हैं- मैं तुमको तन-मन-धन का गारंटी करता हूँ तुमको 21 जन्म सुख मिलेगा । 21 जन्म तुम पवित्र रहेंगे, कोई तुमको नंगन नहीं करेगा । वहाँ नाटक में तो दिखला देते हैं कृष्ण बैठ करके साड़ियाँ देते रहते हैं । देखा है कभी नाटक? नहीं तो जहाँ यह नाटक होते हैं, जाकर देखो, । बापदादा, मीठी मम्मा का मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों को यादप्यार गुडमॉर्निग ।