28-09-1963    मुंबई   प्रात: मुरली    साकार बाबा    ओम् शांति    मधुबन
 


हेलो, गुडमोर्निंग, हम बम्बई से बोल रहे हैं, आज सनिचरवार है सन 1963 सेप्टेम्बर की अठाईस तारिख है । प्रात: क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं ।
 

रिकार्ड:-

नई उमर की कलियों तुमको. देख रही दुनिया सारी । तुम पे बड़ी जिम्मेदारी.....

भगवानुवाच । भगवान किसको कहा जाता है, आज बाबा यह भी थोड़ा समझाते हैं । भक्त तो सभी हैं । ऐसे नहीं कहेंगे कि सभी भगवान हैं । जो भी मनुष्यमात्र हैं, सभी भक्त हैं और सभी भक्तों को भगवान को फल देना है । अगर कोई कहेंगे कि सभी भक्त भगवान हैं, तो ये तो खोरा नहीं लगेगा । अगर सभी भक्त भगवान हैं, तो फिर बन्दगी या साधना या प्रार्थना किसकी की जाती है? भगवान एक है ये मानना तो जरूर पड़े न । भक्त अनेक और भगवान भी अनेक, तो कुछ कहा ही नहीं जाता है । फिर वही भगवान बन जाते हैं । अभी बाप बैठ करके अच्छी तरह से बच्चों को समझाते हैं और सभी भक्त कहते भी हैं कि भगवान निराकार है अर्थात उनको मनुष्य के शरीर जैसा आकार नहीं है । मनुष्य के शरीर जैसा तो सतयुग से ले करके, लक्ष्मी नारायण से ले करके अब तलक यह तो मनुष्य ही है ना । यह जरूर है कि वो दैवी गुणों वाले थे और अभी इस समय में आसुरी गुण वाले हैं । बाकी उनको भगवान तो नहीं कहेंगे ना । मनुष्य है ना । मनुष्य को कभी भी भगवान नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि देखने में आता है यह भी मनुष्य की शक्ल है । तो कोई मनुष्य की शक्ल अच्छी होती है, कोई की बुरी होती है । कोई गुण वाले होते हैं, कोई बेगुण होते हैं । हैं सभी मनुष्य । चोला जिसको मनुष्य का है, उसको मनुष्य कहा जावे । उनको भगवान कहा ही नहीं जा सकता है, क्योंकि भगवान की महिमा बिल्कुल ही अलग है । भगवान को सभी कहते हैं-परमपिता । अभी कोई भी मनुष्य, मनुष्य को, बच्चा भी उनको परमपिता नहीं कहेंगे । परमपिता, फिर क्या कहते है? अक्षर अच्छी तरह से समझो । परम आत्मा । यानी परे ते परे रहने वाली आत्मा । उसको भी आत्मा कहा जाता है जो परे ते परे रहने वाली है और उनको कोई भी आकार और साकार की सूरत नहीं है, इसलिए उनको फिर क्या कहा जाता है? 'परमपिता । सब जो भी भक्त हैं, पिता जरूर कहेंगे । उनको याद करो । कभी भी कोई भी बाप को परमपिता नहीं कहेंगे । परमपिता का अर्थ ही है परमपिता परम आत्मा इसका अर्थ होता है परमात्मा यानी परे ते परे रहने वाला । न इस स्थूल लोक में, न सूक्ष्म लोक में, परलोक में । उसको कहा जाता है मूलवतन । वहाँ रहने वाले को सब भक्त याद करते हैं । सभी भक्त याद करते हैं एक भगवान को । उसको कहा जाता है सभी सजनियाँ याद करती है एक साजन को । यह थोड़ा अच्छी तरह से मजबूत रखो । इसको कहा जाता है परमात्मा । है परम आत्मा और यह भी सभी आत्माएँ हैं । उनको चोला मिला हुआ है । है तो आत्माएँ ना । आत्मा और परमात्मा अलग रहे बहुकाल यानी परमात्मा अलग है और आत्माएँ यहाँ है । ये आत्माएँ बहुकाल परमात्मा से अलग रहे हैं । अभी देखो, बाबा अच्छी तरह से समझाते हैं । यह समझने की बात है । शास्त्रों आदि का कचड़ा और भूसा जो भरा हुआ होता है, यह निकाल देना चाहिए । परमपिता परम आत्मा माना परमात्मा । अभी उनकी महिमा सुनो, आपे ही करते हैं । वो मनुष्य सृष्टि का बीजरूप है, इसलिए उसको सभी मनुष्य गॉड फादर कहते हैं । अगर सिर्फ फादर कह देंगे, तो फादर तो बहुत है, कुत्ते-बिल्ले का भी फादर है । नहीं । इसका नाम ही है गॉड फादर यानी परमपिता परमात्मा । परमात्मा माना भगवान । असली अक्षर यह है-परम आत्मा माना परमात्मा । कृष्ण को तो नहीं कहेंगे ना । सभी तो नहीं कहेंगे ना । अभी उनकी महिमा देखो, यह स्टार है । बाबा ने समझाया ना-आत्मा और परमात्मा, वो बड़ा नहीं है । आत्मा कोई छोटी है और वो परमात्मा बड़ा है, नहीं । वो भी आत्मा है । देखो, भृकुटी के बीच में चमकता है तारा । एक स्टार है । अभी आत्माएँ इन शरीर द्वारा सब कुछ करती हैं । अगर कहें कि कोई खाती है, पीती है, दुःख-सुख सहन करती है, बोलती है, चालती है- तो वो है आत्मा । आत्मा अगर अलग हो जाती है, तो पीछे खाना-पीना, उठना-बैठना, सब बन्द हो जाता है । उनको मुर्दा कहा जाता है यानी इनमें से आत्मा निकल गई, दूसरे में जाकर प्रवेश किया, जो भी उनके कर्म का हिसाब-किताब था वो आत्मा ले गई । यानी आत्मा है । वो खुद कहती है कि मैं एक शरीर छोड़ फिर दूसरा शरीर लेती हूँ यह हो गई आत्मा । परमात्मा तो नहीं कहेंगे, मैं एक शरीर छोड़ दूसरा लेता हूँ । ऐसे कहेंगे कोई? नहीं कह सकते, इसलिए कभी भी किसको भी, जो जन्म-मरण में आते हैं, उनको परमात्मा तो कभी नहीं कहा जाता है । बाबा अच्छी तरह से समझाते हैं । एक बात समझ जाए तो जो समझेगा, वो ही तो स्वर्ग का मालिक बन सकेगा ना, वो ही तो बाप का वर्सा ले सकेगा ना । उनकी महिमा सब करते हैं-जाओ, उस शिव के मंदिर में लिंग रखा हुआ है ना । अभी बाबा कहता है, कोई वो रूप है नहीं; परन्तु वो जो शिवलिंग की पूजा चली आती है, तो उनके ऊपर समझाया जाए कि कोई इतनी बड़ी चीज तो नहीं है जो भृकुटी के बीच में चमकती है । भले यहाँ समझाया जाता है कि लिंग है, क्योंकि लिंग सब जगह में है । सोमनाथ के मंदिर में लिंग है, शिव मंदिर में लिंग है, बबूलनाथ पर जाओ तो लिंग है । नाम तो देखो क्या रखा है- सोमनाथ । उनका नाम क्यों पड़ा-सोमनाथ? है तो लिंग । यह दो नाम क्यों पड़ा? सोमरस पिलाने वाला । बबूलनाथ क्यों पड़ा? काँटों को फूल बनाने वाला । तो नाम पड़ गया बबूलनाथ । यानी यह दुनियां काँटों का जंगल है ना । एक- दो को दुःख देते हैं । ऐसे तो नहीं कहेंगे कि स्वर्ग में देवी-देवता एक - दो को दुःख देते होंगे । कृष्ण और राधे, जो फिर स्वयंवर बाद लक्ष्मी नारायण बनते हैं, यह क्या कोई एक- दो को दुःख देते होंगे? बिल्कुल नहीं । क्या वो बीमार पड़ते होंगे, स्वर्ग जिसका नाम होगा? नहीं । अभी स्वर्ग की स्थापना कौन करते हैं, नर्क की स्थापना कौन करते हैं, यह तो कोई जानते नहीं हैं । अच्छा पहले बाबा और भी परमपिता की महिमा के ऊपर समझाते हैं । देखो उसको एक बीज रूप जरूर कहेंगे बाबा कहते-जैसे तुम्हारी आत्मा है, मेरा भी ऐसे है । मैं भी परम पिता तो हूँ परम आत्मा हूँ । परम आत्मा को मनुष्य ने कह दिया है 'परमात्मा । मैं हूँ परम आत्मा, मिला करके परमात्मा कह दिया । अभी बैठता है बुद्धि में’, उनको कहा जाता है ज्ञान का सागर, मनुष्य सृष्टि का बीजरूप है और कहते हैं-सत् है, चैतन्य है, आनंद है । फिर उनकी महिमा- ज्ञान का सागर है । अभी बीज ठहरा । बीज ऊपर में है ना । उल्टा झाड़ है । तो बीज है और चैतन्य है । फिर जरूर बीज जो चैतन्य है, उनको कहा जाता है ज्ञान का सागर । उस चैतन्य बीज में कौन सा ज्ञान होगा? इस सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान होगा । यह सृष्टि का जो कल्पवृक्ष है, अनेक धर्मो का झाड़ है, उसका मैं बीजरूप हूँ । मैं जानता हूँ कि यह सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है । मैं सभी बच्चों को यह सिखलाय सकता हूँ कि इस सृष्टि का आदि-मध्य-अंत क्या है, यह चक्र कैसे फिरता है और मैं ही तुम्हारा सदगुरु हूँ । यह कलहयुग है । कलहयुग में कोई को भी सद्‌गुरु नहीं कहा जा सकेगा यानी सत् बोलने वाला न कहा जाएगा; क्योंकि अनेक गुरु हैं, फिर भी अंधियारा है यानी ब्रह्मा की रात है । मनुष्य बहुत दु:खी हैं । दुर्गति में हैं । इतने गुरु होने से भी.. अथाह गुरु हैं, अनेक गुरु हैं । यहाँ स्त्री के पति को भी गुरु कहा जाता है । ईश्वर भी कहा जाता है । इन गुरुओं को भी ईश्वर कहा जाता है; परन्तु इतने ईश्वर, इतने गुरू होने से भी यह दु:ख क्यों? घोर अंधियारा क्यों? भक्तिमार्ग क्यों? क्योंकि भक्त दर-दर धक्का खाते हैं ना । क्यों? फिर यहाँ कोई की सद्‌गति है क्या? सद्‌गति तो कहा ही जाता है स्वर्ग को । वहाँ सब सद्‌गति में हैं व वहाँ सब सुखी है । यहाँ तो सब दुःखी हैं, बीमार पड़ते हैं, रोगी हैं । गुरु कोई रोगी थोड़े ही होना चाहिए । अगर गुरु रोगी है तो दूसरे को निरोगी कैसे बनाएगा? यह कलहयुगी गुरु है ना । है तो अनेक, ढेर के ढेर हैं । घोर अंधियारा क्यों? सोझरा किसको कहा जाता है, अंधियारा किसको कहा जाता है? सोझरा कहा जाता है सतयुग को, अंधियारा कहा जाता है कलहयुग को । पतित कहा जाता है कलहयुग को, पावन कहा जाता है सतयुग को । अभी बाबा पूछते हैं कि यह कलियुग है या सतयुग है? सतयुग में तो यह लक्ष्मी नारायण राज्य करते हैं ना । तुम्हारे भारत में यह राज्य करते थे ना । तुम बच्चे इनको सतयुग कहेंगे । इसको सद्‌गति कहेंगे ना, जीवनमुक्त कहेंगे ना । यहाँ कोई रावण राज्य तो नहीं है, पाँच विकार तो नहीं हैं । भारत में पाँच विकार थे क्या? नहीं । भारत तो स्वर्ग था । अभी नर्क बना है । अभी यह विचार करना चाहिए कि ऐसे नर्क को स्वर्ग तो भगवान बनाएगा । सृष्टि रचता तो भगवान है ना । मनुष्य कैसे सृष्टि रचने वाला या स्वर्ग रचने वाला हो सकता है? तुम चाहते हो ना कि हम वैकुण्ठ जावे, स्वर्ग जावे । ऐसे तो नहीं है, तुम समझते हो कि जो मरा सो स्वर्ग में गया । स्वर्ग तो होता ही है सतयुग । कलहयुग को नर्क कहा ही जाता है । सभी नर्कवासी है । समझा ना! गाया जाता है-गुरु बिगर घोर अंधियारा । अरे, पर गुरु तो यहाँ बहुत हैं । ढेर के ढेर हैं । फिर भी यहाँ अंधियारा क्यों? दुःख क्यों? तो बाप बैठकर समझाते हैं-बच्चे, तुम कहते हो ना- ''इाान अंजन उस ज्ञान सागर सद्‌गुरु दिया । अज्ञान अंधेर विनाश ।' ' अभी पतित-पावन एक है । उसको भी कहा जाता है-सदगति दाता एक । अभी यह कोई गुरु सद्‌गति दाता थोड़े ही है । नहीं । वो तो नर्कवासी है । वो तो 5000 वर्ष पहले भी तुमको समझाया था ना । गुरु तो ढेर के ढेर है और बिल्कुल ही तमोप्रधान सृष्टि है । मनुष्य एक- दो को दुःख देते रहते है । तुम कहते हो कि बरोबर यहाँ शकर पार्वती के पिछाड़ी फिदा हुआ । यह हैं दंत-कथाएँ । फिर बिच्छू-टिंडन जैसी संतान पैदा हुई । तो यह बिच्छू-टिंडन जैसी पैदा हैं ना । एक- दो को दुःख देते हैं ना । एक- दो को काँटा लगाते हैं ना काम का, क्रोध का, लोभ का, मोह का-यह काँटे हैं ना । वो मनुष्य को दु:ख देते हैं ना । एक-एक यह रावण का रूप है । 5 सिर उनके, 5 सिर उसके । समझाया जाता है ना । अच्छा, अभी बाबा फिर भी कहते हैं कि वो है परमपिता परमात्मा । वो भी एक आत्मा है, परन्तु उनको कहा जाता है परमपिता परमात्मा, क्योंकि वो तो सर्वशक्तिवान है । वर्ल्ड ऑलमाइटी वर्ल्ड अथॉरिटी । अभी ऐसे थोड़े ही इस समय में कोई को कहते हैं-वर्ल्ड ऑलमाइटी वर्ल्ड अथॉरिटी । फिर ज्ञान सागर, शांति का सागर । किसको कहा जाता है ज्ञान का सागर? वो छोटी सी स्टार को । जरूर उस स्टार आत्मा में जिसको हम लोग परम-आत्मा कहते हैं, कोई चीज का ज्ञान है ना । बोलते हैं उनमें ज्ञान का सागर है । ज्ञान है । अब जब वो ज्ञान सागर है तो उनसे हमको ज्ञान मिलना चाहिए ना । ज्ञान तो उनमें है; क्योंकि ज्ञान अंजन उस सदगुरु ने दिया । यह तो ज्ञान नहीं है ना । यह है भक्ति । यह कर्मकांड के शास्त्र हैं । वो बाप ने बैठ करके समझाया, भक्ति है । सतयुग में भक्ति का नामनिशान नहीं, तो कलहयुग में ज्ञान का नामनिशान नहीं । समझा ना! क्योंकि आय करके ज्ञान की वर्षा बरसाते हैं, तो सृष्टि स्वर्ग बन जाती है । वर्षा कोई बरसात तो नहीं है ना । यह तुमको बैठ करके ज्ञान सुनाते हैं । पहले सहजयोग । योग किससे? परमपिता से । निराकार से, न कोई साकार से । मनुष्य बिचारे बहुत मूंझते हैं । बाबा, यह निराकार से योग कैसे लगावें? हमने तो सदैव साकार की पूजा की है-कृष्ण की, लक्ष्मी की, नारायण की, फलाने की । हम तो उनको याद करते हैं । तुम देह-अभिमानी हो ना । तुम देह-अभिमानी होने के कारण देह की पूजा करते हो । अभी तुमको देही-अभिमानी बनना पड़े यानी अपन को आत्मा समझो । फिर तुम परमात्मा को याद करो; क्योंकि तुमको परमात्मा के पास जाना है । समझा ना! अभी परमात्मा तुमको कहते हैं कि बच्चे, हे मेरी आत्माएं, हम आया है तुम्हारा गाइड बन करके तुमको वापस ले जाने के लिए; क्योंकि यह दु:खधाम है ना, तुम बहुत दुःखी हुए हो । सभी भक्त याद करते हैं कि भगवान आओ, सबको दुःख से मिटाओ । सब जो पतित हैं उनको पावन बनाओ । सब जो दु:खी हैं, सबको सुखी बनाओ । बाप बरोबर कहते हैं कि हे भारतवासियो! जब सतयुग था, लक्ष्मी नारायण का राज्य था, तुम सुखी थे ना! दुःख का नामनिशान नहीं था ना! बच्चे बाबा से पूछते हैं वहाँ थोड़े भारतवासी होंगे ना । अभी भारतवासी 33 करोड़ हैं । स्वर्ग में 33 करोड़ मनुष्य तो होते ही नहीं हैं । तो बैठ करके समझाते हैं कि ऐसे नहीं है कि सभी स्वर्ग में आएँगे । नहीं । मैं जब आता हूँ तो आ करके तुमको राजयोग सिखलाता हूँ । तुम राजाओं का राजा बनावेंगे यानी नर से नारायण बनेंगे । सत्यनारायण की कथा यह हुई ना । तो तुम बच्चे आते हो और जानते हो कि हम यहाँ आते हैं नर से नारायण बनने । कहेंगे-सब बनेंगे क्या? अरे, सिर्फ नारायण ही होता है, कि लक्ष्मी भी होती है, उनकी बड़ी राजाई होती है । यह राजधानी स्थापन हो रही है । वो समझाते हैं कि जो अच्छी तरह से पढ़ेंगे वो ऊँच पद पायेंगे । गीता में है ना-भगवानुवाच । भगवान क्या सिखलाते हैं? राजयोग । यानी राजाओं का राजा बनावेंगे । अभी कृष्ण तो भगवान नहीं ठहरा ना । नहीं! यह तो परमात्मा । तुम बच्चे समझते हैं की हम कृष्ण को कोई चीज हो उनमें याद करें। अरे! ऐसे थोड़े है, आत्मा तो नंगी है न । आत्मा ने तो शरीर पीछे धारण किया है ना । आत्मा जानती है- मैं नंगी आती हूँ फिर घड़ी-घड़ी शरीर छोड़ दूसरा लेती हूँ । वो जानती है कि मैं नंगी हूँ नंगा हूँ । आत्मा नंगा कहो, नंगी कहो । मेरा बाप भी नंगा है, उनको भी शरीर नहीं है । तो आत्माएँ, परमात्मा को बुलाते हैं । फिर गाया जाता हैं-आत्माएँ परमात्मा अलग रहे बहुकाल । अभी हिसाब हुआ न , कौन सी आत्माएँ पहले-पहले सतयुग में आई, जो फिर उनको 84 जन्म भोग पिछाड़ी में पूरा पार्ट बजाना है । वो तो देवी-देवताओं की हुई कि आत्माएँ और परमात्मा अलग रहे बहुकाल । आत्माएँ तो अभी भी आती रहती हैं । सृष्टि बढ़ती जाती है । आत्माएँ कहाँ से आएगी? आत्मा को तो जरूर आना पड़े ना । सृष्टि बने तो आत्मा को ऊपर से आना पड़े । वो तो अभी आती है । अच्छा, पहले कौन सी आत्माएँ आई यहाँ बाप से? पहले-पहले तो बाप खुद कहते है ना-हे मेरे लाडले भारतवासी, हमने पहले-पहले तुमको यहाँ स्वर्ग में भेजा । तुम स्वर्ग में जाएँगे न? तुम सबसे सिकीलधी यानी आत्माएँ, परमात्मा अलग रहे बहुकाल । हम बहुत काल बिछड़े हुए हैं । हम सतयुग में आदि में आए; क्योंकि हम देवी-देवताऐ थे । फिर कहा जाता है-सुन्दर मेला कर दिया, जब वो सदगुरु मिले दलाल के रूप में । अभी वो कैसे दलाल बने? तो बोलता है-देखो मैं बूढ़े तन में बैठ करके फिर दलाल के माफिक तुमको कहता हूँ-हे आत्मा, तुम मेरे साथ योग लगाओ । कौन कहता है? यह नहीं कहता है । वो इसमें प्रवेश करके बोलता है-मैं फिर से प्रवेश करता हूँ और कल्प-कल्प मैं इसमें प्रवेश करके तुमको स्वर्ग का मालिक बनाता हूँ गाते तो ठीक हैं, समझते थोड़े ही हैं । अगर 84 लाख जन्म सभी लेते हों, तो एक जैसे हो जाते हैं । सभी तो फट से नहीं आ जाते हैं ना । थोड़ी-थोड़ी आत्माएं आती हैं, सृष्टि बढ़ती जाती है । पहले कौन-से आए? पहले भारत वाले । सतयुग में आदि सनातन देवी-देवता धर्म, फिर पुनर्जन्म लेना पड़े । फिर त्रेता में क्षत्रिय धर्म में । फिर वो ही आत्माएँ द्वापर में वैश्य धर्म में । इस चोला से कैसे पूरी होगी, चोला छोड़ते आते हैं । फिर कलहयुग में वो ही आत्माएँ, क्योंकि फिर शूद्र भी बनें । वही आत्माएँ फिर ब्राहमण बने । तो तुम हुए ऑलराउण्ड 84 जन्म पूरा लेने वाले और सबसे जास्ती बिछुडे हो । तब बाप आकर कहते हैं ना-हे मेरे सिकीलधे बहुत काल से बिछुडे हुए बच्चे! तुम कल्प-कल्प बहुत काल से बिछुड़े हुए बच्चे आते हो और आ करके फिर से अपना स्वर्ग का राज और भाग मेरे से लेते हो । अभी कितना क्लीयर समझाते है और फिर वो कहते भी हैं-मेरा तो एक, दूसरा न कोई । अभी वो लोग कृष्ण का नाम लिख देने से फिर कहते हैं मेरा तो गिरिधर गोपाल दूसरा न कोई । अभी गिरिधर गोपाल तो कृष्ण को कहते हैं । अभी कृष्ण की तो इसमें बात ही नहीं हो सकती है । कृष्ण तो बताते हैं अभी । कृष्ण की आत्मा बोल सकती है इस समय में । वो बोलती है मेरी आत्मा पहले-पहले कृष्ण थी । सूर्यवंशी था । तत त्वम् । समुद्र अकेला थोड़े ही होगा । फिर हम और तुम । 84 जन्म का याद है ना । कहता है कि मेरी जो आत्मा है, सो स्वर्ग में यह बात नहीं कर सकेगी । अभी मेरी आत्मा को परमपिता परमात्मा ने बैठ करके यह 84 जन्म का राज़ बताया है, तो मैं कह सकता हूँ कि यह आत्मा कौन-सी? यह कृष्ण की आत्मा बहुत जन्म के अंत के जन्म के भी अन्त वाली । वो कहते हैं-मैं 84 जन्म ले करके पूरा किया है । अभी मुझे बाप ने बताया है कि तुम 84 जन्म कैसे लेते हो और तत त्वम् यह तुम्हारी राजधानी थी । अच्छा । अभी ऐसी बातें कोई दूसरा सन्यासी-उदासी थोड़े ही बताएँगे । वो कोई सदगुरु थोड़े ही हैं । सदगुरु तो एक कहा जाता है ना । जिसके लिए कहा जाता है-गुरु बिगर घोर अंधियारा । कलहयुग को कहा ही जाता है-अंधियारा । गुरु तो बहुत हैं, फिर भी कहते हैं-गुरु बिगर घोर अंधियारा । पर कौन-सा वो गुरू? वो तो सदगुरु है ना और उनको कहा भी जाता है-सच खण्ड का स्थापन करने वाला । अभी सच खण्ड का स्थापन करने वाला तो वो ही होगा ना और फिर तुम आने वाले होंगे ना । अभी सन्यासी थोड़े ही सच खण्ड में आएंगे । यानी वो तो पीछे आते हैं न । वो कोई भगवान थोड़े ही हैं । मनुष्य सभी भगवान, भगवान, भगवान ही भगवान! कुत्ते-बिल्ले में भगवान, कहते हैं । कितने मूर्ख हो गए हैं! अच्छा, अभी तुम जानते हो कि उस एक आत्मा में यह सारा ज्ञान का सागर है । ज्ञान देवें तो सागर को मस बनाओ और जंगल को कलम बनाओ, तो भी पूरा नहीं होगा । ऐसे है ना बरोबर । यह शास्त्र तो सब लिखे हुए हैं । यह देखो, ज्ञान है ना, सारा सृष्टि के आदि-मध्य-अंत को बैठ करके समझाना । कब से यह ज्ञान लेते आए हैं? इतना तो ज्ञान उस आत्मा में भरा हुआ है ना । चीज क्या है? एक स्टार है बिल्कुल ही । अभी देखो कितनी डीप बातें हैं । मोटी बुद्धि वाले थोड़े ही समझ सकेंगे । यह तो जो रोज आकर समझें, उनको समझाया जाता है । ज्ञान सागर उनको कहा जाता है । आ करके सुनाते है ना । यह तो दूसरा कोई नहीं सुनाय सकता है । सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है कभी कोई नहीं जानते है; क्योंकि सन्यासी-उदासी जो होकर गए, जो सतोप्रधान थे, वो तो कहते थे- ईश्वर बेअंत है, उनकी रचना भी बेअंत है । यानी हम नहीं जानते । न ईश्वर को जानते, न उनकी रचना को । अगर जानते होते तो तुमको सुनाते भी, परंतु कोई नहीं जानते हैं । वो तो बाप आ करके अपने बच्चों को अपना परिचय देते हैं- मैं तुम्हारा बाप हूँ । बेहद का सबका बाप हूँ । तुम अभी भक्तिमार्ग में दुःखी हुए हो । तुम मुझे याद करते हो, मैं आया हुआ हूँ । फिर तुम भारतवासियों को यह सच्ची कथा बाबा सुनाय रहे हैं । तुम बच्चों को फिर से नर से नारायण या मनुष्यों को देवता बनाने के लिए मैं आता हूँ । मेरी महिमा दूसरे नहीं करते हैं । गुरु नानक नहीं कहते कि मानुष को देवता किये करत ना लागी वार । किसकी महिमा है? यह क्या नानक की महिमा है? नहीं, वो तो उनकी करते हैं ना । बोलता है-मूत पलीती कपड़ धोये । बरोबर तुम्हारा यह चोला बदली हो करके मूत पलीती से फिर तुम्हारा स्वर्ग का शरीर तुमको मिलेगा । तो सबका धोएगा ना । धोबी ठहरा ना । देखो, महिमा कैसे करते हैं! तो पतित को पावन करना, कपड़े मैले होते हैं तो धोबी धोते हैं ना । यानी अच्छे कर देते हैं । तो यह बोलता है-बच्चे मैं आ करके तुम पतितों को पावन बनाता हूँ । पतितों को पावन करने वाला तो उनको कहा जाएगा या पतित-पावनी गंगा कहेंगे? एक ही मिस्टेक इतनी बड़ी कि गंगा है पतित-पावनी । गंगा पतित-पावनी क्यों हो सकती है? वो तो उस पानी के सागर से निकली है ना । तुम हो ज्ञान सागर से निकली हुई ज्ञान गंगाएँ । यह हयूमन की बात है । वो तो पानी की बात है ना । बाबा बच्चों को कहते हैं- बच्चे, कितने मूर्ख! अरे, पतित-पावनी गंगा कैसे हो सकती है? पतितों को पावन कैसे करेगी? यह सन्यासी जो कहते हैं पतित-पावनी, फिर उनको जब कोई अपोज करते हैं- अरे भई, तुम भी तो पतित हो ना । तो वो बोलते हैं-नहीं, पतित बैठ करके यह गंगा में स्नान करते हैं, तो गंगा भी पतित बन जाती है । हम उनको पैर धर करके पावन बनाते हैं । देखो, यह एक शैतानी! बाप बैठ करके समझाते हैं । जाते बड़े धामधूम से हैं । उफ! बहुत बड़े-बड़े सब जाते हैं एकदम । तो क्या सभी सन्यासी पतितों को पावन बनाने वाले हुए? सो भी कहा तो उनको जाता है ना । बाप बैठ करके समझाते हैं तुम भारतवासियों की कितनी अंधश्रद्धा है । कोई पानी की नदी पतित-पावन थोड़े ही हो सकती है । तो क्या नदी का ही स्मरण करना है? नदी का स्मरण करना है, तो नदी में जाकर पड़ेंगे । सो तो पड़ते ही हो । तुम नहीं पड़ते हो, तुम्हारी राख नदी में पड़ती है । यह सब भक्तिमार्ग है । घोर अंधियारा, सब दुःखी ही दुःखी । कोई एक मनुष्य भी सुखी नहीं । बाबा कहते हैं-हम तुमको 21 जन्म के लिए एवरहेल्दी यानी निरोगी बनाता हूँ । वो तो बाप कहते हैं यह तो नहीं कहते हैं ना । बाप कहते हैं-बच्चे, मैं तुमको फिर से स्वर्ग का मालिक बनाता हूँ । वहाँ तुम एवरहेल्दी एवरवेल्दी एवरहैपी । वेल्थ तो सबको एक जैसी नहीं होती है ना । जो-जो ज्ञान अच्छी तरह से धारण करते हैं, जरूर वो वेल्दी बनते हैं । फिर झोली भरनी चाहिए ना । यह है दान करना । अभी हम अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान लेते हैं । फिर हमको सबको दान करना पड़े । तुम करती हो ना । वृद्धि कैसे होती है! यह सभी जो इतनी वृद्धि होती है, तो सब तो दान देते हैं ना । दान किसका लेते हैं? अविनाशी ज्ञान रत्नों का । वो कोई ज्ञान थोड़े ही हैं, वो तो भक्ति है । ज्ञान सागर सिर्फ एक है; क्योंकि यह सभी तमोप्रधान हैं । मनुष्य सृष्टि का सारा झाड़. एकदम तमोप्रधान है । ये जग, ये समाज, सभी दुनिया पुरानी है ना । कलहयुग माना पुरानी सृष्टि । सतयुग माना नई सृष्टि । यह घर जब नया होगा, तो फर्स्ट क्लास होगा ना । जब पुराना होता है उनको तो भंजू कहते है । उनमें चूहे-बिल्ली-कुत्ते-ये सब आकर प्रवेश करते हैं । चिमरे-विमरे बैठ जाते हैं ना । यहाँ के ये सभी मनुष्य कौन हैं? ये तो सभी चिमरे-चमरे हैं । एक -दो को कहते हैं- ऐ कुत्ते का पूँछ, ऐ उल्लू का बच्चा, ऐ सुअर के बच्चे । यह तो सभी एक- दो को गाली देते रहते हैं ना । यह किसने कहा? आत्मा ने कहा । आत्मा कहती है कि अभी हम जो यहाँ हैं, सो हम कोई बाप के बच्चे थोड़े ही हैं । हम कुत्ते, बिल्ली, सुअर, गधे के बच्चे हैं ना । कौन कहते हैं हम बाप के बच्चे हैं । हम बाप के बच्चे होते तो स्वर्ग के मालिक होते; क्योंकि वो रचता है । वो तो एक- दो को कहते हैं-अरे कुत्ते के बच्चे, उल्लू के बच्चे, गधे के बच्चे । छोटे-छोटे बच्चों को गाली देते हैं । क्या सतयुग में कोई ऐसी बातें होंगी? नहीं । तो भारतवासी सतयुग के नामनिशान को भूल गए । नामनिशान को क्यों भूले? लक्ष्मी नारायण का चित्र अभी-अभी बनाते रहते है और सतयुग को कह देवे कि लाखों वर्ष हो गया है । सतयुग को हुए 5000 वर्ष । यह दिल्ली को परिस्तान कहते थे । अभी वो ही परिस्तान, जिसमें यह राधे-कृष्ण राज्य करते थे कब्रिस्तान बन गया है । लक्ष्मी नारायण भी वो ही थे ना । इतना पता नहीं है उनको कि राधा कृष्ण स्वयंवर के बाद लक्ष्मी नारायण बने । वो भी कोई विद्वान-आचार्य को पता नहीं है । यानी युग तो चार हैं ना । सत-त्रेता सूर्यवंशी-चंद्रवंशी । सूर्यवंशी-चंद्रवंशी दो घराने हुए । एक हुआ सोलह कला, दूसरा हुआ चौदह कला । चौदह कला, सोलह कला कौन? कोई को पता नहीं है । सोलह कला और चौदह कला- दो बनाय दिया । किसको बनाय दिया? लक्ष्मी नारायण को तो उड़ाय दिया । राम को सो ले गए त्रेता में और श्रीकृष्ण को ले गए द्वापर में । सतयुग में कौन? कोई को पता नहीं । सतयुग को क्यों भुलाय दिया? सतयुग में तो लक्ष्मी नारायण है ना । सोलह कला तो उनको कहेंगे । कृष्ण द्वापर मे और उनको सोलह कला कहना, त्रेता मे रामचंद्र को चौदह कला कहना, यह उल्टा हिसाब कैसे? कोई समझ नहीं और यहाँ समझाते रहते हैं, बुद्धि में बैठता नहीं है । बुद्धि मे बैठे कैसे? जबकि बाबा के साथ योग हो, तो बुद्धि में बैठे । योग नहीं तो बुद्धि में कभी नहीं बैठेगा; क्योंकि योग है ना बाबा के साथ । साजन वो है सभी सजनियों का । एक को पुकारते हैं ना । सभी हैं सजनियाँ । इसको अंग्रेजी मे कहा जाता है-ब्राइड्स और वो है ब्राइडग्रूम एक । अभी वो एक ब्राइडग्रूम तो परमपिता परमात्मा है । समझ लिया- गुरु लोग है ब्राइडग्रूम । क्या गुरु तुम्हारा पति है? उनको पति कहा जाए? पतियों का पति वो है ना । यह थोड़े ही तुम्हारे कुछ लगते हैं और यह भी समझाया ना बाप कहते हैं- मैं तुम्हारा बाप भी हूँ और बाप से वर्सा मिलता है । काहे का? सम्पत्ति का । गुरु से सम्पत्ति का वर्सा मिल नहीं सकता है; क्योंकि गुरुलोग तो घर-बार छोड़ते हैं । वो सम्पत्ति तुमको कैसे देंगे? यह सम्पत्ति की बात है ना । उनसे नहीं कहेंगे, परमपिता सम्पत्ति देते हैं । सम्पत्ति तो काग विष्टा समान सुख देती है । वो ऐसे कहेंगे, परतु नहीं । क्या तुम समझते हो-स्वर्ग में कागविष्टा समान सुख है? स्वर्ग में तो अथाह सुख है ना । वो क्या सन्यासी भोगेंगे, जो घर-बार छोड़कर जाते हैं? वो कहते ही हैं कि नारी नागिन है और यह जो सुख है, वो कागविष्टा समान है; परंतु क्या स्वर्ग में कागविष्टा समान सुख होता है? स्वर्ग के लिए तो मरते हैं । इसलिए तो कहा गया कि स्वर्गवासी हुआ । वैकुण्ठ गया । वहाँ सुख है ना अथाह । वो सुख कोई सन्यासी थोड़े ही देंगे, जो घर छोड़कर जाते हैं । यहाँ सिंध में जो थोड़ा हुआ ना; क्योंकि भट्‌ठी बननी थी जरूर । यह तो ड्रामा में पार्ट था । वो तो जो पार्ट बजावे, उनको मालूम । बिचारी दुनिया क्या जाने कि इनकी भट्‌ठी बननी है, जो शास्त्रों में लिखी हुई है, जिनमें लिख देते हैं-बिल्ली के पूँगरे थे, फलाने थे । चरियाई भी लिख दिया है । बिल्ली के पूँगरे थोड़े ही है । भट्‌ठी बननी थी और इनके ऊपर सितम हुए; इसलिए यह फिर जा करके वहाँ उनको मिले । भगाने-वगाने की तो कोई बात ही नहीं है । अरे! यहाँ कोई एक को भगावे तो गवर्मेन्ट कोर्ट में खड़ा कर देवे और यहाँ इतनी सारी ढेर की ढेर और एक बैठ करके सम्भाले । नाम तो इनका करते थे ना । पर वो कहते थे-भई मैं नहीं हूँ मैंने इनको नहीं भगाया है, न मैं कोई कृष्ण हूँ न मैं किसका मटकी फोड़ता हूँ या मक्खन चुराता हूँ । यह तो तुम्हारी नॉनसेन्स है । मैं किसको भी नहीं भगाया । मेरा यह काम नहीं है । यह तो और बात है, जो इन बच्चों को भट्‌ठी बनाने का था, तो ड्रामा में बनाना था, नहीं तो भला गइया कहाँ से आई? जरूर भागी थीं । कृष्ण के लिए कहते है कि कृष्ण ने फलाने को भगाया । तो गऊशाला बनाई थी ना । भला क्यों भगाई थी? बोलते हैं-पटरानी बनाने के लिए । अरे! पटरानी तो तुम बन सकती हो, परन्तु बनाने वाला तो परमात्मा है ना । कृष्ण की कोई थोड़े ही बात है । कृष्ण तो सतयुग का लाडला बच्चा । वो इन बखेड़ों से क्या जाने? कृष्ण जो सतयुग का लाडला बच्चा, देखो, यहाँ कृष्ण की कितनी महिमा करते हैं और वो तो कहते हैं कृष्ण को 84 जन्म मे क्यों ले आते हो? पर महिमा ही उनकी हम करते हैं । फिर जरूर 84 जन्म तो लेना पड़े ना । जब पहले वाला लेवे तब दूसरा भी पुनर्जन्म में आना पड़े ना । वो तो समझाना पड़ता है ना । कृष्ण आ रहे हैं । सतयुग का मालिक आ रहे हैं । अभी तो यहाँ नहीं हैं ना । आएगा तो पावन दुनिया में आएगा या इस पतित दुनिया में आएगा? उसी नाम-रूप से स्वर्ग में आएगा या नर्क में आएगा? देवताएँ यहाँ नर्क में आते ही नहीं हैं । जब नई दुनिया होगी, तब फिर हम सब आएँगे । हम पढ़ाई भी पढ़ते हैं, न कि इस जन्म के लिए, बल्कि जन्म-जन्मांतर के लिए । तो बाप अभी समझाते हैं पहले एक बात समझो- कुत्ते-बिल्ले में भगवान को, साधु-संत-महात्मा में भगवान को, यह मत समझो । भगवान तो भगवान है । भक्त भगवान को याद करते हैं, तो यहाँ थोड़े ही भक्त कहते हैं-हे भगवन्, हे परमपिता, ओ गॉड फादर । यह कौन कहते हैं? आत्मा कहती है ना । आत्मा उनको कहेगी और फिर वो उस फादर को कहेंगे । उनको, इस फादर को नहीं कहेंगे । हे गॉड फादर तो नहीं कहेंगे बाप को । देखो, ये सब दुःखी हैं । रहम करो । भक्त याद करते रहते हैं ना । तो बाप आ करके समझाते हैं कि भक्तिमार्ग आधा कल्प चलता है । द्वापर से लेकर फिर है भक्तिमार्ग । पहले भक्ति अव्यभिचारिणी, पीछे व्यभिचारिणी । पहले तुम सब हमको पूजते थे । पीछे नीचे उतरे, उतरेंगे फिर देवताओं की पूजा, क्योंकि भक्ति को व्यभिचारी बननी थी । फिर मनुष्य जो दैवी गुणों वाले थे, उतरते-उतरते अभी कुत्ते-बिल्ले की पूजा करते हैं । उनको तुम कहते हो कि कुत्ते में, बिल्ले में भगवान, तो बरोबर तुम मच्छ-कच्छ को पूजते हो । देखो, तुम्हारी यह हालत हो गई है । ठिक्कर-भित्तर को पूजते हो । इसको कहा जाता है-व्यभिचारी भक्ति और बड़े दुःखी हो गए हो एकदम । कहाँ स्वर्ग, कहाँ यह नर्क! किसके पास पैसा हुआ, तो बोलते हैं-हम स्वर्ग में हैं । तुम्हारा बाप भी मर जाएगा, जिसने तुमको पैसा दिया, तुम उनके लिए कहते हो-स्वर्गवासी भया । तो नर्क में था ना । तुम भी नर्क मे हो ना । तुमको अपन को नर्कवासी कहने के लिए लज्जा आती है क्या?  कोई भी हो, तुम उनको कह सकते हो ना सब साधु-संत-महात्माएँ राधाकृष्णन प्रेजिडेंट, नेहरू, ये जो भी हैं इस समय में नर्कवासी हैं । स्वर्ग सतयुग को कहा जाता है, नर्क कलियुग को कहा जाता है । यह भी बुद्धि में नहीं बैठता है कि स्वर्ग, स्वर्ग है; नर्क, नर्क है । कलहयुग नर्क है, सतयुग स्वर्ग है । अभी कलहयुग को पलटा स्वर्ग बनाना, यह तो सृष्टि के रचता का काम है ना, क्रियेटर का या साधुओं का काम है? नहीं । तो बाप आकर कहते- मैं इस पतित कलह्युग को, पतित कलह्युगी भारतवासियों को, सभी भारतवासियों को क्योंकि मैं जनम लेता हूँ भारत में । तुम बच्चों को फिर सो देवी-देवता बनाने सहज राजयोग सिखलाने आया हुआ हूँ । मेरे सिवाय तुमको कोई भी राजयोग सिखलाय नहीं सकते हैं । यह देखो, सत्यनारायण की कथा, सत बोलते हैं- मैं तुम बच्चों को फिर से वो राज्य ले करके, तुमको राज-भाग दे करके, सुखी करके, मैं फिर निर्वाणधाम में बैठ ही जाता हूँ । फिर मेरे को कोई भी याद नहीं करते हैं । तुम बच्चे जब स्वर्ग में सुखी हो जाएँगे, तुमको कोई भी याद करने की दरकार नहीं होती है, क्योंकि याद करते हो तब जब तुमको दुःख मिलता है । तभी कहते हो-- गॉड फादर, मर्सी मी । हे परमपिता, रहम करो । यह सभी करते हैं ना । तो अभी वो परमपिता ही कहते हैं-बच्चे, मैं आया हुआ हूँ तुमको स्वर्ग का मालिक बनाने । जो अब पढ़ेगा-लिखेगा, जो सहज राजयोग सीखेगा, यह सीखने का स्कूल हुआ ना । भगवानुवाच-तुमको राजाओं का राजा बनाऊँगा । राजयोग सिखलाता हूँ । भगवान ही सिखलाएगा तो निराकार को साकार तो चाहिए ना । तुम सभी निराकार हो, जो साकार में आए हुए हो । तुम सभी इनकारपोरियल हो, सो कारपोरियल में आए हो । तुम दो हो । इनकारपोरियल आत्मा भी हो और कारपोरियल शरीर भी हो' इसलिए तुमको जीव-आत्मा कहा जाता है । इनकारपोरियल, कारपोरियल । जब इनकारपोरियल, कारपोरियल से अलग हो जाता है, उसको मरना कहा जाता है; परन्तु वो इनकारपोरियल कहते हैं कि मुझे एक शरीर छोड़ करके दूसरा पार्ट बजाना है । मैं जाता हूँ दूसरा पार्ट बजाने । मुझे बजाना ही है । रोते क्यों हो? यह ड्रामा में नूंध है । तुमको रोने की क्या दरकार! बाप ने बैठ करके यह बातें समझाया है; इसलिए हमारे पास कभी कोई रोते नहीं है । समझ गए हैं- आत्मा जो शरीर छोड़ती है, उनको पार्ट मिला हुआ है । कब से? अरे । अनादि पार्ट मिला हुआ है । यह समझते नहीं हैं । तुम कहेंगे कि हम शरीर छोड़ करके फिर दूसरा शरीर सतयुग में ले करके पार्ट बजाये । देखो, यह आत्मा कितनी कथा सुनाती है! मैं एक पार्ट सतयुग में बजाय, आठ जन्म ले, शरीर पिछाड़ी शरीर ले, दिन, नाम-रूप, देश-काल शरीर ले, फिर मैं जन्म लेता जाऊँगा । सूर्यवंशी में भी 8 जन्म लूँगा, चंद्रवंशी मे भी 12 जन्म लूँगा, वैश्य वंश में भी और शूद्र वंश भी मिलाकर 63 जन्म लूँगा, फिर यह मेरा अन्त का जन्म, मैं आ करके फिर बाबा की गोद में बैठूँगा । अभी कितना सीधा बताते है बिल्कुल ही । ईश्वरीय गोद के बाद, तुम जानते हो कि तुमको 21 जन्म दैवी गोद मिलेगी । फिर तुम जानते हो कि दैवी गोद के बाद जब रावण राज्य यानी माया का राज्य, विकारों का राज्य होगा, तुमको आसुरी गोद मिलनी शुरू होगी । आसुरी गोद मिलते- मिलते. तुम इस समय में कौडी तुल्य हो जाएँगे । महान दुःखी । कोई भी सुखी नहीं । अगर सुख कहते हैं अल्प काल, तो कहते हैं ना-कागविष्टा समान, वो सुख है । बाकी स्वर्ग में तो कोई काग विष्टा समान सुख नहीं होता । अभी वो कोई सन्यासी थोड़े ही दे सकते हैं । यह तो बाप बिगर कोई दे न सके ना । अभी कितनी सहज बातें बाप बैठ करके समझाते हैं । तो स्टूडेंट्स हैं ना । यह तो स्टडी हुई । अभी स्टडी तो गॉड कहते हैं ये बड़े ते बड़ा इस्तहान । मनुष्य से देवता बनना है ना । स्वर्ग का देवता बनना है । कलहयुगी नर्क से स्वर्ग के देवता बनें, तो पढ़ना पड़े ना । यानी बैरिस्टर बनने के लिए स्कूल में जाएगा या बोलेगा-हमको काम है, कर्मबंधन है, धुर बंधन है, छुड़ाई बंधन है । मास्टर उसको क्या करेगा! यह तो तुम्हारे कर्म, तुम जानो । हम तुमको मत देंगे-ऐसे करो, ऐसे करो । इसमें कर्मबंधन की बात । यानी मैं आया हुआ हूँ तुम बच्चों को 21 जन्म का वर्सा देने । अभी तुम कहेंगे, मैं कहाँ से आया हूँ? परमधाम से । आता हूँ जाता हूँ । यह हमारा नन्दीगण है । अभी नन्दीगण में कोई बैल तो नहीं होगा, जनावर तो नहीं होगा । वण्डरफुल बात है । इसलिए बाबा कहते है-ये वण्डरफुल बातें हैं सुनने की और सो भी जो कोई रोज सुने और समझे, जिनको पहले विश्वास बैठे । यहाँ कोई साधु-संत-महात्मा नहीं है । यह शरीर पतित है । बहुत जन्म के अन्त के जन्म के भी अन्त का पतित शरीर है, बता देते हैं ' बाप ने इस पतित शरीर में रावण की दुनिया में पराया देश में, पराया देश है ना । दूर देश में रहने वाले आए देश पराए । पराया क्यों कहते है? कोई मतलब होगा ना । यानी भगवान, पराये देश में क्यों? भगवान की तो यह रचना है ना । पराया क्यों कहा जाता है सो भगवान आकर समझाते हैं-अरे! यह रावण का राज्य है तो पराया राज्य है । एक- दो को पतित बनाने वाला है । यह माया का है । तो मैं आया हुआ हूँ इस पराए रथ में, वो भी पतित रथ में । फिर पूछेंगे- भगवान को पावन रथ क्यों नहीं? नहीं, पावन कहाँ से आए! क्या ये सन्यासी पावन नहीं? नहीं । इन्होने तो तुमको मेरे से विमुख किया है । इन्होने तो गुरु कहलाय तुमको नर्कवासी बनाया है ना । भला मैं इनमें भी कैसे आऊ? मुझे तो गृहस्थी धर्म चाहिए ना । मुझे निवृत्तिमार्ग का धर्म नहीं चाहिए; क्योंकि स्वर्ग में जो प्रवृत्तिमार्ग था, पवित्र था, वो अब पतित बने हैं । मुझे प्रवृत्तिमार्ग को ही फिर पावन बनाना है । वो तो सन्यास धर्म ही दूसरा है । तो इतना समझाता हूँ । अच्छा, आज बच्चों को थोड़ी देरी हो गई है । समझने का तो बहुत ही होता है । बच्चों को भी समझाते हैं कि बच्चे, तुमको जो टाइम मिले मुझे याद करो; क्योंकि बोझा बहुत है । तो बहुत याद करता हूँ ना, बच्चों को भी सिखलाता हूँ । यह देखो, खाँसी कितनी होती है । कर्म का हिसाब तुम्हारा पिछाड़ी में है । जब भी तुम और ये सभी बच्चे नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार कर्मातीत अवस्था को पहुँचेंगे, तभी तुमको ये खाँसी-वासी नहीं होगी, शरीर ही छोड़ देंगे । यह हुई आत्मा की पुरानी जुली । चिट्टा चिक्ति लगते-लगते काली बन करके कोई काम की नहीं बची है । अभी ऐसा छोड़ना है शरीर को, जैसे सर्प नई खल के लिए छोड़ते हैं । वैसे जब भी याद में बैठते हैं न तो जब भी वो समय आएगा बाप की याद में बैठ ऐसे सन्यासी बहुत बैठे होते हैं तत्व में , तत्वयोगी भी ऐसे बैठे-बैठे शरीर छोड़ देते है । ऐसे गिर जाते है । ऐसे होते है बहुत तीखे । अभी इस समय मे आत्मा भी काली, तो शरीर भी काला । अभी फिर खुशी होती है-बाबा हम आता हूँ, यह मैं जानता हूँ, तो फिर मैं आ करके गोरा शरीर लूंगा और राज करूँगा । पूज्य था, अभी फिर से पुजारी बन रहा हूँ । अच्छा, बाप-दादा, मीठी-मीठी मम्मा का, मीठे-मीठे सिकीलधे बिलवेड मोस्ट बाबा का बिलवेड मोस्ट चिल्ड्रेन अभी बिलवेड मोस्ट चिल्ड्रेन वो ही है जो बाबा की सर्विस में तत्पर है । यह तो बच्चे समझते हैं । लौकिक बाप भी ऐसे ही कहते हैं । बिलेवड और नान-बिलेवड । ऐसे होगा ना । बाप कहते हैं-तुम्हारे में भी वो ही मेरा मोस्ट बिलेवड है जो मेरे लिए फिर और को काँटे से फूल बनाते रहते हैं । अभी सर्विस मे लगते हैं, बहुतो को दे जाते हैं लिटरेचर आदि । गाली तो खानी होगी । गाली न खाएंगी तो कभी भी तुम स्वर्ग का मालिक नहीं बनेंगी । नहीं तो कहेंगे चौथ का चद्रमा तुम लोगो ने नहीं देखा है । ये तो बातें हैं; परन्तु जाकर सर्विस तो करनी है ना । अच्छा, बाप-दादा, मीठी मम्मा का, मीठे-मीठी सिकीलधे बच्चों को यादप्यार और गुडमॉर्निग । यहाँ भारत में, कलहयुग में, न गुडमॉर्निग न गुड ईवनिंग न गुड डे, न गुडनाइट । इसमें भी सबसे डर्टी नाइट रात को कहा जाता है । समझा! वहाँ तो ऑलवेज गुड ही गुड । वहाँ कहने की कोई बात नहीं रहती है । यहाँ तो सारे लोग छुट्‌टी लेते हैं । यह उन्हों से सीखा है गुडमॉर्निग । यहाँ तो नमस्ते, मॉर्निग, इवनिंग, कुछ कहने में ही नहीं आती थी । उनका फैशन है । समझा ना!