29-09-1963    मुंबई   प्रात: मुरली    साकार बाबा    ओम् शांति    मधुबन
 


हेलो, हम मुंबई से बोल रहीं हैं, आज रविवार है सन 1963 सेप्टेम्बर की उनतीस तारीख है । प्रात: क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं ।
रिकार्ड:-

छोड़ भी दे आकाश सिंहासन, इस धरती पर आ जा रे..........

अभी यह गीत सुना । यह पब्लिक में गाया जाता है । वेदों में आता है । सिवाय तुम ब्राहमणों के इनका अर्थ कोई समझ नहीं सकते हैं; क्योंकि गीता वास्तव में है । उसको कहा ही जाता है-श्रीमत भगवद्‌गीता । 'श्री कहा जाता है 'श्रेष्ठ' को । अक्षर होना चाहिए श्री-श्री, क्योंकि कृष्ण को श्रीकृष्ण कहा जाता है । फिर उनसे ऊँचा तो है 'परमपिता परमात्मा, जिसको निराकार कहा जाता है । वो साकार है और ये निराकार के लिए कहते हैं कि आकाश सिंहासन । आकाश तत्व यहाँ कहाँ है, जहाँ यह खेल होता है मनुष्यों का? यह कोई आकाश तत्व में नहीं रहते हैं, यह रहते हैं ब्रहम-महतत्व में । यह बाप खुद कहते हैं । शिव बाप खुद कहते हैं, अभी यह रूप बदला है इसने । यह कहते हैं कि मैं साधारण बूढ़े तन में आता हूँ । अगर कोई कहे कि कृष्ण के तन में आते हैं, पर कृष्ण का तन तो होता ही सतयुग में है । अगर कहें कि कृष्ण की आत्मा के तन में, तो वो तो फिर कहेंगे कि कृष्ण की 84वें जन्म की आत्मा, जो जडजड़ीभूत अवस्था को पाई हुई है, उस अवस्था में मैं आता हूँ । बाप कहते हैं कि अभी मैं निराकार से साकार में आया हूँ । कृष्ण तो ठहरा नहीं । अभी यह जो गाड़ी बनाते हैं, घोड़ा बनाते हैं और युद्ध के मैदान में ले जाते हैं-यह तो झूठ हो गया । अभी बाप बैठकर समझाते हैं कि वट इज राइट । सच क्या है, झूठ क्या है- यह समझाते हैं । बोलता है ना-मैं तुम्हारे सभी वेदों का सार सुनाता हूँ । अभी यह बोलते हैं । यह भगवद्‌गीता को बहुत मानने वाला । जो पढ़ते आते थे, वो तो पढ़ते ही थे और सुनाते थे; परन्तु अभी नहीं । अभी बाप ने आकर समझाया है कि बच्चे, ज्ञान-सागर पतित-पावन कृष्ण को तुम लोग कह नहीं सकते । कृष्ण तो है ही पावन दुनिया का मालिक, स्वर्ग का मालिक और सो भी भारत में और सारी विश्व का प्रिन्स कहेंगे । फिर जब शादी-स्वयंवर रचता है तब राधे और कृष्ण स्वयंवर के बाद श्री लक्ष्मी और नारायण कहलाते हैं । इसको कहा जाता है-विश्व का महाराजन और विश्व की महारानी । सिवाय श्री लक्ष्मी और नारायण के विश्व की महारानी और महाराजन कोई हो नहीं सकते हैं । सिवाय सीता और श्री रामचंद्र त्रेता में विश्व के महाराजन व विश्व के राजन और रानी, तो उनको महाराजा नहीं कह सकेंगे, दो कला कम है । अच्छी तरह से समझो । ये बाप बैठ करके बच्चों को समझाते हैं । बच्चे, जब-जब भारत में अति धर्म ग्लानि होती है, भारत महान दुःखी बन जाता है, कौड़ी मिसल बन जाता है, तब मैं भारत को फिर से हीरे मिसल बनाने अर्थात् आदि सनातन देवी देवता धर्म की स्थापना करने आता हूँ जो फिर प्राय:लोप हो गया है । बाबा ने बहुत बारी समझाया है कि प्राय: माना चित्र है और गीता का भी नाम कुछ है, क्योंकि बाप समझाते हैं कि वेद,ग्रंथ,उपनिषद,शास्त्र,जप,तप,तीर्थदान,पुण्य वगैरह- वगैरह यह भक्तिमार्ग में होते हैं । द्वापर से कलहयुग के अंत तक होते हैं । सतयुग और त्रेता में भक्तिमार्ग होता नहीं है; क्योंकि भक्त भगवान को याद करने के लिए धक्का खाते हैं । स्वर्ग में कोई भक्त भगवान को बुलाने के लिए धक्का नहीं खाते हैं; इसलिए उसका नाम स्वर्ग रखा हुआ है, इसका नाम नर्क रखा हुआ है । स्वर्ग पावन है । भारत सतयुग, स्वर्ग, पावन है । भारत कलियुग, पतित, नर्क है । यह तो बहुत समझने की बात है ना । तो बाप आ करके यह समझाते हैं । देखो यह बाप कहते हैं अभी यह धर्म की स्थापना अर्थ फिर आया हुआ हूँ । ऐसे तो नहीं कहेंगे कि गीता सुनाने वाले कोई धर्म की स्थापना करते हैं । नहीं, वो भक्तिमार्ग । वो पढ़ना है । शिवबाबा बोलते हैं भक्तिमार्ग में उपनिषद, वेद, यज्ञ, ये कोई शास्त्र नहीं हैं । बोलते हैं- बच्चे, तुम्हारा जो भारत का आदि सनातन देवी देवता धर्म है, उनका धर्मशास्त्र एक श्रीमत भगवद्‌गीता है । अभी प्रश्न उठता है कि आदि सनातन देवी देवता धर्म, सो था सतयुग में । अभी जो बाप ने आकर धर्म शास्त्र का ज्ञान दिया, यह कब दिया? क्या सतयुग में दिया? नहीं । क्योंकि सतयुग पावन था । सतयुग में राजाओं का, इस लक्ष्मी नारायण का राज्य था । कब दिया यह तो कोई लिखा नहीं है । वो कहते हैं, जानते हैं कि बरोबर जरूर कलियुग के अंत में ही होगा । पतित कलियुग के अंत में होते हैं, पावन सतयुग के आदि में होते हैं । जब पतित होते हैं तब पावन एक भी नहीं होते हैं । वो फिर शिवबाबा समझाते हैं । सुनते हो? इनके तरफ नहीं देखो । यह तो जन्म-मरण लेने वाला है और यह बहुत जन्म के अंत के जन्म का सड़ा हुआ-तमोप्रधान शरीर है । पुरानी जुत्ती है । अभी समझा? आत्मा भी पुरानी तमोप्रधान है, तो शरीर भी तमोप्रधान है । इसलिए तमोप्रधान भारतवासी । ये शरीर भी पुराने, तमोप्रधान भी हैं और कंगाल भी है, वर्थ नॉट ए कौडी है । कहा जाता है ना-कौड़ी मिसल । देखो बरोबर है ना । देखो बाबा कितना समझाते हैं भारत सतयुग के आदि में ये, कलहयुग के अंत में ये कौरव है । यह प्रजा पर प्रजा का राज्य यानी आसुरी सम्प्रदाय । देखो, वो रावण और वो निकला है ना । इस समय में सभी हैं आसुरी सम्प्रदाय, क्योंकि रावण का राज्य है । हर एक मनुष्य विख से जन्म लेते हैं गुरुनानक कहते हैं-अमृत छोड़ विख काहे को खाते हो? सिक्स लोग भी, आजकल सिंधी लोग बहुत भागवत ग्रंथ पढ़ते हैं और यह टिकाने रखते है, बनाते हैं । समझते तो कुछ भी नहीं हैं । कहते भी हैं कि मानुष को देवता किये करत न लागि वार । कहते हैं कि भगवान आते हैं, यह सब बच्चे हैं, फिर यह असुर क्यों कहते हैं? परन्तु नहीं, बाबा कहते हैं-अपने गुरुनानक का देखो, वो क्या कहते है? असंख्य चोर हरामखोर, असंख्य पापी पाप कर जाये । यह कब की बात है? 500 वर्ष हुआ ना, तब कहते है । उससे तो अभी जो कलहयुग वो और ही तमोप्रधान बना है, तो और ही पापी बन गए होंगे । अक्षर भी हैं ना । तुम लोग पढ़ते तो हो ना । असंख्य कुडीआर कूडे फिराय-ऐसे अक्षर हैं ना । वो झूठ बोलते है? वो भी ऐसे कहते हैं ना और मनुष्य भी कहते हैं-झूठी काया, झूठी माया, झूठा सब संसार और ग्रंथ के भी यही वो कहते हैं । देखते हैं । नया है ना, सतोप्रधान सोल वो उस शरीर में आ करके कहते हैं- क्या है यहाँ? असंख्य पापी पाप कर जाए, असंख्य, बरोबर इस समय में सब हैं ना! दुनिया को तो ऐसे महिमा नहीं देंगे । वो भारत की महिमा है । एक गीत भी गाते हैं ना- 'क्या भारत की दुर्दशा है अभी और सो तो सब समझते हो । बरोबर भारत सतयुग में सतोप्रधान था और उसको कहा जाता है सुखधाम, अभी है दुखधाम और फिर शिवबाबा बैठ करके समझाते हैं जहाँ से हम आत्माएँ आती हैं, वो है शांतिधाम । यह तीन तो याद करते हो अच्छी तरह से । हम चक्कर लगाते हैं ना । भारतवासी पहले सुखधाम में, पीछे दुःखधाम में, पीछे जाएँगे शांतिधाम में । शांतिधाम से फिर आएँगे सुखधाम में । इसको ही कहा जाता है स्वदर्शनचक्र । स्व को दर्शन हुआ-हम भारतवासी, जो आदि सनातन देवी देवता धर्म धर्म वाले । अभी ये तो इन बातों को नहीं समझते हैं; परन्तु भारत के तो बरोबर थे ना । भारतवासी आदि सनातन प्राचीन भारत में सदा सुखी थे । अभी भारतवासी इस समय पतित, सदा दुःखी हैं । कोई एक भी मनुष्य सुखी नहीं समझो । तो यह बाप समझाते हैं-बच्चे, जिस निराकारी दुनिया से तुम आते हो, वो है तुम्हारा शातिधाम । स्वीटहोम इसको कहा जाता है । होम कहा जाता है, जहाँ मात-पिता रहते हैं । तुम गाते हो-तुम मात-पिता, हम बालक तेरे । पता नहीं पड़ता है किसको कि किसको गाते हैं? अब यह कहते हैं-तुम भक्तिमार्ग में गाते आए हो- 'तुम मात-पिता, हम बालक तेरे । तुम्हरी कृपा ते सुख घनेरे ।' ये भारतवासी गाते हैं, और कोई धर्म वाले नहीं गाएँगे । क्यों? जानते हैं कि जब तुम मात-पिता आते हो, आकर बनते हो, तब फिर आपका हम बच्चे बन करके हम बहुत सुख आपसे लूट लेते हैं । कैसा सुख लेते हैं? सुख घनेरे । कहाँ के? वो आएगा स्वर्ग रचने ना । तब कहते हैं कि स्वर्ग के हम सुख घनेरे पाते हैं, अभी नहीं हैं । जो होकर गया है तो गाया जाता है ना । हे बाबा, हे आत्माएँ, मात-पिता, हम बालक तेरे । तुम्हरी कृपा ते सुख घनेरे । किसकी महिमा है? सुख घनेरे होते ही है स्वर्ग में । बाप बैठकर यह समझाते है कि बच्चे, ये जो भगवद्‌गीता मनुष्य की बनाई हुई है, आई कहाँ से? सतयुग और त्रेता में बिल्कुल ही कोई भी शास्त्र रहता ही नहीं है । कोई भी भक्तिमार्ग का चिह्न नहीं, कोई भी क्रियाकर्म नहीं; क्योंकि स्वर्ग है ना । उसमें धक्का खाने की कोई भी बात नहीं । बाबा साफ कहते हैं । यह वेद, ग्रंथ, उपनिषद, शास्त्र, वगैरह, जो भी तुम भारतवासियों ने बैठ करके बनाए हैं, सब झूठे हैं । देखो, कैसा साफ बताते हैं ना । क्यों? फिर समझाते हैं कि देखो, अभी जो इतने शास्त्र हैं, ये तो तुम पढ़ते आए हो । तुमको मालूम नहीं है, तुम्हारे विद्वान-आचार्य-पण्डितों को, जो यह भी पण्डित था कोई समय में । इनको यह मालूम ही नहीं है कि सतयुग और त्रेता में शास्त्र होते ही नहीं हैं । ये भक्तिमार्ग के हैं । अच्छा, मैंने बैठ करके तुमको सहज राजयोग सिखलाया और सिखलाय रहा हूँ और कहता हूँ कि ये ज्ञान प्राय:लोप हो जाता है, फिर यह ज्ञान देवताओं में होता ही नहीं है । ये ज्ञान का तीसरा नेत्र तुम ब्राहमणों का खुलता है । जैसे यह स्वदर्शनचक्र और शंख वगैरह जो उनको देते हैं, वो उन देवताओं को नहीं हैं । ये तुमको हैं । देवताओं की तीसरी आँख खोलते हैं; पर है तुम्हारी तीसरी आँख खुली हुई । ज्ञान का शंख तुम बजाती हो । यह विष्णु के जो दो रूप लक्ष्मी नारायण बन करके राज्य करेंगे, वो ज्ञान का शंख नहीं बजाते हैं । वो स्वदर्शनचक्र नहीं फिराते हैं । उनके पास कोई भी ये मगद फलाना है नहीं । यह तो सब तुम ब्राहमणों का चिहन है । सतयुग में विष्णु के दो रूप श्री लक्ष्मी नारायण राज्य करते हैं । इन बच्चों को बाप कहते हैं, जिन्होंने मेरे से राज्य ले लिया है, जो कल्प-कल्प राज्य लेते हैं और गँवाते हैं । इनको यह ज्ञान है नहीं । होता ही नहीं है । ये त्रिकालदर्शी होते ही नहीं हैं, इसलिए न इनको ज्ञान का तीसरा नेत्र है, न इनको कोई शंख, चक्र और गदा है । कुछ भी नहीं है । यह सिर्फ तुमको है । अभी यह बात कहाँ, कोई गीता में लिखी हुई है? बाप बैठकर समझाते हैं समझने की बात । भारत का शास्त्र एक है । कौन-सा? वास्तव में है सर्वशास्त्रमई शिरोमणि गीता । इसका कोई डाउट नहीं है । उन्होंने बैठ करके बनाई है, परन्तु उन्होंने बैठ करके एक झूठी बनाई है । जैसे नॉवेल झूठे बनते हैं ना! नॉवेल कोई सच्चा है क्या! नॉवेल्स कितने पढ़ते हैं । विलायत से सिंध में बहुत नॉवेल्स आते हैं । नॉवेल्स कितने पढ़ते होंगे! लाखों-करोडों रुपया नॉवेलों के ऊपर खर्च होता है । उससे फिर करोडों-पदमों रुपया, ये नॉवेल्स रूपी तुम्हारे जो शास्त्र हैं-गीता, भागवत, रामायण, महाभारत, चार वेद, छह शास्त्र, बारह पुराण-ये सभी हैं ऐसे ही, जैसे नॉवेल बनते हैं । क्यों? किसने बनाए? जो भी ऋषि-मुनि थे, वो जंगल में जाकर बैठाकर क्या करें? काम न था, तो उन्होंने बैठ करके ये वेद, उपनिषद, ग्रंथ, शास्त्र बनाए । ये किस धर्म के शास्त्र हैं फिर, कोई यह बतावे; क्योंकि आदि सनातन देवी देवता धर्म -ब्राहमण और देवता और क्षत्रिय-ये तीन हैं । परमपिता परमात्मा ब्रह्मा द्वारा अभी ब्राहमण, फिर सूर्यवंशी और चंद्रवंशी धर्म की स्थापना करते हैं । यह शास्त्र अभी का है । सतयुग-त्रेता में शास्त्र होता ही नहीं है । अच्छा, वहाँ तो शास्त्र नहीं हुआ और यह भारत का एक ही धर्म का वो एक ही शास्त्र सो प्राय:लोप हो जाता है । फिर कौन-सा धर्म स्थापन होता है? इस्लामी धर्म । इस्लामी धर्म का बरोबर एक शास्त्र, उसको कहा जाता है-इस्लामी धर्म का शास्त्र । देवी-देवता, चंद्रवंशी सूर्यवंशी और ब्राहमणों का शास्त्र एक । बस, कोई दूसरा शास्त्र नहीं हो सकता है; क्योंकि यह धर्म है सतयुग-त्रेता में, पीछे आता है इस्लामी धर्म । उसको कहा जाता है-इस्लामी धर्म का फलाना शास्त्र । बौद्धी धर्म का फलाना शास्त्र । हरेक शास्त्र धर्म के ऊपर होता है । जो धर्म स्थापन करते हैं उनके नाम पर शास्त्र । उसको कहा जाता है 'धर्मशास्त्र' । क्राइस्ट आया तो क्रिश्चियन का धर्मशास्त्र बाईबल तैयार हुआ । गुरुनानक आया भारत में उसका भी धर्म स्थापन किया हुआ है । उसको धर्म कहा जाता है । सिक्ख धर्म किसने स्थापन किया? गुरुनानक ने । उनका धर्मशास्त्र कौन-सा ग्रंथ? पहले जप साहिब, फिर सुखमणि । बाप समझाते हैं कि ये सभी शास्त्र बैठ करके इतना विस्तार को पाया है । बोलते हैं, गुरुनानक कहते हैं-जप साहिब, जो सचखण्ड को स्थापन करने वाला है, तो फिर सुख मिले ही । उसका नाम रख दिया है-सुखमणि । सुखमणि का अर्थ तो दूसरा निकलता ही नहीं है । जप साहिब, गुरुनानक जिसकी महिमा करते हैं-एक ओंकार सत् नाम करता पुरुष निरभय, निरवैर, अकाल मूरत, अजोनि, सतयुग आदि सत्, है भी सत्, होसी भी सत् । यह सारा तुम बच्चों को याद तो होगा ना! बरोबर सतयुग आदि माना सत-त्रेता-द्वापर-कलियुग यह चक्र फिरता है । यह सत है ये चक्र फिरता ही रहता है । इनका भी कोई ग्रंथ वालों को तो पता ही नहीं-चक्र कैसे फिरते हैं । सतयुग में राजाई किसकी थी? कितना समय राज्य किया? सतयुग के आदि में कहाँ से इतने लोग बने, जब कलहयुग की अंत, सतयुग की आदि होती है? वो है ही ऐसे, जैसे रात पूरी हो करके सुबह होती है । ब्रह्मा की रात, ब्रह्मा का दिन-ऐसे कहा जाता है ना । अभी ब्रह्मा के ऊपर आया अर्थात् ब्रह्मावंशी ब्राहमणों की रात और दिन । शिवजयंती उसको फिर कहा जाता है 'शिवरात्रि । इसका अर्थ तो कोई बच्चा समझता ही नहीं है । शिवरात्रि क्यों? क्यों कहते है कि शिव रात्रि में जन्म लिया? जन्म की बात हो गई ना । शिवजयन्ती उसको कह दिया शिवरात्रि । बहुत अच्छा मनाते हैं और है भी इनकारपोरियल की शिवरात्रि । कोई बच्चे उसका अर्थ जानते हो? कोई अपने गुरुओं से जा करके पूछो तो सही? बड़े-बड़े तुम्हारे विद्वान हैं, बड़े-बड़े सतसंग करते है । उनसे ये बात तो पूछो कि ये जो निराकार शिवबाबा है, जिसको शिव कहते हैं, उनकी शिवरात्रि वा शिवजयन्ती क्यों और कहाँ होती है? होती तो है ना, आता तो है ना । अच्छा, यह जो परमात्मा है, वो कब आएँगे? वो आएँगे ही तब, जबकि उनको नई सृष्टि रचनी होगी । मैं जाऊँ, पुरानी को खलास करेंगे और यह पतित दुनिया को पावन बनाऊँ । इसलिए तो आएँगे ना, क्योंकि यह है एवर पावन । मनुष्य तो एवर पावन नहीं है ना, सदैव पावन तो नहीं है ना । इनको तो महिमा है । यह तो है ज्ञान का सागर, शांति का सागर, एवर पावन । इनको पतित तो कोई नहीं कहेंगे ना! इनकी तो महिमा ही अलग है, ज्ञान का सागर है । कृष्ण की यह महिमा है ही नहीं । कृष्ण की महिमा बिल्कुल अलग है- सर्वगुण सम्पन्न, सोलह कला सम्पूर्ण और सम्पूर्ण निर्विकारी, अहिंसा परमोधर्म, मर्यादा पुरुषोत्तम । किसकी? इनकी महिमा है । अभी तो यहाँ कोई की महिमा नहीं है । भारत की थी । अभी एक तो नहीं है ना! यथा राजा-रानी तथा प्रजा । यानी एक को तो नहीं हो सकती है ना! जैसे यहाँ, रावण राज्य है । सभी पतित हैं । यथा राजा-रानी तथा प्रजा, उनमें सब आ जाते है । साधु-संत-महात्मा, क्या यह प्रजा नहीं है? हिन्दुरूघन के रहने वाले हिन्दू प्रजा है ना । भारत का नाम कोई हिन्दुस्तान तो था नहीं । तुमने सुना नहीं? यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत । ऐसे तो नहीं कहते-भवति हिन्दुस्तान । हिन्दुस्तान कहाँ से आया! भवति भारत, तो बरोबर तुम भारतवासी जानते हो बहुत अच्छी तरह से कि भारत में पाँच हजार वर्ष पहले, सतयुग के आदि में इनका राज्य था और सोने जैसे था । कल एक गीत तुमने लाया था ना 'सोने का, पीछे वो सुनाना इन बच्चो को । अभी यह याद रखो कि ब्राहमणों, देवी-देवताओं और क्षत्रियों का शास्त्र एक, सो खत्म । यानी भारत का शास्त्र एक सो खत्म । भला ये चार वेद किस चार धर्म के धर्मशास्त्र हैं? शिवबाप पूछते हैं । कोई बतावे यहाँ आ करके । भले चार वेद पढ़ने वाले, भला उनसे क्या! क्या राजयोग के हैं? भगवान उनमें कहते हैं-मैं तुमको राजाओं का राजा बनाऊँगा? कौन है? उससे क्या है? उस वेद पढ़ने से एम-ऑबजेक्ट क्या है? तुम वेद पढ़ते आए हो । तुम बोलते हो-अनादि पढ़ते आए हैं; परन्तु यह जो सृष्टि का चक्र है-सत-त्रेता-द्वापर-कलहयुग सो इनको कलहयुग तो होना ही है, तमोप्रधान होना ही है । फिर तुम्हारा ये चार वेद, छत्तीस शास्त्र और फलाना. ये सब पढ़ने से उसका नतीजा निकला क्या? ढेर के ढेर खर्चा किया हूबहू जैसे नॉवेल्स । उनको कहा जाता है इररीलिजियन बुक्स, उसको कहा जाता है रीलिजियस बुक्स । सिर्फ ऐसे कहते हैं कि स]धु-सत-महात्मा ने बनाया है, वो पापात्माओ ने बनाये हैं । बहुत ढेर के ढेर बैठकर बनाए हैं । बाप पूछते हैं बच्चों से-अच्छा वेद-ग्रंथ पढ़ते-पढ़ते गंगा-स्नान करते-करते इस समय मे तुम्हारी हालत क्या है? सारी दुनिया की हालत क्या है? सामने मौत आ करके खड़ा हुआ है । तुम्हारी हालत क्या है? घर-घर में झगड़ा, घर-घर में लड़ाई, बड़ा दुःख है । इसको कहा ही जाता है-दुःखधाम । फिर भला ये पढ़कर उसका नतीजा तुमको क्या मिलता है? तुम कहते हो कि ये भक्तिमार्ग के शास्त्र है अर्थात् दुर्गतिमार्ग में जाने के लिए । यह सीधी-सीधी बात हुई ना । पढ़ते-पढ़ते यानी जब ही हम भक्ति बहुत करेंगे, तब भगवान आएंगे । सो तो बहुत जरूर करनी पढ़े । आधा कल्प तुम लोगों को भक्ति जरूर करनी है और आधा कल्प भक्ति करते-करते सबको दुर्गति में जरूर पहुँचना है । फिर सबका सद्‌गति दाता वो । भले तुम शास्त्र पढ़ो पर सबका सद्‌गति तो दाता एक है । गाँधी जी भी कहते थे-पतित-पावन एक । फिर वो बिचारे कहते थे- रघुपति राघव राजा राम, पतित-पावन सीता-राम । पहला जो नाम है वो है राम । रघुपति राघव राजा राम नहीं । बाप फिर जो कहते हैं-सीता-राम । अभी कोई त्रेता वाली सीता नहीं, राम वो नहीं । तुम सब हो सीताएँ भक्ति । इसको कहा जाता है ब्राइडग्रूम । सब हैं भक्त । सारी दुनिया के नर-नारी भक्त, सो हो गए सीताएँ और एक है राम । फिर जो सभी भक्त पतित है, दुर्गति को पाए हुए है, उन सबको मैं आ करके सद्‌गति में ले जाता हूँ । मैं आ करके फिर भारत को राजयोग सिखलाता हूँ । उनको राजयोग सिखला करके स्वर्ग के मालिक हीरे जैसा बनाता हूँ । बाकी जो भी धर्म वाले हैं वो अपना हिसाब-किताब चुक्तू करके अपने-अपने इनकारपोरियल स्वीट होम बाप के पास चले जाते हैं । वहाँ जा करके निवास करते हैं, फिर जब देवी-देवता धर्म की, सतयुग-त्रेता की आयु पूरी होती है, तब फिर इस्लामियों का स्थापन करने वाला, फिर बौद्धियों का स्थापन करने वाला, क्रिश्चियन का स्थापन करने वाला-ये सब नम्बरवार आते हैं, फिर उनकी जो संस्था है सेन्सस, वो स्थापन की जाती है । ऐसे ही फिर सृष्टि का चक्र वृद्धि को पाता है । बाप पूछते हैं-तुम्हारा जो ये वेद-ग्रंथ-छत्तीस शास्त्र सो अपार होते हैं । तुम ट्रेनें भरो तो क्या, क्या भी भर लो तो बहुत हैं । अच्छा, उनसे तुम पढ़ते आए हो, कहते है कि अनादि है । कब से है, वो कुछ पता नहीं है । भला पढ़ते आए है; पर सतयुग में तो नहीं पढ़ते हो । भक्त सतयुग में तो धक्का नहीं खाएँगे ना । सतयुग और त्रेता में कोई भक्त होते नहीं है । धक्का नहीं खाते हैं । क्यों? वो सुखी रहते हैं । याद भी नहीं करते हैं । भक्त सभी भगवान । अगर सभी भक्त, सभी भगवान हैं, तब क्या होगा इनका? क्या मुर्दों का हाल होगा! अभी भगवान कैसे हो सकते है, जो कहते है सर्वव्यापी शिवबाबा सर्वव्यापी, सदा उन भक्तों में व्यापी-यह क्या ज्ञान है! तुमको बाप बोलता है-मेरे से तुमको इनहेरीटेन्स मिलता है ना । भारत को कल्प-कल्प मैं आ करके इस ब्रह्मा के तन से, जैसे अभी दे रहा हूँ फिर से तुमको राजयोग सिखलाय इन रावण रूपी पाँच विकारों पर जीत पहनाय जगतजीत बनाता हूँ । अभी इसमें उस लड़ाई का कोई क्वेश्चन हुआ ही नहीं । है कोई लड़ाई कहाँ हमारी? यह देखो, पांडव और कौरव, हम कहाँ लडते है उनसे! हमारी लड़ाई कोई किसके साथ है ही नहीं । ये भी झूठ लिख दिया है कि कौरव और पांडव की लड़ाई लगी । कौरव-पांडव की लड़ाई लगी ही नहीं है, बिल्कुल नहीं । क्या बाप आ करके बच्चों को आपस में लड़ाएँगे? भाई थे ना । बाप बैठ करके भाइयों को लडाए यह तो रावण का काम है ना । राम का काम तो नहीं । राम तो है ही पतित-पावन । वो पतित काम कैसे कराएँगे? जो लिख दिया है कि कौरवों और पांडवों की आपस में लड़ाई हुई । तो बाप ने कल भी समझाया ना-नही बच्चे, तुम है बरोबर लड़ाई पर । तुम्हारी लड़ाई है रावण के साथ । ये गुप्त लड़ाई इन पाँच विकारों के ऊपर । यू आर एट वॉर विद रावणा, विद फाइव एलिमेन्टस नॉट विद कौरवा । योर ब्रदर्स एण्ड सिस्टर्स, मित्र-संबंधी सब हैं ना, उनसे कैसे लड़ेंगे? भाई-भाई के बच्चे थे ना । वो अंधे के औलाद अंधे, वो सज्जे की औलाद सज्जे । वो कोई आपस में लड़े थोड़े ही हैं । नहीं । अंधो को बैठ करके मैं सज्जा बनाता हूँ । कहा जाता है ना- अंधो की लाठी, हे प्रभु तुम । ऐसे तो नहीं कहते है कृष्ण को -तू अंधे की लाठी है । प्रभु कोई कृष्ण को थोड़े ही कहते हैं । प्रभु, गॉड, परमात्मा, वो सभी उस एक को कहा जाता है । यह बाबा कहते हैं-तुम मुझे कहो ना । यह 84 जन्म पूरा लेते है; क्योंकि मनुष्य पहले-पहले यह हुआ ना । 84 जन्म सो मैं बताया; क्योंकि जन्म लेंगे तो जरूर नीचे चले जाएँगे ना । सूर्यवंशी फिर चंद्रवंशी, फिर वैश्यवंशी फिर शूद्रवंशी । फिर ब्रहमावंशी बनना पड़े । ये जो वर्ण या कुल है, सो भी तुम भारतवासियों के है । ये सो भी देवी-देवताओ के हैं; क्योंकि पहले देवी-देवता बनेंगे । पहले तो ब्राह्मणों की चोटी को लेंगे । ब्राह्मणों की चोटी बहुत मशहूर है । जो विराट का एक चित्र बनाते है उसमें विष्णु को विराट दिखलाते है । उनमें ब्राहमण नहीं दिखलाते है, भूल जाते है । सिर्फ बोलते हैं-यह देवता, यह क्षत्रिय । यह पेट है वैश्य, ये टॉगे है शूद्र-ऐसे दिखलाते हैं । ये जो ब्राहमण हैं, उनका नाम गुम कर दिया, परन्तु नहीं, गाया जाता है बरोबर कि ब्रह्मा द्वारा पहले ब्राहमण, यह चोटी । ये सबसे सर्विस करने वाले बच्चे, यह देवता किसकी घूर भी सर्विस नहीं करते है । इनको देवता बनाने वाला यह बाबा क्योंकि वो पतित है ना, सो पावन बने ना । पूज्य थे सो पुजारी माया ने बनाया । फिर यह आ करके उनको पूज्य बनाते हैं । सो प्रालब्ध भोगते हैं, और क्या करते हैं! सब कोई यथा राजा-रानी तथा प्रजा अपनी यहाँ प्रालब्ध बना रहे हैं । सो प्रालब्ध स्वर्ग में और त्रेतायुग में भोगनी है । इसमें फिर लक्ष्मी नारायण किसको क्या करते हैं? वो भी प्रालब्ध भोगते हैं, प्रजा भी प्रालब्ध भोगती है । यथा राजा-रानी तथा प्रजा इस समय की पढ़ाई की प्रालब्ध भोगते हैं । यहाँ बाबा बोलते हैं कि फिर रोज लिख करके आओ । तुम समझते हो बाबा ने, मास्टर ने ऐसे दी । एक दिन दिया, दूसरे दिन बोला नहीं ना, छूटी, लूली कल्लन खैची- ऐसे कहा जाता है । बाप ने न कहा-अच्छा छूटे फिर लिखने से । बाबा बोलते हैं-एक दफा टीचर ने डायरैक्सन दिया, तुम्हारा काम है रोज लिख करके आना । बाप भी समझे तो सही स्टूडेंट्‌स कैसे हैं? स्टूडेंटस हैं या कोई हज्जाम है? अरे, टीचर भी तो ऐसे ही कहेंगे ना । अरे, तुम पढ़ते हो, पढ़ाई पहनी है, नहीं तो जाकर हजामत करो । ऐसे कहते हैं ना, गुस्से जब करते हैं तो । अभी गुस्से की बात नहीं, यह तो बाबा हॅसी-कुडी करते है । ये सन्यासी हैं निवृत्तिमार्ग वाला हठयोग कर्मसन्यास । निवृत्तिमार्ग यानी स्त्रियों को छोड़कर जाते हैं । अभी तुम कुछ विचार तो करो कि वो हैं सन्यासी हठयोगी निवृत्तिमार्ग वाले और कर्म-सन्यास । अभी यह है राजयोग, कर्मयोग और प्रवृत्तिमार्ग । प्रवृत्तिमार्ग वाला बैठ करके तुमको महारानी-महाराजा बनाते हैं । तुमको हठयोगी सन्यासी बैठ करके महाराजा और महारानी बनाएँगे क्या? नहीं, तुमको तो वो बाई जी और बाबा तुमको वैश्या और लम्पट बनाते हैं और ही जास्ती । आजकल तो बड़े-बड़े आदमियों का बहुत ही सगाइयॉ भी बनवाते हैं । गरीब बिचारा नहीं, बड़े-बड़े आदमी जाते हैं, इनको थोड़ा रिकमेण्ड करो, तो यह हमारी बच्ची से यह करे, यह करे, यह सभी काम करते रहते हैं और सो भी भले वो निर्विकारी रहते हैं । बाबा ऐसे नहीं कहते हैं; परन्तु शिवबाबा ने बैठकर समझाया- बच्चे, तुम भारतवासी जब वाममार्ग में जाते हो, जब यह रावण का राज्य शुरू होता है तो हाहाकार मच जाता है; क्योंकि इतने पवित्र और वो काम चिता पर बैठ जाते हैं । अगर इन सन्यासियो का इसमें पार्ट न होता तो भारत इनसे पहले ही काला बन जाता; पर नहीं, ड्रामा में इनका पार्ट है । सिर्फ भारत है, जिनमें इतने सन्यासी, नंगे और फलाने रहते हैं । और कोई भी देश में नहीं रहते हैं । यह बाप ने समझाया, परन्तु वो भी जब सतोप्रधान थे, तब कुछ अच्छे थे । अभी तो सभी तमोप्रधान हैं । वो जंगल में रहते थे । वो वहीं बैठ करके शास्त्र वगैरह लिखते थे, मनुष्य उनको सब कुछ पहुँचाते हैं, वो ताकत थी । अभी तो उनमें वो भी ताकत नहीं है । यहाँ घुस आए हैं और बैठ करके इन माताओं को, जिनको नागिन और सर्पणियाँ फलाना कहते, उनको क्या सिखलाऐगे! क्या तुम राजयोग सिखलाएँगे? बाबा बोलते हैं-यहाँ होंगी, जो आगे वहाँ जाती रहती होंगी, अभी भी कोई जातीं होंगी । बाबा पूछते हैं उनसे कि के है हठयोग, कर्मसन्यास या निवृत्तिमार्ग । वो प्रवृत्तिमार्ग का ज्ञान, राजयोग कैसे सिखला सकते हैं, जब यह घर-बार छोड़ जाते है? कोई बुद्धि से भी तो काम लेना चाहिए ना । यानी वो हैं ही हठयोगी । कर्मसन्यासी नाम है उनका । घर-बार छोड़ते हैं, अकेले रहते हैं । उसको कहा जाता है-निवृत्तिमार्ग । तुम्हारा है प्रवृत्तिमार्ग । अभी तुमको राजा-रानी, स्वर्ग के मालिक कौन बनाएंगे? क्या ये बनाएंगे या बाप बनाएगा? मनुष्य नहीं बना सकते हैं । यह भी नहीं । यह भी बन रहा है । वह सबको बनाने वाला है । तो भला इनको याद कैसे करें? बिल्कुल सहज, मैं आत्मा हूँ और सदैव याद करता हूँ-ओ गॉड फादर । ये कौन याद करता है, ये कहाँ है, किसको याद करते हो? आत्मा परमात्मा को याद करती है, जैसे आत्मा है, वैसे परमात्मा है । क्या परमात्मा को तुम नहीं जानती? तुम कृष्ण का चित्र देखती हो पर वो तो सतयुग में चैतन्य में था ना । अच्छा, यह जो शिव है, उनका भी चित्र है ना । वो भी तो आया होगा ना कब! किसके शरीर में चैतन्य में आया तो होगा ना । बरोबर वो कहते हैं कि मैं इनमें आया हुआ हूँ । हम तुमको फिर से सो राजाओं का राजा ऐसा बना रहा हूँ । अभी मेरी मत पर चलना पड़े । असुरों की मत सब छोड़ देनी पड़े । यह है श्री-श्री मत । अभी बाबा ने समझाया ना-रुद्र को, शिव को कहेंगे-श्री-श्री । कृष्ण को कहेंगे श्री, लक्ष्मी नारायण को श्री लक्ष्मी-श्री नारायण कहेंगे । उनको कभी भी श्री-श्री कहना यह शिवबाबा का डिसरिगार्ड करना है, क्योंकि उनका पद ऊँचे ते ऊँचा है । उनको कहा जाता है श्री-श्री भगवद्‌गीता । एक श्री नहीं, श्री-श्री । भगवद् श्री-श्री कहो ना । अगर कृष्ण कहेंगे तो एक श्री । उनको कहेंगे दो श्री । वो तो ज्ञान का सागर, वो कोई कृष्ण थोड़े ही है । ऐसा कोई भी नहीं होगा जो तुमको यह कह सके की सारी सृष्टि में, गीता में तो लिखा हुआ है-कृष्ण भगवानुवाच । भगवानुवाच कहते हैं या नहीं? कृष्ण-कृष्ण करते रहते हैं या नहीं? सभी अनेक मते हैं, कोई क्या कहते हैं; परन्तु कोई भी पतित दुनिया को पावन करने वाला सिवाय एक पतित-पावन के दूसरा तो कोई हो नहीं सकता है । अभी वो पतित-पावन आवे कैसे? कहाँ आवे? पतित को पावन दुनिया में आना होगा या पतित दुनिया में आना होगा? बोलता हैं-देखो, मैं रावण की पराई सृष्टि और यह शरीर पतित में आता हूँ । यह पहले पावन था, पूज्य था, अभी 84 जन्म पूरा करके, एक तो नहीं रहा ना । लक्ष्मी नारायण की सारी राजधानी । जो पूज्य थे लक्ष्मी नारायण और उनकी जो राजधानी , पूजता तो कोई मनुष्य को तो नहीं, पूजेगा तो हेड को ना । तो श्री लक्ष्मी नारायण उस डिनायस्टी के हेड थे, इसीलिए उनको पूजा जाएगा । यथा राजा-रानी तथा प्रजा । अब प्रजा को थोड़े ही कोई पूजेंगे । लक्ष्मी नारायण को क्यों पूजते हैं? क्योंकि सर्वगुण सम्पन्न, सोलह कला सम्पूर्ण और सम्पूर्ण निर्विकारी, मर्यादा पुरुषोत्तम, अहिंसा परमोधर्म वाला, सतयुग के आदि सनातन देवी देवता धर्म का मालिक था और यथा उनकी प्रजा थी ऐसी सुखी । वहाँ सब सुख है ना । अभी तो दुःख है । अभी दुखधाम से फिर सुखधाम बनाने और तुम बच्चों को सुखधाम में जाने के लायक बनाने, तुमको यह पतित से पावन बना रहे हैं । अभी इतना अच्छी तरह से समझावे भारत का कोई दूसरा शास्त्र है नहीं । बाकी जो बनाए हैं ये वेद और शास्त्र और कितने बनते हैं, उन्होंने ये सभी ऐसे ही बनाए हैं, जैसी मनुष्यों ने नॉवेल्स बनाई, तैसे जो ऋषि-मुनि आगे वाले हो गए । अरे, रामायण किसने बनाया? एक डाकू था.- वाल्मीकि । फिर कोई वाल्मीकि, कोई सूरदास का, कोई वो रामायण, कोई क्या रामायण- यह बैठ करके बनाए हैं, नहीं तो भला उनमें क्या है? इनमें तो है ना- बच्चे, तुमको मैं सो नर से नारायण बनाता हूँ । राजयोग सिखलाता हूँ । ऐसा कौन-सा शास्त्र है, जिनमें यह लिखा हुआ है कि मैं तुझे राजाओं का राजा बनाता हूँ । कोई लिखा नहीं । क्या वेदों मे लिखा हुआ है? शास्त्रों में लिखा हुआ है? उपनिषदों में लिखा हुआ है? ग्रंथ मे लिखा हुआ है? किसमें लिखा हुआ है? बिल्कुल कोई भी नहीं है । यह एक है, तो बस वो ही है जो पतित से पावन बाकी क्या? बाकी तो पढ़ते आए हो । सभी पढ़ते आए हो ना । पढ़ते-पढ़ते तुमको दुःखधाम तमोप्रधान बनना ही है, सो बन गए हैं । फिर उनसे फायदा क्या? फिर भी बाबा कहते हैं- नॉवेल से वो शास्त्र पढ़ना फिर भी बेहतर है, क्योंकि फिर भी उसको कुछ न कुछ रिलीजियस माइंडेड कहा जाता है । उनको फिर कहेंगे इररीलिजियस माइंडेड । कई जो इररीलिजियन वाले होते हैं, वो नॉवेल बहुत पढ़ते हैं । आजकल पढ़ते तो सभी हैं । बड़े-बड़े आदमी, लखपति, करोड़पति नॉवेल्स बहुत पढ़ते हैं और जिसको इररीलिजियस माइंडेड कहते हैं, वो फिर बड़े-बड़े बहुत शास्त्र । बस, वेद, ग्रंथ और शास्त्र पढ़ा और गीता कंठ की हाय हाय, भला गीता तो कंठ है; पर फायदा क्या! क्या गीता से तुम दूसरे जन्म में राजा बन जाएँगे? कभी नहीं बनेंगे । ऐसे भी नहीं, कोई कहे कि हम तो कृष्ण को याद करते, वो है स्वर्ग का मालिक । कृष्ण को याद करते-करते अंत मते सो गत मैं स्वर्ग मे चली जाऊँगी, यह भी तो हो नहीं सके । तुमको यहाँ आना है वाया सुखधाम-शांतिधाम । तुम यहाँ दुःखधाम से सुखधाम में फट जा नहीं सकेंगे । देखो, कैसे समझाते हैं! वाया जरूर आना है । तुमको जाना है बाबा के पास । ज्ञान देते हैं, अंत मते सो गत वहाँ जाना पड़ेगा ना । कृष्ण के अंत मते सो गत कृष्ण के पास आ जाएगा, अभी थोड़े ही रखा है जो जाएँगे । अभी तो पहले बाप के पास जाएँगे । बाप कहते हैं-पहले तुम सबको मेरे पास आना होगा, मैं तुम्हारा गाइड हूँ मैं आया हूँ तुमको वापस ले जाने के लिए और नाटक पूरा हो गया । सभी एक्टर्स यहाँ हैं । जब तलक मैं हूँ वहाँ जो कुछ भी थोड़े बच्चे हैं, वो सब आ जाएँगे । उनकी आयु बस बाकी अभी है । वो कोई एक-दो जन्म भी नहीं ले सकेंगे । आता रहेगा; क्योंकि सृष्टि वृद्धि को पाती रहती है । जब वहाँ भी पूरे हो जाएँगे, खाना खाली हो जाएगा, तो मेरा जाना शुरू हो जाएगा । मैं सबको फिर वापिस ले जाऊँगा क्योकि खाली तो नहीं छोड़ेगा । बस, खाली हुआ और मैं वापस चला जाऊँगा । वहाँ खाली हुआ- यहाँ से मैं वापस चला जाऊँगा, तुम बच्चों की आत्माओ को मच्छरों के मुआफिक ले जाऊँगा । ऐसे कोई वेद-ग्रंथ-उपनिषद लिखा हुआ है क्या कि बाप आते हैं मच्छरों के मुआफिक और कहते हैं-कालों का काल हूँ मैं सबको सभी बंधनों से छुडाय करके साथ में ले जाऊँगा? कोई मनुष्य कह सकेगा? यह भक्तिमार्ग का है ना, सभी तो भक्तिमार्ग की महिमा है ना; इसलिए इन शास्त्र वगैरह की महिमा है; परन्तु इनमें फायदा तो कुछ होना नहीं है । बहुत भक्ति, बहुत भक्ति माना भक्ति करते रहो जबकि भगवान न आ जाए, धक्का खाते रहो । आधा कल्प तुम भारतवासियों के लिए पूरा धक्का है, जो पहले ब्राहमण बनते हैं । सबके लिए भी नहीं । जो अभी ब्राहमण बनते हैं-सगे या लगे, उनके लिए हैं 84 जन्म, फिर भक्तिमार्ग का आधा धक्का । सबके लिए नहीं । देखो, ऐसे कैसे सिर पड़े? ये कौन-से भक्त हैं, जो द्वापर से ? जो यहाँ आएँगे ना, वो ही वे समझो । जो फिर यहाँ आकर चले जाते हैं, उन्हें समझना कि कोई पुराने पूरे भक्त हैं । अभी यह हिसाब-किताब है । अच्छा, आज किसे? देखें कौन बहादुर है । अच्छा, कल लिख करके आना और जो कल न लिख करके आए हैं समझा जाता है कि छूटी-लूली-खतरों को । उनको बोलते हैं-फिर वो भी मेहनत करके कल की और आज की लिख करके आना । दादा थोड़े ही कहते है । नहीं, यह बाबा कहते हैं । बाप ने दादा का रथ लोन लिया हुआ है । शाबास बच्चे कान में कपूस पड़ती है । जैसे राम और कृष्ण के भक्त धूप जलाते हैं ना । कृष्ण का भक्त धूप जलाएगा तो जो राम के भक्त होते है, उनके नाक में वो कपूस डाल देंगे । यह ज्ञान भी ऐसा है । जो न होगा यह स्वर्ग के मालिक होने वाले के, उनकी बुद्धि में ताला लगा हुआ होता है । वो कभी कुछ समझ न सके । वहाँ के लायक नहीं है ना । तो वो समझ भी नहीं सके । जितना जास्ती समझेंगे तो समझना चाहिए वो अच्छा पहले नम्बर का भक्त था । फिर पहले नम्बर में वो नम्बर भी ले लेंगे । यहाँ एक परीक्षा पड़ती है । भला सबसे अच्छी भक्ति तीव्र वेग से किसने की? किसने तो की होगी, जो पूज्य और पुजारी बना । फिर नंबरवार किसने की है-वो सब पता पड़ जाएगा सर्विस के ऊपर कि तीखी भक्ति करने में हमको फालो किसने किया है । भक्ति का तो फल देते हैं ना । बच्ची समझती हो? तुम्हारा नाम क्या है? निर्मला । वो होते हैं ना इंसपेक्टर । देखो, जब इम्तिहान होते हैं तो तुम्हारा पेपर जाँच करने लिए इंसपेक्टर्स मुकर्रर होते हैं । तुम लोगों को मालूम है? तो तुम्हारा जो अच्छे तीन-चार होवे सो पढ़ करके फिर मुझे नंबरवार थोड़ा समझाय देना । तो मैं समझ जाऊँ, फिर हम वो नोट करके जाऊँगा कि ये क्लासों में यहाँ कौन-कौन हैं, जिनको मम्मा भी मेहनत करके गई है, बाबा भी करके गए हैं । तीखे कौन जाते हैं । समझा ना! उनसे माँगने से ऐसे पड़ जाएंगे कोई कहेंगे हम लिखना नहीं जानते हैं । सुनना जानती हो? सुनती हो, धारण करती हो, तो कोई से लिखवा दो । कोई हर्जा थोड़े ही है । अच्छा मम्मा-बाबा और ये भी बहुरूपिया आ जाते हैं । इसको बहुरूपी कहा जाता है, ऐसे नहीं कि सबके व्यापक । बहुरूपी का अर्थ समझाया था ना- जो-जो जिस-जिस भावना से जिस-जिस की पूजा करे । अभी हनुमान तो कोई है नहीं, गणेश तो कोई है नहीं, कच्छ-अवतार, मच्छ-अवतार फलाना हैं नहीं कुछ । तो बाबा कहते हैं-अभी बैठ करके नरसिंह की कोई पूजा करेंगे, तो उनकी भावना कैसे पूरी करूँ? तो मैं फिर भक्तिमार्ग में उनको उनका साक्षात्कार कराकर खुश कर देता हूँ परन्तु कोई मेरे को आ करके मिलता नहीं है । उनको उनकी भावना का अल्पकाल का भाड़ा मिल जाता है, कोई प्राप्ति नहीं है । उनमें भावना है तो पूरी करते हैं । जाता क्या है? खल्ली के घर से गई छू । अच्छा, उनकी दिल पूरी हो गई । चलो बन्दर कहो बंदर का ही साक्षात्कार । वो समझते हैं तभी तो बंदर में भी है ना, कच्छ में भी है, मच्छ में भी है । वहाँ से इन्होंने यह उठाया है और मनुष्यों ने लिख दिया शास्त्र में । बाकी कच्छ में है, मच्छ में है, फलाने में है । सब नंबरवार पुरुषार्थ अनुसार, यूँ तो वो भी जानते हैं अच्छी तरह से, परन्तु यादप्यार दे देना । कोई डायरेक्शन हो तो भले ले आना । (रिकार्ड बजा :- शिव पिया के साथ) यह तो गीत है इन लोगों का गाया हुआ । जब बाबा कहते है मैं इनकी बुद्धि में बैठ करके बनवाता हूँ तो जैसे हमारी कोई संदेशी होती है ना, संदेशी जाती है तो उनमें भी माया का असर पड़ जाता है, संदेश भी कभी उल्टा-सुल्टा ले आती है । बाबा बता देते हैं । वैसे मैंने बैठ करके उनके घट में बड़ा बैठाया है ये; परन्तु उन्होंने भी कहीं न कही भूल कर दी है और गीत ऐसे बना दिया है जिनमें कुछ डिफेक्ट है । कोई ठीक है, कोई में डिफेक्ट है । अभी साजन क्यों भूलेंगे! भूले कौन हैं? भक्त । भक्त भूले है भगवान को, जिन्होंने भक्तों को पूज्य बनाया था । यहाँ बस पद मिलने से ही फिर भूल जाते हैं; क्योंकि अगर देवी-देवता बाप को जानते हों तो फिर बाप की रचना को भी जानें, सृष्टि के आदि-मध्य-अंत को भी जानें । तभी बाबा कहते हैं-अगर उनके सृष्टि के आदि-मध्य-अंत को जाने त्रिकालदर्शी बनें तो दुःखी हो करके बिचारा राज्य भी न कर सके; क्योंकि उनको यह चिंटा लग जावे, हमको फिर उतरना होगा । सोलह कला से चौदह कला में जाना होगा, फिर बारह में, फिर एकदम कौड़ी मिसल बनेगा । बिचारों का राज्य उसी समय में खत्म हो जावे । खुशी खतम हो जावे । बाप समझाते हैं ना । इज देट राइट? बाबा पूछते हैं-मैं सच कहता हूँ? तुम्हारी बुद्धि में लगता है कि यह बात ठीक है? यह ज्ञान उनमे नहीं हो सकता है । ये ज्ञान प्राय:लोप हो गया था फिर कहाँ से आया? ऐसे थोड़े ही है, बस इक्ष्याकु के मनु को, मनु ने फलाने को, फलाने के फलाने को, यहाँ राजा कहाँ है, जो दिया किसको? वहाँ राजा राजाओं को देते ही नहीं हैं, ज्ञान ही नहीं है । यह सभी बाबा ने समझाया ना-पाई-पैसे का सच है । रामायण बनाया ना, उनमें भी यह ठीक है । बन्दरों की सेना है ठीक । सभी सीताएं एक रावण के चम्बे में हैं । सो इनको ले करके सारी दुनिया को छुड़ाते हैं । लंका की कोई बात नहीं है । तो थोड़ा यह जैसे सच है । अच्छा, बाकी भागवत में चरित्र तो झूठे ही झूठे हैं । वाह! शिवबाबा कहाँ वो कृष्ण कहाँ! वो शिवबाबा का चरित्र काहे का? वो तो है ज्ञान का सागर सुनाने वाले । रोज बैठ करके, मटकी फोडी मक्खन चुराया फलाना किया, रानियाँ भगाई । यह कृष्ण बच्चा है सतयुग में, यह वहाँ कैसे काम करेगा? कितना दोष? इसको गाते है ना-यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत यानी अपने धर्म की और धर्म स्थापन करने वालों की ग्लानि । फिर बैठकर समझाते हैं मेरी ग्लानि-कण-कण में, मच्छ-कच्छ धूल-छाई में, सबमें और फिर कृष्ण की ग्लानि, रामचंद्र की ग्लानि, बस जो मुख्य है उनकी ग्लानि और फिर सबकी, शंकर पार्वती के ऊपर फिदा हुआ । अरे मूर्खों यह भी कोई बात होती है! ब्रह्मा सरस्वती के ऊपर फिदा हुआ-ऐसे-ऐसे यहाँ बहुत चरियाई देखी हुई है । पता थोड़े ही है किसको, बिचारी को, यह जगदम्बा कौन है? सरस्वती कौन है? किसको कुछ पता थोड़े ही है । ये सब मुखवंशावली । अच्छा, चलो । जाओ, गो सून, कम सून । अभी यह दशहरे की सर्विस बच्चों को मिली हुई है । देखो, कितने ढेर बच्चे हैं । भले कोई काम वाले होते हैं, नहीं निकल सकते है । तो ये जो रावण वाले चित्र आए हैं, वे और भी मँगाय सकते हैं और सदैव देते रहो और दूसरे जो अभी दीवाली के लिए लक्ष्मी के निकले हैं, महालक्ष्मी के, वो भी बहुत अच्छे हैं । हिन्दी और अंग्रेजी आए हुए हैं । उसमे बहुत अच्छी समझानी लिखी हुई है । कैसा भी हो, उनको थोड़ा समझाने से समझ सकेंगे । उसमें भी ये चित्र तो दो हमें साथ ये और ये भारत के । ये भारत के हैं ना । ये तुम बाप कहेगे ना । बॉम्बे मे बबूलनाथ भी तो मशहूर है । ये फॉरेस्ट को वो स्वर्ग बनाने वाला या गार्डन बनाने वाला, इसलिए नाम पड़ गया बबूलनाथ । शायद यहाँ बॉम्बे में ही है एक बबूलनाथ नाम । नहीं तो नाम तो बहुत रखा हुआ है यह बाबा इन सहित अच्छे-अच्छे चित्र बना रहे हैं । ये इनमें हम देते है और दूसरे छपा रहे हैं, उसमें भी हैं, जो आए है दीपमाला के लिए । मंदिरों में यहाँ-वहाँ बाबा देखते है कि लेग्वेजिज से बहुत, अगर सस्कृत में श्लोक सुनाते, तो मैं तो समझता हूँ यहाँ कोई भी नहीं समझ सकते । संस्कृत कोई सतयुग की भाषा नहीं है । सतयुग में संस्कृत नहीं चलती है । ये हमारी बच्चियाँ जानती हैं, वहाँ की लेग्विज और है । बाबा ने वहाँ बताया था-गागरे को क्या कहते हैं, किताब को क्या कहते हैं, स्कूल को क्या कहते है, फलाने को क्या कहते हैं । वो नाम ही अलग थे । इनके पास कुछ नोट है कि वहाँ भाषा कैसी होती है । संस्कृत नहीं होती है । संस्कृत ये सन्यासियों के पीछे निकली हुई है । हरेक राजा अपनी लेग्विज चलाते हैं । वहाँ सतयुग में लेग्विज अलग हैं । फिर जब रामचंद्र का राज्य होता है, एक लॉ है, उनकी फिर अपनी लेंग्विज होती है । हरेक राजा अपनी लेंग्विज चलाते है) । देखो, अभी यहाँ क्या थे? मान्स थे और गज थे । अभी किलो, मीटर आदि पता नहीं यह विलायत से क्या-क्या निकला है । अरे, 14 कैरेट नाम कहाँ से निकला? 14 कैरेट हिन्दुस्तान में अक्षर है नहीं । अक्षर ही नहीं है । कहाँ से आया? सब विलायत से कचडा यहाँ आता है एकदम । ये सभी जो भी अक्ल है सब वहाँ से लेते हैं । यहाँ का बिल्कुल कुछ भी अक्ल नहीं है । यहाँ भारत का अक्ल तो चट है, खत्म कर देंगे एकदम, पत्थरबुद्धि । तो आता है सो सब वहाँ से । देखो, डेम बनते हैं, ये बनते है, कर्जा लेते रहते हैं । अभी बाबा ने समझाया-ये तुम्हारे भारत से बहुत पैसा ले गए हैं ना यह नाटक में राज़ कितना अच्छा है । तुम्हारे से बहुत पैसा ले गए और तुम कंगाल हो गए हो । उनसे उगराई कैसे हो? अभी उन सबसे उगराई हो रही है, जो भी क्रिश्चियन वाले हैं, सब जो भी है । सब सौदा लेते रहो, देना पाई भी नहीं है । पिछाड़ी में विनाश हो जाएगा, यह रह जाएगा । देना पाई का भी नहीं है वो पहले ही खत्म हो जाएगी । तो अगर श्रीमत लेवे तो भले 8-10-12 परसेंट में भी जो दें सो लेते जाओ-लेते जाओ, देना कुछ भी नहीं है । खत्म हो जाएँगे ना । बाबा कहते है-ये है उगराई । अगर ये उगराई न होती, तुम लोग मर जाते दुकड़ मे । न वहाँ से अन्न आता, न वही से पैसे आते, न कुछ होते, तो तुम्हारे में सब अकाल पड़ जाता, भूख बढ़ती, परन्तु यह ड्रामा में, नाटक में राज़ रखा है । बहुत पैसा ले गए हैं । अभी उनसे सबसे उधार, बस उधार । एक बड़ी पार्ट ले ली है । बाबा समझा देते है । बच्चों को कहते हैं-तुम फिक्र मत करना । उनको देना थोड़े ही है, बहुत लूटा है, सो तुमको देते हैं । अरे! इतना तो मैं कहता हूँ उनको लड़ाय करके राज तुमको देता हूँ । तुमको कोई तकलीफ थोड़े ही है । और क्या चाहिए तुमको! अखानी भी है बरोबर कि दो लड़े और एक को मक्खन मिल गया । तो यह है सृष्टि रूपी बादशाही का, विश्व के बादशाही का मक्खन, सो मिलता ही है भारत को । तुम बच्चे भारत की कितनी अच्छी सेवा कर रहे हो । तन, मन, धन से तुम भारत की रूहानी सेवा कर रहे हो और वो करते है जिस्मानी । अभी कौरवों ने बापू की मदद की । देखो, मिनिस्टर्स है, अशोका होटल में खाना खाते हैं’ । जिन्होंने मदद दी वो बड़े मजे में है । वो तो है अल्पकाल क्षणभंगुर की रुपय का पानी का राज । वो तो बाबा ने समझाया है । तुमको बड़ा बापू जी-बेहद का बापू जी कितना सुख देते हैं! तुम भी तो धन-तन-मन से सेवा करती हो तो भारत की ही हुई ना! परन्तु वो छोटे बापू की-हद के बापू की, यह बेहद के बापू की । जो मदद करेगा वो पाएगा । मदद की ना । बाबा ने बताया ना फालो फादर । बाबा, यह सब कुछ आपका है, स्वर्ग की बादशाही फिर मेरी है-सौदा करते हैं । सौदा है ना । बाबा ने बोला-सौदा करेंगे? बोला-वाह! क्या देंगे? बोला- तुमको बादशाही देंगे । हमने बोला-यह गधे की बादशाही छोड़ो । हमको वहाँ की बादशाही दे दो, हम फेंक करके धंधा बैठ गया । अच्छा, टोली बाँटो । मालूम है तुम लोगों को? रावण का जो चित्र बनाते हैं, उसके ऊपर गधे की सीसी देते हैं । लेथेड़ते रहते हैं गोरख रूपी धूल-धूल में । तो वो गधे की सीसी दे देते हैं । गधे लिथड़ते हैं ना धूल- धूल में । तो यह भी पाँच विकारों के धूल-धूल में लिथड़ते रहते हैं । गधे की शीश ली हुई है रावण के ऊपर में । तुमने रावण देखा है? यह चित्र जितना चाहिए, मँगाकर देंगे । अभी गुजरात में तो नहीं छप सकेंगे, लेग्विजीज बहुत हैं । कहाँ तक छपावे? वहाँ फिर सिंधी नहीं छप सकती है । पता नहीं, मराठी भी छप सकती होगी या नहीं । इतनी कोई छपा भी नहीं सकते हैं, इसलिए गवर्मेन्ट हिन्दी करती जाती है कि)हिन्दी प्रमुख रखो । हिन्दी और इंग्लिश-इनके सिवाय भारत का काम कभी चल नहीं सकेगा । तो ये दो लैंग्वेजिज अच्छी हैं । उसमें इंगलिश तो स्कूलों में सभी पढ़ते हैं । तो सबको अच्छी तरह से बॉटो । जहाँ-जहां भी सतसंग हो, फलाना हो, खूब देते जाओ । मेहनत करनी पड़ेगी ना । रकार्ड बजा:- सोने का हिन्दुस्तान मेरा...... अभी बन रहा है, पहले था । अभी तो 14 कैरेट, 9 कैरेट । उनको सोना थोड़े ही कहा जाता है । नहीं, यह महिमा है, जो थी । भारत सोने का, हिन्दुस्तान भित्तर का, ठिक्कर का । भारत की महिमा है जरूर, क्योंकि बाप भी कहते हैं-मैं भारत में आता हूँ तो भारत को सोने का बनाता हूँ । माया आती है मित्तर की बना देती है । पुन: रिकार्ड बजा- सोने का परिवार.., परिवार समझती हो? गोल्डन एण्ड परिवार, अभी आयरन एजेड परिवार । अभी आसुरी परिवार । वो रहते भी सोने के महल में हैं । सोने जैसे ही हैं । उसको कहा ही जाता है-पारसनाथ और पारसनाथिनी । नेपाल के तरफ में पारसनाथ का मन्दिर है । पारसनाथ उनको कहा जाता है । शिवबाबा को तो नहीं कहेंगे ना, वो तो बनाते हैं । पारसनाथ अभी पत्थरनाथ । पत्थरनाथ से पारसनाथ बनाते हैं । यह आबू में मन्दिर बहुत अच्छा है । उसमें सब लिखा हुआ दिखलाते हैं । नीचे ये झाड़ भी है । नीचे जगदम्बा और जगतपिता भी बैठे हुए हैं । ऊपर में स्वर्ग भी है । स्वर्ग भी ऐसे मारबल का बनाया हुआ है, कोई भी वर्ल्ड में ऐसा नहीं होगा । ऐसा बिल्कुल एक्युरेट । नीचे में पत्थरनाथ काला । फिर ऊपर में जो मन्दिर है अचलगढ उसमे फिर पारसनाथ वो सोने का चित्र रखा हुआ है और फिर गुरुशिखर । गुरु उनसे भी ऊँचा है पहाड़ के ऊपर । उस गुरु ने .चे ते ऊंचे वाले ने पत्थरनाथ को पारसनाथ कैसे बनाया-सब चित्र है । अधर कन्यायें है, कुँवारी कन्याएँ हैं । ये हैं न तुम फिर कुँवारी कन्याएं ये अधर कन्या क्योंकि फिर वो गृहस्थी बनकर, तो उनको अधर कहा जाता है । पूरा मन्दिर है यादगार और हम तपस्या भी वहाँ ही जाकर करते है । हमारा यादगार भी वहाँ । अभी तुम बच्चे कहाँ भी जाएँगे लक्ष्मी नारायण के मंदिर में तो कहेंगे अरे । यह तो अभी हम बन रहे हैं, यह तो हम थे, यह तो हमारा ही यादगार है । जगदम्बा के मंदिर में जाएंगे तो कहेंगे अरे । यह मम्मा के साथ हम तो यह भारत को स्वर्ग बनाते थे । यह हमारी यादगार का मंदिर है मम्मा का । ऐसे कहेंगे ना! जो चीज देखेंगे- अरे, लक्ष्मी नारायण का मन्दिर! यह तो हम भारत को बना रहे हैं, हम खुद बन रहे हैं । ऐसे कहेंगे न अभी जो देखेंगे वो तुमको नॉलेज है रिकार्ड बजा- सोने का परिवार...., सोने के राजमहल बनते हैं ना ठीक । आगे स्वर्ण दान करने से, सोना दान देने से तुमको बहुत फल मिलता है । सोना दान सबसे ऊँचा दान गाया जाता है । अभी क्या 14 कैरेट दान करेंगे? 9 कैरेट दान करेंगे? क्या करेंगे? अच्छा बच्चे, किसी ने कहा- बाबा गीत..) क्या है? रिकार्ड- सोने का हिन्दुस्तान मेरा.....) अच्छा, बापदादा मीठी मम्मा का मीठे – मीठे सिकीलधे बच्चों को, बाप कहते है सर्विसेबुल बच्चों को- जो सर्विसएबुल बनेगा, वो ही अच्छा-अच्छा इजाफा लेंगे । सर्विस बिगर गवर्मेन्ट इजाफा देती है? तुम अपनी सर्विस करते रहो । बाप बोलते हैं-मैं इजाफा अच्छा दूँ, क्योंकि ब्राहमण हो यज्ञ के और तुमको स्वर्ग की राजधानी इनाम मे मिलती है, तो सर्विस भी ऐसी ईमानदारी से करनी चाहिए । अच्छा, बापदादा, मीठी मम्मा का मीठे- मीठे बच्चों प्रति यादप्यार गुडमॉर्निग ।
हेलो, ये जो गीत आपने सुना - सोने का हिन्दुस्तान, वो हिज़ मास्टर्स फैज़ का रिकॉर्ड है, ज्योतिका राय का गाया हुआ है इसका नंबर है m16017