30-09-1963    मुंबई   प्रात: मुरली    साकार बाबा    ओम् शांति    मधुबन
 


हेलो, गुड मोर्निंग हम बम्बई से बोल रहे हैं, आज सोमवार है सन 1963 सेप्टेम्बर की तीस तारिख है । प्रात: क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं ।

रिकार्ड :-

बचके नजरों से मेरी कहाँ जाओगे?..........

बाप रिस्पॉण्ड करते हैं कि तुम बच्चों को फिर से मिलने के लिए परमधाम से आना पड़े । इनका कोई अर्थ भी तो होगा ना । बच्चे इनका अर्थ जानते हैं कि बरोबर बाबा फिर से आया है इस ड्रामा के प्लैन अनुसार । कई कई शास्त्रों में लिखा हुआ है कि परमपिता परमात्मा को संकल्प उठा- मैं जाकर सृष्टि रचूँ । ऐसे कोई में लिखा हुआ है । अभी सृष्टि रचूँ तो नई सृष्टि हो जाती है । नहीं, यहाँ तो गाया जाता है कि भक्तों को फल देने के लिए भगवान को आना पड़े, पतितों को पावन करने के लिए भगवान को आना पड़े । तो जरूर कोई सृष्टि है, ऐसे नहीं कि उनको संकल्प उठा कि नई सृष्टि रचे । शास्त्रों में यह झूठ बात लिखी हुई है । यहाँ जो पण्डित वगैरह सुनाते हैं, वह झूठ है । वो समझते हैं-प्रलय भी होती है, एक दफा महाप्रलय भी होती है । अगर महाप्रलय हो तो ये सभी आत्माओं में जन्म-जन्मांतर का, कल्प-कल्पांतर का जो ये रिकार्ड वगैरह है वो तो सभी खत्म हो जावे । फिर नई सृष्टि कौन-सी रचेंगे जिनका कभी भी सृष्टि पर कोई नाम-निशान ही नहीं । बाप बच्चों को बैठ करके समझाते हैं कि बच्चे, यह तो ठीक है कि जरूर आत्मा को अपना पार्ट बजाने के लिए संकल्प उठेगा । तुम बच्चों को वहाँ जाय करके तो यह संकल्प उठेगा- अभी हमको जाना है । संकल्प तो उठेगा ना । ऐसे नहीं है कि बस संकल्प किया- आ करके मनुष्य सृष्टि बनाते हैं, नहीं । तुमको ऑटोमैटिकली संकल्प आएगा कि अभी हम जाय करके अपना राज-भाग करें और आएँगे ही सतयुग में, स्वर्ग में । बाप बैठ करके सिकीलधे बच्चों को समझाते हैं- बच्चे, यह जरूर है कि मुझे ऑटोमैटिकली ड्रामा के अनुसार संकल्प उठा कि मेरा ये पार्ट है । अब जरूर उठेगा कि जा करके पतितों को पावन बना लें और जो भी मेरे मीठे-सिकीलधे भारतवासी बच्चे थे, ऐसे कहेंगे ना; क्योंकि वो है ज्ञान सागर । बाबा कहते हैं-मैं हूँ ज्ञानसागर । मुझे संकल्प उठा कि मेरे बच्चे माया की काम-अग्नि पर बैठ भस्मीभूत हो गए हैं, काले हो गए हैं । अभी तो ड्रामा बनाया सो तो वो जानते हैं ना । अभी फिर जाऊँ, जो काले हो गए हैं उन बच्चों को फिर जा करके उनके ऊपर ज्ञानअमृत की वर्षा बरसाए, फिर उनको सो देवी-देवता बनाऊँ, फिर सो गोरा बनाऊँ । बरोबर कहा भी जाता है कि आते हैं एक भाग्यशाली रथ में । इसको भागीरथ कहा जाता है अर्थात भाग्यशाली रथ । चित्र में मनुष्य दिखलाते हैं भाग्यशाली रथ के रूप में और फिर जो गोशाला की बात निकली है, तो उनमें मंदिर के आगे बैल को दे दिया है । वहाँ भाग्यशाली रथ को नहीं दिया है । उनका आगे चित्र बनाय दिया, वहाँ एक बैल को रख दिया; क्योंकि गोशाला का नाम आ गया । देखो, भूलें हो गई है ना! तो फिर अभूल बनाने के लिए बच्चों को आ करके सभी राज़ समझाय रहे हैं कि हे मेरे लाडले मीठे बच्चे, देखो याद कैसे करते हैं! तू वही तो हो ना । तुम 5000 वर्ष पहले भी तो मिले थे ना । फिर आए थे तुमको ये राजयोग सिखलाने के लिए, तुमको राजाओं का राजा बनाने के लिए । तुमको कोई से लड़ाई तो नहीं कराते हैं ना! नहीं । तुम लड़ाई किससे करेंगे? तुम्हारे पास हथियार वगैरह कहाँ से आएंगे)! तुम्हारी अलग कोई पांडवों की राजधानी थोड़े ही है । नहीं । तुम सब तो आपस में भाई-भाई हो । तुम वो कौरव थे, तुमको पांडव बनाएँगे । ऐसे नहीं कि कौरव अलग थे, पांडव अलग थे । नहीं, यह जरूर है कि कौरव बापू के बच्चे थे, ये पांडव फिर बड़े बापू के बच्चे हैं । अभी अच्छी तरह से समझा ना । उनको बाबा कहते हैं । बापू है गुजराती अक्षर । गायन है बरोबर कि एक काँग्रेसी बापू था । अभी तुम जानते हो, गीता में भी लिखा हुआ है कि कौरव भी थे, पांडव भी थे, यादव भी थे, यूरोपवासी भी थे और कहते हैं कि बाप आते भी हैं एक धर्म की स्थापना, स्वर्ग की स्थापना करने । उसमें है ही एक धर्म, दो धर्म नहीं हैं । वो जरूर आएगा ही पुरानी दुनिया का विनाश कराय नई दुनिया स्थापन करने और नई दुनिया स्थापन कराय पुरानी दुनिया का विनाश करने; इसलिए ये त्रिमूर्ति निमित्त बनी हुई है । कोई पालना करेगा ना । जो रचना रचेंगे वो उनकी पालना करेंगे । तो तुम बच्चे अभी स्थापनाये कर रहे हो । किसकी मत पर? श्रीमत पर, भगवान की मत पर । भगवान है निराकार, उनकी मत कैसे मिले? सभी निराकार तो साकार में आकर जरूर पार्ट बजाते हैं । इनको भी साकार में आना पड़े । ऑरगन्स बिगर हम बोल कैसे सकें? जरूर मुझे यहाँ ऑरगन चाहिए और फिर आना भी है पतित दुनिया में ही । आ करके मुझे 'बाबा' कहते हैं जरूर, ऐसे नहीं कि नहीं कहते हैं । हमारा नाम बहुत अच्छा नामीग्रामी है शिवबाबा । शिव के पास जाएँगे तो हमेशा कहेंगे- शिव भोला भण्डारी बाबा । अभी उन बिचारों ने भूल कर दी है- शिव-शंकर और महादेव तीन चित्र इकट्‌ठे बनाय दिए हैं ।.. चित्रों के भी तो जंजीरों में फँसे हो । कितने चित्र बनाए हैं! अरे, बात मत पूछो । जैसे बच्चियाँ बैठ करके भिन्न-भिन्न प्रकार की गुडियाँ बनाती हैं ना, फिर खलास कर देती हैं । कितने चित्र बनाए हैं । बाप ने बैठकर समझाया है मीठे लाडले बच्चे, एक तो है ही निराकार परमपिता परमात्मा, जिनका यादगार है । यादगार की तरफ भी तो जाना चाहिए ना और फिर उनका आक्युपेशन जानना चाहिए, जीवन जानना चाहिए । बरोबर अभी शिवबाबा बैठ करके एक-एक का जीवन स्पष्ट रीति से बताते हैं कि बच्चे तुम जानते हो कि भारतवासी सबसे ऊँचा निराकार शिव को रखेंगे, उनको परमात्मा कहेंगे, सूक्ष्मवतनवासी देवताओं को ब्रह्मा-विष्णु-शंकर कहेंगे, मनुष्य सृष्टि को मनुष्य कहेंगे । सिर्फ फर्क क्या हो गया है- वो है देवी-देवताओं का धर्म और वो है देवी-देवता । वो हैं तीन, ये देवी-देवताऐ बहुत हैं । 33 करोड देवताएँ हैं और वो हैं सूक्ष्मवतनवासी ब्रह्मा विष्णु शंकर , जिन्हों द्वारा बाप कहते हैं- मैं अभी ब्रह्मा द्वारा स्थापना करा रहा हूँ और फिर जब स्थापनायें पूरी हो जाएगी तब विनाश भी शुरू हो जावेगा) । लड़ाई तो है ही सामने, देखते हो बरोबर । यादव भी हैं, कौरव भी है, पांडव भी है । कौरव और पांडव दो भाइयों ने इकट्‌ठे जन्म लिया है, क्योंकि जब बापू जी ने काँग्रेस स्थापना किया, उसी समय में इसने फाउंडेशन लगाया । फर्क नहीं रहा है । काँग्रेस पहले नहीं थी, पीछे जब उनसे राज्य ले लिया तब काँग्रेस राज्य स्थापन हो गया । उनको ही शास्त्र में कहा गया है-कुरु । कुरू संस्कृत का अक्षर है , 'कौरव हिन्दी अक्षर, 'काँग्रेस अंग्रेजी अक्षर । काँग्रेस को और कोई अक्षर. .नहीं, अंग्रेजी अक्षर है ना । उनका और अक्षर कहाँ  हैं, क्योंकि सिर्फ कॉग्रेस- कॉग्रेस करते हैं । वो तो इंगलिश अक्षर है न । कोई हिन्दी अक्षर भी नहीं है । उनका असल अक्षर है ही कौरव और पांडव । कौरवों को 'कुरु कहा गया है और है भी फिर प्रजा का प्रजा पर राज्य । ऐसे नहीं इनको कोई ताज है । वास्तव में पांडवों को कोई राज्य नहीं है, न उनको राज्य है, वो है प्रजा का प्रजा पर राज्य यानी पंचायती राज्य । पंचायतें बनी हुई हैं ना । ठीक से पंच न चला और निकला, दूसरा पंच लगाय दिया । बाप बैठ करके अच्छी तरह से समझाते हैं, अक्षर भी हूबहू समझाते हैं । अक्षर ऐसे ही हैं जैसे कल्प पहले समझाया था । कोई शास्त्रों का रिफरेन्स नहीं देते हैं । बोलते हैं- बच्चे, जैसे 5000 वर्ष पहले मैंने तुमको जो कुछ समझाया था, जो आगे भी समझाया वो ड्रामा अनुसार मैं रिपीट करता हूँ । अभी भी 5000 वर्ष पहले जो आज समझाया था, मैं वो ही तुमको फिर से रिपीट करता हूँ क्योंकि ड्रामा मेरे से रिपीट कराय करा है । अभी तू समझा! क्योंकि रिपीटेशन है ना । दूसरा तो कोई इन बातों को समझे नहीं । बच्चों को समझाते हैं । तुम बच्चों को जास्ती तकलीफ नहीं देता हूँ । सब नंबरवार पुरुषार्थ अनुसार हो, इसलिए देखने के लिए, कौन तीखे पुरुषार्थी हैं? कौन बाबा की भाषा लिख सकते हैं? क्योंकि अबलाएं बिचारी बहुत हैं । ना अक्षर जानती हैं, न फलाना जानती हैं व अबलाएँ, गणिकाएँ, अहिल्याएँ वो श्लोक कैसे समझेंगी, जिसका फिर अर्थ करते-करते सबको मुसीबत आ गई है? कोई पूरा अर्थ नहीं निकाल सकते हैं । देखो! संस्कृत में 18 अध्याय के श्लोक हैं और उनकी टीका करने के लिए कोई की बुद्धि में बैठता नहीं है । आज फलाने ने) टीका किया, आज रामराज ने टीका किया, ज्ञानेश्वर ने टीका किया । सब टीका करते रहते हैं, किसके बुद्धि में बैठता ही नहीं है । टीका करते, गीताएँ बहुत बनाते ही जाते हैं । क्यों? दूसरा कोई चीज जास्ती नहीं बनाते हैं, इनमें क्यों मूंझ मरे हो? कह देते हैं कि कृष्ण भगवानुवाच । सब मूंझ पड़े । यह तो हो नहीं सकता है ना । शिव भगवानुवाच होता तो समझते कि बरोबर परमपिता परमात्मा बिगर. पतित को पावन कौन करे? स्वर्ग की स्थापना कौन करे? अभी कृष्ण के नाम पर कोई को भी विश्वास नहीं आएगा; इसलिए मानते ही नहीं हैं । बस, गीता की टीका करते रहते हैं, समझते कुछ नहीं हैं । नहीं तो टीका करना होता है, भई इसकी टीका ठीक नहीं है, टैगोर की टीका ठीक नहीं है । अभी राधाकृष्ण का करते हैं. आज फलाना करते है । दिन-प्रतिदिन कोई न कोई की नई-नई टीकाएँ निकलती जाती हैं । सब बैठ करके पढ़ने का तो नहीं है । देखते है कि बहुत गीताओं के श्लोकों का अर्थ बैठ करके समझ नहीं सकते है, भला झूठे श्लोक । उन श्लोकों में कोई थोड़ा-थोड़ा सत्य है । इस बाप की कहते हैं प्राय: थोड़ा, 5 परसेन्ट भी सत्य नहीं है; क्योंकि निशान तो चाहिए ना । निशानी देवताओं की भी है, धर्म है । फिर कोई से पूछें- देवी-देवता धर्म का शास्त्र कहाँ? क्योंकि फलाने-फलाने सभी ग्रंथ वगैरह बनाय दिए । देवी-देवता धर्म का शास्त्र कहाँ ? तो उन्होंने बैठ करके एक गपोड़े लगाय करके कुछ न कुछ बनाया है, क्योंकि आगे बाप ने समझाया, आगे जो ऋषि-मुनि थे, कुछ बुद्धिवान थे, बुद्धि उनकी सतोप्रधान थी । तो उन्होंने खयाल करके कुछ बनाया है और फिर भी ऐसे ही बनाएँगे, दूसरे कोई नहीं बनाएँगे । फिर भी वही गीताएं वही भागवत । अभी भागवत की कोई दरकार है नहीं । क्राइस्ट का बाईबल एक है, इस्लामियों का वो शास्त्र एक है । मुसलमानों का कुरान एक है । सबका एक ही है । उनका कोई दूसरा जीवन कहानी है नहीं । एक-एक धर्म स्थापन करने वाले का एक ही शास्त्र । यहाँ तो देखो, कितने बना दिए हैं-गीता, फिर भागवत, फिर महाभारत । महाभारत में भी सारी झूठ । बिल्कुल ही सफेद झूठ । युद्ध के मैदान में बैठ करके ज्ञान दे रहे हैं । ज्ञान एकांत में दिया जाता है या युद्ध के मैदान में? सो भी घोड़े-गाड़ी के ऊपर! अभी घोड़े-गाड़ियाँ हैं ही कहाँ! सो भी क्या शौक पड़ा था उनको, जो बैठ करके चार सफेद घोड़ों की गाड़ी बनाई? चार घोड़ों की गाड़ी थी राजाओं के पास; क्योंकि वो देखा है ना-कृष्ण घोड़े-गाड़ी के ऊपर सवार होते हैं । तो राजाओं को बहुत घोड़े गाड़ी में ही दिखाते थे; क्योंकि कृष्ण को भी तो राजा मानते हैं ना । उनके ऊपर छत्र है ना । तुम सभी गपोड़े बिल्कुल ही गपोड़े बाप आकर समझाते हैं । अभी सुनते हो । है ना गपोड़े- अभी कोई सुनेगे-यह भला कौन, कहाँ से आया । जो समझते हैं तो बोलते हैं ये तो दादा है, सिंध का दादा है । यह तो जवाहरी था । अभी है कौन, किसको पता नहीं पड़ता है । शास्त्रों में तो कोई ऐसी बात है नहीं । बरोबर ब्रह्मा विष्णु शंकर  हैं जरूर, पर ब्रह्मा यहाँ कहाँ से आया ? प्रजापिता ब्रह्मा तो सूक्ष्मवतन में है! अरे, पर बच्चे जब ब्राहमण कहते हैं, ब्रह्मा द्वारा हम ब्राहमण रचे जाते हैं, तो वो ब्रह्मा यहाँ ही होगा या ब्राहमण सूक्ष्मवतन में ऊपर से जन्म ले करके यहाँ गिर पड़े? ऐसे तो नहीं हुआ होगा ना । ब्रह्मा अगर ऊपर में है और ब्रह्मा के मुख द्वारा ब्राहमण रचे गए तो क्या ये सभी आ करके गिर पड़े? यह भी तो नहीं हो सकता है । जरूर यहाँ की बात है और उसके सिवाय यहाँ यादगार है सब ब्रह्मा विष्णु शंकर का । बाप बैठ करके मीठे बच्चे को समझाते हैं और इतना सहज करके प्यार से समझाते हैं । और मूंझते हैं फिर जो कहा जाता है तुम मात पिता हम बालक तेरे, अभी अगर शिवबाबा आ करके ब्रह्मा के तन में बच्चों को पढ़ाते हैं । अरे, वो तो शिवबाबा है । यह क्यों गाया जाता है कि 'मात-पिता, हम बालक तेरे'? शिव हो गया बाबा । बाबा से पहले मम्मा जरूर चाहिए । मम्मा चाहिए ना बाबा के पहले । बच्चा कहाँ से पैदा हो । भला कहाँ से आ जावे । मम्मा जरूर चाहिए । कितनी वण्डरफुल बात है । सब अच्छी तरह से समझने की बुद्धि चाहिए ना । 'तुम मात-पिता, हम बालक तेरे' अभी और किसको नहीं कह सकें । लक्ष्मी नारायण को कह न सकें सतयुग का पहला नम्बर, जिनको सुख घनेरे हैं । उनके तो बच्चे तख्त पर बैठने वाले, के उनको मात-पिता कह सकते हैं और यहाँ तो ये सब जा करके मंदिर में कहते हैं)- 'तुम मात-पिता, हम बालक तेरे, तुम्हरी कृपा ते सुख घनेरे उनकी बैठ करके महिमा करते हैं । अरे, महिमा भी वण्डरफुल है- 'अच्युतं केशवं श्री राम नारायण, कृष्ण दामोदरं श्रीवासुदेवम हरिम श्रीधर माधव-श्री गोपिका वल्लभ श्री जानकी नायकम श्रीरामचंद्र हर भजे । अर्थ क्या? इन सब बातों का कोई अर्थ है? वण्डरफुल है । बस, जो कोई ने बैठ करके बनाया । आरती भी करेंगे जगदम्बा की और शिव की । तो क्या-क्या उनको सबको मिला ही देते हैं । बाप बैठ करके बच्चों को समझाते हैं- ये सब भक्तिमार्ग की अनेक क्रियाएँ हैं । कर्म-अकर्म क्रिया । बाप ने आ करके पाठशाला खोली कि मैं बैठ करके तुमको मनुष्य से देवता बनाता हूँ । इन नर से नारायण बनाता हूँ । ऐसे ही, जैसे बैठ करके नर को बैरिस्टर बनाते हैं, नारी को बैरिस्टर बनाते हैं ना । आजकल वो भी तो फैशन हो गया है ना । आगे नहीं बनती थीं । बाप भी कहते हैं- बच्चे, मैं आ करके तुमको नर से नारायण अर्थात् देवता और नारी से श्री लक्ष्मी बनाता हूँ जो तुम्हारा एम-ऑबजेक्ट है और तुमको बैठ करके पढ़ाता हूँ । तो हो गई पाठशाला । इसको सतसंग थोड़े ही कहा जाता है । इसको पाठशाला, गीता-पाठशाला कहेंगे । अभी वेद पाठशाला कभी नहीं कह सकेंगे, उपनिषद पाठशाला कभी कह नहीं सकेंगे; क्योंकि एम एंड ओब्जेंक्ट कोई है नहीं । नहीं तो कोई जाओ । बाप कहते हैं बच्चों को कोई हर्जा थोड़े ही है, तुमको मना थोड़े ही है । वहां जा करके वो वेद जो सुनाते है, जिनकी महिमा करते है, वो वेद इस गीता के पत्ते है । ऐसे कहा जाता है कि वास्तव में गीता है सर्वशास्त्रमई शिरोमणि भगवद्‌गीता । नम्बर वन शास्त्र । यह तो समझना चाहिए, बाप की सब है क्रियेशन बच्चे । तो बच्चों से क्या सुख मिलेगा? जैसे उन बच्चों से वर्सा नहीं मिल सकेगा ना! क्योंकि ये सभी है क्रियेशन बाप है एक । क्रियेशन से, भाई-बहनों से थोड़े ही वर्सा मिलता है । वैसे वास्तव में वर्सा मिलता है श्रीमद्‌भगवद्‌गीता से । बाकी हैं उनके बच्चे । उनसे क्या वर्सा मिलेगा! फिर भी तो गीता चाहिए तब वर्सा मिले । समझा ना । बाप मिलते हैं रचता से, न कि रचना वो हो गये भाई बहन । भाई को भाई से वर्सा नहीं मिल सकता है, बाप से वर्सा मिलता है । यह है बेहद का बाप और गीता है बेहद का शास्त्र । वो सब शास्त्रों का माई-बाप है । माई-बाप से वर्सा मिलेगा या उनके पीछे जो भिन्न-भिन्न शास्त्र निकले हैं उनसे वर्सा मिल सकता है? इसलिए देखो, कोई को भी गीता से कुछ भी वर्सा नहीं मिलता है; क्योंकि झूठी है और अगर झूठी कोई न कहे, सच्ची है तो फिर राजा बन जाए । जो दूसरे शास्त्र हैं के सभी है उनके बाल-बच्चे । बाप आकर गीता सुनाएँगे, और कोई सुना थोड़े ही सकते हैं! नहीं । जन्म-जन्मांतर संस्कार ले जाते हैं ना । इनका संस्कार था-छोटे पन से गीता पढ़ते थे, गीता बिगर बात नहीं करते थे । संस्कार ले आए थे गीता पढ़ने के, तब तो गीता को पकड़ लिया था, उठा रहे थे । संस्कार ले आए थे लक्ष्मी नारायण की पूजा करने के, तो फिर लक्ष्मी नारायण की ही पूजा कर संस्कार तो आत्माएँ ले आती है ना । सरकार आत्मा में बड़े तीखे । कोई पण्डित, बड़ा विद्वान शरीर छोड़ते है, दूसरे जन्म में छोटे पन से उनके संस्कार ऐसे होते हैं, जो विद्युत-मण्डली में पढ़ने जाएगा, तो फट-फट झट पढ़ने लगेगा और छोटेपन में ही जल्दी-जल्दी बताते रहेंगे । बोलेंगे- वाह! यह तो छोटेपन में ही जैसे कि पढ़ करके ही आए हैं । तो उनको संस्कार कहेंगे । अभी तुम्हारे मे दैवी गुणों के सरकार भरे जाते हैं । तुम जानते हो कि अभी हमको ऐसा बनना है । फिर पूछेंगे ना- क्या तुम प्याज खाते हैं? अगर तुम यह बनते हो तो वहाँ जा करके प्याज खाना छोडेंगे या यहाँ छोड़ना होगा? वहाँ थोड़े ही जाकर छोड़ना होगा, वहाँ तो धर्म की स्थापना नहीं होती है । ये जो भी अशुद्ध खान- पान है सब कुछ यहाँ बच्चों को छोड़ना पड़े । जैसा खाएगा ऐसा बनेगा । इस समय में तमोगुण है ना । बात मत पूछो, सब खा जाते है । एरोप्लेन में एक घोड़ा मरा, सो भी मुन्सिपालिटी को दिया, तो सोचा इनका माँस बेच करके पैसा पैदा करूँ । तुम पढ़ते नहीं हो अखबार, बाबा अखबार भी पढ़ते हैं । कोई पूछेगा-वाह! ये अखबारें क्यों पढ़ते है? ये तो जैसे मनुष्य हैं, ऐसे मनुष्य अखबार पढ़ते हैं । नहीं, बाबा कैसे समझावे! तो बाबा समझाते हैं- घोड़ा एरोप्लेन में मरा, एरोप्लैन में उनको कोई शूट किया, तुम लोग अखबार तो नहीं पढ़ते हो ना । रेस के घोड़े आजकल एरोप्लेन की सवारी करते हैं । घोड़े जनावर हैं । तुमको तो एरोप्लैन मे भी नहीं चढने देते, कुत्ते-बिल्ले-बदर-पक्षी, सब एरोप्लैन मे सवारी करते है । कोई 20 घोड़े ले आए थे, एक घोड़ा बहुत छ्रिटा हो गया । मस्त घोड़े होते हैं ना । देखा, अगर यह टिक-टाक करेंगे तो एरोप्लैन ही गिर जाएगा; क्योंकि सब घोड़े आ करके मस्ती करेंगे । बहुत मत्था मारा, वह बाज न आया । फिर वहाँ जो बड़े होते हैं, उन्होंने बोला- भई, इनको तो यहीं शूट करना चाहिए । तो चलो शूट कर दिया । जब नीचे आया, तो इतना बड़ा घोड़ा दरवाजे से नहीं निकले । लिखा हुआ है, जो बाप बताते हैं । लिखा हुआ है- निकले कैसे एरोप्लैन से, जो दूसरे भी घोड़े निकलें । दरवाजा बंद हो गया, घोड़े कैसे निकलें! तो बूचर्स को, कसाइयों को बुलाया । उन्होंने बहुत पैसा माँगा कि हमको इतना पैसा चाहिए । टाइम पर तो सब कोई अपना मॉगता है ना । बाबा जब पाकिस्तान से आए थे, मजदूरों को बोला- उठाओ यह सामान, उन्होने बोला-) हम 4000 रुपया लेंगे । 4000 क्यो माँगा? अब हम क्या करें? स्टीमर जा रहा है! अभी तो उनको चान्स मिल गया । फिर 400 सौ में फैसला हुआ । उन्होंने जो बोला नहीं, तो फिर वो खुद ले करके कुटारी काटने लगे, काट करके उनको निकाला तब वो दूसरे भी घोड़े निकले । वो सब सामान मुन्सीपालिटी को दिया, इनको जा करके बेचो । खाते हैं ना सब कुछ । तो मालूम है बच्चे जब बड़ी-बड़ी लड़ाई होती है तो ये घोड़े आदि वाले सभी बाँध हो जाते हैं घोटे में पड़े रहते हैं । फिर भूख लगती है तो क्या खावें! तो घोड़े आदि सब काट करके वहीं पका करके खा जाते हैं, क्योंकि पहले तो अपना शरीर होता है ना । वैल्युएबुल है ना । देखो, जब भुखहर पड़ती है तो जीने के लिए घास भी खाने लग पड़ते हैं । तुम लोग इतना पढ़े-लिखे नहीं हो, न कोई अखबारें देखते हो । बाबा तो सब कुछ देखता है, जाँच करता है । अब बड़े- मनुष्य खाएँगे यह । आजकल पैसे से चीज मिलती है, बहुत महँगी चीज हो जाती है । तो वो समझते है- रेस का घोडा इनकी इटेलेक्ट बहुत अच्छी होगी, इनका सब कुछ, इनको खान-पान बहुत अच्छा मिलता है, इनमें तो बहुत स्वाद होगा । वो जो दो रुपये, चार रुपये सेर मिलता होगा ना, वो 25 रुपये, 50 रुपये सेर में बेचते हैं । पैसे तो बिलायत वालों के पास और जो भी ऑफिसर्स मिनिस्टर्स वगैरह है बहुत होते हैं न अरे! बात मत पूछो । वो जो पैसा कमाते हैं, बात मत पूछो । एक केस किया, लाख रुपया मिला । जज ने एक केस का सुनवाई कर दिया लाख रुपया । यह सब बाबा को अनुभव है । मैं थोड़ा बताता हूँ- एक दफे कलकत्ता में आ करके मुसलमान और पठानों का फसाद मचा । मारवाड्रों ने गवर्नर को फोन किया कि हम मारे जाते है, जल्दी हमारी मदद करो, कोई भेज दो, नहीं तो यह पठान हमको मार देगा । उसने बोला-हाँ-हाँ, हम सेक्रेटरी भेज देते हैं । सेक्रेटरी आया, बोलता है-हमको 10 लाख रुपया दो, देखो बाबा को यह सब मालूम पड़ता है उनके ऑफिसरो से । बाबा का उन लोगों के साथ बहुत व्यवहार था । 10 लाख रुपया जब दिया तब उसने आदमी भेजा और इतने में बिचारा आधा तो खत्म ही हो गया । यह रिश्वत कोई अभी की थोड़े ही है । यह तो बीमारी चली आ रही है । दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जाती है । यह जो कमाते है, अरे बात मत पूछो । एक ओवर शेअर होगा और पटवारी होगा । उनको तलब सौ रुपया, सौ रुपया तो क्या, हजार रुपया क्या, दो हजार कमाते हैं । यह तो बस रिश्वत ही रिश्वत है । करप्शन ही करप्शन है । एडल्टरेशन(मिलावट) ही एडल्टरेशन है । फिर बाप बैठ करके समझाते हैं- अरे देखो, शास्त्रों मे कितना एडल्टरेशन झूठ बताई है । अरे, उसमे सो भी हमारी, हमने कोई गीता तो बनाई नहीं है । मैं जानता हूँ कि गीता बनाया है इन मनुष्यों ने और लिखा है सभी झूठ । देखो, कितना एडल्टरेशन नंबरवन एडल्टरेशन सो भी शिव भगवानुवाच, रुद्र ज्ञान यज्ञ । इसको तो ऐसे नहीं कहेंगे-कृष्ण ज्ञान यज्ञ । रुद्र ज्ञान यज्ञ से यह ज्वाला प्रज्वलित हुई और वहाँ कहाँ लिखा हुआ है कि कृष्ण की गीता से ज्वाला प्रज्वलित हुई! महाभारत की तो बात है; परन्तु कृष्ण का तो नाम नहीं हुआ ना, रुद्र हुआ ना । फिर भला कृष्ण का नाम क्यों रख दिया, जब अक्षर है उनमें-रुद्र ज्ञान यज्ञ, इनसे यह ज्वाला प्रज्वलित हुई, मैं राजयोग सिखलाता हूँ? मैं राजयोग सिखलाता हूँ यह लिखा है तो यह राजयोग कौन सिखलाएगा? स्वर्ग का मालिक सिखलाएगा ना! यहाँ कोई राजाई है नहीं । यहाँ कौन-सा राजा? बच्चे, कृष्ण कहाँ से आया, जो आ करके राजयोग सिखलाते हैं? कृष्ण भी अगर कोई राजा होता है तो उनको राजधानी सम्भालने के लिए अपना एक बच्चा या बच्ची चाहिए । मैं बैठ करके राजाओं का राजा बनाता हूँ सो कितने राजाएँ बनाते हो! अरे, 108, मेरे बच्चे 16108-प्रिंस एण्ड प्रिंसेस । अभी यह बात देखो कहाँ की कहाँ जाकर उड़ाय दी है! अभी तलक बाप के सामने यह सब कर रहे हैं और बिचारा न जानने के कारण कि इनमें वो कोई आया हुआ है, सचमुच वो आ ही नहीं सकते । ये सिर्फ अपन को झूठा कृष्ण बताते हैं । है कहाँ? ऐसे-ऐसे कहते रहते है । फिर उनके ऊपर दोष नहीं है, क्योंकि वो बिचारे जानते ही नहीं हैं-ऐसा कभी होता या भगवान ऐसे आते हैं । है जरूर कि गइया चराई । भगवान आ करके गइया चराएंगे! तो सचमुच उस भगवान को, जो गीता का भगवान है, उनको गइया दे करके, एक भील का पटका बाँध करके, लाठी दे करके, बोलो तो हम तुम लोगो के पास चित्र भेज देवें । बिचारा लाठी ले करके, गइया रख करके पटका बाँध करके, बताया-श्री कृष्ण ने गइया चराई गोकुल में । गाँव का नाम गोकुल रख दिया और उसमे गइया चराई और भील बनाय दिया । मेरे पास चित्र है, मैं वण्डर खाता हूँ । बोलता हूँ-अरे बच्चे, तुमको ये भारतवासियों ने भील बनाय दिया है, देखो! हॅसी-कुडी बच्चों के आगे करता है । कहाँ क्या किया है, राधे-कृष्ण के और कृष्ण के चित्र ऐसे बनाए हैं, बात मत पूछो और बात में पाई भी सच्चाई नहीं है । झूट साफ़ सब झूठ । बाप आ करके बताते हैं यह समय ही ऐसे है, झूठखण्ड । गुरुनानक भी कहते है कि सचखण्ड का स्थापन करने वाला, ऊँचा जिनका नाम, ऊँचा जिनका धाम, तो उनकी महिमा करते है । उनको ही याद करने के लिए कहते हैं । उनकी महिमा करते हैं । तुम उनको याद करो जिन्होंने देवी-देवता धर्म स्थापन किया था, मनुष्य से देवता बनाया था, पतित को पावन बनाया था, मूत पलीती कपड़ धोये थे, यह नंबरवन धोबी था । गुरुनानक ने तो उनको धोबी भी बनाय दिया कि मृत पलीती कपड़ धोने वाला है, परन्तु यह तो बेहद की बात है ना । तुम जानते हो कि बरोबर बेहद के ये मूत पलीती कपड़, ये धोने की तो बात नहीं है ना । ये यहाँ पावन बनाने की युक्तियों है, जो बैठ करके बच्चों को समझाते हैं कि मेरे मीठे लाडले बच्चे, सिकीलधे बच्चे, बिलवेड मोस्ट बच्चे । अभी है जरूर रुद्रमाला । तो जरूर बिलवेड मोस्ट हुए । उसमें फिर नंबरवार बिलवेड मोस्ट फिर कहते हैं-आठ बिलवेड मोस्ट है । 100 उनसे कम हैं, 16100 उनसे कम । है ना ऐसी माला! इसका भी तो अर्थ समझाया जाता है ना । बच्चे हैं बेशक । 8 रत्न मनुष्य बहुत कानों में यहॉ-यहाँ बनाते है । क्यों? वो तो ग्रहचारी की बताय देते हैं । नहीं तो अर्थ तो ये है ना । 8 पास वि द ऑनर होते हैं फिर 100 कुछ न कुछ कम । फिर तो बहुत ही होते हैं । त्रेता के अंत तक इतनी सारी मालाएँ क्यों होती हैं? क्यों इसका इतना नाम है? सब बाबा को इस सृष्टि को सेल्वेज करने में या इनको फिर बेड़ा पार करने में मदद देते हैं । अभी समझा । अच्छा, अभी पौने आठ, आज सोमवार है । नौकरी पर जाना होगा । टोली बाँटो बच्ची। पहले तो देखो, बरोबर यादव हैं । मूसल होगा तो जरूर गीता का भगवान होना चाहिए ना । महाभारत की लड़ाई होनी चाहिए, तो भगवान होना चाहिए; पर भगवान कौन है, वो बिचारे कुछ जानते नहीं । कभी-कभी कहते हैं यह तो वही महाभारत की लड़ाई है । अरे भई, वो महाभारत की लड़ाई कब? वो भी कहते हैं- 5000 वर्ष हुआ । जब ऐसी बात है तो फिर तुम लोग इतना लाखों वर्ष सतयुग को क्यों ले जाते हैं ? क्यों ले जाते हैं क्योंकि ये द्वापर में ले गए । अच्छा, द्वापर में भी ले गए, तो भी एकदम इतना लम्बे क्यों ले गए? हिसाब-किताब तो ठीक है ना । जगन्नाथपुरी है, वहाँ हण्डा रखते हैं । चावल का हण्डा पकाते हैं । फिर जब पक जाता है, तो उसमें 4 हिस्से हो जाते हैं । वो सिद्ध करते हैं  कि इस सृष्टि के चार युग मुख्य है और एक जो संगमयुग है उसको कहा जाता है 'धर्मादायुग' । उसको अंग्रेजी में कहा जाता है लीपयुग यानी बहुत छोटा । सो बरोबर देखते हो ये बड़ा है । यह सबसे छोटी है, क्योंकि थोड़े मनुष्य होंगे ना । अच्छा, यह थोड़ा बड़ा देवताएँ जरूर उनसे जास्ती कोई होगा; क्योकि ये वहाँ जाते हैं । फिर क्षत्रिय यह तो बहुत बड़ा हो गया । फिर शूद्र तो और बड़ा, टॉगे तो लम्बी है । जरूर शूद्र बहुत होंगे । तो यह भी शरीर से वर्णों को दिखलाते हैं और वर्ण तो भारत में ही दिखलाते हैं । देवता वर्ण, क्षत्रिय वर्ण, वैश्य वर्ण, शूद्र वर्ण । यह तो सब बताते हैं, 84 जन्म किस वर्ण में यह चक्कर खाते हैं, वो भी तो बता देते हैं । सिर्फ ब्राहमण वर्ण भूल गए है । ब्राहमण वर्ण उनको मालूम पड़े कि वो जनक ब्रह्मा द्वारा तो सृष्टि रची जाती है, सो तो जरूर ब्राहमणों की होगी । फिर उन ब्राहमणों को पढ़ाया जाता है, तब वो ब्राहमण देवता बनते हैं । ज्ञान का तीसरा नेत्र ब्राहमणों का खुलता है । सो बाप ने बहुत अच्छी तरह से समझाया कि बच्चे, देवताओं का कोई भी चित्र अथवा चिहन है नहीं । कृष्ण का क्या चित्र रखा, भला देखो । माँ के गर्भ से निकला है । उनको कहाँ है? कुछ भी नहीं है । यह स्वदर्शनचक्र कहाँ  से लाया भला यह बताओ कोई! यह तो माँ का बच्चा है । वो पार हो गया । गीता का भगवान पार हो गया । पार तो हम-तुम हुए । सरस्वती नदी को पार किया था ना । वो कंस-जरासंधी ने दु:ख दिया । हमारे लाखा भवन को आग लगाने लगे । आग लगाई थी ना । हैं न, लाख भवन को आग लगाईं । किसने? कौरवों ने । पांडवों के । तो बरोबर पांडवों के बाबा का भवन था, घासलेट ले आए थे; परन्तु उसमें बाबा था नहीं । जब यह खाक होता था, तो बाबा वहाँ नहीं रहता था ।  बाबा इनको सोया छोड़ करके रात को ही चले जाते थे । सुबह होकर, ''कहाँ गया-कहाँ गया' ढूँढ़े छितर-भीतर ढूँढे बाबा थे ही नहीं । बाबा इनमे था ना । यह बाबा को भगाय करके ले जाता था वहाँ रात को । कोई को पता नहीं एकदम । 12 बजे रात में ट्रेनें गया । देखो, नदी पार किया है ना । अभी है जरी सी बातें, पर उल्टी । कृष्ण को पार गया, फिर डूबता था । कृष्ण का पैर धरा, तो वो गंगा नीचे चली गई-ऐसे-ऐसे बात करते हैं । कितने गपोड़े हैं । अच्छा, टोली कहाँ है? अरे, ये क्या चुप होकर बैठे हैं! ऑफिसों में जाना होगा । सो फिर जो दूसरे हैं वो नहीं सुन पाया । ऐसे हो जाता है ना । तो भला स्कूल में अगर यह पॉइंट्स न सुनेंगे, किसको वर्णन करके कैसे समझाएँगे कैसे सुनाएँगे? तो वो है इररेग्युलर । भले कहते हैं कर्मबन्धन है; पर इस समय में तो कोई कर्मबंधन की बात ही नहीं । बाबा तो झट छोड़ देते है और यह पढ़ाई है । बाप कहते हैं- मैं इतना दूर परमधाम से आता हूँ जो कोई वहाँ जा ही न सके । जब तलक तुमको पर न आये, क्योंकि जटाय रूपी माया ने तुम्हारा पर काट दिया । सीता का पर नहीं काटा है । है सीता का पर, यानी आत्माओं का पर काट लिया है । कोई शरीर का पर नहीं काटा है, आत्मा का पर काटा हुआ है माया ने । तो उड़ नहीं सकती है । अभी देखो, सब मच्छरों के मुआफिक उड़कर चली जाएँगी, क्योंकि पवित्र बनने बिगर वापस तो कोई जा न सके । यह होलिका जो बनाते है ना तो बाबा बोलते हैं कि बरोबर आत्मा अमर हो चली जाएगी, होलिका तो होनी है । आत्मा चली जाएगी, शरीर यहाँ भस्म हो जाएँगे । खेल भी बड़ा अच्छा है, परन्तु समझते कोई नहीं । आगे तो हम लोग भी ऐसे ही करते थे । जो रेग्यूलर नहीं सुनते है वो कभी उठाय नहीं सकेंगे, ये बिचारे पास न हो जाएँगे । सो भी कहता हूँ- ड्रामा । बाकी बच्चों को बाप जैसा रहमदिल बनना चाहिए । बहुत सर्विस करनी चाहिए, नहीं तो इतना बड़ा बाप, कितना बड़ा! और देखो, किनके सामने बैठे होते हैं- अबलाएँ, गणिकाएँ, कुब्जाएँ माताएँ, फलाने । देखो, किस शरीर में बैठते हैं, कहाँ बैठ करके पढ़ाते हैं! और बाप कहते हैं-हूबहू 5000 वर्ष पहले जो कुछ मैं समझाता हूँ वो ड्रामा अनुसार मेरी आत्मा में नूंध है और बाकी जो कहते है- सर्वशक्तिवान है, भगवान क्या भी कर सकते हैं, भगवान अगर चाहे तो अभी लड़ाई लगाय देवे आदि-आदि । भगवान का ड्रामा है और यह बात तुम कैसे करते हो! ड्रामा का भी तो क्रियेटर का पार्ट होता है ना । जो भी फिल्म हैं, उनमे अच्छे-अच्छे जो हैं उन सबका पार्ट होता है । तो बाबा है सबसे नंबरवन एक्टर । उनको राझू रमझबाज कहा जाता है । उसका है सबसे फर्स्ट क्लास पार्ट, फिर उनके साथ है तुम हीरो एण्ड हिरोइन का पार्ट । उनको हीरो एण्ड हिरोइन नहीं कहेंगे । तुमको हीरो एण्ड हिरोइन यानी यथा माता-पिता तथा बच्चा; क्योंकि सब हीरो-हिरोइन के बच्चे हो गए ना । तो तुम्हारा इस ड्रामा में सबसे बड़ा पार्ट है- हारना और जीतना । हीरो-हिरोइन कहा जाता है, जबकि किसके ऊपर विजय पहनें तो हीरो कहें । तो हम-तुम, सभी बच्चे, अभी राजा-रानी तो नहीं सिर्फ लड़ाई के मैदान में आते हैं, तुम बच्चे भी हो । तुम हीरो एण्ड हिरोइन के बच्चे हो । तुम युद्ध करते हो और माया से जीत पहनते हो, जैसे मम्मा-बाबा तैसे तुम । तुम भारतवासियों का इस सारे ड्रामा में हीरो एण्ड हिरोइन का पार्ट है । और कोई का भी नहीं; क्योकि तुम हार भी खाते हो और जीत भी पहनते हो । क्या हार खाते हो? राजाई गंवाते हो । फिर तुमको राजाई चाहिए; परन्तु कैसे राजाई लेते हो, यह है वण्डर! उनको कहते है बाहुबल वाले इनको कहते हैं योगबल वाले । इसको कहा जाता है अहिंसा परमो देवी देवता धर्मी । अहिंसा से परमो देवी-देवता धर्म की स्थापना होती है । अहिंसा दो प्रकार की-एक काम-कटारी की, जो सबसे बुरी एकदम और दूसरी फिर कहते हैं गला काटना । इसका नाम ही है 'अहिंसा परमो देवी-देवता धर्म' । भले अब समझते होंगे, फिर भी बैठे हैं कुछ न कुछ झोली ले करके । बाकी तो देखते है स्त्री को तो, झट एक स्त्री गई, दूसरी, दूसरी गई, तीसरी, तीसरी गई, चौथी । है ना! ऐसे बहुत हैं । 10-10 बच्चा है, तो भी फिर शादी करते हैं । बाबा के पास एक आता है वहाँ 14 बच्चा जो अभी ले आते हैं । बोलते हैं - यह क्या है, ये कौन हैं, किसके बच्चे हैं? यह सब हमारे बच्चे है, बड़ा खुश होता है । चौदह! उसकी नई स्त्री भी आती है । मात-पिता का राज़ फिर कल समझाएंगे । तुम मात-पिता, अभी वंडर हो गया है, पिता तो ठीक है, माता कहाँ , जिसको गोद में ले आई, गाली जो खाई हुई है ना । गाली खाने का कोई कारण तो होगा ना । अभी बाप कहते हैं कि मैं ब्रह्मा के मुखकमल से बच्चा पैदा करता हूँ, फिर यह हो पड़ती है माता । अभी शिवबाबा की गोद में ये माता हो गई, मुखवंशावली  हो गई । अब मात-पिता की गोद में जाए कहाँ , माता तो है नहीं । यह तो पिता है । ये तो एकदम बैल है । भले शिवबाबा के गोद में जाते हैं, फिर भी तो बैल है ना । तो ड्रामा में गाली खाना पड़ा ना । यह बाबा जानते है ना कि ये जरूर गाली खाने करने की है । गाली न खाएँगे तो फिर तुम थोड़े ही राज लाएँगे । गाली तो जरूर खाना पड़े ।.. अबलाओं को अत्याचार हुए, परन्तु कितने गुप्त हैं! कितने सारे आर्य समाजियों ने हंगामा मचाया है । बच्चियाँ भी बहुत थीं । एक बच्ची गोद में लिया, बहुत खड़ी हैं । उन्होंने फिर एक शैतानी और कर दी, पहले तो चित्र बनाया था, 2-3 बच्चियां थीं । फिर 2-3 बच्चियों का चित्र निकाल करके एक को गोद में डाल दिया कि यह अकेले में ही गोद में लेता था । यह बैठ करके हँगामा मचाते हैं । समझा! तुम लोगों ने यह चित्र शायद नहीं देखा है । तुमको चित्र दिखलाय सकते हैं । कहाँ से निकला जो फिर इनको हाथ में आया । विध्न जरूर पड़ेंगे । कोई निमित्त तो बनेंगे ना । कल्प पहले मुआफिक यह तो जानते हैं, इनका क्या डर है । बाप कहते है ये एडवर्टाइज्मेंट है तुम्हारी । तुम डरो मत । इस रुद्र ज्ञान यज्ञ में असुरों के विप्न पड़ते हैं । अबलाओं के ऊपर अत्याचार होते हैं । पाप का घड़ा जब पूरा भर जाता है तब फिर विनाश शुरू होने का है । अच्छा, बापदादा, मीठी मम्मा का मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों को यादप्यार और गुडमॉर्निग ।