` 01-10-1963    बम्बई    प्रात: मुरली     साकार बाबा    ओम शांति     मधुबन
 


हेलो, गुड मोर्निंग, हम बम्बई से बोल रहें हैं। आज मंगलवार है सन 1963 अक्टूबर की पहली तारीख है, प्रात: क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं।

रिकार्ड :-

बचपन के दिन भुला न देना..............
ओमशाति । ये जो बाप के बच्चे हैं, ऐसे कहेंगे न बच्चे और बाप कहेंगे तुम जो मेरे बच्चे हो । बच्चों ने अपने बाप को अपने बाप द्वारा जाना है । यह तो बच्चे जानते हैं कि इस सारी सृष्टि में तुम ब्राहमणों के सिवाय ऐसा एक भी मनुष्य नहीं है, सो भी नंबरवार पुरुषार्थ अनुसार, जो अपने पारलौकिक परमप्रिय परमपिता परम-आत्मा को जानता हो । एक भी नहीं, भले कितना भी कोई विद्वान, आचार्य या पंडित हो । फिर भी बाप समझाते हैं । बाबा यह संगमयुग की बात नहीं कहते हैं । ये सतयुग आदि में है देवी-देवता धर्म । उसमें श्री लक्ष्मी नारायण का राज्य बाबा वहाँ से ले करके कहते हैं, जो पूज्य हैं ' क्योंकि ऐसे तो जब किसको मालूम पड़े हैविन जिसको कहा जाता है उसमें कौन राज्य करते हैं तो फिर अपन को उनका समझें । बाप बैठ करके समझाते हैं कि सतयुग के आदि से, श्री लक्ष्मी नारायण से ले करके कलियुग के अंत तक इसको अपन संगमयुग कहते हैं । वो कलहयुग कहते हैं । कौन? इस समय में जो भी दुनिया के मनुष्य मात्र हैं । वो समझते हैं कि कलहयुग तो अभी बच्चा है और 40000 वर्ष चलने वाला है । सिर्फ तुम ब्राहमण जानते हो कि अभी कलहयुग पूरा हो गया है, ये संगमयुग है । कलहयुग की आयु पूरी हो गई, यह संगमयुग है; क्योंकि बाप कहते हैं कि मैं आता हूँ कल्प के संगमयुग पर । तो संगमयुग शुरू हो गया ना, जिसको धर्माऊ युग कहा जाता है । अग्रेजी में ऑस्पिशस युग कहें, वो तुम जानते हो और दुनिया भर में कोई भी मनुष्य नहीं जानते हैं । बाप बैठ करके सबको बोलते हैं कि विचार करो, समझो । है कोई जो अपने बेहद के बाप को जानता हो? क्योंकि वो है रचता । अगर कोई भी अपने बाप को जानता हो तो जरूर उनकी रचना को, सृष्टि के आदि-मध्य-अंत और सृष्टि के आदि-मध्य-अंत की हिस्ट्री और जाग्राफी को सब जानता हो; क्योंकि वो है रचता । रचता तो जरूर, जैसे अब अपने बच्चों को रचना के आदि-मध्य-अंत का नॉलेज सुनाय रहे हैं न । अगर कोई जानता हो तो बताते आवे, परंतु कोई शास्त्र में, कोई वेद में, कोई ग्रंथ में, न कि गीता में सृष्टि के आदि-मध्य-अंत की नॉलेज है, क्योंकि गीता में भी उन्होंने मिक्सचर लगाय दिया है । गीता में लिख दिया है कल्प की आयु फलाना । यह कहाँ से लाया? यह भागवत और गीता से लाया होगा, और कहाँ से लाया होगा! न कोई शास्त्र में, गीता में भी नहीं बोलते हैं । गीता में अगर लिखा हुआ होता, तो गीता तो पढ़ते हैं; परतु गीता में तो कोई को भी मालूम नहीं है कि बाप कौन है जो कृष्ण लगा हुआ है । बाप कौन है कोई नहीं जानते हैं । यानी रचता इन सृष्टि का, कौन है वो भी नहीं जानते हैं । अगर जानता हो तो वो नोट रखो इसमें भी तो जाता है न सबके पास । एक भी नहीं जानते, ये जितने भी विद्वान आचार्य पंडित अपने को श्री-श्री कहलाने वाले अगर जानते हों तो जरूर उनको उस रचता द्वारा ब्रह्माण्ड, जिसमें बाप परम-आत्मा भी रहते हैं और हम सब आत्माएं रहती हैं क्योंकि इस समय में कितनी आत्माएं होंगी यह मालूम है ? कोई 400 करोड़ होंगी सो 500 करोड़ भी शायद हो जाएंगी, जब तलक विनाश हो । अभी यह तो कोई नहीं जानते हैं, जो 500 करोड़ आत्माएँ हैं सो सतयुग में तो नहीं होंगी । सतयुग में होंगी? हो ही नहीं सकती हैं । वहाँ तो बहुत थोड़ी होनी चाहिए । अच्छा, जरूर इनका रहने का स्थान भी तो कहीं होगा, जहॉ परमआत्मा का निवास स्थान होगा । तो परमात्मा लिखो । परमआत्मा, तो हो जाएगा 'परमात्मा । है परम-आत्मा, जैसे तुम्हारी आत्मा, बाप की, वैसी उनकी । वो चीज तो कोई बडी-छोटी होती नहीं है ना । ऐसे मत समझना कि परमात्मा जिसको कहा जाता है, जिसको सुप्रीम सोल कहा जाता है, उनकी सोल कोई लम्बी-चौड़ी होती है । न, उनकी कोई लम्बी-चौड़ी सोल नहीं होती है । उनकी भी वो ही होती है, जो कहा जाता है कि भृकुटी के बीच में चमकता है अजब सितारा, वो ही आत्मा का निवास स्थान, जिसे स्टार कह देते हैं । ऐसी है । जैसा है बाप, वैसे है बच्चा । जैसे उनको कहा जाता है 'परम-आत्मा अर्थात परमधाम में रहने वाली अर्थात ब्रह्माण्ड में रहने वाली । यहाँ हम सब देखो कितने हुए! 400-500 करोड आत्माएँ वहाँ रहती हैं । अच्छा, क्या वहाँ सारी जगह कभी खाली होती है? ना । सारी जगह सिर्फ इस समय में, जबकि अंत होगा । सब आत्माएँ जब यहाँ आ चुकेगी क्योंकि एक्टर्स सभी यहाँ चाहिए ना । जो भी नाटक जब पूरा होता है तो सभी एक्टर्स आकर स्टेज पर खडे रहते हैं । तो अब बाप आया हुआ है और फिर सबको लेकर तब जाएगा, जब सभी एक्टर्स आ चुकेगे । बाबा ने कल भी समझाया था ना । तब फिर विनाश होगा । तब ये सभी चले जाएँगे, बाकी ऐसे नहीं कि फिर सभी चले जाएँगे । कुछ तो फिर भी रहेंगे; क्योंकि प्रलय तो होती नहीं है । यहाँ कुछ तो जरूर रहते हैं न; क्योंकि यहाँ इस खण्ड में मनुष्य फिर चाहिए ना । बाकी थोड़े जाकर रहते हैं । उनमें कोई रावण की सम्प्रदाय, तो कोई राम की सम्प्रदाय । कोई मलेच्छ भी रहते हैं, कोई स्वच्छ भी रहते हैं । पीछे अंत में बाकी जो मलेच्छ रहते है, वो अभी खत्म हो जाना है । बीच में यह टाइम लगा हुआ रहता है । जब पीछे सब खत्म हो जाते हैं, फिर उनको कहेंगे 'सतयुग और जब तलक न गया, उनको कहेंगे 'संगमयुग । दोनों हैं. वो भी है, वो भी है । दोनों का संगम है ना! जो विचार-सागर-मंथन करने वाला होगा, वो इन सब बातों को आपे ही बुद्धि से अच्छी तरह से निकाल सकते हैं कि बरोबर ऐसा होगा ना । तो देखो, पहली-पहली बात अभी परमपिता, जिनको परम-आत्मा, कहते हैं । अभी उनके लिए है तो जरूर रीइनकारनेशन या अवतरण और वो तो जरूर पतित-पावन है, बाप है । सो आएगा ही, उनका पार्ट है ही स्वर्ग के रचने का, नहीं तो उनको आना ही नहीं है । बाप कहते हैं- बच्चे, मैं यहाँ कभी भी नहीं आता हूँ; क्योंकि मुझे संकल्प ही तब आना है ड्रामा अनुसार जबकि मुझे पतितों को पावन कर स्वर्ग की स्थापना करनी है । मुझे तब तलक आएगा नहीं, क्योंकि भक्तिमार्ग का भी ड्रामा में पूरा टाइम मुकर्रर है । जब आधा कल्प पूरा भक्तिमार्ग चल करके अंत होगा, तब फिर मैं सभी भक्तों को भक्ति का फल देता हूँ; परंतु बाप कहते हैं कि नहीं, यह तो जरूर भक्तिमार्ग । जब यह ज्ञानमार्ग जिंदाबाद होगा तो भक्तिमार्ग मुर्दाबाद होने लग पड़ेगा । अभी जैसे कि देखो, तुम ज्ञान में आती हो तो तुम्हारे लिए भक्ति मुर्दाबाद हो गई, मर गई और तुम ज्ञान में जिंदे हो गए । ऐसे नहीं है कि यह ज्ञान कोई थोड़ा समय चलता है, नहीं । यह ज्ञान पूरा आधाकल्प चलता है । उस समय फिर कोई ज्ञान देता नहीं है । भक्ति में भक्ति सीखते जाते हैं । अव्यभिचारी से व्यभिचारी । यहाँ ज्ञान प्राप्त किया, 16 कला सम्पूर्ण बना । फिर सतयुग से ले करके कलाएँ थोड़ी-,थोड़ी कमती होती ही जानी है; क्योंकि यह बेहद का है न! यह ग्रहण लगता है न! तो इस समय में भारत को पूरा ग्रहण लगा हुआ है । जब यह कलहयुग का अंत होता है तब एकदम पूरा ग्रहण कहा जाता है । फिर मनुष्य कह देते हैं राहू का ग्रहण । राष्ट्र भी दैत्य को कहा जाता है न । तो दैत्य ही रावण हुआ । रावण जैसा बड़ा ग्रहण और तो कोई नहीं है न । आधा कल्प इनको यह ग्रहण लगने में लगता है । वो ग्रहण तो रात को 2 बजे से देखो, थोड्रा-थोड़ा लगते-लगते सारा काला हो जाता है; पर यह तो बेहद का है । इसकी सतयुग से फिर कला कमती होना शुरू हो जाती है । समझो अभी कितनी थोड़ी कला चढ़ती होगी क्योंकि सूर्यवंशियों की भी तो दो कला कमती होने में साढ़े बारह सौ बरस लगता है । दो कला कमती होने में यानी वो भी तो ग्रहण कहेंगे न पीछे । ग्रहण यूँ तो माया से लगता है; परंतु जो चक्कर लगता है, वो जो 16 कला और 14 कला का हिसाब है, तो जरूर दो कलाएँ कमती होती जाएगी; परंतु वो बहुत जूँ के मुआफिक । इसका जैसे कोई असर नहीं रहता है ; क्योंकि उसको एकदम स्वर्ग कह देते हैं । सारे सतयुग को स्वर्ग कहेंगे । ऐसे नहीं कि फिर त्रेता को कोई स्वर्ग कहेंगे । स्वर्ग सिर्फ कहेंगे, जहाँ से लक्ष्मी नारायण का राज्य शुरू होता है; क्योंकि वो तो त्रेता हो गया ना, दो कला कमती हो गई । तो यथा राजा-रानी तथा प्रजा, जो स्वर्ग में रहते हैं, उनको ही स्वर्ग कहा जाता है; क्योंकि उनको दैवीकुल भी कहा जाता है, फिर क्षत्रिय कुल कहा जाता है । दो कला कमती हो गई ना! परन्तु फिर भी हमको स्वर्ग और नर्क का दो हिस्सा तो करना पड़े ना । इसलिए सतयुग और त्रेता, फिर द्वापर और कलहयुग । इस सृष्टि को पूरा ऐसे हाफ एण्ड हाफ करेंगे ना । देखो, बाप बैठ करके समझाते हैं कि परमात्मा का अर्थ क्या है । परम आत्मा माना परमात्मा । सभी भक्त उस परम-आत्मा, जिसको परमात्मा कहते हैं, उनको पुकारते रहते हैं । यह ड्रामा में भक्तिमार्ग वालों का पार्ट नूंधा हुआ है; क्योंकि जो पार्ट है, उसमें यह जो लक्की स्टार है, जिसको आत्मा कहा जाता है, उनमें बाप बैठकर समझाते है कि मेरी जो आत्मा है, जिसको तुम परम-आत्मा कहते हो, उनमें भी पार्ट नूंधा हुआ है । मैं पार्ट बिगर कभी कुछ नहीं कर सकता हूँ । कोई अपने देवी-देवताओं, मित्र और संबंधियों को बुलाते हैं, कोई पितरों को बुलाते हैं, बोलेंगे- वो भी पार्ट नूँधा हुआ है, तब होता है । जो-जो चीज होती है, वो ड्रामा में नूंध है । कोई नवाई नहीं है । कोई वण्डर की बात नहीं है, क्योंकि वण्डर पहले से नूँधा हुआ है- यह क्या होता है, कैसे होता है!, फलाने को बुलाय दिया सूक्ष्मवतन में । सेकंड-सेकंड टिक-टिक तो चलती है ना । वो हूबहू नूंध है । अरे, कोई नवाई नहीं है । अरे, जो ज्ञानी तू आत्मा है न, वो कोई नवाई नहीं देखते हैं । बोलते हैं- जो भी कदम-कदम, सेकेण्ड बाई सेकेण्ड चलता है, वो ड्रामा की नूंध है । कहते हैं ना- पत्ता पता भी ईश्वर के हुकुम से चलता है । तब कहते हैं कि पत्ते-पत्ते में ईश्वर है । अभी ये तो मूर्खता हुई ना कि पत्ते-पत्ते में ईश्वर होगा! नहीं, बाप बोलते है इस समय में हवा लगी, यह सेकेण्ड पास हुआ, वो ड्रामा अनुसार हवा लगी, पास हुआ, इसी समय फिर वो ही समय आएगा जो हवा लगेगी, वो पत्ता हिलेगा । तो ड्रामा के आधार पर हुआ ना । जो बाप ने बैठ करके समझाया है, समझाया तो बिल्कुल ठीक है; परन्तु ठीक समझाते है, जबकि उन लोगों ने शास्त्रों को बेठीक बनाय दिया है कि पत्ते-पत्ते में भगवान है । अभी पत्ते-पत्ते में थोड़े ही भगवान की कोई बात रहती है । मनुष्य के शरीर में ही भगवान नहीं है, आत्मा है । बाकी भगवान परम आत्मा परमात्मा नहीं है । बाकी आत्माएँ हैं । आत्माएँ जैसी तुम बच्चों की वैसी उनकी, परंतु नहीं, उनकी महिमा है । वो जो परम आत्मा माना परमात्मा है, उनकी महिमा अलग है । फिर उनसे जो भी कम सब आत्माएँ हैं, उन सबकी महिमा अलग है । सबका पार्ट अलग बजता है । ब्रह्मा का अलग, विष्णु का अलग, शंकर.का अलग - ये सभी हुए भिन्न-भिन्न एक्टर्स । ऐसे नहीं कि नाटक बनाने वाले सभी अपना रूप धरते हैं । हर एक की आत्मा को अपना-अपना पार्ट मिला हुआ है । 5000 वर्ष में भी जो बाप कहते हैं- मैं जो तुम्हारा परम-आत्मा माना परमात्मा हूँ इसका भी तो नाम जरूर चाहिए । 'शिव । मेरे को भी पार्ट मिला हुआ है । मैं भी पार्ट अनुसार ये सर्विस बजाता रहता हूँ वो बैठ करके समझाते हैं । तुमको यह सीखना है, क्योंकि सिवाय तुम्हारे कोई भी मनुष्य इस समय में नहीं है, जो रचता और रचना के आदि-मध्य-अंत को जानते है । इसलिए तुमको अभी कहेंगे मास्टर नॉलेज, अभी फुल नहीं बने हो । वो बाबा है नॉलेजफुल । वो सब कुछ अच्छी तरह से जानता है, जो बैठ करके समझाता है और जो बाप कहते हैं मेरे में नॉलेज है, जो मुझे कहते हैं नॉलेजफुल सो मैं जो भी नॉलेज जैसे तुमको देता आता हूँ जहाँ जिएँगे तहाँ मैं देता आऊँगा । जब यह नॉलेज पूरी हो जाएगी, तुम नम्बरवार मास्टर नॉलेजफुल बन जाएँगे, तब यह ड्रामा पूरा हो जाएगा । ये समझने की बातें ठहरी न । अब सबकी समझ आने की बुद्धि अपनी निराली-निराली । कोई भी बच्चों को कोई भी समझाने में कोई तकलीफ हो, कोई पाइंट को न समझाय सके, तो वो लिख करके भेज भी सकते हैं या आ करके कोई भी पहले ब्राहमणी से पूछनी है । अगर वो भी रिसपाण्ड न दे सके तो फिर बाप के पास भी आ सकते है; क्योंकि बाप तो समझाएगा न; क्योंकि सबको समझाना है । अभी ब्रह्माण्ड को कोई भी नहीं जानते है । ब्रह्माण्ड किसका नाम है, कोई भी विद्वान-आचार्य-सन्यासी नहीं जानते हैं । वो कह देते हैं-ब्रहम । ब्रहम ईश्वर है । न ब्रहम ईश्वर है, न ब्रह्माण्ड ईश्वर है । ऐसे कहेंगे- ब्रह्माण्ड का मालिक है, जिसमें हम अण्डों का बाप, जिसको हम परम-आत्मा कहते हैं और हम उसके बच्चे उसमें निवास करते हैं । ब्रहम-महतत्व में अण्डे निवास करते हैं; इसलिए उनको कहा जाएगा ब्रह्माण्ड । इस सृष्टि को ब्रह्माण्ड नहीं कहा जाएगा । देखो, सभी अच्छी तरह से नोट करो । इस सृष्टि को सृष्टि कहेंगे, क्योंकि सृष्टि का चक्र फिरता है । तो उसमें सिर्फ ज्ञान है । यह मनुष्य चक्र तो फिरता ही है; परतु आते कहाँ से हैं? यह जो नाम गाया हुआ है कि मूलवतन सूक्ष्मवतन । मूलवतन में परमपिता परमात्मा, ऊँचे ते ऊँचा हुआ ना । तो वो कहते हैं कि तुम भी तो ऊँचे ते ऊँचा रहने वाले हो ना । तुम भी सब वहाँ के रहने वाले हो, जहाँ मैं रहता हूँ जो अब आया हूँ तुमको अपना और रचना के आदि-मध्य-अंत का नॉलेज देने । सृष्टि की बेहद की हिस्ट्री एण्ड जॉग्राफी समझाने के लिए, जो कोई शास्त्र में है नहीं । जबकि बाप आकर कहते हैं- है नहीं, तब तो कोई नहीं जानते हैं ना । यानी कहाँ से आवे? अगर आती हो तो सतयुग से आना चाहिए; क्योंकि अभी कलहयुग संगमयुग पूरा होगा तो सतयुग से आनी चाहिए, परंतु नहीं, सतयुग में कोई नहीं जानते हैं, वो बाप बैठ कर समझाते हैं । बिल्कुल नहीं जानते हैं और फिर कारण बताते हैं- क्यों नहीं जानते हैं? क्योंकि ये ज्ञान तुमको मिलता है । ज्ञान का सागर बाप आते हैं तुम्हारी सद्‌गति करके तुमको राज-भाग देने । तो तुम प्रालब्ध पाय लेते हो, वर्सा ले लेते हो और वहाँ भोगते हो । फिर वहाँ तो ज्ञान की दरकार है नहीं । अगर फिर उनमें ज्ञान होता या अभी हम 16 कला है और कल ही कहेंगे, देखो हम लोग कहते हैं ना- 'कल स्वर्ग आएगा, अभी नर्क है, तो कल हम फिर दो कला कम हो जाएँगे और थोड़े जन्म के बाद फिर हम वाममार्ग में गिरेंगे तो बिचारे का वो सुख एकदम छिन जावे । और फिर, ज्ञान है सद्‌गति के लिए । वहाँ तो है ही सद्‌गति, वहाँ ज्ञान की तो कोई बात ही नहीं है; क्योंकि यहाँ है दुर्गति । तो दुर्गति को सद्‌गति बनाने वाला तो एक ही है । सब दुर्गति में ही हैं । वो बाप ही बैठकर समझाते हैं । नहीं तो, जो भी हो उनसे जाकर पूछो । वो तुमको ब्रह्माण्ड, सूक्ष्मवतन और सृष्टि के आदि-मध्य-अंत की हिस्ट्री-जाग्राफी बतावें । बिल्कुल कभी नहीं, कोई ऐसा है नहीं जो कह सके कि हाँ; क्योंकि कोई वेद-ग्रंथ-शास्त्र-उपनिषद, कोई में है नहीं । गीता में भी नहीं है । बाप बोलते हैं ना कि गीता में नहीं है, क्योंकि मैं कहकर जाता हूँ कि यह ज्ञान प्राय:लोप हो जाता है । प्राय: का अर्थ बताते हैं । देवी-देवताओं का चित्र तो जरूर रहना है न । वो रह जाते हैं । फिर कुछ न कुछ उनका शास्त्रों में वर्णन होना चाहिए ना; क्योंकि वो हो गया है, उनका कुछ तो होना चाहिए ना कि कौन थे? जो ऋषि-मुनि थे, इन्हों में जिसकी अच्छी बुद्धि थी उस समय में, उन्होंने बैठ करके कुछ न कुछ बनाया है । ऐसे नहीं है कि रामायण कोई उस समय बनाया है । रामायण कहने के लिए तो वाल्मीकि ने बनाया । वो चोर था । चोरी करने वाले से डाकू द्वापर में भी नहीं हो सकते हैं; क्योंकि द्वापर फिर भी रजो है । जब तमोप्रधान मनुष्य होते है तब डाकू और चोर होते हैं । तो लिख देते है डाकू । तो कोई मनुष्य ने बैठ करके ये सब गपोड़े उसमें लगाए है, जैसे बाबा ने कल समझाया ना । यह जैसे बैठ करके एक नॉवेल बनाय दिया है । इनको नॉनसेन्स नॉवेल कहा जाएगा और यहाँ तो देखो रामायण की कितनी महिमा है । बात मत पूछो । रामायण बहुत सुनेंगे । जब दशहरा आता है तो सब जगह में रामायण ही रामायण सुनेंगे और रोएंगे- बस, सीता चली गई । बिचारे बहुत रोते हैं । नाटक होता है तो बहुत रोते हैं । जब हरिश्चंद्र का खेल होता है, उसमें उसका बच्चा जा करके मरता है तो बहुत रोते हैं । हैं सब दंत-कथा और कुछ नहीं है । कब ये होएँगी? ऐसी कोई बात ही नहीं है । यह शास्त्र की बात है नहीं, ये सब बैठ करके नॉवेल्स बनाया है, ढेर के ढेर बनाए हैं । जबकि बाप कहते हैं कि जिसको भगवत गीता कहा जाता है, इनसे ऊँचा तो कोई शास्त्र है नहीं ना । सर्व शास्त्रमई शिरोमणि भगवत गीता, यह हो गई सबसे बड़ी-बड़ी । अच्छा, बाप खुद कहते हैं कि इस गीता में भी जो मनुष्यों ने बैठ करके बनाई है, उनमें मैं बैठ करके जो नॉलेज देता हूँ वो है ही नहीं, क्योंकि उन्होंने पहले ही एकदम झूठ लिख दिया है कि कृष्ण भगवानुवाच और सो भी बच्चा और बच्ची, परंतु जब वो बड़े होते हैं, शादी करके लक्ष्मी नारायण बनते हैं, उनमें भी यह ज्ञान नहीं है । तो फिर यह गीता कहाँ से आई? तो बाप बोलते हैं अगर कोई में रचता-रचना का ज्ञान होता तो मालिक हो जाते; क्योंकि रचता और रचना के ज्ञान से तुम मालिक बनते हो । इसलिए तुम अच्छी तरह से ढिंढोरा पीटो शंख ध्वनि करो । इस सृष्टि भर में एक भी मनुष्य नहीं जो रचता और रचना के आदि-मध्य-अंत के हिस्ट्री और जोग्राफी को जानता हो । तुमको आ करके बाप समझाते हैं । उनमें भी सब कोई ऐसे थोड़े ही बैठ करके समझाती हैं, जैसे बाप बैठ करके समझाते हैं या दादा या मम्मा या अनन्य । नंबरवार हैं ना फिर भी! तो फॉलो तो करना चाहिए न, इनमें होशियार तो बनना चाहिए न । बाप रोज आ करके समझाते हैं, फिर देखो कभी कोई आते हैं, कभी कोई नहीं आते हैं, कोई नोट्‌स लेते हैं, कोई नहीं लेते हैं । ये तो फिर ऐसी चीज है ना दूसरे को समझाने की । जब इस आदि-मध्य-अंत की हिस्ट्री-जाग्राफी समझ जाएँगे तो चक्रवर्ती राजा बनेंगे । तो यह जैसे कि हम बाप से ये अविनाशी ज्ञान-रत्नों का दान ले, फिर दान करते हैं । इसको कहा जाता है अविनाशी ज्ञान रत्न का महादानी, फिलेंथ्रोफिस्ट । इस ज्ञान का फिलेंथ्रोफिस्ट । इसको स्प्रिचुअल नॉलेज भी कहते है, एक भी नहीं है । ऐसे कोई मत समझे कि साधु-संत-सन्यासी कोई ज्ञान-रत्नों का दान देते हैं । नहीं, वो पत्थरों का दान देते हैं, और ही पत्थर मारते हैं, लात मारते हैं । इसको सतसंग नहीं कहा जाता है, लतसंग कहा जाता है । क्यों? वहाँ जाने से ही परमपिता परमात्मा से बेमुख करना शुरू हो जाता है । पहले ही पहले से शुरू हो जाते हैं । सिर्फ यही कहना कि ईश्वर सर्वव्यापी, पत्ते-पत्ते में हैं । अभी देखो, पत्ते-पत्ते कहाँ का कहाँ से निकला! ड्रामा है ना । बाबा कहते हैं- यह गया ना । यह सेकण्ड हुआ ना । यह बात फिर 5000 वर्ष के बाद फिर ये ऐसा चलेंगे । पत्ते भी ऐसे ही, हरेक चीज ऐसे ही, देखो इसमें कितनी महीन बुद्धि चाहिए । बहुत-बहुत महीन बुद्धि चाहिए । इस पर विचार-सागर-मंथन करने की बहुत दरकार रहनी है । इसको ही कहा जाता है रात को जागना और विचार-सागर-मंथन करना, माना कमाई । इसलिए बाप कहते हैं कि तुम चुप हो करके रहो, तुमको हाथ-पैर न चलाना है, शरीर तुम्हारा भले चले, उसमें कोई मना नहीं, सिर्फ बुद्धि से काम लो कि बरोबर बाप को, रचता को अगर कोई जान जाए तो उसके रचना के स्वर्ग का मालिक बनना चाहिए जरूर । समझा ना! यानी बाप को जाने और बाप के प्रॉपर्टी को जाने तो जरूर प्रॉपर्टी का मालिक बने; परंतु यहाँ तो ऐसा कोई नहीं है जो कहेंगे । हाँ, कहते है बरोबर कि मनुष्य कहाँ गया? स्वर्गवासी हुआ । क्योंकि भगवान ने उनको बुलाया । अरे, यह तो ठीक है बरोबर, कोई बड़ी बात नहीं है । स्वर्गवास और यहाँ वैकुण्ठ, ये तो बात ठीक है; परतु स्वर्ग तो सतयुग में होता है ना । अभी तो नहीं मिलेंगे न, अब तो पुनर्जन्म । सतयुग में पुनर्जन्म सतयुग में, त्रेता में, कलहयुग में पुनर्जन्म यहाँ । भारत की बात बिल्कुल ठीक है कि बरोबर भगवान को जो याद करते हैं भगवान उनको वैकुण्ठ में ले जाते हैं, परंतु वैकुण्ठ तो सतयुग में स्थापन होता है ना । अब वैकुण्ठ के लिए तो बैठ करके राजयोग सीखना पड़े । ऐसे थोड़े ही जा सकेंगे! तो बाप आ करके बच्चों को राजयोग सिखाते हैं और बाप भी क्या है, कोई बड़ी बात नहीं है, बोलते हैं- जैसे तुम आत्मा, वैसे मैं आत्मा । मैं परमधाम में रहने वाला, मुझे कहते हैं परम-आत्मा माना परमात्मा । सिर्फ अक्षर मिलाकर अलग कर दिया, दूसरी कोई बात इसकी है नहीं । उसको अंग्रेजी में कहा भी जाता है 'सुप्रीम सोल, 'परमपिता । परमधाम में रहने वाला पिता । उसको आत्मा कहा जाता है । परम-आत्मा, परमधाम में रहने वाली आत्मा, उसको कहा जाता है परमात्मा । परम-आत्मा याद करो तो परमात्मा हो जाती है ना । फिर इनका भी भक्तिमार्ग में और इस समय में जो पार्ट नूँधा हुआ है उस अनुसार आता है । आएगा पूरा एकदम रात को बिल्कुल, और तो कोई किसकी वेला न भी ले सके । यह तो आते ही हैं, किसको पता भी न पड़े । कृष्ण के लिए भी लिखेंगे ना- जन्माष्टमी के समय रात को 12 बज करके कितने समय? टिप्पणे वाले लोग, जंयती वाले लोग टाइम बताएँगे । इनका टाइम कहाँ से आ सके और फिर पता भी नहीं पड़ता है कि बरोबर कोई आता है । हम लोग मूँझते- मूँझते बहुत समय के बाद, कोई आया है, वो नहीं मालूम पड़ता है कि रचता आया है । वो रचना का राज समझाएंगे उसके लिए तो नहीं । रचता आय करके और फट जिसमें प्रवेश करता है, उनको साक्षात्कार करा देते हैं । अर्जुन के रथ में रथी । तो आत्मा हुई न । परमात्मा अर्जुन के शरीर में बैठा और उनको साक्षात्कार कराया कि विनाश भी देखो और अपना राज्य भी देखो । अच्छा, उनसे भी कोई समझा थोड़े ही जाता है । नहीं, यह खुशी का पारा ऑटोमैटिकली चढ़ जाता है कि ब्रह्माण्ड की बादशाही मिलती है । झट साक्षात्कार हो जाते हैं ना । बस, बाकी कोई ज्ञान नहीं । भुटटू में भुटटू । जैसे किसको साक्षात्कार होते हैं ना, बहुतों को होते हैं, तो ऐसे ही विनाश । अभी विनाश तो देखा, कब होगा, क्या पता! विनाश देखा है- भीषण लड़ाई लगती है. धक से लड़ाई लगेगी । फर्स्ट वर्ल्ड वार, तो समझा शायद यह लगती है, सब खत्म हो जाएँगे । भई, और क्या करें! ऐसे तो बाबा ने नहीं बताया कि नहीं, बहुत टाइम लगा हुआ है, यह कोई ज्ञान तो दिया ही नहीं । तो कैसे समझें! क्योंकि समझना है अन्त तक । तो शुरू में तो सब बातें नहीं समझाएँगे ना । बाबा कहते हैं-मैं शुरू में तो सब नहीं समझाऊँगा । मैं तो शुरू से ले करके जहाँ जिएँगे जहाँ इनका शरीर है, तहाँ तक मैं ज्ञान बताता रहूँगा, जब तलक यह भी कर्मातीत अवस्था को पावे । अभी समझते हो ना । लॉ ऐसा कहता है- जब तलक यह भी कर्मातीत अवस्था को पावे और फिर नम्बरवार बच्चे भी पास हों, तब फिर यह ज्ञान बन्द होता है, इसलिए इसको कहा जाता है- जहाँ जिए तहाँ ही यह शिक्षा लेते रहो । अभी 'जहाँ जिय तहाँ पीय कहाँ का अर्थ लगता है? क्या गंगा में जाकर के जल पीकर आओ? नहीं, वो तो जल है ना, उनकी तो बात ही नहीं । यह इस समय मे बच्चों के लिए है कि जहाँ तुम जीतो रहो, तहाँ तुम पीते रहो । लम्बा रास्ता है ना । सुना है ना- हमारा जीवन का लम्बा, यह बाप के साथ थोड़ा लम्बा है । जब तलक यह बाप है ना, दादा जाएगा तो बाबा भी तो पहले जाएँगे ना । तो दोनों इकट्‌ठे जाते हैं । तो बोलते हैं- जहाँ तक जिओ तहाँ तक तुमको ये सभी बातें अच्छी तरह से समझना है और समझाना है । अभी तुम अविनाशी ज्ञान रत्नो का फिलैंथ्रोपिस्ट यानी महादानी बनते हो । डबल महादानी बनते हो । एक तो देह सहित सब कुछ बलि चढ़ते हो, इसको कहा जाता है महादानी । यानी सब कुछ चढ़ा दे । बलि चढ़ी ईश्वर के साथ । यह हुआ विनाशी धन का फिलैथ्रोपिस्ट । सन्यासी तो ऐसे नहीं करते हैं? नहीं, वो तो पीछे दान लेते रहते हैं । यह कहते हैं कि नहीं, तुम बच्चों को डबल दानी बनना है । एक तो तुम्हारा जो कुछ भी है, वो सब तुम मेरे ऊपर बलि चढ़ाओ यानी फिर उनका ट्रस्टी बन जाओ; क्योंकि क्या करेगा? कोई ऐसे थोड़े ही है, हम जनक से, राजा से ले करके, बलि चढकर, मैं उनकी राजाई सम्भालूँगा क्या? नहीं । बाप फिर कहते हैं- याद रखो, तुमको बलि चढना है । जो तुमने क्रियेट किए हैं वो बच्चे सम्भालने हैं । जो रचना रची है उनकी तुमको पालना करनी है । तो फिर यहाँ धन दे करके पालना कैसे करेंगे? नहीं, फिर कहते हैं कि बच्चे, मत पर चलते रहो । फिर कहाँ भी तुम्हारा जो धन दान करते हो, वो फिर कोई पाप के काम में न आवे । अगर कोई पाप-आत्मा को धन देंगे तो वो जो पाप करेंगे वो फिर तुम्हारे सिर पर चढ़ेगा; क्योंकि दान भी जब दिया जाता है तो कायदा है कि पात्र को दिया जाता है । समझो, कोई को दान दिया और उससे बीड़ी पिया, शराब पिया, गंद किया, वो किया, वो पाप दान देने वाले के सिर पर आनी है । समझा ना! अभी इस समय कोई भी पुण्य-आत्मा तो है नहीं । अच्छा समझो, ब्राहमणों को देते हैं, वो भी तो पाप करते रहते हैं । एक-दो के ऊपर काम-कटारी चलता रहता है, उल्टा ज्ञान सुनाते रहते हैं, झूठी सत्य नारायण की कथा, यह क्या सुनाते हैं ब्राहमण! सब झूठी कथाएँ । तीजरी की कथाएँ, सत्य नारायण की कथा, ये सब झूठ करते हैं ना; क्योंकि झूठी माया, झूठी काया, झूठा सब संसार । तो वो झूठ बोलते रहते हैं ना । तो वो भी पाप-आत्मा ठहरे ना । पाप-आत्माओं को दान तो किया नहीं जाता है । बाप फिर कहते हैं- बच्चे, ट्रस्टी बन जाओ । बाबा की मत पर अपना घर सम्भालो । कहा तुम्हारी भूल न हो जाए, तुम्हारे तन-मन-धन से कोई अकर्तव्य कार्य न हो जाए; इसलिए बाप से राय पूछ करके काम करते रहो । कोई ऐसे नहीं कहते, मकान न बनाओ या महल न बनाओ या एरोप्लैन में नही चढ़ो मोटर में चढ़ो । बहुत बच्चे हैं जो मोटर में घूमने-फिरने जाते हैं या इनके बापदादा के पास मोटरें ही नहीं हैं । रखते ही नहीं हैं । यहाँ बल्कि बाप फिर कहते हैं बच्चे, बादशाही तुमको देता हूँ । इसलिए क्योंकि तुम मोटर भी देंगे तो शिवबाबा को देंगे ना । यहाँ बाबा कहते हैं- मुझे तुम्हारी मोटर-वोटर नहीं चाहिए, यह हमें न दो । तुम भले मोटर में चढ़ो एरोप्लैन में चढ़ो सिर्फ श्रीमत पर चलो और कोई भी बात नहीं है । अपने धन-दौलत जो है उनसे क्या-क्या करो, फिर राय देते रहते कि तुम्हारे से कोई भी पाप न हो; क्योंकि तुम पुण्यात्मा बनते हो । यह है पाप-आत्माओं की दुनिया, उनको कहा जाता है पुण्य-आत्माओं की दुनिया । ऐसे कोई लेते नहीं है । हाँ, बच्चे हो और तुम लोगों को ही बैठ करके सेन्टर जमाना है और घर-घर को स्वर्ग बनाना है । अस्पतालें खोलनी हैं, तुम खोलते जाओ बनाते जाओ । देखो, आबू में भी बनते हैं किसलिए! यह किसलिए बनते जाते हैं? बोलते हैं-वाह! जब भी ये पड़ेगी, ये अत्याचार होगे, मार पड़ेगी, वो कहाँ जाएँगे? वो तो बोलेंगे, फिर भी मम्मा-बाबा के पास जावे; क्योंकि तुम्हारा यादगार भी पहले ही से आबू में बना हुआ है । इससे सिद्ध होता है कि तुमने तपस्या भी वहाँ की है । जहाँ तपस्या की है, तहाँ पिछाड़ी मे तुमने रहवास भी किया है । यह भी तुम्हारे शास्त्र में नूँधा हुआ है कि जब ये पाण्डव रहे थे तो भीलों ने आ करके लूटा था । भागवत में है । इससे सिद्ध होता है कि पिछाड़ी में भी वहाँ रहना है । तो पिछाड़ी में वहाँ रहने के लिए भी तो मकान चाहिए । तो मकान भी तुम बच्चों के लिए है । गॉड फादर शिवा से डियर मोस्ट बिलविड चिल्ड्रेन एवरीथिंग इज फॉर यू । सृष्टि की बादशाही तुम्हारी तो फिर वो और क्या करेंगे! तुम्हारा कनेक्शन तो शिवबाबा के साथ है ना । हम शिवबाबा के ऊपर बलि चढ़ते हैं । शिवबाबा हमारे लिए यहाँ मकान तो बनवाना, करनकरावनहार है ना । कभी भी ऐसे मत समझना दादा से हमारा लेन-देन का कनेक्शन है, नहीं । तुम्हारे दादा का भी शिवबाबा से लेन-देन का कनेक्शन है । वो कहते हैं तुम्हारा भी शिवबाबा से कनेक्शन है । कभी भी तुमने शिवबाबा के बदले में दादा को समझ लिया तो तुम्हारा दान भी व्यर्थ चला जाएगा । यानी जो मदद करते हो वो जैसे कि व्यर्थ है । तुमको कारोबार है ही शिवबाबा से । खाता ही तुम्हारा शिवबाबा से है । वो राय देंगे कि हाँ, ऐसे करो, ऐसे करो; क्योंकि है सब तुम बच्चों के लिए ना । तो उसमें गरीब भी आएँगे । गरीब हैं सबसे अच्छे । वो मेरे को और ही प्यारे हैं । वो भी तो वहाँ आएँगे । तो उनके लिए इस समय यह बनाने चाहिए । पिछाड़ी में बिचारे आएँगे, विवेक कहता है, ड्रामा कहता है देखो आएँगे । जरूर वहाँ बहुत रहे होंगे तब तो वो कुछ लूटा है ना । अच्छा, अभी बच्चों का टाइम तो हुआ है । बाबा ने आज अच्छी तरह समझाया था; क्योकि परम-आत्मा, परमात्मा जिसको कहते हैं, वो कोई बड़ा-लम्बा नहीं है । परमात्मा की आत्मा का साइज एक ही है । वो न छोटा होता है, न बड़ा होता है । ऐसे नही है कि कोई बड़ा है या लक्ष्मी नारायण की आत्मा कोई बड़ी थी या इस समय में वो कोई छोटी हो गई है । नहीं, आत्मा छोटी-बडी वगैरह नहीं होती, आत्मा एक ही होती है । उनकी ज्ञान की जो ज्योत है, नॉलेज है, वो उझानी होती है; क्योंकि ड्रामा है । उनको पावन से पतित बनना ही है । ये रावण उड़ने का पर काट देते है । किसका? आत्मा का । फिर कोई की भी आत्मा वापस नहीं जा सकती है । सबको आना ही है और सबको पूरा आना है, तब विनाश होगा, उसके पहले भी विनाश नहीं होगा । क्यों? वहाँ जो आत्माएं रहती हैं, वो यह एक दफा कर्मक्षेत्र पर आनी तो जरूर चाहिए न । बाकी यहाँ आती रहती हैं । ऐसे नहीं समझना चाहिए, बाबा आ गया है इसलिए वो नहीं आती हैं । अरे, वृद्धि तो होती रहती है ना । वृद्धि तो और ही जास्ती होती है । मल्टीप्लीकेशन बहुत होती है ना । अगर मल्टीप्लीकेशन हो तो इनका खाना खुटे कैसे! ये तो रड़ियाँ मारते रहते हैं- हम जितना आमदनी का, अन्न वगैरह का प्रबन्ध करते हैं, उनसे जास्ती प्रजा उत्पन्न हो जाती है । ये बिचारे करें क्या! फिर भी तो कोई हद होगी ना, कहाँ तक ये ठहर सकेंगे । तो बाप कहते हैं जब यह ड्रामा पूरा हो जाएगा । जब तुम मेरे लाडले बच्चे कर्मातीत अवस्था को नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार प्राप्त कर लेते हो और जब भक्ति मार्ग का पूरा अंत होना होता है, जब मेरे ज्ञान का भी पूरा अंत होता है, तब फिर ये विनाश हाता है । जब तलक है, शिवबाबा पढ़ाते हैं, तब तक यह सृष्टि है ही और बाकी विनाश होने से तो देख लेंगे । अच्छा टोली तो दो बच्चों को । सन्यासी-उदासी को तुम यह टेप जा करके सुना सकते हो कि वहाँ ऐसी वाणी चली । फिर भले इनको गाली देवे क्योंकि समझेगा तो कुछ नहीं । बोलेंगे- यह कहाँ से आया? यह सभी इनका ही टाल है, फलाना है- ऐसे-ऐसे करके उड़ाय देंगे; क्योंकि कुछ भाग्य में तो है नहीं । बाकी बाबा कोई डरते नहीं हैं । कोई भी सुने । कोई भी तुम्हारा गुरु-गोसाईं हो, जिसके साथ तुम बच्चों की किसकी दिल हो, बोले- भला एक बार हमको तो बैठकर ये सुनाओ । टेप भी ले जाओ, परन्तु जाना चाहिए, कोई सयाना समझेंगे तो उनको समझावे । बाबा की मना नहीं है; क्योंकि यह तो जाती है ना । वो पटना में किले में जाती है, वहाँ बड़े-बड़े सन्यासी आते हैं, वो निकाल करके बैठ करके बजाते हैं । उनको समझाते हैं कि बाबा ने आज वहाँ यह मुरली चलाई । किसने चलाई? शिवबाबा ने । नाम बाबा का यानि शिव का काम है न कि ऐसे न कोई समझे कि ब्रह्मा का । शिव का नाम प्रभु के स्मरण । कौन-सा प्रभु? शिव का । भई, यह शिवबाबा ने मुरली बजाई । तो फिर भले कोई शिवबाबा से पूछे । उनको फिर पूछने को आना पड़े न- यह कैसे? वो तो फट से ही बताएगा । बाप तो है ना, एक बाप होगा ना । सभी पत्थर-पत्ते-पत्ते को कह देना भगवान- ये कहाँ की बात! तो यह भी आएँगे । यह ज्ञान जब परिपक्व अवस्था में हो जाएगी, जब तुम्हारी ताकत होगी ना, तब यह भीष्मपितामह, द्रोण, ये सब नाम उन्होंने रख दिया है, कोई वो नाम नहीं होंगे । ऐसे मत समझना भीष्मपितामह जब तलक नहीं होंगे, नाम नहीं बताएगा, हम ज्ञान नहीं देंगे । ऐसे नहीं करना कोई । यह तो उन्होंने नाम रख दिया । सन्यासी, राजाएँ-रजवाडे जो-जो हमारे घराने के होंगे, वो सब तुम्हारे पास आएंगे, पूछेंगे और उठाएंगे । कोई तो सुन करके ऐसे ही चले जाएँगे; क्योकि चले जाना है, क्योंकि वो स्वर्ग का पद पाना नहीं है । बाकी है सभी धर्मो के लिए, सिर्फ तुम्हारे भारत के लिए नहीं । वो तो सबका बाप है । वो बोलता है- जो-जो मुझे याद करेंगे और ड्रामा अनुसार याद भी वो ही करेंगे, जो मुक्ति को पाने वाले होंगे और ज्ञान को याद वो ही करेंगे, जो जीवनमुक्ति को पाने वाले होंगे और जो न करने वाले हैं, वो हिसाब-किताब चुक्तु करके फिर वापस जाएंगे । होली, होलिका, भंभोर को आग लगनी है । यानी वो भी तो छोटा है ना । होली के दिन सबके घर-घर में आग जगती तो है ना । फिर समझते हैं; परन्तु अर्थ कोई नही जानते । कोई से पूछेगा भी, होलिका का भी कोई किताब होगा, उसमें क्या-क्या लिखा हुआ होगा । बाकी यह बात नहीं होगी, जो बाप बैठकर समझाते हैं कि सारे भंभोर को आग लगनी है । अभी आग सारे भंभोर को तो, सिर्फ आग नहीं लगती है ना । अर्थक्वेक से, कैलेमिटीज से, मूसलधार बरसात से । मूसल किसको कहा जाता है? ये ऐटमिक बोंब्स । उनकी भी बरसात और वो बरसात भी । मूसल अक्षर वहाँ से निकला है ना, पेट से मूसल निकले । वो पानी तो नहीं हुआ ना । वो मूसल और फिर फ्ल्ड्स, जलमई जिसको कहा जाता है, वो तो पानी से होगी ना । बाबा ऐसे कहते हैं- देखो, यह भी सुनते हैं और सब तुम्हारी मम्मा भी सुनेगी; क्योंकि समझाते हैं उनके पास । कल्प पहले भी ऐसे ही ड्रामा अनुसार यहाँ आए हुए हैं । यह भी ड्रामा में पार्ट था, तब इस घर में आ करके बैठे हैं । नहीं तो पहले मालूम था क्या? आए, यह ड्रामा में राज था कि इस घर में आ करके यह हॉस्पिटल । बड़ी हॉस्पिटल है । कोई विरला समझे । ऐसे मत समझो, जिनकी हॉस्पिटल है वो कोई निश्चय बुद्धि हो जा सकता है । नहीं, निश्चय बुद्धि नहीं हो सकते हैं । निश्चय बुद्धि हो जाए तो अहो सौभाग्य! निश्चयबुद्धि वाले का पारा पधरी हो जाता है । अभी बाप-दादा, मीठी मम्मा का मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों को यादप्यार और गुडमार्निंग । सिकीलधे का अर्थ कितना सहज है समझने का । वो ही मिलेंगे जो कल्प पहले स्वर्ग में थे, पहले आए हुए थे और जिनको पढ़ाया था । जो भस्म हुए पड़े थे, उनके ऊपर फिर जा करके ज्ञान-अमृत की बरसात की । गाया भी जाता है- सागर । तुम सागर के बच्चे हो ना । अभी ज्ञान-सागर के डायरेक्ट बच्चे हो ना । बरोबर हम ज्ञान सागर के जो इस समय में बच्चे हैं, तो बरोबर हम गोरे बनते हैं, राजाई करते हैं । अभी ज्ञान सागर के ज्ञान-चिता पर बैठे हैं और बरोबर राज-भाग लेंगे, गोरे बन जाएँगे । पीछे ज्ञान सागर के बच्चे ड्रामा अनुसार द्वापर से फिर काम-चिता पर बैठ जाएँगे । फिर इस मुआफिक जल मरेंगे । कब्रिस्तानी बन जाएंगे । फिर यह ड्रामा के अनुसार बाबा आएगा । ये समझे न बच्चे , किसको समझाने की कभी भी कोई मूंझ होवे, न समझे तो बाबा से पूछ सकते हो कि हम ही ज्ञान सागर के बच्चे, हम ही कब्रदाखिल हैं, जो फिर हमको परिस्तानी बनाते हैं, फिर आधा कल्प परिस्तानी तो आधा कल्प फिर माया आ करके कब्रिस्तानी बनाती है । परिस्तान का भी समझाया कि कैसे हम नीचे उतरते हैं । कब्रिस्तान भी कैसे बनते हैं । फिर परिस्तानी कैसे बनते हैं ।