` 03-10-1963    बम्बई    प्रात: मुरली     साकार बाबा    ओम शांति     मधुबन
 


हेलो, गुड मोर्निंग हम बम्बई से बोल रहे हैं । आज गुरूवार है सन 1963 अक्टूबर की तीन तारीख है । प्रात: क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं ।
रिकार्ड :-
तुम्हीं हो माता, पिता तुम्हीं हो...............
ओमशान्ति । बच्चे भी गाते हैं कि हे भगवन्, हे परमपिता, हे ईश्वर या हे प्रभु । बात एक ही है ना । तुम एक ही पतित-पावन हो; क्योंकि सारी दुनिया, जो पतित होती है, तो जरूर पावन करने वाला एक ही होगा और उनको आना भी होगा तब जबकि कलहयुग का अंत है और सतयुग की आदि है । उसको ही कल्प का ऑस्पिशस संगमयुग कहेंगे । कल्प का संगमयुग । बाप समझाते हैं- कल्प के संगमयुग में ही तो मुझे आना पड़े ना । पतित सृष्टि को पावन करने और तो कोई समय में नहीं आना पड़े ना । अंत में ही आना पड़े और उसको ही कहा जाता है कल्याणकारी युग । अच्छा, आ करके क्या करता हूँ यह भी तो बताते हैं ना कि आता भी तो जरूर भारत में हूँ, क्योंकि मेरा रात्रि बर्थप्लेस तो भारत को ही दिखलाते हैं । मैं अविनाशी होने कारण यह भारत को अविनाशी खण्ड भी कहा जाता है; क्योंकि बच्चे जानते हैं कि यह अविनाशी खण्ड भारत कभी भी विनाश नहीं होता है, और उस तरफ में जो भी इस्लामी, बौद्धी और क्रिश्चियन खण्ड हैं, वो विनाश हो जाते हैं । उनमें एक भी मनुष्य नहीं रहता । इसलिए इस भारत को अविनाशी खण्ड भी कहा जाता है, फिर इनको सच खण्ड भी कहा जाता है, तो झूठ खण्ड भी कहा जाता है । सच खण्ड स्थापन करने वाला तो जरूर रचता ही ठहरा । उनको झूठ खण्ड बनाने वाला तो फिर यह रावण ही ठहरा, क्योंकि बाप ने समझाया-हाफ एण्ड हाफ है । आधा कल्प रात अर्थात भक्ति । आधा कल्प दिन अर्थात् ज्ञान की प्रालब्ध । अभी तुम बच्चे अच्छी तरह से जानते हो कि तुम बच्चों को मालूम पड़ रहा है कि बरोबर श्री लक्ष्मी और नारायण यथा राजा-रानी तथा प्रजा भारत में राज्य करते थे । जरूर पहले-पहले उनके ही 84 जन्म गिनना चाहिए; क्योंकि चक्कर लगाना है । तो ये जरूर समझना चाहिए की ये चौरासी जन्म के बाद फिर से ये चक्कर फिरता है , क्योंकि अभी तुम बच्चों को अपनी 84 जन्म की हिस्ट्री और ज्योग्राफी का पता पड़ गया है । मनुष्य को भविष्य एक जन्म का भी पता नहीं पड़ सकता है । हाँ, इतना जरूर समझा जाता है कि पास्ट में इन्होंने ऐसे कोई अच्छे कर्म किए हैं, जो इनको अच्छा जन्म मिला । बस, इतना सब जान सकते हैं और कहते हैं । इस समय में तुम बच्चे यह जानते हो कि बरोबर श्री लक्ष्मी और नारायण यथा राजा-रानी तथा प्रजा । ये सतयुग-त्रेता-द्वापर-कलहयुग के अत में अपना 84 का चक्र लगाय, फिर से सो लक्ष्मी नारायण यथा राजा-रानी तथा प्रजा बन रही है । देखो, ये तो हमारे पास ज्ञान है; परंतु गहराई में कोई नहीं जानेगा । अभी तुम बच्चों को इस समय में 84 जन्म की हिस्ट्री और जाग्राफी का मालूम पड़ता है । ऐसे तो नहीं है कि एक-एक जन्म की कोई हिस्ट्री-जाग्राफी यह कोई कम थोड़े ही है । तुम जानते हो कि अभी हम सो देवी-देवता थे । फिर इतना राज्य किया, फिर क्षत्रिय बने, फिर वैश्य बने, फिर शूद्र बने, अभी फिर ब्राहमण बने हैं । भविष्य की, जन्म-जन्मांतर की इस समय में तुम बच्चों को कितनी नॉलेज है । ये नॉलेज सिवाय बाप के बच्चों को कोई दे नहीं सकते हैं और बच्चों को ही यह नॉलेज देते हैं । कहते हैं कि मैं बच्चों के आगे ही प्रत्यक्ष हो उनको पढ़ाता हूँ और दूसरा तो कोई जानते भी नहीं हैं, क्योंकि भागवत और गीता वगैरह तो गपोड़े मार दिए हैं तो घोर अंधियारे में हैं । अभी यह जान गए न कि ये लक्ष्मी और नारायण 84 जन्म भोग वो ही ब्राहमण बन रहे हैं । अभी ये नॉलेज जो बच्चों को है, अभी इस समय में जानते हो कि 5000 वर्ष पहले, जो यह झूठी गीता या फलाना बनाई हुई है, उसमें यह है कि इस समय में क्या हो रहा है उसकी कोई स्थ्य आ सकेगी? देखो, बॉम्बे क्या है! यह सब क्या है, कितने मनुष्य इस समय में यहीं! अभी जैसे कि तुम्हारे दिल के अंदर है कि बरोबर हम फिर से शिवबाबा से अपना स्वर्ग का वर्सा ले रहे हैं और कल्प-कल्प हम लेते आते हैं । जरूर गंवाते आते होंगे । यह सीधी बात है न, सहज समझने की । अरे, कोई कैसा भुटटू हो तो भी समझ जावे । बरोबर है तो भुटटू ना! भुटटू कहा जाता है पत्थरबुद्धि को । जब भी कोई मनुष्य को बुद्धि नहीं होती है तो कहा जाता है तुम तो कोई पत्थरबुद्धि हो । बाबा कहते हैं- देखो, है भी बरोबर । पत्थरबुद्धि ही पारसबुद्धि हो जाते हैं । जो अपन को बहुत अक्लमंद समझते हैं श्री-श्री 108 ये बड़े-बड़े एकदम, वो अपन को पत्थरबुद्धि नहीं समझते हैं । पत्थरबुद्धि गरीबों को कहा जाता है ना और अबलाओं को खास, क्योंकि माताएँ कभी स्कूलों में पढ़ती नहीं । ये तो आजकल स्कूलों में बैठ करके पढ़ती हैं और यह इम्तहान मैट्रिक आदि पास करती हैं । आगे स्कूलों में थोड़े ही पढ़ती थीं । तो बाप बैठ करके समझाते हैं, अभी तो बच्चे अच्छी तरह से समझ गए । देखो, आज गुरुवार है । बृहस्पत की दशा सबसे ऊँची होती है । पीछे सेकेण्ड में शुक्र की कही जाती है । अभी वृक्षपति वो है बृहस्पत वो है अविनाशी । अभी तुम्हारे ऊपर अविनाशी बृहस्पत की दशा बैठ गई है । किसके ऊपर? यथा जो भी राजा-रानी, जो इस समय में शूद्र से ब्राहमण बने हैं, उन्हों के ऊपर अथवा तुम सब बच्चों के ऊपर । अभी समझ की बात तो जरूर है । जो अच्छी तरह से इनको समझते है और समझाते हैं, उनके ऊपर अपन कहेंगे फिर-फिर दशायें उठाएँगे कि स्वर्ग में भी दशाएँ यहीं से करते हैं । कोई सूर्यवंशी बन रहे हैं, कोई चंद्रवंशी बनेंगे, कोई बड़े राजा-रजवाड़े बनेंगे । देखो, ये दशाएँ हैं ना । कोई अपने बृहस्पत की दशा उठाएँगे, कोई शुक्र की दशा उठाएँगे, कोई बुद्ध की दशा उठाएँगे । ऐसे-ऐसे पढ़ाई में भी दशा होती है । स्कूल में भी ऐसे ही नम्बरवार होती है । ऊपर से देखो, जो अच्छी तरह से पास होते हैं उनके लिए कहेंगे इनके ऊपर बृहस्पत की दशा, सेकेण्ड ग्रेड में शुक्र की दशा, थर्ड ग्रेड में आएंगे तो बुद्ध की दशा, वो बुद्धू है ना । कम पढ़ते हैं तो उनकी बुद्धू की दशा हुई । वैसे ही हर बात में ऐसे चलता ही है । आज तो गुरुवार है । तुम बच्चों को यह नशा चढ़ना है कि बरोबर अभी हम फिर से इस भारत को श्रीमत पर स्वर्ग बनाय रहे हैं । भारत की ही बात करेंगे । ठीक है ना! अभी ऐसे कहेंगे ना! अर्थात् फिर से । रामराज्य तो नहीं कहेंगे । यह अक्षर राँग हो जाता है; क्योंकि था ही श्री लक्ष्मी और नारायण का राज्य । हम राम क्यों कहें? क्यों कहें कि यह राम ही क्रियेटर है? नहीं, क्रियेटर राम नहीं कहेंगे, उनको इनकोरपोरियल गॉड फादर शिव कहेंगे; क्योंकि चित्र है । उनका नाम है एक 'शिव । समझा ना! फिर शिव-शंकर नहीं कहेंगे । शिव कहेंगे । शिव का ही बैल पर सवारी है । शंकर की बात नहीं है । बैल इनको कहा जाता है; क्योंकि जनावर के मिसल बन जाते हैं ना । इसको ही कहा जाता है भाग्यशाली रथ, भागीरथ । इसको रथ कहते हैं, वो भी रथ है ना । जिसके ऊपर कृष्ण बैठते हैं वो घोडे और गाड़ियों का रथ बनाय दिया है, अभी यह रथ है हयूमन का । इसको अश्व यानी घोड़ा भी कहते हैं । यज्ञ का घोड़ा, जिस पर शिवबाबा की सवारी होती है । हे लाडले, मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चे! शिवबाबा बैठ करके फिर से तुमको राजयोग और सहज योग सिखलाय रहे हैं । सहज माना बहुत सहज । तुम जानते हो ना इसमें मैं तुम्हारा बाप, परमपिता जिसको कहते हैं, भक्तों का रक्षक उसको कहा जाता है, भक्तों को भक्ति का फल देने वाला आकर भक्तों को भक्ति का फल देता हूँ। । भक्त तो इतना नहीं जानते हैं कि सबसे जास्ती भक्ति किसने की होगी । यह कभी कोई जान न सके, जब तलक भी तुम ब्राहमण न बनो । तुम ब्राहमण जान सकते हो कि बरोबर सबसे जास्ती भक्ति हमने की है जो हम आ करके शूद्र से ब्राहमण बने हैं । वो निशानी-चिहन चाहिए ना । वो बोलते है ना-प्रूफ दो । पूफ यही है कि बरोबर हम सो देवता थे, सो फिर क्षत्रिय बने, सो वैश्य बने, सो शूद्र बने, सो अब ब्राहमण जरूर बनना है सो देवता बनने के लिए । अभी हम सो का अर्थ अच्छी तरह से समझे? यहाँ हम सो का अर्थ बड़ा भारी है! और वो लोग कहते हैं- हम आत्मा सो परमात्मा, सो परमात्मा हम आत्मा, यह उल्टा रख दिया है । उनसे तो कोई बात ही नहीं है । यह तो बहुत समझ की बात है । तो बच्चों को क्या करना चाहिए? पुरुषार्थ खूब करना चाहिए । वो भी जानते हैं कि तुम्हारा पुरुषार्थ ड्रामा अनुसार होगा; परंतु साक्षी हो करके हम देख तो सकेंगे ना । ड्रामा के ऊपर तो नहीं छोड़ देना- ड्रामा में होगा तो हम पुरुषार्थ करेंगे, घर में बैठ जाएंगे । ऐसे कभी नहीं समझना चाहिए, क्योंकि कर्म बिगर मुनष्य रह नहीं सकते हैं और दुनिया में कोई भी मनुष्य नहीं है जो पुरुषार्थ बिगर रह सकता होगा । पुरुषार्थ करेगा तो पानी भी पी सकेगा, पुरुषार्थ करेगा तो कहाँ भी जा सकेगा । पुरुषार्थ करेगा तो स्नान भी कर सकेगा । इसको कर्मयोग कहा जाता है । उन लोगों का जो कर्म सन्यास है, वो कर्म सन्यास कभी होता ही नहीं है । सिर्फ वो जो भीख माँगते हैं यानी अपने लिए अन्न नहीं पकाते हैं, इसलिए उनको कर्म सन्यास कर देते हैं; परंतु वो तो तुम बच्चे देखते हो, जानते हो बाप ने समझाया है कि जबकि सहज राजयोग सिखलाने वाला नहीं है, तो फिर उनकी महिमा है जरूर, क्योंकि वो पवित्र है । अभी यह तो समझाया गया है कि वो रजोगुणी पवित्र हैं, क्योंकि रजोगुणी ज्ञान है, रजोगुणी दुनिया में आते है और तुम आते हो सतोप्रधान दुनिया में । सतोप्रधान दुनिया में आने के लिए, पवित्र बनाने के लिए फिर बाप की जरूरत है । वो शंकराचार्य, फिर यह शिवाचार्य- ऐसे कहेंगे । ज्ञान सागर कहा जाता है, नॉलेजफुल कहा जाता है ना । तो शिव-आचार्य भगवानुवाच माना आचार्य । यानी खुद बैठ करके समझाने वाले को आचार्य कहा जाता है, यहाँ आचार्य बहुत हैं ना । ढेर के ढेर आचार्य होते हैं । तो वो शिव-आचार्य, जो बैठ करके सतोप्रधान राजयोग और सहजयोग सिखलाते हैं । फिर वो रजो शंकर-आचार्य । फिर वो है निवृत्तिमार्ग और यह है प्रवृत्तिमार्ग । भगवान रचना रचते हैं ना । देखो, प्रवृत्तिमार्ग है ना । वो सूक्ष्मवतन में भी प्रवृत्तिमार्ग है । चार भुजाएँ वाले हैं । तो भी अर्थ बच्चों को समझाय दिया है कि प्रवृत्तिमार्ग है इसलिए चार भुजाएँ दी है । अच्छा, अभी बच्चे तो समझ जाते हैं हर एक बात और धारण करनी है और उस खुशी में रहना है । गाया जाता है ना- अति इन्द्रिय सुखमय जीवन पूछना हो तो गोपीवल्लभ के गोप-गोपियों से पूछो । अभी गोपीवल्लभ कृष्ण को नहीं कहा जा सकेगा । वल्लभ माना बाप । कृष्ण का तो बाप था ना जिससे जन्म लिया । तो उनको थोड़े ही गोप और गोपीवल्लभ कहेंगे या उनको प्रजापिता कह सकते हैं । नहीं । देखो, प्रजापिता ब्रह्मा और सालिग्रामों का पिता शिव । दो हो गया ना । वो रूहानी पिता, यह जिस्मानी पिता । बच्चों को कैसे अच्छी तरह से साफ- समझाते हैं! समझाने के लिए भी तो बच्चों को हिम्मत चाहिए ना । तुमको कहा जाएगा- इनके ऊपर अविनाशी बृहस्पत की दशा बन रही है । जो सदा दुर्भाग्यशाली थे वो सदा सौभाग्यशाली बन रहे हैं, क्योंकि ये सदा दुर्भाग्यशाली हैं ना । आदि-मध्य-अंत दु:ख है); क्योंकि यह है मृत्युलोक । वो है अमरलोक । अभी अमरलोक के लिए फिर शिव बैठ करके अमरकथा सुना रहे हैं । शंकर नहीं, फिर शिव कहेंगे ना । शिवाचार्य कहेंगे, शंकराचार्य नहीं । न ब्रह्मा-आचार्य कहेंगे । अभी ब्रह्मा सीखता है । समझा ना! फिर विष्णु-आचार्य नहीं कहेंगे, क्योंकि उनको यह ज्ञान नहीं है । न शंकर को, न विष्णु को, न ब्रह्मा को ज्ञान है, न ब्रह्मा और ब्राहमणों के बच्चों को ज्ञान है । अच्छी तरह से समझते हो! ये बडी समझने की बातें होती हैं । आज गुरुवार है । शिवबाबा बैठ करके बच्चों को अच्छी तरह से समझाते हैं कि शिव-आचार्य, उनको कहते है ज्ञान सागर । कौन? परमपिता परमात्मा, मनुष्य सृष्टि का बीजरूप, जिसके लिए कहा जाता है कि बीज ऊपर में है, यह झाड़ उल्टा है । इसको उल्टा झाड़ कहा जाता है । उल्टा झाड़ कैसे? वैराइटी धर्मो का उल्टा झाड़ । बरोबर वैराइटी धर्म हैं और नम्बरवार आते हैं । ऐसे नहीं कि सब एक जैसे हो जाएँगे । जब देवी-देवता सूर्यवंशी कुल है या डिनायस्टी है, तो चंद्रवंशी नहीं हैं । हैं; परंतु गुप्त वेश में हैं, जैसे कि दास-दासियां बनी हुई हैं । अभी यह देखो कितनी गुप्त बातें हैं- हैं, ऐसे नहीं कि नहीं आएँगे । स्वर्ग में तो तुम सब बच्चों को आना पड़े, परन्तु देखो, वो जो चंद्रवंशी बनने वाले हैं, वो पूरा इस्तहान पास न करने कारण क्षत्रिय बनते हैं । होता है ना इम्तहान 33 मार्क्स के नीचे । जो अब नापास होते हैं, फिर उनको क्षत्रिय कहा जाता है । अभी उन्होंने तो समझा है कि जो बाण मारते होंगे या फलाना करते होंगे वो क्षत्रिय है । नहीं । तुमको क्षत्रिय क्यों कहा जाता है? क्योंकि युद्ध के मैदान में हो, परंतु नॉन-वाइलेंस हो, अहिंसक हो । तुम योगबल से माया पर जीत पहनने वाले हो । सेना जरूर हो । इसको कहा ही जाता है-रिलीजियो पॉलिटिकल वारियर्स या शिव-शक्ति सेना । रिलीजियो पॉलिटिकल । यानी रिलीजियन स्थापन कर रहे हो, साथ-साथ राज्य स्थापन कर रहे हो । तुम्हारे सिवाय भारतवासियों के और कोई भी नहीं होता है जिनको लाइट का भी ताज है और रत्न-जड़ित ताज है और सूर्यवशियों के और चंद्रवंशियों के हैं । फिर जब वैश्य वंशी बन जाते हैं तो उनका लाइट का ताज खत्म हो जाता है; क्योंकि वाममार्ग में चले जाते हैं । अरे, अच्छी तरह से नोट्‌स लो, बड़ा अच्छी तरह से समझाय रहे हैं । अरे इस ज्ञान से 84 जन्म के लिए कमाई कर रहे हो, मनुष्य एक जन्म के लिए भी सिर्फ यह कहेंगे कि भई, इसने कर्म अच्छे किए हैं तब साहुकार के पास जन्म लेते हैं, अच्छा पढ़ते हैं । सो तो समझाया जाता है कि जो-जो अच्छा दान करते हैं, अस्पतालें बनाते हैं, कोई धर्मशालाएँ बनाते हैं, कोई यूनिवर्सिटियाँ बनाते हैं या कुछ भी दान-पुण्य वगैरह करते हैं, तो उनका फल जरूर मिलता है और बाप आ करके समझाते हैं फल देने वाला भी मैं हूँ । सबका सद्‌गति दाता, फल दाता एक है, दूसरा न कोई । ऐसे नहीं समझना चाहिए कि इनकी कृपा-सेवा । नहीं, कृपा सब एक की । किनके हाथों? भई, सन्यासियों के हाथों । सन्यासियों के पास जाएँगे- आशीर्वाद करो, पुत्र मिले आशीर्वाद करो, यह बीमार अच्छा हो जावे । वो सन्यासी कुछ नहीं कर सकते हैं । भावना का भाड़ा देने वाला बाप है । नाम उनका, क्योंकि उनकी परवरिश होनी है । समझा ना! क्योंकि पवित्र रहते हैं ना । बाप बैठ करके बच्चों को यह राज़ समझाते हैं । कौन समझाते हैं? वो भी कहते हैं- मेरे मोस्ट बिलवेड बच्चे यानी अति प्रिय बच्चे, क्योंकि तुम बाबा के साथ भारत की सर्विस करते हो तो प्रिय ठहरे ना । तो तुम भी कहेंगे- बिलवेड मोस्ट बाप । बरोबर ऐसे की तो याद करना चाहिए, क्योंकि और सब तुम्हारे मित्र-संबंधी, गुरू-गोसाई जो भी हैं फिर भी तुमको अपने पाँव पर खडा कर देते हैं । सन्यासी क्या तुमको खड़ा कर देते हैं! क्या वो पढ़ाई पढ़ाते हैं? नहीं, वो तो और ही उल्टा परमपिता परमात्मा से बेमुख करके 'ईश्वर सर्वव्यापी है, तुमको गटर में डालते हैं, बल्कि नर्कवासी बनाते है; इसलिए बाबा कहते हैं- 5000 वर्ष पहले भी बच्चों को कहा था कि इन गुरु-गोसाइयों वगैरह को छोड़ दो; क्योंकि मैं हूँ पतित-पावन, तो कोई पतित भी बनाने वाला होगा ना । पतित बनते-बनते, भले माया बनाती है, पर उन्हों द्वारा भी माया पतित बनाती है ना । उनकी बुद्धि में उल्टा ज्ञान है- ईश्वर सर्वव्यापी है । यह उल्टा ज्ञान किसने उनकी बुद्धि में डाला? माया । यह पाँच विकार रूपी दुश्मन, जो कह देते हैं कि ईश्वर सर्वव्यापी है । फिर कहते हैं- पतित-पावनी गगा है । अब पतित-पावनी गंगा कैसे हो सकती है! फिर मनुष्य तीर्थ-यात्राओं, और तरफ में क्यों जाते हैं? सिर्फ जा करके गंगा में स्नान करें, पावन बन जाएँगे । इतना धक्का खाने की भी क्या दरकार पड़ी है कब! बिचारे विलायत वाले भी बाहर धक्का क्यों खाते हैं? यहाँ आ करके पावन बन जावे परन्तु नहीं, यह बोलता है- यह सभी हैं गपोड़े । गपोड़े भी बड़े-बड़े, लम्बे-चौडे । इसलिए बाप बैठकर के बच्चों को समझाते हैं)। अभी सुनते तो तुम बच्चे हो । कल्प पहले वाले बच्चे ही आ करके सुनेंगे । 84 का चक्र भारत में गाया जाता है । और कोई जगह में गाया नहीं जा सकता है, न इस्लामियों में, न बौद्धियो में, न क्रिश्चियन में, न इत्यादि-इत्यादि । इसमें हिसाब है तुम बच्चों को । अच्छा, अब चलो हिसाब करें । मैथमैटिक्स भी तो है ना; क्योंकि वर्ल्ड की हिस्ट्री-जाग्राफी का ज्ञान है, तो उसमें मैथमैटिक्स भी तो होनी चाहिए ना! हिसाब करना होता है । हिसाब करो- जब ये देवताऐ 5000 वर्ष में 84 जन्म भोगते हैं, तब इस्लामी लोग या क्रिश्चियन लोग कब आते हैं? कितना समय लगता है? उनको 2000 वर्ष लगते हैं । अच्छा चलो, सबका हाफ एण्ड हाफ कर दो; क्योंकि यह भी एवरेज सवा सौ, अभी इनका एवरेज 30-35 होता है । सतयुग से ले करके अभी ऐसे । उस हिसाब से फिर तुम क्रिश्चियन लोग का निकालो । उनको 2000 वर्ष हुआ, उनको पाँच । 2000 वर्ष से एवरेज निकालो- वन थर्ड । ऐसे निकालेंगे, और क्या करेंगे? 2000 वर्ष में कितना जन्म लेते होंगे? वो 5000 में चौरासी, तो वन थर्ड 2000 में कितना हुआ? फिर भले सिक्ख का निकालो, फलाने का निकालो । मैथमैटिक्स में जो होशियार होंगे ना वो निकाल लेंगे । होशियार होते हैं न कई, मैथमैटिक्स में कभी-कभी कोई बहुत मार्क्स लेते है, उसे हिसाब करो । अच्छा, अभी जो मठ-पंथ वाले होते है, फिर पिछाड़ी में बहुत निकल पड़ते हैं । जो-जो आत्मा आती है उनका प्रभाव होता है; इसलिए वो जल्दी अपना मठ-पंथ सभा वगैरह स्थापन कर लेते हैं । देखो, अरविन्द घोष अभी-अभी कल का है । वो बंगाल से भागा हुआ था । जब एक बंगाल में. साघु हुए थे ना । तो वहाँ से उनको पकड़ने का था, तो बंगाल से भाग गया था । वो जा करके वहाँ छिपा । अरविन्द घोष के ऊपर वार्रेंट था । तुम लोगों को शायद मालूम नहीं है; परतु अरविंद घोष बंगाल का था, बंगाल से भागा था, जबकि बंगाल में इनकी अंग्रेजों से बड़ी चटा-भेटी चलती थी । अंग्रेजों को बहुत मारते थे, उस समय की बात है । अब देखो! तो क्या कहेंगे कि कोई आत्मा उनमें आ करके प्रवेश की है । वो अपना अरविंद घोष का मठ स्थापन कर लिया । तो उनमें कोई की प्रवेशता आती है । नए जो आते है कुछ न कुछ जोरदार होते हैं ना । तो देखो, बहुत स्थापन कर लिया । अभी-अभी आए । अच्छा, अरविंद घोष का जो भी टाली हुई, जिसमें बहुत है, लाख होगा, दो लाख होगा; क्योंकि वृद्धि तो बहुत होती है ना । अच्छा, ये छोटी टाली ये अरविंद घोष को जो मानने वाले होंगे, जो उनके फालोअर्स होंगे, वो आत्माएं वहाँ से फिर कब आएँगी, जो उनके मठ में चली जाएँगी? पिछाड़ी में आएँगी । एक जन्म, आधा जन्म, बस और क्या होगा! तो पिछाड़ी में आने वाले हैं ना, ये हुई टाल-टालियाँ से भी छोटी-छोटी टालियाँ । यह झाड़ का राज समझाया गया ना जो कि फिर भी वहां आएँगे । वो आत्माएँ फिर इनके मठ वाली होंगी वो अभी आती रहेंगी. जन्म लेते रहेंगे, फिर उनकी वृद्धि होनी चाहिए । ऐसे-ऐसे. ये जो भी मठ-पंथ हैं-राधा-स्वामी या आर्यसमाजी आदि ये ऐसे ही वृद्धि पाते हैं । एक आते हैं उनका स्थापन करने वाला । ये तो सभी हैं रजो-तमोगुणी । इस समय में सब तमोगुणी हैं । झाड़ को भी अच्छी तरह से समझाना चाहिए । ऐसे थोड़े ही है कि कोई इस झाड़ को समझते हैं । कोई भी नहीं समझते हैं । निवृत्तिमार्ग वाले यह नहीं समझा सकेंगे, क्योंकि वो मार्ग ही अलग है । बाप ने समझाया कि यह भारत को थमाने के लिए ड्रामा में बना हुआ है, नहीं तो भारत काम-चिता पर बैठने से एकदम जल मरे । बाप कहते हैं- यह ड्रामा में इनकी ऐसी ही नूंध है । ये है निवृत्तिमार्ग वाले । तुम प्रवृत्तिमार्ग वाले और पवित्र थे, अभी अपवित्र बने हो । पवित्र थे, हीरे जैसे थे । अपवित्र हो, कौड़ी जैसे हो । एकदम कौड़ी जैसे नहीं बने हो । नहीं, फिर यह भी ग्रहचारी, क्योंकि ग्रहचारी आती है ना । पहले हमको सतयुग में अविनाशी कहेंगे बृहस्पत की दशा, फिर त्रेता में शुक्र की दशा अविनाशी कहेंगे; क्योंकि जन्म-जन्मांतर के लिए कहा जाता है न पीछे ये उतरते हैं , पीछे यह बुद्ध की, मगर ये अभी राहू की दशा । जिनके ऊपर है बृहस्पत की दशा उनके ऊपर बेहद के राहू की दशा । एक होती है बेहद की, दूसरी है हद की । हद की तो यहीं वाले सब कुछ न कुछ समझाय सकें । बेहद वाला तो बेहद वाला समझाएगा ना । देखो, बच्चों को कितनी नॉलेज मिलती है । नंबरवार पुरुषार्थ अनुसार समझते हैं और समझाय सकते हैं । चक्र का तो मालूम पड़ा ना । 84 का चक्र भी भारत में गाया जाता है । 84 का चक्र तो तुमको कोई समझाय न सकेगा । भले तुम्हारे पास विष्णु का चित्र है, जिनमें कुल दिखलाते हैं- देवताएँ क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र । अच्छा, फिर कोई उनका वृत्तांत समझाय सके! चित्र उठा करके कोई तुमको बताय सकेगा? कुछ भी नहीं । ये सभी भक्तिमार्ग है । उनमें वो समझाया है कि बरोबर सतयुग-त्रेता-द्वापर-कलहयुग वो देवताएँ थे, वो क्षत्रिय थे वैश्य और शूद्र, यह तो ठीक है और ब्राहमण वो हैं । ब्राहमण से पूछेंगे तो कहेंगे- हम ब्रह्मा की मुखवंशावली हैं, परंतु कब? कभी नहीं बता सकेंगे । यहाँ ब्रह्मा कब आया था? वो मूंझ जाएँगे । बोलेंगे- ब्रह्मा तो ऊपर में रहने वाला, यहाँ कब आया होगा? अरे, पर प्रजापिता है सो तो आया होगा ना! नहीं, वो बिचारे नहीं समझ सकेंगे । बोले- हम चले आए हैं, हम कहते हैं कि ब्रह्मा की औलाद । तो यहीं फिर देखो दो ब्राहमण- वो जिस्मानी यात्रा वाले ब्राहमण, तुम रूहानी यात्रा वाले । फर्क हो गया ना । वो भी ब्राहमण, ये भी ब्राहमण । वो भी ब्राहमण ही होते हैं, आजकल तो सन्यासी घुस पड़े हैं, जो ले जाते हैं, नहीं तो ब्राहमण अथवा पण्डे यात्रा पर ले जाते थे । गंगा जी के पण्डे सब ब्राहमण होते हैं । उसमें ये सन्यासी घुस पड़े, नहीं तो इनका काम इसमें घुसने का है ही नहीं । सन्यासियों को बाप बैठकर समझाते हैं- ये यज्ञ-तप-दान-पुण्य, तीर्थ वगैरह, ये भारतवासियों की भक्तिमार्ग है और वो हैं निवृत्तिमार्ग वाले । फिर जो रसम-रिवाज तुम गृहस्थियों की हैं, वो रसम-रिवाज उनकी नहीं होती है; परंतु लालच के मारे फिर देखो इसमें घुस गए हैं । तुमको तीर्थ आदि भी कराते हैं, टीका वगैरह पढ़ते हैं । नहीं तो उनको पढ़ने की क्या दरकार रहती है! वो साधु लोग साधना करते हैं । ये जो भक्त हैं, भगवान आ करके इन भक्तों को मिलेंगे । उनका नाम ही साधु है । असुल अर्थ क्या है? ज्ञान-भक्ति । फिर ये वैराग । यह तुमको सब बताते होंगे कि एक है ज्ञान, फिर है भक्ति और है वैराग । 'वैराग' धर्म है सन्यासियों का । वैराग धर्म हुआ- घर छोड्‌कर जाना । जो गृहस्थियों की रसम-रिवाज है, उनकी फिर नहीं चलती है, परन्तु यह राज़ तो तुमको बाप बैठ करके समझाते हैं । और तो कोई नहीं समझाय सके ना । वो ही समझाते हैं, जो तुम बच्चों को फिर से आ करके सो देवी-देवता बनाते हैं और कहते भी ऐसे ही हैं कि जो पहले वाले थे, जो शूद्र बन गए हैं, उनमें से जो-जो आ करके ब्राहमण बन और पुरुषार्थ कर पड़ते रहेंगे और पढ़ाई के ऊपर सारा मदार है, वो भी समझाय देते हैं । अगर नापास होंगे तो क्षत्रिय कहलाएँगे और रामराज्य में चले जाएँगे, परंतु ऐसे नहीं कि तुम्हारी आत्मा वहाँ सूर्यवंशी के समय में ऊपर में बैठी होगी । नहीं, वो भी होंगी । फिर उनको दास-दासियों वगैरह तो बहुत चाहिए ना । तो वो अनपढ़े पढ़े के आगे भरी ढोएँगे । यह यहीं का वो बाप बैठ करके समझाते हैं, कायदा होता है ना । जो बहुत पढ़ते हैं, उनके आगे कम पढ़ने वाले भरी ढोते हैं, क्लर्क बनते हैं, अण्डर बनते हैं । उनको भी तो जरूर अण्डर बनना पड़े ना । क्यों नापास हुए? जरूर कुछ पढ़ाई को अटेंशन न दिया होगा, सो तो तुम देखते हो, बहुत है यहाँ ऐसे, पढ़ाई को ठीक से अटेंशन नहीं देते हैं । बाप बैठ करके बच्चों को सब बात अच्छी तरह से समझाते हैं- बच्चे, कान खोल करके सुनो । ये नहीं है, ये याद रख लो, मनुष्य जब कहते हैं भगवानुवाच, तो समझ लेते हैं- अरे, यह दादा अपन को भगवान कहते हैं । ब्रह्मा नाम तो वो बाप ने आ करके दिया; क्योंकि हमने सन्यास लिया, मैं उनका बना । शिवबाबा का बना, ईश्वर का बना, तो जरूर मरजीवा बना । मरजीवे का नाम तो पड़ता है ना, जैसे सन्यासी मरजीवे बनते हैं । घर-बार छोड्‌कर जाते हैं तो नाम बदल जाते हैं । कोई गोद में लेते हैं, तो भी नाम बदलाते हैं । तो बाप ने गोद में लिया । वो खुद कहते हैं- मैंने इनको गोद में लिया है, हमने इनको अपना बच्चा बनाया है । बच्चा कैसे? इनके रथ में प्रवेश किया है । इसलिए इनका ही नाम थोड़े ही बदलाया है । नही, हमने बहुत बच्चों का भी नाम बदला दिया है और एक ही बार सबका नाम मैंने दिया है, बाबा बोलते हैं । इन्होंने अपना नाम आपे ही नहीं रखा है । देखो, कितना-कितना नाम है । निर्मलशान्ता, बृजेश शांता, मनोहर, क्या-क्या ढेर नाम हैं । तो उसने बैठ करके नाम दिए । यह भी ड्रामा में था जरूर । अभी यह थोड़े ही गीताओं में और भागवतों में, इन सब चीजों में लिखी हुई है । नहीं, वो तो सभी हैं भक्तिमार्ग की दंत-कथाएँ । दंत-कथाएँ कहा जाता है, उनको नॉवेल कहा जाता है । दंत-कथाएँ पढ़ते-पढ़ते कुछ भी नहीं है यानी भारत को तमोप्रधान बनना ही है । जड़जड़ीभूत अवस्था को पाना ही है । कौड़ी जैसा बनना ही है । फिर इन्होंने क्या किया? यह सब ड्रामा क्योंकि उनको भी तो अपना जमने दो । अभी सन्यासी शंकराचार्य कब आया? उनका मैथमैटिकली हिसाब करो कि उसने कितना जन्म लिया होगा, फिर नंबरवार आते रहते होंगे । उसके झाड़ से आते रहेंगे । सब तो 84 जन्म नहीं लेंगे न । 84 भी तुम्हारे लिए कहते हैं, जो पहले-पहले सतयुग में सूर्यवंशी आते हैं । वो पीछे से फिर आते रहते हैं ना, सब थोड़े ही आते हैं । तो देखो तुम बच्चों को कितनी नॉलेज मिल गई है । 84 का चक्र वा ये सत, त्रेता, द्वापर, कलहयुग और संगमयुग का चक्र कैसे फिरता है, तुम जानते हो । तुम ऐसे भी कहेंगे कि हम बरोबर ब्रह्माण्ड के मालिक थे, क्योंकि तुम सभी जो अण्डे हैं सो ब्रहम-महतत्व में रहते थे, फिर कहेंगे- जहाँ रहने का स्थान होता है, उसको अपना कहा जाता है । हम ब्रह्माण्ड के मालिक थे । आत्माएँ सब कहेंगी कि हम असल में ब्रह्माण्ड में रहने वाले ब्रह्माण्ड के मालिक थे । वहाँ बाप भी रहता था । ऐसे नहीं कहेंगे बाप भेजते हैं, तो ड्रामा अनुसार सब फिर अपने समय पर आते ही रहते हैं । तो ब्रह्माण्ड का ज्ञान हुआ, ब्रह्माण्ड का मालिक का ज्ञान हुआ, फिर विश्व का मालिक कौन? फिर विश्व का मालिक शिवबाबा को नहीं कह सकेंगे । ब्रह्माण्ड का मालिक कह सके, विश्व का मालिक नहीं कह सके; क्योंकि विश्व महाराजन विश्व महारानी तो भारत के मालिक बनते है । उनको नहीं कह सकते । नहीं तो मनुष्य जब भी पूजा करे, आपे ही पूज्य, आपे ही पुजारी । किसको कहते हो आपे ही पूज्य, आपे ही पुजारी? किसको पता है? बहुत है, ऐसे गाते हैं-आपे ही पूज्य, आपे ही पुजारी । कैसे आपे ही पूज्य, आपे ही पुजारी? कौन? यह कोई भी नहीं जानते हैं । बाप बैठ करके तुम बच्चों समझाते हैं- मैं तो एवरपूज्य हूँ । भक्तिमार्ग में मुझे बहुत याद करते हो और भक्तिमार्ग में शिव का लिंग पूजते हैं, पहले-पहले मेरी पूजा शुरू होती है, वो भी बता देते हैं ना । पहले-पहले मेरी पूजा शुरू होती है, क्योंकि मैं ही पहले-पहले तुमको इतना वर देता हूँ । ऊँचा वर । यह वर है ना । 'आयुष्मान भव यह ब्राहमण लोग वर देते हैं । अभी तुम सच्चे ब्राहमण यह वर दे सकते हो । 'आयुष्मान भव, 'पुत्रवान भव, 'लक्ष्मीवान भय- लक्ष्मीवान भव अर्थात् लक्ष्मी को वर सकते हो । लक्ष्मी तो बहुत साहुकार हुई । इतनी बहुत साहुकार थी, जरूर लक्ष्मी और नारायण दोनों होंगे ना । बाबा ने समझाया था कभी दीपमाला आती है ना, तो ये बच्चे समझते है कि हम लक्ष्मी का चार भुजा का पूजन करते है । अभी उनको यह तो मालूम नहीं है कि लक्ष्मी की चार भुजाऐ कहाँ से आई । लक्ष्मी को तो दो भुजा हैं ना । लक्ष्मी और नारायण मनुष्यों को तो दो भुजाएँ होती हैं । चार भुजाएँ का अर्थ नहीं समझते हैं, तो बाप बैठ करके समझाते हैं कि बच्चे, लक्ष्मी का पति कहाँ उड गया क्या! दो भुजाएँ उनकी, दो भुजाएँ उसकी उनके लिए । उनसे धन मिलता है; क्योंकि बहुत साहुकार होते हैं । उनसे ये धन लेते हैं, कोई को मालूम तो नहीं है- लक्ष्मी और नारायण व विष्णु चतुर्भुज, फिर दीपमाला के कारण महालक्ष्मी कह देते है । वो बड़े या जगदम्बा बड़ी? अभी है तो वो ही । वही जगदम्बा ही लक्ष्मी बनती है । परंतु क्यों? उसकी पूजा करते हैं, पैसा नहीं माँगते हैं, उनमें जा करके आशाएँ करती है- पति मिले, धन मिले, फलाना मिले । दीपमाला के दिन लक्ष्मी से सिर्फ धन माँगेंगे । अम्बिका के पास जाएँगे तो बहुत आशाएं निकालेंगे; परंतु इस समय में अम्बिका सभी आशाओं को पूर्ण करने वाली हैं । इसको कामधेनु कहा जाता है । कल्पवृक्ष के नीचे बैठी हुई है । अभी कल्पवृक्ष के नीचे है ना । यह अभी राजयोगिन है, वो जगदम्बा । तुम बच्चों को शिवबाबा से वर मिला है ना कि सबकी मनोकामनाएँ पूर्ण करो । मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं स्वर्ग में । वहाँ कोई भी ऐसे यह मत्था-पीट करने की बातें जैसे ठगी, चोरी वगैरह कुछ होती नहीं; क्योंकि प्रालब्ध है । ये सभी बाबा आज देंगे, एश्योर करेंगे, लिख्र करके आओ । आज गुरूवार है, बहुत आए हुए हैं जो कभी स्कूल में आते ही नहीं हैं । गुरुवार के दिन आकर मुँह दिखला जाते हैं । उनको बाबा क्या कहेंगे! डफर स्टूडेंट्‌स कहेंगे ना! थर्ड क्लास स्टूडेंट्‌स कहेंगे! बाप तो ऐसे कहेंगे ना! क्योंकि उनको वो पता ही नहीं है कि बरोबर हमको बाप से वर्सा लेना है । लक्ष्मी नारायण का पुरुषार्थ करें फिर वर्सा मिलेगा ना । पास होंगे तो कल्प-कल्प पास होते रहेंगे- वो उनकी बुद्धि में पूरा बैठता ही नहीं है । कुछ समझते ही नहीं है । तो यह भी कहते है ड्रामा । ऐसे कहेंगे ना; क्योंकि जूँ मिसल ड्रामा चलता रहता है । हम साक्षी हो करके देखते हैं, जैसे बाप साक्षी हो करके देखते है । फिर यह भी साक्षी हो करके और अनन्य बच्चे भी साक्षी हो करके सब राज देखते रहते हैं । गीता पढ़ते हैं, कोई नहीं पढ़ते हैं, कोई बहाना करते हैं । कोई कर्मबन्धन का बहाना देते हैं । कर्मबन्धन के लिए भी जो वो कहते हैं- एक था तोता या कबूतर ।वो झाड़ पर पड़ा रहता था और फिर कहते थे मुझे कोई झाड़ के टाली से छुडावे । तो वो दृष्टांत देते हैं । उनको कहा जाता है- पर है तुम्हारे पास, तुम तो उड़ सकते हो, तुमको कोई टाली में बधायमान थोड़े ही किया है । तो यह भी आकर कहती हैं- क्या करे, कर्मबन्धन-कर्मबंधन । कहाँ तक कर्मबन्धन कूटती रहेंगी! प्रलय या विनाश आ जाएगा, तब तलक कर्मबन्धन कूटती रहेंगी! यानी तुम तो मनुष्य हो, कोई जनावर थोड़े ही हो, तुमको कोई कर्मबंधन बंधा थोड़े ही है । यह मोह है तुम्हारा, मुर्दा । वो बैठ करके तुमको बांधा है, लोभ है, और कुछ घूर नहीं है । बाप आया हुआ है । तुम भक्तिमार्ग में गाती आती हो- आओ प्रभु मैं वारी जाऊँगी, कुर्बान जाऊगी । तेरे बिन मैं कोई को भी याद नहीं करूँगी । मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरा न कोई कहेंगी । अभी वो तुम्हारे भक्तिमार्ग की जन्म-जन्मांतर की पुकारें कहाँ हैं? जब आया हूँ तो कहती हैं मुझे कर्मबन्धन है, यह है, पति मारता है । पति तुमको मारता है तो मरो, उसको हम क्या करेंगे? अरे गवर्मेन्ट कभी तुमको रोक नहीं सकेगी । छोटी बच्ची हो, सयानी सो हो और कोई उनको रोकेगा नहीं, तुमको शादी करना होगा, वो गवर्मेन्ट को लिख देवे- नहीं, हम भारत को मॉरल में ले आने के लिए पवित्र रहती हैं । आजकल तो मॉरल-मॉरल-मॉरेलिटी के लिए बहुत पुकारते है । आज के अखबार में लोग कहते है-बस हमको तो यह इम्मारैलिटी ने हैरान किया है, क्योंकि गंद लगा पड़ा है । बड़े-बड़े घर में तुम बड़ी-बड़ी वैश्याएँ देखेंगी । ये बड़े-बड़े महल है ना इतना, कोई न कोई बड़े महल में एक वैश्या जरूर होगी, बड़े आदमी के लिए । समझा ना! यहाँ भारत में इतनी इम्मॉरैलिटी है । वो भी बिचारे कहते हैं; परन्तु क्या करें? उनको तो समझ भी नहीं सकेंगे । अभी कौन सिखावे, क्योंकि गाँधी भी तो फेल हो गया । अभी कौन? कृष्ण तो है ही नहीं गीता का भगवान, तो एकदम मूंझे पड़े हैं । अभी जब उनको समझाया जाए कि नहीं बच्चे, यह बाप प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा ही तो नई रचना रचते हैं ना । वो प्रजापिता का पार्ट कहाँ गया? कोई सन्यासी, विद्वान, आचार्य वगैरह कुछ जानते थोड़े ही हैं । तुम उनको कुछ भी समझाएंगे तो बोलेंगे- ये सब तुम्हारी कल्पनाऐ हैं । वाह! तुम कहाँ से निकलीं! यह सारी दुनिया जानती है कि गीता का भगवान कृष्ण है । अरे भई, कृष्ण ने भला कौन-सा धर्म स्थापन किया? हिन्दू धर्म । अरे, हिन्दु धर्म तो है ही यहाँ आदि सनातन । वो तो स्वर्ग की स्थापना करने वाला, उनको कहेंगे कि वो तो स्वर्ग का प्रिन्स है । प्रिन्स को स्वर्ग का प्रिन्स किसने बनाया? यह कैसे कर्म किए, जो ये लक्ष्मी नारायण ऐसे बने? कहाँ से आए? ये आत्मा तो विनाश होने की नहीं है कभी भी, आत्मा तो जरूर 84 का चक्र भोगे ।. इनको ऐसा किसने बनाया? कभी कोई नहीं बनाय सके । जरूर स्वर्ग का रचता आया होगा । कब आया? स्वर्ग में आया? नहीं-नहीं स्वर्ग में कैसे आएँगे! स्वर्ग की रचना तो उनको संगम पर करनी है, न कि कलहयुग में । तो तुम जानते हो यह संगमयुग है । ये जानते हैं कि कलहयुग है और कुण्डी-मुद्धमुते-रहते हैं, बच्चा है । देखो, रात-दिन का फर्क हो गया ना । अच्छा, अभी आज भोग भी है । इतना भी समझाया जो, ऐसे लिख भी सकें, धारण भी कर सकें । नहीं तो वास्तव में थोड़ा होना चाहिए । आधा घण्टा भी इनकी बुद्धि में बहुत मुश्किल बैठे, परंतु नम्बरवार हैं । तो अभी पुरुषार्थ करने का समय है । अपन को पुरुषार्थ करना है । अपनी क्रियेशन को हरेक को पुरुषार्थ कराना है । मित्र-संबंधियों को पुरुषार्थ कराना है; क्योंकि जैसे बाप ओबीडियेंट सर्वेंट है नर्कवासियों का, वैसे अभी तुम भी नर्कवासियों का ओबीडियेंट सर्वेंट बन गई हो । तुम अभी नर्कवासी हो ना । नर्क कलहयुग को कहा जाता है । तुम संगमवासी हो । संगम कल्याणकारी युग है । तुम अपन को नहीं कह सकती हो हम नर्कवासी हैं । नर्क कलहयुग में होता है । कलहयुग और संगमयुग में, बीच है पुरुषार्थ करने वाले । तो तुम जो ब्राहमण अपन को नर्कवासी नहीं कह सकते हो, संगमयुग वासी हो । रात-दिन का फर्क है । अच्छा ये इतना अच्छे की अपने योगयुक्त व ज्ञानयुक्त व चक्रवर्ती बच्चे, स्वदर्शन चक्रवर्ती बच्चे इतने अच्छे क्यों ? क्योंकि वो बाबा की याद मे ठीक बैठ सकते हैं । जो बाबा की बहुत याद में नहीं रहते है, यह गोरख-धंधे में रहते है, वो यहाँ बैठेंगे, उनको क्या-क्या याद आते रहेंगे, शिवबाबा को याद तो कर नहीं सकेगे; क्योंकि पुरुषार्थ नहीं है । वायुमण्डल को खराब करेगे, औरों को भी तकलीफ होती है, क्योंकि वायुमण्डल को खराब कर देते हैं; इसलिए क्लास जितना थोड़ा इतना अच्छा । सन्यासियों के पास भले कितना भी जावे, कोई हर्जा नहीं है । यहाँ तो वायुमण्डल डेड साइलेंस चाहिए । यह अभ्यास, बस । वो फरमान के ऊपर शिवबाबा की याद में और सुनते है, शिवबाबा को याद करके सुनें- शिवबाबा हमको यह सब सुना रहे हैं, शिवबाबा की याद में बैठे रहें । ऐसे सब तो हो नहीं सकते है । जो ऐसे क्लास हो, तो तुम लोगों की बुद्धि में और ही बैठे, वायुमण्डल को शुद्ध कर देते हैं; क्योंकि बहुत यहाँ आवे तो बाबा खुश होते है- ना-ना-ना । बाबा कहेंगे सपूत पात्र ही अच्छे । ऐसे है ना । बाप कहेंगे दस- बीस बच्चे क्या करें? सपूत एक भी अच्छा । अच्छा, यादप्यार देना सबका मम्मा-बाबा को भी । रिकार्ड :- आकाश पुकारे-आजा-आजा प्रेम दुआरे.... यह कहते है ना आकाश सिंहासन छोड़ दो । अभी आकाश नहीं पुकारते हैं, बाप पुकारते हैं अर्थात् ब्रहम-महातत्व, जो हमारा घर स्वीटहोम है, वो पुकार रहे हैं । आना भी जरूर होगा । तुमको पुकार रहे हैं यानी वो अपना देश तुमको पुकार रहे हैं कि बच्चे, अभी वापस आओ । शिवबाबा आया है, तो वो कहेंगे ना कि आओ, पवित्र हो करके आओ । तुम्हारे सबके पर टूटे हुए है । तमोप्रधान है ना, तो उड़ने के पर टूटे हुए हैं । अभी फिर तुमको पर मिलते है । फिर तुम जाएँगे, तो पुकार रहे हैं कि आओ । मीठी मम्मा का मीठे-मीठे सिकीलधे नंबरवार पुरुषार्थ अनुसार बच्चों को यादप्यार और गुडमॉर्निग और नमस्ते । हम कहते हैं ना- सलाम वालेकम मालेकम सलाम । यह अभी के लिए है । बच्चों को मालिक सलाम करते हैं । वो सर्विस मे आया हुआ है ना । सर्वेंट समय से जिसकी सर्विस करते हैं उनको सलाम करते हैं । निराकारी है, निरहंकारी भी बहुत हैं । देखो, जब आए शरीर में तब तो निरहंकारीपना भी दिखलाए ना । तो है कितनी बड़ी आसामी और यह भी बड़ी आसामी और दोनों निरहकारी और दोनों को फिर इकट्‌ठे कहेंगे- वी बापदादा एज योर मोस्ट ओबीडियेंट सर्वेंट । गाया जाता है- गुलाम-गुलाम तेरा । बाबा कहते हैं मैं एक ही बार तुम्हारा गुलाम बनकर आता हूँ । नारायण भी गुलाम बन जाते हैं । वो बाप भी आकर कहते है- मैं गुलाम हूँ बच्चों का, बच्चों की सेवा में उपस्थित हूँ ।