` 21-10-1963    बम्बई    प्रात: मुरली     साकार बाबा    ओम शांति     मधुबन
 


हेलो, गुड मोर्निंग, हम बम्बई से बोल रहें हैं। आज शनिवार है सन 1963 अक्टूबर की इक्कीस तारीख है, प्रात: क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं।

रिकॉर्ड :-

बड़ा खुशनशीब है. जिसे तू नसीब है, उसे और चाहिए क्या जिसके तू करीब हैं...
बाप पूछते हैं बच्चों से, क्योंकि इस समय में बाप भी जीव-आत्मा है । वो कहते हैं- इस समय में इस जीव में मुझ परम-आत्मा माना परमात्मा ने प्रवेश किया है । इसको हम जीव-परमात्मा तो नहीं कहेंगे न! शोभता नहीं है कभी । वो तो फिर भी कहते हैं कि मुझे भी तो यह शरीर चाहिए ना, जो मैं बैठ करके तुम बच्चों को ऐसा बनाऊँ, क्योंकि कलहयुग में कोई भी विश्व का महाराजन या विश्व की महारानी नहीं है । विश्व तो छोड़ो; परन्तु कोई गाँव का भी महाराजा-महारानी नहीं है । अगर कोई है तो वो बिचारा पैसा दे करके खरीद लिया है । क्यों? लॉ निकला था, तो कोई भी अपन को महाराजा-महारानी कहलाय नहीं सकते हैं । फिर भी कुछ न कुछ रकम देने से, उनको महाराजा और महारानी का टाइटिल चलाने के लिए छुट्‌टी मिलती है । ऐसे ही, जैसे जब यूरोपियन गवर्मेन्ट का राज्य था, तो पैसा देने से राजा-रानी या महाराजा-महारानी का टाइटिल मिल सकता था । अब भी, क्या हुआ? काँग्रेस ने सबका जो महाराजा-महारानी, राजा-रानी टाइटिल था वो तो सब छीन लिया, फिर भी पैसा तो बाँटते हैं ना सब कुछ । पैसा देने से कोई का भी फिर महाराजा-महारानी टाइटिल रिन्यू हो सकता है । जैसे कश्मीर का जो कुरन सिंह था, तो उनको आगे मिस्टर कहते थे । अभी उन्होंने टाइटल खरीद कर लिया, उसको महाराजा कह सकते हैं । फिर भी, वो कोई विश्व के तो नहीं हैं ना । वो तो भारत के भी नहीं, एक गांवड़े के हैं । अभी ये कौन हैं! भारतवासी कहेंगे कि ये भारत में श्री लक्ष्मी विश्व-महारानी, श्री नारायण विश्व-महाराजन थे । विश्व कहा ही जाता है यह सृष्टि को । विश्व में सूक्ष्मवतन और मूलवतन नहीं आते हैं । देखो, बाप बच्चों की महिमा कैसे करते हैं! बोलते हैं- देखो, तुम बच्चे यहाँ इस स्कूल में आए हुए हो ऐसा विश्व-महाराजन विश्व-महारानी बनने के लिए । अभी ऐसा कोई दूसरा पूछ सकेगा! और तुम भी बरोबर कहते हो कि बाबा, हम अगर श्री सीता और रामचंद्र का भी चित्र साथ में रखेंगे और पूछेंगे- ऐसा बनना चाहते हो या ऐसा? हाथ उठाओ, कौन ऐसा बनना चाहते हो? पूछेंगे तो श्री सीता और रामचद्र के लिए हाथ ही नहीं उठाएँगे । पूछा था ना उस दिन, तो बोला- नहीं, हम तो विश्व का, पहले-पहले स्वर्ग का, सतयुग का महारानी-महाराजन बनेंगे; क्योंकि हैं वो भी विश्व का महारानी-महाराजन; परन्तु त्रेता के । 14 कला हो गया ना । है बेशक विश्व का । अभी तुम बच्चे ब्रह्माण्ड के भी मालिक बनते हो और विश्व के भी मालिक बनते हो । देखो, बाप तुम्हारा मर्तबा कितना ऊँचा करते हैं । ऐसा कोई बाप कब देखा! ऐसे बाप को सिर्फ एक दफा देखा जाता है, जाना जाता है, उनसे विश्व के महारानी-महाराजापने का इनहेरीटेन्स लिया जाता है । सो भी कोई एक दफा थोड़े ही, कल्प-कल्प । तो अभी दिल में कहेंगे- कल्प-कल्प हम बाबा से इनहेरीटेन्स लेते आए हैं । सिर्फ बाबा अक्षर है, दूसरा तो कोई अक्षर नहीं । परमपिता सिर्फ यह कहेंगे, परमबाबा । पिता अक्षर कुछ श्रेष्ठ है, बाबा अक्षर उनसे कुछ कम है, परन्तु पिता, परमबाबा अक्षर शोभता नहीं है । परमपिता परम-आत्मा माना परमात्मा । है आत्मा, परन्तु परम है, इसलिए उनको परमात्मा कहा जाता है; क्योंकि परमधाम में रहते हैं । परम को सुप्रीम भी कहा जाता है; क्योंकि बाप सुप्रीम बाप है और सुप्रीम टीचर है, सुप्रीम सदगुरु है । सुप्रीम कहा, तो गुरु कहा, तो सदगुरु ही ठहरा । तो बरोबर बच्चे जानते हैं की बाप हमको ऐसे लक्ष्मी नारायण बनाते हैं । एम-ऑबजेक्ट यह है ना- नर से नारायण नारी से लक्ष्मी बनने की । गाया भी जाता है-इस समय में नशन सब में है नुकसान' । इस समय में मनुष्यों में जो भी नशे हैं, मैं कश्मीर का महाराजा हूँ फलाने का हूँ मैं करोड़पति हूँ मैं पदमपति हूँ मेरे पास तो 10 फैक्ट्रियों का या 10 कोई बड़ी करोबार का मालिक है, उन लोगों को नशा है ना । उफ़, बात मत पूछो उनके नशे की, परन्तु यहाँ कोई राजा-वाजा तो है नहीं । यह रात पूरी होती है ब्रह्मा की और दिन होता है सतयुग । कलहयुग पूरा होता है । उसमें ये विश्व-महाराजन और विश्व-महारानी, बस । कभी भी दूसरा कोई विश्व-महाराजन या महारानी बन नहीं सकते हैं सिवाय इनके कुल के, क्योंकि कहा जाता है- दैवी कुल । अभी तुम इस समय में जानते हो कि हम ब्राहमण कुल के हैं । हम बरोबर जो ब्राहमण कुल के हुए हैं सो जरूर दैवी कुल के भी होंगे । देखो, यह याद भी रखनी है, बाबा जो नित्य कहते हैं- एक तो अपन को लाइट हाउस समझो, बोलता-चलता-कर्म करता मनुष्य । लाइट हाउस तो जड़ होते है ना, वो बनाते हैं जो पोर्ट का रास्ता बताते है कि यहाँ से चक्कर लगाकर पोर्ट में आओ । तो लाइट हाउस तुम भी हो । तुम्हारी एक आँख में है मुक्तिधाम, दूसरी में है सुखधाम या जीवनमुक्तिधाम कहो और बैठे हो यहाँ दुःखधाम में । तुम यह जानते हो कि दुःखधाम कब्रिस्तान होने का है । अभी हमको सुखधाम चलना है वाया शांतिधाम । यह तो याद रह सकती है या यह भी समझाने की कोई बड़ी बात है? सिर्फ यह याद रहने से कि बरोबर यह दुःखधाम है, हम सुखधाम जा रहे हैं वाया शांतिधाम या हम शांतिधाम से आते हैं सुखधाम, सुखधाम से आते हैं दुःखधाम में, क्योंकि 84 जन्म लेने पड़ते हैं । यह भी तो तुम बच्चों को मालूम है कि चक्र कैसा फिराना चाहिए कि बरोबर आधा कल्प में 21 जन्म हम सुखधाम में रहते हैं; क्योंकि आयु बड़ी होती है ना । आधा कल्प तो राजाई के लिए मिलता है ना और अभी हम संगमयुग पर हैं । संगमयुग वालों को ही बुद्धि में ये नॉलेज है । जो कलहयुग में हैं, उनकी बुद्धि में यह नॉलेज नहीं है । जो ब्राहमण बना वो संगमयुग में आ गया । गीता में लिखा हुआ है क्या? नहीं, कुछ भी ऐसी बातें नहीं लिखी हुई हैं और ये समझने की बहुत है और गुह्य है । यह समझेंगे भी वो जो बरोबर इतना पुरुषार्थ करते हैं कि हम बरोबर विश्व का महाराजन या महारानी बनेंगे और हम औरों को भी ऐसा सुखी बनाने के लिए पुरुषार्थ करेंगे । जो इन्वेंशन सिखलाते हैं, जो सीखते हैं, वो इन्वेंशन औरों को सिखलाते रहते हैं, ये कायदा है । वास्तव में जो कोई नई इन्वेंशन निकलती है तो गवर्मेन्ट को बताया जाता है कि भई, यह नई इन्वेंशन निकली है, यह बहुत अच्छी है, फायदेदार है, भारत को बहुत मालामाल या सुखी करेगी । तो फिर वो लोग अपने हाथ में ले लेते हैं । पीछे वो शुरू कर देते हैं; क्योंकि गवर्मेन्ट के हाथ में ऐसी इन्वेंशन आई, परंतु यहाँ तो ये खुद ही गवर्मेन्ट है । वो गवर्मेन्ट ही अलग है, वो है कुरु गवर्मेन्ट ये है पाण्डु गवर्मेन्ट । कौरव गवर्मेन्ट ये पाण्डव गवर्मेन्ट । गवर्मेन्ट गाई हुई है । वास्तव में न वो गवर्मेन्ट है, न ये गवर्मेन्ट है । गवर्मेन्ट कहा ही जाता है राजधानी को । राजधानी में राजा-रानी जरूर चाहिए । राजधानी का अक्षर ही राजा से निकला हुआ है । राजा तो यहाँ कोई है नहीं । न है कौरवों को ताज, न है पाण्डवों को ताज । दोनों ताजलेस हैं और वहाँ महाभारत में या भागवत में लिख दिया है कि दोनों को ताज था और दोनों ने ही जुआ पर ताज रखा था । देखो, यह दीपमाला है ना । तुम लोगों ने कल डायलॉग बनाया ना कि देखो इस समय जुआ तो जरूर खेलते होंगे । अरे भई, जुआ क्यों खेलते हैं? कहते हैं कि नहीं, इसी समय में तो भगवान ने पाण्डवों को कौरवों से जुआ खेलाई थी । वो रहेगा तो जुआ खेलने का इल्जाम तो उनके ऊपर रहेगा ना, क्योंकि श्रीमत पर थे, परन्तु क्या श्रीमत दिया होगा पाण्डवों को कि जुआ खेलो? कभी नहीं । श्रीमत से जो श्रेष्ठ बनने वाले, वो उल्टी मत कैसे देंगे? देखो, हैं ना शास्त्र सब दंत-कथाएँ । वर्थ नॉट ए पेनी हम लोग लिखते हैं ना । तुम लिख सकते हो, डरना नहीं है, तुमको बाप अथॉर्टी देते हैं । तुम समझते हो और समझाय सकते हो । बिगर समझने तुम नहीं लिख सकेंगी । हम गीता के लिए भी कह देते है ना, तो हम झूठी क्यों कहते हैं? श्रीमत भगवान कौन? श्री कृष्ण । देट इज राँग । यह झूठ हो गई । श्री तो हम कृष्ण को कह ही नहीं सकेंगे । श्रीमत भगवान कृष्ण वहाँ कहाँ से आएँगे! अभी तुम जानते हो ना, तुमको श्रीमत कौन देते? श्री-श्री भगवान शिव, क्योंकि कृष्ण को बाप ने समझाया ना । उनको श्री का टाइटल है, श्री-श्री कृष्ण नहीं कहेंगे । श्री-श्री राधे नहीं कहेंगे । इनको कहेंगे श्री-श्री । किसको? शिव को या रुद्र को; क्योंकि वह रुद्र बाबा बोलता है- देखो, मेरा नाम रुद्र भी है । शिव भी है । मेरे को तो बहुत ही नाम देते हैं; परतु वास्तव में मुझे शिव माना एक पुरी भी कहते हैं, नॉट । जब गिनते हैं ना- एक, दो, तीन, चार, पाँच, छ:, फिर पुरी । पुरी माना दस हो गए । नॉट भी उसको कहा जाता है । अभी है जैसा नॉट, पर नॉट तो होती है पुरी। यह नॉट को फिर स्टार के मुआफिक सजाया जाय । स्टार को तो सजाया जाता है ना । तो बाप ने समझाय दिया है कि बच्चे, हम लोग वास्तव में हैं ही जैसे स्टार, एक पुरी है । फिर लाइट निकलती है, जैसे स्टार बन जाते हैं । हम लोग जब हीरों का स्टार बनाते हैं ना, तो भी ऐसा बना करके उनमें प्वाइंटस दे देते हैं, हो गया क्लास स्टार । तो यह भी लाइट की प्वाइंटस निकाल देते हैं तो स्टार हो गया । वास्तव में आत्मा वा परम-आत्मा माना परमात्मा दोनों है एक जैसे सिर्फ वो बाप है, वो रहते है परमधाम में और बाप समझाते है । समझाएंगा भी तो वही ना, बच्चे थोड़े ही समझा सकेंगे । उनको कहा ही जाता है बाबा, पिता, गॉड फादर । तो जरूर बच्चे कहेंगे ना और इतने तो मूर्ख हैं, ये सब कहते भी हैं- वी आर ऑल ब्रदर्स, ब्रदरहुड, फिर जब हम ब्रदर्स हैं, तो जरूर सबका एक बाप होना चाहिए ना । यूँ तो हरेक ब्रदर का एक बाबा अलग है; परंतु ये जो सब आत्माएँ हैं ब्रदर्स, उनका तो बाप एक होना चाहिए ना । उसको ही कहा जाता है-परमपिता । फिर क्या कहा जाता है? परमधाम में रहने वाली आत्मा यानी परमात्मा । अभी समझा? तुम लोगों को किसको समझाने के लिए डिफीकल्टी लगेगी- जब इतना बड़ा उनको देते हैं तो वो बच्चे बोलते हैं- तो हम किसके साथ किसको याद करें! क्या इनको याद करें? ये तो याद नहीं आते हैं । कभी हमने याद नहीं किया । हमेशा स्थूल को याद किया यानी कृष्ण को याद किया, ब्रह्मा को याद किया, विष्णु को, शंकर को, यह सूर्य को, चंद्रमा को, तारों को, सबको देखा । ये हम कैसे याद करें? ये तो कुछ भी बड़ा है । बाप बोलते है- मैं इतना बड़ा नहीं हूँ वास्तव में । यह क्यों हमने उठाया है; क्योंकि शिवलिंग सो तो इतना ही दिखलाते हैं और सालिग्राम भी इसी शेप का दिखलाते हैं । है ना तुम्हारा भी । देखो, सूक्ष्मवतन में सालिग्राम दिखलाते हैं, शिव को बड़ा दिखलाया है; परंतु वास्तव में ऐसे है भी नहीं, क्योंकि है ही स्टार परम-आत्मा और वो आत्मा । उनको परम कहा जाता है, परमधाम में रहने वाली और ये सभी आत्मा, जो पुनर्जन्म में आती हैं । समझा ना! वो परम-आत्मा पुनर्जन्म में नहीं आती है अर्थात् पुनर्जन्म मिलता ही है यहाँ विश्व में । पुनर्जन्म कोई सूक्ष्मवतन में नहीं मिलता है । मूलवतन में नहीं मिलता है । मिलता ही है स्थूलवतन में, विश्व में । अभी देखो, तुम अच्छे बच्चे, मीठे बच्चे, लाडले बच्चे, तुम्हारे सामने यह कौन बैठा हुआ है? कौन बैठ करके समझाते हैं? अभी तुम ही समझ सको न इनको । बरोबर यह जो परमपिता, परमधाम में रहने वाली परम-आत्मा, वो खुद कहते हैं कि मुझे यह प्रकृति का लोन लेना पड़े, नहीं तो मैं भला तुमको कैसे समझाऊँ! हम नर से नारायण कैसे बनाऊँ! कृष्ण तो वास्तव में है ही नारायण । कृष्ण को नारायण नहीं समझते, पर वास्तव में है तो नारायण यानी स्वयंवर के बाद उनका नाम नारायण रखा जाता है । तो बाप बैठ करके ये सब बातें समझाते हैं अच्छी तरह से कि मीठे बच्चे, नशा चाहिए । जब चलते-फिरते हो, घूमते हो, बाबा पूछते हैं- विश्व का महाराजा बनने के लिए हम माया पर जीत पहन रहे हैं । यह भारत नहीं, बॉम्बे नहीं । विश्व का जब महाराजा बनते हो बॉम्बे नहीं होता है । तो ये सबको नशा रहता है बरोबर या कोई-कोई को रहता है? क्योंकि जो-जो कोई-कोई के शंकाओं में होंगे तो यह नशा नहीं चढ़ता होगा । तुम्हारी महिमा है कि अगर अति इन्द्रिय सुखमय जीवन की अवस्था पूछनी हो तो गोपीवल्लभ के गोप और गोपियों से पूछो । गोप और गोपियाँ और गोपीवल्लभ तो सतयुग में होता ही नहीं है । वहाँ तो है ही शहजादे-शहजादी, मालिक और राजाई । तो जरूर यहाँ की बात होगी । अति इन्द्रिय सुख पूछना हो, तो लिखा हुआ है- गोप और गोपिकाओं से पूछो । यह है फाइनल के समय की बात । क्योंकि उस समय में तुम फाइनैलिटी में आ जाते हो और यह नशा रहता है । अब इतना नशा नहीं रहता, अब घड़ी-घड़ी भूल जाते हो । देखो, सभी कहते हैं की हम विश्व की महारानी और महाराजा बनेंगे और ये इतना भी नहीं कहते हैं- अच्छा, हम विश्व की रानी और राजा बनेंगे, क्योंकि सीता को टाइटल है रानी' और उनको 'राजा' और उनको है 'महारानी-महाराजा' । फर्क है । यहाँ भी कायदा ऐसे होता है- महाराजा-महारानी बड़ी, रानी और राजा छोटा । ये टाइटल मिलते हैं । महारानी का टाइटल ब्रिटिश गवर्मेन्ट से कोई लेते थे तो लाखों देना पड़ता था । बहुत । कम से कम करोड़ दो करोड़ देंगे तब उनको मिलता था, क्योंकि बाबा इन सब बातों का अनुभवी है ना । जो राजा-रानी का टाइटिल लेता था, तो वो लाख दो, पाँच जरूर देता था और अगर कोई चाहे मुझे कोई दूसरा रायबहादुर का टाइटिल मिले, तो 10-20 हजार देना पड़ता था; क्योंकि यह बाबा का अनुभव है, किसको दिलाया था । समझा ना! दिलाया था, तो कोई 10-12 हजार दिया नहीं है । एक सौगात दे दी 200 रुपये की और वो मिल गया । नहीं तो लेते इतने हैं । तो यहाँ भी गवर्मेन्ट से कोई भी अगर मांगे और पैसा देवे तो क्या नहीं मिल सकता है । जो कुछ चाहे तो गवर्मेन्ट दे देंगे । अब देखो इस समय में, विश्व का तो कोई है नहीं और तुम बच्चे बैठे हो । तो ये गुह्य बात हो गई न तुम्हारी अब कोई दूसरे सतसंग में तो ये बातें नहीं होंगी न। वो सतसंग जो पुराने हैं, वो तो चले आते है द्वापर से; परम्परा का अर्थ यह नहीं है कि सतयुग से चले आते हैं । नहीं, ये सतसंग यानी भक्तिमार्ग । ऐसे तो नहीं कि भक्तिमार्ग सतयुग से चला आता है । अरे, ज्ञान और भक्ति । आधा कल्प ज्ञान, आधा कल्प भक्ति । आधा कल्प दिन, आधा कल्प रात । जरूर आधा कल्प ज्ञान वालों में तो ये भक्ति नहीं होगी न । पीछे पिछाड़ी में है भक्ति । तो वहाँ से ले करके यह वेद-शास्त्र-ग्रंथ वगैरह पढ़ते आए हुए हैं । पढ़ते-पढ़ते आ करके तमोप्रधान बने हैं । क्यों? भक्ति अव्यभिचारी से व्यभिचारी बननी है जरूर । द्वापर में पहले अव्यभिचारी भक्ति, पीछे नीचे उतरते-उतरते दुर्गति की बिल्कुल ही तमोप्रधान भक्ति । देखो, भक्तों को कितना नशा है! वो ज्ञान की बात सुनेंगे नहीं । बोलेंगे- नहीं-, ज्ञान से थोड़े ही भगवान मिलता है, भक्ति से भगवान मिलता है । उनसे पूंछे की ज्ञान से कहेंगे नहीं नहीं, भक्ति से भगवान आएँगे मिलने के लिए । ज्ञान से थोड़े ही मिलेगा । तो सचमुच जो शास्त्रों का ज्ञान देते हैं उनसे भगवान नहीं मिलता है । भक्तों को भगवान मिलते हैं, क्योंकि उनको साक्षात्कार कराते है । शास्त्र पढ़ने से कभी किसको साक्षात्कार नहीं होगा; परंतु भक्तों को अगर बैठ करके कोई की भी, कृष्ण की या किसकी भक्ति, नौधा भक्ति उसको कहा जाता है, करेंगे तो उनको साक्षात्कार हो जाएगा । तो वो खुश हो जाते हैं । वो समझते हैं हमको भगवान मिला । बस, इतने तक ही वो खुशी है, बाकी दूसरा कुछ भी नहीं । कोई ऐसे नहीं कि भगवान मिला तो मुक्ति मिली व जीवनमुक्ति मिली । नहीं, कुछ भी नहीं मिली । सिर्फ भगवान का दीदार हुआ और बहुत अच्छी तरह से खुश हुआ । फिर भी बाबा कहते हैं ना भक्तों को भक्ति करने से साक्षात्कार हो सकते हैं । तुम कितना भी बैठ करके शास्त्र पढ़ो, किसका साक्षात्कार हो? क्या शास्त्रों का साक्षात्कार? ये बात है भावना की तो देखो, खुद है ना, जो भक्तों की मनोकामना पूर्ण करते रहे अल्पकाल क्षणभंगुर, सो बैठ करके समझाते हैं । फिर कोई भी देवता बनाओ, भले गुड़ियों की बनाओ, भले पूंछ वाला बनावे, शीश वाला बनावे, भगवान को कुत्ते की पूँछ वाला बनावे, मच्छ बनावे, कच्छ बनावे, हाँ, उनकी आशा पूर्ण करने के लिए मैं उनको साक्षात्कार जरूर कराता हूँ । इसलिए मनुष्य समझ सकते हैं कि मच्छ में भी है, कच्छ में है या ठिक्कर में, भित्तर में, इसलिए उन्होंने यह समझ लिया, पर नहीं, यह तो अल्पकाल क्षणभंगुर के लिए उनका दिल खुश कर देता हूँ । अभी तो तुम बच्चे जानते हो, तुम्हारी दिल कितनी खुश करते हैं; क्योंकि तुम बच्चे हो, सो भी सच्चे बच्चे; क्योंकि सच्चे भी हैं, कच्चे भी हैं । सच्चे को कहा जाता है मातेला और कच्चे को कहा जाता है सौतेला । जो मातेला होगा, वो प्रतिज्ञा करेंगे और फोटो भेज देंगे और कदम-कदम पर श्रीमत पर चलता रहेगा, जो बिल्कुल पक्का होगा । जो उनसे थोड़ा कच्चा होता है, मातेला भी होता है, तो भी वो कदम-कदम पर मत नहीं लेगा । फिर भटकते रहेंगे, गिरते रहेंगे, लँगड़ाते रहेंगे; परंतु नहीं, यहाँ तो सुप्रीम पण्डा, उसको कहा जाता है रूहानी पण्डा, परमधाम में ले जाने वाला और परमधाम से आने वाला परमधाम से आया है, जो कदम- कदम पर श्रीमत देता है । बोलता है- मैं आया हूँ पण्डा बन करके तुम बच्चों को कहाँ ले जाऊँगा? फिर अपने मुक्तिधाम, निर्वाणधाम ले जाऊँगा; क्योंकि मैं रहवासी ही निर्वाणधाम का हूँ । मैं आया हूँ तुमको निर्वाणधाम ले चलने के लिए; इसलिए तो कहता हूँ ना कि हे बच्चे, अपने निर्वाणधाम को फिर से याद करो और ये सारी दुनिया उसके लिए भक्ति करती रहती है । जीवनमुक्ति के लिए कोई करते नहीं है; क्योंकि उनको कोई मत देने वाला है नहीं । कोई देवता तो है नहीं, बाकी हैं सन्यासी, वो तो मुक्ति वाले हैं । अभी वो कहते हैं कि देखो, मैं सबको सद्‌गति और गति देना वाला हूँ । सद्‌गति तो. थोड़े को मिलेगी ना, क्योंकि सद्‌गति का इम्तहान बड़ा भारी है । सद्‌गति है जीवनमुक्ति, वो है मुक्ति । मुक्ति तो कम है ना; क्योंकि जो मुक्ति लेंगे वो स्वर्ग नहीं देख सकेंगे । जो भी धर्म पीछे आते हैं सिवाय सूर्यवंशी-चंद्रवंशी के, वो कोई भी स्वर्ग में नहीं जा सकते हैं, स्वर्ग के सुख देख नहीं सकते हैं । ये वण्डरफुल वैकुण्ठ नहीं देख सकते हैं । उनमें आ नहीं सकते हैं; क्योंकि यहाँ तो पूरा लायक बनना पड़े । बाप आकर के खुद जो लायक थे सूर्यवंशी, उनको माया ने बिल्कुल ही नालायक बनाय दिया । तो नालायक को फिर लायक बनावें, तब तो सूर्यवंशी बने ना । नालायक कहा जाता है ये बंदरों को, ये बन्दर से बदतर, मनुष्य को बन्दर से भी बदतर तो अभी हरेक अपन से पूछता रहे मैं लक्ष्मी अथवा नारायण को वरने लायक बना अथवा बनी हूँ ? नशा तो चढता है सबको । कहते हैं- हम नारायण को वरेंगे या लक्ष्मी को वरेंगे । अभी अपनी सिकल अपने ही दर्पण में देखो । उसको कहा जाता है अंदर का दर्पण । यह वाला दर्पण या आईना नहीं । बरोबर जानते हो कि श्री लक्ष्मी मम्मा नारायण वरेंगी। यह तो पक्का जानते हो । अभी हरेक बच्चे पूछते है, एक तो नहीं पूछते हैं ना । बाबा हम भी पूछते हैं, हमारी अवस्था आप समझते हो, ऐसी है जो हम लक्ष्मी को या नारायण को वर सकेंगे । जब नारायण को वरना है तो बाबा बोलते हैं- तुम अपने दर्पण में मुँह देखो कि यह काम, क्रोध, लोभ, अशुद्ध अहंकार पर तुमने कहाँ तक विजय पाई है? बाकी कौन भूत हैं तुम्हारे में? हाँ, बाबा मुझे क्रोध आता है । फिर तुम श्री नारायण को वरने के लिए लायक समझते हो? यह अपने दिल से पूछो, इसमें क्या बात है! तुमको यह छोड़ना पड़ेगा । अब इसमें पूछने की तो दरकार नहीं है न । बाप समझा देते हैं अपनी दर्पण में पूछो कि तुम्हारे में काम का भूत है? भले इस समय में तुम कच्चे हो । यह तो बैठ करके कोई ने पिछाड़ी में पूछा है ना की हम वर सकेंगे । तो देखो, बात कहाँ की बैठ करके कहां, और यहाँ बाबा खुद पूछते रहते हैं- मेरे लाडले बच्चे, हाथ तो उठाते हो कि हम श्री नारायण को वरेंगे, नहीं-नहीं हम श्री रामचंद्र को नहीं वरेंगे वा हम माया से हारेंगे थोड़े ही या हम नापास थोड़े ही होंगे, 33 मार्क्स से भी कम थोड़े ही जाएँगे, आपके ऐसे नालायक बच्चे थोड़े ही हैं, क्योंकि नालायक बच्चे हुए ना, जो बाप को कहे कि बाबा, हम तो 33 मार्क्स तक भी पास नहीं हो सकते । बाबा बोलेंगे- तुम तो बड़े नालायक हो । अज्ञान काल में कोई स्कूल का बच्चा हो, बाप पूछे- अरे, पास होंगे? नहीं बाबा, हम 33 मार्क्स से भी नीचे चला जाऊँगा यानी पास होऊँगा पर यह कच्चा । अरे, तुम तो मूर्ख हो, बड़े नालायक हो । यह बेहद का बाप भी बच्चों से पूछते हैं- अरे, बच्चे पुरुषार्थ करते हो? देखो, तुम नारायण को वरने के लिए कहते हो, अपने दिल से पूछो- कोई काम है? क्रोध है? भले अगर है तो मिटाते जाओ । कोई भी ऐसा काम करेंगे, कोई के ऊपर क्रोध करेंगे तो कुलकलंकित बनेंगे । कुलकलंक माना ईश्वर को भी कलंक लगाएँगे, तो उनके कुल को भी कलंक लगाएँगे और अगर कुल को कलंक लगाएँगे तो तुम्हारा रजिस्टर खराब हो जाएगा और तुमको बड़ा घाटा पड़ेगा । तो बिल्कुल ही खबरदार चाहिए । काम नहीं, कोई क्रोध नहीं, लोभ नहीं, कोई मोह नहीं । ये सभी मिटाना होता है । मंजिल है ऊँची । आए हैं पढ़ने के लिए कि हम श्री लक्ष्मी नारायण बनेंगे, तो बच्चे बाप और माँ को फालो करो । बहुत मीठे बनो । देखो, कितना मीठा, कितना प्यारा शिवबाबा कहते हो ना । बाप कहते हैं- तुम अपने दिल रूपी दर्पण से पूछो- तुम इतने मीठे हो? इतने प्यारे हो? तुमको सब कोई ऐसा प्यार करते हैं? जैसे मम्मा-बाबा को प्यार करते हैं, वैसे तुम्हारे में से कोई ऐसे बनें, जो इनको प्यार करते हैं? बरोबर ऐसे हैं जिनको बहुत प्यार करते हैं । किसको? जो आप समान बनाने का पुरुषार्थ करते हैं, जैसे बाबा नाम भी लेते हैं । कुमारका है, वो बड़े धनवान के घर में किले में बैठी हुई है । वहाँ बड़े धनवान आते हैं । बड़े-बड़े सन्यासी, काँग्रेस वाले आते हैं, उनको बैठ करके वो समझाते हैं । फिर देखो, कानपुर में अच्छी-अच्छी गंगे है । मूमली बच्ची है । नाम लेंगे ना! जैसे कहा जाता है ना- यह पाण्डव सेना में कौन- कौन महारथी हैं । कौरव सेना में कौन- कौन महारथी हैं, बताऊँ तुम बच्चो को कौरव सेना में ओह! प्रेसिडेंट राधाकृष्णन! तुमको बताते हैं कौन- कौन बड़े हैं । फिर देखो, नेहरू जी कितना बड़ा है । फिर देखो, ये चीफ-मिनिस्टर्स, ये फलाना, कौरव सेना के एक-एक राजधानी का चीफ-मिनिस्टर्स फलाना है ना । ये ऐसे क्यों बने? इन्होंने काँग्रेस को मदद दी थी, बापू जी को, जो बिचारे चाहते थे कि हम रामराज्य स्थापन करेंगे । वो चाहता था; परंतु वो तो नहीं कर सके न । तो वो कुछ न कुछ कर दिया, तो कौरव राज्य स्थापन कर दिया । जो न था, ये ड्रामा में वो होने का था, जिन्होंने मदद दी, देखो, हैं ना उनके ऊपर । अच्छा, यहाँ भी देखो, पाण्डव सेना में कौन-कौन महारथी हैं । बताया ना- मम्मा है, बाबा है । अच्छा, फिर इनमें नाम बताया ना- वो मनोहर बेटी है । वो बहुत अच्छा सम्भालती है । देखो, यह हमारी दीदी आई हुई है । अच्छा है ना! कितने सेन्टर्स को सम्भाल बैठी है । यहाँ देखो, हमारी रतन है, यह देखो देवता है । मेरठ का वो महारथी देखा हुआ है ना । ऐसे-ऐसे अभी कितने नाम बताएँगे । है तो सही ना! अभी बात यहाँ की है ना । देखो, है यहाँ की बात और गीता में क्या लिखा है, भागवत में क्या लिखा है, रामायण में क्या लिखा है? सभी इनकी शाखें बनाई हैं । रामायण कोई धर्मशास्त्र नहीं है और महाभारत इसका ही धर्मशास्त्र बनाया है । उसमें भी गपोड़े लगाय दिया है । भागवत भी इसका ही बनाया है । अच्छा, पासभाग भी है तो यहाँ का ही बनाया हुआ, नहीं तो पासभाग कहाँ से आया! कोई रामचंद्र के पास तो था ही नहीं । इस दुनिया में रामचंद्र कोई अज्ञानी थोड़े ही था । वो तो प्रालब्ध भोग रहे हैं, उनको ज्ञान की क्या दरकार है । तो वशिष्ठ भी फालतू । बाप आकर के बताते हैं ना । कहा ना- मैं तुमको सभी वेदों-ग्रंथ और शास्त्रों का सार बताता हूँ । बाबा कहते हैं यह भी बहुत पढ़ता था । इन लोग के भी डब्बे में ठीकरी थी । यह भी ठीकर था । अभी ठीकर से ठाकुर बन रहा है । तुम भी ऐसे बन रहे हो ना बच्चे- ठीकर से ठाकुर । पत्थरबुद्धि से पारसबुद्धि अर्थात् पारसनाथ बन रहे हो । हम श्री रामचंद्र और सीता को पारसनाथ नहीं कहेंगे । चाँदी का अलाय पड़ जाता है ना । उसको कहा जाता है सिलवर एज और तुम हो गोल्डन एज वाले । बाप कहते हैं- बच्चे, अपने दिल रूपी दर्पण में पूछते रहना हम बरोबर अशरीरी हैं? बाबा के बच्चे हैं? हमको देह का अभिमान तो नहीं है? देह के अभिमानी हो? अपन को अशरीरी समझ करके, उठते-बैठते, यानी उठना-बैठना तो शरीर के साथ होगा ना, परंतु निश्चय तो होगा ना । ऐसे तो नहीं, हमको कोई आत्मा को रियलाइज करना है । नहीं, परमात्मा को रियलाइज करना है, भगवान को जानना है । अरे, आत्मा तो सदैव चाहती है कि मैं बाप को जानूं । ऐसे कहा जाता है । तो आत्मा को ज्ञान चाहिए, किसकी? बाप की । शरीर तो है आत्मा हरेक की, अहम् आत्मा मम शरीर । सो तो सब है हम आत्माएँ । अभी उनको भगवान से मिलना है । भगवान को रियलाइज करना है । तो भगवान आ करके बच्चों को रियलाइज कराएगा ना, नहीं तो कैसे भगवान! बाप आए, तब बच्चों को आ करके जन्म दे, मुखवंशावली बनावे, फिर उनको अपना परिचय देवे । देखो, तुम मुखवंशावली बने हो, तुमको सब परिचय देते हैं, सारा राज समझाते रहते हैं । अभी दिल से पूछो हमको नशा है कि हम विश्व के महाराजन बनेंगे? अभी कोई विश्व के महाराजन है! इसको कैसे मिली विश्व की महारानी और विश्व के महाराजन का पद? किससे लड़ाई की या किससे इनहेरीटेन्स लिया? इसने कौन-सा कर्म किया जो ये इतने बने? किसने वो कर्म सिखलाया? इनका माँ-बाप कौन था? बाप था, गुरु था, टीचर था? अभी तुम जान गए ना, इनका कौन है! शिवबाबा । अभी बच्चों को कितनी अच्छी समझानी मिलती है बिल्कुल ही रोज-रोज; परंतु यहाँ जो बैठ करके समझते हो ना, जब तलक तुमको यह बैठ करके डोज पिलाते रहते हैं, इस समय में तुम लोगों को बहुत अच्छा लगता है । जो बिचारे कुछ भी न समझते हों उनको हरेक को भी बहुत मीठा लगता है; परंतु इस समय का नशा चढ़ता है । बाबा कहते हैं ना, जैसे वो बच्चा गर्भजेल से निकलता है, अंजाम करता है- बाबा, हम कभी भी पाप नहीं करेंगे । बाहर निकलने से वहाँ की वहाँ रही । इनमें भी कई ऐसे ही हैं । बाबा सबके लिए नहीं कहेंगे । यहाँ से सीढी उतरे, नीचे गए, बस, ये बातें सब उड़ जाती हैं । किसको सुनाय नहीं सकते । भला क्यों? जब कुछ सुना जाता है, तो कोई को सुनाने के लिए सुना जाता है । जाते हैं कथा सुनने के लिए, किसलिए? सिर्फ अपने लिए! नहीं, औरों को भी तो सुनाना चाहिए, किसको घर में जा करके सुनाना चाहिए ना । कोई कुछ भी नहीं सुनाय सकते, क्योंकि वहाँ से सुना और बाहर में खलास । यहाँ भी ऐसे; परंतु यहाँ तो ऐसे नहीं करना चाहिए ना, यह तो स्टडी है, परंतु बहुत निकलते हैं । जो अच्छे, मीठे, लाडले बच्चे हैं, वो नोट्‌स लेते हैं । नोट्‌स ले करके फिर कोशिश करते हैं कि अच्छा, रात को भी हम जा करके फिर भी यह बाबा की मुरली सुनूँ । इसलिए टेप्स बनाया, देखो कितना खर्चा है टेप्स के ऊपर! टेप्स मिलते ही नहीं हैं । ऐडवर्टाइज भी नहीं कर सकते हैं । फिर जिससे लेंगे ना, गवर्मेन्ट आकर पूछती है- टेप कहाँ से लिया? वहाँ से चोरी का तो नहीं है? बिल बताओ । बिल नहीं बताएँगे, ये जब्त हुआ । तुमने जरूर कहाँ से कुछ चोरी करके लाया या चोर वालों से लिया है । बिल चाहिए । अभी देखो, चाहिए तो बहुत टेप्स । डजन भर तो अभी चाहिए टेप्स । डजन भर टेप्स कोई बड़ी बात थोड़े ही है । टेप का मूल्य कितना है 1500 डजन । कितना हुआ? खर्चा 15 हजार, 20 हजार, 25 हजार । यह तो कुछ भी नहीं है । शिवबाबा के आगे कुछ महत्व थोड़े ही है इसका; परंतु मिलते नहीं हैं । अगर आते हैं बिगर बिल तो ड्यूटी भी पड़ती है, तो डंडे भी पड़ते हैं, तो फलाना भी पड़ता है । बात मत पूछो! अच्छा, अब बाप ने कहा ना, बच्चों को चाहिए तो दो-दो दफा सुनें, तीन-तीन दफा सुनें, जितनी भी फुर्सत हो, क्योंकि 10 घण्टा चाहिए । माताओं को तो बहुत फुर्सत है । कन्याओं को तो सबसे जास्ती फुर्सत है । है ना! अच्छा, जब सुबह को ऑफिस में जाते हैं, 10 बजे जाएँगे । 6 घटा काम करते हैं, 8 घण्टा चलो । एक सतो एक रजो एक तमो ऐसे होता है ना । एक उत्तम, एक मध्यम, एक कनिष्ठ । तुम यह सहज कर समझ जाएँगे कि इसमें उत्तम पुरुषार्थी कौन है, मध्यम कौन है, कनिष्ठ कौन है । यह भी तो सभी समझ सकते हो । बाबा कहते हैं उत्तम बनो । टाइम बहुत है । जिनको पुरुषार्थ करना है । सुबह को जाओ, यह तुम्हारी सर्विस पर है । शाम को आ करके सुनो, 8 बजे आओ, 9 बजे आओ, फिर अपन को रिफ्रेश करो, कुछ धारणा हो । जो पुरुषार्थ करेगा वो ही पा सकेगा ना । अच्छा, अभी बाबा समझाया ना, तुम विश्व के ऐसे बनते हो! देखो यहाँ की नॉलेज, एम-ऑबजेक्ट क्या है? यह, लक्ष्मी नारायण । सीता-राम की नहीं । ये बच्चे कहते हैं हमारी एम-ऑबजेक्ट यह है । हम क्यों नापास होंगे? तुम अपने दर्पण में देखते रहो कि कोई रावण का नशा तो नहीं है? नारायणी नशा है, रावण का नशा तो नहीं है? बच्चे रावण की तो बातें जानते हैं कि कौन-से नशे होते हैं । राम के नशे और रावण के नशे, सो तो बच्चे जान गए । या तो नारायणी नशा, या तो आसुरी नशा । तो वो नशा चाहिए । बाबा घूमने जाते हैं तो भी अंदर में तो रहता है ना कि देखो हम विश्व के महाराजा बनेंगे । उस समय में बॉम्बे-वॉम्बे नहीं होगा । बहुत थोड़े होंगे । विश्व के ये महाराजन बनेंगे । जब सीता-राम बनेंगे ना, तो मनुष्य बहुत होंगे । नहीं, फिर भी जितने थोड़े विश्व के महाराजा, इतने अच्छे । तो बच्चों को हमेशा ऊँच पुरुषार्थ करना चाहिए । स्कूल में स्टूडेन्ट होते हैं सो भी हमेशा पुरुषार्थ होता है कि मैं मॉनीटर बनूँ यानी पास विद ऑनर बनूँ । तो तुम बच्चों को भी यहाँ पुरुषार्थ करना चाहिए और यह तुम्हारा पुरुषार्थ फिर कल्प-कल्प का पुरुषार्थ बन जाना है; इसलिए बाबा और ही कहते हैं । वो स्कूल का मॉनीटर बनना है ऐसे नहीं कहते हैं । नहीं, यह अभी कल्प-कल्प का बनेगा, इसलिए पुरुषार्थ बहुत पूरा चाहिए । एकदम लग पड़ना चाहिए । शरीर निर्वाह के लिए वो भले जाकर धन्धा करें, व्यवहार करें, वो भले घर का बाल-बच्चा सम्भाले और रोटी-वोटी पकावें; परतु बोलते हैं एक तो कमल-फूल के समान पवित्र रहो और दूसरा, यह पुरानी दुनिया है, इससे ममत्व क्या लगाना है । पुरानी जुत्त्ती में ममत्व क्या लगाना है! पुरानी आत्मा में ममत्व क्या लगाना है! ममत्व लगाना है एक शिवबाबा से, जिसको याद करने से हम बिल्कुल ही प्योर हो जाएँगे । ज्योत बिल्कुल जग जाएगी । यह बैटरी ढीली हो जाती है, तो बैटरी को भी फुल करने के लिए मशीन में डालते हैं ना । तो यह भी ऐसी है । तुम्हारी आत्मा की जो बैटरी है ना, यह एकदम बिल्कुल ही डल हो गई है । ऐसे नहीं है कि उझानी गई है । नहीं, बाकी थोड़ी एकदम । देखा है कभी? दीवा जब पिछाड़ी को होते हैं तो थोड़ी चिंगारियाँ रह जाती है, फिर उसमें वो तेल डालो तो जाग जाएगी; क्योंकि यह आत्मा एकदम ठण्डी नहीं हो जाती है, पत्थर नहीं हो जाती है । कुछ रह जाते है । तो ज्योत जगाने वाला हुआ ना । हे सजनियाँ अब नवयुग आया, जागो । ओ सजनियाँ अभी अपनी आत्मा की बैटरी को फुल भरो । किससे? योग से । योग से तुम्हारी ज्योति जग जाएगी । अच्छा, अब बच्चों से विदाई । अब टोली ले आओ । हाँ, शिवबाबा का गीत सुनाओ । तुम समझते हो ना, बाप और दादा दोनों आपस में बात करते हैं । वो भी करते हैं, वो भी करते हैं । वो भी समझाते हैं, वो भी समझाते हैं । इसमें दोनों हो गए ना; इसलिए इसको कहा जाता है बापदादा; क्योकि बाप ब्रह्मा द्वारा बैठ करके शास्त्रों का राज़ समझाएँगे । तो उनको ब्रह्मा में आना पड़े ना और फिर बताते हैं कि ये ब्रह्मा का ही गाया हुआ- ब्रह्मा की रात, ब्रह्मा का दिन । कहना तो सहज है, परंतु कोई जानते थोड़े ही है- ब्रह्मा ऊपर वाला, सूक्ष्मवतन वाला, उनका दिन-रात कहाँ से आया? जरूर प्रजापिता यहाँ का होगा, परंतु यह थोड़े ही कोई विद्वान-आचार्य समझते हैं । उनके भी डब्बे में ठीकरियां हैं । समझा ना! वो भी इसलिए कि वो भी अभी ठिक्कर के बर्तन हैं; परन्तु नहीं, पवित्र रहते हैं ना, इसलिए जो अपवित्र हैं वो मत्था टेकते हैं सो तो कन्याओं को भी टेकते हैं । जो कन्या होती है उनको भी तो मत्था टेकते हैं । कन्या और कुमार को हम रावण नहीं कह सकते; क्योंकि युगल चाहिए ना, 10 शीश चाहिए ना । 10 शीश बनते हैं तब, जब शादी करते हैं विकार में जाते हैं । तो फिर उनको कहा जाता है रावण की सम्प्रदाय । जब बच्चे हैं तब पवित्र हैं । फिर भी ऐसी सम्प्रदाय बन जाएगी । तो इसको कहा जाता है 'रावण-सम्प्रदाय' अथवा 'आसुरी-सम्प्रदाय' । महिमा है तो एक की है । क्यों? वो न होता, तो ये जो लक्ष्मी नारायण थे, जो अभी कब्रदाखिल हैं उनको जगावे कौन! तो सबको, ये लक्ष्मी नारायण को स्वर्ग का सुख देने वाला कौन? वो बाप । ये भारत को पावन बनाने वाला, स्वर्ग बनाने वाला कौन? बाप । तो एक ही की महिमा हुई ना । दूसरे कोई की भी महिमा नहीं है । बाकी पाई-पैसे की महिमा तो नंबरवार बहुत होती ही है । हरेक की नंबरवार होती है, किनकी बहुत, किनकी थोड़ी, किनकी थोड़ी । और इनकी कोई इतनी महिमा ही नहीं है कि कोई मनाते ही नहीं हैं । कोई जानते ही नहीं, तो मनावे कैसे! अभी हम गाते हैं ना, गाते तो शिव बाबा को हैं परंतु शिवबाबा के नाम-रूप, देश-काल को कोई जानते थोड़े ही हैं । बिल्कुल नहीं; क्योंकि भारत में भी अगर लिंग है ना, तो यह तो बड़ा है इनको तो कोई कहेंगे नही । समझा ना! परतु नहीं, पूजा करते हैं, है जरूर; पर कोई राज़ है । तो स्वयं आ करके समझाते हैं । फिर भी कहना तो सबको पड़े ना, शिवबाबा को याद करो, शिवबाबा को याद करो । अगर हम उनको कहें कि नहीं, परम-आत्मा को याद करो, तो समझा नहीं । परम-आत्मा का नाम चाहिए ना । सो हाथ उठाओ । वहाँ बच्चों के पास आती हैं बच्ची । यहाँ एक बच्ची शायद देती है, जो वो नहीं देती है, देरी पड़ती है, रोज-रोज बोलता हूँ । रिकार्ड :- कितना मीठा कितना प्यारा शिव भोला भगवान....... देखो, उनकी महिमा है । इनको भी वो मीठा बनाय रहे हैं और बहुत मीठा बनाते हैं । देखते हैं कि मीठा है ना बहुत! तो तुम सबको भी मीठा बनना है, कोई को दु:ख नहीं देना है । दु:ख देंगे, दुःखी होकर मरेंगे, मरेंगे, मरेंगे । अब यह श्राप नहीं है । यह तो राय से बाप समझाते हैं, अरे! बहुत मीठे बनो । तुम्हें इस भारत को बहुत मीठा बनाना है । समझा ना! स्वर्ग तो मीठा है ना । अभी यह नर्क तो बहुत कडुवा है ना, छी-छी! बहुत मीठा तुम हो । तुम मीठे बनेंगे तब तो वहाँ पहुचेंगे न, एकदम मीठे । यह सिर्फ तुम्हारे रहने का स्थान नहीं, मधुबन है । वन है ना .वो जंगल है । उनका कोई महल थोड़े ही है! परन्तु वन है । बच्चियाँ सुनती हो? घर में भी किसको तुम दुख देंगे, नाम बदनाम करेंगे कि यह वहाँ जाती है, जिनके लिए कहा जाता है कि तुम एकदम सबको सुख दो । यह तो देखो, क्रोध करते हैं, यह तो इनसे रूठ गया है, यह इनसे बात नही करते हैं । ऐसी- ऐसी हमारी ब्रह्माकुमारियाँ भी हैं, रूठती हैं । कोई से रुठे, तो उनसे बात न करे । तो बाबा कहते हैं ना कि पुरुषार्थी हैं । यह तुम्हारी महिमा अंत की है- अतीन्द्रिय सुख पूछना हो, तो गोपीवल्लभ के गोपगोपियों से पूछो । अभी तुम पुरुषार्थी हो, मैं जानता हूँ । खुद ब्राहमणी बहुतों को नाराज करती है, रूठी है तो उनसे बात नहीं करेगी । वो बात न करे, वो दूसरी बात है; परंतु ब्राहमणी खुद भी किससे रूठती है तो उनको तंग करती है । उनसे बात नहीं करेंगी, यह करेंगी, वो करेंगी । तो ऐसे तो सारी दुनिया है ना, खारी चैनल है । लून और पानी, खण्ड का नाम ही नहीं है । वो लून और पानी, यह खण्ड और खीर । तो इतना तो मीठा बनना है । अच्छा, बाप-दादा, मीठी-मीठी जगदम्बा का, मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों को यादप्यार गुडमॉर्निग । जगदम्बा किसको कहा जाता है- मनोकामना पूर्ण करने वाली!