` 23-10-1963    बम्बई    प्रात: मुरली     साकार बाबा      ओम शांति     मधुबन
 


हेलो, गुड मोर्निंग हम मुंबई से बोल रहे हैं । आज बुधवार है सन 1963, अक्टूबर की तेईस तारिख है, प्रात: क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं ।

रिकार्ड :-

इन्साफ का मंदिर है ये भगवान का घर है । कहना है जो कह दे, तुझे. किस बात का डर है.........

परमपिता, परम-आत्मा माना परमात्मा । वो सिकीलधे जीव-आत्माओं से बात करते हैं, क्योंकि आत्मा की आत्मा से सिर्फ बात नहीं हो सकती है, जब तलक ऑरगन्स न हो या फिर शरीर न हो, कर्म-इन्द्रियाँ न हो । यह किसका घर है? परमपिता, परम-आत्मा माना परमात्मा, फिर उनको ईश्वर भी कहते हैं, प्रभु भी कहते हैं, भगवान भी कहते हैं, गॉड भी कहते हैं । अभी तुम किसके घर में बैठे हुए हो? तुम भगवान के घर में यानी बाप के घर में बैठे हुए हो । बाप के घर में कौन बैठते है? जरूर बच्चे बैठेंगे । तो यह तुम बच्चे जानते हो कि हम अभी, जिसको ईश्वर कहते हैं, बाप कहते हैं, अच्छा-अच्छा नाम तो बताओ, हम बाबा के घर में, तो बाबा कौन-सा? दादा है या सिर्फ बाबा है? हमारा दादा भी है और बाबा भी है और हम उनके फिर पुत्र और पौत्र हैं । तो घर हुआ ना, परन्तु पुत्र और पौत्र कोई सगे होते हैं, कोई लगे होते हैं । यह मशहूर है । वो है ना कि इन जैसा बनो तो गोद में बैठो यानी प्रतिज्ञा करो कि हम सच सुनेंगे और सच बोलेंगे । किससे? सच्चे बाबा से और हम कोई से भी न सुनेंगे, न बोलेंगे । हियर नो ईविल, सी नो ईविल, टॉक नो ईविल, ऐसे है ना । वो क्यों, वो कौन हैं? वो बंदर लोग हैं । मनुष्य के लिए तो ऐसे नहीं कहेंगे- हियर नो ईविल, सी नो ईविल, टॉक नो ईविल । जरूर मनुष्य होंगे ना, बंदर की तो बात नहीं है ना! तो इससे सिद्ध होता है कि आजकल के मनुष्य बंदर समान हैं । ऐसे बंदर समान को कहा जाता है कि हियर नो ईविल, सी नो ईविल । जो भी झूठ बोलने वाले हैं, उनसे कुछ भी न बोलो, न सुनो, न करो । जो तुम्हारा बाप है, जिसको कई जानते हैं पूरी रीति से, कई नहीं जानते हैं, इसलिए बाप खुद कहते हैं कि मैं जानता हूँ कोई हमारे सगे हैं, कोई हमारे लगे हैं, परन्तु लगे भी घर में बैठ जाते हैं, सौतेले होते हैं । ऐसे नहीं कि बहुत बाहर वाले आकर बैठ सकते है । ये बच्चे जानते हैं कि हम अभी ईश्वर यानी बाप, बाबा के घर में, बाप शिव और ब्रह्मा दादा के घर में बैठे हैं । अभी शिव के बच्चे तो सारी दुनिया है और वास्तव में प्रजापिता ब्रह्मा के भी सारी दुनिया है; क्योंकि रचना ही उनसे होती है पहला पहला मनुष्य ब्रह्मा, ब्रह्मा से ब्राहमण पैदा हुए । ब्राहमण फिर देवता बने । देखो, समझने की बातें हैं । भले नोट करो । तुम नोट नहीं करते हो, तुसमझते हो हमारी सबकी बुद्धि गोल्डन बर्तन है । हमारे बुद्धि रूपी बर्तन में सब समाय जाएगा; पर नहीं, मुश्किल है । ऐसे मत समझो । अथाह प्वाइंटस हैं, ढेर के ढेर हैं । जो अच्छे-अच्छे डॉक्टर होते हैं ना, वो अखबारें पढ़ते हैं, कोई भी नई-नई इन्वेंशन मिलती हैं, तो नोट करते हैं । कोई बुद्धू हैं, कुछ भी नहीं करते हैं । तो हर एक बात ऐसी है । हर एक बात में, पढ़ाई में भी ऊँचे और नीच होते हैं । सर्जन देखो लाख रुपया महीने में कमाएगा, सर्जन देखो हजार रुपया भी मुश्किल, तो 500 भी मुश्किल कमाएगा । अपना शरीर निर्वाह भी नहीं कर सकेंगे, ऐसे भी सर्जन और वैसे ही बैरिस्टर । बैरिस्टर देखो तो एक-एक केस का । बाबा ने कलकत्ते में सब देखे हैं । तुम लोगों ने सुना होगा । वो जा करके काउंसिल का मेम्बर बना । बैरिस्टर था । जमींदार था । कितनी कमाई! एक केस लेता था, लाख रूपया चार्ज करता था, क्योंकि जहाँ 10-20-50 लाखों का केस, वही इतना केस करता था । उनके सारे घर को भी बाबा जानते थे । देखते थे, यह क्या? यह भी बी एलएलबी और उसमें जाओ तो किसका कोट भी पूरा सिला हुआ नहीं, छिन्ना हुआ, फटका हुआ होगा । ऐसे भी बीएलएल बी । तुम भी यह जानते हो बरोबर कि हम बाप से स्वर्ग का वर्सा अर्थात् श्री लक्ष्मी और नारायण पद का वर्सा पाय रहे हैं और सम्मुख हैं । यहाँ के लिए पाते हो ना, कोई विलायत के लिए तो नहीं पाते हो! भारत के लिए पाते हो) । तुम बच्चों को ये लक्ष्मी नारायण के चित्र के ऊपर समझाया गया है । भले हमने छोटा चित्र भी छपवाया है, क्योंकि सबको तो ये बड़े-बड़े नहीं देंगे ना । ऐसे तो बात मत पूछो, अगर हम ऐसे बड़े चित्र कितने भी छपाते हैं, तो इतना थोड़े ही सबको दे सकेंगे । जरूर हमको हल्का और सस्ता भी बनाना पढ़े, जैसा-जैसा वैसा-वैसा देना । तुम यह तो जानते हो ना-कहॉ बैठे हो । ईश्वर, जिसको परमपिता कहा जाता है और फिर परमात्मा, परम-आत्मा कहा जाता है । बाबा ने समझा दिया है । भले उनकी महिमा तो है 'वर्ल्ड ऑलमाइटी, सर्वशक्तिवान । क्या उनमें शक्ति है? वाह! ये पतित दुनिया को पावन बनाना, नर्क को स्वर्ग बनाना, क्या यह शक्ति नहीं है! शक्ति उसको तो नहीं कहते, जो कुश्ती लड़े या बन्दुक सीखे या कोर्ट सीखे । बाप को सर्वशक्तिवान क्यों कहा गया है? वर्ल्ड ऑलमाइटी क्यों कहा गया है? वाह! वो तो स्वर्ग का रचता है और वो इस माया रूपी रावण पर जीत पहनाते हैं । कोई नहीं पहनाय सके, बिल्कुल नहीं । कोई ऐसा मनुष्य है नहीं, जो माया पर जीत पहनाये, जगतजीत बनाये । जो लड़ाई में बहादुर होते हैं, उनको शक्तिवान कहा जाता है । इनकी जो सेना है 'हरि शक्तिवान, यह गवर्मेन्ट नहीं, कौरव गवर्मेन्ट है । हमारी एक-एक डिवीजन ऐसा है, अरे! हम तो उनको लड़ाई में लाए ही नहीं, अगर हम उनको लड़ाई में लाते, तो यह जीने खड़ी भी नहीं हो सकतीं । सुनते हो? अखबारों में पढ़ते हो? तुम लोग अखबार भी नहीं पढ़ते हो, परंतु हमने वो रख दिया था, फट से नहीं भेजा; परंतु ऐसे तो है ना । इनमें कोई-कोई डिवीजन होती है । इनकी बडी बहादुर होते हैं, सिक्ख की डिवीजन बड़ी बहादुर होते हैं । नेपाल में बड़े तीखे होते हैं । ये छोटे है ना, बड़े मजबूत होते हैं । तो अभी तुम्हारे पास भी ऐसे ही हैं । सबसे छोटी तो वास्तव में हमारी कन्याएं होती हैं । हमारे डिवीज़न में, ये रूहानी नॉनवाइलेंस सेना में तो हमारी कन्याएँ ही तीखी जाती हैं, पर उनको कर्म बंधन होते हैं सो तो फिर बाप उठाते रहते हैं, यह बिचारी किसको भी पकड़ेगी तो वो बोलेंगे-इनके सग में गई तो यह तो हमारे हाथ से चली जाएगी । ब्रह्मा कुमारियॉ पास गई, गई-गई-गई । गई सो तो गई । जरूर होगा ना । यानी ईश्वर के गोद में जो गए, उनको और कौन गोद में ले! अरे, बाबा के पास ऐसे-ऐसे युगल है, उनमें भी माताएँ । ऐसे-ऐसे उनके पति आते हैं, अरे हाथ लगाया ना तो बोलती हैं मैंने ईश्वर की गोद ली है । ईश्वर की गोद के बाद मुझे 21 जन्म दैवी गोद मिलनी है । बस, ईश्वरीय गोद ली, असुर मुझे टच नहीं कर सकते हैं । मलेच्छ, ये बगुले हमको टच नहीं कर सकते) । ऐसे जैसे कोई शक्ति खड़ी होती है- खबरदार, मैंने उस ईश्वर की गोद ली है । मैं अभी वो स्वर्ग की मालिक बन रही हूँ । पवित्र बनो तो मुझे हाथ लगाओ सिर्फ, बस । जब तक पवित्र नहीं बने हो, तुम मुझे टच नहीं कर सकते हो । पवित्र बनो तो हाथ लगाय सकते हो, और कुछ नहीं । हाथ ऐसे भी कर सकते हो । जब तलक पवित्र न बने हो, मैं कहती हूँ-मेरे को टच नहीं सकते हो, मलेच्छ! ऐसे भी बहुत हैं एकदम । उनके झगड़े बाबा के पास आते हैं-बाबा यह तो देखो, मैं कुछ कहता भी नहीं हूँ मैं छुट्‌टी देता हूँ मैं पवित्र रहता हूँ मैं सिर्फ टच करता हूँ तो एकदम कहती है- खबरदार! मैं उस स्वच्छ ते स्वच्छ सर्वशक्तिवान परमपिता परमात्मा की बच्ची हूँ । वो बाप कहते हैं ना अब तुम बच्चों ने मुझ अपने परमप्रिय परमपिता परम आत्मा को, जो मैं परम-आत्मा इस आत्मा में प्रवेश किया है, इस जीव-आत्मा में प्रवेश किया है, मूंझे शरीर का लोन चाहिए । अच्छा, तुम मेरे को जान जाने से मेरे द्वारा तुम सब कुछ जान जाती हो । क्या जान जाती हो? सारे सतयुग से, ब्रह्माण्ड से, ब्रह्माण्ड क्या चीज है, सूक्ष्मवतन क्या चीज है वहाँ कौन रहते हैं, टॉकी यह दुनिया कैसे होती है, यह पार्ट कैसे बजते है? मेरे मीठे बच्चे, मेरे को जानने से तुम सब कुछ जान जाएँगे, क्योंकि मैं मनुष्य सृष्टि का बीजरूप हूँ ना । इस कल्पवृक्ष, जो मनुष्य सृष्टि का वैराइटी झाड़ है, जिनमें अनेक धर्म हैं, उनको तो मैं जानता हूँ ना, इसलिए मुझे मनुष्य सृष्टि का बीजरूप भी कहते है । फिर ठक से कह देते हैं-नॉलेजफुल । यानि मैं उस, ये तो लॉ है बीज अगर चैतन्य होते तो बता देते की हमारे ये झाड़ कैसे-कैसे बनता है तो बाप कहते हैं मुझे जानने से मेरी ये जो भी रचना है, यह जो वैराइटी धर्मो का मनुष्य सृष्टि का कल्पवृक्ष अथवा झाड़ है, जिन धर्मो की रसम-रिवाज सिकल फीचर्स सबके अलग-अलग हैं, देखो तो, कितना बेहद का नाटक! एक एक्टर न मिले दूसरे एक्टर से । हरेक एक्टर को अपना-अपना पार्ट मिला है) । ये बातें थोड़े ही कोई जान सकते हैं । तो भी देखो बहुत बुद्धू लोग हैं, अरे निश्चय नहीं बैठता है । अच्छा तो बहुत लगता है । है भी बाबा बहुत मीठा, समझानी भी ऐसे दे दो भई, निश्चय नहीं बैठता है । बाप कहे-हाय! तकदीर मेरी! निश्चय नहीं बैठता है । निश्चयबुद्धि विजयन्ति । संशयबुद्धि विनश्यन्ति । अरे बरोबर, जिसको निश्चय होगा-यह मेरा बाप है, तो जरूर विजयमाला के दाने बनेंगे । जिनको संशय है, विनश्यन्ति । विजयमाला का दाना कैसे बनेंगे! अभी बैठे हैं ना, सुनते हो ना, ये सब बैठे है यहाँ कि इस समय में यह घर है; क्योंकि बाबा जहाँ जाएगा, वहाँ ही अच्छी तरह से समझाएगा ना । घर है, तुम जानते हो । ये जो शरीर है, इनमें परमपिता, परमात्मा, मनुष्य सृष्टि का बीजरूपअवेश है और नॉलेजफुल है । नॉलेजफुल का ये अर्थ नहीं कि सबके दिलों को जानने वाला । बीजरूप जो होगा तो दिल को जानेगा या नॉलेज जिसको कहा जाता है वो सुनाएगा! जरूर झाड़ का नॉलेज बैठ करके सुनाएगा या पत्ते-पत्ते की दिल को जानने वाला होगा! यह तो कोई बात ही नहीं है । ऐसे क्या मुझे पत्तों को भी जानना पड़े? अभी मैं ये जानू की ये जो मनुष्य कहते हैं पत्ते पत्ते मैं भगवान है तो मैं ये जानूँ अरे बात मत पूछो, मनुष्य इतने तो मूर्ख हैं! बन्दर भी कुछ सयाने होते हैं । आजकल ये बन्दर से भी बदतर कहा जाता है क्योंकि बाप आया हुआ है ना । यह रामायण की बात तो बाबा ने समझाया बहुत बच्चो को । यह भी एक दंत कथा बनाय दी । अभी बन्दरों की थोड़े ही कोई सेना होती है । बन्दरों की सेना कभी देखी? वो तो जंगल में रहते हैं । हाँ, यह जरूर है आपस में उनकी सेना होती है । उनका बादशाह होता है, वजीर होते हैं तुम कभी शिमले में गए हो- शिमले में जाकू पहाड़ी पर जाएँगे ना, वहाँ बहुत बंदर हैं और वहाँ एक बाबा भी रहता है, उनको भूगा-भूगा कहते हैं । वहाँ ऐ बादशाह-बादशाह' रडी मारेगा, बादशाह आ जाएगा, बड़े ते बड़े बन्दर । रानी-रानी-रानी मंत्र पुकारेगा तो उनकी रानी आ जाएगी । कोतवाल-कोतवाल पुकारेंगे तो कोतवाल आ जाएगा । वजीर-वजीर पुकारेंगे तो वजीर आ जाएगा । उनको वो सब सिखलाय दिया । हैं बड़े मस्त । कोई तंग नही करे उनको, नहीं तो झट थोड़ा भी उसे ऐसे किया ना, पगड़ी उतार देगा या कुछ पड़ा होगा तो उसको छीन लेगा । बन्दर तो बन्दर है ना । भगवान ने श्री रामचंद्र ने बंदरों की सेना ली, पूँछों को आग लगाई और दिखलाते हैं नाटक में, कितनी नॉनसेन्स बात है! अभी तुम समझते हो ना । यह कोई थोड़े ही समझते हैं । अभी तलक तो वो बंदर की सेना निकालते हैं । जब रावण निकालते हैं ना, तो मनुष्य को काला करके लम्बा पूँछ भी दे देते हैं और हनुमान बना देते हैं पीछे चित्र भी दिखाते हैं अरे, यहाँ बंदरो का एक चित्र था । महावीर का । ये जो जैनी लोग हैं ना, उनको महावीर कहते हैं, हनुमान । यहाँ एक हनुमान का चित्र था । हनुमान.. जो बड़ा मुख्य देवता और बाकी मे सबको हनुमान को दिखलाया मनुष्य । सिकल ही सभी हनुमान की हैं, बाकी तो अरगन ढके हुए हैं । मेरे पास कोई ले आया था । अभी तुम बच्चे तो समझ गए होंगे ना कि श्री रामचंद्र, सीता, जिनके इतने मंदिर बने हुए हैं, जो 14 कला पूर्ण कहा जाता है और उनको भगवती और भगवान कहा जाता है, वहाँ ये सब बातें कहाँ से हो सकेंगी! सतुयग और त्रेता स्वर्ग, द्वापर और कलहयुग नर्क; क्योंकि द्वापर से माया की प्रवेशता है और नर्क बनाना शुरू कर देती है । समझा ना! जैसे हमारी कला घटती जाती है, फिर माया की कला बढ़ती जाती है । पहले माया सतोप्रधान फिर सतो-रजो पिछाड़ी में तमो । तो देखो, ये सब बन्दर हनुमान बैठे हुए हैं । यह तुम शायद दूर से देख नहीं सकेंगे, परन्तु लो, पीछे सबको दिखलाना । देखो, बीच में कौन बैठे हुए हैं? सिकल क्या बनाते हैं! ऐसा कोई मनुष्य थोड़े ही होता है । कभी भी मनुष्य का कोई दूसरा शेप होता ही नहीं है । न ऐसे कोई निकले, न कोई पांडव यहाँ से छत जितने बड़े थे । श्री लक्ष्मी नारायण को देखती हो ना । मनुष्य जैसे मनुष्य हैं । ऐसे थोड़े ही है कोई साढ़े पाँच फुट के बदले में आठ फुट हो सकते हैं । नहीं, आठ फुट वाला मनुष्य होता ही नहीं है । बौना होते हैं कोई-कोई जामड़े इतने । सो तुमको मिडिगेट्‌स कर दिया है कि इनको 3 पैर पृथ्वी का नहीं है । उसको कहा जाता है बटिक । बटुक भी कहते हैं । वामन । एक बटुक का यह वामन का एक गुजराती, एक चन्द्रकांत वेदान्त उसको कहा जाता है । एक चंद्रकान्ता अखानी होती है नॉवेल्स । ये है फिर चन्द्रकान्तस्यवेदान्त । यह भी नॉवेल है; परन्तु वो है शैतानी, यह फिर देवी-देवताओ का उनमें लिखा है । है यह भी नॉवेल । यह पढ़ा हुआ है । चंद्रकान्त तो गुजराती लोगों ने बहुत पढ़ा होगा । हिन्दी में भी है उनको वेदान्त कहते हैं । चंद्रकांत फिर उन्होने नाम रख दिया वेदान्त । अभी वेदान्तों को क्या करूँगा..! उनमें बहुत मत्था खपाऊ अखानियॉ लिखी हुई हैं । यह चित्र देखो क्या बात का हम तुमको कितने चित्र दिखलाएंगे कुछ भी नहीं, जगदम्बा है, दो भुजाएँ हैं । पिता है, उनकी बेटी है, तो उनकी बहुत बेटी हैं, ये बाप हैं प्रजापिता, उनकी भी दो भुजाएँ हैं । उनको बहुत भुजाएँ दे दीं । भुजाएँ क्यो दी? ब्रह्मा की दो भुजा, दो से हुई चार, चार से हुई आठ, अरे, सो तो होंगी ना । ये सभी बच्चे पैदा होते रहेंगे तो बाहें तो बढ़ती जाएँगी ना । ब्रह्मा के बच्चे, उनकी बाहें ब्रह्मा को दे दी हैं, फिर उनको बाँहें लगाते जाते हैं । बहुत देते हैं । कोई अखानी है- 8 भुजा वाले ब्रह्मा के पास जाओ, 100 भुजा वाले ब्रह्मा के पास, 1000 भुजा वाले ब्रह्मा के पास जाओ, ऐसे-ऐसे अखानी छोटेपन में पड़ी है । जब धंधा में लग जाते हैं, तो फिर फुर्सत कहाँ! यह सब छोटेपन के बाबा की पढ़ाई । सब, ग्रंथ वगैरह-वगेरह, ये वो, पिछाड़ी में सिर्फ गीता । बाकी ये दंत-कथाएँ हैं । इतनी फुर्सत कहाँ! हम राजाओ से धन लूटे, धंधा करे या बैठ करके शास्त्र पढ़े! बहुत संत लोग आते थे । आएँगे तो जरूर ना । फिर रात को बैठो, यह करो, ऐसे करो, फिर लीका निकालेंगे, बैठेंगे और वो बैठ करके यह करेंगे । अरे भई, मुझे तो नींद आती है । मैं यह कर नहीं सकता हूँ । बहुत साधु-सतो ने बाबा के पिछाड़ी मत्था मारा है । अभी देखो, ये राजयोग, राजाई ऐसे होती है ना । तुम बच्चों को खुशी होनी चाहिए ना । जब तुम कहते हो शिवबाबा तो नाम तो जरूर है शिवबाबा का । अगर सिर्फ परम-आत्मा कहें तो उनका कुछ रहस्य नहीं निकलता । परमपिता भी ठीक है । परम-आत्मा भी ठीक है, पर आत्मा का नाम तो जरूर चाहिए ना । तो उसका पूरा नाम शिव है । शिव है; परन्तु शास्त्र वालों ने इसको रुद्र ज्ञानयज्ञ लिख दिया । अब इसका नाम रुद्र ज्ञानयज्ञ है । ऐसा नहीं है कि कृष्ण ज्ञानयज्ञ । है रुद्र ज्ञानयज्ञ और इस समय में यह एक ही यज्ञ रचा जाता है- ज्ञानयज्ञ । पीछे सतयुग, त्रेता द्वापर, कलहयुग ज्ञानयज्ञ कोई नही होता है । ज्ञानयज्ञ एक- रुद्र ज्ञानयज्ञ, जिससे पतित दुनिया पावन बनती है । पिछाड़ी में जब यज्ञ पूरा करते हैं तो आहुति बहुत देते हैं । पीछे जो भी वखर हैं वो आहुति .जो भी बचा होगा ना, पिछाड़ी में वो सब डाल देंगे । तो यह है बड़ा भारी रुद्र ज्ञानयज्ञ । इसमें जो भी मनुष्य मात्र हैं यह सब आहुति हो जाते हैं, सब खत्म हो जाते हैं । ये पुरानी दुनिया की आहुति हो जाती है । अभी ये कोई थोड़े ही समझ सके । इसके बाद फिर सतयुग-त्रेता में कोई भी यज्ञ नहीं रचा जाता है, क्योकि वह कोई भी आफत नही आती है । यह आफत है ना । तब बाबा आते हैं । यज्ञ रचते हैं ये सभी आफतें मिटाने के लिए । बाप ने सभी आफतें मिटाने के लिए जो यह यज्ञ रचा, तो मनुष्य भी तो भक्तिमार्ग में यज्ञ रचेगा ना । फिर यह अथाह अनेक प्रकार के यज्ञ रचे । उसमें सबसे अच्छा यज्ञ रचते हैं वो रुद्र यज्ञ । वो यज्ञ रचे, जिसमें यह शिवलिंग बनाते हैं और छोटे-छोटे सालिग्राम बनाते हैं । रोज ढेर के ढेर बनाते हैं और रोज उनकी पूजा करके फेक देते हैं । फिर नई मटटी के बनाते हैं, फिर मेहनत करते रहते हैं । वेस्ट ऑफ टाइम, वेस्ट ऑफ एनर्जी एण्ड वेस्ट ऑफ मनी, और इसमें क्या है! इसमें कोई तकलीफ नहीं । यहाँ तुम यह अच्छी तरह से जानते हो, जब बैठे हो बरोबर । हम शिवबाबा और दादा, यह अविनाशी ज्ञान रत्नो का खजाना शिवबाबा का है । दादा के पास ठीकरियाँ भी नहीं थीं । यह भी जानते हो, सब बता देते हैं । ठीक बताते हैं ना! मनुष्य तो क्या से क्या कह देते हैं, उनकी तो बात ही छोड़ दो और फिर शिवबाबा जिसे तुम जानते हो कि हम शिवबाबा से यह स्वर्ग का वर्सा ले रहे हैं । शिवबाबा से लेंगे ना । ब्रह्मा तो स्वर्ग का क्रियेटर नहीं है । अभी यह तो भूलना नहीं चाहिए ना । अरे, बुद्धू लोग! कोई-कोई बुद्धू लोग हैं, ठीक से समझते नहीं हैं । यह तो समझने की सहज बात है । खुद बैठ करके बताते हैं ये प्रॉपर्टी शिवबाबा की है । परमपिता परमात्मा माना परमात्मा की है । मेरे पास ये ठीकरियाँ बजती थीं शास्त्रों कीं और भक्तिमार्ग की । सृष्टि के आदि-मध्य-अंत का ज्ञान जो बाप दे रहे हैं, मेरे को नहीं था । समझा ना! बिल्कुल नहीं था, कोई में है नहीं, हो नहीं सकता है । यह तो भला निश्चय बैठना चाहिए ना कि यहाँ परमपिता परम-आत्मा, जिसके पास हम बैठे हैं हमें सृष्टि के आदि-मध्य-अंत का ज्ञान दे रहे हैं । तुम कोई सतसंग में ऐसे तो नहीं जाकर कहेंगे कि ईश्वर के, बापदादा के पास हम पौत्रे-पौत्री बैठे हैं । ऐसा कोई के बुद्धि में होगा क्या वहां? अगर यह किसको निश्चय नहीं है कि शिवबाबा की हम पौत्र और पौत्रियां, जो ब्रह्मा मुखवंशावली बनी हैं, उसके जैसे कि घर में बैठे हैं और हाजुर भी हैं, नाजुर भी हैं और हमको बैठ करके सृष्टि के आदि-मध्य-अंत का राज़ सुनाते हैं । अभी अगर किसको यह निश्चय नहीं है तो वो अगर यहाँ बैठा हुआ होगा, तो हम लोग ऐसे तो समझेंगे ना-यह तो कोई अनाड़ी बैठा हुआ है । यह स्कूल में आकर बैठा है, जहाँ की एम-ऑबजेक्ट ही नहीं जानते हैं, वो क्या बैठ करके सुनेंगे! यह तो साफ कहते हैं ना । भई, यहाँ कौन बैठे हैं? तुम ऐसे कहेंगे ना, हम ईश्वर के घर पर फिर दर पर नहीं हो, घर पर हो एकदम; क्योंकि बाप आए हैं, तुम मीठे बच्चों की आत्माओं को वापस ले जाने के लिए अर्थात् भगवान के पास जाकर मिलने के लिए, क्योंकि भगवान निराकार है, यहाँ तो नहीं आ करके सभी को निराकार और निराकारी दुनिया बनाय देंगे । नहीं, यह तो आत्माओं को ले जा करके बाप अपने घर में बिठाएंगे । तो जरूर यहाँ तुम सब बच्चों को शरीर छोड़ना होगा । शरीर छोड़ने के लिए बोल देते हैं कि यहाँ तुम्हारी जूतियां एकदम पुरानी तमोप्रधान हैं । इन सब जूतियों को छोड़, अपनी नई जूती को याद करो । अभी जूती नाम कह देते हैं, शरीर को भी तो चोला कहते हैं ना । पुरुष होता है, एक पुरानी जूती छोड़ी, दूसरी नई जाकर ली, स्त्री को ऐसे नहीं कहते हैं! स्त्री, भले पुरानी जूती भी मर जावे तो भी नई कभी नहीं लेंगे । पुरुष लेते हैं । तो बाप यहाँ आ करके बैठकर समझाते हैं-यह पुराने बूट में बैठे हुए हैं, पुराने शरीर में बैठे हुए हैं और तुम जानते हो कि हम शिव बाबा, ब्रह्मा दादा, यह हुआ ना यानी एक को तो बाबा कहेंगे, एक को दादा कहते हैं । गुजराती में क्या कहते हैं, सिंध में क्या कहते हैं, देखो मैं कितना अच्छा समझाता हूँ । शिवबाबा कहते हैं-कितना बच्चों को क्लीयर करके समझाता हूँ । कैसा भी गधे बुद्धि होवे तो भी सुधर जावे । गधे की तो बुद्धि समझते हो कि रावण के दस शीश के ऊपर गधा बिताते हैं, दिखलाऊँ वहाँ जेक देखो जरा । ये क्यों कहा है सौ-सौ करीस सिंगार, तब खोदरे का बच्चा खोदरा । यह किसने कहा? शिवबाबा कहते हैं कि जो माया में पहनते रहते हैं, गदे होते रहते हैं, मैं आ करके इनका इतना सिखाता कराता हूँ और फिर देखो, क्या करते हैं! जा करके यह विकार में गिरते हैं फिर यह बच्चे वो ही गधे के बच्चे बनते हैं, गॉड के बच्चे बनते नहीं । बाबा ने कहा था ना कि एक मैजिस्ट्रेट था, उनको कहा- ऐ गधे का बच्चा! बोला-अच्छा, हम गधे का बच्चा, तुम गधे का बच्चा नहीं! वास्तव में तो हम गॉड के बच्चे हैं और तुम भी गॉड के बच्चे हो । अभी तुम कहते हो गधे का बच्चा, तो शायद तुम भी गधे के बच्चे हो । बोल दिया फट, जज कुछ कर न सके । समझा ना! कंटेम्प्ट ऑफ़ कोर्ट कुछ कह न सके; क्योकि उसने उनको क्यों बोला । उसने बहुत अच्छा रेस्पोंड दिया । कुछ नहीं किया, नहीं तो कांटेक्ट ऑफ़ कोर्ट होती । बाप बैठकर समझाते हैं, तुम जो यहाँ बैठे हुए हो, वो फ़ालतू सतसंग तो नहीं है ना । तुम ईश्वर के दर पर हो । वो क्या गीत है जरा लगाओ, कितना अच्छा फर्स्ट क्लास गीत है एकदम । भगवान, हम तेरे दर पर हैं, इन्साफ के लिए । तो बरोबर तुमको इन्साफ ही यहाँ मिलता है । तुमको अभी हम इन्साफ देते हैं । कौन-सा इन्साफ देते हैं? जज सुप्रीम सोल भी है ना । बच्चे, अगर अब तुम मेरी मत पर चलेंगे, तो तुम सच खण्ड का मालिक बनेंगे और तुमको जो भी है, वो इन्साफ की बात नहीं सुनाई है । नहीं, बिल्कुल ही झूठी बातें सुनाय करके तुमको एकदम बिल्कुल ही वर्थ कौड़ी बनाय दिया है । आसुरी सम्प्रदाय बना दिया है । अभी हम तुमको यह बनाता हूँ । बाबा ने तो बहुत दफा बच्चों को कहा है- बच्चे, यह लक्ष्मी और नारायण का चित्र लो, तो शिवबाबा भी साथ में है । ये सतयुग के मालिक लक्ष्मी नारायण इनको ये कर्म किसने सिखलाया, जो यह लक्ष्मी नारायण बना? अभी कर्म-अकर्म-विकर्म की गति सो जरूर नर्क यानी कलहयुग के अंत में ही होगी, जो इनको ऐसा कर्म सिखलाया ना । जरूर जो सतयुग के आदि में है, सो कलहयुग के अंत में आया होगा । सिवाय ईश्वर के तो इनको कोई इतना बनाय नहीं सके; क्योंकि स्वर्ग का मालिक बना रहे हैं । स्वर्ग का रचता है ईश्वर । जरूर इनको ईश्वर ने यह पद दिलाया । कैसे दिलाया, कब दिलाया, कोई भी नही जानते हैं । ये पूछ तो सकते हो ना मीठे बच्चे । यह लक्ष्मी नारायण का चित्र ले करके, शिवबाबा भले न हो या हो, वो भी लो, शिवबाबा का भी लो, त्रिमूर्ति का भी लो, हम तीनों बनाएँगे । लक्ष्मी नारायण का, शिव का ऊपर में, फिर त्रिमूर्ति का; क्योंकि शिवबाबा किस द्वारा बनाया? जरूर ब्रह्मा द्वारा ही बनाएंगे ना । कैसे आएँगे? किसके तन में आएँगे? वो तो गाया जाता है-ब्रह्मा द्वारा देवी-देवता धर्म की स्थापना । शंकर द्वारा आसुरी अनेक धर्मों का विनाश । फिर जो स्थापना करेंगे, ब्रह्मा और उनकी औलाद, सो ही तो फिर देवता बनेंगे ना । अभी कितनी अच्छी बातें सुनाते हैं । तो भी क्यों तुम लोग ऐसे बाप को फारकती दे देते हो? प्रतिज्ञा करते हो कि तुम्हारे बिगर हम किसको भी याद न करेंगे, हम बुद्धि का योग लगाएँगे और बलिहारी भी जाएँगे । बलिहारी का यह मतलब नहीं घर-घाट ले आ करके यहाँ फेको । बाबा कहते हैं- बच्चे, अपने धन, दौलत और शरीर का ट्रस्टी बनो यानी अपन को आत्मा समझ करके, जब तलक यह पुराना शरीर और सब छूटे तब तलक ट्रस्टी बनो, बुद्धि का योग बाप के पास और वर्से में रखो, बस । और बाबा क्या कहते हैं! अभी क्या सबको यह निश्चय है कि हम बापदादा, दादा और बाबा के बच्चे हैं? और कोई थोड़े ही बैठ सकेगे! अभी इस समय में हम उनके घर में बैठे हुए हैं । पीछे भले तुम बाहर में चले जाएँगे, वहाँ तुमको डाडा मिलेगा, बाबा मिलेगा, दादा मिलेगा, बहन मिलेगी, भाई मिलेगा । मिलेंगे ना! यहाँ तो कोई नहीं है । यहाँ बहन और भाई हो, ब्रह्मा की औलाद हो और शिवबाबा के पौत्र और पौत्री हो । और तो कोई नहीं हैं यही बैठे हुए! अगर कोई छिपा हुआ बैठा होगा, किसी ने उसको लाया हुआ होगा, तो वो जा करके पत्थर बनेगा । इन्द्रप्रस्थ में कोई सब्ज परी कोई चरिये-खरिये को ले आई । विकारी था । तो मालूम पड़ गया, बदबू आने लगीं । तो पूछा- भई, यहाँ बदबू ही क्यों आती है? वायब्रेशन्स क्यों आती है? तो झट उनको पता पडा, बोला- कोई एक आया हुआ है । अरे, बताओ किसने लाया इनको? पकड़ो, निकालो, तो निकल गया बरोबर । यहाँ जाँच करेंगे तो निकल पडेंगे फिर उनको पकड़े । निकालो । यह कौन ले आई है उनको? यह ब्राहमणी ले आई । गेट आउट! निकालो । इतना अक्ल नहीं है । तुम यह इन्द्रप्रस्थ मे एक पतित को ले आई हो! लज्जा नहीं आती है, शर्म नहीं आती है! जाओ । देखो, यह कायदा है ना बरोबर । कोई भी पतित को बैठना भी नहीं है, नहीं तो अगर छिपा हुआ होगा तो वो और ही दुर्गति को पायेगा । देखो, छिपा हुआ था, अमृत पीता था, उनका हाल क्या हुआ होगा! एकदम दुर्गति को पाया होगा । भले बच्चे यहाँ बैठे हैं जिनको पूरा निश्चय नहीं होता है, परंतु यह तो समझने की बात है ना । अगर नही होते हैं, तो भला इनसे पूछो ना । हम पूछेंगे तो सब हाथ उठाएंगे । अरे भई, जिनको निश्चय है बरोबर हम बापदादा के आगे पुत्र और पौत्रियां बैठे हैं, सो हाथ उठाओ । देखो, यहाँ सब उठाएँगे । हम सबको देखता हूँ । देखो, हमारी एक लेन लेडी नही उठाती है; क्योंकि उनको निश्चय नहीं है । अभी देखो, कोई लण्डन देख करके आए तो मानना चाहिए ना । जरूर बच्ची, यह तो मनुष्य है, हम भी मनुष्य हैं । हमारी बुद्धि में नहीं बैठता है । हमारी बुद्धि को ताला लगा हुआ है । किसने ताला लगाया? रावण-माया ने; इसलिए हमारी बुद्धि में नहीं बैठता है । तो गोया शूद्र सम्प्रदाय के हैं । ऐसे, जिसको निश्चय नहीं है, उनके घर में बाप आ करके बैठा हुआ है, बच्चे बैठे हुए हैं, लेन लेडी को पता नही है । यह वण्डर तो देखो! बच्ची बहुत मीठी है; परन्तु तकदीर । निश्चय बिगर विजय कैसे हो! तुम लोगों को थोड़े ही मानती है कि तुम कोई यहाँ के ईश्वर हैं । यह समझती है, यह भी आसुरी संतान हैं, क्योकि जो जैसा है, जैसी दृष्टि तैसी सृष्टि, परन्तु नहीं, समझती है कि कुछ है, परंतु हमारी बुद्धि में नही बैठता है । देखो, यह भी वण्डर है ना । मनुष्य के बुद्धि पर भी वण्डर खाना होता है । अच्छा, आज तो टाइम हो गया । टोली भी लाओ । इस लेन लेडी के पास जब जाते हैं तो वो कहती है मुझे निश्चय है, पर मेरे में ताकत नहीं है कि बाप से वर ले सकूँ । अरे भई, ऐसे भी कोई बच्ची होंगी जो कहेंगी बेहद के बाप से बेहद की सृष्टि का वर नही ले सकती हूँ यानी वर्सा नहीं ले सकती हूँ! उसको क्या कहेंगे फिर! देखो, मूर्खों की भी कोई हद होती है । यहाँ तो बेहद के बाप, बेहद के मूर्ख हैं । रिकार्ड :- इन्साफ का मंदिर है ये, भगवान का घर है ) यह इसकी महिमा है । भगवान, जो मनुष्य को अपने पाप और पुण्य का फल देते हैं; इसलिए इन्साफ का घर है । यानी जैसे जजमेंट होती है न कोर्ट या हाईकोर्ट होते हैं, तो इन्साफ का घर है ना । अभी यह धर्मराज की भी कोर्ट है । यह वो ही है, जो मनुष्य को, जो पाप करते हैं उनको पाप की सजा देते हैं, जो पुण्य करते हैं उनको उनका फल देते हैं । अभी वो यहाँ आ करके स्वयं खुद हाजिर हुआ है और सब राज अच्छी तरह से बता देते हैं- जो श्रीमत पर चलेगे जरूर पुण्य आत्मा बनेंगे । मेरी मत पर न चलने वाले कदाचित पुण्य आत्मा बन नहीं सकते हैं । स्वर्ग के मालिक बन नहीं सकते हैं । तो देखो, यहाँ से इन्साफ मिल रहा है । बाकी कहाँ भी जाओ, साधु-संत व कोई को भी इन्साफ मिल नहीं सकता है, और ही उलटा नीचे में फटकारते हैं । और ही नर्कवासी बना देते हैं । जानते हैं यहाँ नम्बरवार बैठे हुए हैं । भले हाथ उठाते हैं । वो खुद कहते हैं कि बाबा, हम जरूर आपके बच्चे हैं; परन्तु माया पर पूरी जीत नहीं पहन सकते हैं । क्योंकि घड़ी-घड़ी माया हमको थप्पड मारती है । हम कहते हैं-बाबा, माया से छुड़ाओ, बहुत थप्पड लगाती हैं । इनको कहो कि हमको थप्पड़ न लगाए । बाबा कहते हैं नहीं बच्चे, यह उस्ताद है । उस्ताद थोड़े ही कहेंगे कि नहीं, ऐ माया! इनको उंगली-वंगुली नहीं लगाना । तुमने कभी मल्लयुद्ध देखी है? अब योग लगाने की बात ठीक है । माया की क्या ताकत है जो मुझे कुछ भी थपड़ मारे । फिर भी अगर थप्पड मार देती है । देखो, लव और कुश की अखानी है ना । बहन और भाई । वास्तव में दो बच्चे हैं; पर बच्चे तो सभी हो । यह जब कुछ हारते थे, तो उनको संजीवनी बूटी सुधा देते थे । यह संजीवनी बूटी है ना । इस ज्ञान को संजीवनी बूटी भी कहा जाता है । बेहोशी होती है, फिर इनको ज्ञान की बूटी सुंघाओ फिर खड़े हो जाते हैं । रिकार्ड :- इन्साफ का मंदिर है ये, भगवान का घर है, कहना है जो कह दे, तुझे किस बात का डर है) टोली मिल गई है? जो कुछ भी बच्चे के दिल में आए, वो आ करके बतायें । यहाँ है ही इन्साफ का घर । बाबा इन्साफ देते हैं और दूसरे साधु-संत-महात्मा सब धोखे देते हैं । देखो, बाप कहते हैं ना और तुम्हारे उस गीता में जाकर देखो, जो मनुष्यों ने बनाई है, उसमे भी यह लिखा हुआ है कि मैं आता हूँ तो साधुओं का भी उद्धार कराता हूँ । किससे? वो तुम्हारी लड़ाई में है कि कन्याओं द्वारा भीष्मपितामह, द्रोणाचार्य वगैरह-वगैरह को ज्ञान के बाण मारे हैं और उन्होंने कहा है कि बरोबर परमपिता परमात्मा के ही ज्ञान-बाण इनमें भरे हुए हैं । तुम जाकर देखो अपने उनको । तो बाबा कहते हैं ना- गीता में 5 परसेन्ट आटे में लून है, बाकी सब झूठ है, गपोड़े हैं । सर्वव्यापी, यह लम्बा बड़ा एकदम कचड़ा गपोड़ा । है ना एकदम! बाकी यह तो लिखा हुआ है ना कि कन्याओं द्वारा बाण मरवाये । अभी वो बाण तो नहीं है ना । देखो, रामचंद्र को भी बाण दे दिया है । अभी इनका अर्थ तो कोई समझते नहीं । नाम भी क्षत्रिय पडा हुआ है; परन्तु कोई वाइलेंस वाला क्षत्रिय थोड़े ही है । नॉनवाइलेंस । बरोबर इस युद्ध में माया पर जीत न पहन सके, इसलिए क्षत्रिय कुल कहलाता है । ये सूर्यवंशी, वो चंद्रवंशी, यह दैवी, वो क्षत्रिय, वो वैश्य, वो शूद्र, ये जो नाम लगे हुए हैं, कोई फालतू थोड़े ही हैं । अच्छा, बापदादा मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों को नंबरवार पुरुषार्थ अनुसार, तो बाबा को भी कहना पड़ता है और बाकी भले जो कोई न भी समझते हैं, फिर भी तो हमारे बच्चे हैं ना! कोई जानते हैं, कोई अधूरा जानते हैं, कोई बिल्कुल नहीं जानते, फिर भी बच्चे तो हैं ना । यानी परमपिता परमात्मा उनके बच्चे तो सब हैं ना । यह तो जरूर मानेंगे ना । बाकी यह जरूर है, जब आते हैं तब सब तो नहीं जान जाएंगे! अगर सब जान जाएँ तो सब बच्चे वारिस बन जाएं । सभी स्वर्ग में घुस पड़े । स्वर्ग में थोड़े ही इतनी जगह मिलती है । अच्छा, बापदादा और मीठी मम्मा का मीठे-मीठी सिकीलधे बच्चों को यादप्यार गुडमॉर्निग ।