` 26-10-1963    बम्बई    प्रात: मुरली     साकार बाबा      ओम शांति     मधुबन
 


हेलो, गुड मोर्निंग हम बम्बई से बोल रहे हैं । आज छब्बीस अक्टूबर शनीचरवार है । प्रात: क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं ।

रिकार्ड :-

ओ दूर के मुसाफिर, हमको भी साथ ले ले रे........
बाबा कहते हैं कि जैसे बाबा के नोट्‌स लेते हो ना, वैसे जब कोई गीत बजता है तो नीचे लिखते जाओ और उनका अर्थ भी लिखते जाओ । अर्थ क्यों नहीं लिखेंगे? फिर बाबा कोई-कोई से पूछेंगे तुमने इसका अर्थ क्या लिखा? ये दूर का मुसाफिर कौन है? क्या कोई जगत से आया हुआ है? कोई लंदन से आया हुआ है? कौन हैं दूर के मुसाफिर क्या लिखा तुमने? मैं पूछूँगा । देखो, यह स्कूल है । यह वो सतसंग नहीं है । इसको गातू कहा जाता है । इनका अर्थ लिखते जाओ, मैं कोई से भी इसका अर्थ पूछूँगा याद रख लेना । अभी रोज ऐसे करूँगा । अभी सुनो रिकार्ड- हमें मौत भी न आई । ओ दूर के मुसाफिर, हमको भी साथ ले ले हम रह गए अकेले....... । दूर के मुसाफिर का नाम लिखो । रिकार्ड- तूने वो दे दिया गम, बेमौत मर गए हम 'बेमौत मर गए हम' इसका अर्थ लिखो । (रिकार्ड- ले चल हमें यहाँ से, किस काम की ये दुनिया, जो जिंदगी से खेले रे, हमको भी साथ ले ले, हम रह गए अकेले....) कौन-सी दुनिया चाहते हो? बोलते हो इस दुनिया से हमको ले चलो । किस दुनिया मे जाना चाहते हो? जा रहे हो या पुरुषार्थ कर रहे हो? (रिकार्ड- सूनी है दिल की राहें, खामोश हैं निगाहें । नाकाम हसरतों का उठने को है जनाजा....) अर्थ लिखो 'नाकाम हसरतों का उठने को हैं जिनके जनाजे' । हसरत किसको कहा जाता है? कहाँ मरे पड़े हैं? रिकार्ड- चारो तरफ लगे हैं बरबादियों के मेले रे...) अर्थ लिखो, बरबादियां किसको कहा जाता है? बच्चों ने कहा- गीत ही नहीं सुनते हैं......) पुन: रिकार्ड चला- चारों तरफ लगे हैं बरबादियों के मेले रे.....) देखो मीठे बच्चे, दूर के मुसाफिर शिव भगवानुवाच कहेंगे । शिव दूर के मुसाफिर हैं ना । बहुत दूर के मुसाफिर हैं । सबसे दूर के मुसाफिर हैं शिवबाबा । फिर उनसे कम मुसाफिर हैं ब्रह्मा, विष्णु शंकर । उनसे कम है फिर यह मनुष्य सृष्टि । मनुष्य सृष्टि से दूर है सूक्ष्मवतन जहॉ ये ब्रह्मा, विष्णु, शंकर रहते हैं । उससे दूर है परमपिता परमात्मा । परमपिता परम-आत्मा माना परमात्मा । वो दूर रहते हैं । उनको शरीर बगैर याद तो करते हैं, परंतु उनको जानते कोई नही हैं । क्यों याद करते हैं? याद करेंगे तो क्या हमको बुलायेगा या खुद आएंगे, यह कोई को पता नहीं है । याद तो सब करते हैं । सभी भक्त याद करते हैं । किसको? दूर के मुसाफिर को । वो कौन है? वो परमपिता परम-आत्मा, परमधाम में रहने वाला है, जिस परमधाम से हम उनके बच्चे आत्माएँ यहाँ इस मनुष्य सृष्टि में कर्मक्षेत्र पर पार्ट बजाने आते हैं । यह नाटक है ना । तो नाटक में पार्ट बजाना होता है । इसको सृष्टि का ड्रामा भी कहा जाता है; क्योंकि चक्कर लगता है ना । सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलहयुग फिर संगमयुग, फिर सतयुग, त्रेता । सतयुग आदि है भी सत्, होसी भी सत् यानी फिर-फिर से यह फिरता रहेगा । इसको ही चक्कर कहा जाता है । तो बाप आते हैं । उनको बुलाया जाता है । सब भक्त बाप को बुलाते हैं । उनको यह मालूम नहीं है कि बाप एक होता है । अनेक भक्त, अनेक ही मनुष्यों की, देवताओं की, भित्तर की, ठिक्कर की, कच्छ की, मच्छ की, फलाने की तीरे की सबको भगवान समझकर करके, फिर अपने को भी भगवान समझ करके पूजा करते हैं । भला भित्तर-ठिक्कर की पूजा क्यों करनी चाहिए! वो भी नहीं समझते हैं । इसीलिए बाप कहते हैं कि ये कलहयुगी मनुष्य, सारी सृष्टि के सभी मनुष्य मात्र कैसे मूर्ख बुद्धिहीन, बेसमझ बने हुए हैं । कुछ भी समझते नहीं हैं । बेसमझ तो कोई काम के नहीं रहते हैं । देखो, भारत कोई काम का नहीं रहा है । कौड़ी तुल्य बन गया है । वैश्यालय बन गया है । इसको ऐसे भी कहा जाता है । नर्क बन गया है । जहाँ काम है, क्रोध है, लोभ है, मोह है, माया का राज्य है, उसको नर्क कहा जाता है । ऐसे तो नहीं, इसे स्वर्ग कहेंगे और उसको नर्क कहेंगे । स्वर्ग में ये रहते हैं । मैं उठाऊँ फिर भी एक बच्चे को, बच्चों को, बच्चों को, और फिर क्या कहूं, बाप तो फिर भी बच्चे बच्चे ही कहेंगे न । यह बाप के बच्चे हैं ना! जैसे लक्ष्मी और नारायण इनको सतयुग में राज्य कहाँ से मिला होगा? यह स्वर्ग है ना । तो स्वर्ग का रचता कौन? जरूर कहेंगे- गॉडफादर, यानी परमपिता । तो जरूर इनको परमपिता से वर्सा मिला हुआ है । तो कैसे इनको वर्सा मिला था? अब वो वर्सा तुम सबको दिया । वर्सा मिला, 84 जन्म फिर चक्कर लगाया । अभी फिर से वर्सा ले रहे हैं । अभी ये है नहीं । इस समय में ये चैतन्य में हैं? सिर्फ मंदिर हैं । लक्ष्मी नारायण के मंदिर में जो लक्ष्मी नारायण हैं, वो कहाँ हैं? जरूर वो और उनका जो भी कुल है वो 84 जन्म भोग करके अभी उनका पिछाड़ी का जन्म होगा; इसलिए इनको उठाया जाता है । कुल अर्थात डिनायस्टी । ये फिर कहते हैं हम आ रहे हैं । इनके बदले में बाप समझाते हैं- बच्चे, इनकी आत्माएँ, जो यहाँ भारत में राज्य करके गई, उन्होंने 84 जन्म लेना था जरूर । सबसे जास्ती जन्म । इनका अभी अंतिम जन्म है । अंतिम जन्म में, जबकि यह साधारण वृद्ध तन में इनकी बात करते हैं । समझने का अक्ल चाहिए ना बहुत अच्छी तरह से । 84वां इनका अंतिम जन्म हैं, क्योंकि ये सतयुग आदि में ये थे । ये मधुबन में हैं ना । लक्ष्मी नारायण के मंदिर बहुत हैं, ढेर हैं । वो सतयुग में थे । 84 जन्म भोगना है, 84 लाख नहीं । 84 जन्म भोग करके यह अंत के जन्म में हैं । अब ये फिर अपना राजयोग किससे सीख रहे हैं? इतना ऊँचा मर्तबा कौन दे सकता है? वो ही ज्ञान सागर, परमप्रिय, परमपिता, परम-आत्मा माना परमात्मा । अभी तुम बच्चों को कौन पढ़ाय रहे हैं? वो परमपिता, परम-आत्मा, दूर देश के मुसाफिर । मुसाफिर कहा जाता है ना; क्योकि पार्ट बजाने वहाँ से हम मुसाफिर बनकर आए हैं ना । तो बाप भी आए हैं पार्ट बजाने । सबसे दूर देश के रहने वाले आए देश पराये । अब पराये देश क्यों आना पड़ता है? बोलते हैं- यह जो स्वर्ग के मालिक थे, जो इस समय में अपनी सारी राजधानी सहित नर्क के मालिक हैं उनको फिर से स्वर्ग का मालिक बनाने आता हूँ । अब यह तो समझते हो ना कि यह भी नहीं समझते हो! नए नहीं समझ सकेंगे । यहाँ कोई रामायण, गीता या भागवत आदि की झूठी कथाएँ नही हैं । वो तो झूठी कथाएँ हैं, जो सुनते- सुनते जितना सुनते आते हैं, इतना झूठी माया, झूठी काया, झूठा सब संसार बनता जाता है । अभी ऐसा तो कोई नहीं है तुमको समझाने वाला कि इन्होंने 84 जन्म लिए, 5000 वर्ष पहले इनका भारत में राज्य था । राज्य था माना ये राजा-रानी भी थे और इनकी बहुत डिनायस्टी प्रिंस और प्रिंसेज भी थे । राजधानी जैसे लंदन में- एडवर्ड द फर्स्ट, तो जरूर उनके प्रिंस-प्रिंसेज, राजधानी होगी ना । तो ऐसे ही यह श्री लक्ष्मी नारायण द फर्स्ट थे, फिर उनकी डिनायस्टी चली थी- लक्ष्मी नारायण दी सेकेंड, द थर्ड, द फोर्थ । पीछे उनके बाद श्री रामचंद्र का, सीता और राम का राज्य चला था । ये भूल तो नहीं गए हो! देखो हम क्या कहता हूँ? डॉन दू डस्क । नॉलेज देता हूँ । डॉन दू डस्क का अर्थ बताओ । जो डॉन टू डस्क जानते हैं, हाथ उठाओ । याद रखना, समझाने की बड़ी बातें हैं । डॉन किसको कहा जाता है? किसी ने कहा- जानना । बुद्धू अंग्रेजी कहाँ पढ़ी हो! ऐ बच्चों, ऐ ऑफिसर! डान माना -जवाब दिया- सूर्योदय का जब सुबह होता है ना वो । डॉन माना सुबह । डस्क माना रात । इतना भी नहीं समझते हो । (किसी ने कहा- ब्रह्मा बाबा रात्रि और सुबह का संगमकाल और यह दिन और रात) आधी रात वो है संगमकाल । बाबा पूछते हैं कि तुम बच्चे अभी कहाँ हो? डॉन में हो या डस्क में हो? ये प्रश्न बड़े गम्भीर हैं । बाबा पूछते हैं कि डॉन के समय में हो या डस्क के समय में हो? सभी यह फट से लिखो । यहाँ बहुत दिन ऐसे ही सुना, कान से निकाला और बाहर जाकर फेंका । अभी तुम्हारा प्रश्न-उत्तर रोज पूछेंगे । सब कोई जानते हैं कि सुबह को डॉन कहा जाता है, शाम को, रात को डस्क कहा जाता है । बाबा पूछ रहें हैं तुम्हारा डॉन एण्ड डस्क क्या है और अभी कहाँ हो? डॉन पर हो या डस्क पर हो? सुबह पर हो या रात पर हो? कहाँ हो, बोलो? अभी बच्चो को समझाया है ना । यह कौन समझाय सकते हैं! कोई साधु, संत, महात्मा थोड़े ही समझाय सकते हैं । यह तो मालिक है ना, जो इनको राज्य दे रहे हैं । जो इनको फिर से राज्य दे रहे हैं, वो ही तो कहेंगे ना, दूसरा तो कोई का नाम नहीं है ना । बाप कहते हैं ये राज्य गुमाय बैठे हैं । अभी सच्ची- सच्ची सत्य नारायण की कथा ये सुन रहे हैं । ये दोनों लक्ष्मी नारायण बहुत जन्म के अंत के जन्म के भी अत में हैं और वानप्रस्थ अवस्था मे हैं । ये समझते हो अच्छी तरह से की नहीं? ये डॉन में थे और अब डस्क में हैं । जास्ती नहीं बताता हूँ कहाँ हैं; क्योंकि यह तुमको खुद लिखना है । ये भारत के मालिक थे । अभी हैं नहीं । जब ये भारत के मालिक थे तब भारत को स्वर्ग कहा जाता था, हीरे तुल्य कहा जाता था, वैकुण्ठ कहा जाता था । ये छोटेपन में राधे-कृष्ण थे । नए- नए बच्चों को यह मालूम नहीं होता है कि राधे-कृष्ण छोटे बच्चे थे और स्वयंवर रचा, पीछे लक्ष्मी नारायण का राज्य पड़ा । ये सतयुग के विश्वमहाराजन और विश्वमहारानी थे । विश्व का महाराजा-महारानी इन बिगर कोई भी बन नहीं सकता है । मनुष्य नहीं बन सकते हैं । ये देवी और देवता कहे जाते हैं; क्योंकि आदि सनातन देवी-देवता धर्म के ये मालिक थे । यानी विश्व के महाराजन विश्व की महारानी थीं । अब नहीं हैं । कहाँ हैं? अभी अपना 84 जन्म पूरा करके अंतिम जन्म में हैं । अंतिम जन्म के भी वानप्रस्थ में हैं । ये वानप्रस्थ में हैं और ये जवान हैं । सिर्फ बच्चे जानते हैं । नए बच्चे यह बात नहीं समझ सकेंगे ना । इसमें भी जो बिलकुल मस्त होंगा होशियार होंगा जिनके बुद्धि में रात दिन डौन एंड डस्क, डाउन एंड डस्क, सुबह और शाम ये चक्र चलता रहेगा उनका । चक्कर फिरता होगा ना; क्योंकि सुबह से शाम तक का चक्कर होता है ना । उसको कहा जाता है 84 का चक्कर । तो यह 84 का चक्कर पूरा करके अभी यह वानप्रस्थ अवस्था में है और यह जो वानप्रस्थ वाला है, उनकी यह बेटी है और जवान है । ये ब्रह्मा सरस्वती यही तो लक्ष्मी नारायण हैं । ब्रह्मा मुखवंशावली सरस्वती, उनको जगदम्बा कहा जाता है । सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाली अर्थात् स्वर्ग का मालिक बनाने वाली । यह जो अम्बा है ना तुम्हारी मम्मी, फिर वो मम्मी कहो या इसको मम्मी कहो । यह तुम्हारी बुद्धि की बात है । वो तुम्हारी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण कर रही हैं । किस द्वारा? वो थोड़े ही सभी की खुद पूरी कर रही हैं । नहीं, उनकी भी मनोकामनाएँ पूर्ण हो रही हैं, ऐसे बन रही है । किस द्वारा? बाप द्वारा । बेहद के बाप द्वारा ये है बेहद का राज और भाग । सतयुग के आदि में लक्ष्मी और नारायण को इतना बड़ा राज और भाग किसने दिया? जबकि अभी कलहयुग है ना । कलियुग में तो राज-भाग कोई है नहीं । हीरे, जवाहर, मोती, सोने के महल-वहल तो कुछ नहीं हैं । 9 कैरेट और 14 कैरेट, सोने की बात ही निकल रही है । इस समय कलहयुग की ऐसी हालत और फिर सतयुग की आदि होती है, उसमें इनको ऐसा राज्य कैसे दिया, यह कब आया? हेविन का स्थापन करने वाला गॉड फादर माना सबका बाप । सबका जो बाप है, वो रचता है ना । वो रचता है नई दुनिया स्वर्ग । तो स्वर्ग में है इनका राज्य । तो जरूर इन्होंने उस बाप से राज्य लिया था । अब नहीं है, फिर से ले रहे हैं । वो कहाँ है? यहाँ मौजूद है । यह नॉलेज तो बाप बिगर कोई नहीं सुनाय सके । तुमको चित्र इसलिए बनवा कर देते हैं कि बच्चे इनको,यह चित्र कैसा सीधा है, बिल्कुल एक्युरेट । वो शिवबाबा निराकार ऊँचे ते ऊँचा गाया जाता है । महिमा है ऊँचे ते ऊँचा भगवत की । जरूर जो ऊँचे ते ऊँचा होगा, उनकी महिमा बहुत अच्छी होगी । उनकी तो महिमा है- ज्ञान सागर, शांति का सागर, सुख का सागर, आनन्द का सागर, सबका सागर और परमपिता है । परमपिता परम-आत्मा है माना परमात्मा, परमधाम में रहने वाली आत्मा । इसको कोई भी परम-आत्मा नहीं कहेंगे, भले रहने वाली है; परंतु अभी थोड़े ही परमधाम में रहने वाली है, अभी यहाँ है और एकदम पतित है । तो फिर पतित को पावन करने वाला कौन हुआ? यह । देखो, ऐसा पावन तुम हो रही हो । मनुष्य पावन का अर्थ भी तो नहीं समझते ना । पावन दुनिया, पतित दुनिया । अभी पतित दुनिया है ना । कल है पावन दुनिया; क्योंकि बाप इस पतित दुनिया को पावन बना रहे हैं । पावन दुनिया में रहने वाले भी तो हैं न । तो रहने वालों को, अभी पतितों को राजयोग सिखलाय रहे हैं । बहुत सहज । सिर्फ क्या कहते है? कि बच्चे, अभी तुम सबका मौत है । मुझे याद करो और मेरे वर्से को याद करो, इनको याद करो । मनमनाभव मद्याजी भव का अर्थ ही ऐसे है । शिवबाबा को, परमपिता परमात्मा बाप को याद करो, जहाँ से तुम आए हो । और फिर अपने भविष्य यानी आगे जाकर क्या बनना है उसको याद करो। अभी जो रावण के दो रूप हैं, 5 विकार स्त्री के, पाँच हैं पुरुष के, तो हुआ रावण । तुम अभी रावण के जोड़े हो, पीछे तुम दैवी जोड़े बनते हो । अभी दुःखी हो बरोबर और सभी शोक वाटिका में हैं । तुम समझते हो जो भी यहाँ बड़े से बड़ा होता है ना, वो शोक में जास्ती रहता है । सबसे बहुत शोक में रहता होगा राधाकृष्णन प्रेजिडेंट और उनसे कम जास्ती फिर यह नेहरू जी । चीनी लोग आएँगे, मारेंगे, यह करेंगे, यह करेंगे, अगर लड़ाई होगी तो नींद भी फिट जाएगी, क्योकि फिर तरस तो आना चाहिए ना कि हमारी प्रजा मरेगी, हमारे जवान मरेंगे, यह होगा, यह होगा । मरते तो हैं न बहुत । तो देखो, सभी फिक्र में हैं ना और तुम जो सच्चे-सच्चे, पक्के-पक्के बच्चे हैं, फखुर में हैं । भले ये लड़ाइयां तो लगनी हैं । ये लड़ाइयां तो हमारे लिए लग रही हैं, क्योकि जब यह पतित दुनिया विनाश हो, ये बंदर की दुनिया विनाश हो तब स्वर्ग स्थापन हो । ये सभी बंदर सेना है ना । देखते हो बंदर-बंदरियॉ हैं । बंदर-बंदरिया कहो या द्रोपदी और दुर्योधन कहो । हर एक द्रौपदी और हर एक दुर्योधन हैं; क्योंकि सबको नंगन करते हैं । तो द्रोपदियॉ बहुत हो गईं ना । तो द्रोपदियाँ हुई भक्ति । किसको याद करती हैं? भगवान को । क्यों? हमको स्वर्ग में ले चलो; क्योंकि वहाँ कोई भी विख नहीं पीते हैं । सीधी बात है ना । सभी भगत नहीं कहते हैं । क्या एक द्रोपदी कहती है मेरा चीर बढ़ाओ? मेरे को नंगन होने से बचाओ? नहीं । सारी दुनिया में ये सब द्रोपदियाँ नंगन जरूर होती हैं । फिर तो दुर्योधन जरूर चाहिए । इस समय में यह है द्रौपदी और दुर्योधनों की दुनिया । बाप आ करके सबको नंगन होने से बचाते हैं । सतयुग में उनके राज्य में कोई भी नंगन नहीं होता है । अभी यह कोई मानेगा नहीं । बोलते हैं- अगर नंगन होने से, यह कैसे होगा? वहाँ माया नहीं होती है । तुम कहते हो ना, सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी, फिर उसमें ये विकार कहाँ से आयेंगे! होगा कोई विकार? अब यह तुम बच्चे मानेंगे, और तो कब भी कोई नहीं मानेंगे; क्योंकि जैसी है सृष्टि, तैसी है सबकी दृष्टि । तुम इस सृष्टि के नहीं हो । तुम कलहयुगी नहीं हो, न सतयुगी हो । तुम कहाँ हो? तुम डॉन एण्ड डस्क के बीच में हो । अभी समझा? लिखा है तुम बच्चों ने? अभी हम डस्क से डॉन तरफ जा रहे हैं । बाकी थोड़ा समय है । डॉन कहा जाता है स्वर्ग को, डस्क कहा जाता है नर्क को । डस्ट कहो भला, धूल कहो एकदम, धूल में फिरते हैं ना । खोदरे के बच्चे खोदरे कभी अक्षर सुना है? सौ- सौ करीस सिंगार, तब भी खोदरे का बच्चा खोदरा । यह सभी यहाँ की बात है ना । इनको ऐसा बनाने के लिए हम आ करके ज्ञान से सिंगारते हैं, पवित्र बनाते हैं । देखो, कितना सिंगारी बनाते हैं! हम उनको सिंगारी बनावें, पीछे माया उनको झट पकड़ करके खोदरे का बच्चा खोदरा बना देवे फिर विकार में चले जावे । तो मैं कभी-कभी ऐसे कोई-कोई को लिखता भी हूँ । अरे, तुम्हे इतना ज्ञान से सिंगार रहा हूँ फिर भी तुम यह विकार में चले जाते हो और काम, क्रोध में के वशीभूत हो जाते हो । उसमें काम है बहुत । तुम तो कोई खोदरे का बच्चा खोदरा देखने में आते हो । सुधरते ही नहीं हो । इतना सिंगारते हैं फिर तुम ये करके बिगड़ जाते हो । हम लिखते हैं । तो उनको बड़ी कड़ी डोज देनी पड़ती है ना । कोई-कोई को कड़ा डोज देना पड़ता है, नही तो डोज तो बहुत मीठा है । वो कड़ा भी मीठा ही है । इन गीत का अर्थ तो तुम समझे हो । जो पिछाड़ी का हजरत है, हजरत किसको कहा जाता है? जो धर्म की स्थापना करने आते हैं । हजरत कहो, पैगम्बर कहो, मैसेंजर कहो, जो-जो धर्म स्थापन करते हैं । जैसे सिक्ख धर्म स्थापन हुआ, बुद्ध धर्म स्थापन हुआ, क्रिश्चियन धर्म स्थापन हुआ । ये परमपिता परमात्मा ने ब्रह्मा द्वारा ब्राहमण, देवी-देवता और क्षत्रिय धर्म, तीन धर्म स्थापन किए । अभी वो सभी कहाँ हैं? उनका धर्म स्थापक कहाँ है? और उनके जो भी फालोअर्स व प्रजा कहें, कहाँ हैं? वो सभी नर्कवास में हैं, कब्रदाखिल हैं । इसको कहा जाता है कब्रदाखिल हैं, फिर आते हैं, आ करके सबको जगाते हैं । बरोबर सभी जो भी पैगम्बर हैं, वो जो कहते हैं बुद्ध निर्वाणधाम में चला गया, क्राइस्ट चला गया, यह गुरुनानक भी चला गया, यह शंकराचार्य गया, नहीं, शंकराचार्य आदि सब यहाँ कब्रदाखिल हैं यानी अपने सभी प्रजा सहित पतित दुनिया में नर्कवासी हैं । शंकराचार्य के जो भी सन्यासी हैं, अभी सभी नर्कवासी हैं । अभी कोई स्वर्ग है! नर्कवासी सब हैं । वो लक्ष्मी नारायण भी नर्कवासी हैं । अभी बताओ, नर्कवासी किसको कैसे स्वर्गवासी बनायेंगे? मुक्ति कैसे देंगे? नर्कवासी मनुष्य, मनुष्य को कभी भी मुक्ति-जीवनमुक्ति दे नहीं सकते हैं । शांति और सुख दे नहीं सकते हैं । मनुष्य कहते हैं हम सन्यासी के पास जाते हैं, हमको शांति मिलती है, दुआएं मिलती हैं, अच्छाई मिलती है । शांति मिलती है । स्थायी शांति देने वाला है ही एक । शांति वा सुख, गति वा सद्‌गति, मुक्ति वा जीवनमुक्ति देने वाला ही एक है । सद्‌गति दाता एक है । फिर उनको राम नहीं कहना चाहिए । राम कहो तो भले; परतु असुल उनका नाम है परमपिता परम-आत्मा माना परमात्मा । 'परमात्मा' नाम जरूर चाहिए, नहीं तो मनुष्य मूंझ जाएंगे । इसलिए शिव नाम रखा हुआ है । असुल नाम पक्का- पक्का शिव है । पीछे नाम पड़ा है रुद्र; क्योकि यह रुद्र ज्ञान यज्ञ रचा है ना । इस समय में उनको फिर रुद्र भी कहा जाता है । यह रुद्र ज्ञान यज्ञ, जिससे विनाश ज्वाला प्रज्वलित हो रही है विनाश के लिए, सबके मरने के लिए । अभी कितना अच्छी तरह से बच्चों को समझाते हैं । अभी कौन अर्थ समझ सकेंगे, यहाँ इतने सब बैठे हुए हैं! बिल्कुल थोड़ा । कोई न कोई प्वाइंट में हार जाएंगे । अभी तुमको डॉन एण्ड डस्क डस्क और डॉन, रात-दिन, दिन-रात, याद है? अच्छा, जो बाहर वाला मनुष्य होगा, वह बोलेगा- वाह! यह तो कोई को भी याद होगा । अरे नही, बेहद का दिन और बेहद की रात । उसको कहा जाता है ब्रह्मा की बेहद का दिन और ब्रह्मा की रात । अभी कोई भी सन्यासी नहीं जानते हैं । कहते हैं कि ब्रह्मा का दिन और ब्रह्मा की रात, पर जानेंगे कभी नहीं । कोई से जा करके पूछो कि ब्रह्मा की रात किसको कहा जाता है, ब्रह्मा का दिन किसको कहा जाता है? शास्त्रों में लिखा हुआ है ना! एक भी कुछ बतावे, तो ले आ करके बाबा के सामने कर दो । इसलिए बाबा कहते हैं- इनके तो जो भी वेद, शास्त्र, ग्रंथ, उपनिषद, गीता वगैरह हैं, सबमें गपोड़े के गपोड़े हैं । हाँ, ये जो है गीता, भागवत, महाभारत, रामायण ये, क्योंकि वशिष्ठ नहीं है यहाँ का । वो तो रामराज्य का, वो सन्यासियों का की ये दुनिया बनी ही नही है । दुनिया बनी नहीं है तो तुम कहाँ बैठे हो - तो वशिष्ठ नहीं है । यूँ तो थोड़ा-थोड़ा बहुत कुछ है । अष्टावक्र गीता, पाडव गीता, ऐसे तो फिर शिव पुराण, नाम तो बहुत हैं; पर है कुछ भी नहीं । वास्तव में है फिर भी एक गीता, क्योंकि सर्व शास्त्रमई शिरोमणी है, परंतु वो गीता नहीं । इस समय में जो बाप बैठ करके समझावे, सहजयोग और राजयोग सिखलावे जिससे तुम नर से नारायण नारी से, लक्ष्मी यानी ऐसे बनते हो, इसका नाम पिछाड़ी में रख दिया है गीता, पर मैं तो आ करके पढ़ाता हूँ । मैं तो कोई शास्त्र-वास्त्र नहीं पढ़ता हूँ । मैं तो ज्ञान का सागर हूँ ना । मुझे थोड़े ही कोई कहेंगे कि यह वशिष्ठ जानते हो? पूछेंगे- वशिष्ठ पढ़ा है? राम-अवतार? नहीं, मैं ज्ञान का सागर हूँ? मैं तुम्हारे से भी जास्ती अच्छी तरह से जानता हूँ । इसलिए तो मैं तुमको सभी वेदों, ग्रंथों वगैरह का सार समझाने आया हूँ । मेरे बुद्धि मे यानी आत्मा में ये सभी पार्ट पहले से नूँधा हुआ है कि आ करके तुमको इन वेदों, ग्रंथों वगैरह का सार भी सुनावे और सहज राजयोग भी सिखलावे और तुम सब बच्चों को आ करके मुक्ति और जीवनमुक्ति देवें । यह है मेरा पार्ट मेरे इस परम-आत्मा में और सो भी स्थायी है । उसमे कोई अदल-बदल नही हो सकती है, क्योंकि यह है इम्पेरिशेबल यानी अविनाशी ड्रामा, प्रीऑर्डेन्ट यानी यह बना-बनाया है । कभी भी इसकी एण्ड नहीं होती है । और तुम राम की सेना ने स्वर्ग बनाया है, रावण ने इनको नर्क बनाया है । फिर रावण की सेना ही कहो । अभी समझा न! अच्छा, अभी टाइम हुआ है, जब तलक टोली बाँटो । एक होता है हद का डॉन टू डस्क यानी सुबह से रात, दूसरा होता है बेहद का डॉन टू डस्क सतयुग से ले करके कलहयुग के अंत तक । उसको कहा जाता है बेहद का दिन, उसको कहा जाता है बेहद की रात । बेहद का दिन में सुख, बेहद की रात में दुःख । वो सुखधाम, यह दुःखधाम । अभी बेहद की रात पूरी होती है, बेहद का दिन उदय होता है । ज्ञान सूर्य प्रगटा अज्ञान अंधेरी रात विनाश । यानी अभी अंधियारा खलास होता है और सुबह यानी सतयुग आता है, कलहयुग खतम होता है । अरे, टोली दो । देखो ये कितने काम में आते हैं; परंतु इनसे वो काम में जास्ती आएगा । मनुष्य वो कृष्ण-राधे को जो द्वापर में ले गए हैं, वो भी वहाँ से उसका पूंछना निकल जाएगा; क्योंकि कृष्ण है सतयुग का प्रिंस और वहाँ दुःख की बात नहीं है । उन बिचारे को बहुत गाली खाई, उनका मुँह काला कर दिया, धक्का खिलाया, टोकरी में डालकर नंद को नदी पार ले जाना पड़ा, ये सब गपोड़े हैं । याद रख लेना, ये स्कूल है ना, उनमें जो-जो भी हेड होगा, मॉनीटर होगा, नम्बर में होगा, वो ही तो टीचर को अच्छा लगेगा ना । फ्रॉम राइट टू लेफ्ट । यहाँ हम रख नहीं सकते हैं । हम अगर तुम बच्चों को कहें- अरे, नंबरवार बिठाओ, नहीं बिठा सकते हैं । हो नहीं सकता है । हो सकेगा ? यह वंडरफुल स्कूल है ना, वो हो नहीं सकता है । अब स्कूलों में ऐसे ही बिठावे वो धमचक्र मच जाएगी । अभी शायद नए भी आए होंगे । अरे बच्चे, जो नए आए हैं सो तो हाथ उठाना । देखो, मैं पहले हाथ उठाता हूँ क्योंकि सब कोई ऐसे सीधा हाथ नहीं उठाते हैं । देखो, तुम ऐसे उठाते हो ना, ऐ हाथ उठाओ । देखो कैसे सीधे है इनका । इन सबको शुरुआत में ड्रिल सिखलाई गई है । इतना हाथ उठाना चाहिए । तुम लोगों ने यह जो हाथ उठाया है ना, गोवर्धन पर्वत में वहाँ का भी ऐसे उठाया है, ऐसे नहीं उठाया है । नई बातें हैं ना । ये तो बिचारे मनुष्य मूंझ जाते हैं कि क्या है यहाँ? कोई भी साधु, संत, सन्यासी शास्त्रों में बात ही नहीं है । ये तो सबको खंडन कर देते हैं । बाबा बोलते हैं- यह सब झूठे हैं । 'सब झूठे'- ऐसा कहने वाला भी कोई ताकत रखने वाला होगा ना । मनुष्य थोड़े ही कह सकें । झट उनके ऊपर केस कर दे । बाबा तो कहते हैं- मेरे ऊपर कोई केस करे । हम कहते रहते हैं न- शिवभगवानुवाच, ये जो भी है, 95% सब झूठ है । गीता झूठी, भागवत झूठा, रामायण झूठा, महाभारत झूठा । उनमें 5% आटे में लून जैसा कुछ है, बाकी सब झूठा है । इतने वेद-ग्रंथ-शास्त्र की बेअदबी! तो भई किसको केस करना चाहिए ना! मेरे ऊपर कोई केस ही नहीं करता है । एक दिन करेंगे । कभी-कभी उछलते हैं; परन्तु अभी उनका भी तो कोई बड़ा हेड चाहिए ना । तो अभी कोई करते नहीं है । बाबा तो चाहते हैं केस करे । तुम भी रडियॉ मारते रहो; क्योंकि भारत का है मुख्य शास्त्र, जिनका बहुतों ने बैठ करके गायन किया है और तुम कहेंगे ये सब गीताएँ झूठी, तो उसमें सब झूठे हो गए । गाँधी की गीता, टैगोर की गीता, गंगे ज्ञानेश्वर की गीता, राजाराम की गीता, गीताएं तो ढेर हैं । तुम्हारा ये सब झूठी बताते हैं एकदम । तो झूठे लोग हैं । झूठी बनाने वाले, झूठा बोलने वाले, उनको झूठे लोग कहा जाता है । गाया जाता है झूठी माया, झूठी काया । काया यह शरीर हुआ ना । पूरे फिर सब संसार, तुमको सिद्ध करके बताते हैं ना । सबसे झूठे फिर कौन हैं? जो कहते हैं ईश्वर सर्वव्यापी है । सब संसार झूठा हो गया । अच्छा, सबको टोली मिली? जिसको नहीं मिली है हाथ उठाओ । अच्छा, तुमको दे रहे हैं, इनको नहीं मिली है । अच्छा आज क्या है? सेटरडे है । जो नए बच्चे आते हैं, डरो मत, कोई जादू नहीं है, आँख में डालने जैसा कोई सूरमा नहीं है । ज्ञान अंजन सदगुरु दिया, अज्ञान अंधेर विनाश । अंजन को सोना भी कहा जाता है । यह अंजन कोई वो नहीं है । वो तो सब कोई लगाते हैं । अनेक प्रकार के अंजन होते हैं, वो तो मैन्यूफैक्चर होते हैं । नहीं, यह ज्ञान की बात है । ज्ञान अंजन सद्‌गुरु दिया । ये हैं कलहयुगी गुरु । कलहयुगी गुरुओं के पास तो कोयला बनाने के लिए, काले बनाने के लिए कोयले का काला अंजन होगा । देखो, सभी काले बनते जाते हैं ना । अच्छा, बापदादा, मीठी मम्मा का मीठे-मीठे सिकीलधे नंबरवार पुरुषार्थ अनुसार बच्चों को यादप्यार गुडमॉर्निग ।