29-12-1963    दिल्ली    प्रात: मुरली    साकार बाबा     ओम् शांति     मधुबन
 


हेलो, गुड मोर्निंग! हम दिल्ली से बोल रही हैं, आज शुक्रवार है दिसंबर 29 तारीख की मुरली सुनते हैं ।

रिकार्ड :-

दुखियों पे कुछ रहम करो. माँ-बाप हमारे........
ओमशाति । अभी बच्चे पुकारते हैं कि बाप को आना है । कब आना है? जबकि रहम चाहते हैं । तो बाप बैठकर बच्चों को समझाते हैं । अभी बाप बैठकर के समझाते हैं हूबहू कल्प पहले मुआफिक। बाप आ गए हैं बच्चों को फिर से प्यार देने और जो बच्चे दुःखी हैं उनको सुखी करने । बच्चे कहेंगे ना फिर से; क्योंकि पुकारते हैं कि आओ, रहम करो, फिर से आओ; क्योंकि बच्चे जानते हैं कि सचमुच हम दुःखी हैं । हम 5000 वर्ष पहले बहुत सुखी थे । बाबा ने तुमको बताया है कि कितना वर्ष हुआ जब तुम बहुत सुखी थे । अब तुम दु:खी हो । किसने दु:ख दिया है? किसने तुमको अशांत किया है? जब कोई आते हैं तो कहते हैं- शांति कैसे मिले? ऐसे कहते हैं न बच्चे , तो अशांत हैं ना! अशांत का अर्थ ही है कि घर-घर में दुःख है, झगड़ा है, मारामारी है, उसको कहा जाता है 'अशांत, और फिर शांत किसको कहा जाता है? जहाँ फिर यह मारामारी, झगड़ा और हंगामा नहीं है । ऐसे नहीं है कि शांति चाहिए, तो हम जड़ बन जावें । क्यों? जब हम वहाँ नंगे हैं, शरीर नहीं है, तो हम जैसे जड़ हैं, कुछ करते नहीं हैं, बस वहाँ पड़े रहते हैं । कुछ करते हैं वहां ? मूलवतन में हम कुछ करते नहीं हैं, शरीर हो तो कुछ करें ना! शरीर नहीं है तो वहाँ करते क्या हैं? वहाँ हम पड़े रहते है- जड़ । उसको जड कहा जाता है । शांत पड़े हुए हैं । शांति तो वहाँ है; क्योंकि वो है ही निर्वाणधाम, वानप्रस्थ । निर्वाणधाम माना वाणी से परे धाम । वानप्रस्थ का भी यही अर्थ है-वाणी से परे स्थान, जहाँ हम बच्चे, हम आत्माऐ रहते हैं । किसके पास? बाप के पास । उसको स्वीटहोम भी नहीं कहा जाता है, उसको कहा जाता है-शांतिधाम । जब 'स्वीट' अर्थात् मीठा अक्षर आता है तो फिर कडुवा भी जरूर होगा । तो यह है कलियुग का कडुवाधाम वह है मीठा धाम-सुखधाम । वह है शांतिधाम । बच्चे पुकारते हैं ना! तो बाप भी आकर कहते हैं और बाप समझाते हैं तुम अभी बहुत दुःखी हो, ऐसे नहीं है कि जैसे बहुत बच्चे समझते हैं कि बाप ही सुख देते हैं, बाप ही दुःख देते हैं अर्थात् गॉड फादर ही सुख देते हैं, गॉड फादर ही दुःख देते हैं या परमात्मा सुख देते हैं, परमात्मा दुःख देते हैं, ऐसे तो कभी हो नहीं सकता है । परमपिता परमात्मा उसको मोस्ट बिलवेड कहा जाता है वा कहा जाता है बिलवेड मोस्ट परमप्रिय, परमपिता । माँ-बाप तो प्रिय होते हैं ना; क्योंकि वो पालना करते हैं, वर्सा देते हैं । तो प्रिय उनको कहा जाता है । बच्चों को मोस्ट प्रिय होते ही हैं-माँ-बाप । तो एक माँ-बाप हैं हद के, दूसरे फिर माँ-बाप हैं बेहद के, जिनको देखो ऐसे पुकारते हैं । लौकिक मात-पिता को ऐसे थोड़े ही कहेंगे- ''तुम मात-पिता, हम बालक तेरे, तुम्हरी कृपा ते सुख घनेरे ।' ' घनेरे कहाँ? आज हैं, कल दुःखी होते हैं, बीमार होते हैं, ये होते हैं । नहीं, कोई है दूसरा, जिसकी महिमा भक्तिमार्ग में चली आती है; क्योंकि अविनाशी सुख देते हैं और अविनाशी हैं । तो बाप बैठकर के समझाते हैं, बच्चों को वो अविनाशी याद रहती है; क्योंकि मैं कल्प-कल्प आय कर बच्चों को सदा सुखी बनाता हूँ । इसका नाम शिव है ना, उसको कहा ही जाता है-सदाशिव । शिवजयँती होती है ना, तो कहते हैं-सदाशिव । 'सदा का अर्थ एक निकलता है-सदा सुख देने वाला वा सदा ही वहाँ परमधाम में एकरस रहने वाला, सिर्फ एक दफा आने वाला । जब गाती हो ना- माँ बाप हमारे', तो अभी तुमको प्रैक्टिकल में मिला है । तुम जानते हो कि बरोबर हमको अभी, जिसकी महिमा है, गॉड फादर जिसको कहा जाता है, वो प्रैक्टिकल में मिला है । सिर्फ ईश्वर और प्रभु कहने से वर्से का मजा नहीं आता है, फादर कहने से वर्से का मजा है । फादर माना ही है फादर से वर्सा मिलता है । ऐसे नहीं कहेंगे कि ये मदर से वर्सा मिलता है । दोनों चाहिए । माता भी चाहिए तो पिता भी चाहिए । तो जरूर माता-पिता चाहिए । भारत में तो मशहूर है-जगद अम्बा । जगत की माता हो गई । जगत की अम्बा है, तो पिता भी है । ये बुद्धि से काम बहुत लेना है । ये दंत कथाएँ जो पढ़ी हैं ना, वो सब भूलो । जब बाबा बैठकर कुछ समझाते हैं, जब शिवबाबा भी समझाते हैं, तो ऐसे तो नहीं कहेंगे कि परमपिता परमात्मा आकर शास्त्र समझाते हैं । वो सभी वेदों, ग्रंथों, शास्त्रों का सार समझाते है । तुम बच्चों को मालूम है कि ब्रह्मा का चित्र दिखलाते हैं, उनके हाथ में पुस्तक देते हैं और फिर चित्र बनाय दिया है कि विष्णु की नाभी से निकलते हैं । अभी विष्णु की नाभी से तो कोई निकलने की बात है नहीं । विष्णु सूक्ष्मवतन में रहा, ब्रह्मा भी फिर वहाँ ही रहा, तो वहाँ सूक्ष्मवतन में थोड़े ही विष्णु की नाभी से ब्रह्मा निकल पड़ा । ऐसे तो है भी नहीं । नहीं, यह है प्रजापिता ब्रह्मा । तो जरूर दो ब्रह्मा हो गए । लॉ मुजीब दो ब्रह्मा । एक को कहा जाता है प्रजापिता ब्रह्मा यानी प्रजा रचने वाला ब्रह्मा । प्रजा तो यहाँ रची जाएगी ना, सूक्ष्मवतन में तो नहीं है । बहुत बच्चे मूंझते है-यह क्या, यह साकार में मनुष्य अपने को ब्रह्मा, जो सूक्ष्मवतन में रहते हैं वो कैसे कहलाय सकते हैं? तुम्हारे पास बहुतों को ऐसे बहुत संशय होते हैं । तो बाप बैठकर समझाते हैं कि प्रजापिता ब्रह्मा, उनके ब्रह्मा मुखकमल से ब्राहमण पैदा हुए । तुम ब्राहमणों से जाकर पूछो कि तुम किसकी सन्तान हो? बोलेंगे- हम ब्रह्मा की मुखवंशावली हैं । तो ये समझते हैं कि मुखवंशावली होंगी, तो ब्रह्मा भी जरूर यहाँ होगा ना । तो इसका नाम ही है प्रजापिता ब्रह्मा । उनको आदिदेव भी क्यों कहते हैं? क्योंकि वो जो त्रिमूर्ति रचा है, उनका नाम रख ही दिया त्रिमूर्ति ब्रह्मा । तो तुमने उसको 'ब्रह्मा बड़ा लकब दे दिया । इसलिए उनको कह देते हैं आदिदेव । अभी बाप समझाते हैं प्रजापिता तो जरूर यहाँ चाहिए । बाप आते ही हैं जबकि दुनिया पतित है । तो वो ब्रह्मा कौन होगा, जिनसे बाप बैठकर ब्रह्मा द्वारा मुखवंशावली रचते हैं? दुनिया तो सारी पतित है बरोबर । फिर बैठकर समझाते हैं कि यह है ब्रह्मा की रात, सो भी एकदम आधी रात । शिवजयन्ती कब आती है? बोलते है- जब दुनिया की आधी रात होती है और दिन होना होता है तब आते हैं । वो जो कृष्ण के लिए लिखते हैं कि वो आधी रात में जन्म लेता है, जन्म-अष्टमी व्रत रखते हैं और रात को जागते हैं, तो बाबा बैठ बोलते हैं कि यह परमपिता परमात्मा खुद कहते है कि मैं आता ही हूँ कल्प के अन्त में और आदि में यानी जब ब्रह्मा की आधी रात है, बिल्कुल ही घोर अंधियारा है । तो दिन करने के लिए घोर अंधियारे में आएगा ना । तो मेरी जयन्ती होती ही है कल्प के रात में । ऐसे नहीं कि कोई मैं गर्भ से जन्म लेता हूँ जो कोई बैठकर वो टाइम रखते हैं कब-किस क्लास में जन्म लिया, नहीं । मेरा वो जन्म नहीं है, जिसकी तुम टाइम रखते हो । रखते हो ना । किस वेला में जन्म, लिया, तो बैठकर समझाते है । कौन समझाते हैं? अभी तुम जानते हो फिर वही परमपिता परमात्मा, जिसको गीता का भगवान कहा जाता है, वो भगवान आया हुआ है और वो पढ़ाते हैं । इन सबको पहले ये निश्चय होना चाहिए । नहीं तो बिचारे क्या करेंगे? मूंझेंगे । बाबा अभी सभा से कैसे पूछे कि तुम जानते हो कि यहाँ भगवान पढ़ाते हैं? कृष्ण भगवान नहीं । गीता का भगवान कृष्ण नहीं है । जो सबका भगवान है, जिसको शिव कहा जाता है । शिव का कर्तव्य ड्रामा में अलग हुआ, कृष्ण का अलग हुआ । बिल्कुल ही रात-दिन का फर्क है । उनकी महिमा अलग, उनकी महिमा अलग । बाबा ने बहुत समझाया है । तो बाप बैठकर बच्चों को समझाते हैं- तुम बच्चे जानते हो कि अभी परमपिता परमात्मा कल्प पहले मुआफिक इस द्वारा सारे ब्रह्माण्ड और सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान सुनाय रहे हैं, जो कोई भी सुनाय ना सकेंगे । क्यों? इसको कहा ही जाता है नॉलेजफुल । जानीजाननहार का अर्थ कोई यह नहीं है कि सबके दिलों को जानते हैं । सारी साढे तीन सौ करोड़ों दिलों को बैठकर जानेंगे, यह थोड़े ही बात है । उनको कहा जाता है नॉलेजफुल । अंग्रेजी अक्षर बहुत अच्छा है । वो जानीजाननहार का अक्षर कुछ मुंझाय देता है । भई, नॉलेजफुल है । तो बाप आकर कहते है मैं चैतन्य हूँ ना । ,मुझे कहते भी हैं- सत है, चैतन्य है, फिर कहा जाता है- आनन्द स्वरूप है, सुख का सागर है । सुख तो स्वर्ग में होता है ना, जो देते हैं । तो बाप सुख का इनहेरीटेन्स देंगे ना । जो सुख का सागर है, तुम कभी उनको कहते हो कि दुःख का सागर भी है? अभी तो दुःख का सागर है ना । तो तुम कैसे कहेंगे कि जो सुख का सागर है वो फिर दुख भी देंगे? नहीं । बाप ने आकर कल्प पहले भी समझाया था, अब फिर से समझाते हैं- मैं सुख का सागर हूँ दु:ख का सागर है रावण, जिसको तुम लोग कहते हो, जिन्होंने सबको दु:खी किया है) । तुम सीताऐ हो; क्योंकि भक्ति करते हो यानी बाप को, भगवान को याद करते हो । तो तुमको दु:खी किसने किया है? ये रावण ने । देखो, रावण तुम वर्ष-वर्ष जलाते हो । तुमको यह तो पता है नहीं कि रावण कहाँ है । रावण का कोई चित्र थोड़े ही होता है । रावण का अर्थ ही है ये 5 विकार । तुम सब, सारी दुनिया रावण के गुलामी में हो । ये भूतों की जंजीरों में हो । तुम सबको 5 भूत लगे हैं । बड़ा भूत । भूत दो प्रकार के होते हैं । एक को घोस्ट कहते हैं और यह है फिर माया । यह बहुत पुरानी है । आधा कल्प से इनका राज्य है । इसको भूत कहा जाता है । कहते है ना- इनको काम का भूत लगा है, दर-दर में धक्का खाते रहते हैं । इसको बाजारी कुत्ते कहा जाता है, बाजारी बैल भी कहा जाता है, दर-दर जाते हैं । तो बाप बैठकर समझाते हैं कि ये बड़े भूत हैं । यह काम का भूत, क्रोध का भूत । कोई गुस्सा करते हैं ना, तो कहते हैं- देखो, इनको क्रोध का भूत लगा है । इनको भूत कहते हैं । ये हैं दो दुश्मन; क्योंकि मोह और लोभ को इतना भूत नहीं कहा जाता है । नहीं, ये बड़े शत्रु हैं । उसमें भी काम तो बिल्कुल महाशत्रु है और कहते भी हैं- हे मेरे लाडले बच्चे, इस काम रूपी शत्रु पर जीत पहनो । तो इस पर जीत पहनेंगे ना? दो हैं बड़े । तुम बच्चों को दोनों की मालूम है-कामेषु क्रोधेषु । काम की चेष्टा अभी की बात है ना । अभी की ही बात बताते हैं- कामेषु क्रोधेषु । काम-विख ना मिलेगा तो अबलाओं को एकदम ठूँसा मारेंगे । कहेंगे- इस बिगर सृष्टि कैसे चलेगी? अरे भाई, वो वाइसलेस वर्ल्ड थी, फिर क्या उनको बच्चे नहीं थे? श्री लक्ष्मी नारायण को बच्चे थे ना! एक । याद रख लेना वहाँ एक । तो जरूर तख्त पर तो कोई बैठते आएँगे ना । यहाँ बस, बिगड़ते हैं बिचारी अबलाओं को । ये ड्रामा है, बैठकर के समझाते है कि बरोबर आगे भी जब अबलाओं के ऊपर अत्याचार हुए, पाप का घड़ा भरा, इस कारण तभी विनाश शुरू हो गया था । अभी बच्चों को यह तो निश्चय है ना बाप सामने बैठकर के सामने समझाते हैं, वो गाते हैं न- 'मुरली तेरी में है जादू..', देखो मैं सिन्धी में कहता हूँ- मुरलीतीजिय में जादू आहे खेल खुदाई' । यह जो मुरली बजती है, अरे बड़ा जादू है उनमें! यह खुदाई मुरली है और खुदाई जादू है । बरोबर भगवान को ही जादूगर कहा जाता है, कृष्ण को थोड़े ही जादूगर कहा जाता है । मनुष्य से देवता बनावे, एक सेकेण्ड में जीवनमुक्ति देने, यह जादू नहीं ठहरा! 'एक सेकेण्ड में', देखो जनक के लिए कहते हैं ना और बच्चे कहते भी हैं- बाबा, हमको जनक के मिसल ज्ञान दो । यह जो भगाते हो, यह नहीं, हम घर बार ना छोड़ें, हमको जनक के मिसल एक सेकेण्ड में ज्ञान दो । गीताएँ तो बहुत हैं, अष्टाव्रक गीता आदि । तो बाबा कहते हैं-मैं आया भी हूँ तुमको ऐसे लक्ष्मी नारायण बनाने । मैं तुमको घर-बार थोड़े ही छुडाता हूँ । तुम प्रवृत्तिमार्ग वाले हैं और थे । सतयुग में तुम प्रवृत्तिमार्ग हैं । तुम्हारा लक्ष्मी और नारायण जिनको तुम पूजते हो, वो प्रवृत्तिमार्ग है ना । जरूर राजा और रानी, बच्चा भी तो पैदा हुआ होगा ना ।. प्रवृत्तिमार्ग है ना । मैं भी तुमको प्रवृत्तिमार्ग में ज्ञान देता हूँ । वो जो शुरुआत में तुम लोगों ने जो सुना है ना, गाली खाने का, हंगामा हुआ, वो हंगामा तो गीता में भी था ना । कृष्ण को बहुत गाली दिया, बहुत भगाते थे, फलाना करते थे । गाली खाया था ना । बाबा कहते हैं कि नहीं, उनका भी राज़ है; क्योंकि बाप को पहले चाहिए भट्‌ठी, जिसमें कुछ बहुत निकलें । ज्ञान की भट्‌ठी में डालें, योग की भट्‌ठी में डालें, वो भट्‌ठी बनानी थी । तुम्हारे भागवत में लिखा हुआ है कि भट्‌ठी; परन्तु उनमें बिल्ली के पूँगरे डाल दिए थे । पढ़ा है कहीं? एक भट्‌ठी थी, उनमें बिल्ली के पूँगरे बैठ गए थे । ईट तो पक गई, पर बिल्ली के पूँगरे वहाँ जीते-जीते बैठे हुए थे । तो बिल्लियों के पूँगरे हैं या माया के? माया बिल्ली है ना, उनके पूँगरे बन गए । आजकल माया बिल्ली कहते हैं ना । ये एक खेल है । गुलबकावली का एक खेल भी होता है, जिसमें चौपड़ खेलते हैं । वो नगाड़ा बजाकर आता है, मैं माया को जीत करने के लिए आता हूँ । फिर वो जब माया से जीत पहनते है, तो वो बिल्ली बिठा देती है । वो क्या कहते हैं- बिल्ली पासा फेर देती है । अभी की बात है । तुम आए हो माया पर जीत पहनने के लिए । माया बिल्ली को कहते हैं । वो घड़ी-घड़ी तुम्हारा जो धारा है ना, उल्टा दे देती है; क्योंकि तुम्हारा बाप आया है अभी पौ बारह बनाने । माया ने तुम्हारा छत्तीस डाल दिया है । समझा छत्तीस हार कहा जाता है, पौ बारह जीत कही जाती है । अभी चौपर की तो खेल नहीं है । यह बात है समझाने की । तो बाबा बैठकर समझाते हैं कि अभी तुम पुरुषार्थ करते हो माया पर जीत पहनने के लिए । कोई वक्त में तुम एकदम हराय देते हो । माया बिल्ली घड़ी-घड़ी तुम्हारा दीवा बुझाय देती है । तो बाप बैठकर समझाते है, ये होगा जरूर । यह युद्ध का मैदान है । मैं आज खिलौना नहीं ले आया हूँ नहीं तो मेरे पास खिलौना भी है कि बॉक्सिंग कैसे करते हैं? क्योंकि बहुत माताओं ने बोक्सिंग नहीं देखी है । बच्चों ने तो देखी है कि कुश्ती कैसे लड़ते है । कैसे एक- दो को ऐसे जोर से मार देते हैं, जो बिचारा आ..आ.. करते हुए ऐसे पड़ जाता है । अभी तुम्हारे पास बहुत गोप और गोपियाँ है । मैदान में युद्ध करते हो, युद्ध का मैदान है ना । युधिष्ठिर यानी युद्ध के मैदान में माया पर जीत पाने वाला । इसको ही कहा जाता है नॉन-वाइलेंस । अभी नॉन-वाइलेंस सिखलाने वाला आ गया है । तुम बहुत बड़े वारियर्स हो । तुम अननोन वारियर्स हो, बट वेरी वेल नोन यानी तुम लोग वारियर्स हो माया पर जीत पहनने वाले । तुम बहुत नामीग्रामी हो । कौन हो तुम? वो शिवशक्ति पाण्डव सेना, जिनकी पूजा हो रही है, तुम वो हो, परन्तु कोई मनुष्य जानते ही नहीं हैं । तुमको कोई जानते हैं? तुम भारत को स्वर्ग बनाने वाली हो, माया पर जीत पहन करके जगतजीत बनी हो । वो जो सन्यासी लोग या कोई कहते हैं-मन जीते जगतजीत । नहीं, मन तो कभी जीता नहीं जाता है । यह तो इम्पॉसिबुल बात है । मन जीते तो तुम खा नहीं सको, कर्म कैसे करेंगे? मन तो संकल्प-विकल्प करते हैं ना । फिर तुम कर्म ना कर सको, एकदम जैसे जड़ बन जाओ । नहीं, मन नहीं । अभी युद्ध का मैदान है । माया पर जीत पहननी है, 5 विकारों के ऊपर जीत पहननी है । उसमें मुख्य है काम । यह विकार बहुत कड़ा है । तो बाप बैठकर बच्चों को समझाते है कि बच्चे है न बरोबर, यह जादू किसका है ये खुदाई जाफ्दू इसमें पड़े हैं, तो जरूर खुदा-बाप आकर इनमें से तुमको समझाते है । जादूगर उनको कहा जाता है ना । कृष्ण थोड़े ही जादूगर है । बाबा ने बच्चों को समझाय दिया है कि यह त्रिकालदर्शीपने की जो नॉलेज है, कोई भी पुराने ऋषि-मुनि एक भी त्रिकालदर्शी होकर नहीं गया है । कैसे हो, जबकि सतयुग के आदि में श्री लक्ष्मी और नारायण मनुष्य सृष्टि में नंबर वन हुए ना, वो भी त्रिकालदर्शी नहीं हैं, उनको भी सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान नहीं है । यह तो कहते हैं, श्री कृष्ण भगवानुवाच, फिर कृष्ण का बाप आकर बताते हैं कि नहीं, उस बच्चे में तीनों लोकों का ज्ञान है नहीं । बिल्कुल नहीं है एकदम । अगर उनमें होता, तो उनको मालूम होता कि अच्छा, अभी हम सूर्यवंशी हैं । अरे! पीछे तो मुझे चन्द्रवंशी बनना पड़ेगा । पीछे मुझे वैश्यवंशी बनना पड़ेगा, फिर मुझे शूद्रवंशी बनना पड़ेगा । नींद फिट जावेगी । बाप बैठकर समझाते हैं-जिसके लिए कहते है कि श्री कृष्ण भगवानुवाच और बैठकर यह त्रिकालदर्शी बनाते हैं, उनमें यह ज्ञान नहीं है । देखो, कितनी भूल हो गई है! बड़ी ते बड़ी भारी भूल । फिर भी तो बाप कहते हैं बुद्धि को ये बाबा भोजन देते हैं ना । बुद्धि से पूछो कि वो त्रिकालदर्शी हो सकता है? वो तो बेचारा घुटके में मर जावे कि हम पीछे फलाना जा करके एकदम शूद्र बनेंगे, दुःखी बनेंगे । तो वहाँ ही उनको वैराग आ जावे कि बाबा, फिर क्यों यह ड्रामा रचा है, जो फिर मुझे दुःख मिलेगा? बिचारों को घुटका आ जावे, वैकुण्ठ का सुख ही उड जावे । नहीं । तो बाप बैठकर बच्चों को समझाते हैं कि मीठे बच्चे, अभी गॉड आया है पढ़ाने के लिए । वो फादर क्या बनाने आया हुआ है? बोलता है-जैसे दूसरे हैं ना, मनुष्य मनुष्य को बनाते हैं ना, बैरिस्टर है तो बैरिस्टर बनाते हैं; इंजीनियर हैं तो इंजीनियर बनाते हैं; सर्जन है तो सर्जन बनाते हैं यानी मानुष ते सर्जन भय । उनको कितना समय लगा? 25 वर्ष लगा । ऐसे-ऐसे करके 25 वर्ष बड़े इम्तहान को वा आई०सी०एस० को लग जाते हैं । फिर यहाँ क्या होता है? मानुष को देवता किये करत न लागी वार। तो यह है मनुष्य सृष्टि, सतयुग है देवी-देवता सृष्टि । उसको कहा जाता है आदि सनातन यानी पहले-पहले सतयुग के आदि में आदि सनातन देवी देवता धर्म था । ऐसे नहीं कि आदि सनातन हिन्दु धर्म था । नहीं, आदि सनातन देवी देवता धर्म था । तो बाप बैठकर समझाते है कि आदि सनातन देवी देवता धर्म था तो बड़ा राज-भाग था । उनको तो कहा ही जाता है गॉड और गॉडेज । गॉडेज लक्ष्मी । भगवती और भगवान । भगवती और भगवान किसने बनाया? हैं तो नई सृष्टि में, तो जरूर भगवान रचता होगा ना, जिसने नई सृष्टि रची और भगवती-भगवान बनाया । कैसे? फिर बाप बैठकर अभी समझाते हैं कि हे मेरे लाडले बच्चे, भगवान, जो नॉलेजफुल है यानी बीजरूप है, चैतन्य है, तो बीज होगा, चैतन्य होगा, तो उनको अपने झाड़ का सभी मालूम होगा; क्योंकि चैतन्य है; इसलिए उनको नॉलेजफुल कहा जाता है । फिर उनको सब कुछ कह सकते हो, त्रिकालदर्शी भी कह सकते हो; क्योंकि तीनों कालों को जानने वाला कोई सन्यासी-वन्यासी तो बिल्कुल होते ही नहीं हैं । फिर जब न जानते हैं तो यह गीता उन्होंने कैसे बैठकर बनाई? ये क्या जाकर बैठकर बनाया जब उनको मालूम नहीं है तो? तो थोड़ा-बहुत, जो आत्माएँ पहले आती हैं, वो अच्छी हैं, थोड़ा पावरफुल हैं; क्योंकि रजोगुण में जो आत्माएँ आती हैं तो रजोगुणी होंगी । जो तमोगुण में आते हैं वो तमोगुणी होंगे, जो सतोगुण में हैं वो सतोगुणी होंगी । उनमें पावर होगी जरूर । वो पावर कौन देता है? बाप उनको पावर देते हैं । तो बाप बैठकर समझाते हैं-तुम सब बच्चे बैठे हो .जानते हो कि हम अब भविष्य में मनुष्य से श्री लक्ष्मी और नारायण यानी गॉडेज एण्ड गॉड बनते हैं । जरूर गॉड होगा, जो हमको बैठ करके गॉड एण्ड गॉडेज बनाते हैं । कैसे बनाते हैं, सो तो तुम बन रही हो । बात बहुत थोड़ी है । बिल्कुल थोड़ी, बिल्कुल सिम्पल । बाबा समझा देते हैं कि रात को नॉलेज तो सुनी है । मनमनाभव का अर्थ देखो कितना सहज है । बाप कहते है- मेरे मीठे बच्चे, अब तुम सबको वापस आना है । अभी तुम सबकी छोटे और बड़े की वानप्रस्थ अवस्था है । सो भी मिसाल देते है-ये ऐटमिक बोंब्स लगेंगे ना, तो घोड़े-गाड़ी, घोडे, बच्चे-बच्चियाँ, सभी खत्म हो जाते है, तो सभी की वानप्रस्थ अवस्था हो गई ना । यानी मरने के समय को, वाणी से परे जाने वाले को कहा जाता है वानप्रस्थ अवस्था । तो वानप्रस्थ में वाणी से परे तो कोई जाते नहीं है, परन्तु समझते हैं कि हमको जाना है । याद करते हैं ना । जैसे वैकुण्ठ याद करते हैं, वैसे वानप्रस्थ भी याद करते हैं । इसलिए वानप्रस्थ की अवस्था लेते हैं कि वाणी से परे जाने के लिए अभी हम धन्धा-धोरी छोड़ करके सतसंग करते हैं । वो समय है सतसंग करने का और गुरु करने का, वाणी से परे । वाणी से परे जाकर फिर जाऊँगा । फिर जब मरते हैं तो उनको कहते हैं कहाँ गया, जो स्वर्ग पधारा? तो जरूर वानप्रस्थ को तो स्वर्ग नहीं कहा जाता है ना । वानप्रस्थ को तो वानप्रस्थ कहा जाता है । वाणी से परे स्थान तो मूलवतन हुआ । फिर झट से जब मरता है, तो कहते हैं-स्वर्गवासी हुआ; क्योंकि वाया जाना है, वाणी से परे होकर, मुक्तिधाम जाकर, पीछे आना है यहाँ भारत में जीवनमुक्तिधाम । ऐसे तो नहीं है, मनुष्यों को कोई मालूम है कि जीवनमुक्तिधाम किसको कहा जाता है? नहीं, कोई भी कुछ भी नहीं जानते है । भारत में यह वानप्रस्थ लेना बहुत है । फिर वण्डर की बात है कि जब मरते है तो बोलते हैं वैकुण्ठवासी हुआ । जरूर बाबा कहते है-अभी मैं आया हूँ तुमको लेने के लिए, तुमको पहले वानप्रस्थ में ले जाऊगा, वाणी से परे लेकर फिर हम तुमको वैकुण्ठ में, स्वर्ग में भेज दूँगा । यह कौन कहते हैं?...... .बरोबर वो जो बाबा है, वो इन द्वारा कहते हैं । इनको भी तो जाना है ना । पहले-पहले इनको जाना है । इनको पहले आना है, तो जरूर पिछाड़ी में तुम सभी भी आएँगे ना । तुम सभी जीवनमुक्त देवी-देवता राज्य के लिए पुरुषार्थ कर रहे हो । तो बाप बैठकर समझाते हैं; क्योंकि बाबा रहमदिल है ना । बाबा कभी किसको दु:ख नहीं देते । वो है ही सुख का दाता, दाता है देने वाला । सुख क्या देते हैं? आयु भी देते हैं और धन भी देते है । धन कुछ कम थोड़े ही देते हैं; इसलिए उनको दाता कहा जाता है । वो कोई दान तो नहीं लेंगे ना? नहीं । भले बच्चे कहते है, ''हे ईश्वर! मैं आपके अर्थ ये दान करता हूँ ।'' तो ईश्वर के अर्थ गरीबों को दान किया जाता है ना । दान का भी तो अर्थ समझना चाहिए ना । ये कोई दान तो नहीं ऐसे तो नहीं है अगर कोई कहे कि किसको मारने के लिए हमको गोली खरीद करना है, तो वो दान हुआ । अरे, ये तो बड़ी बात हो गई । दान की बात तो इसको नहीं कहा जाएगा । दान करते आए हो बरोबर ईश्वर अर्थ । जो बहुत-बहुत दान करते हैं, उनको बरोबर अच्छे साहुकार घर में जन्म मिलता है । वो बाबा ने बहुत समझाया है-बाबा गरीब-निवाज है । कोई साहुकार लाख रुपया का दान करते हैं, उनके पास 50 लाख है, तो उनको उतना ही मिलता है, जितना कोई गरीब हो और उनके पास हजार है और उनमें से 10 रुपया दान करते हैं । दोनों ईक्वल । इसलिए उनका नाम रखा हुआ है गरीब-निवाज । गरीब को भी दान वही देते हैं । ऐसे नहीं की वो बड़े दानी होगा, गरीब कहा जाएगा क्या? क्या गरीब हमेशा के लिए कोई बड़े घर में आएँगे ही नहीं? नहीं, ऐसे कोई नहीं है । यहाँ फिर कहा जाता है न की सुदामा ने दो मुट्‌ठी दी, स्वर्ग में महल दे दिए- देखो गाया हुआ है ना । अभी तो तुम जानते हो कि बाप है दाता, देने वाला । तो अभी वो बाप डायरेक्ट क्या देने वाला है - इनडाइरैक्ट अल्प काल क्षणभंगुर सुख एक जन्म के लिए । इन महल और माड़ियों से ममत्व छूटता ही नहीं है । साहुकारों के लिए कहते है ना । गरीब का तो महल-माड़ियाँ हैं ही नहीं । तो गरीब झट आते हैं बिल्कुल ही । उन लोगों के पास महल, माड़ियाँ-वाडियों का बहुत धन है ना, तो उनकी दिल विदीर्ण होती है । आगे भी बाबा ने कहा है ना, बोलते हैं- पहले बुद्धि में तुमको याद रहना चाहिए कि वो इनके तन में आया हुआ है । आया है पराये राजधानी में, पराये शरीर में और पतित में । राजधानी भी पतित तो यह शरीर भी पतित और पराया शरीर । उनको अपना शरीर नहीं है । वो बोलते हैं मुझे अपना शरीर नहीं है । मुझे जरूर लोन लेना पड़े, प्रकृति का आधार लेना पड़े । आत्मा प्रकृति के आधार बिगर पार्ट कैसे बजाएगी! तो बाप बैठकर बच्चों को समझाते हैं- मेरे लाडले बच्चे, जादूगर वो है, रत्नागर वो है । ये ज्ञान के रत्न हैं । इस एक-एक रत्न की जो वैल्यू गाई जाती है ना, बोलते हैं लाख-लाख की है । ऐसे नहीं कि शास्त्रों की । नहीं, इसकी, क्योंकि बाप ने) बैठकर ब्रह्मा द्वारा आगे भी सभी वेदों, ग्रंथों, शास्त्रों का सार सुनाया है- ये कहावत है । तो ब्रह्मा आया हुआ है ना । ये भी तो बहुत शास्त्र वगैरह पढ़े हुए है । ये नंबरवन भगत, पुजारी, नंबरवन पूज्य, फिर तुम सभी उनके फालोअर्स बच्चे । तो हिसाब कितना बताते हैं । भक्ति के पीछे भगवान मिलता है ना । अरे, भला भक्ति तो सब है, कुछ पता ही नहीं पड़ता है, कब से भक्ति शुरू की है इन्होंने? कोई से पता थोड़े ही पड़ेगा । तो फिर उसके लिए बाप समझाते है कि शिव भक्ति द्वापर से शुरू होती है ना, तो जिसने पहले से भक्ति शुरू की होगी, वो ही फिर मेरे पास यहाँ आएँगे । भगत तो सभी हैं ना, तो सभी भारतवासी थोड़े ही आएँगे । 33 करोड़ देवताऐ गाए जाते हैं । बुद्धि से यह विचार करना चाहिए । इस समय में भारत की जो संस्था है, सेन्सस है, वो बहुत थोड़ी दिखलाते हैं, नहीं तो भारत की सबसे जास्ती होनी चाहिए, क्योंकि सतयुग से लेकर हम भारतवासी हैं, वो तो सबसे ही जास्ती होना चाहिए, परन्तु वो तो कनवर्ट हो गए हैं ना, क्रिश्चियन में कनवर्ट, मुसलमानों में कनवर्ट, बौद्धियों में कनवर्ट । एक अडेंडकर आया था, उसने एक ही लेक्चर से 75 थाउजेन्ड बौद्धी बनाय दिए । तुम लोगों ने अखबार में पढ़ा होगा । अभी कहाँ हम देवताऐ ऊँच ते ऊँच कुल! ऊँच कुल और नीच कुल का रिवाज भारत में होता है ना- भई, हम ऊँच कुल में ही शादी कराएँगे । तो कहाँ भारत का ऊच्च कुल और कहाँ वो धर्म भ्रष्ट हो गए, कर्मभ्रष्ट हो गए, हो करके कोई मुसलमान बन गए, अरे देखो तो सही! ऊंचे ते ऊंची बिरादरी वाला कोई बौद्धी बन गए, कोई क्रिश्चियन बन गए, कोई किसमें बन गए । ये ड्रामा क्योंकि बाबा बोलते हैं ना-जब-जब भारत की धर्मग्लानि होती है, भारत का धर्म प्राय: लोप हो जाता है, तब मैं फिर आ करके स्थापन करूँगा । यह तो बरोबर है कि सतयुग में जब देवी-देवता धर्म था तो और कोई धर्म नहीं था । अभी जब बहुत सभी धर्म हैं तो देवी-देवता धर्म नहीं है । बाबा कहते हैं- ना हो तब तो मैं आऊँ ना फिर देवी-देवता धर्म स्थापन करने के लिए । कोई भी अपन को नहीं कहते हैं, कोई भी गवर्मेन्ट की जो सेन्सस या आदमशुमारी होती है, उसमें कोई भी नहीं लिखेगा हम कोई देवी-देवता धर्म के हैं । बाकी सब लिख सकते हैं । क्रिश्चियन क्रिश्चियन लिखेगा, मुसलमान मुसलमान लिखेगा, परन्तु ऐसा कोई नहीं है जो देवी-देवता धर्म का लिखे । अभी हम क्या लिखें? अगर हम उन सेन्सस में लिखते हैं हम ब्राहमण हैं, तो ब्राहमण तो यहाँ ढेर है । अगर हम देवता लिखें, तो देवता तो हम हैं नहीं । ब्राहमण हैं; परन्तु ब्राहमण भी दो प्रकार के हैं- एक जिस्मानी कुखवंशांवली, यह मुखवंशावली । बाबा ने आगे भी गाया है ना कि वो ब्राहमण हैं कुखवशांवली, तुम हो मुखवंशावली। अब ब्राहमण बरोबर मुखवंशावली को याद करते हैं- ब्राहमण देवी-देवताय नम: । अरे, तुम ब्राहमण हो! ब्राहमण देवी-देवताय नम: कौन थे? पहले ब्राहमण, पीछे देवता । चोटी पहले, पीछे देवता, ऐसे कहते हैं ना । पहले चोटी को याद करते हैं संगमयुग वाले ब्राह्मणों को क्योंकि संगमयुग वाले हैं रूहानी सोशल वर्कर्स और बाकी सब हैं जिस्मानी सोशल वर्कर । वर्कर तो सभी हैं । इसको कहा जाता है रूहानी । इसके लिए उनको कहा जाता है पण्डे । पण्डे माना जो यात्रा पर ले जाते हैं । वो हैं जिस्मानी पण्डे, तुम बच्चियाँ हो फिर रूहानी पण्डे । तुम सबको राह बताते हो अपने परमधाम जाने के लिए, निर्वाणधाम जाने के लिए और फिर तुम उनको माया पर जीत पहनाते हो जगतजीत बनने के लिए । यह स्कूल है, पाठशाला है । इनमें कोई खर्चा है! देखो, मण्डप बना है, इनमें क्या खर्चा है! आजकल हॉस्पिटले खोलते हैं, तो लाखों रुपया खर्च होता है । एक कमरा ले करके हॉस्पिटल खोल देवें तो मनुष्य वहाँ 21 जन्म के लिए तन्दुरुस्त हो सकते हैं । है कोई खर्चा तीन पैर पृथ्वी का? अभी वामन अवतार है ना । तीन पैर पृथ्वी के नहीं मिलते थे और सारी सृष्टि की बादशाही दे दी । है ना बरोबर । इतने बड़े-बड़े हैं ना, बस उनको बोलो- कोई खर्चा थोड़े ही है । घर में एक कोठरी दे दो, वहाँ लिख दो-रूहानी सर्जन फॉर हेल्थ । सर्जन भी लिख दो और प्रोफेसर भी लिख दो, स्प्रिचुअल टीचर भी लिख दो, उनके ऊपर-हेल्थ एण्ड वेल्थ फॉर ट्‌वेंटी वन जनरेशन लिख दो । देखो, उस कोठरी में खर्चा कुछ भी नहीं । बस, कोई आवे और उनको थोड़ा सामने बिठा करके बोल दो मनमनाभव अर्थात् अभी तुम आत्मा हो, बाप को याद करो तो बेहद का वर्सा मिल जाएगा । फिर यह सृष्टि का चक्र । नटशेल तो सबके पास दिए ही जाते हैं बहुत । बच्चों के लिए पहले स्कूल में नटशेल चाहिए ना । किसको भी समझाओ, ये है अन्धों के आगे आइना, अन्धों की लाठी । बाबा ने बनाई है ना! हे भगवान, तुम सब अन्धो की लाठी हो । उन अन्धों की तो बात नहीं है, जो देख नहीं सकते है । ये हैं बुद्धि की आँख, जिसको डिवाइन इनसाइट कहा जाता है, वो सबकी बन्द हैं । अब बाबा कहते हैं-मैं आकर बच्चों को तीसरा नेत्र देता हूँ-बुद्धि । उसको कहा जाता है इनसाइट । तो बरोबर अभी हम आत्माएँ जान गए कि वो बाबा आया हुआ है । बुद्धि से जाना जाता है ना । अरे, घर बैठे सब जानती हैं कि हाँ, बाबा आप आ गए हो । मैं आपकी बहुत पुरानी सिकीलधी हूँ आप हमको नहीं पहचानते हो, पर मैं आपको पहचानती हूँ ऐसे लिख देते हैं । मैं आपकी हूँ आपकी होकर रहूंगी । न देखा, न जाना चिट्‌ठी लिख देती हैं । देखो, बुद्धि की जाँच! ऑखें जो देखा नहीं! बिगर पहचान ऐसे कोई किसको चिट्‌ठी लिखता है? कभी भी नहीं । तो देखो, बच्चियाँ चिट्‌ठियाँ लिख देती हैं । वण्डरफुल है ना! बाबा मोस्ट वण्डरफुल है और तुमको वण्डर है- वैकुण्ठ इज द वण्डर ओनली वण्डर ऑफ द वर्ल्ड । वो जो कहते हैं ना 7 वण्डर्स ऑफ द वर्ल्ड । सुना है तुमने? दीवार है, फलाना है, ताजमहल है । नहीं, वैकुण्ठ तो एकदम वण्डर है । गायन ही भारतवासियों का होता है । बाहर में भले कहते हैं बहिश्त और हैविन पर उनको इतना मालूम नहीं है, जितना तुम भारतवासियों को मालूम है कि बरोबर सूर्यवंशी श्री लक्ष्मी और नारायण सतयुग में राज्य करते थे । फिर त्रेता में रामचन्द्र । फिर कृष्ण द्वापर में कहाँ से आ गया? वो देखो, बिचारे को गीता सुनाने के लिए कहाँ से निकाल करके द्वापर में ठोंक दिया? वण्डर है ना! है माया ने बुद्धि को बरोबर ताला लगाया हुआ! सबको एकदम गॉडरेज का बड़ा ताला लगाया हुआ है, सो भी नंबरवन ताला । बड़े-बड़े सन्यासी, बड़े-बड़े विद्वान, बड़े-बड़े पड़े हुए, बनारस में सबको टाइटल मिलता है । एक यूनिवर्सिटी है, वहाँ उनको श्री-श्री न 108 जगतगुरु का टाइटल, फिर सरस्वती का टाइटल मिलता है । अरे, सरस्वती मम्मा इतना-ज्ञान ज्ञानेश्वरी और उनको टाइटल दे दिया है बहुत शास्त्र पढ़ने का, दुब्बन में डालने के लिए । अगर ऐसा ना होता, तो क्यों होता कि बरोबर ब्रह्मा के हाथ में ये शास्त्र देते हैं । कोई कारण तो होगा ना? गाया जाता है ना ब्रह्मा भी उतर आए तो भी तुम नहीं समझेंगे । कोई किसको गुस्सा करते हैं तो बोलते हैं- तुमको इतना समझाती हूँ परन्तु तुम ऐसा निधनका है, निन्दक है, जो ब्रह्मा भी अगर उतर आए, तो भी तुम नहीं समझेंगे, ऐसे कह देते हैं । ब्रह्मा की मत मशहूर है ना, परन्तु ब्रह्मा की भी मत तो उनको मिलती है ना । तो श्रीमत है ही ऊँचे ते ऊँचा भगवत् की । श्री कृष्ण की मत तो कोई है नहीं, उनका कोई शास्त्र ही नहीं है । वो तो सतयुग में है, वो थोड़े ही कोई धर्म स्थापन किया हुआ है । धर्मशास्त्र हैं ही चार । और कोई शास्त्र है नहीं । धर्मशास्त्र माने जिस-जिसने जो धर्म स्थापन किया हुआ है, उनका शास्त्र । मुख्य धर्म तो हैं ही चार । डिटीज्म इस्लामीज्म, बौद्धीज्म और क्रिश्चियनीज्म, ये हैं मुख्य । डिटीइज्म में दोनों आ गए । गाया भी जाता है परमपिता-परमात्मा ब्रह्मा के मुख कमल से ब्राहमण, देवी-देवता और क्षत्रिय धर्म की स्थापना करते हैं । बाबा कहते हैं-मैं आकर तीन धर्म स्थापन करता हूँ । पहले इन शूद्रों को ब्राहमण में ले आता हूँ । फिर ये ब्राहमण देवता बनते हैं, जो थर्टी थ्री मार्क्स से कम अर्थात् नापास होते है, उनको कहा जाता है क्षत्रिय । उनको बाण क्यों दिया हैं? क्षत्रियपना है ना इसलिए वो बाण दिए हैं, नहीं तो निशानी कहाँ से आवे! तो ये लोग समझते हैं कि हिंसा का वो बाण मारते हैं । हिंसा की तो बात ही नहीं है । तो युद्ध के मैदान में माया पर जीत ना पहनने कारण उनको क्षत्रिय कहा जाता है और गीता के लिए गाया भी जाता है- जो युद्ध के मैदान में मरेंगे वो स्वर्ग में जाएँगे । वो जो सिपाही लोग सेना या मिलेट्री वाले होते हैं ना, उनको भी ऐसे कहते हैं; परन्तु नहीं, वो तो अन्त में, अन्त मते सो गत वो हिसा करते हैं, फिर भी जन्म ले करके उस हिंसा वाली लड़ाई में चले जाते हैं । उनका अंत मते सो गत होता है? ना, तभी तो इतने सिपाही मिलते हैं लड़ाई करने के लिए, फिर उस फन में चले जाते है; परन्तु ये वो थोड़े ही है । ये तो अपने युद्ध के मैदान में जो माया पर जीत पहनेंगे सो स्वर्ग का मालिक बनेंगे, न कि किसका खून करेंगे तो स्वर्ग का मालिक बनेंगे । परन्तु अभी बच्चों को क्या बतावें? बच्चे तो बिल्कुल अच्छी तरह से समझ गए है । अभी शायद टाइम हो गया है, मैंने बोल दिया था घंटी बजा देना क्योंकि इनको देरी होती है । परन्तु पहले ये निश्चय रखो की बरोबर हम भी पढ़ते हैं, हम कोई कृष्ण थोड़े ही है, कृष्ण तो बनना है जरूर, बाकी अभी है थोड़े ही । कृष्ण को तो ताज जरूर होता है ना । अरे, आजकल बहुत स्वांग ठगी करते हैं । गवमेंट कोई नहीं है, नहीं तो कोई ताज पहन करके, पिताम्बरी पहन करके, मुरली ले करके कहते हैं- मैं कृष्ण हूँ । ये कोई बात है! ये क्यों हुआ है? क्योंकि गवर्मेन्ट इरिलीजियस है । अगर कोई रिलीजियस गवर्मेन्ट होती और ऐसे कोई अपने को कृष्ण कहलवाते, तो एकदम जेल में डाल दे । यह तो बड़ा ठगना है मनुष्यों को कि मैं कृष्ण हूँ । अरे, ऐसे बहुत ठगते हैं । समझा ना । बाप बैठकर समझाते हैं-अच्छा, तुम्हारा भाव तो कृष्ण में बहुत है । भावना का भाड़ा मिलता है ना । तुम्हारा जो कृष्ण में प्रेम है ना, तो तुम-आह कृष्ण! वाह-वाह! तुम कृष्ण को याद करते रहते हो । भावना पूरी करने के लिए तुमको साक्षात्कार हो जाता है । बस, तुम उनके पीछे पड़ जाती हो । उनके ऊपर मोती जैसे लड्‌डू बन जाते हैं । ऐसे बहुत इच्छा भी होती है; क्योंकि है तुम्हारी भावना का भाड़ा । वो तो भला चैतन्य हुआ, जड़ चित्र के पीछे भी तुम्हारी भावना का भाड़ा मिल जाता है । तुमको साक्षात्कार हो जाता है । बाप कहते हैं कि यह भी साक्षात्कार मैं कराता हूँ । मैं यह दिव्य दृष्टि की बुद्धि का दान, जो हमारे पास है, किसको नहीं देता हूँ क्योंकि भक्तिमार्ग में मुझे काम आता है । यह सर्वव्यापी का ज्ञान क्यों हुआ है? सुनो, बाबा बताते हैं- देखो, कोई जा करके हनुमान की पूजा करते हैं । उनको भावना का भाड़ा मिलना है । अभी ऐसे वो समझते हैं, कथा सुनी है । रामचन्द्र का बड़ा शिष्य था, महारथी था । तो महावीर बनने के लिए उनकी जा करके तपस्या करते हैं । नौधा भक्ति करते हैं । नौधा भक्ति माना एकदम खूब भक्ति करते हैं तो उनकी भावना का भाड़ा देने के लिए बाबा उनको ड्रामा अनुसार हनुमान का भी साक्षात्कार कराय देते हैं । उनको कराना ही है, राजी करना ही है । समझा ना! और उनमें भला उनको क्या मिला! बस, उनकी दिल पूरी हो गई । तो भक्तिमार्ग में काम में आता है ना । वो आकर बताते हैं- भक्तिमार्ग में, जिस-जिसकी जो-जो भावना से पूजा करती हो, कृष्ण में भी कोई बच्ची की भावना है तो उनको साक्षात्कार हो जाते है । बाबा कहते हैं-मैं भावना पूरी किया, तो ये समझते हैं, हाँ बरोबर हनुमान भी है । गणेश की कोई पूजा करने वाला और उसको साक्षात्कार हो, तो बोलेगा-भगवान गणेश भी है । पीछे तो सब मच्छ-कच्छ-पच्छ, ये सभी हो जाते हैं; परन्तु बाबा कहते हैं- उनको राजी करने के लिए, भावना का भाड़ा देने के लिए मैं करता हूँ । बाकी यहाँ तो नॉलेज है । ये तो अच्छी तरह से पढ़ना है । बाप को याद करना है और बाबा कहते हैं- कैसे याद करो? बस, सुबह को अपने बाबा को बोलो, ओह बाबा! आप कैसा अच्छा है! बाबा, आपकी याद तो अभी हमको रात-दिन रहे । बाबा, शुक्र है आपका, आप आए हुए हो । बस, बैठकर मेहनत करते रहो) । बाप बहुत अच्छा है, हमको स्वर्ग का मालिक बना रहा है । तो यह हुआ मनमनाभव मद्याजीभव । बस, जितना तुम सुबह को बैठ करके याद करेंगे, तुम्हारा विकर्म भी विनाश होता जाएगा और यह नॉलेज है ना, इनका तुमको फिर पद मिल जाए । कोई तकलीफ थोड़े ही है । सोये पड़े रहो । ये कोई तपस्या थोड़े ही है या बैठकर आसन लगाना है या नाक बन्द करना है या कान बन्द करना है । यह बाबा बहुत सीखा हुआ है । बाबा को बहुतों ने सिखलाया है, ये सभी मत्था मारना । अभी मम्मा को बोलो, ऐसे बैठकर करो, कभी नहीं कर सकेगी । ये टाँगे है मोटी, बेचारी चढ़ा भी नहीं सकी, बाबा ने इनको थोड़ा सिखलाया था । तो जगदम्बा ब्राहमणी, ब्रह्मा मुखवंशावली सरस्वती । उनको कहा जाता है जगदम्बा, उनको कहा जाता है पिता । अच्छा, बाबा ने आज तो बच्चों को थोड़ा-बहुत समझाया । फिर यह पढ़ाई तो रोज समझाएँगे ना, नई-नई पॉइंट्स बच्चों को रोज समझाते हैं और हम लोग कचहरी करते हैं । क्या पूछते हैं? कोई ने भी किसको किसी भी प्रकार का दुःख तो नहीं दिया है? मन्सा की तो बात ही नहीं । दुःख कोई को नहीं देता है, तुम्हारा बाप सबको सुख ही देते हैं । दुःखी को बिल्कुल सुखी बनाना फर्ज है । अगर तुम किसको दुःखी करेगे, तो फिर दुःखी होकर मरेंगे । ये श्राप नहीं देता हूँ । बाबा कहते हैं- किनको तुम दुःख देंगे; बाप तो सुख देने वाला है, तो क्या कहें! यह पाप हो गया ना क्रोध का, तो जरूर दुःख देंगे ना । धर्मराज बाबा बोलते हैं- फिर मैं तुमको दुख दूँगा । तो दुःखी होकर मरना हुआ ना! यह भी हिसाब से । कोई श्राप की तो बात नहीं है ना । नही, बाबा तो कभी श्राप नहीं देते हैं । श्राप देती है माया और वर देते हैं बाप । उसको कहा जाता है रावण, उसको कहा जाता राम । अच्छा, अभी हम पूरा करते हैं; क्योंकि बच्चों को जाना-करना होता है ना । अभी देखो बाप भी कहते हैं ना 'वन्देमातरम' । माता है ना । गाया जाता है ना कि कुन्ती ने, एक कुमारी ने ज्ञान सूर्य का आवाहन किया तो माता बन गई थी । तुमने सुना है? अखानिया पढ़ी है? वैसे ही अनुसूइयाएं भी । वो तो खुद कहते हैं- मैं इनको बालक बन करके, तो बालक बनेंगे तो जरूर वन्देमातरम कहेंगे ना क्योंकि ; अभी तुमको गुरु का पद मिलता है ना, तो जैसे मैं कर्म करूँगा मुझे देख और करेंगे । बच्चे मातरम् कोई धरती को थोड़े ही करना है । वन्देमातरम् कोई वाइलेंस वाली को थोड़े ही करना है । वन्देमातरम इन माताओं को, जो ज्ञान गंगाएँ हैं इनको करना है । अच्छा बच्ची टोली दो, आठ – दस लगाओ, क्योंकि देरी होती है बच्चों को । ये बहुत शास्त्र पढ़ा हुआ है, परन्तु नहीं, जो अब बाबा सुनाते हैं, हम अब वो सुनाते हैं । अभी शास्त्र-वास्त्र की बात ही नही है । बाबा कोई शास्त्र पढ़ा हुआ है क्या? वो तो ज्ञान का सागर है ना । उनका कोई बाप है? उनका कोई टीचर होगा? उनका कोई गुरु होगा? कभी नहीं । मनुष्य का, सबका बाप और टीचर, गुरू जरूर होगा । तो बाप कहते हैं-मेरा फिर कौन होगा? मेरा नाम ही है ज्ञान का सागर, तो फिर क्या है, मैं सबका बाप हूँ । मेरा अभी बाप कहाँ से आएगा! हाँ, मेरा बाप और माँ, यहाँ युक्ति से बना देते हैं । वन्देमातरम् कहते हैं, तो मां हो गई ना । वो युक्ति है । देखो, बच्चे भी होते हैं ना, आ करके उठाते हैं । तो देखो, यह भी जादूगर है । बाप को बच्चा बना देता हूँ गोदी में उठाते हैं, जादूगर हो गया ना । अच्छा, परन्तु यह युक्ति है । रिकार्ड - तुम्हीं हो माता, पिता तुम्हीं हो) इसका अर्थ समझते हो ना कि तुम ही माता-पिता हो, सखा भी हो । बाबा जब इसमें आते हैं, तो तुमको याद तो शिवबाबा को जरूर करना है कि इनका यह रथ है । यह बैठकर खेलते भी हैं, नहीं तो बाबा थोड़े ही खेलते-करते थे । नहीं । बोलते हैं- यह भी तो ब्रदर है ना । हम सब आपस में पढ़ते हैं ना । यह कहते हैं, बाबा नहीं कहेंगे, हम कहेंगे- हम सब क्लास फ्रेण्ड्स हैं और एक बाबा के बच्चे हैं, इसलिए आपस में बहन हैं और भाई हैं, दूसरा कोई भी सबंध नही है; क्योकि पवित्र रहने की युक्ति भी तो चाहिए ना । तो जब ब्रह्मा के बच्चे हुए, यूँ तो सभी भाई-बहन हैं, भाई-बहन हैं तो एकदम शादी कैसे करते, यह तो क्रिमिनल एसाल्ट हो जावे । कहते हैं ना-हम सभी आपस में, चीनी-हिन्दू-बुद्धू, सब भाई-बहन हैं । अरे, भाई-बहन हैं और एक बाप के बच्चे हैं, तो शादी क्यों करते हो? भाई-बहन की थोड़े ही शादी होती है! नहीं, अभी के समय में तुम सच-सच सब ब्रह्मा और सरस्वती यानी ब्रह्मा मुखवंशावली हो । वो भी कहते हैं बाबा, वो भी कहते हैं बाबा । तो यह है युक्ति कि जब बहन और भाई हो, तो फिर विकार में कैसे जा सकते हो? अगर तुम विकार में जाएँगे, तो फिर धर्मराज के रूप में बाबा बोलते हैं- मैं बिल्कुल ही अच्छी तरह से सजा दूंगा; क्योंकि यह है बिल्कुल हाईएस्ट क्रिमिनल एसाल्ट । बहन-भाई, सो भी दुनिया को पवित्र बनाने की शिक्षा देने वाले और तुम अगर अपवित्र बन गए तो ऐसे समझो कि बडी कड़ी सजा के पात्र होते हो । मतलब बता देते हैं । ये ऐसा ही जैसे चार मार होती है ना । तो काम से अगर कोई ने सजा खा ली, जैसे ऊपर से गिरा । गिरा तो हड़-गुड़ टूट जाते हैं । कितना समय उनकी बुद्धि में ज्ञान नहीं ठहरेगा । बहुत बच्चे हैं, जो ज्ञान यह से उठा-उठाकर आश्चर्यवत् सुनन्ति कथन्ति भागन्ति हुए ना, उनसे भी मिल पूछो कि क्या ज्ञान तुम्हारे को है? किसको समझा सकेंगे? निल । एकदम बिल्कुल गॉडरेज का ताला लग जाता है । जो भी अपवित्र बनेगा, तो बाबा कहते हैं- मैं यह सजा देता हूँ कि उनके बुद्धि को थोड़ा ताला लगाय देता हूँ । फिर क्या काम का? फिर ठहरेंगे नहीं, किसको बोल ना सकें कि काम रूपी शत्रु को जीतो । खुद ही नहीं जीतने वाला होगा, तो कहेंगे कैसे! तो उनको जैसे ताला लग जाता है । बाबा यह सजा देते हैं कि बस, कोई भी बड़ी भूल करते हैं, उसमें भी काम की, तो ताला लगा देते हैं । फिर किसको कह भी ना सकें और जैसे बिल्कुल मुर्दे बन जाते हैं । तो बाबा समझा भी देते हैं । फिर तो कुल-कलंकित भी बन जाते हैं । अरे! शिव बाबा की ब्रह्मा मुखवंशावली और ब्राहमण वालों के कुलकलंकित बन जाते हैं, एकदम बड़ी सजा है, क्योकि धर्मराज भी तो है ना । रिकार्ड :- कोई न अपना सिवा तुम्हारे । तुम्हीं हो साथी, तुम्हीं सहारे) सहायक भी है, साथी भी है, मच्छरों के मिसल साथ में ले जाने वाले हैं । मच्छरों के मिसल, शरीर छोड़ करके, बाबा गाइड करके ले जाते हैं । रूहानी पण्डा है । इसको गाइड भी कहा जाता है, लिबरेटर भी कहा जाता है । बीमारी में हो ना । तो बाबा बीमारों को सात रोज एसलम देते हैं । बोलते हैं- आओ, भट्‌ठी में पड़ो तो अच्छी तरह से रंग लगे । इसलिए भट्‌ठी का है, गीता का भी, तो भागवत का भी, तो सबका सात रोज । आजकल तो कोई सात रोज दे न सके । फिर बाप कहते हैं कि सात रोज सिर्फ सुबह को एक घंटा या डेढ़ घंटा हो सके तो, स्नान दो दफा भी होता है । जो बच्चे बहुत अच्छे होते हैं ना, दो दफा स्नानी करते हैं, सुबह को भी, फिर शाम को भी । रिफ्रेश होते हैं । ये भी ऐसे ही है । रिफ्रेश होने के लिए सुबह और फिर शाम, पर सुबह को अच्छा; क्योंकि फ्रेश होते हैं, जो धन्धे-धोरी की थकावट है वो दूर हो जाती है, तीर लग सकते हैं । शाम को इतना नही । तो न से वो एक घण्टा अच्छा । सात रोज एक घंटा अगर कोई रेग्युलर आवे ना, इतनी कमाई है, ये लखपति-करोड़पति तो कंगाल होने वाले हैं । सब मिट्‌टी में मिल जाने हैं । लाखों वाले और करोड़ों वाले एक कौड़ी का नही रहेगा । देखते हो ना-किनकी दबी रही धूल में, किनकी राजा खाय, किनकी चोर खाए सफली हो उनकी जो खर्चे नाम धनी के । ये धनी आ करके कहते हैं कि हम थोड़े ही तुमको कहते हैं कोई बड़ी-बड़ी अस्पताल बनाओ । घर-घर में अस्पताल बनाओ, स्वर्ग बनाओ । आपे ही करो । बाबा थोड़े ही कहते हैं कि मुझे दो या गवर्मेन्ट को दो, बनावे । नहीं । तुम सब होस्पिटल खोलो । अरे, बात मत पूंछो । ऐसे बाबा के पास बच्चे हैं, खुद ज्ञान ना उठाय करके हॉस्पिटल खोलते हैं और उनमें से बहुत आ करके एवरहेल्दी बनते हैं । तो जो बनेंगे उनका उनके ऊपर दलाली मिलती है । जैसे कोई दान करते हैं, कॉलेज स्थापन करते हैं तो दूसरे जन्म में उनको जास्ती विद्या का दान मिलता है । हरेक बात में ऐसे ही । कोई अस्पताल खोले, कॉलेज खोले तो दूसरे जन्म में वो जास्ती निरोगी रहता है । उनको रोग जास्ती नहीं होता, क्योंकि वो ईश्वर अर्थ गरीबों के लिए दान किया । ये भी ऐसे ही है । खर्चा कुछ नहीं है । पाई पैसे की किराया पर, बाबा क्या करेगा तुम लोगो की! ये तो सब टूट जाने वाले हैं । बाबा राय देते हैं कि हर एक कहाँ न कहाँ सेन्टर खोलो । बच्चे आवे, वहाँ बैठ करके वो एवरहेल्दी बने, एवरवेल्दी बने । अरे, कितना पुण्य है बात मत पूछो । पुण्य के लिए करते हैं ना । वो तो उनको एक जन्म में मिलेगा । अरे, ये तो 21 जन्म के लिए एवर हेल्दी, एवरवेल्दी ऐसे हॉस्पिटल क्यों नहीं खोलनी चाहिए! अच्छा, वन्देमातरम् । वन्देमातरम् क्यों? तुम भी सीताएँ हो ना वा कोई भक्ति हो? माता का बहुत भारी मर्तबा है । माँ कहने से कोई भी विकार की चेष्टा नहीं आती है । माँ, भले एप्लीकेशन डालो शिवबाबा के पास ।