02-01-1964     मधुबन आबू     प्रात: मुरली    साकार बाबा     ओम् शांति     मधुबन
 


हेलो, गुड मॉर्निंग हम मुंबई से बोल रही हैं आज गुरुवार जनवरी की 2 तारीख है l प्रातः क्लास में बाप दादा की मुरली सुनते हैं l

रिकॉर्ड:-
तुम ही हो माता पिता तुम ही हो………

फरमान तो…. जिसको मात-पिता कहते हो, तो जरूर फरमान तो पिता ही करेंगेl भले यह मात-पिता कंबाइंड हैं l यही मुश्किल बात है जो मनुष्य को समझना बड़ा डिफिकल्ट है l किसको कहते हैं तुम मात पिता हम बालक तेरे.. यही मुख्य बात है समझने की यहां l यह निराकार को परमपिता परमात्मा को जिसको फिर पिता कहा जाता है उसको ही फिर माता भी कहे यह वंडरफुल बात समझने की भी यही है यह भी समझाती है कि जबकी परमपिता मनुष्य सृष्टि रहेगा तो माता तो जरूर चाहिएl तो देखो इस बात को अति गुह्य समझाते हैं की कभी भी किसी मनुष्य मात्र की बुद्धि में यह नहीं आए शिवाय तुम अनुभवी बच्चों के l यह कोई के बुद्धि में बैठे... बैठाने के लिए बहुत टाइम कोई को लगे, जब वह अच्छी तरह से समझ जाए कि हम, जो बाप है सबका, अभी जबकि सब का बाप है, तो सब की मां भी तो जरूर चाहिए l और वह है निराकार, फिर निराकार बाप, मां फिर किसको रखें, किसको पकड़े, कोई शादी तो नहीं किया होगा l देखो यह सभी बातें बहुत समझने की है और यह है अति गुह्य बात समझने की l तो यह नए तो इतने मुश्किल समझेंगे ये पुराने में भी कोई मुश्किल ही समझता है इस बात को और समझ कर के ऐसा स्मृति में रहते हैं l बच्चों को तो स्मृति में रहे ना l बच्चा कोई भी हो किसको 5 हो 10 हो किसको, मां-बाप की स्मृति में तो जरूर रहेंगे ना l था, भारत में था l यह पुकारते हैं जैसे अभी गीत सुना तुम मात पिता... अभी यह अक्षर तो बड़ा वंडर है क्योंकि मंदिर में जाते हैं तो लक्ष्मीनारायण को मात पिता कह देते हैं, कभी राधे कृष्ण को कह देते हैं क्योंकि है तो ब्लाइंड फेथ वाले भारतवासी पूजा करने वाले l राधे कृष्ण वह तो प्रिंस एंड प्रिंसेस है l उनको तो कभी कोई जट हो न, लुफाजी वह भी कभी ऐसे नहीं कहें तुम मात पिता हम बालक तेरे या त्वमेव मातास्च पिता... l. क्योंकि गाते हैं जाकर के, श्री कृष्ण के मंदिरों में जाएंगे या राधे कृष्ण के मंदिर में भी जाएंगे यह एक टेव पड़ जाती है त्वमेव माता च पिता.. तुम मात पिता हम बालक तेरे.. परंतु यह बातें न्यारी है बिल्कुल ही l राधे कृष्ण को तो कहा नहीं जाता है l l लक्ष्मीनारायण कोई कह सकते हैं परंतु उनके बच्चे कहेंगे l मात पिता और फिर सुख घनेरे तो मनुष्य समझते हैं की जिसके पास संपत्ति बहुत है, धन बहुत है वही वास्तव में... वह अभी भी कहते हैं कि स्वर्ग है l धन जिसके पास बहुत महल है तो जरूर समझेंगे इस मात-पिता से जिसके पास हम जन्म लिया है बहुत सुख है, परंतु यह जो सुख मिला है क्योंकि आगे जन्म में कुछ अच्छा कर्तव्य किए हैं तो फिर हमको ऐसे साहूकार घर में जन्म मिला है, फिर भी कर्म की बात आ जाती है l अच्छा यहां जो कहा जाता है तुम मात पिता हम बालक तेरे.. अभी यह बच्चे जानते हैं ना इस सारी दुनिया में कभी भी कोई समझ ना सके की हम एक जो परमपिता परमात्मा है और जिसके हम सभी बच्चे हैं, जो रचता है भले अगर कोई कहता है कि चल बच्चे हैं जैसे वह निराकार है वैसे हम भी निराकार हैं, पर निराकार..वो सृष्टि कैसे रचते हैं l जरूर माता बिगर तो सृष्टि रची ही नहीं जा सकती है l देखो यह वंडरफुल है सृष्टि रचने का इस समय का l क्योंकि एक तो परमात्मा रचता है जरूर और रचता होगा जरूर नई दुनिया का जिसको स्वर्ग कहा जाता है l ऐसे नहीं उसको रचता कहेंगे कोई पुरानी दुनिया रच रहे होंगे, यह भी तो नहीं, तो जरूर उनको पुरानी दुनिया में आकर के नई दुनिया रचना पड़े l तो पुरानी दुनिया में आकर के और नई दुनिया कैसे रचते हैं यह कोई भी नहीं जान सकते हैं l और जो बच्चे यहां है ना उनको भी स्मृति में नहीं आते हैं इतना क्योंकि जबकि है बरोबर उनके संतान तो याद तो करना चाहिए ना l याद नहीं कर सकते हैं भूल जाते हैं l क्योंकी वंडरफुल बात है ना, वह तो कॉमन बात है माता पिता को जो अलग है बाप अलग है माता अलग है और बच्चे देखते हैं यह माता है यह पिता है ठीक है ना l ये एक बड़ी गुह्य बात है की निराकार को हम कह देवें.. हैं भी रचता जरूर सृष्टि का, बाप भी जरूर है सबका, यह भी तो सब है परंतु माता कहां से आती है, क्या होता है l अभी विचार करेंगे तो जब अज्ञान काल में थे तब कुछ पता नहीं पड़ता था l ऐसे ही बोलते थे जैसे सभी बोलते हैं l अभी बच्चे जान गए हैं बिल्कुल अच्छी तरह से यह तो बड़ी गुह्य बात है, बड़ी वंडरफुल बात है कि माता पिता निराकार को रचना है जरूर l माता चाहिए तो देखो बाप खुद बैठ करके समझाते हैं कि मैं बच्चे कैसे अडॉप्ट करता हूं l वह विख से तो.... की बात नहीं रहती है क्योंकि बहुत बच्चे रचना है ब्रह्मा के मुख कमल से, यानि स्त्री से बाप को बहुत बच्चे... तो कैसे रचते हैं l कहते हैं देखो मैं आता हूं इस शरीर को धारण करता हूं l धारण करके फिर इनके मुख द्वारा, जिनका नाम प्रजापिता रचता हूं परंतु वास्तव में यह पिता भी है, मनुष्य सृष्टि का रचने वाला तो माता है जिसके मुख से मैं रचता हूं l मनुष्य से बच्चे पैदा करते हैं मैं मुख से अडॉप्ट करता हूं l अभी बच्चे अडॉप्ट करना इस रीति से सिर्फ बाप का काम है, सन्यासी नहीं कर सकते हैं l सन्यासी कभी भी... हां यह अडॉप्ट करते हैं परंतु वह कहा जाता है फॉलोअर्स जिज्ञासु, चेले इनका नाम यह पड़ता है l यह तो हुई रचना की बात रखता तो बाप बैठ कर समझाएं ना और कोई तो समझा भी ना सके l तो बाप बैठकर समझाते हैं कि बच्चे कि मैं इन द्वारा, अभी तुम जानते हो बच्चे की बाबा इन द्वारा, इन में प्रवेश कर फिर यह मुख वंशावली जो कहती है तुम माता-पिता... अभी यहां माता सिद्ध होती है ये और पिता सिद्ध होता है वह क्योंकि इसमें प्रवेश करके रचते हैं l तो यह बुड्ढा जिसमें रचते हैं यह बुड्ढा प्रजापिता भी हो गई और वास्तव में माता भी हो गई l अभी बच्चों को यह याद करना पड़े जरूर मात पिता को l अभी उनका नाम बच्चों ने रख दिया है यहाँ पर भी ऐसे भी कहा जाए बाप और दादा क्योंकि प्रॉपर्टी मिलती है बाप से, दादा से l यह दादा की तो प्रॉपर्टी है ना, तुम बनते हो वारिस तो इस हालत में इसको बापदादा भी कहते हो l कहना है जरूर, क्योंकि अर्थ है कि बरोबर हमको प्रॉपर्टी पिता ब्रह्मा से नहीं लेनी हैं, नहीं! प्रॉपर्टी उनसे लेनी है और यह जो दादा है उनको भी उनसे लेनी है परंतु इनको दादा भी कहा जाए तो माता भी कहा जाए l दोनों भी कहा जाए क्योंकि माता-पिता नहीं तो सिद्ध कैसे होवे l है जरूर, यानि माता-पिता बिगर बच्चे कैसे पैदा होवे l पिता से थोड़ी बच्चा पैदा हो सकते हैं या माता से सिर्फ थोड़ी बच्चे पैदा हो सकते हैं नहीं! बाप भी चाहिए माता भी चाहिए l तो इसको जो बाप.. आगे भी हैं ना कि मैं गुह्य से गुह्य बातें समझाता हूं l समझने की बात है अच्छी तरह से और धारण करने की बात है और सिमरन करने की बात है l कि बरोबर... हे बाबा आप पिता भी हो और इस माता से हमको जन्म दिया है और बरोबर हमको वर्सा भी याद आता है, समझे ना l तो वर्सा याद ही आता है तो बाप को याद करने से वर्सा मिलेगा, माता को याद करने से वर्सा नहीं मिलेगा, परंतु जन्म लिया है माता से वह तो याद है ना l याद तो फिर भी वर्से के लिए बाप को करना है इसलिए बाप खुद भी कहते हैं कि इनको नहीं याद करना है माता को, याद फिर भी... वह ज्ञान से समझाना है कि कैसे बाप आ करके पतित दुनिया में, पतित शरीर में जिनमें मैं प्रवेश करता हूं तो यह हमारा बच्चा भी हो गया, ठीक है ना बच्चे और तुम बच्चों का बाप भी हो गया और स्त्री होने के कारण तुम बच्चे भी हो गए, तो सिद्ध होवे कि हम क्यों गाते हैं या ह्युमंस क्यों गाते है l शंकर द्वारा विनाश अभी ये ड्रामा में नूंध है ये नाम गाए हुए हैं की ये गायन में आते हैं l की बरोबर यह तीन देवता जो मुख्य रखे हुए हैं यहाँ भारत में l तो बरोबर उन्हों द्वारा देखो विनाश भी हो जाते हैं और नाम भी रख दिया है बाकी यह तो समझते हो तुम तुम्हारे लिए राजधानी नई है तो विनाश तो जरूर होना है l और विनाश देखते हो कैसे हो रहा है l कोई नई बात तो नहीं है ना l नहीं! यह विनाश तो होना ही है उनके लिए फुल तैयारियां होती जा रही है और तुम्हारे लिए राजाई के लिए नई दुनिया तो जरूर चाहिए ना l तुम यहां जो इतने सब जो ढेर के ढेर राजाई पद पाए रहे हो तो जानते हो ना l तुम अंधश्रद्धा वाले तो नहीं हो l तुम ऐसे तो नहीं हो कि तुम को कहे तुम मूर्ख हो, अंधश्रद्धा से जिस ने जो कहा तो मान लेते हो l वह तो बात नहीं है l वह तो बाबा खुद भी कहते हैं ऐसे नहीं मानना जब तक निश्चय ना हो l ऐसे नहीं कि बस रामचंद्र की सीता चुराई गई सत्य, रावण चुराए ले गया, पतित नंबर वन रावण ले गया अच्छा हनुमान की पूंछ को आग लगाई तो लंका को जला दिया हां सत सत ऐसे नहीं करना बिल्कुल भी हां, कभी भी नहीं l ना समझो तो अच्छी तरह से समझो l अगर ना समझेंगे तो बेसमझ का ही बेसमझ रहे जाएंगे l बिल्कुल ही तुच्छ बुद्धि रह जाएंगे और पद भी नहीं मिलेगा l तो हर एक बात अगर कोई ना समझते हैं तो समझे l तो समझाते हैं आगे जो कुछ भी सुनते आए हो यह सभी भक्ति मार्ग l भक्ति मार्ग में बच्चे फल मिलते हैं भक्ति मार्ग में कोई भी भक्ति करो तीर्थ करो, जप करो तप करो या दान करो अल्पकाल क्षणभंगुर सुख मिलता ही है l उनकी रिजल्ट उस जन्म या दूसरे जन्म में अल्पकाल क्षणभंगुर l देखो तीर्थ पर भी जाते हैं l अच्छा कुछ समय तो फिर पवित्र तो रहते हैं ना l ये भी कोई अच्छा है पाप नहीं होंगे उस समय l दो दो तीन तीन मास जाते हैं l जाकर दान पुण्य थोड़ा करते हैं कुछ भी करते हैं तो अल्पकाल क्षणभंगुर सुख मिलता है उनका एवज का l जिसको ही फिर कहां जाता है मिलाकर की काग विष्टा समान सुख l वो है भी बरोबर बच्चे जानते हैं, समझ सकते हैं बुद्धि है, अभी तो वह बंदर बुद्धि तो नहीं है ना l नहीं अभी तो बंदर कहलाने के लायक भी नहीं हैं l जो भी ब्राह्मण नहीं है अभी ब्रह्मा मुखवंशावली, बाकी जो है उनको कहा ही जाता है आयरन एजेड पत्थर बुद्धि और जो समझ जाते हैं उनको कहा जाता है पारस बुद्धि l तो बरोबर सतयुग में पारस बुद्धि रहते थे क्योंकि पारसनाथ और पारसनाथनी का राज था l सोने हीरे के महल थे l अभी तो कोई सोने वोने की तो बात ही नहीं है l अभी तो पत्थर ही पत्थर हैं बरोबर l तो पत्थर बुद्धि पारस बुद्धि भी तो मशहूर है ना बरोबर l पारस बुद्धि को पत्थर बुद्धि कौन बनाते हैं यह तो बच्चे जानते हैं कि बरोबर यह पांच विकारों के रावण और हाफ एंड हाफ है l टाइम तो लगेगा ना उनको l उनको टाइम लगता है पत्थर बुद्धि भी पूरा पत्थर बन जाए तो भी तो टाइम लगता है ना l तो देखो सारे पत्थर बुद्धि बन जाते हैं तब पारस बुद्धि बनाने वाला बाप आते है l पारसनाथ कहा जाता है उसको स्वर्ग के मालिक, उनको पारसनाथ कहा जाता है l और यह बच्चे जानते हैं कि क्या रहना है बच्चों को हमेशा याद क्या करना है l बाबा कहते हैं अभी यह तो ज्ञान मिला बच्चों को फिर देखो सहज कितना कर देते हैं l चलो बच्चे यह तो तुम समझ गए ना l यह तो बहुत ही रोज-रोज समझाते हैं कितना समझाते हैं कितना समझे l बीज और झाड़ है तो सेकेंड के शब्द परंतु अगर डिटेल में झाड़ के जाए तो फिर टार है फिर टाल हैं फिर टालिया हैं फिर कैसे पत्ते पत्ते फिर उसमें टाल टालियाँ हाँ ये तो बहुत लंबा... अगर यूं तो यह बीज से झाड़ निकला खत्म l तो बस तुम जानते हो कि बाप तो जानते है झाड़ बाकी है डिटेल तो डिटेल तो बहुत समझाते रहते हैं और समझाते रहेंगे फिर नटशेल में कह देते हैं यहां भी आते हो जाते हो जहां भी जाते हो अपने बाप को क्योंकि वर्सा मिलता है ना उनसे, अभी मां को याद नहीं करने की दरकार है ना! बाप को... मतलब लेना चाहिए ना बच्चे, अच्छा बाप को याद करो सो तो तुम जब माँ से जन्म लिया होगा तभी तो तुम बाप को याद करते हो नहीं तो आए कहां से तुम लोग l बाप तो कहते हैं मुझे याद करो तो जरूर बच्चों को कहते हैं तो बच्चों ने जरूर माता द्वारा जन्म लिया होगा या ऐसे ही जन्म लिया होगा l परंतु फिर तुमने जन्म तो लिया किसलिए? बाप से वर्सा लेने के लिए l तो बस मां को छोड़ो l देहधारियों सब कुछ छोड़ो l देह को भी छोड़ो l अभी अपने को आत्मा निश्चय करके और तुमको वर्सा लेना है बाप से l बाप से यह बच्चों को वर्सा लेना है l अभी बच्चे समझ गए l बच्चे अच्छी तरह से समझ गए कि हम आत्मा है और बाप के बने हैं अभी l जिस्मानी हम अभी यह ब्रह्मा के यानी मात-पिता के बच्चे बने हैं जिस्मानी मात-पिता के बच्चे बने हैं l रूहानी बाप के हैं और बाप फिर कहते हैं बच्चों प्रति कि बच्चे अभी खेल पूरा हुआ, मुझे याद करो बस! यह दो बात तो बिल्कुल सहज समझा ही देते हैं सबको l और यह भी बहुत समझाना सहज है किस को बिलकुल ही कि भाई वह बेहद का बाप है l बेहद का बाप नई सृष्टि रचते हैं तो नई सृष्टि भारत था रखते यह वाली था उनकी, अभी कलयुग है यह वाली नहीं है l तो ज़रूर कलयुग को जरूर सतयुग बनाने का तो फिर बाप है ना l तो वह बाप ही बैठकर के कहते हैं अभी कि तुमने बहुत जन्म, दूसरा कोई कह नहीं सकेगा, साधु संत महात्मा नहीं कहेगे और याद भी दिलाते हैं और दुसरा कोई कह ना सके, हे बच्चों तुमने हर जन्म बाप से हद वर्सा लिया है क्योंकि ऐसे तो नहीं कहेंगे कि हद का वर्सा कोई स्वर्ग में मिलता है, स्वर्ग में तो है ही बेहद का वर्सा l बेहद का कहा जाता है बेहद के बादशाह l सारी सृष्टि के मालिक l वो हद का जो हम जभी कहते हैं ना तभी फिर द्वापर से जैसे शुरू होता है l वह बेहद का है, वह तो फिर प्रालब्ध है l वहां बच्चों को है ही बेहद की बादशाही, यथा राजा रानी तथा प्रजा l प्रजा भी है समझती है, अभी यहाँ प्रजा तो नहीं समझती है कि हम कोई बेहद के मालिक हैं सारी सृष्टि के मालिक हैं l अभी तो टुकड़े टुकड़े के मालिक भी कोई नहीं है l 1-2 को पानी में आने नहीं देते 1-2 को नदी में आने नहीं देते हैं, 1-2 को आसमान में नहीं आने देते हैं, नहीं l वहां प्रजा प्रजा भी ऐसे ही समझती है और वो तो वहां प्रजा क्या समझेगी हम विश्व के मालिक हैं l हमारा राजा महाराजा श्री नारायण विश्व के मालिक हैं और तो कोई है नहीं l फिर उसको कोई समझने की कोई दरकार... है ही जब तो वहा समझने की दरकार क्या और बाकी है जब है ही विश्व का मालिक तो उनको कहने की तो दरकार ही नहीं कि हम कोई विश्व का मालिक है l नहीं, वह तो है ही l यहां हम समझाने के लिए कहते हैं बस वहां तो एक ही राज्य रहते है विश्व में बच्चों का तो वहां तो कोई हद की बादशाही है नहीं, वहां तो है ही बेहद की बादशाही और भारत को थी ऐसा नहीं कि भारत... भारत क्या था.. अभी तो किसी की बुद्धि नहीं नहीं है.. भूल गए हैं एकदम l बात है 5000 वर्ष की, उनको इन्होंने भुलाए भुलाए शास्त्र में कल्प लाखो वर्ष का है, हजारों वर्षों का है फलाना है यह है.. भुलाए भुलाए भुलाए करके एकदम भुला दिया है l भूल तो सकते हैं न बच्ची भला शास्त्र में लिखा हुआ है ये हज़ारों वर्ष तो बिचारों ने याद कर लिए हैं हजारों वर्ष l भूल गए हैं बातें ही सभी भूल गई हैं l घोर अंधेरे में डाल दिया है l है तो 5000 वर्ष की बात l तो बच्चे बाप समझाते हैं कि क्या समझाना है कोई को भी की बच्चे देखो तुम वर्सा लेते आए हो बाप से हद का l वह तो बेहद का ही हुआ है यह आप समझते हो, दूसरे मनुष्य नहीं समझते हैं वह तो पत्थर बुद्धि हैं एकदम l तुम बच्चों को शिक्षा मिल रही है l अभी जो तुम बच्चे जो बाप से वर्सा लेते हो हद का, अभी आओ फिर बेहद के बाद से वर्सा लो l तो लो माना हम ले रहे हैं न l और कौन सा वर्सा बेहद का अभी बेहद का बाप बेहद का वर्सा देता ही है स्वर्ग में क्योंकि स्वर्ग का रचयिता है और स्वर्ग में गाया जाता है हमेशा कि इक्कीस पीढ़ी राज्य और भाग्य l समझा ना, 21 पीढ़ी..., पीढी भला क्यों कहते हैं? अरे भाई बुड्ढे होकर के मरेंगे, अकाले मृत्यु भी नहीं आएंगी l तुमको रोना पीटना या विधवा बनने की दरकार नहीं पड़ेगी l विधवा बनते हैं ना, अरे आजकल तो तीर्थ वीर्थ में इतना जाते नहीं है फैशन बढ़ता जाता है नहीं तो आगे तो या हुसैन बहुत करती हैं l बारह महीने तो बाहर ही नहीं निकलती है एकदम l पुराना कपड़ा एकदम बनाए करके बैठ जाती हैं l और बच्चे तो समझते हो कि अंत तक भी उनकी याद रहती हैं ठीक है ना l अच्छा यह तो मुसीबत हो गई न l वहां यह बातें रहती नहीं बिलकुल भी l कोई भी विधवा बनती नहीं है l कोई रोते नहीं है कुछ भी नहीं है एकदम l बच्चों को भी रुलाने की दरकार नहीं रहती है l कोई कोई तो न रोते हैं तो उनको रुलाते हैं की इनका मुख बड़ा है तो छोटा हो जावे l ऐसे भी रुलाते हैं बच्चों को l नहीं वहा रुलाने वुलाने की कोई बात ही नहीं है l तो यह तो बच्चे आप समझते हो बच्चे सभी की बरोबर हम अभी बेहद के बाप से फिर से कल्प पहले मुआफिक वर्सा ले रहे हैं क्योंकि अभी 84 जन्म पूरा हुआ l फिर से हमको वर्सा मिलन ही है इक्कीस जन्म का l पूरा हुआ अभी, जो वर्सा मिला हुआ था वह पूरा हो गया अभी l अभी हमको जाना है अभी यह याद तो रखना चाहिए ना, अरे बड़ी वंडर की बात है याद भूल जाती है बच्चों को l अगर यह निरंतर याद रखते रहें तो उतना विकर्म भी विनाश होते रहे न फिर बाप को याद करें वर्से को याद करें मन मनाभव मद्याजीभव् l अभी मन मनाभव मद्याजी भव का अर्थ कितना सहज है अर्थ लिखा भी हुआ है l यानी है भले ही गीता वह झूटी, कुछ-कुछ तो सच्चा है ना उसमें l लिखा भी है कि भाई मुझे अपने परमपिता परमात्मा यानी बाप को याद करो l अभी कृष्ण तो नहीं कहेंगे परमपिता परमात्मा मुझे याद करो क्योंकि मेरे पास आना है, कृष्ण तो नहीं कह सकेगे ना l वह तो परमात्मा आत्माओं को कहेंगे क्योंकि मच्छरों के मिसल जाने वाले हैं तो फॉलो करेंगी आत्माएं आत्मा को या कृष्ण को फॉलो करेंगी देहधारियों को l कृष्ण देहधारी कैसे जा सकेंगे वह कह कैसे सकते हैं l ऐसे भी नहीं वह कह सकते हैं कि मुझे आत्मा को... नहीं उनका नाम ही कृष्ण है ना l बाप ने समझाया है कि बच्चे मेरा नाम कोई भी देहधारी का पडता नहीं मेरा नाम ही है शिव यानी निराकार बाप का नाम ही शिव है और तो सब का नाम है अब कृष्ण कैसे कहेंगे कि मन मनाभव यानि देश सहित सब धर्म त्याग करके मुझ बाप को याद करो कह कैसे सकते हैं क्योंकि उसको तो शरीर है l यह तो कह सकते हैं ना क्योंकि इनको तो सही है नहीं अपना l तो कहते हैं की देखो तुम्हारा भी शरीर नहीं था, और फिर तुमको जब भेजा तब यह शरीर लिया अभी तुमको स्मृति बहुत आई इस नाटक की, सारे ड्रामा की l ड्रामा के आदि मध्य अंत अभी बाप सृष्टि रचता कैसे है, जिसको क्रिएटर कहा जाता है , मनुष्य सृष्टि रचता कैसे है, कब रचता है, कैसे रचता है, क्यों रचता है क्योंकि सृष्टि तो जरूर है ना l तो फिर नाम भी लिखा हुआ है ब्रह्मा विष्णु शंकर l ब्रह्मा द्वारा नई सृष्टि की रचना l वह नई सृष्टि कौन सी? जरूर पुरानी है ना उनमे से रचता होगा ना बच्चे l आना तो जरूर पुरानी सृष्टि में पड़े ना l तो आ कर के फिर कहते भी हैं मानुष को देवता... भले मनुष्य है नहीं अभी देखो कितने मनुष्य हैं सारी दुनिया में मनुष्य से भरी हुई है अभी उनमें से आकर के बाप कहते हैं कि बच्चों कि मैं तुमको पढ़ा कर करके मनुष्य से सो देवता फिर से बनाता हूं l तुम सो देवता पूज्य थे तुम सो फिर पुजारी बन गए l अभी कैसे बने, कितने वर्ण में आए सो तो बाप ने समझा दिया यानी सिद्ध तो कर देते हैं ना l भाई 84 जनम सिद्ध कर देते हैं l सो भी समझा है मनुष्य थोड़ी समझते हैं कि 84 जन्म या 8400000 जन्म मनुष्य लेते हैं पर कौन? क्या सभी 84 जन्म या 8400000? अच्छा अभी जो विनाश होगा तभी तो सृष्टि बनती है वह कितना जन्म लेगा l क्या 84 जन्म लेगा बिचारा 25 बरस के अंदर l तो बाप बैठकर के समझाते हैं और सहज होता है बच्चों को की बरोबर हम 84 चक्कर लगाए उसी को चक्कर कहा जाता है ना l स्वदर्शन चक्र l अभी कहां उसमें कथाएं लिखी हुई हैं स्वदर्शन चक्र छोड़ा फिर गला कट गया फलाना हो गया यह क्या बात है लिख दी है उसका ख़याल बना दिया, नहीं! बच्चों को यानी आत्माओं को यह स्मृति आई अब कि हमने 84 जन्म ऐसे ऐसे भोगे अभी चक्कर पूरा होता है और सब ड्रामा खत्म हो जाता है फिर तुमने ड्रामा को रिपीट करना है तो पहले पहले तो प्राचीन आदि सनातन देवी-देवता धर्म जरूर चाहिए, जो प्राय: लोप हो गया है l तो वो बैठ करके इस समय कहते हैं की मैं फिर से वो ही आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना करता हूं तो बोलता है वह तो बराबर है तो गीता शास्त्र उस देवी-देवता धर्म का जरूर l पर उनमें तो यह बातें कुछ नहीं उन में तो लिखाई ही झूठ हो जाती है l बस बात ही एक उठाते हैं निपूती l निपूति इसको कहा जाता है निपूति यानी यह पुत्र नहीं है बाप के l ये कृष्ण के पुत्र तो हो नहीं सकते हैं इसलिए इसको निपुति कहते हैं l यानी हम बाप के पुत्र नहीं हैं l समझे ना l नास्तिक है हम l हम बाप के बच्चे नहीं है l हम फादर जो कहते हैं गॉड फादर, ये ऐसे ही कहते हैं l यानी समझ भी तो कोई चाहिए ना जबकि फादर कहते हैं फिर उनको कह देना कि सब में है यह तो फादर को ही ब्रदर बना देते हैं l यह तो देखो कितनी मूर्खता है एकदम l कहते भी हो ओ गॉडफादर मर्सी ऑन मी l रहम करो l अच्छा तो बाप आते हैं वो रहम करने, रहम क्या करूं तुम बच्चों को तुम दुखी हो ना तो तुमको दुख से लिब्रेट करना है l तुमको सुखी करना है ना l बाप का धर्म क्या है, बच्चों को सुखी करना, सो तो बच्चे जानते हो कि बरोबर हम कल्प कल्प हर 5000 वर्ष के बाद आता हूं भारत को आकर के हीरे जैसा बहुत सुखी बनाता हूं l हेल्थ वेल्थ हैप्पीनेस बड़ी आयु वो हीरे जैसा बनाता हूं भारत वासियों को l यह सब बाकी सभी जो इतने सारे है इन सभी को निर्वाण धाम में भेज देता हूं जिनके लिए भक्ति करते हैं l भक्ति करते ही भगवान से मिलने के लिए समझे ना l भगवान से हमको कोई सुख चाहिए वह नहीं समझते हैं क्योंकि सुख के लिए सन्यासियों ने डरा दिया है- सुख, सुख तो काग विष्टा समान है सुख थोड़ी लेना चाहिए l यहाँ तो कुछ है ही नहीं यहाँ तो रहना ही नहीं चाहिए l एक तो बोलते हैं सुख नहीं चाहिए फिर कहते हैं कि यह ड्रामा में आना ही नहीं है उसको मौक्ष कहते हैं और मिलना तो मौक्ष वौक्ष किसको है नहीं l बाप आकर के समझाते हैं बच्चे यह है प्रीओर्ड़ेंट इंपिरिशेबल वर्ल्ड ड्रामा यानी यह बना बनाया यह अविनाशी ड्रामा है l यह हिस्ट्री और जोग्राफी सारे सृष्टि की सतयुग से कलयुग तक हिस्ट्री एंड ज्योग्राफी अभी यह समझ में आनी चाहिए यह चक्कर लगाते ही रहती है जिसको स्वदर्शन चक्र कहा जाता है, जिस चक्र को नीचे वो गवर्नमेंट के लोग चरखा नाम रख दिया है l चरखा और चक्कर मैं फर्क ही रहता है वह भी फिरता है वह भी फिरता है परंतु वह जनावर बुद्धि पत्थर बुद्धि और बाप पारस बुद्धि वह समझ देते हैं कि बच्चे यह जो चक्कर भारत में यह दिखलाते हैं यह सुदर्शन चक्कर है l यह जो चरखा दिखलाए है वह भी नहीं है और यह जो दुनिया दिखलाते हैं शीश कट गया फलाना हो गया दिखलाते हैं ना नाटक जब दिखलाते हैं कृष्ण चक्र या कंस वध, कंस वध का एक नाटक दिखलाते हैं अभी है या नहीं उसमें कृष्ण होता है सुदर्शन चक्र से गला काटते रहते हैं, दिखलाते हैं l तो उसका तो अर्थ तो यहां फिर कोई भी हिंसा की बात ही नहीं बिल्कुल ही l ईश्वर से जब हम को वर्सा मिलना होता है इसमें हिंसा की तो कोई बात ही नहीं मिलती हम बाप से वर्सा लेते हैं l बाप से वर्सा लेने के लिए कोई को मारना होता है क्या? तुम लोग सभी जो यहाँ आते हो बाप से वर्सा लेने के लिए कोई किसको कत्ल करते हैं क्या, कोई लड़ाई करते हैं क्या l तो यह भी तो बेहद के बाप से हमको वर्सा लेना है बस l हम तो कोई लड़ाई वड़ाई किसी से करते ही नहीं है l हम बाप से जैसे बाप श्रीमt देते हैं कि बाप को याद करो और बाप के वर्से को स्वर्ग को याद करो तो तुम्हारा विकर्म विनाश हो जाएगा तुम जाके राजाई लेंगे बस l इसमें कोई है ही नहीं लड़ाई की बातें l गीता में और महाभारत में कितनी लड़ाई की बातें रख दी हैं l है लड़ाई जरूर, परंतु तुम्हारी थोड़ी है बच्चों की l पांडवों की लड़ाई थोड़ी है कौरवों के साथ l पांडवों की लड़ाई तो कोई के साथ भी नहीं है l यह तो योग बल से अपने बाप से वर्सा ले रहे हैं l योगबल इसको कहा जाता है योग बल l तो वर्सा योग बल से बाप से बेहद के बाप से लेना है सो तो जरूर नई सृष्टि का लेंगे l तो देखो इन्होंने कोई से लड़ाई थोड़ी की है, ना! इन्होंने कैसे ली सो तो तुम ले रहे हो अभी योगबल से l अगर कोई लड़ाई की होगी तो स्वर्ग कहां से आया नर्क में होंगे न नरक में देखो कीचड़ पट्टी पड़ी है सारी, नहीं l ये जो लिखा हुआ है दैत्यों और देवताओं की लड़ाई ना यह संगम है ना बच्चे क्योंकि देत्यो का विनाश होता है देवताओं की स्थापना होती है तो वह समझते हैं कि देत्यों और देवताओं की लड़ाई लगी होगी परंतु लड़ाई तो है नहीं न बच्चे l ना ये दैत्य और देवताओं की ना हैं कौरव पांडवों की लड़ाई कुछ भी नहीं है l हां वह बात ठीक है कि बरोबर कलश मिला और जो असुर थे उनको अमृत पिलाया देवता बनाने के लिए उसमें भी कोई लड़ाई की तो बात ही नहीं निकलती हैं वह भी तो लिखा हुआ है ना की कलश निकला तो माताओं को दिया, शक्ति सेना को दिया सो तो मिल रहा है l अभी कलश मिला अमृत पिया अमृत से देवता बनाया इसमें लड़ाई की बात इसमें भी नहीं उठती है l बाकी हां विनाश के लिए वह तो इंटरनेशनल लड़ाईयां लगनी ही है अब l सब आपस में लड़ झगड़ कर के मर जाएंगे और तुम देखो सब मर जाते हैं तुमको चुपके से एकदम बाबा कहते तुम कोई भी तकलीफ नहीं करो किसीको घूसा मारने की भी यहां कुछ नहीं, न किसी को मुंख से कुछ कहने का है समझने की बात है l बाप को याद करो, कोई भी देखो तकलीफ नहीं है l ड्रामा पूरा होता है ना तो यह सभी शरीर खत्म होने का है ना l यह तो पुराना घर है सो तो तुम जानते हो कि ये फर फर फर फर करके सब जलेगा कैलेमिटीज आएंगी वो खत्म ही हो जाने का है एकदम l और तुम्हारे होते होते हमको देखना है जरूर समझे ना, जो दिव्य दृष्टि से चीज देखी है सो इन आखो से देखनी है जरूर फिर दिव्य दृष्टि से देखेंगे विनाश सो इस शरीर के होते देखेंगे l फिर जो दिव्य दृष्टि से बैकुंठ देखता उसे फिर नया शरीर मिलेगा फिर भी इन आँखों से हम वहां होंगे पर वहां होगे फिर यहाँ नहीं होंगे हम इसीलिए ये झगड़ा लगा है न l इसको ही कहा जाता है मनुष्य का जीवन ये अंतिम अमूल्य है l ये, ये जीवन नहीं तो नहीं तो मनुष्य का चमड़ी भी काम में नहीं आती है l नहीं तो देखो गाय की उनकी जूती भी बन जाती है न भला पर मनुष्य के तो कोई काम ही नहीं आती है l तो कहा जाता है अमूल्य कौन सा यह अंतिम जन्म यह बहुत ही अमूल्य है तुम्हारा बच्चे क्योंकि इसी जन्म से तुम हीरे जैसे बनते हो l वो जो जन्म पास्ट किया है न तुम्हारा अमूल्य था सतयुग त्रेता तक वो अमूल्य हीरे जैसा जन्म चला l पीछे तुम्हारा बर्थ जो जो भी आया न वो न्यू नहीं वो पुराना बर्थ होता गया l जैसे न्यू इयर कहते हैं न ये न्यू बिर्थ कहाँ का रहा ये तो पुराना हो जाता है न जितना देरी होती है उतना पुराना होता हैं न्यू क्या कहेंगे इसको l न्यू बर्थ थोड़ी है परन्तु ये समझ की बात है की नहीं पुराना बर्थ है l कोई भी नया मकान है जो भी बरस गुजरेंगा तो ये मकान पुराना होता जाएगा l उसको नया तो कोई नाम ही नहीं ले सकते हैं l परन्तु नहीं ऐसा गया जाता की पहला पहला जो मकान होते हैं वो नया होते है वो ही मकान पुराना l ये भी ऐसे ही है ये सृष्टि रुपी मकान जिसमे हम रहते हैं ये नया था अभी पुराना बना है l आगे इसको प्राचीन भारत कहा जाता था जिसकी महिमा है l अभी तो पुराना हो गया है अभी देखो पुराने नए में फर्क देखते हो l पुराने महल में अपने और फिर नए महल में फर्क क्या है l देखो ये सिंध में हेदराबाद में ये क्या रहते थे कहाँ, वहां क्या था याद तो होगा न सबको l वहां क्या रहते थे क्या क्या कोई का िनत का घर कोई का कुछ अभी तो देखो अभी तो 20-20 माले बन रही हैं क्योंकि गिरने का है ये सब क्योंकि बहुत बन जाए फिर तो कोई भी माला नहीं बनने का है l ये क्यों बनते हैं बहुत माला क्योंकि जमीन नहीं है न l जमीन का मूल्य भी...... जमीन का मूल्य तो देखो कितना हो गया है अमेरिका में भी तो मूल्य होगा ना जमीन का बहुत ये आर्टिफीसियल है क्योंकि जमीन नहीं है l यानी जहां जरूरत है वहां जमीन नहीं है l जमीन कम थोड़ी है परंतु नहीं जहां धंधा धोरी होते हैं.. जितनी चाहे उतनी बड़ी बनावे, फुल50- 60 माले भी बनावे फिर एक माल भी नहीं बनेगा l वहां कोई माली नहीं बनते हैं l नई दुनिया में और पुराने दुनिया में मनुष्य ये समझते हैं कि अपना जो कांग्रेश हम दिल्ली को नहीं बना रहे हैं हम भारत को न्यू बना रहे हैं l अरे नहीं यह तो पुराना बना रहे हो ना l ये मकान नए बना रहे हो तो दिल्ली नइ बनी यह भी कोई बात है l ये पुरुषार्थ इसके प्लान बना रहे हैं हम इंडिया को नया बना रहे हैं बहुत बहुत बहुत बेस्ट बना देंगे अरे नहीं तुम लोग का प्लान ही है इंडिया को दोजख बनाने का l यह पुराना होने का ही है ना तो तुम जो भी कर्तव्य करेंगे वो इनको दोजख बनाने का , नर्क बनाने का l जप तप तीर्थ बहुत ही तुम बैठ कर के अभी होंगे न तुम देखेंगे अभी बहुत ही यज्ञ रचेंगे जब इतनी आफते आएंगी कड़ी कड़ी पीछे सभी यज्ञ रचने शुरू कर देंगे l फिर देखो कितने यज्ञ रचते हैं की ये आपदाएं टूट जावें पर नहीं आपदाएं कैसे...सभी को इस यज्ञ में स्वाहा होना है l वो यज्ञ रचते हैं आपदाएं नहीं आवें l यहाँ बाप कहते हैं इस ज्ञान यज्ञ में इतने सब जो भी है न वह पिछाड़ी में स्वाहा हो जाएंगे l बाप कहते हैं मेरे इस ज्ञान यज्ञ में यह जो भी सृष्टि रूपी देखते हो कचरा और सामान वो सभी स्वाहा हो जाएगा l यानी ख़तम हो जाएगा l देखो कितनी कहां की बात कहां l आज गुरुवार है तो बाबा फिर भी अंत में कहते हैं यह तो डिटेल में समझाया l नटशैल में बाप को याद करो जितना जितना याद करेंगे भले कहाँ भी रहो बच्चे, बंधेली बहुत हैं न वो क्या करेंगी बच्ची, वो कहाँ बिचारी सुन सकें तो कितना सहज है l बंधेलियों को कहते हैं मीठी बच्ची क्यों मार खाती हो l तुम घर में बैठ कर करके बाप को याद करो और वर्से को याद करो और बहुत मीठी मीठी बातें करो बाप से, बाबा हम बंधन में हैं ड्रामा अनुसार तो बंधन में कल्प पहले भी ऐसी ही होंगी l अच्छा अभी आप कहते हो ना कि मुझे याद करो तो तुम्हारा विकर्म विनाश होगा और फिर पवित्र भी तो रहना है मुसीबत आ जाती है बाबा पवित्रता की कि बाबा ये पवित्रता पर छोड़ते नहीं हैं l नहीं! ये बात ज़रा मुश्किल की है l पवित्र जरुर रहेंगे ये जो अबलाओं पर अत्याचार होते हैं ये खास इस बात के ऊपर होते हैं तो जरूर तुमको मार भी खानी पड़ेगी l तो बाप तो कहते हैं यह बात तो, वह बात तो मैंने सहज बनाया बाकी तुम कहें कि यह अपवित्र बनाते हैं ये नहीं l यह तो फिर मार खाओ l उसमें तो मार नहीं खाएंगे l घर में रहेंगी बाप को याद करेंगी तो इसमें तो कोई मारेंगे नहीं l मारेंगे तुमको ये विख के लिए l अभी विख के लिए ही तुम्हारा काम है पवित्र बनना l जो विख तुम न देओ l सो तो तुम आजकल तो गवर्नमेंट चाहती है की बच्चे जास्ती पैदा न हो l नहीं तो बच्चे देखो आज चीन में लिखा है की जो तीन बच्चे वाले होंगे दो बच्चे वाले होंगे उनको राशन मिलेगा जास्ती बच्चे वालों को राशन नहीं मिलेगा, जिसके पास जस्ती होंगे l तो ये लिखते ही हैं जैसे की उनके ऊपर कलम लगा दिया l ये युक्ति रचते है न अरे युक्तियां बहुत होती है गवर्नमेंट के पास l लिखते हैं चीन के लिए करेंगे यहां l फिर तुम्हारे ऊपर आएंगे कि भाई जिसके पास 2 बच्चे तीन बच्चे उनको राशन मिलेगा इसलिए बच्चे बंद करो अभी ऐसे थोड़ी कोई बच्चे बंद करेंगा l अरे काम महा शत्रु है वह तो कुछ भी करो तो भी बच्चे तो ज़रूर पैदा करेंगे l देखो न बाबा ने आकर के कितना... अरे! बंद करो क्या मिलेगा? भले मनुष्यों को कहा जाए की बच्चे बंद करो अच्छा मिलेगा क्या उससे फायदा क्या फायदा तो कुछ भी दिखलाते नहीं l यहां तो देखो बाप बोलते हैं नहीं बच्चे मुझे याद करो यह सिर्फ एक जन्म मुझे याद करो तो मैं तुम बच्चों को स्वर्ग का मालिक बनाउंगा l ये प्रत्यांगना देखो बाप की, सब पापों से मुक्त हो जाएंगे और पापों से मुक्त हो करके तुम स्वर्ग के मालिक बनेंगे l है नहीं कथा की कृष्ण ने भगाई सत्यभामा भगाई , जामवती बह्गाई फलानी भगाई l अभी वो तो है गपोडे l कृष्ण थोड़ी भगाएगा सो भी बालक अभी छोटा l एक तरफ में कृष्ण ने भगाई, एक तरफ में ज्ञान दिया मिलता ही नहीं है नॉनसेंस बुद्धि भी नहीं कहें एक तरफ में कृष्ण को कहते हैं 108 रानी थी, जामवंती भगाई एक तरफ में श्रीकृष्ण भगवानुवाच भगवानुवाच हे अर्जुन फलाना ये गीता में गाते हैं l अर्थ लगता है? अभी यह हुआ ड्रामा, अभी तुम बच्चों को हम नर्क वासी से स्वर्गवासी बनाए रहे हैं l (गीत बजा इक मात ....) देखो महिमा न्यारी है न सबसे l l शिव बाबा की महिमा है मनुष्य सृष्टि का बीज रूप, यानि पिता l फिर कहा जाता है ज्ञान सागर शांति का सागर, पवित्रता का सागर, सुख का सागर, आनंद का सागर, सबका सागर ही सागर l अभी यह महिमा लक्ष्मी नारायण या श्री कृष्ण को नहीं दी जाती है l उनकी फिर महिमा क्या है सर्वगुण संपन्न, 16 कला संपूर्ण, संपूर्ण निर्विकार, मर्यादा पुरुषोत्तम, अहिंसा परमो धर्म l अभी देखो है ना उनकी महिमा ही न्यारी और कोई की भी महिमा इतनी नहीं है l तो वो जो उनकी महिमा है वो ऐसा फिर सर्वगुण संपन्न, सोलह कला सम्पूर्ण ...मनुष्य को ऐसे बनाते हैं, मनुष्य को देवता बनाते हैं क्योंकि तुम स्वर्गवासी बनेंगे जाके बैकुंठ वासी बनेंगे l अच्छा सबको मिल गया बच्चों को l जिसको ना मिला हो टोली कहो प्रसाद कहो हाथ उठावे l अरे यहां अभी बहुत को नहीं मिला है l (म्यूजिक बजा ) जो भी मनुष्य मात्र है उनका बाप भी है टीचर भी है तो गुरु भी है l तो हके न उनकी महिमा न्यारी l अच्छा बाप मां दादा ऐसे कहें देखो यह वंडरफुल है ना यानी परमपिता परमात्मा को गाना तुम मात पिता हम बालक तेरे तुम्हरी कृपा से स्वर्ग के सुख घनेरे.. तो एक को कहा जाता है न तो बाबा भी ऐसे कहे न तुम मात पिता तो बाबा कहता है बाबा यह प्रजापिता, ये मम्मा, फिर दादा ऐसे कहेंगे ना या पहले दादा पीछे मम्मा l चलो यह भी समझ की बात है, अच्छा तुम लक्की सितारों प्रति याद प्यार नंबरवार पुरुषार्थ अनुसार l वंदे मातरम माताओं को क्योंकि तुमको वंदे मातरम शिव शक्ति सेना हो ना इसलिए वंदे मातरम माता गुरु बिगर कभी कोई का उद्धार होना असंभव है साधु संत महात्माओं को भी शक्तियों के चरणों में गिरने का है वन्दे मातरम और बच्चों से गुड मॉर्निंग, याद प्यार तो दे ही दिया l