08-01-1964     मधुबन आबू     प्रात: मुरली    साकार बाबा    ओम् शांति    मधुबन
 


हम बम्बई से बोल रहे हैं, आज बुधवार जनवरी की आठ तारीख है। प्रात: क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं।

वहां जिज्ञासु कहेंगे, यहां बच्चे कहेंगे । और कोई भी सतसंग में ऐसे नहीं कहेंगे । जो बैठकर भाषण करने वाले होंगे या कुछ सुनाने वाले होंगे, तो कहेंगे जिज्ञासु बैठे हैं वा फॉलोअर्स बैठे हैं । यहां ये सभी जानते हैं कि बापदादा और मात-पिता बैठे हैं । देखो, बिल्कुल ही नई बात है ना । जो भी नया होगा ये बात को बिल्कुल ही नहीं समझेगा । वो समझेगा कि कोई महात्मा बैठा हुआ है । यहां कोई महात्मा है नहीं । यहां ये बच्चे जानते हैं । इनकी बुद्धि में है कि जो हमारा बेहद का बाप है वो आ करके श्रीमत देते हैं, क्योंकि वो है श्रीमत, उसको ही कहा जाता है श्रीमत भगवान की । कौन सा भगवान? कृष्ण है ना, उनको रुद्र कहा जाता है । दोनों अक्षर डाल दिए हैं तो मूंझ गए हैं । रुद्र ज्ञानयज्ञ है, कृष्ण ज्ञानयज्ञ नहीं है । ये रुद्र ज्ञानयज्ञ है, जिस यज्ञ से विनाश की ज्वाला प्रज्वलित होती है । श्री रुद्र भगवानुवाच है ना । रुद्र भगवानुवाच या शिव भगवानुवाच, बात एक ही होती है । तो भूल हुई है ना । यहां जो भी बच्चे बैठे हुए हैं, उनको ये नहीं देखना है ये फलाना महात्मा बैठा हुआ है; क्योंकि सतसंग में महात्माएं तो बदलते रहते हैं ना । कभी कोई आया, कभी कोई आया, कभी कोई आया । तो मनुष्यों की बुद्धि उसमें रहती है- ये क्या समझाते हैं आज? वो बोलेंगे, आज गीता पर समझाते हैं, उपनिषद पर समझाते हैं, वेद पर समझाते हैं । भागवत, रामायण फलाना-तीरा ये सब होता है । यहां तो तुम लोग समझते हो कि ये बातें बाप नहीं बताते हैं । ये बाबा तो अपना परिचय देते हैं । तो बाप आए तब ही बच्चों को बाप का परिचय मिले । बाप ही नहीं, तो बच्चों को बाप का परिचय आए कहाँ से? बाप-बाबा तो सभी कहते रहते हैं । ओ परमपिता परमात्मा! रहम करो, मेंहर करो । ओ पिता..! अभी यहां बच्चे बैठे हुए हैं। बिल्कुल एकदम नई बात है ना । कृष्ण भी नहीं है, फिर कृष्ण की गौशाला भी नहीं है । अच्छा, कृष्ण होते तो भला उनको इतनी गाली-वाली क्यों मिलती थी? कहते हैं कि चौथ का चंद्रमा देखा हुआ था तो उनको गाली मिली थी । अभी यह भी तो बनाय दिया है । कृष्ण को गाली कभी देंगे? अरे, इम्पॉसिबल है जो कृष्ण को कोई कुछ भी कह सके या ऐसा कोई काम कृष्ण कर सके । फिर नॉनसेन्स लिखा हुआ है ना । बच्चे जानते हैं कि जहाँ भी सतसंगों में जाते हैं वहां नॉनसेन्स ही सुनते हैं और नॉनसेन्स बुद्धि, मूर्ख बुद्धि बनने के लिए जाते हैं । उसमें भी बहुत मूर्खता क्या है, वो बाप बैठ करके समझाते हैं । अच्छा, थोड़ा गीत हम बताते हैं, गीत भी सुनाते हैं । बाप को गीत सुनाने की कोई दरकार नहीं है । वास्तव में बाप बच्चे पैदा करते हैं, फिर उनको स्कूल में भेज देते हैं । बोलते हैं- नहीं । ये मेरे सिकीलधे बच्चे हैं, मैं ही इनको पढ़ाऊंगा । ये अफसरों के ऊपर पढ़कर क्या जाकर पढ़ेंगे । वहां तो वही पढेंगे जो पढ़ते आए हैं- ये अलफ-बे आई०सी०एस०, जी बी बी सी , बी बी सी ए , ए बी बी सी । यह तुमको पढ़ने की कोई दरकार नहीं है बिल्कुल ही । बाप तुमको क्या बैठकर पढ़ाते हैं, कि बच्चे, तुम मनुष्य हो ना और यह जानते हैं सब नाटक है और हम एक्टर्स हैं । हम आत्माऐ यहां की रहने वाली नहीं हैं । शरीर यहां पांच तत्वों का बनता है । हम सभी आत्माएँ परमधाम में रहने वाली हैं, जहां कि बाप रहते हैं, जिसको अभी दुःख में याद करते रहते हैं -ओ गॉड फादर । ओ परमपिता परमात्मा, रहम करो । भला क्यों? गुरू के पास क्यों नही कहते हैं, रहम करो? नहीं, वो पुकारेंगे फिर भी वहां । बाबा ने समझाया ना कि यह बात अलग है । वो जो भी सन्यासी या फलाना-तीरा है, वो अलग है । वो कहेंगे यह गुरू है । नाम-रूप है ना वहां । यहां फिर है शरीर, परन्तु ये बोल देते हैं कि याद रख देना कि मैं इनमें प्रवेश कर रहा हूँ और मैंने बैठकर तुम बच्चों को अपना परिचय दिया कि मैं कोई कृष्ण नहीं हूँ । ये जो लिखते हैं कि कृष्ण ने गीता सुनाई, उन्होंने यह कहाँ से निकाला? तुम जब कहते हो कि रुद्र ज्ञानयज्ञ, तो रुद्र तो निराकार हुआ कृष्ण साकार हुआ । तुम ऐसे कैसे कह सकते हो? साकार जो अभी मनुष्य सृष्टि है, वो तो जन्म-मरण में आती है । फिर सभी चौरासी के चक्र में नहीं आते । ना कोई मनुष्य जनावर बनते हैं, कुत्ते-बिल्ली बनते हैं या फलाना बनते हैं । यह भी तुमको नॉनसेन्स सिखला दिया । ऐसा बाप बैठकर समझाते हैं ना । ये सब तुमको बेवकूफी समझाते हैं तुमको मूर्ख बनाने के लिए । एकदम जिसको बोलते हैं ना छसा छसा माना बिल्कुल ही चट खाते में । अब बाप बैठकर समझाएंगे ना ये कि तुमको क्या बना दिया । अच्छा, तुम बताओ, तुम बोलते हो कि ये जो शास्त्र हैं, अनादि हैं । कब से? सतयुग में तो तुम मूर्ख नहीं थे । उफ! सतयुग में तो तुम्हारी महिमा है 'यथा राजा-रानी तथा प्रजा । देखो, याद भी तो करो अपने भारत को । भारत यथा राजा-रानी तथा प्रजा । सर्वगुण सिर्फ राजा की महिमा नहीं है, यथा राजा-रानी तथा प्रजा । यथा राजा-रानी दैवी गुण सम्प्रदाय, सर्वगुण सम्पन्न और फिर यथा राजा रानी नो गुण एकदम । मैं निर्गुण हारे में कोई गुण नाहीं, तो यथा राजा-रानी तथा प्रजा कह ही नहीं सकते हैं । तो फिर सभी प्रजा यथा राजा-रानी तो सभी । उसमें सभी आ जाते हैं । बाप आकर समझाते हैं, देखो, सभी कितने मूर्ख हैं । यानी यह कैसे हो सकता है कि मनुष्य कहते हैं, पुकारते हैं, उनको ये मालूम ही नही पड़ता है कि बाप आया भी था बरोबर शिव जयन्ती पर । कब आया? ये तो कह देते हैं कि सतयुग को लाखों वर्ष हो गए । यानी बाप को लाखों वर्ष हुए होंगे जबकि आया होगा । देखो, घोर अंधियारे में हैं बिल्कुल ही । तो बाप आ करके इस घोर अंधियारे से सोझरे में ले जाते हैं । इसको कहते हैं- ज्ञान अंजन सत्‌गुरू दिया, अज्ञान अंधेर विनाश । अभी तुम बच्चे किसके सामने बैठे हो? तुम मात-पिता, हम बालक तेरे । ठीक है ना । अभी तुम जानते हो वहां नहीं तुम ये खयाल से बैठेंगे, एक भी नहीं कोई सतसंग में बैठेंगे, जिसके सामने कहें तुम मात-पिता, हम बालक तेरे । तुम्हरी इस सहज राजयोग और ज्ञान सिखलाने से हमको अथाह सुख मिलने का है, हमारी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं । अभी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करने वाली होती है 'जगदम्बा, जिसको कामधेनू कहा जाता है । अच्छा, वो तो बैठती है झाड़ के नीचे ।.....कल्पवृक्ष के पास बिठाते हैं । बोलते हैं- ये सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं, परन्तु ऐसे थोड़े ही है जैसे अभी जगदम्बा पूर्ण करती है । हमको पुत्र चाहिए....मांगते हो? तुमने कभी मम्मा-जगदम्बा से माँगा है- मम्मा हमको आँखें खराब हो गई हैं, आँखें दो, हमको बच्चा चाहिए, हमारा पति बीमार है उनको यह दवाई दो । कहेंगे कुछ उनके आगे? नहीं । तुम जानते हो कि यह वही जगदम्बा है । ह्यूमैनिटी में है ना । वो भी तो मनुष्य के रूप में देखते हैं । खाली उन्होंने दस हाँथ दे दिए हैं, ये देवी बना दी है । जैसे सरस्वती उनको बना दिया है । है तो नहीं, क्योंकि यह तो पढ़ाते हैं । तुमको समझाया भी जाता है कि बच्चे, अभी बाबा आया हुआ है तुमको ले जाने के लिए । तुम किसलिए भक्ति करते हो? भगवान से मिलने के लिए; परन्तु तुम सभी भगवान के पास कहाँ आ करके कैसे जाएँगे? जा नहीं सकते हो, क्योंकि पतित हो । पतित कोई वहां परमधाम में जा सकेंगे? क्या पतित परमधाम से यहां पार्ट बजाने आते हैं? पावन आते हैं, पीछे पतित होते हैं । माया पतित करती है । तुम उड़ कैसे सकेंगे? देखो, बाप बच्चों से पूंछते हैं कि तुम पतित जा कैसे सकेंगे? कोई एक भी नहीं जाएंगे, क्योंकि ये सारी दुनिया पतित है । अरे, गाँधी खुद भी कहता था ना, जो एकदम बड़ा लीडर था, जिसको भी अवतार मानते हैं । ऐसे ही कहा करता था, उनकी दिल भी ऐसी ही थी; क्योंकि गीता हांथ में थी ना । कहते थे पतित-पावन सीता-राम, फिर वो तो चला जाता था रघुपति राघव.....रामचन्द्र के ऊपर । जैसे वो सुना था अपने साधु-संत-महात्मा से, वैसे ही ताली बजाता था । हांथ में फिर भी गीता । भाषण-लेक्चर गीता का करते थे । पिछड़ी में वो भोग उल्टा लग जाता था, क्योंकि उन बिचारों को भी यह तो मालूम नही कि गीता किसने गाई? उनकी बुद्धि में था श्रीकृष्ण भगवान ने गीता सुनाई । फिर बोलते हैं कि परमात्मा सर्वव्यापी है, भगवानुवाच यानी कृष्ण भगवान ने सुनाया है । ये ऐसे कहते हैं कि मैं सर्वव्यापी हूँ । बाप पूछते हैं मैंने तो कभी आगे कहा ही नहीं था कि मैं सर्वव्यापी हूँ । कौन कहते हैं? मैं सर्वव्यापी कैसे हो सकता हूँ? किसने लिखा? कृष्ण ने! गीता कृष्ण ने नहीं सुनाई थी, मैंने सुनाई थी तो मैं ही जानता हूँ । कृष्ण क्या जाने! तुम कृष्ण कैसे कह सकते हो? जब कृष्ण ही नहीं है तो जो लिखा हुआ है सो सभी रॉंग है । मैंने कभी नहीं कहा । देखो, मैं यहां तो कह रहा हूँ ना भगवान सर्वव्यापी है? नहीं । भला सर्वव्यापी से क्या फायदा होता है? अच्छा, सर्वव्यापी- सर्वव्यापी सर्वव्यापी । फिर उनको क्यों याद करते हो? बाप को क्यों याद करते हो? परमपिता को क्यों याद करते हो? क्यों कहते हो हम सभी ब्रदर्स हैं? ब्रदरहुड है? ब्रदर्स हैं तो जरूर बाप होना चाहिए ना । अगर तुम सर्वव्यापी हो तो कहो हम सभी फादर्स हैं । तो फिर फादर को कैसे फादर से वर्सा मिलेगा? यह तो हो भी नहीं सकता है । अरे, बाप खुद पूछते हैं, कहाँ लिखा हुआ है कि मैं सर्वव्यापी हूँ? गीता में । गीता किसने गाई है? कृष्ण ने । झूठ । मैंने गाई थी, मैं सहज राजयोग सुनाने के लिए फिर आया हूँ । यह कहता ही कौन है, मैं जब आया हुआ हूँ कहता हूँ, मैंने तो कभी कहा ही नहीं कि मैं सर्वव्यापी हूँ । मैं आया हुआ हूँ तुम बच्चों को फिर राजयोग सिखलाने । इसमें सर्वव्यापी की बात क्या है? सर्वव्यापी- सर्वव्यापी सर्वव्यापी करते तुम आ करके बिल्कुल ही पत्थरबुद्धि बन गए हो । सर्वव्यापी कहने से तुमने पत्थर में हमको ठोंक दिया है । तुमने सबसे जास्ती मेरी ग्लानि की है, इसलिए पत्थरबुद्धि कौड़ी तुल्य बन गए हो । यह ड्रामा है, फिर भी तुमको ऐसा ही बनाएगा । यह ड्रामा है ना! अभी आया हूँ तुमको समझाने के लिए कि मैं सर्वव्यापी नही हूँ, ना मैंने कभी कहा है और फिर ये शास्त्र लिखे हैं मनुष्यों ने । परम्परा से ये ज्ञान चलता नहीं है। इस्लामी है, परम्परा चलता है, क्योंकि वो रचता है अपना धर्म । सो भी धर्म रचता है, करता और कुछ भी नहीं है । ना बौद्ध, ना इस्लाम, ना क्राईस्ट, ना ब्रह्मा, ना विष्णु, ना शंकर, ना फलाना, कुछ भी काम के नहीं हैं । वर्थ नॉट ए पैनी हैं, जब तलक बाप आकर इनको पाउंड न बनाए । कोई की महिमा नहीं है । लक्ष्मी नारायण की काहे की महिमा है? बाप पूछते हैं- अरे, लक्ष्मी नारायण को लक्ष्मी नारायण किसने बनाया? बाबा ने बनाया ना । उन्होंने क्या किया? वो तो पतित थे । ऐसा कोई दूसरा थोड़े ही बताएगा । लक्ष्मी नारायण तो मालिक थे, फिर माया ने उनको पतित किया । वो पतित अभी मेरे से ज्ञान ले रहे हैं । वही कृष्ण, जिसके लिए कहते हो कि कृष्ण ने गीता सुनाई । कृष्ण तो आ भी नहीं सकते हैं । कृष्ण की आत्मा 84 जन्म भोग कर इस समय में पतित तमोप्रधान बनी है । अभी सिर्फ कृष्ण की तो बात नहीं है ना । बाबा बोलते हैं सबकी है । जो भी इम्पर्टीकुलर देवी-देवता धर्म वाले थे, वो बैठ करके यहां अपना राजभाग ले रहे हैं । वही सत्यनारायण की सच्ची कथा सुन रहे हैं, जो तुम झूठी- झूठी कथाएं सुनते आते थे, जिनमें कुछ सार ही नहीं है । कथाएं सुनते आये हो, सुनते आये हो, सुनते आये हो तहाँ कि इतनी आफतें आ करके सिर पर पड़ी हैं एकदम । अभी तो मौत एकदम मुख खोल कर खड़ा है । वो शंकर अपनी आँखें खोल करके ये सब खत्म कराय ही देंगे । शंकर के लिए है ना कि जब तीसरी आँख खोलते हैं तो सब खलास कर देते हैं । तो इस समय में है ना बरोबर, तुम बच्चे जानते हो । तो बाप ब्रहमा द्वारा स्थापन कर रहे हैं । यहां तो कोई प्रश्न नहीं उठता है । ये गइया किसकी हैं? ये तो शिवबाबा की गइया हैं ना । तो ब्रहमा के तन से गइया को घास खिला रहे हैं । कौन? शिव । ना ब्रहमा, ना कृष्ण । शिवबाबा जो ज्ञान का सागर है, ये इनको ये ज्ञान दे रहे हैं । कोई घास-वास नहीं है, कोई जनावर थोड़े ही हैं । काहे का ज्ञान? राजयोग और ये सृष्टि-चक्र का ज्ञान । बहुत ऐसे शास्त्र हैं जिनमें चक्र लिखा है, दिखलाया है, परन्तु कोई ने आयु लाख वर्ष, दस लाख वर्ष कह दी। । अभी आजकल कई कई निकले हैं जो बोलते हैं- नहीं, पाँच हजार, कोई साढ़े पाँच हजार । अभी आहिस्ते- आहिस्ते खुलते जाते हैं । जिन्होंने- जिन्होंने थोड़ा लिखा है, खोजते जाते हैं, हाँ, यह शास्त्र में तो बरोबर था । अभी बोलते रहेंगे, कहाँ ना कहाँ से आवाज निकलती रहेगी । कोई आया हुआ है, ऐसा समय देखने में आता है । कोई आया है । अभी कोई कृष्ण तो नहीं आएगा ना । जो भी देवी-देवता हैं वो सभी पतित हैं । एकदम वर्थ नॉट ए पैनी हैं । कोई काम के नहीं हैं । भले मंदिर में बैठे हुए हैं; परन्तु वो तो पत्थर की मूर्ति है ना । उनकी आत्मा कहाँ है? मनुष्य समझते हैं कि आत्मा वैकुण्ठ में है । अरे, वैकुण्ठ में कहाँ बैठेंगी? वैकुण्ठ तो है ही नहीं । वैकुण्ठ तो यहां होता है ना । यहां कहाँ है उनका शरीर? जीवात्मा कहाँ है? लक्ष्मी नारायण की जीवात्मा कहाँ है? वो थी । कहाँ गई? हैं, पर उनको 84 जन्म तो भोगना है ना । सबसे पहले ते पहले नंबर में सो भी कृष्ण का नाम लेते हैं, क्योंकि नहीं तो मनुष्य मुँझाय देते हैं । राधे-कृष्ण सो ही लक्ष्मी नारायण पूरे 84 जन्म भोगते हैं और यथा राजा-रानी तथा प्रजा । जिन्होंने पूरे 84 जन्म भोगे वो ही पहले आकर फिर राजभाग लेंगे और दूसरे सबको उसके पीछे आना है; क्योंकि इतने जन्म नहीं भोगते हैं । वो इस्लामी, बौद्धी क्रिश्चियन और जो भी मठ-पंथ हैं- सिख धर्म है, सन्यासियों का धर्म है, फलाना है, ये सब पीछे आते हैं । जो जो हैं वो फिर अपने अपने धर्म में आएँगे । बाप बैठकर समझाते हैं, सभी आत्माएँ वहां ऊपर में जाएंगी । सभी वापस जाएंगी ना, क्योंकि फिर से पार्ट बजाना है । वहां भी सेक्शन्स हैं । जैसे ये धर्म हैं ना- इस्लामी, बोद्धी क्रिश्चियन, तो ऐसे यह सूक्ष्म झाड़ ऊपर में है । हैं सभी परमधाम में, परन्तु वो आत्माएं अपने- अपने सेक्शन में जाकर रहेंगी, एकदम सीरियल में । पहले क्राईस्ट, फिर उनके सब जो भी हैं; परन्तु इतना चित्र में तो नहीं दिखला सकते हैं । इतने लाखों-करोड़ों को थोड़े ही चित्र में दिखला सकेंगे । यह बुद्धि से काम लेना है कि क्राईस्ट की सेक्शन अपनी । उसमें जो भी क्राईस्ट धर्म वाले होंगे सच्चे, पक्के पक्के, दूसरे तो कनवर्ट हो जाते हैं ना, वो फिर निकल जाएँगे । जो जो असुल वाले क्रिश्चियन लोग हैं, वो क्राईस्ट के सेक्शन में जाकर रहेंगे । तो नम्बरवार सेक्शंस हैं । पहले-पहले है शिवबाबा का । देखो, बाबा समझाते हैं । पीछे हैं ब्रम्हा विष्णु शंकर का । पीछे आओ नीचे, तो जगदम्बा का तो नीचे में ही आ गई । वो तो संगमयुग की आ गई । पीछे है संगमयुग में फिर ये जगदम्बा संगमयुग की । अभी कोई शास्त्रों में तो लिखा नहीं है, कोई समझा भी नहीं सके कि जगदम्बा इस भारत पर इस समय में थी । है कोई? कभी कोई सुना सकते हैं? कभी नहीं । जगदम्बा का इतना बड़ा मेला लगता है । लक्ष्मी का कोई मेला थोड़े ही लगता है । जब दीपमाला आती है ना, तब श्री लक्ष्मी का मेला नहीं लगता है । वो तो घर में बैठ करके सफाई कर देते हैं, क्योंकि जगदम्बा, जो लक्ष्मी बननी है, उनके लिए सफाई चाहिए । तुम ब्राहमणों के लिए, जो देवता बनने वाले हैं, उनको आना है, सफाई चाहिए । तो यह है बेहद की सफाई । वो हद की सफाई हर एक घर घर में करते हैं कि आज लक्ष्मी आएंगी । भारत में यह रसम-रिवाज है । और कोई धर्म में रसम-रिवाज नहीं है । सब अपने घर को सजाएँगे । फिर क्या करेंगे? लक्ष्मी का आहवान करेंगे । पैसा तिजोरी में या कहीं रखेंगे, यह बढ़ जाए, यह बढ़ जाए भावना रखेंगे और लक्ष्मी को याद करेंगे, बस । जैसे रावण को बरस- बरस जलाते हैं वैसे लक्ष्मी से बरस बरस कुछ ना कुछ मांगेंगे । जगदम्बा के लिए ये लिखा हुआ है । लक्ष्मी के लिए कभी नहीं कोई कहेंगे कि सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाली है । जगदम्बा के लिए कहते ही हैं सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाली, जो अभी तुम्हारी कामना पूर्ण हो रही है । महिमा माताओं की करनी चाहिए । सन्यासियों ने बहुत तिरस्कार लिख दिया है अपने उनमें । ...समझाया कि भारत जब वाममार्ग में जाता है, जब रावण का राज्य शुरू होता है, तो एकदम हाहाकार मच जाता है, बिल्कुल ही अर्थक्वेक्स हो जाता है । तो फिर इसको थमाने के लिए, पवित्र रखने के लिए, ये ड्रामा के अंदर निवृत्तिमार्ग वालों का पार्ट है । इसको कहा जाता है रजोगुणी सन्यास । रजोगुण में ही आते हैं रजोगुणी हैं और निवृत्तिमार्ग का सन्यास है । ये प्रवृत्तिमार्ग वाला नहीं है । यह प्रवृत्तिमार्ग का है । बाप आ करके ये दोनों को हथियाला बॅधाते हैं, भगाते नहीं हैं । इन लोगों के जो बाद में आए हैं ना, बच्चियाँ आयी है; परन्तु उन लोगों को समझना चाहिए कि कृष्ण ने यानी गीता के भगवान ने फलानी फलानी फलानी भगाई। अब इनका अर्थ भी तो समझना चाहिए ना । अच्छा, भला भट्‌ठी कहाँ से बनी? ज्ञान की भट्‌ठी, जिनमें पक्की होवें । यह ज्ञान की भट्‌ठी तो नहीं थी । उन लोगों ने तो ईंट की समझ बैठे थे, पक गई तो बिल्ली जीते जी निकल आई । लिखा हुआ है बरोबर । उनका अर्थ भी तो लिखा हुआ है । है ना । कोई ईंट की बिल्ली के पूँगरे अंदर। ईश्वर की कुदरत देखो । बाबा की कोई कुदरत-बुदरत नहीं है... । बाबा तो कहते हैं- ओ माई डियर चिल्ड्रन । आई एम योर मोस्ट ओबीडियेन्ट सर्वेन्ट । मैं आता हूँ तुम बच्चों को.., मैं आता ही साधारण रूप में हूँ । मेरे को कोई विरला ही जान सकते हैं । अगर कृष्ण होता तो बात मत पूछो । अगर कृष्ण है, ऐसा कहते हैं, तो कौन है भला? अभी कोई बतावे । किसने कहा कभी? किसने सुनाई? नाम तो बताए, कृष्ण तो इम्पॉसिबल है कि कोई पतित दुनिया में आए या द्वापर में आए । अच्छा, द्वापर में आया, तो क्या द्वापर में महाभारत की लड़ाई लगी और एक धर्म की स्थापना हुई? यह भी तो बिल्कुल ही रॉंग है । द्वापर के पीछे तो कलियुग आता है, और ही पतित दुनिया आती है । द्वापर के पीछे तो महाभारत की लड़ाई हो ही नहीं सकती है, क्योंकि महाभारत की लड़ाई से स्वर्ग के दरवाजे खुलते हैं, क्योंकि यह गीता से ताल्लुक रखती है । गीता है आदि सनातन देवी देवता धर्म का शास्त्र । तो जरूर आदि सनातन देवी देवता धर्म कल्प के संगम पर, सो भी कलहयुग और सतयुग के संगम पर । द्वापर में कहाँ से आया? कितनी भूल है! अति भूलें हैं यहां । नहीं तो पूछते हैं न कि किसने कहा सर्वव्यापी? कहाँ लिखा है? भई, गीता में है । किसने कहा? कृष्ण ने । झूठ बोलते हो, कृष्ण ने कहा ही नहीं है । भगवानुवाच मैंने तो कहा ही नहीं । मैं अभी भी कहता हूँ सर्वव्यापी जो कहते हैं वो नंबर वन डेमफूल्स हैं । देखो, जब सर्वव्यापी कहते हो तो फिर ओ गॉड फादर यह किसको कहते हो? यहां फादर तो है ना । यह स्वर्ग कौन स्थापन करेगा? हेविनली गॉड फादर । ये इंगलिश लोग तो फिर भी अक्षर अच्छे देते हैं । हेविन स्थापन करने वाला 'गॉड फादर । तो जरूर गॉड फॉदर ये हैविन स्थापन करेगा । तो जरूर फादर ही इनहेरीटेन्स देगा ना । तो कब देंगे? जरूर संगमयुग पर आएँगे । जब कलहयुग अंत, सतयुग की आदि होगी । अब गीता द्वापर में तो पढ़ ही नहीं सकते हैं । कौन कहते हैं मैं द्वापर में आया था? द्वापर में कैसे आऊंगा?? द्वापर में आ करके सारी दुनिया को पावन कैसे बनाएंगे यह तो हो नहीं सकता है । द्वापर के पीछे तो और ही पतित बनते जाते हैं । पतित बनना ही है । कोई वापस जाने का है नहीं । कायदा है कि जब ड्रामा पूरा होता है तो सब एक्टर्स सरसों के माफिक पिस जाने वाले हैं । ये बहुत हैं ना एकदम, ये सब खतम हो जाने वाले हैं । मौत की चक्की फिरती है बिल्कुल ही । त्राहि-त्राहि होती है । यहां कौन किसके लिए रोएगा! हीरोशिमा में एक्सीडेंट हुआ, किसने किसके लिए रोये? सभी मॉ-बाप बच्चे, जो भी घर के अंदर थे, सभी खतम । किसने किसके लिए रोया? किसने पिण्ड बिठाया, किसने बैठकर ब्राहमण खिलाया? कुछ भी नहीं । अच्छा, यह बात छोड़ो बाबा आते हैं थोड़ा ब्राहमण के ऊपर समझाने के लिए । पितर खिलाते हैं । पति मरा, आहवान किया, ब्राहमण को भोजन भेजा और ब्राहमण आया । आगे आते थे । जिन्होंने ज्ञानेश्वर गीता पढ़ी होगी उनको मालूम होगा, उनमें इन पित्रों का बहुत लिखा है । वो आकर के बोलते हैं । बहुत तीर्थों पर पितृ बुलवाया जाता है । अभी तो आजकल कोई को बोलते भी होंगे । अच्छा, जब ब्राहमण आते हैं, वो समझते हैं हमारे पति की आत्मा आई । पति शरीर सहित तो आएगा नहीं । शरीर तो खत्म हो गया । जरूर पति की आत्मा आई है । तो ब्राहमण द्वारा पति को भोजन दिया... । ब्राहमण द्वारा ही देंगे । कायदा ही है । पति को बुलाया है । उस समय में जब बैठकर खिलाती है, वो किसका ध्यान धरती है? पति का । पति का शरीर तो चला गया, बाकी रही आत्मा । तो जरूर उनमें आत्मा का आहवान होता है, जो बैठकर खाते हैं । तभी वो कहते हैं तृप्त हुआ? तो आत्मा सच-सच बोलती है कि हाँ, मैं तृप्त हुआ । यानी यह ड्रामा में है । ये कहाँ से आई आत्मा उस ब्राहमण के शरीर में? भावना है ना, तो उनको भावना का थोड़ा भाड़ा मिल जाता है । बोल भी उसी के । यह ड्रामा में नूँध है पहले से । दो आत्मा कैसे हो गई? कहाँ से यह आत्मा आई और किसमें थी? क्या वो मर गया जो इसमें आई है और बोलती है । रसम-रिवाज यहां की है; क्योंकि बाबा जो यहां आते हैं वो भी तो इसमें आकर प्रवेश करते हैं और कभी कभी यहां बच्चों में भी प्रवेश करके किसको दृष्टि भी देते है; क्योंकि उनको सर्विस करनी है ना । कोई जिज्ञासु अच्छा है, बच्ची में इतनी ताकत नहीं है, उनका बहुत भला होना है, तो बाबा जा करके उनमें भी समझाने के लिए प्रवेश कर जाते हैं, क्योकि अभी बच्चे हैं ना । अभी पतित और पावन की तो बात ही नहीं है । पतित तो सभी हैं । प्रवेश करके मुरली भी चलाय देंगे, उनको बैठ करके दृष्टि भी दे देंगे, ध्यान में भी चले जाएँगे । तो शिवबाबा की याद में बैठते हैं । उनको यहां डायरेक्शन मिलता तो है कि शिवबाबा बैठेंगे । जब वहां ही उन लोगों को यह ब्रहमा का दीदार कराया है, श्रीकृष्ण का दीदार कराया है । जब कृष्ण का दीदार हुआ जैसे कि वैकुण्ठ में बैठे हैं । प्रिन्स देखते हैं, बालक देखते हैं । तो घर बैठे भी बाबा इस समय में साक्षात्कार करा देते हैं । तो इन्होंने कोई तपस्या थोड़े ही की है । ये बहुत हैं, ढेर । उन्होंने कोई नौधा भक्ति थोड़े ही की है जो उनको साक्षात्कार हुआ । बाप आया हुआ है तो आ करके वो बच्चों को सिखलाते हैं कि जाओ, ब्रहमा है, उनके पास जाएंगे तो तुमको वो वहां का मालिक बनाएगा, प्रिन्स और प्रिन्सेज बनाएगा । जाओ उनके पास । तो वो ब्रहमा का भी बहुतों को दीदार कराने वाला है । इनको थोड़े ही मालूम पड़ता है । बाबा कहते हैं कि ये सब मैं काम करता रहता हूँ । बहुतों को, ढेरों को कराता रहता हूँ । तो मैं आता हूँ ना, बच्चे! मैं कोई कृष्ण थोड़े ही हूँ । सन्यासियों के पास नाम बदलता है, कभी इनसे पूछें, तुम्हारा नाम तो बताओ । बाबा को याद भी तो नहीं आता है । कैसे नाम भेज दिया एकदम फट । कैसे रमणीक नाम भेज दिया । बाबा ने दिया है तो बाबा को सबका नाम याद भी भला होता है ना । यह नाम कैसे आ गया! यह भी वण्डर है । तो ये सभी नूंध वण्डरफुल है कि कैसे बाप आ करके बच्चों का नाम बदले, जो सन्यास करते हैं? वहां तो सन्यासी लोग बदल देते हैं । कृष्णानन्द, निर्विकारानन्द, फलाना । इनका नाम कौन रखे, जो सन्यास लिया? तो वण्डर है ना! वो तो फिर भी मनुष्य रखते हैं । ये बाप संदेश में ले आते थे इन सबका । यह भी नूंध है । ड्रामा में यह नूंध है, जो फिर से भी ऐसा ही होगा । तो बाप बैठकर यह समझाते हैं- बच्चों! ये सर्वव्यापी- सर्वव्यापी करते हो भला । वो कैसे सर्वव्यापी है? फिर क्या होता है? तुमको यह पता ही नहीं पड़ता है कि हम दिन-प्रतिदिन नीचे ही उतरते जाते हैं । बाप कहते हैं, यह माया की जो सारी झंझट है, जिसको दुःख कहा जाता है, अभी मैं आया ही हूँ तुमको सुखधाम का मालिक बनाने । चाहे सुखधाम का मालिक बनो और जैसा चाहिए तैसा बनो । सूर्यवंशी बनो, चंद्रवंशी बनो राजा बनो, प्रजा बनो गरीब बनो, साहूकार बनो, जो चाहिए सो बनो । जो नाटक का माण्डवा होता है ना, उसमें तुम्हें जो चाहिए सो टिकट लो, फर्स्ट क्लास लो, सेकण्ड लो, थर्ड लो, फोर्थ लो.. । सिन्धी मे कहते हैं- जेकी घुरजेई सो वट । किससे पूछते हैं? जगदम्बा से । जो चाहिए...तो मनुष्यों को तो मालूम नहीं है । वहां तो जाते हैं, जा करके कहते हैं- पति चाहिए, धन चाहिए, फलाना चाहिए । सन्यासियों के पास जो भी जाएगा कहेगा, हमारी बच्ची की शादी करनी है, यह करना है, हमको कोई प्रबंध करके दो । ऐसे, ऐसे आजकल शादी करने के दलाल बने हैं । साधु, संत, महात्मा बहुत बने हैं । कई ढेर बने हुए हैं । उनसे जाकर पूछते हैं- रिकमेंडेशन(सिफारिश) करो, ये आपके पास आता है, इनको कहो कि हमारी बच्ची को दिखला देंगे । फिर वो जो कहे, वो बेचारा गुरु कहे, वो ना माने, तो वो धर पड़ेगा एकदम । भाई-बंधु में ऐसे बहुत केसेस होते हैं । ......में तो बहुत है । पता नहीं गुजरात में भी ऐसे ही हो । आजकल देखो, मूत पलीती कपड़ धो, मंदिर-ठिकानों में जा करके वहां मूत पलीती का हथियाला बॉधते हैं, यह फर्क देखो । बाप बैठकर समझाते हैं । मंदिर में ग्रंथ के ठिकानों में जा करके एक दो को हथियाला बॉधते हैं मूत पिलाने के लिए और वहां नानक कहते हैं मूत पलीती कपड़ धोय । अमृत छोड़, विख के लिए यहां भला हथियाला क्यों बाँधते हो? अभी है तो नहीं जो बोले । अभी खुद बोलते हैं आ करके इनमें भी कि देखो, तुमको कोई समझाने वाला है, जिसको तुम अकाल तख्त भी कहते हो यानी बाप का तख्त भी मानते हैं ना । जो बाप कहते हैं मूत पलीती कप्पड़ धोय, असंख्य चोर हराम खोर भी । हराम खोर भी उनको कहा जाता है जो मूत पीते हैं । फिर उनका मंदिर नीचे चढ़ता नहीं क्यों? लक्ष्मी नारायण के मंदिर में क्यों जाकर हथियाला बाँधते हो? वो तो बिल्कुल ही पवित्र हैं, सर्वगुण सम्पन्न, सोलह कला सम्पूर्ण । तो भला मंदिर में कोई जा करके मूत पीने के लिए हथियाला बॉधते हो? बाबा बोलते हैं कि कितने नॉनसेन्स बुद्धि हैं । रिगार्ड भी इतना रखते हैं उनको, जो वहां जा करके मूत पीने के लिए हथियाला बांधते हैं । इस काम के लिए शिव के मंदिर में नही जाएंगे । हाँ, शायद होगी कोई धर्मशाला बाहर में; पर बाबा ने कभी सुना नहीं है । अक्सर करके ये जो मंदिर है ना, वहां बहुत करके ये शादियाँ-फादियां बर्बादियां होती हैं । तो बाप बैठ करके सब बातें समझाते हैं और कोई को न समझ में आवे, तो बाबा कहते हैं कि मेरे को और मेरी रचना को, ये जो झाड़ है । और झाड़ को जानने से लाडले बच्चे तुम सब कुछ जान जाएंगे । तुम आपे ही अपना पुरुषार्थ करेंगे कि अभी हमको कैसा बनना है, मेरे मे कोई खामी तो नहीं है; क्योंकि अभी चले लक्ष्मी और नारायण को वरने के लिए । अपने आइने में मुंह देखना है कि हमारे मे कोई विकार तो नहीं है? मैं औरों को भी आप समान बनाता हूँ, जो उनकी भी आशीर्वाद का प्लस होवे? वो प्लस भी तो मिलता है ना । अच्छा, हम घर में कोई ऐसी पाठशाला बनाता हूँ या खोलता हूँ, जो तीन पैर पृथ्वी का, खोल करके मैं किसको मुनष्य से देवता बनाने का कर्तव्य करता हूँ? घर-घर में मैं स्वर्ग-आश्रम बनाता हूँ? स्वर्ग द्वार बनाता हूँ? यह स्वर्ग द्वार है इस समय में । बाप आ करके स्वर्ग के द्वार जाने का रास्ता बताते हैं और समझाते हैं, जबकि स्वर्ग मे जाना है वाया शांतिधाम या निर्वाणधाम या मुक्तिधाम फिर से नहीं आएँगे । अब यह तो कोई जानते ही नहीं हैं कुछ भी । तो यहां क्या सिखला रहे हैं? इस समय में यह स्वर्ग का द्वार है । तुम यहां किसलिए आए हो, कि हम बेहद के बाप से स्वर्ग का मालिक बनें । तो कोई पढ़ाएगा ना । और तो कोई भी नहीं पढ़ा सके । और तो खुद ही सर्वव्यापी के ज्ञान में मरे पड़े हैं एकदम चटखाते में और ऐसे ही मर जाएँगे चटखाते में । सभी पाप की सजाएं खा करके मुक्ति में जाएंगे । पीछे वापस चले जाएँगे बेईज्जत होकर । तुमको तो बाप से पास विद ऑनर होना है । इतना करना है जो कभी तुम सजा ना खाओ । सजा ना खाने वाले आठ । डी सजा खाने वाले 1०० स्रिर्फ एड होते हैं, फिर और थोडी जास्ती 16,108 हो जाएँगे। नम्बरवार हुआ ना । फिर तो जितना सजा खाएँगे इतना पद कम मिलेगा । बच्चों को इतना सब कुछ समझा देते हैं बहुत अच्छी तरह से । अभी तो देखो, कितने बच्चे बैठे हुए हैं! ऐसे थोड़े ही है बाप जाए तो स्कूल में नहीं आएँगे । यानी स्कूल उड़ जाता है क्या? ऐसे कैसे हो सकता है! बच्चियां बैठती हैं, तुम लोगों को पढ़ाते हैं । मधुबन में बैठे हैं तो भी तो पढ़ाते हैं ना । वहां से भी टेप में मुरलियाँ आती हैं तो आकर सुनेंगे ना । नई-नई प्वाइंटस निकलती हैं ना! बहुत अच्छी अच्छी नई प्वाइंट्स निकलती हैं । बाप बैठ करके प्रश्न पूछते हैं, किसने कहा है सर्वव्यापी? गीता मे है । किसने गीता सुनाई? कृष्ण ने । झूठ, मैंने सुनाई थी । कौन कहते हैं कृष्ण ने सुनाई थी? ये सामने बैठे हैं बोल देते हैं एकदम । कौन कहते हैं? कृष्ण ने । कृष्ण तो प्रिन्स बना, उसने पास्ट में कर्म किया, जो प्रिंस बना । ऐसा कर्म किसने सिखलाया? जरूर बाप बिगर और कौन होगा जो स्वर्ग का. .शहजादा, मालिक बना सके । या कृष्ण ने अपने को बनाया? कोई तो श्रीमत मिली होगी । अच्छा, अभी टाइम हो गया बच्चो को । टोली बांटना शुरू कर दो । नहीं तो साढ़े आठ बज जाते हैं । अच्छा, गीत सुनाओ । स्कूल भी कौन सा? असुर से देवता बनने का । अरे, मालूम है कि बरोबर भगवान ने ज्ञान अमृत का कलश लाया, माताओं के ऊपर रखा । वो जो कहते हैं माता नर्क का द्वार है, बाप कहते हैं माता स्वर्ग का द्वार है । यहां जो माता आती हैं ज्ञान अमृत पीकर सबको स्वर्ग का रास्ता बताते हैं । जो नर्क का द्वार कहते हैं वो नर्क का ही द्वार बताते आते हैं । कोई को भी स्वर्ग का द्वार कभी बता ही नहीं सकते; क्योंकि सन्यासी खुद ही स्वर्ग में जाने वाले नहीं हैं । वो तो आएंगे, जब शंकराचार्य आएंगे । सो तो रजोगुण में, जब द्वापर होता है तब आते हैं सन्यासी लोग । वो निवृत्तिमार्ग वाले कैसे बैठ करके राजयोग सिखलाएँगे? ये सभी पढ़कर के और सभी को फॅसाते रहते हैं । बिचारे सन्यासियों को भी ले आते हैं । विलायत चाहती है भारत का प्राचीन ज्ञान और योग । तो प्राचीन ज्ञान और योग सन्यासी कैसे बता देंगे! वो थोड़े ही बताएंगे । वो तो और जा करके सबको ठगते हैं । जैसे कोई बहुत पढ़ा-लिखा होता है ना, आई०सी०एस० या बडा पढ़ा-लिखा जैसे बड़े आदमी होते हैं, जंगल में जाएँगे . .के बच्चों को देखेंगे, कहेंगे- देखो, बिचारे कैसे अल्लहड हैं एकदम । कुछ भी पढ़े-लिखे नहीं हैं । जैसे वो ऐसे समझते हैं तैसे तुम जो हो नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार, जो कुछ यहां बड़े-बड़े को देखते हैं, बडे-बड़े ऋषि-मुनि-महात्मा जिसको कहते हैं, जिनके आगे लाखों की भीड़ इकट्‌ठी होती है, तुम बोलते हैं- बिचारे जंगली हैं । अरे, ये बिचारे कुछ नहीं जानते हैं । एकदम और ही सबको बेमुख करते रहते हैं । यह धंधा करते रहते हैं । अच्छा, वो बच्चों को आने दो । थोड़ा जाकर कह दो वो ड्रिल सिखलाएगी । कैसे आजकल की ड्रिल बच्चियां सीखती हैं । चित्र भी दो और मिठाई भी दो । ये क्या है? ये समझाएं जब तब फिर दूसरी चित्र ले जाना । इनमें सब लिखा हुआ है । बाप से स्वर्ग का, राजधानी का इनहेरीटेन्स कैसे मिलता है । ये नारी से लक्ष्मी बनती है । बनी थी ना । कैसे बनती है? तुम बन सकते हो, अगर ड्रिल करेंगी तो । यह ड्रिल बहुत कुछ नहीं है, याद करना है- बाप को और वर्से को । इस ड्रिल से वो गवर्मेन्ट को तुम कुछ नहीं देंगी । देंगी कुछ? खाना देती है? पैसा देती है? देखो, इस थोड़ी ड्रिल से- बाप को याद करना है और बाप के वर्से को याद करना है । तुम 21 जन्म के लिए महारानी-महाराजा बन जाएँगे । इतना ईजी है ये । क्लास तो यहां का बंद हुआ । लास्ट क्लास कल सुबह को वहां सेन्टर पर होगा । बाबा कहते हैं कि बच्चों, जिनको पढ़ना है तो क्लास में ठीक से आना चाहिए । ऐसे नहीं कि बाबा आवे तो आना, मम्मा आवे तो आना । नहीं । तुम ब्राहमणों को बहुत कुछ काम करना है । अच्छा, बापदादा और मीठी मम्मा का मीठे-मीठे बच्चों को याद प्यार और विदाई, यहां । फिर कल मिलेंगे वहां । किसको कुछ पूछने का है, मिलने का है, तो बाबा टाइम दे दिया है- 11 बजे से 1 बजे तक, शाम को 5:30 से 6:00 तक । कोई भी बात पूछनी है तो पूछ सकते हो । साधारण बात है तो ये बच्चियों बहुत तीखी हैं । सब कुछ समझाय सकती हैं । वो जो काम करते हैं वो तुमको समझाया गया । यादव और कौरव क्या करत भय? पाण्डव क्या करत भय? सो अभी तुम समझते हो । गीता में कुछ भी नहीं समझ में आता है बिल्कुल ही । वो तो शास्त्र है, पढ़ते रहो तोते के मुआफिक । देखो, ये लोग ट्रा-ट्रा-ट्रा करते हैं, है कुछ भी नहीं । अच्छा, बापदादा और मीठी मम्मा का मीठे-मीठे बच्चों को याद प्यार और विदाई ।