10-01-1964     मधुबन आबू     प्रात: मुरली    साकार बाबा    ओम् शांति    मधुबन
 


हम मधुबन निवासियों की नमस्ते। आज शुक्रवार जनवरी की दस तारीख है। प्रात: क्लास में शिवबाबा की मुरली सुनते हैं।

ओम शांति ।
बाप बैठकर समझाते हैं ज्ञान और भक्ति के ऊपर; क्योंकि यह तो बच्चे अच्छी तरह से समझ गए हैं कि भक्ति से दुर्गति होती है और भक्ति सतयुग में नहीं होती है और फिर ज्ञान भी सतयुग में होता नहीं है, मिलता नहीं है । कृष्ण न भक्ति करते हैं और न ज्ञान की मुरली बजाते हैं । मुरली माना ही किसको ज्ञान देना, उसका ही नाम बहुत ऊँचा रख दिया है, क्योंकि गाया जाता है ना कि मुरली में जादू है । जादू क्या है? कोई तो जादू होगा ना । खाली मुरली बजाना, ये कोई जादू नहीं है, यह तो बहुत ही फकीर भी बजाते हैं । नहीं, यह गायन कुछ है । कृष्ण को तो कहा ही जाता है कि उसमें ज्ञान का जादू है । अज्ञान को तो कोई जादू नहीं कहेंगे । नहीं, यह मुरली को ही जादू कहते हैं । फिर भी मनुष्य हिर गए हैं कि यह कृष्ण मुरली बजाता था । मुरली की तो कृष्ण के लिए बहुत ही महिमा गाते हैं और बाप कहते हैं कि श्रीकृष्ण जो देवता थे और फिर कृष्ण जो मनुष्य भी थे, क्योंकि बाप ने समझाया है कि मनुष्य से देवता, फिर देवता से मनुष्य-यह होता रहता है । दैवी सृष्टि भी होती है और मनुष्य सृष्टि भी होती है । तो मनुष्य से देवता बनते हैं ज्ञान से । जब सतयुग है, उस समय ज्ञान का वर्सा मिला हुआ है । कभी भी भक्ति नहीं होती है । भक्ति होती है द्वापर से लेकर, जबकि मनुष्य देवता से मनुष्य बन जाते हैं, क्योंकि मनुष्य से देवता, तो फिर देवता से मनुष्य भी तो बनते होंगे ना! तो मनुष्य को हमेशा विकारी कहा जाता है और देवता को निर्विकारी कहा जाता है और यह बरोबर है कि देवताओं की सृष्टि को पवित्र ही कहते हैं । देखो, तुम अभी मनुष्य से देवता बन रहे हो । मनुष्य में ज्ञान नहीं है, इसलिए उनको मनुष्य कहा जाता है । यदि मनुष्य में ज्ञान है तभी उनको देवता कहा जाता है; परन्तु फिर ज्ञान कौन-सा? ज्ञान किसको कहा जाता है? एक तो 'पहचान' को भी ज्ञान कहा जाता है और फिर सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान, उसको भी ज्ञान कहा जाता है, क्योंकि भगत नहीं जानते हैं । दादा भी तुम्हारे साथ कहते हैं ना कि तुम, हम, सब जो हैं, उनमें ज्ञान तो था ही नहीं । ज्ञान से होती है सद्गति । फिर जब भक्ति शुरू होती है, तो उनसे कहा जाता है दुर्गति । इसलिए भक्ति को रात कहा जाता है, तो ज्ञान को दिन कहा जाता है । यह तो बुद्धि में बैठने के लिए सहज है ना । कोई को भी बैठ सकता है, दैवीय गुणों की धारणा भी हो नहीं सकती है, क्योंकि यहाँ भी देखते हो, जो ज्ञान की धारणा करते है उनकी चलन देवता जैसी बन जाती है, जिनमें कम धारणा होती है उनमें मिक्सचर हो जाते हैं । ऐसे नहीं कहेंगे कि पूरा असुर हैं, नहीं । यहाँ आ गया तो फिर उनको असुर नहीं कहा जाएगा; क्योंकि है ही इसकी बात । ये हमारे बच्चे हैं दैवी गुणों वाले और वो जो मेरे बच्चे नहीं हैं, मानते नहीं हैं, तो फिर नहीं हैं । ये भी कहते हैं-नहीं हैं । वो बाप नहीं मानते, तो बाप बच्चों को नहीं मानते हैं, क्योंकि वो गालियां देते हैं । कच्ची- कच्ची गालियां देते हैं । अभी तुम समझ तो सकते हो कि बरोबर जब ये मनुष्य हैं तो भगवान को गाली देते हैं, जब मनुष्य ब्राह्मण कुल में आते हैं तो फिर गाली बंद हो जाती है; क्योकि देवता बन जाते हैं । तो दिन में सदैव यह ज्ञान का विचार-सागर-मंथन करना चाहिए ना । स्टूडेंट्‌स, हमेशा अपने ज्ञान को उन्नति में लाते रहते हैं । अपना भी विचार करते रहते हैं । तो तुम बच्चों को भी विचार-सागर-मंथन करना चाहिए, जबकि ज्ञान तुमको मिलता रहता है, तो उसको कहा ही जाता है विचार-सागर-मंथन करने से उनमें से कुछ अमृत निकलेगा, मक्खन निकलेगा । अगर विचार-सागर-मंथन न करेंगे, तो बाकी क्या मंथन करेंगे । बाकी तो आसुरी ही विचार-मंथन करेंगे और उनसे कचड़ा ही निकलेगा । स्टूडेंट हो ईश्वरीय और यह जानते हो कि बाबा हमको जो पढ़ाते हैं वो कोई भी नहीं पढ़ाय सकते हैं; क्योंकि मनुष्य से देवता बनने की पढ़ाई सिर्फ बाप ही पढ़ाएंगे। देवता नहीं पढ़ाएंगे बाप पढ़ाएंगे; क्योंकि देवताओं को ज्ञान का सागर कहा ही नहीं जाता है । ज्ञान का सागर सिर्फ एक को कहा जाता है । दैवी गुण उनमें होते हैं, ज्ञान से होते हैं; परन्तु यह ज्ञान जो तुम बच्चों को अभी मिलता है, वो सतयुग में नहीं होता है । पीछे इनका जो फल है राज करना और जो दैवी गुण धारण करते हो, तो इनमें दैवी गुण हैं । तुम खुद इनकी महिमा करते हो बरोबर । कहते हो सर्वगुण सम्पन्न हो, सोलह कला सम्पूर्ण हो । ऐसे गाते हो ना । तो तुमको भी तो ऐसा ही बनना होता है ना । तो अपने से पूछना चाहिए- मेरे में सभी दैवी गुण हैं? या कोई भी आसुरी गुण है? आसुरी गुण है, तो निकाल देना चाहिए, तभी देवता बनेंगे । अगर नहीं निकालते हैं तो भले देवता बनते हैं, परंतु कम दर्जे के । जैसे मनुष्यों को कहते हैं- यह कम दर्जे का मनुष्य है । बातचीत इनकी करना ये कम दर्जे के मनुष्य हैं । अभी तुम दैवी गुण धारण करते हो । तुम जानते हो कि तुम बहुत अच्छी अच्छी बातें सुनाते हो । तुम जानते हो कि हम उत्तम दर्जे के बनने वाले हैं । इस संगमयुग को कहा ही जाता है 'पुरुषोत्तम संगमयुग', क्योंकि तुम पुरुषोत्तम बन रहे हो, अच्छे दर्जे के बन रहे हो । तो तुम्हारा वातावरण अच्छा होना चाहिए, तभी अच्छे दर्जे के गिने जाएंगे । छी: छी: मुख से निकले, जिसको झगडा-वगड़ा बनाना, तो कहा जाएगा कि यह कम दर्जे का मनुष्य है । यह वातावरण से ही मालूम हो जाता है । मुख से वचन निकले, तो भी देखते हैं किसको दुःख देने वाले हैं, तो यह कम दर्जे का मनुष्य है, उत्तम दर्जे का है । ये जो पुरुषोत्तम युग है उनमें ये उत्तम नहीं बनते हैं । देखो, कितने होते हैं, उत्तम नहीं बनते हैं । कितना कम दर्जे में चले जाते हैं । तो बच्चों को फिर चाहिए उत्तम दर्जे के बनें, क्योंकि बाप का नाम भी तो बाला करना है । यहाँ बहुत आते हैं, बाहर से भी आते हैं । अब कम दर्जे का घर बार बिगाड़ देंगे, लड़ाई झगड़ा करेंगे, कुत्ते जैसा काट देगा...... तो वो कम दर्जे का मनुष्य है, नहीं तो तुम्हारा मुखड़ा सदैव हर्षितमुख होना चाहिए । जो हर्षित मुख नहीं होते हैँ, तो फिर उनमें ज्ञान नहीं कहा जाता होगा । जैसे जैसे हर्षित मुख, क्योकि तुम्हारे मुख से रत्न निकलने के हैं । देखो, इनके मुख से रत्न निकलते-निकलते कितना हर्षित मुख हो गया है । आत्माओं से रत्न निकलते हैं ना । रत्न लेते थे, रत्न निकालते थे, क्योंकि रत्नों की लेन-देन का टीचर बनेगा । तो देखो कितनी खुशी । फिर क्या खुशी होती है, ये ज्ञान के रत्न जो हम लेते हैं, ये रत्न फिर सच्चे बन जाते हैं । ये हीरे-मोती-जवाहरात बन जाते हैं । ये नवरत्न की माला तो कोई हीरे-वीरे की माला थोड़े ही होती है । नहीं, यह रत्नों की माला है । कोई उनकी नहीं है.. । मनुष्य तो ये रत्न समझकर अंगूठियाँ वगैरह पहन लेते हैं । बाकी वो रत्नों की माला तो संगमयुग पर पड़ती है । वो जो रत्न हैं, वो थोड़े ही ये गहने बनते हैं । उनका थोड़े ही कोई माला वगैरह या जेवर बनते हैं । नहीं, वो रत्न हैं जो भविष्य में 21 जन्म के लिए मालामाल बनाते हैं; क्योंकि वहाँ ढेर जेवर बन जाते हैं, हीरे-जवाहर-मोती वहाँ कोई लूट तो सकते नहीं हैं । यहाँ तुम नूतन पहनो तो तुम बच्चों को कोई लूट ले जावे । तो अपन को बहुत बहुत बहुत समझदार बनाना चाहिए; क्योंकि जो कोई भी आसुरी गुण जिनमें होते हैं, वो आसुरी गुण जब निकलते हैं तो उसकी सिकल ही ऐसी हो जाती है । देखो, क्रोध है, तो तांबे जैसा उस समय में सिकल हो जाती है । देखा है । कोई बहुत क्रोध करता है तो उनकी सिकल tतांबे जैसी लाल हो जाती है । काम विकार तो मशहूर ही है कि काला बनाय देता है । जैसे कृष्ण को काला बना दिया है ना । ये क्यों? क्योंकि जब सांवरा था तो फिर विकार के कारण काला बना था । तो बच्चों को हर एक बात का बैठकर विचार-सागर-मंथन करना चाहिए कि हमको क्या बनना है? तो एकांत में पढ़ाई करनी चाहिए ना । वो तो पाई-पैसे की पढ़ाई है, यह पढ़ाई है अखुट धन की । तो पढ़ाई जो बहुत ऊंची है तो उनमें बहुत अच्छी तरह से अटेंशन देना चाहिए । तुम सुना होगा कि क्वीन विक्टोरिया का जो व़जीर बना था, गरीब था । बाल्डवेन शायद है, मैं समझता हूँ । वो गरीब था, दीया जला कर भी पढ़ाई पढ़ते थे । अभी वो पढ़ाई भी तो कोई रत्न नहीं है ना । यह पढ़ाई कोई रत्न थोड़े ही है । नहीं, यह भी तो पढ़ाई है, अक्षर पढ़ते हैं, नॉलेज है एक । यह नॉलेज भी साहूकार बना देती है, बड़ा पोजीशन बना देती है । वो पढ़कर जाकर क्वीन विक्टोरिया का प्राइम-मिनिस्टर बन गया । बिचारे के पास था कुछ नहीं । तो पैसा तो नहीं काम में आया ना, न पढ़ाई काम में आई । पैसा न था तभी तो उनका गाया जाता है । हिस्ट्री है कि दीया जला करके, आगे तो बिजलियॉ-विजलियॉ तो थीं भी नहीं, पढ़ाई की । पढ़ाई भी तो धन है ना परन्तु वो है हद का धन, ये फिर इनकी मुरली में बेहद का धन है । है दोनों पढ़ाई । सो भी समझ सकते हो कि बरोबर वो पढ़ते हैं, अल्पकाल क्षणभंगुर उस दिन के लिए, उस जन्म के लिए कहो । पीछे दूसरे जन्म में तो वो पढ़ाई फिर नए सिरे स्कूल में पढ़ो, जहाँ भी पढ़ो । ये धन कमाने के लिए तो वहाँ कोई पढ़ने की दरकार ही नहीं होती है । बच्चों को अकिचार धन मिल जाता है, ढेर । ये अविनाशी है ना । ये अविनाशी पढ़ाई है । पढ़ाई है धन, वो धन अविनाशी बन जाता है । पढ़ाई तक तो भला समझ लो ना बहुत धन था क्योंकि जब भक्तिमार्ग में आए, वाममार्ग में आए, रावण राज्य में आए, कितना धन था, कितने मंदिर बने हुए थे, हम जो बनाते हैं । उनसे बनाया नहीं था धन ज्ञानमार्ग में । पर पीछे बनाया है, बनाने के पीछे वो लोग आए हैं, पीछे आ करके लूटा है । तो कितने धनवान थे, बहुत धनवान थे । आजकल की पढ़ाई से कोई इतना धनवान नहीं बन सकते हैं । भले कितने भी अभी कहते हैं-मल्टीमिलियनेयर हैं, ये हैं, फलाना हैं; क्योंकि सो भी सिर्फ राज्य के लिए नहीं गाते हैं, नहीं, यहाँ इंडिया के लिए बहुत गाते हैं- .आगाखाँ था । यह जो बड़ौदे में सेन्टर है ना । बड़ौदे के लिए भी लिखता है अखबार मे- वन ऑफ द रिचेस्ट इन द वर्ल्ड । अभी तो तुम बच्चे जान गए हो कि हम वो पढ़ाई पढ़ते हैं, इसको मुरली कह दिया है । अभी कृष्ण तो मुरली जानते ही नहीं हैं, बाबा ने समझाया ना, न मुरली जानते हैं, न भक्ति जानते हैं । वो है उस मुरली का जो अविनाशी ज्ञान रत्न की मुरली सुनी है न, क्योंकि के गरीब था ना । गॉवड़े का छोकरा जाकर बना था ना । अभी विचार करो, जैसे बाबा ने वाल्डवेन की सुनाई ना कि बेचारा गरीब था, पढ़ करके प्राइम-मिनिस्टर बन गया । अभी. .भारत कितना गरीब है, और गरीब को ही तुम देखते हो, म्यूजियम में जाओ, यहां जाओ तो, साहुकारों को तो फुर्सत नहीं । वो अपना अहंकार है, देह-अभिमान-मैं फलाना हूँ- फलाना हूँ-मैं फलाना हूँ वो अहंकार उनमें रह जाता है । इनमें तो सारा अहंकार मिट जाता है कि मैं आत्मा हूँ । बाकी तो सब खत्म हो गया ना! अभी आत्मा के पास तो कोई हीरे नहीं हैं, जवाहर नहीं हैं, कोई धन नहीं है, दौलत नहीं है, कुछ भी नहीं है । वो तो बाप खुद ही कहते हैं कि देह के सभी सम्बन्ध छोड़. .. । जब यह आत्मा शरीर छोड़ती है, साहूकारी वगैरह सब खत्म हो जाती है । पीछे जब जाकर पढ़े-करे, तब फिर कुछ पैसा उनको मिले करे ना, या कर्म अच्छा किया होगा तो कोई की जा करके गोद मिलेगा, क्योंकि दान-पुण्य बहुत अच्छा किया होगा, तो कोई साहूकार के घर जन्म लेगा । तभी तो गाया जाता है ना- यह पास्ट जन्म का कर्म है जो इन साहूकार के पास जन्म लिया है वा पढ़ाई अच्छी पढ़ी है; क्योंकि ऐसी कुछ आगे भी नॉलेज का दान किया है या कॉलेज बनाई है या स्कूल बनाए हैं । उसका फल तो मिलता है ना । धर्मशाला बनाई है, तो भी उनको बहुत कुछ मिलता है, थे परन्तु वो मिलते ही हैं अल्प काल क्षणभंगुर, क्योंकि बाप ने समझाया कि यहाँ दान-पुण्य किया जाता है, सतयुग में दान-पुण्य नहीं किया जाता है । किसको करें? जबकि हैं ही सभी साहुकार, गरीब होता ही नहीं हैं, तो दान-पुण्य थोड़े ही होते हैं । इसलिए जो भी कर्म करते हैं तो अच्छा ही करते हैं, क्योकि वर्सा मिल गया । अभी का वर्सा तुमको मिलता है । तुम जो भी कर्म करेंगे, सो अच्छा ही करेंगे, विकर्म बनेगा ही नहीं, कोई का भी नहीं, क्योंकि रावण ही नहीं है ना । विकर्म गरीब का भी नहीं बनेगा । यहाँ साहूकार का भी विकर्म बन जाता है । विकर्म बनते हैं तभी तो हार्ट फेल, बीमारी-सीमारी वगैरह ये सभी होता तो है ना । यह कर्म विकर्म क्यों होता है? क्योंकि विकार मे जाते हैं ना, तो विकर्म बन जाते हैं, विकारी कर्म बन जाते है यानी जो भी कर्म करते हैं वो विकर्म बन जाते हैं । वहाँ विकार में नहीं जाते हैं, तो विकर्म कैसे बनेंगे? तो सारा मदार है ही विकार के ऊपर । तो यह है माया का अवगुण । इसको गुण तो नहीं कहेंगे ना । यह माया का अवगुण, रावण का अवगुण जो अब देखो, मनुष्य विकारी बन जाते हैं । बाप आकर पढ़ाते हैं । गॉड पढ़ाते हैं निर्विकारी बनाने के लिए । भगवान ऊपर से आते हैं निर्विकारी बनाने के लिए । भगवान बनाय सकता है? नहीं? माया से निर्विकार बनाते हैं, माया फिर उनको विकारी बना देती है । इसको युद्ध कहा जाता है ना । किनकी युद्ध? यह राम वंशी और रावण वंशी की । क्योंकि उन लोगों ने नाम ठीक नहीं रखा है, पर है तो ठीक ना । तुम बाप के बच्चे हो और वो रावण के बच्चे हैं । तो युद्ध है ना बरोबर और कितने देखो गिरते जाते हैं । तुम्हारे मे बहुत अच्छे- अच्छे, होशियार- होशियार बहुत, वो हार जाते हैं, क्योंकि माया प्रबल है । ऐसी ऐसी बातें सुनो तो एकदम तुम्हारे कान खराब हो जावें, परन्तु बाबा जास्ती सुनाते नहीं हैं, क्योंकि उम्मीद रखते हैं । फिर भी ऐसे भी अधम ते अधम । दूसरा दफा जाने से फिर उसको कहेंगे अधम ते अधम । उसका भी फिर उद्धार करना होता है । वो होना ही है जरूर । सारे विश्व का उद्धार होता है ना । तो बीच में गिरते-विरते तो बहुत हैं, ढेर गिरते हैं, एकदम चट खाते में चले जाते हैं । भले अच्छे अच्छे जो सेन्टर के हेड होकर बन जाते हैं, वो भी अधम ते अधम बन पड़ते हैं । किसको अधम ते अधम कहते है? जो अधम से अच्छा बन करके फिर अधम बन जाते हैं । ऐसे भी तो होते हैं । ये न समझो कि नहीं होते हैं । होते हैं । ऐसे अधम ते अधम का भी उद्धार करते हैं । अधम तो हैं ही सब रावण के राज्य में पर बाप आकर उद्धार करने की कोशिश रखते हैं ना और फिर गिरते हैं तो बोलते हैं- देखो, अधम ते फिर अधम । तो सजा भी बड़ी मिल जाती है, बहुत कड़ी मिल जाती है । बहुत अधम बन जाते हैं, पर उनका चेहरा इतना नर्म नहीं होता है । वो अधमपना खाता रहता है, खाता रहता है, खाता रहता है । जैसे तुम बच्चे कहते हो ना अंत काल जो जो सुमिरे तो सुमिरन रहता है ना । फलाना फलाना सिमरे । फिर वो अधम से अधम क्या सुमिरेंगे? उनकी बुद्धि में क्या आएगा? वो ही अधमपना आ जाएगा जो गिरे हैं । तो फिर उनका भी उद्धार करना है । फिर सतयुग मे तो आ जाएंगे ना । तो बाप बैठकर बच्चों को ये सभी नई बातें समझाते हैं, जो फिर कल्प के बाद सुनते हो । भक्तिमार्ग में ये सभी बातें होती ही नहीं हैं, नॉलेज-ज्ञान ही नहीं है, यह सृष्टि का चक्र कैसे फिरता है, तो कोई जनावर सुनेंगे क्या भला? मनुष्य ही तो जानेंगे ना । मनुष्य ही तो गायन करते हैं ना- सृष्टि का चक्र फिरता है । कैसा फिरता है, कितना समय लगाता है? अखण्ड है । जनावर तो मुख से कुछ नहीं कहते हैं ना । मनुष्य कहते हैं मुख से कि अधम बन गए हैं । बाकी कहते हैं जरूर । बाप ने समझाया ना मनुष्य तो वह भी मनुष्य है, यह भी मनुष्य है । कृष्ण को क्या कहेंगे? मनुष्य दैवी गुण वाला होने के कारण उनको देवता कहा जाता है । है तो मनुष्य ना । दूसरा फर्क तो नहीं है ना । सामने देखो,? है ? फर्क थोड़े ही है । यह भी मनुष्य, तुम भी मनुष्य । अभी तुम बच्चों को मालूम पड़ा कि यह....देवता कहने वाला, यह कैसे बनते हैं? फिर बनते हैं तो फिर कैसे गिरते हैं? यह सभी तुम बच्चों को अच्छी तरह से मालूम हो गया यानी जो विचार-सागर-मंथन करते हैं, उनको धारणा होती है, जो फिर मुरली भी चला सकें । बाकी जो विचार-सागर-मंथन नहीं करता है, तो बुद्धू का बुद्धू एकदम, क्योकि विचार-सागर-मंथन नहीं करते हैं । जो मुरली चलाने वाले होंगे, उनका विचार चलता होगा कि कल हमको क्या टॉपिक पर समझाना है? अभी जिसको आदत नहीं है वो क्या विचार-सागर-मंथन करेंगे! और विचार-सागर-मंथन ऑटोमैटिकली होता है । जैसे बाप ने कल भी समझाया ना, देखो हमारे पास आने वाले है उनमें ज्ञान नहीं है तो विचार-सागर-मंथन का ख्याल आएगा ना। जिनको समझाने का अच्छा हुल्लास होगा । ये आया इनको निश्चय नहीं होता है, मैं उनको समझा निश्चय करा देता हूँ फिर ये है उनके भाग्य के ऊपर, कोई करेंगे, कोई न करेंगे । 50 होगे तो उनमें से 5-7 तो बेशक कुछ न कुछ समझ जाएँगे या 10 समझ जाएंगे, बाकी 20-25 भी समझ जाएंगे और कोई नहीं भी समझ सकेंगे । वो भी उम्मीद रखते हैं कि अभी नहीं समझते हैं चलो, आगे तो चलकर समझेंगे । उम्मीद रखनी चाहिए ना क्योंकि उम्मीद रखना ही सर्विस करने का शौक है इनमें । थक नहीं जाते हैं । इनमे थकना नहीं है । देखते भी हो बरोबर कि दो-दो साल, एक-एक साल नहीं आते हैं, फिर आते हैं, तो क्या उनको ज्ञान नहीं देंगे? जरूर देंगे । भले कोई गिरा हुआ है, अधम ते चढ करके फिर अधम बना है । अच्छा, तुम्हारे पास विजिटिंग रूम मे आते हैं तो जरूर तुम उनको कहेंगे- तुम तो आगे आते थे । तो कहेंगे- हाँ, माया ने हराय लिया, अभी फिर आया हुआ हूँ । तो फिर आएंगे नहीं? बोलेंगे हराय लिया तो भाग जाओ? नहीं । ऐसे बहुत ढेर आते हैं, ढेर के ढेर आते हैं । वो खुद भी कहते हैं-मैं आता था, ज्ञान लेता था, फिर माया हराय लिया, छोड़ दिया । अभी फिर मेरे को आता है कि नहीं, ज्ञान तो बहुत अच्छा था । उस समय अच्छा लगता था, फिर हराय गया । स्मृति तो रखते हैं ना । जीत पहनना और हराने का नाम तो यहाँ होता ही है । भक्तिमार्ग में जीत पहनने का, हराने की बात भी कोई नहीं जानते है । आए भक्तिमार्ग में सुने, कभी भगवत् सुनी, फिर कभी रामायण सुनी । देखो, इतने नाम है ना उनका, इनका कोई नाम थोड़े ही है । यह गीता भी मनुष्यों ने शास्त्र बना रखा है । यह है ही ज्ञान । इसका कोई वास्तव में शास्त्र बनता ही नहीं है, अगर जो बनता है तो झूठ बन जाती है, क्योकि यह तो नॉलेज है ना, इनकी धारणा करनी होती है । इस शास्त्र को कोई पुस्तक नहीं कहा जाएगा । नहीं, इसका नाम ही कोई भी नहीं रख सकते हैं, परन्तु धर्म है, तो धर्म के लिए यह गीता का पुस्तक रचा हुआ है कि बाप ने आ करके पढ़ाया था । वास्तव में यह गीता है ही ज्ञान का पुस्तक, पर भक्ति की लाइन मे आ गया । झूठा हो गया ना, तो भक्ति लाइन में आ गया । नहीं तो वास्तव मे इस गीता शास्त्र की दरकार नहीं है, क्योंकि झूठा- झूठा शास्त्र कोई क्या करेगा, जिसमें कोई फायदा नहीं, इससे तो किताब पढ़ना अच्छा होता है ना । कॉलेज मे बैठकर पढ़ेंगे, 2-2 हजार, 3-3 हजार पगार मिल जाता है और गीता वाले को क्या मिलता है? हाँ, कोई को अच्छी तरह से बैठकर भगवान याद कराओ और अच्छी तरह से अर्थ भी समझाओ तो भगत आएँगे सुन करके थोड़ा इनको दो पैसा दे देंगे । फिर भी तो नाम रखा हुआ है ना शास्त्र । उसमें भी गीता का नम्बर वन और गीता का शास्त्र वास्तव में पढ़ते ही ब्राहमण हैं । तुम ब्राहमण हो ना । तुम्हारा गीता के ऊपर हक है ना, क्योंकि ब्राहमण ही पढ़ते हैं । वो सन्यासी, वो पंडित, कोई फलाना, कोई शूद्र, कितने मनुष्य पढ़ते हैं, नहीं तो पढ़ना है ब्राहमणों को और सीखते भी हो जब तलक यहाँ ब्राहमण न आए बने, तब तलक देवता नहीं बन सकते हैं । वहाँ तो सभी शूद्र वगैरह, मुसलमान, पारसी, हिन्दू, अंग्रेज वगैरह, सभी भाषाओं में है, सभी पढ़ते हैं । हर कोई वहाँ ब्राहमण थोड़े ही होते हैं । क्रिश्चियन में ब्राहमण होगा? पारसियों में ब्राह्मण होगा? मुसलमानों में ब्राह्मण होगा? नहीं, यह भारत में ही ब्राहमण होते हैं । सो भी कौन से ब्राहमण पढ़ते हैं, ये जो ब्रहमा के बच्चे पढ़ते हैं । ब्राह्मण तो बहुत हैं, ढेर हैं । ब्राह्मण भी होते हैं । थे सारस्वत ब्राह्मण और वो जो अजमेर में रहते हैं, उनको पुष्करणी ब्राह्मण कहते हैं । वो धामा खाने वाले हैं और ये पाठ सुनाने वाले हैं । तो ये सभी मीठी-मीठी बातें तुम जानते जाते हो, जिसकी कोई दरकार नहीं है । दरकार तो है सिर्फ अलफ और अलफ को याद करना जिससे बादशाही मिलती है । तो इसलिए जब भी तुम बच्चों को कोई भी मिले तो उन्हे कहो कि अलफ को याद करो । अलफ माना अल्लाह यानी बाप । अलफ को ही ईश्वर कहा जाता है । देखो यह अलफ है ना । बे फिर कैसे होंगे? यहाँ से मिल करके यहाँ हो जाएंगे बे-बादशाही । अल्प देखो, सीधा-सीधा अलफ । अलफ को एक भी कहा जाता है और बस एक ही है भगवान, बाकी सब हैं बच्चे । अलफ माना अलफ होता है ना ... बे तो होता नहीं है ना । बाबा बादशाही कमाते हैं? ऐसे बनते हैं? नहीं, अलफ तो अलफ ही रहते हैं । तुमको ज्ञान भी देते हैं, अपना बच्चा भी बनाते हैं और नॉलेज भी देते हैँ और तुम ये नॉलेज लेते हो । यह भी बहुत खुशी में रहना चाहिए कि बाबा कैसा मीठा! आय करके हमारी कितनी सेवा करते हैं! हमको बरोबर इस विश्व का ऐसा मालिक बनाते हैं! फिर बाप इस विश्व में जहां हम फिर आते है, वहाँ आते ही नहीं हैं । जो पवित्रता की जगह है वहाँ आते ही नहीं हैं । क्यों नहीं आते है? यह तो गीत है ना-जब पावन होते हैं तो कोई बुलाते नहीं हैं, जब पतित होते हैं तो बुलाते हैं । पावन होकर क्या करेगा आकर? तो उसका नाम ही रखा हुआ है पतित-पावन । पतित दुनिया को पावन बनाना, तो पुरानी दुनिया को नई दुनिया बनाना । उनकी ड्यूटी या कहें पार्ट बजाने का, बस यही है । उसका नाम शिव ही शिव है । उसके शरीर का नाम भी.. यह तो फलाने का नाम है ना । अगर ब्रहमा का नाम पड़ता तो भी मनुष्य का नाम पड़ता है ना । शिव और शालिग्राम । शालिग्राम कहा जाता है बच्चों को । फिर नाम है, शालिग्राम कहो और रुद्र कहो । इसकी भी पूजा होती है, जिनकी समझ अभी तुमको मिलती है, नहीं तो जो पूजा करने वाले होते हैं रूद्र यज्ञ रचते हैं, उनको ये सब कुछ मालूम नहीं है । ऊंचे ते ऊँच जिनका वो रथ है उनकी भी तो पूजा होनी चाहिए ना । क्योकि ऊँचे ते ऊंचा भगवत, उनकी भी तो पूजा होनी चाहिए । तो पूजा किसकी करें? लेकिन देवियों के चित्र तो बहुत फर्स्ट क्लास-फर्स्ट क्लास बनाते हैं, हीरे-मोती-जवाहर वगैरह देते हैं और उनकी क्या पूजा करें! बस, मिट्‌टी का बनाया और छोड़ वाली मिट्‌टी का बनाया, क्योंकि उसका शेप तो मनुष्य का या देवी का या देवता का तो बनाते नहीं हैं । उनमें तो मेहनत लगती है और लिंग बनाने मे क्या मेहनत लगती है! उनकी पूजा में भी कोई मेहनत नहीं लगती है । मुफ्त में मिलता है । और कोई चित्र मुफ्त मे नहीं मिलते हैं । पता है, ये लिंग कहाँ से आते हैं, ये पत्थर हैं ना, बह करके, घिस-घिसकर और गोल बन जाते हैं । फिर उनमें जो बहुत गोल बन जाते हैं, उनको ले आते हैं, उनमें सोने का भी थोड़ा-थोड़ा रहता है । बाकी वो ही पत्थर हैं । फिर वो पत्थर घिस भी जाते हैं ना । तो कोई थोड़े कम गोलाई वाले रहते हैं, उनको घिस करके एकदम पूरा अंडा बनाय देते हैं । अंडे का भी तो मिसाल दिया है ना- अंडे मिसल आत्माएं जो ब्रहम महतत्व में निवास करती हैं, इसलिए ऊपर नाम पड़ गया हैं-ब्रहमाण्ड । अंडों के रहने की जगह ब्रहम महतत्व । तुम बरोबर ब्रहम महतत्व में अंडे बनकर रहते हो ना । बाप कहते हैं ना-तुम ब्रहमाण्ड के मालिक भी बनते हो, जैसे मैं बनता हूँ और फिर विश्व के मालिक भी बनते हो । तो ये सभी जो भी बाप समझाते हैं, तो पहले- पहले समझानी देनी है बाप की । बाप को याद सब करते हैं । शिव को बाबा जरूर कहते हैं । एक, शिव को बाबा कहते हैं, दूसरा, ब्रहमा को बाबा कहते हैं । प्रजापिता ब्रहम! तो सारी प्रजा हो गई ना । इसलिए इनको कहते हैं-प्रजा का ग्रेट-ग्रेट-ग्रैंड फादर है, क्योंकि प्रजा शुरू से होती है देवताओं की, पीछे भिन्न- भिन्न होती जाती है । तो ये ज्ञान बच्चों की बुद्धि में यथार्थ रीति से है ना । यूं तो ब्रहमा प्रजापिता तो बहुत कहते हैं, पर उनको यथार्थ थोड़े ही कहेंगे-कैसे हैं प्रजापिता ब्रहमा? किसने बनाया है? किसका बच्चा है? कोई भी कभी देखा है, ब्रह्मा किसका बच्चा है? तुम कहेंगे-हॉ परमपिता परमात्मा शिव ने उनको एडॉप्ट किया । तुम्हारे से बहुत पूछते होंगे ब्रह्मा का बाप कौन है? क्योंकि शरीरधारी है ना । तो शरीरधारी तो सभी कहते हैं कि हम सभी ईश्वर की औलाद हैं । अभी ईश्वर की औलाद तो समझना चाहिए आत्मा है । वो कहते हैं हम ईश्वर की औलाद हैं, फिर जब शरीर मिलता है तब किसकी औलाद बन जाते हो? फिर कहते है-ये प्रजापिता ब्रह्मा की एडॉप्शन हैं । वो एडॉप्शन को नहीं कहेंगे । आत्माओं को परमपिता परमात्मा ने एडॉप्ट किया है, ऐसा नहीं कहेंगे । मनुष्यों के लिए कहेंगे । देखो, तुमको एडॉप्ट किया है ना । प्रजापिता ब्रहमा, फिर तुम ब्रह्माकुमार-ब्रह्माकुमारी । तो यह हुआ एडॉप्शन । शिवबाबा एडॉप्ट नहीं करते हैं । वो तो अनादि हैं । इतने सभी एक्टर्स, जब यह नाटक बना है वो तभी की बात है कि आत्मा भी बनी, आत्माओं को फिर शरीर मिला, फिर सबको पार्ट मिला, आत्मा को पार्ट मिला, जो शरीर से बजाना है, यह अनादि परम्परा से चला आता है । फिर उनकी कोई भी शुरुआत नहीं कह सकते हैं । न शुरुआत, न एण्ड, क्योकि जब मनुष्य समझाते हैं कि दुनिया की एण्ड होती है ना, तो एण्ड हो गई, खेल खलास हो गया, फिर बनेगा कैसे? इसलिए एण्ड नहीं होती है । ये पार्ट चलता ही चलता है, ये अनादि है, पूछने की दरकार ही नहीं रहती है, समझाय सकते हैं । शरीर लिया- कब बनी? आत्माओं ने पहले-पहले शरीर कैसे लिए? पहले-पहले ये शरीर की बात नहीं । प्रलय होती ही नहीं है, तो पहले-पहले की बात ही नहीं निकलती है । यह भी प्रलय का बड़ा गपोड़ा हुआ । समझा ना! वहाँ मनुष्य बहुत थोड़े छोटे, जैसे प्रलय हो गई, ऐसे कह सकेंगे, क्योकि प्रलय तो माना प्रलय हो जाता है । यहाँ तुम कहेंगे जैसे प्रलय हो गई, क्योंकि अभी यहाँ 500 करोड मनुष्य, 60 लाख । वो तो बहुत थोड़े हो गए ना, तो इसको कहा जाएगा- तो जैसे प्रलय हो जाती है और तुमको क्या देखने मे आएगा हाँ, दूर-दूर सब पानी-पानी पानी पानी पानी । ये सभी पानी मे अन्दर चले जाएँगे ना । ये पानी-पानी हो जाएगा । वहाँ पहाड़ियां-वहाडियॉ नहीं । पहाडियाँ वो एक ही चीज देखने मे आएंगी, नहीं तो जलमय देखने में आता है । भारत जलमय होता नहीं है । तो ये सभी बातें समझने की हैं । अभी यह तो विचार-सागर तो, ब्रहमा तो विचार-सागर नहीं करता है ना । वो तो बाबा में जो ज्ञान है वो इमर्ज होता जाता है । फिर ज्ञान के बाद जब शुरू करेंगे, तो जैसे शुरू किया हुआ है, तो शुरू करते-करते पिछड़ी में बन्द हो जाएगा । और दूसरी तरफ कहते हैं-एक सेकण्ड मे जीवनमुक्ति मिल सकती है । तो वो है बरोबर, समझ की बात है । अच्छा, बीज, तो झाड़ सारा बुद्धि में आ गया । फिर उनका विस्तार करने से तो बड़ा टाइम लग जाता है । मनुष्य को झाड़ का थोड़ा-थोड़ा बैठकर समझाने से तो बहुत मुश्किल हो जावे और सालों-साल झाड़ के पत्ते कोई गिने भी नहीं । अभी भी गपोड़ा मारते हैं । क्या कोई मनुष्य गिन सकेगा? ये गिनती कोई थोड़े ही होती है । निकलते जाते हैं, पढ़ते जाते हैं, गुम होते जाते हैं, निकलते रहते हैं, कोई थोड़े ही एक्जेक्ट सभी बता सकते हैं । तो ज्ञान तो तुम अभी समझ गए कि बाबा जब से आते हैं तब से ज्ञान शुरू होता है । पहले जैसे कि ये पढ़ते हैं-अल्फ बे, फिर मे, ते, फिर पहला पौड़ी दूसरा पौड़ी तीसरा पौड़ी चौथा पौड़ी । तो देखो कितना समय लग जाता है । जो तुम सब पुस्तकें पढ़ जाते हो, सब किताब पढ़ जाते हो, सब तुम्हारी बुद्धि में सारा सृष्टि का, बस बीज-झाड़ । तो ये हद के, ये बीज बेहद के, जिसकी पाँच हजार वर्ष आयु है । बाकी बीज के कोई लाखों वर्ष थोड़े ही होते हैं । तो अभी तुम समझते हो कि अभी हम समझदार बने हैं । क्या समझदार बने है? हम बाबा को भी जानते हैं और ये सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त, ड्‌यूरेशन, मुख्य एक्टर्स वगैरह को जानते थे. जो कोई भी नहीं जानते थे, हम भी नहीं जानते थे । तो बस, इस नॉलेज को तुम ही कहेंगे ना ऐसे । और तो वो ही नॉलेज पढ़ते रहते हैं, जो जन्मजन्मांतर पढ़ते आते हैं । तुम पढ़के इस जन्म में, 21 जन्म मे पढ़ते हो? नहीं । वो न जानते थे तो जैसे निधनके थे, लड़ते-झगड़ते थे । अभी भी जो अच्छी तरह से जानते हैं वो आपस में कभी नहीं लड़ेंगे-झगड़ेंगे । अच्छा, आज टोली क्या है? बहुत पुरुषार्थी, मेल या फीमेल कोई भी आवे जो बहुत पुरुषार्थ करते हैं । कोई भी पुरुषार्थ करने वाला नहीं है? समझाते हैं कि नहीं देखो, तो भी देखने बिगर रहते नहीं हैं । इसको न देखकर, यह सामने बाबा को देखो, फिर भी कुछ न कुछ जो आदत पड़ी हुई है ना, तो ऐसे कहेंगे-नजर पड़ जाती है उसके ऊपर । यह भी प्रेक्टिस करनी है कि नजर न पड़े । बाबा कहते हैं ऐसे ही मुझे देखो सामने । भोग की कोई भी चीज खाने की बाहर से नहीं आनी चाहिए । वो पाउथी हो जाती है । पाउथा भोग कभी थोड़े ही लगाया जाता है । फल को कहा जाता है कि वो पाउथा नहीं होता है । तो कभी भी कोई बाहर की चीज आवे, तो भोग नहीं लगाना चाहिए, बल्कि तुम बच्चे हो उनके, तो जब शिवबाबा को भोग नहीं लगाते हैं, तो यह क्यों लगावे? तो ये जो वहाँ से मिठाई बना करके आता है, वो तो बहुतों के हाथ लगते हैं, ये धक्का खाती है तो पाउथी हो जाती है । तो पाउथी चीज भी भोग नहीं लगाई जाती है । इसलिए भोग सदैव ताजा बनें । उनको लिख देवें कि भोग किसी का भी नहीं लगेगा, जो बनाकर आएगे । वो ताजा बनेगा । देखो, गुरुद्वारा है, रोज प्रसाद बनता है । सिवाय...प्रसाद वहाँ कोई भी चीज नहीं लगती है और बहुत शुद्धता से ले आते हैं । अच्छा, श्रीनाथ द्वारे मे प्रसाद लगता है, वो भी ताजा । मिठाई फिर प्रसाद हो करके फिर बांटी जाती है । वो प्रसाद ले करके चले जाते हैं समुद्र पर । दिन बहुत लग जाते हैं । अभी तुम हो सभी शिवबाबा के बच्चे । जैसे शिव को नहीं वो छी:-छी: लगानी चाहिए, वैसे वास्तव में ये भी नहीं लगानी चाहिए । मिठाई वगैरह कुछ भी आवे, तो ताजी बने, ताजी लगे और तुमको भी भोग ताजा लगे । सो बनाते हैं । (किसी ने कहा- भोग हमेशा ताजा लगता है । ताजी ऐसे टोली खिलाते हैं) । कुछ भी भोग ऊपर का बन सकता है, भोग 50 रुपये का भी बन सकता है, 100 का भी बन सकता है ताजा । सिकीलधे रूहानी बच्चों प्रति रूहानी बाप व दादा का दिल व जान, सिक व प्रेम से, मेरे को देखो सभी याद आते हैं, सिर्फ तुमको देख करके नहीं कहता हूँ, देखता तुमको हूँ परन्तु बाबा कहते हैं ना-रूहानी बच्चे । पीछे ये नजर पड़ती है दूर दूर दूर दूर, फिर जैसे गायब हो जाते हैं । तो मैं भी जब देखता हूँ तो बच्चे- बच्चे बच्चे बच्चे, पीछे पहुँच गया दूर-दूर हो जाते हैं बहुत, परन्तु दिल में यह है कि बरोबर सभी बच्चों को यादप्यार क्योंकि बच्चे तो हैं ना सब । विराट के तरफ में भी बच्चे अनेक, क्योकि सब आत्माओं की सद्‌गति होती है । जो भी आत्माएं हैं, उन सबका कल्याण करना है । देखो इस समय का ये डिटेल में बैठकर समझाना-हॉ ये जो कहने वाले हैं श्री-श्री - 1000 या 108 जगत्‌गुरू । अभी जगत्‌गुरू को ये लोग कभी याद थोड़े ही करते होंगे । नहीं । यह बाबा जो सच्चा है ना, वो ये याद करता है तब जो भी आत्माएँ हैं सर्व की सद्‌गति होनी ही है । उनके बुद्धि मे कभी ये बातें बैठेंगी ही नहीं, जो बैठ करके समझावे कि मैं सबका बाप हूँ और मैं सबकी सद्गति करता हूँ और फिर भी कहते हैं कि मैं सर्वव्यापी हूँ । तो बोलेंगे-मेरा सभी जगत्‌गुरू हो गए, अगर सर्वव्यापी है तो । तुम थोड़े ही हुए ।