10-01-1964     मधुबन आबू     रात्रि मुरली    साकार बाबा    ओम् शांति    मधुबन
 


हेलो, गुड इवनिंग यह दस जनवरी का रात्रि क्लास है।

ऑफिस का काम बुद्धि मे पड़ा हुआ रहता है ना, तो वो निकल जाता है, जबकि पहाड़ों पर घूमने-फिरने जाते हैं । ऑफिस में रहने से उनकी बुद्धि में ऑफिस का काम रहता है । तो उसको कहते हैं, बुद्धि से ये निकल जावे तो बुद्धि रिफ्रेश हो जाएगी, खयालात से फ्री हो जाएगी । उसको कहा जाता है रिफ्रेश होने के लिए, थकावट दूर करने के लिए, ऐसे भी कहेंगे । यहाँ भी तुम आते हो, आधा कल्प की थकावट दूर करने के लिए, क्योंकि भक्तिमार्ग की बहुत ही मेहनत की हुई है ना । बच्चों को तो नहीं जानते हैं, ज्ञान ही नहीं जानते हैं । बच्चों को सिर्फ भक्ति भक्ति । भक्ति में जो ये शास्त्र पढ़ते हैं उनको भी भक्ति कहेंगे, वो ज्ञान तो कहेंगे ही नहीं, क्योंकि ज्ञान मिलता ही है पुरुषोत्तम संगमयुग पर । अब ये सारा भारत, सारी दुनिया, सारी दुनिया नहीं कहेंगे, भारत को खास कहेंगे, क्योंकि वो जास्ती पत्थरबुद्धि है ना । वो तो अभी भी थोड़ा यहाँ होगा ना, तो बोलेंगे विनाश होता है, क्योंकि उनकी बुद्धि मे भी यह है कि हमारे पास ये जो सभी सामान है सो विश्व को विनाश करने के लिए है । तो दुनिया विनाश होती है तब जब उसके पहले फिर नई दुनिया स्थापन होवे । सारी विश्व सदैव खतम तो नहीं होती है, दुनिया तो है ही है । वो लोग समझते हैं कि कोई दुनिया एकदम खतम नहीं होती है, अभी चेंज होती है जरूर दुनिया में क्योंकि यह कोई पैराडाइज तो नहीं है । यह कोई नई दुनिया तो नहीं है । हेविन तो है नहीं । हेल है माना ही वो लोग समझते हैं कि पुरानी दुनिया है । न्यू वर्ल्ड, ओल्ड वर्ल्ड सो तो तुम बच्चों को यहाँ अच्छा समझाया गया है कि न्यू वर्ल्ड क्या होती है, ओल्ड वर्ल्ड क्या होती है और न्यू वर्ल्ड ओल्ड वर्ल्ड कैसे होती है । यह सबक सिर्फ तुम ब्राहमणों की बुद्धि में है । दूसरों को क्यों नहीं? क्योंकि तुमको विस्तार सहित, डिटेल सहित समझाया गया है । इसलिए तो तुम बच्चों को स्मृति में ये रखना है कल्पवृक्ष न्यू और ओल्ड । न्यू को कहा ही जाता है सतयुग । ओल्ड को कहा जाता है कलहयुग । अभी यह बात कोई स्मरण नहीं करते हैं, क्योकि इनका पूरा विस्तार किसकी बुद्धि में नहीं है । तुम्हारी बुद्धि में है तो भी नंबरवार पुरुषार्थ अनुसार है । सबकी बुद्धि मे विस्तार से नहीं है । अगर किसको नंबरवार पुरुषार्थ अनुसार थोड़ा बहुत भी है तो भी समझाने के लिए जो रिफाइननेस चाहिए, जिससे मनुष्य जल्दी समझ जाए, वो अभी तलक नहीं है । पुरुषार्थ करके ऐसे रिफाइन बन रहे हो । ऐसे दिल कहती है कि ऐसी प्लैन से किसको समझावे जो झट उनकी बुद्धि में बैठ जावे- यह तो बिल्कुल ठीक कहते हैं । बेहद के बाप से नई दुनिया ही होती है और उनका राज्य मिलता है । पुरानी दुनिया को कहेंगे- छी: छी: राज्य, जनावर राज्य । तो है बहुत समझने की बातें । थोड़ा इशारा देना पड़ता है । तो जो भी पुराने अच्छे होंगे, उनको इशारा मिलने से ही झट उठाय लेंगे- ये तो राइट बात है, 84 जन्म भी ठीक है, सत-त्रेता-द्वापर-कलियुग भी ठीक है, नई दुनिया और पुरानी दुनिया भी जरूर है । तो कोई ऐसे निकलेंगे जो झटपट उठाय लेंगे । ये तो तुम भी तो बहुत ही हो । तुमको भी तो निश्चय है । पक्का निश्चय है वो तो छूटते रहेंगे । कच्चे शायद टूट भी पड़े या माया तोड़ डाले । ये भी कहते हैं तब जबकि समझते हैं कि बहुत टूट गए हैं, तब ही फिर कहते हैं कि हाँ, शिवभगवानुवाच है । आश्चर्यवत् भागन्ति मरन्ति ऐसे गाया जाता है ना । तो यहाँ भी देखते हैं कि ऐसे होते हैं । यूँ भी समझा जा सकता है कि लड़ाई के बीच में मारामारी तो होती है दोनो तरफ । तो यहाँ अपन कोई मारामारी नहीं उठाते हैं, बन्दूक से मारना किसको आदि । यानी ये जरूर होता है कि मनुष्य सृष्टि में मनुष्य माया से मर करके ईश्वर के बनते हैं । फिर ईश्वर से मर करके माया के बनते हैं । देखो, यहॉ भी अभी भी जो ईश्वर के बने हैं फिर माया के बन जाते हैं, तो उसको फिर कहा जाता है मर गया । इसको जिया-मरना कहा जाता है । तो एडॉप्ट किया फिर एडोप्शन को कैंसिल कर दिया । कोई डायवोर्स भी कहते हैं, कोई फारकती भी कहते हैं । फारकती को ही डायवोर्स कहा जाता है । तो ये भी समझा जाता है कि ये होता है और विवेक भी कहता है कि माया जो इतनी बड़ी प्रबल है, तो जरूर बहुतों को तूफान में ले आती है, छुड़ाती है । बाबा के गोद से निकल करके माया के गोद में चले जाते हैं । इससे हम समझते हैं कि माया प्रबल है । नहीं तो ईश्वर की गोद से कौन छुडाय सके । परन्तु देखो, है माया। जो टेम्प्टेशन(प्रलोभन) दे करके । बच्चे भी यह समझते हैं कि हार-जीत तो होती है । नाम ही है हार-जीत का खेल । तो अभी जीत या हारे हुए हो ना सभी । किससे हारे हुए हो? कहेंगे- ये पांच विकारों रूपी रावण से हारे हुए हैं । फिर जीतने के लिए तुम पुरुषार्थ कर रहे हो । फिर चाहते हो विशाल बुद्धि में बेहद की बुद्धि में । जीतने तो सभी समय पर हैं । हमेशा नहीं जीतते रहेंगे । आखिर मे जीत हमारी है, परन्तु बहुत आवे, बाप का बने फिर उसका जाकर बने । इसका बने फिर उनका जाकर बनें । तो बच्चों की बुद्धि में ये बैठा हुआ है की अभी जिसके लिए कहा जाता है बाप के बने हैं तो बाप का बनना भी पक्का चाहिए ना । ये है ही माया और ईश्वर । ये उनका है हार-जीत का खेल । सो भी देखते हो कि हार कैसे होती है, कितनी माया टेम्पटेशन । ऐसी टेम्पटेशन ऐसी टेम्पटेशन ऐसी टेम्पटेशन देती है जो देखा गया है कि जो ध्यान वगैरह में भी जाते हैं उनका भी खेल खत्म हो जाता है । अच्छी-अच्छी बच्चियाँ थीं ना अपने पास, जो भाषण भी करती थीं । सबसे अच्छी छोटी बच्ची गिनी जाती थी (किसी ने कहा-जानकी की छोटी बहन) खरी भी थी । वो अभी भी बहुत खरी है । तुमने देखा है उनको?(किसी ने जवाब दिया अभी नहीं देखा है) । नहीं देखा है अभी? जब से गई है उसके बाद नहीं देखी है? बाबा के पास आई थी, आकर रही थी, जब हम मारवाड़ी के पास हाम्बीरोड पर शान्ति निकेतन में था; तब आई थी । ये करोड़पति है अभी । कम नहीं है । बड़ी खुश रहती थी । हमेशा डांस करती थी, खाती थी, बातचीत करती थी । वो खुशी और ये बातें भूल गई थी । अब अमेरिका मे भी है. जाती है और अमेरिका का दूसरा भी एक है, वहाँ भी जाती है । वहाँ उनको सोना बहुत मिलता है । ढेर । अभी तो बच्चों वाली हो गई है ना । आगे आई थी जब हम शांति निकेतन में थे । बच्चों को बुद्धि में बैठा हुआ है कि हम 84 जन्म चक्कर लगा करके अभी पूरा किया है । फिर वो मुरलियॉ-वुरलियॉ थोड़े ही कोई याद रहती हैं । एक तो पुरानी हो गई, नई सुनी नहीं, रिफ्रेश हुए नहीं (...सिंध मे ही रहते थे भागे नहीं थे, उसके पहले की बात है) । वहाँ जो आते थे सभी सिंधी शायद कोई बाहर वाले भी आते हों देख करके औरों को । बाकी घर में तो बहुत करके सिंध के ही थे । ऐसे नहीं कि नहीं । वो तो बाबा की याद है । वो तो फिर भी पढ़ाई है । याद और पढ़ाई में फर्क है ना । याद माना माँ-बाप की याद । पढ़ाई माना किताब, जमेट्रिया वगैरह उसके बीच में होती है । सहज तो बाप की याद है । पढ़ाई अच्छी तरह से टाइम लेती है, परन्तु यह याद डिफीकल्ट हो पड़ी है और ज्ञान ईजी हो गया है । कभी कोई ऐसे नहीं लिखते हैं बाबा को- बाबा आप जो सुनाते हो वो भूल गए हैं। वो तो सुनाते हैं, बाकी याद भूल जाती है। बापदादा की यादप्यार और गुडनाइट । रूहानी बाप की नमस्ते । तो यह है जिससे हम स्वर्ग के मालिक बनते हैं । तो पढ़ते हैं, तो जरूर कोई कम-जास्ती मार्क्स उठाएँगे ।