12-01-1964    मधुबन आबू    रात्रि मुरली    साकार बाबा    ओम शांति    मधुबन


गुड इवनिंग ये बारह जनवरी का रात्रि क्लास है।

घर को छोड़ कर आएं हैं और दूसरे, बापदादा के घर में आए हैं । तो जरूर उनको याद करते होंगे, अर्थात् घर छोड़ा तो सारा परिवार छोड़ा । फिर यहां आ करके खाना-पीना-बैठना एक के घर में और याद करना दूसरे को, ये तो ठगी हो जाएंगी । क्यों? तो बाप ने समझाया है- एक होती है अव्यभिचारी याद, दूसरी होती है व्यभिचारी याद । व्यभिचारी माना बहुत मित्र-सबंधियों को याद करना । ठीक है ना । कोई होते हैं जो कोई को भी याद करें और कोई होते हैं नहीं, हमको तो एक, दूसरा न कोई । कहते हो ना बरोबर । तो एक माना वो हो गया अव्यभिचारी याद । अभी दूसरे कोई की भी याद पड़ती है तो हो जाती है व्यभिचारी याद । सुनना भी ऐसे होता है । बाप ने समझाया है बहुत दफा कि भक्ति भी अव्यभिचारी शिव की और फिर औरों को याद करना, वो हो जाती है व्यभिचारी भक्ति । देखो, भक्ति में भी ऐसे ही है । याद करना तो एक को याद करना, क्योंकि अभी तुम बच्चों को ज्ञान मिला वो एक तो हमारा कमाल करके विश्व का मालिक कर देते हैं, इसलिए जो याद करते हैं वो एक को ही याद करना चाहिए । तुम तो जानते हो बच्चे कि बहुतों को याद करते हैं । तो याद सिर्फ देवी-देवताओं की या ईश्वर की, बाबा इसके फर्क मे नहीं आते हैं । माना मेरा तो एक है । तो एक भक्तिमार्ग में भी भक्ति करना, पूजा करना, फलाना करना, क्योंकि भक्ति में याद तो पड़ती है ऐसे ही । अगर एक की याद है तो वो बहुत अच्छा होगा, क्योंकि बाबा भी कहते हैं कि हमने भी तो पहले-पहले ही शिवबाबा की भक्ति की है । तो हमने बहुत भक्ति की है । अव्यभिचारी से करके व्यभिचारी में चले आएं हैं । अभी बच्चों को क्या करना चाहिए जब अंजाम करते हम एक को ही याद करेंगे, सो तो बाप रोज-रोज! ऐसे ही कहते हैं । बच्चे कहते हैं- बाबा, हमको शिवबाबा याद नहीं पड़ते हैं । तो बाबा कहते हैं- वाह । तुम जब भक्तिमार्ग करते थे, तभी भी इंजाम करते थे हम शिवबाबा को ही याद करेंगे, अव्यभिचारी भक्ति करेंगे, दूसरा कोई को नहीं, क्योंकि दूसरा कोई भी फायदा पहुँचाने वाला नहीं है, क्योंकि यही है पतित-पावन । और तो किसको कहा नहीं जाता है । ना ब्रहमा को, ना विष्णु को, ना शंकर को, ना लक्ष्मी को, ना नारायण को, ना अम्बा को, कोई को भी पतित-पावन नहीं कहा जाता है । एक को ही कहा जाता है । तो वो भी ऊँचे ते ऊँचा । भक्ति में भी वो ऊँचे ते ऊंचा । अभी ये भक्ति तो नहीं है बच्चों को, अभी बच्चों को है ज्ञान । उसमें भी है याद । किसकी? ज्ञान के सागर की । तो फिर उनको याद करना पड़ता है, क्योंकि खुद ज्ञान सागर कहते हैं । तो जो भक्ति मे कहते थे, जब आएंगे तब आपकी याद में रहेंगे, क्योंकि उस समय मे आत्मा को यह समझ तो होती है ना कि बाप है, आएंगे तो उनकी ही याद करेंगे, तभी तो उनसे वर्सा मिलेगा ना । तो ये सभी बातें बच्चों को याद करनी चाहिए कि हम भक्तिमार्ग में भी कहते थे....अभी तो बाप आए हुए हैं । एक की याद, फिर दूसरे कोई की याद नहीं करनी चाहिए । यहां के मित्र-संबंधियों से देवताएं तो और ही अच्छे हैं । फिर भी इन अनेकों को याद करने से, ये तो सभी विकारी छी: छी: हैं ना । तो उनको भी याद करने से फिर व्यभिचारी याद हो जाती है । अगर शिवबाबा को याद करें तो उसे कहा जाता है अव्यभिचारी । अभी हरेक अपने अपने से पूछे कि हम एक को याद करते हैं या अनेक मित्र-संबंधियों आदि को याद करते हैं, क्योंकि अंजाम तो यहां किया है, दूसरा कोई भी कारण देने की दरकार ही नहीं है । और कारणों को डाल देते हैं पानी में, क्योंकि समझते हैं कि उस बाप को याद करेंगे तो उनसे और दिल भी लगानी है, उनसे फल मिलने का है । अगर बुद्धि वहां से टूट करके और संबंधियों के पास गई तो व्यभिचारी याद हो जाती है । तो हर एक अपने से पूछे कि हम अव्यभिचारी याद में रहते हैं या व्यभिचारी मित्र-संबंधी या कोई भी गुरु-गोसाईं की याद में रहते हैं? अभी तुम बच्चों के गुरु-गोसाईं तो सब छूट गए । अब उनकी पूजा तो छोड़ दी । अभी बाकी रही याद मित्र-सबंधियों की । अरे, वो भी मित्र-सबंधियों की औरों की याद हो जाती है । बाप कहते हैं- नहीं, मुझे ही याद करो और मित्र-संबंधियों को छोड़ दो, क्योंकि ये मित्र-संबंधी भी खत्म हो जाएंगे । पीछे इस बारी तो तुमको सभी मित्र-संबंधी दैवी गुणों वाले मिलेंगे । जो बन रहे हैं उनमें से मिलेंगे । इसलिए ये बाप को याद करने से, नई दुनिया में जाने से, फिर तुम्हारे मित्र-संबंधी सब एकदम नए मिलेंगे । पुराने छी:-छी: नहीं मिलेंगे, क्योंकि पुराने तो सब भ्रष्टाचारी हैं ना । तो यह जांच करना है कि मेरे को जो श्रेष्ठाचारी बनाते हैं या जो याद है, जिससे श्रेष्ठाचारी बनते हैं, उनको याद करें या मित्र-संबंधियों को या देवताओं को याद करें? यह हमेशा अपने ऊपर जांच रखनी होती है । कहा भी तुमने है, बाबा से इंजाम भी तुमने किया है कि बाबा, जब आप आएंगे तब आपका ही बनेंगे । अभी अपने से पूछो कि हमारा बनते हो या दूसरे कोई का? तो बरोबर तुम जब यह कहते हो, आपको इतने समय याद किया, तो बाकी समय किसको याद करते हो वो बताओ । तो देखो, उस याद मे कितने आते होंगे? ढेर के ढेर आते होंगे । याद करनी है एक की । बाप भी कहते हैं ना कि इंजाम है, इसलिए तुम मुझ अपने पारलौकिक बाप को याद करो, क्योंकि वो है पतित-पावन । तो ऐसे-ऐसे समझ करके, कोशिश करके दूसरी जगह से हटा करके फिर बाप को ही याद करना है और फिर भी महिमा सहित । ये भी समझते हैं कि बाबा को जितना याद करेंगे उतना हमारे पाप कट जाएंगे । है सिर्फ याद की यात्रा । ऐसे नहीं कि जितना हम याद करेंगे उतना बाबा याद करेंगे । ऐसे कोई कायदा नहीं है । बाबा को कोई अपना पाप काटने का है क्या! शिवबाबा को कोई पापात्मा कहा जाता है क्या? पाप आत्मा कहा जाता है मनुष्यों को । यहां देवताएं तो होते ही नहीं हैं । बाकी रहे मनुष्य, वो सभी पापात्मा हैं, क्योंकि ये दुनिया ही पापात्माओं की है । पुण्यात्माओं की दुनिया तो दूसरी होती है ना । यह तो तुम अच्छी तरह से जानते हो । भले जिसके लिए कोई भी मनुष्य कहते हों..अभी सतयुग के आने में 40000 वर्ष देरी है, क्योंकि कलहयुग की आयु ही इतनी है, तो वो तो बात ही दूसरी हो जाती है । वो समझते हैं ना कि बाप आएंगे, जब वो डायरेक्शन देंगे तब हम बाप को याद करेंगे । अभी बाप को याद करेंगे, क्या करेंगे? कहाँ जाएंगे 40000 वर्ष पड़े हुए हैं । अभी से याद करके करेंगे ही क्या! समझा ना बच्चे! वो उनके लिए है जो जानते नहीं हैं । तुम तो अच्छी तरह से जानते हो । अगर नहीं जानते तो तुम यहां आते नहीं । यहां आ करके बैठते नहीं । यहां बैठते भी हो पावन बनने के लिए और ये भी जानते हो, निश्चय है कि हम यहां पतित-पावन के आगे बैठे हुए हैं, क्योंकि शिवबाबा भी तो यहां ही है ना । तो देखो, उन्होंने लोन लिया हुआ है । शरीर तो अपना है नहीं । इसलिए घड़ी घड़ी भूल जाते हैं । नहीं तो अंजाम है जरूर, वो बाप से ही भक्तिमार्ग में जन्म-जन्मांतर का अंजाम है कि बाबा, जब आप आएंगे तो आपका बनेंगे, आपका बन करके फिर नई दुनिया के मालिक बनेंगे । तो हमेशा दिल से पूछते रहो । ऐसे पूछते- पूछते, ऐसे नहीं कि कनेक्शन, लिंक कोई जुट जाती है । यह तो सभी बच्चे जानते हैं कि बाप से बुद्धियोग की लिंक घड़ी- घड़ी टूट जाती है । बाप कहते हैं फिर भी कोशिश करके, यहां-वहां से फिर आय करके फिर भी बाप की याद में लग जाओ, क्योंकि वो बाबा जानते हैं कि लिंक टूटनी है जरूर । घड़ी घड़ी टूटेगी । और जो भी जगह से हट करके फिर बाप को याद करेंगे, फिर भूल जाएंगे । इसको ही कहा जाता है ना कि इस समय में ये 'भूलभुलैया का खेल' है, क्योंकि अभी चल रहा है प्रैक्टिकल में और बाप फिर समझा रहे हैं ये जो भूल होती है वो जितना जो बाप को याद करेंगे उतना पाप कटेंगे । याद का अर्जन करने की भी तो बाबा मार्जिन देते हैं, कितनी महिमा करते हैं कि याद करते करते तुम्हारे सब पाप कट जाएंगे । फिर नंबरवार पुरुषार्थ तो करते ही हैं और अगर अच्छी तरह से याद में रहें तो फिर इस डिनायस्टी में आ जाएंगे । तो अपनी जांच करते रहो । तभी बाबा कहते हैं ना रात को बैठकर के, अपनी डायरी रखो और स्मृति मे बैठो कि सारे दिन में कहां-कहां हमारी बुद्धि गई? फिर वो भी अगर लिख दिया तो बाबा समझ जाएंगे और तुम बच्चों को समझाएंगे । कि भई, कहाँ क्यों चले गए? तुम जब भक्तिमार्ग में थे तब भी तो कहते थे हम आपको याद करेंगे । अभी लिस्ट बताओ, कहाँ चले गए? तो फिर बाबा समझाएंगा । जब ये चार्ट वगैरह बहुत आते हैं ना तो उनमें ये लिखना चाहिए । वो तो ठीक है, जो लिखते हो कि हम दो मिनट, 10 मिनट, दो घंटा, डेढ़ घंटा बाबा की याद में रहा । बाकी याद कहाँ गई, वो लिखो । समय सबका लिखो तो बाबा उनके ऊपर भी, खाली एक दो दृष्टांत लिखेंगे तो मैं सबकी बताय दूंगा? क्योंकि किन-किन की ऐसी दशा जाती होंगी । दो तीन की पढेंगे तो बता देंगे कहॉ-कहाँ जाते हैं, आत्मा कहाँ दौड़ती है । आत्मा नहीं दौड़ती है, आत्मा में जो मन-बुद्धि है वो भागती है । कहते हैं मन भागता है । इतना जब अपने ऊपर घड़ी- घड़ी खबरदारी रखेंगे ना । तुम जो बाबा को याद कर रहे हो ना, वो कौन-सा बाबा? उनको तो हमने 84 जन्म याद किया । फिर भी 84 जन्म में घाटा ही पाया ना । थोड़ा थोड़ा थोड़ा थोड़ा घाटा आता गया ना । वो तो तुम्हारा वर्सा था, तभी भी दिन-प्रतिदिन घाटा तो रहता है ना । नई जो जगह है उनको घाटा तो रोज का लगता है ना । रोज रोज करते करते कहेंगे, हाँ पाँच वर्ष हुआ, भई इतना घाटा हुआ । पाँच वर्ष में फट से तो घाटा नहीं होता है ना । कदम-कदम पर घाटा, कदम-कदम पर फायदा । बाप कहते हैं ना, कदम-कदम पर पदम । फिर वो पदम कहाँ चले गए? फिर नीचे उतरते इस समय कदम-कदम पर कुछ कम, घाटा । तो तुम बच्चे अगर अपन से ऐसे ऐसे बात करते रहेंगे ना, विचार-सागर-मंथन करते रहेंगे । यह सबके लिए है विचार-सागर-मंथन कर ज्ञान के रत्न निकालना । यह ज्ञान है ना । बाबा ज्ञान सुनाते हैं ना । तो हर एक को फिर अपना अपना बुद्धि चाहिए । अगर बाप की याद मे रहेंगे तो, बाबा की याद में एकाग्रचित्त हो करके । अभी जैसे वाडा(कारपेन्टर) काम करते हैं । वो थोड़े ही बाप को याद करते होंगे । तुम खड़े जो देखते होंगे याद कर सकते हो, क्योंकि उनकी बुद्धि काम में है, उनको फिनिश करना है, तुम्हारी बुद्धि बाप में है, उनसे वर्सा ले लेना है । तो याद मे रात-दिन का फर्क है ना । तो ऐसी ऐसी बातें आप अपने से करते रहो । समझा ना! करते रहेंगे -छूट गए तो ऐसे-ऐसे भी विचार आएंगे ये क्या रखा है, जाओ जा करके कोई अपना धंधा-धोरी करें, यह करें, वो करें । ऐसे-ऐसे भी खयालात आ जाएंगे । दुनियावी छी: छी: खयालात भी आ जाएंगे । कभी-कभी कौड़ियाँ कमाने की भी फिर वासना आ जाएंगी । सुनते तो रहते हो ना कि ये धंधा करते हैं कमाते हैं, फलाना करते हैं । ये तो जो धनवान होंगे, उनको तो बहुत आते हैं । अभी बाबा क्या करें? बाबा क्या अभी कहेंगे कि हम फलाना धंधा करें? हमारा जवाहरात का धंधा इतना मीठा था । ऐसा सहज था । अरे, कुछ भी नहीं करें । हम सिर्फ खरीद करें और फट से बेंच देवें । कोई भी धक्का खाने की दरकार नहीं । धक्का भी दलालों को खाना पड़े । हम सिर्फ टेबल पर बैठ करके, व्यापारी आवे उनसे हम हीरा युक्ति से लेवें । युक्ति हमारी यही थी कि सदैव छांट करके लेना । यह एक मेरे को हॉबी थी । तो बस छांट करके लेना, दलालों को देना । जा करके बेंच करके आओ, पैसा ले करके आओ । और कुछ नहीं । अभी ये चीज ऐसी है, जो कोई लेने वाले हों, बेचने वाले हों, सोझरा चाहिए । रात को इस समय में कोई हीरे की चीज लेंगे? रात को नहीं ले सकेंगे । रात को अगर लेंगे तो विश्वास पर लेंगे । तो इसलिए बस, थोड़ी शाम हुई, यह भागा बाबा, यह समझ करके कि शाम को कौन आकरके लेंगे । कोई दलाल को हम हीरा देंगे तो क्या हमको बेंचकर देंगे? अभी लेंगे तो दे ही देंगे, सो तो कभी भी दिन मे ले आकर देंगे । शाम को क्यों आएंगे मेरे पास? शाम को मेरे पास आएंगे ही नहीं । शाम पाँच बजे तुम चाय पीती हो ना । तो वहां का भी हमारा टाइम चाय पीने का ही होता था, चाय पिया और यह भागा । तो दलाल-व्यापारियों को सबको मालूम होता था कि बाबा, यह शाम को बरसात होगी, तो भी जा करके फुटबाल, मैच या जो-जो भी बरसात में होती है ना । ना होगी तो हॉकी पर जाएंगे । ठंडी होगी तो क्रिकेट पर जाएंगे । हॉबी सबकी थी । सुना मैच मैचेज... ऐसे तो रोज होती रहती है । मैच देखने यह भागा, क्योंकि फखुर था कि यह तो कोई बड़ी बात थोड़े ही है हीरा कोई से लेना, लेना भी है तो अच्छी तरह से लेना । व्यापारी भी समझे, यह गर्म व्यापारी है । वो ऐसा कोई भी तकलीफ नहीं लेता था । यह हमारी प्राइवेट तकलीफ है । जो भी व्यापारी आएंगा पूछूंगा बताओ, एजेन्ट हो या मालिक हो? क्योंकि अगर एजेंट हो तो वो गलत सलत मिलाय दे बना दे वो बेंच तो सकेंगे ही नहीं । कायदा ही नहीं है । धनी होगा तो धनी से तो जो चाहिए सो भी कर सकते हैं । भले वो हीरे वाले सब जानते हैं, परन्तु उनको हुकुम नहीं है । वो एक हीरा भी दूसरे मे मिलाय नहीं सकते हैं । समझो कि जो धनी होगा, वो आएंगा तो हम कहेंगे उनसे कितना है? दस पुड़िया है । अच्छा, कितने कैरेट हुए? भई, दो सौ कैरेट हुए या तीन सौ कैरेट हुए । हम बोलेंगे- अच्छा, छोड़ करके जाओ । हम देख करके रखेंगे । सो तो सभी छोड़ कर जाते ही हैं । जो अच्छे व्यापारी होते हैं तो कोई रसीद-वसीद लेने की दरकार नहीं रहती है । अरे गई, इसमे है बुद्धि का योग । जैसे तुम भी मेहनत करते हो, यह भी मेहनत करते हैं । जब भी बच्चों को समझाना है तो बाप का ही परिचय देना है यहां । अरे भाई, बाप तो दो हैं ना । एक हद का, एक है बेहद का । अभी हद का चल रहा है । आधा कल्प हुआ । आधा कल्प बेहद का मिला था, जिसको स्वर्ग और त्रेता कहते थे । उसको द्वापर और कलहयुग कहते थे । देखो, दो बाप का वर्सा है ना । अभी यह कलहयुग पूरा होता है .अभी सतयुग आता है । सतयुग में पतित तो नहीं जाएंगे । बस, बाबा को अच्छी तरह से याद करो तो तुम्हारे पाप कट जाएंगे और गुल-गुल हो जाएंगे, अच्छे हो जाएंगे । फिर जितनी याद करेंगे इतना पवित्र बनेंगे और इतना ही दर्जा मिलेंगा, क्योंकि सजा खाएंगे । बहुत याद करेंगे, याद करते-करते जाकर मिलेंगे और कोई भी याद नहीं आएंगा उस समय में तो बड़ा फायदा है, बहुत फायदा है । तुम बच्चे यह अच्छी तरह से जानते हो, परन्तु बीच मे लड़ाई है माया की । प्योर भी रहेगा, तो जो वाणी है, मुरली है, वो धारण भी होती रहेगी और सहज ते सहज पाइंट को खैचेंगे तो चली आएंगी । अगर न याद करते होंगे, पतित होंगे, तो फिर उन प्वाइंट्स की भी इतनी जल्दी याद नहीं आएंगी । तो याद में भी और ज्ञान मे भी कच्चे पड़ जाएंगे । तो यह तुम बच्चों का पुरुषार्थ यहां यही चलता है । फिर किनको तकदीर के अनुसार समय मिलता है और तो पुरुषार्थ करते हैं । कोई को समय नहीं मिलता है तो पुरुषार्थ नहीं करते हैं । वो अपने आप से पूछ लें की देखो- हम कहाँ तक याद करते हैं? तो जहाँ तक याद करेंगे, खुशी का पारा भी तुम्हारे ऊपर चढ़ेगा । ऑटोमैटिकली जरूर चढ़ेगा, क्योंकि चढ़ा हुआ था सो उतरा है, फिर उस पाइंट पर आएंगे तो फिर भी चढ़ता ही जाएगा । बाबा बच्चों को समझानी बहुत अच्छी देते हैं, परन्तु पार्टधारियों का पार्ट तो नूंधा हुआ है । तो बेचारे जितनी कल्प पहले कोशिश की है इतनी कोशिश करते हैं । पीछे कोई की प्रेक्टिस अच्छी होती है, किनकी कम होती है, किनकी कम होती है क्योंकि यह भी समझ की बात है, स्कूल है, तो जरूर याद किसकी कम, किसकी उससे कम, किसकी उससे जास्ती हो सकती है ना । अभी भी पुरुषार्थ करते हो, नहीं जुटती है, यह भी कल्प-कल्प ऐसे ही हुआ है । पीछे भले तुम कितना भी कोशिश करो, परन्तु अगर कल्प पहले तुम्हारी अगड़म-बगड़म हो जाती है, तो अभी भी अगड़म-बगड़म होती जाएंगी । है आखिर ड्रामा कल्प कल्प का जो भी । पीछे तुम कितना भी गिनती करो । अपरम्पार तुम आ करके यह पुरुषार्थ करते हो ना तो अपरम्पार यह पुरुषार्थ एक जैसा ही चलता रहेगा । जास्ती याद बाबा की, वो है श्रीमत । जितनी कम याद बाबा की, वो है माया की मत । ये लड़ाई चलती रहती है । इसलिए इस लड़ाई मे जीत पहनने के लिए विचार-सागर-मंथन करो। तुम वास्तव मे परवश हो और ईश्वर अपने वश में कर रहा है । माया अपने वश करती है, ईश्वर अपने वश करते हैं- ये खेल है । घृणा आदि की कोई बात नहीं आती है, खेल है जो बाप समझाते हैं । कई गिर पड़ते हैं, क्योंकि ये तो अनेक बार यह सब पार्ट बजाते हैं । तो उनको जरा भी नहीं, अपन को होता है जरूर । कुछ न कुछ होता है । ना हो तो झट कर्मातीत अवस्था हो जाए । फिर तो हमको नई दुनिया चाहिए । यहां हम एक सेकण्ड मी नहीं रह सकें, परन्तु नहीं, यह ड्रामा बना हुआ है, क्योंकि कर्मातीत अवस्था तक आ जाते हैं तो फिर तुम्हारे लिए नई दुनिया चाहिए क्योंकि टाइम तो मिलता है ना अभी शाम है, रात है, बैठकर क्या करेंगे? बैठ जाओ, बाबा को याद करो, जांच करो- बुद्धि कहाँ जाती है, कहाँ हमको कोई अंगुली लगाती है । जैसे जब युद्ध करते हैं तो बड़ा खबरदार रहते हैं । मल्लयुद्ध करते हैं, बडी खबरदारी रखते हैं । यहां तो नहीं लगाते हैं, यहां तो नहीं लगाते हैं...... .वो पैर ऐसे-ऐसे करते रहेंगे । अपन को ऐसे हटाते रहेंगे । कोई ने मल्लयुद्ध नहीं देखी होगी, कोई ने बॉक्सिंग नहीं देखी होगी, कोई ने कुश्ती नहीं देखी होगी, कोई ने कबड्‌डी-कबड्डी आदि.. कितना उस्तादी से भागते रहते हैं । हार-जीत का खेल है ना । सिकीलधे रूहानी बच्चों प्रति रूहानी बाप व दादा का दिल व जान, सिक व प्रेम से यादप्यार और गुडनाइट । मीठे-मीठे रूहानी बच्चों प्रति रूहानी बाप की नमस्ते ।