13-01-1964     मधुबन आबू     प्रात: मुरली    साकार बाबा    ओम् शांति    मधुबन
 


हेलो, स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण कुलभूषणों को हम मधुबन निवासियों की नमस्ते, आज सोमवार जनवरी की तेरह तारीख है प्रात: क्लास में शिव बाबा की मुरली सुनते हैं।

ओम शांति ।

अभी रूहानी बच्चे यह तो जरूर जानते हैं कि नई दुनिया में सुख है, पुरानी दुनिया में दु:ख है । दुःख में सब कुछ आ जाता है दुःख । सुख में सब कुछ आ जाता है सुख यानी दुःख का नाम-निशान नहीं । और जहाँ दुःख है तहाँ सुख का नाम-निशान नहीं । यह तो बच्चों को अच्छी तरह से समझाया है, जहाँ पाप है तहाँ पुण्य का नाम-निशान नहीं, जहाँ पुण्य है तहाँ पाप का नाम-निशान नहीं । वो कौन-सी जगह है? एक सतयुग और दूसरा कलहयुग । ये सभी बच्चों को बुद्धि में तो होगा ही जरूर । उठते-चलते-फिरते अभी दुःख का समय पूरा हुआ है अर्थात् सतयुग के लिए तैयारी हो रही है, पढ़ाई हो रही है, ये तो सबकी बुद्धि में होगा ही नंबरवार पुरुषार्थ अनुसार । सो भी कोई को तो बहुत समय यह याद रहता होगा कि हम इस कलहयुगी छी-छी दुनिया से अभी वाह- वाह दुनिया में जा रहे हैं । यहाँ जो भी आते हैं, किसके लिए आते हैं? इस रावण की कलहयुगी दुनिया से उस पार सतयुग में, रामराज्य कहो, (जाने के लिए) अक्षर तो है यह, परन्तु सभी मनुष्यमात्र को बुद्धि में समझ में आता है, जनावरों को नहीं कि सुख सतयुग में होता है, दुःख कलहयुग में होता है । उसको नई दुनिया कहा जाता है, उनको पुरानी दुनिया कहा जाता है । जो सुख देते हैं, वो ही दुःख नहीं देते हैं । सुख तो बाप देते हैं और वो(दुःख) रावण दुश्मन देते हैं । दुश्मन का एक ही चित्र है, जो हर साल उनका एफीजी बनाया जाता है; क्योंकि एफीजी बनाया ही उनका जाता है जो दुःख देते हैं । तो बच्चे जानते हैं कि बरोबर जब उनका राज्य पूरा होता है तो उसको हमेशा के लिए खलास ही करने का है; क्योंकि हर बरस उनकी एफीजी जलाते हो, यह भी जानते हो और ये भी जानते हो कि आखरीन अभी हमारे द्वारा तुम बच्चों ही द्वारा उनका विनाश हो जाएगा अर्थात् दुःख का विनाश हो जाएगा । यह तो अभी जानते हो कि दुःख के देने वाले माया रूपी पाँच विकार वाला रावण है । यह तो बच्चों को बुद्धि में है और जब भी यहाँ बैठते हैं तो यही याद रहता है कि हम अपने बाबा के पास जाएं । रावण को बाप तो कोई नहीं कहते हैं । कभी तुमने सुना है रावण को कोई परमपिता कहते होंगे? कभी भी नहीं । हाँ, यह जरूर है कि इतनी छोटी बुद्धि है, तो ये समझते हैं कि लंका में रावण था या और कोई जगह में । कहते तो लंका ही हैं और ये तो बच्चों को समझाया गया है कि ये सारी दुनिया लंका है; क्योंकि स्टीमर के रास्ते या बोट के रास्ते कोई ने सारा चक्कर जरूर लगाया है; क्योंकि जिस समय में वो चक्कर लगाया है, कोलम्बस के समय में तो यह स्टीमर नहीं थी । स्टीमर कहा जाता है जो स्टीम पर चलते हों । जैसे ट्रेन स्टीम पर चलती है । कोई ट्रेन फिर बिजली पर भी चलती है । तो बिजली अलग चीज़ है, स्टीम अलग चीज़ है । अभी बच्चों को यह तो अच्छी तरह से बुद्धि में है कि नई दुनिया को सुखधाम कहा जाता है, पुरानी दुनिया को दुःखधाम कहा जाता है । भक्तिमार्ग में जो भी मनुष्य होते होंगे, यह जानते हैं जरूर कुछ-न-कुछ, परन्तु अभी तुम अच्छी तरह से समझ गए हैं कि नई दुनिया का और पुरानी दुनिया का बदलना कैसा होता है । नई दुनिया बदल पुरानी कैसे होती है, पुरानी दुनिया बदल नई कैसे होती है सो भी तुम्हारे में नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार जानते हैं । नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार कहते हैं; क्योंकि कोई बहुत थोड़ा जानते हैं और याद भी नहीं होगा । इतना थोड़ा जानते हैं जो कभी याद भी नहीं करते होंगे । याद करें तो सब कुछ आ जावे । कुछ याद नहीं पड़ता है एकदम... है तो एक सेकेण्ड की बात- कलियुग पुरानी दुनिया है, सतयुग नई दुनिया है । यह बुद्धि में जरूर बैठता है कि यह पुरानी दुनिया अभी खत्म होने की है, नई दुनिया अभी स्थापन हो रही है । बल्कि नई दुनिया पहले स्थापन हो रही है, पीछे पुरानी दुनिया खत्म होगी । अक्षर नीचे-ऊपर भी नहीं कहना चाहिए । पहले स्थापना और पीछे विनाश और पीछे पालना- यह पक्का याद करो, नहीं तो कोई बहुत अच्छा सेन्सीबुल होगा तो बोलेगा-यह तो कोई भूट्टू बोलते हैं; क्योंकि स्थापना के बदले पहले कह देंगे विनाश, तो वो रॉंग हो जाता है । पहले यह स्थापना, पीछे विनाश, उसके बाद फिर पालना- यह पक्का कर दो; क्योंकि बहुत बच्चियाँ-बच्चियाँ हैं अंजान बिचारी । तुम्हारे पास बहुत ऐसी बच्चियां हैं जैसे तोते के मुआफिक । जो सुना वो याद कर दिया, राइट या रॉंग । राइट एण्ड रॉंग, उस पाइंट को... .बनाना, यह ही समझ है । जैसे कभी बाबा भी बोल देते हैं कि विनाश होने का है, स्थापना हो रही है और पीछे पालना होगी । तो रॉंग अर्थ हो जाता है । पहले स्थापना जरूर, पीछे विनाश जरूर, पीछे पालना जरूर; क्योंकि बच्चे पहले पैदा होते हैं, फिर उनकी पालना होती है, पीछे मरते हैं । तो मरने का अक्षर सेकण्ड नंबर में आता है ना- स्थापना, विनाश । पीछे पालना करते ही रहते हो । कहाँ तक पालना करते रहते हो? आधा कल्प तक तुम पालना करते रहते हो । पीछे होती है रावण की पालना । रावण की पालना तो झूठी ही पालना कही जाती है, विकारी ही पालना कही जाती है । यह तुम बच्चों की बुद्धि में अच्छी तरह से धारणा है । अभी तुम जान गए कि बाप कभी किसको दुःख नहीं देते हैं और फिर भी यहाँ तो बाप की बात ही नहीं कहते हैं, यहाँ तो बाप को सर्वव्यापी कह देते हैं । वो तो जैसे सबसे थर्ड क्लास प्वाइंट हो जाती है । बच्चों को यह तो बुद्धि में है, चलते-फिरते-उठते याद करना बहुत सहज है । यूँ वास्तव में देखो अलफ भी जो कहा जाता है न वो है अलफ की बात, वो बाबा ने समझाया था ना- मुसलमान भी सुबह को पहरा देते हैं..........अल्लाह हूँ याद करो, आय हियल वेल. ... ' यानी अभी उठो, खुद भी उठते हैं और खुदा को याद करो या अल्लाह को याद करो बात तो एक ही है ना । तुम कहेंगे बाबा को याद करो । तो बाबा अक्षर बहुत मीठा है । ...बाबा न कहने से इनहेरीटेन्स याद नहीं आएगा । बाबा कहने से इनहेरीटेन्स जरूर याद आएगा । बस, एक बाबा, पीछे फादर कहो, बाबा कहो, पिता कहो, जो भी चाहिए सो कहो; परन्तु बाबा कहने से वर्सा जरूर याद आता है । मुसलमानों में तो बाप को अल्लाह मियॉ कह देते हैं । बरोबर तुम मियां जेन्ट को कहते हो, बीबी फीमेल को कहा जाता है । तो अल्लाह मियाँ और फिर उसके पिछाड़ी में बीबी भी आ जाती है । बाकी भारत में अच्छा अक्षर तो है 'परमपिता । परमपिता कहने से यह लिंग याद आ जाएगा, क्योंकि समझो कि यूरोपियन लोग कहते हैं 'गॉड फादर', तो भी उनको कुछ फादर कहने से वो बोलेगा यह ठिक्कर-भित्तर में है । बिचारा उसको भी यही याद आएगा 'पत्थर' । बाकी शायद पत्थर भी उनको याद नहीं आता हो तो नेम नहीं है । यहाँ तो पत्थर याद आते हैं ना; क्योंकि पत्थर पूजे जाते हैं ना । तो बस समझते हैं-हाँ, इन पत्थर में ही भगवान है । तभी कहते हैं- पत्थर-पत्थर में भगवान; क्योंकि पत्थर ही भगवान समझ करके पूजा जाता है । अभी वो पत्थर कहाँ से आता है? असल में जिसको 'लिंग' कहा जाता है, यह तो बह करके, घिसते घिसते गोल हो जाते हैं । पीछे सभी तो एक जैसे नहीं होते हैं ना । ऊपर से जो पत्थर घिस-घिस कर आते हैं, तो वो घिस-घिस कर बुडेल्ल्रासे भी हो जाते हैं और उनमें सोने की भी जड़ी-जड़ी, कोई अग-वग नहीं है । नहीं, उनमें नेचुरली सोने का निशान होते रहते हैं । बहुत ऊपर में जाकर ढूंढते हैं । पहाड़ के ऊपर में बहुत ही नागा वगैरह सब घूमते-फिरते रहते हैं । तो अभी तुम बच्चे समझ गए हो ये पत्थर नहीं हैं, जैसे देवी-देवता वगैरह पास्ट हो गए हैं तो फिर पत्थर की चीज़ बनाई जाती है, तो पत्थर की चीज़ बनाकर उनको ही कहा जाता है- श्री लक्ष्मी, श्री नारायण । अभी तो तुम पत्थर के देखते हो श्री लक्ष्मी, श्री नारायण, क्योंकि इस समय में भक्तिमार्ग है । पीछे अभी तुम चैतन्य बनने के लिए पुरुषार्थ कर रहे हो । हरेक पुरुषार्थ कर रहे हो कि हम ऐसे कोई पत्थर के नहीं बनने वाले हैं, ऐसे चैतन्य बनने वाले हैं, क्योंकि यह भी चैतन्य था, पूजा के लिए उनको पत्थर का बनाया हुआ है । फिर जब चैतन्य होंगे तो इनकी पूजा नहीं होगी, क्योंकि फिर उस समय में जब पत्थर का बन जाते हैं, तो उसकी पूजा की जाती है और जब यह चैतन्य में हैं, तब यह तो समझते हो कोई पूजा नहीं करेंगे, क्योंकि उस समय में चैतन्य पूज्य है और जब जड़ होते हैं तो फिर जैसे पुजारी हो जाते हैं यानी पूजा के लायक । वो है पूज्य । वहाँ पुजारी तो होते ही नहीं हैं, किसकी पूजा करते ही नहीं हैं । इसलिए वहां पत्थरों की (मूर्तियाँ) बनाने की दरकार नहीं रहती है । यह तो अच्छी तरह से समझते हो कि ये बनते ही हैं जब भक्तिमार्ग शुरू होता है, तब वे जो पंच तत्व से बने रहते थे, चैतन्य थे, उनकी निशानी फिर आ करके ये रखते हैं बनाय करके । मुंह चैतन्य के बाद ये विनाश हो जाते हैं । विनाश होने में तो ये सभी खतम हो जाते हैं । तो जब विनाश होता है तो इनका जो चैतन्य है वो खत्म हो जाता है और फिर तुम जब अविनाशी बनते हो तो फिर दूसरे जन्म में बस ऐसे ही बनते हो । यह तो तुम समझ गए ना कि जब ये पूज्य पुजारी बनते हैं यानी पूजा के लायक बनते हैं तो पत्थर के बन जाते हैं । जब पूज्य हैं तब पाँच तत्व के शरीर का है । तो फर्क तो पड़ जाता है ना । उसको फिर कहा जाता है चैतन्य । वो ही चैतन्य फिर जड़ बन जाते हैं । अभी ये भी कहाँ के हैं? ये भारत के ही हैं । अभी तुमको इनकी जीवन कहानियों का पता पड़ गया । आगे ये जो दिव्यचक्षु- ज्ञान के चक्षु, उनको दूसरी चीज़ नहीं कहा जाता है, जैसे ये आखें हैं तैसे कोई आत्मा को आखें नहीं होती हैं, इसको कहा जाता है ज्ञानचक्षु । अभी तुम बच्चों को बहुत ज्ञान मिला हुआ है । उठाने वाले भले नम्बरवार हैं । बाकी बहुत ज्ञान मिला है किसका? रचता और जो रचना है इतनी, .... उनके आदि-मध्य और अन्त का ज्ञान मिला है । यह तो सिवाय तुम बच्चों के किसकी बुद्धि में बैठा ही नहीं होगा सो भी नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार, क्योंकि स्कूल में नम्बरवार .... गिनते जाते हैं, पुरुषार्थ जरूर करते हैं, इसलिए नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार । नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार तुम्हारी रुद्रमाला भी बनती है, रुण्ड माला भी बनती है; क्योंकि यह बच्चों को समझाया गया है कि ये सारी मालाएँ- एक है रुण्ड माला, दूसरी रुद्रमाला फिर है रुण्ड माला, वो सभी ब्रदर्स हैं । पीछे होते हैं ब्रदर्स एण्ड सिस्टर्स । फिर देखते तो हो, तुम बच्चों की बुद्धि में तो आता है ना, बरोबर हम आत्माएँ तो बहुत छोटी- छोटी हैं, कोई इतने गोल गोल या बड़े नहीं थे । बहुत छोटी-छोटी है, देख भी नहीं सकते हैं । यह अभी तुम बच्चों की बुद्धि में बैठा पहले भी ज्ञान था कि चमकता है अजब तारा भृकुटि के बीच में । यह भक्तिमार्ग का गायन सुना हुआ है । बाकी बुद्धि मे बैठे कि हम ऐसे हैं चैतन्य, वो मुश्किल है; क्योंकि उसके साथ यह भी बैठना चाहिए कि हम जो बहुत छोटे सितारे हैं वो यह ले करके पहले छोटा पिंड, वो पिंड बड़ा हो करके देखो कितना बड़ा पिंड हो जाता है, उन द्वारा छोटे पन से लेकर बड़े पन तक पार्ट बजाते रहते हैं । अभी तो तुम ऐसे कहेंगे ना कि हमारी आत्मा जो बिल्कुल ही छोटी है, वो पार्ट बजाती है । पार्ट बजाती है बड़े से, तो बड़ा ही ध्यान में आता है । बाबा ने कहा है कि ऐसे मत समझो कि सतयुग में कोई बैठ करके कहेगा कि तुम आत्मभिमानी भव या अपन को आत्मा समझो । नहीं । यह सिर्फ इस समय में एक बार तुम बच्चों को यह ज्ञान मिलता है; क्योंकि आत्मा पतित हो पड़ी है, इतनी छोटी सी और जो भी काम करती है वो सभी उल्टा । .... बाप सुलटा कराते हैं, रावण सब उलटा कराते हैं । उसमें भी बाबा ने कहा है, बहुत अच्छे से समझो कि उल्टा और सुल्टा कौन-सा काम कराते हैं? वो कहते हैं कि परमात्मा सर्वव्यापी है, यह है नम्बरवन उल्टा काम । इसलिए जो यह उल्टा काम कराते हैं, यह तो समझ गए ना, उनको बरोबर हम हर बरस जलाते रहते हैं और आखिर में जल ही जाएंगे; क्योंकि वो कोई अविनाशी तो नहीं है ना । वो तो विनाशी ही है । बाकी आत्मा जो पार्ट बजाती है, उनको कभी जलाया नहीं जाता है । देखो, उनकी अभी भी पूजा की जाती है । जलाया कभी भी नहीं जाता । मनुष्यों को जलाया जाता है । बाकी आत्माओं को जलाने की है कुछ नहीं । यह शरीर को ले जाओ, आत्मा तो पहले से ही जा करके वो जब तलक शरीर जले-ही-जले उनके पहले ही आत्मा ने जा करके शरीर ले भी लिया । तो ऐसे... .वो गई, जाकर कहाँ धारण किया, दूसरा शरीर ले लिया । पहले से ही वो शरीर ले लेते हैं । वो शरीर को तो मनुष्य दिन, दो दिन, चार दिन भी रख देते हैं । आत्मा नहीं रहती है । क्रिश्चियनों का एक सेन्ट जेवियर्स है, वो अभी तलक रखा हुआ है । मनुष्य यात्रा करने जाते हैं, उनका शरीर रखा हुआ है । उनको जाकर छूते हैं, करते हैं । पीछे यह भी एक मन्दिर बनाय रखा है । वो नाम भी उसी का है जिसका मन्दिर बनाया गया है । अभी वो कहते हैं कि वहाँ वही शरीर रखा हुआ है ।... ..... .ढका तो रहता ही है । शरीर कोई को दिखलाते तो नहीं हैं । हाँ, सिर्फ पाँव दिखलाते हैं । अभी वहाँ पहरा तो रहता है ना, सबको कोई शरीर खोल करके, पैर खोल करके दिखलाते तो कोई भी नहीं हैं । बस, वो कहते हैं, जो जाते हैं उनको छूते हैं और उनको जो दिल में आस होती है, बीमारी-सीमारी वगैरह है, वो हल्की हो जाती है । तो बाप ने कहा है ना मीठे बच्चों भावना में भाड़ा है । भावना का भाड़ा यानी जो एकदम निश्चय बुद्धि बनकर जाते हैं, उनको कुछ-न-कुछ ... कोई को बिरले कोई हो जाते हैं । बाकीऐसे तो सभी जा करके अगर वहां ढेर हो जावें ढेर तो कही हो ही नहीं सकते है । भले बाप आए तो भी कहीं भी ढेर नहीं हो सकते हैं । ढेर होने की एकदम जगह नहीं होती है । ढेर होने का अगर समय भी आ जाय तो विनाश हो जाता है । ढेर होने के बदले में और ही विनाश हो जाता है, वो कहाँ आ सकते हैं सकते हैं क्योंकि यह ड्रामा बना हुआ है ना. .. । अभी ऐसे भी नहीं कहते हैं- ईश्वरीय ड्रामा बना हुआ है । यह परम्परा से चला आता है । इसकी न आदि है, न अंत है । यह होता है जरूर कि जब झाड़ बड़ा हो जाता है, जड़जड़ीभूत अवस्था को पाता है, तुम तमोप्रधान हो जाते हो, तब यही झाड़ फिर चेंज होता है । देखो, चेंज हो रहा है ना! यह इतना बड़ा झाड़ है, कितने ढेर धर्म हैं इसमें, अभी चेंज जो होने वाले हैं, देवता बनने वाले हैं, जिनको पहले आना है नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार, सभी तो सूर्यवंश इकट्‌ठा नहीं आता है ना, न ही चंद्रवंश इकट्‌ठा आता है । तुम बच्चों को समझाया गया है कि यह माला बनती है जरूर, पर सब तो नहीं आएँगे ना । माला तो अभी भी है । सभी नहीं आए हुए हैं, कुछ-न-कुछ रहे हुए हैं । तो सब इकट्‌ठे नहीं आते हैं । हाँ, पार्टधारी आहिस्ते-आहिस्ते आते हैं । वो देखो कितना छोटा स्टेज है, ये कितना बड़ा स्टेज है- बाप ने समझाया है । तो यह भी बुद्धि कहती है बरोबर कायदे सिर बहुत आते होंगे नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार या अपने पार्ट अनुसार । तो यह बुद्धि में धारण करनी है तो जो यह समझे कि बरोबर इस दुनिया पर हम भी खिलाड़ी हैं, नम्बरवार पार्ट बजाने आते हैं । यह बड़ा एक्यूरेट बनाया हुआ है । इनमें कोई भी चेंज नहीं हो सकती है । हम इनएक्युरेट इसको कह नहीं सकते हैं और जो भी हैं बरोबर कोई इनxएक्युरेट कोई एक्यूरेट, कोई अच्छा बनता है, कोई कैसा बनता है । बनने के समय में कोई तोड़ता है, कोई चेंज करता है, फलाना करते हैं- ऐसे होता है ना । तो मीठे-मीठे बच्चे अभी जब यहाँ सतसंग में बैठे हैं और बातें समझते होंगे-.. .. फलाना गया, ये यहाँ गया, वहाँ गया, अनेकानेक बातें हैं शास्त्रों में, बाइबिलों में और उनमें । पढ़ाई में तुम और बातें समझते हो, जिससे कमाई तुम्हारी होती है । उनसे कमाई नहीं होती है, बाकी इतना है, कुछ-न-कुछ स्वभाव अच्छे होते हैं, गुण अच्छे होते हैं । बाकी ऐसे नहीं है कि कोई जैसे ग्रंथ के ऊपर गुरु लोग जाकर बैठते हैं, तुम जाएँगे तो दो - चार मुख्य बैठ करके वो पढ़ते रहते हैं ऐसे करके, बाकी ऐसे नहीं है कि कोई भी निर्विकारी है । भले कितनी भी उसमें उनकी महिमा और विकारियों की उल्टी-सुल्टी बातें लिखी हुई हैं, तो जैसे ये सभी भ्रष्टाचार से पैदा होते हैं, भ्रष्टाचार करते हैं, उसमें भी कोई अच्छा और कोई बुरा । कोई बहुत अच्छा होते हैं वहाँ भी बहुत सच्चे, कोई भी विकार की बात उनमें होती नहीं । कोई तो देखो विकारी भी होते हैं । तो सन्यासियों में भी ऐसे ही हैं । कोई तो विकारी हैं । तुम लोग नाम तो बहुत सुनते हो । शेरवारा सन्यासी बॉम्बे मे होकर गया है । हैं तो कपड़े सब सन्यासी के । सन्यासी हो करके और फिर गृहस्थी बन जावे, यह गृहस्थी पहले नहीं था । बाबा को मालूम है उनका । पहले सन्यासी था, पीछे विकार में गया । कुमारियां आईं, माइयाँ आई, फलाने भी, भला कितने से विकार करेगा, तो शादी कर ली । उनमें से बच्चे भी पैदा हो गए; क्योंकि दूसरे कोई से बच्चा पैदा होवे तो नाम बदनाम हो जावे । फिर भले आजकल बहुत ही युक्तियों हैं जो नाम न बदनाम हो, परन्तु सन्यासियों का तो नाम बदनाम हो जावे ना । तो देखा नाम बदनाम होता है, तो शादी कर लिया । अभी उनको बच्चे भी हैं । ये बॉम्बे में रहने वाला है । तो इस समय में विचार किया जाता है कि भ्रष्टाचार से तो सभी पैदा होते हैं । तुम बच्चों से भी पूछते हैं ना-वहाँ जन्म कैसे होगा तभी? तो सिर्फ तुम्हारा यही कहना है कि वहाँ रावण का राज्य नहीं है, ये पाँच विकार नहीं हैं, वहाँ सभी योगबल की बात है । तो योगबल से जबकि सारे विश्व को पवित्र बना सकते हैं, योगबल से जब सारे विश्व का मालिक बन सकते हैं तो बाकी बच्चे भी तो योगबल से हो सकते हैं । ऐसे नहीं है कि नहीं हो सकते हैं । बाप ने कहा था कि पहले ही साक्षात्कार होते हैं कि बच्चा आने वाला है ।.. .वहाँ एकदम नंगन होने की बात नहीं है । नंगन होने वालों को तो द्रौपदी और दुःशासन कहते रहते हैं । बाबा ने समझाया ना-तुम सब द्रौपदियाँ हो और पुरुष सब कुशासन हैं, नंगन होने वाले हैं । इस समय में दोनों पुकारते हैं- 'बाबा । वो कहती हैं- बाबा, दुःशासन नंगन करते हैं, वो फिर कहते हैं कि बाबा, द्रौपदी नंगन करती है । ऐसे भी केस हैं ।.... .ढेर हैं एकदम । वो स्त्रियाँ भी रिपोर्ट लिखती हैं, तो पुरुष भी रिपोर्ट लिखते हैं । संगमयुग में सभी कोई पवित्र नहीं बनते हैं । पवित्र-अपवित्र, पवित्र-अपवित्र होते रहते हैं । माया की जीत होती है ना । तो बाबा ने बिल्कुल अच्छी तरह से सब समझा दिया है । ऐसे मत समझना कि बाबा डराते हैं । नहीं-नहीं, एक्यूरेट बात है कि आधा अच्छे-में-अच्छा, उनको भी गिराय देते हैं । तो बाप भी उसी समय में आकर ये सब समझाते हैं ना । तो आत्मा को बाप कहते हैं-हे बच्चा! जो कुछ भी पाप कर्म किया हुआ हो तो मैं अविनाशी वैद्य हूँ मुझे सुनाने से फिर तुम हल्के हो जाएँगे । बाकी तो जन्म-जन्मांतर की कथा कोई जानते ही नहीं हैं । जन्म-जन्मांतर की फिर तो जो अन्त तक याद करते रहो तो पाप सभी कट जाएंगे । कट तो जाते हैं ना । फिर जो सच कहते हैं, पुरुषार्थ करते हैं, वो फिर लॉटरी विन कर देते हैं । ऐसे नहीं कि बाल-ब्रहमचारी कोई कर सकते हैं । नहीं । यह पुरुषार्थ की है । पुरुषार्थ के लिए भी दिखलाते हैं देखो, यह बुडढा भी पुरुषार्थ कर सकते हैं । मैं बोलता भी हूँ ये बहुत- देखो, बिल्कुल ही बालब्रहमचारी नहीं है । ये पतित ये सारी आयु पूरी की है, जो पतित होने की है 60 वर्ष की । समझा! पूरा पतित है, जैसे पतित होते हैं । यहाँ भी जब ये देखो सीखा है.. .तो भी बहुत ही चोटें खाते हैं । देखो, तुम मीठे बच्चे कितनी चोंटें खाते हैं! तो कहीं भी सेन्टर पर जाकर रिफ्रेश न होगा, कैरेक्टर बिगड़ जाएगा । सारी बात है कैरेक्टर के ऊपर । भारत का कैरेक्टर कहेंगे; क्योकि विकार ही पहले नम्बर का खराब कैरेक्टर है । सबसे पहले नम्बर का खराब कैरेक्टर यह है 'विकार । इसलिए बाप अब बच्चों को कहते हैं ना- बच्चों, जो काम रूपी शत्रु तो आगे सुना था । कभी सुना था । 5000 वर्ष पहले सुना था, अभी तुमको मालूम हुआ । यह गीता का ज्ञान जो बाप ने दिया था, जरूर संगमयुग पर दिया था, पुरानी और नई दुनिया के समय में और जब ये एटमिक बोम्ब्स की लड़ाई भी लगी थी । लड़ाई कभी भी नहीं लगी है । सुना है कि लगी थी । कब लगी थी? कोई भी हिसाब नहीं कोई जानते हैं । बाप बैठकर यह सारा हिसाब बताते हैं कि हर 5000 वर्ष बाद, फिर यह जो ऐटमिक लड़ाई है, यह बहुत कड़ी लड़ाई है और झाड़ भी पुराना हो जाता है । 5000 वर्ष से अधिक आयु इस झाड़ की होती ही नहीं है । तो तुम्हारी बुद्धि में यह सभी ज्ञान रहता है जो नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार सुनाते हो । सब तो सुनाते ही नहीं है । सुनाते तो सबको एक है ना । कोई अलग तो नहीं समझाते हैं । प्राइवेट तो नहीं समझाते हैं । फिर हर एक की बुद्धि है । स्कूल में भी टीचर सबको कथा सुनाते हैं ।..........वहाँ भी एक दस्तूर है जो कोई बच्चा ठण्डा होता है, तो एक टीचर रखकर देते हैं । यहाँ तो कभी भी कोई लिख देते हैं 'बाबा कोई कृपा करो, 'आशीर्वाद करो । यह नहीं कहते हैं कि हमको आ करके पढ़ाओ । आ करके पढ़ाएगा कैसे? तो बाबा कहते हैं हम ऐसे उसको लिख देता हूँ कि आशीर्वाद तुम अपने ऊपर अच्छी तरह से योग और पढ़ाई से करो । अपने को तिलक भी लगाना है । तुमको यह आशीर्वाद नहीं मिलती है- धनवान भव तो बन जाएँगे । नहीं । अपने ऊपर यही याद की यात्रा, दैवीगुण और आप समान बहुत बनाओ तो बरोबर तुम आपे ही राजा बन जाएंगे, महाराजा बन जाएँगे । महाराजा बनना, राजा बनना, ये कब से शुरू हुआ? तो जरूर अभी तुम समझ गए ना, अब बाबा ने आय करके यह कैसे पढ़ाई से वर्सा दिया । अभी पढ़ाई से वर्सा मिलता है तुम बच्चों को । पीछे तो कोई पतित पढ़ाई से राजा नहीं बनते हैं । पीछे तो वो तो वो चली आती है और चली आती है जब द्वापर शुरू होता है तो फिर होता है अच्छा कर्म करने से बहुत बहुत दान पुण्य करने से तो फिर वो राजाई मिलती है वा धन मिलता है । .....वो अभी तलक भी ऐसा चलता है । अभी.. ..बहुत धनवान कोई होवे और गवर्मेन्ट को 50-10-20 लाख की मदद करे तो उनको टाइटिल मिल सकते है । यह राम की दुनिया, रावण की दुनिया; रावण की दुनिया, राम की दुनिया- चक्कर कैसे लगाती है? पूरे हरेक टाइम पर अपना पार्ट बजाते रहते हैं । समझेगा कि हम कोई बच्चों को पढ़ा रहे हैं यानी संतान को पढ़ा रहे हैं । यही एक रूहानी बाप है । तो जब पढ़ाते हैं तो यह तो समझता होगा ना कि हम अपने रूहानी बच्चों को पढ़ाते हैं ।.... फिर ले आना है फिर भी, परन्तु थोड़ा समय ठहरना पड़ता है जरूर । रेस्ट जिसको कहा जाता है ना; क्योंकि तब तक तुम्हारे रूहानी बच्चे भी हैं यहाँ और जिस्मानी बच्चे भी हैं, रावण के बच्चे भी हैं, वो भी बच्चे हैं, थोड़ा थोड़ा रिफ्रेश लेते हैं जब तलक कि और भी बाकी बच्चे, देखो जाते हैं ना इन एडवांस । अच्छे-अच्छे महारथी भी जाते हैं, घोड़ेसवार भी जाते हैं, प्यादे भी जाते हैं । अभी आगे चल करके टाइम पड़ा हुआ है ना । उस छोटी-सी आत्मा में बाकी थोड़ा-सा पूँछड़ी विकार की । 5000 वर्ष का रिकॉर्ड है । वो हुई ना कोई की बुद्धि में, तुम्हारे बुद्धि में भी तिरक जाता है, बुद्धि से ही तिरक जाता है । जानते हो अगर, तो फिर तो चक्कर फिरना चाहिए । किसका नहीं फिरता है, इससे सिद्ध होता है कि यह देरी से आने वाला है । उससे भी कम, उससे भी कम, तो उससे भी देरी से आने वाला है, देरी से याद करे । जो-जो भी धारणा पूरी नहीं करते हैं, वो देरी से आएंगे । जो धारणा करेंगे वो तो बाबा ने यह राज समझा ।......बाबा कहते हैं कोई वक्त में ऐसी गुह्य बातें निकलती हैं जो कोई भी संशय हो तो वो संशय उड़ जाता है, इसलिए पढ़ाई को एक दिन भी मिस नहीं करना है । ऐसे नहीं समझना कि बाबा रोज एक जैसी बातें समझाते हैं । मुख्य बात यही है कि याद करना और दैवीगुण धारण करना । दैवीगुण का अर्थ ही है कोई भी.. विकार नहीं करना । यह तो जानते हो । दैवीगुण धारण करना । कोई भी कुछ छी-छी बोले तो सुना-अनसुना, तभी तो गाया जाता है ना- हियर नो ईविल यानी कोई भी चरिये-खरिये की बात कोई करे, तो जैसे कि सुना-अनसुना । तो बाप सुना है ना- मान-अपमान । दु:ख-सुख मान-अपमान- ये सभी सहन करने का है । सहन की युक्ति बता देते हैं । कोई भी कुछ भी कहे तो जैसे सुना-अनसुना कर देना । अभी यह भी अवस्था चाहिए ना । जिस समय में सुनते हैं उस समय में तो झट आ जाते हैं ।.......जो कोई भी कुछ भी सुने-अनसुने । तुमको तो कहा गया है ना कि ये सारी दुनिया को भूल जाओ, तो अपन को आत्मा सुनो । अरे! आत्मा कानों बिगर कैसे सुनेगी? तो अशरीरी हो जाओ । देखो, रात को आत्मा आपे ही अशरीरी हो जाती है । सो जाते हो, मर जाते हो, कोई उस समय में तलवार ले आ करके गला काटकर जाओ, ऐसे-ऐसे निकले हुए हैं ना, काटकर जाते हैं, हर बार मारकर जाते हैं, फलाने मर जाते हैं, तुमको पता थोड़े ही लगता है । तो ये आत्मा है ना बच्चे । अपन को आत्मा ही समझना चाहिए । आत्मा इस शरीर के द्वारा कर्म करती है, सो थक जाती है । तो ऑटोमैटिकली वास्तव में अशरीरी होते हुए अशरीरी हो जाते है, जिसको नींद कहा जाता है । बाकी यह है तो नींद, आत्मा अशरीरी हो जाती है, उसको नींद कहा जाता है; क्योंकि थकती भी बहुत है । कभी कोई आत्मा को कोई ख्याल है कोई यहॉ-वहाँ बाहर का तो उसकी नीद भी फिट ही जाती है । अशरीरी हो नहीं सकती है; क्योंकि शरीर के होते उनको बहुत ही खयालात होते हैं- ये खयाल, ये खयाल । रात को तो नींद फिट जाती है । अपन को जब तलक आत्मा, अशरीरी नहीं बने हो अच्छी तरह से ज्ञान से तब तलक कुछ-न-कुछ ये चोट माया की लगती रहेगी । कुछ-न-कुछ सुना ही देंगे । थोड़ा भी दुःख होगा । जब एकदम पक्के हो जाएंगे ना तो फिर बाबा ने कह दिया यह युक्ति है- सुना-अनसुना कर दो । यह हियर नो ईविल, सी नो ईविल, टॉक नो ईविल सिवाय बंदर के और कोई को नहीं दिया हुआ है । बन्दर को क्यों दिया हुआ है? दिखलाते हैं ना, शास्त्रों में भी बंदरों की सेना दिखलाते हैं । अभी बन्दरों की कोई सेना होती ही नहीं है । इसलिए मनुष्य इस समय में हूबहू बंदर बुद्धि हैं । मीठे-मीठे सिकीलधे रूहानी बच्चों प्रति रूहानी बाप व दादा का दिल व जान, सिक व प्रेम से नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार यादप्यार और गुडमार्निग । मीठे-मीठे सिकीलधे रूहानी बच्चों प्रति रूहानी बाप की नमस्ते ।