14-01-1964     मधुबन आबू     प्रात: मुरली    साकार बाबा    ओम् शांति    मधुबन
 


हेलो, स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण कुलभूषणों को हम मधुबन निवासियों की नमस्ते, आज मंगलवार जनवरी की चौदह तारीख है प्रात: क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं।

पावन दुनिया कहा जाता है सतयुग को, नई दुनिया को और पतित दुनिया कहा जाता है पुरानी दुनिया को, कलहयुग को । अभी कहाँ बैठे हो? कलहयुग के अंत में बैठे हो; क्योंकि जिसको पुकारा है बाबा, आ करके हम सबको पावन बनाओ । हमको किसको? अहम आत्मा को; क्योंकि आत्मा को ही पवित्र बनना है । जब आत्मा पवित्र बन जाएगी तो शरीर भी पवित्र मिलेगा । आत्मा पतित है तो शरीर भी पतित मिलेगा । ये जो पाँच मिट्‌टी का पुतला बनता है ना, परन्तु आत्मा तो अविनाशी है । वो आत्मा खुद इन ऑरगन्स जो माउथ है, उनसे कहती है । पुकारती है कि हम पतित बन गए हैं, आ करके पावन बनाओ । बाप पावन बनाते हैं, पाँच विकार रूपी रावण पतित बनाते हैं । पावन सतयुग को कहा जाता है, पतित कलहयुग को कहा जाता है । अभी कलहयुग है ना बच्चे । अभी तुमको स्मृति दिलाई कि तुम पावन थे. फिर ऐसे-ऐसे नीचे उतरते, 84 जन्म ले करके, तुम बहुत जन्म के अंत के जन्म के भी अंत में आ पड़े हो । अभी 84 जन्म पूरा हुआ है । ये जो मनुष्य सृष्टि का झाड़ है, जिसका अभी बाप कहते हैं, मैं बीजरूप हूँ क्योंकि मैं ऊपर में रहता हूँ ना । तो मुझे ऐसे बुलाते हैं- हे परमपिता परमात्मा! अंग्रेजी में भी कहते हैं- ओ गॉड फादर! लिबरेट मी । अभी ऐसे नहीं कहते हैं । हरेक अपने लिए ही मांगते हैं- लिबरेट मी एण्ड गाइड मी । मुझे छुड़ाओ भी और मेरा पण्डा बन करके घर में ले जाओ, शांतिधाम ले जाओ । यहाँ जो भी सन्यासी वगैरह आते हैं.... वो कहते हैं स्थायी शांति कैसे मिले? अभी शांति तो मूलवतन में ही होती है, जहाँ हमारा निवास है, जहाँ से हम पार्ट बजाने आते हैं । वहाँ शरीर तो नहीं होता है ना । वहाँ नंगे रहते हैं अर्थात् शरीर नहीं होता है । नंगी होने का मतलब ऐसे नहीं कि कपड़ा(चोला) नहीं पहनते हैं ।...... (बाबा) कहते हैं बच्चों को, जब तुम अपने घर शांतिधाम या निराकार दुनिया में रहते हो, वो भी दुनिया है ना, आत्माओं की दुनिया । ये मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चे जो आए हैं इनको ये सीढ़ी पर समझाओ कि कैसे हम सीढ़ी से उतरते हैं । हमको 84 जन्म लग गए हैं । अभी सबको 84 जन्म नहीं मिलते हैं । यह है मैक्सीमम बेहद 84 जन्म । फिर कोई एक जन्म भी लेते हैं । हमेशा वन टू एटी फोर; क्योंकि आत्मा आती ही रहती है । अभी बाप कहते हैं मैं आया हूँ तुम बच्चों को पावन बनाने; क्योकि इनको क्या कहते हैं? सभी चिट्‌ठी क्या लिखते हैं? शिवबाबा केयर ऑफ ब्रहमा बाबा । दोनों बाबा । शिवबाबा है सभी आत्माओं का बाबा और फिर ब्रहमा को कहा जाता है आदिदेव, एडम, दादा । तो देखो, ये दादा में बाप आते हैं । मुख चाहिए । बाप कहते हैं कि तुमने जब मुझे बुलाया कि हे पतित पावन बाबा! किसने बुलाया? आत्मा ने बुलाया ना । आत्मा ने इन शरीर से बुलाया, मुख से बुलाया । आत्मा तो इसमें सभी कुछ करती है ना । शरीर तो पाँच तत्वों का बना हुआ एक पिण्ड है । वो तो मिट्‌टी हो जाता है । आत्मा तो मिट्‌टी नहीं होती है ना । तो बाबा को आत्माओं ने बुलाया जीव आत्माओं ने बुलाया है; क्योंकि इस समय में दुःख है, कलहयुग है । अकाले मृत्यु भी हो जाती है । काल जब चाहिए तब ड्रामा के प्लैन अनुसार अपना कार्य करता है । यह है ड्रामा । छोटे भी मर पड़ते हंम । वह सतयुग में किसको अकाले मृत्यु बिल्कुल होती नहीं है । यहाँ तो कोई भी बैठे-बैठे ही गिर गया, क्या हुआ हार्ट फेल हुआ, मर गया । वहाँ ऐसे कोई बीमारी नहीं होती है । उसका नाम ही देखो कितना अच्छा है, कहने से ही खुशी आती है- स्वर्ग, हेविन बहिश्त । ये अंग्रेज लोग पैराडाइज कहते है, क्योंकि भाषाएं अलग-अलग हैं ना । तो यहाँ भारत में जिसको स्वर्ग कहते हैं उसको क्रिश्चियन लोग पैराडाइज कहते हैं । अभी उनको ये भी मालूम है कि इस क्रिश्चियन धर्म के 3000 वर्ष पहले पैराडाइज था और जो यहाँ वाले हैं उनको यह भी मालूम नहीं । क्यों? जब भारत तमोप्रधान है बिल्कुल ही; क्योंकि सुख बहुत देखा है ना तो दुःख भी बहुत देखने का है । जन्म भी पूरा लेते हैं भारतवासी । और कोई भी खण्ड में कोई भी धर्म वाले 84 जन्म नहीं ले सकते हैं; क्योंकि जब आधा कल्प पूरा होता है, इस दुनिया की जब आधा होती है, उसके बाद ही तो पहले-पहले इस्लाम आते हैं, फिर बौद्ध आते हैं, फिर क्राईस्ट आते हैं । यह तुम भी अभी जानते हो कि बरोबर जब देवी-देवताएँ थे तब और कोई नहीं थे । चंद्रवंशी रामराज्य भी नहीं था । पीछे रामराज्य आया तो कोई इस्लामी या बौद्धी आदि नहीं था । देखो, बुद्धि से काम लेना होता है ना । मनुष्यों को यह मालूम नहीं है । ये बाप समझाते हैं बच्चों को, क्योंकि मनुष्य तो घोर अंधियारे में हैं । यूं कह देते हैं कि ये जो दुनिया की आयु है पुरानी और नई होती है ना-सतयुग और कलहयुग । तो देखो, वो नई दुनिया को सतयुग और पुरानी दुनिया को कलहयुग कहा जाता है । अभी तो कलहयुग है । सतयुग को कितना वर्ष हुआ? तो ये जो शास्त्र हैं, जिनसे ये साधु-संत पढ़ करके सुनाते हैं, वो बोलते हैं लाखों वर्ष हुआ । कल्प की आयु लाखों वर्ष रहती है । एक दो लाख नहीं, लाखों वर्ष; क्योंकि कलहयुग की आयु ही 40 हजार वर्ष कहते हैं । तो कहते हैं अभी कलहयुग बच्चा है । छोटा है । यहाँ कलहयुग की आयु आकर पूरी हुई है, जो तुम आए हो फिर से बेहद के बाप से स्वर्ग का वर्सा लेने; क्योंकि बेहद का बाप स्वर्ग का वर्सा देते हैं । 5000 वर्ष हुआ, तो तुम सभी स्वर्ग के वासी थे; क्योंकि बाप जब आते हैं तो स्वर्ग ही स्थापन करते हैं । बाकी सभी जो आते हैं वो कहाँ? सब शांतिधाम में रहते हैं । उसको कहा जाता है स्वीट साइलेंस होम । उस घर में बाकी आत्माएँ एकदम शांत में निवास करती हैं; क्योंकि शरीर बिगर कोई कुछ बोल नहीं सकते हैं । बाकी इतना जरूर है कि जो भी आत्माएँ जहाँ भी रहती हैं वो सभी आत्माएँ पार्टधारी हैं । उस समय उन लोगों का पार्ट नहीं है । सब आत्माओं को पार्ट मिला हुआ है, पर शरीर नहीं होने के कारण बोल नहीं सकती हैं । आत्मा शांत रहती है । उसको कहा ही जाता है शांतिधाम । उसको मूलवतन भी कहा जाता है । आत्माओं का वतन । ये कौन बैठ करके समझाते हैं? ये कोई शास्त्रों में नहीं है । .......भले है वो ही गीता; परन्तु वो जो शास्त्र है, वो तो मनुष्यों ने बनाए हैं ना । बाप अभी सुनाते हैं और विनाश हो जाता है । विनाश हो जाएगा तो सब जलकर भस्म हो जाएगा । कोई शास्त्र वगैरह कुछ भी नहीं रहता है; क्योंकि सतयुग में इन शास्त्रों की दरकार नहीं है । सतयुग में कोई भी भक्ति नहीं करते हैं, इसलिए शास्त्रों की दरकार नहीं है । देवता ही नहीं होते हैं, वो खुद ही देवता बन जाते हैं । देवताएँ तो भक्ति नहीं करते हैं ना । पीछे देवताओं की भक्ति करते हैं मनुष्य । वो है आधाकल्प देवताओं की दुनिया यह है मनुष्यों कि दुनिया । यह मुनष्यों की दुनिया क्यों कही जाती है, क्योंकि यह है रावण की दुनिया और वो है राम की दुनिया । तो आधाकल्प में हैं देवी-देवता । सूर्यवंशी और चन्द्रवंशियों को देवी-देवता कहा जाता है । अभी जो भी मनुष्य हैं द्वापर और कलहयुगी उनको मनुष्य कहा जाता है । उनको देवता, इनको मनुष्य । तो देखो, मनुष्यों(देवताओं) का भी राज्य था, जिसको सूर्यवंशी और चन्द्रवंशी राजधानी या डिनायस्टी कहा जाता था । अभी वो तो नहीं है ना । अभी कहाँ गए यह किसको मालूम नहीं है । देखो, इनके लिए कोई भी पूछेंगे ये लक्ष्मी और नारायण कहाँ से आए? कहाँ गए? यहाँ थे ना, यहाँ उनका राज्य था, उसको स्वर्ग कहा जाता है । ये स्वर्ग के राजाए थे, पीछे रामचंद्र त्रेता के राजाऐ थे । जैसे वो अंग्रेज लोग बोलते हैं ना- एडवर्ड द फर्स्ट, द सेकण्ड, द थर्ड.. .. इनकी भी ऐसे ही डिनायस्टी थी- लक्ष्मी नारायण द फर्स्ट, द सेकण्ड, द थर्ड, आठ तक । पीछे आता है राम-सीता का राज्य । उनकी 12 तक डिनायस्टी चलती है । इसको नॉलेज कहा जाता है । मनुष्य में नहीं होती है । यह बाप में होती है, जब मनुष्यों को देते हैं तो मनुष्य देवता बन जाते हैं । तुम यहाँ आते हो क्या बनने के लिए? मानुष ते देवता बनने के लिए । देवताएँ तो बहुत पवित्र होते हैं । वो कोई गंद खाते होंगे? शराब पीते होंगे? बीड़ी पीते होंगे? कृष्ण को कभी भोग लगाते हो ऐसे? बिल्कुल नहीं । क्यों? वो हैं देवताएँ ये हैं मनुष्य । वो पावन, ये पतित । जो कुछ...आते हैं, वो. .देवताओं को कभी भी नहीं खिलाएंगे । कायदा नहीं है, क्योंकि वो तो वैष्णव यानी विष्णु की डिनायस्टी है । विष्णु कहा जाता है लक्ष्मी और नारायण कम्बाइण्ड को । बाबा ने समझाया है ना- यह है ड्रामा । सत-त्रेता में होते हैं देवताएँ । अभी याद करना पड़े ना । तो कौन थे देवताएँ? तुम थे देवताएँ क्योंकि तुमको मालूम होना चाहिए कि हम 84 जन्म कैसे लेते हैं और 84 जन्म हमको कौन बताते हैं? बाप बताते हैं । हे बच्चों, वो किससे बात करता है? आत्माओं से बात करते हैं । वो शरीर के ऊपर नजर नहीं करते हैं; क्योंकि वो जानते हैं कि शरीर तो सभी मिट्‌टी में मिल जाएंगे । आत्मा थोड़े ही मिट्‌टी में मिलती है । सुनती है आत्मा, शरीर थोड़े ही सुनता है । आत्मा इन शरीर यानी ऑरगन्स द्वारा सुनती है । अभी यह समझते हो ना बरोबर आत्मा सस्कार ले जाती है । ये साधु-संत लोग जो शास्त्र पढ़ते हैं वो हैं भक्ति के शास्त्र । ज्ञान का शास्त्र होता ही नहीं है । ज्ञान होता ही है सतयुग और त्रेता में । द्वापर और कलहयुग में भक्ति है । बाप ने समझाया है ना- आधाकल्प भक्ति, आधाकल्प ज्ञान । ज्ञान सुख, भक्ति दुःख । ज्ञान सतयुग और त्रेता को सुखधाम कहा जाता है । पीछे द्वापर और कलहयुग को दु:खधाम कहा जाता है । बुद्धि से ये विचार करो कि बरोबर सतयुग यानी सूर्यवंशी और चन्द्रवंशी रामराज्य, इन दोनों में रावण होता नहीं है, जो दु:खी बनाते हैं, विकार में ले जाते हैं । तो वहाँ सुख और फिर जब विकार में जाते हैं फिर आहिस्ते-आहिस्ते दु:ख शुरू होता जाता है; क्योंकि उस समय में तो पहले-पहले रजोगुण की भी आदि है, तो इतना दुःख नहीं है । पैसे बहुत हैं; क्योंकि बाप समझाते हैं कि जब सतयुग-त्रेता पूरा होता है तो द्वापर में तुम्हारे पास अथाह धन रहता है । उस समय में कोई मोहम्मद गजनवी नहीं आए थे जो लूट करे या कुछ भी करे । ऐसी कोई बात नहीं । ये बाप बैठ करके समझाते जब तुम भक्तिमार्ग में गए, पीछे पूजा शुरू हुई, रावण का राज्य शुरू हुआ । पीछे तुम पुजारी बनने के कारण मंदिर बनाने लगे । अभी धन तुम लोगों के पास बहुत, ढेर था । पहले-पहले नामी-ग्रामी है उज्जैन की तरफ मे सोमनाथ का मंदिर । ये सोमनाथ के मंदिर में बहुत मिल्कियत थी । सारा मंदिर सोने का, उसमें बड़े-बड़े हीरे और जवाहर लगे हुए थे । उस मंदिर की कभी कोई कीमत नहीं लगा सकते हैं । देखो, तुम जानते हो कि बरोबर जब मोहम्मद गजनवी आया लूटने के लिए, ये जो गोप हैं उन्होंने हिस्ट्री-जॉग्राफी तो पढ़ी होगी । इनमें भी कोई ऊँचा पढ़ा होगा उन्होने जाना होगा मोहम्मद गजनवी आया था, फिर आकर के ऊंट भर करके सोने-जवाहरों के वो अफगानिस्तान की तरफ ले गया । तो कितने मंदिर लूटे होंगे, यह तो हिस्ट्री मे लिखा है कि एक ये सोमनाथ का मंदिर, मुख्य मंदिर परंतु मंदिर जब राजाएं बनाते हैं तो सब बनाते हैं, क्योंकि उनको पूजा करनी होती है ना । तो पहले-पहले पूजा शिव की होती है । यह सोमनाथ भी शिव का मंदिर है । नाम सोमनाथ दिया है । सोमनाथ का अर्थ ही है- सोमरस पिलाने वाला अर्थात् ज्ञान सुनाने वाला । तो बरोबर अभी शिवबाबा तुमको ज्ञान सुना रहे हैं ना । शास्त्रों मे ज्ञान नहीं होता है, उनमें भक्ति होती है । भक्ति की ऐसे ही अटल-पटल बातें सब बैठ करके लिखी हुई हैं । उसको फिर बाप बैठ करके समझाते हैं कि शुरुआत में ही जो ये शास्त्र हैं सर्वशास्त्रमई शिरोमणि गीता, वो ही जिन मनुष्यों ने बनाई है न। देवताओं के पास शास्त्र नहीं थे, न बनाते थे । मनुष्यों ने ये सभी शास्त्र बनाए हैं । रावण के राज्य मे झूठ का राज्य हो गया, क्योंकि भारत पहले सचखण्ड था । सचखण्ड तो सच्चे बाबा ने स्थापन किया । सच तो ट्रुथ बाप को कहा जाता है । तो बाप वो ट्रुथ आकर बताते हैं कि मुझे ट्रुथ कहते हैं । मैं इस भारत को, जो अभी झूठखण्ड है, झूठी माया झूठी काया, झूठा सब संसार, उनको सचखण्ड बनाता हूँ । तुमको सिखलाता हूँ तुम सच्चे देवताएं कैसे बनते हो । देखो, यहाँ आते हैं सभी । यहाँ तो सैकडो आते हैं ना । अभी सीजन नहीं है, तो ठण्डी के कारण थोड़े आते हैं । नहीं तो यह हॉल पूरा नहीं होता है ना, इसलिए तो मकान पिछाड़ी मकान बनते ही रहते हैं .बनते ही रहेंगे । बहुत बनेंगे । ...जैसे पहले छोटा मकान था । अभी कितने मकान बनते जाते हैं । फिर माडियाँ बनाते हैं । फिर जो-जो भी मकान मिलते हैं खरीद करने लग पड़ते हैं । अभी कौन खरीद करते हैं? शिवबाबा ब्रहमा के द्वारा । ब्रहमा हो गया साँवरा क्योंकि यह इनका बहुत जन्म के अंत का जन्म है । इसके बाद फिर गोरा बनेगा । अभी सॉवरा है । तुम भी सभी गोरे थे, अभी साँवरे बन गए । अभी यहाँ आए हो गोरे बनने । देखो, कृष्ण का चित्र भी है ना । म्यूज़ियम में तो सब बड़े-बड़े चित्र बनाते हैं । यहाँ बाबा म्यूज़ियम नहीं बनाते हैं, क्योंकि यहाँ तो सब अंदर घुस आवें । तो यहाँ कायदा नहीं है । इसको कहा जाता है टॉवर ऑफ साइलेन्स शांति का, क्योकि तुम बच्चे जानते हो कि हम घर जाते हैं शांतिधाम में । हम रहने वाले भी सब शांतिधाम के हैं । जहाँ से आते हो, जहॉ सिर्फ आत्माएँ रहती हैं, उसको कहा जाता है शांतिधाम । उसको टॉवर ऑफ साइलेन्स भी कहा जाता है । वहाँ मनुष्य को शरीर तो है नहीं । पीछे यहाँ आ करके शरीर ले करके पार्ट बजाते हैं । तो जब नए आते हैं नई दुनिया में तो वहाँ सुख ही सुख होता है, शांति ही शांति होती है । तो बच्चों को पहले-पहले यह निश्चय होना चाहिए ये कोई साधू संत महात्मा नहीं पढ़ाते हैं । हम इनको तो छोटेपन से जानते हैं । ये सिंध का रहने वाला, उनके बापदादा वगैरह को जानते हैं, परन्तु इसमे फिर जो ज्ञान का सागर प्रवेश करके बोलते है, उसको तो कोई भी नहीं जानते हैं । पुकारते हैं ओ गॉड फादर। परन्तु गॉड फादर का रूप क्या है, देश क्या है, काल क्या है? शास्त्रों में लिख दिया है कि उसका नाम रूप देश काल नहीं है । वो निराकार है अर्थात् कुछ नहीं है । उसको कोई भी आकार नहीं है, इसलिए कुछ नहीं है । कुछ नहीं है तो फिर क्या है? फिर कह देते हैं सर्वव्यापी है । अरे, परमात्मा कहाँ है? तो कहेंगे घट-घट में है । वो घट-घट के वासी हैं यानी सबके अंदर है । वो अंदर कहाँ बैठे हैं ? हर एक के घट-घट में तो आत्मा बैठी हुई है । परमात्मा तो घट-घट में है नहीं । सब भाई-भाई हैं । घट-घट में परमात्मा कहाँ से आया? ऐसे थोड़े ही है कि हर एक मनुष्य में परमात्मा भी है, तो आत्मा भी है । सिर्फ एक शरीर में वो परमात्मा भी है, आत्मा भी है । जबकि बाप परमात्मा को बुलाते हैं कि बाबा आ करके हमको पतित से पावन बनाओ । बाप खुद कहते हैं ना कि बच्चों, मुझे तुम बुलाते हो यहाँ धंधा देने के लिए? यहाँ सेवा कराने के लिए कि हम छी-छी मूत पलीती बन गए हैं, हमको आ करके शुद्ध बनाओ, इसलिए बुलाते हो? मुझे बुलाते कहाँ हो? छी-छी दुनियाँ में । पतित दुनिया में हमको निमंत्रण देते हो । पावन दुनिया में ऐसे बाप को बुलाते ही नहीं हो । बोलते हैं हम पतित हैं, हमको ....चाहिए पावन बनाने के लिए बाबा । बाबा पावन दुनिया तो देखते ही नहीं हैं । बाबा पतित दुनिया ही देखते हैं । तुम्हारी सेवा करने आते हैं । मूत-पलीती हो ना, सभी विकारी हो ना । तो आते हैं । हम बुलाते हैं । बोलते है- अभी विकारी यानी रावण का राज्य खत्म होता है । ये सब विनाश हो जाएगा । बाकी क्या जाकर बचेगा? भारत का जो राजयोग सीखते हैं, वो बचेंगे । ये राजयोग है । राजाओ का राजा बनने वाले हो । कल्प-कल्प हर 5000 वर्ष तुमको यह पढ़ाई पढ़ाई जाती है इन्यूमरेबल टाइम्स अनगिनत बार । ये बंद होने की ही नहीं है । फिर 5000 वर्ष के बाद फिर तुम ढेर आते हो ...लाखो-करोड़ों आएंगे, क्योंकि सतयुग और त्रेता की राजधानी स्थापन हो रही है । पहले ब्राहमण कुल होता है । देखो, तुम सभी ब्रहमाकुमार हो ना । प्रजापिता ब्रहमा को गाया जाता है ना ब्रहमा, जिसको एडम कहते हैं, आदिदेव कहते हैँ । उनको मालूम नहीं है कि आदिदेव क्या करते हैं? ...अभी प्रजापिता ब्रहमा के इतने करोड़ ब्राहमण होंगे, क्योंकि उनको ही देवता और क्षत्रिय बनना है, सतयुग-त्रेता की राजाई लेनी है । तो यहाँ इतने सभी बनने वाले हैं और ढेर हैं । इस समय में भी लाखों है, क्योकि भले जो आ करके सुनकर भी फिर चले जाते हैं, माया वश हो जाते हैं, पुण्य आत्मा बनते-बनते फिर पापात्मा बन जाते हैं । बाबा समझाते हैं ना मुरली में । मुरली पढ़ते हो? कि माया बड़ी जबरदस्त है । माया सबको पापात्मा बना देती है । सब पापात्मा हैं । इस समय में कोई भी पुण्य आत्मा नहीं, कोई भी पवित्र आत्मा नहीं है । पवित्र आत्माएँ देवी-देवता थे । तो दुनिया में जब सब पतित आत्माएँ बन जाती हैं, फिर उनको पावन कौन बनावे? तो बाप को बुलाते हैं । बाप एक ही बार पुरुषोत्तम संगमयुग पर आते है । इसको पुरुषोत्तम कहा जाता है । तुम अपने को पुरुषोत्तम कहेंगे? नहीं । तुम तो देवताओं के ऊपर मत्था टेकते हो , क्योकि उत्तम नहीं हो, मध्यम भी नहीं, कनिष्ठ हो । पाँच विकारों से भरे हुए......... । ऐसे यहाँ भी तो है ना । बहुत राजा-रजवाड़ा भी है और फिर वजीर भी हैं, साहूकार भी हैं, गरीब भी हैं । फिर देखो, कचरे में बैठने वाले भी हैं । ऐसे हैं ना, परन्तु यह है दुःखधाम और वो है सुखधाम । वहाँ सुख ही सुख है, अकाले कोई मरता नहीं है और यहाँ दुःख ही दुःख है, कोई भी वक्त मर सकते हैं, पेट मे भी मर सकते हैं, बाहर निकलने से मर सकते हैं । इसलिए इसका नाम ही रखा हुआ है 'मृत्युलोक' और सतयुग को कहा जाता है 'अमरलोक' । चक्र फिरता है ना- सतयुग था, अभी कलहयुग है । अमरलोक था, जिसको स्वर्ग कहा जाता था, अभी नर्क कहा जाता है, फिर अभी स्वर्ग बन रहा है । स्वर्ग का बनाने वाला तो बाप ही ठहरा । नई दुनिया को बनाने वाला बाप है । तो देखो, यहाँ कौन पढ़ाते हैं? बाप । उसको ही अंग्रेजी में नॉलेजफुल कहा जाता है, क्योंकि चैतन्य बीजरूप है ना । तो जो चैतन्य बीजरूप है वो चैतन्य है ना । उनको ज्ञान का सागर भी कहा जाता है । कौन सा ज्ञान है उनमें? वो ऐसे नहीं है कि जैसे मनुष्य समझते हैं कि सबके अन्दर की जानते हैं, अन्तर्यामी हैं । नहीं, अन्तर्यामी नहीं हैं । मनुष्य यह बात झूठ बोलते हैं, बाकी ज्ञान का सागर ठीक है । ज्ञान का सागर क्यों है? क्योंकि बीज है, चैतन्य है ना । वो इस सृष्टि के आदि मध्य अंत को जानते हैं, इसलिए उसको ज्ञान का सागर कहा जाता है । ज्ञान मिल रहा है तुम बच्चों को । अभी देखो बाप आए हैं 21 जन्म सदा सुखी रहने के लिए एकदम शुरू से । अभी आएंगे, ये भी आएंगी । ऐसे नहीं समझो कि यह स्वर्ग में नहीं आएंगी, परन्तु स्वर्ग में कब आएँगी 7 जब यह स्वर्ग भी पास्ट हो जाएगा । त्रेता भी पास्ट हो जाएगा । जब पिछाड़ी होगी तब वो आएँगी ।. वो कृष्ण को देखेंगे, कृष्ण की बादशाही देखेंगे, वो तो देखेंगे भी नहीं । इस्लामी, बौद्धी क्रिश्चियन कृष्ण का पैराडाइज देखते हैं क्या? बिल्कुल नहीं देखते है । मनुष्य बनना है अगर तो स्वर्ग का मालिक बनकर दिखलाना है । बनाने वाला है । अभी चांस मिलती है तो बनना चाहिए, क्योंकि मरना तो है ही । अभी तो लड़ाइयां शुरू हो जाएंगी । ये बाप ने समझाया है ना कि ऐटॉमिक बॉम्ब्स तभी चलाएँगे जबकि हम सब बच्चे कर्मातीत अवस्था में लायक बन जाएंगे स्वर्ग में बादशाही करने, तब तलक थोड़ा न थोड़ा करते रहेंगे । पिछाड़ी में ये चला, खेल खतम । तब तलक ये बनाते रहते हैं । ऐसे बनाते रहते हैं, जो बोलते हैं कि हम एक तो दुनिया को भी उड़ा देवें । उनक्री प्रीत बाप से नहीं है । तुम्हारी प्रीत बाप से है । अभी जितनी प्रीत इतना ऊँच पद, क्योंकि गाया हुआ है ना विनाश काले विपरीत बुद्धि विनश्यन्ति, विनाशकाले प्रीत बुद्धि विजयन्ति । वैजयन्ती माला भी तो बहुत बड़ी है ना । तुम्हारे पाप सब कट जाएंगे । नॉलेज तो सुनेंगे ही जरूर, क्योंकि बाबा तो सच्ची नॉलेज ही सुनाएंगे । वहाँ काल नहीं होता है । काल को अलाउ नहीं है । यह सभी शास्त्रों में लिखा हुआ है कि स्वर्ग में काल नहीं होता है । अच्छा, मीठे-मीठे सिकीलधे 5000 वर्ष के बाद फिर से आ करके मिले हुए,...मिलेंगे ही वो जो पहले-पहले आए हैं । उनको फिर पहले ही जाना है वापस, तो उनको ही पहले पढ़ना है और जास्ती पढ़ करके होशियार होना है । जो बहुत होशियार होते हैं, फिर औरों को भी होशियार करते हैं । देखते हो ना म्युजियम में गई थी, देखो कितने खड़े थे ये सभी ब्राहमण जो फिर देवता बनने वाले हैं । जितना बुद्धियोग बाप से लगाएँगे उतना पुण्य आत्मा बनते जाएंगे । तो वो रूहानी पिता । दोनों का यादप्यार और गुडमॉर्निग । फिर बाप कहते हैं कि रूहानी बच्चों! नमस्ते । क्यों? तुम बच्चे मेरे से भी बड़े बनते हो, स्वर्ग के मालिक बनते हो ।