13-02-1964     मधुबन आबू     प्रात: मुरली    साकार बाबा    ओम् शांति    मधुबन
 


हेलो, गुड मोर्निंग। हम मधुबन से बोल रहे हैं। आज गुरुवार फरवरी की तेरह तारीख है, प्रात: क्लास में बापदादा की मुरली सुनते हैं।

रिकॉर्ड :-

लौट गया गम का जमाना........

ओम शांति! ...

जबकि रावण का राज्य है, जिस रावण के राज्य को ये मनुष्य मात्र नहीं जानते हैं । रावण का राज्य किसको कहा जाता है, राम का राज्य किसको कहा जाता है, मनुष्य में इतनी भी बुद्धि न रही है जानने की । सिर्फ बाप ही आ करके समझाते हैं । किनको समझाते हैं? बच्चों को, जिनको अभी समझ पड़ती है कि गम कब होता है और खुशी कब होती है । उसको भी कहा जाता है अस्थाई । इस रावण राज्य में गम भी है खुशी भी है । अभी-अभी देखो खुशी होगी, अभी-अभी देखो गम होगा । अभी-अभी किसको बच्चा पैदा हुआ, अभी-अभी वो मर गया । तो देखो, वहीं की वहीँ खुशी, वहीँ का वहीँ गम । ये दुनिया अल्पकाल क्षणभंगुर है । सन्यासी लोग भी ऐसे ही कहते हैं कि सुख यहाँ का कागविष्टा समान है । तो जरूर कहेंगे कि ये दुनिया गम की है; क्योंकि वो खुद भी तो ऐसे समझाते हैं ना । उनको मालूम तो है नहीं कि सदा सुख, गम का नाम-निशान भी नहीं, वो तो होता ही है रामराज्य कहो या सतयुग कहो या वैकुण्ठ में कहो । सो तो तुम बच्चों को ही अभी मालूम हुआ है कि बरोबर यह रात है और बरोबर रात दुःख की ही होती है; क्योंकि इसको कहा जाता है रावण की रात । रावण जब आते हैं तो रात शुरू हो जाती है, भक्ति शुरू हो जाती है, विकार शुरू हो जाते हैं । अभी तुम बच्चों को तो ये मालूम है कि हम सदा सुख में रहने, सदा खुशी में रहने के लिए पुरुषार्थ कर रहे हैं । बच्चे ये भी जानते हैं बाप आया ही है इसलिए समझाने के लिए कि बच्चे, भविष्य के लिए तुम प्रयत्न करो, पुरुषार्थ करो, क्योंकि अब बाप राज तो बहुत सहज बताते हैं और तो बाबा कुछ नहीं कहते हैं । और तो बाबा में कोई आशायें नहीं रखनी हैं इनमें बाप में या टीचर में । बच्चों को मालूम नहीं है कि बेहद के बाप से क्या मिलता है । बाप आ करके बताते हैं । दुनिया नहीं जानती है कि ईश्वर से भी कुछ मिलता है । वो समझते हैं कि ईश्वर से सुख भी मिलता है, दुःख भी मिलता है । ईश्वर सुख भी देते हैं, दुःख भी देते हैं; परन्तु अभी बच्चे यह समझ गए हैं कि ईश्वर तो सदा के लिए सुख देते हैं और कहते भी हैं बच्चों को कि बच्चे, सुख के लिए श्रीमत पर प्रयत्न करो; क्योंकि मैं आया ही हुआ हूँ बच्चों को रास्ता बताने । कहाँ का? मूलवतन का और विष्णुपुरी का या सुखधाम का और उस रास्ते पर बच्चों को चलना है । और बच्चों को अपने गृहस्थ व्यवहार में क्या झंझट आते हैं । वो तो झंझट है ही है सभी बच्चों को । इन झंझटों में तो सभी मनुष्य हैं, गरीब भी हैं तो साहूकार भी हैं । बाप कहते हैं मैं तो सीधा-सूधा रास्ता बताने आया हुआ हूँ, जो चाहो तो मुक्तिधाम का रास्ता ले लो, सो भी बहुत सहज बताता हूँ । बाकी तुम्हारे पास जो विपदाएं आती रहती हैं, बीमार पड़ते हो, दुःखी होते हो, दिवाले निकालते हो, तो ये तो है सभी तुम्हारा अपना पास्ट का कर्म । वो कर्म का हिसाब-किताब तो बच्चों को भोगना ही है । बाप कहते हैं इनसे मेरा कोई ताल्लुक नहीं है । ये तो तुम्हारे पाप किए हुए हैं या इस समय में भी कोई ऐसे पाप करते हो, इसलिए तुमको दुःख भोगना पड़ता है । अभी बाप कहते हैं मैं तो आया हूँ इन बच्चों को समझाने के लिए कि बच्चे, अभी बाप को याद करो; क्योंकि वापस जाना है । बस । अभी और तो कुछ नहीं कहते हैं । जब घर में जा करके झगड़ते हो, कुछ करते हो, ये तुम्हारे कर्म ठहरे । बाप कहते हैं कि नहीं, हमने झगड़ने करने में बहुत आयु गंवाई, जन्म-जन्मांतर गँवाए हैं । अब तो बाप बिल्कुल ही सीधा, भोला-भाला; देखो, कहा भी जाता है बाप भोलानाथ । बच्चों को रास्ता बहुत सहज बताते हैं कि बच्चे, एक तो मुझे याद करो । कोई भी प्रकार से मुझे याद करो और.. .भी करो; क्योंकि बाप जानते हैं कि स्त्रियों का पुरुषों मे, पुरुषों का स्त्रियों में मोह भी तो बहुत रहता है ना । ये संबंध भी तो है ना । तो इन संबंधो से छुटकारा पाना यह बच्चों का काम है । बाप सिर्फ रास्ता बताते हैं कि बच्चे । अगर तुमको मेरे से वर्सा लेना है तो एक तो तुमको पवित्र बनना है । वो रास्ता बता देते हैं कि कैसे पवित्र बनना है । योग में रहना है और विकार में नहीं जाना है । अभी अगर तुम्हारे से कोई लड़ाई होती है, तो ये तो तुम्हारे कर्म का हिसाब-किताब है, तो तुम्हारे से लड़ते रहेंगे । बाकी तुम पवित्र रहो, इसके लिए कभी भी कोई गवर्मेन्ट भी तुमको कुछ नहीं कह सकती है । बच्चियां कहती हैं, लिखती हैं हम मार खाती हैं, वो घर का बंधन है । वो तो बाप समझाते रहते हैं कोई जनावर तो नहीं हो जो कोई ने तुमको रस्सी से बॉधा हुआ है । इसमें तो बहुत बहादुरी चाहिए । बिल्कुल ही बहादुरी चाहिए । सो भी बाप समझाते रहते हैं कि बच्चे जाओ, कोई भी तकलीफ हो तुमको कोई तकलीफ देता है, तो गवर्मेन्ट के ऑफिसरों को पकड़ो । ये तुम लोगों का काम है । बाप तो रास्ता बताते हैं । बाकी वो बंधन से छूटो ये तुम बच्चों का काम है । तुमको कोई भी हालत में गृहस्थ-व्यवहार में पवित्र रहना है और योग में रहना है । बाप की याद में रहना है, पवित्र रहना है । अभी पवित्रता का क्वेश्चन ही भारी होता है, जिसके लिए मनुष्य कहते हैं यह तो बड़ा मुश्किल है; क्योंकि यह शिक्षा और कोई ने दी नहीं है ना । सन्यासी तो यह शिक्षा नहीं देते हैं कि गृहस्थ-व्यवहार में रहकर के कमल-फूल के समान रहो । भले कोई ब्रहमचारी रहते हों । देखो, कितने सन्यासी बाहर में रहते हैं, परंतु नहीं, ये तो कायदा ही है गृहस्थ-व्यवहार में रहते हुए । तो देखो, बच्चों को भी कहते हैं, बच्चियों को भी कहते हैं तुम वहाँ अपने गृहस्थ व्यवहार में रहकर के कमल-फूल के समान पवित्र रहो । ऐसे कन्याओं को नहीं कहेंगे । वो तो गृहस्थ-व्यवहार में हैं नहीं । वो तो गृहस्थी बनी ही नहीं हैं । उनके लिए तो बिल्कुल ही सहज है कि तुम गृहस्थ-व्यवहार में न जा करके, पवित्र ही रहो, जैसे पवित्र हो । अभी तुमको कोई ऐसा है नहीं कि पवित्र रहो और कोई तुमको फांसी चढ़ाए । ऐसे नहीं तुमको अपवित्र जरूर बनना है । यह भी कोई कायदा नहीं है । इसमें तो बड़ी हिम्मत चाहिए । कन्याओं का झुण्ड होना चाहिए । देखो, आजकल एसोसियेशन्स बहुत बनती हैं । बहुत ही कमेटियां बनती हैं । बहुत ही क्या-क्या बनती हैं । बाप तो राय देंगे कि गई, कन्याएँ हैं, जिसको पवित्र रहना है आपस में संगठन करो और गवर्मेन्ट को चिट्‌ठी लिखो कि हम पवित्र रहना चाहती हैं; परंतु सच्चे दिल पर तो साहब राजी होगा ना । अगर उन लोगों को तुम सच्ची दिल पर लिखेंगी तो फिर उनकी बुद्धि में भी आएगा । बुद्धि का ताला उनका ढीला करेगा कि भई ये सच पर रहती हैं । इनकी दिल पवित्र रहने की अच्छी है और ये चिट्‌ठी भी लिख सकती हैं कि हम भारत को पवित्र बनाने, स्वर्ग बनाने, पावन बनाने के लिए पवित्र रहना चाहती हैं । इसमें भारत का ही कल्याण है; क्योंकि हम पवित्र रहेंगी तो पवित्रता का वर्सा हमको मिल जाएगा । जो न पवित्र रहेंगे उनको वर्सा नहीं मिलेगा । ये है वर्सा लेने के लिए, जो करेगा सो पाएगा । वो लोग भले कुछ भी समझें कि क्या इसके पवित्र रहने से कोई दुनिया पवित्र हो जाएगी? नहीं, परन्तु अगर उनको समझाया जाए कि क्यों? सतयुग में तो दुनिया पवित्र थी । वो जो फिर संगमयुग में पवित्र बने वही पवित्र दुनिया का मालिक बने, फिर सारी दुनिया थोड़े ही पवित्र बनी । सारी दुनियाँ का पवित्र बनने का तो क्वेश्चन ही नहीं उठता है । .... .वो तो ऑटोमैटिकली बन ही जाएगी; क्योंकि विनाश के बाद सभी आत्माएँ अपना हिसाब-किताब चुक्तू कर वापस चली जाएंगी । गाते भी हैं कि यह कयामत का समय है । हर एक को अपना हिसाब-किताब चुक्तू कर पवित्र हो वापस जाना है । तो बाप आ करके ये सभी बातें समझाते हैं कि यह तो है जरूर कि सारी दुनिया भी पवित्र बनेगी; परन्तु आ करके कोई वर्सा नहीं लेंगे, ज्ञान नहीं लेंगे । जो आकर ज्ञान लेंगे और सहज राजयोग सीखेंगे वो ही वर्सा पाएँगे । बाकी तो जरूर जानते हैं कि बरोबर जिन्होंने बाप से राजयोग सीखा वो ही सतयुग में होंगे । सारी दुनिया सीख भी नहीं सकती है । अरे, सारा भारत भी नहीं सीख सकता है । जो आते हैं, सुनते हैं, उनको बाप दो अक्षर ही साफ कहते हैं कि गृहस्थ-व्यवहार में रह करके कमल-फूल समान पवित्र रहना है । पीछे पुरुष रहे या स्त्री रहे, उनमें आपस में झगड़ा लगे, बाप कहते हैं मैं क्या कर सकता हूँ । वो झगड़ा तुम बच्चों को मिटाना है । अगर फीमेल कहती है मैं पवित्र रहूँगी तो उनको पवित्र रहने दो । क्या करेगा, मार-मार के भी कितना मारेगा। ऐसे मार तो बहुत खानी है ना । बाप को घड़ी-घड़ी लिखना कि हम बंधन में हैं, हमको मारते हैं । बंधन में हैं ही वो जिनका ममत्व है या पति में या बच्चों में या घर में या वो ताकत नहीं है । नहीं तो बाप सब बात अच्छी तरह से समझाते हैं, क्योंकि चिट्‌ठियों में पुकारे तो बहुत आई हैं । रात को तुमने चिट्‌ठी सुनी ना कि वो बांधेली है ना, रो-रोकर मम्मा को भी घायल कर दिया । अभी उनके रोने से क्या हो सकता है? बाप तो कहते हैं कि बच्चे घर में रहते हो, रास्ता तो बताते हैं, पति को कहो हम पवित्र रहना चाहती हैं और हम तुम्हारे पास रह सकती हैं, भले .. ..तुम भले और स्त्री रख लो जो तुम्हारा; तो क्या होगा । यह भी युक्ति है ना । अगर दूसरी स्त्री आ जाए और उनसे मिल जाए तो बोलेगी अभी हम क्या करेंगी! फिर उनको तो छूट है ना । पीछे वो अपने....क्लास में जा सकती है और छोड़ भी सकती हैं । तो युक्तियाँ चाहिए । पहले तो दिल का ममत्व जाना चाहिए; क्योंकि माताओं का पति में बच्चों में प्यार बहुत रहता है ...इसलिए ही कोई मुझे छुटावे-कोई मुझे छुटाये ऐसे कहती रहती हैं । बाप तो राय बताएंगे ना, छुटाएंगे क्या! इनमें कोई रड़िया मारने की तो दरकार है नहीं, रोने की भी तो कोई दरकार नहीं, यह तो समझ की दरकार है । अपने आपसे विचार-सागर-मंथन करना है । हम मिसाल देते हैं ना । चलो मैं कोई बड़े अच्छे आदमी की स्त्री हूँ । अभी मुझे लगन लगी है । मुझे बच्चे भी अच्छे हैं, बहुत फर्स्टक्लास हैं, फलाना है । अच्छा, अभी बेहद के बाप ने मुझे कहा कि गृहस्थ-व्यवहार में पवित्र रहो, मुझे याद करो । रहो भले; परन्तु पवित्र रहो । बाबा ऐसे तो नहीं कहते हैं काम-काज न करो । सिर्फ पवित्रता के ऊपर है कि गृहस्थ-व्यवहार में रहते हुए पवित्र हो करके दिखलाओ और इस अंतिम जन्म के लिए । अभी पवित्र रहना ये उनके ऊपर है । पति को समझावे या एकदम जवाब दे देवे परन्तु जवाब तब देवे जबकि उनमें मोह न हो नष्टोमोहा हो । देखो, बाप भी कहते रहते हैं नष्टोमोहा बनना है । चाहें तो एक सेकण्ड में बन सकते हैं, चाहे तो हयाती तक भी न बन सकें । समझा ना । अभी देखो, छोड़ते हैं ना तो भी नष्टोमोहा नहीं होते हैं । फिर भी देखो .मोह के वश मे हो करके कुछ ना कुछ वो याद पड़ता रहता है । फिर भी चिल्लाते रहते हैं । वो अवस्था नहीं रह सकती है । इसमें बाप क्या कर सकते हैं? वो तो कहते हैं दिल से नष्टोमोहा हो जाओ, एक के सिवाय, जो तुमको इतना स्वर्ग का सुख देते हैं और सब बातें भूल जाओ । ये कर्म-कर्म कूटते रहेंगे या पूछते रहेंगे उनसे तो बाप क्या करेंगे? ये इतने सारे बच्चे हैं, एक-एक का बैठ करके क्या बताएंगे? सबके लिए बात एक ही है, रास्ता एक ही है- पवित्र रहना है । कन्याओं को भी पवित्र रहना है । अगर कोई पवित्र नहीं रहने देते तो फिर आ करके कोई ना कोई सर्विस में लग जावे । कन्याएँ भी तो सर्विस कर सकती हैं ना । एसलम भी ले सकती हैं, परन्तु सच्ची दिल हो । फिर ऐसा ना हो कि यहाँ आ करके ब्राहमण कुलभूषण में और फिर वहाँ आँखें मिलाती रहें या लड़ाती रहें या कोई फैमिलियरटी में चली जावें । देखो, बाबा के पास बहुत बच्चे हैं जो अभी तलक, इसको फैमिलियेरिटी का हल्का नशा कहा जाता है, भले विकार का नहीं .तो भी फैमिलियरटी के हल्के नशे ने बहुतों का खाना खराब कर दिया । उनको मालूम नहीं पड़ता है, परन्तु उनकी अवस्था चढ़ती नहीं है । वो सर्विस के इतने लायक नहीं बनती हैं । भले कोई नामी भी हैं, अच्छी अच्छी हैं; परन्तु वो जो अन्दरूनी रोग लगा हुआ है ना, इसको अन्दर का कीड़ा कहा जाता है । एक बाहर का कीड़ा होता है, एक अन्दर का कीड़ा होता है ।. .फैमिलियेरिटी में भी मेल में भी हैं फिमेल में भी हैं । भले घर-बार छोड़ा हुआ है, तो भी रहती है । माया है ना, छोड़ती नहीं है । यहाँ भी रहते हैं, अलग भी रहते हैं, तो भी छोड़ती नहीं है । देखो, सभी लिखते रहते हैं ना बाबा, तूफान बहुत लगते हैं । तूफान लगते हैं तो जरूर कहां न कहां तूफान का हल्का नशा आ जाता होगा । इसमें तो अडोल रहने की बात है । बिल्कुल लाडले हो करके कमल के फूल के समान रहना है । आप समान बनाना है । वो अवस्था चाहिए । मुरझाने की तो कोई बात ही नहीं रहती है । जिनको इतना बड़ा बेहद का बाप मिला और वो डायरेक्शन्स पर चलाते रहते हैं । हर एक की दवा अपनी-अपनीअपनी होती है । तो किसको भी कोई भी दवा पूछनी है राय पूंछ्नी है, भले कमाई के लिए भी कोई को राय पूंछ्नी है; कभी- पूंछ्नी हैं ना कमाई के लिए भी- भई, हमारे कमाई में भी पाप करना पड़ता है । सो भी तो पूंछे किस प्रकार के पाप होते हैं? तुमको कितनी पूंजी है? तुमको पाप करने की जरूरत है या नहीं है, सो भी तो समझाना पड़ता है ना । ऐसे तो नहीं है कि सबको ही पाप करने बिगर शरीर निर्वाह नहीं हो सकता है । ऐसे बहुत होते हैं जिनका शरीर निर्वाह नहीं चल सकता है अगर थोड़ा पाप न करे तो । समझा ना । समय ऐसा हो गया है ना । कोई-कोई ऐसे होते हैं उनके पास पैसे बहुत हैं, उनको कोई पाप करने की दरकार नहीं रहती है, क्योंकि आजकल धंधे-व्यवहार में ठगी लग ही गई है, करप्शन, मिलावट, झूठ, कागजों का झूठा बनाना, फलाना यहाँ बहुत होता है । तो हर एक को बैठ करके अपने लिए पहले से दवा पूंछ्नी चाहिए कि मेरे को ये-ये काम करना पड़ता है, तो राय देंगे- बच्चे, तुम्हारे पास धन बहुत है, क्यों करते हो? आखिर तुमको क्या दरकार पड़ी है? तो एक-एक के लिए दवा अलग-अलग है । हर एक अपने-अपने कर्मबंधन में बीमार है । ऐसे नहीं है कि कुछ कर्म करके पीछे कहना कि बाबा, ये काम में हम फंस गया । क्यों फंसा? यह तो तुमको बाप से पूछना था । तो बाबा अभी तुमको राय देवें कि तुमको क्या लोड़ लगी पड़ी है! देखो, बहुतों को धन बहुत हैं-बहुत है । तो बच्चे, अभी तुमको क्या धन की जास्ती परवाह रखी हुई है । तुम्हारे पास इतना धन है जो तुम अपने बच्चों को भी बैठकर खिलाओ तो भी काफी है, क्योंकि बाप जानते हैं ना बच्चे जानते हैं कि बाकी यहाँ कहाँ तक रहना है । जास्ती रहना ही नहीं है तो फिर आमदनी के लिए अगर काफी धन है, तो बस पीछे शांत करके अपने बाप से वर्सा लेना; क्योंकि फिर धंधे-धोरी में बुद्धि तो जाती है ना । अगर धंधे-धोरी में ना जाए तो बात मत पूंछो । देखो, बच्चे गोरख धंधे से आकर यहाँ रहते हैं तो यहाँ बहुत ही अच्छी अवस्था जम जाती है । फिर गोरख धंधे में जाओ तो जरूर कुछ ना कुछ विकर्म होते ही रहते हैं । मंसा में आते हैं और कर्मणा में भी आते हैं बहुत । तो हर एक के लिए दवा अपनी-अपनी है । तो हर एक को पूछ लेना चाहिए, इस हालत में क्या करना है? बाबा पूछते रहते है ना । कदम-कदम पर पूछते रहते हैं, इस हालत में क्या करना चाहिए? इस हालत में क्या करना चाहिए? सबके लिए तो यह दवाई एक जैसी नहीं है ना । श्रीमत पर चलना बहुत जरूरी है, उसमें भी बाप कहते हैं कि सदैव मीठे रहो, कोई से भी झगड़ना-वगड़ना, लड़ाइयां न हों । देखो, कितने झगड़ते भी तो रहते हैं ना । आपस में बहुत झगड़ते रहते हैं । कितनी तकलीफ होती है । ...घर में तो झगड़ा करते थे, फिर अगर यहाँ भी आ करके झगड़ते हैं तो और ही उनकी अवस्था को लोड़ा आता है । बहुत पद भ्रष्ट हो जाते हैं । बच्चों को डर नहीं रहता है । नहीं तो बाप कहते हैं बिल्कुल मीठे हो करके चलो । अपने ज्ञानमार्ग में बिल्कुल मीठा रहना है । नहीं तो क्या होता है बच्चे, बाहर में कुछ उल्टा-सुल्टा करते हैं, तो बदनामी बहुत करते हैं । बोलते हैं- क्या । ये कहते हैं कि हमको ईश्वर पढ़ाते हैं, हम सचखण्ड का बादशाह बनते हैं, हम यहाँ सच सीखते हैं और हम कोई भी पाप नहीं करते हैं.... .. तो गोया किसके साथ कोई लड़ा तो पाप हुआ ना । लो, गई ना आबरू! बाप की आबरू गंवाई । यह तो गाया जाता है ना सत्‌गुरू की निंदा कराने वाला ठौर नहीं पाएगा । DOG तो जाकर नारायण को नहीं वरेंगे या लक्ष्मी को तो नहीं वरेंगे । यहाँ तो सब GOD का गुण चाहिए । वो गुण आना बड़ा मुश्किल होता है । कितना बाप समझाते भी रहते हैं बच्चे, एक - दो में प्यार से बातचीत करो । कुछ भी हो तो बाप बैठा है ना । कोई को भी किसको कुछ भी दुःख हो तो फिर देखो लॉ यह कहता है ना, वो गवर्मेन्ट भी बोलती है कि डोन्ट टेक लॉ इन योर ओन हैण्ड । यानी कोई ने तुमको गाली दी तो तुम उनको गाली नहीं दे सकते हो । तुम रिपोर्ट कर सकते हो, परन्तु वो गवर्मेन्ट तो इन सब बातों में जाती नहीं है । वो तो बड़ी गवर्मेन्ट है । बहुत मनुष्य हैं । यहाँ तो बाबा के बच्चे बहुत थोड़े हैं । कहाँ उस गवर्मेन्ट की कितनी संस्थाए हैं । करोडों हैं । बाबा के बच्चे कितने हैं? बाबा कहते हैं तुम थोड़े हो । बार-बार समझाते रहते हैं कि बहुत मीठे बनो । मीठे न बनने के कारण जो कड़वा बनते हैं तो सबकी आबरू, बाप की आबरू को नहीं, तो कुल को ही कलंक लगा देते हैं। ईश्वरीय कुल में क्या ऐसे मनुष्य होते हैं? तो देखो, है ही बाप के लिए; क्योंकि बाप ऊँचा है ना । सत्‌गुरू की निंदा कराने वाले का अक्षर बुद्धि में बैठना चाहिए । भले अवस्था हरेक की अपनी-अपनी नम्बरवार है, तो भी बच्चों को तो सावधान रहना है ना कि जबकि बाप आए हैं पढ़ाने के लिए, जब हम कहते हैं कि हम ईश्वर के बच्चे हैं और फिर उनकी श्रीमत पर चलते हैं और वो कहते हैं बच्चे, किसको भी दुःख मत दो, कोई दुःख की बात भी ना करो, क्योंकि तुम हो सदा सौभाग्यशाली । यहाँ से तुम्हारी शुरुआत हो जाती है सदा सौभाग्यशाली बनने की । तो शुरू में ही अगर उनमें बाधा पड़ती जाएगी तो फिर सदा सौभाग्यशाली बनने में बाधा पड़ती जाएगी । तुम भी ऐसे बन रही हो । तुम बच्चों को बहुत-बहुत पद मिलता है, अगर तुम सिर्फ शांति से सुबह को बैठ करके बाबा को याद करो और पद को याद करो । सिर्फ रात को उठ करके 3 बजे, 4 बजे, 5 बजे सिर्फ बैठ करके याद करें कि बाबा कितना अच्छा है । तुम बाबा कहो, साजन कहो, जो चाहिए सो कहो । शिवबाबा कितने अच्छे हो, हमको स्वर्ग का राजाओं का राजा बनाते हो और हम आपकी श्रीमत पर जरूर चलेंगे । कोई भी ऐसी चलन न चलेंगे जिसको आसुरी चलन कहा जाए । आसुरी चलन में तो सब कुछ आ जाता है ना । शायद सुबह को जागते नहीं हैं, बैठ करके उनसे वार्तालाप नहीं करते हैं, नींद में आ जाते हैं और सुबह को उठ भी नहीं सकते हैं । सर्विस पर भी नहीं आ सकते हैं, इतनी तो बच्चे की हालत है । तो वो अच्छे नहीं लगते हैं ना । बोलते हैं- ये तो कोई GOD बनने के लायक नहीं हैं । इनमें अभी तलक DOG के संस्कार बहुत हैं, कोई काम के बच्चे नहीं हैं । तो उनको देखने की अंदर में दिल नहीं होती है । मालूम तो पड़ता है ना दिल पर चढ़ने वाले बच्चे कौन हैं । बाप होते हैं उनको बच्चे होते हैं तो उनके दिल में होता है कि चलो यह बच्चा बड़ा अच्छा है, यह बहुत भला है, बहुत श्रीमत पर चलने वाला है । यह बच्चा तो कोई का काम नहीं है, यह तो लायक नहीं है, स्वर्ग में भी चलने के लायक नहीं है । ऐसे बाबा कह देते हैं । तो ये क्या हो गया? अन्दर से उनके लिए शुभभावना नहीं निकलती है; क्योंकि कर्म उनके ऐसे हैं । समझते हैं ये क्या राज्य लेंगे! वो मल्लयुद्ध होती है ना तो वहाँ भी कहते हैं कि ये तो देखो घड़ी-घड़ी हार खाते रहे । ये क्या है! अरे, जाओ-जाओ वारी जाओ, आया है मल्लयुद्ध पर 1 तो बाप भी ऐसे कहते हैं अरे, माया को जीत नहीं सकते हैं जाओ-जाओ वारी जाओ । जाओ, जाकर पलीत बनो वहाँ । तुम क्या जानो माया पर जीत पहन करके स्वर्ग का राज्य लेने! घड़ी-घड़ी माया थप्पड़ मारती रहती है, तुम क्या राज्य लेंगे! बाप तो जरूर ऐसे समझते रहते हैं ना । बाप सब बच्चों के लिए बेहद का बाप है ना तो बेहद की बात की जाती है । जब रिपोर्ट्स आती हैं तो बोलते हैं कि यह क्या है? उनको लिख देंगे, जाओ-जाओ वारी जाओ । तुम क्या चलेंगे! आए हैं लक्ष्मी-नारायण को वरने के लिए! बूटी तो देखो अपना यानी मुँह तो देखो अपना । तो चलन एकदम बड़ी फर्स्टक्लास चाहिए । घड़ी-घड़ी भूलें, घड़ी-घड़ी मिस्टेक, घड़ी-घड़ी नाम बदनाम करने से बच्चों को टेव पड़ जाती है । नहीं तो बाप कहते हैं तुम बच्चों जैसा तकदीरवान वा सौभाग्यशाली इस दुनिया भर में कोई हो नहीं सकता है, परंतु ऐसे थोड़े ही बाप कहेंगे कि अच्छा, प्रजा में जाते हैं, यह भी इनके लिए अच्छा है । बाप ये नहीं कहेंगे । वो तो कॉमन बात हो जाती है । बाप तो कहेंगे जब बच्चे बने हो, सगे बने हो तो अपने सगेपने की चलन देखनी होती है तो बाप देखकर खुश भी होवे, क्योंकि ऐसे मत समझो कि बाप सबको एक जैसा प्यार कर सकते हैं । बाहर से भले करें; पर अंदर में उनको मालूम है कि ये हमारा बदनाम करने वाला है, इनकी चलन बहुत गंदी है । ये क्या है, वो तो दिल में आएगा ना । यह तो लॉ कहता है । ईश्वर के भी दिल में आएगा, क्योंकि बेहद का बाप है ना । कोई भी किसकी चलन ऐसी देखेंगे तो कहेंगे इसमें क्या रखा हुआ है । हूबहू जैसे अज्ञान काल के बच्चे हैं । ये बेहद का बाप है । ये नई बात तो नहीं है ना । यह तो कल्प-कल्प बाप कहते हैं, दादा भी कहते हैं, मम्मा भी कहती हैं, तुम बच्चे भी कहते हो कि हम लोगों ने पार्ट बजाया है, पुरुषार्थ किया है । तो अपनी-अपनी चलन को अपन को हर एक बच्चों को देखना है । मम्मा सिर्फ तुम बच्चों को यही कहती है । ऐसे बहुत ही बच्चे हैं जो वहाँ भी आश्चर्यवत् पश्यन्ति, सुनन्ति कथन्ति ट्रेटर बनन्ति भौकन्ति बहुत होते हैं, क्योंकि मंजिल है ना । माया बहुत बच्चों को थप्पड़ मारती है । जो योग में नहीं रहते हैं उनको थप्पड़ लगाती ही रहती है । जो रात को नहीं जागते हैं बाबा तो कहते हैं ना रात को जागते रहो । ऐसे नहीं कि बाबा को कोई धंधा नहीं, बाबा को तो सबसे जास्ती खयालात है । तो भी रात को घण्टा डेढ़ घंटा, अरे कभी तो सारी रात भी नींद नहीं आती है । खयालात भी रहती है ना । ऐसे मत समझो कि रात में नहीं नींद आती है । इससे इस बाबा को नींद नहीं आती है तो सिर्फ बाप को ही याद करते हैं । अरे, फिर और ही फिर माया के ये सभी खयालात आते हैं कि ये करना है, वो करना है, ये कैसे हो, गवर्मेन्ट को कैसे पकडे? बच्चियों को क्या प्रबंध करके देवें? क्या इनकी एसोसियेशन बनावें? ये कैसे बिचारी दुःख से छूटे? ये फलानी बिचारी फॅसी है.... ..सारी रात ये सब चलता ही है, क्योंकि बाप को नहीं रहेगा तो किसको रहेगा! तो इसलिए वो बच्चों को राय भी देते रहते हैं, परन्तु बच्चे थोड़े हैं और अक्सर अनपढ़े हैं । पढ़े जो होते हैं वो खरे होते हैं । वो गवर्मेन्ट से भी पहुंच सकते हैं । कायदे-कानून, यहाँ-वहाँ पकड़ लेते हैं । नहीं तो तुमको मारने का कोई को हक नहीं है । देखो, जब बच्चियों को मारते है, बाबा सुनते है तो बाप को दुःख होता है । तो क्यों इनको मार खानी चाहिए? ये क्या ऐसी गवर्मेन्ट है जो अगर कोई कन्या और माता जावे रिपोर्ट करे तो उनकी न मदद करे?; परन्तु रिपोर्ट नहीं करती हैं । रिपोर्ट करती हैं और बोलती हैं पता नहीं कुछ हो जावे, पति को कुछ दुःख होता है तो भी इनके लिए..... । यहाँ तो बहुत बहादुर चाहिए, महावीरनी चाहिए । जैसे बलि चढ़ी जाती है ना, फट । यह भी ऐसे ही है, बस बाप का बनना है तो मस्त बन जाना है । पीछे तो कोई परवाह नहीं है । भले साहूकार पति हो, सुहेना पति हो, सुहेणे बच्चे हों, तो भी कोई की परवाह नहीं है । यहाँ तो किसका सुहेना पति है और बहुत प्यार है तो वो छोड़ भी नहीं सकती हैं, खुद भी नहीं छोड़ सकती है । बस चटक पड़ती हैं, क्योंकि बरोबर हैं तो बंदर और बदरियाँ एक दो को चटके पड़े हुए हैं एकदम । देखो, बाप आया है, आ करके छुड़ाते हैं । जैसे, पति को स्त्री से छुड़ाएँगे स्त्री को पति से छुड़ाएँगे बच्चियों को बाप से छुड़ाएँगे । .... .चलो आओ, हमारे बनो, तो हम तुमको बंदर से स्वर्ग का मालिक बनावें । देखो, कितना छुड़ाने के लिए प्रयत्न करते हैं बहुत छूटना ही नहीं चाहते हैं । नहीं तो छूटने के लिए तो कोई परवाह ही नहीं है बिल्कुल ही । छूटने के लिए कोई देरी थोड़े ही लगती है । देखो, शुरुआत में छूटे हैं, तो झट छूट गया एकदम । झट आ गए उस समय में । यह भी ड्रामा का राज था जो बहुत छूट गईं । बहुत-बहुत ढेर छूट गई । फिर कइयों को माया खा गई । माया है तो प्रबल ना बच्चे, तो इसलिए जितना-जितना जो-जो बाप से बात करेगा, सुबह को ही उठकर आधा घण्टा पौना घंटा, पाव घंटा से एक घड़ी, आधी घड़ी, आधी की पुन: आधी तो बाप की मदद जरूर मिलेगी । दिन में तो गोरख धंधा रहता है । रात को सन्नाटा रहता है । सब सो जाते हैं । इसलिए इसको कहा ही जाता है ब्रहममुहूर्त यानी अमृतवेला । यह ईश्वरीय वेला है । ब्रहम ईश्वर को कहा जाता है ना । तो ये ईश्वरीय वेला है, इस समय में सबको ईश्वर को याद करना है । तुम देखेंगे भगत भी सुबह को 3 बजे, 4 बजे, 5 बजे भजन करते रहेंगे, याद करते रहेंगे, भक्ति करते रहेंगे । तुमको फिर क्या है? तुमको तो कोई भजन, भक्ति नहीं करना है, सिर्फ बाप से मीठी-मीठी बातें करनी है । बाबा की महिमा करनी है- बाबा आप तो कमाल किया । हमको 21 जन्म के लिए सुख देते हो । बाबा, बलिहार जाऊँ आप पर । तो बलिहार जाएंगे या सिर्फ मुख से कहते रहेंगे? बलिहारी जाऊँ माना बलिहार जाना है । ये सारा भक्तिमार्ग में गाते हैं कि तुम आओ तो हम बलिहारी जाएँगे । फिर मेरा तो एक, दूसरा कोई ना होगा । यह गायन चला आता है । जैसे और पर्व आते हैं ना, अच्छे-अच्छे दिन, क्या कहते हैं उनको? बड़े दिन आते हैं याद करने का । तो बाप कहते हैं कि बच्चे, अभी तो तुम्हारे हैं ही बड़े दिन बहुत । तुमको कोई दुनिया के माफिक नहीं मनाना है कुछ भी । तुम्हारे तो सबसे बड़े दिन हैं, क्योंकि जिसको मनाते हैं वो वर्ष फिर से भूल जाते हैं । तुम्हारे तो सम्मुख बैठे हुए हैं शिवबाबा । सब सम्मुख ही हैं । हर एक बात को जैसे तुम जान गए हो । ये कौन हैं रामचन्द्र? ये हम जानते हैं । ये यहाँ नापास हो जाएंगे । यह नापास हुआ है । देखो, जानते हो ना । बरोबर माया को जीतने के लिए जो बाप ने आकर युद्ध के मैदान में यह सुनाया । तो देखो, रामचन्द्र और सीता वगैरह जो भी क्षत्रिय कुल हैं, वो नापास हो गए थे इसलिए । तो देखो, कितनी राज है । ये सभी राज और कोई बच्चों में थोड़े ही रहता है । जिन-जिन में बाबा कहते हैं । सबमे नहीं है । कोई तो एकदम खाली-खाली हैं । अभी समझते हैं कि जितना तुम दिन में रहेंगे उनका असर रहेगा । तो सवेरे में तुम लोगों को ये टेव होनी चाहिए कि उठ करके बैठ जाना चाहिए । बाबा अनुभव करते हैं कि खाने पर बैठते हैं ना तो याद में खाते-खाते एक दो मिनट के पीछे भूल जाते हैं । बाबा अपनी भी तो बात बताते हैं ना कि भूल जाते हैं । उसमें भी भूल जाते हैं । रात को भी बाबा को याद करते-करते बच्चे भूल जाते हैं । फिर भी उनमें कोशिश करना चाहिए; क्योंकि माया छोड़ती नहीं है, न दिन, न रात , इसीलिए इसमें पुरुषार्थ बहुत चाहिए । उसमें भी सबसे अच्छा पुरुषार्थ काम में आता है सवेरे का । अमृतवेले रात को बाबा से बात करना । सर्विस कैसे करें, कैसे बतावें? हमारे सर्विस में कितने हंगामें हैं? नई बातें हैं, कैसे समझायें? तो रात को बैठ करके चिंतन करने से मक्खन भर जाता है । जब मक्खन रात को भरेगा तब सुबह को डिलीविरी करेगा, नहीं तो बड़ा मुश्किल है । बहुत ब्रह्माकुमारियां रात को तो अच्छी तरह से सो जाती हैं, दिन में खा लेती हैं । विचार-सागर-मंथन होता नहीं है, फिर वो प्वाइंट धारणा नहीं होती है । बाबा खुद अनुभव से बताते हैं कि कितनी प्वाइंट रात को बड़ी अच्छी-अच्छी आती हैं कि सुबह को हम बताएंगे; परन्तु सुबह को भूल जाते हैं । फिर कितना भी मत्था मारते हैं तो कोई एक- दो आ जाती हैं, कितनी गुम हो जाती हैं । कभी-कभी पेन्सिल रखी रहती है तो दो चार नोट कर लेता हूँ । ऐसे बॉम्बे में बहुत करते थे, क्योंकि वहाँ बहुत होते थे ना । बहुतों को दृष्टि देनी पड़ती थी, उन लोगों की अवस्थाएँ वगैरह बहुत सुनते थे यहाँ-वहाँ । आते थे बहुत उनको समझाने के लिए । अभी ये प्वाइंट्स बैठ करके लिखें, ये तो जो सर्विस पर होंगे वो ही करेंगे, बाकी तो मुश्किल ही है । नहीं तो इसमें फायदा बहुत है । हेर पड़ जाएगी, टेव पड़ जाएगी । पीछे देखो कितने फर्स्टक्लास सर्विसएबुल बन जाते हैं । कोई भी आएगा, झट उनको खैच लेंगे, क्योंकि योग में रहेंगे ना । योग में रहने से ही कोई को खैंचा जा सकता है । फिर उनको बैठ करके बाप का परिचय दो कि तुम अपने बाप को जानते हो? बाप तो स्वर्ग का वर्सा देने वाला है, स्वर्ग की रचना रचने वाला है । कुछ चाहिए बच्ची?. कोई भी आवे उनको यही समझाना पड़ता है कि भई, बेहद के बाप को जानते हो? बेहद का बाप तो स्वर्ग की स्थापना करने वाले हैं । देखो, हम अनुभवी हैं ना, जानते हैं । बेहद के बाप से हम स्वर्ग का वर्सा ले रहे हैं । बाप कहते हैं सिर्फ मुझे याद करो । ये गीता के अक्षर जो मनुष्य सुनाते हैं, अभी बाप बैठ करके समझाते हैं । वो मनुष्य पिछाड़ी में भक्तिमार्ग में सुनाते हैं और बाप सुना कर गया था, वो अब हमको सुना रहे हैं । वो खुद कहते हैं कि तुम मेरे को याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश हो जाएँगे और स्वर्ग को याद करो तो स्वर्ग में आ जाएँगे । ऐसी मैं प्रतिज्ञा करता हूँ । देखो, तुम्हें बाप को याद करना है । तो निराकार की तरफ में कोई भी गीता वाला नहीं ले जाएगा, वो कृष्ण की तरफ ले जाते हैं । तो किसको समझाने को है बहुत सहज कि अपने आत्मा के बाप को जानते हो? शरीर के बाप को जानते हो? बस, समझाने के दो अक्षर ऐसे अच्छे हैं । अब जरूर बेहद के बाप से भी वर्सा मिलता होगा । देखो, यह चित्र रखा है ना, यह वर्सा किसका मिला हुआ है? अभी हम जानते हैं कि बाप यह वर्सा देने वाला है । अभी दिया था । अभी इनका वर्सा 84 जन्म में पूरा हो गया है, फिर से ये वर्सा ले रहे हैं । ऐसी-ऐसी बातें ध्यान में ले आ करके सर्विस करनी पड़ती है । तो जिसको सर्विस का शौक होता है, वो पीछे रहता थोड़े ही है । अरे, कहीं भी रहेंगे सर्विस का जिसको शौक होगा; तुम लोग कहेंगे आबू में सर्विस नहीं है । मैं बोलता हूँ आबू में जहाँ-तहाँ सर्विस है । सर्विस करने का ढंग चाहिए, युक्ति चाहिए और गाली भी तो खानी पड़ती है ना । ऐसे थोड़े ही है कि नहीं खानी पड़ती । कोई भी हर्जा नहीं है । तो भी चित्र ऐसे-ऐसे निकलते हैं जो कहाँ भी जाओ, किसके पास भी जाकर समझाओ, क्योंकि बाप का परिचय देना है । वो स्वर्ग की रचना रचता है । बाप को याद करना है; क्योंकि ये अक्षर गीता में बहुत प्रसिद्ध हैं । वो मनुष्य सुनाते हैं, यहाँ बाप सुनाते हैं । तो बोलो, बाप अभी सुनाते हैं, भगवान आ करके बच्चों को सुनाते हैं, मन्मनाभव । कृष्ण नहीं, ये बाप । अगर जिनको शौक हो तो कहीं भी जाकर थोड़ी सर्विस करके देखें । भले गाली-गाली खाएं । सौ में से एक को भले पकड़ लेवें जरूर; परन्तु इतना पुरुषार्थ तो कोई में मुश्किल ही है । इतना शौक भी बहुत कम है किसको समझाने करने का नहीं तो क्या तुम लोग समझते हो यहाँ सर्विस नहीं है? वाह! जो भी सर्विस में रहते हैं; देखो, बॉम्बे में मधु था, कपिल मार्केट में रहता था । कपिल मार्केट में अभी चित्र बना रहे हैं । सबको जाकर दो और समझाओ कि हम अभी इस बेहद के बाप से वर्सा ले रहे हैं । कैसे? मनुष्य नहीं दे सकते हैं, मनुष्य तो भक्तिमार्ग में जो करके गए हैं यो गाते हैं; परन्तु क्या करें । उनमें वो मेहनत चाहिए । इसमें लज्जा-वज्जा की बात नहीं है । कोई ठुकराएगा तो फिर कोई स्तुति निंदा करेगा, कोई दो बातें हम कह देंगे, तो ये सभी सहन करना पड़े । ऐसे नहीं कि कोई ने कहा और आ करके किताब रख दिया । नहीं । वो तो गीता वाले को तो कोई नहीं कुछ कह सके, तुमको तो कहेंगे कुछ । तो इसमें कुछ थक नहीं जाना होता है । सर्विस बहुत है; परन्तु अपन को कोई सर्विस लायक भी बनावे । ऐसा कहना तो बड़ा सहज है, हम नारायण को वरेंगे फलाने को वरेंगे ये करेंगे । तो मेहनत बहुत चाहिए । ऐसे कब भी नहीं कोई समझ सके कि कहाँ भी सर्विस न हो । नहीं बच्चे, सर्विस तो बहुत है, ढेर है । एक ने छोड़ा, दूसरे को पकडो । पता नहीं है ये हमारे कुल का न होगा तो फिर हमको तो ढूँढना पड़ता है ना । जिसको कुछ न कुछ लगे उनको अपना देना । तो जैसे कि तुम बच्चे दान करते हो । यह शौक रहता है दान देने का.. अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान । अच्छा, आज क्या है? अभी देरी है कुछ? .. यहाँ बहुत अच्छी सीधी सर्विस है । भई, ये जरूर समझते हैं कि 10, 20, 50 में एक कोई हाथ में आएगा । यह तो बाबा खुद भी कहते हैं कि ऐसे नहीं कि सब कोई समझेंगे । भले कहाँ भी कोई जाओ, ग्रंथ में जाएं, टिकाने हैं ना यहाँ,, वहाँ भी कोई जाकर अच्छी तरह से समझावे कि भई, अभी वापस जाने का समय है और सच्चे बादशाह को याद करना है, तभी तो सच्चे बादशाह के पास जा सकेंगे । उसके लिए पवित्रता जरूर चाहिए । पवित्रता बिगर तो तुम सच्चे बादशाह के पास पहुंच नहीं सकेंगे । तो सच्चे बादशाह कोई गुरूनानक के पास नहीं जाना है । तुमको जाना है शिवबाबा के पास । वहाँ से आना फिर गुरूनानक के पंथ में चले जाना । युक्तियाँ तो ढेर समझाई जाती हैं, पर पब्लिक में बाप नहीं जा सकते हैं । देखो, माँ तो जाती है ना । माँ जातीं है तो बहुत से आते हैं । ऐसे तो बाबा नहीं जाते थे यहाँ । बहुत सिपाही भी आते थे, बहुत पब्लिक आती थी । सभी धर्मो के लिए एक बात बहुत अच्छी है कि भई बाप कहते हैं, अब ये नाटक पूरा होता है, अभी देह का संबंध छोड़ करके मामेकम याद करो । तुम नंगे आए थे, नंगे जाना है । अभी सबका पार्ट पूरा होता है । सभी धर्मों का पार्ट पूरा होता है । सबको वापस जाना है इसलिए बाप को याद करने से तुम विकर्मो को विनाश करेंगे और उनके वर्से को पाय लेंगे । ... देखो, चढ़ना चाहिए । वण्डर है । है तो ये नारायणी नशा चढ़ने का, गाया जाता है ना- नशन शन में है नुकसान, बिगर नशे नर को नारायण के । नर को नारायण बनने का ज्ञान का नशा तो अभी बाप देते हैं । मनुष्य के पास तो यह ज्ञान का नशा है नहीं । एक है भक्ति का नशा । ज्ञान का नशा चढ़ाने वाला एक है, जो नारायणी कुल को रचने वाला है । देखो, कितने समय से यह गाया भी जाता है- नशन शस्त्र में है नुकसान, बिगर एक नशे नर को नारायण के । अभी ये नामी-ग्रामी तो है जरूर ना । लक्ष्मी-नारायण बने तो हैं ना । तो कैसे वो बने हैं, वो तुम बच्चे अच्छी तरह से समझ गए हो कि बरोबर ये नशा सिर्फ बाप से मिल सकता है । बेहद के बाप से ज्ञान का नशा मिलता है, जिससे इतनी ऊंची सद्‌गति होती है ।....तो हमारा भी सलाम ले जाना, वो भी गीत है यहां । हमारा भी यादप्यार । अभी सलाम तो हुआ मुसलमान का अक्षर । (रिकॉर्ड- पितु-मात सहायक, स्वामी-सखा तुम ही सबके रखवारे हो.. .) बाहर वाले गाते रहते हैं । प्रैक्टिकल में तुम्हारा रखवाला बना हुआ है । इसको अंग्रेजी में क्या कहते हैं? क्या कोई अक्षर है प्रैक्टिकल और नॉन प्रैक्टिकल ? देखो हमारे पास अंग्रेजी पढ़ा हुआ इतना अच्छा नहीं है कोई । (किसी ने कहा-प्रैक्टिकल और थ्योरिटिकल) हाँ, थ्योरिटिकल कहते हैं । तो दुनिया सभी है थ्योरिटीकल में और हम हैं प्रैक्टिकल में । हमको अभी बाबा का हाँथ मिला हुआ है, खिवैया का हाथ मिला हुआ है । वो तो रड़िया मारते रहते हैं । (रिकार्ड-पितु मात सहायक .... ....) अभी दुनिया का जो पतित-पावन है उसको ही खिवैया कहा जाता है; क्योंकि पतित दुनिया से पावन दुनिया में ले जाता है । अभी पतित दुनिया किसको कहा जाता है? पावन दुनिया किसको कहा जाता है? कोई भी मनुष्य मात्र, विद्वान, आचार्य, पण्डित इतने देखो कितने हैं । करोड़ों के अंदाज में बड़े-बड़े पढ़े पढ़े । उनको यह मालूम ही नहीं है कि पतित दुनिया किसको कहा जाता है, पावन दुनिया किसको कहा जाता है । तो जरूर पतित दुनिया में पतित आदमी होंगे, पावन दुनिया में पावन आदमी होंगे । पतित दुनिया में जरूर पतित गुण और लक्षण होंगे, पावन दुनिया में पावन लक्षण होंगे । अभी यह तो भारत में बिल्कुल ही सहज है समझना कि पावन दुनिया में तो देवी-देवताएं रहते थे सो भी यहाँ । नहीं तो मनुष्य देवी-देवताएं कहकर पता नहीं कहाँ न कहाँ ऊपर में चले जाते हैं । नहीं, यहाँ रहते थे । आज 5000 वर्ष की बात है, यहाँ पावन महाराजा-महारानी तथा उनकी प्रजा रहती थी) और यहाँ कलहयुग में आजकल पतित महाराजा भी कोई नहीं है, बिल्कुल नहीं है, तो सारी प्रजा, क्योंकि गायन किया ही जाता है राजा-रानी । बरोबर हम जानते हैं द्वापर से ले करके पतित महाराजा या राजा-रानी और पतित दुनिया होती है । पतित सम्प्रदाय, आसुरी सम्प्रदाय होती है, क्योंकि ये हम भारतवासी जानते हैं कि जो आसुरी सम्प्रदाय वाले पतित राजाये-रानियाँ हैं, वो बरोबर मंदिरों में पावन दुनिया के पावन महाराजा-महारानियॉ जो होकर गए हैं, उनको नमते हैं । होकर गए हैं तब तो नमते हैं ना । फर्क तो है ना बरोबर । नमते भी उन्हों को ही हैं- श्री लक्ष्मी-नारायण और सीता-राम । वो त्रेता के, वो सतयुग के । तो जरूर समझना चाहिए कि बरोबर सतयुग-त्रेता में पावन महाराजा-महारानी और राजा-रानी हो गए हैं और बरोबर ये जरूर पतित हैं । तो जरूर पतित दुनिया में सभी यथा राजा-रानी तथा प्रजा पतित रहती है । राजा-रानी होते हैं सबसे बड़े । ऐसे नहीं कहेंगे राजा-रानी से बड़े कोई साधु-संत हैं । ..वो भी पतित दुनिया मे रहते हैं, परन्तु फिर वो सन्यास करते हैं । सन्यास करके फिर भी गृहस्थ में पतित ही जन्म लेते हैं । ..पतित गृहस्थ का अन्न खाते हैं । तो जैसा फिर हम खाते हैं तो उनका एवजा देना होता है । फिर देखो, पतित दुनिया में पतित करने वाला कौन है? ये काम है ना, विख है ना, तो विख से पैदा होते हैं । अब ये दुनिया नहीं जानती है कि वहाँ कैसे पैदा होते हैं? महिमा भी देखो कितनी करते हैं श्रीकृष्ण की । तो ऐसे थोड़े ही कहेंगे कि वो विकार से जन्म लिया । विकार से इतने जन्म लेते हैं, उनकी तो महिमा होती ही नहीं है । तो उनकी देखो कितनी महिमा है और गाया भी जाता है बरोबर । वो है ही पवित्र दुनिया पावन दुनिया । उनमें पतित कहाँ से आए! तो कोई को मालूम नहीं है कि ये रावण की राजधानी द्वापर से शुरू है । ये रावण रूपी पाँच विकारों रूपी की माया सतयुग-त्रेता में होते ही नहीं हैं । ये भी बैठकर अगर कोई किसको समझाए तो भी उनकी बुद्धि में बैठे । तुम बच्चों के पास समझाने के लिए मीठी-मीठी बातें बहुत हैं । सिकीलधे बच्चों प्रति यादप्यार और गुडमॉर्निग । चलो बच्चे, क्या भोग है? बच्चे समझते होंगे कितनी गुह्य बातें हैं । बताना तो एक है; पर ये ना बतावें तो क्या बतावें? अगर वो चीज़ बतावें तो कोई बोलेंगे.. - यह भला आया होगा, शिव जयन्ती आई होगी, उसका मंदिर कहाँ है भला वो बताओ । उसका तो मंदिर है नहीं, यह कभी क्या है! गड़बड़ हो जाये एकदम । कितनी मुश्किलात है ।. .... है ना गड़बड़ की बात! अभी क्या समझती हो? यह लिंग है या स्टार है? (लोगों ने कहा-स्टार है) अभी देखो, आज बाबा ने समझाया । अभी आगे बहुत कोई आते नहीं हैं । बाप कहते हैं आगे भी कहा था कि बच्चे, मैं रोज जो पढ़ाने वाला हूँ सो रोज कुछ न कुछ नई-नई बातें सुनाता रहूँगा । जहाँ तुम जीयेंगे और मैं सुनाता रहूंगा । कोई न कोई नई-नई बात निकलती ही रहेगी । ये कोई रामायण, भागवत या फलाना नहीं हैं, जो बैठ करके पढ़ा हुआ हो या पढ़ना है । मैं तुमको गुह्य ते गुह्य बातें सुनाता रहूँगा । ..ज्ञान सागर है ना । कितने भी सागर की मस बनाओ, कलम की कलम बनाओ तो भी इसका अंत नहीं आता है । इन्होंने एक पाई पैसे की गीता बनाय दिया है । अभी कितना दुनिया को बदलना पड़े । वो कहेंगे कृष्ण भगवानुवाच, ये कहें नहीं, शिवभगवानुवाच । रात-दिन का फर्क हो गया । सो भी शिव के रूप का कोई को पता नहीं है । चलो, यहाँ रख दो । कितने मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चे हो । कहाँ से मिले इतने सो भी सिकीलधे बच्चे? सिकीलधे उसको कहते हैं जो बहुत काल से बिछड़ा हुआ कोई को मिलता है । समझो कोई बच्चे का बच्चा निकल जाता है, गुम हो जाता है, वो न 5 वर्ष के पीछे आ मिलते हैं, 20 वर्ष के बाद भी आकर के ऐसे मिलते हैं । बस, फिर उसने देखा तो उनको एकदम से पकड़ लेते हैं । उसको कहा जाता है सिकीलधा गुम हो गया था । तो तुमको भी तो माया ने गुम कर दिया ना । एकदम मेरे से बिछुड़ गए, याद तक भी नहीं । अभी मिलते हो तो बाबा कहते हैं ओह! कितने मेरे लाडले, तुम फिर से आकर के 5000 वर्ष का चक्कर लगाया । उफ । 5000 वर्ष के बाद तुम चक्कर लगाकर फिर मिलते हो । कोई से भी पूंछे अरे, आगे कब मिले थे? तो कहेंगे- हाँ बाबा, हम 5000 वर्ष पहले मिले थे । यहाँ क्यों आए हो? बाबा आपसे फिर बेहद का वर्सा लेने के लिए । बेहद का बाप है तो बेहद का वर्सा लेंगे । भई, कौन सा वर्सा लेंगे? हम सूर्यवंशी वर्सा लेंगे । अगर कहें कि थोड़ा कम वर्सा ले लेना, चंद्रवंशी वर्सा ले लेना तो कहेंगे नहीं-नहीं, हम तो सूर्यवंशी ही लेंगे, कम नहीं लेंगे । देखो, यहाँ ऐसे कहते हैं ना । हिम्मत दिखलाओ । कितनी गुह्य बातें हैं । क्या गीताओं में लिखी हैं, शास्त्रों में लिखी हैं?...... नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार बच्चों की जागती ज्योत होती है । इन सबकी जागती ज्योत है ना । पीछे नम्बरवार । ऐसे नहीं है कि सबकी जागती ज्योत है । इनकी तो जरा भी नहीं जागी है एकदम । कुछ मी नहीं है बिल्कुल ही । थोडी... पिचडी; क्योंकि प्रजा में आएंगे ना । नम्बरवार जो होंगे ना... । अभी समझते हो? देखो, बाबा कितनी युक्ति से बताते हैं कि 10-20 दफा आते तो हैं, सुनते हैं । जब मम्मा आती है, आ करके सुनकर फिर चले जाते हैं । बाबा आते हैं सुनते हैं, कभी-कभी आ जाते हैं । तो उनका क्या हाल होगा? पिचडी । लायक बनेगा स्वर्ग का तो उनका अहोभाग्य । उसको कहते हैं अहो भाग्य उनका भी । उनका अहो सौभाग्य सो भी नंबरवार पुरुषार्थ अनुसार । अहोभाग्य सो भी नंबरवार पुरुषार्थ अनुसार । अच्छा! चलो, सबका याद-प्यार देना । .. .इकट्‌ठा भी कर सकते हो, क्योंकि होली डे तो है, परन्तु जगह नहीं । तीन पैर पृथ्वी का नहीं । क्या करे ड्रामा अनुसार इस समय तक तो यही हाल है । आगे चलकर देखा जाएगा । हो सकता है कि बहुत बड़े-बड़े मकानों मे तुम भोजन इकट्‌ठे पाओ । मधुबन में तो पाय सकते हो, वो तो कोई बात ही नहीं है, परन्तु इस समय, फिर तुम मधुबन मे भी इकट्‌ठे नहीं पाय सकेंगे । हम लोग इतने भोजन इकट्‌ठे कभी पाय सकेंगे? नहीं कर सकेंगे । ये तो बहुत हो जाएंगे । इतनी बडी जगह ही नहीं होगी जितने बच्चे हो जाएँगे । समझते हो बच्चे । सेंटर-सेन्टर पर की तो बात अलग है । अगर मधुबन में बोल देवे कि आओ, अभी तो मंगाय सकते हैं । इतने बर्तन हैं, प्रबध है, परन्तु आगे चलकर तुम विचार तो करो । बच्चों की ये वृद्धि तो होती जाएगी, फिर कितने बर्तन चाहिए । होगा वही तक जहॉ तक हो सकेगा । बच्चे तो वृद्धि को पाते रहेंगे और सबका फोटो भी तो हमको चाहिए होगा जरूर, क्योंकि तुम हो बच्चे माँ-बाप के । देखो, बच्चे होते हैं तो फोटो नहीं रखते हैं? बाप का भी रखते हैं .बच्चों का भी रखते हैं । तो वहाँ चित्रशाला भी लिखी हुई है, क्योकि हमको बच्चों का मालूम नहीं पड़ता है कि किसकी चिट्‌ठी आई है, ये क्या है । तो सब बच्चों का ये भी बनाना है, क्योकि पासपोर्ट तो है ही । ये तो बाबा के पास भी जाते हैं कि बाबा, इनकी आत्मा का हाल देखो । ये सब दिखलाते हैं । अभी ये बच्ची चाहे कि इनकी अवस्था क्या है? तो झट बता देगी, बाबा से पूछकर आएगी । वो बता देगी इतना परसेन्ट अभी कम है । सम्पूर्ण ब्रहमा अव्यक्त ब्रहमा और व्यक्त ब्रहमा में इतना फर्क है । किसमें? आत्मा में । देखेंगे तो आत्मा देखेंगे ना । तो झटपट बताय देंगे, क्योकि बच्चों के लिए यह ड्रामा में है । ऐसे नहीं कि घड़ी-घड़ी बैठ करके पूंछ्नी हैं । बाकी ये हम खुद भी समझ सकते हैं, हर एक अपनी अवस्था को समझ सकते हैं ।. .जो कुछ पाप किए हैं, जो होते हैं, वो सब लिखकर दे दो तो कुछ आधा खत्म हो जावे और फिर दूसरे तरफ मे प्रालब्ध का खाता जमा होता रहता है । कोई पाँच विकार में फंस कर कोई पाप करके इस तरफ में... .तो नहीं करते हो? कोई भी किसको भी दुःख देकर अपने चौपड़े को...में नहीं ले आना, खाते में नहीं ले आना । जमा करते रहना । क्या करते रहना? औरों को ये नॉलेज दे करके, रास्ता बता करके अंधों की लाठी बनकर उनको सुख देते रहना । बाबा भी कहते हैं- बच्चे, जो किसको दुःख देता होगा और ये आदत पड़ी होगी, वो दुःखी होकर के मरेंगे । यह तो श्राप नहीं है, परन्तु यह तो लॉ कहती है । जिसको तुम सुख देते रहेंगे, सुखी होकर मरेंगे और अपना 21 जन्म सुखधाम में राजभाग करेंगे । यहाँ बहुत मीठा बनाते हैं । कोई को भी कोई भी दुःख नहीं देना है । ये बच्चों को बड़ी संभाल करनी है । ऐसे भी मुख से वचन ना निकले जो कोई को दुःख हो जावे । इतना मीठा बनना है । टाइम लगता है । ऐसे नहीं कि फिक्स टाइम में सब कोई हो जाते हैं । जहाँ जीना है तहाँ पुरुषार्थ करना है और फिर कोई को वहाँ कचहरी होती है । आज किसी ने किसी का दिल दुखाया? तो वो हांथ उठाते हैं । भई, क्या किया? तो कहेंगे- वो ऐसा किया । अच्छा, फिर और आगे नहीं करना, रजिस्टर खराब होता है । अपना रजिस्टर देखना चाहिए ना बच्चों । तुम स्कूल में पढ़ते हो ना तो जरूर रजिस्टर तो होगा ना । तो अपना रजिस्टर देखते रहना है । कहीं हमारा रजिस्टर खराब तो नहीं होता है? माया कहीं थप्पड तो नहीं मारती है? किनको दुःख तो नहीं देते हैं? सुख देने आते हैं बाप, ऐसे बाप का बनने में कितनी आना-कानी करते हैं । नहीं तो भक्तिमार्ग मे कहते हैं थे.... जन्म-जन्मान्तर कहते थे, वारी जाऊंगी, कुर्बान जाऊँगी । मेरे तो एक, दूसरा ना कोई । तुम मात-पिता, हम जब बालक आपका बनेंगे आपसे ही सुख घनेरे लेंगे। ग्रंथ में या कहीं गाया हुआ है ना । तुम मात-पिता हम बालक तेरे । तुम्हरी कृपा से सुख घनेरे । किसके लिए गाते हैं? वो आकर कहते हैं, जिसके लिए तुम गाते थे सो मैं आया हुआ हूँ । तो सबका सद्‌गति दाता सुख देने वाला एक है । कोई भी मनुष्य, मनुष्य को सुख नहीं दे सकते हैं । देवताएं एक दो को सुख देते हैं, परन्तु यहाँ की प्रालब्ध है । देवताओं का एक दो मे बहुत सुख है, दुःख का नाम-निशान नहीं । वो प्रालब्ध कहाँ की है? अभी की है । जिसको प्रालब्ध बनानी है सो बनावे । अच्छा । मीठे-मीठे बाप-दादा और मीठी-मीठी मम्मा का मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों को यादप्यार और गुडमार्निंग । पुरुषार्थ अनुसार यादप्यार कहें, यह तो एक लॉ है । अच्छा, सभी बच्चों को, औरों को तो कोई भी नहीं, हम बच्चों को मुबारक देते हैं अपना दीवा जगाने के लिए । पुराना खाता चुक्तू करके और नया खाता सुख का जमा करने के लिए । पुराना खाता दु ख का चुक्तू कर, सदैव के लिए फिर सुख का खाता जमा करना है । यह जो संगमयुग है ना. .. ... .यह कल्प मे था बच्चों के । आधा कल्प दुःख के चौपड़े पाप के योगबल से खत्म करना है । फिर योगबल और ज्ञान से हमको ऐसा नया चौपड़ा रखना है, ऐसा उनमें जमा करना है, जो हम 21 जन्म कभी दु ख नहीं देवे । इसको कहा जाता है कल्प का संगमयुग- पाप का खाता बंद, पुण्य का खाता जमा । फिर पुण्य आत्माओं की दुनिया शुरू, पाप आत्माओं की दुनिया खत्म ।